शहरीकरण और पैसे कमाने की ललक ने इंसान के स्वास्थ्य को खा लिया है। आज के समय में पूरी तरह स्वस्थ इंसान को ढूँढ पाना घास में सुई ढूँढने के बराबार है। हालात ये हो चुके हैं कि गर्भ में पलने वाले बच्चे भी बीमारियों का घर बन रहे हैं। इंसानों का स्वास्थ्य बिगड़ने के कई कारण हैं। खानपान, वायुमंडल, पानी, दवाइयाँ, कीटनाशक, हानिकारक रसायन, प्लास्टिक, एल्युमीनियम, नशा, भागदौड़, तनाव, चिन्ता, चिड़चिड़ापन, बिगड़ती दिनचर्या, घंटों तक मोबाइल का इस्तेमाल, छोटी-छोटी बीमारियाँ होने पर लापरवाही एवं नीम-हक़ीमों के चक्कर में पड़ना, ये सब बीमारियों के वे कारण हैं, जिन्हें ज़्यादातर लोग नज़रअंदाज़ कर देते हैं।
आज के समय में इंसान सिर्फ़ शारीरिक रूप से ही बीमार नहीं है, बल्कि मानसिक रूप से भी बीमार हो चुका है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानें, तो चिन्ता और अवसाद के चलते ही संसार के 25 प्रतिशत लोग बीमार हैं। बाक़ी लोगों की बीमारी के कारण दूसरे हैं। दादी-नानी के घरेलू नुस्ख़े लोग अब भूल चुके हैं और किचन में शुद्ध समानांतर मसालों वाला सात्विक भोजन बनना कम हो गया है। उसकी जगह पैकेटबंद, चाइनीज और पश्चिमी खानपान हमारा नियमित आहार बन गया है। व्यायाम, प्राणायाम, योग, सूर्य नमस्कार, सुबह जल्दी उठने का चलन बहुत कम लोगों की दिनचर्या का हिस्सा हैं। सुबह 10:00 बजे के उठने वाले लोग जिम जाकर शारीरिक स्वास्थ्य की अपेक्षा रखते हैं। आयुर्वेद के अच्छे जानकार वैद्यों की कमी देखी जा रही है। जो वैद्य बचे भी हैं, उनका इलाज लंबा और महँगा हो चुका है।
आर्युवेद कहता है कि इंसान की इड़ा, सुषुम्ना और पिंगला नामक तीन नाड़ियाँ ही उसके स्वस्थ और अस्वस्थ होने के बारे में बता देती हैं। इन तीनों नाड़ियों से इंसान के वात, पित्त और कफ का पता चलता है, जिनके बिगड़ने से शरीर को बीमारियाँ लगने लगती हैं। पहले के वैद्य और हक़ीम नाड़ियों की गति को समझते थे; लेकिन एलोपैथिक डॉक्टर बिना मशीनों के बीमारियों का पता लगा ही नहीं पाते। पहले इंसान अभावों में रहता था; लेकिन ज़्यादातर लोग स्वस्थ रहते थे। अब इंसान के पास सुख-सुविधाओं की कोई नहीं है; लेकिन वह अपना स्वास्थ्य खोता जा रहा है। कई कारणों के अलावा कहीं-न-कहीं इसकी मुख्य वजह प्रकृति से खिलवाड़ और बढ़ता शहरीकरण भी है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन गंभीर बीमारियों और हर साल बढ़ने वाली नयी-नयी बीमारियों को लेकर कई बार चिन्ता ज़ाहिर कर चुका है। विश्व में अनेक वैज्ञानिक और स्वास्थ्य विशेषज्ञ गंभीर और नयी बीमारियों की दवाएँ खोजते रहते हैं। लेकिन इसके बाद भी बीमारियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। इन बीमारियों से लाखों लोग हर साल मर जाते हैं।
सन् 2008 से शुरू हुए क्रिकेट मैच इंडियन प्रीमियर लीग-2025 (आईपीएल-2025) का 18वाँ सीजन अगले महीने शुरू हो सकता है। हालाँकि बीसीसीआई ने अभी इस चर्चित मैच के शेड्यूल की आधिकारिक घोषणा नहीं की है; लेकिन सूत्रों की मानें, तो आईपीएल क्रिकेट मैच 21 मार्च, 2025 से 25 मई, 2025 के बीच खेला जाएगा। आईपीएल-2025 का उद्घाटन मैच आईपीएल-2024 की चैंपियन कोलकाता नाइटराइडर्स (केकेआर) की क्रिकेट टीम खेलेगी, जिसके मुक़ाबले में इस उद्घाटन मैच में रॉयल चैलेंजर्स बेंगलूरु (आरसीबी) होगी। पहला मुक़ाबला कोलकाता के ईडन गार्डन्स स्टेडियम में खेले जाने की उम्मीद है।
आईपीएल-2025 की आधिकारिक घोषणा फरवरी के तीसरे सप्ताह के आख़िर में या आख़िरी सप्ताह के शुरू में हो सकती है। आईपीएल के इस बार के मैच संभवत: गुवाहाटी और धर्मशाला के क्रिकेट स्टेडियम को भी खेले जा सकते हैं। सूत्रों की मानें, तो आईपीएल-2025 का दूसरा मुक़ाबला 25 मार्च को हैदराबाद के उप्पल में राजीव गाँधी अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम में सनराइजर्स हैदराबाद (एसआरएच) का मुक़ाबला राजस्थान रॉयल्स (आरआर) से हो सकता है। हालाँकि कुछ जानकार कह रहे हैं कि सनराइजर्स हैदराबाद (एसआरएच) का मुक़ाबला राजस्थान रॉयल्स (आरआर) के बीच उद्घाटन मैच खेला जाएगा, जो कि हैदराबाद के उप्पल में राजीव गाँधी अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम में होगा।
आईपीएल-2025 की सही समय-सारणी क्या होगी? यह तो बीसीसीआई की आधिकारिक घोषणा के बाद ही पता चलेगा। फ़िलहाल क्रिकेट, विशेषकर आईपीएल क्रिकेट मैच के दीवाने इस क्रिकेट मैच का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं। वैसे बीसीसीआई के उपाध्यक्ष राजीव शुक्ला ने 12 जनवरी को मुंबई में हुई बैठक के बाद 23 मार्च से मैच शुरू कराने की सलाह भी दी थी। हालाँकि सूत्रों की मानें, तो बीसीसीआई इससे पहले ही मैच करा सकता है। लेकिन यह लगभग तय माना जा रहा है कि आईपीएल-2025 के सभी मैच 10 जगहों- कोलकाता, हैदराबाद, मुंबई, अहमदाबाद, चेन्नई, बेंगलुरु, दिल्ली, जयपुर, लखनऊ, मुल्लानपुर और दो अतिरिक्त स्थानों-गुवाहाटी और धर्मशाला में खेले जाएँगे। इस सीजन से आईसीसी के आचार संहिता नियम लागू किये जा सकते हैं। 2024 तक के आईपीएल मैचों में आईपीएल के अपने नियम लागू रहे हैं। लेकिन अब आईसीसी के नियमों के अलावा आचार संहिता के नियम भी लागू हो सकते हैं।
आईपीएल-2025 की टीमें : कोलकाता नाइट राइडर्स, रॉयल चैलेंजर्स बैंगलूरु, चेन्नई सुपर किंग्स, राजस्थान रॉयल्स, मुंबई इंडियंस, सनराइजर्स हैदराबाद, लखनऊ सुपर जायंट्स, दिल्ली कैपिटल्स, गुजरात टाइटंस, पंजाब किंग्स
गुजरात में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू किया जाएगा। गुजरात सरकार ने इसके लिए 04 फरवरी, 2025 को आकलन करने और इसका मसौदा विधेयक तैयार करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की रिटायर जज रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में एक पाँच सदस्यीय कमेटी का गठन किया है। इस कमेटी में पूर्व जज के अलावा वरिष्ठ आईएएस अफ़सर (रिटायर) सी.एल. मीणा, वरिष्ठ वकील आर.सी. कोडेकर, पूर्व कुलपति दक्षेश ठाकर और सामाजिक कार्यकर्ता गीताबेन श्रॉफ हैं। ये कमेटी गुजरात सरकार को 45 दिनों के अंदर अपनी रिपोर्ट सौंपेगी, जिसके बाद विधानसभा में इस बिल को पास कराने के बाद इसे राज्यपाल के पास भेजा जाएगा। राज्यपाल इस बिल को राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा, राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद राज्य में यूसीसी लागू हो जाएगा।
भारत में यूसीसी लागू करने वाला पहला राज्य उत्तराखंड है। गुजरात सरकार अगर इस क़ानून को राज्य में लागू कर देती है, तो यूसीसी लागू करने वाला ये दूसरा राज्य होगा। समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू करने को लेकर गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने कहा है कि हमारी सरकार देश भर में समान नागरिक संहिता लागू करने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संकल्प को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है। यूसीसी को लेकर पाँच सदस्यीय कमेटी गठित की गयी है। यह कमेटी विभिन्न पहलुओं की जाँच करेगी और विभिन्न क्षेत्रों के लोगों की राय लेगी, जिसके आधार पर कमेटी सरकार को रिपोर्ट सौंपेगी। कमेटी रिपोर्ट के ड्राफ्ट के आधार पर सरकार इसे लागू करने या लागू न करने को लेकर निर्णय लेगी।
गुजरात के गृह मंत्री हर्ष संघवी ने कहा है कि सरकार ने यूसीसी लागू करने के लिए कमेटी बनाकर एक ऐतिहासिक निर्णय लिया है। हम सभी एक महान् देश के नागरिक हैं, जहाँ भारतीयता ही हमारा धर्म है। हम संविधान के 75वें साल का उत्सव मना रहे हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सपने को पूरा करने की तरफ़ बढ़ रहे हैं, जो सभी के लिए समान अधिकारों की बात करते हैं। भाजपा सरकार जो कहती है, वो करती है। तीन तलाक़, एक देश-एक चुनाव, अनुच्छेद-370, नारी शक्ति वंदना आरक्षण की तरह ही यूसीसी लागू करने के लिए भी सरकार प्रतिबद्ध है, जिस पर काम हो रहा है। यूसीसी के लागू होने से आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा होगी। उत्तराखंड द्वारा लागू की गयी समान नागरिक संहिता ने देश के सामने एक आदर्श प्रस्तुत किया है। यूसीसी से आदिवासियों के रीति-रिवाज़ों और परंपराओं की रक्षा होगी। इस दौरान गुजरात के गृहमंत्री हर्ष सिंघवी ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की यूसीसी की प्रतिबद्धता का ज़िक्र भी किया।
बता दें कि झारखंड चुनाव से पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अपनी एक जनसभा में यूसीसी लागू करने की बात कही थी। उन्होंने कहा था कि समान नागरिक संहिता आदिवासियों द्वारा अपनायी जाने वाली परंपराओं की रक्षा करेगी। गुजरात में यूसीसी लागू करने के निर्णय को लेकर विपक्ष ने विधानसभा में कई सवाल खड़े किये हैं। विपक्ष का कहना है कि सरकार के इस क़दम से जनता का भला नहीं होने वाला है, यूसीसी का मुद्दा आने वाले निकाय चुनावों से पहले महत्त्वपूर्ण मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए उठाया गया है। भाजपा की रुचि सिर्फ़ सत्ता में है, जो कि उसे अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक की राजनीति करके मिलती है।
गुजरात में सिर्फ़ 14 प्रतिशत आदिवासी हैं। यूसीसी से न सिर्फ़ आदिवासी समाज की संस्कृति, रीति-रिवाज़ों, धार्मिक संस्कारों और विवाह की व्यवस्था प्रभावित होगी, बल्कि इससे गुजरात के जैन समाज के लोग और देवीपूजक लोग भी प्रभावित होंगे। यूसीसी का क्रियान्वयन केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में है, राज्य सरकार के नहीं। लेकिन चूँकि भाजपा की गुजरात इकाई में अंदरूनी कलह मची हुई है, क्योंकि राज्य सरकार हर तरह से विफल रही है, इसलिए इस घोषणा के शोर में वो निकाय चुनावों से पहले लोगों का ध्यान भटकाने की कोशिश कर रही है।
आम आदमी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष इसुदान गढ़वी ने कहा है कि भाजपा हर चीज़ को हिंदू-मुस्लिम या वोट बैंक की राजनीति के नज़रिये से देखना बंद करे। जैसे ही कोई चुनाव पास आता है, भाजपा और उसकी सरकारें यूसीसी का मुद्दा उठाती हैं। सरकार कह रही है कि इस व्यवस्था से आदिवासी समाज के हितों की रक्षा हो सकेगी, यह ग़लत है; क्योंकि आदिवासी समाज में बहु-विवाह प्रथा है और यूसीसी लागू होने से ये सब ख़त्म हो जाएगा। गुजरात के मालधारी समुदाय में आज भी 80 प्रतिशत घरेलू विवाद उनके समाज के ही नेताओं द्वारा सुलझाये जाते हैं। यूसीसी के लागू होने से उनके हितों की रक्षा कैसे होगी? यूसीसी के लागू होने से सिखों, मुसलमानों और ईसाइयों को भी परेशानी होगी। उन्होंने दावा किया कि अगर गुजरात में यूसीसी लागू हुई, तो भाजपा एक भी आदिवासी सीट नहीं जीत पाएगी। भाजपा को महँगाई और बेरोज़गारी को लेकर कुछ करना चाहिए। वह युवाओं को नौकरियाँ देने को लेकर बात नहीं करती है।
एआईएमआईएम के नेता गुजरात में यूसीसी लागू करने को मुस्लिम समुदाय के लोगों को निशाना बनाने का हथियार मान रहे हैं। उन्होंने कहा है क सरकार द्वारा गठित कमेटी से उन्हें ज़्यादा उम्मीद नहीं है। क्योंकि कमेटी बिना किसी पूर्वाग्रह के भिन्न विचारों पर विचार करेगी। भाजपा जब बहु-विवाह को लेकर मुसलमानों पर निशाना साधती है, तो उसे पता होना चाहिए कि यह अन्य समुदायों में भी प्रचलित है। एक समुदाय को बहु-विवाह की अनुमति है और दूसरे को नहीं, तो यह समान नागरिक संहिता नहीं है।
बता दें कि क़ानून के मुख्य दो स्वरूप होते हैं, सिविल और आपराधिक। सिविल क़ानून के तहत शादी, तलाक़, संपत्ति और घरेलू विवादों का निपटारा होता है। इसी के चलते सिविल क़ानून धर्म, रीति-रिवाज़ के आधार पर न्याय और निपटारा करता है। वहीं आपराधिक क़ानून के तहत हत्या, डकैती, चोरी और दूसरे हिंसक मामलों का निपटारा किया जाता है। आपराधिक क़ानून में धर्म, जाति, रीति-रिवाज़, संप्रदाय आदि से कोई मतलब नहीं होता, इस क़ानून में सभी के लिए समान नियम लागू होते हैं। समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू होने से सभी के लिए क़ानून समान रूप से एक ही ढर्रे पर लागू होगा; क्योंकि यूसीसी अधिनियम-2024 जहाँ लागू होगा, वहाँ के सभी लोगों पर समानता का क़ानून लागू हो जाएगा। जैसे अब उत्तराखंड में किसी भी धर्म या समुदाय के लोग बहु-विवाह नहीं कर सकते। प्रथाओं को तोड़ने वाली दूसरी सामाजिक रीतियों पर भी इससे अंकुश लगेगा। जैसे अब उत्तराखंड में बाल विवाह भी नहीं होगा। इस तरह से यूसीसी सामाजिक मामलों से सम्बन्धित एक तरह का क़ानून है, जिसके लागू होने से किसी राज्य या देश के सभी धर्म, संप्रदाय, समुदाय और जाति के लोगों के लिए विवाह, तलाक़, विरासत, भरण-पोषण और बच्चा गोद लेने के नियम-क़ानून एक जैसे ही होंगे। यही समान नागरिक संहिता क़ानून है।
साल 2019 में केंद्र सरकार ने भी यूसीसी यानी समान नागरिक संहिता और सीएए यानी नागरिकता (संशोधन) अधिनियम लागू करने का प्रयास किया था; लेकिन देश भर में होने वाले विरोध के चलते सरकार इसमें सफल नहीं हो सकी। अब उत्तराखंड में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने इसे इस साल से लागू कर दिया है।
समान नागरिक संहिता क़ानून देश के नागरिकों के उस अधिकार का हनन भी है, जो कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद-25 से 28 भारतीय नागरिकों को धार्मिक और अन्य स्वतंत्रताओं की गारंटी और धार्मिक समूहों को अपने स्वयं के मामलों का प्रबंधन करने की अनुमति देता है। लेकिन संविधान का अनुच्छेद-44 भारत की राज्य सरकारों से यह भी अपेक्षा करता है कि वे राष्ट्रीय नीतियाँ बनाते समय सभी भारतीय नागरिकों के लिए राज्य के समान नीति निर्देश और समान क़ानून लागू करें। यूसीसी क़ानून की एक और बड़ी कमी यह है कि इस क़ानून के लागू होने के बाद दो लोग आपसी सहमति से बिना विवाह के भी लिव इन रिलेशन में रह सकेंगे, जिसके लिए उन्हें एक 16 पन्नों का फॉर्म भरना होगा और किसी मंदिर के पुजारी से सर्टिफिकेट लेना होगा। इस सर्टिफिकेट में लिखा होगा कि विवाह करने के योग्य प्रेमी जोड़ा यदि चाहे, तो विवाह कर सकता है। लिव इन में रहने के लिए कोई भी प्रेमी जोड़ा ऑनलाइन या ऑफलाइन रजिस्ट्रेशन कर सकता है। लेकिन लिव इन में रहने वाले जोड़े को अपने पिछले सम्बन्धों की जानकारी भी दस्तावेज़ी प्रमाण पत्र के ज़रिये इस फार्म में देनी होगी। इन दस्तावेज़ों में तलाक़ के काग़ज़, विवाह रद्द करने के काजग या अंतिम आदेश, पति या पत्नी का मृत्यु प्रमाण पत्र, पहले के लिव इन रिलेशनशिप का प्रमाण पत्र आदि देने होंगे। अगर लिव-इन में रहने वाले जोड़े की उम्र 21 साल के कम है, तो रजिस्ट्रेशन करने वाला रजिस्ट्रार लिव-इन रिलेशनशिप का रजिस्ट्रेशन करने वाले जोड़े के मां-बाप को उनके साथ रहने की इच्छा के बारे में पूर्व सूचना देगा।
इस तरह यह क़ानून बिना विवाह के साथ रहने की विदेशी परंपरा को बढ़ावा देगा, जिससे देश में तलाक़ और चरित्रहीनता के मामले बढ़ेंगे और अकेले जीवन-यापन करने वाली उम्रदराज़ महिलाओं की तादाद भी बढ़ेगी।
भारत में यूसीसी क़ानून पहली बार ब्रिटिश शासन में हिंदुओं और मुसलमानों के लिए बनाया गया था; लेकिन विद्रोह के डर से इसे लागू नहीं किया गया। लेकिन गोवा में पुर्तगाल के औपनिवेशिक शासनकाल के चलते ब्रिटिश हुकूमत ने समान पारिवारिक क़ानून लागू किया, जिसे गोवा नागरिक संहिता कहा जाता है। और गोवा में आज भी समान नागरिक संहिता लागू है। समान नागरिक संहिता को लेकर अलग-अलग धर्मों और समुदायों के लोगों की राय भी अलग-अलग है। ज़्यादातर धर्म के लोग इसे अपनी संस्कृति, धर्म और परंपराओं के ख़िलाफ़ ही मानते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका के नवनिवार्चित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के क़रीबी रिश्तों को दर्शाने वाली तस्वीरें हम सबके ज़ेहन में आज भी ज़िन्दा हैं। डोनाल्ड ट्रम्प जब आठ साल पहले अमेरिका के राष्ट्रपति बने थे, तबसे उनकी और प्रधानमंत्री मोदी की राजनीतिक नज़दीकियों का ढिंढोरा भारत में ख़ूब पीटा गया। हाउडी मोदी से लेकर नमस्ते ट्रम्प जैसे कार्यक्रमों पर प्रधानमंत्री मोदी ने सरकारी ख़ज़ाने से करोड़ों रुपये ख़र्च किये। भारत के विदेश मंत्रालय ने भी समय-यमय पर भारतवासियों व दुनिया के अन्य देशों में मोदी-ट्रम्प की दोस्ती का बहुत प्रचार किया। लेकिन भारत की दुनिया में बढ़ती इस ताक़त और ट्रम्प के साथ मोदी के गहरेरिश्तों पर अब बहुत बड़ा सवालिया निशान लगा है।
हाल ही में अमेरिका ने अपने एक सैन्य विमान से जिस तरीक़े से ज़ंजीरों में जकड़कर 104 अवैध प्रवासी भारत वापस भेजे, उससे भारत की दुनिया में बढ़ती हैसियत का दावा करने वाली मौज़ूदा केंद्र सरकार आज कटघरे में खड़ी है। इन प्रवासियों में हरियाणा के 33, गुजरात के 33, पंजाब के 30, उत्तर प्रदेश के तीन, महाराष्ट्र के तीन और चंडीगढ़ के दो शामिल हैं। डंकी रूट से विदेशी धरती पर जाने वाले इन प्रवासियों ने भारत लौटकर बताया कि क़रीब 40 घंटों की यात्रा के दौरान उनके हाथ-पैर ज़ंजीरों से बँधे रहे। ये लोग सभी 104 भारतीय डंकी रूट से अमेरिका गये थे। ज़ाहिर है वहाँ जाने के पीछे इनका मक़सद ज़्यादा पैसा कमाकर भारत में रहने वाले अपने परिजनों को एक बेहतर ज़िन्दगी देना ही होगा। लेकिन अमेरिका जाने के लिए इनमें से अधिकांश में किसी ने अपनी ज़मीन और गहने बेचकर, तो किसी ने भारी ब्याज पर क़र्ज़ लेकर एजेंटों को लाखों रुपये दिये और कई तरह की तकलीफ़ें झेलकर अमेरिका पहुँच गये। लेकिन ट्रम्प ने राष्ट्रपति बनते ही कड़ा रुख़ अपनाते हुए विभिन्न देशों के अवैध प्रवासियों को उनके देशों में वापस भेजा। प्रधानमंत्री मोदी और भारत की गरिमा का ख़याल किये बिना अमेरिका ने भारतीय प्रवासियों को ज़ंजीरों में जकड़कर भेजा।
प्रधानमंत्री मोदी इस पर कुछ नहीं बोले हैं। विदेश मंत्रालय पहले कहता रहा यह अफ़वाह है। लेकिन इसके सुबूत के तौर पर वीडियो और तस्वीरें वायरल होने पर जब संसद में विपक्ष ने इस मुद्दे पर सरकार को घेरा, तो संसद में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने जवाब दिया कि अवैध तरीक़े से रह रहे भारतीयों को वापस भेजा गया है। यह कोई नयी बात नहीं है। वर्ष 2009 से वर्ष 2024 तक 15,564 भारतीय स्वदेश लौटे हैं। 2012 से ही डिप्रेशन नीति के तहत सैन्य विमान से ही लोगों को वापस भेजा जाता रहा है। वीडियो और तस्वीरों के सुबूत होने के बावजूद उन्होंने भारतीयों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार को नकार दिया और कहा कि अवैध प्रवासियों को हथकड़ी लगाकर स्वदेश भेजना अमेरिका की नीति है और यह सभी देशों पर लागू है। उन्होंने यह भी नहीं माना कि महिलाओं व बच्चों को हथकड़ियाँ पहनायी गयीं। लेकिन भारत लौटी महिलाओं का कहना है कि उन्हें भी हथकड़ियाँ पहनायी गयी थीं।
जब इस मुद्दे ने और ज़ोर पकड़ा, तो विदेश सचिव विक्रम मिस्री को सफ़ाई देनी पड़ी कि हमने अमेरिका को अमृतसर उड़ान में हथकड़ियाँ लगाने पर आपत्ति दर्ज करायी है। इसे टाला जा सकता था। अमेरिका को मानवीय रुख़ दिखाना चाहिए था। उन्होंने कहा कि भारत का स्पष्ट रुख़ है कि अमेरिका से आगे होने वाले डिपोर्टेशन में अवैध प्रवासी भारतीओं के साथ बदसलूकी नहीं होनी चाहिए। सैन्य विमान के इस्तेमाल पर विदेश सचिव मिस्री ने कहा कि ऐसी जानकारी नहीं है। अमेरिका इस अभियान को राष्ट्रीय सुरक्षा ऑपरेशन के रूप में चला रहा है। संभवत: इस कारण सैन्य विमान का इस्तेमाल किया गया है।
यहाँ सवाल ये उठते हैं कि भारत ने सही समय पर उचित क़दम क्यों नहीं उठाये? क्या अमेरिकी सरकार के इस व्यवहार को भारत रोक नहीं जा सकता था? भारत दुनिया की पाँचवीं सबसे मज़बूत अर्थव्यवस्था वाला देश है। राजनीतिक और लोकतांत्रिक पटल पर भी भारत मज़बूत है; लेकिन ट्रम्प और अमेरिका से दोस्ती का दम्भ भरने के बावजूद भारतीय प्रासियों के अमानवीय तरीक़े से वापस भेजे जाने के मामले में कुछ नहीं कर सका। वहीं दूसरी ओर विश्व में अर्थ-व्यवस्था में 43वें नंबर और 5.21 करोड़ की आबादी वाला एक छोटे-से देश कोलंबिया के राष्ट्रपति गुस्तावो पेट्रो ने अमेरिका को अपने नागरिकों को इस तरह भेजने से न सिर्फ़ रोका, बल्कि अमेरिका पहुँचे अपने अवैध प्रवासियों की वतन वापसी का अपने विमानों से सम्मानपूर्वक वापसी का बंदोबस्त किया।
अभी तो अवैध प्रवासियों का पहला समूह ही वतन लौटा है। अभी क़रीब 18,000 अवैध प्रवासी भारतीय अमेरिका से वतन लौटेंगे। दोनों देशों के बीच वापसी योजना पर सहमति बन गयी है। भारत द्वारा अमानवीय व्यवहार के प्रति विरोध दर्ज कराने के बाद संभवत: अमेरिका ऐसा नहीं करे। लेकिन दुनिया की पाँचवीं अर्थ-व्यवस्था की चमक तब फीकी लगने लगती है, जब विदेशी ताक़तें भारत के सम्मान की कोई परवाह नहीं करतीं। प्रधानमंत्री मोदी के विदेशों में डंका पिटने और ख़ासतौर पर विदेशी शासकों के साथ गहरे रिश्ते होने के संदेश खोखले लगने लगते हैं। कहना पड़ेगा कि प्रधानमंत्री मोदी दिखावा न करके भारत की छवि को हक़ीक़त में विश्व पटल पर मज़बूत करें। क्योंकि एक समय था, जब बिना प्रचार और अमेरिकी शासकों के महिमामंडन के भी अमेरिका भारत का लोहा मानता था और अमेरिका-भारत के रिश्ते काफ़ी मज़बूत थे। क्या अब ये रिश्ते फीके नहीं पड़ते दिख रहे हैं?
किसी भी गंदे और फटे कपड़े पहने लाचार से आदमी को देखकर हममें से कितनों का दिल पसीज जाता है और हम सीधे अपनी जेब में हाथ डालकर उसे 10-20 रुपये दे डालते हैं। पर भिखारी के भेष में भीख माँग रहा कोई आदमी भीख देने वाले से भी ज़्यादा अमीर हो सकता है। मुंबई में ऐसे भिखारी बड़ी तादाद में रहते हैं। इन भिखारियों में असली भिखारी कौन है, नक़ली कौन है? इसका पता लगाना किसी के लिए भी आसान नहीं है। मुंबई भिखारियों का ही नहीं, बल्कि भिखारियों की संख्या बढ़ाने वालों के छुपने का भी मुफ़ीद ठिकाना बन चुकी है। अभी कुछ दिन पहले ही मुंबई के रहने वाले भरत जैन को दुनिया का सबसे अमीर भिखारी माना गया, जिसके पास मुंबई में दो फ्लैट, ठाणे में दो दुकानें और लग्जरी गाड़ियाँ भी हैं। मुंबई के छत्रपति शिवाजी टर्मिनस या आज़ाद मैदान जैसी जगहों पर भीख माँगने वाले भरत जैन का बाक़ायदा घर परिवार है और उसकी नेटवर्थ तक़रीबन 7.5 करोड़ रुपये से ज़्यादा बतायी जाती है।
भरत जैन के अलावा मुंबई में बड़े रईस भिखारियों में संभाजी काले और लक्ष्मी दास जैसे करोड़पति भिखारी हैं। इन भिखारियों की महीने की कमायी एक प्राइवेट कम्पनी के नौकरीपेशा मैनेजर के बराबर भी हो सकती है। मुंबई में एक शांताबाई नाम की एक भिखारिन ने भीख माँगकर अपनी बेटी और पोते के नाम क़रीब तीन एकड़ ज़मीन ख़रीदी थी। शांताबाई के बारे में तो कहा जाता है कि जब उसके पति की मौत हो गयी, तो उसने भीख माँगने का काम शुरू किया था, पर मुंबई में तो एक से एक पेशेवर भिखारी हैं, जिनका पेशा ही भीख माँगना है। मुंबई में ऐसे भिखारियों की कोई गिनती नहीं है, जिनका धंधा भीख माँगना ही है। लेकिन इन भिखारियों के बीच में ही कई पेशेवर अपराधी बड़ी सुगमता से पुलिस की आँखों में धूल झोंककर छिपे रहते हैं और किसी भिखारी पर दया-माया करके भीख देने वाले लोगों को ऐसा कुछ भी पता नहीं चलता कि भिखारी के भेष में वाक़ई कोई भिखारी है या कोई शातिर अपराधी। कहने को हमारे भारत में भीख माँगना ग़ैर-क़ानूनी है और मुंबई में तो न जाने कितनी ही बार इन भिखारियों को भीख माँगने से रोकने की कोशिश की गयी हैं; लेकिन कोई कामयाबी सरकार या पुलिस प्रशासन को आज तक नहीं मिल सकी है। हालाँकि बॉम्बे प्रिवेंशन ऑफ बेगिंग एक्ट के मुताबिक, सार्वजनिक जगहों पर भीख माँगना एक अपराध है और ये क़ानून कहता है कि ऐसे किसी भी भिखारी को पकड़कर उसके सुधार के लिए पुलिस प्रशासन द्वारा पंजीकृत संस्था में भेजा जाना चाहिए या उसे पहली बार पकड़े जाने पर तीन साल और दूसरी बार या उसके बाद अगली बार पकड़े जाने पर 10 साल तक की जेल की सज़ा हो सकती है। इसके अलावा आपराधिक क़ानून (संशोधन) अधिनियम, 2013 के तहत किसी भिखारी के भीख माँगने पर उसे 10 साल तक की जेल की सज़ा हो सकती है। इस क़ानून के मुताबिक, अगर कोई भिखारी किसी दूसरे आदमी, बुद्धों या बच्चों से भीख मँगवाता है, तो उसे कड़ी सज़ा हो सकती है। पर यही क़ानून यह भी कह रहा है कि अगर कोई आदमी अपनी मर्जी से भीख माँग रहा है, तो यह अपराध नहीं है।
मुंबई पुलिस का यह भी मानना है कि अक्सर दयनीय और उपेक्षित लोग ही भीख माँगते हैं। ऐसे लोग आपराधिक गतिविधियों में भी संलिप्त हो जाते हैं। पर इनकी वजह से क़ानून-व्यवस्था पर बुरा असर पड़ता है, इसलिए ऐसे लोगों के साथ-साथ संगठित भिखारी गिरोहों से सख़्ती से निपटना ही पड़ेगा। मुंबई में भिखारियों की बड़ती तादाद को लेकर 2013 में भी मुंबई पुलिस ने अभियान चलाया था। उसके बाद 2017 और 2021 में भी भिखारी भगाओ अभियान चलाकर भिखारियों को भगाने की कोशिश की थी, जिसके तहत हज़ारों भिखारियों को पुलिस ने पकड़ा भी था। मुंबई में यह अभियान बॉम्बे प्रिवेंशन ऑफ बेगिंग एक्ट-1959 के तहत कई बार चलाया गया है। पर मुंबई में भिखारी घटने की जगह हर दिन बढ़ते ही नज़र आ रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक, मुंबई में जितने जेबतराशी और छोटी-मोटी चोरियाँ होती हैं, उनमें से क़रीब 35 फ़ीसदी चोरियों के पीछे भिखारियों का ही हाथ होता है। इसके अलावा जासूसी, बड़े अपराध और पुलिस की मुखबिरी करने के कामों में भी भिखारियों की बड़ी भूमिका होती है। मुंबई पुलिस में जितने केस दर्ज होते हैं, उनमें से कई केस भिखारियों से जुड़े होते हैं। मुंबई को भिखारियों से मुक्त बनाया जाना चाहिए और भिखारियों को पकड़कर किसी काम-धंधे पर लगाना चाहिए। ऐसे भिखारी सम्पूर्ण मुंबई शहर में रस्ते के सिग्नल पर सिद्धिविनायक, मक़दूम शाह बाबा, महालक्ष्मी, इस्कॉन जैसे मंदिर एवं महिम चर्च के बाहर और ज़्यादा पैमाने पर राहगीरों के झुंड वाले रास्तों पर वर्षों से भीख माँगते नज़र आते हैं।
पुलिस प्रशासन अपना काम करता है; पर ख़ासकर जिन बड़े-बड़े धनी मंदिरों के बाहर यह भिखारी पीढ़ी-दर-पीढ़ी भीख माँग रहे हैं, उन्हें भीख माँगने से मनाकर कम-से-कम नौकरी के लिए प्रोत्साहित लगवाने की कोशिश करनी चाहिए, जिससे मुंबई जैसा सुंदर शहर भिखारियों से मुक्त हो सके। ग़ौरतलब है कि शरद शेलर नामक फ़िल्म के निर्माता ने अभिनेता स्वप्निल जोशी को लेके मराठी फ़िल्म बनायी थी, जिस फ़िल्म के विमोचन में सदी के महानायक अमिताभ बच्चन की ख़ास मौज़ूदगी थी। भिखारी नामक इस फ़िल्म में बॉक्स ऑफिस पर संतुष्टिपूर्ण कमायी की थी।
-विभिन्न क्षेत्रों में प्रतिष्ठा के लिए दिये जाने वाले पुरस्कारों का पर्दे के पीछे होता है सौदा
इंट्रो- प्रसिद्धि पाने की चकाचौंध और ग्लैमर के पीछे लोग इतने दीवाने हैं कि वे बिना कोई बड़ा काम किये ही पुरस्कार (अवार्ड) तक पाना चाहते हैं। ऐसे लोग पुरस्कार लेने के लिए बाक़ायदा एक क़ीमत चुकाते हैं, जिसके लिए पुरस्कारों की घोषणा करने वाले हमेशा लालायित रहते हैं। ये लोग योग्यता और सामाजिक योगदान को दरकिनार करते हुए चंद पैसों, सम्बन्धों, ऊपरी दबाबों और अय्याशी के दूसरे संसाधनों को पाने के लालच में किसी भी ऐरे-ग़ैरे के नाम बड़े-बड़े पुरस्कार कर देते हैं और इन पुरस्कारों के वास्तविक हक़दार कहीं पीछे रह जाते हैं। यह एक फलता-फूलता कालाबाज़ार है, जिसमें एक विशेष क़ीमत के बदले पुरस्कार दिये जाते हैं। ‘तहलका’ एसआईटी ने अपनी इस बार की रिपोर्ट में इसी का पर्दाफ़ाश किया है। ‘तहलका’ की इस रिपोर्ट से पता चलता है कि उपलब्धियों और योग्यता के लिए दिये जाने वाले पुरस्कारों को किस तरह से सस्ती और सुलभ वस्तुओं की तरह पर्दे के पीछे ख़रीदा और बेचा जाता है। पढ़िए, तहलका एसआईटी की यह ख़ास रिपोर्ट :-
‘वे योग्यता के आधार पर पुरस्कार नहीं देते; वे उन्हें बेचते हैं। उनके पास तीन-चार लाख रुपये से लेकर 5.50 लाख रुपये तक के पुरस्कार हैं। सबसे कम 1.20 लाख रुपये का है। उनके पास 5.50 लाख रुपये से ज़्यादा के पुरस्कार भी हैं। लेकिन वे हमारे पास नहीं हैं। वे पिछले 14 वर्षों से पुरस्कार दे रहे हैं।’ -यह बात xxxx टेक्नोलॉजी के रोहन मिश्रा ने ‘तहलका’ के रिपोर्टर को पुरस्कार पाने का इच्छुक ग्राहक समझकर बतायी। रोहन मिश्रा की कम्पनी xxxx टेक्नोलॉजी उसके माध्यम से इच्छुक लोगों को पुरस्कार बेचने वाली कम्पनी के लिए एक चेन पार्टनर के रूप में कार्य करती है।
‘जैसा कि आप जानते हैं कि इन दिनों कई स्टिंग ऑपरेशन हो रहे हैं। इसलिए कम्पनी सीधे ख़रीदारों को पुरस्कार नहीं बेचेगी। वे (कम्पनी वाले) उन्हें (पुरस्कारों को) हमारे माध्यम से बेचेंगे। कम्पनी का कोई भी व्यक्ति आपसे नहीं मिलेगा।’ -रोहन मिश्रा ने आगे बताया।
रोहन मिश्रा
‘पुरस्कारों की पाँच श्रेणियाँ हैं, जो कम्पनी x सितंबर xxxx को भारत मंडपम, नई दिल्ली में आयोजित एक शानदार समारोह में देगी। मैं आपके लिए मीडिया श्रेणी में सबसे निचले श्रेणी के पुरस्कार, जिसकी लागत 1.20 लाख रुपये है; की व्यवस्था करूँगा।’ -‘तहलका’ के अंडरकवर रिपोर्टर को रोहन ने आश्वस्त किया।
दुनिया भर में कई पुरस्कारों को लेकर समय-समय पर सवाल उठते रहे हैं। ऑस्कर से लेकर ग्रैमीज, गोल्डन ग्लोब्स और भारतीय राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार तक सभी को लेकर कभी-न-कभी विवाद खड़ा हुआ है। उदाहरण के लिए, पद्म पुरस्कार-2022 ने भी धूम मचा दी थी। जब नरेंद्र मोदी सरकार ने 2022 में 73वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर पद्म पुरस्कार विजेताओं की घोषणा की, तो इस पर बहस छिड़ गयी। पद्म भूषण के लिए चुने गये लोगों में पूर्व सीपीआई (एम) पोलित ब्यूरो सदस्य और पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य के साथ ही वरिष्ठ कांग्रेस नेता और राज्यसभा में विपक्ष के नेता ग़ुलाम नबी आज़ाद भी शामिल थे। जबकि भट्टाचार्य ने पुरस्कार लेने से इनकार कर दिया था। ग़ुलाम नबी आज़ाद को मोदी सरकार से इसे स्वीकार करने के लिए कांग्रेस नेताओं के मज़ाक़ का पात्र बनना पड़ा था।
इसी तरह पिछले कुछ वर्षों में विभिन्न फ़िल्म पुरस्कार विवादों में रहे हैं। इसी के चलते आमिर ख़ान, अजय देवगन, इमरान हाशमी, गोविंदा, सनी देओल और नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी जैसे अभिनेताओं ने सभी फ़िल्म पुरस्कार समारोहों से ख़ुद को दूर कर लिया है। फ़िल्मी पुरस्कारों की तरह ही मीडिया पुरस्कार भी अलग-अलग समय पर विवादों में घिरे रहे हैं। इन विवादों की तह तक जाने के लिए ‘तहलका’ ने पुरस्कार फिक्सिंग पर एक पड़ताल की, जहाँ पुरस्कार योग्यता के आधार पर नहीं, बल्कि एक निश्चित क़ीमत के बदले दिये जाते हैं।
इस सिलसिले में ‘तहलका’ के अंडरकवर रिपोर्टर की मुलाक़ात रोहन मिश्रा से हुई, जिसने नोएडा स्थित कम्पनी xxxx टेक्नोलॉजी में काम करने का दावा किया। ‘तहलका’ रिपोर्टर ने रोहन से अपने लिए एक पुरस्कार पाने का इच्छुक (एक नक़ली ग्राहक) बनकर मुलाक़ात की। रोहन ने तुरंत रिपोर्टर को बताया कि उनकी कम्पनी एक ऐसी कम्पनी के लिए चैनल पार्टनर के रूप में काम कर रही है, जो उनके माध्यम से इच्छुक पार्टियों को पुरस्कार बेचती है। नोएडा में इस मुलाक़ात के लिए दोनों की एक बैठक हुई, जिसमें रोहन ने रिपोर्टर को बताया कि मीडिया कैटेगरी में उनके लिए एक अवार्ड है, जिसकी क़ीमत 1.20 लाख रुपये है। रोहन मिश्रा ने इस बात का ख़ुलासा किया कि उसकी कम्पनी किस तरह से किस क़ीमत पर पुरस्कार दिलवाने का काम करती है।
रिपोर्टर : ये कब है, …xx सितंबर xxxx को?
रोहन : हाँ।
रिपोर्टर : किन लोगों को मिल रहा है ये?
रोहन : ये मिल रहा है बिजनेस पर्सनालिटीज को, …कुछ पर्सनल को भी।
रिपोर्टर : मीडिया वालों को मिल जाएगा?
रोहन : हाँ; कैटेगरी में मिल जाएगा।
रिपोर्टर : किस कैटेगरी में?
रोहन : पाँच कैटेगरी हैं। मैं भेज दूँगा आपको, …जो पहले वाला है, वो 5-6 लाख का है। वो तो नहीं है; सबसे कम वाला मिल जाएगा, एक लाख 20 हज़ार रुपये।
रिपोर्टर : एक लाख 20 हज़ार में?
अब ‘तहलका’ रिपोर्टर के साथ इस बातचीत के दौरान रोहन मिश्रा ने अपनी कम्पनी द्वारा प्रदान किये जाने वाले पुरस्कारों की विस्तृत मूल्य निर्धारण संरचना का ख़ुलासा किया। 1.20 लाख रुपये से लेकर 5.50 लाख रुपये तक की श्रेणियों के पुरस्कारों को लेकर रोहन ने बताया कि कम्पनी पिछले 14 वर्षों से इन पुरस्कारों का वितरण कर रही है।
रिपोर्टर : क्या-क्या रेट है वैसे इनके अवार्ड के?
रोहन : हाईएस्ट (सबसे ज़्यादा) तो 5.5 लाख का है। फिर चार लाख, तीन लाख, 1.20 लाख…। मतलब, 1.20 लाख से स्टार्ट है और हाईएस्ट 5.5 लाख का है। उसके ऊपर भी हैं, पर वो हम लेते नहीं हैं। हमारे बजट का नहीं है।
रिपोर्टर : ये कितने साल हो गये अवार्ड बाँटते हुए?
रोहन : 14 ईयर (14 साल)।
अब रोहन मिश्रा ने पुरस्कार हासिल कराने में अपनी भागीदारी के बारे में और ज़्यादा जानकारी प्रदान करते हुए बताया कि कैसे उसने वर्षों से कई कम्पनियों के लिए प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाया है, जिसमें पुरस्कार बदले एक क़ीमत ली जाती है।
रिपोर्टर : आप कबसे कर रहे हो इनके साथ?
रोहन : मैंने पहला किया था …21 में।
रिपोर्टर : कहाँ की कम्पनी थी?
रोहन : दिल्ली की, एक किया था मैंने …अहमदाबाद का।
रिपोर्टर : इसकी कितनी दिलवा दी आपने?
रोहन : बहुत दिलवा दी, इस बार सात दिलवा रहा हूँ। वैसे 12-13 दिलवा दिये। …और इस बार सात दिलवा रहा हूँ। एक मेरा भी है।
रिपोर्टर : आपका भी है! पैसे देने होंगे आपको?
रोहन : क्यों नहीं, देने होंगे।
रिपोर्टर : आपसे भी लेंगे पैसे?
रोहन : क्यूँ नहीं लेंगे?
इस ख़ुलासा करने वाले आदान-प्रदान में ‘तहलका’ रिपोर्टर के सामने रोहन मिश्रा ने पुरस्कारों की बिक्री के इस व्यवसाय में अपने कामकाज को उजागर किया। रोहन के मुताबिक, उसकी कम्पनी पिछले 14 साल से अवार्ड बेच रही है। उसने ‘तहलका’ रिपोर्टर को भी अवार्ड ख़रीदने का तरीक़ा बताया। उसने कहा है कि ये बड़ी संख्या में उपस्थित लोगों को आकर्षित कार्यक्रम करते हैं, जिनमें हाई-प्रोफाइल हस्तियाँ भी शामिल होती हैं। रोहन ने बताया कि उसकी कम्पनी पूरी तरह से पुरस्कार शो और व्यापार शो आयोजित करने पर ध्यान केंद्रित करती है।
रिपोर्टर : अब बताओ, अवार्ड का क्या कह रहे थे आप?
रोहन : भेजा है आपको, चेक कर लेना।
रिपोर्टर : (रोहन का भेजा हुआ मैसेज पढ़ते हुए)- दि फोर्टींथ नेशनल xxxx अवार्ड…, क्या है यह?
रोहन : ये xxxx ग्रुप है।
रिपोर्टर : अच्छा; नाम ही है xxxxxx ग्रुप। …क्या करते हैं ये? धंधा क्या है इनका?
रोहन : वही अवार्ड शो कराते हैं।
रिपोर्टर : कम्पनी कुछ तो करती होगी?
रोहन : यही करती है, सिर्फ़ अवार्ड देती है। इनका क्या है कि अवार्ड शो करते हैं ये, ट्रेड शो कहते हैं।
रिपोर्टर : ट्रेड शो?
रोहन : हाँ; जिसमें 1,00-500 लोग आते हैं अलग-अलग जगह से। …इनके जो सेलिब्रिटीज होते हैं ना! लास्ट टाइम वो ईरानी नहीं है …3 ईडियट्स (फ़िल्म) वाले, वो आये थे।
रिपोर्टर : बोमन इरानी?
रोहन : हाँ; वो आये थे। अक्षय कुमार (फ़िल्म अभिनेता) आये थे, एज चीफ गेस्ट (मुख्य अतिथि के रूप में)।
अब एक स्पष्ट स्वीकारोक्ति के साथ रोहन मिश्रा ने पुरस्कारों की बिक्री वाले इस धंधे के व्यापक पैमाने को उजागर करते हुए बताया कि योग्यता एक भूमिका निभाती है; लेकिन केवल 10 प्रतिशत प्राप्तकर्ताओं के लिए। बाक़ी लोग ग्राहकों की तरह भुगतान करके पुरस्कार प्राप्त कर रहे हैं, जिसका कम्पनी के दैनिक राजस्व में लगभग 10-15 करोड़ रुपये का योगदान होता है।
रिपोर्टर : ये मैरिट पर नहीं देंगे?
रोहन : देते हैं, पर वो सिर्फ़ 10 परसेंट (प्रतिशत) ही हैं।
रिपोर्टर : कितने अवार्ड देते हैं एक दिन में?
रोहन : अवार्ड तो बहुत देते हैं, एक दिन का 10-15 करोड़ होता है। …एक दिन का …200 अवार्ड देते हैं ये।
रिपोर्टर : 200 अवार्ड एक दिन में?
रोहन : हाँ; और लोग आ रहे हैं। अभी भी लोग आ रहे हैं। स्पॉन्सर्स (आयोजकों) से पैसे कमाते हैं।
अब रोहन ने पुरस्कार हासिल करने की प्रक्रिया का विस्तृत विवरण देते हुए इसके लिए शामिल सटीक लागत का ख़ुलासा करते हुए बताया कि 1.20 लाख रुपये के पुरस्कार के लिए प्रक्रिया 25,000 रुपये के चेक भुगतान के साथ शुरू होती है, बाक़ी का भुगतान नक़द में किया जाता है। उसने स्पष्ट किया कि भुगतान का आधा हिस्सा पुरस्कार समारोह से तीन दिन पहले किया जाना चाहिए और पूरी राशि उनकी कम्पनी के माध्यम से दी जानी चाहिए। रोहन ने ‘तहलका’ रिपोर्टर को यह भी बताया कि पुरस्कार का आयोजन करने वाली कम्पनी का कोई भी व्यक्ति उनसे (रिपोर्टर या पुरस्कार पाने वाले से) नहीं मिलेगा और उन्हें केवल उसके द्वारा ही आगे बढ़ने की कार्यवाही करनी होगी।
रिपोर्टर : बताइए, क्या रोट है इस बार हमारे लिए?
रोहन : 1.20 लाख रहेगा।
रिपोर्टर : एक लाख 20 हज़ार, कैटेगरी क्या रहेगी?
रोहन : भेज दूँगा आपको और पेमेंट (भुगतान) जो है, वो 20 के (20 हज़ार) प्लस जीएसटी रहेगा।
रिपोर्टर : 20 के प्लस जीएसटी?
रोहन : 25 हज़ार प्लस जीएसटी वो चेक से जाएगा, बाक़ी कैश (नक़द) में जाएगा। 24 प्लस जीएसटी वो कम्पनी को जाएगा।
रिपोर्टर : वो नॉमिनेशन फ्री (नामांकन मुफ़्त) है?
रोहन : हाँ; और बाक़ी जो है, उसमें आधा कैश (नक़द) में जाएगा। वैसे हम पूरा लेते हैं, बट (परन्तु) आपका फर्स्ट टाइम (पहली बार) है, तो आपको जो है हाफ देना होगा, …तीन दिन पहले।
रिपोर्टर : अवार्ड मिलने से तीन दिन पहले?
रोहन : हाँ।
रिपोर्टर : पेमेंट (भुगतान) किसको देना होगा?
रोहन : पेमेंट सारा हमको देना होगा।
रिपोर्टर : मैनेजमेंट (प्रबंधन) को नहीं?
रोहन : नहीं। …जो भी रहेगा, आपको लिंक हमसे रहेगा।
रिपोर्टर : हमसे कोई नहीं मिलेगा?
रोहन : कोई नहीं; जो रहेगा, हमसे रहेगा। …अगर पाँच लाख वाला लेते हैं आप, तो उनका बंदा आता है।
रिपोर्टर : पाँच लाख वाला! …उसकी गारंटी क्या होगी?
रोहन : वो हाईएस्ट है। स्टार्टअप हो जिसका।
अब रोहन ने पुरस्कारों की असाधारण प्रकृति पर प्रकाश डालते हुए ख़ुलासा किया कि कम्पनी एक करोड़ रुपये की श्रेणी भी प्रदान करती है, जिसमें पत्रिका कवर पर नाम और प्रायोजित प्रचार जैसे मीडिया एक्सपोज़र शामिल हैं। दरों के बारे में उसने बताया कि सन् 2021 में सबसे कम पुरस्कार की लागत 75,000 रुपये थी, जबकि उच्चतम पुरस्कार की क़ीमत तीन लाख रुपये थी। रोहन इस व्यवसाय के बढ़ने को लेकर संकेत देते हुए कहा कि 2023 के लिए वह अपनी ख़ुद की फ्रेंचाइजी भी शुरू कर रहा है। इस पुरस्कार देने वाले उद्यम में वह अपनी भागीदारी को और विविधता प्रदान कर रहा है।
रिपोर्टर : आपने 21 में क्या रेट लिया था इनसे?
रोहन : 21 में, …75 हज़ार।
रिपोर्टर : सबसे कम, और सबसे ज़्यादा?
रोहन : तीन लाख का था। देखिए, है तो उनके पास एक करोड़ का भी, पर हमारे पास उसका कोई पिच नहीं था।
रिपोर्टर : एक करोड़ में? …ऐसा क्या है?
रोहन : एक करोड़ में स्पॉन्सरशिप भी है। आपका बोर्ड लगाएँगे, मैगज़ीन कवर (पत्रिका के आवरण पृष्ठ) पे नाम जाएगा आपका। दो तरह का अवार्ड होता है, एक ख़ुद वाला और दूसरा इनवाइट करते हैं. जैसे पीडब्ल्यूडी वाला। …2020 या 21 वाले में पीडब्ल्यूडी वाला भी था कोई, उसका मैगज़ीन के कवर पे फोटो छपा था।
रिपोर्टर : कौन-सी मैगज़ीन?
रोहन : इनकी मैगज़ीन भी है ना! पीआर भी करते हैं अपना, …xxxx, xxxxx इस पर उनको कवर पर भी दिया जाता है। ये अपनी मैगज़ीन बनाते हैं, उसे प्रमोट करते हैं। अपनी साइट पर प्रमोट करते हैं।
रिपोर्टर : और 22 में क्या रेट था इनका?
रोहन : 22 में वही था 23 से बड़ा है। 23 में ही मैं भी ज़्यादा एक्टिव हुआ।
रिपोर्टर : यानी 12-13 अवार्ड आपने करा दिये?
रोहन : इस बार और भी करवा रहे हैं। …अभी अपनी कुछ फ्रेंचाइजी (रियायत) भी स्टार्ट कर रहे हैं, उसके लिए भी कर रहे हैं।
अब रोहन ने खुले तौर पर विभिन्न पुरस्कारों को बेचने की बात स्वीकार करते हुए बताया कि किस तरह उसने पिछले साल मेकअप उद्योग में एक व्यक्ति को ग्लैमर पुरस्कार दिलाने में मदद की थी।
रिपोर्टर : ये ही अवार्ड हैं आपके पास या और भी हैं?
रोहन : और भी हैं। मल्टीपल हैं। ग्लैमर का मैंने करवाया था पिछले साल अक्टूबर में। आई थिंक ग्लैमरस करके अवार्ड था। मेक यूपी का काम करती xxxx ख़ान, वो क्लाइंट हैं। उनको दिलवाया था मैंन ग्लैमर का अवार्ड।
इसके बाद रोहन ने ख़ुलासा किया कि वह एक ग्राहक के लिए 10 पुरस्कारों की व्यवस्था करने की प्रक्रिया में है, जिसमें पहले से ही विशिष्ट माँगें रखी गयी हैं। जब उससे फ़िल्म-सम्बन्धी पुरस्कारों के बारे में पूछा गया, तो उसने कुछ भी नहीं कहा और सुझाव दिया कि पुरस्कार उनके पास हो सकते हैं; लेकिन फ़िलहाल यह निश्चित नहीं हैं।
रिपोर्टर : तो अभी आने वाले कितने अवार्ड हैं आपके पास?
रोहन : देखना पड़ेगा, अभी एक कम्पनी आ रही है; …उसकी डिमांड है क़रीब 10 अवार्ड की, बजट बता दिया है उनको। मुझे वही सब करना है।
रिपोर्टर : कोई फ़िल्म वाला अवार्ड नहीं है आपके पास?
रोहन : देखना पड़ेगा।
जब ‘तहलका’ रिपोर्टर ने रोहन से पुरस्कार बेचने के इस आकर्षक अवैध धंधे से उसकी कमायी के बारे में पूछा, तो उसने तुरंत बात टाल दी और कुछ भी बताने से इनकार कर दिया। उसकी हल्की-फुल्की प्रतिक्रिया कि ‘ये कोई बात बताने वाली होती है?’
रिपोर्टर : आपको कितना पैसा मिलता है इसमें?
रोहन : ये थोड़ी बताएँगे, हा..हा (हँसते हुए), ये कोई बात बताने वाली होती है!
अब रोहन ने अपने द्वारा आयोजित उच्च-मूल्य वाले पुरस्कारों के पीछे के संदिग्ध कार्यों पर प्रकाश डालते हुए ख़ुलासा किया कि पाँच करोड़ रुपये के पुरस्कार दिलाने वाले लोग स्टिंग ऑपरेशन होने के डर से सीधे किसी से नहीं मिलते हैं। उसने इस बात की भी पुष्टि की कि आजकल पुरस्कार योग्यता न होते हुए भी प्रायोजनों के बहाने चतुराई से पर्दे के पीछे से ख़रीदे और बेचे जाते हैं।
रिपोर्टर : अच्छा; अगर हम पाँच करोड़ वाले अवार्ड की बात करें, तो इसमें मिलने आएगा बंदा?
रोहन : ऐसे नहीं आएगा, पहले कन्फर्म करेगा। बहुत इसमें स्टिंग ऑपरेशन वग़ैरह होते हैं ना! दिखाते हैं मैरिट पर अवार्ड दे रहा हूँ मैं, बट एक्चुअल में मैरिट तो कहीं नहीं होती है। कोई अवार्ड ले लो, …मैरिट पर थोड़ी होता है। सामने नही आ रहा है, बट वो ऐसे दिखाते हैं एज अ स्पाउंसर (एक आयोजक के रूप में), इस कम्पनी ने स्पॉन्सर कर दिया; लेकिन पैसा तो जा ही रहा है ना कहीं-न-कहीं! …जिस बंदे से हमारी बात होती है ना! उस बंदे की इतनी औक़ात नहीं कि वो हमको ये बात बता पाए।
अब रोहन ने कुछ सबसे प्रतिष्ठित मीडिया हाउसों के लिए पुरस्कार बेचने में अपनी भागीदारी का लापरवाही से ख़ुलासा करते हुए बताया कि उसने एक ग्राहक के लिए 60,000 रुपये में निम्न श्रेणी के पुरस्कार की व्यवस्था की थी। रोहन ने बताया कि फोटो सत्र से लेकर वैधता का भ्रम पैदा करने के लिए छवियों को ऑनलाइन पोस्ट करने तक पुरस्कार व्यवसाय प्रक्रिया कैसे काम करती है।
रोहन : xxxx का भी आने वाला है।
रिपोर्टर : xxxx का भी करते हो आप?
रोहन : xxxx का किया है इसी साल।
रिपोर्टर : कितना लिया उनसे?
रोहन : 60,000 रुपये।
रिपोर्टर : ज़्यादा नहीं है?
रोहन : लोअर कैटेगरी है। उसमें पाँच होता है, इसमें तीन था कैटेगरी। …xxxx में पहला कैटेगरी में कुछ दिलवा दिये दूसरे में; तीसरे में कुछ गले में पहना दिया। बाद में होता है फोटो सेशन, उस फोटो को हम अपनी वेबसाइट पर लगाते हैं।
अब रोहन ने लोगों द्वारा पुरस्कार ख़रीदने के पीछे के कारणों की व्याख्या करते हुए इस बात पर प्रकाश डाला कि पुरस्कार और फोटो आदि का उपयोग किसी की छवि को मज़बूत करने, कार्यालय आदि स्थानों को सज़ाने या पीआर रणनीति के हिस्से के रूप में वेबसाइटों पर प्रदर्शित करने के लिए किया जाता है। रोहन ने ऐसे पुरस्कारों के व्यापक; लेकिन छिपी हुई कालाबाज़ारी को भी स्वीकार किया।
रिपोर्टर : लोगों को फ़ायदा क्या होता है अवार्ड लेकर?
रोहन : एक तो उन्हें अपने ऑफिस में लगाना होता है, वेबसाइट पर लगाना होता है, पीआर के लिए; …हमें पता है, आपको पता है अवार्ड बिकते हैं; सबको थोड़ी न पता है।
1.20 लाख रुपये के पुरस्कार पर छूट की संभावना के बारे में पूछे जाने पर रोहन ने पुष्टि की कि 10 प्रतिशत की छोटी छूट की व्यवस्था की जा सकती है। लेकिन केवल तभी, जब ख़रीदारी में कई पुरस्कार शामिल हों।
रिपोर्टर : अच्छा; अगर मुझे 1.20 लाख वाले में पाँच अवार्ड चाहिए हों, तो मुझे डिस्काउंट (छूट) मिलेगा?
रोहन ने आगे ख़ुलासा किया कि पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं के साथ आने वाले लोगों को समारोह में शामिल होने के लिए अलग टिकट ख़रीदने पड़ेंगे।
रिपोर्टर : अच्छा; जो अवार्ड लेने आएगा, उसके साथ कितने लोग आ सकते हैं?
रोहन : इस वाले अवार्ड में एक का।
रिपोर्टर : जो फैमिली से आएगा?
रोहन : टिकट लेना होगा।
रिपोर्टर : टिकट कितने का होगा?
रोहन : लिखा हुआ है उसमें, टिकट लेना पड़ेगा अलग से।
अब रोहन ने ‘तहलका’ रिपोर्टर से अवार्ड लेने के लिए एक सप्ताह के भीतर पुरस्कार के बदले पैसा जमा करने के लिए कहा और आश्वासन दिया कि मीडिया के माध्यम से पुरस्कार प्राप्त करने वाले की छवि और नाम को सार्वजनिक करके बढ़ावा दिया जाएगा। उसने समझाया कि निश्चित रूप से पैसा ख़र्च होगा; लेकिन कैसे किसी कार्यक्रम की रीलों को मीडिया चैनलों पर जमा करने से पुरस्कार पाने वाले की मान्यता को और बढ़ा सकता है। रोहन ने रिपोर्टर को यह सुझाव भी दिया कि वह भी पुरस्कार समारोहों में रील बनाएँ और शुल्क देकर उन्हें समाचार चैनलों पर प्रसारित करें।
रिपोर्टर : लास्ट डेट (अंतिम तिथि) क्या है पैसा देने की?
रोहन : आपको ह$फ्ते भर में क्लोज करना (देना) पड़ेगा।
रिपोर्टर : अख़बार में भी छपेगा?
रोहन : हाँ; अख़बार में पेज पर आएगा पूरा। पीआर भी करेंगे आपको अच्छे से, उसको आप चाहो तो आप भी कर सकते हो अपने लेवल पर। जैसे आपने अवार्ड ले लिया, हमने आपसे एक लाख और ले लिया, आपका रील बना दिया; …जैसे आप अवार्ड ले रहे हो, हमने पिक्चर बना लिया अवार्ड लेते हुए, वीडियो बना लिया, उसके बाद। …अच्छा; इसमें जाने का भी एक फीस होता है 1,000 रुपये का। 2,500 रुपये का, 5,000 रुपये का एट्च (इत्यादि) फॉर इन्विटेशन एज अ गेस्ट (अतिथि के रूप में निमंत्रण के लिए )। अब हम वहाँ एज ऑडिएंस (दर्शक बनकर) चले गये, वहाँ वीडियो बना लिया। हमने क्या किया, वीडियो बनाके जैसे न्यूज xxxx है, या बहुत सारे चैनल्स हैं, या लोकल चैनल्स होते हैं; …आप चाहो तो रील्स उनको दे दो। ये मेरा रील है, आप इसको चलाओ और ये रहे पैसे। ये भी चार्ज करते हैं 10,000-15,000; …तो ये अपने चैनल पर लगा देते हैं। शेयर भी कर देते हैं। लाइक भी, ट्वीट भी कर देते हैं। ऐसे बहुत-से चैनल्स हैं।
इस पड़ताल के दौरान ‘तहलका’ रिपोर्टर को विभिन्न पीआर एजेंसियों से कई कॉल प्राप्त हुईं और प्रत्येक ने पुरस्कारों के अलग-अलग नाम और उनके बदले में अपनी पुरस्कार-बिक्री की क़ीमतों की पेशकश की, जो सभी बिक्री के लिए उपलब्ध हैं। एक अवसर पर एक बिचौलिये ने ‘तहलका’ रिपोर्टर को दिल्ली में एक समारोह में एक प्रतिष्ठित मीडिया हाउस पुरस्कार देने का वादा किया, जो केवल 1.75 लाख रुपये में उपलब्ध था। हालाँकि जब रिपोर्टर ने पुरस्कार राशि का भुगतान सीधे मीडिया हाउस को करने पर ज़ोर दिया, जो कथित तौर पर पुरस्कार की पेशकश कर रहा था; तो इससे मीडिया हाउस के प्रबंधन के बीच संदेह पैदा हो गया और सौदा अंतत: विफल हो गया।
इस पुरस्कार व्यवसाय की कार्यप्रणाली स्पष्ट है कि कोई भी कम्पनी सीधे अपनी पुरस्कार इच्छुक पार्टियों को नहीं बेच रही है, क्योंकि उन्हें (कम्पनी प्रबंधन को) पकड़े जाने का डर है। इसके बजाय वे वैधता का मुखौटा लगाकर पुरस्कार की वैधता बनाये रखने और किसी ख़ुफ़िया जाँच से बचने के लिए पीआर एजेंसियों के माध्यम से इस प्रकार से पुरस्कार बिक्री के लेन-देन को अंजाम दे रहे हैं। ‘तहलका’ एसआईटी की यह विशेष रिपोर्ट वास्तविक योग्य लोगों को पुरस्कृत करने की प्रक्रिया में पारदर्शिता और अखंडता की तत्काल आवश्यकता पर ज़ोर देती है।
हिंदुस्तान में हर घर और हर व्यावसायिक केंद्र को 24 घंटे बिना रुकावट के बिजली आपूर्ति एक बड़ी समस्या बनी हुई है। अभी हाल ही में हुए एक सर्वे के मुताबिक, उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में भी बिजली आपूर्ति का संकट लगातार बना हुआ है। इसके अलावा बिजली के बिलों से लोग परेशान हैं। जिन घरों में दो-चार बल्ब और एक-दो पंखे भी लगे हैं, उनका बिल भी हज़ारों रुपये महीने का आ रहा है। दिल्ली जैसे राज्य में पिछली आम आदमी पार्टी की पिछली सरकार ने बिजली न बनाने के बावजूद 24 घंटे 200 यूनिट तक मुफ़्त और उससे ऊपर की यूनिट पर सस्ती बिजली की उपलब्धता के सपने को ज़रूर पूरा किया, बाक़ी किसी भी राज्य या शहर में अभी तक यह मुमकिन नहीं हो सका है। इसकी वजह बिजली उत्पादन के सीमित संसाधन और कोयले पर बिजली आपूर्ति की बड़ी निर्भरता है। सौर ऊर्जा यानी ग्रीन एनर्जी एक ऐसा प्राकृतिक स्रोत है, जिसकी हर प्राणी, पेड़-पौधे को तो ज़रूरत होती ही है, इससे घरों में रोशनी फैलाने से लेकर उद्योग धंधे भी चलाये जा सकते हैं और इसका सबसे सस्ता और सुलभ माध्यम हैं- सोलर पैनलों का विस्तार। आज दिल्ली हो चाहे मुंबई हो, कलकत्ता हो चाहे मद्रास या फिर किसी भी राज्य के किसी बड़े शहर से लेकर छोटे-छोटे गाँव हों, वहाँ सोलर पैनल से सौर ऊर्जा यानी ग्रीन ऊर्जा सस्ती, टिकाऊ और आसानी से उपलब्ध हो पा रही है। मेरे ख़याल को केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए, जिससे हर घर और हर व्यावसायिक केंद्र को 24 घंटे सस्ती बिजली मिल सके, जिसके लिए सौर ऊर्जा से अच्छा संसाधन कोई दूसरा नहीं है।
बहरहाल, ग्रीन एनर्जी और औद्योगिक क्षेत्रों को बढ़ावा देने के लिए केंद्र की मोदी सरकार और ओडिशा सरकार ने हाल ही में मेक इन ओडिशा कॉन्क्लेव 2025 के तहत तक़रीबन 22,700 करोड़ रुपये के एमओयू सिर्फ़ ग्रीन एनर्जी के लिए साइन किये हैं। इस व्यापार समझौता कॉन्क्लेव का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया। इस दौरान उन्होंने हिंदुस्तान में ग्रीन एनर्जी हब बनने की ओडिशा की ज़रूरतों और महत्त्वाकांक्षा के बारे में बताया। उम्मीद है इससे ओडिशा जैसा पिछड़ा राज्य भी ग्रीन एनर्जी और औद्योगिक विकास में बुलंदियों को छुएगा। यह समझौता भारत के अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में अग्रणी अवाडा ग्रुप के साथ ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी की उपस्थिति में हुआ है। इस दौरान ओडिशा सरकार में उद्योग सचिव हेमंत शर्मा ने बताया कि ओडिशा खनिज पदार्थों के मामले में काफ़ी महत्त्वपूर्ण राज्य है। पहले यहाँ के 50 फ़ीसदी खनिज पदार्थ, जिनमें स्टील, एल्युमीनियम और दूसरे कई पदार्थ हैं, दूसरे राज्यों, ख़ास तौर पर झारखंड, बिहार, छत्तीगढ़ में चले जाते थे। हालाँकि हम जून 2023 में एक लॉन्ग टर्म लिंकेज फार्म सी फॉर रॉ मैटेरियल लेके आये थे, जिसमें हमने गारंटी दी थी कि जो प्लांट्स ओडिशा में लगेंगे, आयरन हो, सीसा हो, निकल हो या बॉक्साइट हो, इन खनिजों में जितना खनिज ओडिशा माइनिंग कार्पोरेशन निकालती है, उसका 70 फ़ीसदी लोकल इंडस्ट्रीज के लिए रिजर्व होगा। पहले इनको मिलेगा। अगर लोकल इंडस्ट्री नहीं लेंगी, तो उसे बाहर राज्यों में भेजा जाएगा। हालाँकि अभी वो 70 फ़ीसदी पर नहीं पहुँच पाये हैं, वो अभी 50 फ़ीसदी के आसपास ही है। लेकिन इस बार जो हमने क़रीब कई छोटी-बड़ी कम्पनियों के साथ एमओयू साइन किये हैं, उससे लगता है कि यहाँ के खनन से मिलने वाले खनिज पदार्थों का राज्य में ही 70 से 80 फ़ीसदी तक उपयोग हो सकेगा।
पूरे देश की कई बड़ी कम्पनियों ने यहाँ औद्योगिक संभावनाएँ देखते हुए ओडिशा में उद्योग स्थापित करने में रुचि दिखायी है। कालाहांडी जो कभी कई समस्याओं के लिए जाना जाता था, आज वहाँ औद्योगिक विकास काफ़ी हो चुका है। बड़ी बात यह है कि हमने इस बार छोटे उद्योगपतियों को भी आमंत्रित किया था, जिसमें से बहुतों की रुचि ओडिशा में प्लांट लगाने की जगी है। हमने इथेनॉल ग्रेन बेस्ड भी दो-तीन साल पहले ही कम्पनियों को अलाउ कर दिया था। अब कम्पनियाँ कई चीज़ों से इथेनॉल बनाकर ऑयल मार्केटिंग कम्पनियों को दे सकती हैं।
विनीत मित्तल ने बताया कि अवाडा ग्रुप ग्रीन एनर्जी के क्षेत्र में काम करती है। हम लोग क़रीब 20,000 मेगावाट के प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहे हैं। पूरे देश में आज ग्रीन एनर्जी की माँग हो रही है। आज के लोग बहुत ज़िम्मेदार हैं और वे ग्रीन एनर्जी की उपयोगिता समझ रहे हैं। लोग ग्रामीण क्षेत्रों में ही नहीं, बल्कि शहरों में भी ग्रीन एनर्जी पाने के लिए सोलर पैनल लगा रहे हैं। क्योंकि उन्हें पता है कि एक बार पैसा लगाने के बाद न सिर्फ़ 24 घंटे उन्हें बिजली मिल सकेगी, बल्कि उसका ख़र्चा भी दोबारा नहीं करना पड़ेगा। बिना पैसे के तो कुछ नहीं हो सकता; लेकिन इस क्षेत्र में बार-बार पैसा लगाने या कहें कि बहुत पैसा लगाने की ज़रूरत ही नहीं है। ईश्वर ने हमें प्राकृतिक रूप से बहुत संपन्न बनाया है और हमें उसका इस तरह उपयोग करना चाहिए, जिससे आने वाली पीढ़ी को भी उसका फ़ायदा मिल सके।
दरअसल, आज पूरी दुनिया में ग्रीन एनर्जी प्राप्त करने की होड़-सी लगी हुई है; लेकिन हिंदुस्तान में इसके प्रति अभी भी जागरूकता और प्रोत्साहन की कमी नज़र आती है। सौर ऊर्जा के ज़रिये ग्रीन एनर्जी यानी सूरज से बिजली उत्पादन के मामले में हिंदुस्तान अभी भी 10वें स्थान पर है, जबकि दुनिया में बिजली खपत करने वाला सबसे बड़ा तीसरा देश हिंदुस्तान है। तीन साल पहले इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (आईईए) की इंडिया एनर्जी आउटलुक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2040 तक औद्योगिक विकास की वजह से हिंदुस्तान में बिजली की माँग बढ़ती रहेगी। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अप्रैल, 2015 में साल 2022 तक हिंदुस्तान में 175 गीगावाट ग्रीन एनर्जी उत्पादन का जो लक्ष्य तय किया था, हिंदुस्तान अभी उसमें बहुत पीछे है और अभी तक अनुमानित तौर पर 100 गीगावाट के लक्ष्य को भी नहीं छू सका है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, ग्रीन एनर्जी के उत्पादन मामले में हिंदुस्तान अभी तक सिर्फ़ 54 फ़ीसदी यानी तक़रीबन 94 गीगावाट का लक्ष्य पर ही पहुँच सका है। साल 2015 में हिंदुस्तान तक़रीबन 40 गीगावाट ग्रीन एनर्जी का उत्पादन कर रहा था, जबकि खपत के लिहाज़ से हिंदुस्तान को 250 गीगावाट ग्रीन एनर्जी की ज़रूरत है। देश के सिर्फ़ दो राज्य कर्नाटक और गुजरात ही ग्रीन एनर्जी उत्पादन के लक्ष्य का 70 फ़ीसदी का आँकड़ा छू सके हैं। इसके अलावा ग्रीन एनर्जी उत्पादन मामले में तमिलनाडु और राजस्थान 69 फ़ीसदी और आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश क्रमश: 47 फ़ीसदी, 47 फ़ीसदी और 43 फ़ीसदी ग्रीन एनर्जी उत्पादन के आँकड़े को छू सके हैं। उत्तर प्रदेश इस मामले में अभी बहुत पिछड़ा है, जो अभी तक सिर्फ़ 27 फ़ीसदी ग्रीन एनर्जी के उत्पादन के लक्ष्य को छू सका है। कई राज्य तो इससे भी पिछड़े हुए हैं।
बहरहाल, समस्या यह है कि एक तरफ़ बिजली कम्पनियों को बिजली काफ़ी सस्ती पड़ती है, वहीं उपभोक्ताओं को यह काफ़ी महँगी पड़ती है। इसका हिसाब इंटरनेट जैसा ही है, जो कि कम्पनियों को बहुत सस्ता और उपभोक्ताओं को बहुत महँगा पड़ता है। यही वजह है कि जो कम्पनियाँ पानी, कोयले और दूसरे संसाधनों से बिजली बनाकर उनकी सप्लाई कर रही हैं, वो कभी नहीं चाहतीं कि हिंदुस्तान सौर ऊर्जा यानी ग्रीन एनर्जी से संपन्न हो। क्योंकि जब उपभोक्ताओं को सस्ती और सुलभ बिजली आपूर्ति होने लगेगी, तो उनके करोड़ों रुपये सालाना का बिजली आपूर्ति का धंधा न सिर्फ़ मंदा होगा, बल्कि उन्हें मोटा मुनाफ़ा भी नहीं मिल सकेगा। सोलर पैनलों से ग्रीन एनर्जी पर सबका अधिकार होना चाहिए और इसे एक जन्मसिद्ध अधिकार की तरह ही सबके लिए सुलभ उपलब्ध कराया जाना चाहिए, जिसमें केंद्र सरकार से लेकर हर राज्य की सरकार को आगे आना होगा। लेकिन केंद्र सरकार और राज्य सरकारें ग्रीन एनर्जी के भी दाम वसूलना चाहती हैं, जिसके लिए इस मामले को केंद्रीय मुद्दा माना जा रहा है। हालाँकि मुझे नहीं लगता कि सौर ऊर्जा का बाज़ारीकरण होना चाहिए। हाँ, अगर कोई इस सौर ऊर्जा से औद्योगीकरण करके मुनाफ़ा कमा रहा है, तो उसके लिए बिल की व्यवस्था ज़रूर होनी चाहिए; लेकिन घरेलू उपयोग के लिए इसके दाम नहीं वसूले जाने चाहिए।
दिल्ली जैसे राज्यों का हाल यह है कि यहाँ साल के तक़रीबन 10 महीने घरों में एसी चलते हैं। नवंबर, 2024 तक हिंदुस्तान के कई राज्यों में गर्मी ही रहती है। वहीं कई राज्य ऐसे हैं, जहाँ साल भर तक गर्मी ही रहती है। केंद्रीय बिजली मंत्रालय के आँकड़ों के मुताबिक, दिसंबर 2024 में देश में बिजली खपत बढ़कर तक़रीबन 130.40 बिलियन यूनिट, जो दिसंबर, 2023 की तुलना में क़रीब छ: फ़ीसदी से भी ज़्यादा थी। क्योंकि दिसंबर, 2023 में बिजली की माँग 123.17 बिलियन यूनिट थी। इसकी वजह शहरों में सर्दी के समय हीटर, गीजर और ब्लोअर चलना बताया जाता है। गर्मियों में एसी, कूलर और पंखों के चलते खपत बढ़ती है।
केंद्र सरकार कह रही है कि उसने बिजली उत्पादन बढ़ाने में काफ़ी सफलता हासिल की है; लेकिन बिजली आपूर्ति के मामले में अभी भी समस्याएँ कम नहीं हुई हैं। आम उपभोक्ताओं के लिए न सिर्फ़ महँगी बिजली एक समस्या बनी हुई है, बल्कि 24 घंटे बिजली आपूर्ति भी एक बड़ी समस्या है। बिजली आपूर्ति में बाधा और महँगी बिजली के चलते किसानों को भारी नुक़सान उठाना पड़ता है।
केंद्र सरकार छूटे हुए घरों के विद्युतीकरण के लिए पुनरुद्धार वितरण क्षेत्र योजना (आरडीएसएस) के तहत राज्य सरकारों का सहयोग कर रही है। इसके अलावा प्रधानमंत्री जन-मन के तहत सभी चिह्नित पीवीटीजी (विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह) परिवारों को ऑन-ग्रिड बिजली कनेक्शन के तहत आरडीएसएस के दिशा-निर्देशों के मुताबिक, वित्त पोषण की भी मंज़ूरी देने की दिशा में काम हो रहा है। पिछले साल लोकसभा में भी बिजली आपूर्ति की समस्या को लेकर सवाल उठे थे। लेकिन ज़रूरत समाधान की है, जिसके लिए ग्रीन एनर्जी के क्षेत्र में काम करने वाली कम्पनियों को प्रोत्साहित करने की ज़रूरत भी है।
प्रसिद्ध कवि जेफ्री चौसर और टी.एस. एलियट, दोनों ने अप्रैल को ‘सबसे क्रूर महीना’ बताया है; लेकिन आम आदमी पार्टी के लिए फरवरी यह ख़िताब ले सकता है। उल्कापिंड की तरह उभरने के बाद आम आदमी पार्टी को अब एक कठिन वास्तविकता का सामना करना पड़ रहा है। क्योंकि उसने अपने गढ़ दिल्ली को खो दिया है और इसके साथ ही इंडिया गुट में अपनी जगह भी खो दी है। इस बीच भारतीय जनता पार्टी अजेय नज़र आ रही है। हरियाणा में अप्रत्याशित जीत, महाराष्ट्र में शानदार प्रदर्शन और अब दिल्ली में ज़ोरदार जीत के बाद भाजपा की गति निर्बाध लगती है। ऐसा प्रतीत होता है कि भगवा रथ अब रुकने वाला नहीं है, जो 2024 के लोकसभा चुनावों में कमज़ोर प्रदर्शन के बाद मंद होता हुआ माना गया था। भाजपा ने अपनी पिछली ग़लतियों से सीखा है और वह मुफ़्त सुविधाओं तथा ग़रीब कल्याण योजनाओं के वादों की पेशकश करने में आम आदमी पार्टी से एक क़दम आगे हो गयी है।
हालाँकि ‘तहलका’ के इस अंक की आवरण कथा ‘पुरस्कार बिकते हैं!’ में एसआईटी द्वारा उजागर किया गया है कि कैसे चकाचौंध और ग्लैमर के पीछे एक फलता-फूलता भूमिगत बाज़ार लाभ के लिए योग्यता को दरकिनार करते हुए पैसों के बदले पुरस्कारों का व्यापार करता है। दिल्ली चुनाव परिणाम के बीच यह भी ध्यान देने योग्य है। ध्यान देने योग्य है कि सर्वोच्च न्यायालय ने भी चुनावों से पहले मुफ़्त वस्तुओं की घोषणा करने की प्रथा की निंदा की है और सवाल उठाया है कि क्या यह ‘परजीवियों के वर्ग’ को बढ़ावा देता है? इसका राजनीतिक प्रभाव स्पष्ट है कि मुफ़्त चीज़ें वास्तव में चुनावी परिणामों को प्रभावित कर सकती हैं। 2025-26 के केंद्रीय बजट में महत्त्वपूर्ण कर (टैक्स) राहत की पेशकश के साथ भाजपा की रणनीति मध्यम वर्ग तक विस्तारित हुई है। 12 लाख रुपये तक की आय वाले लोगों को कोई आयकर नहीं देना होगा। इसके अतिरिक्त किराये की आय के लिए टीडीएस सीमा को बढ़ाकर छ: लाख रुपये कर दी गयी है, जिससे किराये की आय पर निर्भर लोगों को लाभ होगा। केंद्र सरकार के वेतन और पेंशन भत्तों को संशोधित करने के लिए आठवें वेतन आयोग की घोषणा के साथ इन उपायों ने प्रमुख मतदाता वर्गों में भाजपा की अपील को और मज़बूत किया है।
हालाँकि यह अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन से जन्मी आम आदमी पार्टी पर भाजपा का रणनीतिक हमला था, जिसका सबसे विध्वंसकारी प्रभाव पड़ा है। आम आदमी पार्टी सरकार के कथित भ्रष्टाचारों, विशेष रूप से आबकारी नीति घोटाले और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के आधिकारिक आवास, जिसे भाजपा ने शीश महल कहा; के असाधारण नवीनीकरण पर ध्यान केंद्रित करने से पार्टी की छवि ख़राब हुई। एक समय आम आदमी की आवाज़ के रूप में देखी जाने वाली आम आदमी पार्टी को भ्रष्ट व्यवस्था में एक अन्य राजनीतिक खिलाड़ी के रूप में देखा जा रहा था, जिसे वह उखाड़ फेंकना चाहती थी। हालाँकि दिल्ली एक छोटा केंद्र साशित प्रदेश है; लेकिन यह राजनीतिक शक्ति का केंद्र है और यहाँ आम आदमी पार्टी की हार से विपक्ष की संभावनाएँ काफ़ी बढ़ गयी हैं; ख़ासकर पंजाब में, जो एकमात्र राज्य है, जहाँ वह अभी भी सत्ता में है।
ऐसी चर्चाएँ बढ़ रही हैं कि आम आदमी पार्टी संभावित रूप से अस्तित्व के संकट का सामना कर रही है। कुछ लोगों का तो यह भी कहना है कि पार्टी टूट सकती है। हालाँकि इस तरह के निष्कर्ष निकालना जल्दबाज़ी होगी। लेकिन कांग्रेस नेता खुले तौर पर स्वीकार कर रहे हैं कि उनके मतदाता आधार पर आम आदमी पार्टी का अतिक्रमण बढ़ते दबाव का संकेत देता है। यह झटका इंडिया गुट के लिए और भी समस्याएँ पैदा कर सकता है; ख़ासकर तब, जब बिहार में इस साल के अंत में चुनाव होने वाले हैं और पश्चिम बंगाल 2026 के चुनावों की तैयारी कर रहा है।
दिल्ली चुनाव में उम्मीदों के विपरीत नतीजे आने पर एक बार फिर चुनाव आयोग कथित घपलेबाज़ी के आरोपों से घिर गया है। इससे पहले भी कई बार लोगों ने चुनाव आयोग को उसकी निष्पक्षता पर प्रश्नचिह्न लगाते हुए कटघरे में खड़ा किया है। चुनाव आयोग हर बार सफ़ाई देता रहा है कि उसने बिलकुल निष्पक्ष चुनाव कराये हैं। अब सर्वोच्च न्यायालय ने यह 2024 के लोकसभा चुनाव और महाराष्ट्र विधानसभा को लेकर ईवीएम में पड़े मतों और चुनाव आयोग द्वारा बताये गये डेटा में मेल न खाने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए चुनाव आयोग ईवीएम में कोई डेटा डिलीट न करने और नया डेटा रीलोड भी न करने का आदेश दिया, तो भाजपा को चुनाव जितवाने के कथित आरोपों से घिरे मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता की दुहाई देकर कहने लगे कि लाखों अधिकारी डेटा फीडिंग में शामिल होते हैं। किसी भी गड़बड़ी की गुंजाइश नहीं है।
1984 बैच के आईएएस अधिकारी राजीव कुमार देश के 25वें चुनाव आयुक्त हैं और जल्द ही अपने पद से सेवानिवृत्त होने वाले हैं। लेकिन सेवानिवृत्ति के बाद सरकारों से लाभ लेने वाले दूसरे कई भ्रष्ट अधिकारियों की तरह ही लाभ की आकांक्षा के आरोपों से वह भी नहीं बच सके। हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों में फ़र्ज़ी मत पड़ने और चुनाव के बाद मत प्रतिशत बढ़ने से लेकर दिन भर मतदान की हुई ईवीएम की बैटरी का 95 से 99 प्रतिशत तक चार्ज रहने जैसे आरोप चुनाव आयोग पर लगे। स्थिति यहाँ तक पहुँची कि हरियाणा में 20 प्रतिशत से ज़्यादा सीटों पर भाजपा नेताओं की जीत को चुनौती देने लोग पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट पहुँच गये, तो महाराष्ट्र में गड़बड़ी को लेकर मामला दिल्ली तक पहुँच गया। चुनाव आयोग पर भाजपा के लिए गड़बड़ी करने के आरोप लगाने के बाद जब महाराष्ट्र के सोलापुर ज़िले के मरकरवाड़ी गाँव के लोगों ने दोबारा बैलेट पेपर पर चुनाव की तरह मतदान करके यह जाँच करनी चाही कि उस क्षेत्र में कितने लोगों ने किसे मतदान किया है, तो चुनाव आयोग तिलमिला उठा और महाराष्ट्र पुलिस ने जाँच के लिए लोगों द्वारा बनाये गये मतदान केंद्र पर जाकर मतदान बंद कराकर अनेक लोगों को गिरफ़्तार कर लिया। 200 लोगों के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज की और उस क्षेत्र में कर्फ्यू लगा दिया। इससे चुनाव आयोग की भूमिका संदेह के घेरे में आ गयी। गुजरात के विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद भी बहुत लोगों ने गड़बड़ी के आरोप लगाये थे। तीन गाँवों के लोगों ने तो ईवीएम के विरोध में मतदान ही नहीं किया था।
गुजरात चुनाव, लोकसभा चुनाव, हरियाणा चुनाव, महाराष्ट्र चुनाव, जम्मू-कश्मीर चुनाव, झारखण्ड चुनाव के बाद हुए दिल्ली के चुनाव तक भाजपा नेताओं, विशेषकर भाजपा के सबसे बड़े चेहरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियों और जनसभाओं में जितने लोग जुटे, उससे भी कहीं-से-कहीं तक संभव नहीं लगा कि भाजपा को सत्ता पाने लायक जीत मिल सकेगी। ऐसे भी वीडियो सामने आये, जिनमें भाजपा के झंडे उठाने वालों ने यहाँ तक कहा कि वे दिहाड़ी पर आये हैं। दिल्ली में खुलेआम पैसे बाँटने, साड़ियाँ और दूसरे तोहफ़े बाँटने का सिलसिला चुनाव वाले दिन भी जारी रहा। कई शिकायतें मिलीं कि लोगों को मतदान नहीं करने दिया जा रहा है। लोकसभा चुनाव से लेकर इन सभी राज्यों के विधानसभा चुनावों में लाखों की संख्या में नये मतदाता बढ़ने, पुराने मतदातओं के नाम काटे जाने के आरोप भी लगते रहे। दिल्ली में भाजपा के सांसदों, मंत्रियों, नेताओं और कई सरकारी आवासों के पतों पर दज़र्न-दज़र्न भर के क़रीब लोगों के मतदाता पहचान पत्र बने मिले, जिस पर चुनाव आयोग चुप्पी साधे रहा।
लगता है कि चुनाव आयोग में वर्तमान में कार्यरत अधिकारी या तो लोकतंत्र का अर्थ नहीं समझते या उन्होंने किसी लालच अथवा दबाव में किसी विशेष पार्टी से कोई क़रार कर रखा है। लेकिन इस सबका ख़ुलासा तो तभी हो सकता है, जब चुनाव आयोग के सभी अधिकारियों को कुछ दिन का अवकाश देकर पिछले तीन-चार साल में हुए सभी चुनावों की गहन जाँच हो। सर्वोच्च न्यायालय ने ठीक ही आदेश दिया है कि चुनाव आयोग ईवीएम के डेटा से छेड़छाड़ न करे। क्योंकि चुनाव किसी पार्टी के लिए नहीं, बल्कि जनता के लिए चुनी हुई सरकार द्वारा पाँच साल तक व्यवस्थित ढंग से विकास कार्य करने के लिए कराये जाते हैं। भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है और यहाँ की चुनावी प्रक्रिया में लोकतंत्र की रक्षा करना ही चुनाव आयोग की पहली ज़िम्मेदारी है। उसे हर हाल में यह ज़िम्मेदारी निभानी चाहिए। दिल्ली में लंबे समय से वकील, पूर्व सैनिक और अन्य लोग ईवीएम को प्रतिबंधित करके बैलेट पेपर से चुनाव कराने की माँग कर रहे हैं। विश्व के विकसित देश भी बैलेट पेपर से चुनाव करवाते हैं। लेकिन भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में चुनाव आयोग लगातार ईवीएम से चुनाव कराने वकालत करने की इच्छा से सफ़ाई दे रहा है। पार्टियों, सत्ताओं और चुनाव आयोग से अपील है कि वे सफ़ाई देने की बजाय भारत के इस लोकतंत्र को ज़िन्दा रहने दें।
14 फरवरी को चंडीगढ़ में केंद्र सरकार और किसानों के बीच होगी बातचीत,- माँगें पूरी न होने पर फिर से देशव्यापी आन्दोलन कर सकते हैं किसान
योगेश
केंद्र सरकार के प्रतिनिधिमंडल और सुप्रीम कोर्ट की समिति के किसानों से मिलने के बाद किसान संगठन बैठक के लिए तैयार हो गये हैं। कुछ दिन पहले आमरण अनशन पर बैठे किसान नेता जगजीत डल्लेवाल से मिलने पहुँचे केंद्र सरकार के प्रतिनिधिमंडल के कहने पर किसानों ने तय किया है कि वे 14 फरवरी को शाम 5:00 बजे चंडीगढ़ के महात्मा गाँधी राज्य लोक प्रशासन संस्थान में केंद्र सरकार के प्रतिनिधिमंडल और सुप्रीम कोर्ट की समिति के साथ बैठक करेंगे। इस बैठक में किसानों की माँगों को मानने के लिए केंद्र सरकार तैयार होती है, तो किसान आन्दोलन ख़त्म कर देंगे। लेकिन ऐसा न होने पर सभी किसान देशव्यापी आन्दोलन करने और दिल्ली जाने की तारीख़ तय करेंगे। इस बैठक और आन्दोलन में भाग लेने के लिए 26 नवंबर से आमरण अनशन पर बैठे भारतीय किसान यूनियन (एकता सिद्धूपुर – ग़ैर राजनीतिक) के किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल डॉक्टरों की देखरेख को तैयार हो गये हैं। खनोरी बॉर्डर पर हरियाणा की सीमा में 121 किसान भी मरणव्रत की क़सम खाकर अनशन पर बैठे थे; लेकिन किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल के आग्रह के इन किसानों ने मरणव्रत अनशन समाप्त कर दिया है।
कुछ दिन पहले केंद्र सरकार की तरफ़ से एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल से मिलने भी पहुँचा था और उससे पहले सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समन्वय समिति के सदस्यों ने उनसे बातचीत की थी। केंद्रीय प्रतिनिधिमंडल ने किसान नेता से मिलने के बाद कहा कि उन्होंने डल्लेवाल जी की सेहत की जानकारी ली और किसानों के प्रतिनिधियों के साथ बातचीत भी की। इस प्रतिनिधिमंडल ने किसान नेता डल्लेवाल से अनशन तोड़ने का अनुरोध भी किया; लेकिन उन्होंने साफ़ कहा कि किसानों की माँगों को अगर केंद्र सरकार मान लेती है, तो वो अनशन तोड़ देंगे और आन्दोलन भी ख़त्म हो जाएगा। यही बात डल्लेवाल ने सुप्रीम कोर्ट के द्वारा बनायी समिति से कही थी।
ध्यान रहे कि किसानों केंद्र सरकार से लगभग 13 माँगें कर रहे हैं, जिनमें सबसे पहली और महत्त्वपूर्ण माँग स्वामीनाथन आयोग द्वारा सुझाया गया फ़सलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य को गारंटी क़ानून के साथ लागू करना। केंद्र सरकार किसानों की माँगों पर अपना वादा नहीं निभा रही है, जिसे लेकर पंजाब के किसानों ने 2023 में दोबारा आन्दोलन शुरू किया था। इस आन्दोलन को यूँ तो देश भर के किसानों का समर्थन है; लेकिन पंजाब के किसानों का सबसे ज़्यादा साथ हरियाणा के किसानों ने दिया है। राजस्थान और उत्तर प्रदेश के जागरूक किसान भी इस आन्दोलन के समर्थन में लगातार आवाज़ उठा रहे हैं। केंद्र सरकार किसानों की माँगों को अनदेखा करके तरह-तरह के प्रलोभनों से देश के किसानों को लुभा तो रही है; लेकिन न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर चुप है। कुछ दिन पहले केंद्र सरकार ने ख़रीफ़ की फ़सलें कटने के दौरान रबी की प्रमुख छ: फ़सलों के मौज़ूदा न्यूनतम समर्थन मूल्य में मामूली बढ़ोतरी करके यह प्रचार कर दिया कि उसने किसानों की फ़सलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ा दिया है। रबी की फ़सलें अभी तैयार भी नहीं हुई हैं और गेहूँ का बाज़ार भाव नये न्यूनतम समर्थन मूल्य से कहीं ज़्यादा हो गया है, जिससे उपभोक्ताओं की रोटी, तेल और दालें महँगी हो गयी हैं।
अब आन्दोलन पर बैठे किसानों ने तय किया है कि वे किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल और दूसरे किसान संगठन के नेताओं के नेतृत्व में 14 फरवरी को केंद्र सरकार के प्रतिनिधिमंडल के साथ बैठक करेंगे, जिसमें किसानों के दिल्ली कूच करने की तारीख़ निर्धारित की जाएगी। इस बैठक में भाग लेने के लिए ही दो महीने से ज़्यादा समय से आमरण अनशन पर बैठे किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल ने चिकित्सा सहायता लेने पर अपनी सहमति दी है। लेकिन उन्होंने साफ़ कह दिया है कि जब तक केंद्र सरकार फ़सलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य की क़ानूनी गारंटी नहीं दे देगी, तब तक वह आमरण अनशन अनिश्चितकाल के लिए जारी रखेंगे। किसानों और केंद्र सरकार के बीच यह बैठक एक साल से ज़्यादा समय बीतने पर होने जा रही है। केंद्र सरकार और किसानों के बीच इस बड़े हुए तनाव को ख़त्म करने के लिए बैठक करने में 1998 बैच के पुलिस के सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी (एडीजीपी इंटेलिजेंस) जसकरण सिंह और 2008 बैच के पुलिस के सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी (डीआईजी विजिलेंस ब्यूरो) नरिंदर भार्गव ने अहम भूमिका निभायी है। 2020 में तीन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ शुरू हुए किसान आन्दोलन में भी 12 दौर की बातचीत में नरिंदर भार्गव शामिल रहे थे। दोनों सेवानिवृत अधिकारी लंबे अरसे के बाद केंद्र सरकार और किसानों के बीच बैठक के इस सकारात्मक क़दम को दोनों सेवानिवृत अधिकारी एक सकारात्मक क़दम मान रहे हैं। वहीं किसानों का कहना है कि केंद्र सरकार किसानों की समस्याओं और फ़सलों में उनके घाटे को ध्यान में न रखकर सिर्फ़ पूँजीपतियों को फ़ायदा पहुँचाने के बारे में ही सोचती है। ऐसा नहीं होता, तो किसानों को इतना परेशान नहीं किया जाता। फिर भी किसानों ने उम्मीद जतायी है कि 14 फरवरी को होने वाली संयुक्त बैठक में उनकी समस्याओं का हल केंद्र सरकार निकलेगी। ऐसा होता है, तो किसान आन्दोलन ख़त्म करके अपनी खेती-बाड़ी देखेंगे और चार साल से हो रहे नुक़सान के बाद चेन की साँस लेंगे।
सुप्रीम कोर्ट कमेटी के सदस्य और केंद्र सरकार के प्रतिनिधिमंडल की इस पहल को किसान देर से आये, पर दुरुस्त आये की नज़र से देख रहे हैं। भारतीय किसान यूनियन (सिद्धपुर) के महासचिव काका सिंह कोटड़ा ने इस बातचीत की जानकारी देते हुए कहा है कि किसानों की माँगें अभी हल नहीं हुई हैं। केंद्र ने केवल माँगों पर बातचीत का प्रस्ताव रखा है, जिसके लिए किसान बातचीत को तैयार हैं। केंद्र सरकार की तरफ़ से बातचीत का प्रस्ताव मिलने के बाद किसानों ने 21 जनवरी के दिल्ली कूच के कार्यक्रम को रद्द कर दिया है। हालाँकि किसानों ने केंद्र सरकार से माँग की है कि 14 फरवरी को होने वाली बैठक को चंडीगढ़ की जगह दिल्ली में आयोजित किया जाए और बैठक दिन में ही कर ली जाए। किसानों ने यह माँग किसान नेता डल्लेवाल की सेहत को ध्यान में रखते हुए की है। किसानों ने दिल्ली में बैठक आयोजित करने की माँग करने के पीछे की वजह यह बतायी है कि यह देश भर के किसानों का मुद्दा है; सिर्फ़ पंजाब और हरियाणा का नहीं। संयुक्त किसान मोर्चा की एकता को लेकर भी प्रयास जारी हैं कि सभी संगठन इस बातचीत को सकारात्मक बनाएँ और ज़रूरत पड़ने पर 2020 के आन्दोलन की तरह ही फिर से आन्दोलन के लिए तैयार रहें। इसे लेकर 18 जनवरी और 24 जनवरी को संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक भी हुई थी। हालाँकि किसान संगठनों में अभी तक आपसी एकता पर सहमति नहीं हो सकी है। लेकिन हरियाणा की विभिन्न ख़ास पंचायतों ने किसानों का साथ देने का फ़ैसला ले लिया है। सभी खाप पंचायतों ने आन्दोलन को एक सूत्र में बांधने के लिए किसानों के 26 जनवरी के ट्रैक्टर मार्च में हिस्सा भी लिया। खापों ने यह भी कहा है कि अगर किसानों की माँगे पूरी नहीं हुईं, तो 14 फरवरी के बाद पूरे देश में बड़ा आन्दोलन किया जाएगा। पहले भी किसान आन्दोलन में सभी 102 खाप पंचायतों ने किसानों का साथ दिया था।
इधर किसानों और केंद्र सरकार में बातचीत की तारीख़ तय होने के बीच राजस्थान के क़रीब 40 हज़ार से ज़्यादा गाँवों के किसानों ने आन्दोलन की तैयारी शुरू कर दी है। राजस्थान के किसानों का कहना है कि इस बार अगर किसान आन्दोलन की ज़रूरत पड़ी, तो पूरे राजस्थान के किसान आन्दोलन में भाग लेंगे। इसके लिए किसान नेता हर गाँव में जा-जाकर किसानों को जागरूक करके उन्हें एकजुट कर रहे हैं। जानकारी मिली है कि 40 में 26-27 ज़िलों के किसानों का समर्थन किसान नेताओं को मिल चुका है और अन्य ज़िलों में अभी किसान नेताओं का जाना बाक़ी है। इसके साथ ही राजस्थान में किसान 29 जनवरी को गाँव बंद आन्दोलन चलाएँगे। यह आन्दोलन 45,537 गाँवों में प्रभावी ढंग से किया जाएगा। वहीं हरियाणा में खाप नेताओं ने हरियाणा के किसानों को जागरूक करना शुरू कर दिया है। इससे हरियाणा सरकार इतनी डर गयी है कि वो किसानों को हाल ही में फ़सल बीमा की नयी योजना के फ़ायदे गिनाने का प्रयास कर रही है।
खनोरी बॉर्डर पर आमरण अनशन पर बैठे किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल के द्वारा बैठक के लिए हामी भरने को लेकर जब कुछ किसानों से पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि डल्लेवाल जी ने प्रतिनिधिमंडलों से बातचीत और डॉक्टरों की देख-रेख के लिए जो हामी भरी है, वह सिर्फ़ सुप्रीम कोर्ट का सम्मान करते हुए ही राज़ी हुए हैं। लेकिन अगर किसानों की माँगों को पूरा नहीं किया गया, तो सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार को यह कहने का मौक़ा नहीं मिलेगा कि किसानों ने उनकी बात नहीं सुनी। किसान कह रहे हैं कि उनकी माँगें पूरी न होने की स्थिति में उनके पास देशव्यापी आन्दोलन करने के अलावा कोई चारा नहीं बचेगा। किसानों ने कहा कि वे लंबे समय तक केंद्र सरकार की लापरवाही और किसानों की अनदेखी के चलते अपने किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल और दूसरे किसानों की बलि नहीं चढ़ा सकते। किसानों का कहना है कि एक तरफ़ केंद्र सरकार किसानों को उनकी फ़सलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य तक नहीं देना चाहती, दूसरी तरफ़ कम्पनियों को मनचाही एमआरपी पर खाने-पीने की चीज़ें बेचने की छूट दे रही है। इससे देश भर के उपभोक्ताओं की जेब पर भारी बोझ पड़ रहा है और खेती में किसानों का घाटा बढ़ता ही जा रहा है। किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य कोई अलग से बढ़ाकर नहीं माँग रहे हैं।