जयपुर का जवाहर कला केंद्र पारंपरिक और इस गुलाबी शहर की मूल योजना से प्रेरित विशिष्ट वास्तुकला का नमूना है, जो अन्य शहरों के कला केंद्रों से काफ़ी अलग दिखायी देता है। यहाँ कलाकार, पत्रकार, शिक्षा शास्त्री और कला प्रेमी सब जुटते हैं। साल भर यहाँ कार्यक्रम चलते रहते हैं। बावड़ी प्रणाली पर आधारित ओपन एयर थिएटर सबको रोमांचित करता है। 9.5 एकड़ में फैले जवाहर कला केंद्र को राजस्थानी कला और शिल्प को संरक्षित रखने के उद्देश्य से सन् 1991 में बनाया गया था।
भारतीय वास्तुकार चार्ल्स कोरिया द्वारा डिजाइन किया गया जवाहर कला केंद्र नौ ग्रहों पर आधारित है। प्रत्येक ग्रह की विशेषताओं का उपयोग प्रत्येक वर्ग की कार्य क्षमता और प्रत्येक वर्ग में लागू वास्तु शिल्प डिजाइन की शैली को निर्धारित करने के लिए किया गया है। इसमें मंगल लाल ग्रह है और शक्ति का प्रतीक है। इसलिए इस वर्ग में प्रशासनिक कार्यालय बनाया गया है। मंगल की दीवारों के साथ-साथ नवग्रहों की व्याख्या की गयी है। सूर्य चूँकि प्रत्यक्ष ग्रह है, जिसे हर कोई रोज़ देखता है। यह ऊर्जा का प्रतीक है। सूर्य मंडल में पारंपरिक कुएँ (कुंड) के आकार में ओपन एयर थिएटर है।
गुरु बृहस्पति बुद्धि और ज्ञान का प्रतीक है। इस मंडल में लाइब्रेरी है, जिसमें 1,000 के क़रीब कला विषयों से सम्बन्धित पुस्तकें हैं। बुद्ध ख़ज़ाने का ग्रह है। इसलिए यहाँ कला प्रदर्शनियों के लिए पाँच गैलरियाँ- सुकृति, सुलेख, संदर्भ, सुदर्शन हैं और राहु मंडल में स्फटिक गैलरी है। यहाँ राजस्थानी समकालीन कला को डिस्प्ले किया गया है।
केतु मंडल में राजस्थानी जीवन शैली के वस्त्रों, फर्नीचर और अन्य वस्तुओं का संग्रह है। शनि एक धीरे-धीरे चलने वाला ग्रह है। इसलिए शनि मंगल में सृजन नाम से स्कल्पचर और डिजाइन स्टूडियो बनाये गये हैं। इसमें नाट्य उत्सव, कला प्रदर्शनियाँ, शिल्प मेले, कार्यशालाएँ, फ़िल्म स्क्रीनिंग, संवाद, संगोष्ठियाँ और संगीत के कार्यक्रम चलते रहते हैं।
राजस्थान, ख़ासकर जयपुर एक बड़ा सांस्कृतिक शहर रहा है। शहर के प्रसिद्ध रंगकर्मी साबिर ख़ान कहते हैं कि ऐतिहासिक दृष्टि से जयपुर कला प्रेमी शहर है। यहाँ कहीं भी कोई संगीत का या थिएटर का कार्यक्रम होता है, तो क़रीब-क़रीब हाउसफुल हो जाता है। जवाहर कला केंद्र में भी नाटक मंचन के दौरान हाउसफुल रहता है।
उन्होंने बताया कि अभी यहाँ दो साल से रामलीला हो रही है। उसमें भी काफ़ी लोगों की भीड़ जुटती है। लोकरंग यहाँ का ख़ास कार्यक्रम है, जिसमें देश के सभी लोक नृत्य के कलाकार 10-12 दिनों तक अपनी कला प्रदर्शित करते हैं। हर साल चिल्ड्रन थिएटर वर्कशॉप होती है, जिससे बच्चे आने वाले समय में थिएटर से जुड़ें। इससे उनके पैरेंट्स भी दर्शक के रूप में जुड़ते हैं।
वर्ष 2008 से कार्यरत जवाहर कला केंद्र के सहायक निदेशक अब्दुल लतीफ़ का कहना है कि आर्ट और कल्चर ऐसे आयाम हैं, जो सभ्यता को दिशा देते हैं। ऐसी जगह बेमिसाल होती है, जहाँ हम कला-संस्कृति और साहित्य के माध्यम से सबको एक साथ जोड़ते हैं। आज का जयपुर काफ़ी बढ़ गया है। लेकिन पुराना जयपुर शहर चौपड़ प्रणाली पर आधारित था और इसी सोच को ध्यान में रखकर यह इमारत बनायी गयी थी।
अब्दुल बताते हैं कि लाइब्रेरी जुपिटर यानी बृहस्पति क्षेत्र में है। लर्निंग सोर्स यहाँ हैं। राजस्थान में बाबड़ी की परंपरा के चलते यहाँ ओपन थिएटर इसी विशेषता को लेकर बना है। यह सूर्य ग्रह क्षेत्र में है। प्रशासन मंगल, तो इंडियन कॉफी हाउस चंद्र क्षेत्र में है। यहाँ शिल्पग्राम है। यहाँ विजुअल आर्ट, म्यूजिक एंड डांस, थिएटर और साहित्य पर पूरे साल काम होता है।
लाल पत्थर और संगमरमर से बने इस कला केंद्र का निर्माण पाँच वर्ष में पूरा हुआ। इसका प्रत्येक वर्ग एक विशेष ग्रह से मेल खाता है। इस केंद्र की कल्पना जयपुर के संस्थापक महाराजा जयसिंह (द्वितीय) ने 17वीं शताब्दी में की थी, जो विद्वान, गणितज्ञ और खगोल शास्त्री भी थे।
– असली-नक़ली डायमंड की कालाबाज़ारी के खेल में पड़े हैं बड़े-बड़े माफ़िया, अपराधी और जौहरी
दुनिया में आजकल हर महँगी-से-महँगी और सस्ती-से-सस्ती चीज़ की कालाबाज़ारी होने लगी है। सोने-चाँदी, हीरे-जवाहरात से लेकर कोयला तक की कालाबाज़ारी में कई धन्ना सेठ और हमारे नेता घुसे हुए हैं। जिस दिन कालाबाज़ारी का असली सच सामने आ गया ना! कई भोले-भाले से दिखने वाले चेहरों के नक़ाब उतरेंगे और वो साफ़-साफ़ भयंकर पापी नज़र आएँगे। ऐसा नहीं है कि इन बड़े चेहरों की सच्चाई सबसे छुपी है; पर जिन्हें इनकी काली सच्चाई मालूम है, वो उनका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते, क्योंकि पैसा और पॉवर इन पापियों को न सिर्फ़ बचा रहे हैं, बल्कि इनके घिनौने चेहरे पर गुलाबों जैसी ख़ुशबू, भोलापन और अच्छे इंसान की छवि का नक़ाब भी डाले हुए हैं।
कालाबाज़ारी असली चीज़ों की भी होती है और नक़ली चीज़ों की भी होती है। दुनिया में दोनों ही चीज़ों की कालाबाज़ारी का बहुत बड़ा बाज़ार है, जिसमें सब कुछ दलालों, माफ़ियाओं, गुंडों, नेताओं और अंडरवर्ल्ड के ज़रिये हैंडिल होता है। एक तरफ़ दिन भर मेहनत करने वाला मज़दूर और नौकर पेट पालने में हाँफ जाता है, तो दूसरी तरफ़ ये नक़ली चोर लोग ख़ाली बैठे-बैठे फोन की घंटी बजाकर करोड़ों से अरबों रुपये एक झटके में कमा लेते हैं। असली चीज़ों से बड़ा कारोबार नक़ली चीज़ों का है, क्योंकि नक़ली चीज़ें असली चीज़ों से भी अच्छी दिखती हैं। ऐसे में जो दुनिया के ज़्यादातर लोग समझ नहीं पाते हैं कि असली क्या है और नक़ली क्या है, वो ठगे ही जाते हैं। दो साल पहले ही जयपुर में एक अमेरिकी महिला ने एक ज्वेलर से छ: करोड़ रुपये का डायमंड (हीरा) ख़रीद लिया। जब उसने इसकी जाँच करायी, तो उसके तोते उड़ गये, क्योंकि डायमंड तो महज़ 300 रुपये का ही था। पर ज्वेलर और उसके बेटे ने अमेरिकी महिला को वो नक़ली डायमंड असली बताकर 5,99,99,400 रुपये का मुनाफ़े में बेच दिया। ज्वेलर ने अमेरिकी महिला को विश्वास में लेने के लिए हॉलमार्क सर्टिफिकेट भी दिया था। जब महिला अपने वतन अमेरिका लौटी, तो उसने हीरे की जाँच करायी और वह सहम गयी, क्योंकि उसके हाथ में छ: करोड़ का नहीं, बल्कि 300 रुपये का हीरा था। यह तो एक छोटी-सी ठगी की दास्तान है। पर हमारे यहाँ तो ऐसे ठगों की कोई कमी ही नहीं है, जो 24 घंटे इसी धंधे में लगे हैं। ठगी और कालाबाज़ारी का खेल बिना पुलिस की मिलीभगत के नहीं चलता है और पुलिस बड़ी ताक़तों के सहयोग के बिना ये सब नहीं करती है।
नक़ली डायमंड और असली डायमंड की कालाबाज़ारी ने असली डायमंड और ईमानदार व्यापारियों के कारोबार को कमज़ोर किया है। नक़ली डायमंड को सीवीडी कहा जाता है, जो लैब में तैयार होते हैं। नक़ली डायमंड की सुरक्षा में भी कम पैसा ख़र्च होता है। असली डायमंड को सिक्योरिटी के अलावा कार्बन चेंबर में रखना पड़ता है, जिसमें प्लाज्मा की ज़रूरत पड़ती है और इसके चैंबर में ऊर्जा और दबाव रखना पड़ता है, जिसके लिए बहुत ख़र्चा आता है। पर नक़ली डायमंड को न चोरी का बहुत डर है और न उसे कार्बन चेंबर और उसमें लगने वाले ख़र्च की ज़रूरत होती है। इतने पर भी नक़ली डायमंड असली डायमंड से ज़्यादा चमकदार हो सकता है, इतना चमकदार कि छोटे-मोटे पारखी भी धोखा खा जाएँ। असली डायमंड और नक़ली डायमंड की क़ीमत में 20 गुना अंतर होता है; पर डायमंड की कालाबाज़ारी करने वाले कई बार नक़ली डायमंड को असली डायमंड की क़ीमत में बेच देते हैं। पिछले कुछ वर्षों में नक़ली डायमंड का कारोबार इतना बढ़ा है कि असली डायमंड की क़ीमतों में 25 प्रतिशत से ज़्यादा की गिरावट आ गयी है। खुले बाज़ारों में ही नक़ली डायमंड की बिक्री 40 प्रतिशत हो रही है। दूसरे नक़ली जेम्स का बाज़ार तो 65 प्रतिशत तक पहुँच चुका है। कालाबाज़ारी में भी नक़ली डायमंड और जेम्स असली डायमंड और जेम्स को टक्कर दे रहे हैं।
दुनिया का सबसे बड़ा हीरा बोर्स भारत डायमंड बोर्स (बीडीबी) है. जो कि मुंबई के बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स में है। अकेला बीडीबी देश के डायमंड निर्यात बाज़ार का 98 प्रतिशत डायमंड निर्यात करता है। दूसरा डायमंड निर्यात का केंद्र गुजरात के सूरत में स्थित सूरत डायमंड बोर्स (एसडीबी) है। पर दोनों ही डायमंड निर्यात केंद्रों पर दलालों, ठगों, माफ़िया और अपराधियों का जमावड़ा रहता है और ये लोग सरकार, क़ानून और पुलिस से डरे बिना डायमंड की कालाबाज़ारी कर रहे हैं। हमारे गुप्त सूत्रों से पता चला है कि बीडीबी और एसडीबी से 30 प्रतिशत कालाबाज़ारी डायमंड की होती है और कई सफ़ेदपोश इस खेल में शामिल हैं। इन बाज़ारों पर अंडरवर्ल्ड से लेकर मुंबई के बड़े-बड़े कारोबारी और माफ़िया जुड़े हुए हैं। अगर ईमानदार अफ़सर सही जाँच करें, तो कई भोले-भाले चेहरों के नक़ाब उतर जाएँगे और क़ानूनी तरीक़े से डायमंड व्यापार बढ़ जाएगा, जिससे सरकारी ख़ज़ाने में और पैसा आएगा, जिससे जनता की सेवा हो सकेगी।
दुनिया का सबसे तेज़ी से बढ़ने वाला बाज़ार भारत में ही डायमंड का है; पर कुछ लोग अच्छे डायमंड कारोबारी का नक़ाब ओढ़कर न सिर्फ़ नक़ली डायमंड का धंधा कर रहे हैं, बल्कि डायमंड की कालाबाज़ारी भी बड़े पैमाने पर धड़ल्ले से कर रहे हैं। 2021 में डायमंड के गहनों का बाज़ार सिर्फ़ हमारे देश में 4.6 बिलियन डॉलर का हुआ था। पर 2022 में इसमें आठ प्रतिशत का उछाल आया और डायमंड से सजे गहनों की बिक्री 5 बिलियन डॉलर से ज़्यादा हुई। 2022 में ख़ाली डायमंड का बाज़ार 65.8 बिलियन डॉलर का रहा। डायमंड कारोबारियों और सरकार का अनुमान है कि 2027 तक भारतीय डायमंड का कारोबार 85.8 बिलियन डॉलर तक पहुँच सकता है। पॉलिश किये हुए तैयार डायमंड की 80 प्रतिशत आपूर्ति अकेले सूरत से होती है। इस अकेले शहर में गुजरात के 90 प्रतिशत डायमंड की कटिंग और पॉलिश होती है। डायमंड की पैदाइश की बात करें, तो मध्य प्रदेश के पन्ना शहर को हीरों का शहर कहा जाता है। हमें गर्व है कि कोहिनूर हमारे देश का है और जब तक ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका में डायमंड नहीं मिलते थे, तब तक भारत ही दुनिया का अकेला डायमंड पैदा करने वाला देश रहा। आज हमारा देश डायमंड का देश और सोने की चिड़िया भले ही नहीं रहा, जिसके पीछे भी बड़ी लूट ही है; पर हम और हमारी सरकारें ईमानदारी से पेश आएँ, तो भारत सोने और हीरे की चिड़िया फिर से बन सकता है।
पर कई लोग ऐसा नहीं चाहते और भारत की छवि को कालाबाज़ारी से कलंकित करते रहते हैं। ऐसे देशद्रोही अपराधियों को तो सलाखों के पीछे होना ही चाहिए; पर कई अपराधी कारोबारी और ईमानदार अमीरों के भेष में हैं, तो कई अपराधी खादी में लिपटे हैं। बिना ख़ुफ़िया बड़ी जाँच के इन सबकी पहचान कर पाना संभव ही नहीं है। अब देखिए ना! नीरव मोदी जैसे कई डायमंड व्यापारी तो देश का पैसा लेकर भी विदेश भाग चुके हैं, जो विदेशों से कालाबाज़ारी का खेल भी कर रहे हैं। डायमंड और जेम्स की कालाबाज़ारी का जाल गुजरात से लेकर मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के बाज़ारों में पनप रहा है। छत्तीसगढ़, झारखण्ड में कोयले की खदानों से हीरे निकलते हैं, तो मध्य प्रदेश में छत्रसाल से पन्ना निकलता है। पर इनकी न$क्क़ाशी, पॉलिश और दुनिया के बाज़ारों में इन्हें पहुँचाने का काम सबसे ज़्यादा गुजरात के सूरत से होता है। असली डायमंड और जेम्स की कालाबाज़ारी के अलावा नक़ली डायमंड और जेम्स की कालाबाज़ारी भी कई बड़े बाज़ारों से होती है। शासन-प्रशासन में बेईमानों की तादाद इतनी बड़ी है कि बाज़ारों में दलालों, ठगों, तस्करों, माफ़ियाओं और गुंडों के हिसाब से सब कुछ तय होता है। डायमंड और जेम्स की नीलामी भी इन बाज़ारों में इन सबकी मनमर्ज़ी से हेती है। कालाबाज़ारी में डायमंड और जेम्स का बाज़ार बहुत बड़ा हो चुका है। एक तरफ़ कालाबाज़ारी से अपराधी लोग, भ्रष्ट अधिकारी और इन सबके सरगना नेता मोटी कमायी करके अपनी तिजौरियाँ भर रहे हैं, तो दूसरी तरफ़ इस कालाबाज़ारी से सरकार को राजस्व का बहुत बड़ा नुक़सान हर साल होता है। हैरानी इस बात की है कि हमारी सरकाार का इस तरफ़ ध्यान ही नहीं है। होगा भी कैसे? सरकार कोई ईमानदार डिटेक्टिव रोबोट तो है नहीं, जो सिर्फ़ बटन दबाने से बिना किसी भेदभाव के कालाबाज़ारियों का सफ़ाया कर देगी। उसे भी तो खादी पहने हुए नक़ली चेहरों पर भोली-भाली सूरत का नक़ाब ओढ़ने वाले मासूम दिखने वाले समाजसेवी और देशभक्त जैसे दिखने वाले चेहरों वाले ही चलाते हैं। ये सफ़ेदपोश अगर काले धंधे वालों से मिलकर चलते हैं, तो काली कमायी में मोटी हिस्सेदारी इन्हें मिलती है और अगर ये उनसे मिलकर नहीं चलेंगे, तो एक ही शर्त पर ज़िन्दा रहेंगे कि बिना कार्रवाई के ख़ामोशी से बैठे रहें। ऐसा न करने पर क्या होगा? यह बताने की ज़रूरत नहीं है; क्योंकि यह सब जानते हैं।
हम आम लोग इसी में ख़ुश रह लेते हैं कि कोहिनूर हमारा है और अंग्रेज इसे चुराकर ले गये। पर हमें यह नहीं मालूम पड़ता है कि हमारी नाक के नीचे कई ऐसे चोर हैं, जो हमें ठगने के लिए कोहिनूर की चमक जैसा मायाजाल बिछाकर बैठे हैं। डायमंड और जेम्स लेने की इच्छा रखने वाले इनके जाल में आसानी से फँस जाते हैं। बचके रहना रे बाबा! कहीं आप भी इन कालाबाज़ारियों के जाल में न फँस जाना।
– क्या अब अमेरिका से भारत के खट्टे-मीठे रिश्तों में तनाव की गुंजाइश होगी कम ?
इंट्रो-अमेरिका में 47वें राष्ट्रपति के रूप में एक कार्यकाल के अंतर के बाद डोनाल्ड ट्रम्प दोबारा विराजमान होने वाले हैं। भारत में हमेशा की तरह अमेरिका में राष्ट्रपति चुने जाने को लेकर ख़ासी चर्चा है। मोदी समर्थक इसे भारत के लिए बहुत अच्छा मान रहे हैं, तो विरोधी अमेरिका के पुराने रवैये के उदाहरण देकर इसका कोई फ़ायदा नहीं बता रहे हैं। हालाँकि ट्रम्प के व्हाइट हाउस में वापस आने से भारत को नये अवसर मिल सकते हैं; लेकिन उभरती विश्व व्यवस्था में अपनी उचित भूमिका को फिर से स्थापित करने के लिए उसे अपनी रणनीतियों में बदलाव करने की आवश्यकता होगी। अमेरिका और भारत के सम्बन्धों और अब नयी उम्मीदों के अलावा ट्रम्प और मोदी के रिश्तों के बारे में बता रहे हैं गोपाल मिश्रा :-
नवंबर, 2016 में डोनाल्ड ट्रम्प पहली बार अमेरिका का चुनाव जीते। 20 जनवरी, 2017 को डोनाल्ड ट्रम्प अमेरिका के राष्ट्रपति बने और 20 जनवरी, 2021 तक उन्होंने पूर्ण कार्यकाल सँभाला। लेकिन नवंबर, 2020 में दूसरी बार चुनाव मैदान में उन्हें जो बाइडेन ने पटखनी दे दी और वह हार गये। लिहाज़ा उन्होंने अमेरिका की सत्ता 20 जनवरी, 2021 को जो बाइडेन को हस्तांतरित कर दी। अब 06 नवंबर, 2024 को ट्रंप ने उपराष्ट्रपति कमला हैरिस को हराकर फिर से जीत लिया और वह 20 जनवरी, 2025 को अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के रूप में व्हाइटहाउस पर फिर से क़ब्ज़ा करेंगे। कुछ लोगों को याद होगा कि डोनाल्ड ट्रम्प ने सन् 2014 से सन् 2015 तक रियलिटी टीवी शो ‘द अपरेंटिस’ और ‘द सेलेब्रिटी अपरेंटिस’ की मेज़बानी की थी। उन्होंने फ़िल्मों, टीवी धारावाहिकों और विभिन्न विज्ञापन फ़िल्मों में दज़र्नों कैमियो भूमिकाएँ भी की हैं। सन् 1990 में ‘घोस्ट्स कैन नॉट डू इट’ के लिए 11वें गोल्डन रास्पबेरी पुरस्कार में सबसे ख़राब सहायक अभिनेता का पुरस्कार जीतने के अलावा 2019 में उन्होंने डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म ‘डेथ ऑफ अ नेशन एंड फॉरेनहाइट 11/9’ में अपनी भूमिका के लिए 39वें गोल्डन रास्पबेरी अवार्ड्स में सबसे ख़राब अभिनेता और सबसे ख़राब स्क्रीन कॉम्बो का पुरस्कार जीता। उनके एक टेलीविजन धारावाहिक में एक संवाद है, जिसमें कहा गया है- ‘आपको नौकरी से निकाल दिया गया है।’ जो अमेरिका में नौकरी बाज़ारों की नाज़ुक स्थिति को दर्शाता है। यह तब और भी प्रासंगिक हो जाता है, जब अमेरिका के सैन्य-औद्योगिक परिसर के भारी वित्तीय समर्थन के बावजूद राष्ट्रपति पद का सपना देख रही कमला हैरिस को 06 नवंबर को चुनाव में अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा।
अमेरिका का चुनाव सिर्फ़ वहाँ एक नये राष्ट्रपति के चयन करने वाला नहीं है, बल्कि दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश का नेतृत्व करने के लिए मतदान है और पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के लिए एक बार फिर से चुनाव अवसरों और चुनौतियों का एक नया सेट पेश इस चुनाव में हुआ। अमेरिका का चुनाव कभी-कभी प्रत्यक्ष या अमूमन अप्रत्यक्ष रूप से महाद्वीपों के आसपास के देशों को प्रभावित और प्रभावित करता है। डोनाल्ड ट्रम्प के राजनीतिक वर्चस्व को उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों द्वारा मान्यता और स्थापित किये जाने के साथ हाल ही में संपन्न चुनाव में थिएटर या शो की दुनिया का मसालेदार स्वाद भी है कि वह कई अलग कामों से जुड़े रहे हैं। उनमें से एक में सामान्य कॉर्पोरेट विस्मयादिबोधक- ‘आपको निकाल दिया गया है!’ याद किया जा रहा है। अमेरिका में हाल ही में हुए कड़े मुक़ाबले वाले चुनाव की शुरुआती प्रतिक्रियाओं ने न केवल घरेलू अमेरिकी राजनीति में सदमे की लहर पैदा कर दी है, बल्कि रूस और चीन सहित प्रमुख विश्व-शक्तियों द्वारा भी इस पर ध्यान केंद्रित किया गया। उनकी प्रतिक्रियाएँ अलग-अलग थीं, या तो दबी हुई थीं, या अपेक्षा से अधिक सतर्कता वाली थीं। इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की ने भी ट्रम्प को उनकी जीत के लिए बधाई दी है। दिलचस्प बात यह है कि नेतन्याहू को अक्टूबर के आख़िरी सप्ताह में कहा गया था कि उनके प्रशासन के उद्घाटन से पहले ग़ाज़ा संघर्ष समाप्त होना चाहिए और जेलेंस्की भी इस तथ्य से काफ़ी परिचित हैं कि ट्रम्प प्रशासन अब उनके देश को समर्थन नहीं देगा।
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव प्रक्रिया कुछ हद तक जटिल है; लेकिन इसने दूर-दराज़ के देशों में इतना ध्यान आकर्षित किया है कि भारत में भी अनजान लोगों को पता है कि लाल और नीले राज्य क्रमश: अमेरिकी राजनीतिक दल, रिपब्लिकन और डेमोक्रेट क्या प्रतिनिधित्व करते हैं? इसी तरह वे जानते हैं कि बैंगनी रंग के रूप में वर्णित राज्य वास्तव में स्विंग स्टेट्स या युद्ध के मैदान वाले राज्य हैं। अमेरिका के 50 राज्यों में से सात में से मिशिगन, विस्कॉन्सिन और पेंसिल्वेनिया जैसे इन स्विंग राज्यों में मतदाताओं की बदलती प्राथमिकताएँ उम्मीदवार की संभावनाओं को प्रभावित करती हैं। डेमोक्रेटिक पार्टी की कमला हैरिस एक मज़बूत उम्मीदवार के रूप में दिखायी देने के बावजूद निर्वाचक मंडल में केवल 226 वोट ही हासिल कर सकीं, जबकि ट्रम्प ने अपना बहुमत सुरक्षित करते हुए 270 का आँकड़ा पार कर लिया और अंतत: अंतिम टैली में 295 वोट प्राप्त किये।
दोबारा बनें रणनीतियाँ
भारत के पास अब वाशिंगटन में बहुत अधिक मैत्रीपूर्ण शासन है। भारत को विभिन्न मुद्दों, विशेष रूप से आर्थिक और रणनीतिक मामलों के प्रमुख क्षेत्रों में अपने कमज़ोर दृष्टिकोण की समीक्षा करने की आवश्यकता है। यह सर्वविदित है कि भारत के सुखद उष्णकटिबंधीय वातावरण का हिस्सा होने के कारण भारतीयों में आलस्य की प्रवृत्ति होती है। दूसरे शब्दों में, भारत को व्हाइट हाउस में एक मिलनसार राष्ट्रपति के साथ गहरी नींद में सोने के लालच से बचना चाहिए। जाने-माने रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, ट्रम्प को लोकतांत्रिक दुनिया का एक मज़बूत भागीदार बनने के लिए अपनी रणनीतियों और प्रयासों को फिर से तैयार करना होगा; विशेष रूप से उनके विनिर्माण प्रणालियों और उनके तत्काल पड़ोस में रणनीतिक प्रयासों में उल्लेखनीय बदलाव के संदर्भ में।
वह इशारे में बताते हैं कि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि हाल के वर्षों में विभिन्न प्रमुख और रणनीतिक क्षेत्रों में पर्याप्त लाभ के लिए ज़ोर देने के बजाय अनावश्यक बयानबाज़ी पर अधिक ज़ोर दिया जा रहा है; शायद केवल भारतीय नेतृत्व को मर्दाना रूप देने के लिए। नई दिल्ली के जानकार वर्ग में यह महसूस किया जा रहा है कि नये अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ व्यवहार करते समय यह बहु-प्रचारित दृष्टिकोण अनुत्पादक साबित हो सकता है।
इस संदर्भ में शायद यह सुझाव दिया जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले वर्तमान भारत को राष्ट्रपति जो बाइडेन के कार्यकाल की तुलना में कहीं अधिक परिणामोन्मुख बनने का अवसर मिलेगा। बाइडेन के अमेरिकी शासन से बाहर होने के बाद डोनाल्ड ट्रम्प की दूसरी पारी औपचारिक रूप से अगले दो महीनों में व्हाइट हाउस में शुरू होगी। लेकिन परिवर्तन, विशेष रूप से संघर्षों को समाप्त करने पर ध्यान केंद्रित करने की प्रक्रिया, इस अवस्था परिवर्तन-काल के दौरान देखी जाने की उम्मीद है।
इस ऐतिहासिक परिवर्तन के दौरान भारतीयों को एशिया में सबसे भरोसेमंद सहयोगी के रूप में अपनी भूमिका में ट्रम्प द्वारा ज़ोर दी गयी नयी उभरती विश्व व्यवस्था में पारस्परिक रूप से सार्थक, लाभकारी योगदान के लिए ख़ुद को फिर से स्थापित और पुनर्जीवित करना होगा। कई लोगों के लिए नई दिल्ली के मंदारिनों के लिए निवर्तमान शासन के दौरान अमेरिकी सत्ता संरचना में प्रमुख पदों पर बैठे भोले-भाले लोगों के साथ व्यवहार करना शायद आसान था। इसमें उनका एक वर्ग पश्चिम के पुराने औपनिवेशिक एजेंडे की पहचान करना शामिल था, जैसे बांग्लादेश में कट्टरपंथी इस्लाम को फिर से स्थापित करना या ईरान में पादरी शासन को चुनौती देने के लिए अनिच्छुक होना। बाइडेन शासन के समापन के अंतिम शिलालेख लिखे जाने से पहले भारतीयों को न केवल अमेरिकी प्रशासन से निपटने के लिए एक नयी कहानी बुननी होगी, बल्कि उन्हें एक नये निवेश के अनुकूल माहौल को फिर से स्थापित करना होगा। यह ध्यान देने योग्य है कि भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के 10 साल के कार्यकाल के बाद मोदी शासन ने अर्थ-व्यवस्था पर कोई ख़ास ध्यान नहीं दिया है। बजाय इसके कि कर (टैक्स) और पुलिस अधिकारियों को अक्सर राजनीतिक हितों की पूर्ति के लिए तैनात किया जाता रहा है।
राजनीतिक परिदृश्य पर ट्रम्प के आगमन के साथ यदि मोदी सरकार मित्रवत् शासन से लाभान्वित होने की इच्छुक है, तो उसे अंतत: भारतीय घरेलू प्रणालियों में आर्थिक सुधारों और पारदर्शिता की प्रक्रिया को बहाल करना होगा। मोदी सरकार के लिए यह बहाना बनाना मुश्किल होगा कि समापन की ओर जा रहे वर्तमान बाइडेन प्रशासन की उदासीनता के कारण वह उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर सकी। उसे कुछ ज्ञात और अज्ञात आँकड़ों के हवाले से अपने दावों को छुपाने की बार-बार की जाने वाली कोशिशें छोड़नी होंगी। हाल ही में किसी भी भारतीय बाज़ार का दौरा करने से पता चलेगा कि पिछले 10 वर्षों से भारत लगातार दीपावली की रोशनी के लिए खिलौने और रोशनी का आयात कर रहा है और यहाँ तक कि गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियाँ भी चीन से आयात की जा रही हैं। इस प्रकार अनुमान है कि इस अवधि के दौरान उसने अपने उत्तरी पड़ोसी के साथ बारहमासी व्यापार घाटे को झेलते हुए चीनी अर्थ-व्यवस्था में लगभग 1,200 बिलियन अमेरिकी डॉलर का योगदान दिया है।
उम्मीद है कि अगले दो महीने वैश्विक रणनीतिक मुद्दों और व्यापार नीतियों में अहम भूमिका निभाने वाली ताक़तों के लिए बेहद अहम रहने वाले हैं। यह आश्चर्य की बात नहीं है कि अनिच्छुक चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अंतत: नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ट्रम्प का स्वागत किया। एक सतर्क संदेश में उन्होंने आशा व्यक्त की कि दोनों देश अंतत: व्यापार युद्ध, ताइवान के भविष्य और दक्षिण चीन सागर से सम्बन्धित रणनीतिक मुद्दों सहित पेचीदा मुद्दों पर बातचीत के लिए एक मज़बूत तंत्र विकसित करने में सफल होंगे। इस बीच यूक्रेन से हथियारों और गोला-बारूद के ऑर्डर अचानक रद्द होने से जर्मनी को आर्थिक नुक़सान उठाना पड़ रहा है। हालाँकि यह उम्मीद की जाती है कि यदि पूर्वी यूरोपीय युद्ध के मोर्चे पर युद्ध-विराम शुरू होता है, तो यह वित्तीय नुक़सान अस्थायी हो सकता है। यदि शान्ति की ताक़तें आख़िरकार सक्रिय हो गयीं, तो यूरोपीय संघ के अन्य सदस्यों को भी कुछ राहत मिल सकती है।
दोबारा अमेरिकी राजनीति में अवतरित हुए ट्रम्प के साथ पश्चिम में अमेरिकी सहयोगियों को वापस जीतने की उम्मीद है। ट्रम्प के पहले कार्यकाल के दौरान वे इस बात से नाख़ुश थे कि ट्रम्प ने उन्हें नाटो के तहत सुरक्षा व्यवस्था की उच्च लागत को माफ़ करने के लिए कहा था। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध ने उन्हें दण्डित किया है। वे अब सुरक्षा, स्वतंत्रता और मुक्त व्यापार के लिए मिलकर काम करने को तैयार हैं।
भारत ने अपना काम कर दिया
यदि ट्रम्प के वैश्विक एजेंडे को ठीक से नहीं समझा गया, तो नये अमेरिकी प्रशासन के भारत पर संभावित प्रभाव के बारे में चर्चा निश्चित ही रहेगी। यह समझाया जा सकता है कि अमेरिका को अत्याधुनिक तकनीकों का समन्वय करके अपनी आर्थिक शक्ति फिर से हासिल करनी है। अपने एक चुनावी भाषण में ट्रम्प ने उन भारतीयों को जॉब वीजा देने की बात कही थी, जो अमेरिका में पढ़ाई के बाद अपने देश में करोड़पति बन जाते हैं। दूसरे शब्दों में इसका मतलब यह है कि नई दिल्ली को अपनी प्रौद्योगिकियों को अद्यतन करके भारत को पुन: स्थापित करने के लिए ओवरटाइम काम करना होगा और अमेरिका के नेतृत्व वाले पश्चिम के साथ व्यापार और व्यापार लेन-देन में पारदर्शिता भी लानी होगी। हालाँकि साउथ ब्लॉक, जिसमें पीएमओ, रक्षा और विदेशी मामले हैं; और नॉर्थ ब्लॉक, जो गृह और वित्त मंत्रालयों का मुख्यालय है; दोनों के अंदरूनी सूत्र मानते हैं कि यह वास्तव में एक कठिन काम हो सकता है; लेकिन असंभव नहीं।
उम्मीद है कि वाशिंगटन में एक मैत्रीपूर्ण प्रशासन भारत को क्षेत्र में अपने सहयोगियों और दोस्तों को फिर से जीतने में मदद करेगा। हाल के वर्षों में भारत भी बिडेन की चीन समर्थक नीति के तहत होशियार रहा है। शायद अपने बेटे, हंटर और अन्य अमेरिकी निवेशकों सहित अपने परिवार के वित्तीय दबाव के कारण वह ड्रैगन से निपटने के लिए कोई दूरगामी राजनीतिक रणनीति तैयार करने में असमर्थ थे।
हालाँकि वाशिंगटन में एक मित्रवत् राष्ट्रपति के साथ व्यवहार करने के लिए भारत को काफ़ी मंथन करना है। शर्मनाक और निराधार आरोपों से घिरे ट्रम्प के सत्ता से चार साल के निर्वासन ने उन्हें एक अधिक परिपक्व, मौसम-पीड़ित राजनेता में बदल दिया है। अब एक राजनेता की भूमिका में क़दम रखने के लिए वह तैयार हैं।
हाल के महीनों के दौरान उनके चुनाव अभियानों और उनके देशवासियों, सहयोगियों और सहयोगियों के लिए टिप्पणियों का परिणाम यह रहा है कि उनकी सोच है- ‘हमें एक साथ डूबना और तैरना है।’ संघर्षों के लिए अब कोई झूठी उम्मीदें और एजेंडा नहीं, और अमेरिकी नागरिकों को अब दूसरों के लिए ख़ून नहीं बहाना पड़ेगा; चाहे वह अफ़ग़ानिस्तान हो या यूक्रेन। वास्तव में जैसा कि कई रक्षा और विदेशी मामलों के विशेषज्ञों का कहना है कि व्हाइट हाउस में ट्रम्प की उपस्थिति से भारत को फ़ायदा हो सकता है। लेकिन उसे अपनी वैध भूमिका को फिर से स्थापित करने के लिए अपनी रणनीतियों को नया रूप देना होगा और नये सिरे से पुनर्गठन करना होगा।
जब चुनाव नतीजे आने शुरू हुए, तो वाशिंगटन में कमला हैरिस का चुनाव कार्यालय अनिच्छुक था। लेकिन बाद में उन्होंने न केवल एक लोकतांत्रिक नेता की मर्यादा बनाए रखी, बल्कि ट्रम्प को उनकी चुनावी जीत के लिए बधाई भी दी। हालाँकि हार्वर्ड विश्वविद्यालय में एक हाई प्रोफाइल सभा में उन्होंने कहा कि एक साधारण पृष्ठभूमि से आने के बावजूद उन्होंने कभी इसकी उम्मीद नहीं की थी कि वह अमेरिकी प्रतिष्ठान में इतने ऊँचे पद पर होंगी और राष्ट्रपति पद के लिए भी चुनाव लड़ सकती हैं।
इस बीच ऐसा प्रतीत होता है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के लिए उदार वित्त पोषण ने अमेरिकी संसाधनों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है, जिसके परिणामस्वरूप तूफ़ान पीड़ितों को दी जाने वाली राहत प्रभावित हुई है। अमेरिका में आये राजनीतिक तूफ़ान के अलावा सितंबर, अक्टूबर और नवंबर के महीनों के दौरान अमेरिका की एक बड़ी आबादी तूफ़ान से पीड़ित हुई है। कमला हैरिस सहित शीर्ष अधिकारियों के आश्वासन के बावजूद पीड़ित जीवित रहने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
दो तूफ़ान- हेलेन और मिल्टन पहले ही सितंबर और अक्टूबर में मैक्सिकन खाड़ी से टकरा चुके हैं, जिससे बड़े पैमाने पर नुक़सान हुआ है और नये चक्रवात के किसी भी समय तटीय क्षेत्रों में आने की आशंका है। नवंबर में इसके मैक्सिको की खाड़ी को पार करने की संभावना है। संयुक्त राज्य अमेरिका में पहले ही पाँच तूफ़ान दस्तक दे चुके हैं। अपने व्यक्तिगत प्रयासों के बावजूद कमला हैरिस को संघीय आपातकालीन प्रबंधन एजेंसी से चक्रवात पीड़ितों के लिए प्रति परिवार केवल 750 अमेरिकी डॉलर मिल सके, जिसने बताया है कि उसके पास हज़ारों बेघर भूखे पीड़ितों के लिए पर्याप्त धन नहीं है।
मेलानिया ट्रम्प, जिन्होंने 2017 से 2021 तक प्रथम महिला के रूप में कार्य किया; ने सोशल मीडिया पर एक बयान जारी किया है- ‘हम अपने गणतंत्र के दिल-स्वतंत्रता की रक्षा करेंगे। मैं आशा करती हूँ कि हमारे देश के नागरिक एक-दूसरे के प्रति प्रतिबद्धता में फिर से शामिल होंगे और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए विचारधारा से ऊपर उठेंगे। अमेरिकी ऊर्जा, कौशल और पहल हमारे देश को हमेशा के लिए आगे बढ़ाने के लिए हमारे सर्वोत्तम दिमाग़ों को एक साथ लाएगी।’
ट्रम्प के मंत्रिमंडल में कौन-कौन?
राष्ट्रपति पद की शपथ लेने से पहले ही डोनाल्ड ट्रंप ने अपने मंत्रिमंडल में शामिल करने लिए अधिकांश नामों की घोषणा कर दी है। उनकी दूसरी पारी के नये मंत्रिमंडल में एलन मस्क से लेकर विवेक रामास्वामी जैसे नाम भी शामिल हैं। इन दोनों को डिपोर्टमेंट और गवर्मनमेंट एफिशिएंसी का प्रमुख बनाया गया है। विवेक कई सरकारी विभागों और एजेंसियों को बंद करने के पक्ष में रहे हैं। इसके अलावा डोनाल्ड ट्रम्प ने फॉक्स न्यूज के एंकर पीट हेगसेग को रक्षा मंत्री, स्टीवन विटकॉफ को मिड ईस्ट का प्रतिनिधि बनाने का मन बनाया है, तो सुसी विल्स को भी अपने मंत्रिमंडल में शामिल करने का ऐलान कर दिया है। सुसी विल्स अमेरिकी इतिहास में पहली महिला चीफ-ऑफ-स्टाफ भी बन गयी हैं।
इसके अलावा ट्रम्प ने फ्लोरिडा के सीनेटर मार्को रुबियो को विदेश मंत्री, सांसद माइक वाल्ट्ज को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बनाने का मन बनाया है। दोनों ही भारत-अमेरिका सम्बन्धों के समर्थक हैं। भारत सरकार के समर्थक मान रहे हैं कि रुबियो और वॉल्ट्ज को अपने मंत्रिमंडल में शामिल करके ट्रम्प ने भारत और अमेरिका के सम्बन्धों को और मज़बूत करने की गारंटी दी है। लेकिन उन्हें नहीं भूलना चाहिए कि ट्रम्प-2.0 के मंत्रिमंडल में कई ऐसे नाम भी शामिल हैं, जो भारत हितों के प्रति ज़रा भी सकारात्मक नहीं हैं। ख़बरें हैं कि ट्रम्प ने अपनी सहयोगी एलिस स्टेफनिक को संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजदूत के रूप में भेजने की पेशकश की है। ट्रम्प ने टॉम होमन को अमेरिका की सीमाओं और अवैध अप्रवासियों के निर्वासन का प्रभारी, रॉबर्ट एफ. कैनेडी को स्वास्थ्य मामलों, पूर्व कांग्रेसमैन ली जेल्डिन को न्यूयॉर्क स्टेट का एनवायरनमेंट प्रोटेक्शन एजेंसी के एडमिनिस्ट्रेटर, दक्षिण डकोटा की गवर्नर क्रिस्टी नोएम को गृह सुरक्षा सचिव चुना है। ट्रम्प के प्रमुख आर्थिक सलाहकार बेसेंट को ट्रेजरी सचिव की ज़िम्मेदारी मिल सकती है। ट्रम्प के मंत्रिमंडल में निक्की हेली और पोम्पिओ को फ़िलहाल कोई जगह नहीं मिली है।
क्या कर सम्बन्धी मुद्दे पर चलेंगे ट्रम्प?
एक अमेरिकी मीडिया चैनल के मुताबिक, नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अमेरिकी नागरिकों पर आयकर ख़त्म करने का प्रस्ताव रखा है। उन्होंने आश्वासन दिया है कि वह जल्द ही नागरिकों को परेशान करने वाली इस क्रूर प्रणाली को समाप्त करने के लिए एक टैरिफ योजना की घोषणा करेंगे। दुनिया के सबसे प्रशंसित अरबपतियों में से एक एलन मस्क से उम्मीद की जाती है कि वह विशाल सरकारी तंत्र में अतिरेक को ख़त्म करने के साथ-साथ सरकारी संस्थानों में फ़िज़ूलख़र्ची को रोकने के युग की शुरुआत करेंगे। जैसा कि ट्रम्प ने वादा किया था कि वह जल्द ही डॉज (डीओडीजीएल) या सरकारी दक्षता के एक नये विभाग का नेतृत्व करेंगे। भारत की तरह संयुक्त राज्य अमेरिका में भी सरकारी कार्यालयों के अनावश्यक विस्तार ने न केवल सरकार के कामकाज को धीमा कर दिया है, बल्कि राज्य की अर्थ-व्यवस्था पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाला है।
भारत में लगातार प्रधानमंत्रियों के आश्वासनों के बावजूद राजनेताओं और सिविल सेवकों के बीच साँठगाँठ ने प्रशासन की दक्षता से समझौता किया है। भारतीय नौकरशाही एक ऑक्टोपस की तरह विस्तारित हो गयी है, जिसने जीवन के हर क्षेत्र में- विशेष रूप से आधुनिक कृषि, भारतीय उद्योग, अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी और विश्व स्तरीय शिक्षा के विकास में भारतीय पहल को लगभग दबा दिया है।
अमेरिका में राष्ट्रपति पद के चुनाव में डोनाल्ड ट्रम्प की जीत के साथ भारत सहित दुनिया एक ऐसे व्यक्ति की वापसी के लिए तैयार है, जो अप्रत्याशितता पर पनपता है। भारत के लिए ट्रम्प के साथ सम्बन्धों को प्रबंधित करना आसान नहीं है। एक ओर अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में ट्रम्प अक्सर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा करते थे, यहाँ तक कि मोदी को ‘मेरा अच्छा दोस्त’ भी कहते थे। दूसरी ओर उनके कार्यों और बयानबाज़ी ने बार-बार भारत को कम आकर्षक रोशनी में पेश किया है। ‘तहलका’ के लिए वरिष्ठ पत्रकार गोपाल मिश्रा की आवरण कथा ‘भारत के लिए ट्रम्प-2.0 के मायने’ में विश्लेषण किया गया है कि व्हाइट हाउस में ट्रम्प की वापसी के साथ भारत कैसे नये अवसर पा सकता है। लेकिन उभरती विश्व-व्यवस्था में अपनी सही भूमिका को फिर से स्थापित करने के लिए उसे अपनी रणनीतियों में बदलाव करने की आवश्यकता होगी।
अमेरिका और भारत के रिश्तों को लेकर एक वर्ग में उत्साह इस बात से है कि ट्रम्प के साथ प्रधानमंत्री मोदी की दोस्ती की चर्चा है। लेकिन अमेरिका ने स्वयं को हमेशा कूटनीतिक रणनीतियों के खोल में रखा है, जिसे समझना इतना आसान नहीं है। पिछली बार प्रधानमंत्री मोदी ने ट्रम्प के लिए ‘अबकी बार ट्रम्प सरकार’ नारा दिया था। इस बार ट्रम्प की वापसी भारत के साथ उनके रिश्तों के साथ-साथ वैश्विक राजनीति में अमेरिका की भूमिका को स्पष्ट करेगी।
हालाँकि विडंबना यह है कि पिछली बार के अपने शासन में ट्रम्प ने अपने अभियान के दौरान भारत की व्यापार प्रथाओं, विशेष रूप से अमेरिकी वस्तुओं पर इसके भारी मूल्य की आलोचना की थी, और अमेरिकी धन को बढ़ाने के लिए ‘जैसे को तैसा’ नीति की चेतावनी दी थी। इस बार संभवत: मोदी का ‘मेक इन इंडिया’ अभियान ट्रम्प के ‘अमेरिका फर्स्ट’ एजेंडे से टकरा सकता है। क्योंकि मोदी का लक्ष्य भारतीय विनिर्माण को बढ़ावा देना और विदेशी निवेश को आकर्षित करना है, जबकि ट्रम्प की संरक्षणवादी नीतियाँ इन महत्त्वाकांक्षाओं पर अंकुश लगा सकती हैं; ख़ासकर उन क्षेत्रों में, जहाँ अमेरिकी हित हावी हैं। आशावादियों को उम्मीद है कि कूटनीतिक मोर्चे पर भारत को उम्मीद होगी कि ट्रम्प के साथ मोदी का तालमेल होने से संभावित क्षेत्रों, जैसे कि गुरपतवंत सिंह पन्नुन और सम्बन्धित मामलों पर चल रहे विवाद को सुलझा सकता है। हालाँकि ट्रम्प के साथ व्यवहार करते समय अप्रत्याशितता ही एकमात्र स्थिरांक है।
कनाडा के घटनाक्रम पर भी भारत क़रीब से नज़र रखेगा, जहाँ ट्रूडो सरकार के भारत-विरोधी तत्त्वों से निपटने के तरीक़े ने नयी दिल्ली के साथ सम्बन्धों में तनाव पैदा कर दिया है। ब्रैम्पटन (कनाडा) में हिन्दू सभा मन्दिर में हाल की हिंसा ने खालिस्तान समर्थक कार्यकर्ताओं और भारतीय समुदाय के बीच बढ़ते तनाव को संबोधित करने में कनाडाई सरकार की अक्षमता या अनिच्छा को उजागर किया। यह घटना भारत-कनाडा के सम्बन्धों की अनिश्चितता को रेखांकित करती है, जो सन् 2020 में खालिस्तान कार्यकर्ता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के बाद से बिगड़ रहे हैं। इन भारत-विरोधी ताक़तों के ख़िलाफ़ कड़ा रुख़ अपनाने में कनाडा की विफलता को कूटनीतिक विफलता के रूप में देखा जाता है।
ऐसे समय में जब कनाडा सिख अलगाववाद से सम्बन्धित आंतरिक विभाजन को प्रबंधित करने के लिए संघर्ष कर रहा है, भारत को उम्मीद रहेगी कि दूसरा ट्रम्प प्रशासन इस क्षेत्र में और अस्थिरता न फैलाए। स्थिति जटिल है, और ट्रम्प के साथ मोदी के रिश्ते कुछ कूटनीतिक लाभ प्रदान कर सकते हैं। लेकिन भारत को सतर्क रहना चाहिए। ट्रम्प की अप्रत्याशितता को देखते हुए नई दिल्ली को किसी भी स्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए। डोनाल्ड ट्रम्प की सत्ता में वापसी नि:संदेह भारत के लिए कई मोर्चों- व्यापार, कूटनीति और आव्रजन आदि पर चुनौतियाँ पैदा करेंगी। हालाँकि भारत को अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ मोदी के सम्बन्धों का लाभ उठाने के कुछ अवसर मिल सकते हैं; लेकिन ट्रम्प की नीतियों की अत्यधिक अप्रत्याशितता के कारण स्पष्ट रास्ता बनाना कठिन हो गया है।
राजनेता अथवा राजा वही है, जो राजनीति, कूटनीति और रणनीति में माहिर हो। जनता के अहित और अपने हितों को तवज्जो देने वाला, जनता को धर्म में उलझाने, बरगलाने और झूठे आश्वासन देने वाला राजनेता अथवा राजा नहीं हो सकता। ऐसा व्यक्ति भले ही सत्ता के शीर्ष पर आ जाए; लेकिन बौद्धिक स्तर पर उसे भाँड, विदूषक अथवा बहरूपिये से ज़्यादा कुछ नहीं माना जा सकता। ऐसे लोग किसी के सगे नहीं होते। ग़ैर-तो-ग़ैर, सगों के भी सगे नहीं होते। उन्हें सिवाय अपनी तारीफ़ों, अपनी तरक़्क़ी और अपनी ताक़त के कुछ अच्छा नहीं लगता। ऐसे लोग मनमौज़ी, मक्कार, महत्त्वाकांक्षी, अय्याश, अहमक, ऐबदार, धोखेबाज़, धंधेबाज़, धूर्त, विश्वासघाती, विकृत, विक्षिप्त, मुफ़्तख़ोर, मुस्टंडे, मौक़ापरस्त होते हैं। इन्हें देशद्रोही की श्रेणी में रखना चाहिए। लेकिन अधिकांश लोग ऐसे देशद्रोहियों को पलकों पर बैठाते हैं और उनके षड्यंत्रों में फँसकर पिसते रहते हैं।
दुनिया के ज़्यादातर विकासशील देश आज ऐसे ही देशद्रोहियों के चंगुल में फँसे हुए हैं। यही वजह है कि विकास के सपने ही इन देशों की जनता के हिस्से में आते हैं। बेकारी, बेरोज़गारी, बेअदबी, भुखमरी, आत्महत्या, हत्या, लूट, चोरी, ठगी, फिरौती, बलात्कार, दहशत, भ्रष्टाचार, मानवों से लेकर नशे तक की तस्करी और दूसरी तरह के अपराध ऐसे देशों का दुर्भाग्य बन चुके हैं। विडम्बना यह है कि ऐसे किसी देश में एक भी ढंग का राजनेता अच्छी स्थिति में नहीं है। अगर कोई ईमानदार और देश-प्रेमी व्यक्ति ग़लती से राजनीति में आ भी जाए, तो उसे दुर्योधन रूपी सत्ताधारी टिकने नहीं देते। यह सब जनता के अज्ञान और अल्पज्ञान के चलते ही हो रहा है। ऐसे अज्ञानी अशिक्षा, अज्ञान, लालच, चमचागीरी और स्वार्थ की उपज हैं।
भारत की क़रीब 2,142 साल की ग़ुलामी इसी का नतीजा है। यहाँ के इतिहास में बदलाव और मनगढ़ंत कहानियों ने लोगों की मूर्खता को और बढ़ाया है। आज भी ज़्यादातर लोग ग़ुलामी से ज़्यादा दूर नहीं हैं। उन्हें इसकी आदत पड़ चुकी है। धर्मों और झूठे आश्वासनों के झाँसे में आकर लोग आख़िरकार उन्हें ही बार-बार चुन लेते हैं, जो उन्हें लूटते रहते हैं। भारत में 2024 बड़े चुनावों का साल है। लोकसभा चुनाव के बाद चार राज्यों के विधानसभा चुनाव इसी साल में दर्ज होंगे। दो राज्यों- हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के चुनाव हो चुके हैं। महाराष्ट्र और झारखण्ड के चुनाव हो रहे हैं। अब चुनावों में जीत ताक़त, झूठे प्रचार-प्रसार, जनसभाओं, रैलियों और प्रलोभनों के सहारे तय हो रही है। ईवीएम भी इसमें एक अपवाद है, जिस पर विवाद ख़त्म नहीं हुआ है। जनता के लिए चुनाव अपने मनपसंद नेताओं और पार्टियों को चुनने का एक मौक़ा है। लेकिन चुनाव हमेशा जाति, धर्म, प्रलोभन, शराब, पैसा और जीत की मीडिया-बयार के आधार पर साधे जाते हैं। स्थिति यह है कि जनता का रुझान भी कोई मायने नहीं रखता।
प्रलोभन लोगों का गला रेतने के लिए उन्हें ठीक वैसे ही तैयार कर लेता है, जैसे किसी चिड़िया को जाल में फँसाने के लिए अनाज के दाने। जनता नहीं समझती कि कोई पार्टी जितना पैसा चुनावों में लुटाती है या लोगों पर तरह-तरह से चुनावों में ख़र्च करती है, वह पार्टी जीत के बाद उतनी ही ज़्यादा लूट मचाती है।
लोगों की विडम्बना यह है कि वे बार-बार धोखा पाकर भी नहीं सुधरते। उनकी स्थिति उस जुआरी जैसी है, जो जुएँ में हर रोज़ हारता रहता है, और हारने के बाद हर रोज़ तौबा करके भी जुआँ खेलना नहीं छोड़ता। असल में जनता को लुटने-पिटने की आदत हो चुकी है। आपस में झगड़ना और लूटने वालों के पैरों में नाक रगड़ना ही अब ज़्यादातर लोगों ने सीख लिया है। ये लोग अपनों को बचाने के लिए किसी बाहर वाले से भले ही न लड़ें; लेकिन अपने मनपसंद नेताओं के लिए बिना मतलब किसी से भी हर समय झगड़ने को तत्पर रहते हैं। दिन भर मोबाइल चलाने, सोशल मीडिया पर ऊल-जुलूल राजनीतिक ख़बरें डालने-पढ़ने और उन पर होने वाली बहसों में उलझने वाले लोग आख़िर सिवाय अपना क़ीमती समय बिना मतलब बर्बाद करने के और कर भी क्या सकते हैं? यह भी कह सकते हैं कि ग़लत और अज्ञानी लोग हमेशा ग़लत और अज्ञानियों को ही अपना शासक चुनते हैं। विकासशील देशों में यही हो रहा है। लेकिन विकसित देशों में लोग अपने शासकों को बहुत सोच-समझकर चुनते हैं। उनके क़ानून भी सभी के लिए दाण्डिक प्रक्रिया के दायरे तय करते हैं। इसलिए अगर वे ग़लती से कोई अयोग्य या अन्यायी शासक चुन भी लें, तो भी उसे अपनी मर्ज़ी चलाने की बहुत छूट क़ानून नहीं देता। विकासशील देशों में क़ानून ताक़त, पद और पैसे के आधार पर सज़ा तय करता है। यही कारण है कि यहाँ जो भी शासक बनता है, वह निरंकुश हो जाता है।
इस स्थिति में अब सुधार होना चाहिए। ग़ुलामी की मानसिकता लोगों को अपंग बना देती है। उन्हें न अपने अधिकारों का ज्ञान होता है और न ही कर्तव्यों का। चार पैसे कमाना, खाना, शोर मचाना, गंदगी करना और आपस में झगड़ लेना ऐसे लोगों की ज़िन्दगी के हिस्से हैं। कोई सोच नहीं, कोई भविष्य की योजना नहीं, भावी पीढ़ियों की चिन्ता नहीं। ऐसे लोगों से भरे देश आख़िर तरक़्क़ी कैसे कर सकेंगे?
रायपुर : छत्तीसगढ़ के रायपुर में स्वामी विवेकानंद एयरपोर्ट पर गुरुवार को नागपुर से कोलकाता जा रहे एक विमान में बम की सूचना मिलने के बाद विमान की इमरजेंसी लैंडिंग करानी पड़ी।
खबरों के अनुसार, विमान में बम होनने की धमकी मिलने के बाद सुरक्षा कारणों से रायपुर एयरपोर्ट पर उसकी इमरजेंसी लैंडिंग करने का निर्णय लिया गया। घटना की जानकारी मिलते ही एयरपोर्ट पर सुरक्षा व्यवस्था को कड़ा कर दिया गया और बम निरोधक दस्ते को बुलाया गया।
यात्रियों को सुरक्षित बाहर निकाला गया और विमान को तुरंत खाली करवा लिया गया। विमान में सवार सभी यात्री सुरक्षित हैं, इस घटना के बाद रायपुर एयरपोर्ट पर कुछ समय के लिए उड़ानें प्रभावित हुईं। सुरक्षा को लेकर विमान की जांच जारी है।
वॉशिंगटन :डोनाल्ड ट्रंप की कैबिनेट में एक और हिंदू नेता की एंट्री हो गई है। ट्रंप ने भारतवंशी तुलसी गबार्ड को अमेरिका की नई राष्ट्रीय खुफिया निदेशक के रूप में नियुक्त किया है। पूर्व कांग्रेस सदस्य तुलसी गबार्ड की पहचान अमेरिका की पहली हिंदू कांग्रेस वूमन के तौर पर भी है। तुलसी गबार्ड एक सैनिक भी रह चुकीं हैं और विभिन्न मौकों पर मध्य पूर्व और अफ्रीका के युद्ध क्षेत्रों तैनात रही हैं। वह कुछ समय पहले डेमोक्रेट पार्टी से अलग हो गई थीं और चुनाव के समय रिपब्लिकन पार्टी में शामिल हुई थीं।
साल 2019 में तुलसी गबार्ड ने डेमोक्रेटिक राष्ट्रपति पद की प्राथमिक बहस में कमला हैरिस को शिकस्त दी थी। हालांकि वे राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी की दौड़ में पिछड़ गईं। साल 2022 में वो डेमोक्रेटिक पार्टी को छोड़कर रिपब्लिकन पार्टी में शामिल हो गईं थीं। ट्रंप ने चुनावी बहस में हैरिस को हराने के लिए तुलसी से मदद भी मांगी थी।
अमेरिकी में जन्मी तुलसी गबार्ड के पिता समोआ और यूरोपीय वंश के हैं, वहीं उनकी मां भारतीय हैं। हिंदू धर्म में उनकी रुचि के कारण उन्होंने उनका नाम तुलसी रखा।डोनाल्ड ट्रंप ने कई बड़े पदों पर नियुक्तियों के बाद टेस्ला प्रमुख एलन मस्क और करोड़पति उद्यमी से नेता बने विवेक रामास्वामी को भी बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है। ट्रंप ने एलान किया है कि मास्क और रामास्वामी सरकारी दक्षता विभाग का नेतृत्व करेंगे।
विवके रामास्वामी एक धनी बायोटेक उद्यमी हैं। भले ही उनके पास किसी तरह का सरकारी अनुभव नहीं है, लेकिन उन्होंने कॉरपोरेट क्षेत्र में काम किया है और वह लागत में कटौती पर जोर दिया है।
नई दिल्ली : आप विधायक अमानतुल्लाह खान को राउज एवेन्यू कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। कोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में उनके खिलाफ दायर सप्लीमेंट्री चार्जशीट पर संज्ञान लेने से इनकार कर दिया है। अदालत ने उन्हें रिहा करने का आदेश दिया है।
कोर्ट ने कहा कि अमानतुल्लाह खान के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त सबूत हैं, लेकिन उन पर मुकदमा चलाने की मंजूरी नहीं है, इसलिए संज्ञान लेने से इनकार किया जाता है। राउज एवेन्यू कोर्ट ने आगे कहा कि अमानतुल्लाह खान को 1 लाख के जमानत बांड और इतनी ही राशि के एक जमानती पर न्यायिक हिरासत से तुरंत रिहा किया जाएगा।
दिल्ली में अगले साल विधानसभा के चुनाव हैं और उससे पहले अमानतुल्लाह खान को ये राहत मिली है। अमानतुल्लाह ओखला से विधायक हैं। वह दिल्ली वक्फ बोर्ड में कथित घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में गिरफ्तार हैं।
कोर्ट ने इससे पहले सप्लीमेंट्री चार्जशीट पर संज्ञान लेने या न लेने के बारे में अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था। कोर्ट ने कहा था कि वो 14 नवंबर को अपना आदेश सुनाएगा। अमानतुल्लाह खान पर आरोप है कि दिल्ली वक्फ बोर्ड का चेयरमैन रहते उन्होंने वित्तीय अनियमिता की। ईडी ने अमानतुल्लाह खान को 2 सितंबर को गिरफ्तार किया था।
श्रीनगर : दक्षिण कश्मीर के कुलगाम जिले में बदीगाम के पास सुरक्षा बलों और आतंकियों के बीच मुठभेड़ की खबर सामने आई है। इससे पहले, उत्तरी कश्मीर के कुपवाड़ा जिले में एलओसी के पास तीन से चार आतंकियों को घेर लिया गया था।
कुपवाड़ा के नागमर्ग में सुरक्षा बलों और आतंकियों के बीच मुठभेड़ जारी है। यह क्षेत्र बांदीपोरा जिले और एलओसी से सटा हुआ है। अक्सर घुसपैठिए इस क्षेत्र का इस्तेमाल बांडीपोरा, सोपोर, गांदरबल और श्रीनगर के रास्ते दक्षिण कश्मीर जाने के लिए करते हैं।
सूत्रों के मुताबिक, नागमर्ग में आतंकियों की मौजूदगी की सूचना मिलने पर सुरक्षा बलों ने तड़के एक अभियान चलाया। आतंकी घने जंगलों में छिपे हुए हैं और सुरक्षा बलों ने उन्हें घेर लिया है। कुपवाड़ा और बांदीपोरा दोनों तरफ से सुरक्षाबलों के दस्ते भेजे गए हैं।
घेराबंदी में फंसकर आतंकियों ने सुरक्षा बलों पर फायरिंग शुरू कर दी। जवानों ने भी जवाबी कार्रवाई की। दोनों तरफ से लगभग एक घंटे तक रुक-रुककर गोलीबारी हुई।
पश्चिम बंगाल की 6 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हो रहा है। उपचुनाव के बीच कोलकाता से सटे उत्तर 24 परगना जिले में बड़ी घटना घटी है। जगदल इलाके में टीएमसी (तृणमूल कांग्रेस) नेता की गोली मारकर हत्या कर दी गई है। अज्ञात बदमाशों ने वारदात को अंजाम दिया है। टीएमसी नेता की हत्या के बाद इलाके में हड़कंप मच गया है। मृतक की पहचान जगतदल वार्ड नंबर- 12 के पूर्व अध्यक्ष अशोक शॉ के रूप में हुई। वारदात के समय बदमाशों ने उन पर बम भी फेंका, जिससे आसपास के लोग भी घायल हो गए। सूचना मिलने पर पहुंची पुलिस ने घायलों को तुरंत अस्पताल पहुंचाया।
घटना की जानकारी देते हुए उत्तर 24 परगना जिले के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि जगतदल पुलिस थाने से करीब 100 मीटर की दूरी पर स्थित एक चाय की दुकान के सामने खड़े अशोक शॉ को बदमाशों ने गोली मारी और उन पर बम भी फेंका। बमबाजी के दौरान अशोक शॉ के आसपास खड़े अन्य लोग घायल हो गए। जानकारी मिलते ही पुलिस टीम मौके पर पहुंची और अशोक शॉ सहित अन्य घायलों को भाटपारा सरकारी अस्पताल ले गई। भाटपारा सरकारी अस्पताल में डॉक्टरों ने अशोक शॉ को मृत घोषित कर दिया, जबकि अन्य घायलों को भर्ती कर इलाज शुरू किया। पुलिस अधिकारी ने बताया कि मामले की जांच-पड़ताल की जा रही है। बमबाजी में कुछ अन्य लोग भी घायल हुए हैं, जिनका सरकारी अस्पताल में इलाज चल रहा है। वहीं घटना की सूचना मिलते ही बैरकपुर पुलिस कमिश्नर आलोक राजोरिया भी भारी पुलिस बल के साथ घटनास्थल पहुंचे और जांच-पड़ताल की। बैरकपुर पुलिस कमिश्नर आलोक राजोरिया ने मीडिया से बातचीत में बताया कि मामले की जांच-पड़ताल की जा रही है। कुछ संदिग्धों को हिरासत में लेकर पूछताछ की जा रही है। अभी तक की जांच में इस हत्या में कोई राजनीतिक संबंध नहीं मिला है। वहीं हत्या के बाद स्थानीय लोगों ने जगतदल पुलिस थाने के बाहर जमकर प्रदर्शन किया और आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की। वहीं स्थानीय लोगों ने बताया कि अशोक शॉ 2019 में वार्ड नंबर-12 से तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष थे। वह अभी भी टीएमसी के सक्रिय जमीनी कार्यकर्ता थे। बुधवार सुबह वह ऑटो से जा रहे थे। एक चाय की दुकान के पास पीछे से बाइक सवार कुछ युवक आए और पालघाट रोड पर बाइक से उन पर गोली चला दी। गोलियों की आवाज सुनकर स्थानीय लोग दौड़ पड़े, लेकिन तब तक बदमाश फरार हो गए।