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क्यों ख़त्म नहीं हो रहीं किसानों की समस्याएँ?

योगेश

हमारे कृषि प्रधान देश में किसानों की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है, जिसके कई कारण किसान-आत्महत्या के मामले बढ़ने के साथ-साथ बड़ी संख्या में वे खेती छोड़ते जा रहे हैं। केंद्र सरकार के वादे के मुताबिक सन् 2022 तक किसानों की आय भी दोगुनी नहीं हुई। स्वामीनाथन आयोग की सिफ़ारिशों के हिसाब से फ़सलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य और इसके लिए गारंटी क़ानून भी वह नहीं बना रही है। फ़सलों की लागत बढ़ती जा रही है। कृषि यंत्रों, कीटनाशकों, बीजों, डीजल पर जीएसटी लग रही है और मंडी का आढ़त शुल्क, महँगी ढुलाई जैसे ख़र्चे अलग से हैं। अभी कृषि यंत्रों पर 28 प्रतिशत, कीटनाशक दवाओं पर 18 प्रतिशत, बीजों पर 12 प्रतिशत, डीजल पर सीधे जीएसटी तो नहीं है; लेकिन वैट और दूसरे कर लागू हैं। इससे किसानों की जेब पर अतिरिक्त बोझ पड़ रहा है, जो उन्हें क़र्ज़ में डुबोने के लिए काफ़ी है। नाबार्ड ने अपनी कुछ महीने पहले की रिपोर्ट में बताया था कि देश के 55.4 प्रतिशत किसान परिवार क़र्ज़ में डूबे हैं, जिनमें हर किसान परिवार पर औसतन 91,231 रुपये का क़र्ज़ है। 23.4 प्रतिशत किसान परिवार निजी कम्पनियों और लोगों के क़र्ज़ में दबे हैं।

31 जनवरी को संसद में केंद्रीय वित्त और कॉरपोरेट कार्य मंत्री निर्मला सीतारमण ने आर्थिक समीक्षा 2024-25 की रिपोर्ट पेश करते हुए कहा कि वित्त वर्ष 2024-25 में वास्तविक मूल्य वर्धन 6.4 प्रतिशत की दर से और कृषि क्षेत्र में 3.8 प्रतिशत की दर से बढ़ोतरी होने का अनुमान है। लेकिन किसान परिवारों की आर्थिक स्थिति और कृषि में कम होते जा रहे रोज़गार के अवसरों से लगता है कि सिर्फ़ कृषि क्षेत्र का बाज़ार लाभ में हैं, किसान नहीं। कृषि क्षेत्र में कम उत्पादन, किसानों की कम होती आय, किसानों की कृषि में अरुचि, महँगी होती कृषि, कृषि यंत्रों के ज़्यादा उपयोग और कृषि साधनों की कमी जैसे कारणों से कृषि क्षेत्र में रोज़गार घटते जा रहे हैं। वित्त वर्ष 2023-24 की आर्थिक समीक्षा में कहा गया था कि कृषि क्षेत्र में घटते रोज़गारों की पूर्ति और ग़ैर-कृषि क्षेत्रों में हल वर्ष 78.5 लाख नौकरियाँ पैदा करने की ज़रूरत है और ये नौकरियाँ कम-से-कम 2030 तक देनी होंगी। आर्थिक सर्वेक्षण की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2024-25 तक कृषि क्षेत्र में पुरुषों की भागीदारी 3.9 प्रतिशत कम हुई है, जबकि महिलाओं की भागीदारी 7.5 प्रतिशत बड़ी है। लेकिन कृषि क्षेत्र की सर्वे रिपोर्ट ये कह रही हैं कि रोज़गार के मामले में कृषि क्षेत्र 46.2 प्रतिशत की हिस्सेदारी के साथ अभी भी अग्रणी बना हुआ है।

इसके अलावा किसानों को उनकी फ़सलों का सही भाव नहीं मिलता, जिसकी माँग को लेकर पंजाब के किसान सड़कों पर हैं। उनका साथ देश भर के जागरूक किसान दे रहे हैं। किसानों के साथ केंद्र सरकार के प्रतिनिधि मंडल की बैठकें नाकाम रही हैं। भारतीय किसान यूनियन (एकता सिद्धूपुर – ग़ैर राजनीतिक) के किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल किसानों की माँगें पूरी न होने तक अनिश्चितकालीन अनशन पर हैं और उन्हें अनशन करते हुए 100 दिन से ज़्यादा हो गये हैं। उनका स्वास्थ अच्छा नहीं है उनकी शरीर बहुत कमज़ोर हो चुका है और पैरों में सूजन आ चुकी है। अब 19 मार्च को किसान नेताओं और केंद्र सरकार के प्रतिनिधि मंडल के बीच बातचीत होगी। इस बैठक के लिए किसान चंडीगढ़ के लिए कूच कर रहे हैं। किसान नेताओं ने कहा है कि अगर केंद्र सरकार इस बैठक में भी किसानों की माँगें नहीं मानेगी, तो वे दिल्ली जाएँगे। किसानों के चंडीगढ़ में जमा होने के पहले ही सरकार ने चंडीगढ़ में पुलिस की तैनाती बड़ा दी है। केंद्र सरकार ने हर बार किसानों पर बल प्रयोग करके उन्हें रोकने की कोशिश की है, जिसमें किसानों पर अत्याचार की सीमाएँ पार की गयी हैं।

2020 में तीन कृषि क़ानूनों के चलते शुरू हुआ किसान आन्दोलन से अब तक 800 के लगभग किसानों की मौत हो चुकी है। किसानों का कहना है कि उनके कई निर्दोष किसान साथियों की हत्या हुई है। केंद्र सरकार किसानों के साथ धोखा कर रही है और उनकी माँगों की अनदेखी करती जा रही है। किसानों ने पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान पर भी केंद्र सरकार के इशारों पर काम करने का आरोप लगाया है।

किसानों की फ़सलों का सही भाव न मिलने की स्थित यह है कि हर साल लाखों किसानों को उनकी फ़सलों को घाटे में बेचना पड़ता है। कई किसान घाटे से आहत होकर फ़सलों को खेत में ही नष्ट कर देते हैं। 2023 में सोलापुर ज़िले के बार्शी तालुका के गाँव कोरेगाँव के किसान राजेंद्र तुकाराम चव्हाण को भाड़ा और दूसरे कर काटकर पाँच कुंतल 12 किलो प्याज के मात्र दो रुपये 49 पैसे की ही रसीद मिली, जिसका किसान को दो रुपये का चेक मिला था। किसान राजेंद्र तुकाराम चव्हाण ने अपने दो एकड़ खेत में प्याज की फ़सल उगायी थी, जिसकी सबसे बाद की खेप के उसे दो रुपये ही मिले। किसान को दो रुपये का चेक कृषि आय बाज़ार समिति के व्यापारी सूर्या ट्रेडर्स ने दिया था और कहा था कि प्याज ख़राब थी। 2023 में प्याज का बाज़ार भाव 30 रुपये से 35 रुपये प्रति किलो था। 2022 में भी मध्य प्रदेश में एक किसान के तीन कुंतल प्याज के भी मंडी में दो रुपये ही मिले थे।

इस वर्ष कुछ दिन पहले ही उत्तर प्रदेश में इटावा ज़िले के चायत भरथना सरैया क्षेत्र के गाँव नगला हरलाल के किसान प्रभाकर सिंह शाक्य ने अपने खेत में खड़ी छ: बीघा गोभी की फ़सल में ट्रैक्टर चलवाकर उसे मिट्टी में मिला दिया, जिसका कारण गोभी का डेढ़ से दो रुपये किलो का मंडी भाव था। संपर्क करने पर किसान प्रभाकर सिंह शाक्य ने कहा कि उन्होंने तीन महीने की कड़ी मेहनत करके 56,000 रुपये की लागत लगाकर गोभी की फ़सल उगायी थी। अगर गोभी का चार-पाँच रुपये किलो का भाव मिलता, तो भी उनकी फ़सल ढाई से तीन लाख रुपये की होती। लेकिन डेढ़-दो रुपये किलो के भाव से एक लाख रुपये की भी फ़सल नहीं निकल पाती। उसमें कटाई, ढुलाई अलग देनी पड़ती। इस तरह उन्हें घाटा होता। इसलिए उन्होंने पहले अपने और आसपास के गाँवों के लोगों से मुफ्त में खेत से गोभी तोड़कर ले जाने को कहा और फिर बची हुई फ़सल में ट्रैक्टर चलवा दिया।

ख़राब मौसम और आपदा के कारण ख़राब होने वाली फ़सलों का बीमा भी किसानों को नहीं मिल पाता। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वित्त वर्ष 2025-26 के लिए 01 फरवरी को बजट पेश करते हुए किसानों के लिए कई योजनाओं की घोषणा की, जिनमें फ़सल बीमा को लेकर उन्होंने कहा कि हवा, आँधी, ओलावृष्टि, कीट-पतंगों से नष्ट फ़सलों के नुक़सान की भरपाई के लिए किसानों को प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना के तहत पूरा पैसा मिलेगा। लेकिन किसानों की शिकायत रहती है कि उन्हें फ़सल बीमा ही नहीं मिलता। जिन किसानों को फ़सल बीमा मिलता है, उनकी शिकायत रहती है कि फ़सल बीमा बहुत कम मिलता है। कई राज्यों के किसान फ़सल ख़राब होने पर बीमा न मिलने के लिए संघर्ष भी करते रहते हैं, फिर भी उन्हें फ़सलों के नुक़सान की उचित राशि नहीं मिल पाती।

किसानों को स्वामीनाथन आयोग की सिफ़ारिशों के हिसाब से न्यूनतम समर्थन मूल्य देने, इस हिसाब से न्यूनतम समर्थन मूल्य का गारंटी क़ानून बनाने और किसानों की दूसरी माँगें पूरी करने का फ़ैसला केंद्र सरकार कब लेगी, इसका कोई अता-पता नहीं है। केंद्र सरकार इस बारे में किसानों को आश्वासन देती रहती है। लेकिन उसकी टालमटोल और किसानों के प्रति उसका व्यवहार उसके इरादों को साफ़ दर्शाते हैं। किसानों के शान्ति से आन्दोलन करने को केंद्र सरकार उनकी कमज़ोरी समझ रही है। किसान नेताओं ने कहा है कि वे केंद्र सरकार से माँग कर रहे हैं कि किसानों की माँगों को उसे मान लेना चाहिए, नहीं तो एक और देशव्यापी आन्दोलन होगा, जिसकी ज़िम्मेदारी केंद्र सरकार की होगी। सुप्रीम कोर्ट के द्वारा गठित समिति अभी तक किसी नतीजे पर नहीं पहुँची है। उसने भी किसानों के मामले को गंभीरता से नहीं लिया है। सुप्रीम कोर्ट को किसानों की माँगों को अनसुना करने को लेकर केंद्र सरकार को कटघरे में खड़ा करना चाहिए। हालाँकि इसमें समस्या उन किसानों की है, जो केंद्र सरकार से कोई शिकायत नहीं रखते। ऐसे किसानों में दो तरह के किसान हैं। एक वे, जो भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी को पसंद करते हैं और दूसरे वे, जो किसानों की समस्याओं को लेकर जागरूक ही नहीं हैं। ये किसान अपनी दुर्दशा को अपना भाग्य मानते हैं। किसानों में इसी कारण एकता नहीं है और किसान आन्दोलन मज़बूत नहीं हो पा रहा है।

अगर पूरे देश के किसान एकजुट होकर अपनी माँगों को सरकार के सामने रखने के लिए आगे आएँ, तो केंद्र सरकार को झुकना ही पड़ेगा। अपने क्षेत्र के कई किसानों से किसान आन्दोलन और किसानों की माँगों के बारे में बात करने पर ज़्यादातर किसान इनसे कोई मतलब नहीं रखने वाले ही मिले। उन्हें सरकार से अपनी-अपनी छोटी-छोटी शिकायतें ही हैं। किसान नेताओं को अगर किसान आन्दोलन को बड़ा करना है, तो गाँवों के किसानों को जगाना पड़ेगा। इसके लिए महेंद्र सिंह टिकैत जैसे किसान नेता का होना ज़रूरी है। लेकिन इस समय के किसान नेताओं में ऐसा एक भी किसान नेता नहीं है।

ट्रम्प के आगे झुकना ठीक नहीं

आपने देखा अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने भरी प्रेस कॉन्फ्रेंस में यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की को किस तरह जलील किया। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ भी उनका व्यवहार वैसा नहीं था, जैसा एक राजा का दूसरे राजा के साथ होना चाहिए। ज़ेलेंस्की ने तो फिर भी प्रतिरोध की भाषा इस्तेमाल की थी; मोदी सिर्फ़ हँसते रहे। हो सकता है यह उनका कूटनीतिक अंदाज़ हो। या फिर हो सकता है कि वह अपने डिअर फ्रेंड ट्रम्प को नाराज़ नहीं करना चाहते हों। ट्रम्प दुनिया भर के देशों पर टैरिफ में कटौती को लेकर दबाव बना रहे हैं; भारत पर भी बना रहे थे। कनाडा और मैक्सिको ने ट्रम्प के दबाव के आगे झुकने से मना कर दिया। दो दिन बाद ही ट्रम्प ने कनाडा और मेक्सिको पर लगाये गये नये टैरिफ से कई उत्पादों को छूट देने का फ़ैसला कर लिया। लेकिन इसी दौरान ट्रम्प ने ख़ुलासा किया कि भारत टैरिफ में कमी करने के लिए तैयार हो गया है। ट्रम्प ने अपमानजनक भाषा में कहा- ‘क्योंकि आख़िरकार कोई उनके (भारत के) किये की पोल खोल रहा है।’ ट्रम्प ने जब यह ख़ुलासा किया, तब तक भारत ने आधिकारिक रूप से इस विषय पर चुप्पी साधे रखी थी। तो क्या प्रधानमंत्री मोदी अपने मित्र के दबाव के आगे झुक गये हैं?

जब यह सारी क़वायद चली हुई थी, उस दौरान भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर अमेरिका में ही थे। अमेरिका की भाषा उस दौरान भी किसी तरह मित्र वाली नहीं थी। अमेरिका एक तरह से हाँकने वाली भाषा इस्तेमाल कर रहा है। भारत ने ख़ुद को इस स्थिति में क्यों पहुँचा दिया? इसका बेहतर जवाब तो मोदी सरकार ही दे सकती है। पूर्व के प्रधानमंत्री नेहरू, इंदिरा गाँधी और यहाँ तक कि वाजपेयी भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के लिए इस्तेमाल की जाने वाली भाषा को लेकर बेहद संवेदनशील रहे हैं और उन्होंने ऐसा होने पर साफ़ शब्दों में प्रतिवाद करने या अपनी नाराज़गी जताने में कभी हिचक नहीं दिखायी थी। लेकिन दुनिया में भारत के इस डंका-काल में यह सब होना हैरानी भरा है और मोदी सरकार की विदेश नीति पर सवाल उठाता है।

भारत की अमेरिका के साथ व्यापार हिस्सेदारी समय के साथ बढ़ी है। मोदी-काल की ही बात की जाए, तो इन 11 वर्षों में फार्मा, इलेक्ट्रॉनिक्स, टेक्सटाइल आदि में बेहतर निर्यात के चलते अमेरिका के साथ भारत का माल व्यापार बढ़ते बढ़ते 35 अरब डॉलर तक पहुँच गया है। भारत अमेरिका से पेट्रोलियम  पदार्थ, कच्चा तेल, मोती, क़ीमती पत्थर, मशीनरी, विमान के पुर्जे और सैन्य उपकरण आयात करता है। ट्रम्प ने धमकी दी थी कि यदि ब्रिक्स देश अमेरिकी डॉलर को कमज़ोर करते हैं, तो वह भारत समेत उन पर 150 फ़ीसदी टैरिफ लगा देंगे। अब इन टैरिफ शर्तों के चलते निश्चित ही भारत का व्यापार प्रभावित होगा। ट्रम्प ने 08 मार्च को जब मीडिया ब्रीफिंग में कहा कि भारत उन (अमेरिका) से भारी टैरिफ वसूलता है, तो आप भारत में कुछ भी नहीं बेच सकते।

प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका यात्रा के बाद कुछ रिपोर्ट्स में कहा गया कि भारत सरकार अमेरिका से आयात किये जाने वाले प्रमुख सामानों पर टैरिफ में कटौती करने पर विचार कर रही है। ट्रम्प ने अमेरिकी कांग्रेस के साझे सत्र में अपने भाषण में भी भारत के आयात शुल्क को निशाने पर रखा था। ट्रम्प ने कहा था कि भारत हमसे 100 फ़ीसदी से ज़्यादा ऑटो टैरिफ वसूलता है। फरवरी में ट्रम्प ने कनाडा और मैक्सिको से आयात पर भी 25 फ़ीसदी और चीन से आने वाले सामानों पर 10 फ़ीसदी अतिरिक्त टैरिफ की घोषणा की थी।

याद रहे भारत अमेरिका के साथ रेसिप्रोकल टैरिफ की जगह द्विपक्षीय व्यापार समझौते (बीटीए) पर ज़ोर दे रहा है। भारत के साथ इस कड़ाई के बीच ट्रम्प कनाडा और मेक्सिको पर लगाये गये नये टैरिफ से कई उत्पादों को छूट देने का फ़ैसला कर चुके हैं। सिर्फ़ दो दिन में ट्रम्प ने अपने दो सबसे बड़े व्यापारिक भागीदारों पर लगाये गये आयात करों को दूसरी बार वापस लिया।

चूँकि ट्रम्प ने 02 अप्रैल से पारस्परिक टैरिफ लगाने की घोषणा की है, इसलिए भारत को लेकर उनके दावे के बाद यह देखना दिलचस्प होगा कि अमेरिका के सामानों पर भारत टैक्स की क्या सीमा तय करता है। सम्भावना है कि यह कटौती व्यापक स्तर पर हो सकती है। अमेरिका के वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लुटनिक ने हाल में कहा था कि व्हिस्की और हार्ले डेविडसन बाइक जैसे कुछ विशेष उत्पादों पर टैरिफ कम करने से काम नहीं चलेगा, बल्कि भारत को बड़े स्तर पर टैरिफ में कटौती करनी होगी। उन्होंने भारतीय बाज़ार में कृषि उत्पादों को लेकर व्यापारिक खुलापन लाने को भी बहुत ज़रूरी बताया था। ज़ाहिर है भारत जैसे बड़े बाज़ार में अमेरिका अपनी सुविधा के नियम चाहता है। दिलचस्प यह है कि प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका यात्रा के बाद से ही भारत की ऑटो पार्ट्स, कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स, ज्वेलरी, कपड़े बनाने वाली कम्पनियाँ अपने अमेरिकी व्यापारिक साझेदारों के साथ अपने व्यापारिक जोखिम कम करने की रणनीति बनाने में जुट गये थे।

ट्रम्प की इस चाल से निश्चित ही भारतीय उद्योग प्रभावित होंगे। जब अमेरिकी उत्पादों पर आयात कर (टैरिफ) घटेगा, तो वो उत्पाद भारत में सस्ते मिलेंगे। उपभोक्ताओं का तो इसमें लाभ होगा; लेकिन ख़राब असर भारतीय उद्योगों पर पड़ेगा। इलेक्ट्रॉनिक सहित जिन अमेरिकी उत्पादों का मूल्य कम होगा, उनमें भारतीय कम्पनियों के लिए न सिर्फ़ प्रतिस्पर्धा बढ़ जाएगी, बल्कि कई कम्पनियों के सामने अस्तित्व का संकट भी खड़ा हो सकता है। भारतीय उपभोक्ताओं की कमज़ोरी हमेशा से विदेशी उत्पाद रहे हैं। वे इसे स्टेटस सिम्बल से जोड़कर देखते हैं। ऐसे में जब कोई विदेशी उत्पाद कम्पीटीटिव क़ीमत पर उपलब्ध होगा, तो निश्चित ही देश के उपभोक्ताओं की प्राथमिकता अमेरिकी उत्पाद होंगे।

भारत में विदेशी बॉन्ड्स को बढ़त मिलने से मेक इन इंडिया की नीति भी कमज़ोर पड़ जाएगी। जब ऑटो पार्ट्स की क़ीमत नीचे जाती है, तो इसका सीधा और ख़राब असर भारतीय ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरिंग कम्पनियों पर पड़ेगा। उनको नुक़सान हो सकता है। भारत की फार्मा सेक्टर और डेयरी इंडस्ट्री पर भी इसका व्यापक दबाव बनेगा। इसके लिए भारत सरकार को नियमों में बहुत बेहतर संतुलन बनाना होगा। ज़ाहिर है वर्तमान हालत यह संकेत कर रहे हैं कि आने वाले दिनों में भारत-अमेरिका के बीच संशोधित या नया व्यापार समझौता ड्राफ्ट बनेगा। अमेरिका से आने वाले कुछ ख़ास सामानों पर आयात शुल्क कम होने की स्थिति में भारतीय कम्पनियों को उन्हें सस्ता करना होगा। इससे उपभोक्ताओं को तो सस्ती क़ीमत पर कुछ वस्तुएँ मिलेंगी; लेकिन इससे कई भारतीय सेक्टर्स को घाटा हो सकता है। दरअसल पूर्व सरकार के समय उच्च टैरिफ लगाने की ख़ास वजह ही यही थी कि भारतीय कम्पनियाँ फले-फूलें।

अमेरिका पहले से ही भारत की इस नीति का विरोधी रहा है और वह अमेरिकी उत्पादों पर ज़्यादा आयात शुल्क का विरोध करता रहा है। निश्चित ही मोदी सरकार पर दबाव रहेगा कि वह ऐसा रास्ता निकाले, जिससे भारतीय उत्पादों पर संकट न आये। यह इसलिए भी ज़रूरी है, क्योंकि मेक इन इंडिया के सबसे बड़े समर्थक ख़ुद प्रधानमंत्री मोदी रहे हैं। लेकिन यदि इस नीति में सरकार अमेरिकी हितों के आगे समर्पण करती है, तो भारतीय कम्पनियाँ निश्चित ही संकट में घिर जाएँगी।

प्रधानमंत्री मोदी ट्रम्प को दोस्त कहते हैं। हाल ही में जब वह अमेरिका के दौरे पर गये थे, तो ट्रम्प के सामने आते ही वह हेलो फ्रेंड कहते हुए ट्रम्प के गले जा लगे थे। यह अलग बात है कि ट्रम्प ने मोदी के स्वागत के लिए गेट पर ख़ुद न जाकर अपनी एक महिला अधिकारी को भेजा था। बचपन के मित्र सुदामा जब कृष्ण के महल में उनसे मिलने गये थे, तो कृष्ण न सिर्फ़ उनका स्वागत करने आगे आये थे, बल्कि उनके लाये चावल भी प्रेम से उन्होंने खाये थे। कहने का अर्थ यह है कि मित्रता में कोई बड़ा-छोटा नहीं होता। लेकिन याद रखना होगा कि ट्रम्प कृष्ण नहीं हैं। राष्ट्रपति होते हुए भी वह शुद्ध रूप से एक व्यापारी हैं। ट्रम्प सिर्फ़ अमेरिका का हित देखते हैं। प्रधानमंत्री मोदी को भी भारत का हित देखते हुए कुछ अनोखा करना होगा, अन्यथा उनकी छवि ताक़तवर राष्ट्र के सामने झुकने वाले नेता की बनते देर नहीं लगेगी।

अप्रवासी भारतीयों को जितने अपमानजनक तरीक़े से बेड़ियों में बाँधकर अमेरिका ने भारत भेजा था, उसके ज़$ख्म अभी तक गहरे हैं। ऐसे में मोदी सरकार के अमेरिका के सामने झुकने और ट्रम्प के दबाव में आने की चर्चाओं ने भारतीय अस्मिता पर चोट पहुँचायी है। सन् 1971 के युद्ध में जब अमेरिका ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी पर सातवें बेड़े को लेकर दबाव बनाने की कोशिश की थी, तो इंदिरा गाँधी ने देश की अस्मिता को सर्वोपरि रखते हुए दबाव के आगे झुकने से मना कर दिया था। कुछ वैसा ही जिगरा अब दिखाने की ज़रूरत है। कनाडा और मेक्सिको ही नहीं, यूरोप भी ट्रम्प की दादागीरी के सामने समर्पण न करने की हिम्मत दिखा चुके हैं। चीन ने तो यह चुनौती ही दे दी कि अमेरिका (ट्रम्प) युद्ध लड़ना चाहता है, तो लड़कर देख ले। मोदी सरकार को भी भारत की असली ताक़त दिखानी होगी; क्योंकि इतिहास में वही याद किया जाता है, जो देशहित से समझौता नहीं होने देता।

पंजाब में अभी दख़ल नहीं देगी भाजपा

पंजाब में विपक्ष के नेता एवं वरिष्ठ कांग्रेसी प्रताप सिंह बाजवा भले ही यह बयान दे रहे हों कि आम आदमी पार्टी के 32 से ज़्यादा विधायक उनके संपर्क में हैं और कुछ अन्य भाजपा के संपर्क में भी हो सकते हैं, भाजपा के कुछ राज्य नेता भी आप सरकार को हिलाने के लिए उत्सुक हो सकते हैं; लेकिन बताया जा रहा है कि भाजपा नेतृत्व आम आदमी पार्टी की गाड़ी को इतनी जल्दी पटरी से उतारने के लिए तैयार नहीं है।

विधानसभा में आप के पास 117 में से 95 विधायकों के साथ पूर्ण बहुमत है। दूसरी बात यह कि भाजपा कुछ साल पहले ही अकाली दल की छाया से बाहर आयी है और कांग्रेस तथा अन्य दलों से प्रतिभाओं को आकर्षित कर रही है। अकाली दल के नेता सुखबीर सिंह बादल पहले ही अपने साले बिक्रमजीत सिंह मजीठिया के साथ टकराव की राह पर हैं, जो ईडी की जाँच का सामना कर रहे हैं।

भाजपा एक मज़बूत जाट सिख नेता की तलाश में है, जो पार्टी के पारंपरिक हिंदू वोट बैंक को भी अपने साथ जोड़ सके। भाजपा चाहती है कि भगवंत सिंह मान आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल की छाया से बाहर आएँ, जो दिल्ली के बाद अब पंजाब पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। लेकिन मान के छाया से बाहर आने की संभावना कम है; क्योंकि आम आदमी पार्टी की दिल्ली टीम के पास विभिन्न समितियों के माध्यम से प्रशासन पर मज़बूत पकड़ है। भाजपा सीमावर्ती राज्य पंजाब में विधायकों की ख़रीद-फ़रोख़्त को बढ़ावा नहीं देना चाहती और वह चाहती है कि कांग्रेस यह काम करे। भाजपा केंद्रीय मंत्री रवनीत सिंह बिट्टू और अन्य दलों के नेताओं से मिलकर बने नये नेतृत्व पर भरोसा कर रही है।

मोदी और शाह के सुर अलग क्यों?

यह कोई छिपा राज नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वरिष्ठ राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) नेता शरद पवार के साथ मधुर सम्बन्ध हैं और वे पार्टी के लोगों की असहजता के बावजूद सार्वजनिक रूप से उनकी प्रशंसा करते रहे हैं। यहाँ तक कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का नेतृत्व भी इस रुख़ से असहज है। शरद पवार के किसी भी निमंत्रण को मोदी सहर्ष स्वीकार करते हैं और यहाँ तक कि उनकी प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि जब पवार कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में केंद्रीय कृषि मंत्री थे, तब उनका (मोदी का) मार्गदर्शन कैसे किया।

लेकिन हाल ही में एक नया चलन सामने आया है और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शरद पवार के ख़िलाफ़ सार्वजनिक बयानबाज़ी शुरू कर दी। शाह ने पवार के लिए भटकती आत्मा और विश्वासघाती जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया। शाह का ग़ुस्सा तबसे शुरू हुआ, जबसे पवार ने प्रधानमंत्री से मुलाक़ात कर उन्हें अनार भेंट किये; जिससे राकांपा के दोनों गुटों के एक साथ आने की चर्चा शुरू हो गयी। इससे महाराष्ट्र में महायुति में भ्रम की स्थिति पैदा हो गयी और किसी के लिए इस भ्रम को तोड़ना ज़रूरी हो गया था। शाह के इस शाब्दिक हमले को पवार द्वारा सन् 1978 में महाराष्ट्र में वसंतदादा पाटिल के नेतृत्व वाली सरकार से 40 विधायकों के साथ बाहर निकालने और फिर मुख्यमंत्री बनने के संदर्भ में देखा जा रहा है। शाह ने पवार पर धोखा और विश्वासघात की राजनीति के जनक होने का आरोप लगाया।

शरद पवार ने अमित शाह पर पलटवार किया और उन पर गृह मंत्री के पद की मर्यादा न बनाये रखने का आरोप लगाया तथा उन्हें तड़ीपार कह दिया, जिसमें उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गुजरात के मामले में आदेश का ज़िक्र भी किया। बाद में शाह ने यूपीए के तहत देश के कृषि मंत्री के रूप में पवार को बेकार क़रार देते हुए उन पर फिर से हमला किया। भाजपा के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि अमित शाह का पवार पर शाब्दिक हमला संदेश देने की एक अच्छी तरह से तैयार की गयी रणनीति का हिस्सा है कि जब महाराष्ट्र के मामलों की बात आती है, तो भाजपा का उनसे कोई लेना-देना नहीं है। इन दिनों संसद में दोनों एक-दूसरे से फूटी आँख नहीं सुहाते।

महाराष्ट्र में छिड़ा भाषा विवाद, गरमाया माहौल

के. रवि (दादा)

हमारे समाज को सिर्फ़ बीमारियाँ ही तबाह नहीं करती हैं, बल्कि अपराधी और उन्हें आशीर्वाद देने वाले पॉवरफुल लोग भी तबाह करते हैं। महाराष्ट्र में आजकल शारीरिक, मानसिक बीमारियों के अलावा भी इसी तरह की बीमारियाँ पैदा हो रही हैं। इन बीमारियों में भड़काऊ राजनीतिक बयान भी आग में घी का काम करते हैं। इससे समाज में हिंसा फैलने का डर बना रहता है, जिसकी आग पर राजनीतिक लोग अपनी-अपनी रोटियाँ मज़े से सेंकते हैं और नोट छापते हैं।

अभी कुछ दिन पहले ही ख़बर सामने आयी कि महाराष्ट्र में गुइलैन-बैरे सिंड्रोम नाम की बीमारी ज़ोर पकड़ रही है, जिसके चलते 12-13 मौतें हो चुकी हैं और इस बीमारी ने 15-16 लोग को वेंटिलेटर पर पहुँचा रखा है। सूत्रों की मानें तो गुइलैन-बैरे सिंड्रोम का पहला केस 09 जनवरी को मिला था, जिसके बाद से अब तक 200 से अधिक लोग इस बीमारी से पीड़ित मिल चुके हैं। हालाँकि इस बीमारी में बड़ी संख्या में मरीज़ ठीक भी हो रहे हैं। भले ही इस ख़तरनाक बीमारी का इलाज आसान नहीं है। पर इससे भी ज़्यादा ख़तरनाक बीमारी एक और है, जो लोगों के उलटा-शुलटा बोलने से फैलती है और यह बीमारी अचानक ही नफ़रत की आग लगाकर बहुत लोगों की जान भी ले लेती है।

महाराष्ट्र में इन दिनों मराठी भाषा को लेकर दिये गये राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व सरकार्यवाह सुरेश भैयाजी जोशी के बयान पर लगी हुई है। हालाँकि उनके मराठी भाषा पर दिये गये उनके बयान से कोई हिंसा तो नहीं भड़की है; पर हालात काफ़ी ख़राब हो गये थे। दरअसल मुंबई में एक कार्यक्रम में भैयाजी जोशी ने कहा था कि हर किसी को मराठी जानना ज़रूरी नहीं है। अगर आप मुंबई में रहते हैं, तो यह ज़रूरी नहीं है कि आपको मराठी सीखनी पड़े। मुंबई के हर हिस्से की भाषा अलग है। घाटकोपर इलाक़े की भाषा गुजराती है। भैयाजी जोशी के इस बयान से मराठी मानुष नाराज़ हो गये। बहुत-से लोग भैयाजी जोशी के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने लगे और उनकी गिरफ़्तारी की माँग करने लगे।

शिवसेना (यूबीटी) के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने भैयाजी जोशी पर देशद्रोह का मामला दर्ज किए जाने की माँग की। उनके बेटे आदित्य ठाकरे ने कहा है कि जिस तरह दूसरे राज्यों की भाषाएँ हैं, उसी तरह महाराष्ट्र भूमि की भाषा भी मराठी है। भाजपा की विचारधारा महाराष्ट्र का अपमान करना है। बाहर से लोग हमारे राज्य में आते हैं और यहाँ बस जाते हैं। एनसीपी (एससीपी) के विधायक जितेंद्र आव्हाड ने विधानसभा में कहा कि भैयाजी जोशी ने हमारी मातृभाषा का अपमान किया है। पहले वह जाति के नाम पर बाँटते थे, फिर धर्म के नाम पर और अब भाषा के नाम पर बाँट रहे हैं। शिवसेना (यूबीटी) के नेता आदित्य ठाकरे ने कहा कि हम लगातार देख रहे हैं कि कोश्यारी से लेकर कोरटकर और सोलापुरकर तक सभी महाराष्ट्र, महाराष्ट्र के नायकों और देवताओं का अपमान कर रहे हैं। अब सुरेश भैयाजी जोशी ने मराठी का अपमान किया है। उन्हें मैं चुनौती देता हूँ कि वह तमिलनाडु या गुजरात में ऐसा कुछ कहने की हिम्मत दिखाएँ। अपने बयान के बाद विधानसभा से लेकर मराठी मानुषों तक का ग़ुस्सा झेल रहे भैयाजी जोशी ने सफ़ाई देते हुए कहा है कि उनकी बात ग़लत मतलब निकाला गया है। महाराष्ट्र की भाषा मराठी ही है, जिससे स्वाभाविक रूप से मुंबई की भाषा भी मराठी है। पर मुंबई में भारत के अलग-अलग भाषाएँ बोलने वाले रहते हैं, जिसके चलते उन्होंने ऐसा बोला था। साथ में उन्होंने यह भी कह दिया कि मुंबई में भी अलग-अलग भाषाएँ बोलने वाले लोग रहते हैं। इसलिए यह स्वाभाविक है कि वे यहाँ आएँ और मराठी सीखें, समझें और पढ़ें।

महाराष्ट्र विधानसभा इस मुद्दे को लेकर बीते दिनों भाजपा और महायुति के दूसरे दलों के साथ शिवसेना (यूबीटी) की लंबी बहस भी हुई, जिसके चलते विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर को सदन की कार्यवाही भी स्थगित करनी पड़ी।

देखा गया है कि महाराष्ट्र के लोगों में अपनी मातृभूमि के लिए जितना आदर है, मराठी और महाराज छत्रपति शिवाजी के लिए भी उतना ही आदर है। मराठी मानुष इन सबका सम्मान अपनी जान पर खेलकर भी बचाते हैं। सुरेश भैयाजी जोशी के मुंबई में रहने वालों को मराठी भाषा जानना ज़रूरी नहीं है, ऐसा कहने से मराठी मानुषों में रोष है और वे भैयाजी जोशी को गिरफ़्तार करने की माँग कर रहे हैं। मराठी मानुषों का कहना है कि सुरेश जोशी उर्फ़ भैयाजी मध्य प्रदेश के हैं, जो बाद में महाराष्ट्र में बस गये थे। इसलिए उन्होंने मराठी भाषा का अपमान किया है। मराठी भाषा का अपमान महाराष्ट्र के एक-एक जन का अपमान है, जिसे किसी भी क़ीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

आईसीसी मेंस चैंपियंस ट्रॉफी-2025 : भारत तीसरी बार बना विजेता

आईसीसी मेंस चैंपियंस ट्रॉफी-2025 के फाइनल में भारत 12 साल बाद एक बार फिर चैंपियन ट्रॉफी जीतने में सफल रहा है। टीम इंडिया ने कीवियों से 25 साल पुराना हिसाब बराबर करते हुए आईसीसी मेंस चैंपियंस ट्रॉफी-2025 के फाइनल में उन्हें 251 रनों के एवज़ में 254 रन बनाकर चार विकेट से हरा दिया। भारत की टीम इंडिया ने सबसे सफल टीम के रूप में न्यूजीलैंड को हराकर तीसरी बार चैंपियंस ट्रॉफी का ख़िताब अपने नाम किया है। बीते एक साल में रोहित शर्मा की अगुवाई में टीम इंडिया ने यह दूसरा आईसीसी ख़िताब अपने नाम किया है। 29 जून, 2024 को भी टीम इंडिया ने उनकी कप्तानी में टी-20 वर्ल्ड कप जीतकर इतिहास रचा था।

दुबई में हुए आईसीसी के रोमांचक मुक़ाबले में न्यूजीलैंड की टीम ने टॉस जीतकर पहले बल्लेबाज़ी का फ़ैसला लिया था। न्यूजीलैंड ने सबसे पहले विल यंग और रचिन रवींद्र की जोड़ी को मैदान में उतारा, जिन्होंने आक्रामक शुरुआत तो की; लेकिन वरुण चक्रवर्ती ने सलामी बल्लेबाज़ विल यंग को जल्द ही आउट कर दिया। इसके बाद न्यूजीलैंड टीम पर दबाव बनने लगा और भारतीय स्पिनरों ने 11 से 41 ओवरों के बीच कसी हुई गेंदबाज़ी करते हुए कीवियों की न्यूजीलैंड टीम को महज़ 251 रन ही लेने दिये। कीवियों के वरुण चक्रवर्ती और कुलदीप यादव ने दो-दो विकेट और रविंद्र जडेजा ने एक विकेट लिया। कीवी टीम के सबसे सफल बल्लेबाज़ों में माइकल ब्रेसवेल ने 40 गेंदों में नाबाद 53 रन और डेरेल मिचेल ने 101 गेंदों में 63 रन बनाये।

न्यूजीलैंड से मिली 252 रनों का स्कोर बनाने की चुनौती को पूरा करने के लिए टीम इंडिया की ओर से बल्लेबाज़ी के लिए पहले रोहित शर्मा और शुभमन गिल की जोड़ी मैदान में उतरी। इस जोड़ी ने 105 रनों की साझेदारी करके टीम इंडिया के लिए मज़बूत प्लेटफॉर्म तैयार किया। इस जोड़ी में कप्तान रोहित शर्मा ने 83 गेंदों पर सबसे ज़्यादा 76 रनों की पारी खेली, जबकि शुभमन गिल ने 31 रन बनाये। हालाँकि इसके बाद कीवियों ने टीम इंडिया के तीन विकेट चटकाये। इसके बाद श्रेयस अय्यर और अक्षर पटेल ने चौथा विकेट गिरने तक 61 रनों की साझेदारी की, जिसमें श्रेयस अय्यर ने 48 रनों की साझेदारी निभायी। आख़िर में के.एल. राहुल ने नाबाद रहकर 34 रन बनाये की साझेदारी की। इस तरह टीम इंडिया ने 49 ओवर में छ: विकेट गँवाकर 254 रन का स्कोर बनाकर न्यूजीलैंड को हराया।

भारत की इस जीत पर विरोट कोहली ने कहा कि ‘पूरे टूर्नामेंट में अलग-अलग मैच में अलग-अलग खिलाड़ियों ने आगे बढ़कर चुनौती का डटकर सामना किया। यह प्रारूप वास्तव में बहुत अच्छा है। हमें चैंपियंस ट्रॉफी जीते हुए लंबा समय हो गया था और चैंपियन ट्रॉफी जीतना हमारा लक्ष्य था। ऑस्ट्रेलिया के दौरे के बाद हम यहाँ आये और यह टूर्नामेंट जीता, जिससे एक टीम के रूप में हमारा मनोबल बढ़ा है। इस बार हमने पिछले अनुभवों से सीखकर अच्छा प्रदर्शन किया। राहुल ने पिछले दो मैचों का जिस तरह से अच्छा अंत किया, उससे उनका अनुभव पता चलता है। चार आईसीसी ख़िताब जीतना वास्तव में किसी आशीर्वाद से कम नहीं है। मैं इतने लंबे समय तक खेलने और इसे हासिल करने के लिए ख़ुद को बहुत भाग्यशाली मानता हूँ।’

आईसीसी मेंस चैंपियन ट्रॉफी फाइनल की टीमें

भारत : रोहित शर्मा (कप्तान), के.एल. राहुल (विकेटकीपर), विराट कोहली, शुभमन गिल, श्रेयस अय्यर, अक्षर पटेल, रविंद्र जडेजा, हार्दिक पांड्या, मोहम्मद शमी, वरुण चक्रवर्ती, कुलदीप यादव।

न्यूजीलैंड : मिशेल सेंटनर (कप्तान), टॉम लाथम (विकेटकीपर), केन विलियमसन, विल यंग, रचिन रविंद्र, डेरिल मिशेल, काइल जैमीसन, ग्लेन फिलिप्स, विलियम ओरोर्के, माइकल ब्रेसवेल और नाथन स्मिथ।

खेलो इंडिया विंटर गेम्स-2025

उत्तरी कश्मीर के विश्व प्रसिद्ध स्की रिसॉर्ट गुलमर्ग में 5वें खेलो इंडिया विंटर गेम्स-2025 12 मार्च को समाप्त हो गये। भारत के कई राज्यों के एथलीटों ने इन खेलों में भाग लिया। इन खेलों को सुरक्षित और सफल बनाने के लिए सुरक्षा व्यवस्था के अच्छे इंतज़ाम किये गये थे, जिसके लिए सीआरपीएफ, दूसरे सुरक्षा बल और जम्मू-कश्मीर पुलिस की तैनाती की गयी थी। खेलों की शुरुआत से पहले सुरक्षा व्यवस्था के लिए पुलिस उप महानिरीक्षक (डीआईजी) मक़सूद-उल-ज़मान ने अपनी अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय सुरक्षा समीक्षा बैठक की थी, जिसमें तय किया गया था कि जवानों और सीसीटीवी कैमरों की निगरानी के अलावा सख़्त प्रवेश नियंत्रण, खेल मैदान के आसपास सख़्त पहरे, सुरक्षित आवास सुविधाओं, सुरक्षित पारगमन मार्ग और अराजक तत्त्वों पर नज़र रखने पर ध्यान दिया गया था।

बता दें कि 22 से 25 फरवरी तक होने वाले ये खेल उत्तरी कश्मीर में बर्फ़ जमी होने के चलते देरी से शुरू हो सके थे। इन खेलों में 550 एथलीटों सहित लगभग 800 खिलाड़ियों ने भाग लिया था। 12 मार्च तक चले खेलो इंडिया विंटर गेम्स-2025 के अंतर्गत नॉर्डिक स्क्रीइंग, अल्पाइन स्कीइंग, स्नोबोर्डिंग और स्की पर्वतारोहण जैसे खेल खेले गये। इन खेलों की ख़ूबसूरती यह रही कि इसमें जवानों ने भी भाग लिया। खेलो इंडिया विंटर गेम्स-2025 के पहले चरण का आयोजन 23 से 27 जनवरी तक लद्दाख़ में हुआ था। लद्दाख़ में आइस स्केटिंग और आइस हॉकी की प्रतिस्पर्धाएँ आयोजित की गयी थीं।

पहली बार वाराणसी में होंगे पैरा पाइथियन गेम्स

पैरा पाइथियन खेल 01 दिसंबर, 2025 से 03 दिसंबर, 2025 तक प्रस्तावित हैं, जो वाराणसी के चार प्रमुख स्टेडियमों और सात स्कूलों के खेल मैदानों में आयोजित किये जाएँगे। इस विश्वस्तरीय खेल प्रतियोगिता में 93 देशों के महिला-पुरुष खिलाड़ी भाग लेंगे। इन खेलों की सबसे ख़ास बात यह है कि भारत में पहली बार वाराणसी में ये खेल खेले जाएँगे। भारत में पैरा पाइथियन गेम्स को रूस की इंटरनेशनल डेल्फिक काउंसिल और ग्रीक की इक्यूमेनिकल डेल्फिक यूनियन का समर्थन भी मिल चुका है। दिव्यांगजन सशक्तिकरण राज्य सलाहकार बोर्ड के सदस्य डॉ. उत्तम ओझा ने बताया है कि ज़िला प्रशासन को खेलों से अवगत कराने के अलावा हुए आयोजन समिति को खेल मैदानों की सूची भेज दी गयी है। आयोजन की तैयारियाँ चल रही हैं।

बता दें कि सन् 2023 में ग्रीस में पैरा पाइथियन खेल हुए थे, जिसमें 22 देशों के महिला-पुरुष खिलाड़ियों ने भाग लिया था। भारत ने इस बार 93 देशों के खिलाड़ियों को आमंत्रित किया है, जिससे हर मुक़ाबला रोमांचक होगा। इस बार पैरा पाइथियन गेम्स-2025 में दिव्यांग खिलाड़ियों और कलाकारों को ऐतिहासिक मंच भी प्रदान किया जाएगा।

स्टारलिंक ने भारत में मचायी धूम

यह एक विचित्र स्थिति थी कि केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण, रेलवे और आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने स्टारलिंक के प्रवेश का स्वागत किया और कुछ ही घंटों के भीतर एलन मस्क के स्टारलिंक को लेकर एक्स पर एक पोस्ट को हटा दिया। सबसे पहले वैष्णव ने पोस्ट किया था- ‘स्टारलिंक, भारत में आपका स्वागत है! दूरदराज के क्षेत्रों में रेलवे परियोजनाओं के लिए उपयोगी होगा।’ लेकिन 24 घंटे के भीतर दूरसंचार प्रतिद्वंद्वी रिलायंस जियो और भारती एयरटेल, दोनों ने स्टारलिंक की इंटरनेट सेवाओं को भारत में लाने के लिए एलन मस्क के स्पेसएक्स के साथ समझौतों की घोषणा कर दी।

दोनों समझौते स्टारलिंक द्वारा देश में परिचालन शुरू करने के लिए सरकारी प्राधिकरण प्राप्त करने की शर्त पर हैं। लेकिन वैष्णव द्वारा एक्स पर पोस्ट किये जाने से यह अनुमान लगाया गया कि क्या यह संकेत था कि सरकार ने वास्तव में स्टारलिंक को परिचालन शुरू करने की अनुमति दी है या उपग्रह स्पेक्ट्रम दे दिया है। यह सरकार के पहले के रुख़ के विपरीत था कि वह भारत में प्रवेश के लिए एलन मस्क की कम्पनी की जाँच कर रही है और इसरो यह काम कर रहा है। इसे हटाने से संकेत मिलता है कि अभी तक मंज़ूरी नहीं दी गयी है। विपक्ष के कई लोगों ने आश्चर्य जताया कि क्या यह एलन मस्क के साथ पिछले दरवाज़े से की गयी डील का हिस्सा था? और मोदी सरकार इस पिछले दरवाज़े से प्रवेश की अनुमति क्यों दे रही है?

घोषणाओं ने इन सौदों पर संसदीय या सार्वजनिक बहस की अनुपस्थिति के बारे में भी सवाल उठाये। स्टारलिंक 2022 से भारतीय बाज़ार में प्रवेश करने की कोशिश कर रहा था और एयरटेल व जियो दोनों ने शुरू में इसके प्रवेश का विरोध किया था। सन् 2024 में इंडिया मोबाइल कांग्रेस में एयरटेल के सुनील मित्तल ने कहा था कि सैटेलाइट कम्पनियों को पारंपरिक दूरसंचार कम्पनियों की तरह स्पेक्ट्रम ख़रीदने और लाइसेंस शुल्क का भुगतान करने की आवश्यकता होनी चाहिए। जियो ने भी इसी तरह का रुख़ अपनाया था, जिसके कारण एलन मस्क ने टिप्पणी की थी कि नीलामी-आधारित दृष्टिकोण की माँग अभूतपूर्व थी और भारत में काम करना बहुत अधिक परेशानी वाली बात है। लेकिन अब यह अतीत की बात हो गयी है; क्योंकि मंज़ूरी मिलने वाली है।

दिल्ली की हर महिला को नहीं मिलेंगे 2,500 रुपये

कुल 73 लाख मतदाताओं (जून, 2024 में राजधानी में 72.37 लाख पंजीकृत महिला मतदाता) में से सिर्फ़ 17 लाख महिलाओं को ही दिल्ली सरकार की महिला समृद्धि योजना का लाभ मिलने की संभावना है। 73 लाख मतदाताओं में से 60 वर्ष से अधिक आयु की महिलाओं की संख्या लगभग 13 लाख है, जो इस योजना से बाहर हो गयी हैं; क्योंकि इस योजना में 18-60 वर्ष की आयु सीमा तय की गयी है। इस तरह इस योजना के लिए पात्र महिलाओं की संख्या घटकर लगभग 60 लाख रह गयी। लेकिन दिल्ली सरकार ने इस योजना के क्रियान्वयन के लिए मुख्यमंत्री रेखा की अध्यक्षता में एक समिति बनायी है, जो लाभार्थियों के लिए मानदंड तय करेगी। ज़ाहिर है आयकर दाता, पेंशनभोगी और केंद्र व राज्य की योजनाओं की अन्य लाभार्थी महिलाएँ भी इससे बाहर हो जाएँगी। दूसरी बात, सभी मतदाता ज़रूरी नहीं कि दिल्ली के स्थायी निवासी हों और उन्हें जाँच का सामना करना पड़ेगा। यह अनुमान लगाया गया है कि ग़रीबी रेखा से नीचे या आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग (बीपीएल या ईडब्ल्यूएस) की वास्तविक ज़रूरतमंद लाभार्थियों की संख्या, मतदाता सूची या जनसंख्या के आधार पर बतायी गयी संख्या से कहीं कम होगी।

समिति द्वारा चुनी गयी सभी पात्र लाभार्थियों को 2,500 रुपये मासिक भत्ता मिलेगा और इसके लिए 5,100 करोड़ रुपये की शुरुआती राशि निर्धारित की गयी है। दिल्ली सरकार की इस योजना में पारदर्शिता, दक्षता और वित्तीय लाभों के निर्बाध वितरण को सुनिश्चित करने के लिए उन्नत तकनीक का लाभ उठाया जाएगा। अनुमान है कि जाँच और उन्मूलन के बाद वास्तविक लाभार्थी महिलाओं की संख्या सिर्फ़ 17-18 लाख ही रह जाएगी। यह भी स्पष्ट नहीं है कि यह योजना कबसे लागू होगी; क्योंकि नियमों को ठीक करने और फॉर्म भरने में अभी लंबा समय लगेगा। दरअसल, सरकार को इस योजना को लागू करने की कोई जल्दी भी नहीं है।

छ: साल से कोई उपसभापति नहीं

मोदी सरकार ने लोकसभा में एक तरह का रिकॉर्ड बना दिया है। 17वीं लोकसभा के पूरे कार्यकाल के दौरान उन्होंने कोई उपसभापति नहीं बनाया और 18वीं लोकसभा में भी किसी के इस पद पर आसीन होने का कोई संकेत नहीं है। परंपरागत रूप से उपसभापति का पद मुख्य विपक्षी दल को दिया जाता है।

चूँकि संख्या की कमी के कारण कांग्रेस के पास विपक्ष का नेता (एलओपी) पद नहीं था, इसलिए यह पद ख़ाली रहा; हालाँकि कोई कारण नहीं बताया गया। कांग्रेस नेताओं का यह भी मानना है कि उपसभापति का पद ख़ाली रहने का एकमात्र कारण यह है कि इसे विपक्ष को दिया जाना है। इस परंपरा की शुरुआत सबसे पहले जवाहरलाल नेहरू ने की थी, जिन्होंने सन् 1956 में शिरोमणि अकाली दल के सरदार हुकुम सिंह को उपसभापति चुना था। इसके बाद उपसभापति सत्तारूढ़ कांग्रेस से ही होते रहे, जब तक कि आपातकाल के वर्षों के दौरान एक स्वतंत्र सदस्य जी.जी. स्वेल को इस पद पर नियुक्त नहीं किया गया। इसके बाद विपक्ष के सदस्यों ने इस पद पर क़ब्ज़ा किया। यह परंपरा 16वीं लोकसभा तक जारी रही, जब एआईएडीएमके के एम. थंबीदुरई उपसभापति थे। 17वीं लोकसभा में मोदी सरकार ने उपसभापति नहीं रखने का फ़ैसला किया और यह पद ख़ाली रहा। इसी से सत्तारूढ़ दल को यह नियुक्ति अनिश्चितकाल तक टालने का बहाना मिल गया। हालाँकि संविधान के अनुच्छेद-93 में कहा गया है कि लोकसभा को जितनी जल्दी हो सके अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के रूप में दो सदस्यों को चुनना होगा।

अमृतसर मंदिर ग्रेनेड हमला: मुठभेड़ में एक आरोपित ढेर, दूसरा फरार

पंजाब: अमृतसर के ठाकरद्वारा मंदिर पर हुए ग्रेनेड हमले के एक आरोपित को पंजाब पुलिस ने सोमवार सुबह खंडवाला इलाके में मुठभेड़ के दौरान मार गिराया, जबकि उसका एक साथी फरार हो गया। इस मुठभेड़ में एक पुलिस कांस्टेबल घायल हुआ है। फरार आरोपित की तलाश के लिए पुलिस लगातार छापेमारी कर रही है।

पंजाब पुलिस के महानिदेशक (DGP) गौरव यादव ने जानकारी देते हुए बताया कि 15 मार्च की रात अमृतसर स्थित ठाकरद्वारा मंदिर पर ग्रेनेड हमला किया गया था। इस हमले के बाद पुलिस ने मामले की जांच शुरू की और अमृतसर में एफआईआर दर्ज की गई। जांच के दौरान पुलिस को हमले में इस्तेमाल की गई बाइक के बारे में विश्वसनीय सूचना मिली। इसी आधार पर पुलिस की CIA (क्राइम इन्वेस्टिगेशन एजेंसी) और छेहर्टा थाना पुलिस की टीमों ने सोमवार तड़के खंडवाला इलाके में छापा मारा।

जब पुलिस ने आरोपितों की बाइक को रोकने की कोशिश की, तो वे बाइक छोड़कर पुलिस पर गोलियां चलाने लगे। बदमाशों की फायरिंग में एक कांस्टेबल गुरप्रीत सिंह घायल हो गया, जिसे बाएं हाथ में गोली लगी। वहीं, इंस्पेक्टर अमोलक सिंह की पगड़ी को भी एक गोली छूकर निकल गई, जिससे वे बाल-बाल बच गए। एक गोली पुलिस वाहन को भी लगी।

पुलिस ने जवाबी कार्रवाई करते हुए फायरिंग की, जिसमें एक बदमाश गुरसिदक गंभीर रूप से घायल हो गया, जबकि उसका साथी विशाल भागने में सफल रहा। घायल गुरसिदक और कांस्टेबल गुरप्रीत सिंह को इलाज के लिए सिविल अस्पताल ले जाया गया, जहां इलाज के दौरान गुरसिदक की मौत हो गई।

पुलिस अब इस मामले में पाकिस्तान और आईएसआई से आरोपितों के संभावित संबंधों की जांच कर रही है। फरार आरोपित विशाल की तलाश जारी है, और पुलिस उसे जल्द गिरफ्तार करने के लिए लगातार छापेमारी कर रही है।