Home Blog Page 49

अयोध्या में अपराध घटे, गंदगी बढ़ी

राम की नगरी अयोध्या में अपराध बहुत कम है। चोरी की छोटी-मोटी घटनाओं को छोड़कर अपराध का प्रतिशत काफ़ी कम हो चुका है। ऐसा वहाँ के ज़्यादातर लोग और पुलिस वाले बताते हैं। और तो और इस पवित्र नगरी में वानरों की बड़ी आबादी है। वे भी उतने हिंसक नहीं हैं। हाँ, जब कोई उनके बच्चों से छेड़-ख़ानी करता है, तो वे हिंसक ज़रूर हो उठते हैं। लेकिन वहीं दूसरी तरफ़ शहर की गलियों में जगह-जगह गंदगी के ढेर लगे दिखायी देते हैं। ऐसा नहीं है कि वहाँ से कचरा उठाया नहीं जाता; लेकिन बहुत-से लोग गंदगी डालने से बाज़ नहीं आते। स्थानीय निवासी तंग हैं और विकास व सफ़ाई चाहते हैं।

 भव्य राम मंदिर में साफ़-सफ़ाई और सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद है। धमकियों से क्या कोई ख़तरा तो नहीं होता? यह सवाल सुनकर सुरक्षाकर्मी आश्चर्यजनक रूप से हँस देते हैं और वह आत्मविश्वास से भरे दिखायी देते हैं। मंदिर में कंस्ट्रक्शन का काम चल रहा है। साढ़े 300 एकड़ का क्षेत्र है। पैदल चलना बहुत मुश्किल लगता है। पैदल बहुत चलना पड़ता है, इसलिए छोटे-छोटे कंकड़ पत्थर चलना मुश्किल कर देते हैं। इस रास्ते पर टाट अथवा मैट आदि बिछा दिया जाए, तो पैदल चलना सुुगम हो जाए। बच्चे और वृद्ध लोग इससे काफ़ी परेशान नज़र आये।

सुरक्षा कर्मियों के मुताबिक, लाखों लोग रोज़ रामलला के दर्शन को आ रहे हैं। 19 नवंबर की शाम तक कोई डेढ़ लाख लोगों ने दर्शन किये। साफ़-सफ़ाई बढ़िया है। कई तरह की व्यवस्था संतोषजनक है। अपराधियों पर निगरानी को लेकर एसपी ऑफिस की ओर से रामघाट पर तैनात सब इंस्पेक्टर रियाज़-उल-हक़ कहते हैं कि अयोध्या में क्राइम रेट काफ़ी कम है। इसका बड़ा कारण है शहर में जगह-जगह पुलिस मुस्तैद है। छोटी-छोटी घटनाओं को छोड़ दें, तो अपराध लगभग शून्य के बराबर है। राम की भूमि है, उसका भी असर है। ऐसा भी रियाज़ मानते हैं। दूसरी तरफ़ जैसे ही शहर की गलियों में प्रवेश करते हैं, गंदगी देखकर मन दु:खी होता है। स्थानीय लोग मानते हैं कि गलियों में सुबह-शाम कचरा उठाया जाता है। ढेरों कचरा उठाते सफ़ाईकर्मी देखे भी गये। लोगों का कहना है कि मंदिर और आश्रम वाले लोग ज़्यादा सहयोग नहीं करते। वे खुले में कचरा फेंक देते हैं। अयोध्या पहुँचे बिहार के अवनीश और दिल्ली के प्रह्लाद ने भी इन कचरे के ढेरों को देखकर नाराज़गी ज़ाहिर की। उनका कहना है कि गंदगी को कोई भी पसंद नहीं करता। बड़ी बात है कि नगर निगम के अलावा यहाँ मंदिर-आश्रम ट्रस्ट वालों के पास पर्याप्त से भी अधिक फंड है। वे भी अच्छी व्यवस्था करवा सकते हैं।

 अयोध्या के महापौर गिरीशपति त्रिपाठी से जब इस बारे में बात की गयी, तो उन्होंने बताया कि नगर निगम की तरफ़ से तय नियम से कचरा उठाया जाता है। मंदिरों और आश्रमों के लिए हमने डस्टबिनों की व्यवस्था की हुई है। उन्हें डस्टबिन दे रखे हैं। हमारी पूरी कोशिश है कि गलियों में गंदगी न रहे। ख़ास बात यह है कि महापौर माँ स्वयं भी एक मंदिर के महंत हैं।

हनुमत सदन के महंत अवध बिहारी शरण कहते हैं कि गलियों में कचरा इसलिए फेंक देते हैं, ताकि गलियों में घूमने वाले जानवर, जैसे- गायें, वानर आदि उस जूठन को खा सकें। क्योंकि विशेष तौर पर तो कौन उनको खाना बनाकर देने वाला है? क्या भारतीय संस्कृति में गंदगी ठीक है? क्या भगवान राम, राजा दशरथ और अन्य इसी तरह के माहौल में रहते थे महाराज? इन सवालों पर उन्होंने एकदम तीखी प्रतिक्रिया दी। ‘नहीं बिलकुल भी नहीं। गंदगी नहीं होनी चाहिए। इसके कई कारण है कि यहाँ जो लोग रह रहे हैं, उनको इसका महत्त्व पता नहीं है। वे सजग नहीं हैं। अयोध्या के आसपास निम्न सोच के लोग हैं। उनको इसकी चिन्ता नहीं है कि क्या करना है। पहले भी जैसे मेले होते थे, तो हम लोग ख़ुद सफ़ाई करते थे। अब टैंक और सीवर का सिस्टम आ गया है। खेत में जाने वाला आदमी नहीं जानता कि शहर में कैसे क्या करना है। हालाँकि पहले की अपेक्षा 75 फ़ीसदी सुधार हुआ है।’ वह कहते हैं- ‘जब तक विचार विकसित नहीं होगा, तब तक लोगों की ऐसी ही मनोवृत्ति रहेगी और गंदगी नहीं हट सकेगी।’

(ज़ीरो ग्राउंड रिपोर्ट)

कुंठित मानसिकता के पैरोकार

शिवेन्द्र राणा

राजनीति की खींचतान और महाराष्ट्र, झारखण्ड के विधानसभा चुनावों तथा उत्तर प्रदेश के उपचुनावों की गहमागहमी के बीच एक चौंकाने वाली ख़बर चर्चा में रही। दरअसल भारतीय पुरुष क्रिकेट टीम के सदस्य और पूर्व बल्लेबाज़ी कोच संजय बांगर के क्रिकेटर बेटे आर्यन बांगर अपना लिंग परिवर्तित करवाकर अनाया बन गये हैं, जिसकी जानकारी उन्होंने इंस्टाग्राम के माध्यम से दी है। इस उदाहरण के अलावा कई अन्य लिंग परिवर्तन के उदाहरण इसके जीते-जागते प्रमाण हैं।

आइंस्टीन मानते थे कि विज्ञान का सारा ज्ञान सापेक्ष एवं सीमित है। वास्तव में ऐसा ही है क्या? क्योंकि वर्तमान में विज्ञान न तो सिर्फ़ ईश्वरीय सत्ता को चुनौती ही दे रहा है, बल्कि स्वयंभू ईश्वर का प्रतिरूप बनकर अवतरित हुआ है। यदि ऐसा न होता, तो वह जन्मना एक पुरुष को नारी के रूप में परिवर्तित करने में सक्षम नहीं होता। इसलिए यह कहने का जोखिम उठाया जा सकता है कि आइंस्टीन विज्ञान की ज्ञान शक्ति का मूल्यांकन करने में ज़रा-सा चूक गये; लेकिन रूसो नहीं। रूसो ने सन् 1750 ई. में पेरिस की साहित्यिक संस्था डी ज़ोन एकेडमी के लिए लिखे गये अपने निबंध में यह सिद्ध किया है कि विज्ञान और कला ने मनुष्य का पतन किया है। रूसो ने विज्ञान को मानव सभ्यता के भ्रष्ट करने वाले कारक के रूप में रेखांकित किया, तब नि:संदेह उनके ज्ञान चक्षुओं ने भविष्य की इन विसंगतियों की कल्पना कर ली होगी।

ख़ैर, विज्ञान तो मात्र एक ज़रिया है। इसकी मुख्य केंद्रीय शक्ति तो वह मानसिकता है, जिसने इस कार्य को साध्य बनने के लिए प्रेरित किया। इस घटना का मूल संदर्भ इस पर आधारित है कि किस प्रकार आज यूरोप और अमेरिका के बाद भारत जैसे देशों में भी स्त्री-पुरुष सम्बन्ध दूषित हुए हैं, जो 18वीं सदी तक इस प्रकार निर्धारित थे कि औरत घर पर रहकर घरेलू ज़िम्मेदारियाँ सँभालेंगी और पुरुष बाहर का काम करेंगे। यह उस दौर का अनुबंध है, जब समाज मुख्यत: कृषि प्रधान ही था। लेकिन बाद में खेती के विकास के साथ-साथ शहरीकरण और औद्योगिकीकरण की दौड़ में महिलाओं की भूमिका बढ़ने लगी।

अब इस नये तकनीकि युग में महिलाएँ हर क्षेत्र में थोड़ी कम संख्या में ही सही, पुरुषों के बराबर खड़ी हैं। और जबसे पारम्परिक संरचना में व्यापक बदलाव होने से लैंगिक संघर्ष बढ़ा है, जिसका मुख्य ध्येय समाज पर नियंत्रण स्थापित करना है। पूर्व में स्त्री-पुरुष सम्बन्ध सहयोग की भावना पर आधारित था। बाद में जब समाज का स्वरूप पॉवर स्ट्रक्चर पर आधारित हुआ, तब शक्ति और नियंत्रण की प्राप्ति ही मुख्य लक्ष्य बन गयी। यहाँ आधी आबादी (महिलाएँ) जब सत्ता की लड़ाई में पड़ीं, तो समाज सेक्स फ्री की सोच लेकर यौन वर्जनाओं से मुक्त होने लगा। परिवार का सम्मान नहीं बचता दिख रहा है और समाज की मुख्य संस्था परिवार का अस्तित्व ही संकट में है, तो लिंग आधारित आग्रह भी बेमानी ही लगता है। फिर विज्ञान की अर्थलोलुप चिकित्सा (वर्तमान स्थितियों में यही संज्ञा ठीक है) ने इसमें दख़ल दिया। क्योंकि यहाँ उसे बड़ी आर्थिक सम्पन्नता की गारंटी दिखी। हालाँकि इस घटना को समझने के दूसरे नज़रिये हो सकते हैं; जैसे कि असीम आधुनिकता के इस युग में यह वाम पक्षीय वैचारिकी की व्यक्तिगत रुचि, प्रगतिशीलता, माई बॉडी-माई च्वाइस जैसे अनुषांगिक विचारों का भाग माना जाएगा। लेकिन इसे मूलत: एक मानसिक संकट ही स्वीकार किया जाना चाहिए।

वैचारिक विकृतियाँ मानव मस्तिष्क के उस हिस्से से उपजती हैं, जो अवचेतन मन के भावों का केंद्रीयभूत हिस्सा है। यह एक यूटोपिया निर्मित करता है, जिसके भीतर प्रभावित व्यक्ति और समाज एक अलग दुनिया में जीने लगता है। अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार विजेता गणितज्ञ जॉन नैश के जीवन पर आधारितचर्चित हॉलीवुड फ़िल्म ‘ए ब्यूटीफुल माइंड’ (2001) में एक टॉप सीक्रेट सैन्य मिशन के लिए गोपनीय रूप से काम करने वाला जॉन नैश बाद में एक दिमा$गी बीमारी श्चिजोफ्रेनिया का शिकार मिलता है। यही सिनेमाई फंतासी वर्तमान के वोग कल्चर के सामाजिक-राजनीतिक जीवन के यथार्थ का निरूपण करती है, जहाँ लिंग परिवर्तन जैसे असामान्य कृत्य मात्र मन के तृप्ति जैसे क्षणिक आग्रह पर किये जा रहे हैं। असल में जिस विचारधारा के सैद्धांतिक नैरेटिव समाज में एक सर्वग्राह मूल्य के रूप में स्थापित होने लगते हैं।

जिन्हें भी यह लगता है कि 90 के दशक में सोवियत संघ एवं पूर्वी यूरोप के पतन ने वामपंथ को ज़मींदोज़ कर दिया, वे भ्रम हैं। वामपंथ आज और भी शक्तिशाली तथा सर्वव्यापी है। कभी अमेरिका को अपनी भ्रमित विजय का भान हुआ था कि उसने बिना किसी प्रत्यक्ष युद्ध के शीतयुद्ध जीत लिया और रूस को विघटित कर वामपंथ का क़िला ढहा दिया; लेकिन वामपंथ ने तो बिना एक भी गोली चलाये पूरे अमेरिकी समाज को विखंडित कर दिया। उसके परिवारों, बच्चों और स्त्रियों को बर्बाद कर दिया।

60 के दशक में अमेरिकी वामपंथी हर्बर्ट मार्क्यूस के नेतृत्व में हुए लिबरल मूवमेंट, जिसने परिवार, समाज एवं राष्ट्र के संस्थापित मूल्यों को तिरस्कृत करते हुए उन्मुक्तता की आड़ में एक पतित, नशे से आबद्ध, अपराध, वासना एवं समलैंगिकता का धुंध खड़ा कर दिया। ध्यातव्य है कि यही वो समय है, जब स्त्री-उत्पीड़न से मुक्ति और फेमिनिज्म (महिलाओं के हिस्से के वामपंथ) के तराने तैरने लगे थे। 90 के दशक में प्रसारित उदारीकरण के बाद ग्लोबलाईजेशन की आँधी में दुनिया भर की राष्ट्रीय संस्कृतियाँ पश्चिमी की आधुनिकता में ढहने लगी, जिसके पार्श्व में वामपक्षीय सिद्धांतों का संबल था। अत: समाज का जो ध्वंस पश्चिम में हो रहा था, उसने बाद में एशिया-अफ्रीका के विकासशील और अर्द्ध-विकसित देशों को अपना निशाना बनाया। भारत भी उसी सूची में शामिल है।

वामपंथ के मक्का फ्रैंकफर्ट स्कूल की एक थ्योरी है पॉलिटिक्ल करेक्टनेस का मूल सिद्धांत है- ‘समाज को स्थापित मूल्यों और वैकल्पिक मूल्यों के प्रति सहिष्णु होना चाहिए।’ यह एक प्रकार का बौद्धिक आंतकवाद ही है। आज पश्चिम का समाज भी इससे बुरी तरह प्रताड़ित है। जून, 2022 में मशहूर अमेरिकी उद्योगपति एलन मस्क का 18 वर्षीय बेटा जेवियर अपना लिंग परिवर्तन करवाकर विवियन जेना विल्सन बन गया। मस्क ने वामपंथ समर्थित वोक कल्चर को इसका कारण मानते हुए साफ़ कहा कि उनके बेटे की मौत यानी लिंग परिवर्तन की सर्जरी, जिसे डेडनेमिंग कहते हैं; वोक माइंड वायरस के कारण हुई है। उन्होंने घोषणा की है कि वह ट्रांसजेंडर मेडिकल ट्रीटमेंट को अपराध घोषित करने की लड़ाई लड़ेंगे और इस वायरस को ख़त्म कर देंगे, ताकि किसी और के बच्चे के साथ ऐसा न हो।

आज मस्क जैसे जेंडर फ्लूईडिटी को बुरा मानने वाले जो लोग हैं, उनमें मुख्य भाग धर्मनिष्ठ ईसाइयों का है और वामपंथ से जिसकी परम्परागत शत्रुता है। आप देखेंगे कि दुनिया के बाक़ी हिस्सों में भी जो वर्ग ऐसे विचारों का प्रबल प्रतिरोधी हैं, वे सब धार्मिक रूप से निष्ठ हिन्दू और मुस्लिम मत के अनुयायी हैं। हालाँकि ऐसे कृत्यों को साम्यवाद नहीं, अराजकतावाद कहना ज़्यादा उचित होगा; क्योंकि इसमें आर्थिक लाभ के लिए समाज का ध्वंस किया जा रहा है।

इन दिनों अमेरिका ने स्कूलों से लेकर बहुत-से सार्वजानिक स्थानों पर यूनिसेक्स वाशरूम का कॉन्सेप्ट लागू किया गया है, जहाँ लैंगिक पहचान का कोई अर्थ नहीं है। इसके पीछे मुख्य मान्यता है कि मानव शरीर विभिन्न परिस्थितियों में भिन्न लैंगिक व्यवहार के लिए अनुकूलित हो जाता है। ज़रा सरल शब्दों में समझें, तो इसका सीधा अर्थ है- समलैंगिक सम्बन्धों को समाज में स्वीकृति देना। एक प्रकार से यह भी सामाजिक एवं पारिवारिक संस्थाओं, यहाँ तक कि विवाह पद्धति का ध्वंस ही है। लगता है पश्चिमी संस्कृति और सामाजिक आचार-विचार में उसका परम लक्ष्य भौतिक उपलब्धि ही एकमेव साध्य है।

ऐसे उदाहरण न तो वैज्ञानिक उपलब्धियों के चरम उन्नति के मानक हैं और न ही सामाजिक प्रगतिशीलता के। चिकित्सा एवं तकनीक के बल पर लिंग-परिवर्तन नैसर्गिक नियमों का उपहास ही नहीं अपमान है। ऐसे लोगों को लैंगिक पहचान के संकट से निवारण हेतु सर्जरी की नहीं, बल्कि मनोचिकित्सा की ज़रूरत है। ऐसे विचारों वाले लोगों के मन में दमित इच्छाएँ या कहिए कुंठाएँ उद्वेलित होती हैं। यदि ऐसा नहीं होता, तो कानपुर में कबाड़ से जवान बनाने की मशीन के आविष्कारक एक लुठंक दम्पति कई बुजुर्गों से करोड़ों रुपये नहीं ठग पाते, और वामपंथ इन्हीं मानसिक कुंठाओं एवं दमित मानवीय सोच का पोषक है। लेकिन भारतीय संस्कृति तो धर्म एवं नैतिकता से अनुप्राणित है। यहाँ भौतिकता का कोई विरोध नहीं है, बल्कि यह एक सोपान या सीढ़ी मात्र है; अन्तिम लक्ष्य तो आध्यात्मिकता है। प्रकृति के नियमों को भंग करने, उनको नियंत्रित करने के प्रयास मानव सभ्यता के लिए घातक सिद्ध होंगे और हो भी रहे हैं। नित नयी घातक यौनिक एवं अन्य डीएनए के घातक रोग इसी का तो परिणाम हैं।

क्या राष्ट्रीय समाज यह समझने में अक्षम हुआ है कि खोखले वामपंथीय नास्टेल्जिया के ध्वंसकारी वैचारिक आवरण में जो मानवीय मन एवं बुद्धि की उन्मुक्तता दिख रही है, दरअसल वही विनाश का मार्ग है; जिसे विज्ञान की नकारात्मक शक्ति का संबल भी मिल रहा है। आधुनिक विज्ञान की प्रगति ने मानव जीवन को भौतिकवाद की गति ज़रूर दी है; लेकिन संयम से वंचित कर दिया। और यह संयम का अभाव ही विज्ञान के मार्फ़त मानव सभ्यता को सर्वनाश की ओर धकेल रहा है। हालाँकि जब भौतिकता एवं विज्ञान के इस गठजोड़ के लिए सुख-साधनों का विकास ही चरम लक्ष्य है। यह आधुनिक सभ्यता शरीर को अन्तिम सत्य स्वीकार कर उसके भोग-विलास की प्राप्ति के प्रयास में रत है। तब उसे यह क्यों समझना होगा कि उन्नत सभ्यता की वास्तविक सार्थकता का सार जीवन का चरित्र, अध्यात्म एवं संस्कृति के प्रति निष्ठा में है। और ऐसे कुमार्गों एवं कुविचारों के विरुद्ध भारतीय ज्ञान परंपरा चेताती भी है।

‘काममय एवायं पुरुष इति।

स यथाकामो भवति तत्क्रतुर्भवति।।

यत्क्रतुर्भवति तत्कर्म कुरुते।

यत्कर्म कुरुते तदभिसम्पद्यते।।’ (वृहदा. उ.-4/4/5) अर्थात् ‘मनुष्य कामनामय है। वह जैसी कामना वाला होता है, वैसा ही संकल्प करता है। जैसे संकल्प वाला होता है, वैसा ही कर्म करता है। वह जैसा कर्म करता है, वैसा ही फल प्राप्त करता है।’ क्या हम अपनी आध्यात्मिक विरासत से यह सकारात्मकता ग्रहण कर सकते हैं? क्योंकि भविष्य की उम्मीद तो तभी ज़िन्दा दिखेगी, जब वर्तमान अपने अतीत की थाती को ससम्मान स्वीकारे और यह समझे कि उसकी तर्कहीन उन्मुक्तता और खोखली आधुनिकता उसे एक अंधी गली की ओर धकेल रही है।

चुनावी नतीजों के आईने से

यह दिलचस्प बात है कि महाराष्ट्र के जिस नांदेड़ लोकसभा हलक़े में इस चुनाव में कांग्रेस उपचुनाव जीत गयी, उसी नांदेड़ में विधानसभा चुनाव में छ: की छ: विधानसभा सीटें कांग्रेस हार गयी। पूरे महाराष्ट्र में जो कांग्रेस विधानसभा चुनाव में 16 सीटों पर सिमट गयी, उसने सिर्फ़ छ: महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में 13 लोकसभा सीटें जीती थीं और उसके नेतृत्व में इंडिया गठबंधन ने 48 में से 31 सीटें। तब भाजपा और उसके साथी दल सिर्फ़ 17 सीटों पर सिमट गये थे। निश्चित ही महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे काफ़ी चौंकाने वाले हैं। इन नतीजों से ऐसा लगता है मानो जनता ने भाजपा की मनोकामना पूरी करने के लिए ही वोट डाला हो। पर क्या यह सच है?

इस चुनाव के बाद देश की राजनीति में पहली बार संसद के भीतर गाँधी परिवार के तीन सदस्य पहुँच गये हैं। सोनिया गाँधी राज्यसभा में, तो राहुल और प्रियंका गाँधी लोकसभा में। चूँकि इस बार जनता ने दोनों राज्यों- महाराष्ट्र और झारखण्ड में जीतने वाले गठबंधनों को एकतरफ़ा समर्थन दिया है, लिहाज़ा कहा जा सकता है कि नतीजे मिले-जुले रहे। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के यह नतीजे भाजपा को लोकसभा चुनाव में मिले गंभीर झटकों से उबरने में मदद करेंगे। महाराष्ट्र में कांग्रेस ही नहीं, उसके दोनों साथियों शरद पवार वाली एनसीपी और उद्धव ठाकरे वाली शिवसेना को बड़ा राजनीतिक नुक़सान हुआ है; क्योंकि लोकसभा चुनाव नतीजों से कांग्रेस को काफ़ी राजनीतिक ताक़त मिली थी। महाराष्ट्र की जनता के विपरीत झारखण्ड के मतदाता ने झामुमो और कांग्रेस गठबंधन पर भरोसा जताते हुए इस गठबंधन को पिछली बार से ज़्यादा बड़ा समर्थन दे दिया; और बँटेंगे, तो कटेंगे वाले भाजपा के नारे को पूरी तरह ठुकरा दिया। राजनीतिक रूप से कह सकते हैं कि एक राज्य में भाजपा वाला एनडीए गठबंधन और एक राज्य में कांग्रेस वाला इंडिया गठबंधन जीत गया। हालाँकि महाराष्ट्र बड़ा राज्य है, लिहाज़ा राजनीतिक रूप से वहाँ की जीत भी बड़ी कही जाएगी। महाराष्ट्र के नतीजों को लेकर समाज के तबक़ों में अलग-अलग सोच है। कुछ का कहना है कि शिंदे सरकार की ‘मुख्यमंत्री माझी लाडकी बहीण योजना’ ने कमाल कर दिया, तो कुछ का कहना है कि बँटेंगे, तो कटेंगे नारे ने हिन्दुओं का ध्रुवीकरण कर दिया और राज्य में इसके लिए आरएसएस ने ज़मीन पर बहुत ज़्यादा काम किया। हालाँकि नतीजों से ज़ाहिर होता है कि हिन्दुओं के ही नहीं, बल्कि भाजपा का विरोध कर रहे मुसलमानों के वोट भी भाजपा ही समेटकर ले गयी। क्या वास्तव में अब देश या कहिए महाराष्ट्र के मुसलमान भी भाजपा के मुरीद हो गये और उन्होंने बँटेंगे, तो कटेंगे नारे को समर्थन दिया?

इनसे इतर समाज में एक ऐसा तबक़ा है, जिसे आशंका है कि भाजपा का चुनाव में जीतना वास्तव में जनादेश नहीं, बल्कि पिछले दरवा•ो से हासिल की गयी जीत है। इस वर्ग का कहना है कि महाराष्ट्र में जीत भाजपा ही नहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के राजनीतिक भविष्य के लिए भी ज़रूरी थी और उसे इसका प्रबंध करना पड़ा, जिसमें धन्नासेठों की बड़ी भागीदारी रही। नहीं भूलना चाहिए कि चुनाव के बीच महाराष्ट्र में पैसे के बड़े पैमाने पर उपयोग के आरोप लगे थे। निश्चित ही इस मुद्दे पर राष्ट्रीय बहस का यह उचित समय है। इन नतीजों से यह तो ज़ाहिर हुआ कि देश में मोदी लहर जैसी कोई चीज़ अब नहीं है। होती, तो झारखण्ड में भी भाजपा ही जीतती। देश में इन चुनावों के साथ दो लोकसभा सीटों पर भी उप चुनाव हुए जो दोनों कांग्रेस ने जीते। जबकि उपचुनावों में 48 विधानसभा सीटों में से भाजपा 20 और कांग्रेस सात सीटें जीती, जिनमें एक सीट भाजपा के प्रचंड बहुमत वाले राज्य मध्य प्रदेश की भी शामिल है। उपचुनाव में कर्नाटक में तो कांग्रेस ने सभी तीन और बंगाल में तृणमूल कांग्रेस ने सभी छ: सीटें जीत लीं। वहाँ ममता बनर्जी का जादू बरक़रार है। पंजाब उपचुनाव में भाजपा को एक भी सीट नहीं मिली। वहाँ कांग्रेस ने एक और आम आदमी पार्टी ने तीन सीटें जीतीं। असम के उपचुनावों में भाजपा ने ज़रूर बेहतर प्रदर्शन किया। उत्तर प्रदेश में जैसा चुनाव हुआ, उससे देश के लोकतंत्र में भरोसा रखने वाले हरेक नागरिक को झटका लगा है। जिस तरह मुसलमानों को वोट देने से रोका गया, वह देश के भविष्य के लिए चिन्ता की बात है। यह सब तब हुआ, जब देश और सत्ताएँ कुछ दिन में होने वाले संविधान दिवस को मनाने की तैयारी कर रहे थे। भाजपा वहाँ नौ में से सात सीटें जीत गयी, जबकि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ मिलकर चौंकाने वाले नतीजे देने वाली सपा दो सीटें ही जीत पायी। नतीजों से ज़ाहिर होता है कि सपा को कांग्रेस से गठबंधन में चुनाव लड़ना चाहिए था। ऐसा लगता है कि लोकसभा चुनाव में मिली अप्रत्याशित सफलता ने सपा में यह भरोसा भर दिया कि वह अकेले ही सब कुछ कर सकती है। अखिलेश यादव को लोकसभा नतीजों के बाद राष्ट्रीय नेता के रूप में उभारने वाले पोस्टर भी लगाये गये। हालाँकि अखिलेश का पूरा फोकस राज्य पर रहना चाहिए था।

महाराष्ट्र में बतौर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का कार्यकाल इस लिहाज़ से बहुत अच्छा रहा कि इन कुछ महीनों में उन्होंने अपनी नम्रता और राजनीतिक चतुराई से सबका दिल जीता। बेशक वह मूल पार्टी शिवसेना को धोखा देकर भाजपा के साथ आ गये; लेकिन माना जाता है कि इसके पीछे असली कारण 2019 के विधानसभा चुनाव में उन्हें मुख्यमंत्री न बनाया जाना था। बेशक भाजपा के साथ जाने के बाद उन्होंने इसे उद्धव ठाकरे के कांग्रेस के साथ जाने के फ़ैसले के प्रति अपनी असहमति बताया हो। लाडकी बहीण जैसी लोकलुभावन योजना लाकर शिंदे ने चुनाव को बड़े स्तर पर प्रभावित किया। हालाँकि इस पर सवाल ज़रूर हैं कि महिलाओं के खाते में नक़द पैसे डालने वाली यह योजना चुनाव की घोषणा से कुछ घंटे पहले ही लागू की गयी, जिससे ऐसा लगा कि मतदाताओं को रिश्वत दी गयी है। इसमें कोई दो-राय नहीं कि महाराष्ट्र की जीत से भाजपा को ताक़त मिली है; लेकिन आरएसएस ने इस चुनाव में ज़मीन पर बहुत ज़्यादा काम किया। इस हिन्दूवादी संगठन का गढ़ नागपुर महाराष्ट्र में ही है। बेशक भाजपा इस चुनाव की जीत का श्रेय ले रही हो, आरएसएस की भूमिका को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। उधर झारखण्ड की जीत से इस बात के भी संकेत मिलते हैं कि भाजपा की ख़िलाफ़ इंडिया गठबंधन की लड़ाई वास्तव में कमज़ोर नहीं पड़ी है और उसे ज़्यादा निराश होने की ज़रूरत नहीं है। झारखण्ड में मतदाताओं ने झामुमो-कांग्रेस को एकतरफ़ा जनमत दिया है। वहाँ झामुमो ने जिन 43 सीटों पर लड़ा, उनमें से 34 सीटें; जबकि कांग्रेस ने कुल लड़ी 30 सीटों में से 16 सीटें जीत लीं। कुल 81 सीटों में वहाँ इस गठबंधन को अन्य दलों के साथ मिलकर 56 सीटें मिली हैं, जिनमें चार सीटें राजद की भी शामिल हैं। उधर एनडीए में भाजपा को 68 सीटों पर लड़कर सिर्फ़ 21 सीटें मिलीं।

इन नतीजों से ज़ाहिर हो गया कि आदिवासी मतदाताओं ने झामुमो-कांग्रेस गठबंधन पर भरोसा किया। भाजपा के बांग्लादेशी घुसपैठियों के आरोप को मतदाता ने सच नहीं माना। भाजपा के लिए यह बड़ा झटका है। हेमंत सोरेन, जो फिर से झारखण्ड के मुख्यमंत्री बन गये हैं; सबसे बड़े आदिवासी नेता के रूप में स्थापित हुए हैं। उनकी पत्नी कल्पना सोरेन भी एक मज़बूत नेता के रूप में उभरी हैं। पूर्व मुख्यमंत्री चम्पई सोरेन तो जीत गये; लेकिन उनके बेटे भाजपा उम्मीदवार बाबूलाल सोरेन को 18,000 वोटों से करारी हार मिली। निश्चित ही चुनाव से ऐन पहले पाला बदलने वाले चम्पाई सोरेन के राजनीतिक करियर के लिए यह बड़ा झटका है। झारखण्ड में भाजपा की हार में बड़ा हाथ असम के उसके बड़बोले मुख्यमंत्री हिमन्त बिश्व सरमा की बतौर प्रभारी फ्लॉप रणनीति का भी रहा। महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव में 48 में से 31 सीटें कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन को पक्की उम्मीद थी कि विधानसभा चुनाव के बाद उसकी सरकार बनेगी। आख़िरी समय तक यही संकेत मिल रहे थे; लेकिन चुनाव नतीजे ऐसे आये कि भाजपा के नेता भी हक्के-बक्के रह गये। नतीजों से ज़ाहिर होता है कि भाजपा ने कोंकण और कांग्रेस की मज़बूती वाले विदर्भ में सेंध लगाते हुए अपनी ताक़त बढ़ा ली है, जबकि शरद पवार के पश्चिम महाराष्ट्र के गढ़ को भी भेद दिया। कांग्रेस को इन सभी क्षेत्रों में झटका लगा है। हो सकता है यह स्थायी झटका न हो; लेकिन यह देखने के लिए उसे अगले चुनाव का इंतज़ार करना होगा।

इस चुनाव में महाराष्ट्र की 288 विधानसभा सीटों में से महायुति ने 228, महाविकास अघाड़ी ने 47 और अन्य ने 13 सीटें जीतीं। महायुति में भाजपा ने 132 सीटें, मुख्यमंत्री के रूप में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में पहला विधानसभा चुनाव लड़ रही शिवसेना ने 55 सीटें, जबकि कमज़ोर बताये जा रहे अजित पवार की एनसीपी ने 41 सीटें जीत लीं। महाविकास अघाड़ी में शिवसेना (उद्धव) को 20, कांग्रेस को 16 और एनसीपी (शरद) को 10 सीटों पर संतोष करना पड़ा। बाक़ी सीटें अन्य के खाते में गयीं। इस चुनाव में सबसे बड़ा झटका राज ठाकरे को लगा, जिनके बेटे अमित ठाकरे समेत महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के सभी 125 उम्मीदवार चुनाव हार गये। इन नतीजों से साफ़ हो गया है कि भाजपा के लिए आज भी हिन्दुत्व ध्रुवीकरण की राजनीतिक सबसे बड़ी ताक़त है। राहुल गाँधी के जातिगत गणना, आरक्षण और संविधान जैसे मुद्दे जनता के बीच अभी मज़बूती से नहीं पहुँचे हैं। बेशक प्रियंका गाँधी के जीतने से लोकसभा में कांग्रेस की आवाज़ और मज़बूत होगी; लेकिन पार्टी के लिए समय आ गया है कि वह देश भर में संगठन का कायाकल्प करे और राज्यों में सहयोगियों की बैसाखी बने रहने की जगह अपने पाँव मज़बूत करे।

कैसे विश्वास हो ?

व्यवसाय में झूठ और बेईमानी कोई नयी बात नहीं है। जो जितना बड़ा बेईमान, उतना ही बड़ा व्यापारी। यह बात शायद व्यापारियों को बुरी लगे; लेकिन सच है। बिना बेईमानी के व्यापार अरबों में नहीं पहुँचता। इसे समाज में हुनर माना जाता है। लेकिन जब किसी की बेईमानी का पर्दाफ़ाश होता है, तो उसे लोग अपने-अपने नज़रिये से तोलने लगते हैं।

देश के जाने-माने उद्योगपति और अडाणी समूह के संस्थापक और अध्यक्ष गौतम अडाणी भी ऐसी ही एक बेईमानी के आरोपों से आजकल घिरे हैं। जबसे उन पर अमेरिका में एक सौर ऊर्जा का ठेका लेने के लिए भारतीय अधिकारियों को मोटी रिश्वत देकर दूसरे निवेशकों के साथ धोखाधड़ी के आरोप लगे और न्यूयॉर्क की फेडरल कोर्ट में उनकी गिरफ़्तारी की बात उठी, भारत में उनकी चर्चा एक बार फिर बहुत ज़्यादा होने लगी। उनके साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम भी उनके दोस्त या कहें कि उनके लिए काम करने वाले प्रधानमंत्री के रूप में उछला है। सोशल मीडिया पर तरह-तरह के कार्टून, टिप्पणियों, फब्तियों, नारों और कटाक्षों की बाढ़-सी आ गयी। अडाणी समूह के शेयर एक साथ गिरने लगे। यह सब कुछ ठीक उसी तरह हुआ, जिस तरह हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के बाद अडानी के शेयर जनवरी, 2023 में हुआ था। अब यह दूसरी बार है, जब गौतम अडाणी सवालों के कटघरे में हैं और उन पर बेईमानी के आरोप लग रहे हैं। हालाँकि कांग्रेस नेता और सांसद राहुल गाँधी से लेकर दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक, अध्यक्ष अरविंद केजरीवाल पहले भी कई बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गौतम अडाणी में आपसी साँठगाँठ को लेकर कई तरह के आरोप लगा चुके हैं। दोनों नेता यहाँ तक कह चुके हैं कि गौतम अडाणी के व्यवसायों में प्रधानमंत्री मोदी की हिस्सेदारी है और गौतम अडाणी की कम्पनियों को विदेशों में ठेके दिलवाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी न सिर्फ़ अपने पद का दुरुपयोग करते हैं, बल्कि सरकारी पैसा भी बर्बाद करते हैं।

अब अमेरिका में रिश्वत देकर ठेका लेने के आरोप के मामले में केंद्र सरकार गौतम अडाणी का बचाव कर रही है। राहुल गाँधी कार्रवाई की माँग कर रहे हैं और केजरीवाल दिल्ली के चुनावों की तैयारी में मशरूफ़ हैं। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल इसे अमेरिकी न्यायालय से जुड़ा क़ानूनी मामला बता रहे हैं। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने प्रेस वार्ता करके बचाव के लिए यह तक कह दिया कि भारत सरकार को इस मुद्दे पर अमेरिकी प्रशासन ने पहले से सूचित नहीं किया।

आश्चर्य इस बात का है कि अमेरिका में उद्योगपति गौतम अडाणी और उनके भतीजे सागर अडाणी समेत आठ लोगों के ख़िलाफ़ रिश्वत$खोरी और धोखाधड़ी के आरोप लगने और इन सबके गिरफ़्तारी समन जारी होने के बाद भाजपा के कई नेता तिलमिलाये हुए हैं और अडाणी के बचाव में उतर आये हैं। ऐसा कहा जा रहा है कि अडाणी समूह को अगले एक साल में लगभग तीन अरब डॉलर का ऋण चुकाना है। अडाणी समूह ने इसके लिए बैंकों से ऋण की उम्मीद की तरफ़ इशारा किया है। इसका अर्थ यह हुआ कि भारतीय बैंक अब सरकार के इशारे पर अडाणी समूह को और ऋण देंगे। पहले ही दज़र्नों उद्योगपतियों द्वारा देश का पैसा ऋण के रूप में लेकर विदेश भाग जाना और एनडीए की केंद्र सरकार द्वारा अरबों रुपये का अडाणी समेत बड़े-बड़े उद्योगपतियों का ऋण माफ़ करना देश को बड़े वित्तीय संकट में डाल चुका है। अब एक ऐसे उद्योगपति को बैंकों द्वारा ऋण दिये जाने के संकेत मिलना, जिसके चलते पूरी दुनिया का भरोसा न सिर्फ़ भारतीय व्यापारियों पर से उठ सकता है, बल्कि केंद्र सरकार की छवि भी ख़राब हुई है; कितना उचित है? यह तय किया जाना चाहिए।

सभी जानते हैं कि पहले ही वित्तीय संकट से जूझ रहे भारतीय बैंकों के पास उनका पैसा नहीं, बल्कि खाता धारकों का पैसा है। ऐसे में बैंकों द्वारा उद्योगपतियों को लगातार ऋण वितरित करना और उसे माफ़ करते चले जाना कहीं-न-कहीं बैंकों को दिवालिया बनाने का रास्ता तैयार करने जैसा है। सन् 2014 में केंद्र में एनडीए की सरकार बनने के बाद से बैंकों के घाटे का आलम यह है कि देश के कई बड़े बैंक बंद हो चुके हैं और कई बैंकों का आपस में एकीकरण करना पड़ा है। इसमें घाटे को छिपाने की केंद्र सरकार की चालाकी का खेल साफ़ दिखायी देता है। हालाँकि इस घाटे के लिए सिर्फ़ उद्योगपति ही नहीं, बल्कि केंद्र सरकार भी ज़िम्मेदार है, जो ख़ुद भी बैंकों का पैसा तय सीमा से ज़्यादा लेने के अलावा विदेशी ऋण भी बढ़ाती जा रही है। इसका असर यह हो रहा है कि सभी बैंक आम खाता धारकों के खातों पर तरह-तरह के ज़ुर्माने और शुल्क लगाकर करोड़ों रुपये सालाना बटोर रहे हैं।

अब तो स्थिति यहाँ तक आ चुकी है कि  देश का सबसे बड़ा सरकारी बैंक भारतीय स्टेट बैंक भी विदेशी बैंकों से 1.25 बिलियन डॉलर का ऋण लेने को मजबूर है। इससे पहले भी भारतीय स्टेट बैंक ने जुलाई, 2024 में ही 750 मिलियन डॉलर का ऋण लिया था। अगर इसी तरह से भारत के बैंक घाटे में जाकर ऋण लेते रहे, तो वे अपने ग्राहकों के पैसे की सुरक्षा कैसे करेंगे? केंद्र सरकार तो ऋण लेकर घी पीने का काम कर-करा रही है। फिर कैसे मान लिया जाए कि देश सुरक्षित हाथों में है? कैसे विश्वास हो कि 2030 तक भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थ-व्यवस्था वाला देश बन जाएगा?

योगी सरकार के दोहरे मापदण्ड!

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार भले ही विज्ञापनों एवं भाषणों में स्वयं की प्रशंसा करती रहती है; मगर प्रदेश की सच्चाई कुछ अलग ही है। प्रदेश में कई सुखद एवं कई दु:खद समाचारों की धारा बहती है; मगर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एवं उनके मंत्री प्रचार यही करते हैं कि उनसे अच्छा शासन पूरे विश्व में कहीं नहीं है। स्थिति यह है कि राम राज्य का ढिंढोरा पीटने वाले योगी आदित्यनाथ ने किसी भी तरह उपचुनाव में नौ में सात सीटें अवश्य जीत ली हों; मगर प्रदेश की अधिकांश जनता में अब उनकी स्वीकार्यता घट रही है। एक भाजपा नेता एवं राजनीति के अच्छे जानकार नाम प्रकाशित न करने की विनती करते हुए कहते हैं कि योगी आदित्यनाथ अपनी पीठ स्वयं थपथपाते रहते हैं; मगर सच्चाई यह है कि भाजपा के ही अधिकांश नेता, विधायक एवं मंत्री भी उनसे प्रसन्न नहीं हैं। इसका सबसे महत्त्वपूर्ण कारण यही है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने अलावा किसी को भी कुछ नहीं मानते हैं। उन्हें अधिकारी भी वही पसंद हैं, जो उनकी चरण वंदना करने के लिए तत्पर रहते हैं।

राजनीति के जानकार अध्यापक बलवंत सिंह कहते हैं कि जनता से लोकतांत्रिक मूल्य एवं स्वतंत्रता छीन लेने का प्रयास करना भी एक अपराध है, जो अब उत्तर प्रदेश के चुनावों में दिखने लगा है। बीते कई दशकों से होते आ रहे चुनावों में हर पार्टी ने यह किया है; मगर भारतीय जनता पार्टी से ऐसी आशा नहीं थी। इस पार्टी से आशा थी कि वह लोकतांत्रिक मूल्यों एवं संविधान की गरिमा का पालन करते हुए जनता के साथ न्यायपूर्वक व्यवहार करेगी; मगर ऐसा नहीं हो रहा है। बहराइच के बाद संभल में हिंसा एवं प्रयागराज में जिस प्रकार का व्यवहार विद्यार्थियों से किया गया है, वह भी इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि योगी आदित्यनाथ नौकरियाँ देने की जगह युवाओं को पीटने के लिए पुलिस को आगे कर रहे हैं। प्रयागराज में तो यह कई बार हो चुका है। अपनी कमियों को सुधारने की जगह मुख्यमंत्री योगी स्वयं को सबसे सही एवं न्यायप्रिय नेता घोषित करने में लगे हैं, जबकि ऐसा नहीं है। उन्हें कट्टर हिन्दू नेता होने से कोई नहीं रोक रहा है; मगर उन्हें एक हिन्दू संत अथवा हिन्दू नेता होने के साथ एक अच्छे न्यायप्रिय मुख्यमंत्री की भूमिका भी निभानी चाहिए जिसमें वह विफल ही रहे हैं। उनके लिए जनता में सभी समान हैं; मगर वह सभी को एक समान नहीं मानते हैं। इसका प्रमाण यह है कि उनका प्रशासन जाति एवं धर्म देखकर ही लोगों के साथ व्यवहार करता है। कहीं तो उन्हें पीड़ितों का रुदन भी सुनाई नहीं देता अपराधियों के अपराध दिखायी नहीं देते तो कहीं-कहीं विरोधी भी अपराधी ही दिखायी देते हैं। एक मुख्यमंत्री होने के नाते उन्हें जनता को देखने की दो दृष्टियाँ नहीं रखनी चाहिए। यही तो पहले के मुख्यमंत्रियों ने किया है, जिससे तंग आकर जनता ने योगी आदित्यनाथ को संत समझकर अपना मुख्यमंत्री चुना। मगर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भी उन्हें वही व्यवहार मिल रहा है, जो पहले के मुख्यमंत्रियों से मिला।

अखाड़ों को दी गयी भूमि

प्रयागराज में इन दिनों महाकुंभ की चहल-पहल है। आजकल प्रयागराज दिन में जितना सुंदर लग रहा है, उससे अधिक सुंदर रात्रि में लग रहा है। महाकुंभ से पहले ही बढ़ी यह चहल-पहल योगी आदित्यनाथ एवं उनकी सरकार की हिन्दू त्योहारों में विशेष रुचि को दर्शाती है। यह सच है कि पहले की सरकारों से अधिक व्यवस्था मुख्यमंत्री योगी ने महाकुंभ के उपलक्ष्य में प्रयागराज में की है; मगर इसके इतर दु:खद समाचार यह रहा कि बीते दिनों महाकुंभ की तैयारी के दौरान अखाड़ों में एवं नेताओं में अलग अलग मतों को लेकर इतना विवाद हुआ कि मारपीट तक हो गयी। जैसे तैसे झगड़ा निपटाया गया। अब सभी अखाड़े अपने अपने डेरे जमा रहे हैं। अखाड़ों की बसावट की प्रक्रिया एवं व्यवस्था सरकार द्वारा की जा रही है। साधु संतों की सेवा एवं महाकुंभ की तैयारियों में प्रदेश सरकार कोई कमी नहीं रखना चाहती है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर मेला प्रशासन ने सभी अखाड़ों को कुंभ क्षेत्र में भूमि आवंटन करने की प्रक्रिया में कई बड़े अखाड़ों को भूमि आवंटित कर दी है। 12 वर्ष में एक बार लगने वाले महाकुंभ को सरकार ने इस बार भव्य महाकुंभ नाम दिया है। साधु संतों के अखाड़ों को दी गयी भूमि पर छावनियाँ बनायी जा रही हैं। भूमि आवंटन को लेकर सभी 13 अखाड़े एकजुट एवं सहमत हैं। विदित हो कि गंगा, यमुना एवं सरस्वती आदि तीन पवित्र नदियों के संगम स्थल प्रयागराज में लगने वाला महाकुंभ 12 वर्ष में एक बार लगता है। एवं अर्ध महाकुंभ हर छ: वर्ष में एक बार लगता है। इस बार दिन सोमवार दिनाँक 13 जनवरी, 2025 से दिन बुधवार दिनाँक 26 फरवरी, 2025 तक महाकुंभ लगेगा। शाही स्नान मकर संक्रांति के दिन मंगलवार दिनाँक 14 जनवरी को, मौनी अमावस्या के दिन बुधवार दिनाँक 29 जनवरी को, बसंत पंचमी के दिन सोमवार दिनाँक 03 फरवरी को, माघी पूर्णिमा के दिन बुधवार दिनाँक 12 फरवरी को एवं महाशिवरात्रि के दिन बुधवार दिनाँक 26 फरवरी हो होंगे। महाशिवरात्रि के दिन बुधवार दिनाँक 26 फरवरी 2025 को अंतिम स्नान के साथ महाकुंभ का समापन होगा।

विद्यार्थियों की बार-बार पिटाई

प्रयागराज में ही महाकुंभ की तैयारियों के बीच बीते दिनों विद्यार्थियों पर पुलिस बल के प्रयोग से स्थिति इतनी बिगड़ गयी कि योगी आदित्यनाथ की रोज़गार देने की नीयत पर प्रश्नचिह्न लग गये। वास्तव में बात इनती बड़ी नहीं थी, जितनी पुलिस एवं प्रशासन ने बढ़ा दी। विद्यार्थियों ने उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग से पीसीएस एवं आरओ, एआरओ प्रारंभिक परीक्षा को एक ही दिन में एक ही समय में कराने की माँग की थी; मगर छात्रों के हंगामा करने पर पुलिस ने चार छात्रों को हिरासत में ले लिया। इसके बाद क्रोधित हज़ारों छात्रों ने लोकसेवा आयोग के बाहर पहुँचकर उग्र प्रदर्शन किया एवं नारे लगाते हुए आन्दोलन की घोषणा कर दी। प्रदेश की जनपदीय पुलिस ने इस पर आयोग जाने वाले सभी रास्तों को बैरिकेड लगाकर बंद कर दिया एवं प्रतियोगी विद्यार्थियों को रोकने के लिए सैकड़ों पुलिसकर्मियों ने बल प्रयोग करना आरंभ कर दिया। इससे स्थितियाँ इतनी बिगड़ीं कि टकराव आरंभ हो गया।

फडणवीस ने शिंदे-पवार के साथ सरकार बनाने का दावा किया पेश

मुंबई : महाराष्ट्र में भाजपा विधायक दल के नेता के रूप में देवेंद्र फडणवीस के चयन के बाद महायुति के तमाम नेताओं ने सरकार बनाने का दावा पेश किया है। शिवसेना प्रमुख एकनाथ शिंदे, भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस, एनसीपी प्रमुख अजित पवार ने राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन से मिलकर राज्य में सरकार बनाने का दावा पेश किया है।

इस दौरान भाजपा के केंद्रीय पर्यवेक्षक निर्मला सीतारमण और विजय रूपाणी समेत तमाम नेता मौजूद रहे। महाराष्ट्र के भावी मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने मीडिया से बात करते हुए कहा, “हमने राज्यपाल से मुलाकात की और राज्य में सरकार बनाने का दावा पेश करने के लिए समर्थन पत्र सौंपा। हमारे गठबंधन सहयोगियों शिवसेना और एनसीपी ने राज्यपाल से अनुरोध किया है कि मुझे महायुति के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ दिलाई जाए। राज्यपाल ने अनुरोध स्वीकार कर लिए हैं और उन्होंने हमें कल शाम 5.30 बजे शपथ समारोह के लिए आमंत्रित किया है।”

उन्होंने आगे कहा, “नई सरकार का शपथ ग्रहण समारोह कल शाम 5 दिसंबर शाम 5.30 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में होगा। हम शाम तक तय कर लेंगे कि कल कौन-कौन शपथ लेंगे। कल मैंने एकनाथ शिंदे से मुलाकात की और उनसे अनुरोध किया कि महायुति कार्यकर्ताओं की इच्छा है कि वह इस सरकार में हमारे साथ रहें। मुझे पूरा विश्वास है कि वह हमारे साथ रहेंगे। हम महाराष्ट्र की जनता से किए गए वादे पूरे करेंगे।”

वहीं भाजपा विधायक दल की बैठक को संबोधित करते हुए निर्मला सीतारमण ने कहा, “मैं सभी निर्वाचित विधायकों को बधाई देती हूं। मैं विधायक दल के नेता के रूप में चुने जाने पर देवेंद्र फडणवीस को बधाई देती हूं। इस चुनाव में 14 करोड़ मतदाताओं का जनादेश पूरे भारत के लिए एक संदेश है। यह सिर्फ एक सामान्य विधानसभा चुनाव नहीं था। लोकसभा चुनाव के बाद देश के नागरिकों ने हरियाणा चुनाव और फिर महाराष्ट्र चुनाव के माध्यम से स्पष्ट जनादेश दिया है। महाराष्ट्र में अप्रत्याशित और अभूतपूर्व जीत विकसित भारत की दिशा में एक बड़ा संदेश है।” जैसे ही भाजपा नेताओं ने सर्वसम्मति से देवेंद्र फडणवीस को विधायक दल का नेता चुना, ‘देवा भाऊ तुम आगे बढ़ो’ के नारे लगाए गए।

हरियाणा में निर्माण सामग्री की गुणवत्ता से कोई समझौता स्वीकार नहीं : गंगवा

लापरवाही करने वाले अफसरों और निर्माण एजेंसियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी

चंडीगढ़, 04 नवंबर- हरियाणा के लोक निर्माण मंत्री श्री रणबीर गंगवा ने कहा है कि सड़कों एवं भवनों के निर्माण में सामग्री की गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं किया जाएगा। निर्माण सामग्री में गुणवत्ता के किसी प्रकार की कोई कमी पाए जाने पर न केवल निर्माण एजेंसी के खिलाफ बल्कि संबंधित अधिकारी और कर्मचारियों के खिलाफ भी कड़ी कार्रवाई अमल में लाई जाएगी। श्री गंगवा ने यह बात बुधवार को सचिवालय स्थित अपने कार्यालय में पत्रकारों से बातचीत के दौरान कही।

लोक निर्माण मंत्री श्री रणबीर गंगवा ने कहा कि हरियाणा में तीसरी बार हमें जनादेश मिला है। पहले भी कार्यों में पारदर्शिता रही है और आगे भी पारदर्शिता से कार्य किया जाएगा। पारदर्शिता और निष्पक्षता से कार्य करने का ही परिणाम है कि हरियाणा में तीसरी बार डबल इंजन की सरकार बनी है। उन्होंने कहा कि मंत्री पद संभालने के बाद उन्होंने प्रदेश में सड़कों के नए प्रोजेक्टों और सड़कों की मरम्मत को लेकर मुख्यमंत्री श्री नायब सिंह सैनी और केंद्रीय परिवहन मंत्री श्री नितिन गडकरी  से विस्तृत चर्चा हुई है। उन्होंने कहा कि केंद्रीय परिवहन मंत्री जी ने हरसंभव सहयोग करने का भरोसा दिया है। जल्द ही विभिन्न प्रोजेक्टो की रिपोर्ट तैयार कर उनसे अनुमति लेकर काम किया जाएगा।

अधिकारियों से मांगी सड़कों के सम्बन्ध में विस्तृत रिपोर्ट

लोक निर्माण मंत्री श्री गंगवा ने पत्रकारों को बताया कि अधिकारियों से प्रदेशभर की उन सभी सड़कों को रिपोर्ट मांगी है, जिनका पुनर्निर्माण होना है या नए सिरे से बनाई जानी हैं। उन्होंने कहा कि प्रदेश में सड़कों में निर्माण सामग्री में गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं किया जाएगा। उन्होंने कहा कि कार्यों में लापरवाही बरतने वाले अफसरों के खिलाफ सख्त एक्शन लिया जाएगा। उन्होंने कहा कि शहरों को जाम से मुक्ति दिलाने के लिए योजना बनाकर काम किया जाएगा। उन्होंने कहा कि हिसार में रिंग रोड बनाया जाएगा जिससे आम जन को लाभ मिलेगा। अन्य स्थानों पर भी यातायात को सुगम बनाने के लिए योजना बनाकर काम किया जाएगा।

लुप्त हो रही संस्कृति को भी संरक्षित कर रहा है अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव

सेल्फी लेने का युवाओं में बढ़ा क्रेज, ढेरु गाथा ग्रुप के कलाकार जमा रहे है ब्रह्मसरोवर पर लोक संस्कृति का रंग

चंडीगढ़ 4 दिसंबर- हरियाणा की लोक कला और संस्कृति की लुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी कई विधाओं को संरक्षित करने का काम अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव कर रहा है। इस महोत्सव में ढेरु गायन गाथा, बाजीगर कला और कच्ची घोड़ी जैसी लोक कलाओं को ब्रह्मसरोवर के पावन तट पर देखा जा रहा है। इस महोत्सव से न केवल लोक संस्कृति को जीवित रखने का प्रयास सरकार की तरफ से किया जा रहा है बल्कि लोक कलाकारों को रोजगार के अवसर भी उपलब्ध करवाएं जा रहे है। अहम पहलू यह है कि ब्रह्मसरोवर के तट पर ढेरु गाथा गायन ग्रुप के कलाकार हरियाणवी संस्कृति का रंग जमा रहे है।

उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक कला केन्द्र पटियाला, हरियाणा कला एवं सांस्कृतिक कार्य विभाग, हरियाणा कला परिषद और कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड के साथ-साथ राज्य सरकार की तरफ से हरियाणा ही नहीं विभिन्न प्रदेशों की लोक संस्कृति को संरक्षित करने और कलाकारों को एक मंच मुहैया करवाने का काम अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव के जरिए किया जा रहा है। इस महोत्सव में विभिन्न प्रदेशों की लोक कला को पर्यटकों के समक्ष प्रस्तुत किया जा रहा है। लोक कलाकार ने बातचीत के दौरान इस बात का खुलासा किया कि हरियाणा प्रदेश में कुछ ही कलाकार बचे है जो बीन, तुंबा, ढोलक, खंजरी बजा कर जोगी नाथ बीन सपेरा परम्परा को आगे बढ़ाने का काम कर रहे है।

उन्होंने कहा कि उनके ग्रुप में उनके अन्य साथी कलाकार भी उनके साथ इस कला को जीवित रखने का काम कर रहे है। सभी कलाकार पारम्पकि वेशभूषा से सुसज्जित होकर बीन, तुम्बा, ढोलक, खंजरी बजाकर लोगों का मनोरंजन कर रहे है। यह महोत्सव लोक कलाकारों का एक बड़ा मंच बन चुका है। राज्य सरकार द्वारा इस प्रकार के कलाकारों को और अधिक प्रोत्साहित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव जैसे मंच उपलब्ध करवाने का काम लगातार किया जा रहा है। महोत्सव के शिल्प और सरस मेले के सातवें दिन हरियाणा के विभिन्न गांवों के लोक कलाकारों ने ब्रह्मसरोवर के उत्तरी तट पर ढेरु गाथा गायन की प्रस्तुति देकर पर्यटकों को झूमने पर मजबूर कर दिया। इन लोक कलाकारों ने ढेरु गाथा गायन के जरिए गुरु गोरख नाथ जी की गाथा, जाहवीर गूगा पीर की गाथाओं का गुणगान किया। इन लोक कलाकारों का कहना है कि यह लोक कला विलुप्त करने के कगार पर पहुंच चुकी है। सरकार और प्रशासन का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव से लोक कलाओं को जीवंत रखने का प्रयास किया जा रहा है।

हरियाणा सरकार ने लोहगढ़ परियोजना विकास समिति का किया गठन

यमुनानगर के लोहगढ़ में बाबा बंदा सिंह बहादुर स्मारक केंद्र के कार्य की प्रगति की निगरानी करेगी

चंडीगढ़ 4 दिसंबर- हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने यमुनानगर जिले के लोहगढ़ में बाबा बंदा सिंह बहादुर स्मारक केंद्र के कार्य की प्रगति की निगरानी के लिए उच्च स्तरीय लोहगढ़ परियोजना विकास समिति के गठन को स्वीकृति प्रदान की है।

एक सरकारी प्रवक्ता ने आज यहां इस संबंध में जानकारी देते हुए बताया कि केंद्रीय ऊर्जा, आवास एवं शहरी विकास मामले मंत्री मनोहर लाल समिति के मुख्य संरक्षक होंगे जबकि मुख्यमंत्री श्री नायब सिंह सैनी इसके अध्यक्ष होंगे।

उन्होंने बताया कि केन्द्रीय ऊर्जा, आवास एवं शहरी मामले मंत्री मनोहर लाल समिति के मुख्य संरक्षक होंगे तथा मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी इसके अध्यक्ष होंगे। मुख्यमंत्री के ओएसडी डॉ. प्रभलीन सिंह समिति के सदस्य सचिव होंगे।

उन्होंने बताया कि समिति के अन्य सदस्यों में पर्यटन एवं विरासत मंत्री डॉ. अरविंद शर्मा, पूर्व कैबिनेट मंत्री श्री कंवर पाल, मुख्यमंत्री के मुख्य प्रधान सचिव श्री राजेश खुल्लर, पूर्व सांसद श्री तरलोचन सिंह, सिख इतिहासकार एवं पंजाबी विश्वविद्यालय पटियाला के पूर्व कुलपति डॉ. जसपाल सिंह, विरासत एवं पर्यटन विभाग के प्रधान सचिव, हरियाणा राज्य जैव विविधता बोर्ड के अध्यक्ष श्री रणदीप सिंह जौहर, यमुनानगर के उपायुक्त, हरियाणा पर्यटन निगम के प्रबंध निदेशक और सिग्मा समूह के अध्यक्ष श्री जगदीप एस. चड्ढा शामिल हैं।

महत्वाकांक्षी लोहगढ़ विकास परियोजना लोहगढ़ स्मारक स्थल को एक विशाल परिसर में विकसित करेगी।

प्रवक्ता ने बताया कि यह महत्वाकांक्षी लोहगढ़ विकास परियोजना लोहगढ़ स्मारक स्थल को एक विशाल परिसर में विकसित कर रही है,  जो न केवल महान बाबा बंदा सिंह बहादुर को श्रद्धांजलि देता है, बल्कि सिख समुदाय की समृद्ध विरासत को भी प्रदर्शित करता है।

इस बदलाव का एक अहम पहलू अत्याधुनिक संग्रहालय का निर्माण करवाना

 उन्होंने कहा कि दो चरणों में शुरू होने वाली इस परियोजना का उद्देश्य स्मारक स्थल के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व को फिर से जीवंत करना है। पहले चरण में, किले, मुख्य द्वार और परिसर की चारदीवारी को बहाल करने और उसे बेहतर बनाने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। यह परिसर 20 एकड़ के विशाल क्षेत्र में विकसित किया जाएगा। इस बदलाव का एक अहम पहलू अत्याधुनिक संग्रहालय का निर्माण होगा। इस संग्रहालय में बाबा बंदा सिंह बहादुर  से जुड़ी जीवन गाथा को नवीनतम तकनीकी नवाचारों के साथ मिलाकर आगंतुकों को इतिहास और आधुनिकता के बीच की दुनिया में ले जाया जाएगा। इस उल्लेखनीय स्थान पर, बाबा बंदा सिंह बहादुर के जीवन का सार, उनके जन्म से लेकर उनके अंतिम दिनों तक, को जीवंत रूप से चित्रित किया जाएगा।

श्री दरबार साहिब के बाहर सजा भुगत रहे सुखबीर बादल पर फायरिंग,बाल-बाल बचे

अमृतसर : अमृतसर  के  श्री दरबार साहिब में सजा भुगत रहे पंजाब के पूर्व डिप्टी CM सुखबीर सिंह बादल पर बुधवार को फायरिंग  की गई। हालांकि, इस हमले में सुखबीर सिंह बादल बाल-बाल बच गए। सुरक्षाकर्मियों ने आरोपी को मौके पर ही पकड़ लिया। उसके पास से पिस्टल भी बरामद हुई है। सुरक्षाकर्मियों ने सुखबीर बादल को घेरा  हुआ है।

फायरिंग करने वाले व्यक्ति की पहचान गुरदासपुर  के डेराबाबा नानक के रहने वाले नारायण सिंह चौड़ा के रूप में हुई है। वह दल खालसा का सदस्य बताया जा रहा है। बादल सुबह अकाल तख्त की सजा भुगतने के लिए पहुंचे थे। वे बरछा पकड़कर घंटाघर के बाहर बैठे हुए थे। तभी उन पर हमला किया गया।

बता दें कि दो दिसंबर को श्री अकाल तख्त साहिब पर राम रहीम मामले में 5 सिंह साहिबानों की बैठक हुई, जिसमें उन्हें और शिरोमणि अकाली दल सरकार के दौरान अन्य कैबिनेट सदस्यों को धार्मिक दुराचार के आरोपों के लिए सजा सुनाई गई थी।