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दिल्ली में पढऩे वाले अफ़ग़ानी सुरक्षित

अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान के क़ब्ज़े के बाद से भारत में पढऩे वाले विद्यार्थियों में एक डर है। लेकिन इन विद्यार्थियों की तरफ़ शासन-प्रशासन के साथ-साथ विश्वविद्यालयों के प्रशासन का पूरा ध्यान है, ताकि उन्हें किसी भी प्रकार की कोई परेशानी न हो। दिल्ली यूनिवर्सिटी (डीयू) और जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) में पढऩे वाले विद्यार्थियों से बातचीत करके वहाँ के प्रोफेसर्स और शिक्षाधिकारियों ने सुरक्षा और हर सम्भव मदद देने की बात कही है। प्रोफेसर्स और व्यवस्थापकों ने ‘तहलका’ से कहा कि अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान के क़ब्ज़े को लेकर स्थिति नाज़ुक़ ज़रूर है; लेकिन अफ़ग़ानिस्तानी विद्यार्थियों को भयभीत होने की ज़रूरत नहीं है।

विदेश मामलों के जानकार और डीयू में प्रोफेसर डॉ. अमित सिंह ने कहा कि अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान के क़ब्ज़े को लेकर दुनिया भर में संशय के बादल मँडरा रहे हैं। क्योंकि तालिबान का अभी तक का इतिहास हिंसा का रहा है।

डीयू के कई कॉलेजों में पढऩे वाले अफ़ग़ानिस्तान विद्यार्थियों के अन्दर एक भय घर कर गया है कि वे अपने देश कैसे जा सकेंगे? उन्हें इससे बड़ा डर इस बात का है कि न जाने उनके परिजन कहाँ, किस स्थिति में होंगे? उनकी सुरक्षा को लेकर भी वे चिन्तित हैं। इसके अलावा जो अफ़ग़ानिस्तानी विद्यार्थी पिछले दिनों अपने देश गये थे, आगे की पढ़ाई के लिए उनकी वापसी का भी कोई भरोसा नहीं है; क्योंकि अफ़ग़ानिस्तान में हालात ठीक नहीं हैं। डीयू के प्रोफेसर डॉ. अमित सिंह का कहना है कि भारत एक शान्ति प्रिय और भाईचारे वाला देश है। ऐसे में भारत देश अपना दायित्व बख़ूबी निभा रहा है। अफ़ग़ानिस्तानी विद्यार्थियों की हर सम्भव मदद की जा रही है।

डीयू के वाइस चांसलर प्रो. पी.सी. जोशी ने अफ़ग़ानिस्तानी विद्यार्थियों से बातचीत करके उन्हें हर सम्भव मदद का भरोसा दिलाया है, ताकि वे अपनी सुरक्षा को लेकर तनाव में न रहें।

बताते चलें अफ़ग़ानिस्तानियों पर तालिबान के ज़ुल्म को लेकर डीयू के विद्यार्थियों ने अपनी और परिजनों की सुरक्षा के लिए अपने वीजा में एक्सटेंशन, इंडियन काउंसिल फॉर कल्चरल रिलेशंस (आईसीसीआर) स्कॉलरशिप, हालात सामान्य होने तक हॉस्टल में रहने देने और आर्थिक समस्याओं की माँग डीन स्टूडेंट्स वेलफेयर और फॉरेन रजिस्ट्री ऑफिस के समक्ष रखी है। डीयू के डिप्टी डीन फॉरेन स्टूडेंट्स प्रो. अमरजीव लोचन का कहना है कि डीयू में क़रीब 160 अफ़ग़ानिस्तान विद्यार्थी हैं, जिनमें से 40 अपने देश अफ़ग़ानिस्तान में हैं। बाक़ी जो छात्र यहाँ पर हैं, उनका पूरा ख़याल रखा जा रहा है।

जेएनयू के प्रो. विकास कुमार का कहना है कि अफ़ग़ानिस्तान में जो भी चल रहा है कि उसकी आँच दिल्ली में पढऩे वाले छात्रों पर हरगिज़ नहीं आएगी; क्योंकि भारत एक लोकतांत्रिक देश है। यहाँ पूरी दुनिया से विद्यार्थी उच्च शिक्षा हासिल करने आते हैं। भारत में सभी विदेशी विद्यार्थियों को न केवल पूरी सुरक्षा मिलती है, बल्कि उनके उज्ज्वल भविष्य के लिए जो भी सम्भव होता है, किया जाता है।

जेएनयू के छात्र कुमार पंकज का कहना है कि अफ़ग़ानिस्तान की घटना अंतर्राष्ट्रीय साज़िश का हिस्सा है, ताकि पूरी दुनिया में एक भय का माहौल बनाया जा सके। रहा सवाल भारत में पढऩे वाले छात्रों का, तो यहाँ न उनकी पढ़ाई ख़राब होगी और न उन्हें कोई परेशानी होने दी जाएगी। जेएनयू के छात्र रोहित सिंह का कहना है कि मौज़ूदा हालात को देखते हुए अफ़ग़ानिस्तान के विद्यार्थियों को भारत छोडक़र अभी कहीं नहीं जाना चाहिए। क्योंकि यहाँ उनकी सुरक्षा और बुनियादी ज़रूरतें पूरी करने की समुचित व्यवस्था भारत सरकार कर रही है।

धरने पर बैठे अफ़ग़ानिस्तानी शरणार्थी

दक्षिण दिल्ली का पॉश वसंत विहार इलाक़ा, जहाँ अमीर लोग और विदेशी उच्चायोग या दूतावास हैं; आजकल अफ़ग़ानिस्तानी शरणार्थियों के नारों से गूँज रहा है- ‘वी वांट जस्टिस’, ‘नो मोर साइलेंस’, ‘यूएनएचसीआर व्हाय यू आर सायलैंट’, हमें न्याय चाहिए। अब चुप्पी और नहीं चलेगी। यूएनएचसीआर तुम चुप क्यों हो? हमारा हक़ हमें दो। संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त के भारत कार्यालय के सामने सैकड़ों अफ़ग़ानी महिला-पुरुष, युवक-युवतियाँ, छोटी बच्चियाँ तथा बच्चे विकट गर्मी और उमस के बीच दरियाँ बिछाकर धरने पर बैठे हैं। युवक-युवतियाँ माईक पर जोशीले नारे लगा रहे हैं। दरअसल ये वे अफ़ग़ानी हैं, जो बरसों से भारत में शरणार्थी के तौर पर रह रहे हैं। जैसे ही अफ़ग़ानिस्तान में हालात बदले, इनकी सारी उम्मीदें टूट गयीं और ये यूएन शरणार्थी उच्यायुक्त कार्यालय के सामने पहुँच गये कि उनको वीजा देकर उन देशों में भेज दिया जाए, जो उनको लेने के लिए तैयार हैं।

अफ़ग़ान सोलिडेरिटी कमेटी इंडिया के बैनर तले यहाँ अपने हक़ों की माँग कर रहे अफ़ग़ानी युवक-युवतियाँ अपने भविष्य को लेकर बहुत चिन्तित हैं। दिल्ली के अफ़ग़ान स्कूल में 11वीं में पढ़ रही मरियम और कायनात ने ‘तहलका’ को बताया कि 10 साल पहले हमारे माँ-बाप हमारे अच्छे भविष्य के लिए भागकर भारत आये थे। लेकिन अब हमारा क्या होगा? भले ही हमारा स्कूल भारत में हैं; लेकिन हमारा बोर्ड तो काबुल में है। अब वहाँ कोई सरकार ही नहीं, सारे दफ़्तर बन्द हो गये हैं। हमारे पास स्कूल सर्टिफिकेट नहीं होगा, तो हम आगे कैसे पढ़ेंगे? हमें नौकरी कौन देगा? तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान और हमारी ज़िन्दगी को जहन्नुम बना दिया है।

35 वर्षीय आतिफ़ का परिवार पर्यटक के तौर पर सात साल पहले भारत आया था; लेकिन फिर लौटकर अफ़ग़ानिस्तान नहीं गया। आतिफ़ अब गुडग़ाँव में रहता है और मेदांता अस्पताल में दुभाषिये का काम करता था। उसके देश से बहुत-से मरीज़ दिल्ली इलाज कराने आते थे और वे दुभाषिये का काम करते थे। लेकिन 15 अगस्त को जैसे ही हालात बदले, दो दिन बाद मेदांता ने आतिफ़ को नौकरी से निकाल दिया। अब आतिफ़ के सामने रोज़ी-रोटी का संकट है। आतिफ़ कहता है कि यूएनएचसीआर को हमारे अधिकार देने ही होंगे। वह हमें वीजा दे दे, तो हम कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और ब्रिटेन जा सकते हैं। आतिफ़ कहता है कि तालिबानी सच्चे मुसलमान नहीं हैं। मैं भी मुसलमान हूँ; लेकिन हम किसी को नुक़सान नहीं पहुँचाते। इस्लाम में औरतों से बदसलूकी किया जाना कहीं नहीं लिखा है। आतंकवाद का कोई मज़हब नहीं है। वे मुसलमान नहीं हैं। आप भारत ही क्यों आते हो? पाकिस्तान तो आपका पड़ोसी देश है। वहाँ क्यों नहीं जाते? इस पर सवाल पर वहाँ खड़े सभी अफ़ग़ानी युवक और उम्रदराज़ पुरुष भडक़ गये। आतिफ़ कहता है कि पाकिस्तान अफ़ग़ानिस्तान का दुश्मन है। कभी उसने हमारा भला नहीं चाहा। उसी के कारण आज हमारे ये हालात हैं। भारत के साथ हमारे सदियों पुराने रिश्ते हैं। हमें भारत में बहुत प्यार और सुरक्षा मिलती है। हम यहाँ काम भी कर लेते हैं। भारत ने हमारे अच्छे भविष्य के लिए अरबों रुपये का निवेश किया है। एक सप्ताह के अन्दर हमारे देश पर तालिबान का क़ब्ज़ा बहुत बड़ी साज़िश है। अभी दुनिया चुप है। लेकिन सच्चाई जल्द ही सामने आएगी। उमर की आयु 27 वर्ष है। जब 10 साल पहले उसके परिवार ने भारत ने शरण ली, तो उसकी पढ़ाई छूट गयी। उसे बहुत अफ़सोस है। उमर कहता है कि वह पाकिस्तान जाने के बजाय मरना पसन्द करेगा। उनकी सारी मुसीबतों की जड़ पाकिस्तान है। कोई भी अफ़ग़ानी युवक पाकिस्तान में शरण नहीं लेना चाहता। पुलिस पकडक़र जेल में डाल देती है और फिर दो महीने बाद जबरदस्ती आतंकवादी ट्रेनिंग कैम्प में भेज देते हैं। पठानी सूट पहने जीवन के अनेक उतार चढ़ाव देख चुका लगभग 55 साल का बिस्मिल्ला कहता है कि हम अफ़ग़ानी पाकिस्तान को बिल्कुल पसन्द नहीं करते। उसकी फ़ौज उसकी पुलिस हमें पकडक़र तालिबान के हवाले कर देती है। वहाँ खाना-कमाना तो दूर की बात है, हम शरण लेने की सोच भी नहीं सकते। भारत में हम पटरी लगाकर भी बैठ जाते हैं। पाकिस्तान अफ़ग़ानिस्तान की बर्बादी के लिए काम करता है। वो हमें ख़ुशहाल नहीं देखना चाहता। हमारी सांसद अनारकली कौर चाहतीं, तो किसी भी देश में चली जातीं; लेकिन उन्होंने भारत आना ही पसन्द किया।

अफ़ग़ानी महिला संगठन की अध्यक्ष लगभग 50 साल की अनीशा का परिवार 11 साल पहले भारत आया था, तब तो शान्ति थी। फिर आप क्यों भारत आ गये? पूछने पर अनीशा कहती है कि कौन-सी शान्ति आज स्कूल जला रहे हैं? मस्जिदों, गुरुद्वारों पर हमले और औरतों पर अत्याचार तालिबान ने कभी बन्द नहीं किये। तालिबान के बारे में हम क्या कहें? पूरी दुनिया देख रही है कि तालिबान कौन है? क्या कर रहा है? दुनिया में इतने इस्लामिक देश हैं। फिर आप लोग भारत या पश्चिमी देशों में ही क्यों रहना चाहते हो? पूछने पर अनीशा कहती है कि हम कहाँ जाएँ? पाकिस्तान, अमेरिका, इरान सब अफ़ग़ानिस्तान के दुश्मन हैं। तजाकिस्तान और क़जाकिस्तान के पास अपने लोगों के लिए कुछ नहीं है; हमें क्या देंगे? हमारी बेटियाँ सुरक्षित रहनी चाहिए। इसलिए हम भारत और पश्चिमी देशों में शरण लेना पसन्द करते हैं।

अचानक अफ़ग़ानिस्तानियों के धरना-प्रदर्शन और नारेबाज़ी पर संयुक्त राष्ट्र महासंघ शरणार्थी उच्चायुक्त के भारत कार्यालय के प्रवक्ता कीरी अत्री ने ‘तहलका’ को बताया कि भारत में बरसों से रह रहे अफ़ग़ानी शरणार्थी मौक़े का फ़ायदा उठाना चाहते हैं। दरअसल ऑस्ट्रेलिया, कनाड़ा यूएस और यूके ने जो 20-20 हज़ार अफ़ग़ानिस्तानियों को शरण देने की पेशकश की है। वो इनके लिए नहीं है; बल्कि अभी जो अफ़ग़ानिस्तान में फँसे हैं, उनके लिए हैं। भारत में पहले से जो शरणार्थी रह रहे हैं, हम उनमें हर साल लगभग 200 को वीजा देते हैं। लेकिन यह हमारे हाथ में नहीं है। जो देश जितने लोगों को शरण देने के लिए राज़ी होता है, हम उतनों को भेज देते हैं। कोरोना वायरस के कारण यह प्रक्रिया फ़िलहाल बन्द है। अत्री कहते हैं कि हम इनको लिखित में सारी जानकारी दे चुके हैं; लेकिन ये मान नहीं रहे हैं। कोराना-काल में बीमारी फैलने का डर भी है। हमने पुलिस से इनको 300 मास्क बँटवाये हैं।

कब खुलेंगी पेगासस जासूसी मामले की परतें?

पेगासस का मसला अभी भी देश की राजनीति में तूफ़ान मचाये हुए है; भले मोदी सरकार मामले से मुँह मोडऩे की लाख कोशिश कर रही हो। इजरायल और फ्रांस में इस मामले में जाँच शुरू हो चुकी है। लेकिन कांग्रेस और विपक्ष द्वारा इस मसले की संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) से जाँच की माँग से केंद्र सरकार इन्कार कर रही है। राफेल को लेकर पहले ही देश की जनता अनेक सवाल कर रही है और अब मोदी सरकार के पेगासस मामले पर चुप्पी साधने से यह सवाल और गहरा रहे हैं। सर्वोच्च न्यायालय के इस मसले पर सरकार को नोटिस जारी कर जबाव माँगने से उम्मीद बँधी है कि इस सवाल का शायद जवाब मिल जाए कि क्या केंद्र सरकार ने पेगासस स्पाईवेयर सॉफ्टवेयर के ज़रिये अपने विरोधियों और अन्य प्रमुख लोगों की जासूसी करवायी? तमाम मसले पर विशेष संवाददाता राकेश रॉकी की रिपोर्ट :-

पेगासस स्पाईवेयर सॉफ्टवेयर के ज़रिये जासूसी के मामले में भारत और इजरायल-फ्रांस में क्या अन्तर है? इन दोनों देशों में इस मामले की जाँच हो रही है, जबकि भारत की सरकार ने इसे कोई मुद्दा मानने से ही इन्कार कर दिया है। संसद में विपक्ष ने लाख सवाल उठाये; लेकिन मोदी सरकार टस-से-मस नहीं हुई और सूचना प्रोद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने लोकसभा में कहा कि संसद के मानसून सत्र से एक दिन पहले मीडिया में पेगासस से जुड़ी ख़बरों का आना संयोग नहीं हो सकता है। यह भारतीय लोकतंत्र की छवि को धूमिल करने का प्रयास है।

आख़िर क्यों मोदी सरकार पेगासस जैसे गम्भीर आरोपों वाले मसले पर चुप्पी साधे रखना चाहती है? सरकार से कांग्रेस सहित विपक्ष पूछ रहा है कि उसने पेगासस के इस्तेमाल को मंज़ूरी दी या नहीं। सरकार ने पेगासस का इस्तेमाल किया था या नहीं? लेकिन सरकार के जबाव गोलमोल हैं। अब 16 अगस्त को देश की सर्वोच्च न्यायालय ने पेगासस जासूसी मामले की स्वतंत्र जाँच की माँग वाली एक याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी करके जवाब दाख़िल करने को कहा है। सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश ने सुनवाई के दौरान कहा कि अगर रिपोर्ट सही है, तो इसमें कोई शक नहीं कि आरोप गम्भीर हैं। सन् 2019 में जासूसी की ख़बरें आयी थीं। मुझे नहीं पता कि अधिक जानकारी हासिल करने के लिए कोई प्रयास किया गया या नहीं। मैं हरेक मामले के तथ्यों की बात नहीं कर रहा, कुछ लोगों ने दावा किया है कि फोन इंटरसेप्ट (अवरोधन) किया गया है। ऐसी शिकायतों के लिए टेलीग्राफ अधिनियम है। सर्वोच्च न्यायालय में यह मामला अभी विचाराधीन है।

निश्चित रूप से रफाल लड़ाकू विमान ख़रीद विवाद के बाद पेगासस का मामला मोदी सरकार की बड़ी मुसीबत बनता दिख रहा है। इन दोनों मामलों की विदेश में जाँच होने से भारत में सरकार के प्रति अविश्वास का माहौल बन रहा है, जिसका अंतत: मोदी सरकार को ही राजनीतिक नुक़सान होगा। लेकिन सरकार दोनों मसलों से पल्ला झाडऩे की कोशिश में दिख रही है, जिससे जनता में अविश्वास और गहरा रहा है और सवाल उभर रहे हैं कि सरकार आख़िर क्यों इन गम्भीर सवालों के जबाव सामने नहीं आने देना चाहती? क्या उसे सच सामने आने से किसी तरह की राजनीतिक चिन्ता है?

बड़ा सवाल यह है कि इजरायल और फ्रांस पेगासस जासूसी काण्ड की जाँच करवा सकते हैं, तो भारत सरकार क्यों नहीं? कौन है, जो सच या सही तथ्य सामने आने देना नहीं चाहता? और क्यों? ख़ुद के पारदर्शी सरकार होने का ढिंढोरा पीटने वाली मोदी सरकार संसद से लेकर बाहर तक क्यों पेगासस जासूसी मामले पर पर्दे डाल देना चाहती है; क्योंकि उसके क़दमों से संदेश तो यही जा रहा है।

सर्वोच्च न्यायालय का नोटिस

पेगासस जासूसी मामले की स्वतंत्र जाँच की माँग वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने 16 अगस्त को केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब दाख़िल करने को कहा। इससे पहले केंद्र सरकार ने कहा कि उसने जो हलफ़नामा दायर किया है, वह पर्याप्त है। ये मामला राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा हुआ है और मामले में हलफ़नामे में तथ्यों का ख़ुलासा नहीं किया जा सकता। प्रधान न्यायाधीश की बेंच ने कहा कि हम सोच रहे थे कि केंद्र सरकार का जवाब इस मामले में विस्तार से आएगा; लेकिन जवाब लिमिटेड था। हम इस मामले में केंद्र सरकार को नोटिस जारी करते हैं। 10 दिन के बाद मामले की सुनवाई की जाएगी। हम इस दौरान देखेंगे और सोचेंगे कि क्या किया जा सकता है? क्या कोर्स ऑफ एक्शन हो या तय करेंगें? क्या एक्सपर्ट समिति की ज़रूरत है? या किसी और समिति की? इस बारे में भी हम देखेंगे कि क्या करना है? हम केंद्र सरकार को नोटिस जारी करते हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को नोटिस जारी करके कहा कि सरकार को उन आरोपों का जवाब देना चाहिए, जिनमें कहा गया है कि इजरायली स्पाईवेयर का इस्तेमाल अलग-अलग फोन पर किया गया था। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि वह केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया मिलने के बाद ही जाँच के लिए समिति बनाने पर फ़ैसला करेगा।

सर्वोच्च न्यायालय की प्रधान न्यायाधीश एन.वी. रमना की अगुवाई वाली पीठ के सामने हुई सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि हम राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े तथ्यों का ख़ुलासा करने को नहीं कह रहे हैं, बल्कि हम यह जानना चाहते हैं कि पेगासस का इस्तेमाल सरकार ने सर्विलांस (जासूसी) के लिए किया है या नहीं? केंद्र सरकार ने जो हलफ़नामा दायर किया है, उसमें वह जवाब देने से बच रही है। सर्वोच्च न्यायालय ने इससे एक दिन पहले केंद्र सरकार से पूछा था कि क्या वह मामले में विस्तृत हलफ़नामा दायर करना चाहती है? केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल ने सर्वोच्च अदालत में कहा कि केंद्र सरकार की ओर से जो हलफ़नामा पेश किया गया है, वह पर्याप्त है। इस मामले में किसी अतिरिक्त हलफ़नामे की ज़रूरत नहीं है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अगर सरकार हलफ़नामे में इस बात का ख़ुलासा कर देगी कि वह कौन-से सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करती है और कौन-से का नहीं? तो आतंकी गतिविधियों में शामिल लोग उससे बचने का तोड़ निकाल लेंगे। ऐसे में इस मामले को जनचर्चा में नहीं लाया जा सकता है। ये मामला राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा हुआ है। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता चाहते हैं कि सरकार बताए कि किस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल नहीं होता है और किसका होता है? मान लिया जाए कि अगर यह बात झूठे तौर पर फैला दी जाए कि सैन्य उपकरण का इस्तेमाल अवैध तरीक़े से हो रहा है और इस बारे में याचिका दाख़िल कर दी जाए; तो क्या सैन्य उपकरण के इस्तेमाल की जानकारी के बारे में जवाब माँगा जा सकता है?

मेहता ने कहा कि अगर कोई आतंकी संगठन का स्लीपर सेल किसी डिवाइस का इस्तेमाल करता है और सरकार कहे कि वह किसी सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल सर्विलांस के लिए करती है, तो वह आतंकी संगठन अपने उपकरण को बदल देगा या उसके मॉड्यूल को बदल देगा। अगर सरकार ये बता दे कि पेगासस का इस्तेमाल होता है या नहीं, तो इससे आतंकियों की मदद हो जाएगी; क्योंकि वह इसका तोड़ निकाल लेंगें। इस पर सिब्बल ने कहा कि हम राष्ट्रीय सुरक्षा से सम्बन्धित जानकारी को उजागर नहीं करने को कह रहे हैं। हम केवल ये जानना चाहते हैं कि क्या सरकार ने पेगासस के इस्तेमाल को मंज़ूरी दी थी? क्या सरकार ने पेगासस का इस्तेमाल किया था या नहीं?

सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि हम न्यायालय से कुछ छिपाना नहीं चाह रहे हैं। सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि जिस प्रस्तावित एक्सपर्ट समिति के गठन की बात कही गयी है, उस समिति के सामने सरकार पूरा ब्यौरा पेश कर देगी; लेकिन जनचर्चा के लिए नहीं दे सकती। हमारे पास छिपाने को कुछ भी नहीं है; लेकिन ये मामला राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा है। इस पर सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि हम बतौर न्यायालय ये कभी नहीं चाहेंगे कि राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ समझौता हो। लेकिन यहाँ आरोप है कि कुछ लोगों के मोबाइल को हैक किया गया और सर्विलांस किया गया। ये भी कंपिटेंट अथॉरिटी की इजाज़त से हो सकता है। इसमें क्या परेशानी है कि कंपिटेंट अथॉरिटी हमारे सामने इस बारे में हलफ़नामा पेश करे। कंपिटेंट अथॉरिटी नियम के तहत फ़ैसलाले कि किस हद तक जानकारी जनता में जा सकती है? सर्वोच्च न्यायालय ने साफ़ किया कि हम ऐसा नहीं चाहते कि सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा से सम्बन्धित जानकारी उजागर करे। सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को नोटिस पेगासस के कथित इस्तेमाल की न्यायालय की निगरानी में जाँच की माँग करने वाली जनहित याचिकाओं की सुनवाई के बाद जारी किया है। न्यायालय ने केंद्र से 10 दिन के अन्दर जवाब देने का आदेश देते हुए कहा कि मामले में आगे की कार्रवाई के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे। इस मामले में न्यायाधीश सूर्यकांत ने कहा कि हम यह नहीं चाहते हैं कि राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता किया जाए; लेकिन लोगों का दावा है कि उनके फोन पर हमला किया गया है। उनके दावों के अनुसार, एक सक्षम प्राधिकारी ही इस पर प्रतिक्रिया दे सकता है। याद रहे द वायर सहित एक मीडिया संस्थान ने बड़ा ख़ुलासा करते हुए बताया था कि भारत के क़रीब 300 से ज़्यादा फोन इजरायली स्पाईवेयर फर्म एनएसओ के लीक डाटाबेस के सम्भावित लक्ष्यों की सूची में शुमार थे।

सुनवाई के दौरान प्रधान न्यायाधीश एन.वी. रमना ने कहा कि अगर मीडिया में आयी ख़बर सही है, तो आरोप सच में गम्भीर है। सर्वोच्च न्यायालय में पेगासस जासूसी मामले को लेकर विभिन्न याचिकाएँ दायर की गयी हैं और इन याचिकाओं में पेगासस जासूसी कांड की न्यायालय कि निगरानी में एसआईटी जाँच की माँग की गयी है। इनमें राजनेता, एक्टिविस्ट, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और वरिष्ठ पत्रकारों एन. राम और शशि कुमार की दी गयी अर्जियाँ भी शामिल हैं। प्रधान न्यायाधीश एन.वी. रमना और न्यायाधीश सूर्यकांत की पीठ इसकी सुनवाई कर रही है।

सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष याचिकाकर्ता पत्रकारों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दत्तर ने कहा कि सम्पूर्ण और व्यक्तिगत गोपनीयता के रूप में नागरिकों की गोपनीयता पर विचार किया जाना चाहिए। याचिकाकर्ता शिक्षाविद् जगदीप की ओर से पेश वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने सर्वोच्च न्यायालय से कहा कि वर्तमान मामले की भयावहता बहुत बड़ी है और कृपया मामले की स्वतंत्र जाँच पर विचार करें। वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने भारत के मुख्य न्यायाधीश से कहा कि मैं और हम सभी चाहते हैं कि आप केंद्र सरकार को नोटिस जारी करें। सर्वोच्च न्यायालय में कपिल सिब्बल ने दलील दी कि पत्रकार, सार्वजनिक हस्तियाँ, संवैधानिक प्राधिकरण, अदालत के अधिकारी, शिक्षाविद् सभी स्पाईवेयर के ज़रिये निशाने पर हैं और सरकार को जवाब देना होगा कि इसे किसने ख़रीदा? हार्डवेयर कहाँ रखा गया था? सरकार ने एफआईआर क्यों नहीं दर्ज करायी? याचिकाकर्ता एन. राम और अन्य की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने सर्वोच्च न्यायालय में कहा कि यह स्पाईवेयर केवल सरकारी एजेंसियों को बेचा जाता है; निजी संस्थाओं को नहीं बेचा जा सकता है। एनएसओ प्रौद्योगिकी अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में शामिल है। उन्होंने कहा कि पेगासस एक दुष्ट अथवा कपटी तकनीक है, जो हमारी जानकारी के बिना हमारे जीवन में प्रवेश करती है। यह हमारे गणतंत्र की निजता, गरिमा और मूल्यों पर हमला है।

इससे पहले सर्वोच्च न्यायालय ने 10 अगस्त की सुनावी के दौरान पेगासस जासूसी मामले में तीखी टिप्पणी की थी। न्यायालय में मामले की सुनवाई के दौरान प्रधान न्यायाधीश एन.वी. रमना ने कहा कि इस मामले पर बहस सिर्फ़ न्यायालय में होनी चाहिए; सोशल मीडिया पर नहीं। पेगासस जासूसी मामले में आरोपों की एसआईटी से जाँच कराने की याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सीजेआई ने याचिकाकर्ताओं से कहा था कि हम आपका सम्मान करते हैं। लेकिन इस मामले पर जो भी बहस हो, वो न्यायालय में हो, सोशल मीडिया पर समानांतर बहस न हो। अगर याचिकाकर्ता सोशल मीडिया पर बहस करना चाहते हैं, तो ये उन पर निर्भर करता है कि वे क्या चाहते हैं? लेकिन अगर वे न्यायालय में आये हैं, तो उन्हें न्यायालय में बहस करनी चाहिए और न्यायालय पर भरोसा रखना चाहिए।

याद रहे केंद्र ने हलफ़नामा दायर कर सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि पेगासस जासूसी के आरोपों को लेकर स्वतंत्र जाँच की माँग करने वाली याचिकाएँ अटकलों, अनुमानों और मीडिया में आयी अपुष्ट ख़बरोंपर आधारित हैं। हलफ़नामे में सरकार ने कहा कि केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव पहले ही कथित पेगासस जासूसी मुद्दे पर संसद में उसका रूख़ स्पष्ट कर चुके हैं। हलफ़नामे में कहा गया कि उपर्युक्त याचिका और सम्बन्धित याचिकाओं के अवलोकन भर से यह स्पष्ट हो जाता है कि वे अटकलों, अनुमानों और अन्य अपुष्ट मीडिया ख़बरोंऔर अपूर्ण या अप्रामाणिक सामग्री पर आधारित हैं। हलफ़नामे में कहा गया कि कुछ निहित स्वार्थों के दिये गये किसी भी ग़लत विमर्श को दूर करने और उठाये गये मुद्दों की जाँच करने के उद्देश्य से विशेषज्ञों की एक समिति का गठन किया जाएगा।

इजरायल और फ्रांस में जाँच

यह मामला तब सामने आया था, जब 10 देशों के 17 मीडिया संगठनों के लिए काम कर रहे 80 पत्रकारों के एक समूह ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर की जाँच के बाद अपनी ख़बर में इस जासूसी मामले का ख़ुलासा किया था। इस मसले पर फॉरबिडन स्टोरीज और एमनेस्टी इंटरनेशनल ने जो जाँच की उसके आधार पर दावा किया गया कि इजरायली फर्म एनएसओ रुप ने दुनिया की कई सरकारों को अपना पेगासस स्पाईवेयर बेचा। यह स्पाईवेयर अपराधियों और आतंकवादियों से लेकर राजनीतिक नेताओं, पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं तक तमाम हस्तियों की जासूसी के लिए इस्तेमाल करता था। चूँकि जासूसी होने वाले लोगों की सूची में फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों का भी नाम था। कहा जाता है कि उन्होंने इजरायल के प्रधानमंत्री नेफ्टाली बेनेट को फोन किया और इस मामले पर स्पष्टीकरण चाहा। इसके बाद फ्रांस का दौरा कर रहे इजरायली रक्षा मंत्री बेनी गैंट्ज ने फ्रांस के रक्षा मंत्री फ्लोरेंस पार्ली को बताया कि इजरायल अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के अनुसार सख़्त लाइसेंस नियमों के तहत ही काम कर रहा है और इसे केवल आतंक और अपराध से लडऩे के लिए सरकारों को बिक्री के लिए दिया जाता है।

बेनी गैंट्ज के मुताबिक, चूँकि फ्रांस कई आतंकवादी हमलों का गवाह रहा है, वह आतंक के ख़िलाफ़ जंग में ऐसे निगरानी उपकरणों को लेकर पूरी तरह वाक़िफ़ था। कई अन्य सरकारों और दुनिया भर के मीडिया ने नेफ्टाली बेनेट की इजरायली सरकार से इजरायल राय और एनएसओ रूप के बीच सम्बन्धों की जानकारी ज़ाहिर करने का आह्वान किया। अमेरिकी प्रशासन ने भले ख़ुद इस मसले पर प्रत्यक्ष रूप से कुछ नहीं कहा; लेकिन देश के चार प्रभावशाली सीनेटर ने एनएसओ समूह को निर्यात ब्लैकलिस्ट पर रखने पर विचार करने का बाइडन प्रशासन का आह्वान किया। अंतर्राष्ट्रीय दबाव के बाद 28 जुलाई को इजरायल के रक्षा मंत्रालय के लोगों ने हर्जलिया में एनएसओ समूह के कार्यालय पर छापा मारा और उसका निरीक्षण किया। एनएसओ ने इसे छापा मानने से इन्कार किया और कहा कि अधिकारियों की तरफ़ से यह एक दौरा मात्र था। हालाँकि इसी दौरान एक ख़बर यह भी सामने आयी कि एनएसओ रूप ने स्पाईवेयर के सम्भावित दुरुपयोग की जाँच के लिए कुछ अंतर्राष्ट्रीय सरकारी ग्राहकों के खातों को निलंबित कर दिया। एनएसओ जाँच रिपोर्ट में दिखायी देने वाले प्रत्येक लक्ष्य और खाते की जाँच कर रहा है और यह भी जाँच कर रहा है कि निगरानी सॉफ्टवेयर का उनका उपयोग उनके अनुबन्ध की शर्तों के विपरीत है या नहीं। अभी यह साफ़ नहीं है कि इजरायल के इस मामले में जाँच के क्या नतीजे सामने आये हैं? यहाँ एक बड़ा पेंच यह भी है कि पेगासस को इजरायली कम्पनी एनएसओ रूप बनाती है और कम्पनी का दावा है कि वह इस सॉफ्टवेयर को सिर्फ़ सरकारों को ही बेचती है। उधर फ्रांस सरकार पहले ही पेगासस से कथित जासूसी की जाँच के आदेश दे चुकी है। अंतर्राष्ट्रीय मीडिया के ख़ुलासे के मुताबिक, पेगासस स्पाईवेयर का इस्तेमाल करके क़रीब 1,000 फ्रांसीसी लोगों को निशाना बनाया गया और उनके फोन टैप किये गये। जानकारी के मुताबिक, मोरक्को की एजेंसी ने पेगासस के ज़रिये क़रीब 1,000 फ्रांसीसी लोगों को निशाना बनाया था, जिनमें पत्रकार शामिल हैं। फ्रांस में इस मसले पर हो रही जाँच को लेकर भी अभी तक कोई जानकारी सामने नहीं आयी है।

 

कांग्रेस समेत विपक्ष का 20 से प्रदर्शन

कांग्रेस समेत 19 विपक्षी दल पेगासस जासूसी मामले पर मोदी सरकार के ख़िलाफ़ 20 से 30 सितंबर के बीच राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन करेंगे। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी के साथ विपक्षी दलों की बैठक में यह फ़ैसलाहुआ। बैठक के बाद विपक्षी दलों के नेताओं ने एक साझे बयान में कहा कि सरकार पेगासस मामले की उच्चतम न्यायालय की निगरानी में जाँच कराये। विपक्षी दलों ने कहा कि हम केंद्र सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी के उस रवैये की निंदा करते हैं कि जिस तरह उसने मानसून सत्र में व्यवधान डाला, पेगासस सैन्य स्पाईवेयर के ग़ैर-क़ानूनी उपयोग पर चर्चा कराने या जवाब देने से इन्कार किया। सरकार की ओर से इन मुद्दों और देश और जनता को प्रभावित करने वाले कई अन्य मुद्दों की जानबूझकर उपेक्षा की गयी। पेगासस जासूसी मामले को लेकर केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष ने इसे बहुत ख़तरनाक और संवैधानिक संस्थाओं पर हमला बताया।

सर्वोच्च न्यायालय के फ़ैसले पर नज़र

पेगासस का मामला भारतीय लोकतंत्र में एक ऐसे पैबंद की तरह है, जो हमें शर्मशार करता है। पेगासस के ज़रिये जासूसी न केवल लोगों के निजता के अधिकार, बल्कि उनके जीवन के अधिकार से भी जुड़ा हुआ मामला है। सबकी नज़र अब सर्वोच्च न्यायालय पर रहेगी। न्यायालय में पेगासस पर सरकार की दलीलें कमोवेश वैसी ही हैं, जैसी संसद में राहुल गाँधी के राफेल लड़ाकू विमानों की क़ीमत पूछने पर रही थीं। सरकार राष्ट्र की सुरक्षा के ख़तरों का बहाना करती है। राफेल पर मोदी सरकार ने कहा था कि जैसे ही हम इन विमानों की क़ीमत बता देंगे, चीन-पाकिस्तान जैसे दुश्मन राष्ट्र को इनका सारा कॉफिगरेशन (विन्यास) पता चल जाएगा और वे इनसे मुक़ाबले के लिए तैयारी करना शुरू कर देंगे। अब न्यायालय में सरकार ने कहा कि जैसे ही सरकार यह बताएगी कि वह कौन-से सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करती है और किसका नहीं? आतंकी उससे बचने का तोड़ निकाल लेंगे। ऐसे में इस मामले को जनचर्चा में नहीं लाया जा सकता है। यहाँ यह समझने की बात है कि यह मामला टेलीफोन टैपिंग का नहीं है। पेगासस सिस्टम फोन टैप नहीं करता, हैक ही कर लेता है। अर्थात् फोन के ज़रिये हैकर हमारे ईमेल, व्हाट्स ऐप, एसएमएस, मैसेंजर और बाक़ी ऐप्स स्टोरेज में घुस जाता है। वह वहाँ के तमाम चैट और किसी भी तरह की अहम सामग्री मेल बॉक्स और ऐप्स के स्टोरेज में प्लांट कर सकता है। लाईव फोटो तक देख सकता है। यहाँ यह बहुत महत्त्वपूर्ण है कि पेगासस सॉफ्टवेयर बेचने वाली कम्पनी एनएसओ रूप साफ़ करता रहा है कि वह सरकारों के अलावा किसी और को (मतलब निजी संस्था या संगठन को नहीं) बेचता। ऐसे में केंद्र सरकार यदि यह कहती है कि उसने मीडिया की रिपोट्र्स में सामने आयी सूची वाले भारतीयों के ख़िलाफ़ पेगासस का इस्तेमाल नहीं किया, फिर तो यह और गम्भीर बात हो जाती है कि ऐसा और किसने किया? क्या किसी विदेशी सरकार ने या किसी आतंकी या अन्य संगठन ने?

जासूसी को लेकर कठघरे में सरकार

इसे विडम्बना कहें कि सत्ता का नशा कि अपने ही लोगों की जासूसी, वो भी विदेशी एंजेसियों द्वारा? ऐसे में बवाल तो मचना स्वाभाविक था ही। भले ही सत्ता अपने पत्ते न खोले; लेकिन विपक्ष तो सवाल करके सरकार को कठघरे में खड़ा करेगा ही करेगा। संसद से लेकर सडक़ तक पेगासस जासूसी को लेकर हो-हल्ला हुआ। विपक्ष चिल्लाता रहा, सरकार अपने ख़ामोशी वाले अंदाज़ में सारा तमाशा देखती रही और कुछ नहीं हुआ। सवाल वहीं के वहीं हैं कि आख़िर जासूसी किसने करायी? क्यों करायी? सरकार जाँच से क्यों बच रही है?

पेगासस जासूसी को लेकर ख़ूब हंगामा हुआ, जिसके चलते संसद का मानसून सत्र सुचारू रूप से नहीं चल पाया। कई ज़रूरी विधेयक बिना बहस के पास हो गये। पारित हुए विधेयकों पर विपक्ष ने रोष और आपत्ति जतायी।

बताते चलें मीडिया रिपोर्ट के हवाले से यह बात सामने आयी थी कि इजराइली कम्पनी एनएसओ के स्पाईवेयर सॉफ्टवेयर के द्वारा भारत के 300 से अधिक मोबाइल उपयोगकर्ताओं की जासूसी की गयी है। इन लोगों में कांग्रेस नेता राहुल गाँधी के अलावा कई अन्य नेता, दो केंद्रीय मंत्री और दर्जनों पत्रकार हैं। इस जासूसी कांड को लेकर पत्रकारों और विपक्षी नेताओं में रोष व्याप्त है। उनका कहना है कि सरकार संसद में स्पष्ट क्यों नहीं करती कि उसने एनएसओ समूह की सेवाएँ लीं या नहीं?

कुल मिलाकर पेगासस मामले पर सरकार ने अभी तक कोई रूख़ स्पष्ट नहीं किया है, जिसे लेकर जासूसी के निशाने पर आये तक़रीबन सभी लोगों की उँगलियाँ उधर ही उठ रही हैं। पेगासस को लेकर विपक्ष की तेज़धार को देखते हुए भाजपा सरकार के सहयोगी नेता व बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी बोलना पड़ा कि इस मामले में सरकार अपना रूख़ स्पष्ट करें, ताकि सच्चाई को सामने लाया जा सके। यानी इस मामले में विपक्ष को नीतीश का साथ मिला है। इस मामले पर नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने कहा है कि सरकार जानबूझकर बहुत कुछ छिपा रही है। जाँच से भाग भी रही है। यह एक प्रकार का देश का बड़ा घोटाला है। वह बेवजह देश का पैसा बर्वाद करके अपने ही देश के नेताओं और पत्रकारों की जासूसी करवा रही है। ऐसी घटनाएँ देश की छवि को कलंकित करती हैं।

पत्रकार कुमार प्रदीप ने ‘तहलका’ को बताया कि देश की सियासत में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। केंद्र सरकार सत्ता के नशे में इस क़दर चूर है कि वह अपनी कमियाँ छिपाने के लिए अपने ही मंत्रियों की जासूसी करवा रही है। इस मामले को लेकर भाजपा और सरकार के बीच भी मनमुटाव और अंतर्कलह बना हुआ है। इससे गम्भीर बात और क्या हो सकती है कि केंद्रीय मंत्री सफ़ार्इ तो दे रहे हैं; लेकिन संसद में बहस से बच रहे हैं। इससे शंकाएँ और गहरी हो रही हैं। अन्य पत्रकारों का कहना है कि इजराइली कम्पनी एनएलओ के स्पाइवेयर के माध्यम से दुनिया भर की सरकारों ने जासूसी की है। लेकिन मामले के इस क़दर तूल पकडऩे के बावजूद सरकार जासूसी मामले की चर्चा तक नहीं करना चाहती। जबकि इजराइल में इसकी गहनता से जाँच हो रही है। इससे भारत की केंद्र सरकार संदेह के दायरे में है। पत्रकारों का कहना है कि उनका धर्म है कि वे सरकार की कमियों को उजागर करें और उससे सवाल पूछें; चाहे वह किसी भी पार्टी की सरकार हो। लेकिन मौज़ूदा केंद्र सरकार उन्हें अपने निशाने पर ले रही है, जो कि लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ पर कुठाराघात है।

भाजपा सूत्रों का कहना है कि कई बार दूसरों की जाँच के ज़रिये अपनी जाँच भी की जाती है। रही बात जासूसी की, तो पहले भी सरकारें जासूसी और फोन टेपिंग करवाती रही हैं। यह सियासत का हिस्सा है। जो भी हो, मगर यह तो साफ़ कि पेगासस जैसे गम्भीर मामले में सडक़ से लेकर संसद तक हुए विरोध को सरकार को सुनना चाहिए और इसे जाँच के दायरे में लाना चाहिए।

रेल, संचार तथा विद्युदाणविकी (इलेट्रॉनिकी) और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव का कहना है कि पेगासस मामले में सरकार की कोई भूमिका नहीं है। विपक्ष बेवजह दबाव बना रहा है।

वहीं कांग्रेस नेता अमरीश रंजन पांडे का कहना है कि आगामी चुनाव में कांग्रेस और उसके सहयोगी दल महँगाई, पेट्रोल-डीजल के दामों में बढ़ोतरी के साथ-साथ किसान आन्दोलन की तरह पेगासस जासूसी मामले को चुनावी मुद्दा बनाएँगे। हम सब जनता के समक्ष सरकार की पोल खोलेंगे कि सरकार अपनों की जाँच विदेशी कम्पनियों से करा रही है, जो देश हित में नहीं है।

काले सोने के काले नाग

शनिवार 17 जुलाई की सुरमई शाम थी। बादल गरजकर बरस चुके थे; लेकिन घटाएँ अभी भी घुमड़ रही थी। बारिश में भीगी हवाओं ने हल्की-फुल्की ठिठुरन पैदा कर दी थी। कोटा के ‘हैंगिंग ब्रिज’ टोल नाके के पास भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के नायब पुलिस अधीक्षक अजीत सिंह बागडोलिया अपनी टीम के साथ पूरी मुस्तेदी से निगरानी बनाये हुए थे। एसीबी को सूचना मिली थी कि उत्तर प्रदेश ग़ाज़ीपुर स्थित अफीम फैक्ट्री के महाप्रबन्धक शशांक यादव नीमच में अफीम काश्तकारों से 15-16 लाख रुपये रिश्वत के तौर पर वसूलकर चित्तौडग़ढ़ से कोटा होते हुए ग़ाज़ीपुर जा रहा है। शशांक यादव के पास नीमच स्थित फैक्ट्री का भी अतिरिक्त चार्ज था। शशांक यादव ने काश्तकारों से यह रक़म अवैध रूप से वसूली थी। सूचना के मुताबिक, यादव कार में सफ़र कर रहा था। टोल नाके पर पूरी सतर्कता से वाहनों की जाँच (चेकिंग) की जा रही थी। इंतज़ार की घडिय़ाँ लम्बी हुईं, तो नायब पुलिस अधीक्षक (एसपी)बागडोलिया ने एसीबी कोटा के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक चंद्रशील ठाकुर को फोन करके अपना संदेह व्यक्त किया- ‘सर! कहीं ऐसा तो नहीं है कि हमारा शिकार हमें मात देने की कोशिश में किसी और रास्ते से निकल गया हो?’ एएसपी ठाकुर के शब्द पूरी तरह आत्मविश्वास से भरे हुए थे- ‘यह मात नहीं, शुरुआत है। आप निराश मत होइए। हमें सफलता ज़रूर मिलेगी। अलबत्ता बारिश का मौसम है। इसलिए इंतज़ार लम्बा हो सकता है।’

 

उन्होंने मशविरा देते हुए कहा- ‘आपको हर गाड़ी यहाँ तक की स्कूटर की भी जाँच करनी है। अपनी टीम के कुछ लोगों को छिपाकर भी तैनात करिए, ताकि किसी को शक न हो; और हाँ किसी अधिकारी को जीप लेकर सतर्क रखिए, ताकि ज़रूरत पडऩे पर पीछा किया जा सके।’

‘लेकिन सर! क्या वाक़र्इ हमारे पास पुख़्ता सूचना है?’ -नायब पुलिस अधीक्षक ने पूछा।

एएसपी ठाकुर को एकाएक इस सवाल का उत्तर नहीं सूझा। अलबत्ता उन्होंने इतना ही कहा- ‘कुछ गुप्त सूचनाएँ ऐसी हैं, जिन्हें हम फिर साझा करेंगे। अब इसे पुख़्ता समझें या नहीं? आख़िर तुम भी उसी टीम में शामिल हो, जो पिछले 15 दिनों से शशांक यादव की निगरानी कर रही है।’

बागडोलिया से कुछ कहते नहीं बना; लेकिन उन्होंने सब कुछ समझते हुए आगे कोई सवाल खड़ा नहीं किया। तभी तेज़ बारिश का झोंका आया, तो बागडोलिया बैरियर (अवरोधक) की ओट में पहुँचे। अभी वह तेज़ बारिश से बचाव के लिए ओट लेने की कोशिश में ही थे कि पुलिस का लोगो लगी सफ़ेद गाड़ी बैरियर पर थमती नज़र आयी। पुलिस वैन होने के नाते उन्होंने उसे अनदेखी करने की कोशिश की। लेकिन वह यह देखकर चौंक गये कि गाड़ी के चारों दरवाज़े और शीशों पर क़रीब दसों जगह पुलिस लिखा था। कार पर लाल-नीली बत्ती (रेड-ब्लू लाइट) लगी हुई थी। इसका मतलब था- पुलिस का कोई बड़ा अधिकारी सफ़र कर रहा था। बागडोलिया तेज़ी से कार की तरफ़ लपके। खिडक़ी पर पहुँचते ही उन्हें समझते देर नहीं लगी कि यह कोई पुलिस का उच्चाधिकारी नहीं, बल्कि उनका शिकार शशांक यादव था। बागडोलिया ने एक पल की भी देर किये बिना शशांक यादव को घेर लिया। अचानक हुई इस घटना से हक्का-बक्का हुआ यादव कहता ही रह गया कि क्या कर रहे हो? जानते नहीं कौन हूँ मैं। एएसपी बागडोलिया ने यादव के कन्धों पर अपनी पकड़ सख़्त बनाते हुए कहा- ‘चिन्ता मत करिए यादव साहब! अब तो आपको हमें जानना होगा।’

शशांक यादव की कार की तलाशी ली गयी, तो मिठाई के डिब्बे में 15 लाख रुपये तथा बैग और पर्स में रखे 1.32 लाख समेत कुल 16,32,000 रुपये मिले। इतनी बड़ी रक़म के बारे में डीएसपी बागडोलिया के सवाल से हड़बड़ाये यादव को कोई जवाब कैसे सूझता? अलबत्ता यादव ने बागडोलिया की बाँह थामते हुए एक तरफ़ ले जाने की कोशिश करते हुए कहा- ‘सवाल-जवाब छोडि़ए और ले-देकर मामला निपटा लीजिए।’ यादव के रवैये से बुरी तरह झल्लाये हुए नायब एस.पी. बागडोलिया झन्नाटेदार थप्पड़ रसीद करते हए उस पर बरस पड़े- ‘तुम सीधे-सीधे सब कुछ बताओगे या फिर घसीटकर ले चलूँ।’ पासा उलटा पडऩे से सन्नाटे में आये यादव ने हकलाते हुए बमुश्किल इतना ही कहा- ‘कौन हैं आप लोग?’ नायब एसपी बागडोलिया ने यादव की गिरहबान थामते हुए उसे झिंझोडक़र रख दिया- ‘हम एसीबी से हैं और अफीम काश्तकारों से अवैध वसूली के इल्ज़ाम में आपको गिरफ़्तार कर रहे हैं।’

यादव तेवर बदलते हुए एएसपी बागडोलिया से उलझ पड़ा- ‘ अरे कैसी अवैध वसूली? यह मेरे अपने पैसे हैं। मैं क्यों बताऊँ? कहाँ से आये? या किसने दिये? अफीम काश्तकारों से भला क्यों वसूली करूँगा मैं?’

नायब एस.पी. बागडोलिया ने फटकारते हुए कहा- ‘मतलब आप सीधे-सीधे कुछ नहीं बताएँगे। कोई बात नहीं, हमें सच उगलवाना आता है। हम अफीम काश्तकारों से अवैध वसूली के आरोप में आपको गिरफ़्तार करते हैं।’

यह कार्रवाई भ्रष्टाचार निरोधक दस्ते ने महकमे के अतिरिक्त महानिदेशक दिनेश एम.एन. के निर्देशन में की गयी। एसीबी कोटा इकाई के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक चन्द्रशील ठाकुर की निगरानी में सर्किल इंस्पेक्टर अजीत बागडोलिया ने अपनी टीम के साथ इसे अंजाम दिया था। महाप्रबन्धक सरीखे क़द्दावर अफ़सर की गिरफ़्तारी की ख़बर कोटा समेत पूरे राजस्थान में आग की तरह फैली, तो जैसे हडक़म्प मच गया। एसीबी के अतिरिक्त महानिदेशक दिनेश एमएन का कहना था- ‘हम पिछले सात दिनों से सूचनाओं की पुष्टि करने में जुटे हुए थे। जब हमें लगा कि सूचना पुख़्ता है, तो हमने यादव को रंगे हाथ गिरफ़्तार करने की कार्रवाई को अंजाम दिया। एसीबी के अनुसार, शशांक ने नीमच में अफीम फैक्ट्री में कार्यरत अन्य कर्मचारी अजीत सिंह व कोडिंग टीम के दीपक कुमार के माध्यम से दलालों के ज़रिये अफीम के बढिय़ा गाढ़ेपन एवं मारफीन प्रतिशत ज़्यादा बताकर 60 से 80 हज़ाक रुपये प्रति किसान वसूले थे। यह वसूली चित्तौडग़ढ़ प्रतापगढ़ कोटा एवं झालावाड़ के अफीम किसानों से की गयी थी। अजीत सिंह और दीपक ने दलालों के माध्यम से 6,000 से अधिक अफीम किसानों से 10-12 आरी के पट्टे दिलावाने के नाम पर 30 से 36 करोड़ रुपये अग्रिम तौर पर वसूल लिये थे। शेष 40,000 से अधिक किसानों की अफीम की जाँच होनी अभी बाक़ीथी।

अफीम फैक्ट्री नीमच में पूरे मध्य प्रदेश एवं राजस्थान के नारकोटिक्स विभाग के लाइसेंसी अफीम काश्तकारों की अफीम जमा की जाती है। इस फैक्ट्री में वर्तमान में इस वर्ष अफीम देने वाले मध्य प्रदेश और राजस्थान के काश्तकारों की अफीम के नमूनों की जाँच का कार्य चल रहा है। गाढ़ापन एवं मारफीन प्रतिशत के हिसाब से ही नारकोटिक्स विभाग द्वारा अफीम काश्तकारों को 6 आरी, 10 आरी एवं 12 आरी के पट्टे वितरित किये जाते हैं।

कौन है डॉ. शशांक यादव? कैसे इसने भ्रष्टाचार का खेल रचा? ये तथ्य बेहद चौंकाने वाले हैं। नीमच अफीम फैक्ट्री को भारत की सबसे दूसरी बड़ी फैक्ट्री कहा जाता है। उत्तर प्रदेश के ग़ाज़ीपुर स्थित अफीम फैक्ट्री के महाप्रबन्धक डॉ. शशांक यादव के पास नीमच फैक्ट्री का भी अतिरिक्त कार्यभार है। मलाईदार फैक्ट्री का ज़िम्मा मिलने के बाद आईआरएस डॉ. शशांक और उसके साथी अधिकारियों और दलालों ने मिलकर महकमे को संगठित भ्रष्टाचार का अड्डा बना दिया। यादव ने किसानों से उगाही करने के दो तरीक़े अख़्तियार किये। पहला, कोडिंग सिस्टम करके किसानों की शिनाख़्त बनायी। दूसरा, गुणवत्ता जाँचने वाली मशीन की रिपोर्ट में तब्दीलियाँ कर दी। नतीजतन अफ़सर किसानों से मोल-भाव की ओट में अफीम का गाढ़ापन और मारफीन प्रतिशत में घट-बढ़ का खेल करने में जुट गये।

सूत्रों का कहना है कि जब तक कोई कोडिंग टीम का बड़ा अधिकारी किसानों की अफीम के कोड के बारे में जानकारी उपलब्ध नहीं कराये, तब तक पता नहीं किया जा सकता कि अफीम किस किसान की है। यादव के पकड़े जाने के बाद नीमच अफीम फैक्ट्री में जाँच का काम बन्द हो गया है। यहाँ पर अभी मध्य प्रदेश के 32,560 और राजस्थान के 20,000 किसानों के अफीम सैंपल की जाँच होनी है। जाँच रिपोर्ट के बाद किसानों को बक़ाया राशि का भुगतान होना है। अब एसीबी के ख़ुलासे के बाद कई नमूने जाँच के दायरे में आ गये हैं।

डॉ. शशांक यादव ने भ्रष्टाचार का सिंडिकेट बनाने के लिए नीमच का अतिरिक्त प्रभार मिलने के बाद अफीम फैक्ट्री का पूरा निजाम ही बदल डाला था। यादव नीमच में आने के पहले से पूरी रणनीति बनाकर आया था। लिहाज़ा कुछ दिनों बाद ही उसने बड़ा बदलाव किया। इस बदलाव से फैक्ट्री के कर्मचारी और अधिकारी भी चौंक गये। क्योंकि उसने जिन लोगों को महत्त्वपूर्ण जगहों पर तैनाती दी थी, उनमें से कई के ख़िलाफ़ पहले से भ्रष्टाचार के आरोप थे। यादव ने कोडिंग डिपार्टमेंट, प्रयोगशाला और मशीन विभाग के महत्त्वपूर्ण पदों पर अपने ख़ास अधिकारियों को तैनात कर दिया। ताकि किसानों से करोड़ों की उगाही आसानी से की जा सके। ऐसे में भ्रष्टाचार का खेल खुलना ही था।

 

किस काम की कितनी रिश्वत?

 बुवाई होते ही नारकोटिक्स के अधिकारी रक़बे की नपायी करते हैं। किसान तय ज़मीन से ज़्यादा में बुवाई कर सके। इसके एवज़ में हर किसान से 5,000 रिश्वत ली जाती है। यानी कुल 16 करोड़ रुपये की अवैध वसूली।

 25 फ़ीसदी चहेते किसानों की फ़सल बरसात और ओलों से ख़राब दिखा दी जाती है। इसके लिए नारकोटिक्स के अधिकारी प्रति किसान 10,000 रिश्वत लेते हैं। यानी कुल आठ करोड़ रुपये की अवैध वसूली।

 नियमानुसार अफीम निकालने के बाद फ़सल नष्ट की जाती है। इसका वीडियो बनता है। लेकिन नारकोटिक्स वाले कपास व कचरे का जलता वीडियो बनाने के लिए प्रति किसान 20,000 रुपये लेते हैं। यानी कुल 66 करोड़ रुपये की अवैध वसूली।

 तस्करी के लिए भरायी के दौरान पिकअप के 50,000 और ट्रक के 3,00,000 रुपये की रिश्वत पुलिस लेती है। और इतनी ही राशि नारकोटिक्स के अधिकारी लेते हैं। फिर नाकाबंदी हटाने के लिए 25,000 हर क्षेत्रीय थाने को जाते हैं। यानी रिश्वत का गणित मोटा है।

पश्चिम बंगाल में दो दिन में भाजपा के 2 विधायक टीएमसी में शामिल, 77 से घटकर 72 पर पहुँची पार्टी

पश्चिम बंगाल में भाजपा को झटके लगने का क्रम जारी है। पिछले दो दिन में 2 भाजपा विधायक ममता बनर्जी की टीएमसी में शामिल हो चुके हैं जबकि एक पूर्व विधायक भी टीएमसी में आई हैं। आज भाजपा छोड़ने वाले विधायक ने दावा किया है कि भाजपा के 20 और विधायक पार्टी में आने की तैयारी कर रहे हैं। आज भाजपा विधायक विश्वजीत दास टीएमसी में चले गए।

बंगाल में भाजपा को आज लगातार दूसरे दिन झटका लगा जब उसके एक और विधायक विश्वजीत दास पार्टी को ठेंगा दिखाते हुए टीएमसी में शामिल हो गए। एक दिन पहले सोमवार को विष्णुपुर से भाजपा विधायक तन्मय घोष ने भी पार्टी छोड़ते हुए टीएमसी का दामन थाम लिया था।

विश्वजीत दास के टीएमसी में शामिल होने के बाद पश्चिम बंगाल विधानसभा में भाजपा विधायकों की संख्या 77 से घटकर 72 हो गयी है। भाजपा के लिए आज खतरे वाली बात यह हुई कि उसे छोड़कर टीएमसी में शामिल होने वाले एमएलए विश्वजीत दास ने दावा किया कि 20 और पार्टी विधायक भाजपा छोड़ टीएमसी में आने वाले हैं।

याद रहे रविवार को पूर्व विधायक सिखा मित्रा भी फिर से तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गयी थीं। उन्होंने कहा कि पार्टी लोगों के लिए काम करती है, और समाज के कल्याण के लिए काम करने में उनकी मदद करेगी। मित्रा ने कहा कि वे टीएमसी में इसलिए आई हैं क्योंकि ममता दीदी ने उन्हें बुलाया है। ‘समाज के कल्याण के लिए कुछ बड़ा करने के लिए, हमें ऐसी पार्टी चुननी होगी जिसका उद्देश्य लोगों की सेवा करना हो। टीएमसी लोगों के कल्याण के लिए काम करती है।’

भाजपा को एक सांप्रदायिक पार्टी बताते हुए यह भी आरोप लगाया कि ‘हमारा देश एक लोकतांत्रिक देश है, मैं ऐसी पार्टी में नहीं जा सकती, जिसका काम लोगों को बांटना है।’ मित्रा साल 2014 से पहले टीएमसी से ही जुड़ी थीं। बाद में मतभेदों के कारण चौरंगी सीट से विधायक पद से इस्तीफा दे दिया था।

सोमवार को बिष्णुपुर के भाजपा विधायक तन्मय घोष तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए थे। घोष से पहले मुकुल रॉय अभी टीएमसी में शामिल हो चुके हैं। घोष ने भाजपा छोड़ने के बाद कहा – ‘भाजपा प्रतिशोध की राजनीति करती है। वे केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल करके पश्चिम बंगाल के लोगों के अधिकार छीन रहे हैं। मैं सभी राजनेताओं से जन कल्याण के लिए ममता बनर्जी का समर्थन करने का आग्रह करता हूं।’

भारत की तालिबान से पहली बार बातचीत, दोहा में स्तनेकजई से मिले क़तर में राजदूत मित्तल

अमेरिकी फ़ौज के अंतिम दस्ते के काबुल से बाहर जाते ही भारत ने तालिबान से हाल के घटनाक्रम में पहली बार बातचीत की है। कतर में भारत के राजदूत दीपक मित्तल ने तालिबान के दोहा राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख शेर मोहम्मद अब्बास स्तनेकजई से यह मुलाकात की है। इसमें प्रमुख रूप से भारतीयों की सकुशल वापसी और अफगानिस्तान की ज़मीन का किसी भी रूप में भारत के खिलाफ इस्तेमाल न होने देने पर जोर दिया गया है।

भारतीय विदेश मंत्रालय ने एक ब्यान जारी करके इस बात की पुष्टि की है। उधर काबुल से अमेरिकी फ़ौज पूरी तरह वापस चली गयी है। अमेरिका की सेना का अंतिम दस्ता आज काबुल से प्लेन से रवाना हो गया। पेंटागन ने एक ब्यान जारी करके इसकी जानकारी दी है।

उधर तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्ज़ा करने के बाद पहली बार भारत ने आधिकारिक तौर पर उसके प्रतिनिधि से बातचीत की है। यह बातचीत क़तर में हुई है। बातचीत में अफगानिस्तान में फंसे भारतीयों की सकुशल वापसी के अलावा के अलावा अफगानिस्तान की स्थिति को लेकर भारत ने अपनी चिंताओं से तालिबान के नेता को अवगत कराया।

अपने ब्यान में विदेश मंत्रालय ने बताया – ‘आज कतर में भारत के राजदूत दीपक मित्तल ने तालिबान के दोहा स्थित राजनीतिक दफ्तर के प्रमुख शेर मोहम्मद अब्बास स्तनेकजई से मुलाकात की है। बातचीत तालिबान के अनुरोध पर दोहा स्थित भारतीय दूतावास में हुई।’

इस बातचीत में अफगानिस्तान में फंसे भारतीय नागरिकों की सुरक्षा और उनकी भारत वापसी पर प्रमुख रूप से बात हुई। मित्तल ने इस बात पर जोर दिया और चिंता भी जताई कि अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल किसी भी तरह से भारत विरोधी गतिविधियों और आतंकवाद के लिए नहीं किया जाना चाहिए। भारत के इन मसलों को लेकर स्तनेकजई ने भरोसा दिया कि इन मुद्दों को सकारात्मक नजरिए से संबोधित किया जाएगा।

तालिबान नेताओं ने पिछले दिनों में एक से ज्यादा बार कहा था कि इस क्षेत्र में भारत एक अहम देश है और तालिबान भारत से बेहतर रिश्ते चाहता है। तालिबान ने हाल के सालों में अफगानिस्तान में भारतीय निवेश का स्वागत करते हुए कहा था कि वह उनके देश में अपनी परियोजनाओं को जारी रख सकता है। तालिबान ने इसके अलावा यह भी कहा था कि अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल किसी भी देश के खिलाफ नहीं किया जाएगा।

भारत की तालिबान से यह बातचीत अमेरिका के पूरी तरह अफगानिस्तान से चले जाने के बीच हुई है। इसे काफी अहम माना जा सकता है। देखना यह होगा कि अफगानिस्तान में बाकी फंसे भारतीयों की वापसी में तालिबान कैसा सहयोग करता है। साथ ही अपनी ज़मीन को भारत विरोधी गतिविधियों में इस्तेमाल नहीं होने देता है।

अमेरिका में 240 किलोमीटर की रफ्तार से आए तूफान ने मचाई तबाह

अमेरिका और मैक्सिको इन दिनों तूफान की चपेट में हैं। एक के बाद एक कई तूफान ने कहर बरपा दिया है। 16 साल पहले 29 अगस्त को आए कैटरीना तूफान की तबाही ने लोगों के मन में फिर ताजा कर दी हैं। 29 अगस्त को इस साल फिर आए तूफान इडा ने लुइसियाना प्रांत के न्यू ओर्लियंस में भारी तबाही मचाई है। रविवार को 240 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चली हवाओं ने तबाही मचा दी है। इससे शहर के ज्यादातर इलाकों में बिजली गुल हो चुकी है और तटीय इलाके पूरी तरह से जलमग्न हो गए हैं।
राष्ट्रपति जो बाइडन ने भी आशंका जताई है कि इससे भारी जान माल की हानि हो सकती है। अधिकारियों से व्यापक बंदोबस्त किए जाने के आदेश जारी किए हैं। लुइसियाना के दक्षिण-पूर्वी तटीय क्षेत्रों में भारी बारिश की वजह से बाढ़ के हालात हो गए हैं। तटीय क्षेत्रों में सारी नदियां उफान पर हैं और लगातार भारी बारिश हो रही है।
लुइसियाना के गवर्नर जॉन बेल एडवर्ड्स ने कहा कि स्थितियां प्रतिकूल होने के चलते राहत अभियान शुरू नहीं किया जा सका है। तूफान और बाढ़ की वजह से राज्य को तूफान के प्रभाव से उबरने में कई सप्ताह का समय लग सकता है। लुइसियाना में लगभग 10 लाख लोग बिजली गुल होने से अंधेरे में रहने को मजबूर हैं और मिसीसिपी में भी 80,000  से ज्यादा आबादी ऐसे ही समस्या का सामना कर रही है।
बता दें कि इससे पहले, 29 अगस्त 2005 को आए तूफान कैटरीना श्रेणी तीन की वजह से 1,800 लोगों की मौत हुई थी और यह न्यू ओर्लियंस में भयावह बाढ़ का कारण बना था, जिससे उबरने में अमेरिका को वर्षों लग गए थे।

हरियाणा में पुलिस का किसानों पर लाठीचार्ज ; कई लहूलुहान, कांग्रेस और किसान संगठनों ने निंदा की

कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसानों पर शनिवार को हरियाणा पुलिस ने इतना लाठीचार्ज किया कि कई लहूलुहान हो गए। यही नहीं पुलिस ने किसानों को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा और उनपर लाठियां भांजी। कांग्रेस, किसान संगठनों सहित कई नेताओं ने इस लाठीचार्ज को निहत्थे किसानों पर जुल्म बताया है। कई ऐसे वीडियो वायरल हो गए हैं जिनमें पुलिस की लाठियों से घायल लहूलुहान किसान कराह रहे हैं।

लाठीचार्ज में कई किसान गंभीर रूप से घायल हो गए हैं। किसान हरियाणा के करनाल के बस्तारा टोल प्लाजा पर विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। किसानों का कहना है कि वे शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन कर रहे थे कि इसी दौरान पुलिस ने किसानों पर लाठीचार्ज कर दिया। कई किसानों को घेरकर पीटा गया जिससे कई किसान घायल हो गए हैं, जिनमें बुजुर्ग भी शामिल हैं।

हरियाणा पुलिस के करनाल में लाठीचार्ज के कई वीडियो वायरल हो रहे हैं। किसानों पर पुलिस के इस जुल्म की खबर आज दिन में टॉप ट्रेंड करती रही। वीडियो में पुलिस किसानों पर लाठी बरसाते दिख रही है। कई किसानों के कपडे खून से सने हैं और कई के चेहरे खून फैलने से पहचान में नहीं आ रहे। लाठीचार्ज के चलते कई किसानों घायल हो गए और कई के सिर फूट गए।

कांग्रेस ने इसे मोदी सरकार और भाजपा सर्कार का जुल्म बताया है। कांग्रेस ने कहा कि देश के अन्नदाता के साथ भाजपा सरकार की पुलिस का यह जुल्म बताता है कि वह किसके साथ खड़ी है।

किसान संगठनों ने लाठीचार्ज का कड़ा विरोध किया है। भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने तहलका से बातचीत में कहा – ‘पुलिस ने बेरहमी से लाठीचार्ज किया। यह अंग्रेजों के जमाने की  एड्स दिलाता है।  हम इसका सख्त विरोध करते हैं। आज ही हरियाणा के सभी रास्तों को बंद करने का हमने निर्णय किया है।’

टिकैत की इस चेतावनी के बाद गुस्साए किसानों ने हरियाणा के कई हिस्सों में सड़कों को बंद करना शुरू कर दिया है। किसानों ने कालका-जीरकपुर हाईवे पर स्थित सूरजपुर रोल प्लाजा को बंद कर दिया है। इसके अलाव कई और जगह रास्ते बंद किये जा रहे हैं।

किसान नेता राकेश टिकैत का ट्वीट –
@RakeshTikaitBKU
हरियाणा के करनाल में बसताड़ा टोल पर आन्दोलित किसानों पर लाठी चार्ज दुर्भाग्यपूर्ण है 5 सितंबर मुजफ्फरनगर में होने वाली महापंचायत से ध्यान भटकाने के लिए सरकार षड्यंत्र रच रही है देशभर के किसान पूर्ण रूप से तैयार रहें । एसकेएस के फैसले का पालन करें।

अमेरिका ने नंगरहार में ड्रोन से बम्ब गिराकर काबुल ब्लास्ट्स के मुख्य साजिशकर्ता को मार गिराया

अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में गुरुवार की रात एयरपोर्ट के बाहर धमाकों की घटना के बाद अमेरिका ने हमले की जिम्मेवारी लेने वाले इस्लामिक स्टेट के (आईएसके) के उस आतंकी को मार गिराने का दावा किया है जो इस घटना का ‘मास्टरमाइंड’ था। अमेरिका ने अफगानिस्तान स्थित आईएसके के ठिकाने पर ड्रोन से बमबारी करके उस व्यक्ति को मार गिराया। याद रहे गुरुवार के धमाकों में अब तक 169 अफगान और 13 अमेरिकी सैनिकों की मौत हो चुकी है।

अमेरिका ने यह कार्रवाई काबुल धमाकों की घटना के 48 घंटे के भीतर की है। अमेरिका ने अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा के पास नंगरहार प्रांत में ये बमबारी की है। अमेरिका के सेंट्रल कमान के प्रवक्ता कैप्टन बिल अर्बन ने कहा – ‘अमेरिकी सेना ने इस्लामिक स्टेट-खुरासान (आईएसके) साजिशकर्ता के खिलाफ आज आतंकवाद विरोधी अभियान चलाया। यह मानवरहित हवाई हमला अफगानिस्तान के नांगहर प्रांत में हुआ। शुरुआती संकेत मिले हैं कि हमने लक्षित व्यक्ति को मौत के घाट उतार दिया। हमारे पास किसी भी असैन्य व्यक्ति के इस कार्रवाई में न मारे जाने की जानकारी है।’

अमेरिकन एंबेसी ने अफगानिस्तान में मौजूद अपने देश के नागरिकों के लिए एक और एडवाइजरी जारी कर दी है. अमेरिकी नागरिकों की सुरक्षा को खतरा देखते हुए उन्हें काबुल एयरपोर्ट की तरफ ट्रैवल ना करने की हिदायत दी गई है. साथ ही इस एडवाइजरी में कहा गया है कि, अमेरिका के जो भी लोग एयरपोर्ट के अलग अलग गेटों पर मौजूद हैं वो वहां से तुरंत निकल जाएं.

इस बीच काबुल में मौजूद अमेरिकन एंबेसी ने एक बयान जारी करते हुए कहा है कि ‘काबुल एयरपोर्ट पर अमेरिकी नागरिकों की सुरक्षा के खतरे को देखते हुए हम उन्हें यहां ट्रैवल न करने की एडवाइस देते हैं। अमेरिका के नागरिक जो एब्बे, ईस्ट, नार्थ या मिनिस्टरी आफ इंटीरियर गेट्स पर मौजूद हैं, वो जल्द से जल्द वहां से निकल जाएं।’

व्हाइट हाउस की प्रेस सेक्रेटरी जेन साकी ने कहा – ‘अपने नागरिकों को अफगानिस्तान से बाहर निकालने में अगले कुछ दिन हमारे लिए अब तक के सबसे खतरनाक दिन हो सकते हैं।’ अमेरिकी सेना ने भी बताया है कि, उन्होंने तालिबान से कुछ सड़कों को बंद करने के लिए कहा है। ऐसी आशंका है कि यहां से गाड़ियों में सुसाइड बॉम्बर एयरपोर्ट की तरफ आ सकते हैं।