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चुनाव से पहले ही कार्यकारी अध्यक्ष बनने को राजी हो सकते हैं राहुल गांधी !

राहुल गांधी को आज दिल्ली में हुई कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में एक सुर से अध्यक्ष बनाने की मांग हुई। संगठन चुनाव का भी ऐलान कर दिया गया है जिसका काम पहली नवंबर से शुरू हो जाएगा। लेकिन आज की सीडब्ल्यूसी की सबसे बड़ी खबर यह है कि पूर्णकालिक अध्यक्ष के चुनाव, जिनके अगले साल अक्टूबर तक पूरा होने की सम्भावना है, से पहले ही राहुल गांधी कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष का पद संभाल सकते हैं।

‘तहलका’ की जानकारी के मुताबिक आज की सीडब्ल्यूसी की बैठक में जिस तरह राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष बनाने की मांग हुई, उससे जाहिर हो गया है कि कथित असंतुष्ट (जी-23) खेमा अकेले पड़ चुका है। रही सही कसर आज अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पूरी कर दी जिन्होंने पार्टी के बीच अनुशासन पर सख्ती से जोर दिया। सोनिया ने साफ़ कहा जिन्हें जो कहना है सीधे मुझ से बात करे, मीडिया के जरिये नहीं।

बैठक में जी-23 के तमाम नेता भी राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाने के समर्थन में दिखे। बैठक के बाद वरिष्ठ नेता राजीव शुक्ल ने बताया – ‘जिन्हें आप जी-23 कहते हैं, वो भी राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाने के लिए सहमत हैं। सब ने मिलकर एक दम से पार्टी को अगले चुनावों से पहले पूरी तरह क्रियाशील करने का संकल्प किया है।’

बैठक के बीच में जब राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाने की बात हुई तो इसपर सभी ने समर्थन किया। उनसे कुछ नेताओं ने संगठन को और गति देने के लिए चुनाव से पहले  कार्यकारी अध्यक्ष का जिम्मा सँभालने का आग्रह किया। इसपर राहुल ने कहा -‘मैं इसपर विचार करूंगा।’ बैठक में उपस्थित नेताओं ने बताया कि राहुल की शारीरिक भाषा विशवास से भरी थी और वे इस आग्रह पर बहुत सकारात्मक दिख रहे थे। ऐसे में अनुमान लगाया जा रहा है कि वे ‘कार्यकारी अध्यक्ष’ बनने को तैयार हो सकते हैं।

संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने सीडब्ल्यूसी की बैठक के बाद प्रेस कांफ्रेंस में बताया कि नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए ट्रेनिंग कार्यक्रम चलेगा। यह कार्यक्रम ब्लाक स्तर से जिला स्तर तक चलेगा। इसमें जनजागरण तैयारी की जाएगी और यह अभियान 14 नवंबर से शुरू होगा। इसमें केंद्र सरकार की विभिन्न नाकामियों को जनता के सामने लाया जाएगा। इसके तहत पद यात्रा जैसे कार्यक्रम होंगे। सदस्यता अभियान भी जल्दी ही शुरू होगा।

वेणुगोपाल ने बताया कि आज की बैठक में पार्टी ने तीन प्रस्ताव पास किये हैं। इसमें वर्तमान राजनीतिक स्थिति पर चर्चा की गयी। आर्थिक मोर्चे पर भी चर्चा हुई और स्थिति पर चिंता जताई गयी। महंगाई पर सबसे एक सुर से चिंता जताई और कहा कि देश भर में इसके कारण आम आदमी का जीना मुहाल हो गया है।

बैठक में चीन की भारतीय सीमा में घुसपैठ पर गहन चिंता जताई गयी और कहा गया कि अफगानिस्तान में तालिबान के आने के बाद सुरक्षा को लेकर जो खतरा बना है, केंद्र सरकार उसपर खामोश है और लगता है कि सरकार सोई हुई है। पार्टी नेताओं ने गुजरात के अडानी पोर्ट पर बड़े पैमाने पर मिली नशीले पदार्थों की खेप पर सवाल उठाया।

बैठक में लॉक डाउन में बंद हुई छोटी और माध्यम इकाईयों के अभी तक न खुलने पर चर्चा के दौरान कहा गया कि इससे बड़े पैमाने पर लोग बेरोजगार हो गए हैं और सरकार को उनकी बिलकुल भी चिंता नहीं है।

दुस्साहस की हद

लखीमपुर में उन्मादी सत्ता के पहियों तले रौंद डाला लोकतंत्र

लखीमपुर खीरी के गाँव तिकुनिया में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री के आरोपी और पहले भी कई विवादों में घिरे बेटे द्वारा कार के पहियों के नीचे किसानों को कुचल डालने की घटना ने पूरे देश को झकझोरकर रख दिया है। कोई सोच भी नहीं सकता कि सत्ता के नशे में चूर एक नेता का बेटा यह दुस्साहस कर सकता है। इस घटना में चार किसानों, एक पत्रकार और तीन अन्य लोगों के ख़ून के छीटों ने भारतीय राजनीति के चेहरे को और बदसूरत बना दिया है। वैचारिक विरोध में इतना नीचे गिर जाना दुष्टता की पराकाष्ठा तो है ही, भारतीय लोकतंत्र और साम्प्रदायिक सौहार्द के लिए भी यह बहुत अशुभ संकेत है। आन्दोलनरत किसानों पर यह ज़ुल्म राजनीति पर दूरगामी असर डालेगा। लखीमपुर खीरी की पूरी घटना और उससे पड़ रहे प्रभावों को लेकर बता रहे हैं विशेष संवाददाता राकेश रॉकी :-

भाजपा के न चाहने के बावजूद लखीमपुर खीरी के तिकुनिया में किसानों की बर्बर हत्या एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन गया है। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री के आरोपी बेटे की करतूत ने भाजपा और उत्तर प्रदेश सरकार को न केवल रक्षात्मक कर दिया है, दोनों की एक ख़राब छवि भी देश के सामने पेश की है। आन्दोलन कर रहे किसानों को कार के नीचे कुचल देने की इस घटना ने कई गम्भीर सवाल खड़ा किये हैं कि देश किस दिशा की तरफ़ बढ़ रहा है? देश में अपनी आवाज़ उठाने की क्या क़ीमत हो सकती है?

विडम्बना यह है कि राज्य सरकार के साथ-साथ केंद्र सरकार और भाजपा ने इस घटना पर लम्बे समय तक न केवल चुप्पी साधे रखी, बल्कि आरोपियों को बचाने की कोशिश भी की। ऊपर से तुर्रा यह कि इस घटना को सिख बनाम हिन्दू बनाने की साज़िश रची जा रही है। और यह आरोप किसी और ने नहीं ख़ुद भाजपा के सांसद वरुण गाँधी ने लगाया है। यह इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है; क्योंकि आरोप ख़ुद भाजपा पर लग रहे हैं। संकेत यह भी मिल रहे हैं कि तिकुनिया की यह घटना अभी तक कुछ ही प्रदेशों तक सीमित किसान आन्दोलन को देशव्यापी आन्दोलन बना सकती है।

किसानों को कार के नीचे कुचल देने की घटना जब हुई और इसका आरोप मोदी मंत्रिमंडल में गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष मिश्रा उर्फ़ मोनू पर लगा, तो भाजपा से लेकर मंत्री पिता तक सभी ने आशीष को बेक़सूर ठहराने की हरसम्भव कोशिश की। अजय ने तो यह तक कहा कि उनका बेटा घटना के समय वहाँ था ही नहीं और उनके पास इसके पुख़्ता प्रमाण हैं। बाद में जो वीडियो सामने आये, उनसे आरोपी के मंत्री पिता के झूठ की कलई खुल गयी। बाद में अपराध शाखा (क्राइम ब्रांच) के सामने आरोपी आशीष अपने पिता के दावों को सच साबित करने वाला कोई प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर सका।

किसानों, कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के जबरदस्त दबाव के बाद आशीष मिश्रा पर एफआईआर तो दर्ज कर दी गयी और उसे मुख्य आरोपी भी बना दिया गया; लेकिन उसे गिरफ़्तार करने में योगी सरकार की पुलिस को 7 दिन का लम्बा वक़्त लग गया। यही नहीं उत्तर प्रदेश सरकार की गठित जाँच टीम तक घटना के 75 घंटे बाद तिकुनिया पहुँची। इससे साफ़ अंदाज़ा लग जाता है कि प्रदेश की भाजपा सरकार की इस मामले को कितना हल्के में ले रही थी।

जिस आशीष मिश्रा पर किसानों को कार के नीचे बेरहमी से कुचल देने का आरोप है, वह आने वाले विधानसभा चुनाव में क्षेत्र में भाजपा टिकट का प्रबल दावेदार है। अब इस मामले को वहाँ जातिवादी रंग देने की भी भरपूर कोशिश हो रही है। भाजपा पर आरोप लग रहा है कि इस मामले को हिन्दू बनाम सिख बताकर राजनीतिक रोटियाँ सेकने की कोशिश हो रही है। लेकिन उसकी यह कोशिश सफल होती नहीं दिख रही। लोगों की ज़िन्दगियों को इस तरह सत्ता के ग़ुरूर में बेरहमी से कुचल देने की घटना ने जनता को झिंझोड़ कर रख दिया है।

किसानों में ग़ुस्सा

इस घटना ने उत्तर प्रदेश और देश के अन्य राज्यों में किसानों के बड़े समूह को नाराज़ कर दिया है। यह किसान अपने आन्दोलन को देशव्यापी रूप देने की तैयारी कर रहे हैं। शहीद किसानों की अन्तिम अरदास में देश के हरेक हिस्से से किसान पहुँचे, जिससे यह साबित होता है कि उनमें ग़ुस्सा है और वे केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ लामबंद हो रहे हैं। विपक्ष, ख़ासकर कांग्रेस ने जिस तरह किसानों का समर्थन किया है, उससे भाजपा के लिए दिक़्क़तें बढ़ सकती हैं। इस राजनीतिक नुक़सान से बचने के लिए किसानों का भाजपा का सोशल मीडिया प्रचार तंत्र देश विरोधी, ख़ालिस्तानी और न जाने क्या-क्या कह रहा है।

बहुत-से जानकार भाजपा की इस कोशिश को बहुत ख़तरनाक और विभाजनकारी मानते हैं। उनका कहना है कि मुसलमानों के साथ-साथ अन्य ग़ैर-हिन्दू समुदायों, ख़ासकर किसानों के बहाने सिखों को बदनाम करना शुरू कर दिया गया है; जो देश के लिए ख़तरनाक साबित हो सकता है। लखीमपुर में किसानों को कुचलने और बाद में इसे सिख बनाम हिन्दू रंग देने की कोशिश से यह साबित हो जाता है।

इससे पहले किसान आन्दोलन को भी ख़ालिस्तानी आन्दोलन साबित करने की भाजपा समर्थक सोशल मीडिया में पिछले एक साल में ख़ूब कोशिश हुई है। भाजपा के वरिष्ठ नेता तक सार्वजनिक बयानों में ऐसा कहते रहे हैं। यह अलग बात है कि जनता ने इसे स्वीकार नहीं किया।

‘तहलका’ से फोन पर बातचीत में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दीपेंद्र हुड्डा ने कहा- ‘किसानों पर यह ज़ुल्म जलियांवाला बाग़ की याद दिलाता है। वो तो फिर भी अंग्रेज थे, अब तो अपने ही ज़ुल्म ढाने में लगे हैं। भाजपा जनता के सामने बेनक़ाब हो चुकी है। उसके दिन पूरे हो चुके हैं। उत्तर प्रदेश में भाजपा के केंद्रीय मंत्री के बेटे ने जिस तरह किसानों को निर्दयता से कार के नीचे कुचल डाला, वो इस पार्टी के नेताओं की मानसिकता को दर्शाता है। जनता इसका जबाव देगी। उत्तर प्रदेश में भाजपा बुरी तरह चुनाव हारेगी।‘

हालाँकि भाजपा नेता और हिमाचल के पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम धूमल ने कहा- ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने किसानों के कल्याण के लिए अनेक योजनाएँ लागू की हैं। इसका असर यह हुआ है कि उत्पादन बढ़ा है। हाल के वर्षों में उनके खातों सीधे करोड़ों रुपये जमा किये गये हैं, ताकि उन्हें आर्थिक संबल मिल सके। कांग्रेस और विपक्ष लोगों को झूठ परोसने की नाकाम कोशिश रहे हैं। किसान मोदी सरकार में बहुत सुरक्षित हैं।‘

झूठ और सच!

 

‘तहलका’ की जानकारी के मुताबिक, अभी तक की जाँच में यह सामने आया है कि मुख्य आरोपी आशीष मिश्रा यह साबित करने में नाकाम रहा है कि किसानों को कार से कुचलने जाने की घटना के समय वह घटनास्थल पर नहीं था। उसके पास एक कार्यक्रम का जो वीडियो है, जिसे वह प्रमाण के रूप में दिखा रहा है, वह घटना के डेढ़ घंटे पहले का है। लेकिन उसके ख़िलाफ़ जो वीडियो हैं, उनमें साफ़तौर पर दिख रहा है कि शान्ति से लौट रहे किसानों पर पीछे से थार जीप सहित तीन वाहन उन्हें कुचल कर तेज़ी से निकल जाते हैं। इसका वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुआ। इसके अलावा एक और वीडियो वायरल हुआ, जिसमें आशीष अपनी गाड़ी से निकलकर भागता हुआ नज़र आ रहा है।

यही वजह रही कि उसके मंत्री पिता अजय मिश्रा द्वारा उसे बचाने की पूरी कोशिश के बावजूद इसी आधार पर आशीष की ग़िरफ़्तारी हुई है। दबाव बनाने के इरादे से अजय मिश्रा अपराध शाखा के दफ़्तर ख़ुद बेटे के साथ समर्थकों की एक बड़ी फ़ौज भी साथ लेकर गये। यह फ़ौज उनके बेटे के समर्थन में नारे लगा रही थी। लखीमपुर खीरी में भड़की हिंसा में 8 लोगों की मौत हो गयी थी, जिनमें चार किसान लवप्रीत सिंह, नछत्तर सिंह, दलजीत सिंह और गुरविंदर सिंह और एक पत्रकार शामिल हैं। बाक़ी तीन लोगों की मौत कैसे हुई? इसे लेकर परस्पर विरोधी बातें सामने आयी हैं। पत्रकार रमन कश्यप के परिजन कई बार आरोप लगा चुके हैं कि उनके बेटे की मौत कार से कुचलकर हुई है। बाक़ी लोगों को किसने मारा? यह गहन जाँच का विषय है। भाजपा के लोगों का आरोप है कि उन्हें किसानों ने मारा, जबकि उनके पास इसे सही साबित करने के लिए कोई प्रमाण नहीं है। उधर कुछ किसान यह आरोप लगा चुके हैं कि इन लोगों की हत्या भाजपा के ही लोगों ने की। हालाँकि इसके भी पुख़्ता प्रमाण सामने नहीं आये हैं।

घटना के अगले दिन देश भर में और ख़ासकर उत्तर प्रदेश में जबरदस्त बवाल मच गया। शुरुआत सीतापुर से हुई, जहाँ देर रात कांग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी लखीमपुर जाने के लिए तैयार थीं। ख़बर लगते ही पुलिस ने तड़के साढ़े 4 बजे प्रियंका गाँधी को हिरासत में ले लिया। प्रियंका को हिरासत में लेने की ख़बर जैसी ही मीडिया में आयी, देश भर में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गये। प्रियंका का वह वीडियो पल भर में वायरल हो गया, जिसमें वह उस कमरे में झाड़ू लगाती दिख रही थीं, जिसमें उन्हें हिरासत में लेने के बाद रखा गया था। प्रियंका की सक्रियता को देखते हुए सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी लखीमपुर खीरी जाने का ऐलान कर दिया; लेकिन पुलिस ने उन्हें लखनऊ में ही घर पर ही गिरफ़्तार (हाउस अरेस्ट) कर लिया। बाद में अखिलेश धरने पर बैठ गये। इसके बाद उनके आवास के बाहर सपा कार्यकर्ता पहुँच गये। इसके बाद पुलिस ने अखिलेश यादव को भी हिरासत में ले लिया।

पूरे प्रदेश में विपक्ष के विरोध-प्रदर्शन के बीच लखीमपुर में किसानों और प्रशासन के बीच बातचीत के बाद सरकार की किसानों से सहमति बन गयी। इसमें संयुक्त किसान मोर्चा के नेता राकेश टिकैत ने बड़ी भूमिका अदा की। योगी सरकार में मृतकों के परिजनों को 45-45 लाख रुपये मुआवज़ा, घायलों को 10-10 लाख मुआवज़ा, मृतक आश्रितों को सरकारी नौकरी, आठ दिन में आरोपियों की ग़िरफ़्तारी, सेवानिवृत्त न्यायाधीश के नेतृत्व में मामले की जाँच की माँग स्वीकार करने का ऐलान कर दिया।

इस सारे घटनाक्रम में कांग्रेस नेता राहुल गाँधी भी काफ़ी सक्रिय रहे। उन्होंने गाँव में पीडि़तों के परिजनों से मुलाक़ात की। पहले तो उत्तर प्रदेश सरकार ने उनके लखीमपुर जाने पर ही रोक लगा दी। फिर जब इजाज़त दी, तो उनके लखनऊ पहुँचने पर शर्त लगा दी कि उन्हें सरकारी एस्कॉर्ट में ही जाना होगा। राहुल गाँधी ने इस पर अपने साथ उपस्थित पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के साथ लखनऊ हवाई अड्डे पर ही धरना दिया। इसके बाद दबाव में आये उत्तर प्रदेश प्रशासन को उन्हें उनके ही वाहन में आगे जाने की इजाज़त देने के लिए मजबूर होना पड़ा।

उत्तर प्रदेश में अगले साल ही विधानसभा के चुनाव हैं। जानकारों के मुताबिक, लखीमपुर की घटना ने भाजपा को पीछे लाकर (बैकफुट पर लाकर) खड़ा कर दिया है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश का एक बड़ा इलाक़ा किसानों के प्रभाव वाला है। इस घटना से साफ़तौर पर यह सन्देश गया है कि भाजपा किसानों के ख़िलाफ़ है। इस घटना से निश्चित ही प्रदेश की राजनीतिक स्थिति पर असर पड़ा है। राष्ट्रीय लोक दल (रालोद), जो वोटों के लिए किसानों पर ज़्यादा निर्भर करती है; इसके बाद अपने भाव बढ़ते देख रही है। हो सकता है कि लखीमपुर घटना के बाद जिस तरह कांग्रेस की राजनीति में बड़ा उछाल आया है, समाजवादी पार्टी (सपा) के अखिलेश यादव रालोद को ज़्यादा सीटें देने पर मजबूर हों।

रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी फ़िलहाल पत्ते नहीं खोल रहे। शायद वह कांग्रेस के उभार पर नज़र रखे हुए हैं। उनका चयन सपा या कांग्रेस में से कोई भी हो सकता है। अखिलेश यादव ज़रूर रालोद के प्रति दिलचस्पी दिखा रहे हैं। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ख़ामोश बैठी है। मायावती इक्का-दुक्का बयान के अलावा कुछ कर नहीं रहीं। जयंत चौधरी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपने खोये हुए जनाधार को पाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने दादा चौधरी चरण सिंह की जन्मस्थली हापुड़ नूरपुर से जन आशीर्वाद यात्रा शुरू की है। अखिलेश के साथ गठबन्धन पर जयंत कह चुके हैं कि गठबन्धन की बातें 2022 में देखी जाएँगी।

इसमें कोई दो-राय नहीं कि प्रियंका की सक्रियता ने सारा खेल बदला है। बहुत-से राजनीतिक जानकार मानते हैं कि अगले चुनाव में कांग्रेस डार्क हार्स (छुपी रुस्तम) साबित हो सकती है। कांग्रेस की नज़र पूरी तरह पश्चिमी उत्तर प्रदेश पर है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सपा का अपना पक्का यादव मतदाता बहुत ज़्यादा नहीं हैं। मुस्लिम मतदाता पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पिछले तीन चुनाव से जाट से अलग हो चुके थे। लेकिन मुज़फ़्फ़रनगर में हुई किसान महापंचायत के बाद उनके साथ-साथ आने की बहुत सम्भावनाएँ बनी हैं। इस स्थिति में मुस्लिमों का रूख़ बहुत ज़्यादा महत्त्वपूर्ण हो गया है। कांग्रेस इसे हासिल करना चाहती है। हालाँकि इस बार यह माना जा रहा है कि जाट मतदाता भाजपा के विरोध में जिस पार्टी के साथ जाएँगे, मुस्लिम भी वहीं जा सकते हैं। पंचायत चुनाव में इस तरह का रूख़ दिखा था।

इसमें कोई शक नहीं कि कांग्रेस लखीमपुर के बाद अग्रणी भूमिका में सियासी खेल खेल रही है। उसे मज़बूत सहयोगी की ज़रूरत है। कांग्रेस नेता अब खुलकर गठबन्धन की बात करने लगे हैं। अखिलेश मना कर चुके हैं। लेकिन यदि सन् 2009 को याद करें, तो लोकसभा चुनाव में सपा उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को 15 सीटें दे रही थी; लिहाज़ा गठबन्धन नहीं हुआ। तब कांग्रेस ने रालोद के साथ चुनाव लड़ा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश से लेकर तराई पट्टी की बहुमत सीटें दोनों ने जीत ली थीं। कांग्रेस सपा के बराबर 22 सीटें तब जीती थी। इस बार चूँकि इन इलाकों के किसान नाराज़ हैं; लिहाज़ा यह प्रयोग दोहराया जाए, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। रालोद के जयंत चौधरी जानते हैं कि सपा उन्हें उतनी सीटें नहीं दे सकती, जितनी कांग्रेस दे सकती है।

मंत्री के प्रति नरम रूख़

‘तहलका’ की जानकारी के मुताबिक, भाजपा का शीर्ष नेतृत्व लखीमपुर खीरी की घटना से भाजपा का नेतृत्व बहुत नाराज़ है। पता चला है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मसले पर गृह मंत्री अमित शाह से बात की थी। यह अलग बात है कि मोदी की तरफ़ से इस घटना की निंदा वाला कोई बयान नहीं आया। यहाँ तक कि वह घटना के दिनों में लखनऊ गये, तब भी इस मसले पर इस मसले पर उनकी भी कोई टिप्पणी नहीं आयी। कांग्रेस नेता प्रियंका गाँधी ने इस मसले पर मोदी को घेरा भी। उन्होंने कहा कि मोदी को शहीद किसानों के पास आने का वक़्त नहीं, न उनके लिए उनके मन में कोई संवेदना है। भाजपा के कुछ बड़े नेताओं ने इस घटना पर भले चुप्पी साध रखी हो, पार्टी में एक केंद्रीय मंत्री के बेटे की इस करतूत से बेचैनी है। इन नेताओं का मानना है कि एफआईआर के बावजूद आरोपी मंत्री बेटे की ग़िरफ़्तारी न होने से जनता में पार्टी के ख़िलाफ़ सन्देश गया है कि वह आरोपी को बचाना चाहती है। अब बहुत ज़्यादा सम्भावना है कि केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा को मंत्रिमंडल से निकाल बाहर किया जाएगा। हालाँकि भाजपा का जो नुक़सान होना था, वह हो चुका है।

 

सर्वोच्च न्यायालय ने फटकारा

लखीमपुर खीरी हत्याकांड पर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार को जमकर फटकार लगायी। सर्वोच्च न्यायालय ने पूछा कि आरोप 302 (हत्या) का है, तो आप उससे वैसा ही वर्ताव करें, जैसे बाक़ी हत्या के मामलों में आरोपी के साथ किया जाता है। सर्वोच्च न्यायालय में 8 अक्टूबर को सुनवाई से पहले उत्तर प्रदेश पुलिस ने मुख्य आरोपी आशीष मिश्रा को पूछताछ के लिए बुलाया था। पुलिस के सामने आरोपी के पेश होने पर सर्वोच्च न्यायालय ने दो-टूक कहा कि 302 के आरोप में ये नहीं होता कि ‘प्लीज आ जाएँ’। नोटिस किया गया है कि प्लीज आइए! प्रधान न्यायाधीश एन.वी. रमना ने कहा कि मौक़े पर चश्मदीद गवाह हैं। हमारा मत है कि जहाँ 302 का आरोप है, वह गम्भीर मामला है और आरोपी के साथ वैसा ही व्यवहार होना चाहिए जैसे बाक़ी मामलों में ऐसे आरोपी के साथ होता है। क्या बाक़ी मामलों में आरोपी को नोटिस जारी किया जाता है कि आप प्लीज आ जाइए? उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा कि एक आरोपी को समन (नोटिस) दिया गया है और कल बुलाया गया है। साल्वे ने कहा कि आरोप लगाया गया था कि गोली मारी गयी है; लेकिन गोली की बात पोस्टमॉर्टम में नहीं है। इस पर न्यायाधीश ने कहा कि क्या ये ग्राउंड है कि आरोपी को न पकड़ा जाए? साल्वे बोले कि नहीं मामला गम्भीर है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि गम्भीर मामला है। लेकिन मामले को वैसे नहीं देखा जा रहा है। हम समझते हैं कि इस तरह से कार्रवाई नहीं होनी चाहिए। कथनी और करनी में फ़र्क़ नज़र आ रहा है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि साधारण स्थिति में 302 यानी हत्या मामलों में पुलिस क्या करती है? वह आरोपी को गिरफ़्तार करती है। न्यायाधीश सूर्यकांत ने कहा कि आरोपी कोई भी हो, क़ानून को अपना काम करना चाहिए। साल्वे ने इस पर कहा कि जो भी कमी है, कल तक ठीक हो जाएगा। मुख्य न्यायाधीश ने उत्तर प्रदेश सरकार को अपने डीजीपी से यह सुनिश्चित करने के लिए भी कहा कि जब तक कोई अन्य संस्था इसे सँभालती है, तब तक मामले के सुबूत सुरक्षित रहें। अब 20 अक्टूबर को इस मामले की अगली सुनवाई के बाद ही कोई कार्रवाई होगी।

 

क्या भाजपा से नाराज़ हैं वरुण?

‘दु:ख भरे दिन बीते रे भइया, सुख भरे दिन आयो रे…’ प्रयागराज में लगे कांग्रेस नेताओं के इस पोस्टर में सोनिया गाँधी के साथ वरुण गाँधी की भी फोटो और उपरोक्त पंक्तियाँ लिखी दिखीं। वरुण वैसे कांग्रेस में जाने की ख़बरों को अफ़वाह बता रहे हैं; लेकिन उत्तर प्रदेश की राजनीति में इसकी चर्चा जबरदस्त है।

भाजपा से उनकी नाराज़गी कुछ समय से साफ़ दिख रही है। उनके कई ट्वीट, ख़ासकर लखीमपुर खीरी घटना के बाद उनकी टिप्पणियाँ भाजपा को असहज करने वाली हैं। भाजपा ने हाल में वरुण और उनकी माता मेनका गाँधी को राष्ट्रीय कार्यकारणी से बाहर कर दिया है। जानकारों के मुताबिक, वरुण प्रियंका गाँधी के क़रीब रहे हैं और उनसे प्रियंका की पारिवारिक बातें होती रहती हैं। हालाँकि उत्तर प्रदेश की राजनीति में क्या वरुण और प्रियंका साथ आएँगे? इस पर अभी कुछ कहना कठिन कठिन है। हालाँकि कांग्रेस के नेताओं ने प्रयागराज में उनके स्वागत के जो पोस्टर अचानक 12 अक्टूबर को लगाये, उससे चर्चाएँ तो शुरू हो ही गयी हैं। इसमें वरुण गाँधी के साथ-साथ कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी और नीचे इरशाद उल्ला और बाबा अभय अवस्थी की तस्वीर लगी थी। उनके नाम के साथ वरिष्ठ कांग्रेस नेता लिखा गया था। वरुण पहले ही अपने ट्विटर बायो से ‘भाजपा’ हटा चुके हैं। वरुण बदले तेवर के साथ लखीमपुर की घटना में भाजपा सरकार को लगातार कटघरे में खड़ा करते रहे हैं। गन्ने का भाव 400 रुपये घोषित करने की माँग के अलावा किसानों के मुद्दे उठाने वाले वरुण ने 5 सितंबर की मुज़फ़्फ़रनगर महापंचायत को लेकर किसानों का समर्थन किया था।

लखीमपुर खीरी हिंसा को हिन्दू बनाम सिख की लड़ाई में बदलने की कोशिश की जा रही है। यह न केवल एक अनैतिक, बल्कि झूठा आख्यान है। उन घावों को फिर से कुरेदना ख़तरनाक है, जिसको ठीक होने में पूरी एक पीढ़ी लगी है। हमें राजनीतिक लाभ को राष्ट्रीय एकता से ऊपर नहीं रखना चाहिए। सामने आये वीडियो से बिल्कुल साफ़ है, हत्या के ज़रिये प्रदर्शनकारियों को चुप नहीं कराया जा सकता। निर्दोष किसानों के ख़ून का हिसाब होना चाहिए, जवाबदेही होनी चाहिए। उन्हें न्याय दिया जाना चाहिए, इससे पहले की हर किसान के दिमाग़ में यह बात बैठ जाए कि सत्ता अहंकारी और क्रूर है।

वरुण गाँधी

भाजपा सांसद

 

प्रियंका गाँधी के तेवर से उत्तर प्रदेश की राजनीति में हलचल

माथे पर तिलक और नवरात्रि के चौथे दिन की देवी प्रार्थना। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोकसभा क्षेत्र वाराणसी में 10 अक्टूबर को उत्तर प्रदेश की प्रभारी महासचिव प्रियंका गाँधी वाड्रा का यह रूप शुद्ध राजनीतिक था; लेकिन फिर भी भाजपा ने इससे बेचैनी महसूस की। उसने इसे प्रियंका का राजनीतिक पर्यटन बताया। हालाँकि उत्तर प्रदेश के कांग्रेस काडर में प्रियंका की इस सक्रियता से अद्भुत जोश है। प्रियंका गाँधी की इस सक्रियता और तेवर ने निश्चित ही उत्तर प्रदेश की राजनीति में खलबली मचा दी है। इसके बाद प्रियंका लखनऊ में कांग्रेस के देशव्यापी मौन व्रत कार्यक्रम में बैठीं और तिकुनिया में शहीद किसानों की अन्तिम अरदास में भी पहुँचीं।

अगले साल के विधानसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश में प्रियंका गाँधी ने जिस तरह से मोर्चा सँभाला है, उसने प्रदेश की राजनीति को अचानक गरमा दिया है। राज्य में कांग्रेस का संगठन भले कमज़ोर हो, चुनाव से कुछ ही महीने पहले प्रियंका गाँधी ने एक सधी हुई रणनीति के तहत धावा बोलकर भाजपा और उसके विरोध वाले दलों सपा और बसपा को भी हैरान कर दिया है।

भीड़ वोट में बदलेगी या नहीं यह तो पता नहीं; लेकिन वाराणसी में प्रियंका की किसान न्याय रैली में जुटी बड़ी भीड़ बताती है कि उन्हें राज्य में गम्भीरता से लिया जा रहा है। इसे पहले प्रतिज्ञा यात्रा का नाम दिया गया था; लेकिन लखीमपुर खीरी में किसानों की हत्यायों से देश में उपजे ग़ुस्से के बाद इसे किसान न्याय यात्रा का नाम दे दिया गया। अब कम-से-कम जनता की प्रतिक्रिया से तो यही लगता है कि प्रियंका गाँधी चुनाव से पहले भाजपा से लेकर सपा, बसपा सब के लिए चुनौती बन सकती हैं।

बाराणसी की रैली में प्रियंका के हाव-भाव देखें, तो उन्होंने दादी इंदिरा गाँधी का अंदाज़ अपनाने की पूरी कोशिश की और इसमें सफल भी दिखीं। मुद्दों पर जिस तरह से ज़ोर देकर उन्होंने बात की, वह पूरा तरीक़ा इंदिरा गाँधी वाला था। जनता भी तालियाँ बजाकर उनका उत्साह बढ़ाती दिखी। भाजपा के लिए परेशान करने वाली बात यह है कि प्रियंका उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक अलग छवि गढऩे में सफल होती दिख रही हैं। उनके मुद्दे उठाने के तरीक़े के पीछे गम्भीरता झलक रही है और वे इस बार मैदान में मज़बूती से टिककर भाजपा और अन्य विरोधियों से टक्कर लेने के मूड में हैं।

बाराणसी में जब प्रियंका ने भाषण की शुरुआत में कहा कि आज नवरात्र का चौथा दिन है और वे व्रत कर रही हैं, तो ख़ूब ताली बजी। उत्तर प्रदेश के मिजाज़ को पकड़कर जब प्रियंका ने माँ की स्तुति ‘या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता…नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै’ की तो उपस्थित जनता ने इसका स्वागत किया। बाराणसी में जुटी बड़ी भीड़ देखकर प्रियंका भी गदगद दिखीं। कांग्रेस ने हाल में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को उत्तर प्रदेश में ज़िम्मा दिया है और वह प्रियंका गाँधी के साथ रहे। कांग्रेस के तमाम प्रमुख नेता प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू, आराधना मिश्रा मोना, दीपेंद्र हुड्डा, प्रमोद तिवारी, सलमान ख़ुर्शीद, पी.एल. पुनिया, राजेश मिश्रा, अजय राय, इमरान प्रतापगढ़ी, प्रदीप माथुर, विवेक बंसल, प्रदीप जैन, दीपक सिंह एमएलसी, सुप्रिया श्रीनेत, सोहेल अंसारी, जफ़र अली नक़वी और कई अन्य इस मौक़े पर उपस्थित रहे। ज़ाहिर है उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का काडर निराशा की धूल झाड़कर चुनाव के लिए सक्रिय हो रहा है। बघेल के अलावा पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी को साथ रखकर प्रियंका ने बड़ा राजनीतिक सन्देश दिया। पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू अलग से लखीमपुर पहुँचे और घटना के प्रभावित सभी परिवारों से मिले। इसका भी बहुत बड़ा सन्देश गया।

भाषण में प्रियंका ने बहुत ही चतुराई से उत्तर प्रदेश के हर मुद्दे को छुआ। उन्होंने सोनभद्र में आदिवासियों की हत्या से लेकर, महँगाई, रोज़गार, लखीमपुर घटना और मुख्यमंत्री योगी की उन (प्रियंका गाँधी) पर झाड़ू लगाने को लेकर की विवादित टिप्पणी तक हर बिन्दु को राजनीतिक लहज़े में पकड़ा और योगी से लेकर प्रधानमंत्री मोदी तक पर हमला किया। कांग्रेस के पास राज्य में बहुत मज़बूत संगठन नहीं है। प्रियंका इस कमज़ोरी को बखूबी समझती हैं। वह माहौल बनाने पर फोकस कर रही हैं। उन्हें पता है कि संगठन भले कमज़ोर हो, प्रदेश में कांग्रेस का पुराना जनाधार है जिसे पुनर्जीवित माहौल बनाकर किया जा सकता है। सन् 2009 में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में मिलीं 23 सीटें इसका प्रमाण हैं। सिर्फ़ 12 साल पहले यदि कांग्रेस कमोवेश इसी संगठन के बूते माहौल बनने पर 23 लोकसभा सीटें जीत सकती है, तो इससे साबित होता है कि कांग्रेस का पुराना जनाधार कभी भी पुनर्जीवित हो सकता है।

प्रियंका गाँधी ने वाराणसी की जनसभा में यह भी साफ़ कह दिया कि वह यहाँ टिकने के लिए आयी हैं और जब तक भाजपा को सत्ता से उखाड़ नहीं देतीं, यहीं रहेंगी। इससे कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जोश बढ़ा है। यह पहली बार हुआ कि प्रियंका गाँधी और बाद में राहुल गाँधी की ज़िद के आगे योगी सरकार को झुकना पड़ा और उन्हें पीडि़त परिवारों से मिलने की इजाज़त देनी पड़ी।

गाँधी ने जब किसानों के अलावा घटना में जान गँवाने वाले दूसरे लोगों (भाजपा ने जिन्हें अपना कार्यकर्ता बताया है) के परिजनों से भी मिलने की इच्छा जतायी, तो भाजपा के हाथ-पाँव फूल गये। आनन-फानन अधिकारियों के ज़रिये कहलवाया गया कि वह प्रियंका से नहीं मिलना चाहते। देखें, तो प्रियंका गाँधी उत्तर प्रदेश में महासचिव का ज़िम्मा मिलने के बाद से ही सक्रिय हैं। वह कमोवेश हरेक बड़ी घटना पर वहाँ लोगों के परिजनों से मिली हैं। इसके अलावा उन्होंने संगठन से जुड़े दौरे भी ख़ूब किये हैं।

अगले साल के पहले महीनों में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले प्रियंका गाँधी की इस सक्रियता ने उन्हें जबरदस्त मीडिया कवरेज दी है। लखीमपुर खीरी घटना के समय वह लगातार तीन दिन टीवी चैनलों पर छायी रहीं। प्रदेश में लोग भी उनकी चर्चा करते दिखे। इसके तुरन्त बाद उन्होंने वाराणसी में धावा बोलकर जाता दिया कि वह ख़ामोश नहीं बैठने वाली हैं। प्रियंका की सक्रियता का ही दबाव था कि मुख्यमंत्री योगी को अपने मंत्रियों को टीवी चैनलों में कांग्रेस के ख़िलाफ़ बोलने के लिए तैनात करना पड़ा; लेकिन इस सबके बावजूद प्रियंका हरेक पर भारी पड़ती दिखीं।

 

उत्तर प्रदेश के बड़े मामले और प्रियंका

 2019 में आदिवासियों की हत्या पर सोनभद्र गयीं।

 2020 में हाथरस रेप-हत्या की शिकार लड़की के परिवार से मिलीं।

 2020 और 2021 में आधा दर्ज़न बड़े मामलों में पीडि़तों से मिलीं।

 2021 में पसगंवा में उत्पीडऩ की शिकार महिला से मिलीं।

 2021 में लखीमपुर खीरी हत्याकांड पर जबरदस्त सक्रियता दिखायी और पीडि़त परिवारों से मिलीं।

कोयले की किल्लत को लेकर इन्वरटरों की बिक्री जोरों पर

जैसे–जैसे दिल्ली सहित अन्य राज्यों में कोयले की कमी के चलते बिजली गुल होने के समाचार आ रहे है। वैसे-वैसे दिल्ली के बाज़ारों में इन्वरटरों की बिक्री जोरों पर है। लोगों का मानना है कि, कहीं दीपावली के अवसर पर अगर बिजली कोयले की कमी के कारण गुल हो गयी तो , दीपावली का त्यौहार फींका पड़ जायेगा।

दिल्ली के लाजपत नगर, चांदनी चौक व लक्ष्मी नगर बाज़ार में इन्वरटरों की बिक्री ज़ोरों पर है। व्यापारियों का कहना है कि, वैसे तो इन्वरटर तो बाज़ारों में बिकते है। लेकिन अब ग्राहक खुद बता रहे है कि कोयले की किल्लत के चलते वे अपने घरों में इन्वरटरों को लगवा रहे है।

चांदनी चौक के इलेक्ट्रानिक व्यापारी अमर जैन का कहना है कि, “आम लोगों में ये बात पक्की तौर पर समा गयी है कि कोयले की किल्लत होनी वाली है। सो , लोग इन्वरटरों को अपने-अपने घरों में लगवा रहे है। उनका मानना है कि अभी लगवा लेगें तो रेट टू रेट इन्वरटर लग जायेगे। अन्य़था बाद में महंगे मिलेगें या फिर बाजारों में कमी होने के कारण ना मिलेगें”। इसलिये बाजारों में इन्वरटरों की बिक्री जोरों पर है।लोगों का कहना है कि सरकार की कोयले की कमी बताने के पीछे कहीं कोई व्यापार तो नहीं छिपा है। क्योंकि कोयले की कमी को बताकर एक साथ कई बाजारों को बढ़ावा मिल सकता है। जैसे इलेक्ट्रानिक सामानों की जमकर बिक्री का होना है।

छत्तीसगढ़ में दुर्गा पूजा झांकी पर कार चढ़ा कर लोगों को कुचल दिया, चार की मौत

छत्तीसगढ़ में शुक्रवार दोपहर एक बड़ी घटना में एक कार चालक ने एक धार्मिक जुलूस के ऊपर वहां चढ़ा दिया और लोगों को कुचालते हुए आगे निकल गया। इस घटना में कम से कम 4 लोगों की जान चली गयी है जबकि 16 लोग घायल हुए हैं। चालक को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है, हालांकि उसके बारे में अभी जानकारी नहीं है। वहां अभी तनाव बन गया है। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने घटना पर पुलिस से पूरी रिपोर्ट तलब की है।

यह घटना आज पौने एक बजे की है। पुलिस के मुताबिक यह घटना जसपुर की है। वहां के डीएसपी अब्दुल अलीम खान ने मीडिया के लोगों को बताया कि घटना के बाद चालक को पकड़ लिया गया है। घटना के बाद गुस्से से भरी भीड़ ने कार में तोड़-फोड़ कर उसे आग लगा दी।

घटना के मुताबिक कार चालक ने दुर्गा पूजा के लिए झांकी निकाल रहे लोगों पर तक गति से कार चढ़ा दी। त्यौहार के मौके पर हुए इस हादसे के बाद कार चालक को गिरफ्तार कर लिया है। बेकाबू गाड़ी लोगों को रौंदते हुए आगे निकल गयी।

इस कार्यक्रम का लाइव प्रसारण चल रहा था लिहाजा पूरी घटना का प्रसारण हो गया। इसमें साफ़ दिख रहा है कि कार झांकी में श्रद्धालुओं को कुचलते हुए निकल गयी। उसने ऐसा क्यों किया, यह उससे पूछताछ के बाद ही पता चलेगा। उसे गिरफ्तार करके पुलिस स्टेशन

प्रोजेक्ट ऑकस से तिलमिलाया चीन

A Soviet Kilo class patrol submarine underway on the surface, 1989. | Location: in the ocean. (Photo by © CORBIS/Corbis via Getty Images)

अपनी विस्तारवादी और कुटिल नीतियों के ज़रिये चालबाज़ चीन दुनिया के कई देशों की ज़मीन और समुद्री क्षेत्र पर नज़रें गड़ाये हुए है। वह कभी किसी देश की वायु सीमा को लाँघता है, तो कभी किसी देश के समुद्री क्षेत्र में घुसपैठ करता है। इसीलिए अब उसके ख़िलाफ़ वैश्विक घेराबंदी करके समुद्र में उससे मुक़ाबले की योजना तैयार की गयी है। क्वाड के बाद अंतरराष्ट्रीय कूटनीति का एक और अध्याय ‘प्रोजेक्ट ऑकस’ शुरू होने जा रहा है। अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया ने चीन का सामना करने के उद्देश्य से एक सुरक्षा साझेदारी की स्थापना की है। इस परियोजना के तहत तीनों देश मिलकर ऑस्ट्रेलिया में परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बी का निर्माण करेंगे। अमेरिका और ब्रिटेन मिलकर ऑस्ट्रेलिया को परमाणु पनडुब्बी बनाने की तकनीक देंगे। ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और ब्रिटेन की इस नयी सुरक्षा साझेदारी ‘ऑकस’ से अब हिन्द महासागर में चीन को ऑस्ट्रेलिया से तो चुनौती मिलेगी ही, भारत से अपने तरीक़े से चुनौती मिलेगी। क्योंकि हिन्द महासागर में चीन के बाद सिर्फ़ भारत के पास ही परमाणु पनडुब्बियाँ हैं।

समुद्र के नीचे छुपी पनडुब्बियाँ किसी भी देश के लिए बड़ी ताक़त होती हैं। उनका पता लगाना क़रीब-क़रीब नामुमकिन होता है। नाभिकीय पनडुब्बी (न्यूक्लियर सबमरीन) दूसरी पारम्परिक पनडुब्बियों के मुक़ाबले ज़्यादा ख़ामोश होती हैं। नाभिकीय ऊर्जा से चलने की वजह से इनकी मारक क्षमता लगभग असीमित होती है। परमाणु पनडुब्बी बनाना बहुत महँगा और मुश्किल है। इसीलिए पाकिस्तान के पास भी अभी तक परमाणु बम तो हैं, मगर एक भी नाभिकीय पनडुब्बी नहीं है। नाभिकीय पनडुब्बी की तकनीक इस वक़्त सिर्फ़ अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, भारत, चीन और फ्रांस के पास है। लेकिन अब एक और देश ऑस्ट्रेलिया को नाभिकीय पनडुब्बी मिलने जा रही है, जिसकी मदद से वह चीन का मुक़ाबला करेगा। इसके बनाने की योजना अगले 18 महीनों में तैयार हो जाएगी। एक आभासी बैठक (वर्चुअल मीटिंग) में तीनों देशों के राष्ट्रप्रमुखों ने यह बात कही है।

हाल के वर्षों में चीन की सैन्य शक्ति तेज़ी से बढ़ी है। चीन अपनी अपनी अर्थ-व्यवस्था का बड़ा हिस्सा ख़र्च करके नौसेना का भी विस्तार कर रहा है। चीन पिछले कुछ वर्षों से हिन्द महासागर में अपनी पनडुब्बियाँ भेज रहा है। चीन की पनडुब्बियों ने कई बार हिन्द महासागर से अरब सागर तक गश्त की है, जो आने वाले ख़तरे की घंटी है। हिन्द महासागर में चीन की ताक़त कम होने का मतलब साफ़ है कि अमेरिका और भारत ताक़तवर होंगे। लगातार सीमावर्ती इलाक़ों पर क़ब्ज़ा, भारत के ख़िलाफ़ षड्यंत्र और तालिबान का साथ देकर दुनिया भर के देशों के लिए मुसीबत खड़ी करने वाला चीन अब ख़ुद बड़ी मुसीबत में पड़ सकता है। चीन की साज़िश के ख़िलाफ़ अब दुनिया का एकजुट होना ज़रूरी हो गया था, इसलिए उसे उसी की भाषा में जवाब देने की तैयारी की जा रही है। यह त्रिपक्षी सुरक्षा साझेदारी की यह घोषणा ऐसे समय में हुई है, जब चीन दुनिया के कई देशों को परेशान कर रहा है और उनके लिए ख़तरा बनता जा रहा है। इस नये साझाकरण से भारत को भी राहत मिलेगी; क्योंकि इससे चीन की चिन्ता बढ़ेगी और उसकी दादागिरी पर अंकुश लगेगा। ऑस्ट्रेलिया के हिन्द प्रशांत क्षेत्र में भारत का क़रीबी रणनीतिक साझेदार बनने से क्वाड की ताक़त बढऩे की भी पूरी सम्भावना है।

इस समझौते से तिलमिलाये चीन के वाशिंगटन दूतावास के प्रवक्ता ने कहा है कि कुछ देशों को शीत युद्ध वाली मानसिकता के साथ काम करना बन्द करना चाहिए। कोरोना महामारी के इस कठिन समय, अफ़ग़ानिस्तान में हुई त्रासदी और तालिबान राज के बीच दुनिया के घटनाक्रम तेज़ी से बदल रहे हैं। कहीं सुरक्षा की चुनौतियाँ बढ़ी हैं, तो कहीं अर्थ-व्यवस्था का बुरा हाल हो गया है। इसी बीच अब नये गठजोड़ भी उभरकर सामने आ रहे हैं।

चीन ने क्वाड पर कहा है कि वह इस पर क़रीब से नज़र रखेगा। इस गठबन्धन को उसने क्षेत्रीय शान्ति एवं स्थिरता को प्रभावित करने तथा परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकने में बाधा उत्पन्न करने वाला कहा है। क्वाड को उसने सुरक्षा साझेदारी नहीं, बल्कि भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान का हिन्द प्रशांत क्षेत्र के मद्देनज़र कूटनीतिक उद्देश्यों के लिए तैयार किया गया एक मंच कहा है।

ऐसे में ऑकस क्वाड में सुरक्षा का दृष्टिकोण जोड़ता है। फ़िलहाल क्वाड और ऑकस समानांतर राह पर आगे बढ़ेंगे। ऑकस का उद्देश्य हिन्द प्रशांत क्षेत्र में ऑस्ट्रेलिया की ताक़त बढ़ाना है। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने इस अवसर पर कहा कि भले ही भौगोलिक आधार पर अलग हों, लेकिन ब्रिटेन, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया स्वाभाविक सहयोगी हैं और उनके हित व मूल्य साझे हैं। ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने कहा कि अगले 18 महीनों में तीनों देश सर्वश्रेष्ठ मार्ग तय करने के लिए मिलकर काम करेंगे। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा कि तीनों देश 20वीं सदी की तरह 21वीं सदी के ख़तरों से निपटने की अपनी साझेदारी क्षमता को बढ़ाएँगे। हालाँकि इस योजना के आलोचकों ने चिन्ता जतायी है कि इस समझौते के बाद परमाणु अप्रसार सन्धि (एनपीटी) के लूपहोल का फ़ायदा उठाने की कोशिश कुछ देश कर सकते हैं। लेकिन ऑस्ट्रेलियाई प्रशासन ने विश्वास दिलाया है कि उनका इरादा परमाणु हथियारों की संख्या बढ़ाने का नहीं है, वे परमाणु अप्रसार सन्धि का ही पालन करेंगे।

कंधार में शिया मस्जिद में ब्लास्ट; 35 लोगों की मौत, दर्जनों घायल

अफगानिस्तान के कंधार में जुमे की नमाज़ पर एक शिया मस्जिद में हए धमाके में आज 35 लोगों की मौत हो गयी जबकि 50 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। जब यह धमाका हुआ, उस वक्त सैकड़ों की संख्या में लोग जुमे की नमाज के लिए वहां इकट्ठा  थे। आशंका है कि मरने वालों की संख्या बढ़ सकती है।

बता दें पिछले शुक्रवार को भी कुंदुज में एक शिया मस्जिद पर आत्मघाती हमला हुआ था जिसमें 50 से अधिक नमाजियों की जान चली गयी थी। स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स में अधिकारियों के हवाले से बताया गया है कि विस्फोट कंधार शहर के पुलिस डिस्ट्रिक्ट वन (पीडी1) की एक मस्जिद में हुआ। यह मस्जिद बीबी फातिमा मस्जिद या इमाम बरगाह के नाम से प्रसिद्ध है।

धमाका नमाज के दौरान हुआ, जब सैकड़ों लोगों की भीड़ वहां मौजूद थी। प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया है कि इस धमाके में बड़ी संख्या में लोग हताहत हुए हैं। अभी तक किसी भी समूह ने हमले की जिम्मेदारी नहीं ली है। हालांकि, आशंका व्यक्त की गयी है कि विस्फोट के पीछे अफगानिस्तान में सक्रिय आईएसआईएस खुरसान गुट का हाथ हो सकता है। आईएसआईएस शिया मुस्लिमों का कट्टर विरोधी माना जाता है। यहाँ तक कि वह हजारा और दूसरे अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदायों का भी विरोधी रहा है।

पिछले शुक्रवार को हुए ऐसे ही कुंदुज शिया मस्जिद हमले की जिम्मेदारी आईएसआईएस ने ली थी। अपने दावे में आईएस ने आत्मघाती हमलावर की पहचान एक उइगर मुस्लिम के तौर पर की थी और कहा था कि हमले में शियाओं और तालिबान दोनों को निशाना बनाया गया क्योंकि वो चीन से उइगरों की मांगों को पूरा करने में रोड़ा बन रहे हैं।

आर्यन ख़ान, ड्रग्स और मगरमच्छ

 साँप पकड़ा नहीं, छछूँदर पकड़कर मचाया जा रहा शोर

 अडानी के बंदरगाह पर 3,000 किलो ड्रग्स पर ख़ामोशी

देश में तेज़ी से फैलते ड्रग्स के जाल से यह तो स्पष्ट हो चुका है कि नेता, अभिनेता और कुछ बड़े कारोबारी नशे के ज़रिये युवाओं का भविष्य बर्बाद करने की जुगत में लगे हैं। अफ़सोस और चौंकाने वाली बात यह है कि आजकल देश में बड़ी घटनाओं से ध्यान भटकाने के लिए छोटी और भटकाने वाली घटनाओं को रबड़ी तरह घोटा जा रहा है और रबड़ की तरह खींचा जा रहा है। पिछले कई साल से ऐसा ही खेल चल रहा है। ड्रग्स के मामले में भी बीते कुछ दिनों से यही सब हो रहा है। पिछले दिनों अडानी के मुंद्र्रा अडानी बंदरगाह से 3,000 किलो ड्रग्स पर न कोई गिरफ़्तारी हुई और न ही बड़ी कार्रवाई। यहाँ तक कि मुख्यधारा की मीडिया भी इस पर ख़ामोश ही रही। इसके बाद मशहूर अभिनेता शाहरूख़ ख़ान का बेटा आर्यन ख़ान ड्रग्स लेने के जुर्म में पकड़ा गया। यह बहुत अच्छा हुआ, जो जुर्म करे, उसकी गिरफ़्तारी हो, उसे सज़ा मिले ज़रूरी है। लेकिन क़ानून सभी के लिए समान होना चाहिए। जिस दिन आर्यन ख़ान पकड़ा गया, उसी दिन जम्मू-कश्मीर के उरी सेक्टर में नियंत्रण रेखा (एलओसी) के पास 30 किलो ड्रग्स सेना के हाथ लगी। इस पर भी कोई ख़ान चर्चा नहीं हुई कि यह ड्रग्स कहाँ से, कैसे आयी?

सवाल यह है कि सैकड़ों और हज़ारों करोड़ रुपये की ड्रग्स पिछले कुछ दिनों में पकड़ी गयी; लेकिन शोर छछूँदर को पकड़कर मचाया गया, जबकि साँपों को छोड़ दिया गया। यह तो पकड़ी गयी ड्रग्स की बात रही, पूरे देश में महामारी की तरह फैले नशे के जाल के लिए हर साल न जाने कितने ही टन ड्रग्स देश में चोरी-छिपे युवाओं तक पहुँचायी जाती है। कहने का मतलब यह है कि जो ड्रग्स नहीं पकड़ी जाती है या पकड़ से बाहर होती है, उसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल होता है कि उसकी मात्रा कितनी अधिक होगी। इस अवैध करोबार का पैसा न तो इनकम टैक्स के दायरे में आता है और न ही देश हित में। मतलब साफ़ है कि काली कमायी का काला धन अब काले कारनामों को अंजाम देने में लग रहा है। ऐसा नहीं है कि इस बात की भनक सत्ता को नहीं होती; लेकिन कार्रवाई के तौर पर धरातल पर कुछ नहीं होता।

मौज़ूदा दौर में ड्रग्स की तस्करी और उसके सेवन करने वालों के मामले तब सामने आते हैं, जब कोई हाई प्रोफाइल पकड़ा जाता है। अन्यथा सच तो यह है कि देश के शहरों, क़स्बों से लेकर गाँवों तक के युवा-युवतियाँ और स्कूली छात्र-छात्राएँ ड्रग्स तस्करों के जाल में फँसकर तेज़ी से नशे की गिरफ़्त में आ रहे हैं। लेकिन कोई इस ओर ध्यान नहीं देता।

अब बात करते हैं अभिनेता शाहरूख़ ख़ान के बेटे आर्यन ख़ान की, जिसे नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) ने 2 अक्टूबर को अपतटीय क्षेत्र से एक क्रूज पोत पर रेव पार्टी में प्रतिबन्धित मादक पदार्थ के सेवन के आरोप में उनके दो साथियों अरवाज़ मर्चेंट और मुनमुन धामोचा के साथ गिरफ़्तार किया है। हाई प्रोफाइल होने की वजह से मामले ने तूल पकड़ा और एनसीबी भी बारीक़ी से हर तरह की जानकारी हासिल करने के लिए हर पहलू पर पड़ताल करते हुए उन तक पहुँचने की कोशिश कर रही है, जो इस नशीले-ड्रग्स के कारोबार से जुड़े हैं। एनसीबी ने छापेमारी की भनक तक किसी को नहीं लगने दी। उसे मालूम था कि मशहूर और रईस ख़ानदान से ताल्लुक़ रखने वाले ये युवा अपने बचाव के लिए दबाव और सिफ़ारिश का सहारा जरूर लेने की कोशिश करेंगे। इसलिए एनसीबी ने सभी के मोबाइल ज़ब्त  करके मेडिकल जाँच करवाकर पुख़्ता सुबूतों को एकत्रित किया और उसी शाम को 7:00 बजे तीनों को मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट कोर्ट में पेश किया।

इस मामले में सियासत और बालीबुड दो भागों बँटे नज़र आये। कोई आर्यन के पक्ष में खुलकर सामने आया, तो किसी ने इस कार्रवाई को सही ठहराया। फ़िलहाल मामला अदालत में है। इस मामले जो भी होगा, क़ानून के तहत ही होगा। क्योंकि ड्रग्स का मामला देश की सुरक्षा से जुड़ा होता है। इस लिहाज़ से क़ानून को अपना काम करना ही चाहिए।

इधर आर्यन ख़ान की गिरफ़्तारी से आम लोगों में इस बात की बहस देश भर में शुरू हो गयी है कि आर्यन ख़ान के ख़िलाफ़ कार्रवाई की गयी, तो फिर अडानी के गुजरात स्थित मुंद्रा बंदरगाह पर 3,000 किलो ड्रग्स मामले में भी कार्रवाई क्यों नहीं की गयी, जो कि हज़ारों करोड़ की है और उससे लाखों युवाओं का जीवन बर्बाद हो सकता था। लोग इसे अडानी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नज़दीकियों से जोड़कर भी देख रहे हैं। जो इंसान देश का इतना बड़ा कारोबारी है, अगर उसके बंदरगाह पर ही ऐसे अवैध धन्धे का ख़ुलासा होता है, तो मामला देश की शाख का भी है, जिसकी रक्षा करना सरकार की ज़िम्मेदारी है। आख़िर क्यों इस हज़ारों करोड़ की ड्रग्स को पाउडर दिखाकर मामले को रफ़ा-दफ़ा करने की कोशिश की जाती है। जैसे-तैसे यह ख़बर लोगों में फैलती है, तो सरकार, पुलिस, मीडिया चर्चा करने तक से बचते हैं। आख़िर न्यायालय को इस पर संज्ञान लेना पड़ता है।

दिल्ली उच्च न्यायालय के अधिवक्ता पीयूष जैन का कहना है कि सोशल मीडिया के युग में कोई भी अपराधी कितना ही शातिर क्यों न हो, पर जनता में उसके कारनामे आख़िर आ ही जाते हैं। जैसा कि आर्यन ख़ान के मामले में हुआ। व्हाट्सऐप चैट के ज़रिये एनसीबी को पुख़्ता सुबूत मिले, तभी तो वह लगातार कई फ़िल्मी कलाकारों, निर्देशकों और प्रोड्यूसरों के ठिकानों पर छापेमारी कर रही है। अदालत में सुनवाई के दौरान एनसीबी के वकील ने कहा कि आर्यन ख़ान पर ड्रग्स सेवन का आरोप है। इसी के तहत एनसीबी ने अदालत से रिमांड माँगी है, ताकि आर्यन और उसके साथियों से गहन पूछताछ की जा सके। हालाँकि आर्यन के वकील सतीश मानशिन्दे ने कहा कि आर्यन ख़ान अपनी तरफ़ से रेव पार्टी में नहीं गया था और न ही उसके पास पार्टी का टिकट था। उन्हें पार्टी में वीआईपी के तौर पर बुलाया गया था।

एनसीबी सूत्रों की मानें, तो सुशांत सिंह राजपूत की मौत के लेकर जब मामले ने तूल पकड़ा था, तब रिया चक्रवर्ती की गिरफ़्तारी के बाद और उससे पूछताछ के बाद से ही बालीबुड और उनके परिजनों पर एनसीबी की पैनी नज़र थी। आने वाले दिनों में और भी चौंकाने वाले मामले सामने आ सकते हैं। क्योंकि ड्रग्स का सारा मामला अफ़ग़ानिस्तान और ईरान से जुड़ा है।

अधिवक्ता पीयूष जैन का कहना है कि देश में गत चार महीनों में दिल्ली, महाराष्ट्र, पंजाब और गुजरात में करोड़ों की जो ड्रग्स पकड़ी गयी है, उस पर व्यापक स्तर पर गहराई से जाँच होनी चाहिए। देश को यह जानने का हक़ है कि लगातार बड़े पैमाने पर ड्रग्स की खेपें लाने के पीछे आख़िर कौन है? कहाँ से इसकी आपूर्ति (सप्लाई) हो रही है? जब तक बड़े मगरमच्छ नहीं पकड़े जाएँगे, तब तक ड्ग्स सेवन के मामले इसी आते रहेंगे। यह सर्वविदित है कि देश के लाखों युवा नशे के जाल में फँसे हुए हैं और हर रोज़ सैकड़ों ड्रग्स तस्करों के इस जाल में फँसते हैं। कुछ नादानी में, तो कुछ बेरोज़गारी, कुछ शौक़ में, कुछ पढ़ाई और ख़र्च न मिलने के तनाव में। नशे के सौदागर मोटी और काली कमायी के लालच में ऐसे युवाओं और बच्चों को बड़ी आसानी से अपने जाल में फँसा लेते हैं। सच्चाई यह है कि नशे का यह कारोबार में बिना राजनीतिक संरक्षण के सम्भव ही नहीं है। अगर देश के ईमानदार अफ़सर साहस करके ड्रग्स माफिया के ख़िलाफ़ कार्रवाई करता भी है या उनके इस अवैध कारोबार को बाधित करता है, तो उसे नौकरी करना मुश्किल हो जाता है और कई बार तो इस ईमानदारी की बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ती है।

बताते चलें कि किंग ख़ान यानी शाहरूख़ ख़ान की सियासत में भले ही कोई ख़ान रुचि हो न हो, पर केंद्र की और महाराष्ट्र सरकार से उनकी कोई ख़ान बनती नहीं है। अन्यथा आर्यन ख़ान को काफ़ी कुछ राहत मिल गयी होती। क्योंकि सियासत में कई बार ऐसा होता है कि कोई भी घटना मौक़े पर कितनी ही महत्त्वपूर्ण क्यों न हो, उसे महत्त्व सत्ता में पकड़ और दूरी के हिसाब से ही मिलता है। यहाँ दो उदाहरण हैं, एक आर्यन ख़ान का और दूसरा गौतम अडानी का। एक तरफ़ ड्रग्स लेने और कुछ ग्राम पकड़े जाने का आरोप है और दूसरी तरफ़ 3,000 किलो ड्रग्स पकड़े जाने का मामला है। रेव पार्टी में ड्रग्स लेना बड़ी घटना के तौर पर नज़ीर बनी और ड्रग्स की हज़ारों करोड़ की खेप पर चर्चा तक नहीं। यानी मगरमच्छ छोड़े गये और मछलियाँ पकड़ी गयीं।

आर्यन ख़ान की गिरफ़्तारी को लेकर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के नेता नवाब मलिक ने एनसीबी की कार्यप्रणाली पर सवाल किये हैं। उन्होंने कहा कि एनसीबी ने गोवा जा रहे क्रूज से हिरासत में लिये गये तीन लोगों को कुछ ही देर में छोड़ दिया। यह सब भाजपा के एक बड़े नेता के इशारे पर हुआ है। नवाब मलिक ने आरोप लगाया कि उन तीनों लोगों में भाजपा नेता मोहित भारतीय के सगे सम्बन्धी ऋषभ सचदेवा भी शामिल हैं। सचदेवा के साथ ही प्रतीक गाबा और आमिर फर्नीचरवाला को भी हिरासत में लिये जाने के बाद दो घंटे में ही छोड़ दिया गया। नवाब मलिक के आरोपों का जबाब देते हुए एनसीबी मुम्बई क्षेत्र के डायरेक्टर समीर वानखेड़े ने कहा कि एंजेसी पेशेवर तरीक़े से काम करती है। वह किसी भी दबाव में आये बिना पारदर्शिता के साथ काम करती है। हम कोई राजनीतिक दल या धर्म देखकर कार्रवाई नहीं करते हैं। नबाब मलिक ने जिन दो लोगों को बाहरी बताया है, छापेमारी के दौरान असल में कार्रवाई में शामिल नौ स्वतंत्र गवाहों में वे शामिल थे। वे दोनों छापे से पहले एनसीबी के लिए अनजान, अपरिचित थे। अगर फिर भी कोई ऐसे बयान देता है, तो वो दुर्भावनापूर्ण है।

कश्मीर में अब अल्पसंख्यक निशाने पर

Srinagar: Kashmiri Pandits take part in a candle light protest against the killing of 3 persons including pharmacist ML Bindroo by militants, at Ghanta Ghar in Srinagar, Wednesday evening, Oct. 6, 2021. (PTI Photo)(PTI10_06_2021_000217B)

नागरिकों की हत्याओं और पलायन से मोदी सरकार पर बढ़ रहा दबाव

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नवंबर, 2016 में जब नोटबंदी लागू की थी, तो उन्होंने दावा किया था कि उनका यह फ़ैसला कश्मीर में आतंकवाद की क़वर खोद देगा। कुछ ऐसा ही दावा गृह मंत्री अमित शाह ने इसके तीन साल बाद 5 अगस्त, 2019 को संसद में किया था, जब वह जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म करते हुए अनुच्छेद-370 हटाने वाला बिल लोकसभा में लाये थे।

शाह ने तब कहा था कि कश्मीर में तो अब आतंकवाद ख़त्म होगा ही, हम पाकिस्तान के क़ब्ज़े वाले पीओके को भी भारत में शामिल करेंगे। उसके बाद के लगभग दो साल बाद इनमें से एक भी काम नहीं हुआ है। न आतंकवाद रुका है और न पीओके भारत में शामिल हुआ है। इस एक साल में 15 अक्टूबर तक आतंकवादी घटनाओं में 30 नागरिकों की जान जा चुकी थी और हाल के वर्षों में पहली बार वहाँ से अल्पसंख्यकों का फिर सुरक्षित इलाक़ों की तरफ़ पलायन हुआ है।

आतंकवादियों ने जब कश्मीर में अक्टूबर के दूसरे हफ़्ते एक स्कूल में शिक्षिकों को एक क़तार में खड़ा करके एक हिन्दू शिक्षक और एक सिख महिला प्रिंसिपल को मौत के घाट उतार दिया। इस घटना ने मोदी सरकार की सुरक्षा के दावों पर कई सवाल खड़े कर दिये। कश्मीर में जो रहा है, वह निश्चित ही केंद्र सरकार के दावों के विपरीत है।

इस वारदात के बाद राजधानी दिल्ली के जंतर-मंतर पर कश्मीरी पंडितों ने प्रदर्शन करते हुए मोदी सरकार की कश्मीर नीति को भी पिछली सरकारों जैसा ही बताया और कहा कि अनुच्छेद-370 ख़त्म होने के बाद भी वहाँ कुछ नहीं बदला है। कश्मीर में आम नागरिकों पर आतंकी हमले तब बढ़ रहे हैं, जब वहाँ बड़ी संख्या में अतिरिक्त सुरक्षा बल तैनात हैं और सरकार वहाँ आतंकियों के बड़े पैमाने पर सफ़ार्इ का दावा कर रही है।

इन अतिरिक्त सुरक्षा बलों की तैनाती तब की गयी थी, जब 3-4 अगस्त, 2019 में मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म करने का फ़ैसला किया था और गृह मंत्री अमित शाह संसद में इसका बिल लाने वाले थे। अब इतने वर्षों के बाद कश्मीर में अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने और उनके बीच ख़ौफ़ पैदा होने और पलायन से कई सवाल खड़े हो गये हैं। ज़ाहिर है अनुच्छेद-370 ख़त्म करने का जो लक्ष्य बताया गया था, वह ज़मीनी हक़ीक़त से मेल नहीं खा रहा।

कश्मीर में आतंकवादियों ने रणनीति बदलकर अब अल्पसंख्यकों को निशाना बनाना शुरू कर दिया है; ख़ासकर कश्मीरी पंडितों और सिख समुदाय को। इसने 30 साल पहले की याद दिला दी है, जब घाटी में बाहर से आये आतंकवादियों ने कश्मीरी पंडितों और सिखों को निशाना बनाकर उनमें दहशत भर दी और पलायन का काला दौर शुरू हो गया। हालाँकि देखें तो पिछले क़रीब दो दशक में आतंकवाद का दौर तो चला; लेकिन अल्पसंख्यकों को इस तरह निशाना बनाने का चलन कम हुआ था। अब हाल के महीनों में यह फिर शुरू हुआ है।

पिछले महीनों की घटनाएँ देखें, तो प्रवासी मज़दूरों और दूसरे ग़ैर-मुस्लिम लोगों को आतंकवादियों ने निशाना बनाया है। अब कश्मीरी पंडित और सिख समुदाय को निशाना बनाकर वह यह सन्देश देने की कोशिश कर रहे हैं कि उनके क्या इरादे हैं? हालाँकि इन महीनों में बड़ी संख्या में मुस्लिम नागरिकों की भी हत्या आतंकवादियों ने की है। दुर्भाग्यवश यह है कि आये दिन सरेआम आतंकियों द्वारा की जा रही इन हत्याओं पर केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा के नेताओं की प्रतिक्रिया बहुत ठंडी रही है। सवाल यह भी है कि मुस्लिमों की फ़िक्र कौन करेगा? क्योंकि वे तो पलायन करने की स्थिति में भी नहीं दिखते।

आतंकवाद भाजपा और मोदी सरकार के एजेंडे में बहुत ऊपर रहा है। पिछले सात साल से केंद्र की सत्ता पर मोदी सरकार क़ाबिज़ है; लेकिन आतंकवाद जस-का-तस दिख रहा है। हर लोकसभा और विधानसभा चुनाव में भाजपा और इसके नेता कश्मीर का राग अलापते हैं। लेकिन ज़मीनी हक़ीक़त पार्टी नेताओं के दावे के विपरीत ख़राब बनी हुई है।

कश्मीरी पंडितों, सिखों में ख़ौफ़

अक्टूबर के चंद दिनों में ही कश्मीर घाटी में आतंवादियों ने चार ग़ैर-मुस्लिमों समेत सात आम नागरिकों की हत्या की है। इसके बाद घाटी में फिर सन् 1990 के दशक जैसी स्थिति बनने का डर लोगों में पैदा हुआ है। केंद्र सरकार की कश्मीर के प्रति अस्पष्ट नीति के चलते हाल के दिनों में कई परिवार घाटी छोड़कर सुरक्षित जगहों को पलायन करके चले गये हैं। कश्मीर में हिन्दू और सिख सम्भवत: सन् 2000 के प्रारम्भिक वर्षों के बाद सबसे ज़्यादा असुरक्षा की भावना में घिर गये हैं। नहीं भूलना चाहिए कि उस दौर में दर्जनों कश्मीरी पंडितों और सिखों को आतंकियों ने मौत के घाट उतार दिया था।

कश्मीर पंडित, जिन्होंने आतंकवाद के गम्भीर दौर में भी घाटी को नहीं छोड़ा था; अब कह रहे हैं कि फिर 1990 के दशक जैसी स्थिति बन रही है। दिल्ली के जंतर-मंतर पर श्रीनगर की घटना के बाद प्रदर्शन कर रहे कश्मीरी पंडित नेता राकेश कॉल ने कहा- ‘अनुच्छेद-370 ख़त्म करने से कुछ 1 नहीं पड़ा। हमारी ज़िन्दगी वहाँ वैसी ही नरक जैसी है, जैसी पहले थी। मोदी साहब ने बहुत वादे किये थे; लेकिन ज़मीन पर कुछ नहीं हुआ है। हमारी ज़िन्दगी बराबर (लगातार) ख़तरे में है।‘

प्रदर्शन के लिए पहुँचीं कौशकी ने कहा- ‘हम और नहीं सह सकते। हमें सरकार सुरक्षा दे, ताकि हम बिना डर के अपने होमलैंड (गृह-भूमि) जा सकें। हम यह नहीं सह सकते। मोदी जी से अपील है कि वे हमें सुरक्षा दें। यह धरना-प्रदर्शन तब तक जारी रहेगा, जब तक हमें सुरक्षा नहीं मिलती।‘

एक और कश्मीर पंडित (नेता) ने कहा- ‘हाल की घटनाओं से वहाँ हमारे समुदाय में दहशत है। लोग पलायन करने को मजबूर हो गये हैं। यह सिलसिला जारी रह सकता है; क्योंकि लोग बहुत डरे हुए हैं और उन्हें वहाँ भविष्य अन्धकार में दिख रहा है और ज़िन्दगी ख़तरे में। प्रशासन के लोगों ने हमारे रिश्तेदारों को किसी होटल में रखा है। फोन करके हम उनकी हिम्मत बँधा रहे हैं; लेकिन वे ख़ौफ़ में हैं।‘

उधर सिख नेता जगमोहन सिंह रैना, जो कश्मीर के सिखों की बड़ी आवाज़ रहे हैं; ने श्रीनगर की घटना के बाद सभी सिख कर्मचारियों से अपील की थी कि सरकार जब तक घाटी में अल्पसंख्यक कर्मचारियों की सुरक्षा के ठोस क़दम नहीं उठाती, वे काम पर न जाएँ।

‘तहलका’ से बातचीत में जगमोहन सिंह ने कहा- ‘ऐसी स्थिति में कोई कैसे काम कर सकता है। सरकार वहाँ अल्पसंख्यकों को सुरक्षा देने में नाकाम रही है। बहुत बातें होती हैं; लेकिन सच यह है कि कश्मीर में हालात अच्छे नहीं हैं।‘

कश्मीरी पंडितों की घाटी में वापसी की सबसे गम्भीर कोशिश मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के समय सन् 2009 में हुई थी, जब घाटी में उनके लिए सुरक्षित जगहों पर 3,500 के क़रीब फ्लैट बनाने का काम शुरू हुआ। कुछ फ्लैट जम्मू के नगरोटा क्षेत्र में भी बने। सोनिया गाँधी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय सलाहकार समिति (एनएसी) ने भी इसमें ख़ासी दिलचस्पी दिखायी। ख़ुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इस योजना की जम्मू दौरे में घोषणा की।

यूपीए के शासन में (2014 तक) क़रीब 4,750 कश्मीरी पंडित इस योजना के तहत घाटी (विशेष कैम्पों में) वापस लौटे। हालाँकि कश्मीरी पंडितों के एक नेता संजय टिक्कू कहते हैं- ‘यह सही है। लेकिन इनमें से ज़्यादातर हाल के वर्षों में घाटी से फिर वापस आ चुके हैं। हमारी जानकारी के मुताबिक, इन वर्षों में 2,000 से ज़्यादा कश्मीर पंडित कश्मीर से जम्मू, दिल्ली और अन्य जगहों को पलायन कर चुके हैं।‘

यूपीए सरकार के ही समय कश्मीरी पंडित युवाओं को नौकरी का विशेष प्रावधान किया गया। हालाँकि जम्मू क्षेत्र में इसका विरोध भी हुआ, जहाँ डोगरा संगठनों की माँग थी कि जम्मू के कोटे से यह रोज़गार न दिया जाए और इसके लिए अलग कोटा निर्धारित हो। कुल मिलाकर यूपीए की यह योजना कामयाब रही; लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इस योजना को आगे बढ़ाने के लिए कुछ ख़ास नहीं हुआ।

कश्मीरी पंडितों के बड़े संगठन रिकंसीलिएशन, रिटर्न एंड रिहैबिलिटेशन ऑफ पंडित्स के अध्यक्ष सतीश महलदार कहते हैं कि कश्मीर की इस हालत के लिए बिना सोच-विचार के बनायी गयी नीतियाँ ज़िम्मेदार हैं। इन्हीं के कारण हालात बिगड़े हैं। मेरा उन लोगों से भी सवाल है, जो जम्मू और कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा ख़त्म किये जाने पर जश्न मना रहे थे। उन लोगों को अब देश की जनता को बताना चाहिए कि घाटी में लोग क्यों मारे जा रहे हैं?

कश्मीरी पंडितों का कहना है कि कश्मीर में जब भी कोई घटना होती है, सरकारी अधिकारी उनके घर आकर उनकी सुरक्षा का भरोसा देते हैं। लेकिन घटनाएँ हो रही हैं। और अब तो सरेआम स्कूल में आकर आतंकवादियों ने शिक्षकों की जान ले ली। इससे हमारे समुदाय में डर फैल गया है। बहुत-से लोगों को कैम्प से सुरक्षित जगह भेज दिया गया है। यह कैसी ज़िन्दगी है? क्या हम इसीलिए पैदा हुए हैं कि ज़िन्दगी भर भटकते रहें?

सिख समुदाय ने भी आतंक के भयानक दौर में बहुत कुछ खोया है। कौन भूल सकता है कि 2001 में अनंतनाग के छिट्टी सिंह पोरा में 30 सिखों की हत्या कर दी गयी थी। अब श्रीनगर के एक सरकारी स्कूल की प्रिंसिपल सुपिंदर कौर (46) की हत्या के बाद समुदाय में दोबारा अपनी सुरक्षा के प्रति भय पैदा हो गया है। कौर के अन्तिम संस्कार में हिस्सा लेने के लिए बड़ी संख्या में लोग जुटे और उनका शव सचिवालय भवन के सामने रखकर विरोध-प्रदर्शन भी किया। एक बुज़ुर्ग सिख जगरूप सिंह ने कहा- ‘आतंकियों ने हमारी बेटी की जान ले ली। कौन देगा हमें इंसाफ? हमें इंसाफ़ चाहिए। जिन लोगों ने यह $कत्ल किया है, उन्हें भी गोली मारी जानी चाहिए।‘

आतंकवादियों ने पहले श्रीनगर में जाने-माने केमिस्ट एम.एल. बिंदरू की गोली मारकर हत्या की और फिर बिहार के रहने वाले एक हिन्दू व्यापारी और एक कश्मीरी मुस्लिम कैब चालाक को मार डाला। इसके पहले आतंकवादियों ने दक्षिण श्रीनगर में दो मुस्लिम कश्मीरियों की हत्या कर दी। दो दिन बाद ही सरकारी स्कूल में सिख महिला प्रिंसिपल और एक हिन्दू शिक्षक दीपक की हत्या कर दी। वैसे राजनीतिक गलियारों में अल्पसंख्यकों की हत्याओं को लेकर कई कहानियाँ चल रही हैं। इनमें से एक यह भी है कि देश की दूसरी घटनाओं से ‘ध्यान हटाने के लिए’ यह सब करवाया गया है। दिलचस्प यह भी है कि श्रीनगर की घटनाओं की ज़िम्मेदारी पहले तो द रजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) ने ली और बाद में एक गुमनाम से संगठन ‘गिलानी फोर्स” ने कहा कि ये हत्याएँ उसने की हैं।

पहली नज़र में श्रीनगर में अल्पसंख्यकों की हत्याओं का मक़सद कश्मीर के मुस्लिमों और हिन्दुओं-सिखों के बीच दरार पैदा करना लगता है। यह भी कहा जाता है कि अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के आने के बाद पाकिस्तान ने कश्मीर में अपनी सक्रियता बढ़ायी है। इसका कारण यह भी है कि तालिबान सरकार के कुछ घटक उसके पाले-पोसे हैं। भारत लगातार यह चिन्ता करता रहा है कि तालिबान के आने के बाद अफ़ग़ानिस्तान की ज़मीन का इस्तेमाल आतंकियों के लिए हो सकता है।

अल्पसंख्यकों पर हमले को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री और एनसी नेता उमर अब्दुल्ला कहते हैं कि यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएँ हैं। अब्दुल्ला कहते हैं- ‘मैं अपनी तरफ़ से पूरे दिल से उन लोगों से अपील करूँगा, जो दहशत की वजह से घाटी छोडऩे की सोच रहे हैं। कृपया मत जाइए। हम इन शैतानों को उनके मक़सद में कामयाब होने नहीं दे सकते। हम नहीं चाहते आप यहाँ से जाएँ। अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने के पीछे उनका मक़सद है कि विभिन्न समुदायों के बीच दूरी बढ़ायी जाए।‘

वरिष्ठ नेता ने कहा कि यह प्रशासन की पहली ज़िम्मेदारी है कि वह उन्हें (लोगों को) सुरक्षा प्रदान करे। हम सभी की भी ज़िम्मेदारी है कि हम एक-दूसरे की मदद करें। इसी मसले पर सूबे के पूर्व उप मुख्यमंत्री एवं वरिष्ठ नेता मुज़फ़्फ़र हुसैन बेग ने कहा कि हाल में कश्मीर में अल्पसंख्यकों की हत्याएँ उन्हें भयभीत कर घाटी से निकाले की कुत्सित योजना का हिस्सा प्रतीत होती हैं।

बेग ने ‘तहलका’ से बातचीत में कहा- ‘कश्मीर के इतिहास में यह सबसे घृणित अपराध देखने को मिले हैं। पीडि़त कश्मीरी हिन्दू और सिख थे और निश्चित तौर पर कश्मीरी मुस्लिमों पर सन्देह ज़ाहिर किया जा रहा है। यह कश्मीरी हिन्दुओं को भयभीत कर घाटी से निकालने की कुत्सित योजना प्रतीत हो रही है; जिनमें नैतिकता और देशभक्ति के बल पर अपनी मातृभूमि पर रहने की हिम्मत है। जो क्षति हुई है, उसकी भरपाई करने की ज़िम्मेदारी कश्मीरी मुसलमानों के कन्धों पर है।‘

उधर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष रविंद्र रैना का कहना है कि अनुच्छेद-370 ख़त्म होने के बाद जम्मू-कश्मीर में विकास पटरी पर लौट रहा है, जो आतंकियों और उनके आकाओं को पच नहीं रहा। उन्होंने कहा- ‘वे अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। हमारे सुरक्षा बलों ने उनकी कमर तोड़ दी है। उनके बड़े कमाण्डर मार गिराये गये हैं। वे एक बुझती लौ की तरह चमक दिखाना चाहते हैं। लेकिन सफल नहीं होंगे; उन्हें कुचल दिया जाएगा।‘

पहले ही आतंक से बुरी तरह प्रभावित कश्मीर घाटी में अल्पसंख्यकों की हत्यायों के बाद वहाँ सुरक्षा बलों पर अतिरिक्त दबाव बन गया है। पाकिस्तान की तरफ़ से घुसपैठ रोकने की नयी रणनीति पर काम चल रहा है। ड्रोन से आतंक फैलाने की सीमा पार की कोशिश भी चिन्ता का सबब बनी हुई है। हाल में आतंकी घटनाओं में ड्रोन के इस्तेमाल का प्रचलन बढ़ा है। गृह मंत्रालय इसे लेकर एजेंसियों को निर्देश जारी कर चुका है कि इसे नाकाम किया जाए।

‘तहलका’ की जानकारी के मुताबिक, घाटी में स्कूलों, सरकारी दफ़्तरों, पर्यटक और सार्वजनिक स्थलों, विधानसभा भवन और अन्य संवेदनशील स्थानों पर सुरक्षा भेद न सकने वाले इंतज़ाम करने के सख़्त निर्देश केंद्रीय गृह मंत्रालय की तरफ़ से दिये गये हैं। केंद्र को आशंका है कि भविष्य में इस तरह की घटनाएँ बढ़ सकती हैं। ख़ासकर पर्यटकों, धार्मिक स्थलों और स्कूली बच्चों को निशाना बनाने का गम्भीर ख़तरा जताया गया है।

घाटी में माहौल बेहतर होने का जो भ्रम बना था, वह आतंकी वारदात में बढ़ोतरी के बाद टूट गया है। आतंकियों की अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने की नयी रणनीति से निपटने की तैयारी की जा रही है। यह समझने की कोशिश की जा रही है कि कश्मीर के विभिन्न समुदायों के बीच नफ़रत फैलाकर अल्पसंख्यकों को घाटी छोडऩे को मजबूर करने की इस रणनीति का क्या अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के आने से कोई कड़ी है? क्योंकि अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के शासन के बाद से घाटी में ख़तरा तो बढ़ा है। हाल ही में वहाँ बढ़ी आतंकी घटनाएँ यही दर्शाती हैं।

गत 11 अक्टूबर को जम्मू-कश्मीर के पुंछ के चमरेर जंगल में घात लगाये बैठे आतंकवादियों ने जवानों पर अचानक गोलीबारी शुरू कर दी, जिसमें एक सूबेदार जसविंदर सिंह और चार जवान मनदीप सिंह, गज्जन सिंह, सारज सिंह और वैशाख एच. शहीद हो गये। जवानों पर आतंकी हमला तब हुआ, जब आतंकवादियों के ख़ात्मे के लिए भारतीय सेना के जवान इस इलाक़े में तलाशी अभियान (सर्च ऑपरेशन) चला रहे थे।

इसी दिन अनंतनाग में पुलिस ने एक और आतंकी मार गिराया। अनंतनाग में पुलिस का एक जवान भी घायल हो गया। यहाँ अनंतनाग के खगुंड वेरीनाग इलाक़े में आतंकियों के छिपे होने की विशेष सूचना पर पुलिस एक ओवर ग्राउंड वर्कर (ओजीडब्ल्यू) को लेने के लिए गयी थी। जैसे ही पुलिस संदिग्ध स्थान की ओर पहुँची, छिपे हुए आतंकवादी ने उस पर गोली चला दी, जिससे एक पुलिस घायल हो गया। मुठभेड़ शुरू हुई और पुलिस ने अज्ञात आतंकवादी को मार गिराया। इसी दिन जम्मू-कश्मीर के बांदीपोरा के हाजिन इलाक़े के गुंडजहाँगीर में भी सुरक्षाबलों और आतंकियों के बीच मुठभेड़ में जवानों ने एक आतंकी ढेर किया। इससे अगले दिन शोपियां में सुरक्षा बलों की चार आतंकियों से मुठभेड़ में तीन-चार आतंकी ढेर हुए। इसका मतलब यह हुआ कि जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी बढ़े हैं।

केंद्र भी चिन्तित

कश्मीर में आतंकी घटनाओं के जारी रहने और श्रीनगर में अल्पसंख्यकों की हत्यायों से केंद्र सरकार भी चिन्तित दिखती है। इन घटनाओं के बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने उच्च स्तरीय समीक्षा बैठक करके इस पर चर्चा की। बैठक में आतंकियों के ख़िलाफ़ ऑपरेशन और भविष्य के ख़तरों पर चर्चा हुई।

बैठक में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल, गृह सचिव अजय भल्ला, इंटेलीजेंस ब्यूरो (आईबी) प्रमुख अरविंद कुमार और सुरक्षा एजेंसियों के आला अधिकारी, डीजी सीआरपीएफ कुलदीप सिंह, डीजी बीएसएफ पंकज सिंह भी मौज़ूद रहे। पौने तीन घंटे की इस बैठक में अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के आने और इसके बाद पाकिस्तान की सक्रियता बढऩे से बन रहे ख़तरों पर एजेंसियों ने इनपुट साझा किये।

इस बैठक में ख़ासतौर पर लक्षित हत्याओं (टार्गेटेड किल्लिंग्स) पर ज़्यादा चर्चा हुई। यह समझने की कोशिश हुई कि आतंकियों की नयी रणनीति का क्या मक़सद है। इस बात पर ज़ोर दिया गया कि आतंकियों को सिर नहीं उठाने दिया जाए। कुछ अधिकारियों का कहना था कि हाल में कमज़ोर हुए आतंकी ख़ुद को मज़बूत करना चाहते हैं; क्योंकि उनके बड़े कमांडर मारे जा चुके हैं।

 

“कश्मीर में हिंसा की घटनाएँ बढ़ती जा रही हैं। आतंकवाद न तो नोटबन्दी से रुका, न अनुच्छेद-370 हटाने से। केंद्र सरकार सुरक्षा देने में पूरी तरह असफल रही है। हमारे कश्मीरी भाई-बहनों पर हो रहे इन हमलों की हम कड़ी निंदा करते हैं और मृतकों के परिवारों को शोक-संवेदनाएँ भेजते हैं।”

                                              राहुल गाँधी

कांग्रेस नेता (एक ट्वीट में)

 

“हमारी अपील है कि कश्मीर में अल्पसंख्यक समुदाय घाटी छोड़कर न जाएँ। हमारे समुदाय के लोग नहीं चाहते हैं कि आप यहाँ से जाएँ। हाल में जिन शैतानों ने आम नागरिकों को मारा है, वो कभी भी अपने मक़सद में कामयाब नहीं हो पाएँगे। आतंकियों को यह अधिकार नहीं है कि वो तय करें कि कश्मीर में कौन                                                रहेगा और कौन नहीं।”

                                             उमर अब्दुल्ला

पूर्व मुख्यमंत्री, जम्मू-कश्मीर एवं एनसी नेता

(एक ट्वीट में)

 

“कश्मीर में नागरिकों, ख़ासकर अल्पसंख्यकों की हत्या का मक़सद भय का माहौल बनाना और सदियों पुराने साम्प्रदायिक सद्भाव को नुक़सान पहुँचाना है। यह दरिंदगी, वहशत और दहशत का मेल है। जो लोग मानवता, भाईचारे और स्थानीय मूल्यों को निशाना बना रहे हैं, वे जल्द ही बेनक़ाब होंगे। हालिया हमले कश्मीर के मुस्लिम समुदाय को बदनाम करने की कोशिश हैं, और साफ़ है कि आतंकवादी पाकिस्तान के इशारे पर काम कर रहे हैं, ताकि घाटी में शान्ति बहाली में बाधा डाली जा सके।”

दिलबाग सिंह

पुलिस महानिदेशक, जम्मू-कश्मीर

 

हाल की घटनाएँ

2 जून : त्राल में भाजपा नेता राकेश पंडिता की हत्या।

8 जून : अनंतनाग में कांग्रेस नेता और सरपंच अजय पंडिता की हत्या।

22 जून : इंस्पेक्टर परवेज़ अहमद पर हमला।

15 जुलाई : सोपोर में भाजपा नेता मेहराजुद्दीन मल्ला अगवा, बाद में छुड़ाये।

2 अक्टूबर : श्रीनगर के चट्टाबल में माज़िद अहमद गोजरी की हत्या।

2 अक्टूबर : एसडी कॉलोनी बटमालू में मोहम्मद शफ़ी डार को गोलियों से भूना।

5 अक्टूबर : श्रीनगर के दवा विक्रेता माखन लाल बिंदरू की गोली मारकर हत्या।

5 अक्टूबर : चाट विक्रेता बिहार के वीरेंद्र पासवान की हत्या।

5 अक्टूबर : उत्तरी कश्मीर के बाँदीपोरा में मोहम्मद शफ़ी लोन की हत्या।

7 अक्टूबर : श्रीनगर में सिख महिला प्रिंसिपल, हिन्दू शिक्षक की स्कूल में हत्या।

11 अक्टूबर : जम्मू-कश्मीर के पुंछ में आतंकी मुठभेड़ में एक जेसीओ समेत पाँच जवान शहीद।

एनसीआरबी रिपोर्ट-2021 लगातार बढ़ रहे साइबर अपराध

पिछले दिनों बाराबंकी की शिवदेवी मिश्रा के भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के बचत (सेविंग) खाते से क़रीब सवा दो लाख और उनके पति अनुराग मिश्रा के उसी बैंक में एसबीआई खाते से क़रीब इतनी ही बड़ी रक़म उड़ा ली गयी। पुलिस और बैंक वालों से जब इसकी शिकायत की गयी, तो उन्होंने यह कहते हुए हाथ खड़े कर दिये कि जिस बैंक खाते में आपकी रक़म स्थानांतरित (ट्रांसफर) हुई है, वह झारखण्ड का है और उस खाते में कोई धनराशि (बैलेंस) नहीं है। यानी पैसे की वसूली (रिकवरी) की कोशिश नहीं की गयी। शिवदेवी मिश्रा और अनुराग मिश्रा आज भी परेशान घूम रहे हैं और उनकी कोई मदद नहीं कर रहा है। इसी वजह से साइबर अपराधियों के हौसले बढ़े हुए हैं और वे शिवदेवी तथा अनुराग मिश्रा की तरह ही गाँवों से शहरों तक के लोगों को बेखौफ़ लगातार अपना शिकार बना रहे हैं।

भारत में पिछले साल 11.8 फ़ीसदी साइबर अपराध बढ़े हैं। यह बात ख़ुद भारत सरकार के राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आँकड़ों से सामने आयी है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में साल 2020 में साइबर अपराध के 50,035 मामले दर्ज किये गये, जो कि साल 2019 की अपेक्षा 11.8 फ़ीसदी ज़्यादा हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि साल 2020 में ऑनलाइन बैंकिंग धोखाधड़ी के 4,047 मामले, ओटीपी (वन टाइम पासवर्ड) धोखाधड़ी के 1,093 मामले, क्रेडिट और डेबिट कार्ड धोखाधड़ी के 1,194 मामले तथा एटीएम से धोखाधड़ी के 2,160 मामले दर्ज किये गये। वहीं इस एक साल में सोशल मीडिया पर फ़र्ज़ी सूचना के 578 मामले सामने दर्ज कराये गये। इसी प्रकार ऑनलाइन परेशान करने या महिलाओं एवं बच्चों को साइबर धमकी से जुड़े 972 मामले, फ़र्ज़ी प्रोफाइल के 149 मामले और आँकड़ों की चोरी के 98 मामले सामने आये। गृह मंत्रालय के अधीन काम करने वाले एनसीआरबी के आँकड़ों के मुताबिक, देश में साइबर अपराध की दर प्रति एक लाख पर 2019 की 3.3 फ़ीसदी दर से बढ़कर 2020 में 3.7 फ़ीसदी हो गयी, जिसके 2021 में और बढऩे की आशंका है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में साल 2018 में साइबर अपराध के 27,248 मामले दर्ज हुए थे, जबकि साल 2019 में 44,735 मामले दर्ज हुए थे। एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2020 में दर्ज 50,035 साइबर अपराधों में से 30,142 यानी 60.2 फ़ीसदी साइबर अपराध फ़र्ज़ीवाड़े से सम्बन्धित दर्ज हुए।

अन्य अपराधों के आँकड़े

साइबर अपराध के अलावा यौन उत्पीडऩ के 3,293 यानी 6.6 फ़ीसदी मामले और अवैध उगाही के 2,440 यानी 4.9 फ़ीसदी मामले दर्ज किये गये। एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2020 में देश में 29,193 हत्याएँ हुईं, जिनकी संख्या हर रोज़ औसतन 80 रही। कुल अपराधों की बात करें, तो साल 2019 के मुक़ाबले साल 2020 में 28 फ़ीसदी अपराध बढ़े। साल 2020 में देश में अपराध के कुल 66,01,285 मामले दर्ज हुए, जबकि साल 2019 में 51,56,158 मामले दर्ज हुए थे। यानी साल 2019 की अपेक्षा साल 2020 में अपराध के 14,45,127 मामले ज़्यादा दर्ज किये गये।

प्रदेशों की स्थिति

एनसीआरबी की रिपोर्ट में कहा गया है कि साइबर अपराध के सबसे ज़्यादा 11,097 मामले उत्तर प्रदेश के हैं। इसके बाद कर्नाटक साइबर अपराध में दूसरे और महाराष्ट्र तीसरे स्थान पर हैं, जहाँ क्रमश: 10,741 और  5,496 मामले साल 2020 में दर्ज हुए। वहीं तेलंगाना में 5,024 मामले, असम में 3,530 मामले दर्ज हुए। बलात्कार के मामले में राजस्थान की स्थिति बहुत ख़राब है और आदिवासियों, दलितों व महिलाओं के ख़िलाफ़ अत्याचारों में मध्य प्रदेश की स्थिति ठीक नहीं है। तो उत्तर प्रदेश दबे-कुचलों, महिलाओं पर अत्याचार और हत्याओं के मामले में आगे रहा है। लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने एनसीआरटी के आँकड़ों को ही नकार दिया है। उत्तर प्रदेश सरकार का कहना है कि प्रदेश में अपराधों पर नियंत्रण हुआ है। प्रदेश की जनसंख्या के लिहाज़ से पूरे देश की तुलना में यहाँ अपराध के आँकड़े कम हैं। सरकार ताबड़तोड़ एनकाउंटर और रासुका जैसे कड़े क़ानून का इस्तेमाल अपराधियों और अपराध पर लगाम कसने के लिए लगातार कर रही है। वहीं मध्य प्रदेश में अपराधों को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ सिंह ने सरकार को घेरा है।

रिपोर्ट के मुताबिक, हत्या के मामले उत्तर प्रदेश सबसे आगे रहा। उसके बाद क्रमश: बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल में हत्याएँ हुईं। वहीं राजधानी दिल्ली में साल 2020 में 472 हत्याएँ हुईं।

वहीं देश में देश में महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध के 3,71,503 मामले दर्ज हुए। जो 2019 के 4,05,326 मामलों के मुक़ाबले 8.3 फ़ीसदी कम रहे। इनमें 30 फ़ीसदी मामले पति और उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता और अत्याचार के, 23 फ़ीसदी मामले यौन शोषण की कोशिश के, 7.5 फ़ीसदी मामले बलात्कार के और 16.8 फ़ीसदी मामले अपहरण के दर्ज हुए। वहीं बच्चों के ख़िलाफ़ अपराध के 1,28,531 मामले पिछले साल दर्ज हुए, जो 2019 के मुक़ाबले 13.2 फ़ीसदी कम हैं। साल 2020 में बच्चों ख़िलाफ़ होने वाले अपराधों में 42.6 फ़ीसदी मामले अपहरण के, 38.8 फ़ीसदी मामले बलात्कार के दर्ज हुए। वहीं दलितों के ख़िलाफ़ अपराध के 50,291 मामले दर्ज हुए, जो साल 2019 के मुक़ाबले 9.4 फ़ीसदी ज़्यादा हैं। इसी तरह आदिवासियों के ख़िलाफ़ अपराध के 8,272 मामले दर्ज हुए, जो साल 2019 के मुक़ाबले 9.3 फ़ीसदी ज़्यादा हैं।

बचाव और न्याय के रास्ते

भारत सरकार हर साल साइबर सुरक्षा के लिए निधि (फंड) जारी करती है। भारत सरकार द्वारा 2016-17 में 70 करोड़ रुपये, 2017-18 में 140.48 करोड़ रुपये, 2018-19 में 150 करोड़ रुपये, 2019-20 में 162 करोड़ रुपये, 2020-21 में 310 करोड़ रुपये और 2021-22 में 416 करोड़ रुपये जारी किये गये। इसके अलावा साइबर अपराध से बचाव के लिए सरकार सन्देश ऐप को भी विकसित कर रही है। यह ऐप अब एक तात्कालिक सन्देश (इंस्टेट मेसेजिंग) ऐप होगा। इसके अलावा भारत सरकार द्वारा लाया गया यह एप्लिकेशन ग्रुप मेसेजिंग (समूह आवेदन सन्देश), क्लाउड स्टोरेज, फाइल एंड मीडिया शेयरिंग जैसी सभी सुविधाएँ देगा। इसके अलावा लोग साइबर अपराधों की जाँच और कार्रवाई करने वाली एजेंसियों अपने राज्य की पुलिस की साइबर क्राइम सेल (साइबर अपराध प्रकोष्ठ), दूसरा भारत सरकार की सेंट्रल इमर्जेंसी रिस्पॉन्स टीम (केंद्रीय आपातकालीन प्रतिक्रिया दल), केंद्रीय जाँच ब्यूरो (सीबीआई) की साइबर क्राइम इन्वेस्टिगेशन सेल (साइबर अपराध जाँच प्रकोष्ठ) से मदद माँग सकते हैं। इन संस्थाओं (एजेंसियों) पर पीडि़त ऑनलाइन शिकायत कर सकते हैं। इसके अलावा भारत सरकार के अलावा हर राज्य में अपराध रोकने के लिए हेल्पलाइन नंबरों पर भी पीडि़त शिकायत दर्ज करा सकते हैं। भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने नेशनल साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल तैयार किया है। इसके लिए हेल्पलाइन नंबर 155260 पर शिकायत दर्ज करायी जा सकती है। दिल्ली, राजस्थान, उत्तराखण्ड, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, असम, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश के लोग इस नंबर पर सातों दिन किसी भी समय कॉल करके शिकायत दर्ज करा सकते हैं। बाक़ी सभी राज्यों और केंद्र शासित राज्यों के लोग सुबह 10:00 से शाम 6:00 बजे के बीच में कॉल करके अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं।

कैसे मिलेगी उड़ायी गयी राशि?

अगर किसी के बैंक खाते से साइबर अपराधियों ने पैसे उड़ा लिये हैं, तो उन पैसों को वापस भी पाया जा सकता है। लेकिन इसकी शिकायत अपनी बैंक के हेल्पलाइन नंबर पर खाते से पैसे निकलते ही करनी होगी। अगर पीडि़त की कॉल साइबर अपराध शाखा के कॉल सेंटर में पहुँचती है, और पीडि़त का बैंक और साइबर अपराध शाखा जिस बैंक खाते में राशि गयी है, तो वे उसे फ्रीज (प्रतिबन्धित) कर देंगे। इससे उस खाते का धारक भी वह पैसा नहीं निकाल सकेगा। लेकिन यह कार्रवाई सेकेंडों में करनी होगी। अन्यथा अगर अपराधी ने पैसा निकाल लिया, तो पैसा मिलना मुश्किल हो जाएगा।

नाकामी चिन्ताजनक

देश में अपराध और अपराधियों पर लगाम कसने के लिए राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की स्थापना भारत सरकार ने अपराध और अपराधियों की सूचना के संग्रह एवं रख-रखाव के रूप में कार्य करने हेतु सन् 1986 में की गयी थी। टंडन समिति, राष्ट्रीय पुलिस कमीशन (1977-1981) और गृह-मंत्रालय की टास्क फोर्स की सिफ़ारिश के आधार पर राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की स्थापना की गयी थी। सन् 2009 में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो को अपराध एवं अपराधी ट्रैकिंग नेटवर्क एवं सिस्टम (सीसीटीएनएस) परियोजना की मॉनिटरिंग, समन्वय तथा कार्यान्वयन की ज़िम्मेदारी सौंपी गयी।

यह परियोजना देश में क़रीब 15,000 पुलिस स्टेशनों तथा देश के 6,000 उच्च कार्यालयों को जोड़ती है। इसके बावजूद देश में साइबर अपराध कम होने के बजाय और बढ़ रहे हैं, जो कि चिन्ता का विषय है। साइबर अपराध के शिकार सबसे ज़्यादा ग्रामीण हो रहे हैं। क्योंकि उन्हें न तो आधुनिक तकनीक की जानकारी है और न ही अधिकतर ग्रामीण इतने पढ़े-लिखे होते हैं कि अंग्रेजी में लिखी सलाहों और बचाव के लिए लिखे गये दिशा-निर्देशों को पढ़ और समझ सकें। इसीलिए साइबर अपराधी लोगों के बैंक अकाउंट के साथ-साथ उनकी हिस्ट्री की जाँच करते रहते हैं और जैसे ही उन्हें किसी पैसे वाले अनपढ़ या कम पढ़े-लिखे व्यक्ति के बैंक खाते में जमा पैसे के बारे में पता चलता है, वे उसमें सेंध लगाने की कोशिश करने लगते हैं और इसी कोशिश में अपराधी मौक़ा मिलते ही लोगों के बैंक खाते सेकेंडों में ख़ाली कर देते हैं।

कमायी का अड्डा सोशल मीडिया

फेसबुक, व्हाट्सऐप और इंस्ट्राग्राम का अचानक बन्द होना तकनीकी चूक या कुछ और है मक़सद?

कभी चिट्ठियों के सहारे बातचीत हुआ करती थी, फिर टेलीफोन ने क्रान्ति की और अब एंड्रायड फोन और सोशल मीडिया सब कुछ निर्भर है। आज के मोबाइल युग में बातचीत और सूचना से लेकर व्यापार तक, बहुत कुछ में व्हाट्सऐप, फेसबुक और दूसरे पर निर्भर हो चुका है। ऐसे में ज़रा-सी तकनीकी चूक लोगों के विचलित कर देती है। पूरी-की-पूरी व्यवस्था को हिलाकर रख देती है। 4 अक्टूबर की रात लगभग 9:00 बजे से फेसबुक, व्हाट्सऐप, इंस्ट्राग्राम सहित मैसेंजर सब कुछ अचानक बन्द होने से लोगों को लगा कि इंटरनेट काम नहीं कर रहा है। लेकिन जब पता चला कि सारा तंत्र (सिस्टम) ही बन्द हुआ है,  तो लोग भौंचक और परेशान हुए।

विशेषज्ञों का कहना है कि जब हम किसी पर पूरी तरह से आश्रित होते हैं, तो हमें हर हाल में सावधान रहना होता है। लेकिन ऐसा नहीं हो सका, जिसके चलते सैकड़ों करोड़ रुपये का नुक़सान हुआ। इस बन्द के चलते फेसबुक ने 4,00 करोड़ रुपये से ज़्यादा हर घंटे गँवाये। इस मामले में कम्प्यूटर इंजीनियर ऐश्वर्य शर्मा ने बताया कि फेसबुक और उसके सभी मौज़ूदा तंत्र लगभग छ: घंटे तक बन्द रहने की वजह कंफिग्रेशन में अचानक तकनीकी ख़राबी आयी, जिसके चलते ऑनलाइन विज्ञापनों में रुकावट से फेसबुक, व्हाट्सऐप और दूसरे सोशल मीडिया ऐप्स को हर घंटे कई करोड़ों का नुक़सान हुआ है। ऐश्वर्य शर्मा ने कहा कि जबसे कोरोना का कहर दुनिया में बरपा है, तबसे छोटे स्कूलों से लेकर उच्च शिक्षा तक मोबाइल और इंटरनेट पर निर्भर हो चुकी है। ऐसे में अचानक सभी सेवाएँ ठप होने से एक-एक सेकेंड में नुक़सान होता है, फिर छ: घंटे मे तो बड़ा फ़र्क़ पडऩा ही था। जूम और व्हाट्सऐप जैसे ऐप्स के ज़रिये पढ़ाई और कोंचिंग कक्षाएँ लगने के चलते भारत में शहरों से लेकर गाँव तक अब ज़्यादातर विद्यार्थियों के हाथों में मोबाइल है। बच्चों की अधिकतर ऑनलाइन कक्षाएँ भी शाम से 10 बजे तक के आसपास तक चलती हैं। आज करोड़ों का व्यापार भी ऑनलाइन होता है। ऐसे में फेसबुक, व्हाट्सऐप, इंस्ट्राग्राम और मैसेंजर के बन्द होने से लोगों के साथ-साथ विद्यार्थियों को दिक़्क़त तो होनी ही थी। इंजीनियर पारस कुमार कहते हैं कि इंस्ट्राग्राम का अक्सर बन्द होना आम बात है। वह एक साल में 70-80 बार बन्द हुआ है। लेकिन फेसबुक की सभी प्रमुख कम्पनियों का बन्द होना चौंकाने वाली बात है। इसके बन्द होने के पीछे के क्या मक़सद है? यह तो आने वाले दिनों में सामने आएगा। फेसबुक के उपाध्यक्ष सन्तोष जनार्दन ने मीडिया में इस असुविधा के लिए लोगों से माफ़ी माँगी और कहा कि भविष्य में ऐसी स्थिति न आये, इसके लिए व्यापक पैमाने पर काम किया जा रहा है और बुनियादी तंत्र को मज़बूत किया जा रहा है।

दिल्ली के कुछ अभियंता (इंजीनियर) के छात्रों ने बताया कि सोशल मीडिया एक बड़े कारोबार के रूप में उभरकर सामने आया है, जिसकी बाग़डोर भले ही विदेशी हाथों में हो, पर इसके कारोबार में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए भारत भी बहुत पीछे नहीं है। विज्ञापन मिलने में गूगल के बाद फेसबुक का कारोबार दूसरे स्थान पर है। ऐसे में फेसबुक से जुड़े सारे तंत्र में अपनी-अपनी भागीदारी को लेकर कार्पोरेट घराने इस जुगत में हैं कि वे भी इस कारोबार का हिस्सा बनें। डीटीयू से अभियांत्रिकी (इंजीनियरिंग) करने वाले कुमार हर्ष कहते हैं कि एक साथ कई सोशल साइट्स के बन्द होने के साथ ही फेसबुक.कॉम और व्हाट्सऐप.कॉम को बेचने की कोशिशें तेज़ हो रही हैं।

साइबर विशेषज्ञों का मामना है कि कई बार तकनीकी तंत्र इस क़दर मज़बूत होता है कि चाहकर भी आसानी ने कुछ बदला नहीं जा सकता। क्योंकि इसके पीछे डाटाबेस (आँकड़ों और विवरण पर आधारित) है। सारा काम इन्हीं का है और इन्हें एकजुट करके हासिल करना बड़ी बात होती है। ऐसे में फेसबुक और व्हाट्सऐप को बेचने की तामाम सम्भावनाएँ अटकलबाज़ी हो सकती हैं; क्योंकि मामला 2,00 करोड़ से अधिक उपभोक्ताओं से जुड़ा हुआ है।

शेयर बाज़ार में काम करने वाले करने वाले राजकुमार कहते हैं कि फेसबुक ने ख़राबी को लेकर असली वजह नहीं बतायी है। लेकिन जानकारों का अनुमान है कि यह सब डोमेन नेम सिस्टम की समस्या हो सकती है। शेयर बाज़ार का अपना मिजाज़ है और उसमें ज़रा-सी गड़बड़ी से उथल-पुथल मच जाती है। सोशल मीडिया का तकनीकी तंत्र ख़राब होने से अमेरिका में फेसबुक के शेयर काफ़ी नीचे तक गिर गये थे, जिसका आंशिक असर भारत के शेयर बाज़ार भी पड़ा। राजकुमार कहते हैं कि जब भी कोई बड़ा कारोबार पल भर के लिए ही बाधित होता है, तो उससे लाखों-करोड़ों का नुक़सान होता है। फिर यह तो सोशल मीडिया वह नेटवर्क तंत्र है, जो पूरी दुनिया और उसके एक बड़े कारोबार क्षेत्र को आपस में जोड़कर रखे हुए है।