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हरियाणा स्थानीय निकाय चुनाव

भाजपा-जजपा का परचम, विपक्षी दल हाशिये पर

हरियाणा में 18 नगर परिषद् और 28 नगर पालिका के चुनाव नतीजे भाजपा-जजपा (भाजपा जनता पार्टी और जननायक जनता पार्टी) गठबंधन सरकार को वर्ष 2024 में सत्ता वापसी की बड़ी उम्मीद लग रही है। सरकार के लिए स्थानीय निकाय चुनाव पहली कसौटी थी, जिसमें वह खरी उतरी है। शुरू में भाजपा अपने बूते ही चुनाव लडऩे की इच्छुक थी, जजपा को वह साथ नहीं रखना चाहती थी। गठबंधन को लेकर ग़लत सन्देश न जाए, इस पर मंथन हुआ तो उसे साथ लेना पड़ा। इससे जजपा की साख बची रही, वहीं भाजपा को भी कुछ क्षेत्रों में इसका फ़ायदा मिला।

कांग्रेस ने पार्टी चिह्न पर मैदान में न उतरने का फ़ैसला कर लिया था। इसकी मुख्य वजह यह रही कि एक ही पद के लिए एक से ज़्यादा पार्टी प्रत्याशी ख़म ठोक रहे थे। कुछ स्थानों पर चार से पाँच लोग दावेदारी जता रहे थे। गुटबाज़ी से प्रभावित पार्टी के लिए यह स्थिति ठीक नहीं थी। एक को प्रत्याशी बनाने पर बाक़ी के आज़ाद प्रत्याशी के तौर पर निश्चित ही उतरते। राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग और अजय माकन की हार से कांग्रेस नेता हताशा में थे। जबकि भाजपा और जजपा के लिए अच्छी शुरुआत रही।

सत्ताधारी दलों के लिए चुनाव प्रतिष्ठा का सवाल था और इसके लिए बाक़ायदा पूरी तैयारी भी की जा रही थी। स्थानीय निकाय चुनाव में प्रदर्शन पर सरकार की प्रतिष्ठा निर्भर कर रही थी। जब कोई पार्टी सीधे तौर पर चुनाव चिह्न पर मैदान में न उतरे, तो समझा जाना चाहिए कि स्थिति ज़्यादा अनुकूल नहीं है। गठबंधन के लिए यह पहला संकेत शुभ रहा। मुक़ाबले में आम आदमी पार्टी और इंडियन नेशनल लोकदल ही रहे। इनमें आम आदमी पार्टी के बारे में अप्रत्याशित नतीजे देखने वालों की संख्या कम नहीं थी। ठीक चंडीगढ़ नगर निगम और पंजाब विधानसभा चुनाव की तरह यहाँ भी वैसा ही प्रदर्शन करने की अटकलें लगायी जा रही थीं। आम आदमी पार्टी ने इसकी तैयारी भी की थी; लेकिन नतीजे आशा के बिलकुल विपरीत आये। इनेलो (इंडियन नेशनल लोकदल) ने अपने गढ़ डबवाली में ही साख को बचाये रखा।

जजपा के गठन के बाद इनेलो का जनाधार घट रहा है। एक हलक़े तक सिमट जाने वाली पार्टी को विघानसभा चुनाव में श्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए नतीजों से सबक़ सीखना होगा। आम आदमी पार्टी को भी हरियाणा में पंजाब की तरह बदलाव आने के सपने से बाहर आना होगा। अच्छी जीत के बाद भाजपा को भरोसा हो गया है कि उसका जनाधार कम नहीं, बल्कि बढ़ रहा है। मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर जीत को विकास कार्यों का नतीजा और पार्टी का बढ़ता आधार बता रहे हैं। चुनाव में 815 वार्ड सदस्य आज़ाद प्रत्याशी के तौर पर विजयी हुए हैं। इन्हें मत (वोट) सरकार के किये कार्यों की वजह से नहीं, बल्कि अपनी वजह से मिले हैं। एक बहुत बड़ा मत प्रतिशत किसी पार्टी के हिस्से में नहीं आया।

स्थानीय निकाय या पंचायत चुनाव में मतदाता पार्टी विशेष से ज़्यादा व्यक्ति विशेष को महत्त्व देता है। यह वजह रही कि चुनाव में वार्ड सदस्य के चुनाव में आज़ाद प्रत्याशियों का बोलबाला रहा। इससे परिषद् और पालिका के प्रमुख से गठबंधन दलों को किसी ख़ुशफ़हमी में नहीं रहना चाहिए। भाजपा अपने को संगठनात्मक तौर पर अन्य दलों से अलग मानती है; लेकिन वार्ड सदस्य के चुनाव में उसे भी ज़्यादा सफलता नहीं मिली। उसकी संख्या 60 तक पहुँची, जबकि अन्य दल दहाई के आँकड़े को भी नहीं छू सके।

कांग्रेस इन स्थानीय निकाय चुनाव में सीधे तौर पर नहीं थी, जिसका फ़ायदा गठबंधन प्रत्याशियों को मिला। इस चुनाव में आम आदमी पार्टी की उम्मीद सबसे ज़्यादा टूटी। चंडीगढ़ नगर निगम और बाद में पंजाब के विधानसभा चुनाव में अप्रत्याशित नतीजों से आम आदमी पार्टी को इस चुनाव में वैसा ही प्रदर्शन की उम्मीद थी, पर मात्र एक नगर पालिका इस्माइलाबाद हिस्से में आयी। इनेलो भी डबवाली नगर परिषद् पर क़ब्ज़ा जमा सकी। बाज़ी कुल मिलाकर गठबंधन के हाथ में ही रही। इस बार नगर परिषद् और पालिका में अध्यक्ष पदों पर सीधा मुक़ाबला हुआ। इससे पहले पार्षदों या वार्ड सदस्यों में से कोई अध्यक्ष बनता था। पंचायत चुनाव से ग्रामीण मतदाता के रुख़ का, जबकि नगर निगम, परिषद् और पालिका चुनाव से शहरी मतदाता के रुख़ का पता चलता है। चूँकि राज्य में अभी पंचायत चुनाव लम्बित हैं। ग्रामीण मतदाताओं के रुख़ के बारे में अभी से कहना मुश्किल है। लेकिन शहरी मतदाताओं ने अपना रुख़ कुछ स्पष्ट कर दिया है। 18 नगर परिषद्, 28 नगर पालिका (कुल 46) में से गठबंधन ने 25 पर जीत दर्ज की। इसमें भाजपा को 22, जबकि जजपा को तीन, जबकि एक-एक पर आम आदमी पार्टी और इनेलो का क़ब्ज़ा रहा। बाक़ी पर निर्दलीय क़ाबिज़ रहे, जिनमें से ज़्यादातर कांग्रेस समर्थित माने जा रहे हैं।

चूँकि कांग्रेस ने चुनाव से पहले ही पार्टी चिह्न पर मैदान में न उतरने का फ़ैसला कर लिया था। राज्यसभा चुनाव में अजय माकन की हार बड़ा झटका था ही, पार्टी में गुटबाज़ी से भी स्थानीय निकाय चुनाव में अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद नहीं थी। हो सकता है कि इसीलिए पार्टी ने चुनाव चिह्न का इस्तेमाल नहीं किया हो। उधर भाजपा, जजपा, इनेलो और आम आदमी पार्टी अपने-अपने चिह्नों पर मैदान में थीं। पिछले विधानसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करने वाली कांग्रेस तब इतनी कमज़ोर नहीं हुई थी, इसके बावजूद उसने चुनाव में दिलचस्पी नहीं दिखायी। शायद इसी वजह से कांग्रेस के मौज़ूदा 14 विधायकों के हलक़ों में पार्टी समर्थित प्रत्याशी हारे हैं। गठबंधन सरकार आधी से ज़्यादा जीत को अपनी उपलब्धि मान रही है।

यही हाल कमोबेश मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के करनाल और उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला के उचाना हलक़ों का रहा, जहाँ मतदाताओं ने विरोधी रुख़ अपनाया। वार्ड सदस्य के तौर पर जीतने वाले 815 निर्दलीय रहे, पार्टी चिह्नों पर जीतकर आने वालों की संख्या तो 100 के आँकड़े तक नहीं पहुँच सकी। दरअसल गठबंधन सरकार का पूरा जोर परिषद् और पालिका के अध्यक्ष पद पर केंद्रित रहा, जिसके लिए भरपूर प्रचार भी किया गया। सरकारी तंत्र का भी ख़ूब इस्तेमाल किया गया। प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने चुनाव में ज़्यादा रुचि नहीं दिखायी। पूर्व मुख्यमंत्री और विपक्ष के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने अपरोक्ष तौर पर इससे कमोबेश दूरी ही बनाये रखी। यही वजह रही कि रोहतक क्षेत्र में पार्टी समर्थित प्रत्याशी सफलता प्राप्त नहीं कर सके। उनके बेटे सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने ज़रूर अपने समर्थक प्रत्याशियों के लिए प्रचार किया; लेकिन ज़्यादा कारगर साबित नहीं हो सके। महम में भाजपा समर्थित जीता, जबकि बहादुरगढ़, झज्जर और गोहाना में भाजपा-जजपा गठबंधन ने जीत दर्ज की।

विधानसभा चुनाव से कुछ समय पहले पंचायत और स्थानीय निकाय चुनाव बहुत कुछ संकेत कर देते हैं। फ़िलहाल राज्य में विधानसभा चुनाव में अभी काफ़ी समय है। तब तक स्थितियाँ बहुत कुछ बदल चुकी होंगी। ऐसे में भाजपा-जजपा को किसी ख़ुशफ़हमी में और कांग्रेस को निराश होने की ज़रूरत नहीं है। पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद हरियाणा में पार्टी की सक्रियता बहुत तेज़ी से बढ़ी थी। यहाँ भी बदलाव की बातें होने लगी थीं। अब इस पार्टी को राज्य में पैर जमाने के लिए नये सिरे से विचार करना होगा।


“स्थानीय निकाय चुनाव में जीत सरकार की उपलब्धि है। लोगों ने गुड गवर्नेस और विकास कार्यों को तरजीह दी। भाजपा-जजपा गठबंधन वर्ष 2024 के विस चुनाव में जीत दर्ज करेगा। कांग्रेस ने तो पार्टी चिह्न पर चुनाव में उतरने की हिम्मत नहीं दिखायी। आम आदमी पार्टी का राज्य में कोई जनाधार नहीं है; यह नतीजों से स्पष्ट हो गया है। आधे से ज़्यादा अध्यक्ष भाजपा और जजपा के चुनाव चिह्न पर जीतकर आये हैं। वार्ड सदस्यों में भी भाजपा समर्थितों की संख्या काफ़ी है। केंद्र सरकार की अग्निपथ पर विरोध-प्रदर्शन का यहाँ कोई असर नहीं रहा। गठबंधन सरकार के पास अग्निवीरों के लिए बहुत-सी योजनाएँ हैं।”
मनोहर लाल खट्टर
मुख्यमंत्री, हरियाणा


“नतीजे भाजपा-जजपा की आशा के विपरीत हैं। 70 फ़ीसदी से ज़्यादा सीटों पर गठबंधन प्रत्याशी जीतते, तो इसे जीत माना जा सकता था। यह आधी-अधूरी जीत है। चुनाव नतीजे से कांग्रेस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। राज्यसभा चुनाव की वजह से पार्टी इसकी तैयारी नहीं कर सकी। जहाँ-जहाँ ज़रूरत हुई पार्टी नेताओं ने प्रचार किया और सफलता हासिल की।”
उदयभान
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष, हरियाणा


“पार्टी राज्य में पाँव जमा रही है। स्थानीय निकाय चुनाव में पार्टी को 15 से 20 फ़ीसदी मत (वोट) मिले हैं। स्पष्ट है कि आधार बढ़ रहा है। राज्य में भी पंजाब की तरह सत्ता बदलाव होगा और यह करिश्मा आम आदमी पार्टी ही करेगी। चुनाव में समय ज़्यादा मिलता, तो प्रदर्शन शायद इससे बहुत ज़्यादा बेहतर होता।”
सुशील गुप्ता
सांसद, हरियाणा प्रभारी, आम आदमी पार्टी

काबुल में गुरुद्वारे पर हमला निंदनीय

काबुल में गुरुद्वारे पर हमला अमानवीय और निंदनीय है। इससे भारत के ही नहीं, दुनिया भर के सिखों में रोष है। सिखों का कहना है कि वे सभी धर्म का सम्मान करते हैं। लेकिन कई देशों में अक्सर सिखों के साथ अमानवीय रवैया अपनाया जाता है। ऐसे में भारत सरकार को सिखों की सुरक्षा को लेकर कड़े व साहसिक क़दम उठाने चाहिए। ताकि किसी भी देश में सिख धर्म ही नहीं, अन्य धर्म के लोगों के साथ भी कोई अप्रिय घटना न घट सके। दिल्ली के सिखों ने ‘तहलका’ संवाददाता से कहा कि काबुल में जो हुआ, वह बर्दाश्त करने लायक नहीं है।

दिल्ली सिख नेता सरदार जत्थेदार दर्शन सिंह का कहना है कि काबुल के कार्ते परवान गुरुद्वारे पर हुए हमले से अफ़ग़ान सहित दुनिया भर के सिखों को हिलाकर रख दिया है। उन्होंने कहा कि कितना दु:खद है, जिस अफ़ग़ान में लाखों सिख रहा करते थे, वहाँ अब बमुश्किल से 200 से कम ही परिवार बचे हैं। उन्होंने कहा कि इस हमले की गम्भीरता को देखते हुए भारत सरकार ने इन्हीं में से 111 सिखों को ई-वीजा दे दिया है। जत्थेदार दर्शन सिंह का कहना है कि इस हमले की मुख्य वजह यह है कि भाजपा प्रवक्ता नुपूर शर्मा व नवीन जिंदल ने पैगम्बर सम्बन्धी बयान दिया था। इससे वहाँ के अराजक तत्त्वों ने यह मान लिया कि कुछ लोग भाजपा के समर्थक हैं। इसलिए उन्होंने गुरुद्वारे पर हमला कर दिया। लेकिन हमला निन्दनीय है। वहाँ की सरकार को इस मामले में कड़े क़दम उठाने की ज़रूरत है। इस हमले में मृतकों के परिजनों को तालिबान सरकार ने एक-एक लाख रुपये और गुरुद्वारे के पुनरुद्धार के लिए डेढ़ लाख रुपये दिये हैं।

शिरोमणि अकाली दल दिल्ली स्टेट के सदस्य गुरुदीप सिंह जस्सा का कहना है कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता है। गुरुद्वारे पर जिस आतंकवादी, जिस संगठन ने हमला किया, उसके ख़िलाफ़ वहाँ की सरकार कड़ी कार्रवाई करे, ताकि भविष्य में कोई इस तरह की हरकत न कर सके। उन्होंने भारत सरकार से अपील की है कि इस मामले को गम्भीरता से ले और वहाँ पर सिखों की सुरक्षा के लिए क़दम उठाये। उनका कहना है कि भारत सरकार ने भी तालिबान शासन के दौरान अफ़ग़ानिस्तान की जनता की मदद के लिए हज़ारों टन गेहूँ और दवाइयाँ काबुल भिजवायी थीं।

सरदार इंद्रजीत सिंह कहते हैं कि अजीब विडम्बना है कि भारत सरकार सबकी मदद करने के लिए सबसे आगे आती है। लेकिन जब किसी देश में सिखों पर हमला होता है, तो कार्रवाई की जगह वहाँ की सरकार से सुरक्षा की अपील करती है। जबकि भारत सरकार को वहाँ की सरकार को तुरन्त कार्रवाई करने के साथ वहाँ पर रह रहे सिखों की सुरक्षा के लिए साहसी क़दम उठाने चाहिए।

बताते चलें कि भाजपा प्रवक्ता नुपूर शर्मा और नवीन जिंदल द्वारा पैगम्बर सम्बन्धी बयान के बाद देश के साथ-साथ पूरी दुनिया के मुस्लिम संगठनों द्वारा जो विरोध किया गया है, उसका नतीजा काबुल में गुरुद्वारे पर हमले के रूप में निकला है। दिल्ली के सिखों का कहना है कि दुनिया में किसी भी धर्म से जुड़े लोगों पर जब भी मानवीय संकट आता है, तो सबसे पहले सिख धर्म के लोग ही मदद के लिए आगे आते हैं। लेकिन कुछ अराजक तत्त्व ऐसे होते हैं, जिनका काम ही आतंक फैलाना है।

सिख नेता परमजीत सिंह सोढी का कहना है कि तालिबान सरकार ने जो मदद की है, उससे यह स्पष्ट है कि भारत के प्रति तालिबान शासन के मन में कितनी सद्भावना है। हमलावर भारत और तालिबान के बीच सम्बन्धों के सौहार्दपूर्ण रिश्तों से घबरा गये हैं, इसलिए उन्होंने अमानवीय कृत्य को अंजाम दिया है।
ग़ौरतलब है कि जिस तालिबान को अत्यंत कट्टरपंथी माना जाता है, वहीं की पुलिस गुरुद्वारे की सुरक्षा में लगी है। इस हमले में एक सिख के अलावा एक तालिबान सिपाही मारा गया और सात घायल हुए थे।

सरदार कुलजीत सिंह ने कहा कि इसके पहले जलालाबाद और हरराय साहिब गुरुदारे पर हुए हमलों में दर्ज़नों लोग मारे गये थे। लेकिन इस पर से परदा उठना चाहिए कि इस तरह के हमले के पीछे कौन है? उनकी मंशा क्या है? अन्यथा इस तरह की घटनाएँ देर-सबेर होती रहेंगी, जो ठीक नहीं है।

सोच-समझकर पीएँ बोतलबंद पानी

बाज़ारवाद के इस दौर में लालची व्यापारियों द्वारा ग्राहकों की विश्वसनीयता को छला जा रहा है। उपभोक्ताओं इसलिए छले जाते हैं, क्योंकि वो ब्रांड पर भरोसा करते हैं। आजकल महँगी और ब्रांडेड चीज़ें लेने, खाने का फैशन है। बोतलबंद पानी के मामले में भी यही है। सफ़र में बोतलबंद पानी पीने का चलन बहुत है। यह लोगों की मजबूरी भी हो सकती है; लेकिन ज़्यादातर लोग बोतलबंद पानी पीने में अपनी शान समझते हैं। लेकिन ऐसे लोगों के शायद पता नहीं है कि पीने का क़ुदरती पानी ही सबसे अच्छा होता है।

भले ही बोतलबंद पानी आज बहुत ज़्यादा चलन में है; लेकिन डॉक्टरों ने इस पानी को कभी उतना अच्छा और फ़ायदेमंद नहीं माना, जितना कि हमारे शरीर को ज़रूरत होती है। दूसरा यह पानी प्लास्टिक की जिन बोतलों में पैक होकर आता है, उन बोतलों पर ही एक बार इस्तेमाल के बाद बोतलों को नष्ट करने का सन्देश लिखा होता है। इतना ही नहीं, पानी की बोतल पर एक्सपायरी डेट भी लिखी होती है। लेकिन उपभोक्ता इस डेट पर ध्यान नहीं देते और पानी की बोतल ख़रीदते ही गटागट पीने लगते हैं। बता दें कि पानी में अगर कुछ पड़ा न हो, तो वह कभी ख़राब नहीं होता। लेकिन जिस बोतल में पानी पैक होता है, वो बोतल बहुत दिन तक चलने लायक नहीं होती। ऐसे में अगर उस बोतल में ज़्यादा दिन तक पानी भरा रहता है, तो वो दूषित हो जाता है। अफ़सोस की बात है क इन बातों पर बहुत से लोग ध्यान नहीं देते और लम्बे समय से रखा हुआ बोतलबंद पानी तो पी ही लेते हैं, साथ ही पानी की प्लास्टिक की इन ख़तरनाक बोतलों का भी बार-बार इस्तेमाल करते रहते हैं। यह तो हुई सामान्य जानकारी की बात। लेकिन अगर कोई यह कहे कि ब्रांडेड पानी की बोतलों में शीलबंद पानी ही पीने के लायक नहीं है, तो क्या आप नहीं चौंकेंगे? लेकिन यह सच है।

जाँच में फेल निकला बोतलबंद पानी
हाल ही में एक चौंकाने वाली ऐसी ही ख़बर राजस्थान से सामने आयी है। वहाँ पर दो बड़ी और ब्रांडेड कम्पनियों ब्रिबेरी और अक्वो के पानी की 55,000 लीटर से ज़्यादा बोतलबंद पानी को सीज़ किया गया है। साथ ही अग्रिम आदेशों तक इन कम्पनियों के पानी की बिक्री पर रोक लगा दी है। यह कार्रवाई राजस्थान के खाद्य सुरक्षा कमिश्नर सुनील शर्मा के निर्देश पर प्रदेश में शुद्ध पेयजल के लिए चलाये जा रहे अभियान के तहत अजमेर में की गयी। सूत्रों की मानें, तो ब्रिबेरी की 24,000 लीटर पानी की की बोतलें व अक्वो की 32,000 बोतलों को सीज़ किया गया है। दरअसल कुछ दिन पहले जाँच के लिए इन दोनों ब्रांड के बोतलबंद पानी के सैंपल लिये गये थे। जाँच में पाया गया कि इनके बोतलबंद पानी में प्लास्टिक के टुकड़े मौज़ूद हैं। इसके बाद इन कम्पनियों का बोतलबंद पानी सीज किया गया।

क्या कहते हैं डॉक्टर?
जनरल फिजिशियन डॉक्टर मनीष कहते हैं कि पानी अगर पीने योग्य न हो, तो उससे दर्ज़नों बीमारियाँ पैदा होती हैं। इन बीमारियों में नज़ला, सर्दी-जुकाम, खाँसी, पेट के रोग, ब्लड के रोग, बाल झडऩे की समस्या या पूरी तरह गंजापन, चर्म रोग आदि होते हैं। इन सबमें सबसे गम्भीर बीमारियाँ- डायरिया, हैजा, उलटी, दस्त, मलेरिया, फाइलेरिया आदि हैं। इसलिए पानी हमेशा शुद्ध ही पीना चाहिए।

जच्चा-बच्चा विशेषज्ञ डॉक्टर परेश कहते हैं गंदा और दूषित पानी बच्चों पर बहुत जल्दी दुष्प्रभाव डालता है। बच्चे बहुत नाज़ुक और सिंसेटिव होते हैं। इसलिए बच्चों को जब भी पानी पिलाएँ, तो सोच-समझकर ही पिलाएँ। वहीं गर्भवती माँओं को भी पानी गरम करके छानकर फिर नॉर्मल करके पीना चाहिए। क्योंकि गंदा और दूषित पानी पीने से न सिर्फ़ उन्हें, बल्कि उनके गर्भ में पल रहे शिशु को भी जन्म से पहले ही कई रोग लग सकते हैं, जिनका इलाज फिर बहुत मुश्किल होता है।

बिना विकल्प के प्लास्टिक पर प्रतिबंध!

सार्वजनिक स्थलों पर, बाज़ारों में खाने-पीने की दुकानों के अन्दर या बाहर रखे कूड़ेदानों में सबसे अधिक कचरा अक्सर जो दिखायी देता है, उसमें चिप्स के रैपर, प्लास्टिक के स्ट्रा, कप, गिलास, तश्तरी आदि होते हैं। लेकिन अब 01 जुलाई से इनके इस्तेमाल पर पूरी तरह से प्रतिबंध लग चुका है। दरअसल 01 जुलाई से देश भर में एकल उपयोग प्लास्टिक से बनी 19 वस्तुओं पर प्रतिबंध लगा है। इन 19 वस्तुओं की सूची में स्ट्रा (पाइप), कॉफी बैग, सोडा और पानी की बोतलें, ईयरबड्स, बोतलों के प्लास्टिक के ढक्कन, खाद्य पदार्थों के रैपर, ग़ुब्बारों, झण्डों, कैंडी, आइसक्रीम में लगने वाली प्लास्टिक स्टिक, थर्माकोल से बनी प्लेट, कप, गिलास, प्लास्टिक के चम्मच, कांटा, चाकू के अलावा मिठाई के डिब्बों, नियंत्रण पखें और सिगरेट के पैकेट की पैकिंग में इस्तेमाल होने वाली फ़िल्म व 100 माइक्रोन से कम के प्लास्टिक बैग व पीवीसी बैनर भी शामिल हैं।

एकल उपयोग प्लास्टिक उसे कहते हैं, जिन प्लास्टिक उत्पादों को एक समय के इस्तेमाल के लिए डिजाइन व बनाया जाता है और फिर उसे फेंक दिया जाता है। ये डिस्पोजेबल आइटम भी कहलाते हैं। इनका इस्तेमाल करना आसान है। लेकिन इस्तेमाल करने वालों को यह भी पता होना चाहिए कि ऐसा प्लास्टिक पर्यावरण व इंसान दोनों के लिए हानिकारक है। इससे हानिकारक गैसें पैदा होती हैं, जिनके अपघटित होने यानी क्षरण में सैंकड़ों साल लगते हैं और मिट्टी को नुक़सान पहुँचता है। इस नुक़सान के दायरे में पर्यावरण, जानवरों, इंसानों, हरियाली, जीवों सहित पूरी धरा आ जाती है। क्या हम ऐसी ज़िन्दगी चाहते हैं? क्या हम ऐसी धरा चाहते हैं? बिलकुल नहीं। लेकिन इसके बावजूद हमने हालात ऐसे बना दिये हैं। बाज़ार की व्यवस्था ने हमारे खान-पान के तरीक़े इस क़दर बदल दिये कि वे हमारी ज़िन्दगी, पर्यावरण के लिए ख़तरा बन गये हैं। यही वजह है कि सरकारें इनके इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने को विवश हो गयी हैं।
ग़ौरतलब है कि प्लास्टिक ने सस्ती और सुविधाजनक व क़िफ़ायती होने के कारण पैकेजिंग उद्योग से अन्य सभी वस्तुओं का स्थान ले लिया। लेकिन इसके साथ एक गम्भीर चुनौती यह भी है कि प्लास्टिक धीरे-धीरे विघटित होता है, जिसमें सदियाँ लग सकती हैं। और विघटन की प्रक्रिया में यह धीरे-धीरे ज़हरीले रसायन निकलते हैं, जो हमारे भोजन, पानी में प्रवेश कर जाते हैं। इससे जलीय जीवों के लिए भी ख़तरा है। यह भी नहीं भूलना चाहिए कि प्लास्टिक कचरे का देश में प्रदूषण फैलाने में सबसे बड़ा योगदान है।

आँकड़े बताते हैं कि भारत में हर साल उत्पादित 9.46 मिलियन टन प्लास्टिक कचरे में 43 फ़ीसदी एकल उपयोग प्लास्टिक है। पर्यावरण, वन और जलवायु मंत्रालय के अधिकारियों का मानना है कि इस तरह के प्लास्टिक की वस्तुओं पर प्रतिबंध लगाने के पीछे वजह उनके संग्रह में आने वाली दिक़्क़तें हैं व उसके चलते रीसाइकिलिंग में दिक़्क़तें आती हैं। इन वस्तुओं का चयन इसलिए किया गया, क्योंकि ये बहुत छोटी हैं। इसलिए इन्हें इकट्ठा करना कठिन काम है और ये चीज़ें सीधे वातावरण में ही फेंक दी जाती हैं। बड़ी चीज़ों की तरह इन्हें रीसाइकिलिंग के लिए इकट्ठा करना आसान नहीं है।

प्लास्टिक को लेकर सन् 2019 में टॉक्सिक लिंक का एक अध्ययन आया था, जिससे पता चला था कि देश की राजधानी दिल्ली में इस्तेमाल होने वाला ज़्यादातर एकल उपयोग प्लास्टिक कचरा रीसाइक्लिंग प्लांट की जगह अन्य जगहों पर पहुँचने वाले कचरे में जा रहा है। कई प्लास्टिक ऐसे हें, जिन्हें कोई लेने को तैयार ही नहीं हैं। इनमें खाने के सामानों के पैकेट, बिस्कुट और चिप्स के मल्टी लेयर पैकेट आदि शामिल हैं। विश्व में एकल उपयोग प्लास्टिक कचरे के सन्दर्भ में चीन व अमेरिका के बाद भारत तीसरे नंबर पर आता है। भारत एक ज़िम्मेदार राष्ट्र होने के नाते प्लास्टिक प्रदूषण को ख़त्म करने के लिए प्रयासरत है।

भारत ने 2016 में एकल उपयोग प्लास्टिक पर प्रतिबंध को लेकर अपना पहला नियम लागू किया था। प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम-2016 में नवीनतम संशोधन 11 मार्च, 2021 में किया गया था, जिसे प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम-2021 कहा जाता है। दरअसल केंद्र सरकार ने एकल उपयोग प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने के लिए अगस्त, 2021 में एक अधिसूचना जारी की थी। इसमें एकल उपयोग प्लास्टिक की 19 चीज़ों पर पाबंदी लगाने को कहा गया था। उसके बाद केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने सभी सम्बन्धित पक्षों को एक नोटिस जारी करते हुए उन्हें 30 जून तक एकल उपयोग प्लास्टिक पर पाबंदी के लिए सारी तैयारी पूरी करने को कहा था। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने सभी सम्बन्धित पक्षों को 30 जून तक अपना स्टॉक इस्तेमाल करने के निर्देश दिये थे, ताकि वे 01 जुलाई से उनके विकल्पों का इस्तेमाल करना शुरू कर दें। विकल्पों में काग़ज़, बांस, मिट्टी आदि से बनी वस्तुएँ हैं। एकल उपयोग प्लास्टिक से बनी वस्तुओं को बनाने वालों से लेकर इस्तेमाल करने वाली कम्पनियों की राय में विकल्प का इस्तेमाल करना महँगा पड़ेगा। इससे क़ीमतें बढ़ेगी और भारतीय उपभोक्ता जो पहले से ही महँगाई की मार सह रहा है, उसके लिए मुश्किलें बढ़ेंगी। यह सही है कि सस्ती होने की वजह से प्लास्टिक अधिक प्रचलन आयी और उसने काग़ज़ों, बांस व मिट्टी से बनने वाली वस्तुओं को बाज़ार से ही बाहर कर दिया। इधर ईको फ्रेंडली चीज़ें की लागत बढ़ गयी और सरकार की ओर से भी उन्हें पुनर्जीवित करने के प्रयास अधिक कारगर नतीजें नहीं ला सके।

अब सरकारों के सामने एक बहुत बड़ी चुनौती है कि वे इनके बदले पर्यावरणीय मैत्री विकल्प क़िफ़ायती क़ीमतों में कम्पनियों को मुहैया कराएँ। इस सन्दर्भ में यहाँ ज़िक्र करना ज़रूरी है कि 01 जुलाई से प्रतिबंध वाले आदेश से बेवरेज कम्पनियाँ विशेषतौर पर चिन्तित हैं। जूस व डेयरी प्रोडक्ट्स के छोटे पैक्स के साथ प्लास्टिक का स्ट्रा होता है। अब 01 जुलाई से प्लास्टिक का यह स्ट्रा नहीं मिल रहा है। ऐसा उत्पाद बनाने वाली व बेचने वाली अधिकतर कम्पनियों ने इसके वैकल्पिक स्रोत ग्राहकों को मुहैया कराने की अभी तक व्यवस्था नहीं की है। इन कम्पनियों ने अब प्रधानमंत्री कार्यालय से उन्हें इस सन्दर्भ में छूट देने की गुहार लगायी है। अपने लिए और अधिक वक़्त माँगा है।

देश में पाँच रुपये से लेकर 30 रुपये तक की क़ीमत वाले डेयरी प्रोडक्ट्स बहुत-ही लोकप्रिय हैं। इधर कन्फेडरेशन ऑफ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) की राय में अभी एकल उपयोग प्लास्टिक बन्द होने पर पर्याप्त विकल्प उपलब्ध नहीं है। इस संस्था का यह मानना है कि जिस तरह से सरकार ने 01 जुलाई से इसके इस्तेमाल पर प्रतिबंध का ऐलान किया, उस अनुपात में बाज़ार में उनके विकल्प मुहैया नहीं कराये गये। ऐसे में अगर सरकार पूर्ण रूप से एकल उपयोग प्लास्टिक पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाती है, तो इससे व्यापार और उद्योग को भारी नुक़सान होगा। व्यापारिक संगठनों की ओर से सुनायी पडऩे वाली ये आवाज़ें फ़िलहाल सरकार की आधी-अधूरी तैयारी पर सवाल करती नज़र आती हैं। बहरहाल उपभोक्ताओं को प्लास्टिक की इन प्रतिबंधित वस्तुओं के विकल्प का इंतज़ार है। क्योंकि सरकार ने एकल उपयोग प्लास्टिक की जिन 19 वस्तुओं पर प्रतिबंध लगाने का ऐलान किया है, उनके विकल्प अभी बाज़ार में उतने बड़े स्तर पर नहीं हैं?

बहरहाल सरकार यही कह रही है कि उल्लंघन करने वालों के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई होगी। नियमों का पालन कराने की ज़िम्मेदारी केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड व राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड दोनों की होगी। प्रतिबंध का उल्लंघन करने सम्बन्धित निगरानी दोनों बोर्ड करेंगे। प्रतिबंध का उल्लंघन करने वालों को वातावरण संरक्षण अधिनियम-1986 के तहत पाँच साल की सज़ा या एक लाख रुपये तक की ज़ुर्माना या दोनों हो सकते हैं। वैसे इससे पहले भी कई राज्यों ने एकल उपयोग प्लास्टिक की कई चीज़ों पर प्रतिबंध लगाया है। इसमें हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, केरल, उत्तराखण्ड शामिल हैं। यहाँ शत्-प्रतिशत सफलता तो नहीं मिली; लेकिन प्रयास जारी है।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा समूचे देश में 01 जुलाई से एकल उपयोग प्लास्टिक के 19 आइटम्स पर प्रतिबंध लगाने के ऐलान से यह सन्देश भी राज्यों में गया है कि अब ढील नहीं दी जा सकती। क्योंकि राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड को रिपोर्ट करना है। उसकी जबावदेही बढ़ गयी है। विकल्पों के अभाव को दूर करने के साथ-साथ राज्य सरकारों को इसके प्रति जागरूकता अभियान भी युद्ध स्तर पर शुरू करने होंगे। अमल करने वाली संस्थाओं पर भी इसकी सफलता बहुत हद तक निर्भर करेगी।

भारतीयों का ख़बरों पर बढ़ा भरोसा

रॉयटर्स इंस्टीट्यूट फॉर द स्टडी ऑफ जर्नलिज्म की हाल में जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, बड़ी संख्या में लोग कोरोना वायरस महामारी, रूस के यूक्रेन पर आक्रमण और जीवन-यापन के संकट जैसी महत्त्वपूर्ण ख़बरों को देखने से चुनिंदा रूप से बच रहे हैं। भारत उन सात देशों में एक है, जहाँ समाचारों में लोगों का विश्वास बढ़ा है। यह तीन फ़ीसदी बढ़कर 41 फ़ीसदी हो गया है। फिनलैंड समाचार विश्वास के इस पैमाने पर 69 फ़ीसदी के साथ उच्चतम स्तर वाला देश है, जबकि अमेरिका में समाचार की विश्वसनीयता तीन फ़ीसदी और गिरकर सर्वेक्षण में सबसे कम 2.6 फ़ीसदी है।

यह ध्यान देने योग्य बात है कि समाचारों पर विश्वास आज भी कोरोना महामारी से पहले की तुलना में अधिक है। हालाँकि 2015 की तुलना में यह कम है। ये निष्कर्ष रॉयटर्स इंस्टीट्यूट डिजिटल न्यूज रिपोर्ट 2022 में निहित हैं, जिसे ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में रॉयटर्स इंस्टीट्यूट फॉर द स्टडी ऑफ जर्नलिज्म के राजनीति और अंतरराष्ट्रीय सम्बन्ध के हिस्से के रूप में दिखाया गया है। विभिन्न देशों में समाचारों का उपभोग कैसे किया जा रहा है, इसके ज़रिये इसे समझने में मदद मिलती है। यह रिसर्च यूगोव (ङ्घशह्वत्रश1) की तर$फ से जनवरी के आख़िर और फरवरी, 2022 की शुरुआत में एक ऑनलाइन प्रश्नावली का उपयोग करके शोध के ज़रिये की गयी।
भारत में सबसे अधिक उपयोग किये जाने वाले सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म में 53 फ़ीसदी उत्तरदाताओं का कहना है कि वे यूट्यूब का उपयोग करते हैं और 51 फ़ीसदी समाचार जानने के लिए व्हाट्स ऐप का उपयोग करते हैं। सर्वेक्षण में 12 प्रमुख देशों को शामिल करने वाले विश्लेषण में फेसबुक (30 फ़ीसदी) के लिए सबसे लोकप्रिय सोशल नेटवर्क बना हुआ है।

इसके बाद यूट्यूब (19 फ़ीसदी) और व्हाट्स ऐप (15 फ़ीसदी) हैं। समाचारों तक पहुँचने के माध्यम के रूप में फेसबुक की लोकप्रियता में 2016 के बाद से 12 फ़ीसदी की गिरावट आयी है। अपेक्षाकृत युवा आबादी वाला भारत भी एक मज़बूत मोबाइल केंद्रित बाज़ार है, जहाँ स्मार्टफोन के माध्यम से 72 फ़ीसदी समाचार और कम्प्यूटर के माध्यम से केवल 35 फ़ीसदी तक पहुँच है। न्यूज एग्रीगेटर प्लेटफार्म और ऐप जैसे गूगल न्यूज (53 फ़ीसदी), डेली हंट (25 फ़ीसदी), इनशॉट्र्स (19 फ़ीसदी), और न्यूज प्वाइंट (17 फ़ीसदी) समाचारों तक पहुँचने के महत्त्वपूर्ण ज़रिये बन गये हैं और सुविधा के मामले में आगे हैं।

रिपोर्ट में यह भी दिखाया गया है कि भारत में सर्वेक्षण का जवाब देने वालों में से 84 फ़ीसदी ने सोशल मीडिया सहित ऑनलाइन समाचारों का उपयोग किया, जो दो फ़ीसदी की वृद्धि है, जबकि 63 फ़ीसदी ने सोशल नेटवर्क पर, 59 फ़ीसदी टेलीविजन पर और 49 फ़ीसदी प्रिंट से समाचार जाने।

डीडी न्यूज और ऑल इंडिया रेडियो जैसे सार्वजनिक प्रसारकों के साथ सबसे भरोसेमंद टाइम्स ऑफ इंडिया, इकोनॉमिक टाइम्स और हिन्दुस्तान टाइम्स जैसे प्रिंट ब्रांडों के साथ समाचार स्कोर में कुल भरोसा तीन फ़ीसदी बढ़कर 41 फ़ीसदी हो गया।

यह सर्वेक्षण एशिया में 11, दक्षिण अमेरिका में पाँच, अफ्रीका और उत्तरी अमेरिका में तीन और यूरोप में 24 सहित कुल 46 देशों में किया गया, जो दुनिया की आधी से अधिक आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं। प्रत्येक देश में 2,000 से अधिक उत्तरदाता थे, जबकि सर्वेक्षण में शामिल अधिकांश लोग नियमित रूप से समाचार का उपभोग करते हैं। इनमें से 38 फ़ीसदी ने कहा कि वे अक्सर या कभी-कभी समाचार देखने-पढऩे से बचते हैं, जो साल 2017 के 29 फ़ीसदी से ज़्यादा है। रॉयटर्स इंस्टीट्यूट फॉर द स्टडी ऑफ जर्नलिज्म ने अपनी वार्षिक डिजिटल समाचार रिपोर्ट में कहा कि लगभग 36 फ़ीसदी, विशेष रूप से 35 वर्ष से कम आयु के; लोगों का कहना है कि समाचार उनके मूड को कमज़ोर (ख़राब) करता है।

ख़बरों पर भरोसा भी कम हो रहा है। बड़ी संख्या में लोग मीडिया को अनुचित राजनीतिक प्रभाव के अधीन देखते हैं और केवल एक छोटे से वर्ग का मानना है कि अधिकांश समाचार संगठन अपने स्वयं के व्यावसायिक हित के मुक़ाबले समाज के हिट को आगे रखते हैं। रिपोर्ट में रॉयटर्स इंस्टीट्यूट के निदेशक रासमस क्लेस नीलसन लिखते हैं कि 46 बाज़ारों में किये गये 93,432 लोगों के ऑनलाइन सर्वेक्षण के आधार पर यह तथ्य सामने आया है।

रिपोर्ट में पाया गया कि युवा दर्शक टिकटॉक जैसे प्लेटफार्मों के माध्यम से समाचारों तक तेज़ी से पहुँच रहे हैं। हालाँकि समाचार ब्रांडों से उनका सम्बन्ध कमज़ोर है। हर हफ़्ते 18 से 24 साल के 78 फ़ीसदी बच्चे एग्रीगेटर्स, सर्च इंजन और सोशल मीडिया के ज़रिये ख़बरें जानते हैं। उस आयु वर्ग के 40 फ़ीसदी लोग हर हफ़्ते टिकटॉक का उपयोग करते हैं, जिसमें 15 फ़ीसदी कहते हैं कि वे इसका उपयोग समाचार खोजने, चर्चा करने या साझा करने के लिए करते हैं।

ऑनलाइन समाचारों के लिए भुगतान करने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि का स्तर कम हो सकता है, क्योंकि डिजिटल सदस्यता का एक बड़ा हिस्सा कुछ राष्ट्रीय ब्रांडों के लिए जा रहा है। 20 देशों, जहाँ समाचार के लिए भुगतान व्यापक है; में सर्वेक्षण के उत्तरदाताओं में से 17 फ़ीसदी ने ऑनलाइन समाचार के लिए भुगतान किया, जो पिछले वर्ष के बराबर का ही आँकड़ा है। स्थानीय समाचारों के लिए भुगतान बाज़ारों में भिन्न होता है। द रॉयटर्स इंस्टीट्यूट फॉर द स्टडी ऑफ जर्नलिज्म को थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन द्वारा वित्त पोषित किया जाता है, जो थॉमसन रॉयटर्स की बिना लाभ की शाखा है। पोल में त्रुटि (एरर) का मार्जिन 2-3 फ़ीसदी ऊपर या नीचे हो सकता है।
अध्ययन में एक और खोज पर रोशनी डाली गयी है, जो चुनिंदा समाचारों से बचने की संख्या में वृद्धि की है। इसके परिणामस्वरूप कई देशों में लोग समाचार से तेज़ी से डिस्कनेक्ट हो रहे हैं। अधिकांश असन्तुष्टों का कहना है कि समाचारों में बहुत अधिक राजनीति और कोरोना महामारी भरा है और उस समाचार का उनके मूड पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

रिपोर्ट की प्रस्तावना में रॉयटर्स इंस्टीट्यूट के निदेशक प्रोफेसर रासमस क्लेस नीलसन ने कहा कि बड़े अन्तर के बावजूद स्वतंत्र पेशेवर पत्रकारिता लोगों को व्यक्तिगत अनुभव से परे दुनिया को समझने में मदद कर सकती है। हम समाचारों में घटती रुचि, कम विश्वास, पिछले साल एक सकारात्मक टक्कर के बाद कुछ समूहों के बीच सक्रिय समाचार वाचन में वृद्धि देखते हैं।

इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 30 वर्ष से कम उम्र के लोग सीधे समाचार मीडिया से जुडऩे में बहुत कम रुचि रखते हैं। पत्रकारिता को कैसा दिखना चाहिए? इस पर अलग-अलग विचार हैं, और अधिकांश के पास सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, मोबाइल एग्रीगेटर जैसे समाचार खोज ज़रिये हैं। युवा पीढ़ी के लिए टिकटॉक अब 40 फ़ीसदी हिस्से तक तक पहुँच गया है, और उनमें से 15 फ़ीसदी समाचार के लिए इस सामाजिक मंच का उपयोग करते हैं। अन्य विजुअल केंद्रित प्लेटफॉर्म जैसे इंस्टाग्राम और यूट्यूब भी इस समूह के भीतर समाचारों तक पहुँचने के लिए अधिक लोकप्रिय हुए हैं।

वास्तव में सर्वेक्षण के तहत आये सभी बाज़ारों के लिए इस वर्ष पहली बार प्रत्यक्ष पहुँच (23 फ़ीसदी) की तुलना में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म (28 फ़ीसदी) के माध्यम से होने वाले समाचारों तक पहुँच को प्राथमिकता दी गयी। सन् 2018 के बाद से यह नौ अंक नीचे है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस साल की रिपोर्ट में एक स्पष्ट संकेत है। युवा समूहों की बदलती आदतें, विशेष रूप से 30 वर्ष से कम उम्र के लोगों तक पहुँचने के लिए समाचार संगठन अक्सर संघर्ष करते हैं। हमने पाया कि यह समूह जो सोशल मीडिया के साथ पला-बढ़ा है; न केवल अलग है, बल्कि पहले की तुलना में कहीं अधिक भिन्न है।

सरकार की बढ़ती ताक़त, गिरती साख

PM being welcomed by people of Bengaluru, on June 20, 2022.

दिदेश की राजनीति का स्तर दिन-ब-दिन गिरता जा रहा है। लोग अब राजनीति में दिलचस्पी ले ज़रूर रहे हैं; लेकिन उनका मोहभंग भी राजनीति से ही हो रहा है। आजकल लोग जब भी कहीं राजनीति की चर्चा करते हैं, तो उनमें एक ग़ुस्सा होता है। मौज़ूदा केंद्र सरकार की नीतियों का विरोध भी इसी तरह बढ़ता जा रहा है। हाल यह है कि जन-आक्रोश सड़कों पर देखने को मिल रहा है। इस बारे में ‘तहलका’ संवाददाता को कई राजनीतिक विश्लेषकों और जानकारों से लेकर जनता ने अपने मन की बात बतायी।

लोगों का कहना है कि देश में चाहे कांग्रेस की सरकार रही हो, अन्य दलों की सरकार रही हो या अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए की सरकार हो; सभी ने कुछ-न-कुछ ऐसा किया है, जिसका विरोध जनता ने किया है। लेकिन मौज़ूदा सरकार का जिस क़दर विरोध देखने को मिल रहा है, उतना विरोध किसी सरकार को देखने को नहीं मिला है। हाल यह है कि भाजपा का नाम आये या भाजपा सरकार का उस सबमें मोदी का ही नाम हो रहा है और मोदी को ही बदनामी मिल रही है। अगर कोई काम अच्छा होता है, तो समर्थक मोदी की ही तारीफ़ करते हैं, चाहे वो भाजपा शासित किसी भी राज्य में काम हुआ हो। ऐसे ही अगर कोई काम ख़राब होता है, तो विरोधी, जिसमें आम लोग भी बड़ी संख्या में अब हो गये हैं; मोदी का ही होता है। यानी अब भाजपा शासन में तारीफ़, रोष, विरोध का केंद्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हो चुके हैं।

राजनीतिक विश्लेषक एवं दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. हंसराज का कहना है कि सन् 2019 में शाहीन बाग़ में एनआरसी सहित सीएए क़ानून के विरोध में जमकर मोदी सरकार की नीतियों के ख़िलाफ़ महीनों तक धरना-प्रदर्शन चलता रहा है। लेकिन अचानक 2020 में कोरोना वायरस के कहर के चलते शाहीन बाग़ का विरोध-प्रदर्शन समाप्त हो गया। फिर कोरोना वायरस के बीच ही केंद्र सरकार तीन कृषि क़ानून ले लायी, जिनका किसानों ने जमकर विरोध किया। सरकार की किसान विरोधी नीतियों के विरोध में यह आन्दोलन एक साल से अधिक चला।

इस आन्दोलन को ख़त्म करने के लिए सरकार ने किसानों की आधी-अधूरी माँगों को मानकर बाक़ी माँगें जल्द पूरी करने का वादा कर दिया और जैसे-तैसे आन्दोलन ख़त्म कराया। हालाँकि किसानों में रोष है कि सरकार ने उनकी माँगें पूरी नहीं कीं। किसान के आन्दोलन जब स्थगित हुआ, तो लोगों ने सोचा कि सरकार अब कोई ऐसा क़दम नहीं उठाएगी, जिससे लोग फिर से विरोध-प्रदर्शन करें। लेकिन अब अग्निपथ योजना को लेकर जिस तरह देश भर आगजनी और हिंसा हुई है, उससे पूरे देश को कई दिनों तक बड़ा हिंसक आन्दोलन झेलना पड़ा। इससे देश की निजी सम्पत्ति का करोड़ों रुपये का नुक़सान हुआ है। प्रो. हंसराज का कहना है कि सरकार जिस तरह से अपनी मर्ज़ी से नये अंदाज़ में नये क़ानून व योजनाएँ ला रही है, उससे जनाक्रोश तो बढऩा लाज़मी है।

अग्निपथ योजना के ख़िलाफ़ विरोध-प्रदर्शन ठीक से थमा नहीं, तब तक महाराष्ट्र सरकार को लेकर सियासी ड्रामा शुरू हो गया। महाराष्ट्र मामले में भले ही भाजपा ने कुछ नहीं कहा; लेकिन देश की जनता यही मान रही है कि केंद्र सरकार इशारे के बिना यह सब सम्भव नहीं हो सकता। दिल्ली की राजनीति के जानकार सुरेश सिंह का कहना है कि मौज़ूदा सरकार की राजनीतिक दलों में ही नहीं, बल्कि आमजन में यह पहचान बनती जा रही है कि जो दल या अधिकारी सरकार के अनुसार नहीं चलते हैं, उनके ख़िलाफ़ ईडी और सीबीआई की छापेमारी सहित अन्य प्रकार के क़ानूनी डंडे चलने लगते हैं। यह सरकार की हेकड़ी को दिखाती है।

अम्बेडकर कॉलेज के पूर्व प्रो. अखिलेश कुमार का कहना है कि राजनीति में बदले की भावना से काम होता है, और अगर सुधार नहीं हुआ, तो ऐसे ही होता रहेगा। क्योंकि राजनीति पूरी तरह से स्वार्थ पर टिकी है। इसमें आज जो अपने हैं, कल वे पराये हो जाते हैं। यहाँ यह सब आम बात है। लेकिन जब सरकारी योजनाओं का जनमानस पर विपरीत असर पडऩे लगे और लोगों के बीच आपसी सौहार्द टूटने लगे, तो समझो कि सरकार के प्रति विरोधी राजनीतिक दलों में ही नाराज़गी नहीं बढ़ती, बल्कि आमजन का आक्रोश की बढऩे लगता है। अगर ऐसे ही सब चलता रहा, तो सरकार को आगामी चुनावों में इससे काफ़ी नुक़सान उठाना पड़ सकता है। उनका कहना है कि मौज़ूदा समय में किसी भी सरकार का आभा मण्डल कितना भी बड़ा क्यों न हो; लेकिन सरकार किसी-न-किसी तरह के विवाद में फँस ही जाती है। अगर ऐसा लगातार होता रहे, तो सरकार की सियासी चाल भी कई दफ़ा उलटी पड़ जाती है। इसलिए कोई भी फ़ैसला सरकार को सोच-समझकर लेना चाहिए, जिससे जनाक्रोश न भड़के।
अखिलेश कुमार का कहना है कि जिस तरीक़े से राहुल गाँधी परिवार पर नेशनल हेराल्ड मामले में कार्रवाई हुई है और उससे जो माहौल दिल्ली की सड़कों पर देखने को मिला है, उससे जनता में कांग्रेस के प्रति सहानुभूति का माहौल बना है। इसी तरह आम आदमी पार्टी के दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन पर ईडी के शिकंजे में फँसे होने से भी केंद्र सरकार की नीतियों के विरोध में दिल्ली की राजनीति में विरोधियों को एकजुट करने का मौक़ा मिला है।

दिल्ली के लोगों का कहना है कि सरकार की नीतियों का विरोध अगर विपक्षी दल करते हैं, तो देश में माहौल बिगडऩे की सम्भावनाएँ कम ही होती हैं। लेकिन किसानों, युवाओं और छात्रों के भविष्य के साथ किसी तरह के खिलवाड़ का कोई ग़लत सन्देश जाता है, तो निश्चित तौर पर पूरे देश में विरोध प्रदर्शनों की आशंका बनती है। किसान नेता भूपेन्द्र सिंह का कहना है कि जिस प्रकार से रातोंरात अग्निपथ योजना लाकर देश भर हिंसा का माहौल बनाया गया, कहीं उसके पीछे किसानों से बदला लेने की कोई योजना तो नहीं है? क्योंकि किसान आन्दोलन के आगे जिस तरह केंद्र की मोदी सरकार को झुकना पड़ा, उसके पीछे किसानों के साथ-साथ पूरे देश के ज़्यादातर लोगों की नाराज़गी भी वजह बनी।

किसानों को लेकर सैनिक भी सरकार से नाराज़ रहे, जो कि पहले ही कई चीज़ों को लेकर सरकार से नाराज़ थे। सरकार सैनिकों से नाराज़गी नहीं लेना चाहती, क्योंकि देश के क़रीब 80 फ़ीसदी सैनिक किसान परिवारों और ग्रामीण पृष्ठभूमि से ही होते हैं। इन्हीं सभी पहलुओं पर विचार करके सरकार को किसानों की कुछ माँगों को मानना पड़ा। अग्निपथ योजना एक तरह से किसानों के भी विरोध में है। उत्तर प्रदेश के किसान नेता व राजनीति शास्त्र के अध्यापक उदित नारायण का कहना है कि सरकारें आती-जाती हैं। लेकिन सरकार की कुछ ग़लतियों का ख़ामियाज़ा राजनीतिक दलों को ही नहीं, बल्कि पूरे देश को उठाना पड़ता है।

मौज़ूदा दौर में जो सियासी खेल चल रहा है, उसके घातक परिणाम सामने आ सकते हैं। आज देश में अफ़रा-तफ़री का माहौल है। करोड़ों की सम्पत्ति को बर्बाद किया जा रहा है। ट्रेने फूँकी गयी हैं। लोगों को यात्रा करने में डर लगने लगा है कि कहीं कोई अप्रिय घटना न घट जाए। ट्रेनों का आवागमन बन्द होने से अन्य वाहनों से आने-जाने में कई गुना किराया लोगों को देना पड़ रहा है। एक भाजपा की नेता ने पैगंबर पर विवादित बयान दिया, तो देश में एक समुदाय ने पूरे देश में तोड़-फोड़ का माहौल बना दिया है। इन्हीं सभी पहलुओं पर सरकार को गम्भीरता से विचार करना होगा, अन्यथा आने वाले दिनों में और भी स्थिति बिगड़ सकती है।

उदित नारायण का कहना है कि सरकार की एक सोच होती है, जिसके तहत देशवासी उसका समर्थन करते हैं। चाहें वो वोट देते हों या न देते हों। लेकिन वर्तमान-काल में जो चल रहा है, उसका विरोध जिसने वोट दिया है, वो भी कर रहा है और जिसने नहीं दिया, वो भी कर रहा है। ऐसे में देश में शान्ति और विकास की बात करना मुश्किल हो गया है।

बढ़ रहा योग का बाज़ार

वर्ष 2027 तक योग का वैश्विक बाज़ार 60 अरब डॉलर से अधिक का होगा

पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ के जिम्नेजियम हॉल में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर विश्वविद्यालय के खेल विभाग द्वारा पहली जून से लेकर 21 जून तक योग कैंप का आयोजन किया गया था। इसमें आकर्षक यह था कि एक छोटी-सी बच्ची अपने योग प्रशिक्षक को अलग-अलग आसन करके दिखा रही थी। आसन करने से ज़्यादा उस बालिका में योग के प्रति एक जज़्बा था। कैंप में आये अन्य लोगों में भी तंदुरुस्ती और शारीरिक गठन को लेकर योग के प्रति एक आकर्षण दिखायी दे रहा था।

बहरहाल, धीरे-धीरे देश-विदेश में योग की एक जबरदस्त अलख जगी है। योग से लोगों के जुड़ाव को लेकर माना जा रहा है कि योग का जो वैश्विक बाज़ार वर्ष 2020 में 41.5 अरब डॉलर का था, वह वर्ष 2027 तक 60 अरब डॉलर से अधिक का हो जाएगा। कोरोना महामारी के चलते योग की लोकप्रियता और माँग पहले से ज़्यादा बढ़ गयी है; ख़ासकर ऑनलाइन योग सीखने और सिखाने की। लोग बड़ी तेज़ी से मानसिक बीमारियों का शिकार हुए हैं, जिनमें तनाव विकराल समस्या बनकर उभरा है। अंतरराष्ट्रीय बाज़ार विश्लेषण अनुसंधान और परामर्श समूह (आईएमएआरसी) की नयी रिपोर्ट के अनुसार, जीवन शैली से होने वाली भयानक बीमारियों, जैसे- मधुमेह, उच्च रक्तचाप, अस्थमा, गठिया, कैंसर और तनाव से जुड़ी हुई बीमारियों के कारण भारत का हेल्थ ऐंड वेलनेस मार्केट (स्वास्थ्य और कल्याण बाज़ार) 2022 से 2027 तक 5.45 फ़ीसदी की दर से और आगे बढ़ेगा। शरीर और मन को स्वस्थ रखने वाली भारत की प्राचीन विद्या योग विश्व में 10 सबसे अधिक लोकप्रिय स्वास्थ्य गतिविधियों में शामिल हो चुका है। स्वास्थ्य कार्यक्रमों के प्रति लोगों की बढ़ती जागरूकता योग के वैश्विक बाज़ार को गति दे रही है। इसके माध्यम से लोग समग्र स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान दे रहे हैं। योग के उद्योग में नॉर्थ अमेरिका, लेटिन अमेरिका, मिडिल ईस्ट, यूरोप और एशिया पैसिफिक जैसे देश मुख्य भूमिका में है।

बिजनेस रिसर्च कम्पनी की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि यूएस योग पॉपुलेशन स्टैटिसटिक्स के अनुसार, वर्ष 2021 में 55 लाख अमेरिकन लोगों ने योग का अभ्यास किया, जिसमें 75 फ़ीसदी महिलाएँ थीं। यहाँ तक कि ये लोग योग अभ्यास, के उपकरणों, योग कक्षाओं, वस्त्रों और अन्य साज़ा-ओ-सामान पर अनुमानित 16 अरब डॉलर ख़र्च करते हैं। क्रिस्टीन हेब्रोन अपने एक लेख में लिखती हैं कि विश्व में अकेला अमेरिका ऐसा देश है, जहाँ योग की ख़ूब लोकप्रियता है। यूएस में 36 लाख लोग योग का अभ्यास करते हैं। यूएस में भी तीन सबसे बड़े शहर सैन फ्रांसिस्को, न्यूयॉर्क और लॉस एंजेलिस हैं, जहाँ सबसे अधिक योग स्टूडियो चलते हैं।

वैश्वीकरण और बाज़ारवाद की जीवन-शैली ने मनुष्य को टेंशन और तनाव जैसी बीमारियों का शिकार बनाया है। विकास की दौड़ में जितना अधिक और तेज़ी से औद्योगीकरण हुआ है, तनाव से जुड़ी बीमारियाँ भी उतनी ही तेज़ी से बढ़ी हैं। हालाँकि तनाव से उबरने के लिए बाज़ार में बहुत सारी दवाएँ उपलब्ध हैं; लेकिन उनका स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। तनाव से बचने के लिए योग का अभ्यास काफ़ी कारगर सिद्ध हुआ है। यौगिक क्रियाओं का मन मस्तिष्क पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। योग आसनों के अभ्यास से शरीर की बीमारी मिटती हैं और शरीर का एनर्जी लेवल बढ़ता है। योग केवल आसन, प्राणायाम करने का ही नाम नहीं है, बल्कि योग का नियमित और धीरे-धीरे अभ्यास करने पर मनुष्य का सम्पूर्ण विकास सम्भव है। समग्र विकास की बात की जाए, तो इसमें मनोदशा, शारीरिक, भावनात्मक स्तर भी शामिल है; यानी तन, मन का कायाकल्प और भावों की शुद्धि। व्यक्ति की जीवन शैली में आश्चर्यजनक परिवर्तन होता है, जब अष्टांग योग का अभ्यास किया जाता है। अष्टांग योग में यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि है। यानी व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक स्तर पर उन्नत बनाना योग का उद्देश्य है। आधुनिक आविष्कारों ने आदमी को सुविधाएँ तो ख़ूब प्रदान की हैं। लेकिन दूसरी तरफ़ कई सुविधाओं ने उसके शरीर और मन को ग्रहण लगा दिया। ग्लैमर वल्र्ड की चकाचौंध में वह प्राकृतिक जीवन शैली से बहुत दूर निकलता चला गया, जिसका परिणाम है- शारीरिक और मानसिक बीमारियाँ।

ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं, जिनमें कई बड़ी हस्तियों ने योग का अभ्यास करके आत्मिक शान्ति और सफलता को प्राप्त किया। एक बार भारत के पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से किसी ने प्रश्न किया कि राजनीति जैसे क्षेत्र में आप किस प्रकार से शान्त रह पाते हैं? उनका उत्तर था कि जब भी कोई मुश्किल समय होता है, वे योग का अभ्यास करते हैं; ध्यान लगाते हैं। ऐसे ही प्रसिद्ध वायलिन वादक यहूदी मैनूहीन का प्रसंग आता है कि वह वायलिन बजाने से पहले निद्रा और योग अभ्यास को तरजीह देते थे। योग शास्त्र में महर्षि पतंजलि ने योग के समस्त पहलुओं को समझाते हुए एक सशक्त सूत्र दिया- ‘योगश्चित्तवृत्तिनिरोध:’। अर्थात् चित्तवृत्ति का निरोध योग है। सरल भाषा में कहें, तो मन में उठने वाले विचारों की लहरों पर नियंत्रण करना योग है। श्रीकृष्ण ने योग की मुक्त कंठ से प्रशंसा की है, जबकि महात्मा बुद्ध ने योग का अभ्यास करते हुए ही निर्वाण प्राप्त किया था। योग जीवन जीने का ऐसा ढंग है, जिसमें व्यक्ति अपनी समस्त इंद्रियों और मन पर नियंत्रण करता हुआ समतापूर्वक जीवन जीता है। श्रीमद्भगवद्गीता में बताया गया है कि योग व्यक्ति का दु:ख से सम्पर्क तोड़ता है। श्रीकृष्ण ने समता पर अत्यधिक ज़ार दिया है; जैसे कि महात्मा बुद्ध ने। श्रीकृष्ण कहते हैं कि योग न उस व्यक्ति के लिए है, जो अधिक खाता है और न ही उसके लिए जो अधिक निराहार रहता है। योग ऐसे व्यक्ति के लिए भी नहीं है, जो अधिक सोता है और न ही उसके लिए, जो अधिक जागता रहता है। यह उस व्यक्ति के लिए है, जो समतापूर्वक जीवन जीता है। सबके साथ सन्तुलन बनाकर जो योग का अभ्यास करता है, वही सच्चा योगी है।

योग से व्यक्तित्व का विकास
व्यक्तित्व की चार प्रक्रियाएँ मानी गयी हैं। पहला, हम जो भी महसूस करते हैं, उसी प्रकार सोचना शुरू कर देते हैं। दूसरा, हम जो सोचते हैं, उसी प्रकार योजना बनाते हैं और वही बोलते हैं। तीसरा, हम जो भी योजना बनाते हैं और बोलते हैं, उसी प्रकार के कार्य को अंजाम देते हैं। चौथा, हम जो भी कार्य करते हैं, उसी तरह से ढलना शुरू हो जाते हैं। आधुनिक युग में आदमी के लिए योग समय की बड़ी माँग है। योगाभ्यास के द्वारा व्यक्तित्व का चौतरफ़ा विकास होता है, शारीरिक स्तर पर मांसपेशियों को आराम मिलता है। प्राणिक स्तर पर साँस की गति सन्तुलित होती है। मानसिक स्तर पर आत्मिक शान्ति मिलती है और रचनात्मकता में वृद्धि होती है। इच्छा शक्ति बढ़ती है। बौद्धिक स्तर पर बुद्धि तेज़ा होती है, जबकि भावनात्मक स्तर पर ज़िन्दगी में ख़ुशी आती है और दिव्यता का अहसास होता है।

जहाँ लोकप्रिय है योग
गूगल ट्रेंड्स के अनुसार, ऐसे 20 देश हैं, जहाँ योग का ख़ूब अभ्यास किया जाता है। इनमें कनाडा, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया, आयरलैंड, संयुक्त राज्य अमेरिका, भारत, न्यूजीलैंड, स्विट्जरलैंड, हॉन्ग कोंग, ऑस्ट्रिया, यूके, नॉर्वे, नीदरलैंड, संयुक्त अरब अमीरात, स्वीडन, डेनमार्क, जर्मनी, दक्षिण अफ्रीका, कोस्टा रिका और चिल्ली आदि देश हैं।
मानवता के लिए योग कोरोना के प्रभाव को देखते हुए वर्ष 2022 के लिए ‘मानवता के लिए योग’ थीम रखा गया था। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 27 सितंबर 2014 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने भाषण के दौरान योग दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा था। इस महासभा में 177 देश शामिल हुए। उन्होंने इस प्रस्ताव को अपनी सहमति दी और संयुक्त राष्ट्र महासभा की तरफ़ से 11 दिसंबर 2014 को इसे मंज़ूरी दे दी गयी। 21 जून, 2015 को सबसे पहली बार अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया गया। उल्लेखनीय है कि पहली बार 192 देशों में योग का आयोजन किया गया था, जिसमें 47 मुस्लिम देश भी शामिल हुए।

अद्भुत मिताली

मिताली के संन्यास के बाद मैदान में नहीं दिख रहा महिला क्रिकेट का बड़ा किरदार

मिताली राज का पहला प्यार भरतनाट्यम था। लेकिन तक़दीर उसे क्रिकेट के मैदान में ले आयी। महज़ 16 साल की उम्र में जिस अंतरराष्ट्रीय करियर की शुरुआत हुई, वह 23 साल तक चला। अनगिनत रिकॉर्ड बनाकर और देश की महिला क्रिकेट की पहचान बनकर मिताली दोराई राज आज जिस मुकाम पर खड़ी हैं, वहाँ पहुँचने के लिए कड़ी मेहनत, अनुशासन और एकाग्रता की ज़रूरत होती है। इसलिए उनके रिटायरमेंट पर बीसीसीआई ने कहा कि मैदान पर आपके नेतृत्व ने राष्ट्रीय महिला टीम का गौरव बढ़ाया है।

मिताली, जिनकी बायोपिक भी बन रही है; की करियर गाथा आने वाली कई पीढिय़ों को बल्ला थामने के लिए प्रेरित करती रहेगी। उनके पिता सेना में थे और अनुशासन का माहौल उन्हें घुट्टी में ही मिल गया था। भरतनाट्यम भले नृत्य है, क्रिकेट में भी उसी एकाग्रता की ज़रूरत रहती है, जो भरतनाट्यम में होती है। मिताली ने क्रिकेट को भरतनाट्यम जैसी कला की ही तरह जिया। पहले ही एकदिवसीय मैच में शतक और टेस्ट मैच में एक दोहरा शतक इस बात के गवाह हैं कि मिताली किस दर्जे की खिलाड़ी रहीं।

एक कप्तान के रूप में तो उनका रिकॉर्ड पुरुष क्रिकेट से भी इस मायने में बेहतर है कि वह दो ऐसे महिला विश्व कप में कप्तान रहीं, जिसमें भारत फाइनल में पहुँचा। भारत में मिताली दर्ज़नों युवा खिलाडिय़ों के लिए प्रेरणा रही हैं। उन्हें ऐसे ही महिला क्रिकेट का तेंदुलकर नहीं कहा जाता। जब तक वो मैदान में रहीं, दुनिया भर की गेंदबाज़ उनसे ख़ौफ़ खाती रहीं। ज़्यादातर ने माना कि बेहतरीन फुटवर्क वाली मिताली की विकेट लेना मुश्किल काम होता है। एक दिवसीय क्रिकेट में सात शतक इस बात के गवाह हैं कि मिताली कितनी एकाग्रता के साथ मैदान पर उतरती थीं। महिला क्रिकेट के अंतरराष्ट्रीय रिकॉर्ड इस बात के गवाह हैं, क्योंकि मिताली दुनिया में (महिला क्रिकेट) सबसे ज़्यादा रन बनाने वाली खिलाड़ी भी हैं। यह सही है कि मिताली के ज़्यादातर रिकॉर्ड टी-20 और एक दिवसीय में हैं, टेस्ट मैच में दोहरा शतक बनाकर उन्होंने कहा कि अगर वे टेस्ट क्रिकेट पर भी पूरा फोकस करतीं, तो अनगिनत रिकॉर्ड उनके नाम होते।

‘मिताली कॉपीबुक स्ट्रोक प्ले की महान् खिलाड़ी रहीं। उनमें अद्भुत प्रतिभा है।’ यह उनके पहले कोच दिवंगत सम्पत कुमार ने भी कहा था। उनका सटीक फुटवर्क उनके कवर ड्राइव का आधार था और गेंद को उठाकर मारने की उनकी कला परिस्थितियों के मुताबिक, अपनी क्रिकेट को ढालने की उनकी क्षमता को दर्शाती थी। यह तकनीक ही थी, जिसने मिताली को खेल के तीनों प्रारूपों में शीर्ष क्रम पर बल्लेबाज़ी करने हौसला दिया। अपने 23 साल के अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट करियर में मिताली ने दो पीढिय़ों को अपने खेल से मंत्रमुग्ध किया।

दायें हाथ की बैटर और लेग ब्रेक गेंदबाज़ मिताली महिला इंटरनेशनल क्रिकेट में सबसे ज़्यादा रन बनाने वाली खिलाड़ी हैं। उन्हें अब तक की सबसे महान् महिला क्रिकेटरों में एक गिना जाता है।
मितालीका जन्म 3 दिसंबर,1982 को राजस्थान के जोधपुर में एक तमिल परिवार में हुआ। उनके पिता दोराई राज भारतीय वायु सेना में एयरमैन (वारंट ऑफिसर) थे, और माता लीला गृहिणी। 10 साल की उम्र में ही बल्ला थामने वाली मिताली ने हैदराबाद के कीज हाई स्कूल फॉर गल्र्स में पढ़ाई के बाद उच्च शिक्षा (इंटरमीडिएट) सिकंदराबाद के कस्तूरबा गाँधी जूनियर कॉलेज फॉर विमेन से की। बड़े भाई के साथ क्रिकेट कोचिंग लेने वाले मिताली ने घरेलू क्रिकेट की शुरुआत रेलवे के लिए खेलते हुए की, जहाँ उन्हें सीनियर्स पूर्णिमा राव, अंजुम चोपड़ा और अंजू जैन से बहुत कुछ सीखने का अवसर मिला।

मिताली 14 साल (1997) की छोटी उम्र में ही भारतीय टीम में चुन ली जातीं; लेकिन विश्व कप के लिए चुनी टीम में वे अन्तिम 14 में जगह बनाने से चूक गयीं। उन्हें सन् 1999 में आयरलैंड के ख़िलाफ़ मिल्टन कीन्स में एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैच में भारत के लिए खेलने का अवसर मिला और पहले ही मैच में मिताली ने 114 रन ठोक दिये। उन्होंने 2001-02 के सत्र में दक्षिण अफ्रीका के ख़िलाफ़ लखनऊ में टेस्ट क्रिकेट में डेब्यू करते हुए 17 अगस्त, 2002 को, 19 साल की उम्र में, तीसरे टेस्ट में, करेन रोल्टन के 209 के सर्वोच्च व्यक्तिगत टेस्ट स्कोर का रिकॉर्ड तोड़ते हुए 214 रन बनाये। उनका यह रिकॉर्ड पाकिस्तान की किरण बलूच ने 242 रन बना कर तोड़ा।

मिताली को रिकॉर्ड मशीन कहा जाए, तो $गलत नहीं होगा। वो अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में सर्वाधिक रन बनाने वाली खिलाड़ी हैं। वो पहली भारतीय और पाँचवीं महिला क्रिकेटर हैं, जिन्होंने विश्व कप मैचों में 1000 रन बनाये हैं। महिला वनडे क्रिकेट इतिहास में सर्वाधिक रन बनाने वाली खिलाड़ी भी वही हैं। उनके नाम 7805 रन दर्ज हैं। उनके नाम महिला वनडे क्रिकेट में दुनिया में सर्वाधिक 71 अर्धशतक बनाने का दुर्लभ रिकॉर्ड भी दर्ज है। यही नहीं, वो एकमात्र ऐसी महिला क्रिकेटर हैं, जिन्होंने तीन देशों के ख़िलाफ़ सर्वाधिक वनडे रन बनाने का रिकॉर्ड बनाया है- इंग्लैंड के ख़िलाफ़ 2005, श्रीलंका के ख़िलाफ़ 1103 और वेस्टइंडीज के ख़िलाफ़ 701 रन। मिताली के नाम सर्वाधिक महिला वनडे मैच (232) वनडे खेलने के अलावा वनडे कप्तान के रूप में भी सर्वाधिक 155 वनडे मैच खेलने का रिकॉर्ड है। वो एकमात्र ऐसी खिलाड़ी हैं, जिन्होंने दो विश्व कप फाइनल (2005 और 2017) में भारत की कप्तानी की।

मिताली के नाम 2004-2013 के बीच बिना किसी नागे के लगातार 109 मैच खेलने का दुर्लभ रिकॉर्ड है। महिला टी20 अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में सर्वाधिक 17 अर्धशतक जडऩे और भारतीय क्रिकेट (पुरुष या महिला) में 2000 रन बनाने वाली वो पहली खिलाड़ी हैं। उनके नाम महिला विश्व टेस्ट क्रिकेट में दूसरा और भारत के लिए इस प्रारूप में सबसे बड़ा व्यक्तिगत स्कोर (214 रन, 2002 में इंग्लैंड के ख़िलाफ़ टॉन्टन में) बनाने के अलावा झूलन गोस्वामी के साथ इंग्लैंड के ख़िलाफ़ टेस्ट खेलते हुए 7वें विकेट के लिए सबसे बड़ी साझेदारी (157 रन) का रिकॉर्ड भी है।

मिताली राज इन दिनों अपनी बायोपिक ‘शाबाश मिट्ठू’ को लेकर चर्चा में हैं, जो 15 जुलाई को रिलीज होनी है। इसका ट्रेलर पहले ही रिलीज हो चुका है। फ़िल्म में मिताली का किरदार अभिनेत्री तापसी पन्नू निभा रही हैं। इसके ज़रिये मिताली की ज़िन्दगी को बड़े परदे पर लोग देख सकेंगे। हमारे सामाजिक ढाँचे में अन्य महिला खिलाडिय़ों की तरह मिताली को भी घर से लेकर क्रिकेट मैदान तक विरोध और अड़चनों से दो-चार होना पड़ा। उनके माता-पिता ने हमेशा उनका साथ दिया। फ़िल्म के ट्रेलर में इसकी एक झलक दिखती भी है, जब उनका किरदार निभा रही तापसी पन्नू कहती हैं- ‘आठ साल की थी, जब किसी ने यह सपना दिखाया था कि मैन इन ब्लू की तरह हमारी भी एक टीम होगी- वुमन इन ब्लू।’

शुरुआत में मिताली के दादा-दादी उनके क्रिकेट खेलने से ख़फ़ा थे; क्योंकि एक लड़की के खेल में जाने के वे पक्ष में नहीं थे। मिताली का जब भारतीय टीम के लिए चयन हुआ, उन्हें बुनियादी सहूलियतें तक उपलब्ध नहीं थीं। लिहाज़ा वे पुरुष क्रिकेटरों के साथ नेट अभ्यास करती थीं।
मिताली राज ने क्रिकेट के तीनों फॉर्मेट- टेस्ट, वनडे टी20 में कुल मिलाकर 10,868 रन बनाये, जिनमें आठ शतक शामिल हैं। यह दुनिया में किसी भी महिला खिलाड़ी के बनाये सबसे ज़्यादा रन हैं। उन्होंने जब 8 जून को इंटरनेशनल क्रिकेट के सभी प्रारूपों को अलविदा कहा, तो विश्व महिला क्रिकेट के सबसे बड़े किरदारों में से एक की मैदान से विदाई हो गयी। मिताली, आपको मैदान में हमेशा मिस किया जाएगा।

मिताली राज के रिकॉर्ड
 टेस्ट : 12 मैच, 19 पारी, 699 रन, एक शतक, औसत 43.68, उच्चतम 214, चार अर्धशतक, 12 कैच।
 वनडे : 232 मैच, 211 पारी, 7805 रन, उच्चतम 125, औसत 50.68, शतक 7, अर्धशतक 64, कैच 64 और गेंदबाज़ी में 8 विकेट।
 टी20 : 89 मैच, 84 पारी, 2364 रन, उच्चतम 97, औसत 37.52, अर्धशतक 17 और 19 कैच।

आँख के अन्धे

सच की अनदेखी करके उसे झूठ में उसी तरह नहीं बदला जा सकता, जिस प्रकार से आँखें बन्द करके सूर्य के प्रकाश को समाप्त नहीं किया जा सकता। इसी प्रकार लाख दलीलों और कोशिशों के बाद भी झूठ को सच में उसी तरह नहीं बदला जा सकता, जिस प्रकार रात में करोड़ों दीप जलाने पर भी रात को दिन में नहीं बदला जा सकता। विद्वत्तजन मानते हैं कि न तो सब कुछ झूठ है और न ही सब कुछ सच है। परन्तु सच क्या है? यह सबकी समझ में कभी नहीं आया, और न कभी आयेगा। जो जितना जानता है, उसे उतना ही सच लगता है। धर्म-अधर्म को भी इसी तरह समझा और परखा जा सकता है।

प्रश्न यह है कि धर्म क्या है? इसकी परिभाषा क्या है? धर्म सम्मत् व्यवहार ही धर्म है। धर्म सम्मत् व्यवहार क्या है? जो दूसरों का मन, कर्म, वचन से अहित न करे, वही धर्म सम्मत् है। इसीलिए मानवता को सर्वोपरि धर्म कहा गया है। परन्तु अब लोग ढोंग अर्थात् ड्रामेबाज़ी को धर्म समझते हैं, जबकि ढोंग धर्म नहीं है। वेशभूषा भी धार्मिकता नहीं है। न ही ईश्वर की उपासना मात्र धर्म है। ईश्वर की उपासना तो भक्ति मार्ग है, जो व्यक्ति को विनम्र बनाती है और धर्म के मार्ग पर लाने के लिए इंद्रियों की शुद्धि का साधन भर है। फिर लोगों में धर्म को लेकर भ्रम क्यों है? यह भ्रम लोगों के मन तथा बुद्धि पर पड़े अर्थ, काम, मोह, लालच, स्वार्थ जैसे कई परदों के कारण है; जिसका कारण संसार की माया है, जो कि सिवाय क्षणिक मिथ्या के और कुछ नहीं है। इसीलिए धर्मों में संसार को नश्वर और मिथ्या कहा गया है।

विडम्बना यह है कि इस दुनिया के अधिकतर लोग धर्म के मामले में गुमराह हैं। वे अन्धों की तरह भटक रहे हैं। क्योंकि धर्म आंशिक रूप से ही उनकी समझ में आया है। इसीलिए वे अंधविश्वासी हो गये हैं। ऐसे ही लोगों के लिए कहा गया है- ‘आँख के अन्धे, नाम के नैनसुख’। क्योंकि लोग धर्म को जाने बग़ैर ही धर्म का झण्डा उठाये घूम रहे हैं। यही वजह है कि लोग विनम्र होने के बजाय कट्टर और अराजक होते जा रहे हैं। उन्हें उनके कथित धर्म की किताबों या उनकी पसन्द के ईश्वर, जो केवल नाम मात्र है; के बारे में टिप्पणी बुरी लगती है और वे हिंसा पर उतर आते हैं। परन्तु वे उसी ईश्वर को दूसरी भाषा में पुकारे जाने पर स्वयं ख़ूब गालियाँ देते हैं।

कह सकते हैं कि लोगों को वास्तविक ईश्वर और धर्म की समझ नहीं है। क्योंकि वे धर्म और ईश्वर को किताबों में ढूँढते-समझते हैं। समझना यह है कि धर्म किताबों में लिखे हुए नियमों का पालन करना ही नहीं है, बल्कि ईमानदारी, मेहनत, कर्तव्य परायणता, न्यायोचित व्यवहार, परोपकार, परसेवा, परहित और पररक्षा भी धर्म के आवश्यक नियम हैं। परन्तु अगर कोई दुष्ट हो, तो उसे दण्ड देना भी धर्म सम्मत् होता है। इसीलिए कहा गया है कि धर्म समय, परिस्थिति तथा आवश्यकता के आधार पर तय होता है। अर्थात् धर्म काल तथा परिस्थिति के आधार पर बदलता रहता है। आज वेदों के सिवाय जितने भी धर्म ग्रन्थ हैं, वे पूर्वकाल के समय, परिस्थिति तथा आवश्यकताओं के आधार पर तय किये गये थे। क्योंकि वेद भक्ति, आध्यात्म, सत्य, धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, परहित, कर्तव्य, ज्ञान, विज्ञान, सामाजिक व्यवस्था, स्वास्थ्य, न्याय, अधिकार, सम्मान आदि का मिश्रण हैं। परन्तु अन्य धर्म ग्रन्थों में भक्ति मार्ग की अधिकता है, जिसके लिए लिप्सा, भोग, लालच, मोह तथा स्वार्थ का त्याग करना पड़ेगा। कई धर्म ग्रन्थों में तो ईश्वर की चाटुकारिता की पराकाष्ठा को छू लिया गया है। उसकी स्तुति, प्रार्थना या इबादत के नाम पर उसके गुणगान के सिवाय कुछ नहीं है।

प्रश्न यह है कि अगर ईश्वर हमारा परमेश्वर है; हमारा पालनहार है; हमारा पिता है, और उसका हमारा जन्म-जन्मांतर का साथ है; तो हमें उसकी चिरोरी करने की क्या आवश्यकता है? हमें तो स्वयं को उसके प्रति समर्पित होने भर की आवश्यकता है। अपने आपको उसके चरणों में रख देने भर की आवश्यकता है। परन्तु हम उससे गिड़गिड़ाते हैं कि वह हमारे सब काम कर दे। उसके आगे गिड़गिड़ाते हैं कि वह हमें दुनिया का सबसे बड़ा, सबसे सामथ्र्यवान और सबसे धनवान इंसान बना दे। वह भी इसलिए, क्योंकि हमने उसे याद किया। हमने उसकी उपासना की। हमने उसे वो चीज़ें समर्पित कीं, जो उसी ने हमें दी हैं। अगर कुछ मिल जाये, तो तुर्रा यह कि यह मैंने किया है। यह कैसी मूर्खता है? यह मूर्खता आयी कहाँ से? क्योंकि लोग भटक गये हैं। धर्म से भी भटक गये हैं और कर्म से भी भटक गये हैं। दरअसल अब लोग आध्यात्म से हटकर आधुनिकतावादी हो गये हैं और ढोंग करने में लगे हुए हैं। यही वजह है कि आधे-अधूरे ज्ञान वाले अब धर्म की अगुवाई कर रहे हैं। और जो धर्म को समझते हैं, वे या तो चुप हैं, या संसार से विरक्त हैं।

मणिपुर भूस्खलन: मरने वालों की संख्या बढ़कर हुई 24, 38 अभी भी लापता

मणिपुर के नोनी जिले में एक रेलवे निर्माण स्थल पर हुए भूस्खलन के बाद मलबे में मरने वालों की संख्या शनिवार को 24 हो गयी है। जबकि 38 लोग अभी भी लापता है। आधिकारिक जानकारी के अनुसार राहत और बचाव कार्य के तहत टुपुल घटनास्थल पर बचावकर्मियों और दलों को तैनात किया गया है।

अधिकारियों ने बताया कि मरने वालों में सेना के जवान व आम नागारिक शामिल है। साथ ही 18 लोगों को बचा लिया गया है। लापता लोगों में 12 प्रादेशिक सेना के जवान व 26 आम नागरिकों की तलाश अभी भी जारी है। इसमें सेना, असम राइफल्स, प्रादेशिक सेना, राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनआरडीएफ) और राज्य आपदा मोचन बल (एसडीआरएफ) द्वारा खोज अभियान जारी है।

आपको बता दें, राज्य के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने इस हादसे में जान गंवाने वालों के परिजनों को पांच-पांच लाख रूपये साथ ही घायलों को 50-50 हजार रूपये की मुआवजा राशि देने की घोषणा की है।

वहीं दूसरी तरफ असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिसवा सरमा ने कहा था कि इस भूस्खलन में उनके राज्य के एक व्यक्ति की मौत हुई है साथ ही 16 अन्य लापता है।