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मन की बात: प्रधानमंत्री मोदी बोले, बुजुर्गों को डिजिटल अरेस्ट के खतरे से बचाने के लिए आगे आर हे युवा

नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात के 116वें एपिसोड में निस्वार्थ भाव से समाज के लिए काम कर रहे युवाओं की सराहना की। पीएम मोदी ने बताया कि ऐसे कई युवा समूह बनाकर लोगों की छोटी-छोटी समस्याओं का समाधान निकालने में जुटे हैं।

पीएम मोदी ने मन की बात में कहा, “ऐसे कितने ही युवा हैं जो लोगों की समस्याओं का समाधान निकालने में जुटे हैं। हम अपने आस-पास देखें तो बहुत से लोगों ऐसे हैं, जिन्हें किसी ना किसी तरह की मदद चाहिए, कोई जानकारी चाहिए। मुझे ये जानकर अच्छा लगा कि कुछ युवाओं ने समूह बनाकर इस तरह की बात के समाधान पर ध्यान दिया है।”

पीएम मोदी ने लखनऊ के रहने वाले वीरेंद्र का उदाहरण दिया जो बुजुर्गों को डिजिटल लाइफ सर्टिफिकेट के काम में मदद करते हैं। पीएम मोदी ने कहा, “आप जानते हैं कि नियमों के मुताबिक सभी पेशनरों को साल में एक बार लाइफ सर्टिफिकेट जमा कराना होता है। 2014 तक इसकी प्रक्रिया यह थी इसे बैंकों में जाकर बुजुर्ग को खुद जमा करना पड़ता था। आप कल्पना कर सकते हैं कि इससे हमारे बुजुर्गों को कितनी असुविधा होती थी। अब ये व्यवस्था बदल चुकी है। अब डिजिटल लाइफ सर्टिफिकेट देने से चीजें बहुत ही सरल हो गई हैं, बुजुर्गों को बैंक नहीं जाना पड़ता।”

पीएम मोदी ने आगे कहा, “बुजुर्गों को तकनीक की वजह से कोई दिक्कत ना आए, इसमें, वीरेंद्र जैसे युवाओं की बड़ी भूमिका है। वह अपने क्षेत्र के बुजुर्गों को इसके बारे में जागरूक करते रहते हैं। इतना ही नहीं वह बुजुर्गों को टेक सेवी भी बना रहे हैं। ऐसे ही प्रयासों से आज डिजिटल लाइफ सर्टिफिकेट पाने वालों की संख्या 80 लाख के आंकड़े को पार कर गई है। इनमें से दो लाख से ज्यादा ऐसे बुजुर्ग हैं, जिनकी आयु 80 के भी पार हो गई है।”

पीएम मोदी ने कहा कि साथियो, कई शहरों में ‘युवा’ बुजुर्गों को डिजिटल क्रांति में भागीदार बनाने के लिए भी आगे आ रहे हैं। भोपाल के महेश ने अपने मोहल्ले के कई बुजुर्गों को मोबाइल के माध्यम से पेमेंट करना सिखाया है। इन बुजुर्गों के पास स्मार्ट फोन तो था, लेकिन, उसका सही उपयोग बताने वाला कोई नहीं था। बुजुर्गों को डिटिटल अरेस्ट के खतरे से बचाने के लिए भी युवा आगे आए हैं।

पीएम मोदी ने आगे बताया, “ऐसे ही अहमदाबाद के राजीव, लोगों को डिटिटल अरेस्ट के खतरे से आगाह करते हैं। मैंने ‘मन की बात’ के पिछले एपिसोड में डिटिटल अरेस्ट की चर्चा की थी। इस तरह के अपराध के सबसे ज्यादा शिकार बुजुर्ग ही बनते हैं। ऐसे में हमारा दायित्व है कि हम उन्हें जागरूक बनाएं और साइबर फ्रॉड से बचने में मदद करें। हमें बार-बार लोगों को समझाना होगा कि डिटिटल अरेस्ट नाम का सरकार में कोई भी प्रावधान नहीं है। ये सरासर झूठ, लोगों को फंसाने का एक षड्यंत्र है। मुझे खुशी है कि हमारे युवा साथी इस काम में पूरी संवेदनशीलता से हिस्सा ले रहे हैं और दूसरों को भी प्रेरित कर रहे हैं।”

हेमंत सोरेन ने किया सरकार बनाने का दावा पेश

रांची : झारखंड में ‘इंडिया’ ब्लॉक के नवनिर्वाचित विधायकों ने रविवार को एक बार फिर झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रमुख हेमंत सोरेन को नेता चुन लिया है। इसके बाद उन्होंने गठबंधन के नेताओं के साथ राजभवन पहुंचकर राज्यपाल संतोष गंगवार से मुलाकात कर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया और नई सरकार बनाने के लिए दावा पेश किया। राज्यपाल ने उनका इस्तीफा स्वीकार करते हुए नई सरकार के गठन तक कार्यवाहक मुख्यमंत्री के रूप में काम करने का दायित्व सौंपा है।

हेमंत सोरेन ने राज्यपाल को ‘इंडिया’ ब्लॉक के नवनिर्वाचित 56 विधायकों की सूची सौंपी। संभावना जताई जा रही है कि वह नए सीएम के रूप में 28 नवंबर को शपथ लेंगे। शपथ ग्रहण समारोह रांची के मोरहाबादी मैदान में आयोजित किया जाएगा।

इसके पहले कांके रोड स्थित मुख्यमंत्री आवास पर गठबंधन के चार दलों झामुमो, कांग्रेस, राजद और भाकपा (माले) के विधायकों और नेताओं की बैठक हुई। इसमें नई सरकार की रूपरेखा और शपथ ग्रहण समारोह की तारीख, स्थान और इस मौके पर अतिथियों के निमंत्रण आदि पर विचार-विमर्श हुआ। हेमंत सोरेन ने सभी नवनिर्वाचित विधायकों को बधाई दी। उन्होंने कहा कि यह राज्य की जनता के साथ-साथ गठबंधन के एक-एक कार्यकर्ता की जीत है।

हेमंत सोरेन चौथी बार झारखंड के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने वाले पहले नेता होंगे। इसके पहले उन्होंने पहली बार 13 जुलाई 2013 को झामुमो, कांग्रेस, राजद गठबंधन के सहयोग से बनी सरकार में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। इस सरकार का कार्यकाल 23 दिसम्बर 2014 तक था। दूसरी बार उन्होंने 29 दिसम्बर 2019 में शपथ ली थी और 31 जनवरी 2024 को प्रवर्तन निदेशालय द्वारा गिरफ्तार किए जाने के बाद इस्तीफा दे दिया था। जमानत पर बाहर आने के बाद 4 जुलाई 2024 को उन्होंने तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। हेमंत सोरेन के पहले उनके पिता शिबू सोरेन और भाजपा के अर्जुन मुंडा तीन-तीन बार सीएम पद की शपथ ले चुके हैं।

झारखंड में 81 सदस्यीय विधानसभा चुनाव में गठबंधन को 56 सीटें हासिल हुई हैं। झामुमो को 34, कांग्रेस को 16, राजद को चार और भाकपा (माले) को दो सीटों पर जीत मिली है। राज्य में पहली बार दो-तिहाई बहुमत के साथ कोई सरकार बनने जा रही है।

एनडीए को उत्तर प्रदेश में साढ़े सात वर्ष में अधिकांश चुनावों में मिली जीत

लखनऊ : योगी आदित्यनाथ यानी जीत की गारंटी का नाम। विकास, रोजगार, सख्त कानून व्यवस्था, समृद्धि की बदौलत उत्तर प्रदेश के प्रति लोगों के मन में धारणा बदलने वाले योगी आदित्यनाथ की स्वीकार्यता अपने प्रदेश के ‘मन-मन’ के साथ अन्य प्रदेशों के ‘जन-जन’ में बढ़ गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन में योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव, उपचुनाव, विधान परिषद उपचुनाव, नगर निकाय चुनावों में भाजपा व एनडीए को जीत दिलाई तो अन्य राज्यों में भी भाजपा कार्यकर्ता के रूप में खूब पसीना बहाया। लिहाजा पीएम मोदी के नेतृत्व में कई राज्यों में भाजपा सरकार बनी। इसमें योगी आदित्यनाथ ने भी काफी मेहनत की।

कुंदरकी व कटेहरी में भी कमल खिलाकर नेतृत्व को विश्वास दिला दिया कि यूपी को योगी का ही साथ पसंद है, लिहाजा जन-जन ने योगी आदित्यनाथ को जीत की गारंटी मान लिया है। योगी की रणनीति व संवाद का ही असर रहा कि इस बार निकाय चुनाव में भी भाजपा ने क्लीन स्वीप किया। इस बार यूपी की सभी 17 की 17 नगर निगमों में भारतीय जनता पार्टी के महापौर निर्वाचित हुए हैं, जबकि पिछली बार 2017 में यह आंकड़ा 16 में से 14 का था। पिछली बार यूपी में भाजपा के 596 पार्षद जीते थे, जबकि इस बार यह आंकड़ा बढ़कर 813 हो गया।

शहरों में भाजपा की यह जीत योगी की विकास परक नीति पर आमजन की मुहर है। नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष पद पर 2017 में भाजपा को 60 सीटों पर जीत मिली थी। 199 सीटों में से यह आंकड़ा इस बार बढ़कर 88 पहुंच गया। पालिका परिषद सदस्यों में पिछली बार भाजपा को 923 सीट मिली थी, 2023 में यह बढ़कर 1353 हो गई। नगर पंचायतों में भी 191 सीटों में अध्यक्ष पद पर भाजपा के प्रतिनिधि काबिज हुए। 2017 में यह आंकड़ा 100 का था। योगी के नेतृत्व में 2023 में 91 सीटें और बढ़कर भाजपा की झोली में आई, वोट प्रतिशत में भी खूब इजाफा हुआ। भाजपा के नगर पंचायत सदस्यों की संख्या भी 664 से बढ़कर 1403 हो गई। वहीं नगर निगम, पंचायत व पालिका में भी सपा की साइकिल पंचर हो गई तो बसपा का हाथी भी गिर गया। निकाय चुनाव में भी सपा-बसपा का ग्राफ जबरदस्त गिरा।

लक्ष्मण आचार्य के महामहिम राज्यपाल व बनवारी लाल दोहरे के निधन के कारण मई में विधान परिषद की दो सीटों पर उपचुनाव हुए। 403 में से 396 वोट पड़े थे, जबकि एक अवैध हो गया। सीएम योगी की कुशल रणनीति से अखिलेश की चाल यहां भी धरी की धरी रह गई। भाजपा प्रत्याशी मानवेंद्र सिंह 280 व पद्मसेन चौधरी 279 मत पाकर परिषद पहुंचे, जबकि सपा के रामकरण निर्मल को महज 116 व रामजतन राजभर को 115 वोट से ही संतोष करना पड़ा था। जुलाई में हुए विधान परिषद उपचुनाव में भी सरकार के मुखिया के तौर पर सीएम योगी के नेतृत्व में बहोरन लाल मौर्य निर्विरोध सदन पहुंचे।

पीएम मोदी के नेतृत्व में महाराष्ट्र में भी महायुति गठबंधन ने फिर से सत्ता हासिल की। पीएम के निर्देशन में योगी आदित्यनाथ ने यहां जनसभा कर 24 प्रत्याशियों के लिए वोट की अपील की। इनमें से 22 पर महायुति गठबंधन ने जीत हासिल की। त्रिपुरा में योगी ने दो दिन में छह रैलियां और रोड शो किया था। इन सबमें कमल खिला और पीएम मोदी के मार्गदर्शन में भाजपा सरकार बनी। मई में ओडिशा में हुए चुनाव में भी योगी आदित्यनाथ का जादू चला। यहां लोकसभा और विधानसभा चुनाव में भी योगी का आह्वान जनता तक पहुंचा। ओडिशा में नवीन पटनायक सरकार गिरी और भाजपा सरकार ने सत्ता संभाली। राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, हरियाणा आदि राज्यों में भी पीएम मोदी के मार्गदर्शन में योगी आदित्यनाथ ने भाजपा कार्यकर्ता के रूप में चुनाव प्रचार में हिस्सा लिया। इन राज्यों में भी कमल खिला।

मध्यप्रदेश में गरजा बुलडोजर, 100 करोड़ की सरकारी जमीन करवाई गई अतिक्रमण मुक्त

ग्वालियर : ग्वालियर में एक बड़ी कार्रवाई करते हुए प्रशासन ने श्री रामजानकी मंदिर ट्रस्ट की लगभग पौने नौ बीघा सरकारी जमीन को अतिक्रमन मुक्त कराया है। इस जमीन पर बनी बाउंड्री वॉल और अन्य अवैध निर्माणों को बुलडोजर से ध्वस्त कर दिया गया। जिला प्रशासन, नगर निगम और पुलिस की संयुक्त टीम ने यह कार्रवाई की है। बताया जा रहा है कि इस जमीन को कब्जा कर प्लॉटिंग कर बेचने की तैयारी चल रही थी।

बीते 18 नवंबर को कलेक्टर रुचिका चौहान ने मंदिर की जमीन का निरीक्षण किया था। उन्होंने पाया कि मंदिर से जुड़ी माफी औकाफ की जमीन पर बाउंड्री वॉल बना ली गई है। इसके बाद उन्होंने अतिक्रमण हटाने के निर्देश दिए। एसडीएम लश्कर नरेंद्र बाबू यादव के नेतृत्व में यह कार्रवाई की गई। उन्होंने बताया कि मनोहरलाल भल्ला नामक व्यक्ति ने इस जमीन पर बाउंड्री वॉल बना ली थी और प्लाट बेचने की तैयारी में था।

क्षेत्रीय राजस्व निरीक्षक प्रदीप महाकाली और पटवारी इकबाल खान की रिपोर्ट के आधार पर नायब तहसीलदार डॉ. रमाशंकर सिंह के न्यायालय में मध्यप्रदेश भू-संहिता की धारा-248 के तहत प्रकरण दर्ज किया गया था। इसके बाद विधिवत आदेश पारित कर अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई की गई।

अतिक्रमण हटाने के लिए गई टीम में तहसीलदार ग्वालियर, शिवदत्त कटारे और नायब तहसीलदार डॉ. रमाशंकर सिंह, नगर निगम के मदाखलत अधिकारी शकेशव सिंह चौहान के साथ थाना प्रभारी, विपेंद्र सिंह चौहान सहित क्षेत्रीय आरआई, पटवारी और नगर निगम के कर्मचारी शामिल थे।

गौतम अडाणी पर आरोपों से भारत में चढ़ा सियासी पारा

नई दिल्ली : अमेरिका में बिजनेसमैन गौतम अडाणी पर लगे करप्शन के आरोपों पर राहुल गांधी ने पीएम मोदी पर सियासी हमला किया है। वीरवार को आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में राहुल गांधी ने कहा कि अडाणी जी 2 हजार करोड़ रुपए का स्कैम कर रहे हैं और बाहर घूम रहे हैं, क्योंकि पीएम मोदी उन्हें प्रोटेक्ट कर रहे हैं। गौतम अडाणी ने अमेरिका में क्राइम किया है, लेकिन भारत में उन पर कुछ नहीं हो रहा है। अडाणी की प्रोटेक्टर SEBI की चेयरपर्सन माधबी बुच पर केस होना चाहिए।

राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि ‘नरेंद्र मोदी ने नारा दिया- एक हैं तो सेफ हैं। भारत में नरेंद्र मोदी और अडाणी एक हैं तो सेफ़ हैं। हिंदुस्तान में अडाणी का कुछ नहीं किया जा सकता है। यहां मुख्यमंत्री को जेल भेज दिया जाता है और अडाणी 2,000 करोड़ का घोटाला कर के आराम से बाहर घूम रहे हैं। क्योंकि नरेंद्र मोदी उनकी रक्षा कर रहे हैं।

राहुल गांधी के आरोपों पर भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा कहा, “राहुल गांधी के पास वही चंद नाम हैं, वही चंद तरीका है। उन्होंने उसी तरह से फिर भाजपा पर आरोप लगाया है। मुझे याद है कि राफेल को लेकर राहुल गांधी इसी तरह खड़े हुए थे। कोरोना के समय में भी वह इसी तरह प्रेस कॉन्फ्रेंस करते थे। ये राहुल गांधी का तरीका है भारत पर हमला करने का और जो स्ट्रक्चर भारत को बचाते हैं, उन पर हमला करने का।”

प्रधानमंत्री के फिट इंडिया मूवमैंट को सफल बनाने के लिए हरियाणा सरकार संकल्पबद्ध- मुख्यमंत्री

चंडीगढ़, 21 नवंबर- हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने कहा है कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के देश को मेडिकल हब बनाने व फिट इंडिया के विजन को साकार करने के लिए हरियाणा ने पहल की है और सरकार ने हर जिले में एक मेडिकल कॉलेज स्थापित करने का बीड़ा उठाया है। अब तक प्रदेश में 9 नए मेडिकल कालेज खोले जा चुके हैं। वर्ष 2014 से पहले प्रदेश में केवल 6 ही मेडिकल कॉलेज थे। प्रदेश में अब मेडिकल कॉलेजों की संख्या बढ़कर 15 हो गई है। इसी कड़ी में आज सिरसा के संत सरसाई नाथ जी राजकीय मेडिकल कॉलेज के निर्माण कार्य का भूमि पूजन किया गया है।

मुख्यमंत्री ने घोषणा की, कि इस मेडिकल कॉलेज में कैंसर के उपचार के लिए अलग विंग भी शुरु की जाएगी। इसके लिए साथ लगती साढ़े पांच एकड़ भूमि मुहैया करवाई जाएगी।

मुख्यमंत्री आज सिरसा में संत सरसाई नाथ जी राजकीय मेडिकल कॉलेज के भूमि पूजन समारोह में उपस्थितजन को संबोधित कर रहे थे। इससे पहले मुख्यमंत्री ने कॉलेज प्रांगण में एक पेड़ मां के नाम लगाकर पर्यावरण का संदेश भी दिया।

इस मौके पर मुख्यमंत्री ने महान संत सरसाई नाथ जी को नमन करते हुए सिरसा के सभी नागरिकों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं दी। मुख्यमंत्री ने कहा कि संत सरसाई नाथ जी गुरु गोरखनाथ जी के शिष्य थे, जिन्होने 13वीं शताब्दी में सिरसा नगर की नींव रखी थी। संत सरसाई नाथ जी एक महान व्यक्ति थे, जिन्होंने तत्कालीन मुगल बादशाह शाहजहां के बेटे दारा शिकोह को जीवनदान दिया था। मुझे विश्वास है कि ऐसे महापुरुष के नाम पर बनने वाले इस मेडिकल कॉलेज में आने वाला हर मरीज निरोगी होकर लौटेगा।

उन्होंने कहा कि 21 एकड़ पर बनने वाले इस मेडिकल कॉलेज की पूरी परियोजना पर लगभग 1,010 करोड़ 37 लाख रुपये खर्च होंगे। यह कालेज  दो साल में बनकर तैयार हो जाएगा। इसके अलावा, मेडिकल कॉलेज  भिवानी का निर्माण काम लगभग पूरा हो चुका है। कैथल, गुरुग्राम व यमुनानगर में मेडिकल कॉलेज निर्माणाधीन हैं। जिला जींद के हैबतपुर में व जिला महेन्द्रगढ़ के कोरियावास में मेडिकल कॉलेजों के भवनों का निर्माण कार्य लगभग पूरा होने वाला है। इनके अलावा  5 और नये मेडिकल कॉलेज खोलने की प्रक्रिया चल रही है। इतना ही नहीं हर मेडिकल कॉलेज में नर्सिंग, फिजियोथेरेपी और पैरामेडिकल कॉलेज भी स्थापित किए जाएंगे।

इसी तरह से छायंसा फरीदाबाद में बंद हुए गोल्ड फील्ड मेडिकल कॉलेज को सरकार ने अपने अधीन लेकर पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम से शुरू किया है। इसके अलावा कुरुक्षेत्र में श्रीकृष्णा आयुष विश्वविद्यालय खोला गया है। पंचकूला में राष्ट्रीय आयुर्वेद योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा संस्थान की स्थापना की जा रही है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि करनाल के कुटैल में पंडित दीनदयाल उपाध्याय स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय का निर्माण किया जा रहा है। भगत फूल सिंह राजकीय महिला मेडिकल कॉलेज खानपुर कलां (सोनीपत) के तीसरे चरण का विस्तार कार्य 419 करोड़ रुपये की लागत से किया जा रहा है। जिला झज्जर के बाढ़सा में राष्ट्रीय कैंसर संस्थान खोला गया है। जिला रेवाड़ी के माजरा में एम्स स्थापित किया जा रहा है, जिसकी आधारशिला गत दिनों प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने रखी थी।  

मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने गरीब लोगों के निशुल्क उपचार के लिए प्रधानमंत्री जन आरोग्य आयुष्मान भारत योजना शुरु की है। हरियाणा में इसका विस्तार करते हुए सरकार ने आयुष्मान भारत-चिरायु हरियाणा योजना शुरू की है। अब तक प्रदेश में कुल 1 करोड़ 19 लाख चिरायु कार्ड बनाए जा चुके हैं। इस योजना में प्रदेश में 11 लाख 65 हजार मरीजों के इलाज के लिए 1477 करोड़ रुपये का भुगतान किया जा चुका है। मुख्यमंत्री ने घोषणा कि प्रदेश में 1.80 लाख रुपये से कम वार्षिक आय वाले परिवारों को आयुष्मान -चिरायु योजना के तहत अब 10 लाख रुपये तक के इलाज की सुविधा दी जाएगी।

मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रदेश में आधुनिक चिकित्सा के साथ- साथ आयुर्वेद, योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा को बढ़ावा दिया जा रहा है। उन्होंने किसानों से अपील की है कि वे खेती में रासायनिक खादों का कम से कम उपयोग करें। हमें प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देना होगा, इसके लिए सरकार ने अलग से बजट की व्यवस्था भी की है।

मुख्यमंत्री ने युवाओं से भी आह्वान किया कि वे नशे की प्रवृति को त्यागकर अपनी ऊर्जा का सकारात्मक कार्यों में उपयोग करें।

उन्होंने अभिभावको से भी अपील कि वे अपने बच्चों को नशे से दूर रखें और उनका अच्छे से पालन-पोषण करें।

प्रदेश सरकार कर रही चिकित्सा क्षेत्र में तेजी से काम -स्वास्थ्य मंत्री आरती सिंह राव

हरियाणा की स्वास्थ्य मंत्री कुमारी आरती सिंह राव ने कहा कि सिरसा में मेडिकल कॉलेज की जरूरत भी थी और सिरसा के लोगों की पुरानी मांग भी, जिसे आज मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने भूमि पूजन कर पूरा किया है। इस मेडिकल कॉलेज में 540 बेड की व्यवस्था होगी और युवाओं के लिए एमबीबीएस की 100 सीटें उपलब्ध होंगी।  

उन्होंने कहा कि इस मेडिकल कॉलेज के बनने से केवल सिरसा ही नहीं बल्कि पड़ोसी राज्य राजस्थान व पंजाब के लोगों को भी लाभ मिलेगा।

उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार लगातार चिकित्सा क्षेत्र में तेजी काम कर रही है। प्रदेश सरकार के आने से पूर्व 2014 में एमबीबीएस की 700 सीटें थी, जोकि वर्तमान सरकार ने बढ़ाकर 2185 किया है और आने वाले समय मे 1300 सीटों की और बढोतरी होगी।

कृषि में सुधार से सुधरेगी देश की अर्थ-व्यवस्था

योगेश

कृषि भारत की अर्थ-व्यवस्था की रीढ़ है। इसलिए इसे कृषि उद्योग कहना ही सही होगा। हमारे देश की अर्थ-व्यवस्था और रोज़गार में भी कृषि का बहुत बड़ा योगदान है। देश की लगभग 55 से 60 प्रतिशत जनसंख्या कृषि उद्योग पर निर्भर है। पूरी दुनिया में कुल वानस्पतिक भू-भाग के लगभग 11 प्रतिशत भू-भाग पर ही कृषि की जाती है, जबकि हमारे देश में पूरे देश की कुल वानस्पतिक भूमि के लगभग 51 प्रतिशत क्षेत्रफल पर कृषि की जाती है।

हमारे देश में कृषि से दुनिया की कुल 17.2 प्रतिशत जनसंख्या के भरण-पोषण के लायक खाद्य पदार्थ पैदा होते हैं, जबकि हमारे देश की कुल जनसंख्या 145 करोड़ के हिसाब से दुनिया की जनसंख्या का लगभग 17.78 प्रतिशत है। इस हिसाब से हमारे देश में लगभग सभी लोगों के लिए अनाज, दालें, सब्ज़ियाँ और फल उपलब्ध हैं। जिन 0.76 प्रतिशत के लिए इसकी कमी है, उसकी चिन्ता की बात इसलिए नहीं है, क्योंकि देश में 79 प्रतिशत लोग मांसाहारी भी हैं, जिसे जोड़कर हमारे देश में खाद्यान्न की कोई कमी नहीं है। लेकिन भुखमरी सूचकांक-2023 में हमारे देश का स्थान 111 है, जो कि 125 देशों के हिसाब से 100 देशों में 88.8वाँ स्थान है। हमारे देश की केंद्र सरकार को इसकी चिन्ता होनी चाहिए कि यह आँकड़ा बहुत ज़्यादा है और भुखमरी की अति गंभीर और चिन्ताजनक स्थिति दिखा रहा है। उसे 80 करोड़ लोगों को पाँच किलो राशन मुफ़्त देने से बाहर निकलकर उनके लिए रोज़गार की व्यवस्था करनी होगी, जिससे अर्थ-व्यवस्था मज़बूत हो सके और लोगों को पाँच किलो राशन लेने के लिए लाइन में न लगाना पड़े। इसके लिए सरकार को बहुत कुछ न करके सिर्फ़ कृषि सम्बन्धित उद्योगों को बढ़ाना होगा और किसानों से उनकी एमएसपी वाली 23 फ़सलें उचित मूल्य पर सी2+50 के स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के हिसाब से ख़रीदना होगा।

कृषि के विकास से लोगों के पोषण में सुधार होगा, भुखमरी मिटेगी, कुपोषण नहीं रहेगा, कृषि और कृषि उत्पादों से जुड़े लोगों की आय बढ़ेगी और कृषि क्षेत्र में ज़्यादा लोगों को रोज़गार मिल सकेगा। हमारे देश की सभी सरकारों को समझना होगा की हमारे देश में कृषि असीमित रोज़गार देने में समर्थ है और आर्थिक-सामाजिक विकास की यह प्रधान कुँजी है। कृषि क्षेत्र में हमारा देश प्राचीन-काल से आर्थिक समृद्धि का गवाह रहा है; लेकिन इस क्षेत्र का बड़ा लाभ पहले ज़मींदारों को जाता रहा और आज पूँजीपतियों को जाता है, जिससे किसानों की स्थिति दयनीय बनी रहती है। सिन्धु घाटी सभ्यता के हज़ारों साल पहले के कृषि साक्ष्य यह दर्शाते हैं कि दुनिया में सिर्फ़ हमारे देश में कृषि का विकास मानव सभ्यता के पुरातन-काल से है और इसका विकास दुनिया के सभी देशों के विकास से हज़ारों साल पहले हो चुका था। लेकिन अफ़सोस की बात है कि आज हमारा देश ही कृषि में पिछड़ता जा रहा है। इसके लिए जनसंख्या वृद्धि और कृषि क्षेत्र का पूँजीपतियों को हाथ में जाना तो है ही, कृषि उपजों का दूषित होना है। खाद्य उत्पादों की बर्बादी भी इसका बहुत बड़ा कारण है, जिसमें एफसीआई के गोदामों में खाद्य उपजों की बड़ी मात्रा में बर्बादी चिन्ता का विषय है।

आज कृषि एक व्यापक क्षेत्र बन चुका है, जिसके अंतर्गत दुग्ध उत्पादन, बाग़बानी, फ़सल उत्पादन, पशु-पक्षी पालन और मछली पालन आदि आते हैं। कृषि क्षेत्र में देश की कुल जनसंख्या की 50 प्रतिशत जन-श्रम शक्ति लगी है। खाद्य उत्पादों से सम्बन्धित कई छोटे-बड़े उद्योग कृषि पर ही निर्भर हैं, जिनमें जूट उद्योग, लकड़ी उद्योग, वस्त्र उद्योग, खाद्य उद्योग, खाद्य तेल उद्योग, चीनी उद्योग, मसाला उद्योग, चाय-कॉफी उद्योग, शराब उद्योग, कॉस्मेटिक उद्योग, चिकित्सा उद्योग, फल और जूस उद्योग, मादक पदार्थ और तम्बाकू उद्योग सब कृषि क्षेत्र की ही देन हैं। पशु-पक्षी उद्योग पर डेयरी उद्योग, चमड़ा उद्योग, मांस उद्योग, हड्डियों से बनने वाले पदार्थों के कई उद्योग, दवा उद्योग और कॉस्मेटिक उद्योग आदि निर्भर हैं। अगर कृषि उद्योग को बढ़ावा देकर इन सभी उद्योगों को भी बढ़ावा दिया जाए, तो हमारे देश की अर्थ-व्यवस्था दुनिया की सबसे बड़ी अर्थ-व्यवस्था होने में बहुत लंबा समय नहीं लगेगा।

हमारे देश में कृषि उत्पादों पर निर्भर उद्योगों से देश की कुल अर्थ-व्यवस्था का लगभग 35 प्रतिशत आपूर्ति होती है। जबकि कृषि अर्थ-व्यवस्था का देश की कुल अर्थ-व्यवस्था में सिर्फ़ 6.5 प्रतिशत ही भागीदारी है। 1950 के दशक में देश के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि उद्योग की भागीदारी लगभग 53 प्रतिशत थी। अर्थ-व्यवस्था में विकास की गति बढ़ाने और कृषि उद्योग पर ध्यान न देने से सन् 1995 आते-आते सकल घरेलू उत्पाद में कृषि की भागीदारी सिर्फ़ 25 प्रतिशत रह गयी और वित्त वर्ष 2011-2012 में ये भागीदारी और घटकर 13.3 प्रतिशत ही रह गयी। इस समय हमारे देश के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि उद्योग की भागीदारी लगभग 13.8 प्रतिशत है।

हमारे देश की लगभग 145 करोड़ जनसंख्या भोजन के लिए कृषि पर ही निर्भर है। मांसाहारी भी कृषि क्षेत्र के बिना जीवित नहीं रह सकते। भोजन में सब ज़रूरी है, जिसमें अनाज सबसे ज़रूरी है। अनाज का कोई विकल्प मांसाहार में नहीं है। इसलिए केंद्र सरकार को कृषि उद्योग को विशेष महत्त्व देना होगा, जिससे इस क्षेत्र से कमायी बढ़े और भारतीय अर्थ-व्यवस्था में कृषि अर्थ-व्यवस्था का योगदान बढ़े। कृषि उद्योग विभिन्न उद्योगों में सबसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है। इसके लिए साफ़ नीयत से केंद्र सरकार को काम करना होगा और किसानों को उनकी फ़सलों का सही मूल्य देना होगा। कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए उसमें सुधार करना होगा और जैविक खेती में पैदावार बढ़ाने के उपाय खोजने होंगे। क्योंकि पूँजी निर्माण में कृषि उद्योग की भूमिका बड़ी और सराहनीय है।

कृषि उद्योग के चलते देश के ट्रांसपोर्ट की आय का 35 प्रतिशत भाग मज़बूत होता है। रेल मार्ग, सड़क मार्ग, जल मार्ग और वायु मार्ग सभी के माध्यम से कृषि उत्पादों का आयात-निर्यात होता है। हमारे देश में कृषि उत्पादों में से अधिकांश का निर्यात पूरी दुनिया में हो रहा है; लेकिन वैश्विक बाज़ारों में भारतीय कृषि उत्पादों की माँग की आपूर्ति अभी तक हमारा देश नहीं कर पा रहा है। इसके लिए केंद्र सरकार को कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए कृषि बजट बढ़ाना होगा। क्योंकि कृषि उत्पादों के निर्यात से सरकार के पास विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ता है और हमारे देश में विदेशी मुद्रा जितना ज़्यादा होगा देश की अर्थ-व्यवस्था उतनी ज़्यादा होगी। कृषि उद्योग देश के औद्योगिक विकास की आधारशिला है और कृषि उत्पाद औद्योगीकरण के लिए वह मूलभूत पूँजी है, जिससे देश की अर्थ-व्यवस्था क्रियाशील रहती है। लेकिन आज जिस तरह से केंद्र सरकार किसानों के ख़िलाफ़ साज़िशें करके उनका एमएसपी का सही अधिकार भी नहीं दे रही है और दो साल पहले किसानों के तीन कृषि क़ानूनों का विरोध करने पर जो व्यवहार केंद्र सरकार और भाजपा की राज्य सरकारों ने किया, उसने स्पष्ट कर दिया कि किसानों को सरकार हर हाल में कमज़ोर रखना चाहती है, जिससे उनकी फ़सलों का बड़ा लाभ पूँजीपति ले सकें और किसान अभावों में ही जीए।

आज किसानों को न तो ज्ञान आधारित खेती करने की जानकारी दी जाती है और न ही उनके आर्थिक विकास पर विचार किया जाता है। सरकारी आँकड़ों के हिसाब से केंद्र सरकार उन्हें प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के नाम पर 500 रुपये महीने देकर उन्हें भिखारी साबित करने का काम ऊपर से कर रही है। जबकि किसान इतना दयालु होते हैं कि वे अपने खेतों से इससे ज़्यादा फ़सल मूल्य का तो दान कर देते हैं। अगर केंद्र सरकार उनकी 23 फ़सलों की ही सही एमएसपी दे दे, तो निम्न और मध्यम वर्गीय किसानों को न तो पाँच किलो राशन की ज़रूरत पड़ेगी और न ही 500 रुपये महीने की। हमारे देश की अर्थ-व्यवस्था में कृषि अर्थ-व्यवस्था में भूमिका बहुत बड़ी है, जो कि पूरे देश की अर्थ-व्यवस्था की मेरुदंड है। सरकार इस मेरुदंड को पूँजीपतियों के हाथ में देकर किसानों को अपाहिज बनाने का काम कर रही है। वर्तमान समय में सरकारी क्षेत्र में मिलने वाली नौकरियों में कृषि उद्योग की नौकरियों में भागीदारी भी 33 प्रतिशत है, जबकि निजी क्षेत्रों में कृषि उद्योग के चलते मिलने वाली नौकरियों की भागीदारी 44 प्रतिशत, वित्तीय क्षेत्र में कृषि उद्योग के चलते मिलने वाली नौकरियों की भागीदारी 10 प्रतिशत और अनुसंधान क्षेत्र में कृषि उद्योग से मिलने वाली नौकरियों की चार प्रतिशत भागीदारी है। हमारे देश में अधिकांश जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में बसी है, जिसमें से 70 प्रतिशत लोग कृषि से जुड़े हैं, जबकि शहरों में 21 प्रतिशत लोग कृषि उत्पादों वाले उद्योगों से नौकरियाँ और रोज़गार पा रहे हैं। इसके बाद भी कृषि उद्योग को इतना कमज़ोर रखना हमारे देश की सरकारों की सबसे बड़ी भूल है। उन्हें कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने के अलावा इसमें अवसरों का विस्तार करना चाहिए।

आज पूरी दुनिया जनसंख्या वृद्धि के कारण भविष्य में खाद्य संकट के भय से चिन्तित है और हमारे देश के किसान इस संकट को दूर करने में समर्थ हो सकते हैं; लेकिन इसके लिए उन्हें हतोत्साहित न करके प्रोत्साहित करने का काम करना होगा, जो सरकारें ही कर सकती हैं। हमारे देश के सकल घरेलू उत्पाद में भले ही कृषि सकल घरेलू उत्पाद की भागीदारी कम है; लेकिन देश में खाद्य भंडारण की कोई कमी नहीं है। सरकारों को उनका सदुपयोग करना है और एफसीआई में हर साल सड़ने वाले लाखों मीट्रिक टन अनाज की बर्बादी रोकते हुए एफसीआई के अधिकारियों की अनाज सड़ाकर बेचने की आदत पर रोक लगाने की भी आवश्यकता है।

रबी की बुवाई के समय डीएपी की क़िल्लत

रबी की फ़सलों की बुवाई शुरू होने से पहले ही इस बार उत्तर भारत के कई राज्यों में डीएपी की क़िल्लत से किसान परेशान हैं। दिन-रात सहकारी खाद वितरण केंद्रों पर किसान लाइन लगाकर दिन-दिन भर खड़े रहते हैं और फिर भी डीएपी मिलेगी या नहीं, इसकी कोई गारंटी नहीं होती। इसके अलावा शिकायतें हैं कि सहकारी केंद्र डीएपी के साथ जबरन नैनो यूरिया और जिंक किसानों को दे रहे हैं। इससे किसानों को पैसे भी ज़्यादा चुकाने पड़ रहे हैं और नैनो यूरिया तथा जिंक किसानों के काम की भी नहीं है। क्योंकि जिंक धानों में पड़ती है और नैनो यूरिया के कई नुक़सान भी फ़सलों को हो सकते हैं। प्राइवेट खाद विक्रेता डीएपी ब्लैक में बेच रहे हैं और उसके ज़्यादा दाम वसूल रहे हैं। डीएपी न मिलने से किसानों को रबी फसलों, विशेषकर गेहूँ बोने में देरी हो रही है। बुवाई में देरी होने से कई किसानों के खेतों की नमी सूख चुकी है। केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को किसानों की इस परेशानी को समझना चाहिए।

मिलकर चलें नई दिल्ली और श्रीनगर

क्या श्रीनगर और नई दिल्ली राजनीतिक टकराव की तरफ़ बढ़ रहे हैं? उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व में नेशनल कॉन्फ्रेंस सरकार, जिसे कांग्रेस का बाहर से समर्थन हासिल है; ने हाल में केंद्र शासित प्रदेश की विधानसभा में एक प्रस्ताव पास किया, जिसमें केंद्र सरकार से माँग की गयी है कि वह क्षेत्र के 2019 में ख़त्म किये गये विशेष दर्जे को वापस करने के लिए प्रदेश के निर्वाचित प्रतिनिधियों से बातचीत शुरू करे। इस पर सदन में जिस तरह का हंगामा हुआ और भाजपा ने इस प्रस्ताव का जो पुरज़ोर विरोध किया, उससे ज़ाहिर होता है कि केंद्र और राज्य सरकार में आने वाले दिनों में और तनाव पैदा हो सकते हैं। दुर्भाग्यपूर्ण है कि सफल चुनाव के बाद सूबे के लोगों को जो राहत मिली है और अपनी समस्याओं के हल की जो उम्मीद उन्हें है, उस पर यह तनाव पानी फेर सकता है।

चुनाव के बाद विधानसभा के पहले ही सत्र में जो प्रस्ताव उमर सरकार की तरफ़ से पास किया गया, उसमें अनुच्छेद-370 और अनुच्छेद-35(ए) शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया गया है। अलबत्ता केंद्र से यह कहा गया है कि वह सूबे के विशेष दर्जे के बहाली के लिए चुने प्रतिनिधियों से बातचीत शुरू करे। दरअसल भारतीय संविधान के अनुच्छेद-370 से ही जम्मू-कश्मीर को विशेष सूबे का दर्जा हासिल था। लेकिन चूँकि नेशनल कॉन्फ्रेंस सरकार को बाहर से समर्थन दे रही कांग्रेस अनुच्छेद-370 का ज़िक्र नहीं चाहती थी, इसलिए प्रस्ताव का मसौदा इस तरीक़े से बनाया गया कि उसमें इसका ज़िक्र न हो।

अलबत्ता कांग्रेस जम्मू-कश्मीर के पूर्ण राज्य और विधानसभा की बहाली पर ज़ोर दे रही है। शायद इसका कारण उसकी इस सोच का भी है कि अनुच्छेद-370 पर हो चुके फ़ैसले को बदला नहीं जा सकता है। यह बात मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और नेशनल कॉन्फ्रेंस के मुखिया फ़ारूक़ अब्दुल्ला भी जानते हैं। लेकिन चूँकि नेशनल कॉन्फ्रेंस अनुच्छेद-370 ख़त्म करने की प्रबल विरोधी रही है और चुनाव में उसने इसे घोषणा-पत्र में शामिल किया था, उसकी यह राजनीतिक मजबूरी है कि वह सूबे की जनता को संदेश दे कि वह अनुच्छेद-370 की बहाली की माँग पर ज़ोर दे रही है। कांग्रेस की ऐसी कोई मजबूरी नहीं है। उलटे राष्ट्रीय राजनीति में उसे इसका नुक़सान होता लिहाज़ा उसने अपनी माँग पूर्ण राज्य के दर्जे तक सीमित रखी है। लिहाज़ा प्रस्ताव का ड्राफ्ट कांग्रेस के राजनीतिक हितों को ध्यान में रखते हुए ‘विशेष राज्य का दर्जा बहाल हो’ पर सीमित किया गया और अनुच्छेद-370 शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया।

चूँकि भाजपा की भी राजनीतिक मजबूरी है कि वह अनुच्छेद-370 के मसले को कम से कम महाराष्ट्र और झारखण्ड के विधानसभा चुनाव तक सुलगता रखे, उसने विधानसभा के भीतर ख़ूब हंगामा किया। जैसे ही प्रस्ताव जम्मू-कश्मीर विधानसभा में पास हुआ, महाराष्ट्र के चुनाव प्रचार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर गृह मंत्री अमित शाह और पार्टी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा इसे अपने भाषणों में ले आये और कांग्रेस पर आक्रमण करते हुए कहा कि वह जम्मू-कश्मीर अनुच्छेद-370 वापस लाकर वह देश के हितों को नुक़सान पहुँचाना चाहती है। जबकि सच यह है कि कांग्रेस सरकार का हिस्सा नहीं है, बल्कि सिर्फ़ बाहर से उमर सरकार को समर्थन दे रही है। लेकिन इस पर जैसी राजनीतिक टिप्पणियाँ होने लगी हैं और कटुता बढ़ी है, वह श्रीनगर और नई दिल्ली के बीच सिर्फ़ खाई को बढ़ाएगी।

जम्मू-कश्मीर में इन फ़ालतू के मुद्दों के अलावा जनता से जुड़े असंख्य मुद्दे हैं। जैसे- बिजली, पानी, रोज़गार, सड़कें और स्कूल आदि। आतंकवाद के चलते इन सब चीज़ों को बहुत नुक़सान पहुँचा है। दूर ग्रामीण क्षेत्र आज भी पानी से वंचित हैं। सड़कों की भी हालत बेहतर नहीं हैं; और बिजली व्यवस्था के तो क्या ही कहने। बिजली के हालात इतने ख़राब हैं कि जम्मू जैसे शहर में यह कई बार 24 घंटे में सिर्फ़ 10-12 घंटे ही उपलब्ध रहती है। श्रीनगर में यही स्थिति है। ऐसे में ग्रामीण इलाक़ों की क्या हालत होगी, इसका अंदाज़ा लगाया जा सकता है। साल 2019 में जब अनुच्छेद-370 को ख़त्म किया गया था; उससे एक साल पहले ही सूबे में राष्ट्रपति शासन लग गया था। लेकिन उसके बाद चुनाव होने तक बिजली-पानी जैसे मौलिक सुविधाओं को बेहतर करके तरफ़ कोई ठोस काम नहीं हुआ। शराब के ठेके तो कोने-कोने में खुल गये; और जिन क्षेत्रों में सुधार होना था, उन्हें नज़रअंदाज़ ही रखा गया।

अब जबकि चुनाव के बाद जनता की चुनी हुई सरकार बनने से जैसा माहौल बन रहा है, वो अच्छे संकेत नहीं देता। राजनीतिक टकराव बढ़ रहा है और आतंकवाद बढ़ती की घटनाएँ भी परेशान कर रही हैं। दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि जम्मू-कश्मीर में जनता की चुनी सरकार तो बन गयी; लेकिन साथ ही आतंकवादी घटनाओं में भी बढ़ोतरी हो गयी। इसके पीछे निश्चित ही उमर अब्दुल्ला सरकार को कमज़ोर करने की साज़िश हो सकती है। न तो आतंकवादी और न ही पाकिस्तानी सरकार चाहती थी कि जम्मू-कश्मीर में जनता की चुनी हुई कोई सरकार बने। चुनी सरकार न होने से दिल्ली के जम्मू-कश्मीर पर सीधे नियंत्रण के रहते पाकिस्तान में बैठे आतंकवादियों के समर्थकों को भारत के ख़िलाफ़ ज़हर उगलने में आसानी रहती थी।

पाकिस्तान की तरफ़ से अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कश्मीर की जनता से ज़्यादतियों का दुष्प्रचार किया जाता है। इसमें कोई दो-राय नहीं कि जम्मू-कश्मीर की जनता ने पूरे मन से मतदान किया और बड़ी संख्या में किया। इस डर को जानते हुए भी किया कि आतंकवादी हमले हो सकते हैं। चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस की जीत हुई जिसे कश्मीर ही नहीं हिन्दू बहुल जम्मू से भी सात सीटें मिली। यह ज़ाहिर करता है कि आज भी सूबे की जनता फ़ारूक़ अब्दुल्ला से प्यार करती है और उन पर भरोसा करती है कि वह उनकी समस्याएँ हल करेंगे। बेशक मुख्यमंत्री फ़ारूक़ के बेटे उमर बने हैं, इस चुनाव में जीत का बड़ा श्रेय फ़ारूक़ की भरोसे वाली छवि को ही जाता है। चुनाव तो हो गये, सरकार भी बन गयी; लेकिन अचानक आतंकवादी घटनाओं में भी बढ़ोतरी हो गयी।

ऐसा संदेश देने की कोशिश भी हुई है कि यह उमर सरकार की नाकामी है; लेकिन चूँकि जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश (यूटी) का ही दर्जा अभी है, वहाँ की क़ानून व्यवस्था केंद्र के ही तहत है। आतंकवादी घटनाओं में अचानक बढ़ोतरी तब हुई जब अभी भी सूबे की सीमाओं पर बड़ी संख्या में सेना तैनात है। मोदी सरकार चुनाव से पहले तक दावा कर रही थी कि उसने जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद को नकेल दिया है और अब वहाँ छिटपुट आतंकवादी या उनके समर्थक ही बचे रह गये हैं। यदि ऐसा हुआ था, तो फिर यह आतंकवादी वारदात क्यों हो रही हैं? सच तो यह है कि इन घटनाओं में बढ़ोतरी को शंका की निगाह से देखा जा रहा है। केंद्र सरकार की एजेंसियों पर भी सवाल उठ रहे हैं।

फ़ारूक़ अब्दुल्ला तो इन घटनाओं से इतने दु:खी हुए कि उन्हें कहना पड़ा कि यदि ऐसा ही चलता रहा, तो मुश्किल हो जाएगी। कश्मीर की जनता में भी इन घटनाओं से चिन्ता और आक्रोश है। इसमें कोई दो-राय नहीं कि यदि आतंकवादी घटनाएँ जारी रहती हैं, तो उमर सरकार को काम करना काफ़ी मुश्किल होगा। सूबे में 10 साल के बाद चुनाव हुए हैं और त्रस्त जनता ने राहत की साँस ली है कि अब उनकी समस्याएँ ख़त्म होंगी। लेकिन स्थिति ख़राब होती दिख रही है। सबको पता है कि कश्मीर की जनता ने अनुच्छेद-370 ख़त्म होने के ख़िलाफ़ वोट दिया है। यही कारण है कि उमर अब्दुल्ला सरकार को विधानसभा में सूबे के विशेष दर्जे की बहाली का प्रस्ताव पास करना पड़ा। भाजपा के 29 विधायकों को छोड़कर बाक़ी सभी 61 विधायकों ने इस प्रस्ताव का पक्ष लिया।

ज़ाहिर है भाजपा जम्मू-कश्मीर में इस मुद्दे को टकराव में बदलना चाहती है, ताकि उमर अब्दुल्ला की राह कठिन हो। इसे संयोग ही कहेंगे कि जम्मू-कश्मीर में उमर सरकार का जो हश्र भाजपा करना चाहती है, वही पाकिस्तान भी चाहता है। यहाँ तक कि आतंकवादी भी उमर सरकार को कमज़ोर करना चाहते हैं, जिनकी डोर पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई के हाथ में रहती है। भाजपा को इस चुनाव में लाख कोशिश के बाद भी कश्मीर घाटी में एक भी सीट नहीं मिली है। बतौर विपक्ष सरकार का विरोध करना भाजपा का अधिकार है; लेकिन उसे यह ख़याल रखना चाहिए कि जनता ने नेशनल कॉन्फ्रेंस को समर्थन दिया है।

यदि जम्मू-कश्मीर को विकास की राह पर ले जाना है तो वहाँ की जनता को यह अहसास दिलाना होगा कि हम आपको देश का मज़बूत हिस्सा मानते हैं। इसे साथ वैसी ही बेहतर व्यवहार होना ज़रूरी है; जैसे देश के अन्य तमाम राज्यों के साथ होता है। यह कहने भर के लिए नहीं है, इसके लिए ज़मीन पर काम करना होगा और केंद्र को उमर सरकार को जनता के काम करने देने में मदद और पैसा, दोनों देने होंगे। राजनीति ही होती रही, तो अभी तक शान्ति स्थापित करने की कोशिशों के मिट्टी में मिलते देर नहीं लगेगी। उमर सरकार को भी बेवजह के टकराव के मसलों को त्यागकर जनता के लिए काम में जुट जाना होगा। यदि ऐसा नहीं होता है, तो नई दिल्ली और नेशनल कॉन्फ्रेंस दोनों जनता का समर्थन खो देंगी, जिसका नतीजा यह होगा कि नई दिल्ली और श्रीनगर के बीच दूर बढ़ जाएगी। अगर ऐसा हुआ, तो यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण होगा।

दाऊद की जगह लेना चाहता है बिश्नोई!

एनसीपी के अजीत पवार गुट के पूर्व राज्य मंत्री जियाउद्दीन अब्दुल रहीम सिद्दीकी उर्फ बाबा सिद्दीकी सरेआम गोली मारकर की गई हत्या ने मुंबई को दहला का रख दिया। 12 अक्टूबर 2024 को रात करीब 9.30 बजे ऑस्ट्रेलिया मेड पिस्टल से उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई, बड़ी बात यह है कि पुलिस सुरक्षा मुहैया कराई गई थी।

बाबा सिद्दीकी और उनके विधायक बेटे की गोली मारकर हत्या करने के लिए आधा दर्जन आरोपी कई दिनों से बांद्रा स्थित जीशान के ऑफिस, बांद्रा पूर्व निर्मलनगर (खेरनगर) में राम मारुति रोड के बाहर रेकी कर रहे थे। अंततः वे शनिवार विजयादशमी के दिन बाबा सिद्दीकी की हत्या करने में सफल रहे। लेकिन जब दोनों आरोपी भाग रहे थे, तब निर्मलनगर पुलिस स्टेशन के सहायक पुलिस निरीक्षक राजेंद्र दाभाड़े और उनके सहयोगियों सागर कोइंदे, अमोल पवार और सुरेखा माने ने दो भाड़े के गुंडों गुरमेल बलजीत सिंह (23, हरियाणा) और धर्मराज राधे कश्यप (19, उत्तर प्रदेश) को मौके पर पकड़ लिया। इन दोनों की गिरफ्तारी के बाद बाबा सिद्दीकी को गोली मारने वाले आरोपियों में पंजाब के लॉरेंस बिश्नोई गैंग के शिवकुमार गौतम, मोहम्मद जिशान अख्तर, प्रवीण लोनकर, शुभम लोनकर के नाम सामने आए। पुणे से प्रवीण लोनकर को हाल ही में मुंबई क्राइम ब्रांच के एंटी एक्सटॉर्शन स्क्वाड ने गिरफ्तार किया था उसने बाबा सिद्दीकी की हत्या की साजिश में शामिल आरोपियों को ठिकाना दिया और उन्हें पैसे बांटे थे। पुणे के भालेकर वस्ती में प्रवीण लोनकर और उसके भाई शुभम ने किराये पर एक दुकान ली और किसी को शक न हो इसलिए उन्होंने डेयरी प्रोडक्ट्स बेचना शुरू कर दिया था। दरअसल वहां से बिश्नोई गैंग की आपराधिक गतिविधियों को अंजाम दिया जा रहा था। साथ ही शूटरों के खाने पीने और रहने की व्यवस्था करता था। गौरतलब है कि पहले भी पंजाबी गायक शुभदीप सिंह उर्फ सिद्धु मुसेवाला की हत्या में बिश्नोई गिरोह के लिए काम करने वाले पुणे के शूटर संतोष सुनील जाधव, नवनाथ सुरेश सूर्यवंशी और सौरभ उर्फ सिद्धेश, महाकाल हीरामन कांबले को पंजाब पुलिस ने गिरफ्तार किया था।

पंजाब के एक पुलिस वाले का बेटा लॉरेंस बिश्नोई  फिलहाल गुजरात के साबरमती जेल में हैं और वहींते वह आपराधिक गतिविधियों अंजाम देता है। साबरमती जेल के आसपास बिश्नोई के गुर्गों का दबदबा है। पुलिस जांच में पता चला है कि इस गैंग के कई शूटर वारदात को अंजाम देने के बाद गुजरात भाग जाते हैं। कहा जा रहा है कि एसआरए प्रोजेक्ट के विवाद में बिश्नोई को सुपारी देकर बाबा सिद्दीकी की हत्या कराई गई। हालांकि सुपारी देने वाले आरोपी कभी नहीं मिलते। पुलिस के हाथों सिर्फ गोली चलाने वाले, आश्रय देने वाले, धन और हथियार बांटने वाले ही लगते हैं। इसलिए हत्या के पीछे का असली मकसद आखिर तक पता नहीं चल पाता।लेकिन कुछ लोगों का दावा है जानबूझकर इस मामले को लॉरेंस से जोड़ा जा रहा है!

पिछले 30 वर्षों में मुंबई में गोलीबारी में एक हजार से अधिक व्यवसायी, होटल व्यवसायी और प्रतिद्वंद्वी गिरोह के गैंगस्टर मारे गए हैं, जिनमें एक दर्जन नगरसेवक, आधा दर्जन पूर्व विधायक शामिल हैं। लेकिन महत्वपूर्ण हस्तियों की हत्याओं के पीछे के वास्तविक मास्टरमाइंडों का पता नहीं चल पाया है। जब मामले में किसी अहम राजनीतिक शख्सियत का,सुराग लगता है तो जांच आगे नहीं बढ़ती और कमोबेश इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि बाबा सिद्दीकी हत्याकांड का हश्र भी कुछ तक ऐसा ही हो सकता है।

बाबा सिद्दीकी को मारने के लिए सैन्य और पुलिस अधिकारियों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली अत्याधुनिक पिस्तौलों का इस्तेमाल किया गया था। जिसकी गोली कभी जाया नहीं जाती। लॉरेंस बिश्नोई का ऑर्डर है कि पुलिस प्रोटेक्शन के बावजूद टारगेट को ऑन द स्पॉट खत्म कर दिया जाए। पंजाबी गायक सिधू मुसेवाला को लॉरेंस बिश्नोई ने पंजाब पुलिस के सामने, उसके ही प्रोटेक्शन में गोली मारकर हत्या कर दी थी।

देखा जाए तो लॉरेंस बिश्नोई की मोड्स ऑपरेंडी दाऊद के लगभग ही है।

किसी वक्त दाऊद पुलिस की परवाह नहीं करता था। 12 सितंबर 1992 को, दाऊद ने अपने बहनोई इब्राहिम इस्माइल पारकर की हत्या करने वाले अरुण गवली गिरोह के शैलेश हल्दनकर और बिपिन शेरे को मारने के लिए अपनी गैंग के पहले पत्तों को रात में जे जे अस्पताल भेजा था। उस वक्त उन्होंने सरकारी लाल बत्ती वाली गाड़ी का इस्तेमाल किया था। अस्पताल में इलाज करा रहे शैलेश हल्दनकर और बिपिन शेरे को मारने के लिए दाऊद गैंग के सुभाष सिंह ठाकुर, सुनील सावंत, ब्रिजेश सिंह आदि मैदान में उतरे थे। बदमाशों ने सबसे पहले शैलेश और बिपिन की सुरक्षा में लगे दो पुलिसकर्मियों की एके 47 राइफल से गोली मारकर हत्या कर दी। इसके बाद शैलेश की हत्या कर दी गई। बिपिन गंभीर रूप से घायल हो गया। कुछ ही दिनों बाद उनकी भी मृत्यु हो गई। उस वक्त दाऊद के इस खतरनाक तरीके से पूरा महाराष्ट्र हिल गया था। जे जे शूट आउट और उसके बाद हुए सांप्रदायिक दंगों के कारण मुख्यमंत्री सुधाकरराव नाइक को इस्तीफा देना पड़ा।

बीजेपी नेता और पूर्व विधायक रामदास नायक की भी उनके घर के पास सड़क पर उनकी कार में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। पहले नायक की कार के सामने बैठे कार्बाइनधारी कमांडो भीकाजी तड़वी की 25 अगस्त 1994 को सुबह करीब 9 बजे बांद्रा  पाली हिल में दाऊद गिरोह के फिरोज कोकानी ने एके 47 राइफल से गोली मारकर हत्या की और बाद में कार में बैठे रामदास नायक पर अंधाधुंध फायरिंग की गई। अब पूर्व मंत्री बाबा सिद्दीकी की पुलिस सुरक्षा में हत्या कर दी गई है। एक तरह से बिश्नोई ने महाराष्ट्र में मुंबई और पुणे को पूरी तरह से कब्जे में ले लिया है। सलमान खान पर हमले की कोशिश के बाद बिश्नोई गैंग बिंदास के हौसले बढ़ गए हैं। बावजूद, मुंबई पुलिस, जिसकी कभी स्कॉटलैंड यार्ड  पुलिस से तुलना की जाती थी, प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रही है। दाउद गिरोह अंकुश लगाने में सफल होने और लोकल गैंगस्टर अरुण गवली,अश्विन नाइक   छोटा राजन (जो विदेश भाग गया था) की कमर तोड़ने के बाद मुंबई पुलिस की स्पेशल टीम अब नहीं रही। उस जमाने में एनकाउंटर स्पेशलिस्ट की टीम ने कहर मचा दिया था हालांकि इस कदर एनकाउंटर्स के चलते यह मामला विवादास्पद भी रहा। उसे वक्त के वह पुलिस ऑफिसर जिन्होंने अंडरवर्ल्ड की कमर तोड़ दी थी अब महक में में नहीं है। अब कोई खबरियों का नेटवर्क नहीं रहा और न ही   उनके एजेंट रहे! सक्षम, चतुर, मेहनती अफसरों की नई टीम आज की मांग है।  बिश्नोई गैंग के मुंबई में फलने-फूलने  की शायद एक वजह यह भी रही है। बिश्नोई के गुर्गे स्थानीय नहीं है। उसका नेटवर्क देश के अलग-अलग विशेष कर उत्तर भारत में फैला है। आपने हर आपरेशन को अंजाम देने के वास्ते नए-नए चेहरों को चुनता है। उसमें ऐसे चेहरे भी होते हैं जिनका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं होता। ऐसे लोगों का पता लगाना टेढ़ी खीर होती है। फिलहाल उसने महाराष्ट्र में दो घटनाओं को अंजाम दिया है। कहा तो यही जाता है कि भ्रष्ट पुलिस और तथाकथित राजनीतिक चेहरों के चलते दाऊद अपना दबदबा बनाने में कामयाब रहा! क्या बिश्नोई को भी छिपे तौर पर उभारा जा रहा है? यदि ऐसा है तो अंजाम से आसानी से वाकिफ हुआ जा सकता है! गौरतलब है कि एक वक्त के बाद दाऊद खुद को मुसलमानों का खैर ख्वाह समझने लगा था और यदि बिश्नोई खुद को हिंदू अंडरवर्ल्ड का डॉन के तौर पर स्थापित करना चाहता है, तो आजकल के राजनीतिक हालात उसके लिए मुफीद हो सकते हैं इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता !

एशिया के सबसे बड़े टीबी अस्पताल से फ़रार हो रहे मरीज़!

पिछले पाँच वर्षों से अस्पताल में अकेली ज़िन्दगी गुज़र रही तबस्सुम गाँव से शहर लौटी, तो उसने ख़ुद को मुंबई उपनगर के मानख़ुर्द इलाक़े की एक झोंपड़पट्टी में पाया। 8×10 की झोंपड़ी और रहने वाले दज़र्न भर लोग। बग़ल से गंदा नाला, बजबजाती गंदगी, बदबू और गंदगी जलाने वाली भट्ठी से निकलती ख़तरनाक गैस आदि के बीच उसे बीमारी ने जकड़ लिया। उस इलाक़े में टीबी के मरीज़ों में उसका नाम भी शामिल हो गया। पहले स्थानीय महानगरपालिका अस्पताल में उसका इलाज चला। फिर टीबी के सबसे बड़े अस्पताल शिवडी में आना पड़ा। शारीरिक अक्षमता के चलते वह माँ नहीं बन पायी, तो परिवार ने उसे बेकार मान लिया। जब वह अपना पूरा इलाज कराकर घर पहुँची थी, तो उसे जली-कटी बातों के साथ-साथ लात-घूँसे भी खाने पड़ते थे। पति ने दूसरा निकाह कर लिया था। शौहर की नयी बेगम चाहती थी कि तबस्सुम कभी घर न लौटे। फिर वह यहीं लौट आयी, उसके बाद यही उसका ठिकाना बन गया।

एशिया के सबसे बड़े टीबी हॉस्पिटल में ऐसी कई तबस्सुम हैं, जिन्हें अपने घर लौटने की इजाज़त नहीं है। कोई किसी की माँ है, तो कोई किसी का बाप। कोई भाई, तो कोई बेटा। कोई किसी का सगा चाचा है, तो कोई दूर का रिश्तेदार। क्षय (टीबी) के डर से पारिवारिक रिश्तों का क्षय (नाश) किस तरह होता है, यह यहाँ दिखता है। झंटू (बदला हुआ नाम) को उसके दूर के रिश्तेदार पश्चिम बंगाल से ठाणे लाये थे। उसका कोई नहीं था। दूर के रिश्तेदार ठीक-ठाक रसूख़दार थे। उनके घर पर वह घरेलू नौकर-सा बन गया। उसके लगातार बीमार रहने से परिवार की मुखिया को शक हुआ। उसके निजी डॉक्टर ने जाँच के बाद बताया कि झंटू को टीबी है; तो बजाय इलाज कराने के, उसे घर छोड़ने का अल्टीमेटम दे दिया गया। इंसानियत के नाते कोई उसे इस अस्पताल में ले आया। मिली जानकारी के मुताबिक, इस अस्पताल में क़रीब 25 मरीज़ ऐसे हैं, जो पिछले पाँच वर्षों से घर गये ही नहीं। इनमें पाँच महिलाएँ हैं। हालाँकि उनके लिए कई संस्थानों से मदद माँगी गयी; लेकिन इनके एक्स-रे में पुराने टीबी का डॉट दिखायी देने के चलते सस्थाएँ किसी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहतीं। मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) के इस टीबी अस्पताल में इन मरीज़ों के अलावा ऐसे मरीज़ों की भी तादाद काफ़ी बड़ी है, जो अधूरा इलाज छोड़कर फ़रार हो जाते हैं और कुछ डामा (जबरदस्ती छुट्टी) लेकर अस्पताल से निकल गये।

बीएमसी के अधिकारियों के मुताबिक, फ़रार होने वाले मरीज़ लगभग हमेशा ग़ैर-संक्रामक होते हैं और अस्पताल में लंबे समय तक रहने के कारण भाग जाते हैं। शहर में 2023 में 63,575 टीबी के मामले दर्ज किये गये थे, जो 2022 के 65,747 मामलों के मुक़ाबले थोड़े-से ही कम हैं। इन रोगियों में से 2023 में 4,793 और 2022 में 5,698 में टीबी के ड्रग रेसिस्टेंट मरीज़ थे, जिनके लिए लगभग 18 महीने के इलाज और लम्बे समय तक अस्पताल में रहने की आवश्यकता होती थी, और हर मरीज़ को होती भी है।

अस्पताल में लंबे समय तक इलाज, परिवार की तरफ़ से असंवेदनशीलता और सामाजिक टैबू जैसी कई वजह हैं, जिनके चलते कई मरीज़ बेचैन हो जाते हैं और सुरक्षा गार्डों को चकमा देकर अस्पताल से भाग जाते हैं। मरीज़ों के ऐसा करने की प्रमुख वजह उनका अकेलापन है। दबी ज़ुबान में बताया जाता है कि अस्पताल के कुछ कर्मचारियों द्वारा मरीज़ों के साथ दुर्व्यवहार भी इसका एक कारण बनता है! 2021 से इस साल मई के बीच भागे 83 मरीज़ों में 78 पुरुष और पाँच महिलाएँ थीं। बीएमसी के जन स्वास्थ्य विभाग से आरटीआई के तहत जानकारी हासिल करने वाले चेतन कोठारी ने बताते हैं- ‘अस्पताल से भागने वाले मरीज़ों की संख्या हर साल बढ़ रही है।’

बक़ौल बीएमसी कार्यकारी स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. दक्षा शाह- ‘ये मरीज़ ग़ैर-संक्रामक हैं। कभी-कभी मरीज़ों को निगरानी के लिए कुछ हफ़्ते और रुकने के लिए कहा जाता है। लेकिन वे ऐसा नहीं करना चाहते और चले जाना चाहते हैं। ऐसे मरीज़ों को चिकित्सा सलाह के विरुद्ध छुट्टी (डामा) के रूप में चिह्नित किया जाता है।’

जो मरीज़ मानसिक रूप से ज़्यादा परेशान होते हैं, उनकी काउंसलिंग के लिए काउंसलर्स और साइकैटस्ट भी अस्पताल में हैं, जो उन्हें इस मानसिकता से निकलने में मदद करते हैं। 2021 से इस साल मई के बीच लगभग 1,574 मरीज़ों ने डामा की माँग की है। बीएमसी अधिकारियों ने कहा कि उनके लापता होने पर पुलिस में शिकायत दर्ज की गयी है। कई बार बीएमसी के स्वास्थ्य कर्मचारी मरीज़ की तलाश के लिए उसके अंतिम ज्ञात पते पर जाते हैं। संयोग से अस्पताल ने 2021 से आत्महत्या का मामला दर्ज नहीं किया है।

दरमियान सिंह बिष्ट पेशे से वकील हैं और इन विषयों में भी उनकी रुचि है। वह कहते हैं- ‘सरकार टीबी से लड़ने पर कितने भी पैसे ख़र्च करे, अगर मरीज़ इलाज पूरा नहीं करता है, तो सब बेकार है। अधूरे इलाज से न केवल उनमें दवा प्रतिरोधी टीबी विकसित होने का ख़तरा बढ़ जाता है, बल्कि यदि मरीज़ टीबी उपचार और डॉक्टर के निर्देशों का पालन नहीं करते हैं, तो टीबी मरीज़ों के क़रीबी लोगों और अन्य लोगों में भी संक्रमण फैल सकता है। मरीज़ों के फ़रार होने की प्रमुख वजह उनका अकेलापन है।

एक अक्स यह भी – सूत्रों के मुताबिक, कई मरीज़ ऐसे हैं, जो ठीक होने के बाद भी घर नहीं लौटना चाहते हैं। क्योंकि उनके परिजन भी अस्पताल में ही आकर रह रहे हैं। अस्पताल मरीज़ों को वार्ड में, जबकि अन्नपूर्णा नामक संस्था उनके परिजनों को बाहर भोजन का प्रबंध करते हैं। हालाँकि कई मरीज़ों का अपना निजी आवास भी है, जिसे वे किराये पर चढ़ाकर पैसा कमा रहे हैं। ऐसे बहुत-से मरीज़ अस्पताल में ही बस गये हैं। हालाँकि इस तरह का दावा करने वाले व्यक्ति के पास इस तरह के लोगों की जानकारी तो है; लेकिन उसने पुख़्ता जानकारी देने से इनकार कर दिया।