*हर वर्ष विश्व युद्ध की आशंका व्यक्त की जाती है। २०२५ कुछ खास है।
**थिएटर रेडी है, जानें कब विश्व युद्ध का तीसरा सीक्वल रिलीज होगा
बृज खंडेलवाल द्वारा
“नानू, अनुमान लगाओ कि चौथा विश्व युद्ध कब शुरू होगा?
कोई संभावना नहीं है प्रिय वीर! आने वाला विश्व युद्ध किसी को भी जीवित नहीं छोड़ेगा, जिससे तीसरा सीक्वल बन सके।”
वास्तव में, तीसरे विश्व युद्ध की संभावनाएँ, – मानवता का पसंदीदा खेल ! यह किसी मूवी फ़्रैंचाइज़ के खराब रीबूट की तरह है: वही कथानक (सत्ता संघर्ष), नए विशेष प्रभाव (एआई ड्रोन और साइबर हमले), और पात्रों की एक और भी बदतर कास्ट।
मज़ाक को छोड़ दें, तो शराब पार्टियों के बीच चर्चा का वर्तमान विषय यह है कि क्या 2025 में आखिरकार ख़तरनाक तीसरा विश्व युद्ध छिड़ जाएगा या अभी लंबा इंतेज़ार करना होगा।
2025 के लिए सबसे भयावह भविष्यवाणियों में से, सबसे ख़तरनाक तीसरे विश्व युद्ध का भूत है। बहुत लोगों को डर है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प इसमें एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
विश्व युद्ध की संभावनाओं की भविष्यवाणी करना जटिल है। संभावित रूप से बड़े पैमाने पर संघर्ष को ट्रिगर करने वाले कारकों में शामिल हैं: यू.एस., चीन और रूस जैसी प्रमुख शक्तियों के बीच बढ़ते विवाद संघर्ष की संभावना, क्षेत्रीय विवाद, विशेष रूप से दक्षिण चीन सागर या पूर्वी यूरोप जैसे क्षेत्रों में, महत्वपूर्ण जोखिम पैदा करते हैं; नाटो जैसे मौजूदा गठबंधन, एक सदस्य राज्य पर हमला होने पर व्यापक संघर्ष का कारण बन सकते हैं। इसके विपरीत, अनौपचारिक गठबंधन भी तनाव बढ़ा सकते हैं; पानी, ऊर्जा और भोजन जैसे संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्धा संघर्ष का कारण बन सकती है, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जो पहले से ही अस्थिरता का शिकार हैं; बढ़ते साइबर हमले और डिजिटल युद्ध के कारण जवाबी कार्रवाई हो सकती है, जो सैन्य कार्रवाइयों तक बढ़ सकती है; विभिन्न देशों में बढ़ती आतंकवादी घटनाएं, उग्र राष्ट्रवादी भावनाओं के कारण कथित खतरों के खिलाफ आक्रामक विदेश नीतियां या सैन्य कार्रवाई हो सकती है; आर्थिक अस्थिरता देशों को ध्यान भटकाने या एक आम दुश्मन के खिलाफ जनता को एकजुट करने के साधन के रूप में संघर्ष में शामिल होने के लिए प्रेरित कर सकती है; अप्रत्याशित घटनाएं, जैसे क्षेत्रीय विवाद बढ़ना, सैन्य टकराव या हत्याएं, तनाव को तेजी से बढ़ा सकती हैं।
जबकि विश्व युद्ध की संभावना को मापना मुश्किल है, अंतरराष्ट्रीय समुदाय के कूटनीतिक प्रयास, आर्थिक परस्पर निर्भरता और आधुनिक संचार ऐसे संघर्षों को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जनवरी 2025 में, एशिया कई भू-राजनीतिक तनावों का सामना कर रहा है जो क्षेत्रीय स्थिरता को प्रभावित कर सकते हैं। चिंता के प्रमुख क्षेत्रों में शामिल हैं: चीन और ताइवान के बीच बढ़ता तनाव, दोनों पक्षों की ओर से सैन्य गतिविधियाँ और मुखर बयानबाजी बढ़ गई है। ताइवान के पास चीन के सैन्य निर्माण और अभ्यास ने संभावित संघर्ष के बारे में चिंताएँ बढ़ा दी हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका ने ताइवान के साथ सैन्य आदान-प्रदान बढ़ा दिया है, और अमेरिकी सैन्य जहाज़ उच्च आवृत्ति पर ताइवान जलडमरूमध्य से गुज़रे हैं, जिससे संबंध और भी तनावपूर्ण हो गए हैं।
दक्षिण चीन सागर में क्षेत्रीय दावों को लेकर विवाद चीन, फिलीपींस, वियतनाम और अन्य दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के बीच घर्षण पैदा करते रहते हैं। चीन द्वारा सैन्य सुविधाओं का निर्माण और विवादित रीफ़ पर काउंटर-स्टील्थ रडार सिस्टम की तैनाती ने क्षेत्रीय तनाव को बढ़ा दिया है इसके अतिरिक्त, यूक्रेन संघर्ष में रूस का समर्थन करने के लिए उत्तर कोरिया द्वारा सैनिकों की कथित तैनाती ने क्षेत्रीय गतिशीलता को जटिल बना दिया है। 2025 में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की व्हाइट हाउस में वापसी ने अमेरिकी विदेश नीति में अनिश्चितताओं को जन्म दिया है। उनके प्रशासन का ‘युद्धों को समाप्त करने’ पर ध्यान केंद्रित करना और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के लिए लेन-देन का दृष्टिकोण अपनाना एशियाई संघर्षों में अमेरिकी भागीदारी को प्रभावित कर सकता है, विशेष रूप से चीन और ताइवान से संबंधित। उधर नॉर्थ कोरिया भी समय समय पर उकसाने वाली कार्यवाही कर रहा है। जिओ पॉलिटिकल तनाव एशिया में आर्थिक स्थिरता को प्रभावित कर रहे हैं। चीन और दक्षिण कोरिया जैसे देशों में इंजीनियरिंग क्षेत्रों में कमजोरी के संकेत मिले हैं, आंशिक रूप से अमेरिकी टैरिफ नीतियों से जुड़ी व्यापार अनिश्चितताओं के कारण। चीन की आर्थिक सुधार सुस्त बनी हुई है, जिससे क्षेत्रीय आर्थिक चिंताएँ बढ़ रही हैं। इसके अलावा, यूक्रेन और रूस के बीच संघर्ष, पश्चिम एशिया में संकट, जिसमें इज़राइल, फिलिस्तीन, सीरिया, ईरान शामिल हैं, बड़े क्षेत्रों को विनाशकारी क्रोध में झोंकने की धमकी देते हैं। दक्षिणपंथी उग्रवादियों द्वारा शेख हसीना को अपदस्थ करने के बाद भारतीय उपमहाद्वीप भी एक नया हॉट स्पॉट बन गया है, जिससे उथल-पुथल और अनिश्चितता पैदा हुई है। म्यांमार की सीमा पर भी सैन्य जुंटा, बौद्ध उग्रवादी संगठन और रोहिंग्याओं के बीच लगातार संघर्ष के दृश्य देखे जा रहे हैं। अभी दुनिया के सभी क्षेत्र समस्याओं और हॉट स्पॉट से ग्रसित हैं।
विश्व को प्रलयकारी भट्टी में झोंकने के लिए सिर्फ एक पागल अहंकारी शासक की जरूरत है जो एआई नियंत्रित परमाणु हथियारों के ट्रिगर को सभी दिशाओं में दबा सके। चंद घंटों में पृथ्वीवासी गोलोकधाम के द्वारों पर क्यू में लगे दिखेंगे।
किसानों की ओर केंद्र सरकार का ध्यान खींचने के लिए किसान नेता डल्लेवाल ने लगा दी जान की बाज़ी
योगेश
किसान आन्दोलन अब उस मोड़ पर है, जहाँ से किसानों को यह निर्णय लेना है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य और दूसरी जायज़ माँगों को लेकर उनकी लड़ाई कितनी मज़बूत है। पंजाब के किसान पूरे देश के लिए किसान आन्दोलन को मज़बूत करने के लिए 2020 से लगातार किसानों की लड़ाई लड़ रहे हैं। लेकिन किसानों का आन्दोलन संयुक्त किसान मोर्चा (ग़ैर-राजनीतिक) के 70 वर्षीय किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल के बिगड़ते स्वास्थ्य को लेकर संवेदनशील मोड़ पर है। किसानों का कहना है कि अगर उनके नेता को कुछ हुआ, तो पूरे देश में बड़ा आन्दोलन होगा। हालाँकि इस किसान आन्दोलन को बड़ा आन्दोलन बनने में सबसे बड़ी अड़चन पूरे देश के किसानों में जागरूकता की कमी है। लेकिन देश के सभी जागरूक किसान अपने नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल के स्वास्थ्य को लेकर जितने चिन्तित हैं, उतने ही सरकार से नाराज़ भी हैं।
26 नवंबर से पंजाब-हरियाणा के बीच खनोरी बॉर्डर पर अनिश्चितकालीन आमरण अनशन पर बैठे किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल लगातार डॉक्टरों की निगरानी में हैं। उन्होंने किसानों को न्याय न मिलने तक अन्न-जल का त्याग कर दिया है, जबकि वह प्रोटेस्ट कैंसर से पीड़ित हैं। उनके स्वास्थ्य को लेकर केंद्र सरकार पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा है, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने उनके स्वास्थ्य की रिपोर्ट भी पिछले दिनों माँगी थी। पंजाब सरकार से किसान नेता के स्वास्थ्य का ध्यान रखने को भी कहा था। इसके अलावा जज सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली बेंच ने किसानों के मुद्दे को लेकर अगली सुनवाई की तारीख़ 02 जनवरी दी है। सुप्रीम कोर्ट की इस बेंच ने पंजाब के मुख्य सचिव और मेडिकल बोर्ड के अध्यक्ष से स्टेटस रिपोर्ट दाख़िल करने को कहा है और यह भी कहा कि अगली सुनवाई से पहले भी अगर ज़रूरत हो, तो कोई भी पक्ष कोर्ट आ सकता है। हालाँकि अभी तक कोई पक्ष सुप्रीम कोर्ट नहीं गया है। फ़िलहाल 02 जनवरी को सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर सबकी नज़र है।
इधर किसान नेता जगतीत सिंह ने अपने बिगड़ते स्वास्थ्य के चलते किसान नेता ने पिछले दिनों अपनी सारी संपत्ति भी अपने बच्चों के नाम कर दी थी। ज़्यादातर लोग उनके प्राणों को संकट में मान रहे हैं। कई किसान और लोग वाले लोग किसान नेता डल्लेवाल जी से अनशन तोड़ने की भी गुज़ारिश कर चुके हैं; लेकिन डल्लेवाल जी ने किसानों को न्याय दिलाने के लिए अनशन तोड़ने से मना कर दिया। अब वह लगातार डॉक्टरों की निगरानी में हैं। डॉक्टरों का कहना है कि अनशन के चलते उनके प्राण संकट में हैं।
बता दें कि 2020 में तीन कृषि क़ानून किसानों के ख़िलाफ़ लाकर केंद्र सरकार ने ही किसानों को आन्दोलन के लिए मजबूर किया था। इससे किसान आन्दोलन करने लगे। लेकिन इस आन्दोलन में किसानों पर हमले किये गये। जब किसान दिल्ली की तरफ़ बढ़े, तो उन्हें दिल्ली के सभी बॉर्डरों पर रोकने के लिए हाईवे खोदे गये, बड़ी-बड़ी कीलें लगायी गयीं और बैरिकेडिंग की गयी। किसानों पर झूठे मुक़दमे दर्ज किये गये। कई जगह किसानों की हत्या के षड्यंत्र भी किये गये, जिसमें कई किसान मारे गये। इस पर भी जब किसानों ने पीछे हटने से मना कर दिया, तब केंद्र सरकार ने किसानों का आन्दोलन समाप्त कराने की नीयत से उन्हें आश्वासन दिया कि उनकी एमएसपी समेत सभी माँगें पूरी की जाएँगी।
केंद्र सरकार के झाँसे में आकर किसानों ने यह कहकर आन्दोलन स्थगित कर दिया कि अगर सरकार ने उनकी माँगों को पूरा नहीं किया, तो वे फिर से सड़कों पर उतरकर आन्दोलन करेंगे। लेकिन केंद्र सरकार का आश्वासन किसानों के साथ एक धोखा साबित हुआ है और इसी को लेकर पंजाब और हरियाणा के जागरूक किसान आन्दोलन स्थगित होने के कुछ ही महीने बाद फिर से आन्दोलन करने लगे और आज भी यह आन्दोलन जारी है। हरियाणा पुलिस ने तो किसानों को दिल्ली तक पहुँचने से रोकने के लिए आँसू गैस, रबड़ की गोलियाँ, पानी की बौछार और अन्य घातक हथियारों तक का इस्तेमाल किया है। हरियाणा पुलिस ने सिंघु और खनोरी बॉर्डर पर किसानों पर ख़तरनाक स्प्रे भी की है। हरियाणा पुलिस की कार्रवाई में इस साल ही कई किसानों की मौत हुई है और कई दज़र्न किसान बुरी तरह घायल हुए हैं। अब इस आन्दोलन में ही फ़रीदकोट के रहने वाले भारतीय किसान यूनियन (एकता सिद्धूपुर – ग़ैर राजनीतिक) के किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल लगातार किसानों के लिए सड़कों पर हैं। जब उन्हें लगा कि सरकार किसानों की कोई बात सुनने तक को तैयार नहीं है, तो उन्होंने 26 नवंबर से अनिश्चितकालीन आमरण अनशन पर बैठने का निर्णय ले लिया। उनकी तबीयत बिगड़ती जा रही है, जिससे किसान परेशान हैं।
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने 92 साल की उम्र में 26 दिसंबर 2024 की रात 9 बजकर 51 मिनट पर इस दुनिया को छोड़ दिया। तबीयत ख़राब होने की वजह से उन्हें दिल्ली के एम्स अस्पताल में उस दिन रात 8:00 बजे के क़रीब भर्ती कराया गया था। पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के देहांत के बाद देश के अलावा पूरी दुनिया से शोक संदेश आये और बड़ी संख्या में लोगों को उनके किये गये अच्छे काम और दुनिया भर में छाई मंदी के दौरान जब भारत के पास महज़ 15 दिन का पैसा बचा था और आर्थिक मामलों में देश दुनिया में बहुत पीछे खड़ा था, तब उन्होंने भारत की बाग़डोर सँभालकर न सिर्फ़ आर्थिक रूप से मज़बूत करके दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी ताक़त बनाया था, बल्कि देश में विकास भी ख़ूब किया। लेकिन उन्हीं पढ़े-लिखे प्रधानमंत्री को साल 2014 में सत्ता परिवर्तन के बाद प्रधानमंत्री बने नरेंद्र मोदी ने कभी मौन मोहन सिंह कहा, तो कभी रेन कोट पहनकर नहाने वाला प्रधानमंत्री कहा। आज भारत जिस आर्थिक संकट और महँगाई से गुज़र रहा है, वो यह साफ़ करता है कि एक पढ़े-लिखे अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और आज के डींगें हाँकने वाले 56 इंची छाती का दावा करने वाले घुमक्कड़ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में क्या अंतर है? इसे लेकर अब देश-विदेश में चर्चा भी हो रही है।
आज न सिर्फ़ बैंकों में आर्थिक संकट है, बल्कि देश पर चार गुने से ज़्यादा क़र्ज़ पिछले 10 वर्षों में हो चुका है। डॉलर के मुक़ाबले रुपया भी जितनी तेज़ी से कमज़ोर हुआ है और जितनी तेज़ी से बेरोज़गारी और महँगाई बढ़ रही हैं, वो सब चीज़ें उन्हीं मौन मोहन सिंह जैसे प्रधानमंत्री को याद करने को लोगों को मजबूर कर रही हैं। हालाँकि ये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शब्द हैं। लोगों की नज़र में तो पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के लिए एक सम्मान है, जो हमेशा रहेगा। क्योंकि उनके समय में भारत की जनता जितनी सुखी थी, उतनी आज किसी भी एंगल से नहीं दिखती। आज एक भी क्षेत्र ऐसा नहीं दिखायी देता, जिसमें मोदी सरकार ने मनमोहन सिंह सरकार से ज़्यादा अच्छा काम किया हो। फिर भी अपनी पूर्ववर्ती सरकारों को पानी पी-पीकर कोसने वाले देश के पहले और इकलौते प्रधानमंत्री मोदी डींगें हाँकने में पीछे नहीं हैं।
साल 2004 में एनडीए की अटल सरकार के कार्यकाल पूरे होने पर लोकसभा चुनाव जीतकर यूपीए सरकार बनने पर उस समय की कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने अर्थशास्त्री डॉ. मनमोहन सिंह को देश का प्रधानमंत्री पद सँभालने का न्योता दिया और उन्होंने पूरे 10 साल जून, 2014 तक प्रधानमंत्री के रूप में देश की सेवा की। अपनी सादगी और गंभीर सोच के लिए पहचाने जाने वाले डॉ. मनमोहन सिंह ने अपने प्रधानमंत्री के इस दो पंचवर्षीय कार्यकालों के दौरान 100 से ज़्यादा प्रेस कॉन्फ्रेंस कीं। उनकी गिनती न सिर्फ़ भारत के जाने-माने अर्थशास्त्रियों में होती है, बल्कि उनका लोहा पूरी दुनिया मानती थी। वे कभी किसी विदेशी प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति के जबरन गले नहीं पड़े; लेकिन उनका सम्मान पूरी दुनिया में होता था। प्रधानमंत्री बनने से पहले डॉ. मनमोहन सिंह वित्त मंत्रालय के आर्थिक सलाहकार, वित्त सचिव और देश के सबसे बड़े केंद्रीय बैंक भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर जैसे महत्त्वपूर्ण पदों पर रहकर देश की सेवा कर चुके थे। वे आरबीआई के 15वें गवर्नर थे। शान्त, विनम्र और गंभीर स्वभाव के प्रधानमंत्री के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले डॉ. मनमोहन सिंह इतने समझदार थे कि उन्हें कभी डींगें हाँकते या ग़ुस्सा करते हुए नहीं देखा गया। ईमानदारी के मामले में भी वे लाल बहादुर शास्त्री जैसे प्रधानमंत्री और डॉ. अब्दुल कलाम जैसे राष्ट्रपति की क़तार में खड़े दिखते हैं। प्रधानमंत्री रहते हुए भी उनकी संपत्ति में सरकारी पेंशन और तनख़्वाह के अलावा कोई अतिरिक्त बढ़ोतरी नहीं देखी गयी। साल 2013 में प्रधानमंत्री के तौर पर डॉ. मनमोहन सिंह ने अपनी संपत्ति का एक हलफ़नामे में ख़ुलासा करते हुए बताया था कि उनके पास दो घर (दिल्ली और चंडीगढ़), क़रीब 3.46 करोड़ रुपये बैंक बैलेंस, 150.80 ग्राम सोना और एक मारुति कार 800 उस समय थी। उनकी दी गयी जानकारी के मुताबिक, उनकी नेट बर्थ महज़ 15 करोड़ 77 लाख रुपये के आसपास थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भले ही उन्हें मौन मोहन सिंह और रेनकोट पहनकर नहाने वाला प्रधानमंत्री कहा; लेकिन आज तक डॉ. मनमोहन सिंह पर न तो किसी प्रकार के भ्रष्टाचार का आरोप लग सका और न ही उनके ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार सम्बन्धी कोई शिकायत या टिप्पणी कोई कर सका। इसके पीछे न सिर्फ़ उनकी ईमानदारी थी, बल्कि उनका सरल और देश को तरक़्क़ी देने वाला स्वभाव था।
साल 2004 से साल 2014 तक डॉ. मनमोहन सिंह भारत के प्रधानमंत्री रहे, और उनकी पहचान एक ईमानदार, चिंतक, दूरदर्शी, समझदार प्रधानमंत्री के रूप में दुनिया भर में स्थापित हुई। अपने विरोधियों के भला-बुरा कहने, आलोचना होने और मीडिया के सवालों पर पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह कभी विचलित नहीं हुए और हर सवाल का जवाब उन्होंने देश को दिया। देश हित में वेलफेयर प्रोग्राम की शुरुआत करने वाले वे पहले प्रधानमंत्री बने। इन प्रोग्राम्स में नेशनल रूरल इंप्लाइमेंट गारंटी एक्ट (नरेगा) और राइट टू इनफार्मेशन एक्ट (सूचना का अधिकार) जैसे महत्त्वपूर्ण प्रोग्राम शामिल हैं। उनकी सोच शहरों की तरह गाँव के लोगों को गाँव में ही रोज़गार देने के प्रयास की रही, जिससे शहरों में भीड़ न बढ़े और निम्न स्तर पर गुज़र-बसर करने वाले मज़दूरों को भी कम-से-कम 100 दिन का सरकारी कामों में रोज़गार मिल सके। उनकी सरकार ने मनरेगा के ज़रिये ग़रीबों को सशक्त करने और गवर्नेंस को बेहतर बनाने पर काम किया। आज उनकी तारीफ़ न सिर्फ़ भारत के मित्र देशों, बल्कि भारत के दुश्मन देशों के नेता भी करके उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं। इमरान ख़ान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ के नेता फ़वाद चौधरी ने तो अपने एक्स के सोशल अकाउंट पर लिखा है कि ‘डॉ. मनमोहन सिंह के निधन के बारे में सुनकर दुख हुआ। भारत आज जिस आर्थिक स्थिरता का आनंद ले रहा है, वह काफ़ी हद तक उनकी दूरदर्शी नीतियों के कारण है। उनका जन्म झेलम के गाह गाँव में हुआ, जो अब पंजाब (पाकिस्तान) के चकवाल में पड़ता है। झेलम के बेटे डॉ. सिंह इस क्षेत्र के लोगों के लिए एक प्रेरणा की तरह है।
बता दें कि डॉ. मनमोहन सिंह का जन्म 26 सितंबर, 1932 को अंग्रेजी हुकूमत के समय अविभाजित भारत के पंजाब राज्य के गाह गाँव में हुआ था, जो अगस्त, 1947 के भारत विभाजन के दौरान पाकिस्तान के हिस्से में चला गया। मनमोहन सिंह की प्रारंभिक शिक्षा उनके गाँव में ही हुई। अपने घर से सम्पन्न मनमोहन सिंह की बाद की पूरी उच्च शिक्षा प्रतिष्ठित कैम्ब्रिज और ऑक्सफोर्ड जैसी यूनिवर्सिटीज में हुई। साल 1991 में जब भारत गंभीर आर्थिक संकट से गुज़र रहा था, तब डॉ. मनमोहन सिंह ने भारतीय अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने के लिए उदारीकरण की दिशा में कई ऐतिहासिक क़दम उठाये। इसी तरह उनके प्रधानमंत्री के कार्यकाल के दौरान भारत दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थ-व्यवस्थाओं में शामिल हुआ। उनकी विदेश नीति और विदेश व्यापार नीति इतनी जबरदस्त थी कि उनके कार्यकाल में भारत ने दुनिया में कई नये आयाम स्थापित किये। इसी तरह शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास में भी उनकी दूरदर्शी सोच का मुक़ाबला उनके बाद की केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नहीं कर सके। पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की ईमानदारी, दूरदर्शिता, उनकी नीतियाँ और उनके नेतृत्व की क्षमता भारतीय राजनीति में उनकी एक अलग पहचान बनाती हैं। उनके समय में भारत के पाकिस्तान से विवाद कम हुए थे। चीन की भी उनके शासनकाल में भारतीय सीमा में घुसने की कभी हिम्मत नहीं हो सकी।
अपने कार्यकाल के दौरान साल 2009 में प्रधानमंत्री रहते हुए जब डॉ. मनमोहन सिंह गंभीर रूप से बीमार हुए और दिल्ली के एम्स में उन्हें भर्ती कराया गया, तब उनकी क़रीब 10-12 घंटे की लंबी कोरोनरी बाईपास सर्जरी हुई थी। उस समय डॉ. मनमोहन सिंह की सर्जरी करने वाले वरिष्ठ कार्डियक सर्जन डॉ. रमाकांत पांडा ने हाल ही में पूर्व प्रधानमंत्री के परलोक सिधारने पर एक चैनल पर दिये साक्षात्कार में बताया है कि इतनी लंबी सर्जरी के बाद जब डॉ. मनमोहन सिंह को होश आया, तो सबसे पहले उन्होंने अपनी सेहत को लेकर नहीं, बल्कि देश और कश्मीर की ख़ैरियत को लेकर पूछा था। जब उनकी साँस लेने वाली पहली नली निकाली गयी, जिससे वह बात कर सकें, तो उन्होंने मुझसे सबसे पहले यही पूछा कि मेरा देश कैसा है? कश्मीर कैसा है? मैंने कहा कि लेकिन आपने मुझसे अपनी सर्जरी के बारे में कुछ नहीं पूछा? तो उनका जवाब था कि मुझे सर्जरी की चिन्ता नहीं है। मुझे अपने देश की ज़्यादा चिन्ता है। वरिष्ठ सर्जन डॉ. रमाकांत पांडे ने बताया कि जब सर्जरी हो गयी थी, उसके बाद डॉ. मनमोहन सिंह जाँच के लिए एम्स जाते थे, तो हम उन्हें लेने गेट पर जाते थे। लेकिन वह हमेशा हमसे ऐसा करने को बड़ी विनम्रता से मना करते थे। डॉ. रमाकांत ने यहाँ तक कहा है कि वे (डॉ. मनमोहन सिंह) एक महान् इंसान, विनम्र व्यक्ति और देशभक्त थे। वह मेरे आदर्श थे।
पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को भारत के आर्थिक सुधारों का वास्तुकार कहा जाता है। एनडीए की सरकार में प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेई के पाँच साल के शासन के बाद पूरे 10 साल तक वह देश के प्रधानमंत्री रहे; लेकिन कभी किसी कंट्रोवर्सी में नहीं फँसे और न ही जनता में उनकी निंदा इस क़दर हुई कि वह आलोचना के पात्र बन सकें। उनके बयानों में भी कभी कोई कंट्रोवर्सी रही और न ही उन्होंने कभी अपनी पूर्ववर्ती सरकारों को कोसा। उन्हें जहाँ से देश की बाग़डोर मिली, वहीं से अपनी ज़िम्मेदारी सँभालते हुए देश को आगे बढ़ाया और एक दूरदर्शी प्रधानमंत्री की तरह उतनी ही विदेश यात्राएँ कीं, जितनी देश के कामों के लिए ज़रूरी थीं। पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने कभी भी भारत या किसी अन्य देश में जाकर न ही अपने चहेते लोगों को ठेके दिलाने का काम किया और न ही किसी पूँजीपति से कोई दोस्ती का रिश्ता रखा। अपने रिश्तेदारों और सहयोगियों की भी मदद भी उन्होंने कभी अपने पद की गरिमा तार-तार करके नहीं की। अन्ना हजारे के आन्दोलन में जिस प्रकार से उनके नेतृत्व वाली यूपीए सरकार, ख़ासकर कांग्रेस पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे; डॉ. मनमोहन सिंह का उससे दूर-दूर तक कोई नाता नहीं दिखा। ऐसे महान् भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के न रहने पर उन्हें आज सिर्फ़ भारत के समर्थक और विरोधी नेताओं के साथ-साथ देश की जनता ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया भावभीनी श्रद्धांजलि देकर याद कर रही है। वह हमेशा हमें एक अच्छे प्रधानमंत्री के रूप में याद रहेंगे और इस बात की प्रेरणा हर उस देश भक्त अच्छे नागरिक को दिलाते रहेंगे कि देश हित में काम किस तरह से ख़ामोशी से किया जाता है। अलविदा डॉ. मनमोहन सिंह!
बनारस अथवा वाराणसी अब पहले जैसा नहीं रहा। हालत बहुत बदल गये हैं। ढाँचागत विकास के साथ-साथ इस प्राचीन शहर की दशा और दिशा में भी परिवर्तन हुआ है। हैदराबाद से बनारस घूमने पहुँचे श्रीनिवास और बसंता, दिल्ली से पहुँचे ललिता और शशि बंसल तो ऐसा ही बताते हैं। अस्सी घाट से लेकर दशाश्वमेध घाट पर होने वाली गंगा आरती देखने के लिए मेरे साथ वे भी क्रूज पर सवार थे। इसके अलावा जिन लोगों ने ख़ासकर महिलाओं ने इस शहर में ही अपनी आँखें खोलीं और काशी में ही अपनी पूरी ज़िन्दगी बितायी, उनकी मानें तो बनारस का ऐसा कायाकल्प हो जाएगा, इसकी कल्पना भी नहीं की थी।
नया विकास बहुत ख़ूबसूरत है। मेरी तो आँख यही खुली और शहर में ही सारी ज़िन्दगी काटी है। श्रीमती शोभा नूर अवस्थी कहती हैं कि लड़कियों के लिए शाम के समय चलना बहुत मुश्किल था। रात में तो सोच भी नहीं सकते थे। सड़कें बहुत ख़राब थीं। गलियों में चलने पर लड़के बहुत परेशान करते थे। गलियों में लाइट तक नहीं होती थी। पानी का कोई भरोसा नहीं था। यानी कि बहुत-ही ख़राब हालत में था यह शहर। बनारस इतना सुंदर हो जाएगा, यह सोचा भी नहीं था। इतनी सफ़ाई हो गयी। गलियों में हर जगह बल्ब दिखायी देते हैं। अब पानी भी आता है, लाइट भी आती है। पहले एसी चलाकर छोड़ देते थे कि जब लाइट आएगी, कमरा ठंडा हो जाएगा। लेकिन अब पता है कि लाइट है। हमारी मिक्सी चलेगी, हमारा ओवन चलेगा और गीजर चलेगा। अब आप आधी रात में भी घूमने निकल सकती हैं। इस शहर में महिलाओं ने बहुत अव्यथाएँ झेली हैं। शहर के इस कायाकल्प के लिए बहुत सारी महिलाएँ प्रधानमंत्री का विजन तो मानती ही हैं; लेकिन उनका कहना है कि योगी आदित्यनाथ ने इसे बहुत अच्छे-से निभाया है।
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान विभाग की प्रोफेसर उर्मिला रानी श्रीवास्तव बनारस की पहचान के लिए इसकी गलियाँ, लज़ीज़ व्यंजन, हो रही तरक़्क़ी को बनारस की पहचान मानती हैं। उनका कहना है कि मेरा जन्म तो बनारस में ही हुआ। इसलिए इस शहर से काफ़ी गहरा रिश्ता है। बनारस शंकर भगवान के त्रिशूल पर स्थित है। उनका कहना है कि देश विदेश में कहीं भी चले जाओ, बनारसी अंदाज़ आपको कहीं नहीं मिलेगा। बनारस में लोग सहयोगी हैं, बहुत प्यार से बोलते हैं। बनारसी अंदाज़ जैसे कंधे पर हाथ रखकर बात करना, गले लगा लेना। विकास तो इतनी तेज़ी से हुआ है कि जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते थे। ख़ासतौर पर अपराध बहुत कम हुआ है। रात को भी हम लोग निकल पाते हैं। अब आबादी बहुत है। कहीं-न-कहीं अपराध तो हो भी रहा है; लेकिन उसका प्रतिशत काफ़ी कम हुआ है। प्रशासन मज़बूत हुआ है। पुलिस सक्रिय हुई है। यही वजह है कि जो कोई अपराध करता भी है, वह जल्दी पकड़ा भी जाता है। उर्मिला रानी बताती हैं कि पिछले कुछ वर्षों से जातिगत विभेद देखने को मिल रहा है। लेकिन कई समूह ऐसे हैं, जैसे पढ़े-लिखे लोगों के यहाँ कोई जातिगत विभेदन नहीं है। बचपन में तो हम कुछ जाति वग़ैरह जानते ही नहीं थे। हम तो गुरुद्वारा भी गये, चर्च भी गये। हर मज़हब की जो अच्छाइयाँ हैं, उनकी तह-ए-दिल से इज़्ज़त करते हैं। ईश्वर तो एक ही है।
बनारस के लोगों की मानें, तो शहर में काफ़ी बदलाव देखने को मिल रहा है। लेकिन बनारस कैंट से जब बाबा विश्वनाथ मंदिर की ओर जाते हैं, तो सड़कों पर ट्रैफिक जाम की समस्या बहुत परेशान करने वाली है। भीड़ में चलना बहुत मुश्किल है। काल भैरव मंदिर के बाहर लोगों की भीड़ परेशान करने वाली है और मंदिर के अंदर तो ऐसी अव्यवस्था थी कि धक्का-मुक्की वाली नौबत देखी गयी, बल्कि कई महिलाएँ और वृद्ध गिरते देखे गये।
सन् 2014 में जब गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी लोकसभा चुनाव जीतकर देश की सत्ता में प्रधानमंत्री के पद पर आसीन हुए, तो उन्होंने शुरुआती उड़ान ऑस्ट्रेलिया के लिए भरी। यह हवाई जहाज़ सीधे ऑस्ट्रेलिया के ब्रिस्बेन हवाई अड्डे पर उतरा। यह उड़ान देश की सत्ता द्वारा किसी प्रधानमंत्री के लिए मुहैया कराये जाने वाले हवाई जहाज़ या वायु सेना के किसी अति सुरक्षित हवाई जहाज़ की नहीं थी, बल्कि अडाणी के निजी हवाई जहाज़ की थी। देश के किसी प्रधानमंत्री ने पहली बार किसी उद्योगपति के निजी हवाई जहाज़ से विदेश यात्रा की पहली उड़ान भरी थी। इस हवाई जहाज़ में अकेले प्रधानमंत्री मोदी नहीं थे, बल्कि उनके परम् मित्र गौतम अडाणी और कुछ विश्वसनीय लोग थे। हालाँकि नरेंद्र मोदी ने सन् 2014 के लोकसभा चुनाव में गौतम अडाणी के निजी हवाई जहाज़ से ही प्रचार प्रसार के लिए हवाई यात्राएँ की थीं। हालाँकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा गौतम अडाणी के निजी जहाज़ का इस्तेमाल करने को लेकर जब सवाल उठे, तो अडाणी ने पत्रकारों को स्पष्टीकरण दिया कि उनके चार्टर्ड प्लेन के इस्तेमाल के बदले भाजपा ने उनकी कम्पनी को किराया दिया था। अब उनकी यह बात कितनी सच थी? इसकी कोई जाँच तो हुई नहीं; लेकिन बात कुछ हज़म नहीं हुई।
ख़ैर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऑस्ट्रेलिया गये क्यों थे? यह सवाल अभी तक अनसुलझा है। लेकिन इसके जवाब में कुछ तथ्य उजागर हुए, जिनमें सबसे पहला और ठोस तथ्य ऑस्ट्रेलिया की कोयला खदानों का ठेका गौतम अडाणी को दिलाने की कोशिश थी, जिसका ऑस्ट्रेलिया में लंबे समय तक विरोध भी हुआ। भारत में सवाल उठे कि प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने गौतम अडाणी के निजी हवाई जहाज़ का इस्तेमाल क्यों किया? वह अपनी ऑस्ट्रेलिया की यात्रा पर गौतम अडाणी को लेकर क्यों गये? मोदी देश के कामकाज समझने-सँभालने की बजाय ऑस्ट्रेलिया में अडाणी को कोयला खदानों के ठेके दिलाने क्यों गये?
पिछले दिनों अडाणी पर जिस प्रकार से रिश्वत देकर अमेरिका में ठेके लेने के आरोप के बाद एफआईआर हुई और उसके बाद आस्ट्रेलिया में भी कार्रवाई शुरू हुई है, उसे भारत की केंद्र सरकार ने दबाने का भरसक प्रयास किया है। इससे साफ़ है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने भ्रष्ट दोस्तों को सिर्फ़ पनपने में ही मदद नहीं कर रहे हैं, बल्कि उन्हें बचा भी रहे हैं। ऐसे में दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के आरोप कुछ हद तक तथ्यपरक लगने लगते हैं कि अडाणी के कारोबार में मोदी की हिस्सेदारी है। संसद में जब भी कोई विपक्षी सासंद केंद्र सरकार की कमियों को लेकर कोई टिप्पणी करता है अथवा सवाल पूछता है, तो प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह से लेकर सभी भाजपा सांसदों, मंत्रियों, यहाँ तक कि लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला और राज्यसभा के सभापति एवं उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का चेहरा ही तमतमा उठता है।
विपक्षियों के घेराव पर जो बौखलाहट भाजपाइयों के चेहरे पर दिखती है, वह यूँ ही तो नहीं आ सकती। यह सब स्वाभाविक है। जब किसी ग़लत व्यक्ति को ग़लत कहो अथवा उसके सामने सच बोलो, तो उसे अच्छा नहीं लगता। बिना आग के धुआँ नहीं उठता। विपक्षियों से लेकर ज़्यादातर लोग लगभग हर योजना में घोटालों का आरोप हवा में नहीं लगा सकते। अभी हाल ही में पीएम केयर्स फंड में भी घपले उजागर हो रहे हैं, जिसका हिसाब देने में प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार ने लगातार आनाकानी की है। अब पता चला है कि जिस उद्देश्य से इस फंड में चंदा देने के लिए लोगों से भावनात्मक रूप से मदद करने की अपील गयी थी, उसमें चंदा लेने के लिए दबाव भी बनाया गया। इस फंड में अरबों रुपये जमा हुए। लेकिन इसे पूरा ख़र्च नहीं किया गया। केंद्र सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायालय में पहले ही कह दिया कि यह सरकारी फंड नहीं है। लेकिन ख़ुलासा हुआ है कि सरकारी कम्पनियों से चंदा लिया गया। इतना ही नहीं, इस फंड के प्रमुख प्रधानमंत्री मोदी हैं और अन्य पदाधिकारियों में गृहमंत्री, रक्षामंत्री और वित्तमंत्री हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि सरकार में संवैधानिक पदों पर बैठकर भी निजी तौर पर अरबों रुपये का चंदा लेने का खेल किया गया।
देश में तमाम तरह की समस्याएँ पैदा हो चुकी हैं। क़र्ज़ बढ़ता जा रहा है। रुपया डॉलर के मुक़ाबले गिरता जा रहा है। लेकिन अमृत-काल का सुख भोगा जा रहा है। जनता को विष-काल में धकेलकर भ्रष्टाचारियों का अमृत-काल सुनिश्चित किया जा रहा है। क्यों न किया जाए? जिन लोगों ने सिंहासन पर चढ़ाने के लिए राजनीतिक शतरंज की बिसात पर मनचाहे तरीक़े से गोटियाँ फेंकी थीं, उनका अहसान उतारना भी तो राज-धर्म है। भले ही उसके लिए देश को ही बर्बाद करना पड़े। यही हो भी रहा है। इसलिए देश और जनहित की चिन्ता करने वाले किसी भी व्यक्ति की बात नहीं सुनी जा रही है। पीड़ितों की पीड़ा का अहसास भी किया जा सकता है। उन पर टैक्स का बोझ बढ़ाया जा रहा है, जिससे उन्हें देशभक्ति का सही अर्थ समझ में आ सके। लूट का मायाजाल इसी को कहते हैं, जिसमें लुटने वाले को कुछ भी पता न चले।
महाराष्ट्र में इन दिनों गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा के ख़िलाफ़ लोगों में ग़ुस्से का उबाल है। इससे महाराष्ट्र की राजनीति में भी उबाल देखने को मिल रहा है। लोगों के इस ग़ुस्से की दो बड़ी वजह बन चुकी हैं। पहली वजह है महाराष्ट्र के बीड के मसाजोग गाँव के सरपंच संतोष देशमुख का हत्याकांड और दूसरी वजह है गृहमंत्री अमित शाह के बाबा साहेब अंबेडकर के बारे में बोले गये शब्द, जो संसद में उन्होंने बोले थे। अब दोनों ही घटनाओं ने महाराष्ट्र की जनता को देश के गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा के ख़िलाफ़ तो कर दिया है, मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणनीव की अगुवाई में नवगठित महायुति सरकार के ख़िलाफ़ भी एक माहौल खड़ा कर दिया है।
दोनों मामले इतने तूल पकड़ चुके हैं। गृह मंत्री अमित शाह के ख़िलाफ़ तो मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस कुछ कर नहीं सकते, पर बीड के मसाजोग गाँव के सरपंच संतोष देशमुख के हत्याकांड के आरोपियों के ख़िलाफ़ तो कर ही सकते हैं। पर ऐसा आरोप है कि मुख्यमंत्री इस मामले में लकीर पीटने के अलावा कुछ नहीं कर रहे हैं। उन्होंने सरंपच संतोष देशमुख हत्याकांड मामले में फ़रार आरोपियों की संपत्ति ज़ब्त करने का आदेश सीआईडी के अतिरिक्त महानिदेशक को दिये; पर आरोपियों को पुलिस पकड़ भी नहीं पायी। बाद में राजनीतिक दबाव में आरोपी वाल्मिक कराड ने सरेंडर किया। मुख्यमंत्री फडणवीस ने तो बीड के पुलिस अधीक्षक को सिर्फ़ उन आरोपियों की बंदूकों के लाइसेंस जाँच में पुष्टि होने पर रद्द करने के आदेश दिये थे, जिनके हाथों में वायरल फोटो में बंदूक दिख रही है। होती है, तो उन बंदूकधारियों के बंदूक के लाइसेंस रद्द कर दिये जाएँ। आरोपियों को सज़ा देना और उन्हें दोषी ठहराना पुलिस और न्यायालय का काम है, इसमें मुख्यमंत्री को हस्तक्षेप करके जनता की नज़रों में हीरो बनने की ज़रूरत नहीं है। न्यायालय और पुलिस का यह काम है कि वो मिलकर निष्पक्ष रूप से अपराधियों को सज़ा देने का काम करें। क्योंकि नेताओं के फ़ैसले तो पक्षपात वाले होते हैं। जैसे कि कोई उनकी पार्टी का बंदा ग़लत करता है, तो उसके किये पर पर्दा डालते हैं और कोई दूसरा बंदा ग़लत काम करता है, तो उसका कहीं एनकाउंटर करवा देते हैं और कहीं उसके घर पर बुलडोज़र चलवा देते हैं। अगर वो ऐसा करना भी चाहते हैं, तो उन्हें सभी ग़लत बंदों पर एक जैसी ही कार्रवाई करनी चाहिए। पर इसमें किसी अपराधी के घर वालों को सज़ा भी नहीं दी जा सकती, जब तक कि उसके परिवार वाले उस अपराध में शामिल न हों।
महाराष्ट्र के बीड के मसाजोग गाँव के सरपंच संतोष देशमुख की जो निर्मम हत्या हुई है, वो बहुत ग़लत हुई है, क्योंकि देशमुख के बारे में कहा जाता है कि वह बहुत-ही नेकदिल इंसान थे और सबकी मदद करते थे। उनके अच्छे व्यवहार और मददगार होने के चलते आज लोग उनके हत्यारों को सज़ा दिलाने की माँग कर रहे हैं। विपक्षी गठबंधन महाविकास अघाड़ी के साथ ही कुछ छोटी पार्टियों और स्थानीय लोगों ने भी सरपंच संतोष देशमुख के हत्यारों को सज़ा दिलाने की माँग करते हुए 28 दिसंबर को बीड में एक बड़ी रैली निकाली थी। विपक्ष का आरोप है कि संतोष देशमुख हत्याकांड में ख़ुद भाजपा की अगुवाई वाले महायुति गठबंधन के नेता धनंजय मुंडे के लोग शामिल हैं। इसलिए धनंजय मुंडे, उसके बंदों और महायुति के उन नेताओं के ख़िलाफ़ भी जाँच और कार्रवाई होनी चाहिए, जिन पर आपराधिक मामले हैं। हैरानी की बात है कि सरपंच संतोष देशमुख की हत्या को कुछ ही दिनों में एक महीना हो जाएगा; पर सभी आरोपी पुलिस की गिर$फ्त से बाहर हैं। बीड के लोग लगातार आरोपियों को सज़ा दिलाने की माँग कर रहे हैं।
दूसरी ओर बाबा साहेब आंबेडकर को लेकर गृहमंत्री अमित शाह के संसदीय भाषण में की गयी निंदा टिप्पणी से महाराष्ट्र के साथ साथ दुनिया भर के लोग नाराज़ हैं और यहाँ लगातार जगह-जगह प्रदर्शन करके लोग जुलूस निकाल रहे हैं। गृहमंत्री अमित शाह के ख़िलाफ़ नारेबाज़ी करके उनसे इस्तीफ़ा माँग रहे हैं। इसी का फ़ायदा उठाते हुए महाअघाड़ी गठबंधन ने महायुति सरकार और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस पर हमले तेज़ तक कर दिये हैं। अभी कुछ दिन पहले ही नांदेड़ के लोहा विधानसभा क्षेत्र और हिंगोली के कलमनुरी में सार्वजनिक रैलियों में शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र की महायुति सरकार पर जमकर हमला बोला। उद्धव ठाकरे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह का नाम लिए बिना उन पर पाखंड और भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए कहा कि वे हमारे ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हैं। क्या मोदी और शाह के साथ संत हैं? मोदी और शाह की गाड़ी में भ्रष्टाचार के पहिये लगे हुए हैं।
भारत में जमकर हो रही सोने और विदेशी मुद्रा की तस्करी
भारत में नशीले पदार्थों और इंसानों से लेकर महँगी चीज़ों की तस्करी करने वाले गिरोहों और उनसे जुड़े तस्करों पर रोक नहीं लग पा रही है। आये दिन तस्करी की चौंकाने वाली ख़बरों के बावजूद अवैध धंधों के ख़िलाफ़ कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो पाती। ‘तहलका’ ने इस बार भारत में अवैध तरीक़े से सोने और डॉलर (यूएस की विदेशी मुद्रा) के व्यापार से जुड़े तस्करों का पर्दाफ़ाश किया है। ‘तहलका’ की इस पड़ताल में ख़ुलासा हुआ है कि तस्कर कैरियर और अज्ञात संसाधनों से सैकड़ों करोड़ रुपये के सोने और विदेशी मुद्रा (डॉलर) की तस्करी करके उसे एक ग़ैर-क़ानूनी धंधे में बदल रहे हैं। पढ़िए, तहलका एसआईटी की विशेष पड़ताल रिपोर्ट :-
05 जुलाई, 2020 को केरल के तिरुवनंतपुरम में अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर सीमा शुल्क अधिकारियों ने लगभग 15 करोड़ रुपये की क़ीमत के 30 किलोग्राम से अधिक सोने और सामान से भरे एक बड़े बैग को ज़ब्त किया। यह सोना संयुक्त अरब अमीरात के वाणिज्य दूतावास को भेजे गये राजनयिक सामान में था। सीमा शुल्क अधिकारियों ने एक गुप्त सूचना के आधार पर कार्रवाई की थी कि यह सामान एक तस्करी गिरोह का हिस्सा है, जो राजनयिक प्रतिरक्षा प्राप्त व्यक्ति के नाम का दुरुपयोग कर रहा था। सोने की ज़ब्ती ने एक बड़े राजनीतिक विवाद को जन्म दिया, जिसने राज्य में सत्तारूढ़ वामपंथी सरकार की नींव हिला दी, ख़ासकर जब शीर्ष नौकरशाह एम. शिवशंकर का नाम इस संदिग्ध मामले में सामने आया। केरल के मुख्यमंत्री के पूर्व प्रधान सचिव विजयन को मुख्य आरोपी स्वप्ना सुरेश के साथ सम्बन्ध सामने आने के बाद सेवा से निलंबित कर दिया गया था। बाद में गिर$फ्तारी के बाद उन्हें जमानत मिल गयी। यूएई वाणिज्य दूतावास की पूर्व कर्मचारी स्वप्ना सुरेश को केरल आईटी विभाग के लिए एक परियोजना पर काम करने के लिए एक निजी फर्म द्वारा काम पर रखा गया था, जो मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन के अधीन है। मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव एम. शिवशंकर इस विभाग के प्रमुख हुआ करते थे।
सोने की तस्करी की इस जाँच के दौरान तिरुवनंतपुरम में यूएई वाणिज्य दूतावास के पूर्व वित्त प्रमुख द्वारा ओमान के मस्कट में 1,90,000 अमेरिकी डॉलर की कथित तस्करी से सम्बन्धित एक और मामला सामने आया। सीमा शुल्क आयुक्त (निवारक) राजेंद्र कुमार ने जारी आदेश में यूएई वाणिज्य दूतावास के पूर्व वित्त प्रमुख ख़ालिद मोहम्मद अली शौकरी पर देश से बाहर विदेशी मुद्रा की तस्करी करने के लिए 13 करोड़ रुपये का ज़ुर्माना लगाया। आदेश में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि विदेशी मुद्रा को सीमा शुल्क अधिकारियों को सूचित किये बिना ही भारत से बाहर ले जाया गया, जो नियमों का स्पष्ट उल्लंघन है। केरल में सोने और डॉलर की तस्करी के इन मामलों ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया। केरल सोना तस्करी मामले में आरोपियों द्वारा कुछ बड़े लोगों की संलिप्तता का ख़ुलासा होने के बाद विपक्षी कांग्रेस नीत यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट और भाजपा नीत एनडीए ने पिनाराई विजयन सरकार के ख़िलाफ़ अपना हमला तेज़ कर दिया है।
हालाँकि यह सोने और डॉलर की तस्करी के कई मामले भारतीय मीडिया में बार-बार सुर्ख़ियाँ बने हैं। लेकिन इसकी कार्यप्रणाली क्या है? इसमें कौन लोग शामिल हैं? तस्करी में कौन-कौन से देश शामिल हैं? ये वो सवाल हैं, जो हर भारतीय पूछता है; इन सवालों के जवाब तलाशने के लिए ‘तहलका’ ने भारत में सोने और डॉलर की तस्करी पर पड़ताल की और अपने गुप्त कैमरे के सामने एक ऐसे व्यक्ति से क़ुबूलनामा लिया, जो वर्षों से भारत में सोने और डॉलर की तस्करी में लिप्त होने के बावजूद अधिकारियों की पकड़ में नहीं आया है। ‘तहलका’ की एसआईटी ने स्टिंग ऑपरेशन के ज़रिये मामले की तह तक पहुँचने का फ़ैसला किया, तो हमारे अंडरकवर रिपोर्टर की मुलाक़ात कोलकाता के डॉलर और सोने के तस्कर प्रशांत सिंह से हुई।
‘सभी xxxx अधिकारियों को मेरी फोटो, मेरी पासपोर्ट कॉपी, मेरा बोर्डिंग पास और मेरे बैग का रंग पहले से ही मिल जाता है; ताकि वे बैंकॉक की मेरी डॉलर और सोने की तस्करी-यात्रा के दौरान मुझे न रोकें।’ -यह बात अलीगढ़, उत्तर प्रदेश निवासी प्रशांत सिंह ने हमारे नक़ली ग्राहक बनकर उससे मिले अंडरकवर रिपोर्टर से कही। प्रशांत कुछ वर्ष पहले दिल्ली में रहा, फिर एक रिश्तेदार के माध्यम से कोलकाता में बस गया, तबसे वहीं है।
‘हमारी xxxx हवाई अड्डे पर कुछ xxxx अधिकारियों के साथ सेटिंग है। हम उनकी मदद के बिना अवैध सोना और डॉलर का कारोबार नहीं कर सकते। आपातकालीन स्थिति में हम उन पर भरोसा करते हैं, ताकि अगर हम फँस जाएँ, तो वे हमें बचा सकें। इसके लिए हम उन्हें पैसे देते हैं।’ – प्रशांत ने ‘तहलका’ रिपोर्टर को बताया। प्रशांत ने यह भी बताया कि उसने कोलकाता में बसने के बाद सोने और डॉलर की तस्करी से पहले किसी और के लिए काम करके इस अवैध धंधे को करने की सारी कारगुज़ारियाँ सीखीं।
प्रशांत सिंह ने ख़ुलासा किया कि वह बिना कोई दस्तावेज़ दिखाये ब्लैक मार्केट से डॉलर ख़रीद रहा है। वह प्रतिदिन 25,000 अमेरिकी डॉलर ख़रीदता है, जो स्वीकार्य सीमा से काफ़ी ज़्यादा हैं। इसमें वह टैक्स और जीएसटी की चोरी भी करता है। उसने यह भी बताया कि वह तस्करी का सोना और डॉलर ऐसी जगह छिपाता है, जहाँ हवाई अड्डे का एक्स-रे भी इन चीज़ों का पता नहीं लगा पाता। उसने ख़ुलासा किया कि थाईलैंड से सोने और डॉलर की तस्करी के लिए xxxx हवाई अड्डा उसके लिए सबसे अच्छी जगह है। उसने कहा- ‘हालाँकि सोने और डॉलर का अवैध व्यापार सभी प्रमुख हवाई अड्डों पर होता है; लेकिन xxxx हवाई अड्डा मेरे लिए सस्ता है। वहीं xxxx हवाई अड्डे पर केवल 50 लाख रुपये के बजट वाला व्यक्ति ही इस अवैध व्यापार में शामिल हो सकता है।’
प्रशांत सिंह अपने अवैध सोने और डॉलर की तस्करी के अवैध धंधे के लिए निवेशक की तलाश में है। उसने ‘तहलका’ के अंडरकवर रिपोर्टर को इस अवैध धंधे में इच्छुक निवेशक समझकर दिल्ली के एक पाँच सितारा होटल में मुलाक़ात की, जो कि फ़र्ज़ी निवेशक बनकर वहाँ प्रशांत से उसकी तस्करी के राज़ उगलवाने पहुँचे थे। प्रशांत ने ख़ुलासा किया कि उसका नेटवर्क xxxx हवाई अड्डे से संचालित होता है। उसने अपने लाभ और इस अवैध धंधे में अपनी तस्करी की कार्यप्रणाली को उजागर किया।
प्रशांत : हम काम करते हैं डॉलर और गोल्ड (सोने) में। …और दोनों के प्रॉफिट (लाभ) अलग-अलग हैं। अगर हम 100 ग्राम लेते हैं, 50 हज़ार रुपये बचता है। 100 ग्राम की वैल्यू (क़ीमत) हुई 5-5.5 लाख रुपये। और डॉलर में भेजते हैं 8.5 लाख। …एक पूरा बंडल आता है। उसमें हमें 2.25 रुपये बचते हैं, तो वो उसमें 25,000 रुपये अप्रॉक्स (लगभग) बचते हैं।
रिपोर्टर : ये लाते कहाँ से हो आप, गोल्ड और डॉलर?
प्रशांत : ये थाइलैंड से लाते हैं। गोल्ड थाइलैंड से लाते हैं और डॉलर इंडिया से लेकर जाते हैं।
रिपोर्टर : कहाँ जाते हो?
प्रशांत : बैंकॉक में।
इसके बाद प्रशांत सिंह ने डॉलर तस्करी के अपने धंधे का ख़ुलासा किया। उसने बताया कि किस प्रकार अमेरिकी डॉलर को अवैध रूप से भारत से थाईलैंड ले जाकर उसे थाई मुद्रा में परिवर्तित कराकर हवाला के माध्यम से वापस भारत भेज देता है। इसके बाद प्राप्त धनराशि को पुन: निवेशित किया जाता है, तथा परिचालन के प्रत्येक चरण के लिए अनेक कैरियर का उपयोग किया जाता है। प्रशांत ने बताया कि किस प्रकार वह अवैध तरीक़े से पैसे को इधर-से-उधर घुमाकर ज़्यादा-से-ज़्यादा लाभ कमाता है और यात्रा के दौरान साथ लाये गये कपड़ों, इलेक्ट्रॉनिक्स और सामानों को लाकर उनकी कमायी से अपने किराये और दूसरे ख़र्चे निकालता है।
रिपोर्टर : डॉलर इंडिया से लेकर जाते हो, वहाँ उसे इंडियन करेंसी में चेंज करवाते हो?
प्रशांत : नहीं, थाई करेंसी में चेंज करवाते हैं। उसके बाद हम इसको हवाला लगवाकर इंडिया में लाते हैं। इंडिया में पैसा रिटर्न (वापस) आ जाता है, इंडियन करेंसी (रुपये) में। तो हमें सब मिलाकर 20-22 हज़ार बचते हैं।
रिपोर्टर : 20-22 हज़ार रुपये कितने पर बचते हैं?
प्रशांत : आठ लाख रुपये पर ट्रिप (प्रति चक्कर)। जैसे मैं आज गया वहाँ पर, एक्सचेंज करवाया और मैंने रिटर्न मारे पैसे, इंडिया में आ गये। अब इंडिया में वो बंदे रिटर्न में फिर गया; …तो साइकिलिंग सिस्टम है।
रिपोर्टर : नहीं, जो पैसे हवाला से इंडिया में आये, वो फिर बाहर जाते हैं?
प्रशांत : फिर हमारा दूसरा लड़का, …हम अकेले काम तो करते नहीं हैं; …तो वो पैसे वापस आ गये; तो आज जीतू भाई वापस जाएगा, वो पैसे लेकर। तो आज 25,000 का प्रॉफिट (लाभ) आया; …कल भी 25,000 रुपये का प्रॉफिट आएगा।
रिपोर्टर : कितने पर 25,000 का बताया आपने?
प्रशांत : 8.5 लाख पर।
रिपोर्टर : 8.5 लाख पर 25,000 रुपये का प्रॉफिट आपका?
प्रशांत : आएगा, और हम साइकिलिंग में इसको 20-25 दिन में 2.5 लाख कर देते हैं। ये प्रॉफिट है।
रिपोर्टर : मतलब, एक चक्कर में रुपये 25 थाउजेंड, तो 10 चक्कर में 2.5 लाख?
प्रशांत : हाँ; ये प्रॉफिट है और टिकट का जो निकलता है, हम साथ में कपड़ा भी लाते हैं। इलेक्ट्रॉनिक्स आइटम भी लाते हैं, और भी बहुत सारा सामान तो हम टिकट और कस्टम यूएस में कर लेते हैं।
रिपोर्टर : मतलब, आप आने-जाने का ख़र्चा यूएस से निकाल लेते हो?
प्रशांत : हाँ।
रिपोर्टर : तो आप ये किसके लिए करते हो?
प्रशांत : अभी मैं अपने लिए करता हूँ। पहले मैं किसी के लिए करता था। लेकिन अभी मेरा अपना अमाउंट (पैसा) हो गया, तो मैं ख़ुद का लगाया, थोड़ा दूसरे का लगाया था। कोविड में मेरा बहुत नुक़सान हुआ। …फिर लास्ट टाइम मैंने काम नहीं किया।
अब प्रशांत ने ‘तहलका’ रिपोर्टर के समक्ष स्वीकार किया कि चूँकि xxxx हवाई अड्डे पर उसका कनेक्शन है, इसलिए वह कोलकाता के खुले बाज़ार से अमेरिकी डॉलर ख़रीद रहा है; वह भी स्वीकार्य सीमा से कहीं ज़्यादा। वह इन डॉलर्स को अवैध रूप से xxxx हवाई अड्डे से थाईलैंड भेजता है और हवाला के ज़रिये वापस भारत लाता है। प्रशांत ने बताया कि हवाला ऑपरेटर तभी पैसा जारी करता है, जब वह अपनी पहचान साबित करने के लिए एक पर्ची दिखाता है।
रिपोर्टर : नहीं, आप ये कह रहे हो- डॉलर की एक लिमिट है, इंडिया से बाहर ले जाने की?
प्रशांत : इंडिया से बाहर ले जाने की सिर्फ़ इंडिया में ही लिमिट (सीमा) है, विदेश वालों की नहीं।
रिपोर्टर : एक बंदे की क्या लिमिट है?
प्रशांत : एक बंदे की 1,500-2,000 रुपये तक यूएस डॉलर…।
रिपोर्टर : आप कितना ले जाते हो?
प्रशांत : 15,000-20,000…।
रिपोर्टर : ये डॉलर आपके पास कहाँ से आते हैं?
प्रशांत : हम ख़रीदते हैं, लोकल मार्केट से।
रिपोर्टर : यहाँ पर करोल बाग़ से? आप किस रेट पर ख़रीदते हो?
प्रशांत : हम ख़रीदते हैं, जैसे यहाँ का रेट है… रुपये 86 प्वाइंट कुछ चल रहा है। कुछ ऊपर-नीचे होता रहता है, वहाँ का अलग है। स्टेट का फ़र्क़ पड़ता है। 10 पैसा यहाँ कम हो सकता है, या वहाँ बढ़ सकता है। …सब ऑनलाइन ही होता है।
रिपोर्टर : आप करोल बाग़ से ख़रीदते हो डॉलर?
प्रशांत : नहीं, मैं कोलकाता से, क्यूँकि xxxx एयरपोर्ट (हवाई अड्डे) में ही हमारी सब सेटिंग है।
रिपोर्टर : मतलब, कोलकाता ओपेन मार्केट से आप डॉलर लेते हो?
प्रशांत : जी।
रिपोर्टर : उसे लेकर बैंकॉक चले जाते हो, वाया xxxx एयरपोर्ट?
प्रशांत : हाँ।
रिपोर्टर : और कितने दिन रहते हो वहाँ?
प्रशांत : बैंकॉक में देखो आज गये, एक दिन का स्टे किया, दूसरे दिन रिटर्न (वापस)।
रिपोर्टर : अच्छा; वो जो पैसा आता है हवाला से…; मान लीजिए 10,000 डॉलर ले गये आप, …इंडियन करेंसी में कितना हुआ?
प्रशांत : 8.5 लाख्स हुआ।
रिपोर्टर : 8.5 हवाला से आप इंडिया भेज देते हो, इंडियन करेंसी में! …वो किसके पास आता है?
प्रशांत : वो आता है हवाला वाले के पास। तो उसके बाद हमें एक पर्ची देनी पड़ती है। तो वो दिखाकर ही हमें पैसे मिलते हैं। जैसे हमने जीतू भाई के नाम से लगाया, तो जीतू भाई जाएगा, वो कार्ड दिखाएगा, उसको पैसे मिल जाएँगे।
रिपोर्टर : बंदे जेनुइन हैं?
प्रशांत : हमारे जान-पहचान के हैं। आज से नहीं, कई वर्षों से। …ऐसा है, मैं तो ये कहता हूँ, अगर आप इंट्रेस्टेड हो, आप हमारे साथ कोलकाता चलिए, पूरा सिस्टम देखिए; …अगर आपके पास पासपोर्ट है, कोई दिक़्क़त नहीं है, बिलकुल ओपेन (खुला) काम है।
प्रशांत सिंह ने अब हवाला ऑपरेटरों द्वारा उसके तस्करी नेटवर्क को सुविधाजनक बनाने से प्राप्त वित्तीय लाभ का ख़ुलासा किया है। उसने बताया कि ये ऑपरेटर मुद्रा विनिमय के दौरान दरें बढ़ाकर प्रति लेन-देन 4,000-5,000 रुपये कमाते हैं। प्रशांत ने यह भी स्वीकार किया कि उसने पहले सनी नामक किसी व्यक्ति के अधीन काम किया था; और अंतत: अपना स्वतंत्र व्यवसाय स्थापित किया था।
रिपोर्टर : अच्छा; आपने ये पैसा दे दिया, 8.5 लाख रुपये; लेकिन हवाला वाले को क्या फ़ायदा हुआ?
प्रशांत : हवाला वाले का भी फ़ायदा है इसमें, …हवाला वाला अपने रेट में बेचता है।
रिपोर्टर : वो कितने कमा लेता है 8.5 लाख में?
प्रशांत : कमा लेता होगा 2-4 हज़ार…, 5,000 तक।
रिपोर्टर : एक ट्रिप में?
प्रशांत : हाँ। वन टाइम अगर हम हवाला लगाते हैं, तो उसको 4-5 हज़ार का फ़ायदा हो जाता है।
रिपोर्टर : पहले आप किसके लिए काम कर रहे थे?
प्रशांत : पहले मैं कर रहा था एक हमारे सन्नी जी हैं, उनके लिए। …थोड़ी फंडिंग मेरी भी थी उसमें।
प्रशांत ने स्पष्ट रूप से बताया कि डॉलरों के हस्तांतरण के लिए वह अवैध माध्यमों का सहारा लेता है, जिससे टैक्स बचता है। उसने तर्क दिया कि क़ानूनी रास्ता अपनाने पर जीएसटी सहित उस पर भारी कर बोझ पड़ेगा।
रिपोर्टर : ये बताइए, इसमें टैक्स किसका बचा?
प्रशांत : टैक्स देखो, अगर हम प्रॉपर तरीक़े से जाएँगे, तो पूरा बिल बनेगा। तो जो चीज़ हमें 8.5 लाख की पड़ रही है, वो फिर हमें 8.7 की पड़ेगी; ज़्यादा ही पड़ेगी। जीएसटी मिलाकर… तो जो हमारी बचत है, वो सारी उसमें चली जाएगी।
प्रशांत ने डॉलर के अवैध हस्तांतरण के लिए कुछ xxxx हवाई अड्डा अधिकारियों को रिश्वत देने की बात स्वीकार की। उसने बताया कि किस प्रकार धन को छुपाया जाता है, ताकि हवाई अड्डे की एक्स-रे प्रणाली से भी उसका पता न चल सके।
प्रशांत : वो वहाँ जाकर कुछ भी करें, वो पैसे हमें इक्वल हो गया। अगर हम यहाँ से कस्टम को कुछ कट दे देते हैं, 5,000-3,000 रुपये, …3,000-4,000 पर बंदा चला जाता है। उसको पता होता है। मगर फिर भी हम उस पैसे को बहुत मैनिपुलेट करके (होशियारी से) ले जाते हैं। ऐसा नहीं कि जेब में डाला और चल दिये। क्यूँकि रिस्क (जोखिम) होता है। कल को वो मुकर गया, कह दिया- मेरा सीनियर आ गया था। मैं क्या कर सकता हूँ। इसलिए बहुत मैनिपुलेट करके ले जाते हैं।
रिपोर्टर : जैसे 10,000 डॉलर हैं, उसे आप अलग-अलग रखते हैं?
प्रशांत : ऐसे सिस्टम में रखते हैं कि वो एक्स-रे में भी नहीं आता।
रिपोर्टर : ऐसा भी है, वो एक्स-रे में आएगा भी नहीं?
प्रशांत : ले जाने वाले तो 30-40 हज़ार तक ले जाते हैं; मगर हमारा इतना काम नहीं है।
बातचीत जारी रखते हुए प्रशांत ने बताया। उसने xxxx हवाई अड्डे के अधिकारियों को रिश्वत देने की बात स्वीकार की, जिससे उसे सोना और डॉलर की तस्करी के काम में मदद मिली। जबकि अन्य हवाई अड्डों पर भी ऐसी ही गतिविधियाँ होती हैं; लेकिन कम वित्तीय आवश्यकताओं के कारण वह xxxx को प्राथमिकता देते हैं। प्रशांत ने बताया कि वह मुख्य रूप से थाईलैंड के साथ व्यापार करता है। हालाँकि एक बार उसने दुबई से भारत में सोने की तस्करी करने का प्रयास किया था, जो काफ़ी महँगा साबित हुआ।
रिपोर्टर : तो ये सब आप xxxx से ही कर रहे हैं?
प्रशांत : काम मैं xxxx से कर रहा हूँ।
रिपोर्टर : दिल्ली से xxxx?
प्रशांत : दिल्ली से सर बहुत बड़ी फर्म काम करती है। …और अच्छे लेवल (स्तर) पर काम करते हैं।
रिपोर्टर : मतलब, दिल्ली से भी हो रहा है ये काम? …आप क्यूँ नहीं कर पा रहे दिल्ली से?
प्रशांत : सर! इतनी फंडिंग नहीं है। …देखो सर! बिना ऑफिसर के काम करना तो बेवक़ूफ़ी है। कल को कोई बात होती है, तो मैं बोल भी सकता हूँ- सर थोड़ा-सा देख लीजिए। …अगर आप लेते हैं, तो कहीं-न-कहीं रियायत भी करेंगे। वो भी ज़रूरी है। दिल्ली xxxx में कोई 10 लाख, 50 लाख से नीचे बात ही नहीं करता। जितना पैसे, उतना ही काम होता है; और सीधा-सीधा होता है।
रिपोर्टर : यहाँ से भी, दिल्ली xxxx से काम हो रहा है मतलब?
प्रशांत : xxxx, xxxxङ्ग, xxxx, xxxx; ऐसा कोई एयरपोर्ट नहीं है, जहाँ से ये काम न हो रहा हो।
रिपोर्टर : यही काम डॉलर का?
प्रशांत : डॉलर का, गोल्ड का; …गोल्ड में रिस्क बहुत है।
रिपोर्टर : आप सिर्फ़ बैंकॉक से ही कर रहे हो?
प्रशांत : हाँ; बीच में मैंने दुबई से किया था, सेकेंड लॉकडाउन के समय। ….दुबई बहुत एक्सपेंसिव (महँगा) है, तो हमारा नहीं बन पाया था।
अब प्रशांत ने ख़ुलासा किया कि वह न केवल डॉलर की तस्करी में शामिल है, बल्कि कई कैरियर पर निर्भर होकर xxxx हवाई अड्डे से बैंकॉक तक अवैध सोने के व्यापार में भी शामिल है। उसने इस कार्य की लाभप्रदता का विस्तृत विवरण दिया तथा बताया कि किस प्रकार वह डॉलर का उपयोग करके बैंकॉक में सोना ख़रीदता है तथा उसे भारत में बेचता है।
प्रशांत : जैसे कि हम गोल्ड में काम करते हैं। मैं आपको मार्केट रेट से पूरा समझा सकता हूँ। जैसे कि हमने छोटी-सी इन्वेस्टमेंट से पाँच लाख रुपये लगा दिये। पाँच लाख का हमने गोल्ड लिया। डॉलर लेकर बैंकॉक गये; …पर हम हवाला नहीं करा रहे, क्यूँकि हम आगे माल ख़रीद रहे हैं। उस पैसे को गोल्ड में कन्वर्ट किया, पाँच लाख को 5.5 लाख लगभग…।
रिपोर्टर : यहाँ से डॉलर लेकर गये आप?
प्रशांत : हाँ; लगभग 5.5 लाख्स, 100 ग्राम का रेट बता रहा हूँ आपको।
रिपोर्टर : डॉलर लेकर गये, वहाँ से गोल्ड ख़रीदा, बैंकॉक में?
प्रशांत : वहाँ से हम गोल्ड लेकर आएँगे, इंडिया में बेचेंगे। 60 हज़ार रुपये में बेचेंगे, जो आज का रेट है। 60 हज़ार रुपये 100 ग्राम के, …हमें 50 हज़ार रुपये 100 ग्राम में बचते हैं। यही 50 हज़ार को अगर हम 10 बार में मल्टीप्लाई (गुणा) करते हैं, तो हमें पूरी पाँच लाख रुपये की इनकम (आमदनी) है, पूरी-पूरी। पाँच लाख में से अगर एक लाख हम काट भी लेते हैं, तो हमें चार लाख रुपये का प्रॉफिट है महीने का। ये है सिस्टम। और भी सामान हम मैनिपुलेट करके लाते हैं।
रिपोर्टर : कैसे?
प्रशांत : कभी आप चलो, मैं आपको पूरा समझाता हूँ।
प्रशांत ने बताया कि वह किस प्रकार बैंकॉक से कैरियर के माध्यम से सोने की तस्करी करता है। उसने बताया कि हालाँकि लोग क़ानूनी तौर पर 50 हज़ार रुपये तक का सोना भारत में ला सकते हैं; लेकिन उनका परिचालन वाणिज्यिक विभाग से होता है। वह बैंकॉक और भारत के बीच यात्रा करता है और न केवल सोना, बल्कि कपड़े, स्पेयर पार्ट्स और लैपटॉप भी लाता है।
रिपोर्टर : गोल्ड अलाउड कितना है, इंडिया में लाना?
प्रशांत : जेनुअन (वास्तविक) तो 50 हज़ार तक है। आप हसबैंड-वाइफ गये, चेन ख़रीद ली, एट्च (इत्यादि)। जेनुअन तरीक़े से इंडिया में 50 हज़ार तक का ला सकते हैं। जैसे 50 हज़ार का आपकी वाइफ पहनकर आ गयी। तो वो आपसे ड्यूटी भरवाएँगे या बिल माँगेंगे। और जो भी आपकी ड्यूटी बनती है टैक्स की, वो आपको देना पड़ेगा। पर हमारे साथ क्या है, हम कॉमर्शियल हैं। हम बैक-टू-बैक बैंकॉक जाते हैं। अगर हम आज बैंकॉक से आये, तो हम एक दिन रुककर फिर दोबारा बैंकॉक जाएँगे। तो हम बिजनेस कर रहे हैं; …ठीक है। हम वहाँ से कपड़ा भी लाते हैं। बहुत सारी चीज़ें भी लाते हैं। स्पेयर पार्ट्स लाते हैं। लैपटॉप लाते हैं।
प्रशांत ने ख़ुलासा किया कि वह कभी भी सोने और डॉलर की तस्करी करते हुए नहीं पकड़ा गया; क्योंकि वह xxxx हवाई अड्डे पर कुछ अधिकारियों को पैसे देता है। उसने बताया कि रिश्वत से कामकाज सुचारू रूप से चलता है और अधिकारी उसकी गतिविधियों पर आँखें मूँद लेते हैं। प्रशांत ने बताया कि भुगतान की जाने वाली राशि अलग-अलग हो सकती है, कभी-कभी यह छोटी राशि या शराब की एक बोतल भी हो सकती है; लेकिन अधिकारी के आधार पर यह बड़ी राशि तक भी हो सकती है।
रिपोर्टर : 100 ग्राम गोल्ड लाते हो, कभी पकड़े नहीं गये आप?
प्रशांत : देखो सर! श्योर (ज़रूरी) तो हर बार नहीं होते, काफ़ी दिन हमारे होते हैं, काफ़ी ऑफिसर्स के भी होते हैं। तो वो मडवाली हो जाती है बीच में। क्यूँकि उनको भी मालूम है, इनके हाथ काट देंगे, तो क्या करेंगे ये लोग। क्यूँकि हम डेली कस्टमर को देकर निकालते हैं। अगर मैं आपको 3,000 रुपये दे रहा हूँ, पर चक्कर; …तो आपको 3,000 रुपये तो आ ही रहा है ना! अब आपको पता है मैं इतना ला रहा हूँ। अब कोई ऑफिसर आ रहा है, वो देख रहा है, इसका इतना माल शो हो रहा है; …तो वहाँ पर क्या होगा जमा होने के चांस नहीं होते। पैसा देना पड़ता है। अब हो सकता है, वो ऑफिसर एक बोतल माँग ले, दारू की। हो सकता है 50 हज़ार माँग ले। हो सकता है 50-60 हज़ार या एक लाख तक माँग ले। उससे ऊपर कुछ नहीं हो सकता।
प्रशांत ने स्वीकार किया कि कुछ xxxx अधिकारी, उससे नियमित भुगतान प्राप्त करके उसके विवरण- पासपोर्ट, फोटो, बोर्डिंग पास और बैग का विवरण अपनी टीम को बता देते हैं।
प्रशांत : पहले ही पासपोर्ट, फोटो पहुँच जाती है।
रिपोर्टर : कहाँ?
प्रशांत : कस्टम से, ये शर्ट पहनी हुई है। ये बोर्डिंग है। ये बैग है। ये आ रहा है। पूरी टीम में फैल जाती है, इसको रोकना नहीं है।
अब प्रशांत ने ‘तहलका’ रिपोर्टर के समक्ष कई चौंकाने वाले ख़ुलासे किये, जिनमें से एक भारत में अवैध रूप से अमेरिकी डॉलर ख़रीदने के बारे में था। उसने बताया कि वह बिना किसी पासपोर्ट या दस्तावेज़ के काले बाज़ार से प्रतिदिन 25,000 डॉलर की ख़रीदारी करता है, और इस प्रक्रिया में वह सरकार को दिये जाने वाले सभी करों की चोरी करता है।
रिपोर्टर : अच्छा; डॉलर कैसे सकता है कोई? उसमें कोई डॉक्यूमेंट्स की ज़रूरत तो नहीं होती?
प्रशांत : बिल के संग चाहिए, तो बहुत कुछ है। …इंडिया में न आप साल में बस एक बार 10,000 डॉलर भेज सकते हो; …अपने पासपोर्ट में। उसके बाद आप दोबारा जाओगे, तो वो नहीं देंगे। क्यूँकि आपने एक ही बार में भेज दिया।
रिपोर्टर : अच्छा; साल में एक पासपोर्ट पर 10,000 रुपये आ सकते हैं?
प्रशांत : सिर्फ़ 5,000…।
रिपोर्टर : और आप कितना लाते हो?
प्रशांत : सर! हमें पेपर चाहिए ही नहीं। वो कच्चे में देते हैं। हमें कच्चे में ही चाहिए। जीएसटी नहीं कटवाना, अगर पक्के में चाहिए पैसे अकाउंट से काटेंगे।
रिपोर्टर : आप पासपोर्ट भी नहीं दिखाते होंगे?
प्रशांत : मैं कुछ नहीं दिखाता।
रिपोर्टर : आप कितने ले लेते हो, साल में?
प्रशांत : साल में…! मैं डेली के 25,000 डॉलर ले लेता हूँ।
रिपोर्टर : तो बहुत आगे निकल गये आप तो…!
भारत में मुद्रा और सोने की तस्करी 1,000 करोड़ रुपये का आँकड़ा पार करने को तैयार है, और यह एक फलता-फूलता भूमिगत कारोबार बन गया है। यह जटिल नेटवर्क, जिसमें अक्सर भ्रष्ट अधिकारी शामिल होते हैं, राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता के लिए गंभीर ख़तरा पैदा करता है। व्यक्तिगत विमानन कम्पनियाँ, एनआरआई और अंतरराष्ट्रीय एयरलाइन कर्मचारी खाड़ी और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में डॉलर, पाउंड और सोना पहुँचाने के लिए पसंदीदा साधन बन गये हैं। प्रशांत सिंह अपने कैरियर के साथ ‘तहलका’ के कैमरे पर अपने तस्करी के कारोबार के बारे में चौंकाने वाले ख़ुलासे करते हुए रिकॉर्ड किया गया एक ऐसा ही व्यक्ति है। उसके ख़ुलासे से भानुमति का पिटारा खुल गया है, तथा क़ानून प्रवर्तन एजेंसियों से तत्काल कार्रवाई की माँग की जा रही है।
कॉल गर्ल नेटवर्क्स ने आगरा की रेड लाइट बस्तियों को उजाड़ दिया है
बृज खंडेलवाल
आगरा शहर के बीचों बीच माल का बाजार, कश्मीरी बाजार, सेव का बाजार, और किसी वक्त की बदनाम बस्ती बसई ग्राम, अंधेरा होते ही संगीत की महफिलों से गुलजार रहते थे। ऊंची बालकनियों से ज्यादातर नेपाली सेक्स वर्करस अश्लील इशारे करके राहगीरों को बुलाती थीं। गंदी तंग गलियों से होकर दल्ले ग्राहकों को कोठे तक पहुंचाते थे। आए दिन पुलिसिया रेड्स होती थीं, कोतवाली में वेश्याओं की पहचान परेड होती थी।
अब परिदृश्य बदल चुका है। फतेहाबाद रोड हाइ प्रोफाइल टूरिस्ट एरिया बनने से बसई में होटल और एंपोरियम्स खुल चुके हैं। उधर सैकड़ों सालों से मुगल कालीन बाजार भी अब व्यावसायिक केंद्रों में तब्दील हो चुके हैं। समय के साथ देह व्यापार में भी डिमांड सप्लाई का खेल काफी बदल चुका है।
जानकार लोग बताते हैं कि ताजमहल और अन्य आकर्षणों के कारण आगरा की वैश्विक पर्यटन केंद्र के रूप में बढ़ती स्थिति ने कथित तौर पर देह व्यापार में वृद्धि की है, अब शहर में देश के विभिन्न हिस्सों से यौनकर्मियों की आमद देखी जाती है। दिल्ली क्षेत्र के काफी लोग वीकेंड या छुट्टियों में प्राइवेट वाहनों से अपने “इंतजामों” के साथ ही विचरण करने आते हैं। टूरिस्ट गाइड्स कहते है कि आगरा में नाइटलाइफ़ तेज़ी से “रंगीन” होती जा रही है, जिसमें एस्कॉर्ट सेवाएँ और हाई-प्रोफ़ाइल पार्टियाँ जैसी गतिविधियाँ पर्यटकों और स्थानीय लोगों दोनों के लिए हैं। सेवाओं के आयोजन और विज्ञापन के लिए ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म और सोशल मीडिया के उपयोग ने सुविधाओं को और विस्तार दिया है। स्थानीय सोशल एक्टिविस्टों का तर्क है कि उचित कानून प्रवर्तन और सार्वजनिक जागरूकता की कमी ने ऐसी गतिविधियों को पनपने दिया है।
एक सामाजिक कार्यकर्ता कहते हैं “आगरा के देह व्यापार में पिछले वर्षों में काफी परिवर्तन हुए हैं। पारंपरिक रेड-लाइट एरियाज, जो कभी लोकप्रिय अड्डे थे, लगभग गायब हो गए हैं, जिससे सेक्स व्यापार का फैलाव नए क्षेत्रों में विकेंद्रित हुआ है। होटलों, स्पा, बार और क्लबों के माध्यम से भी संचालित होता है, जो अब आमतौर पर पॉश इलाकों में पाए जाते हैं। पूर्व में आर्थिक और सामाजिक मजबूरियों से चलता था सेक्स बाजार, अब शौकिया पार्ट टाइमरस और गोरी विदेशी बालाएं भी मैदान में हैं।”
फरवरी 2020 की एक घटना को याद करते हुए एक टूरिस्ट गाइड ने बताया कि पुलिस ने ताजगंज इलाके के एक होटल से उज्बेकिस्तान की तीन और दिल्ली की दो महिलाओं समेत पांच लोगों को गिरफ्तार किया था। तत्कालीन एसपी सिटी रोहन बोत्रे प्रमोद ने कहा था कि इलाके के कुछ होटल पुलिस के रडार पर हैं और करीब 37 छोटे मोटे होटलों की पहचान ऐसे नेटवर्क के तौर पर की गई है जो विभिन्न स्तरों पर सेक्स रैकेट संचालित करते हैं। एक स्थानीय टूर ऑपरेटर ने कहा कि कुछ साल पहले बीमा नाम का एक शख्स “विदेशी ग्राहकों में विशेषज्ञता रखने वाला एक बिग सेक्स रैकेट ऑपरेटर था जिसके बारे में कहा जाता था कि वह दिल्ली और आगरा के होटलों में रूसी लड़कियों को सप्लाई करता था। एक पुलिस सूत्र ने बताया कि गिरफ्तार किए गए गिरोह के सदस्य स्थानीय फाइव स्टार होटलों से ग्राहकों को लुभाकर सेक्स रैकेट चला रहे थे।”
ऐतिहासिक रूप से, आगरा में सेक्स वर्क में अक्सर कुछ समुदायों की महिलाएँ शामिल होती थीं, जो जीवित रहने के साधन के रूप में इस व्यापार में शामिल होने के लिए जाने जाते थे। उनके साथ, नेपाल की महिलाएँ भी इस परिदृश्य में प्रमुखता से शामिल थीं। फिर पूर्वी राज्यों और बांग्लादेशी भी आए। 20वीं सदी के उत्तरार्ध के दौरान, ये समूह स्थानीय सेक्स वर्क परिदृश्य पर हावी थे, जो पारंपरिक रेड-लाइट क्षेत्रों से जुड़े थे जहाँ लेन-देन सार्वजनिक और स्थानीय थे। इन बस्तियों के पतन के कारण सेक्स व्यापार का विखंडन हुआ है। पिछले दो से तीन दशकों में, विभिन्न सामाजिक परिवर्तनों और आर्थिक बदलावों के आगमन ने देह व्यापार की गतिशीलता को फिर से परिभाषित किया है। बढ़ते पर्यटन द्वारा प्रेरित कॉल-गर्ल बाजार के उदय ने स्थानीय और विदेशी संरक्षकों की मांग में उल्लेखनीय वृद्धि देखी है। यह बदलाव प्रौद्योगिकी और गोपनीयता पर निर्भरता की विशेषता है, जिसमें ग्राहक अक्सर सुरक्षित, सुलभ और आरामदायक व्यवस्था चाहते हैं। छोटे होटलों ने घंटे के आधार पर कमरे किराए पर देकर इस प्रवृत्ति का लाभ उठाया है। पूर्व में सेक्स वर्क को अक्सर हाशिए पर रहने वाली महिलाओं के लिए अंतिम उपाय के रूप में देखा जाता था, आज के देह व्यापार में फ्रीलांसर और अंशकालिक खिलाड़ी शामिल हैं। जागरूकता और कंट्रासेप्टिव्स की व्यापक उपलब्धि से कई घरेलू महिलाएँ, छात्राएँ या युवा पेशेवर भी शामिल हो चुकी हैं, या हॉस्टलर्स जो अतिरिक्त आय या लचीले कार्य शेड्यूल की तलाश में हैं। यह बदलाव व्यापक सामाजिक परिवर्तनों को दर्शाता है, जिसमें कार्यबल में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी और कामुकता और आर्थिक एजेंसी की बदलती धारणाएँ शामिल हैं।
जबकि पारंपरिक रेड-लाइट क्षेत्र कम हो गए हैं, सेक्स वर्क के भूमिगत और अधिक परिष्कृत रूप में तस्करी, शोषण और असुरक्षित स्थितियों सहित खतरे और भी अधिक हो सकते हैं। इसके अलावा, नाइटलाइफ़ और आधुनिक अवकाश गतिविधियों के साथ इसके जुड़ाव के माध्यम से सेक्स उद्योग का ग्लैमराइजेशन – बार और क्लबों के उदय में देखा गया – स्टूडेंट्स और युवा पेशेवरों की भागीदारी उन परिस्थितियों के बारे में नैतिक चिंताएँ पैदा करती है जो उन्हें ऐसे विकल्पों के लिए प्रेरित करती हैं। आर्थिक दबाव, बढ़ती जीवन लागत और जीवनशैली में सुधार की चाहत अक्सर व्यक्तियों को इस अनिश्चित पेशे में धकेलती है।
जैसे-जैसे आगरा विकसित होता जाएगा, वैसे-वैसे इसके देह व्यापार की गतिशीलता और व्यापकता बढ़ती जाएगी।
मध्य प्रदेश का मिनी मुंबई यानी इंदौर की एक प्रमुख पहचान उसकी साफ़-सुथरी सड़कें, गली-मोहल्ले हैं। खुली गाय-भैंस-सांड वाला दृष्य भी यहाँ नज़र नहीं आता। इंदौर को लगातार सातवीं बार सबसे स्वच्छ शहर का पुरस्कार मिला है। 01 जनवरी, 2025 से इंदौर अपनी सबसे स्वच्छ शहर वाली राष्ट्रीय पहचान में एक और पहचान जोड़ने जा रहा है- भारत का पहला भिखारी मुक्त शहर।
नगर प्रशासन ने घोषणा की है कि अगर कोई व्यक्ति 01 जनवरी से भीख माँगता हुआ पाया जाता है, तो उसके ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज की जाएगी। यही नहीं, अगर कोई व्यक्ति भीख देते हुए पकड़ा गया, तो उसके ख़िलाफ़ भी एफआईआर दर्ज की जाएगी। ज़िला कलेक्टर आशीष सिंह ने लोगों से भिखारियों से पैसे देना बंद करने की अपील की। उन्होंने कहा-‘ मैं इंदौर के सभी निवासियों से अपील करता हूँ कि वे लोगों को भीख देकर पाप के भागीदार न बनें।’
दरअसल इंदौर की भिक्षावृत्ति मुक्त उप योजना केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की फरवरी, 2022 से शुरू की गयी ‘स्माइल-आजीविका और उद्यम के लिए हाशिये पर पड़े व्यक्तियों के लिए सहायता’ नामक योजना के तहत आती है। इस योजना में भीख माँगने के कार्य में लगे व्यक्तियों के व्यापक पुनर्वास के लिए प्रयास शामिल हैं। इस कार्यक्रम का उद्देश्य दीर्घकालिक समाधान प्रदान करके शहरों को भिक्षावृत्ति मुक्त बनाना है। लोगों को सड़कों से हटाने की बजाय, स्माइल उनका पुनर्वास करने पर ध्यान केंद्रित करता है। यह भीख माँगने में फँसे लोगों को उनके जीवन को फिर से बनाने में मदद करने के लिए चिकित्सा देखभाल, शिक्षा, कौशल प्रशिक्षण और नौकरी के अवसर प्रदान करता है।
इसका लक्ष्य उन्हें सम्मान और स्वतंत्रता के साथ जीने में सक्षम बनाना है। सामाजिक न्याय मंत्रालय भीख माँगने को ग़रीबी का सबसे चरम रूप बताता है। मंत्रालय के एक बयान में कहा गया है कि अधिकांश लोगों के लिए भीख माँगना कोई विकल्प नहीं है, यह जीवनयापन का साधन है। इसलिए उनके पुनर्वास पर केंद्रित कार्यक्रम पर फोकस करना बहुत ज़रूरी है।
ग़ौरतलब है कि स्माइल योजना के तहत देश के 30 ऐसे शहरों का चयन किया गया है, जो ऐतिहासिक, धार्मिक व पर्यटन शामिल हैं। इन्हें 2026 तक भिक्षावृत्ति मुक्त बनाना है। 10 शहर पायलट परियोजना में दिल्ली, लखनऊ, हैदराबाद, चेन्नई, अहमदाबाद, हैदराबाद, मुंबई, नागपुर, पटना, बेंगलूरु आदि शहरों को शामिल किया गया है। ताज़ा अनुमान के अनुसार, देश में क़रीब 6.20 लाख भिखारी हैं। सन् 2011 की जनसंख्या के आँकड़ों के अनुसार, उस समय देश भर में 3.72 लाख से अधिक भिखारी थे। सबसे अधिक भिखारी पश्चिम बंगाल में बताये जाते हैं। उसके बाद भिखारियों की सबसे अधिक संख्या उत्तर प्रदेश में है।
दरअसल, भारत में भीख माँगने से रोकने को लेकर कोई केंद्रीय क़ानून नहीं है। जुलाई, 2021 में सर्वोच्च न्यायालय ने भीख माँगने पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था और कहा था कि यह सामाजिक-आर्थिक समस्या है। पढ़ाई-लिखाई न होने और नौकरी नहीं मिल पाने के कारण लोग भीख माँगने को मजबूर होते हैं। लेकिन इंदौर प्रशासन ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा-163 के प्रावधान के तहत 01 जनवरी, 2025 से भिखारियों को भीख और पैसे देना और भीख माँगना एक अपराध बना दिया है। ऐसा करने वालों के ख़िलाफ़ दंडात्मक कार्रवाई शुरू की जाएगी। इस धारा के तहत जारी आदेशों का उल्लंघन करने वाले को अधिकतम छ: महीने की जेल और 1,000 रुपये तक का ज़ुर्माना हो सकता है।
ग़ौरतलब है कि इंदौर ज़िला प्रशासन ने फरवरी, 2024 में शहर में भिक्षावृत्ति अभियान के तहत पड़ताल शुरू की थी। इस अभियान के दौरान पता चला कि कुछ भिखारियों के पास पक्के मकान हैं। कुछ भिखारी पैसा ब्याज पर देते हैं। पड़ताल में अनुमान लगाया गया कि एक संगठित गिरोह इंदौर में सक्रिय है, जो भिक्षावृत्ति को ख़ास संरक्षण प्रदान करता है। मध्य प्रदेश के सामाजिक कल्याण मंत्री नारायण सिंह कुशवाहा ने कहा कि इंदौर का एक संगठन सरकार के इस प्रयास के लिए आगे आया है। यह संगठन उन्हें छ: महीने तक आश्रय प्रदान करेगा और उनके लिए काम खोजने का प्रयास करेगा।
यह एक सराहनीय पहल है, जो इंदौर को वास्तव में भिखारी मुक्त शहर बनाने में मदद कर सकती है। लेकिन इस योजना की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि लोग प्रशासन का कितना सहयोग करते हैं।’ इसमें कोई दो-राय नहीं कि ऐसी योजनाओं को सफल बनाने में जन सहयोग बहुत ज़रूरी है।
लेकिन जानना अहम हो जाता है कि पुनर्वास और रोज़गार किस स्तर का मुहैया कराये जा रहे हैं? ये कितने टिकाऊ हैं? क्या भिक्षावृत्ति को दंडात्मक कार्रवाई घोषित करना इससे मुक्ति पाने का सही और सफल समाधान है? इन सवाल के जवाब में इंदौर की कल्पना जैन का अभी तक यही जवाब है कि ‘यह उल्लेखनीय पहल है। उम्मीद है कि यहाँ की जनता इस प्रयास में अपना सहयोग उसी प्रकार देगी, जैसे कि स्वच्छता अभियान में दे रही है।’
हिन्दुस्तान में धर्म का व्यापार क्यों फलता-फूलता है और किसकी शह पर फलता-फूलता है? इससे भी बड़ा सवाल है कि धर्म की आड़ में अवैध व्यापार किसकी शह पर फलता-फूलता है? क्योंकि पिछले 10-11 वर्षों से जिस प्रकार से न सिर्फ़ अवैध व्यापार फले-फूले हैं, बल्कि अवैध व्यापारी भी तेज़ी से हिन्दुस्तान में पनपे हैं, जो कि दूसरों के नाम से अपने काले धंधे करके अनाप-शनाप पैसा कमाने वाले ख़ूँख़्वार लोग कौन हैं? ऐसे लोगों का जब मीडिया में पर्दाफ़ाश होता है, तो उनकी ख़बरों को दबाने के लिए गोदी मीडिया से लेकर सत्ताएँ और उनका फालोवर एक बड़ा तबक़ा सामने आ जाता है। मसलन, गोतस्करी और गोमांस की तस्करी करने वालों में आज के तथाकथित संस्कारी वर्ग से आने वाले जैन, धनपति और कथित ब्राह्मणों में ही अनेक व्यापारी-बनियों के चेहरे ही अब तक सामने आये हैं। इन लोगों ने मुसलमानों की आड़ लेकर अपने क़त्लख़ानों के नाम अरबी और उर्दू में रखकर किसानों द्वारा सबसे ज़्यादा पाले जाने वाले पूज्य पशु गाय को टारगेट किया है। गोरक्षा के नाम पर पिछले कुछ वर्षों से जो ड्रामेबाज़ी इस देश में हुई, उससे पूरा देश वाक़िफ़ है।
आँकड़ों की मानें, तो गोमांस और गोवंश की तस्करी में दुनिया में जितने गोमांस का निर्यात होता है, उसका 27.5 फ़ीसदी से ज़्यादा हर साल क़रीब 24 लाख मीट्रिक टन गोमांस निर्यात अकेले हिन्दुस्तान करता है। एफएओ की रिपोर्ट के मुताबिक, हिन्दुस्तान ने साल 2016 में कुल 1.09 करोड़ टन गोमांस का निर्यात किया था, और इसमें लगातार बढ़ोतरी हो रही है। एफएओ की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2026 तक हिन्दुस्तान क़रीब 1.24 करोड़ टन गोमांस बढ़ाकर निर्यात करने की तरफ़ बढ़ रहा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, मोदी के सत्ता में आने के बाद गोमांस की तस्करी और निर्यात दूसरे पशु-पक्षियों के मांस की तस्करी और निर्यात के अनुपात में सबसे तेज़ी से बढ़ा है। एक तरफ़ मोदी सरकार गोरक्षा का ड्रामा करती है, तो दूसरी तरफ़ वो बूचड़ख़ाने खोलने और उनके आधुनिकीकरण के लिए 15 करोड़ रुपये की सब्सिडी दे रही है।
देश में सत्ता सँभालने से पहले नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब वहाँ भी गोमांस निर्यात में गुजरात ने रिकॉर्ड तोड़ा था। मसलन, मोदी के गुजरात की सत्ता में आने से पहले साल 2001-02 में गुजरात का गोमांस निर्यात 10,600 टन था; लेकिन अगले ही 10 वर्षों में मोदी के वहाँ की सत्ता सँभालने के बाद 2011-12 में गोमांस का निर्यात 22,000 टन गुजरात में हो गया था। हाल यह है कि साल 2013 तक हिन्दुस्तान मांस निर्यात में ब्राजील से भी पीछे था, लेकिन साल 2014 में ही मोदी के सत्ता में आने के बाद ब्राजील से ज़्यादा मांस निर्यात हिन्दुस्तान करने लगा था। आज हिन्दुस्तान दुनिया का सबसे बड़ा मांस निर्यातक देश बन गया है। आँकड़े बताते हैं कि हिन्दुस्तान में गोमांस निर्यात हर साल तक़रीबन 12 फ़ीसदी बढ़ोतरी हो रही है। यानी केंद्र की मोदी सरकार ने गोमांस की तस्करी से गोरक्षा का ड्रामा करके बढ़ायी है। इतना ही नहीं, गोवंश की दुर्दशा भी गोरक्षा अभियान के बाद ही ज़्यादा होती दिख रही है। आज सड़कों पर मारी-मारी गायें भूखी-प्यासी गंदगी खाते हुए हर जगह दिख जाती हैं। दरअसल, आज़ाद हिन्दुस्तान में किसानों को गाय में 36 करोड़ देवी-देवता होने की धार्मिक किताब छापकर और ब्राह्मणों को गोदान की बात लिखकर गाँवों में युद्ध स्तर पर बँटवाकर ग्रामीणों में गायों के प्रति जो आस्था जगाने का ड्रामा किया गया, उससे गोमांस के निर्यात और तस्करी, गोवंश की तस्करी करने वालों को शह दी गयी। भाजपा ने सत्ता में आते ही इसका सबसे ज़्यादा फ़ायदा उठाया। हिन्दुओं में गाय को पूजने के साथ कई और भी बनावटी और झूठे प्रचार पहले ही थे। इससे किसान परिवार ख़ुद ग़रीबी में जीते हुए और क़ज़र्दार होते हुए भी अपने पशुधन, ख़ासतौर पर गायों को खिला-पिलाकर बढ़ा करके उनसे दूध-दही-घी-छाछ, खाद के लिए ज़्यादा गोबर और बछड़े मिलने के समय हाथ जोड़कर उन नयी दुधारू गायों को दान करते थे। इसी धार्मिक भावना का फ़ायदा कांग्रेस के बाद भाजपा ने ख़ूब उठाया और कांग्रेस की केंद्र सरकारों से भी 10 क़दम आगे बढ़कर गोमांस और गोवंश की तस्करी में अपने हाथ रंग लिये; लेकिन बड़ी चालाकी के साथ। अभी हाल ही में नोएडा में एक एसपीजी कोल्ड स्टोरेज से 185 टन से ज़्यादा गोमांस बरामद हुआ था, जिसका मालिक कोई पूरन जोशी निकला। इसी प्रकार से केंद्र सरकार के वाणिज्य मंत्रालय के तहत काम करने वाले कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (अपेडा) द्वारा पंजीकृत 74 बूचड़ख़ानों में से कम-से-कम 9 बूचड़ख़ानों के मालिक हिन्दू हैं। जानकारी करने पर पता चला है कि यह सारी क़सरत सरकारी अनुदान लेने के लिए की जाती है।