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उत्तर प्रदेश का अगला भाजपा अध्यक्ष कौन?

उत्तर प्रदेश की राजनीति में छोटे-मोटे बदलाव होते रहना कोई बड़ी बात नहीं है। मगर जब प्रश्न सत्ता का हो, तो दावेदारों की कमी नहीं होती। कहा जाता है कि उत्तर प्रदेश पर शासन करना न आसान है तथा न छोटी बात; क्योंकि यह बड़ा प्रदेश केंद्र की सत्ता का दरवाज़ा है। यही कारण है कि उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री चाहे जो भी रहा हो, उसने प्रधानमंत्री बनने का सपना अवश्य देखा होगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी यह सपना पिछले कई वर्षों से देखते आ रहे हैं। सच तो यह है कि उनके समर्थक इस पर बेझिझक खुलकर बात भी करते हैं तथा यह भी मानते हैं कि आने वाले समय में योगी आदित्यनाथ ही देश के प्रधानमंत्री बनेंगे।

योगी आदित्यनाथ की यह राह कितनी कठिन है तथा कितनी सरल? यह तो नहीं पता; मगर उनकी उत्तर प्रदेश में चलती कितनी है, इस पर कई बार प्रश्नचिह्न लगे हैं। कहा जाता है कि वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अवश्य हैं, मगर उनकी इच्छा से हर काम नहीं होता। क्योंकि उनके मंत्रिमंडल में कई मंत्री ऐसे हैं, जिनका चुनाव केंद्र की सत्ता ने किया है। एक भाजपा नेता ने नाम न छापने की विनती करते हुए बताया कि इस वर्ष विधानसभा चुनावों में अधिकतर टिकट देने का निर्णय भी दिल्ली से ही हुआ था तथा मंत्रिमंडल में भी वहीं का दख़ल अधिक रहा।

जो भी हो, अब बारी एक ऐसे पद पर चयन की आ चुकी है, जिसका क़द बहुत बड़ा माना जाता है। यह पद है- उत्तर प्रदेश के भाजपा अध्यक्ष का। किसी पार्टी की सत्ता हो, तो उसका अध्यक्ष स्वयं को मुख्यमंत्री के समकक्ष ही समझता है। समझे भी क्यों नहीं, उसके वारे-न्यारे होते हैं। उत्तर प्रदेश में वर्तमान में स्वतंत्र देव सिंह प्रदेश अध्यक्ष हैं तथा जल शक्ति मंत्री भी। मगर अब जल्द ही उन्हें प्रदेश अध्यक्ष पद से त्याग-पत्र देना होगा। सभी जानते हैं कि भाजपा में एक व्यक्ति-एक पद की परम्परा आरम्भ हो चुकी है। इसके अतिरिक्त स्वतंत्र देव सिंह तीन साल का अपना कार्यकाल भी पूरा कर चुके हैं। अतएव नये अध्यक्ष का चुना जाना तय है। मगर नया अध्यक्ष कौन होगा, इस पर अटकलों तथा उड़ती सूचनाओं ने लोगों को कानाफूसी करने का अवसर प्रदान कर दिया है। प्रश्न यह उठ रहा है कि क्या योगी आदित्यनाथ की इच्छा से उनका कोई पसन्दीदा व्यक्ति प्रदेश अध्यक्ष बनेगा या दिल्ली की सत्ता प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव करेगी? क्योंकि एक तो दिल्ली दरबार में प्रदेश के उप मुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा की हाज़िरी चर्चा का विषय बनी हुई है, तो दूसरे कई नेताओं में वहाँ हाज़िरी लगाने की छटपटाहट भी देखी जा रही है।

इस महत्त्वपूर्ण पद पर पिछले तीन महीने में कई नाम चर्चा में आ चुके हैं, जिनमें केंद्र सरकार व राज्य सरकार के नेताओं, मंत्रियों, विधायकों व सांसदों तक के नाम सामने आ रहे हैं। इनमें सांसद डॉ. रामशंकर कठेरिया, केंद्रीय मंत्री कौशल किशोर, सांसद विनोद सोनकर, केंद्रीय मंत्री बी.एल. वर्मा, केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान, सांसद सुब्रत पाठक, सांसद हरीश द्विवेदी, प्रदेश के पंचायती राज मंत्री भूपेंद्र चौधरी, डॉ. दिनेश उपाध्याय, गोविंद नारायण शुक्ला, ब्रज बहादुर शर्मा जैसे कई नाम भी सामने आ रहे हैं।

अब तक देखा गया है कि किसी विशेष पद पर अचानक सामने आये नाम तथा जानकारों के अनुमान धरे-के-धरे रह जाते हैं तथा एक ऐसा नाम निकलकर सामने आता है, जिसको कोई कल्पना तक नहीं कर रहा होता है। हालाँकि इस वर्ष दिल्ली की सत्ता पिछड़ा वर्ग तथा अनुसूचित जाति के लोगों को प्रसन्न करने के बारे में सोच सकती है। ऐसे में हो सकता है कि इन वर्गों का कोई बड़ा चेहरा चुन लिया जाए।

भारत ने बार-बार झेला बँटवारे का दु:ख

कितना विशाल था अखण्ड भारत, यह जानना दिलचस्प है

हाल ही में ट्विटर यूजर्स ने एक दिलचस्प सवाल उठाया कि भारत का विभाजन कितनी बार हुआ? अधिकांश लोगों ने जवाब दिया कि भारत का विभाजन एक ही बार सन् 1947 में हुआ था, जब भारत और पाकिस्तान दो अलग-अलग राष्ट्र बन गये, जिन्हें भारत गणराज्य और इस्लामिक गणराज्य पाकिस्तान के नाम से जाना जाता है।
क्या आप जानते हैं कि 61 साल में अंग्रेजों ने भारत का सात बार विभाजन कर दिया था? यह निश्चित रूप से सन् 1971 में पाकिस्तान से बांग्लादेश के अलग होने के अलावा है। इसके अलावा इसमें पहले का बर्मा अब म्यांमार और पहले का सीलोन अब श्रीलंका भारत का हिस्सा नहीं हैं। भारतीय उपमहाद्वीप के बारे में कुछ महत्त्वपूर्ण प्रश्न हैं, जो अभी भी अनुत्तरित हैं। इस सवाल के के हैरान करने वाले जवाब हैं।

भारत से निकले कितने देश
अखण्ड भारत हिमालय से हिन्द महासागर तक और ईरान से इंडोनेशिया तक फैला हुआ था। ब्रिटिश हुकूमत के दौर सन् 1857 में भारत का क्षेत्रफल 83 लाख वर्ग किलोमीटर था, जो वर्तमान में सिमटकर महज़ 33 लाख वर्ग किलोमीटर रह गया है। यानी भारत का 50 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र अब भारत का हिस्सा नहीं रहा, बल्कि पड़ोसी देशों के रूप में हमारे सामने है। इस बँटवारे में कितने देश बने? कब बने? यह जानना इसलिए भी ज़रूरी है, क्योंकि वर्तमान में अखण्ड भारत की बात भी चल रही है और विश्व गुरु बनने की भी। आइए, जानते हैं कब, कौन-सा देश भारत से अलग होकर बना :-

श्रीलंका : सन् 1935 में अंग्रेजों ने श्रीलंका को भारत से अलग कर दिया। श्रीलंका का पुराना नाम सिंहलद्वीप था। बाद में सिंहलद्वीप नाम का नाम बदलकर सीलोन कर दिया गया। सम्राट अशोक के शासनकाल में श्रीलंका का नाम ताम्रपर्णी था। सम्राट अशोक के पुत्र महेंद्र और उनकी बेटी संघमित्रा बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए श्रीलंका गये थे। श्रीलंका अखण्ड भारत का अंग था।

अफ़ग़ानिस्तान : अफ़ग़ानिस्तान का प्राचीन नाम उपगणस्थान व कंधार का नाम गांधार था। अफ़ग़ानिस्तान एक शैव देश था। महाभारत में वर्णित गांधार अफ़ग़ानिस्तान में है, जहाँ से कौरवों की माता गांधारी और मामा शकुनि थे। कंधार (गांधार) का वर्णन शाहजहाँ के शासन-काल तक मिलता है। यह भारत का हिस्सा था। सन् 1876 में रूस और ब्रिटेन के बीच गंडामक सन्धि पर हस्ताक्षर हुए थे। संधि के बाद, अफ़ग़ानिस्तान को एक अलग देश के रूप में स्वीकार कर लिया गया था।

म्यांमार : कभी बर्मा और अब म्यांमार का प्राचीन नाम ब्रह्मदेश था। सन् 1937 में म्यांमार यानी बर्मा को एक अलग देश की मान्यता अंग्रेजों ने दी थी। प्राचीन काल में हिन्दू राजा आनंद व्रत ने यहाँ शासन किया था।

नेपाल : नेपाल को प्राचीन काल में देवधर के नाम से जाना जाता था। भगवान बुद्ध का जन्म लुंबिनी में हुआ था और माता सीता का जन्म जनकपुर में हुआ था, जो आज नेपाल में है। सन् 1904 में अंग्रेजों ने नेपाल को एक अलग देश बनाया था। नेपाल हिन्दू राष्ट्र था और उसे आधिकारिक रूप से हिन्दू राष्ट्र नेपाल कहा जाता था। कुछ साल पहले तक नेपाल के राजा को नेपाल नरेश कहा जाता था। नेपाल में 81 फ़ीसदी हिन्दू और नौ फ़ीसदी बौद्ध हैं। सम्राट अशोक और समुद्रगुप्त के शासनकाल के दौरान नेपाल भारत का एक अभिन्न अंग था। सन् 1951 में नेपाल के महाराजा त्रिभुवन सिंह ने भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री, पंडित जवाहरलाल नेहरू से नेपाल के भारत में विलय की अपील की थी; लेकिन जवाहरलाल नेहरू ने प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया।

थाईलैंड : सन् 1939 तक थाईलैंड को श्याम के नाम से जाना जाता था। इसे भी इस साल अंग्रेजों ने भारत से अलग कर दिया। अयोध्या, श्री विजय आदि इसके प्रमुख शहर थे। श्याम में बौद्ध मन्दिरों का निर्माण तीसरी शताब्दी में शुरू हुआ था। इस देश में आज भी कई शिव मन्दिर हैं। थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में भी सैकड़ों हिन्दू मन्दिर हैं।

कंबोडिया : कंबोडिया संस्कृत नाम कंबोज से निकला है, जो अखण्ड भारत का हिस्सा था। पहली शताब्दी से ही यहाँ भारतीय मूल के कौंडिन्य वंश का शासन था। यहाँ के लोग शिव, विष्णु और बुद्ध की पूजा करते थे। राष्ट्रभाषा संस्कृत थी। कंबोडिया में आज भी भारतीय महीनों जैसे चैत्र, वैशाख, आषाढ़ के नामों का प्रयोग किया जाता है। विश्व प्रसिद्ध अंगकोर वाट मन्दिर भगवान विष्णु को समर्पित है, जिसे हिन्दू राजा सूर्यदेव वर्मन ने बनवाया था। मन्दिर की दीवारों पर रामायण और महाभारत से सम्बन्धित पेंटिंग हैं। अंकोरवाट का प्राचीन नाम यशोधरपुर है।

वियतनाम : वियतनाम का प्राचीन नाम चंपादेश था और इसके प्रमुख शहर इंद्रपुर, अमरावती और विजय थे। वहाँ आज भी कई शिव, लक्ष्मी, पार्वती और सरस्वती मन्दिर मिलेंगे। वहाँ शिवलिंग की भी पूजा की जाती थी। लोगों को चाम कहा जाता था, जो मूल रूप से शैव थे।

मलेशिया : मलेशिया का प्राचीन नाम मलय देश था, जो एक संस्कृत शब्द है। इस शब्द का अर्थ है- पहाड़ों की भूमि। मलेशिया का वर्णन रामायण और रघुवंशम् में भी मिलता है। मलय में शैव धर्म का प्रचलन था। देवी दुर्गा और भगवान गणेश की पूजा की गयी। यहाँ की मुख्य लिपि ब्राह्मी थी और संस्कृत मुख्य भाषा थी।

इंडोनेशिया : इंडोनेशिया का प्राचीन नाम दीपंतर भारत है, जिसका उल्लेख पुराणों में भी मिलता है। दीपंतर भारत का अर्थ है भारत का समुद्री हिस्सा। यह हिन्दू राजाओं का राज्य था। सबसे बड़ा शिव मन्दिर जावा द्वीप में था। मन्दिरों को मुख्य रूप से भगवान राम और भगवान कृष्ण के साथ उकेरा गया था। भुवनकोश संस्कृत के 525 श्लोकों वाली सबसे प्राचीन पुस्तक है। इंडोनेशिया के प्रमुख संस्थानों के नाम और आदर्श वाक्य अभी भी संस्कृत में चलन में हैं। जैसे- इंडोनेशियाई पुलिस अकादमी का नाम धर्म बिजाक्साना क्षत्रिय है। इंडोनेशिया राष्ट्रीय सशस्त्र बल को त्रिधर्म एक कर्म कहते हैं। इंडोनेशिया एयरलाइंस को गरुड़ एयरलाइंस कहते हैं। इंडोनेशिया का गृह मंत्रालय को चरक भुवन हैं। इंडोनेशिया वित्त मंत्रालय को नगर धन रक्षा हैं। इंडोनेशिया सर्वोच्च न्यायालय को धर्म युक्ति है।

तिब्बत : तिब्बत का प्राचीन नाम त्रिविष्टम था, जो दो भागों में विभाजित था। सन् 1907 में चीन और अंग्रेजों के बीच एक समझौते के बाद एक हिस्सा चीन को और दूसरा लामा को दिया गया था। साल 1954 में, भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने चीनी लोगों के प्रति अपनी एकजुटता दिखाने के लिए तिब्बत को चीन के हिस्से के रूप में स्वीकार किया।

भूटान : साल 1906 में अंग्रेजों द्वारा भूटान को भारत से अलग कर दिया गया और एक अलग देश के रूप में मान्यता दी गयी। भूटान संस्कृत शब्द भू-उत्थान से बना है, जिसका अर्थ है उच्च भूमि।

पाकिस्तान : 14 अगस्त 1947 को अंग्रेजों ने भारत का विभाजन किया और पाकिस्तान पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान के रूप में अस्तित्व में आया। मोहम्मद अली जिन्ना 1940 से धर्म के आधार पर एक अलग देश की माँग कर रहे थे, जो बाद में पाकिस्तान बन गया। साल 1971 में पाकिस्तान फिर विभाजित हो गया और भारत के सहयोग से बांग्लादेश अस्तित्व में आया। पाकिस्तान और बांग्लादेश भारत के अंग रहे हैं। यह दिलचस्प है; लेकिन हममें से कितने लोग वास्तव में इस इतिहास से अवगत हैं?

जोकोविक का कमाल

ग्रैंड स्लैम जीतने में फेडरर से आगे पहुँचे जोकोविक, पर नडाल से अभी एक क़दम पीछे

नोवाक जोकोविक जब सिर्फ़ सात साल के थे, वह ख़ुद को चैम्पियन समझने के लिए घर पर काग़ज़ और लकड़ी से टेनिस की ट्राफियाँ बनाया करते थे। तब उन्हें पता भी नहीं था कि एक दिन वह एक ऐसे चैंपियन बन जाएँगे, जिनके पास सचमुच की दर्ज़नों बड़ी ट्राफियाँ होंगी। उन्होंने एक साक्षात्कार में बताया था कि सिर्फ़ चार साल की उम्र में उन्होंने टेनिस रैकेट हाथ में पकड़ लिया था और वे खेल का अभ्यास सर्बिया में उस कोपोनिक माउंटेन रिसोर्ट के सामने बने टेनिस कोर्ट में करते थे, जहाँ उनके माता-पिता का अच्छा ख़ासा व्यवसाय था। वैसे जोकोविच के मुताबिक, उन्होंने टेनिस मस्ती के लिए ही खेलना शुरू किया था; लेकिन बाद में गम्भीरता से इससे जुड़ गये। विम्बलडन उस छोटी उम्र से ही उनका पसन्दीदा टूर्नामेंट था और सपना था दुनिया का नंबर एक खिलाड़ी बनना।

यही जोकोविक आज विश्व टेनिस में किवदंती होने की राह पर हैं। बेशक राफेल नडाल (राफा) उनके बराबर दौड़ रहे हैं; लेकिन जोकोविक अनथके लगते हैं। हाल ही में विम्बलडन ख़िताब जीतने वाले जोकोविक की फार्म बरक़रार रही, तो ग्रैंडस्लैम जीतने के मामले में एकाध साल में वह विश्व टेनिस के शीर्ष पर होंगे। उनका स्टेमिना अद्भुत है और जीतने का जुनून उससे भी एक क़दम आगे है। निश्चित ही सर्बिया के नोवाक जोकोविक आज टेनिस के बादशाह हैं और 21 ग्रैंड स्लैम उनके महान् होने की गाथा कहते हैं।

जुलाई के पहले हफ़्ते जब विम्बलडन टूर्नामेंट में शीर्ष वरीयता प्राप्त इस खिलाड़ी ने फाइनल में पहला सेट हारने के बावजूद जिस तरह शानदार वापसी की और पहली बार फाइनल खेल रहे ऑस्ट्रेलिया के निक किर्गियोस को शिकस्त दी, वह जोकोविक की क़ाबिलियत का सुबूत है। टूर्नामेंट का अपना सातवाँ ख़िताब जीतने के लिए सर्बिया के इस खिलाड़ी ने निक पर 4-6, 6-3, त6-4, 7-6 से जीत दर्ज की।

जोकोविक जब ग्रास कोर्ट (घास वाली सतह) पर खेलते हैं, तो अपने प्रतिद्वंद्वियों के लिए बहुत ख़तरनाक हो जाते हैं। इस विम्बलडन में जोकोविच के लिए ख़िताब जीतना बड़ा काम तो था ही; लेकिन उससे भी बड़ी यह एक उपलब्धि थी। क्योंकि यह उनकी लगातार 28वीं जीत थी और विम्बलडन ख़िताब जीतने के मामले में वह रोज़र फेडरर के बाद दूसरे स्थान पर पहुँच गये हैं, जिनके आठ विम्बलडन ख़िताब हैं। किसी ग्रैंडस्लैम में वह 32 बार फाइनल में पहुँचे हैं, जो किसी भी अन्य खिलाड़ी से ज़्यादा है। उनके पीछे रोज़र फेडरर (31) और आगे राफेल नडाल (30) हैं।

जीत के बाद जोकोविच ने कहा- ‘हर बार पहले से अधिक ख़ास होता है। मेरे लिए यह ख़िताब हमेशा सबसे विशेष होगा। यह मेरा सबसे विशेष टूर्नामेंट है। इस टूर्नामेंट ने ही मुझे सर्बिया में इस खेल से जुडऩे के लिए प्रेरित किया था।’ जोकोविक को फाइनल में अपने सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी राफा का सामना नहीं करना पड़ा, क्योंकि सेमीफाइनल में उन्होंने चोट के कारण निक किर्गियोस को वॉकओवर दे दिया। जोकोविच ने लगातार चौथी बार विम्बलडन ख़िताब जीता। कुल मिलाकर वह सात बार इस टूर्नामेंट का ख़िताब अपने नाम कर चुके हैं। जोकोविच ग्रासकोर्ट पर सन् 2011, 2014, 2015, 2018, 2019, 2021 और 2022 में चैंपियन बने हैं। कोरोना वायरस के कारण 2020 में इस टूर्नामेंट का आयोजन नहीं हो सका था।

नोवाक जोकोविच ग्रैंड स्लैम जीतने के मामले में अब स्पेन के राफेल नडाल से बस एक क़दम पीछे है। उनका यह 21वाँ ग्रैंड स्लैम ख़िताब था। ओपन युग में पुरुषों में सबसे ज़्यादा ग्रैंड स्लैम ख़िताब जीतने का रिकॉर्ड राफेल नडाल (राफा) के नाम हैं, जिन्होंने 22 ख़िताब जीते हैं। जोकोविच अब उनसे महज़ एक क़दम दूर हैं; जबकि वह महान् रोज़र फेडरर से आगे निकल चुके हैं, जिनके 20 ग्रैंडस्लैम ख़िताब हैं। राफा अभी सक्रिय हैं और फेडरर भी। लेकिन उनकी असली टक्कर अब राफा से ही है; क्योंकि फेडरर सक्रिय होते हुए भी कई बड़े टूर्नामेंट में हिस्सा नहीं ले रहे हैं। उम्र नडाल के आड़े हैं, जो 36 साल के हैं। फेडरर तो 41 साल के होने को हैं, जबकि जोकोविक 35 साल के हैं।

इस साल राफा को विम्बलडन में दूसरी वरीयता हासिल थी। स्पेन के नडाल का इस साल ग्रैंडस्लैम में अब तक 19-0 का रिकॉर्ड था। उन्होंने 2022 में अपने सभी ग्रैंड स्लैम मुक़ाबले जीते और इस दौरान जनवरी में ऑस्ट्रेलिया ओपन और जून में फ्रेंच ओपन ख़िताब अपने नाम किया। नडाल क़रीब एक हफ़्ते से पेट की मांसपेशियों में दर्द से परेशान थे और सेमीफाइनल में उन्हें इसी कारण से वाकओवर देना पड़ा। वैसे नडाल पाँच सेट तक चले क्वार्टर फाइनल में ही टेलर फ्रिट्ज के ख़िलाफ़ असहनीय पीड़ा सहते दिखे थे, भले वह चार घंटे और 21 मिनट में मुक़ाबला जीतने में सफल रहे थे।

जोकोविक ने एक और कमाल किया है। ऑल इंग्लैंड क्लब में जोकोविच की हाल की जीत उनकी 86वीं जीत थी। अब वह चारों ग्रैंड स्लैम में 80 या इससे अधिक मैच जीतने वाले पुरुष और महिला वर्ग के पहले खिलाड़ी बन गये हैं। जोकोविच ने ऑस्ट्रेलियन ओपन में 82, फ्रेंच ओपन में 85, विम्बलडन में 86 और यूएस ओपन में 81 मैच जीते हैं। दिलचस्प यह है कि ग्रैंडस्लैम जीतने के मामले में उनसे एक ख़िताब आगे चल रहे ग्रैंड स्लैम चैंपियन राफेल नडाल ऑस्ट्रेलियन ओपन, विम्बलडन और यूएस ओपन तीनों में 80 मैच नहीं जीत पाये हैं। रोज़र फेडरर को तो फ्रेंच ओपन में 73 जीत ही हासिल हुई हैं। इसके अलावा 22 मई, 1987 को जन्मे जोकोविच सबसे ज़्यादा हफ़्तों तक एटीपी रैंकिंग में नंबर-1 पर रहने वाले खिलाड़ी हैं। वह आज भी मैदान में जमकर खेल रहे हैं। सात साल की उम्र में जब उन्होंने ठान लिया कि टेनिस ही उनका करियर बनेगा, तो उसके बाद पीछे मुडक़र नहीं देखा।

इसके अलावा 22 मई, 1987 को जन्मे जोकोविच सबसे ज़्यादा हफ़्तों तक एटीपी रैंकिंग में नंबर-1 पर रहने वाले खिलाड़ी हैं। वह आज भी मैदान में जमकर खेल रहे हैं। सात साल की उम्र में जब उन्होंने ठान लिया कि टेनिस ही उनका करियर बनेगा, तो उसके बाद पीछे मुडक़र नहीं देखा।

जोकोविच एक समय स्वास्थ्य से जुड़ी गम्भीर समस्या भी झेल रहे थे और लगता था कि उनका करियर समाप्त होने वाला है। उनके मुताबिक, साल 2010 से पहले वह खेल के दौरान भाग-दौड़ के बीच अकसर साँस लेने में कठिनाई महसूस किया करते थे। थक भी जाते थे।

हालाँकि 2010 के ऑस्ट्रेलियन ओपन के दौरान जब पाँच सेट तक चले क्वार्टर फाइनल में विल्फ्रेड सोंगा के ख़िलाफ़ उन्हें मेलबर्न की गर्मी में जब दिक़्क़तत महसूस होने लगी, तो उन्होंने इससे निजात पाने की ठान ली। इसके बाद जोकोविक ने जीवन में बड़े बदलाव किये, जो खान-पान और अन्य चीज़ों से जुड़े थे। तब जोकोविच पिज्जा और चीनी से बने सोडा के दीवाने थे। उन्होंने विशेषज्ञ से राय ली और इसके बाद ग्लूटन, रिफाइंड चीनी, डेयरी प्रोडक्ट से तौबा कर ली। अब जोकोविक वीगन डाइट अपना चुके हैं, जिसमें पशु या उनके ज़रिये तैयार उत्पाद शामिल नहीं होते, जैसे- दूध, शहद, पनीर, मक्खन, अंडे, मांस आदि। इसकी जगह जोकोविक फल, अनाज, बीज, सब्ज़ियाँ, सूखे मेवे, नट्स आदि पर निर्भर रहते हैं। मैच के दौरान ब्रेक पर जोकोविच खजूर से बने स्नैक्स लेते हैं।

सबकी नज़र अब इस बात पर है कि इस साल धमाकेदार प्रदर्शन करने वाले राफेल नडाल से आगे निकलने का सपना क्या जोकोविक पूरा कर पाएँगे? यह ज़रूर ग़ौर करने लायक बात है कि नडाल ने इस साल जो दो ग्रैंड स्लैम जीते हैं, उनमें जोकोविक किसी कारण खेल नहीं पाये थे। लिहाज़ा यह कहा जा सकता है कि यदि वह खेले होते, तो उनके ग्रैंड स्लैम की संख्या कुछ और हो सकती थी; क्योंकि नडाल ने अपना 22वाँ ग्रैंडस्लैम इसी साल फ्रेंच ओपन जीतकर नाम कमाया है।

जोकोविक के ख़िताब
 ऑस्ट्रेलियन ओपन 9
 यूएस ओपन 3
 फ्रेंच ओपन 2
 विम्बलडन 7
 कुल ग्रैंडस्लैम 21

नडाल के ख़िताब
 फ्रेंच ओपन 14
 यूएस ओपन 4
 विम्बलडन 2
 ऑस्ट्रेलियन ओपन 2
 कुल ग्रैंडस्लैम 22

उग्रता की अफ़ीम

आजकल हर कोई ख़ुद को सबसे बड़ा धार्मिक सिद्ध करने में लगा है। धर्म के मर्म को समझे बग़ैर लोग अपने-अपने धर्म का आडम्बर कर रहे हैं। चाहे वे किसी भी धर्म के लोग हों। उन्हें लगता है हो-हल्ला करना, हिंसक होना, नारे लगाना, धार्मिक लिबास पहनना और ढोंग करना ही धर्म है। इससे उनका धर्म मज़बूत होगा।

यह अब चलन में है। इसलिए हर धर्म के लोग अपने-अपने धर्म को मज़बूत करने की तुच्छ सोच से इसी तरह की बेहूदगी करने में लगे हैं; जो ख़ुद को एक दिलासा देने जैसा एक दिवास्वप्न है। लेकिन इसमें बुराई यह है कि सभी धर्मों के कट्टरपंथी एक-दूसरे पर हमलावर हैं। आज इसाई और कैथोलिक की लड़ाई प्रोटेस्टेंट से है। इसाइयों और मुसलमानों के बीच लड़ाई है। भारत में सनातनी और मुसलमान लडऩे-मरने को तैयार हैं। जिस जगह मुसलमान नहीं हैं, वहाँ सनातनियों का झगड़ा अपने ही धर्म के कथित निम्न वर्ग के लोगों, जिन्हें वे दलित कहते हैं; से रहता है। इसी तरह सुन्नी और शिया मुसलमानों में दुश्मनों की तरह लड़ाई रहती है। यह लड़ाई हर धर्म और हर जाति में है। अगर कहीं किसी दूसरे धर्म या दूसरी जाति के लोग नहीं हैं, तो वहाँ आपसी लड़ाई है।

दरअसल यह वर्चस्व की लड़ाई है, जिसकी वजह वे चंद लोग हैं, जो केवल और केवल ख़ुद को सबसे ऊपर रखना चाहते हैं। ऐसे लालची और बिना काम किये दूसरों की मेहनत पर पलने वाले लोग हर धर्म और हर जाति में हैं। इन लोगों की एक ख़ास अभिलाषा यही रहती है कि वे सब पर शासन करें; दूसरों पर अत्याचार करें और दूसरे सब उनकी गुलामी करें। वे (बाक़ी लोग) इतना अत्याचार सहें कि इन कथित ऊँचे लोगों के लात-घूँसे खाकर भी पैरों में पड़े रहें। यह मानसिकता सत्ताओं में मिलने वाली मुफ़्त और हराम की मलाई मिलने की आदत के कारण पैदा हुई है। यही कारण है कि लोगों के पथ-प्रदर्शक बने ये चंद लोग बड़े ओहदों से नीचे नहीं आना चाहते; चाहे वे धर्म की सत्ता पर विराजमान हों, चाहें राजनीतिक सत्ता पर जमे बैठे हों। ये लोग कभी नहीं चाहते कि लोगों में समरसता रहे, मानवता की भावना बढ़े और वे प्यार से मिलजुलकर रहें।

असल में गड़बड़ लोगों के भीतर है। ख़ुद को झूठमूठ का श्रेष्ठ और ऊँचा दिखाने की होड़ में सब फँसे हुए हैं। धर्मांधता और घमण्ड ने सबको मूर्ख, क्रोधी और आपराधिक प्रवृत्ति का जानवर बना दिया है। लोगों के दिमाग़ में घुसा हुआ है कि वे ईश्वर और धर्म के रक्षक हैं। एक मांस का लोथड़ा लेकर घूमने वाले ये नाज़ुक लोग उस ईश्वर की रक्षा का दम्भ भरते हैं, जिसके इशारे पर पूरा ब्रह्माण्ड चलता है। जिसने सबको पैदा किया है, लोग उसकी सृष्टि में दख़ल डालकर दूसरे धर्म या अपने ही धर्म के कमज़ोर और मानवता की राह पर चलने वालों की हत्या करके ख़ुद को सृष्टि का संचालक समझने की भूल कर रहे हैं।

दरअसल धर्म और सत्ताओं की ठेकेदारी करने वाले लोग अपना हित साधने के लिए, दुनिया भर में हिंसा और ख़ून-ख़राबा करा रहे हैं। ये लोग मौत से इतने डरे हुए हैं कि ख़ुद को अनेक सुरक्षा घेरों में छिपाकर रखते हैं। परन्तु यह तो सामान्य लोगों को सोचना होगा, जो मूर्खों की तरह उनके अनुयायी और भक्त बने हुए हैं। रक्षा कर रहे हैं। परन्तु वे पाखण्डी पूरी दुनिया में हिंसा, दु:ख और तबाही फैला रहे हैं। क्या ऐसे दुष्टों की रक्षा करनी चाहिए? अगर दुनिया के सभी लोग अपने-अपने धर्मों के मठाधीशों, सत्ताधारियों और अपने मार्गदर्शकों के कहने पर हिंसा न करें और उन्हें ऐसा करने के लिए उकसाने वालों को ही दण्डित करें, तो दुनिया में शायद इतनी हिंसा न हो। सोचिए कि सामान्य लोग किसी के दुश्मन कहाँ होते हैं? भले ही वे अपने धर्म के अनुरूप किसी भी नाम से ईश्वर को मानते और पूजते हों। असली दुश्मन तो वे लोग हैं, जो इंसानों के बीच ज़हर घोल रहे हैं। सामान्य लोग, ख़ासकर बुद्धिहीन आसानी से भ्रमित हो जाते हैं। इसलिए पाखंडी लोग धर्म के नाम पर उग्रता की अफ़ीम उन्हें बहुत आसानी से खिला देते हैं; और वे धर्म के नाम पर आसानी से गुमराह हो जाते हैं। फिर उग्रता से झूठ फैलाने लगते हैं।

आजकल तो यह तय कर पाना आसान नहीं है कि सच क्या है और झूठ क्या है? दुनिया में झूठों की भरमार है। झूठ की एक मंडी-सी सजी हुई है। यही कारण है कि अब सच बोलने वालों की जान तक ले ली जाती है। यह अब बड़ा आसान हो गया है। लोग क्रूरता से भरे पड़े हैं। उनमें यह चलन बढ़ रहा है। इसलिए भी बढ़ रहा है, क्योंकि उन्हें सज़ा के बजाय सुरक्षा मिलती है। और इन्हें बहकाने वालों को तो इतना सम्मान मिलता है कि देवताओं को भी न मिले। बस अपने कुकर्मों को छुपाने और लोगों के बीच धार्मिक अफ़ीम बाँटने का हुनर आना चाहिए। आजकल अनेक पाखंडी इसी तरह अपने-अपने धर्म की अफ़ीम बाँट रहे हैं। इसे धार्मिक जाल फेंकना कहते हैं, जिसमें फँसने वाले अपनी स्वतंत्रता के लिए फडफ़ड़ाते नहीं हैं, बल्कि पाखंडियों के हर इशारे पर नाचते रहते हैं।

महंगाई, जीएसटी, राउत मामले पर दोनों सदनों में हंगामा ; 2 बजे तक स्थगित

संसद में सोमवार को महंगाई और जीएसटी के अलावा संजय राउत की गिरफ्तारी के मुद्दे पर खूब हंगामा हुआ। हंगामे के बाद लोकसभा को 2 बजे तक के लिए स्थगित कर दिया गया है। इधर कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि वे (भाजपा) संसद को विपक्ष मुक्त चाहते हैं, इसलिए वो ऐसा कर रहे हैं, लेकिन संजय राउत कानूनी तौर पर लड़ेंगे और उन्हें जो कुछ कहना है वो कहेंगे।

दोनों सदनों में आज भी कांग्रेस सहित विपक्ष ने महंगाई आदि विषयों पर खूब हंगामा किया। लोकसभा में हंगामे के कारण कार्यवाही पहले 12 बजे और फिर 2 बजे तक के लिए स्थगित कर दी गयी। राज्यसभा में भी हंगामे के बाद कार्यवाही को 12 बजे तक स्थगित कर दिया गया।

उधर शिवसेना नेता संजय राउत की गिरफ्तारी पर लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि संजय राउत ने एक ही गुनाह किया है कि वह भाजपा के डराने-धमकाने की राजनीति के आगे नहीं झुके। वे दृढ़ विश्वास और साहस वाले व्यक्ति हैं और हम संजय राउत के साथ हैं।

महंगाई के मुद्दे पर कांग्रेस सहित विपक्ष ने लगातार आक्रामक रुख अख्तियार किया हुआ है। विपक्ष ने महंगाई सहित अन्य मुद्दों पर संसद की कार्यवाही बाधित की है। हालांकि, केबिनेट मंत्री अनुराग ठाकुर ने सोमवार को कहा कि मोदी सरकार में महंगाई घाटी गैस सिलेंडर भी सस्ता हुआ है। सरकार ने प्याज, खाने के तेल, वनस्पति घी, टमाटर और चाय सहित विभिन्न आम जरूरत की चीजों के छह माह के आंकड़े जारी करके यह दावा किया है।

हालांकि विपक्ष ने महंगाई और जीएसटी के अलावा सरकार पर ईडी समेत केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगाया है। कांग्रेस के राज्य सभा में नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा – भाजपा संसद को विपक्ष मुक्त चाहती है इसलिए वो ऐसा कर रहे हैं। लेकिन संजय राउत कानूनी तौर पर लड़ेंगे और उन्हें जो कुछ कहना है वो कहेंगे। ये सरकार विपक्ष को दबाना चाहती है, अगर कोई प्रॉपर्टी का मामला है तो उसके लिए कानून है और उसके तहत एक्शन लीजिए न कि उसके घर जाकर 6 घंटे पूछताछ करना ये सब उत्पीड़न है और विपक्ष को खत्म करने की बातें चल रही हैं।’

उधर कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने शिवसेना संसद संजय राउत की गिरफ्तारी को लेकर भाजपा पर निशाना साधा और भाजपा को ‘डराने-धमकाने वाली पार्टी’ कहा। एक ट्वीट में उन्होंने लिखा – ‘संजय राउत ने एक ही गुनाह किया है कि वह भाजपा की डराने-धमकाने की राजनीति के आगे झुके नहीं हैं। वह दृढ़ विश्वास और साहस के व्यक्ति हैं। हम संजय राउत के साथ हैं।’

गिरफ्तार संजय राउत को आज सेशन कोर्ट में पेश करेगी ईडी

मुंबई की एक चॉल के पुनर्विकास में कथित अनियमितताओं से जुड़े धन शोधन के मामले में पिछली रात गिरफ्तार शिवसेना सांसद संजय राउत को आज सेशन कोर्ट में पेश किया जा रहा है। ईडी उनका रिमांड लेने की कोशिश करेगी। इस बीच शिव सेना ने राउत की गिरफ्तारी को राजनीतिक प्रतिशोध बताते हुए कहा है कि पार्टी बिलकुल नहीं झुकेगी।

राउत को सेशंस कोर्ट में पेश करने से पहले सुरक्षा कड़ी कर दी गई है। शिव सैनिकों ने पहले ही राउत की गिरफ्तारी के विरोध में प्रदर्शन करने का ऐलान किया है। मुंबई स्थित ईडी के दफ्तर, जेजे अस्पताल और सेशंस कोर्ट परिसर में करीब 200 पुलिसकर्मियों को तैनात किया है, ताकि किसी प्रकार की सुरक्षा व्यवस्था की दिक्कत खड़ी न हो। राउत की गिरफ्तारी पर शिवसेना प्रवक्ता आनंद दुबे ने कहा – ‘राउत झुकेंगे नहीं। हम भी देखते हैं कि दिल्ली में कितना दम है?’

याद रहे राउत (60) को दक्षिण मुंबई के बैलार्ड एस्टेट में ईडी के क्षेत्रीय कार्यालय में छह घंटे से अधिक की पूछताछ के बाद रविवार आधी रात गिरफ्तार कर लिया गया था। अधिकारियों का दावा है कि ‘राउत जांच में सहयोग नहीं कर रहे थे, जिसके कारण उन्हें धन शोधन रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए) के तहत देर रात 12:05 बजे हिरासत में लिया गया ‘

राज्यसभा सदस्य राउत को आज मुंबई में एक विशेष पीएमएलए अदालत में पेश किया जाएगा, जहां प्रवर्तन निदेशालय उनकी हिरासत का अनुरोध करेगा। ईडी ने रविवार को मुंबई के भांडुप इलाके में उनके आवास पर तलाशी ली थी और राउत से पूछताछ की थी। शाम तक उन्हें एजेंसी के स्थानीय कार्यालय में पूछताछ के लिए बुलाया गया था। अधिकारियों का दावा है कि तलाशी के दौरान दल ने 11.5 लाख रुपये नकद बरामद किए।

शिव सेना ने आरोप लगाया है कि संघीय एजेंसी की कार्रवाई का उद्देश्य शिवसेना और महाराष्ट्र को कमजोर करना है और राउत के खिलाफ झूठा मामला तैयार किया गया है। याद रहे अप्रैल में ईडी ने जांच के तहत राउत की पत्नी वर्षा राउत और उनके दो सहयोगियों की 11.15 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति को अस्थायी रूप से कुर्क किया था।

सुनक का दांव, 2029 तक टैक्स की दर 20 फीसदी कम करने का वादा

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री पद की दौड़ में प्रतिद्वंदी लिज ट्रस से कड़ी टक्कर झेल रहे भारतीय मूल के पूर्व वित्त मंत्री ऋषि सुनक ने बड़ा दांव चलते हुए साल 2029 तक टैक्स की मूल दर को 20 तक कम करने का वादा करते हुए ब्रिटेन के लोगों को टैक्स में बड़ी राहत देने का मास्टर स्ट्रोक खेला है।

टैक्स को लेकर सुनक ने अपनी नीति में यह बड़ा बदलाव किया है, क्योंकि प्रचार की शुरुआत में सुनक का जोर ‘अनावश्यक राहत की नीति’ के खिलाफ था। सुनक का नया स्टैंड इस मायने में महत्वपूर्ण है कि टैक्स के दबाव से ब्रिटेन की जनता परेशान है। सुनक का नया दांव उन्हें पीएम पद के मुकाबले में फिर मजबूत कर सकता है।

सुनक ने यह दांव तब चला है जब प्रधानमंत्री जॉनसन के कट्टर समर्थक माने जाने वाले ब्रिटेन के वित्त मंत्री नादिम ज़हावी ने पीएम पद की उम्मीदवार सुनक की प्रतिद्वंदी लिज़ ट्रस का समर्थन किया है। यही नहीं बोरिस जॉनसन के एक समर्थक ने सुनक की ‘खतरनाक’ छवि दिखाने के लिए उनका हाथ में चाकू लिए एक फोटो रिट्वीट किया है।

हालांकि, कुछ मीडिया मीडिया रिपोर्ट्स सुनक की आर्थिक प्रबंधन की तारीफ़ कर रही हैं। यह भी कहा गया है कि यह सुनक ही थे जिन्होंने कोविड-19 महामारी के दौरान ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था संभालने में देश और बोरिस जॉनसन सरकार की बड़ी मदद की थी।

अब सुनक ने कहा है कि वह मुद्रास्फीति से निपटने पर ध्यान केंद्रित कर रहे थे, लेकिन एक बार यह हासिल हो जाने के बाद वह 2024 में आयकर से एक पेंस की छूट लेने के लिए पहले से घोषित योजना का पालन करेंगे, और फिर अगली संसद के अंत तक 3 पेंस की और छूट लेंगे,जो 2029 के आसपास होने की संभावना है।

प्रिंस चार्ल्स के ट्रस्ट ने आतंकी लादेन के परिवार से लिया था दान, ‘द संडे टाइम्स’ का दावा

क्या ब्रिटेन के शाही परिवार के उत्तराधिकारी प्रिंस चार्ल्स ने अपने ट्रस्ट (पीडब्ल्यूसीएफ) के लिए खूंखार आतंकवादी ओसामा बिन लादेन के परिवार से एक मिलियन पाउंड का दान स्वीकार किया था ? मशहूर अखबार ‘द संडे टाइम्स’ ने यह दावा किया है।

‘द संडे टाइम्स’ की रिपोर्ट में कहा गया है कि अब ट्रस्ट को मिले इस दान की जांच शुरू हो गई है। प्रिंस चार्ल्स के कई सलाहकारों ने उनसे आग्रह किया कि वे परिवार के मुखिया बकर बिन लादेन और उनके भाई शफीक, जो ओसामा के सौतेले भाई हैं, से ऐसा कोई चंदा न लें। दान को लेकर पीडब्ल्यूसीएफ के अध्यक्ष इयान चेशायर ने कहा कि उस समय पांच ट्रस्टियों की तरफ से दान पर सहमति जताई गई थी।

खबर में कहा कहा गया है कि, हालांकि, सऊदी परिवार के सदस्यों के किसी गलत काम में शामिल होने की बात सामने नहीं आई है। ब्रिटिश पुलिस ने फरवरी में एक सऊदी व्यवसायी से जुड़े कैश-फॉर-ऑनर्स घोटाले के दावों पर चार्ल्स की चैरिटेबल फाउंडेशन में से एक की जांच शुरू की थी।

द प्रिंस फाउंडेशन के प्रमुख ने पिछले साल आरोपों की आंतरिक जांच के बाद इस्तीफा दे दिया था। फाउंडेशन के मुख्य कार्यकारी माइकल फॉसेट, एक सऊदी नागरिक के साथ अपने संबंधों के बारे में अखबारों के खुलासे के बाद शुरू में अपनी ड्यूटी को सस्पेंड करने को सहमत हो गए थे।

बता दें टाइकून महफौज मारेई मुबारक बिन महफौज ने चार्ल्स को विशेष रुचि की बहाली परियोजनाओं के लिए बड़ी रकम दान की थी। फॉसेट, प्रिंस ऑफ वेल्स के एक पूर्व कर्मचारी, जो दशकों से महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के उत्तराधिकारी के करीब रहे हैं, पर आरोप है कि उन्होंने महफूज को शाही सम्मान और यहां तक कि यूके की नागरिकता देने के लिए प्रयास किया।

ज्ञानवापी मामले में मस्जिद कमेटी के वकील यादव का दिल के दौरे से निधन

ज्ञानवापी मामले में मुस्लिम पक्ष के वकील अभय नाथ यादव का रात दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। ख़बरों के मुताबिक पिछली रात करीब साढ़े 10 बजे उन्हें बेचैनी और सीने में दर्द होने पर परिजन अस्पताल ले गए, हालांकि वहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित किया।

यादव श्रृंगार गौरी मामले में अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी के प्रमुख वकील थे। परिजनों ने बताया कि उन्हें दिल का दौरा पड़ा था। उनके तकलीफ महसूस करने पर परिजन और साथी वकील उन्हें खजूरी स्थित शुभम अस्पताल ले गए। हालांकि, वहां डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया।

ज्ञानवापी मस्जिद के पक्ष में अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी की तरफ से अभयनाथ यादव अभी तक प्रमुख वकील के तौर पर अदालत पेश होते और जिरह करते नजर आते रहे हैं। उनके निधन से मस्जिद पक्ष को झटका लगा है।

यादव के निधन की जानकारी के बाद उनके घर और अस्पताल में अधिवक्ताओं की भीड़ लगी रही। बता दें ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी प्रकरण में अगली सुनवाई 4 अगस्त को होनी है। अदालत में वादी पक्ष की बातें पूरी होने के बाद मुस्लिम पक्ष की ओर से यादव इन दिनों मस्जिद पक्ष की ओर से आपत्ति दाखिल करने की तैयारी कर रहे थे। हाल ही में उनकी बेटी का विवाह हुआ था।

बहुत कम पहुंचते हैं अदालत, बाकी पीड़ा सहने को मजबूर : सीजेआई

सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना ने शनिवार को जनसंख्या का बहुत कम हिस्सा ही अदालत तक पहुंच सकता है। अखिल भारतीय जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों की पहली बैठक में उन्होंने कहा कि अधिकांश लोग जागरूकता और जरूरी जरियों के अभाव में मौन रहकर पीड़ा सहते को मजबूर रहते हैं। इसी कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने न्यायपालिका से आग्रह किया कि वह विभिन्न कारागारों में बंद और कानूनी मदद का इंतजार कर रहे विचाराधीन कैदियों की रिहाई की प्रक्रिया में तेजी लाए।

बैठक में सीजेआई रमना ने न्याय तक पहुंच को सामाजिक उद्धार का उपकरण बताया। उन्होंने कहा – ‘सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय की इसी सोच का वादा हमारी (संविधान की) प्रस्तावना प्रत्येक भारतीय से करती है। वास्तविकता यह है कि आज हमारी आबादी का केवल एक छोटा प्रतिशत ही न्याय देने वाली प्रणाली से जरूरत पड़ने पर संपर्क कर सकता है। जागरूकता और आवश्यक साधनों की कमी के कारण अधिकतर लोग मौन रहकर पीड़ा सहते रहते हैं।’

उन्होंने कहा कि आधुनिक भारत का निर्माण समाज में असमानताओं को दूर करने के लक्ष्य के साथ किया गया था। लोकतंत्र का मतलब सभी की भागीदारी के लिए स्थान मुहैया कराना है। सामाजिक उद्धार के बिना यह भागीदारी संभव नहीं होगी। न्याय तक पहुंच सामाजिक उद्धार का एक साधन है।

रमना ने कहा – ‘प्रधानमंत्री और अटॉर्नी जनरल ने मुख्यमंत्रियों और मुख्य न्यायाधीशों के हाल में आयोजित सम्मेलन में भी इस मुद्दे को उठाकर उचित किया। मुझे यह जानकर खुशी हो रही है कि राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण विचाराधीन कैदियों को अत्यावश्यक राहत देने के लिए सभी हितधारकों के साथ सक्रिय रूप से सहयोग कर रहा है। न्यायपालिका से वह न्याय देने की गति बढ़ाने के लिए आधुनिक प्रौद्योगिकी उपकरण अपनाए।’

इस मौके पर पीएम मोदी ने कहा कि व्यवसाय की सुगमता और जीवन की सुगमता जितनी महत्वपूर्ण है, न्याय की सुगमता भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। मोदी ने कहा कि कारागारों में कई विचाराधीन कैदी कानूनी मदद मिलने का इंतजार कर रहे हैं। हमारे जिला विधिक सेवा प्राधिकरण विचाराधीन कैदियों को कानूनी सहायता मुहैया कराने की जिम्मेदारी ले सकते हैं।

पीएम ने सम्मेलन में भाग लेने वाले जिला न्यायाधीशों से आग्रह किया कि वे विचाराधीन मामलों की समीक्षा संबंधी जिला-स्तरीय समितियों के अध्यक्ष के रूप में अपने कार्यालयों का उपयोग करके विचाराधीन कैदियों की रिहाई में तेजी लाएं।

मोदी ने उल्लेख किया कि राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण ने इस मामले में एक अभियान शुरू किया है। उन्होंने बार काउंसिल ऑफ इंडिया से इस प्रयास में और अधिक वकीलों को जोड़ने का आग्रह किया।