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भारत का पहला हाथी मोबाइल क्लिनिक ‘हाथी सेवा’ हुआ लांच, करेगा देशभर में हाथियों की आवश्यक चिकित्सा एवं देखभाल

वन्य जीव संरक्षण संस्था वाइल्डलाइफ एसओएस ने हाथियों के संरक्षण के अपने प्रयासों को और मजबूत करते हुए ‘हाथी सेवा’ नामक भारत की पहली हाथी मोबाइल क्लिनिक का उद्घाटन किया है। हाथी सेवा का औपचारिक शुभारंभ असम के काज़ीरंगा नेशनल पार्क में आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय हाथी स्वास्थ्य एवं उपचार शिविर के दौरान किया गया, जो असम वन विभाग के सहयोग से आयोजित किया गया था।

हाथियों को त्वरित और आवश्यक चिकित्सा प्रदान करने के उद्देश्य से, वाइल्डलाइफ एसओएस ने यह पहल की है। संस्था लंबे समय से भारत में एशियाई हाथियों के कल्याण और उनके बेहतर जीवन की दिशा में कार्यरत है। ‘हाथी सेवा’ नामक यह मोबाइल क्लिनिक देशभर में हाथियों को आवश्यक चिकित्सा देखभाल प्रदान करने के लिए समर्पित है।

इस मोबाइल क्लिनिक के माध्यम से नेत्रहीन और अपंग हाथियों को प्राथमिकता के आधार पर चिकित्सा सहायता दी जाएगी। इनमें लंगड़ापन, पैरों में संक्रमण, जोड़ों में सूजन और दर्द जैसी समस्याओं का इलाज किया जाएगा। हाथी सेवा का उद्देश्य वाइल्डलाइफ एसओएस के ‘भिक्षा मांगने वाले हाथियों’ के संरक्षण अभियान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसके तहत पूरे भारतवर्ष में सड़कों पर भीख मांगने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले हाथियों को चिकित्सा सहायता प्रदान की जाएगी।

हाथी मोबाइल क्लिनिक का शुभारंभ असम में चल रहे एक अंतरराष्ट्रीय हाथी स्वास्थ्य शिविर के दौरान किया गया, जिसमें अभी तक 50 से अधिक हाथियों का सफलता पूर्वक स्वास्थ्य परीक्षण किया गया है। यह शिविर काज़ीरंगा नेशनल पार्क एवं टाइगर रिज़र्व, और मेरापानी फॉरेस्ट डिवीजन में गश्त और वन्यजीव संरक्षण कार्यों में शामिल हाथियों के लिए विशेष रूप से आयोजित किया गया था। इस स्वास्थ्य शिविर का अंतिम चरण मानस नेशनल पार्क में आयोजित किया जाएगा।

वाइल्डलाइफ एसओएस के सह-संस्थापक और सीईओ, कार्तिक सत्यनारायण ने कहा:“हम भारत का पहला हाथी मोबाइल क्लिनिक शुरू कर बेहद गर्व महसूस कर रहे हैं। हमारा लक्ष्य पूरे देश में उन हाथियों तक चिकित्सा एवं सहायता पहुंचाना है जो गंभीर रूप से बीमार हैं और जिन्हें तत्काल उपचार की आवश्यकता में हैं।”

वाइल्डलाइफ एसओएस की सह-संस्थापक और सचिव, गीता शेषमणि ने कहा:“अधिकांश कैद में रखे गए हाथियों को सही चिकित्सा और देखभाल नहीं मिलती, इसी कारण देश में हाथियों की स्थिति काफी दयनीय है। हमारे मोबाइल क्लिनिक की पहल का उद्देश्य ऐसे हाथियों को तत्काल चिकित्सा उपचार प्रदान करना है।”

काज़ीरंगा नेशनल पार्क और टाइगर रिज़र्व की फील्ड डायरेक्टर एवं एपीसीसीएफ, डॉ. सोनाली घोष, आईएफएस ने कहा:“यह बहुत गर्व की बात है कि भारत की पहली हाथी मोबाइल क्लिनिक, हाथी सेवा को काज़ीरंगा से शुरू किया गया है। यह पहल निश्चित रूप से हाथियों के संरक्षण और कल्याण में एक मील का पत्थर साबित होगी।”

वाइल्डलाइफ एसओएस के डायरेक्टर- कंज़र्वेशन प्रोजेक्ट्स, बैजूराज एम.वी. ने कहा:“यह मोबाइल हेल्थ क्लिनिक उन कार्यरत हाथियों को चिकित्सा सहायता प्रदान करेगा, जिनकी भलाई और देखभाल अत्यंत आवश्यक है।”

क्या दिल्ली का भला कर सकेंगी मुख्यमंत्री रेखा?

हाल के वर्षों में भाजपा ने मुख्यमंत्रियों की अपनी पसंद से राजनीतिक पर्यवेक्षकों को आश्चर्यचकित करने की आदत विकसित कर ली है। चाहे वो छत्तीसगढ़ हो, राजस्थान हो, मध्य प्रदेश हो, गुजरात हो या हरियाणा हो; और अब राष्ट्रीय राजधानी भी इसका अपवाद नहीं है। पहली बार विधायक और पूर्व पार्षद रेखा गुप्ता के चयन ने पूर्व सांसद प्रवेश वर्मा और तीन बार के विधायक विजेंद्र गुप्ता जैसे प्रमुख दावेदारों को निराश किया है। रेखा गुप्ता की नियुक्ति से संघ परिवार के मज़बूत प्रभाव का पता चलता है। उन्होंने संघ की छात्र शाखा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् (एबीवीपी) के भीतर अपने राजनीतिक कौशल को निखारा था।

‘तहलका’ की इस बार की आवरण कथा- ‘संघ के दम पर दिल्ली जीती भाजपा?’ शहर पर प्रभावी ढंग से शासन करने के साथ-साथ पार्टी के आंतरिक मतभेदों को प्रबंधित करने की चुनौतियों पर प्रकाश डालती है। 27 साल के अंतराल के बाद भाजपा ने दिल्ली में सत्ता हासिल कर ली है। भाजपा के लिए यह एक उपलब्धि है, जिसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पिछले 11 वर्षों से केंद्र में और 20 से अधिक राज्यों में सत्ता में रहने के बावजूद उन्हें संघ का सहारा लेते हुए पूरे संगठन के साथ कड़ा संघर्ष करना पड़ा। दिल्ली की अंतिम भाजपा मुख्यमंत्री दिवंगत सुषमा स्वराज ने 03 दिसंबर, 1998 तक पदभार सँभाला था। इसके बाद से इस विधानसभा चुनाव से पहले तक भाजपा दिल्ली विधानसभा को सुरक्षित करने में विफल रही थी, जिससे यह जीत एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर बन गयी है।

भाजपा के लिए राष्ट्रीय राजधानी में राजनीतिक प्रभुत्व हासिल करना कोई आसान उपलब्धि नहीं है। सफलता सुनिश्चित करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी, पार्टी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा और गृहमंत्री अमित शाह सहित भाजपा नेतृत्व ने रणनीतिक रूप से संघ और उसके समर्पित काडर पर भरोसा किया, जो हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों में उनके दृष्टिकोण को दर्शाता है। ऐसा प्रतीत होता है कि इस रणनीतिक क़दम ने भाजपा मशीनरी को फिर से जीवंत कर दिया है, जिसने 2024 के लोकसभा चुनावों में अपने जबरदस्त प्रदर्शन के बाद भी थकान के संकेत दिखाये थे। अब पार्टी फिर से अपनी रफ़्तार पकड़ती नज़र आ रही है।

जीत और अपनी नियुक्ति से उत्साहित रेखा गुप्ता ने अपने पहले भाषण में दिल्ली को नयी ऊँचाइयों पर ले जाने का वादा किया है। दिल्ली की चौथी महिला मुख्यमंत्री के रूप में उन्हें विधानसभा में दो-तिहाई बहुमत और केंद्र का पूर्ण समर्थन प्राप्त है। हालाँकि इस वादे को पूरा करने के लिए बयानबाज़ी से कहीं अधिक काम करने की आवश्यकता होगी। वायु और जल प्रदूषण जैसे महत्त्वपूर्ण मुद्दों के समाधान के लिए तत्काल कार्यवाही की आवश्यकता है। इसके साथ ही पिछली आम आदमी पार्टी की सरकार द्वारा शुरू की गयी कल्याणकारी योजनाओं सहित उन्हें पार्टी के चुनावी वादों को पूरा करने की भी ज़रूरत है। भाजपा की डबल इंजन की सरकार क़ानून और व्यवस्था और स्थानीय प्रशासन दोनों की देख-रेख करती है; इन अपेक्षाओं को पूरा करना उसकी शासन क्षमताओं की सच्ची परीक्षा होगी।

इस बीच राजनीतिक परिदृश्य में एक महत्त्वपूर्ण खिलाड़ी दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल के लिए अटकलें तेज़ हैं कि पार्टी आगामी पंजाब विधानसभा उपचुनाव में अपने एक राज्यसभा सांसद को मैदान में उतार सकती है, ताकि संभावित रूप से उच्च सदन में उनके स्थानांतरण का मार्ग प्रशस्त हो सके। वर्तमान में आम आदमी पार्टी के पास 10 राज्यसभा सीटें हैं- तीन दिल्ली से और सात पंजाब से। इसलिए पार्टी उसके प्रवेश के लिए सबसे व्यवहार्य मार्ग प्रस्तुत करती है। चूँकि आम आदमी पार्टी ने हाल ही में एक राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल किया है, इसलिए राज्यसभा सीट हासिल करने से केजरीवाल का राष्ट्रीय प्रभाव बढ़ सकता है। हालाँकि यह देखना अभी बाक़ी है कि क्या वह यह रणनीतिक क़दम उठाएँगे?

केरल विधान सभा चुनाव की तैयारियां शुरू: सियासी सन्नाटे के पीछे गहमागहमी, भाजपा की महत्वाकांक्षा और कांग्रेस की उलझनें

बृज खंडेलवाल द्वारा

गुरुवायूर (केरल), 28 फरवरी 2025

बिहार के बाद केरल में विधानसभा चुनाव की तैयारियाँ जोरों पर हैं, लेकिन राजनीतिक माहौल अभी भी उम्मीद के मुताबिक गर्म नहीं हुआ है। हालांकि, लाल झंडों की मौजूदगी और छोटे कस्बों में हो रही सभाओं के बावजूद चुनावी चर्चा अभी शुरू नहीं हुई है। गुरुवायूर मंदिर के बाहर कॉफी स्टॉल पर राजनीति के बजाय फुटबॉल और खाड़ी देशों में घटते रोज़गार की चिंता लोगों की बातचीत का मुख्य विषय था। 

केरल की विधानसभा में कुल 140 सीटें हैं, और यहाँ की राजनीति में तीन प्रमुख गठबंधन सक्रिय हैं: वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (LDF), संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा (UDF), और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा)। वर्तमान में, मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन के नेतृत्व वाली LDF सरकार सत्ता में है, जिसमें मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) प्रमुख भूमिका निभा रही है। UDF का नेतृत्व कांग्रेस के वरिष्ठ नेता वी.डी. सत्यसंग कर रहे हैं, जबकि भाजपा की अगुवाई राज्य अध्यक्ष के. सुरेन्द्रन कर रहे हैं। 

त्रिशूर, गुरुवायूर, पलक्कड़ और तिरुवनंतपुरम जैसे प्रमुख क्षेत्रों में भाजपा ने हिंदू वोट बैंक को मजबूत करने के लिए  ताकत झोंक दी है। इसका सीधा निशाना मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन की LDF सरकार है। भाजपा की रणनीति 2024 के आम चुनाव में त्रिशूर संसदीय सीट पर एक्टर सुरेश गोपी की ऐतिहासिक जीत के बाद और तेज़ हो गई है। यह केरल में भाजपा की पहली लोकसभा सीट थी, जिसे पार्टी अब विधानसभा चुनाव में भी दोहराने की कोशिश कर रही है। 

केरल में हिंदू आबादी 52% से अधिक है, और भाजपा इसका पूरा फायदा उठाने की कोशिश कर रही है। इसके अलावा, पार्टी ईसाई समुदाय में भी अपनी पकड़ बढ़ाने में जुटी है। कई प्रभावशाली ईसाई गुट भाजपा की ओर झुकते दिख रहे हैं, जो पार्टी के लिए एक बड़ी उपलब्धि हो सकती है। 

केरल कांग्रेस इस बार मुश्किल दौर से गुज़र रही है। वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने हाल ही में अपने बयानों से पार्टी के अंदर खलबली मचा दी है। राज्य कांग्रेस में नेतृत्व की कमी पर उनके खुले विचार और केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल के साथ उनकी चर्चित सेल्फी ने अटकलों को हवा दे दी है। थरूर के मुख्यमंत्री पद की ओर बढ़ते कदम कांग्रेस के लिए अंदरूनी असंतोष का कारण बन रहे हैं, जिससे भाजपा को अप्रत्यक्ष रूप से फायदा मिल सकता है। 

कांग्रेस के भीतर नेतृत्व को लेकर यह संघर्ष पार्टी की एकता के लिए चुनौती बन गया है। शशि थरूर की शहरी और युवा मतदाताओं में लोकप्रियता उन्हें मुख्यमंत्री पद के लिए एक मजबूत दावेदार बनाती है। अगर कांग्रेस उन्हें किनारे करती है, तो भाजपा के साथ उनके संभावित तालमेल के कयास राजनीतिक समीकरण को पूरी तरह बदल सकते हैं। 

एलडीएफ सरकार, जो केरल की राजनीति में दशकों से मज़बूत रही है, इस बार कई चुनौतियों का सामना कर रही है। राज्य में बढ़ती बेरोज़गारी, आर्थिक विकास की धीमी रफ्तार और सामाजिक न्याय से जुड़े सवालों के कारण जनता में बदलाव की मांग तेज़ होती जा रही है। केरल की 96% साक्षरता दर और राजनीतिक रूप से सजग जनता पारंपरिक निष्ठा के बावजूद इस बार परिवर्तन के लिए तैयार है। 

केरल की राजनीति में मुस्लिम और ईसाई समुदाय हमेशा से निर्णायक भूमिका निभाते रहे हैं। सामाजिक समानता, स्वास्थ्य सेवाओं और सांस्कृतिक संरक्षण जैसे मुद्दों को प्राथमिकता देने वाले ये समुदाय अब राजनीतिक ध्रुवीकरण के बीच अपने हितों को लेकर सतर्क हो गए हैं। भाजपा की ओर झुकते कुछ ईसाई गुटों के अलावा वामपंथ के लिए अब तक मज़बूत माने जाने वाले मुस्लिम वोट बैंक में भी हलचल देखी जा रही है। 

केरल के आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर सियासी गर्मी भले ही अभी महसूस न हो रही हो, लेकिन पर्दे के पीछे की चालें इसे बेहद दिलचस्प बना रही हैं। भाजपा की बढ़ती महत्वाकांक्षा, कांग्रेस की अंदरूनी कलह और वाम मोर्चे के सामने बढ़ती चुनौतियाँ राज्य में एक नए सियासी अध्याय की भूमिका लिख रही हैं। देखना होगा कि मतदाता इस बार किस करवट बैठते हैं।

दिल्ली विधानसभा में आम आदमी पार्टी विधायकों की एंट्री पर रोक

नई दिल्ली: दिल्ली विधानसभा में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की ओर से आबकारी नीति पर पेश की गई रिपोर्ट पर चर्चा होने जा रही है। इससे पहले सदन में डिप्टी स्पीकर का चुनाव किया जाएगा। वहीं, विपक्ष की नेता और पूर्व मुख्यमंत्री आतिशी, विधानसभा परिसर के बाहर गांधी की प्रतिमा के नीचे अपनी पार्टी के विधायकों के साथ प्रदर्शन कर रही हैं। उनका आरोप है कि स्पीकर के आदेश पर पुलिस विपक्षी विधायकों को सदन परिसर में प्रवेश करने से रोक रही है। आतिशी ने बताया, “पुलिस अधिकारी कह रहे हैं कि आप विधायकों को सदन से निलंबित कर दिया गया है, इसलिए उन्हें परिसर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जा रही। यह अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक है। हमने स्पीकर से बात करने की कोशिश की, लेकिन कोई असर नहीं हुआ।”

पूर्व सीएम ने एक्स पर पोस्ट करते हुए आरोप लगाया कि बीजेपी सरकार ने सत्ता में आते ही तानाशाही की हदें पार कर दीं। उन्होंने कहा कि ‘जय भीम’ के नारे लगाने पर आम आदमी पार्टी (AAP) के विधायकों को तीन दिन के लिए निलंबित कर दिया गया और आज उन्हें विधानसभा परिसर में भी प्रवेश नहीं मिलने दिया जा रहा है। उन्होंने इसे दिल्ली विधानसभा के इतिहास में एक अभूतपूर्व कदम बताया।

बीजेपी विधायक सतीश उपाध्याय ने कहा कि सीएजी रिपोर्ट में भ्रष्टाचार की जो घटनाएँ सामने आई हैं, उनसे यह सिद्ध होता है कि आम आदमी पार्टी ने अपने करीबी लोगों को अनुचित लाभ पहुँचाया है। उपाध्याय ने आरोप लगाया कि दिल्ली की जनता के कल्याण के लिए खर्च होना चाहिए थे वो राशि बेईमान लोगों की जेब में चली गई। उन्होंने कहा, “AAP को सदन में चर्चा के माध्यम से दिल्ली को हुए 2000 करोड़ रुपये से अधिक के राजस्व नुकसान का जवाब देना होगा।”

कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष देवेंद्र यादव ने कहा कि सीएजी रिपोर्ट के निष्कर्ष में ‘लूट, झूठ और फूट’ का साफ उल्लेख है। उन्होंने दावा किया कि पहले सरकार यह बताती थी कि आबकारी नीति से राजस्व में वृद्धि हो रही है, लेकिन रिपोर्ट से स्पष्ट है कि दिल्ली सरकार को 2002 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ है। यादव ने शराब घोटाले की जांच का दायरा बढ़ाने और सितंबर 2022 में कांग्रेस द्वारा पुलिस आयुक्त को दी गई शिकायत को शामिल करने की मांग की।

बिहार की राजनीति में नया मोड़: क्या नीतीश को हटाना भाजपा के लिए फायदे का सौदा होगा ?

बृज खंडेलवाल द्वारा

बिहार की सियासत में इन दिनों जबरदस्त हलचल है। साल के आखिर में होने वाले विधानसभा चुनावों ने माहौल को गर्मा दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भागलपुर से अपने चुनावी अभियान की शुरूआत करके मुकाबले को और भी दिलचस्प बना दिया है। मोदी  की तक़रीर में जहाँ लालू यादव के नेतृत्व वाले विपक्ष पर ताबड़तोड़ हमले थे, वहीं चमकदार वादों की झड़ी भी लगी थी। इस अंदाज़ से साफ़ ज़ाहिर है कि भाजपा इस बार भी तरक्की के अफसाने और समाजी-राजनीतिक ध्रुवीकरण — यानी पोलराइज़ेशन — दोनों को मिलाकर एक बड़ी जीत की तैयारी में है।

हालिया केंद्रीय बजट में घोषित मेगा प्रोजेक्ट्स पर भाजपा ने पूरा ज़ोर दिया है, लेकिन बिहार की सियासी हकीकत कुछ और ही बयां करती है। बिहार में भाजपा की अब तक की कामयाबी बताती है कि हुकूमत की कारगुज़ारियों से ज़्यादा अहमियत जज़्बात और पहचान को दी जाती है। यही वजह है कि पोलराइज़ेशन की सियासत यहाँ ज़्यादा असरदार साबित  होगी।

अब सवाल ये उठता है — क्या भाजपा को इस सियासी ध्रुवीकरण का पूरा फ़ायदा उठाने के लिए नीतीश कुमार को हटाकर यूपी के योगी आदित्यनाथ जैसे किसी हिंदू राष्ट्रवादी नेता को बिहार की कमान सौंपनी चाहिए?

बिहार के अवाम ने हमेशा उन नीतियों को तस्लीम किया है, जो उनकी तहज़ीब और मज़हबी पहचान से जुड़े हों। भाजपा की अब तक की चुनावी कामयाबी भी अक्सर इन्हीं बुनियादों पर टिकी रही है। सांप्रदायिक और जज़्बाती मसलों ने यहाँ पार्टी के कोर वोटर्स को भरपूर मोबाइलाइज किया है।

इसके बरअक्स, तरक्की के लिए लाए गए मेगा प्रोजेक्ट्स और बजट स्कीमें अक्सर लोगों को इतना प्रभावित नहीं कर पातीं जितना कि पहचान और आस्था से जुड़े मुद्दे करते हैं। यही वजह है कि भाजपा के लिए पोलराइज़ेशन को अपनी सियासी रणनीति में शामिल करना एक अनिवार्यता बन गया है।

हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली के हालिया चुनावी नतीजों ने ये साबित कर दिया है कि जज़्बातों को प्रेरित करने वाली राजनीति  भाजपा के लिए ज़्यादा मुफीद साबित होती है। इस सूरत-ए-हाल में नीतीश कुमार का सेक्युलर और नरम रवैया भाजपा के हिंदुत्व एजेंडे से मेल नहीं खाता।

नीतीश कुमार हमेशा एक सुलह-सफ़ाई वाली सियासत करते आए हैं, जहाँ वो तमाम तबक़ों को साथ लेकर चलने की कोशिश करते हैं। लेकिन आज की भाजपा की सियासी ज़रूरतें इस रवैये से आगे निकल चुकी हैं।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस मामले में एक मिसाली लीडर साबित हुए हैं। उन्होंने न सिर्फ कानून-व्यवस्था को बेहतर किया, बल्कि इंवेस्टमेंट और तरक्की के दरवाज़े भी खोले हैं। इसके साथ-साथ, उन्होंने हिंदुत्व के एजेंडे को जिस मज़बूती से पेश किया, वो भाजपा के वोट बैंक को और भी सशक्त और व्यापकता  देता रहा है।

बिहार की मौजूदा सियासत को देखते हुए योगी मॉडल एक बेहतरीन खाका पेश करता है। योगी आदित्यनाथ की सियासी शैली तेज़, सख्त और नतीजामुखी है। इसके मुकाबले, नीतीश कुमार की सियासत अक्सर ढीली,  कमज़ोर और बिखरी हुई नज़र आती है।

नीतीश कुमार की नीतियाँ — जैसे जातिगत जनगणना और शराबबंदी — को अक्सर बिहार की तरक्की में रुकावट माना गया है। उन पर अल्पसंख्यक तुष्टिकरण के इल्ज़ामात भी लगते रहे हैं, जिसने उन्हें भाजपा के कोर वोटर्स से और भी दूर कर दिया है।

बिहार में भाजपा की बढ़ती सियासी ज़रूरतों को देखते हुए, अब एक ऐसे लीडर की दरकार है, जो हिंदुत्व नैरेटिव को पुरज़ोर तरीके से पेश कर सके और समाजी ध्रुवीकरण को भाजपा की कामयाबी का ज़रिया बना सके।

प्रो. पारसनाथ चौधरी, जो बिहार की सियासत पर गहरी नज़र रखते हैं, कहते हैं: “भाजपा, जेडीयू और लोजपा का गठबंधन फिलहाल एक मज़बूत समाजी बुनियाद पर खड़ा है। मगर एनडीए की कामयाबी इसी में है कि भाजपा पोलराइज़ेशन के मसले पर अपनी पकड़ को मज़बूत बनाए रखे। नीतीश कुमार का उदार रवैया भाजपा के सख्त हिंदुत्व नैरेटिव को कमजोर कर सकता है।”

वहीं समाजशास्त्री टीपी श्रीवास्तव का मानना है: “बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे रियासतें हिन्दुस्तानी सियासत में मरकज़ी किरदार निभाती हैं। योगी आदित्यनाथ जहाँ एक मज़बूत हिंदुत्व और तरक्क़ीपसंद लीडर के तौर पर उभरे हैं, वहीं नीतीश कुमार का लीडरशिप मॉडल अब पिछड़ा और नाकामयाब नज़र आता है। बिहार में भाजपा को अब ऐसे ही एक मज़बूत और जज़्बाती लीडर की ज़रूरत है।”

जैसे-जैसे बिहार का सियासी पारा चढ़ रहा है, भाजपा के सामने ये खुलासा हो चुका है कि सिर्फ तरक्क़ी के वादे इस बार काफी नहीं होंगे। सियासी कामयाबी के लिए जज़्बात, पहचान और हिंदुत्व के नैरेटिव को पेश करना भी उतना ही ज़रूरी है। इस सूरत में भाजपा के लिए ये सिर्फ एक रणनीतिक फैसला नहीं, बल्कि सियासी ज़रूरत बन चुकी है कि वो नीतीश कुमार की जगह एक नए और बुलंद हौसले वाले लीडर को लाए। आने वाले महीनों में बिहार की सियासत का ये रूख किस करवट बैठता है, ये देखने लायक होगा। मगर एक बात तो तय है — इस बार का मुकाबला सिर्फ वोटों का नहीं, बल्के आइडियोलॉजी और लीडरशिप का भी है, क्योंकि जनता बेताब है परिवर्तन के लिए। बिहार के लोग जो पूरे देश और विदेशों में रह रहे हैं, अपने प्रदेश में बदलाव की बहार देखना चाहते हैं।

महाशिवरात्रि पर काशी विश्वनाथ मंदिर में वीआईपी दर्शन बंद

भोलेनाथ के भक्तों के लिए विशेष नियम लागू

वाराणसी: काशी विश्वनाथ मंदिर में 25 से 27 फरवरी तक वीआईपी दर्शन की सुविधा नहीं मिलेगी। मंदिर प्रशासन ने महाशिवरात्रि पर भक्तों की भारी भीड़ की आशंका के चलते ये फैसला लिया है। काशी विश्वनाथ ट्रस्ट ने इसकी जानकारी सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर दी। लिखा, “महाशिवरात्रि पर मंगलवार से तीन दिनों तक प्रोटोकॉल दर्शन व्यवस्था पर पूरी तरह से रोक रहेगी। मंदिर न्यास के अधिकारियों ने महाशिवरात्रि के लिए बनाई गई व्यवस्था में सहयोग की काशीवासियों से अपील की है। काशीवासियों ने श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए मंदिर न्यास की व्यवस्था में पूर्ण सहयोग का आश्वासन दिया है।”

दरअसल, पारंपरिक रूप से पर्व या किसी विशेष तिथि पर काशी विश्वनाथ धाम में पांच से छह लाख श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते थे, लेकिन महाकुंभ शुरू होने के बाद से प्रतिदिन सात लाख या उससे अधिक भक्त मंदिर में दर्शन करने आते हैं। इस अवसर पर 26 फरवरी को श्रद्धालुओं की संख्या 14 से 15 लाख के बीच हो सकती है, जिससे भीड़ प्रबंधन में कई चुनौतियां उत्पन्न हो सकती हैं।

मंदिर प्रशासन ने भीड़ को नियंत्रित करने के लिए विशेष तैयारियां शुरू कर दी हैं। मंदिर प्रशासन ने भक्तों से अपील की है कि वे अपनी सुविधानुसार समय लेकर दर्शन करें, क्योंकि कतार में विलंब हो सकता है। साथ ही, सलाह दी गई है कि पेन, कंघा, मोबाइल, बेल्ट, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, चाबी आदि सामान घर या होटल में छोड़कर आएं ताकि सुरक्षा व्यवस्था में किसी प्रकार की अड़चन न आए।

महाशिवरात्रि के दिन, भक्तों को केवल झांकी दर्शन की सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी और मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश पर रोक लगा दी गई है। सुरक्षा प्रबंध में कड़ी इंतजाम किए गए हैं जिससे किसी भी अप्रिय घटना से बचा जा सके।

विशेष व्यवस्था के तहत वृद्धजनों और दिव्यांगों के लिए व्हीलचेयर की सुविधा रखी गई है। गोदौलिया और मैदागिन से गोल्फ कार्ट या ई-रिक्शा द्वारा भी भक्त बाबा दरबार तक पहुंच सकते हैं। इसके अलावा, मंदिर के कर्मचारियों की सहायता से वृद्धजनों का जल्दी दर्शन कराकर उन्हें धाम क्षेत्र से बाहर निकालने का भी प्रबंध किया गया है।

सिम खरीदने से पहले जरूर जाने, नहीं तो लगेगा 2 लाख का जुर्माना

नई दिल्ली: साइबर फ्रॉड पर लगाम लगाने के लिए टेलीकॉम इंडस्ट्री ने सिम कार्ड से जुड़े कई बदलाव किए हैं। जो कि लागू भी कर दिए गए है। नियमों के मुताबिक अगर आप अपने आधार कार्ड से कई सिम लेते है तो आपकों लाखों रुपए का जुर्माना भी लग सकता है।

सिम कार्ड को बेचने के लिए सरकार ने रिटेलर्स के लिए नए नियम जारी कर दिए हैं। अब रिटेलर्स को इस प्रक्रिया का पालन कर ही सिम कार्ड बेचना होगा। ग्राहक के नाम पर कितने सिम कार्ड कनेक्शन हैं, इसकी जांच करनी होगी। साथ ही अगर ग्राहक ने अलग-अलग नाम से कनेक्शन लिए हैं, तो उसकी भी जांच अब की जाएगी। इसके साथ ही ग्राहक की फोटो भी अब 10 अलग-अलग एंगल से लेनी होगी। नियमों के अनुसार, एक व्यक्ति अपने आधार से सिर्फ 9 सिम खरीद सकता है। 9 से ज्यादा सिम कार्ड रखने पर पहली बार उल्लंघन करने वाले पर 50,000 रुपये और बार-बार उल्लंघन करने वालों के लिए 2 लाख रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा। इसी के साथ गलत तरीके से सिम कार्ड लेने पर 50 लाख रुपये तक का जुर्माना और तीन साल की जेल का प्रावधान है

टाइम मशीन से “आगरा 2047”  की सैर

एक डरावना ख्वाब या हक़ीक़त ?

बृज खंडेलवाल द्वारा

2047 के “विकसित भारत” में आगरा की क्या तस्वीर होगी ? क्या ताज सिटी आगरा भारत के टॉप 5 स्मार्ट शहरों में शुमार होगा? या फिर ये शहरी बदहवासी और लापरवाही के साये में एक डरावने ख्वाब में तब्दील हो जाएगा? 

इस सवाल का जवाब जानने के लिए हमने टाइम मशीन का सहारा लिया। “टीएम”  के लेंस के जरिए हमने भविष्य के आगरा की एक झलक देखी…जो इतनी डरावनी थी कि दिल दहल गया। 

“ये 2047 की एक तपती हुई सोमवार की दोपहर है। मैं दिल्ली-आगरा हाईवे पर उतरता हूँ। सिकंदरा से लेकर ताजमहल तक, सड़कें बर्बादी का एक डरावना नज़ारा पेश कर रही हैं। धूल और कूड़े से भरी हुई ये सड़कें, ढहती हुई इमारतों से घिरी हुई हैं। बसें जहरीला धुआँ उगल रही हैं, जिससे हवा में बदबू फैल रही है। 

हरि पर्वत चौराहे पर, ट्रैफिक पुलिस मास्क और इनहेलर बांट रही है, ताकि लोग जहरीली हवा से बच सकें। जब हम राजा की मंडी पहुँचते हैं, तो हमें ऑक्सीजन बूथ पर ले जाया जाता है, ताकि हम अपने फेफड़ों को ताज़ी हवा से भर सकें। जून की गर्मी इतनी तेज़ है कि सहन करना मुश्किल है।

हम एक रेस्तरां में शरण लेते हैं, लेकिन वहाँ बिजली गुल होने की वजह से अंधेरा और बदबूदार माहौल है। सड़कों पर दम घुट रहा है, हॉर्न बजाते वाहनों की भीड़ है, और शोर इतना ज़्यादा है कि कान पक जाएँ। मेट्रो सेवाएँ, जो कभी उम्मीद की किरण हुआ करती थीं, बहुत पहले बंद कर दी गई थीं, क्योंकि औसत यात्री महंगे टिकट नहीं खरीद पा रहा था। मेडिकल कॉलेज आधा खाली पड़ा है, इसके हॉल अव्यवस्था से भरे हुए हैं। बाहर लंबी लाइन लगी है। सूर सदन खस्ता हाल दिख रहा है। वॉचमैन कह रहा है, ‘अब सब घर बैठे देखते हैं।’ हर कोई खौफज़दा है। सड़क पर कम लोग हैं, वाहनों से कम। ऐसा लग रहा है कि शहर का बुनियादी ढांचा लगातार दबाव के कारण ढह गया है। 

यमुना नदी, जो कभी जीवन रेखा हुआ करती थी, अब एक स्थिर, प्रदूषित धारा बन गई है। इसके किनारों पर झुग्गियाँ हैं, और नदी के तल पर कॉलोनियाँ उग आई हैं। तथाकथित ‘स्मार्ट सिटी’ एक अव्यवस्थित फैलाव में बदल गई है, जो अनियोजित शहरीकरण का शिकार है। कॉलेज परिसर भयावह रूप से खाली हैं, क्योंकि छात्र अपने उपकरणों से चिपके हुए हैं। उन्हें ऐसी दुनिया में कक्षाओं की कोई ज़रूरत नहीं है, जहाँ AI ही सारा सोचने का काम करता है। 

आगरा में प्रदूषण की एक गहरी धुंध छाई हुई है, जो राजसी ताजमहल को ढक रही है। हवा में ज़हर घुला हुआ है, हर शख़्स परेशान दिख रहा है। नदी, औद्योगिक कचरे का कब्रिस्तान बन गई है। सामुदायिक तालाब और नहर नेटवर्क, जो कभी जीवन से गुलज़ार रहते थे, अब घुटन भरे आशियानों से भर गए हैं – विफल शहरी नियोजन का एक डरावना सबूत। सड़कें अव्यवस्थित गंदगी से भरी हैं। जीर्ण-शीर्ण इमारतें उपेक्षा के बोझ तले ढह रही हैं, उनके अग्रभाग पर गंदगी के निशान हैं। कभी जीवंत और रंगीन रहने वाले बाजार अब भूतिया छाया बनकर रह गए हैं। दुकानें वीरान खड़ी हैं, उनकी खामोशी केवल गड्ढों से भरी सड़कों पर चलने वाले खस्ताहाल वाहनों के कराहते इंजनों से टूटती है। 

आगरा में ‘विकसित भारत’ का वादा धूल में मिल गया है। स्मार्ट सिटी परियोजनाएँ, जिन्हें कभी उद्धारक के रूप में सराहा गया था, अब विफल महत्वाकांक्षाओं के खोखले स्मारक बनकर रह गई हैं। गहरे मुद्दों को छिपाने के लिए किए गए सौंदर्यीकरण के प्रयास गुमनामी में खो गए हैं। ताजमहल, जो कभी शाश्वत प्रेम का प्रतीक था, पर एसिड रेन और उपेक्षा के निशान हैं। शहर की गंदगी से दूर रहने वाले पर्यटक गायब हो गए हैं, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था बर्बाद हो गई है। AI होटल के कमरों में आराम से वर्चुअल टूरिज्म की व्यवस्था करता है। 

युवा लोग उम्मीद की किरण दिखाने वाले शहरों में अवसरों की तलाश में भाग गए हैं। केवल बूढ़े, बीमार और बेसहारा लोग ही बचे हैं, जो एक ऐसे शहर में फंसे हुए हैं जिसने उन्हें छोड़ दिया है। कभी आगरा की शान रहे शैक्षणिक संस्थान वीरान हो चुके हैं, उनके पुस्तकालय धूल खा रहे हैं। शहर की जीवंत संस्कृति मुरझा गई है, उसकी जगह निराशा ने ले ली है। 

मैं झटकों को झेलने के लिए शाहजहां के बगीचे में रुकता हूं। प्यास से कलेजा बैठा है, एक दुकान से पानी की बोतल मांगता हूं, ” पानी नहीं है, नुक्कड़ के स्टोर से ठंडी बीयर ले लो,” शॉप कीपर एक नेक सलाह देता है।

मैं सोचता हूं, वास्तव में, “आगरा 2047″ एक चेतावनी भरी कहानी है। ये याद दिलाती है कि जब शहरी समस्याओं को नज़रअंदाज़ किया जाता है, जब अल्पकालिक समाधान दीर्घकालिक समाधानों पर हावी हो जाते हैं, और जब लालच और उदासीनता दूरदर्शिता और करुणा पर हावी हो जाती है, तो क्या होता है। ये एक ऐसा शहर है जो अपना रास्ता खो चुका है, एक ऐसा शहर जिसने क्षणभंगुर लाभों के लिए अपने भविष्य का बलिदान कर दिया है। ये अनियंत्रित शहरी क्षय के विनाशकारी परिणामों का एक डरावना प्रमाण है।” 

चिंतित और खौफज़दा हम टाइम मशीन में दाखिल होकर, वर्तमान में लौटने का फैसला करते हैं। लेकिन आगरा के संभावित पतन की भयावह दृष्टि बनी हुई है। क्या हम अपने प्यारे शहर को बचाने के लिए अभी कदम उठाएंगे, या हम इसे बर्बाद होने देंगे? ये चुनाव करना  हमारा अधिकार है।

‘महाकुंभ’ को गाली देने वालों को कभी माफ नहीं करेगा बिहार : प्रधानमंत्री  मोदी

**EDS: THIRD PARTY IMAGE** In this screenshot via PMO website on Feb. 24, 2025, Prime Minister Narendra Modi with Bihar Governor Arif Mohammed Khan and Chief Minister Nitish Kumar during the launch of various development projects, in Bhagalpur, Bihar. (PMO via PTI Photo)(PTI02_24_2025_000197A)

भागलपुर: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को बिना किसी का नाम लिए विरोधियों पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने महाकुंभ पर सवाल उठाने वाले लोगों को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि अयोध्या के राम मंदिर से चिढ़ने वाले अब महाकुंभ को भी कोस रहे हैं। उन्होंने बिहार के भागलपुर में पीएम किसान सम्मान समारोह में आए लोगों को संबोधित करते हुए राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू यादव पर सियासी हमला बोलते हुए कहा कि जो लोग पशुओं का चारा खा सकते हैं, वे किसानों की भलाई नहीं सोच सकते।
प्रधानमंत्री मोदी ने यहां से देश भर के किसानों को खुशियों की सौगात देते हुए पीएम किसान सम्मान योजना की 19वीं किस्त जारी की। इसके तहत 9.7 करोड़ से अधिक किसानों को 21,500 करोड़ रुपये से अधिक की वित्तीय सहायता दी गई। उन्होंने कहा कि एनडीए सरकार किसानों के कल्याण के लिए लगातार काम कर रही है। लाल किले से मैंने कहा है कि विकसित भारत के चार मजबूत स्तंभ हैं, जिनमें गरीब, हमारे अन्नदाता किसान, हमारे नौजवान और नारी शक्ति हैं। एनडीए सरकार चाहे केंद्र में हो या फिर यहां नीतीश कुमार के नेतृत्व में चल रही राज्‍य सरकार हो, किसान कल्याण हमारी प्राथमिकता में है। पहले जब बाढ़ आती थी, सूखा पड़ता और ओला पड़ता था, तो ये लोग किसानों को अपने हाल पर छोड़ देते थे। साल 2014 में जब आपने एनडीए को आशीर्वाद दिया, तब पीएम फसल बीमा योजना बनाई।

उन्होंने कहा कि कांग्रेस हो या जंगलराज वाले हों, इनके लिए आप किसानों की तकलीफ कोई मायने नहीं रखती। हमने किसानों की समस्याओं के समाधान के लिए पूरी शक्ति से काम किया है। किसानों को खेती के लिए अच्छे बीज की व्यवस्था हो, पर्याप्त और सस्ती खाद या किसानों को सिंचाई की सुविधा, सभी क्षेत्रों में काम किए गए। पशुओं की बीमारी और आपदा से बचाव के लिए भी काम किए गए। एनडीए सरकार ने स्थिति को बदला है। हमने सैकड़ों आधुनिक किस्म के बीज किसानों को दिए। पहले यूरिया के लिए किसान लाठी खाता था और यूरिया की कालाबाजारी होती थी। आज किसानों को पर्याप्त खाद मिलती है। आज यूरिया प्रति बोरी 300 रुपये में मिलती है।

उन्होंने महाकुंभ की चर्चा करते हुए कहा कि एनडीए गौरवशाली विरासत के संरक्षण और वैभवशाली विकास को लेकर काम कर रही है। कुछ लोगों को धरोहरों और आस्था से भी नफरत है। प्रयागराज में आजकल एकता का महाकुंभ चल रहा है। इस एकता के महोत्सव में लोग डुबकी लगा रहे हैं। अब तक यूरोप की जितनी जनसंख्या है, उतने लोग डुबकी लगा चुके हैं। लेकिन, कुछ लोग इसे भी गाली दे रहे हैं।

उन्होंने भरोसा जताते हुए कहा कि ऐसे लोगों को बिहार के लोग कभी नहीं छोड़ेंगे। कांग्रेस और राजद के लंबे कुशासन ने बिहार को बदनाम और बर्बाद किया। लेकिन, अब विकसित भारत में बिहार का वही स्थान होगा, जो प्राचीन समय में पाटलिपुत्र का था। बिहार में सड़कों के नेटवर्क के लिए और जन कल्याण की योजनाओं के लिए एनडीए सरकार प्रतिबद्ध होकर काम कर रही है।

हरियाणा के कॉलेजों में लेक्चरर के 50 % खाली, कैसे होगा उच्च शिक्षा का सपना सार्थक: कुमारी सैलजा

जनता को गुमराह करने के लिए सरकार करती हैं झूठी घोषणाएं, हर 20 किमी पर नहीं है महिला कालेज

चंडीगढ़: अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की महासचिव, पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं सांसद कुमारी सैलजा ने कहा कि एक ओर सरकार नई शिक्षा नीति इसी सत्र से लागू करने जा रही है तो दूसरी ओर प्रदेश के सरकारी और मान्यता प्राप्त कॉलेज लेक्चरर की कमी से जूझ रहे हैं। अधिकतर जगहों पर अतिथि प्राध्यापकों और एक्सटेंशन लेक्चरर्स से काम चलाया जा रहा है। प्रदेश के कॉलेजों में करीब 50 प्रतिशत प्राध्यापकों के पद रिक्त पड़े हुए है ऐसे में सरकार जानबूझकर शिक्षा को गर्त में पहुंचा रही है, अगर युवाओं का भविष्य सुरक्षित रखना है तो सरकार को शिक्षा पर ध्यान देते हुए सभी रिक्त पदों पर भर्ती करनी चाहिए ताकि उच्च शिक्षा के लिए प्रदेश के युवाओं को दूसरे राज्यों की ओर पलायन न करना पड़़े। दूसरी ओर हर 20 किमी पर छात्राओं के लिए कॉलेज की घोषणा भी न जाने कब की पानी पी चुकी है। झूठी घोषणाएं कर सरकार जनता को गुमराह न करें।

मीडिया को जारी बयान में कुमारी सैलजा ने कहा कि प्रदेश की भाजपा सरकार शिक्षा के नाम पर युवाओं को गुमराह करती आ रही है, नई शिक्षा नीति के नाम पर भी सरकार युवाओं के साथ खेल खेल रही है। जब सरकारी और मान्यता प्राप्त कॉलेज में शिक्षक नहीं है, इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं है तो ऐसे में नई शिक्षा नीति के भी कोई मायने नहीं है। एक आरटीआई के माध्यम से खुलासा हुआ है कि प्रदेश के सरकारी और एडेड कॉलेज में लेक्चरर के 50 प्रतिशत पद खाली पड़े हुए है। प्रदेश में 184 सरकारी और 97 एडेड कॉलेज हैं। इन कॉलेज में लेक्चरर के 7986 पद स्वीकृत है। इनमें से 3358 पदों पर ही नियमित लेक्चरर हैं जबकि 2058 पदों पर गेस्ट और एक्सटेंशन लेक्चरर्स ही कार्यरत है यानि 4465 पद आज भी खाली है। उन्होंने कहा कि 97 एडेड कॉलेजों में 39 प्रिंसिपल तक नहीं है। एडेड कॉलेज में जो सेवानिवृत्त हो गया उसके स्थान पर भर्तियां तक नहीं हो रही है।

कुमारी सैलजा ने कहा कि सरकार ने स्वयं माना है कि प्रदेश के कालेजों में 749 अंग्रेजी के लेक्चरर्स नहीं है। इसी प्रकार कॉमर्स के 450, भूगोल के 479, गणित के 396, भौतिक विज्ञान के 323, हिंदी के 317, वनस्पति विज्ञान के 166, रसायन विज्ञान के 402, इतिहास के 189, कंप्यूटर साइंस के 221, शारीरिक शिक्षा के 127 और मनोविज्ञान के 125 पद खाली पड़े हुए है। कुमारी सैलजा ने कहा कि इतने खाली पदों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रदेश के कॉलेज में शिक्षण कार्य कैसे चल रहा होगा और विद्यार्थियों को कैसे कैसे परेशानी उठानी पड़ रही होगी। उच्च शिक्षा के लिए प्रदेश के युवा दूसरे राज्यों की ओर पलायन कर रहे है जो सरकार के लिए सबसे ज्यादा शर्मनाक है। 

कुमारी सैलजा ने कहा कि सरकार शिक्षा के नाम पर जनता को गुमराह करती आ रही है, पहले कहा था कि हर बीस किमी पर महिला कालेज खोला जाएगा पर ऐसा हुआ नहीं, ऐसे में लड़कियां उच्च शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाती और बारहवीं के बाद उनकी पढ़ाई छूट जाती है। सरकार को अपना वायदा पूरा करते हुए शिक्षा क्षेत्र में सुधार करते हुए सभी रिक्त पदों को भरना चाहिए ताकि विद्यार्थी उच्च शिक्षा के लिए दूसरे राज्यों की ओर पलायन न करे और लड़कियों की पढ़ाई बीच में न छूटे।