यह आश्चर्य की बात है कि ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के जिस विधेयक को लोकसभा में पेश करने से पहले भाजपा प्रधानमंत्री मोदी का सपना बता रही थी, उस विधेयक की वोटिंग में भाजपा के ही एक-दो नहीं, 20 सांसद अनुपस्थित थे; व्हिप जारी होने की बावजूद। इनमें प्रधानमंत्री पद के दावेदार माने जाते रहे वरिष्ठ भाजपा नेता, मंत्री नितिन गडकरी और कभी कांग्रेस में रहते हुए राहुल गाँधी के सखा माने जाने वाले मोदी सरकार में मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया भी शामिल हैं। भाजपा के एक राष्ट्र, एक चुनाव को देश के हित में बताने के दावों के विपरीत कांग्रेस और विपक्ष का बड़ा हिस्सा इसे भाजपा की कॉन्सपिरेसी के रूप में देख रहा है। लोकसभा में प्रस्तुत करने के बाद इसके हक़ में 269 वोट पड़े, जो विरोध में पड़े 198 मतों से ज़्यादा ज़रूर थे; लेकिन सरकार बचाने के लिए ज़रूरी बहुमत के 272 के आँकड़े से भी कम थे। मोदी सरकार के लिए यह इसलिए चिन्ता का सबब हो सकता है कि इसके संवैधानिक विधेयक होने के कारण इसे पास करने के लिए दो-तिहाई सदस्यों का समर्थन चाहिए, जो सम्भव दिख नहीं रहा।
फ़िलहाल इस विधेयक के विरोध को देखते हुए इसे संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेज दिया, जहाँ इस पर चर्चा होने और इसके संशोधित रूप (यदि ऐसा हुआ) में वापस लोकसभा के सदन में प्रस्तुत किये जाने में आधा साल तो गुज़र ही जाएगा। विपक्ष इसे आसानी से स्वीकार नहीं करेगा, क्योंकि जो जेपीसी गठित हुई है, उसमें विपक्ष के तेज़-तर्रार सांसद शामिल हैं। इनमें प्रियंका गाँधी भी शामिल हैं, जो कुछ महीने पहले ही सांसद बनी हैं। भाजपा एक राष्ट्र, एक चुनाव वाले इस विधेयक को प्रधानमंत्री मोदी का महत्त्वाकांक्षी विधेयक बता रही है। लेकिन 2014 से लेकर दिसंबर, 2024 के 10 वर्षों में मोदी सरकार के ही रहते जितने भी चुनाव हुए हैं, कमोवेश सभी एक से ज़्यादा चरणों में हुए हैं। हाल में महाराष्ट्र और झारखण्ड के विधानसभा चुनावों में मतदान जितने चरणों में हुआ, उसमें एक महीना खप गया।
यहाँ सवाल यह है कि कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष एक सुर में एक राष्ट्र, एक चुनाव का विरोध क्यों कर रहा है? उसकी आशंकाओं को क्यों गंभीरता से लेने की ज़रूरत है। कोई क़ानून सिर्फ़ इसलिए नहीं बनाया जाना चाहिए कि एक साथ चुनाव होने से देश का धन बचेगा। देश का धन तो सरकारें अपने व्यापारी मित्रों के लाखों करोड़ रुपये उनके क़ज़ेर् माफ़ करने में क़ुर्बान कर देती हैं। लिहाज़ा यह बहुत ज़रूरी है कि इतने महत्त्व का क़ानून पास करने से पहले उस पर देशव्यापी बहस हो। विपक्ष के विरोध को ध्यान में रखा जाए।
देश में आज संविधान निर्माता बाबा साहेब आंबेडकर और ख़ुद संविधान बहस का बहुत गम्भीरता से बड़ा मुद्दा बन गये हैं। सच यह है कि यह मुद्दे देश की राजनीति के केंद्र में आ गये हैं। गृह मंत्री अमित शाह के लोकसभा में आंबेडकर को लेकर विवादित तरीक़े के बयान के बाद संसद के बाहर जिस तरह कांग्रेस और विपक्ष ने विरोध-प्रदर्शन किया है, उससे भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के कुछ घटक दल भी राजनीतिक नुक़सान की चिन्ता में घिर गये हैं। राहुल गाँधी लगातार दलितों-पिछड़ों के अधिकार की बात कर रहे हैं, उससे भाजपा के भीतर भी बेचैनी है। राहुल गाँधी ने बहुत चतुराई से इसमें संविधान और आंबेडकर को भी जोड़ दिया है। चूँकि एक राष्ट्र, एक चुनाव को कांग्रेस और विपक्ष संविधान से जोड़ रहे हैं; यह मुद्दा भी विपक्ष के विरोध का हिस्सा बन गया है। कांग्रेस का आरोप है कि भाजपा संविधान और इससे जुड़ी हर चीज़ को नष्ट करने पर तुली है।
यहाँ सवाल यह भी है कि क्या भाजपा के भीतर भी एक राष्ट्र एक विधेयक और शाह के संसद में आंबेडकर पर विवादित बयान को लेकर चिन्ता है? ऐसा लगता है कि हाँ है। इस विधेयक पर वोटिंग के समय 20 पार्टी सांसदों का अनुपस्थित रहना इसका संकेत है। कुछ हलक़ों में जो यह कहा जा रहा है कि यह भाजपा की ही रणनीति का हिस्सा था, यह सच नहीं लगता है। सच यह है कि ख़ुद पर संविधान के ख़िलाफ़ होने के विपक्ष के आरोपों से भाजपा में बेचैनी है। ऊपर से शाह के आंबेडकर को लेकर लोकसभा में कहे गये शब्द उसे और चिन्ता में डाल गये हैं। पार्टी के कई वरिष्ठ नेता महसूस करते हैं कि संविधान, आंबेडकर और एक राष्ट्र एक चुनाव पर विपक्ष का विरोध भाजपा को राजनीतिक नुक़सान पहुँचा सकता है। यदि इस पत्रकार को मिली जानकारी सही है, तो भाजपा भी अब इस विधेयक को फ़िलहाल ठंडे बस्ते में रखने की कोशिश में है।
हाल के दिनों में जो कुछ हुआ है, उसमें भाजपा अपने सहयोगियों को लेकर आशंका में घिरी है। उसे लगता है कि चंद्रबाबू नायडू, नीतीश कुमार और ऐसे सहयोगी दल, जिनका आधार ही दलित-पिछड़े वर्ग की राजनीति पर निर्भर है; बिगड़े तो उसके लिए केंद्र में अपनी सरकार बचाना भी मुश्किल हो जाएगा। ऊपर से भाजपा के माई-बाप माने जाने वाले आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने मस्जिद-मंदिर पर जो बयान दिया है, उससे भाजपा का शीर्ष नेतृत्व विचलित है। भागवत के हिन्दुओं का नेता बनने वाले बयान को भी मोदी-शाह पर कटाक्ष माना जा रहा है। आरएसएस प्रमुख की सद्भावना की वकालत से उन कट्टर हिन्दूवादी और भाजपावादी तत्त्वों को झटका लगा है, जो मस्जिद के नीचे मंदिर ढूँढने की मुहिम को हवा दे रहे हैं।
शाह के लोकसभा में कांग्रेस को निशाना बनाकर यह कहने कि ‘आजकल आंबेडकर का नाम लेना एक फैशन बन गया है। आंबेडकर, आंबेडकर, आंबेडकर….। इतना नाम अगर भगवान का लेते, तो सात जन्मों तक स्वर्ग मिल जाता’ ने देश की राजनीति में तूफ़ान ला दिया है। कांग्रेस इसे लेकर देश भर में प्रदर्शन कर रही है, तो दूसरी और बहती गंगा में हाथ धोते हुए आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के चुनाव से ऐन पहले आंबेडकर के नाम पर दलित छात्रों को विदेश की पढ़ाई में आर्थिक मदद की घोषणा कर दी है। इस सारे मामले का असर मोदी के महत्त्वाकांक्षी विधेयक- एक राष्ट्र, एक चुनाव पर पड़ा है; और बहुत ज़्यादा सम्भावना है कि यह फ़िलहाल लटक जाएगा।
यदि गहराई से देखा जाए, तो कांग्रेस बहुत चतुराई से कुछ मुद्दों को एक साथ करने में सफल हो गयी है। इनके केंद्र में संविधान है। इन मुद्दों में 70 फ़ीसदी से ज़्यादा दलितों, पिछड़ों और आर्थिक रूप से कमज़ोर लोगों को सामाजिक न्याय दिलाने से लेकर आंबेडकर और एक राष्ट्र एक चुनाव आदि मुद्दे शामिल हैं। कांग्रेस एक राष्ट्र एक चुनाव का विरोध ऐसे ही नहीं कर रही है, बल्कि वह इसके लिए भाजपा की मंशा को भी कटघरे में खड़ा कर रही है। वह तर्क दे रही है कि यह विधेयक संविधान की भावना के ख़िलाफ़ है। आंबेडकर पर शाह के बयान को लेकर देश भर में विरोध-प्रदर्शन और प्रेस कॉन्फ्रेंस करके गृह मंत्री अमित शाह के इस्तीफ़े की माँग इसी रणनीति का हिस्सा है। शाह का बयान कांग्रेस को (विपक्ष को भी) बैठे-बिठाये मिल गया है, जिसका व्यापक असर हो सकता है। कांग्रेस कह रही है कि आंबेडकर ने देश को संविधान दिया और भाजपा उन आंबेडकर के प्रति अच्छे विचार नहीं रखती है।
जानना ज़रूरी है कि देश भर में लोकसभा और विधानसभाओं के एक साथ चुनाव संविधान से जुड़ा मुद्दा क्यों है? दरअसल, यह विधेयक संघीय ढाँचे के ख़िलाफ़ है। क्योंकि संविधान में इसका प्रावधान नहीं है। देश में एक साथ चुनाव के लिए संविधान के अनुच्छेद-83, 89, 172, 275, 376 में सशोधन करना पड़ेगा, जिसके लिए दो-तिहाई सदस्यों का समर्थन चाहिए। इसके लिए जन-प्रतिनिधि क़ानून-1951 में संशोधन करके धारा-2 में एक साथ चुनाव की परिभाषा जोड़नी पड़ेगी। बीच में लोकसभा या विधानसभा भंग होने की स्थिति में सारे देश में फिर से मध्यावधि चुनाव करना संभव नहीं होगा। इसके अलावा देश में एक साथ चुनाव के लिए बड़े पैमाने पर ईवीएम, कर्मचारियों और सुरक्षा की ज़रूरत पड़ेगी। कांग्रेस सहित पूरा विपक्ष, जिसमें 30 से ज़्यादा राजनीतिक दल हैं; इसके विरोध में हैं। उधर क्षेत्रीय दलों को डर है कि यह विधेयक उनके अस्तित्व को ख़त्म कर देगा।
– पति बेरोज़गार हो, तो पत्नी को भरण-पोषण मिलेगा या नहीं ?
आशा गुटगुटिया
कल्याण चौधरी बनाम रीता चौधरी केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भरण-पोषण हमेशा मामले की तथ्यात्मक स्थिति पर निर्भर करता है और विभिन्न कारणों के आधार पर ही न्यायालय भरण-पोषण के दावे को आकार देगी। हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए महिला की भरण-पोषण की राशि को कम पाया और इसलिए इसे 2,500 से बढ़ाकर 5,000 रुपये कर दिया। न्यायालय ने कहा- ‘ऐसा प्रतीत होता है कि वह पत्नी को दिये जाने वाले अंतरिम भरण-पोषण में किसी भी वृद्धि से बचने के लिए अपने वर्तमान रोज़गार को छिपा रहा है। पति द्वारा अतीत में किये गये भारी ख़र्च, उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि, उसके त्याग-पत्र से पहले इंजीनियर के रूप में उसकी व्यावसायिक योग्यता, पत्नी को दिये जाने वाले भरण-पोषण की राशि को निर्धारित करने में मदद करते हैं। आज की स्थितियों में एक साधारण जीवन जीने के लिए 2,500 रुपये प्रति महीने बहुत कम है। एक मध्यम वर्गीय महिला के लिए 2,500 रुपये की मामूली राशि से पेट भर भोजन भी जुटा पाना लगभग असंभव है। भले ही पति के अब बेरोज़गार हो गया है पर एक कुशल, योग्य और सक्षम व्यक्ति होने के नाते अपनी पत्नी के भरण-पोषण के लिए राशि का भुगतान करने के लिए ज़िम्मेदार है।’
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने धारा-125 सीआरपीसी के तहत पारिवारिक न्यायालय द्वारा पारित आदेश के ख़िलाफ़ पति द्वारा दी गयी अपील पर विचार कर रहा था, जिसके तहत पति को 2,500 रुपये प्रति माह का अंतरिम भरण-पोषण देने का आदेश दिया गया था।
महिला व्यक्तिगत रूप से पेश हुई, जबकि पति का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता ने किया। उसने राशि में पर्याप्त वृद्धि की माँग की, ताकि वह उसी स्थिति में रह सके, जिस स्थिति में वह अपने पति के साथ रहती थी। पति के वकील ने तर्क दिया कि उसके पास आय का कोई स्वतंत्र स्रोत नहीं है।
आगे यह भी कहा गया कि पति ने न्यायालय के समक्ष अपने वेतन के बारे में अलग-अलग बयान दिये; लेकिन वह एक अच्छा वेतन प्राप्त कर रहा था और उसके पास आय के अन्य स्रोत भी थे। उसकी मासिक आय 4,00,000 रुपये प्रति माह से अधिक थी। परिवार न्यायालय पति की आय के विवरण और तलाक़ के मुक़दमे में उसके द्वारा प्रस्तुत किये गये काग़ज़ात पर विचार करने में विफल रही। उसका यह भी कहना था कि उसका पति अन्य महिलाओं के साथ सम्बन्ध बनाने में रुचि रखता था और एक शानदार जीवन जी रहा था। उसने ख़ुद अपने ख़र्चों को विभिन्न मदों में दिखाया था, जो कि 12,000 रुपये प्रति माह से कम वेतन प्राप्त करे, उस व्यक्ति द्वारा वहन करना संभव नहीं है।
इसके विपरीत पति के वकील ने तर्क दिया कि मामले में पत्नी ने उसकी मासिक आय बहुत अधिक दिखायी है, जिसका कोई आधार नहीं है और पत्नी स्वयं एक उच्च शिक्षित महिला है, जो वर्ष 2017 में अपने स्वयं के आय के स्रोतों से 15,000 रुपये प्रति माह कमा रही थी, और सात वर्षों में उक्त राशि में वर्तमान में वृद्धि हुई होगी। उसने बिना किसी पर्याप्त कारण के पति के साथ रहने से इनकार कर दिया। इसलिए वह धारा-125 सीआरपीसी के प्रावधान (4) के अनुसार, किसी भी रखरखाव के लिए हक़दार नहीं थी। यह प्रस्तुत किया गया कि पति अब एक बेरोज़गार व्यक्ति है और इसलिए भी पत्नी को उतना भरण-पोषण देने का कोई सवाल ही नहीं उठता है, जिस स्तर में वे विवाह के समय रह रहे थे।
यह बड़े खेद की बात है कि भारत में कई लोगों ने प्रधानमंत्री के रूप में डॉ. मनमोहन सिंह के कार्यकाल के दौरान उनकी निंदा की है। जनवरी, 2014 में अपनी अंतिम प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने आलोचनाओं का जवाब उल्लेखनीय शालीनता के साथ दिया और कहा- ‘समकालीन मीडिया की तुलना में इतिहास मेरे प्रति अधिक दयालु होगा।’ डॉ. सिंह, जिनका 92 वर्ष की आयु में निधन हो गया; अपने पीछे भारत के आर्थिक परिवर्तन के मूक वास्तुकार के रूप में एक विरासत छोड़ गये हैं। एक ऐसा परिवर्तन, जिसने उदारीकरण के बाद के भारत में लाखों युवाओं के जीवन को नया आकार दिया। हालाँकि उनके योगदान को अक्सर राजनीतिक-विमर्श में दबा दिया गया।
एक पत्रकार के रूप में मुझे डॉ. सिंह का दो बार साक्षात्कार करने का सौभाग्य मिला। पहला- इंडियन एक्सप्रेस में रिपोर्टर के रूप में, जब उन्हें अमृतसर में ‘एफई इकोनॉमिस्ट ऑफ द ईयर अवॉर्ड’ मिला था; और उसके बाद सन् 2016 में भारत के आर्थिक सुधारों की रजत जयंती के अवसर पर ‘तहलका’ में संपादक के रूप में। डॉ. सिंह बौद्धिक क़द और शान्त गरिमा के व्यक्ति थे। उच्च पदों पर आसीन होने के बावजूद उन्होंने हमेशा अपनी सफलता को विनम्रता के साथ स्वीकार किया। संभवत: विभाजन के दर्दनाक अनुभवों से प्रभावित होकर जिसने उनके विश्व दृष्टिकोण को गहरे अवचेतन स्तर पर आकार दिया।
डॉ. सिंह एक अलग ही श्रेणी के राजनेता थे, जिन्होंने भारतीय राजनीति की उथल-पुथल के बीच भी अपनी सौम्यता बनाये रखी। 17 मई, 2014 को प्रधानमंत्री के रूप में राष्ट्र के नाम अपने अंतिम संबोधन में उन्होंने विनम्रतापूर्वक कहा कि सार्वजनिक पद पर उनका कार्यकाल एक खुली किताब है। उन्होंने अपने सामने आने वाली चुनौतियों को स्वीकार किया तथा परिश्रम को अपना साधन और सत्य को अपना प्रकाश-स्तंभ मानकर काम करने के लिए प्रतिबद्ध रहे।
उनकी सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक 2005 में सूचना का अधिकार अधिनियम का अधिनियमन था। इस ऐतिहासिक क़ानून ने नागरिकों को सशक्त बनाकर और सरकारी कामकाज में पारदर्शिता सुनिश्चित करके भारतीय लोकतंत्र को बदल दिया। इसके साथ ही उसी वर्ष लागू किये गये महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम ने लाखों लोगों को आजीविका की सुरक्षा प्रदान करके ग्रामीण भारत की तस्वीर बदल दी।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी डॉ. सिंह का नेतृत्व समान रूप से परिवर्तनकारी था। उनके दृष्टिकोण के परिणामस्वरूप भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौता हुआ, जिसने दोनों देशों के बीच रणनीतिक सम्बन्धों को पुन: परिभाषित किया। इसके अलावा सन् 2008 के मुंबई हमलों के बाद पाकिस्तान के ख़िलाफ़ जवाबी सैन्य कार्रवाई से बचने के उनके फ़ैसले ने बुद्धिमत्ता और संयम के एक दुर्लभ समन्वय को प्रदर्शित किया, जिससे परमाणु हथियार सम्पन्न पड़ोसियों के बीच एक और युद्ध को रोका जा सका। डॉ. सिंह की राजनीतिक यात्रा का सबसे अच्छा वर्णन 24 जुलाई 1991 को वित्त मंत्री के रूप में उनके प्रसिद्ध भाषण में मिलता है, जब उन्होंने विक्टर ह्यूगो को उद्धृत किया था- ‘पृथ्वी पर कोई भी शक्ति उस विचार को नहीं रोक सकती, जिसका समय आ गया है।’ तीस साल बाद भारत के आर्थिक उदारीकरण की वर्षगाँठ पर विचार करते हुए उन्होंने रॉबर्ट फ्रॉस्ट को उद्धृत किया- ‘लेकिन मुझे वादे निभाने हैं, और सोने से पहले मुझे बहुत लंबा सफ़र तय करना है।’ और उनकी विरासत अभी ख़त्म नहीं हुई है।
चूँकि भारत बढ़ती चुनौतियों का सामना कर रहा है। जैसे कि ‘तहलका’ एसआईटी द्वारा की गयी हालिया पड़ताल रिपोर्ट- ‘गोल्ड और डॉलर के तस्कर’ में उजागर किये गये तस्करी के मकड़जाल का विस्तार एक बार फिर अधिक पारदर्शी, जवाबदेह और समावेशी भारत बनाने वाले डॉ. सिंह के नेतृत्व को याद करने योग्य है। उनके योगदान को हमेशा सराहा नहीं गया। लेकिन इतिहास निश्चित रूप से उन्हें भारत के महानतम राजनेताओं में से एक के रूप में पहचानेगा।
मुंबई: घरेलू बेंचमार्क सूचकांक मंगलवार को गिरावट के साथ खुले। शुरुआती कारोबार में निफ्टी पर आईटी, रियलिटी, ऑटो, फाइनेंशियल सर्विस, एफएमसीजी, मीडिया और प्राइवेट बैंक सेक्टर में बिकवाली देखी गई। सुबह करीब 9:25 बजे सेंसेक्स 434.64 अंक या 0.56 प्रतिशत की गिरावट के साथ 77,813.49 पर कारोबार कर रहा था, जबकि निफ्टी 108.90 अंक या 0.46 प्रतिशत की गिरावट के साथ 23,536 पर कारोबार कर रहा था।
बाजार का रुख मिलाजुला रहा। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) पर 1,096 शेयर हरे निशान में कारोबार कर रहे थे, जबकि 1,040 शेयर लाल निशान में कारोबार कर रहे थे। बाजार के जानकारों के अनुसार, “दिसंबर का महीना वैश्विक स्तर पर इक्विटी बाजारों के लिए कमजोर रहा है। एसएंडपी 500 में 2.34 प्रतिशत और निफ्टी में 2.6 प्रतिशत की गिरावट आई है।” उन्होंने कहा, “बाजार नए साल में सावधानी के साथ आगे बढ़ने की तैयारी कर रहे हैं क्योंकि अनिश्चितता अधिक है और मूल्यांकन बढ़ा हुआ है।”
निफ्टी बैंक 191.50 अंक या 0.38 प्रतिशत की गिरावट के साथ 50,761.25 पर था। निफ्टी मिडकैप 100 इंडेक्स 244.95 अंक या 0.43 प्रतिशत की गिरावट के साथ 56,944.80 पर कारोबार कर रहा था। निफ्टी स्मॉलकैप 100 इंडेक्स 21 अंक या 0.11 प्रतिशत की गिरावट के साथ 18,618.95 पर था। सेक्टोरल फ्रंट पर पीएसयू बैंक, फार्मा, मेटल, एनर्जी, कमोडिटीज, पीएसई और हेल्थकेयर सेक्टर में खरीदारी देखी गई। सेंसेक्स पैक में टेक महिंद्रा, एचसीएल टेक, टीसीएस, इंफोसिस, जोमैटो और एनटीपीसी टॉप लूजर्स थे। जबकि टाटा मोटर्स, आईटीसी, टाटा स्टील, एसबीआई, कोटक महिंद्रा बैंक और नेस्ले इंडिया टॉप गेनर्स थे। पिछले कारोबारी सत्र में डॉव जोंस 0.97 प्रतिशत की गिरावट के साथ 42,573.73 पर बंद हुआ। एसएंडपी 500 इंडेक्स 1.07 प्रतिशत गिरकर 5,906.94 पर और नैस्डैक 1.19 प्रतिशत गिरकर 19,486.79 पर बंद हुआ।
एशियाई बाजारों में चीन लाल निशान पर कारोबार कर रहा था, जबकि हांगकांग हरे निशान पर कारोबार कर रहा था। जानकारों ने कहा, “उच्च अमेरिकी बॉन्ड यील्ड और मजबूत डॉलर यह सुनिश्चित करेंगे कि एफआईआई हर तेजी पर बिकवाली जारी रखेंगे। डीआईआई की खरीदारी इतनी मजबूत नहीं होगी कि बाजार को ज्यादा ऊपर ले जा सके।” विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) ने 30 दिसंबर को 1,893.16 करोड़ रुपये के शेयर बेचे, जबकि घरेलू संस्थागत निवेशकों ने उसी दिन 2,173.86 करोड़ रुपये के शेयर खरीदे।
नई दिल्ली : पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का 92 साल की उम्र में निधन हो गया। तबीयत बिगड़ने के बाद सिंह को गुरुवार शाम दिल्ली एम्स में भर्ती कराया गया था।
डॉ. मनमोहन सिंह की मृत्यु की पुष्टि एम्स ने एक बयान में की है, जिसमें लिखा है: “गहरे दुख के साथ, हम भारत के पूर्व प्रधान मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के 92 वर्ष की आयु के निधन की सूचना देते हैं। उनका उम्र से संबंधित चिकित्सीय स्थितियों के लिए इलाज किया जा रहा था। 26 दिसंबर को घर पर अचानक बेहोश हो गई। घर पर तुरंत पुनर्जीवन उपाय शुरू किए गए। उन्हें एम्स की मेडिकल इमरजेंसी में लाया गया। तमाम कोशिशों के बावजूद उन्हें बचाया नहीं जा सका और रात 9.51 बजे उन्हें मृत घोषित कर दिया गया।”
डॉ. मनमोहन सिंह को गंभीर रूप से बीमार होने के बाद गुरुवार रात अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती कराया गया था.
डॉ. सिंह, जिन्होंने 2004 से 2014 तक देश के प्रधान मंत्री के रूप में कार्य किया, को महत्वपूर्ण उदारीकरण की अवधि के दौरान भारत की अर्थव्यवस्था को चलाने में उनकी परिवर्तनकारी भूमिका के लिए जाना जाता था।
साल 2024 भी समाप्त होने को है। संसद का शीत सत्र भी बाधित हो-होकर चल रहा है। संसद में सवालों के जवाब न देने वाली केंद्र सरकार संसद से बाहर देश के लोगों के सामने यह साबित करने में लगातार लगी रही है कि उसने भारत को तरक़्क़ी के रास्ते पर बहुत आगे बढ़ाया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके समर्थक तो अब भारत को विकसित भारत कहने लगे हैं और भविष्य के भारत के सपने तो दिखा ही रहे हैं। भारत को साल 2030 तक पाँच ट्रिलियन इकोनॉमी वाला देश बनाने के दावे भी केंद्र सरकार कर ही चुकी है।
सरकार ने अपने विज्ञापनों में लगातार देश में विकास करने के दावे किये हैं। यहाँ तक कि साल 2014 से बनी भाजपा की केंद्र सरकार के ऊपर से लेकर नीचे तक नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कार्यशैली और उनके कार्यकाल को अब तक की सरकारों से अच्छा बता रहे हैं। पिछले साल से आज़ादी के 75 साल का अमृत महोत्सव भी मनाया जा रहा है। लेकिन क्या हक़ीक़त में ये सब बातें धरातल पर उतनी ही सच हैं, जितने विश्वास के साथ केंद्र सरकार के नुमाइंदे दावे कर रहे हैं? क्योंकि जिस तेज़ी से पिछले 10 वर्षों में देश पर क़र्ज़ बढ़ा है और जिस तेज़ी से बैंकों, व्यापारियों का दिवाला निकला है; इस बारे में सोचने पर तस्वीर कुछ और ही नज़र आती है। 55 लाख करोड़ से 205 लाख करोड़ का विदेशी क़र्ज़, रुपये की गिरती क़ीमत, बढ़ती महँगाई और लोगों के हाथ से छिनते रोज़गार के अलावा देश छोड़कर जाने वाले अरबपतियों की संख्या बढ़ती जा रही है। क्या ये सभी समस्याएँ यह तय करती हैं कि भारत तरक़्क़ी कर रहा है? या भारत के हर राज्य में अराजकता, बलात्कार, हत्या, आत्महत्या और दूसरी आपराधिक घटनाएँ विकसित होते भारत की तस्वीर दिखाती हैं? इन सवालों का जवाब सरकार को संसद के अंदर देना चाहिए। लेकिन संसद में सवाल पूछने पर विपक्ष की हर बात अनसुनी करना और सदनों की कार्रवाई स्थगित करके यह आरोप लगाना कि विपक्ष संसद नहीं चलने दे रहा है, सरकार ने अपने बचने का आसान बहाना बना रखा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल 3.0 की उपलब्धियाँ अभी तक कुछ नहीं हैं; लेकिन पिछले दोनों कार्यकालों की तरह इस कार्यकाल का महिमामंडन किया जा रहा है। अपने तीसरे कार्यकाल से पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दुनिया के 14 देशों में सम्मानित भी हो चुके हैं; लेकिन सवाल यह है कि क्या उन्हें सम्मान मिलने से भारत भी सम्मानित हो रहा है? भारत में तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समर्थक पूरे विश्वास के साथ यही दावा करते हैं कि दुनिया में भारत का डंका बज रहा है। लेकिन जिस तरह भारत के दुश्मन देशों की संख्या बढ़ने के साथ-साथ कई मामलों में भारत कमज़ोर हो रहा है, उस सबके बीच क्या ये दावे सही माने जानें चाहिए? इन सवालों के जवाब ढूँढना बहुत कठिन है।
पिछले कुछ वर्षों से कनाडा से बढ़ती जा रही कड़वाहट ने कनाडा में रह रहे भारतीयों के लिए मुसीबतें खड़ी की हैं। हाल ही में जिस तरह से कनाडा ने जिस तरह भारत के साथ ज़ुबानी जंग की है, उससे साफ़ है कि कनाडा का रवैया भारत के प्रति सख़्त हुआ है। कनाडा में भारतीयों, ख़ासकर भारतीय छात्रों के लिए वीजा मिलना दिनों-दिन मुश्किल हो रहा है। क्योंकि इमिग्रेशन, रिफ्यूजी एंड सिटीजनशिप (आईआरसीसी) ने इमिग्रेशन नियमों में बड़ा बदलाव किया है। आईआरसीसी ने इस बदलाव के तहत न सिर्फ़ स्टूडेंट डायरेक्ट स्ट्रीम (एसडीएस) प्रोग्राम बंद कर दिया, बल्कि कई अन्य तरह की शर्तें भी लगा दीं। पहले एसडीएस प्रोग्राम के ज़रिये भारतीय छात्रों समेत क़रीब 14 देशों के छात्रों को जल्दी वीजा मिल जाता था। एसडीएस वीजा का अप्रूवल रेट भी कम होता था। कनाडा सरकार ने एसडीएस प्रोग्राम साल 2018 में शुरू किया था और इस योजना के ज़रिये वीजा अप्लाई करने वाले 80 प्रतिशत से 95 प्रतिशत भारतीय छात्रों को एक सप्ताह से एक महीने के अंदर वीजा मिल जाता था, जिसके चलते कनाडा में पढ़ने वाले छात्रों में बाक़ी 13 देशों के छात्रों से ज़्यादा भारतीय छात्र थे। लेकिन अब कनाडा सरकार घरों की कमी और सामाजिक समस्याओं का बहाना बनाते हुए एसडीएस प्रोग्राम के तहत भारतीय छात्रों को प्रतिबंधित करना शुरू कर दिया है।
सूत्रों के मुताबिक, साल 2025 में कनाडा एसडीएस के तहत सिर्फ़ 4,37,000 स्टडी वीजा देगा। अब कनाडा ने भारतीय छात्रों को सामान्य वीजा अप्लाई प्रक्रिया के तहत ही वीजा मिलेगा, जिसमें ज़्यादातर वीजा एप्लीकेशन कैंसिल होंगी। अब वीजा के लिए प्रोसेसिंग टाइम भी बढ़ जाएगा। कनाडा ने साल 2023 में एसडीएस प्रोग्राम के तहत महज़ 73 प्रतिशत और साल 2024 में उससे भी कम भारतीय छात्रों को वीजा दिया था। वहीं सामान्य वीजा आवेदन करने पर सिर्फ़ 10 प्रतिशत भारतीय छात्रों को ही वीजा कनाडा ने दिया। इस वीजा का ख़र्च भी ज़्यादा है, क्योंकि कनाडा सरकार ने वीजा की फीस बढ़ा दी है। इसके अलावा छात्रों को दी जाने वाली सुविधाओं में भी कमी कर दी गयी है।
इस मामले में अक्टूबर में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राशिद अल्वी ने कहा था कि कनाडा ने जो क़दम उठाया है, वो दुर्भाग्यपूर्ण है। दुनिया से हमारे अच्छे सम्बन्ध होने चाहिए। कनाडा भारत के साथ जो कुछ भी हो रहा है, केंद्र सरकार को इस पर स्पष्टीकरण देना चाहिए। मौज़ूदा हालात पूरी दुनिया में हमारी प्रतिष्ठा को गिरा रहे हैं। इससे पहले कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट एक्स पर कहा था कि क़ानून के शासन में विश्वास करने वाले और उसका पालन करने वाले देश के रूप में हमारी अंतरराष्ट्रीय छवि ख़तरे में है। इसलिए यह ज़रूरी है कि हम इसे बचाने के लिए मिलकर काम करें। कनाडा द्वारा लगाये गये आरोप, जिन्हें अब कई अन्य देशों का समर्थन प्राप्त है, बढ़ने का ख़तरा है, जिससे भारत की वैश्विक प्रतिष्ठा धूमिल हो रही है और ब्रांड इंडिया को नुक़सान पहुँच रहा है। यूक्रेन-रूस और फिलिस्तीन-इजरायल के बीच छिड़ी जंग के चलते पहले ही भारतीय छात्रों को तमाम दिक़्क़तों का सामना करना पड़ रहा है, इसी बीच कनाडा द्वारा एसडीएस प्रोग्राम ख़त्म करके इसके तहत वीजा देने की प्रक्रिया बंद कर देना एक दूसरा बड़ा झटका है। लेकिन केंद्र सरकार ने इस विषय पर कोई चिन्ता नहीं जतायी है।
सवाल यह है कि दुनिया भर से भारत के अच्छे रिश्ते बताने वाले प्रधानमंत्री मोदी जी20 में जिस तरह भारत को दुनिया का लीडर साबित करने का प्रयास कर रहे थे, क्या उसका कोई फ़ायदा देश को हुआ? जी20 के बाद ही न सिर्फ़ अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने, बल्कि कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने भी भारत को सम्मान की नज़र से नहीं देखा। उसके बाद ट्रूडो ने न सिर्फ़ भारत पर कनाडा में आतंकी गतिविधियाँ चलाने का आरोप लगाया, बल्कि भारत के साथ पुराने दोस्ताना रिश्तों को भी नज़रअंदाज़ करना शुरू कर दिया। इस मामले में कई देश कनाडा के साथ खड़े दिखे। लेकिन भारत के साथ कौन आया? यह भी बड़ा सवाल है। और यहाँ दावे किये जा रहे हैं कि दुनिया में भारत का डंका बज रहा है।
भारतीय छात्रों की मुश्किलें बढ़ने के अलावा अरबपति भारतीयों का भारत छोड़ने का सिलसिला भी एक गंभीर मुद्दा है। देश छोड़कर विदेशों में बसने वालों की संख्या लगातार बढ़ने पर भी केंद्र सरकार को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ रहा है। इस साल के शुरू में सामने आयी रिपोर्ट्स के मुताबिक, पिछले पाँच वर्षों में 8,34,000 भारतीय अरबपति भारत की नागरिकता छोड़कर विदेशों की नागरिकता ले चुके हैं। कोरोना महामारी से पहले जहाँ साल 2014 से साल 2019 तक हर साल क़रीब 1,32,000 नागरिक भारतीय नागरिकता छोड़ रहे थे, वहीं साल 2020 से साल 2023 तक हर साल भारतीय नागरिकता छोड़ने वाले भारतीयों की संख्या 20 प्रतिशत बढ़ोतरी के साथ 2,00,000 से ज़्यादा हो गयी। केंद्र सरकार के ख़ुद के आँकड़े ही इस मामले में चौंकाने वाले हैं।
केंद्र सरकार के मुताबिक, साल 2023 में 2,16,219 भारतीयों ने यहाँ की नागरिकता छोड़कर विदेशों की नागरिकता ली। इससे पहले साल 2022 में 2,25,620 नागरिकों ने, साल 2021 में 1,63,370 नागरिकों ने और साल 2020 में 85,256 नागरिकों ने भारतीय नागरिकता छोड़ी थी। अब ये भारतीय अरबपति दूसरे 114 देशों के नागरिक हो चुके हैं। इसके अलावा देश का पैसा लेकर भागने वालों की संख्या भी तेज़ी से बढ़ी है। इससे भारत का धन और उद्योगों का नुक़सान हुआ है; लेकिन केंद्र सरकार को इसकी कोई चिन्ता नहीं है, क्योंकि भारत का डंका पूरी दुनिया में बज रहा है।
इन विपत्तियों के अलावा भारतीय पासपोर्ट की वैल्यू भी कम हुई है और कई देशों ने भारतीयों को वीजा देने के नियम सख़्त कर दिये हैं। हेनली पासपोर्ट इंडेक्स-2024 की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक, सिंगापुर का पासपोर्ट सबसे अच्छा माना गया है। इसके बाद फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, सिंगापुर और स्पेन के पासपोर्ट सबसे अच्छे माने गये हैं। इसके बाद फिनलैंड, नीदरलैंड, साउथ कोरिया और स्वीडन के पासपोर्ट अच्छे माने हैं। इतना ही नहीं, पासपोर्ट मामले में पाकिस्तान की रैंकिंग जहाँ 106, बांग्लादेश की रैंकिंग 102 हो गयी है और भारत की रैंकिंग 82 है। साल 2023 में भारतीय पासपोर्ट की रैंकिंग 82 थी; यानी एक साल में भारतीय पासपोर्ट की रैंकिंग दो पायदान खिसककर कमज़ोर हुई है। संसद का शीत सत्र चल रहा है। केंद्र सरकार का दायित्व है कि वो संसद में में अपनी कामयाबियों के साथ अपनी नाकामियों पर भी प्रकाश डाले।
उत्तर प्रदेश सरकार इन दिनों प्रयागराज में लगने वाले महाकुंभ में श्रद्धालुओं के स्वागत की तैयारियों में जुटी है। कहीं नयी सड़कें बन रही हैं। कहीं पुरानी सड़कों को चौड़ा किया जा रहा है। कहीं नये पुलों का निर्माण हो रहा है। पौष पूर्णिमा यानी 13 जनवरी से शुरू होने वाले महाकुंभ का आयोजन लगभग पूरे 45 दिन तक शहर को अलग-अलग सनातन संस्कृति से सराबोर करेगा। इस समय में शाही स्नान 13 जनवरी (पौष पूर्णिमा), 14 जनवरी (मकर संक्रांति), 29 जनवरी (मौनी अमावस्या) 03 फरवरी (बसंत पंचमी) और 26 फरवरी (महाशिवरात्रि) को है।
महाशिवरात्रि की शहर के गलियारों में सबसे ज़्यादा चर्चा है कि इसी बहाने से प्रयागराज का कायाकल्प हो जाएगा। प्रयागराज के बाशिंदे खुश हैं कि यहाँ विकास की बयार बह रही है। लेकिन दूसरी तरफ़ ऐसी चिन्ता भी ज़ाहिर करते हैं कि तय समय-सीमा तक काम पूरा करने की जद्दोजहद में गुणवत्ता का काम नहीं होता। उसे जैसे-तैसे पूरा कर दिया जाता है। कुछ समय बाद ही विकास कार्यों की पोल खुलने लगती है।
$खैर; इस महाकुंभ में अनुमान के मुताबिक, 40 से 45 करोड़ तक श्रद्धालुओं और पर्यटकों के आने की संभावना जतायी जा रही है। इसे देखते हुए व्यवस्थाओं को हाईटेक बनाने की कोशिश है। सुविधाओं के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का सहारा लिया जा रहा है। बीती 30 नवंबर को प्रयागराज जाने पर संगम नगरी और शहर के कुछ क्षेत्रों में घूमने का अवसर मिला। महाकुंभ की तैयारी के चलते मुख्य नगरों की दीवारों पर चित्र बनाये जा रहे थे, जिसमें विश्वविद्यालय के कला संकाय के विद्यार्थी अपना हुनर दिखा रहे थे। शहर में निर्माण कार्यों को लेकर जगह-जगह ट्रैफिक जाम था; ख़ासतौर पर बनारस से प्रयागराज के रूट पर शहर के प्रवेश द्वारों पर। संगम नगरी में घाटों की व्यवस्था को चाक-चौबंद करने और नदियों की जलधारा को सीमित करने के लिए काम चल रहा है। भीड़ प्रबंधन और स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर कई तरह के नये बिंदुओं पर काम हो रहा है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ प्रयागराज पहुँचकर महाकुंभ की तैयारी का जायज़ा ले रहे हैं। पहली जनवरी से श्रद्धालु प्रयागराज आना शुरू कर देंगे, इसलिए 31 दिसंबर तक हर हाल में लगभग सभी तय कार्य पूरे करने के आदेश दिये गये हैं।
महाकुंभ की तैयारी के मद्देनज़र शहर के लोगों में चर्चा है कि इस बार महाकुंभ को ग्रीन महाकुंभ बनाये जाने की पूरी कोशिश हो रही है। मेला क्षेत्र में दोना, पत्तल और कुल्हड़ के इस्तेमाल को प्राथमिकता दी जाएगी। इसके अलावा ई-ऑटो, ई-रिक्शा आदि से श्रद्धालु शहर में घूम सकेंगे। महिलाओं के लिए पिंक व्हीकल की भी व्यवस्था की जा रही है। ऑनलाइन बुकिंग के लिए ऐप भी बनाया गया है। सुरक्षा इंतज़ामों में हाईटेक कैमरे, ड्रोन का इस्तेमाल किया जाएगा। इसके अलावा भीड़ प्रबंधन में घुड़सवार पुलिस भी नियुक्त की जाएगी, जिसे ख़ासतौर पर प्रशिक्षित किया गया है।
प्रयागराज देश के सबसे पुराने शहरों में से एक है। प्राचीन ग्रंथों में इसे प्रयाग अथवा तीर्थराज कहा गया है। यह शहर गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती नदी का संगम के लिए प्रसिद्ध है। नदियों के मिलन बिंदु को त्रिवेणी कहा जाता है। ऐतिहासिक दृष्टि से प्रयागराज भारत के स्वतंत्रता संग्राम की कई महत्त्वपूर्ण घटनाओं का साक्षी रहा है। जैसे सन् 1885 में प्रथम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का उदय। सन् 1920 में महात्मा गाँधी के अहिंसा आन्दोलन की शुरुआत। प्रयागराज भौगोलिक दृष्टि से उत्तर प्रदेश के दक्षिणी भाग में स्थित है, जिसका कुल क्षेत्रफल 5,482 वर्ग किलोमीटर है।
महाकुंभ मेला दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक आयोजन है। इसमें मुख्य रूप से साधु, संत, संन्यासी, तपस्वी और श्रद्धालु स्नान के लिए आते हैं। यहाँ लगने वाले कुंभ और महाकुंभ में लाखों तीर्थ यात्री स्नान-दान करते हैं। महाकुंभ का आयोजन प्रत्येक 12 साल के अंतराल पर किया जाता है। भारत में चार स्थान ऐसे हैं, जहाँ कुंभ मेला लगता है। हरिद्वार (उत्तराखण्ड) में गंगा नदी के तट पर, उज्जैन (मध्य प्रदेश) में शिप्रा नदी के तट पर, नासिक (महाराष्ट्र) में गोदावरी नदी के तट पर और प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती नदी के संगम तट पर। (ज़ीरो ग्राउंड रिपोर्ट)
-घुसपैठियों को भारत के पहचान-पत्र बनवाकर देने वाले गिरोह का पर्दाफ़ाश !
इंट्रो-भारत में अवैध रूप से बांग्लादेशियों को घुसाने और उनके भारत के फ़र्ज़ी दस्तावेज़ तैयार करने के आरोप कई दशक से लगते रहे हैं। मीडिया में इस तरह की ख़बरें भी कई बार सामने आ चुकी हैं। ‘तहलका’ ने इस बार भारत में सुगमता से रहने के लिए आने वाले या आने के इच्छुक बांग्लादेशियों के फ़र्ज़ी दस्तावेज़ बनवाने वाले एक गिरोह का पर्दाफ़ाश किया है। इस मामले में ‘तहलका’ ने ख़ुलासा किया गया है कि कैसे सुरक्षा प्रणाली में सेंध लगाकर धोखाधड़ी से इस गिरोह में शामिल जालसाज़ बांग्लादेशियों के फ़र्ज़ी पासपोर्ट, फ़र्ज़ी आधार कार्ड, फ़र्ज़ी पैन कार्ड, फ़र्ज़ी वोटर आईडी कार्ड और शिक्षा के दस्तावेज़ तैयार करवाकर उन्हें मुहैया कराते हैं, जिससे बांग्लादेशी घुसपैठिये आसानी से भारत में आकर रहने लगते हैं। पढ़िए, तहलका एसआईटी की ख़ास रिपोर्ट :-
दिसंबर, 2024 में नई दिल्ली के इंदिरा गाँधी अंतरराष्ट्रीय (आईजीआई) हवाई अड्डे पर एक पुलिस टीम ने एक बांग्लादेशी नागरिक के लिए फ़र्ज़ी भारतीय दस्तावेज़ बनाने में शामिल एक दलाल को गिरफ़्तार किया था। आईजीआई एयरपोर्ट पुलिस को इस घोटाले के बारे में तब पता चला, जब एक यात्री को इमिग्रेशन जाँच के दौरान हिरासत में लिया गया। आरोपी की पहचान शमोल शेन उर्फ़ सैमुअल (26) पुत्र उत्तम शेन के रूप में हुई है, जो हाबड़ा, अशोक नगर, पश्चिम बंगाल का निवासी है।
नवंबर, 2024 में बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के एक पूर्व कार्यकर्ता को फ़र्ज़ी पहचान-दस्तावेज़ का उपयोग करके भारत में रहने के आरोप में कोलकाता में गिरफ़्तार किया गया था। बांग्लादेशी नागरिक की पहचान सलीम मतबर के रूप में हुई है, जिसे पार्क स्ट्रीट क्षेत्र में एक होटल में मध्य रात्रि में पुलिस की छापेमारी के दौरान गिरफ़्तार किया गया। पुलिस सूत्रों के अनुसार, बांग्लादेश के मदारीपुर का निवासी सलीम पिछले दो साल से फ़र्ज़ी पासपोर्ट और जाली आधार कार्ड के ज़रिये भारत में रह रहा था।
अक्टूबर, 2024 में मुंबई की सहार पुलिस ने अंतरराष्ट्रीय यात्रा के लिए जाली भारतीय पासपोर्ट का इस्तेमाल करने के आरोप में दो बांग्लादेशी नागरिकों को गिरफ़्तार किया। इनमें से एक ने फ़र्ज़ी पासपोर्ट का उपयोग कर यूक्रेन की यात्रा की थी, जबकि दूसरा व्यक्ति मॉरीशस जाने से पहले तीन दशक तक अवैध रूप से भारत में रहा था, जहाँ उसे निर्वासित कर दिया गया था। अप्रैल, 2024 में ग्रेटर चेन्नई सिटी पुलिस की पासपोर्ट जाँच शाखा ने चेन्नई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर फ़र्ज़ी भारतीय पासपोर्ट दिखाने के आरोप में छ: बांग्लादेशी नागरिकों को गिरफ़्तार किया। इन सभी ने वर्षों से प्राप्त आधार कार्ड का उपयोग करके धोखाधड़ी से ये पासपोर्ट हासिल किये थे। इन जाली दस्तावेज़ के साथ वे काम के लिए दुबई, क़ुवैत और मलेशिया भी गये थे।
हालाँकि बांग्लादेशी नागरिकों से जुड़े ऐसे फ़र्ज़ी पासपोर्ट मामले अक्सर अखिल भारतीय मीडिया में सामने आते रहते हैं; लेकिन जो बात असामान्य है, वह है- इन दलालों की अपने अपराधों की स्वीकारोक्ति। यह स्वीकारोक्ति, विशेषकर फ़र्ज़ी पासपोर्ट और अन्य जाली भारतीय पहचान दस्तावेज़ बनाने में लगे अपराधियों की ओर से दुर्लभ है। एक साहसिक खोजी प्रयास में ‘तहलका’ ने उन अपराधियों को बेनक़ाब करने का बीड़ा उठाया, जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर ख़तरा पैदा करते हैं। ‘तहलका’ एसआईटी ने गुप्त कैमरे के सामने सफलतापूर्वक इकबालिया बयान दर्ज किये, जिससे इस अवैध व्यापार के अँधेरे पहलू पर प्रकाश पड़ा। इस जाँच प्रक्रिया के माध्यम से हमें पता चला कि फ़र्ज़ी दस्तावेज़ की गुप्त दुनिया इसके संचालकों के दुस्साहस भरे अवैध धंधे पर पनपती है। कोलकाता की सड़कों से लेकर दिल्ली के आलीशान होटलों तक ये दलाल अपनी पूरी पहचान गढ़ने की क्षमता का प्रदर्शन करते हैं।
‘मैं लंबे समय से फ़र्ज़ी पासपोर्ट और भारतीय पहचान के अन्य दस्तावेज़ बनाने के धंधे में लगा हूँ और मुझे कभी पुलिस ने नहीं पकड़ा। मेरे ख़िलाफ़ भारत में कहीं भी एक भी मामला दर्ज नहीं है।’ -यह बात कोलकाता के एक जालसाज़ राजीव सिंह (बदला हुआ नाम) ने फ़र्ज़ी ग्राहक बनकर उससे मिलने वाले ‘तहलका’ रिपोर्टर से कही।
‘मैं बांग्लादेशी नागरिकों को अवैध मार्गों से भारत लाता हूँ। एक बार जब वे आ जाते हैं, तो मैं उनके भारतीय पहचान वाले दस्तावेज़ की व्यवस्था करता हूँ, जिनमें आधार, पैन कार्ड, स्कूल और जन्म प्रमाण-पत्र, मतदाता पहचान-पत्र और अंतत: पासपोर्ट शामिल होते हैं।’ -उसने ‘तहलका’ रिपोर्टर को समझाने की कोशिश की।
‘अतीत में मैंने बांग्लादेश से अवैध अप्रवासियों को भारत में प्रवेश में मदद की है। लेकिन एक बार जब मैंने उन्हें फ़र्ज़ी भारतीय दस्तावेज़ उपलब्ध करा दिये, तो हमारा सम्बन्ध ख़त्म हो गया। हम एक-दूसरे को अब और नहीं जानते। अब तक मैंने अवैध तरीक़े से भारत में प्रवेश करने वाले तीन बांग्लादेशी नागरिकों के लिए सफलतापूर्वक फ़र्ज़ी भारतीय दस्तावेज़ बनवाये हैं।’ -राजीव ने तथ्यात्मक रूप से यह बात कही।
‘तहलका’ की पड़ताल कोलकाता के राजीव सिंह (बदला हुआ नाम) से शुरू हुई। ‘तहलका’ रिपोर्टर ने स्वयं को एक ग्राहक के रूप में प्रस्तुत किया, जो अवैध तरीक़ों से भारत में प्रवेश करने वाले बांग्लादेशी नागरिकों के लिए भारतीय पहचान फ़र्ज़ी दस्तावेज़ बनाने वाले किसी व्यक्ति की तलाश कर रहा था। यह मुलाक़ात दिल्ली के एक पाँच सितारा होटल में हुई, जहाँ राजीव ने तुरंत नौकरी स्वीकार कर ली। उसने रिपोर्टर को आश्वासन दिया कि वह आधार और पैन कार्ड, स्कूल के प्रमाण-पत्र और जन्म प्रमाण-पत्र, मतदाता पहचान-पत्र और अंतत: पासपोर्ट का प्रबंध कर सकता है। और निश्चित रूप से यह सब एक निश्चित क़ीमत पर।
रिपोर्टर : डॉक्यूमेंट में क्या-क्या बन जाएगा?
राजीव : डॉक्यूमेंट में शुरू से बनाएँगे। पहले बनाएँगे पेन कार्ड, आधार कार्ड, स्कूल सर्टिफिकेट, हॉस्पिटल का बर्थ सर्टिफिकेट, वोटर कार्ड भी बन गया, …फिर बनेगा उसका पासपोर्ट।
रिपोर्टर : पासपोर्ट भी बन जाएगा?
राजीव : एक सप्ताह में उसका पासपोर्ट भी आ जाएगा। …सिर्फ़ पैसा फेंकना है बस।
अब ‘तहलका’ से बात करते हुए राजीव ने बांग्लादेशी प्रवासियों की तस्करी, फ़र्ज़ी भारतीय पहचान-पत्र बनवाने और क़ानूनी जाँच से पूरी तरह बचने के बारे में दावा किया। जालसाज़ी से अवैध आव्रजन और दस्तावेज़ सुविधाजनक बनाने में राजीव ने खुले तौर पर अपने तरीक़ों पर चर्चा की।
राजीव : भैया! आप क्या बोल रहे हैं? हमने सिर्फ़ आधार कार्ड से बांग्लादेश से बुलाकर कोलकाता के हॉस्पिटल में एडमिट (भर्ती) करवाया है। … वो आप टेंशन मत लो; …बंदा है। आप सिर्फ़ नंबर दे दो। हम दो-तीन दिन में अपने पास बुलाकर आपसे बात करवा देंगे।
रिपोर्टर : अच्छा; निकलवा देगा इल्लीगली?
राजीव : आराम से…।
रिपोर्टर : पकड़ा न जाए कोई?
राजीव : अरे, कुछ नहीं होगा भैया!
रिपोर्टर : तू तो नहीं पकड़ा गया कभी इन सब कामों में?
राजीव : नहीं, कभी नहीं।
रिपोर्टर : कोई केस नहीं है तेरे ऊपर?
राजीव : एक भी पुलिस केस दिखा दो, …मान जाएगा।
अब राजीव ने अपने कई अवैध कामों और उनमें अपनी गतिविधियों का ख़ुलासा करते हुए दावा किया कि वह एक समय में तीन-चार बांग्लादेशी नागरिकों के अवैध प्रवेश की सुविधा प्रदान कर सकता है। हालाँकि उसने यह भी कहा कि एक बार फ़र्ज़ी दस्तावेज़ बनवाने के बाद वह अवैध ग्राहकों से सभी सम्बन्ध तोड़ लेता है।
रिपोर्टर : कितने लोग निकलवा सकता है, एक बार में?
राजीव : एक बार में, …तीन-चार करके। …बस एक बार डॉक्यूमेंट बन गया, काम हो गया। उसके बाद कोई रिलेशन (सम्बन्ध) नहीं।
रिपोर्टर : कोई रिलेशन नहीं?
राजीव : हाँ।
इसके बाद राजीव ने अपने ऑपरेशन के वित्तीय पक्ष की रूपरेखा बतायी और प्रत्येक अवैध बांग्लादेशी अप्रवासी को कोलकाता लाने में मदद करने के लिए 10-15 हज़ार रुपये की माँग की।
रिपोर्टर : कितना पैसा?
राजीव : अब डिस्काउंट का जो बलेगा, सामने बिठाकर बात करेगा।
रिपोर्टर : निकालने का कितना पैसा?
राजीव : xxxxx का पकड़ लो 10-15 हज़ार एक बंदे का।
रिपोर्टर : और तू कितना लेगा?
राजीव : हमको 10-15 हज़ार दे कर रख दो।
रिपोर्टर : एक बंदे का? …बांग्लादेश से कोलकाता लाने का? …कोलकाता ही लाएगा ना?
राजीव : कोलकाता ही लाएगा।
रिपोर्टर : निकलवा चुका है ऐेसे लोगों को?
राजीव : हाँ; मगर काम हो जाने के बाद न हम आपको जानते हैं, न आप हमको जानता।
इसके बाद राजीव ने ख़ुलासा किया कि उसने पहले ही भारत में प्रवेश करने वाले तीन अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों के लिए दस्तावेज़ बनाने में मदद की थी। उसने बताया कि एक बार पासपोर्ट प्राप्त हो जाने पर बाक़ी दस्तावेज़ आसानी से बन जाते हैं।
राजीव : हमने बनवा दिया तीन।
रिपोर्टर : क्या-क्या बनवा दिये?
राजीव : सारे डॉक्यूमेंट्स।
रिपोर्टर : पासपोर्ट भी।
राजीव : पासपोर्ट सबसे आगे निकालता; …पासपोर्ट निकल जाएगा, तो सब डॉक्यूमेंट्स निकल जाएगा।
राजीव ने पूरे विश्वास के साथ दावा किया कि पुलिस के साथ उसके मज़बूत सम्बन्धों के कारण बांग्लादेशी नागरिकों को अवैध रूप से भारत में प्रवेश करने तथा उसके माध्यम से फ़र्ज़ी भारतीय दस्तावेज़ प्राप्त करने में कोई बाधा नहीं आती। उसने कहा कि जिन लोगों ने शीघ्र भुगतान किया, उन्हें उनके दस्तावेज़ शीघ्र प्राप्त हो गये। इससे साफ़ पता चलता है कि ये अवैध गतिविधियाँ कितनी आसानी से चल रही हैं।
राजीव : सब अपना आदमी है। डॉक्यूमेंट्स का पुलिस का कोई लफड़ा नहीं। …आराम से आएगा। रूम (कमरे) में रखेगा। जो जितना जल्दी पैसा छोड़ेगा, उतना जल्दी उसका डॉक्यूमेंट्स मिलेगा।
अब यह बात सामने आयी है कि फ़र्ज़ी पहचान दस्तावेज़ बनवाने की अवैध दुनिया में राजीव की संलिप्तता दूसरे भी क्षेत्रों तक ख़तरनाक तरीक़े से फैली हुई है। उसने गिरोह के एक सदस्य तौसीफ़ से परिचय कराया, जो बैंक खातों को हैक करने में माहिर है। उसके अनुसार, किसी के बैंक से पैसा उड़ाने के लिए कुछ प्रमुख ज़रूरी चीज़ें, जैसे- खाता संख्या, आईएफएससी कोड, एटीएम कार्ड और मोबाइल नंबर की ज़रूरत होती है। उसने बताया कि वे (वह और उसके साथी) कितनी आसानी से सिर्फ़ 5 मिनट में बैंक खातों से किसी के पैसे उड़ा सकते हैं।
रिपोर्टर : अच्छा; अगर मुझे अकाउंट हैक करवाना हो आपसे किसी अमीर आदमी का, उसके लिये मुझे क्या-क्या आपको देना पड़ेगा?
तौसीफ़ : अच्छा; किसा का करवाना है? …सिंपल है। पासबुक, एटीएम, सिम, आईएफएससी कोड।
तौसीफ़ : वो ही तो मेन है। …वो ही मेन है, जो खेल है ना! वो ही तो सिम का है।
राजीव : कितना पैसा होगा?
रिपोर्टर : करोड़।
राजीव : उसका अकाउंट नंबर, आईएफएससी कोड, उसके एटीएम का फोटो दे पाओगे?
रिपोर्टर : हाँ; मिल जाएगा।
राजीव : बस उसका नंबर हमको बता दीजिएगा, हम निकाल देंगे।
रिपोर्टर : कौन-सा नंबर?
राजीव : मोबाइल नंबर।
रिपोर्टर : मोबाइल नंबर से कैसे निकालोगे?
तौसीफ़ : ज़रूरी नहीं आप सिम ही दो; …आप उसका नंबर भी दोगे, तो भी हो जाएगा।
रिपोर्टर : मोबाइल नंबर से? …मान लीजिए मैं आपको उसका सिम दे दूँ; और कुछ न दे पाऊँ?
राजीव : ख़ाली सिम से नहीं, एटीएम, आईएफएससी कोड, …5 मिनट का काम है।
एक ख़ुलासा करने वाली बातचीत में तौसीफ़ और राजीव ने बताया कि अपने बैंक खाते को हैक करने के लिए उन्हें लक्ष्य के खाते के विवरण की आवश्यकता होती है; लेकिन उन्होंने यह भी दावा किया कि वे वन-टाइम पासवर्ड (ओटीपी) की आवश्यकता को भी दरकिनार कर देते हैं। दोनों ने बताया कि यह ऑपरेशन केवल पाँच मिनट में पूरा किया जा सकता है, तथा तकनीकी आवश्यकताओं के बावजूद उसने ‘तहलका’ रिपोर्टर को आश्वासन दिया कि परिस्थितियाँ चाहे जो भी हों, वे लोग अकाउंट हैक करने का कोई-न-कोई तरीक़ा ढूँढ ही लेंगे। राजीव और तौसीफ़ ने दावा किया कि वे पहले ही काफ़ी बड़ी रक़म चुरा चुके हैं और बड़े गर्व से कहा कि पहले प्रयास में ही उन्हें एक खाते से 4-5 लाख रुपये तक मिल गये थे।
रिपोर्टर : कितनी देर का काम है?
राजीव : 5 मिनट; …पर आपको कोलकाता रहना पड़ेगा।
रिपोर्टर : मुझको कोलकाता रहना पड़ेगा! …क्यूँ?
राजीव : कोई यहाँ नहीं करेगा।
रिपोर्टर : क्यूँ?
तौसीफ़ : कभी आप आओ ना कोलकाता।
रिपोर्टर : मुझे आना है।
तौसीफ़ : कब आओगे?
रिपोर्टर : जल्दी आऊँगा; लेकिन मैं ख़ाली मोबाइल नंबर दे दूँ और कुछ नहीं फिर? …फिर नहीं मिलेगा? … अच्छा; उसके पास ओटीपी जाएगा?
रिपोर्टर : मतलब, उसने ओटीपी नहीं दिया आपको, फिर क्या करोगे?
तौसीफ़ : उसका इलाज भी है हमारे पास।
रिपोर्टर : बिना ओटीपी के कर दोगे? …बताओ?
तौसीफ़ : हाँ; भैया!
रिपोर्टर : मेरा कितना परसेंट होगा?
तौसीफ़ : 10 परसेंट।
रिपोर्टर : एक बार में कितना हैक कर लोगे? …कितना पैसा निकाल लोगे?
तौसीफ़ : अभी तक जबसे मैं ज्वाइन हुआ हूँ। तबसे हमने एक बार में 4-5 लाख किया है।
रिपोर्टर : 4-5 लाख?
इसके बाद तौसीफ़ ने पूरे विश्वास के साथ दावा किया कि कोलकाता में किसी अज्ञात स्थान से सक्रिय उसके गिरोह के पाँच सदस्यों में से किसी को भी पिछले तीन वर्षों में कभी गिरफ़्तार नहीं किया गया। उसने बताया कि यह समूह एक अलग क्षेत्र में रहता है, जहाँ केवल राजीव को ही जाने की अनुमति है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनकी आपराधिक गतिविधियाँ पकड़ में न आएँ। यह गुप्त जीवनशैली उनके अवैध कार्यों के इर्द-गिर्द सुरक्षा और गोपनीयता को प्रदर्शित करती है।
रिपोर्टर : अच्छा; कभी पकड़े तो नहीं गये?
तौसीफ़ : नहीं।
रिपोर्टर : पक्का। …आपका पाँच लोगों का ग्रुप है ना?
तौसीफ़ : कोई नहीं पकड़ा गया। तीन साल में कोई नहीं पकड़ा गया। …नहीं, हम ऐसी जगह में रहते नहीं कि पकड़े जाएँ।
रिपोर्टर : कोलकाता में ही तो रहते हो?
तौसीफ़ : कोलकाता में बेशक रहते हैं, मगर किसी को पता नहीं कहाँ। ..किसी के यहाँ आना-जाना नहीं। राजीव भाई आते हैं। और कोई नहीं आ सकता।
अब तौसीफ़ ने ‘तहलका’ को अपने गिरोह के अंदरूनी कामकाज का ख़ुलासा किया है, जो कोलकाता में एक किराये के फ्लैट के इर्द-गिर्द केंद्रित है। फ्लैट मालिक उनकी गतिविधियों से अनजान है और कहीं दूसरी जगह रहता है, जबकि गिरोह फ्लैट का उपयोग केवल अपनी अवैध गतिविधियों के लिए अस्थायी आधार के रूप में करता है। किसी को संदेह न हो, इसके लिए केवल इस ग्रुप के हैकर ही ऑपरेशन के लिए ही फ्लैट में आते-जाते हैं।
तौसीफ़ : फ्लैट ले रखा है।
रिपोर्टर : किराये पर? …मकान मालिक को नहीं पता आप क्या कर रहे हो? वो कहाँ रहता है?
तौसीफ़ : उसका घर कहीं और है।
रिपोर्टर : 24 आवर (घंटे) आप वहीं रहते हो?
तौसीफ़ : जब काम होता, तभी रहते; …जब काम होता है, तभी आते हैं।
तौसीफ़ ने ख़ुलासा किया कि उसके गिरोह के बैंक खाते हैक होने के पीड़ितों ने पुलिस में शिकायत दर्ज करायी होगी; लेकिन अधिकारियों के पास उनका पता लगाने का कोई मौक़ा नहीं है।
रिपोर्टर : तो जिन लोगों का पैसा उड़ता है, वो पुलिस में कंप्लेंट (शिकायत) नहीं करते?
तौसीफ़ : करते होंगे, मगर पुलिस को कुछ नहीं मिलता। आईडी थोड़ी न मिल जाएगी वहाँ।
रिपोर्टर : तो आज तक जिनका पैसा निकाला, कुछ नहीं हुआ?
तौसीफ़ : कुछ नहीं हुआ।
अब तौसीफ़ ने अपने गिरोह के संचालन का एक महत्त्वपूर्ण विवरण उजागर किया कि वे (उसके गिरोह के लोग) पकड़े जाने से बचने के लिए लगातार सिम कार्ड बदलते रहते हैं। आगे बातचीत में उसने क़ानून और जाँच एजेंसियों से बचने के प्रयासों के बारे में बताया, ताकि ये लोग गिरफ़्तारी से बचे रह सकें।
रिपोर्टर : जिस सिम से आप कॉलिंग करते हो, ये सिम बदलते रहते हो?
तौसीफ़ : बदलना ही पड़ती है भाई साहब!
रिपोर्टर : एक ही सिम से तो कॉल करोगे नहीं, …वर्ना पकड़े जाओगे?
तौसीफ़ : इतने तो आप भी समझदार हो।
तौसीफ़ और राजीव ने ‘तहलका’ को बताया कि किस तरह उनका गिरोह कोलकाता में मोबाइल विक्रेताओं के साथ साँठगाँठ करके धोखाधड़ी से सिम कार्ड हासिल करता है। ये लोग बिना उचित सत्यापन के सिम विक्रेताओं से सिम कार्ड आसानी से ले लेते हैं, जो कि दूसरों की आईडी पर होते हैं और इन्हीं सिम कार्ड से अवैध गतिविधियाँ चलाते हैं।
रिपोर्टर : तो सिम तुम्हें कैसे मिलती है? …वो तो एड्रेस पर मिलती है?
तौसीफ़ : वो हमारे एमडी हैं ना! वो सब जुगाड़ कर लेते हैं।
रिपोर्टर : मोहम्मद इमरान?
तौसीफ़ : हाँ।
रिपोर्टर : मोबाइल भी हैक करते हो आप?
राजीव : जो मोबाइल का सिम निकलता है, वो ही अपना है।
रिपोर्टर : मतलब?
राजीव : जो मोबाइल का सिम देते हैं, वो भी अपना आदमी है।
तौसीफ़ : भाई! जब इतना बड़ा काम हो रहा है, तो सारी जगह सेटिंग तो होती ही है।
रिपोर्टर : जैसे आपने कोई सिम लिया हुआ है, आपकी आईडी वहाँ पर है, ठीक है। मैं गया वहाँ सिम लेने, मैंने दुकान वाले से कहा- किसी और की आईडी पर मुझे सिम दे दे; तो उसने आपकी आईडी पर मुझे सिम दे दिया…?
राजीव : आपका जान-पहचान होगा, तभी तो देगा।
रिपोर्टर : हाँ; मेरी जान-पहचान है। तो मैं कहूँगा, ये राजीव है, इसकी आईडी पर मुझे सिम दे दे।
राजीव : हाँ।
रिपोर्टर : यही कह रहे हो ना आप?
राजीव : हाँ। …आप एक सिम बोलोगे, आपको दो देगा।
रिपोर्टर : किस कम्पनी की?
राजीव : जिसकी बोलो, एयरटेल…।
रिपोर्टर : प्रीपेड होगा या पोस्टपेड?
राजीव : वो आपके ऊपर है। पहले जो चार्ज होगा, उस पर रिचार्ज होगा।
रिपोर्टर : तो कभी मुझे दिल्ली में सिम चाहिए, मिल जाएगी?
राजीव : आराम से।
इसके बाद तौसीफ़ ने बेशर्मी से ‘तहलका’ रिपोर्टर से आम ग़रीब लोगों के बैंक खातों का विवरण देने की पेशकश की, जिसका उद्देश्य चोरी के पैसे को ठिकाने लगाना था। इसके बदले में तौसीफ़ ने रिपोर्टर को 10 प्रतिशत कमीशन देने की बात कही।
रिपोर्टर : तो मैं कितने ग़रीब अकाउंट दे दूँ आपको?
तौसीफ़ : दे दो जितने…।
रिपोर्टर : मगर वो सब दिल्ली के होंगे?
तौसीफ़ : कोई बात नहीं।
रिपोर्टर : मेरा क्या होगा?
तौसीफ़ : एक अकाउंट का 10 परसेंट।
तौसीफ़ ने एक और ख़ुलासा करते हुए बताया कि उनके (उसके और उसके साथियों के) ऑपरेशन के लिए न केवल आम ग़रीब लोगों के बैंक खातों की ज़रूरत होती है, बल्कि उनके सिम कार्ड की भी ज़रूरत होती है। इससे गिरोह खाताधारक की गतिविधियों पर नज़र रखता कि कहीं चोरी की गयी धनराशि को वह न निकाल ले।
रिपोर्टर : ग़रीब का सिम का क्या करोगे?
तौसीफ़ : जैसे मैंने ग़रीब के अकाउंट में डाल दिये 50,000 रुपये। मैं क्या देख रहा हूँ एटीएम से निकल रहा है या क्या कर रहा है? चेक थोड़ी करने जा रहे, आप समझ रहे…? आप समझ रहे, आपने मेरे अकाउंट में डाल दिये एक लाख रुपये। आप देख तो नहीं रहे हो, मैं फोन से निकाल रहा हूँ या एटीएम से।
अब तौसीफ़ ने अपने गिरोह के भीतर कठोर भर्ती प्रक्रिया के बारे में विस्तार से बताया तथा इस बात पर ज़ोर दिया कि उनकी दुनिया में विश्वास का बहुत महत्त्व है, जो हर किसी पर नहीं किया जाता। इसलिए गिरोह बड़ी सावधानी से काम करता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उसके साथ काम करने वाले केवल विश्वसनीय लोग हैं।
रिपोर्टर : तो तुम हर किसी को ऐसे रखते नहीं होगे?
तौसीफ़ : नहीं; वो तो राजीव भाई मिल गये हमें, अटैच हो गये।
रिपोर्टर : तो जाँच पड़ताल करते होगे, कोई जासूस न आ जाए?
तौसीफ़ : नहीं, नहीं; पूछ लो हम किसी को अंदर ही नहीं बुलाते। हम किसी पर भरोसा ही नहीं करते।
रिपोर्टर : तो आप पर कैसे भरोसा किया इमरान ने?
तौसीफ़ : कुछ लोग भरोसे के लायक होते हैं, तभी तो भरोसा करते हैं सब।
अब तौसीफ़ ने ख़ुलासा किया है कि हैकिंग व्यवसाय से उसकी अकेले की कमायी 2.5-3 लाख रुपये प्रति माह तक है, जो हैक किये गये खातों से 30 प्रतिशत कमीशन के रूप में उसे मिलती है। उसने इसमें अपने सहयोगी और ग्रुप के हेड मोहम्मद इमरान की ईमानदारी की भी तारीफ़ की और यह भी कहा कि वह इमरान के ख़िलाफ़ नहीं जा सकता।
रिपोर्टर : तो आपको कितना पैसा मिलता है इसमें?
तौसीफ़ : ये मिल जाता है 2.5-3 लाख।
रिपोर्टर : 2.5-3 लाख महीने के? …कितना परसेंटेज मिलता है आपको?
तौसीफ़ : 30 परसेंट।
रिपोर्टर : जो भी पैसा निकलेगा, उसका 30 परसेंट आपको? …इमरान ने कभी बेईमानी तो नहीं करी आपके साथ?
तौसीफ़ : बढ़िया है वो। मैं उसकी तारीफ़ करूँगा। कभी उसके ख़िलाफ़ नहीं।
बांग्लादेश के हिन्दू अल्पसंख्यकों पर हमलों के आरोपों के कारण भारत और बांग्लादेश के बीच तनाव बढ़ गया है। इन घटनाओं के कारण दोनों देशों में बड़े पैमाने पर विरोध-प्रदर्शन हुए और यहाँ तक कि भारत में बांग्लादेशी वाणिज्य दूतावास पर हमला भी हुआ। तनावपूर्ण सम्बन्ध अनसुलझे मुद्दों की व्यापक अंतर्धारा को दर्शाते हैं, जो द्विपक्षीय सम्बन्धों के लिए चुनौती बने हुए हैं। भारत में बांग्लादेश से अवैध रूप से आये प्रवासियों का मुद्दा अत्यंत संवेदनशील एवं विवादास्पद विषय बना हुआ है। भारतीय मीडिया में बार-बार यह चर्चा होती रहती है कि किस प्रकार ये अप्रवासी अवैध तरीक़ों से देश में प्रवेश कर धोखाधड़ी से वैध भारतीय पहचान दस्तावेज़ हासिल करने में सफल हो जाते हैं।
‘तहलका’ की पड़ताल इस गहरी समस्या के सिर्फ़ एक पहलू पर प्रकाश डालती है और ऐसे दलालों का पर्दाफ़ाश करती है, जो न केवल अवैध प्रवेश की सुविधा प्रदान करता है, बल्कि फ़र्ज़ी भारतीय पासपोर्ट और अन्य फ़र्ज़ी पहचान दस्तावेज़ की ख़रीद भी सुनिश्चित करता है, जाँच से एक विशाल और जटिल नेटवर्क के अस्तित्व को रेखांकित किया गया है, जो दण्ड से मुक्त होकर काम कर रहा है।
यद्यपि यह पड़ताल कुछ ही अवैध कामों पर प्रकाश डालती है; लेकिन इससे साफ़ है कि ऐसी अवैध गतिविधियों का व्यापक दायरा अभी भी पूरी तरह उजागर होना बाक़ी है। इन मुद्दों के समाधान के लिए कठोर प्रवर्तन नियमों, सीमा पार के सहयोग तथा प्रणालीगत सुधारों सहित ठोस प्रयास की ज़रूरत है, जिससे ऐसी ख़ामियों को दूर किया जा सके, जो इस तरह के अभियानों को पनपने का मौक़ा देती हैं।
06 दिसंबर को मध्य प्रदेश के छतरपुर स्थित एक सरकारी स्कूल में 12वीं कक्षा के एक 17 वर्षीय छात्र ने जिस तरह सरेआम प्राचार्य (प्रिंसिपल) की कट्टे से गोली मारकर हत्या कर दी, उससे आज के छात्रों में पनपती आपराधिक प्रवृत्ति का पता चलता है। प्राचार्य ने उपरोक्त छात्र को स्कूल नहीं आने पर सिर्फ़ डाँट दिया था, जिससे छात्र इतना नाराज़ हुआ कि उसने स्कूल में प्राचार्य की हत्या के बाद बाक़ी शिक्षकों और छात्रों को भी धमकी दी कि अगर किसी ने उसके ख़िलाफ़ बयान दिया, तो वह उसे भी मार डालेगा।
06 दिसंबर को ही छत्तीसगढ़ के धनतरी ज़िले में एक निजी स्कूल में डाँट और पढ़ाई पर ध्यान देने की हिदायत दिये जाने से नाराज़ 11वीं कक्षा के एक छात्र ने दो शिक्षकों पर चाक़ू से हमला कर दिया। इससे पहले 05 दिसंबर को आन्ध्र प्रदेश के विजयनगरम् स्थित एक सरकारी स्कूल में 8वीं कक्षा के छात्र ने शिक्षक पर चाक़ू से हमला कर दिया। वहाँ की पुलिस के अनुसार, छात्र ने कथित तौर पर शिक्षक के ख़िलाफ़ रंजिश पाल रखी थी, क्योंकि जब वह कक्षा सात में पढ़ता था, तबसे वह शिक्षक उसके व्यवहार व ख़राब शैक्षणिक प्रदर्शन के कारण उसे फटकार लगा रहे थे।
ये घटनाएँ स्कूलों में छात्रों के हिंसक व्यवहार की तस्वीर समाज के सामने रखती हैं। छात्रों द्वारा हिंसा भारतीय स्कूलों में न सिर्फ़ गुरु-शिष्य परंपरा को कलंकित कर रही है, बल्कि देश के भविष्य के लिए एक ख़तरे को संकेत दे रही है। ऐसी वारदातें शिक्षकों को छात्रों पर पढ़ने का दबाव न डालने को मजबूर करती हैं। यह एक चिन्तनीय पहलू है।
भारत में गुरु-शिष्य परंपरा को बहुत ही सम्मानित दृष्टि से देखा जाता रहा है। लेकिन व$क्त बदलने के साथ-साथ यह रिश्ता भी दरकने लगा है। भारत में हर वर्ष 05 सितंबर को राष्ट्रीय शिक्षक दिवस मनाया जाता है; लेकिन शिक्षकों व छात्रों के बीच मधुर समन्वय की जगह अब तनाव बढ़ता जा रहा है। यही तनाव कई मर्तबा हिंसक शक्ल ले लेता है। कहीं छात्र हिंसक दिखते हैं, तो कहीं शिक्षक भी हिंसक हो जाते हैं।
क़रीब दो साल पहले देश की राजधानी दिल्ली में भी सरकारी स्कूलों के शिक्षकों पर हमले की ख़बरें चर्चा में थीं और तब दिल्ली के शिक्षा निदेशालय ने शिक्षकों पर शारीरिक हमले के मामले में स्कूल प्रशासन को निर्देश दिया कि वह ऐसे छात्रों को निष्कासित करें या उसी स्कूल में दोबारा दाख़िला लेने से रोकें। स्कूलों में शिक्षकों पर शारीरिक हमले और मारपीट का ख़तरा इसलिए भी मँडराने लगा है, क्योंकि क़ानूनी रूप से शिक्षकों को कोई सुरक्षा नहीं मिलती। वैसे स्कूल शिक्षक संघ ने शिक्षकों को सुरक्षा देने वाले क़ानून की माँग की थी, जिसके अंतर्गत स्कूल परिसर के भीतर या उसके आसपास होने वाली ऐसी आपराधिक घटनाओं को ग़ैर-जमानती अपराधों के तहत दंडित करने की अपील की गयी थी। लेकिन इसमें संघ को कुछ ख़ास सफलता नहीं मिली।
जर्नल ऑफ फैमिली मेडिसिन एंड प्राइमरी केयर में 2023 में 463 छात्रों पर किये गये एक अध्ययन में आधे से अधिक छात्रों में आक्रामक लक्षण पाये गये। अमेरिकन साइकोलॅाजिकल एसोसिएशन के जर्नल ऑफ़ पर्सनैलिटी एंड सोशल साइकोलॉजी के 2024 अंक में प्रकाशित दो अध्ययनों में हिंसक वीडियो गेम खेलने को प्रयोगशाला सेटिंग और वास्तविक जीवन दोनों में आक्रामक विचारों, भावनाओं और व्यवहार में वृद्धि के साथ जोड़ा गया है।’
ऐसा माना जा रहा है कि किशोर व युवा पीढ़ी को आक्रामक बनाने में इंटरनेट, सोशल मीडिया भी अपनी अहम भूमिका निभा रहा है। भारत में बच्चों के कल्याण और उनके अधिकारों को प्राथमिकता देने के मक़सद से स्कूलों में बच्चों के लिए ख़ास क़ानूनी व्यवस्था की गयी है। शिक्षा का अधिकार अधिनियम-2009 के तहत भारतीय संविधान की धारा-17 में बच्चे के प्रति शारीरिक दंड और मानसिक उत्पीड़न पर पूर्ण प्रतिबंध है और इसे दंडनीय अपराध माना गया है। किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम-2015 के तहत भारतीय संविधान की धारा-23 के अनुसार, नाबालिग़ों के प्रति दुर्व्यवहार करने वाले व्यस्कों को जेल और ज़ुर्माना दोनों हो सकते हैं। शिक्षाविद् व बाल मनोचिकित्सक बच्चों व किशोरों को शारीरिक दंड व उनके मानसिक उत्पीड़न को उनके विकास के लिए सही नहीं मानते। लेकिन हिंसक छात्रों के ख़िलाफ़ अलग से कोई क़ानून देश में नहीं है।
पंजाब की सियासत में क़रीब एक-डेढ़ दशक से पिछले तीन साल पहले तक बड़े बदलाव देखने को मिले हैं। इस सियासत ने पंजाब के राजनीतिक क़द्दावरों का समय ही ख़त्म कर दिया। इसमें सबसे बड़ा योगदान सिख धर्म के उन ज़्यादातर लोगों का है, जो अपने समाज में बुराई और भ्रष्टाचार को नहीं पनपने देना चाहते। सिख धर्म के सबसे बड़े न्याय मंच अकाल तख़्त की इसमें सबसे बड़ी भूमिका रही है। अपने धर्म के भटके हुए लोगों को सही रास्ते पर लाना इस धार्मिक न्यायालय की पहली प्राथमिकता है। श्री अकाल तख़्त साहिब अपने धर्म के उन लोगों को सज़ा का आदेश देता है, जो धर्म के ख़िलाफ़ जाकर सिख समाज को किसी प्रकार का कोई नुक़सान पहुँचाते हैं या सिख धर्म के धर्म ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी करते हैं। श्री अकाल तख़्त साहिब के पंच परमेश्वर सिख धर्म के हर छोटे-बड़े व्यक्ति को एक नज़र से देखते हैं और दोषियों को बिना उनकी हैसियत देखे सज़ा सुनाते हैं। पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय ज्ञानी जैल सिंह तक को श्री अकाल तख़्त साहिब ने सज़ा सुनायी है। श्री अकाल तख़्त साहिब द्वारा दी गयी इस सज़ा में सुखबीर सिंह बादल को तनखैया क़रार दिया गया। सिख धर्म की सर्वोच्च न्यायसंस्था श्री अकाल तख़्त साहिब को यह अधिकार होता है कि अगर कोई सिख व्यक्ति धर्म के हिसाब से नहीं चलता है, तो उसे तनखैया घोषित किया जाता है, जो कि एक अपमानजनक उपाधि है। किसी को तनखैया घोषित करने के बाद कोई भी सिख उस सज़ायाफ़्ता व्यक्ति से किसी भी प्रकार का रिश्ता नहीं रखता है। यानी उस व्यक्ति और उसके परिवार का समाज से बहिष्कार कर दिया जाता है। अब तीन दशक तक पंजाब की सत्ता पर शासन करने वाले पंजाब के सबसे अमीर बादल परिवार के मुखिया और पंजाब के पूर्व उप मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल को भी दोषी पाते हुए अकाल तख़्त ने धार्मिक सज़ा दी। यह सज़ा ऐसे समय में दी गयी, जब सुखबीर सिंह बादल के पैर में फ्रैक्चर था और प्लास्टर चढ़ा हुआ था। अकाल तख़्त साहिब द्वारा सुनायी गयी धार्मिक सज़ा भुगतने के लिए सुखबीर सिंह बादल ने कई गुरुद्वारों में सेवा की। उन्हें कहीं टॉयलेट साफ़ करनी पड़ी, कहीं बर्तन माँजने पड़े, कहीं सफ़ाई करनी पड़ी, कहीं लंगर सेवा करनी पड़ी, तो कहीं गार्ड की तरह पहरेदारी करनी पड़ी। सभी सज़ाओं को भुगतने के बाद उन्हें संकीर्तन सरवन करने का अवसर दिया गया।
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बहरहाल, सिख धर्म में श्री अकाल तख़्त साहिब द्वारा किसी भी सिख धर्म के व्यक्ति को सज़ा देने की कुछ ख़ास वजहें होती हैं, जिनमें उस व्यक्ति द्वारा सिख क़ौम को किसी तरह का नुक़सान पहुँचाना, किसी किस्म का नीचता भरा काम करना और गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी करना। जब कोई सिख ऐसी कोई ग़लती करता है, जिसके लिए सिख धर्म में माफ़ी नहीं है, तो श्री अकाल तख़्त साहिब के जत्थेदार और पंज सिंह साहिब उस व्यक्ति की जाने-अनजाने में की हुई उन ग़लतियों के लिए सज़ा का फ़रमान सुनाते हैं। अकाली दल, जो कि भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन का ही हिस्सा है, उसके वरिष्ठ अकाली नेताओं के लिए भी इसी तरह की धार्मिक सज़ा, जो कि सेवा कराकर पूरी की जाती है, उसका आयोजन किया गया। श्री अकाल तख़्त साहिब द्वारा मुक़र्रर यह सज़ा एक प्रकार के पश्चाताप और माफ़ी माँगने के लिए सुनायी जाती है। इस बार तख़्तों के पंच सिंह साहिबों ने पंजाब के पूर्व उप मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल और उनकी सरकार में रहे कई मंत्रियों को सज़ा का फ़रमान सुनाया था। ये सज़ा बादल सरकार में बादल परिवार और उनके क़रीबी मंत्रियों द्वारा 2007 से 2017 तक पंजाब में तत्कालीन शिरोमणि अकाली दल की सरकार के दौरान की गयी ग़लतियों के लिए सुनायी गयी। उस समय सुखबीर सिंह बादल के पिता प्रकाश सिंह बादल मुख्यमंत्री हुआ करते थे। इस सज़ा में सुखबीर सिंह बादल के अलावा पूर्व अकाली मंत्री एवं पूर्व सांसद सुखदेव सिंह ढींडसा को भी सज़ा मिली। इससे पहले डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख राम रहीम को भी श्री अकाल तख़्त साहिब ने सज़ा सुनाने का मन बनाया था; लेकिन बाद में डेरा प्रमुख को सिख धर्म से ही बाहर कर दिया था। बताते हैं कि उस समय अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए भी डेरा प्रमुख को माफ़ी दिलवा दी थी। हालाँकि इसके बाद अकाली दल और शिरोमणि कमेटी के नेतृत्व से सिख धर्म के लोग काफ़ी नाराज़ हुए और अंत में श्री अकाल तख़्त साहिब ने डेरा मुखी को माफ़ी देने का फ़ैसला वापस लिया।
दरअसल बादल परिवार की एक बहुत बड़ी ग़लती गुरु गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी भी है, जो साल 2015 में सुखबीर सिंह बादल ने गृह मंत्री रहते हुए की और परी बरगाड़ी मामले में न्याय नहीं किया। दरअसल, कुछ अराजक तत्त्वों ने बुर्ज जवाहर सिंह वाला (फ़रीदकोट) के गुरुद्वारा साहिब से 1 जून 2015 को श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बीड़ चुराने के मामले और फिर दोबारा अराजक तत्त्वों के द्वारा बरगाड़ी (फ़रीदकोट) के गुरुद्वारा साहिब से 12 अक्टूबर 2015 को श्री गुरु ग्रंथ साहिब के 110 अंग चुराकर बाहर फेंकने के मामले में भी अकाली दल की सरकार ने न इस मामले की जाँच की और न दोषियों को ही कोई सज़ा हुई। गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी की इन दो बड़ी घटनाओं से पंजाब में हालात और भी बिगड़ गये, जिससे कोटकपूरा और बहबल कलां में भी दुखद घटनाएँ हुईं। इसके बावजूद अकाली दल की पंजाब सरकार ने सुमेध सैनी को पंजाब का डीजीपी नियुक्त कर दिया, जिसने पंजाब में फ़र्ज़ी पुलिस मुठभेड़ों को जमकर अंजाम दिया, जिसमें सबसे ज़्यादा एनकाउंटर सिख युवाओं के किये गये। इसके साथ ही पंजाब में आलम सेना का गठन करने वाले पूर्व डीजीपी इजहार आलम की पत्नी को अकाली दल ने मुख्य संसदीय सचिव बना दिया।
बहरहाल, पंजाब की राजनीति का पतन कुछ बादल परिवार की अकाली सरकार और कुछ अमरिंदर सिंह की सरकार में हुआ, बताया जाता है कि उसके पीछे पंजाब में अनैतिक गतिविधियाँ चलाने और पंजाब के ज़्यादातर युवाओं को बर्बाद करने के रास्ते खोलना था। नशे से लेकर बाहरी लोगों को पंजाब में बसाने और उन्हें नक़ली सिख बनाकर उनका ग़लत इस्तेमाल करने जैसे काम जिस प्रकार से अकाली दल सरकार में हुए, उससे सिख धर्म के लोगों का $गुस्सा अकालियों के प्रति बढ़ता चला गया। दरअसल, सिख धर्म का मुख्य मार्ग सर्वत्र की सेवा और सर्वत्र का भला वाला मार्ग है, जिसमें सबसे पहली सीख है- दुखियों की सेवा करना। सिख धर्म के लोग किसी से नफ़रत नहीं करते, बल्कि समता का भाव रखकर हर धर्म की इज़्ज़त करना गुरु ग्रंथ साहिब का हुक्म है। लेकिन इसका मतलब ये कतई नहीं है कि सिख धर्म में कोई बाहरी दख़ल दे या उसकी बेअदबी करे। और पिछले कुछ दशकों में सिख धर्म के साथ ऐसा ही बर्ताव हुआ है, जिसमें आज की नयी राजनीति गुरुद्वारों में मंदिर खोजने तक जा पहुँची है।
दरअसल, पंजाब एक खेती सम्पन्न राज्य है और इस अकेले राज्य में न सिर्फ़ खेती से, बल्कि बाहर से भी बहुत पैसा आता है। सिख परंपरा के मुताबिक, सिख धर्म के लोग गुरुद्वारों में दान के अलावा दूसरों की सेवा को प्राथमिकता देते हैं। उनकी सेवा बिना किसी भेदभाव के हर धर्म के लोगों के लिए समान रूप से चलती है, यही वजह है कि गुरुद्वारों के दरवाज़े हर किसी के लिए खुले रहते हैं। सिखों के पहले धर्मगुरु गुरु नानक देव से लेकर उनके आख़िरी और 10वें धर्मगुरु गुरु गोबिंद सिंह तक सभी ने परसेवा और समाज सुधार को प्राथमिकता दी। लेकिन अकाली दल की सत्ता आने के बाद पंजाब में सिख गुरुओं की परंपरा के ख़िलाफ़ न सिर्फ़ राजनीतिक लोगों ने काम किया, बल्कि पंजाब की तरक़्क़ी को भी रोकने का काम किया। आज खेती की सबसे अच्छी ज़मीन होने और केरल के अलावा सबसे ज़्यादा विदेशी धन लाने वाला राज्य होने के बावजूद पंजाब न सिर्फ़ बड़े क़र्ज़ में डूबा हुआ है, बल्कि कई मायनों में पिछड़ा हुआ भी है, जिसके पीछे की वजह लंबे समय से चली आ रही राजनीतिक लूट ही है। अकाली दल की सरकार से लेकर अमरिंदर सिंह की सरकार तक पर पंजाब की बड़ी योजनाओं में घोटालों के आरोप भी लगे, जिसमें सितंबर 2008 में बनी पंजाब की अकाली दल और भाजपा के गठबंधन वाली सरकार में अमृतसर इंप्रूवमेंट ट्रस्ट से सम्बन्धित भूमि के हस्तांतरण मामले में अनियमितताएँ सामने आयीं। हालाँकि इसके बाद अकाल दल के हाथ में पंजाब की सत्ता आज तक नहीं आ सकी और लोगों में भी अकाली दल के प्रति एक असम्मान की भावना बनी, जिसके चलते बादल परिवार का राजनीतिक स्वर्णिम काल समाप्त हुआ। 11 मार्च, 2017 को कांग्रेस पार्टी ने अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में पंजाब विधानसभा का चुनाव जीता। लेकिन मुख्यमंत्री बनने के बाद अमरिंदर सिंह ने भी अकाली दल से मिलती-जुलती राजनीति की। इससे नाराज़ पंजाब की जनता ने अमरिंदर सिंह को भी नकारना शुरू कर दिया और आख़िर में कांग्रेस ने पार्टी में उनका क़द कम करते हुए नवजोत सिंह सिद्धू को पंजाब में पार्टी अध्यक्ष बना दिया, जिसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने क़रीब सात पन्ने का इस्तीफ़ा उस समय की कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को लिखा और पंजाब लोक कांग्रेस नाम की अपनी एक अलग पार्टी भाजपा को समर्थन देने की घोषणा करते हुए बना ली।