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हरियाली का भ्रम: कागज के पेड़ और जमीनी हकीकत

खाली भूमि नहीं है पर हर वर्ष करोड़ों पेड़ पौधे लगाए जा रहे हैं

बृज खंडेलवाल द्वारा

हर साल लाखों पेड़ कागजों पर लगाए जाते हैं, फिर भी जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी बयां करती है। केंद्र सरकार के वन विभाग की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, 2021 और 2023 के बीच भारत के वन क्षेत्र में 1,445 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि हुई, जिससे देश का कुल हरित आवरण 25.2% हो गया है।

हालांकि यह क्लेम सुकून देने वाला है, वास्तविकता कहीं अधिक जटिल है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, झारखंड, महाराष्ट्र, अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान और मिजोरम जैसे राज्यों में वन आवरण में बेशक वृद्धि दर्ज की गई है। परन्तु, एक अन्य रिपोर्ट से पता चलता है कि पिछले एक दशक में 46,000 वर्ग किलोमीटर वन भूमि को गैर-वन उपयोग में बदल दिया गया है।

आगरा जैसे शहरों में, कहानी गंभीर है। पिछले 30 वर्षों में लाखों पेड़ काटे जा चुके हैं। इनकी भरपाई आज तक नहीं हुई है।  कीथम  के जंगल सिकुड़ गए हैं, और  सूर सरोवर बर्ड सैंक्चूएरी और वेटलैंड  के क्षेत्र को कम करने के षड्यंत्री प्रयास जारी  हैं।   वृन्दावन में, रातोंरात सैकड़ों पेड़ काटे गए थे, और अब गधा पड़ा मलगोदाम  के पेड़ गायब हो गए हैं, जबकि  ताज ट्रेपजियम ज़ोन पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील इलाका है।

अपने प्रदेश में, पिछले 25 वर्षों में, हर मानसून के मौसम में कागजों पर करोड़ों पौधे लगाए गए हैं, लेकिन हम जो देखते हैं वह ज्यादातर  विलायती बबूल जैसी आक्रामक प्रजातियां हैं। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री   अखिलेश यादव ने एक ही दिन में 5 करोड़ पौधे लगाकर गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड भी बनाया था।  वर्तमान मुख्यमंत्री   योगी आदित्यनाथ ने 2018-19 में 9 करोड़ पौधे लगाने का लक्ष्य रखा, जिसमें राज्य भर में औषधीय और धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण पौधों का वादा किया गया था। लेकिन परिणाम क्या हुआ? पौधों के जीवित रहने की दर और फंड उपयोग पर विश्वसनीय डेटा दुर्लभ है। हर साल, वृक्षारोपण का लक्ष्य बढ़ता जाता है, जबकि खाली भूमि है नहीं। पिछले साल, यह टारगेट 22 करोड़ थी । हालांकि, इन प्रयासों को अक्सर जल्दबाजी में और खराब तरीके से नियोजित किया जाता है, जिससे अधिकांश पौधों की अकाल मृत्यु हो जाती है।

अधिकारी बड़े-बड़े दावे करते हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश का हरित आवरण  9 फीसदी ही है, जो राष्ट्रीय लक्ष्य 33 फीसदी से काफी कम है।

आगरा में एक हरित कार्यकर्ता ने टिप्पणी की, “ये कागज के पेड़ हैं जो केवल सरकारी फाइलों में मौजूद हैं। जमीनी हकीकत बिल्कुल अलग है। बड़े पैमाने पर निर्माण परियोजनाओं ने हरियाली को मिटा दिया है, जिससे पेड़ों के लिए कम जगह बची है। पर्यावरण के प्रति संवेदनशील   ताज ट्रेपजियम ज़ोन में, मथुरा में सिर्फ 1.28% से लेकर आगरा में 6.26% तक ग्रीन कवर है। मुद्दा यह नहीं है कि हर साल कितने पौधे लगाए जाते हैं, बल्कि यह है कि क्या वे कम से कम तीन साल तक जीवित रहते हैं और पनपते हैं। इसके अतिरिक्त, जैव विविधता को बढ़ावा देने के लिए स्थानीय परिस्थितियों के अनुकूल विविध प्रजातियों के रोपण पर ध्यान केंद्रित किया जाता है या नहीं।

अगर एक दिन में 10 फुट के अंतराल पर 25 करोड़ पौधे लगाए जाने हैं, तो क्या उत्तर प्रदेश में इतने बड़े अभियान के लिए जगह भी है? पिछले प्रयासों से पता चला है कि इन अभियानों को कितनी लापरवाही से निष्पादित किया जाता है, जिसमें कई पौधे खुले मैदानों या कचरे के ढेर में समाप्त होते हैं। ऐसे निरर्थक अभ्यासों पर धन क्यों बर्बाद करें?

यमुना  और आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे, कई फ्लाईओवर, शहर के भीतरी रिंग रोड, और दिल्ली के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग के चौड़ीकरण ने हरी-भरी भूमि के विशाल इलाकों का उपभोग किया है, जिससे  ताज महल  राजस्थान के रेगिस्तान से धूल भरी हवाओं से संघर्ष कर रहा है।  सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक स्मारकों को वायु प्रदूषण से बचाने के लिए ग्रीन बफर बनाने का निर्देश दिया था, लेकिन   ताज ट्रेपजियम ज़ोन में बहुत कम सुधार हुआ है। पर्यावरणविदों ने चेतावनी दी है कि आगरा का सिकुड़ता हरा आवरण एक टिक टिक टाइम बम है।

1996 के बाद से, सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार अधिकारियों से ग्रीन बेल्ट विकसित करके आगरा में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के प्रयासों में तेजी लाने का आग्रह किया है। पर्यावरणविद इस बात पर अफसोस जताते हैं कि हरे-भरे जंगलों की जगह कंक्रीट के जंगलों ने ले ली है।   वृन्दावन से आगरा तक,   ब्रज  क्षेत्र में कभी 12 प्रमुख वन थे। अब वे केवल नाम ही बचे हैं। हरे क्षेत्र काले, पीले और भूरे रंग के हो गए हैं, एक ग्रीन कार्यकर्ता जगन नाथ पोद्दार ने बताया।

सड़कों, एक्सप्रेसवे और फ्लाईओवरों के निरंतर निर्माण ने हरियाली, विशेष रूप से पेड़ों को बुरी तरह प्रभावित किया है। हरियाली के नुकसान ने वर्षा के पैटर्न को बाधित कर दिया है, जिससे आगरा में बारिश के दिनों की संख्या कम हो गई है।

पर्यावरण कार्यकर्ता डॉ.  Debashish Bhattacharya (देवाशीष भट्टाचार्य)  ने चेतावनी देते हुए कहा, “तथाकथित विकास के नाम पर आगरा को बर्बाद किया जा रहा है। नौकरशाही की लापरवाही और भ्रष्ट प्रथाओं के कारण हरियाली में खतरनाक गिरावट आत्मघाती साबित होगी। उन्होंने कहा कि बंदरों की बढ़ती आबादी आंशिक रूप से दोषी है। “बंदर एक बड़ी समस्या हैं। हम हर जगह पौधे लगाते हैं, लेकिन अगले दिन उन्हें उखाड़ फेंकने का पता चलता है। वृक्ष प्रेमी  (चतुर्भुज तिवारी)  ने कहा, “शहर में हरित संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए, हमें बंदरों की आबादी को भी नियंत्रित करना होगा।

लेखक के बारे में

बृज खंडेलवाल, (1972 बैच, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन,) पचास वर्षों से सक्रिय पत्रकारिता और शिक्षण में लगे हैं। तीन  दशकों तक IANS के सीनियर कॉरेस्पोंडेंट रहे, तथा आगरा विश्वविद्यालय, केंद्रीय हिंदी संस्थान के पत्रकारिता विभाग  में सेवाएं दे चुके हैं। पर्यावरण, विकास, हेरिटेज संरक्षण, शहरीकरण, आदि विषयों पर देश, विदेश के तमाम अखबारों में लिखा है, और ताज महल, यमुना, पर कई  फिल्म्स में कार्य किया है। वर्तमान में रिवर कनेक्ट कैंपेन के संयोजक हैं।

मुद्दा- चुनाव आयोग का दोहरापन

पंडित प्रेम बरेलवी

चुनाव आयोग पर ईवीएम हैकिंग जैसे गंभीर आरोप लगातार लगते रहे हैं। ये आरोप कितने सही हैं और कितने ग़लत? इस बारे में स्पष्ट तो कुछ नहीं है; लेकिन चुनाव आयोग का दोहरापन दूसरे कई मामलों में स्पष्ट रूप से उजागर होता है। किसी भी चुनाव में नेताओं की मनमानी पर चुनाव आयोग का आँखें मूँद लेना देश के लोकतंत्र की रक्षा का सबसे बड़ा भार उठाने वाली इस स्वायत्त संस्था के दोहरेपन का सबसे घिनौना उदाहरण है।

अफ़सोस होता है, जब चुनाव आयोग सत्ताधारी नेताओं की अनर्गल भाषा, पैसे, शराब, कपड़े, मुर्ग़ा आदि बाँटने को अनदेखा करके सिर्फ़ कमज़ोर और विपक्षी पार्टियों के नेताओं को आचार संहिता एवं चुनावी प्रक्रिया के क़ायदे-क़ानूनों का कड़ाई से पालन करने के निर्देश देता है। चुनाव आयोग का उत्तरदायित्व और परम् कर्तव्य है कि वह निष्पक्ष होकर देश में चुनाव कराए। भारत के संविधान ने निर्वाचन आयोग को स्वतंत्र एवं संवैधानिक निकाय का दर्जा इसलिए दिया है, जिससे वह किसी लालच या दबाव के बिना देश में विधानसभाओं और लोकसभा से लेकर राष्ट्रपति तक के चुनाव ईमानदारी से करा सके। अगर कोई सरकार, पार्टी अथवा नेता किसी तरह का दबाव बनाते हैं। लालच देकर चुनाव जिताने की अपील करते हैं। किसी भी बूथ पर किसी तरह की कोई गड़बड़ी फैलाते हैं, तो भारत निर्वाचन आयोग अर्थात् चुनाव आयोग अनुच्छेद-324 के तहत संविधान द्वारा प्रदत्त अपनी शक्तियों का उपयोग करके ऐसे व्यक्ति, नेता, मंत्री और पार्टी के ख़िलाफ़ इस्तेमाल करके उन्हें जेल में भेज सकता है, यहाँ तक कि पार्टी के चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा सकता है। लेकिन अक्सर देखा जाता है कि चुनाव आयोग अपनी मनपसंद पार्टी के द्वारा चुनावी प्रक्रिया की धज्जियाँ उड़ाने के मामलों में आँखें मूँद लेता है। सन् 2019 के लोकसभा चुनाव में वाराणसी लोकसभा सीट पर प्रधानमंत्री मोदी के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ने के लिए नामांकन भरने वाले ज़्यादातर प्रत्याशियों के नामांकन उनमें कमियाँ निकालकर ख़ारिज किये गये थे। चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री मोदी का नामांकन पत्र वायरल हुआ, जिसमें कमियाँ थीं; लेकिन चुनाव आयोग ने उनका नामांकन पत्र ख़ारिज नहीं किया। नरेंद्र मोदी ने गुजरात में विधानसभा चुनाव लड़ने से लेकर लोकसभा के तीन चुनाव लड़ने तक अपने नामांकन पत्र में वैवाहिक जीवन और शैक्षणिक योग्यता को लेकर अलग-अलग जानकारियाँ दी हैं, जबकि यह बात किसी से नहीं छिपी है कि वह शादीशुदा भी हैं और उनकी शैक्षणिक योग्यता क्या है?

अब दिल्ली में भाजपा नेताओं के द्वारा मतदाताओं को रुपये, कंबल और दूसरी चीज़ें बाँटने के कई वीडियो वायरल हो रहे हैं, जिन्हें चुनाव आयोग अनदेखा कर रहा है। भाजपा सांसद रमेश बिधूड़ी की अभद्र टिप्पणियाँ, झूठे विज्ञापनों को भी चुनाव आयोग अनदेखा कर रहा है। लेकिन वह भाजपा नेताओं के द्वारा मतदाताओं के मताधिकार को छीनने की नीयत से उनके मत निरस्त करने की सूचियों पर पूरा ध्यान दे रहा है और उन्हें तत्काल बिना किसी पड़ताल के निरस्त भी कर रहा है। भाजपा नेताओं पर फ़र्ज़ी मतदाता पहचान पत्र बनवाने के आरोप भी लग रहे हैं। चुनाव आयोग की संलिप्तता के बिना आख़िर यह सब कैसे हो रहा है? सन् 2019 एवं सन् 2024 के लोकसभा चुनाव में कई मतदाताओं को बूथों पर नियुक्त अधिकारियों द्वारा मतदान न करने देने के अनेक मामले उजागर हुए थे। कई जगह ईवीएम की हेराफेरी के वीडियो हर विधानसभा और लोकसभा चुनाव में कहीं-न-कहीं सामने आते रहे हैं। लेकिन चुनाव आयोग न सिर्फ़ ख़ामोश रहता है, बल्कि सफ़ाई भी देता है। पिछले साल हरियाणा और महाराष्ट्र में तो दिन भर के मतदान के कई दिन बाद मतों की गितनी वाले दिन कई ईवीएम की बैटरी ही 97 से 99 प्रतिशत चार्ज मिली। क्या चुनाव आयोग बता सकता है कि ऐसी कौन-सी बैटरी वह किसी-किसी ईवीएम में इस्तेमाल करता है, जो पूरे दिन इस्तेमाल होने और कई दिन रखे रहने के बाद भी फुल चार्ज रहती है? भाजपा प्रत्याशी जीतते भी इन्हीं फुल चार्ज ईवीएम वाली सीटों से हैं।

पार्टियों द्वारा चुनाव के दौरान धन-बल के उपयोग और तय सीमा से ज़्यादा चुनावी व्यय पर भी अंकुश लगाना चुनाव आयोग का परम् कर्तव्य है। लेकिन कड़े नियमों के बावजूद आजकल के सभी चुनावों में पार्टियों के नेता, विशेषकर सत्ताधारी पार्टियों के नेता काले धन के प्रभाव से चुनाव जीतने का प्रयास करते हैं, जो कि न सिर्फ़ चुनाव आयोग के लिए शर्म की बात है, बल्कि लोकतंत्र के लिए अत्यधिक नुक़सानदायक है। चुनावों में अवैध फंडिंग, अरबों रुपये का ख़र्च और अनर्गल प्रचार-प्रसार आज का चलन बन चुका है, जो चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता को कमज़ोर कर रहा है। अगर चुनाव आयोग को इस सबके बाद भी आँखें ही मूँदकर रखनी हैं, तो फिर आदर्श आचार संहिता किसलिए है? वह निष्पक्ष चुनाव कराने का दम्भ क्यों भरता है? ऐसा लगता है कि चुनाव आयोग के ऊपर भी किसी निष्पक्ष संस्था का गठन करने की आवश्यकता है, जो चुनाव आयोग के अधिकारियों की पारदर्शिता पर भी नज़र रख सके। 

दिल्ली अभी दूर है- देश की राजधानी दिल्ली में त्रिकोणीय मुक़ाबला

*किसी के लिए भी आसान नहीं एकतरफ़ा जीत

इंट्रो-आने वाली 05 फरवरी को दिल्ली में विधानसभा चुनाव के लिए मतदान होना है और उसके तीसरे दिन ही 08 फरवरी को चुनाव परिणाम घोषित हो जाएँगे। इस चुनाव में जीत किसकी होगी? इसका दावा तो नहीं किया जा सकता; लेकिन आम आदमी पार्टी को हराने की कोशिश में लगी भाजपा और कांग्रेस के लिए इस चुनावी जंग जीत पाना किसी पहाड़ पर चढ़ने से भी मुश्किल नज़र आ रहा है। इस बार मुश्किलें आम आदमी पार्टी की भी कम नहीं हैं; लेकिन उसकी सरकार के काम, उसकी मुफ़्त की योजनाएँ और इस बार के लिए जनता से किये जा रहे पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के वादे भाजपा और कांग्रेस के पसीने छुड़ाये हुए हैं। इसके चलते भाजपा और कांग्रेस को भी मुफ़्त योजनाओं के वादे करने पड़ रहे हैं। इस बार मतदान से पहले का दिल्ली का माहौल कैसा है? बता रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीति विश्लेषक के.पी. मलिक

देश की राजधानी दिल्ली में विधानसभा चुनाव का बिगुल फुँक चुका है। चुनाव आयोग ने बीते मंगलवार को केंद्रशासित प्रदेश दिल्ली में विधानसभा चुनाव की तारीख़ का ऐलान कर दिया है। दिल्ली में 70 सीटों के लिए विधानसभा चुनाव एक ही चरण में संपन्न कराया जाएगा। चुनाव आयोग के मुताबिक, दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग 05 फरवरी, 2025 को होगी। वहीं चुनाव का परिणाम 08 फरवरी, 2025 को आएगा। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि तक़रीबन पिछले छ: महीने से आम आदमी पार्टी चुनावी रणनीति तैयार कर रही थी और इसी के चलते जेल से छूटते ही अरविंद केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा देकर आतिशी को मुख्यमंत्री बनाया था। वहीं भाजपा की अगर बात करें, तो उसने दिल्ली के 2025 के विधानसभा चुनाव जीतने की तैयारियाँ साल 2020 का दिल्ली का चुनाव हारने के बाद से ही शुरू कर दिया था; लेकिन कथित शराब घोटाले को हथियार बनाकर उसने चुनावी रुख़ बदलने की कोशिश शुरू कर दी थी।

इस बार का विधानसभा चुनाव अहम है। क्योंकि इससे एक तरफ़ जहाँ आप पार्टी दिल्ली में अपना वजूद बनाये रखने के लिए लड़ेगी, वहीं भाजपा और कांग्रेस अपनी खोई हुई ज़मीन दोबारा से हासिल करने की कोशिश करेंगी। दोनों ही पुरानी पार्टियों के लिए इस चुनाव में जीत या कम-से-कम बढ़त बनाना इसलिए ज़रूरी है, क्योंकि दोनों को अपनी खोई हुई ज़मीन वापस पानी है। भाजपा के लिए ये सबसे ज़्यादा अहम है, क्योंकि पूरे देश में अपनी अलग छाप छोड़ने वाले प्रधानमंत्री मोदी की दाल दिल्ली में नहीं गल पाती है, जबकि 2014 के बाद से सभी लोकसभा और विधानसभा के चुनाव उन्हीं के चेहरे पर लड़े जाते रहे हैं। इसी के चलते दोनों पार्टियाँ इस बार पहले से ज़्यादा ताक़त झोंक रही हैं। आम आदमी पार्टी को अपनी सत्ता बचाने की लड़ाई इस बार और ताक़त से लड़नी होगी। ऐसे में दिल्ली की इन तीनों अहम राजनीतिक पार्टियों के लिए यह चुनाव बहुत महत्त्वपूर्ण है।

दरअसल, लोकसभा चुनाव से लेकर कई राज्यों, ख़ासतौर पर हाल में ही हरियाणा और महाराष्ट्र में प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे पर चुनाव जीतने का दम्भ भाजपा को रहा है। हालाँकि यह अलग बात है कि न तो इस बार साल 2024 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी का जादू पहले की तरह सब वोटर्स से सिर पर चढ़कर बोल सका और न ही उनका जादू झारखण्ड और जम्मू-कश्मीर में ही चल सका। दिल्ली में भी प्रधानमंत्री मोदी का कोई जादू पिछले 10 साल से नहीं चल रहा है। इस बात का दर्द प्रधानमंत्री मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और दूसरे भाजपाई नेताओं को है। इसलिए उन्होंने इस बार मैदान में उतरकर दिल्ली में पहले से ज़्यादा रैलियाँ और जनसभाएँ करने का बीड़ा उठाया है। उनके साथ-साथ उनके सबसे क़रीबी और केंद्र की सत्ता में भी दूसरे नंबर के सबसे ज़्यादा ताक़तवर देश के गृहमंत्री अमित शाह और पूरी भाजपा लॉबी आम आदमी पार्टी के अध्यक्ष अरविंद केजरीवाल के ख़िलाफ़ मैदान में कूद गयी है; यहाँ तक कि उपराज्यपाल भी मैदान में हैं, जो संवैधानिक रूप से ग़लत है। भाजपा ने मोदी के लिए एक कहावत बनायी थी कि शेर अकेला चलता है, यहाँ उलटी पड़ती दिख रही है और यहाँ दिल्ली में शेर केजरीवाल हैं।

बता दें कि भाजपा साल 1998 से दिल्ली सरकार की सत्ता से बाहर है। साल 2022 में आम आदमी पार्टी ने उसे दिल्ली नगर निगम की सत्ता से भी बाहर कर दिया। अपनी इस हार का बदला भाजपा के नेतृत्व में बनी केंद्र सरकार ने इसका बदला दिल्ली सरकार की ज़्यादातर ताक़तें छीनकर तो लीं और सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बावजूद दिल्ली का बॉस उप राज्यपाल को घोषित कर दिया; लेकिन दिल्ली की जनता के दिल में वो अरविंद केजरीवाल की तरह जगह बनाने में अभी भी नाकाम हैं। और दिल्ली की जनता के दिल में जगह बनाने की जगह उनके नेता कभी दिल्ली की जनता को मुफ़्तख़ोर कहते रहे हैं, तो कभी ग़रीब। लेकिन वे भूल जाते हैं कि लोकसभा चुनाव में यही दिल्ली की जनता उन्हें एकतरफ़ा जीत दो बार दिला चुकी है। तो ये खेल दिल्ली विधानसभा और दिल्ली लोकसभा का है, जिसमें लोगों को दिल्ली में केजरीवाल और केंद्र में मोदी को पहली पसंद बताते या मानते देखा जाता है।

बहरहाल, दिल्ली में भाजपा की आख़िरी मुख्यमंत्री सुषमा स्वराज थीं, जो अब इस दुनिया में नहीं हैं। वह साल 1998 में महज़ 52 दिन तक मुख्यमंत्री रह सकी थीं। इससे पहले भाजपा ने दिल्ली में बीजेपी ने 1993 में पहली बार सत्ता का स्वाद चखा था। लेकिन इसी बीच दिल्ली में साल 1996 में प्याज के दाम आसमान छूने लगे और लोगों को शान्त करने के लिए पहले भाजपा संगठन ने मुख्यमंत्री  मदन लाल खुराना को हटाकर साहिब सिंह वर्मा को मुख्यमंत्री बना दिया; लेकिन जब हालात बदलते नहीं दिखे और साल 1998 के दिल्ली विधानसभा के चुनाव सिर पर आ गये, तो भाजपा संगठन ने आख़िरकार चुनाव से 50 दिन पहले एक निर्विरोध, साफ़-स्वच्छ और तेज़तर्रार छवि की माने जानी वाली सुषमा स्वराज को मुख्यमंत्री बना दिया।

कांग्रेस ने भाजपा के इस चेहरे की काट के लिए शीला दीक्षित को मैदान में उतार दिया। शीला दीक्षित उत्तर प्रदेश की बहू और पंजाब की बेटी थीं। बस पूरा चुनाव उलट गया और कांग्रेस ने उनके चेहरे पर साल 1998, साल 2003 और साल 2008 के विधानसभा चुनावों में जीत हासिल करके 15 साल तक शासन किया। साल 2012 में अन्ना आन्दोलन ने कांग्रेस को कमज़ोर किया और उसी आन्दोलन से अरविंद केजरीवाल निकलकर आये। उनकी बनायी आम आदमी पार्टी साल 2013 में दूसरी सबसे बड़ी क्षेत्रीय पार्टी बनकर उभरी। उस समय दिल्ली की 70 सीटों में से 31 सीटें भाजपा ने जीती थीं, क्योंकि कांग्रेस के ख़िलाफ़ पूरे देश में एक माहौल बन चुका था और उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम भी प्रधानमंत्री पद के लिए एक साफ़-सुथरी छवि के रूप में वायरल होने लगा था। लेकिन इस बदलाव के बीच अरविंद केजरीवाल ने अचानक मैदान में उतरकर 28 सीटें जीत लीं और कांग्रेस महज़ आठ सीटों पर जीत हासिल की। तीन सीटों पर निर्दलीय जीते। दिल्ली में सरकार बनाने के लिए किसी भी पार्टी को कम-से-कम 36 सीटें चाहिए और भाजपा इतनी सीटें जुटाने में कामयाब नहीं हो सकी। इसके चलते कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी की इस शर्त पर सरकार बनाना उचित समझा कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल होंगे। लेकिन 49 दिन की सरकार चलाकर अरविंद केजरीवाल ने यह कहकर इस्तीफ़ा दे दिया कि कांग्रेस लोकपाल बिल नहीं लाने दे रही है।

बहरहाल, राष्ट्रपति शासन लागू हुआ और तक़रीबन दो साल बाद साल 2015 में जब विधानसभा चुनाव हुए, तो आम आदमी पार्टी ने 70 में 67 सीटों पर बंपर जीत हासिल करके अपनी सरकार बनायी और भाजपा को इस चुनाव में जहाँ महज़ तीन सीटें मिलीं, वहीं कांग्रेस शून्य हो गयी। यह पहली बार था कि दिल्ली में एक भी निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव नहीं जीत सका। तक़रीबन यही दोहराव साल 2020 के दिल्ली के विधानसभा चुनाव में हुआ। लेकिन इस साल आम आदमी पार्टी की 62 सीटें रह गयीं, आठ सीटें भाजपा को मिलीं और कांग्रेस फिर से शून्य पर रह गयी। कांग्रेस फिर शून्य पर रह गयी और कोई निर्दलीय उम्मीदवार भी नहीं जीत सका। साल साल 2013 से 2020 के बीच भाजपा को पाँच फ़ीसदी वोट ज़्यादा कुल 32.19 फ़ीसदी मिले। वहीं भाजपा का वोट शेयर भी बढ़कर 38.51 के क़रीब पहुँच गया; लेकिन सीटें 31 से आठ ही रह गयीं। इसकी वजह ये रही कि साल 3013 में कांग्रेस का वोट फ़ीसद भी ज़्यादा था और साल 2020 में आम आदमी पार्टी का वोट फ़ीसद भी बढ़ा। उसे जहाँ साल 2013 में 29.70 फ़ीसदी वोट मिले, वहीं साल 2015 में 54.5 फ़ीसदी वोट मिले और साल 2020 में 53.8 फ़ीसदी वोट ही मिले। लेकिन कांग्रेस इन दोनों ही चुनावों में बहुत कम फ़ीसदी वोट हासिल कर सकी। इस बार भी आम आदमी पार्टी के पास 18 फ़ीसदी स्विंग वोटर्स यानी ग़रीब तबक़े का वोटर है, जिसका काट भाजपा और कांग्रेस के पास नहीं है।

दिल्ली केंद्र शासित राज्य है और यहाँ की चुनी हुई सरकार को उतने अधिकार नहीं हैं, जितने कि दूसरी राज्य सरकारों के पास हैं। दिल्ली में आम आदमी पार्टी की केजरीवाल सरकार और केंद्र में एनडीए की मोदी सरकार में साल 2015 से ही तकरार और तनाव चल रहा है; लेकिन यह तकरार साल 2020 से दिल्ली में आम आदमी की सरकार बनने के बाद से और बढ़ गया। इससे पहले साल 2019 में भाजपा की मज़बूत वापसी के बाद जब नरेंद्र मोदी दोबारा देश के प्रधानमंत्री बने और साल 2014 में पार्टी के अध्यक्ष बने अमित शाह देश के गृह मंत्री बने, तो दिल्ली और केंद्र सरकारों के बीच तकरार बढ़ना स्वाभाविक था। प्रधानमंत्री मोदी के बारे में एक मान्यता है कि जहाँ वो खड़े होते हैं, वहाँ किसी और के लिए जगह ही नहीं छोड़ी जाती, विरोधियों के लिए तो बिलकुल भी नहीं। इस तकरार में दिल्ली सरकार की शक्तियाँ छीनने से लेकर राजनीतिक छींटाकशी और दिल्ली सरकार के प्रमुख चेहरों को कथित शराब घोटाले के नाम पर जेल भेजने तक का क्रम चला; लेकिन आख़िरकार राजनीति और वोट बैंक की धुरी दिल्ली में काम को लेकर ही टिकी हुई है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल दिल्ली की जनता से यह कहने की हिम्मत रखते हैं कि उन्होंने अगर काम किया हो, तो उन्हें वे वोट दें। वहीं प्रधानमंत्री मोदी से लेकर भाजपा के तमाम नेता सिर्फ़ और सिर्फ़ आम आदमी पार्टी की सरकार और पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर कीचड़ उछालने के अलावा अपना कोई नैरेटिव सेट नहीं कर सके हैं।

दिल्ली में किसी भी पार्टी के लिए इस बार एकतरफ़ा चुनावी जीत आसान नहीं है। इस बार के चुनाव में कांग्रेस और भाजपा अपनी वापसी के लिए जद्दोजहद कर रही हैं, तो आम आदमी पार्टी सत्ता बचाने की कोशिश में है। दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी प्रमुख केजरीवाल को नई दिल्ली विधानसभा सीट पर इस बार सबसे कड़ी टक्कर मिल सकती है। भाजपा और कांग्रेस के नेता उन्हें उनके सरकारी आवास के सौंदर्यीकरण और साफ़-सफ़ाई आदि मुद्दों पर घेर रहे हैं। भ्रष्टाचार और सड़क व्यवस्था पर भी दोनों पार्टियाँ आप सरकार को घेर रही हैं।

बहरहाल, भाजपा और कांग्रेस इस बार दिल्ली जीतने के लिए कड़ी रणनीति बना रही हैं। दोनों पार्टियाँ आम आदमी पार्टी के द्वारा सभी 70 सीटों पर उम्मीदवार घोषित करने के बाद अपने उम्मीदवार आम आदमी पार्टी के चेहरों की ताक़त के हिसाब से उतार रही हैं। भाजपा दिल्ली में कम-से-कम हरियाणा जैसे बहुमत को पाना चाहती है। हरियाणा और महाराष्ट्र जीतने के बाद उसके तेवर भी बदले हैं और साहस भी; लेकिन समस्या यह है कि भाजपा के पास दिल्ली में अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया जैसे मज़बूत चेहरे नहीं हैं। इसलिए भाजपा अपने पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के बेटे प्रवेश वर्मा को सबसे मज़बूत चेहरा मानकर उन्हें केजरीवाल के ख़िलाफ़ नई दिल्ली विधानसभा सीट से उतार रही है। यही स्थिति कांग्रेस की भी है। उसके पास भी दिल्ली में नेतृत्व की कमी है। अजय माकन के नेतृत्व में दिल्ली में कांग्रेस को कुछ भी हासिल नहीं हुआ, इसलिए उसने भी शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित पर ही केजरीवाल के ख़िलाफ़ दाँव खेला है। लेकिन भाजपा के पास न सिर्फ़ प्रचार तंत्र सबसे बड़ा है, बल्कि आईटी सेल, जो अपने नेताओं की तरह ही झूठ फैलाने में माहिर है, बल्कि संघ की ताक़त भी है। इसके अलावा चुनाव आयोग, ईडी, सीबीआई और एक बड़ा लालफीताशाही का तबक़ा उसकी मुट्ठी में है। वहीं दूसरी तरफ़ आम आदमी पार्टी के पास सिर्फ़ तीन-चार मज़बूत चेहरे हैं।

दिल्ली में आम आदमी पार्टी की केजरीवाल सरकार और केंद्र में एनडीए की मोदी सरकार में साल 2015 से ही तकरार और तनाव चल रहा है; लेकिन यह तकरार साल 2020 से दिल्ली में आम आदमी की सरकार बनने के बाद से और बढ़ गया। इससे पहले साल 2019 में भाजपा की मज़बूत वापसी के बाद जब नरेंद्र मोदी दोबारा देश के प्रधानमंत्री बने और साल 2014 में पार्टी के अध्यक्ष बने अमित शाह देश के गृह मंत्री बने, तो दिल्ली और केंद्र सरकारों के बीच तकरार का बढ़ना स्वाभाविक था। प्रधानमंत्री मोदी के बारे में एक मान्यता है कि जहाँ वो खड़े होते हैं, वहाँ किसी और के लिए जगह ही नहीं छोड़ी जाती, विरोधियों के लिए तो बिलकुल भी नहीं।

इस तकरार में दिल्ली सरकार की शक्तियाँ छीनने से लेकर राजनीतिक छींटाकशी और दिल्ली सरकार के प्रमुख चेहरों को कथित शराब घोटाले के नाम पर जेल भेजने तक का क्रम चला; लेकिन आख़िरकार राजनीति और वोट बैंक की धुरी दिल्ली में काम को लेकर ही टिकी हुई है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल दिल्ली की जनता से यह कहने की हिम्मत रखते हैं कि उन्होंने अगर काम किया हो, तो उन्हें वे वोट दें। वहीं प्रधानमंत्री मोदी से लेकर भाजपा के तमाम नेता सिर्फ़ और सिर्फ़ आम आदमी पार्टी की सरकार और पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर कीचड़ उछालने के अलावा अपना कोई नैरेटिव सेट नहीं कर सके हैं। कांग्रेस के पास न कोई विजन है और न ही वो अभी तक कोई बड़ा नैरेटिव सैट नहीं कर सकी है। उसके पास अपनी वापसी के इंतज़ार और चंद वादों के अलावा ज़्यादा कुछ नहीं है। हालाँकि इस चुनाव में दूसरे चुनावों की तरह ही पार्टियों के बीच छींटाकशी का दौर इस क़दर हावी हो गया है कि चुनाव मुद्दों से भटक गया है। भाजपा ने अपने परंपरागत तरीक़े से इस चुनाव को मुद्दों से भटकाया है, तो अब कांग्रेस भी उसी रास्ते पर चलती दिख रही है।

आम आदमी पार्टी की मज़बूती

राजनीतिक गलियारों में ऐसी चर्चा है कि भाजपा के लिए आम आदमी पार्टी के ख़िलाफ़ मुक़ाबला कठिन है। उसके अपने सर्वे की रिपोर्ट में भी आम आदमी पार्टी की सरकार बन रही है। क्योंकि झुग्गी-झोंपड़ियों, अनधिकृत कॉलोनियों, अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्रों के अलावा निम्न मध्यम वर्गीय इलाक़ों में तो आम आदमी पार्टी का मज़बूत समर्थन आधार है ही, उच्च वर्गीय लोगों में भी काफ़ी वोट बैंक है। लेकिन भाजपा का वोट बैंक सिर्फ़ उसका मज़बूत आधार वोटर और कुछ उच्च वर्गीय, मध्यम वर्गीय लोगों तक ही सीमित है। यही वजह है कि इस बार भाजपा उन जगहों पर ज़्यादा प्रचार-प्रसार में जुटी है, जहाँ आम आदमी पार्टी का मज़बूत वोट बैंक है।

आम आदमी पार्टी के पास दिल्ली में किये हुए काम हैं, जिसमें दिल्ली की जनता को देने के लिए अस्पतालों, स्कूलों, फ्लाईओवर, सीवर, पानी की पाइपलाइन, वाटर हार्वेस्टिंग टैंक, तालाबों-झीलों में सुधार, फुटपाथों, पार्कों, सड़कों में सुधार की व्यवस्था के अलावा मुफ़्त की सुविधाओं का एक पिटारा है, जिसमें अब तीन नये वादे जुड़ गये हैं। एक दिल्ली की हर महिला को 2,100 रुपये महीने का भुगतान का वादा, दूसरा दिल्ली के मंदिरों के पुजारियों, गुरुद्वारों के पंथियों के लिए 18-18 हज़ार रुपये महीने के वेतन का वादा और तीसरा आरडब्लूए (RWA,s) के सिक्योरिटी गार्ड रखने के लिए दिल्ली सरकार द्वारा वेतन दिये जाने का वादा। ये सब आम आदमी पार्टी के लिए लाभदायक साबित होने की उम्मीद है। लेकिन हरियाणा और महाराष्ट्र में उसकी हार, कथित शराब घोटाले का मामला, भाजपा का प्रचार तंत्र, घेराव, उसकी सरकार के ख़िलाफ़ चल रही मुहिम और लोगों में लंबे समय के बाद जैसा कि किसी भी पार्टी के ख़िलाफ़ एक मन बनने लगता है, वो सब आम आदमी पार्टी के लिए मुश्किलों में डाल सकते हैं।

अगर राजनीति की बात करें, तो केजरीवाल देश के दूसरे ऐसे नेता कहे जा सकते हैं, जो प्रधानमंत्री मोदी के खुले और कट्टर विरोधी के रूप में खुलकर सामने हैं। वह राजनीतिक नब्ज़ को बहुत तेज़ी से पकड़ते हैं और भाजपा को उनकी काट ढूँढने में पसीने छूट रहे हैं। अरविंद केजरीवाल की चुनौतियाँ और चुभते हुए हमले इतने तीखे होते हैं कि भाजपा का कोई नेता तो दूर, ख़ुद प्रधानमंत्री भी उन्हें चुनौती देने का साहस नहीं जुटा पाते। पिछले चार-पाँच साल में केजरीवाल के इन्हीं हमलों और चुनौतियों के चलते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लगातार इस राजनीतिक लड़ाई में ख़ामोश रहना पड़ा। केजरीवाल जहाँ लगातार प्रेस कॉन्फ्रेंस करके सवालों के जवाब देते रहे हैं, वहीं प्रधानमंत्री मोदी ने अभी तक एक भी प्रेस कॉन्फ्रेंस ऐसी नहीं की है, जहाँ उन्होंने जनता या देश से सम्बन्धित जवाब दिये हों। उनका काम विज्ञापनों और भाषणों में अपनी वाहवाही करके और दूसरी पार्टियों को कोसकर चले जाना है। दूसरी तरफ़ अरविंद केजरीवाल की योग्यता भी दूसरे ज़्यादातर नेताओं, ख़ासतौर पर भाजपा के ज़्यादातर नेताओं से ज़्यादा है।

इस पर दिल्ली चुनाव से पहले ही आम आदमी पार्टी के द्वारा की जाने वाली घोषणाएँ और पार्टी प्रमुख व दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के द्वारा सबसे ज़्यादा प्रेस कॉन्फ्रेंस करने से वह अभी भी जीत के सबसे क़रीब माने जा रहे हैं। अरविंद केजरीवाल भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी द्वारा उन पर लगाये जा रहे आरोपों को लेकर भी प्रधानमंत्री मोदी को खुली प्रेस कॉन्फ्रेंस की चुनौती देते फिर रहे हैं, जिसका कि भाजपा को कोई जवाब देते नहीं बन रहा है।

ज़्यादातर राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अरविंद केजरीवाल हमेशा गहरी और भविष्यवाणी वाली राजनीति भी करते हैं। वह पहले से ही बता देते हैं कि भाजपा आगे क्या करेगी। जिस प्रकार से उन्होंने साल 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले ही बता दिया था कि अगर देश में भाजपा की सरकार बनती है, तो अमित शाह गृह मंत्री बनेंगे, उसी प्रकार से इस बार उन्होंने भाजपा नेता रमेश बिधूड़ी का नाम लेकर कहा है कि अगर दिल्ली में भाजपा जीतती है, तो रमेश बिधूड़ी को मुख्यमंत्री बनाएगी। और रमेश बिधूड़ी की बदतमीजी के बारे में कौन नहीं जानता? संसद से सड़क तक उनकी भाषा गली के गुंडों वाली ही रही है, जिसे लेकर चुनाव आयोग को इस बार कहना पड़ा कि ग़लत भाषा का इस्तेमाल करने वालों को बख़्शा नहीं जाएगा।

भाजपा की कोशिश

भाजपा दिल्ली में वापसी की कोशिश तो कर रही है; लेकिन उसके नेताओं की भाषा, यहाँ तक कि प्रधानमंत्री की भाषा, झूठ का तंत्र और बिना विजन की राजनीति दिल्ली के लोगों को कम ही प्रभावित कर पा रही है। ऐसा माना जा रहा है कि दिल्ली में भाजपा को पहले से भी ज़्यादा सीटें तो मिल सकती हैं; लेकिन सत्ता तक पहुँच बना पाना अभी उसके लिए संभव नहीं है। हालाँकि भाजपा के बारे में कहा जाता है कि उसके लिए कोई लक्ष्य पाना कठिन नहीं होता, क्योंकि वो साम, दाम, दंड और भेद की रणनीति अपनाते हुए किसी भी सत्ता तक पहुँचती है। और इस बार उसके ऊपर विपक्षी समर्थकों के वोट काटने, लोगों को पैसे बाँटने जैसा संगीन आरोप लग भी चुका है। यह अलग बात है कि इस पर चुनाव आयोग भाजपा के प्रति अपनी वफ़ादारी निभाते हुए ख़ामोशी से बैठा है। वो ख़ुद भाजपा विरोधी वोट काटने के आरोपों से घिरा है; लेकिन इस पर भी ख़ामोश है। ऐसा कहा जा रहा है कि भाजपा केजरीवाल के मज़बूत वोट बैंक में सेंध लगाना चाहती है; लेकिन ये उसके लिए आसान नहीं होगा। तमाम तरह की कोशिशों और सही-ग़लत विज्ञापनों से जब बात नहीं बनी, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आम आदमी पार्टी को आप-दा कह दिया। और नारा दे दिया कि ‘आप दा नहीं सहेंगे, बदल कर रहेंगे।’ लेकिन इसका असर भी उलटा होता दिख रहा है।

भाजपा के वरिष्ठ नेता लगातार दिल्ली में अपनी जीत की कोशिशें कर रहे हैं और इसके लिए अब प्रधानमंत्री मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा से लेकर हर छोटा-बड़ा नेता और हर कार्यकर्ता जी-जान से दिल्ली चुनाव में जुटा है। सभी बड़े नेता हर क्षेत्र की रिपोर्ट लेने के अलावा हर विधानसभा क्षेत्र में अपनी भाजपा की ज़मीन टटोल रहे हैं कि वह कितनी मज़बूत है। लेकिन भाजपा कुछ ऐसे दलों को दिल्ली चुनाव में उतार रही है, जो आम आदमी पार्टी का वोट फ़ीसद कम करने का काम करें। मसलन, महाराष्ट्र के रामदास अठावले की पार्टी रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया, नीतीश कुमार की पार्टी जद(यू), असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन और भी कुछ ऐसी ही पार्टियाँ कहीं न कहीं भाजपा को जिताने के लिए इस बार मैदान में है। चंद्रशेखर आज़ाद ‘रावण’ की पार्टी आज़ाद समाज पार्टी (कांशी राम) भी इस बार दिल्ली से मैदान में है। मायावती तो पहले से ही दिल्ली के चुनावों में हाथ आजमाती रही है।

कांग्रेस की स्थिति

कांग्रेस के पास इस बार भी खोने के लिए कुछ नहीं है; लेकिन पाने के लिए बहुत कुछ है। जीत के किसी लक्ष्य तक वह भले ही नहीं पहुँच रही हो; लेकिन इस बार वह दिल्ली के पिछले दो विधानसभा चुनावों से ज़्यादा सक्रिय दिख रही है। हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव हारने, जम्मू-कश्मीर और झारखण्ड में थोड़ा सही प्रदर्शन करने के बाद वह दिल्ली में ज़ोर आजमाइश इसी मंशा से कर रही है कि दिल्ली में उसकी ज़मीन पहले से ज़्यादा मज़बूत हो और दिल्ली विधानसभा में अपनी उपस्थिति दर्ज करा सके। लेकिन इस बार भी उसका यह सपना कितना साकार होगा, कितना नहीं, यह अभी से नहीं कहा जा सकता, क्योंकि दिल्ली में कांग्रेस अभी भी तीसरी पार्टी के रूप में ही नज़र आ रही है। कांग्रेस ने सबसे बड़ा दाँव शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित को अरविंद केजरीवाल के ख़िलाफ़ नई दिल्ली विधानसभा सीट से उतारकर खेला है।

कड़ी टक्कर वाली सीटें

आम आदमी पार्टी को इस बार सबसे ज़्यादा ध्यान बड़े चेहरों की विधानसभा सीटों पर देना होगा, जिसमें नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र की पार्टी के संयोजक, पार्टी अध्यक्ष और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की है। क्योंकि इस सीट के बड़े दावेदारों में भाजपा उम्मीदवार प्रवेश वर्मा, जिन्हें आजकल उनके पिता के नाम की पहचान बनाने के लिए प्रवेश साहिब सिंह वर्मा लिखा जा रहा है और कांग्रेस के उम्मीदवार संदीप दीक्षित भी हैं। दूसरी सीट जंगपुरा की है, जहाँ से इस बार मनीष सिसोदिया मैदान में और इस सीट पर भाजपा की बड़ी दावेदारी है। जंगपुरा सीट पर भाजपा के उम्मीदवार तरविंदर सिंह मारवाह और कांग्रेस के उम्मीदवार फ़रहाद सूरी मैदान में हैं। तीसरी बिजवासन विधानसभा सीट पर आम आदमी पार्टी को चुनौती मिल सकती है, जहाँ से कैलाश गहलोत, जो कि दिल्ली सरकार में परिवहन मंत्री रहे हैं और पिछले दिनों वो दलबदल करके भाजपा में कूद गये थे, भाजपा उम्मीदवार के रूप में मैदान में हैं। वहीं आम आदमी पार्टी की तरफ़ से सुरेंद्र भारद्वाज और कांग्रेस की तरफ़ से देवेंद्र सहरावत इस सीट से मैदान में हैं।

चौथी चुनौतीपूर्ण सीट पटपड़गंज विधानसभा की है, जहाँ से पिछले दो चुनाव दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री, पूर्व वित्त मंत्री और अन्य कई विभागों को सँभाल चुके मनीष सिसोदिया जीत दर्ज कर चुके हैं। लेकिन इस बार आम आदमी पार्टी ने बेबाक राय रखने वाले आएएस, आईपीएस जैसे प्रतिष्ठित पदों की कोचिंग देने वाले अध्यापक अवध ओझा मैदान में है, जो कि सोशल मीडिया पर ख़ासे चर्चित हैं। उनके विरोध में भाजपा ने रविंद्र सिंह नेगी और कांग्रेस ने चौधरी अनिल कुमार को मैदान में उतारा है। आम आदमी पार्टी के लिए पाँचवीं सबसे चुनौतीपूर्ण सीट है कालकाजी विधानसभा, जहाँ पर दिल्ली की वर्तमान मुख्यमंत्री आतिशी मार्लेना मैदान में हैं। आतिशी बिलकुल बेदाग़ छवि की नेता हैं; लेकिन उन्हें चुनौती देने के लिए भाजपा ने इस विधानसभा सीट से रमेशी बिधूड़ी को मैदान में उतारा है, तो कांग्रेस ने अलका लांबा को इस सीट से टिकट दिया है।

केजरीवाल को कई पार्टियों का समर्थन

दिल्ली चुनाव आते-आते इंडिया गठबंधन टूट गया है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी ने, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष व उत्तर प्रदेश की सैफई सीट से सांसद अखिलेश यादव ने, शिवसेना (यूटीबी) ने और रालोप प्रमुख हनुमान बेनीवाल ने दिल्ली की जनता से अरविंद केजरीवाल के पक्ष में वोट करने की अपील की है। इसी बीच कांग्रेस ने इंडिया गठबंधन तोड़ने की घोषणा करते हुए कह दिया है कि यह गठबंधन सिर्फ़ लोकसभा चुनाव के लिए था। दिल्ली चुनाव पर इंडिया गठबंधन टूटने का भी असर हर हाल में पड़ेगा।

चुनाव के बीच ईडी कस रही शिकंजा

इस चुनाव में सबसे अहम मोड़ अब यह आ गया है कि आम आदमी पार्टी के नेताओं पर मुक़दमा चलाने की अनुमति एक बार फिर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने ईडी यानी प्रवर्तन निदेशालय को दे दी है। ज़ाहिर है कि केंद्र सरकार के इशारे पर नाच रही सुप्रीम कोर्ट से जमानत पा चुके पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल समेत मनीष सिसोदिया, सत्येंद्र जैन और संजय सिंह के ख़िलाफ़ दिल्ली शराब नीति मामले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में पीएमएलए के तहत मुक़दमा चला सकती है। ईडी को मुक़दमा चलाने की मंज़ूरी तो पहले से ही मिली हुई है; लेकिन केंद्रीय गृह मंत्रालय ने चुनाव के दौरान इस प्रकार की मंज़ूरी देकर आम आदमी पार्टी को घेरने के लिए मुक़दमा चलाने को ईडी को निर्देश दिया है, जब केजरीवाल और उनकी पार्टी के बड़े नेता पूरे ज़ोर-शोर से प्रचार-प्रसार में लगे हैं। तमाम सही-ग़लत मुद्दों पर आम आदमी पार्टी को घेरने वाली भाजपा और कांग्रेस को अब इस गरमागरम मुद्दे को भुनाने का अवसर मिल सकता है। यह पहली बार हुआ है कि लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस सांसद राहुल गाँधी ने भाजपा से ज़्यादा आम आदमी पार्टी पर हमले शुरू कर दिये हैं।

हालाँकि अरविंद केजरीवाल अब तक तमाम राजनीतिक और क़ानूनी घेरेबंदी से निकलने में कामयाब रहे हैं; लेकिन अगर उन्हें ईडी ने दोबारा शिकंजे में लिया, तो क्या वह बच पाएँगे? क्योंकि उन्होंने बेशक क़ानूनी और राजनीतिक मजबूरियों के चलते दिल्ली के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आतिशी को बैठाकर अपने राजनीतिक विरोधियों, ख़ासतौर पर भाजपा और कांग्रेस को हमले करने से रोका और उन्हें नयी रणनीति बनाने के लिए मजबूर कर दिया; लेकिन अब ईडी की आगे की कार्रवाई के चलते उनका दोबारा घेराव आसान हो गया है। क्योंकि ईडी की इस कार्रवाई का विधानसभा चुनाव पर असर तो पड़ेगा ही, आम आदमी पार्टी पर भी असर पड़ सकता है। सवाल यह है कि अगर अरविंद केजरीवाल फिर से चुनाव जीत जाते हैं और उनकी पार्टी दोबारा सत्ता में आ जाती है, तो क्या वह दोबारा दिल्ली के मुख्यमंत्री बन पाएँगे? क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत देते समय विधानसभा न जाने और किसी भी सरकारी दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर न करने की हिदायत दी थी। ऐसे में अगर उनकी पार्टी की सरकार बनती भी है और केजरीवाल भी जीत जाते हैं, तो उन्हें सुप्रीम कोर्ट की इजाज़त लेनी पड़ेगी। और अगर इस बीच ईडी ने उनके गले में फंदा कस दिया, तो उनके लिए यह एक नयी मुसीबत होगी।

गुवाहाटी में आईडीएसए का प्रत्यक्ष बिक्री सम्मेलन 21 जनवरी को, जुटेंगे उद्योग के दिग्गज और नीति निर्माता

देश के पूर्वी राज्य असम का गुवाहाटी शहर आगामी 21 जनवरी को प्रत्यक्ष बिक्री उद्योग के दिग्गजों, विशेषज्ञों, नीति निर्माताओं] शिक्षाविदों और प्रत्यक्ष विक्रेताओं के जमावड़े का साक्षी बनेगा जहां ये सब इस उद्योग के विकास, इससे संबद्ध मुद्दों, नियम एवं कानून, सुधारों, नीतिगत मामलों, पारदर्शिता, उपभोक्ता जागरूकता एवं संरक्षण आदि महत्वपूर्ण विषयों पर विचार-मंथन करेंगे। 

मौका होगा ‘ द्वितीय पूर्वोत्तर क्ष्रेत्रीय प्रत्यक्ष बिक्री सम्मेलन एवं प्रदर्शनी ‘ जिसका आयोजन देश में प्रत्यक्ष बिक्री उद्योग की अग्रणी संस्था इंडियन डायरेक्ट सैलिंग एसोसिएशन (आईडीएसए) करेगी। दिनभर चलने वाले इस कार्यक्रम का विभिन्न स्थानीय कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के छात्र भी हिस्सा होंगे।

आईडीएसए ने आज यहां जारी एक विज्ञप्ति में यह जानकारी देते हुये बताया कि प्रत्यक्ष बिक्री क्षेत्र में उत्कृष्ट उपलब्धियों के लिये पूर्वोत्तर राज्यों की महिला उद्यमियों का सम्मान, प्रत्यक्ष बिक्री को परिलक्षित करते हुये विभिन्न उत्पादों के साथ मॉडल का पारम्परिक वेशभूषा में रैम्प वॉक, प्रत्यक्ष बिक्री में स्वरोजगार और सूक्ष्म उद्यमिता के निहित अवसरों के माध्यम से महिलाओं और युवाओं के सशक्तिकरण को लेकर चर्चा, उद्योग के दिग्गजों एवं विशेषज्ञों  के साथ प्रत्यक्ष विक्रेताओं और छात्रों का उनकी जिज्ञासाओं को लेकर संवाद सत्र जैसे अनेक आकर्षण इस कार्यक्रम का हिस्सा होंगे। कार्यक्रम आयोजन स्थल पर एक भव्य प्रदर्शनी भी आयोजित की जाएगी जहां आगंतुकों को आईडीएसए की सदस्य कम्पनियां के विभिन्न एवं नवीनतम उत्पादों, सेवाओं और नवाचार से भी रू ब रू होने का मौका मिलेगा।

विज्ञप्ति में भारत के प्रत्यक्ष बिक्री मजबूत स्थिति और विकास दर पर प्रकाश डालते हुये कहा गया है इसका कुल कारोबार वर्ष 2022-23 के एक सर्वेक्षण के अनुसार 12 प्रतिशत की शानदार विकास दर और गत चार वर्षों में आठ प्रतिशत से अधिक की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) के साथ 21282 करोड़ रूपये को पार कर गया है और यह  विश्व रैकिंग क्रम में 11वें पायदान पर है। उद्योग ने देश में लगभग 32 लाख महिलाओं समेत 86 लाख से अधिक लोगों को स्व-रोजगार और सूक्ष्म उद्यमिता अवसर प्रदान किये हैं और इस तरह यह सामाजिक-आर्थिक विकास में भी अपनी अहम भूमिका अदा कर रहा है।

विज्ञप्ति के अनुसार प्रत्यक्ष बिक्री उद्योग के लिये कारोबार की दृष्टि से पूर्वोत्तर क्षेत्र बहुत अहम है जो कुल राष्ट्रीय कारोबार में 8.7 प्रतिशत के बाजार हिस्से के साथ 1,800 करोड़ से अधिक का योगदान करता है। असम राज्य इस क्षेत्र में 1,009 करोड़ रूपये कारोबार, 4.7 प्रतिशत से अधिक की बाजार हिस्सेदारी और 2.4 लाख से अधिक प्रत्यक्ष विक्रेताओं की मजबूत ताकत के साथ अग्रणी है। पूर्वोत्तर के सात अन्य राज्यों मणिपुर, नागालैंड, मिजोरम, अरूणाचल प्रदेश, त्रिपुरा, मेघालय और सिक्किम का कुल कारोबाार में क्रमश: 288 करोड़ रुपये, 227 करोड़ रुपये, 156 करोड़ रुपये), 78 करोड़ रुपये, 72 करोड़ रुपये, 19 करोड़ रुपये और पांच करोड़ रुपये का योगदान है। यह उद्योग पूर्वोत्तर के राज्सों के सरकारी खजाने में सालाना 270 करोड़ रूपये से अधिक का भी योगदान देता है, जो इस क्षेत्र के विकास में अपनी अहम भूमिका को प्रमाणित करता है।

आईडीएसए का दृढ़ विश्वास है कि प्रत्यक्ष बिक्री सम्मेलन एवं प्रदर्शनी का गुवाहाटी में आयोजन,  विकास, नवाचार और सहयोग को बढ़ावा देने हेतु एक सार्थक मंच साबित होगा तथा पूर्वोत्तर क्षेत्र की देश के प्रत्यक्ष बिक्री बाजार में भूमिका को और मजबूती प्रदान करेगा।

दिल्ली चुनाव से पहले बँटा इंडिया गठबंधन

जब जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने इंडिया ब्लॉक की एकता पर संदेह जताया और कहा कि यह केवल संसदीय चुनावों के लिए बना है, तो ज़्यादातर राजनीतिक पंडितों ने इस टिप्पणी को संदेह की दृष्टि से देखा। हालाँकि दिल्ली विधानसभा चुनाव होने से पहले ही विपक्षी गठबंधन में फूट पड़ गयी है और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी), शिवसेना (यूबीटी) और समाजवादी पार्टी (सपा) जैसे गठबंधन सहयोगियों ने आम आदमी पार्टी (आप) को समर्थन दे दिया है, जिससे कांग्रेस को काफ़ी असहजता हो रही है। इस क़दम का मतलब है कि गठबंधन के सदस्य एक-दूसरे के विपरीत उद्देश्य से काम कर रहे हैं। हरियाणा में चुनाव के दौरान भी समूह के भीतर मतभेद थे, जहाँ कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। वहीं महाराष्ट्र में पराजय के बाद शिवसेना (यूबीटी) के साथ भाजपा के रिश्ते पहले जैसे मधुर नहीं दिख रहे हैं। कांग्रेस के अलग-थलग पड़ने को राजद नेता तेजस्वी यादव की इस टिप्पणी से समझा जा सकता है कि ‘यह गठबंधन विशेष रूप से 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए बनाया गया था।’ दरारों ने इस बात पर संदेह पैदा कर दिया है कि क्या इस पुरानी पार्टी के पास शक्तिशाली भाजपा से मुक़ाबला करने के लिए गठबंधन का नेतृत्व करने की क्षमता है, जिसके लिए यह दोनों पक्षों के लिए जीत वाली स्थिति होगी।

‘तहलका’ की आवरण कथा ‘दिल्ली अभी दूर है’ में के.पी. मलिक ने लिखा है कि राष्ट्रीय राजधानी में किसी भी पार्टी के लिए इस बार एकतरफ़ा चुनावी जीत आसान नहीं है। इस बार के चुनाव में कांग्रेस और भाजपा अपनी वापसी के लिए जद्दोजहद कर रही हैं, तो आम आदमी पार्टी सत्ता बचाने की कोशिश में है। दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल की नई दिल्ली विधानसभा सीट पर इस बार सबसे कड़ा मुक़ाबला देखने को मिलेगा, क्योंकि इस सीट पर भाजपा ने अपनी पार्टी के नेता रहे पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के बेटे प्रवेश वर्मा को अरविंद केजरीवाल के ख़िलाफ़ उतारा है, तो दूसरी तरफ़ कांग्रेस ने भी पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित को यहीं से टिकट दिया है।

दिल्ली को आम आदमी पार्टी की सत्ता का केंद्र माना जाता है, जहाँ से महज़ 12 साल के अंदर इस पार्टी ने अपनी राजनीति विरासत राष्ट्रीय मंच पर खड़ी की है। हालाँकि पिछले कुछ वर्षों में देश की सबसे युवा राजनीतिक पार्टी को कठिन समय का सामना करना पड़ रहा है; क्योंकि इसके कई मंत्री और शीर्ष नेता कथित शराब घोटाले और दूसरे गंभीर आरोपों से जूझ रहे हैं। पिछले कुछ महीनों में अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, सत्येंद्र जैन और संजय सिंह सहित इसके कई वरिष्ठ नेताओं को जाँच एजेंसियों द्वारा व्यापक पूछताछ और न्यायिक हिरासत का सामना करना पड़ा है। इसलिए इस बार के दिल्ली विधानसभा चुनावों में यह भी सुनिश्चित होगा कि आम आदमी पार्टी को मतदाताओं का कितना समर्थन प्राप्त होगा? अगर आम आदमी पार्टी एक बार फिर वापसी करती है, तो यह दर्शाएगा कि जनता का विश्वास अभी भी पार्टी के प्रमुख नेताओं, ख़ासकर अरविंद केजरीवाल पर क़ायम है और उनके ख़िलाफ़ सभी मामले मनगढ़ंत हैं। लेकिन अगर दिल्ली में आम आदमी पार्टी की हार होती है, तो यह उनकी प्रतिष्ठा के लिए बड़ा झटका होगा और इससे अरविंद केजरीवाल की राष्ट्रीय महत्त्वाकांक्षाओं को भी बड़ा नुक़सान पहुँच सकता है।

दिलचस्प बात यह है कि दिल्ली चुनाव ने कम-से-कम एक बार भाजपा और कांग्रेस को मुख्यमंत्री के आधिकारिक आवास के नवीनीकरण के मुद्दे पर एक ही क़तार में ला दिया है। विडंबना यह है कि यह निर्माण कोरोना महामारी के बीच में भारी लागत से किया गया है, जो कथित तौर पर ग़लत प्राथमिकताओं की ओर इशारा करता है। भाजपा और कांग्रेस अब आम आदमी पार्टी और इसके संयोजक की छवि को निशाना बना रहे हैं, जिन्होंने ख़ुद को एक आम आदमी के रूप में पेश किया है। ख़ैर, 08 फरवरी का बेसब्री से इंतज़ार किया जाएगा!

जम्मू-कश्मीर में एलओसी के पास धमाका, सेना के 6 जवान घायल

जम्मू-कश्मीर के नौशेरा में खदान में विस्फोट की घटना सामने आई है। जानकारी के अनुसार, भवानी सेक्टर के मकड़ी इलाके में हुए इस विस्फोट में सेना के 6 जवान घायल हो गए हैं, जिन्हें इलाज के लिए राजौरी के आर्मी हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया है।

हाल के महीनों में जम्मू-कश्मीर में विस्फोट की यह कोई पहली घटना नहीं है। इससे पहले भी ऐसी घटनाएं सामने आई हैं। 9 दिसंबर, 2024 को पुंछ में एक दुखद घटना में, 25 राष्ट्रीय राइफल्स के हवलदार वी. सुब्बैया वरिकुंटा एक बारूदी सुरंग विस्फोट में शहीद हो गए थे, जब वे थानेदार टेकरी में गश्त कर रहे थे। उसी समय, बारामूला जिले के पट्टन के पलहालन इलाके में सुरक्षाबलों ने एक आईईडी को भी निष्क्रिय कर एक बड़ी घटना को टाल दिया था। इससे पहले, अक्टूबर 2024 में, कुपवाड़ा में नियंत्रण रेखा (एलओसी) के पास त्रेहगाम में एक खदान विस्फोट में सेना के दो जवान घायल हो गए थे, जब वे इलाके में गश्त कर रहे थे। ये घटनाएं सीमावर्ती क्षेत्रों में बारूदी सुरंगों और आईईडी के खतरे की गंभीरता को दर्शाती हैं।

इन घटनाओं से स्पष्ट है कि सीमावर्ती क्षेत्रों में बारूदी सुरंगों और आईईडी का खतरा अभी भी बना हुआ है। सुरक्षा बल लगातार सतर्क हैं और ऐसे खतरों को नाकाम करने के लिए प्रयासरत हैं।

सांसद अमृतपाल सिंह के राजनीतिक दल के नाम की घोषणा

माघी मेले पर पार्टी का नाम ‘अकाली दल वारिस पंजाब दे

श्री मुक्तसर साहिब :  आज श्री मुक्तसर साहिब में अमृतपाल सिंह के राजनीतिक दल के नाम की घोषणा कर दी गई। अमृतपाल सिंह की राजनीतिक पार्टी का नाम अकाली दल वारिस पंजाब दे रखा गया है। मंगलवार को मुक्तसर साहिब के माघी मेले में इसकी आधिकारिक घोषणा की गई। खडूर साहिब से सांसद अमृतपाल सिंह इस समय डिब्रूगढ़ जेल में बंद हैं।

अमृतपाल ही पार्टी के अध्यक्ष होंगे। अमृतपाल सिंह की राजनीतिक पार्टी बनना सबसे बड़ी चुनौती शिरोमणि अकाली दल (बादल) के लिए है, क्योंकि अकाली दल खुद को सबसे बड़ पंथ हिमायती कहता है। साल 2015 में हुई श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी की घटनाओं और राम रहीम को माफी देने के मुद्दे पर अकाली दल का ग्राफ तेजी से गिरा है। पंथक वोट बैंक अकाली दल से दूर हुआ है। सांसद बनने से पहले अमृतपाल सिंह ‘वारिस पंजाब दे’ संगठन को संभाल रहे थे। यह संगठन पंजाबी अभिनेता दीप सिद्धू ने बनाया था।

महाकुंभ 2025: मकर संक्रांति पर शुरू हुआ अखाड़ों का अमृत स्नान

तीर्थराज में महाकुंभ के महास्नान को उमड़ा देश-दुनिया का जन ज्वार-जीवनदायिनी गंगा, श्यामल यमुना व पौराणिक सरस्वती के पावन संगम में महाकुंभ के प्रथम अमृत स्नान पर्व पर पुण्य की डुबकी लगाने के लिए देश-दुनिया का जन समुद्र उमड़ पड़ा है। पौष पूर्णिमा स्नान पर्व के बाद अब मंगलवार को महाकुंभ का महास्नान शुरू हो चुका है। महानिर्वाणी अखाड़े के अमृत साधु-संत स्नान के लिए जा रहे हैं। नियमों का अनुशरण करते हुए सनातन धर्म के 13 अखाड़ों को अमृत स्नान में स्नान क्रम भी जारी किया गया है।

मकर संक्रांति पर श्रीपंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी ने सबसे पहले अमृत स्नान किया। जिसके साथ श्रीशंभू पंचायती अटल अखाड़ा ने अमृत स्नान किया। दूसरे स्थान पर श्रीतपोनिधि पंचायती श्रीनिरंजनी अखाड़ा एवं श्रीपंचायती अखाड़ा आनंद अमृत स्नान किया। तीन संन्यासी अखाड़े अमृत स्नान करेंगे, जिसमें श्रीपंचदशनाम जूना अखाड़ा एवं श्रीपंच दशनाम आवाहन अखाड़ा तथा श्रीपंचाग्नि अखाड़ा शामिल हैं।

पंचायती निर्वाणी अखाड़े के नागा साधुओं ने भाला, त्रिशूल और तलवारों के साथ अपने शाही स्वरूप में अमृत स्नान किया। साधु-संत घोड़े और रथों पर सवार होकर शोभायात्रा में शामिल हुए, जिससे पूरे क्षेत्र में भक्ति और आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार हो गया। उनके साथ चल रही भजन मंडलियों और श्रद्धालुओं के जयघोष ने माहौल को और दिव्य बना दिया।

12 किलोमीटर क्षेत्र में फैले स्नान घाटों पर हर हर महादेव और जय श्री राम के जयघोष सुनाई दिए। साधुओं के अमृत स्नान के साथ ही आम श्रद्धालुओं ने भी अपनी आस्था की डुबकी लगाई। संगम के आसपास गंगा स्नान के लिए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ चारों ओर से देखी गई। इस दौरान सभी ने हर हर महादेव और जय श्री राम के नारों से संगम क्षेत्र को गुंजायमान कर दिया। सोमवार शाम से ही महाकुंभ नगर में जन ज्वार आने लगा था, जिसका क्रम देर रात तक चलता रहा। सोमवार को हुए पौष पूर्णिमा पर डुबकी लगाने वाले ज्यादातर श्रद्धालु भी अमृत स्नान करने रुक गए।

रांची के रिटायर कोयला अफसर को साइबर अपराधियों ने 11 दिन रखा डिजिटल अरेस्ट, ठगे 2.27 करोड़

रांची : रांची के बरियातु इलाके में रहने वाले एक सेवानिवृत्त कोयला कंपनी अधिकारी साइबर ठगों के जाल में फंस गए। ठगों ने 11 दिनों तक उन्हें डिजिटल अरेस्ट कर के रखा। इस दौरान ठगों ने उनसे 2.27 करोड़ रुपये की ठगी कर ली। इन पैसों में  उनकी पत्नी की जमा पूंजी भी शामिल है। पीड़िता ने इस घटना की शिकायत सीआईडी के साइबर थाने और साइबर क्राइम हेल्पलाइन नंबर 1930 पर दर्ज कराई है।

ऐसे की ठगीमिली जानकारी के अनुसार 10 दिसंबर 2024 को पीड़िता के मोबाइल पर एक कॉल आया। कॉल करने वाले ने खुद को ट्राई का अधिकारी बताया और कहा कि उनके नंबर से अवैध विज्ञापन और भ्रामक संदेश भेजे जा रहे हैं। इसके बाद उन्हें अरेस्ट करने की धमकी दी गई। ठगों ने वीडियो कॉल के जरिए उन्हें डराया और 10 से 20 दिसंबर के बीच 8 बार में अलग-अलग बैंक खातों में 2.27 करोड़ रुपये ट्रांसफर करवा लिए।

बताया जा रहा है कि इस गिरोह में एक महिला भी शामिल थी। महिला ने खुद को दिल्ली क्राइम ब्रांच की अधिकारी बताया। ठगों ने पीड़ित को लगातार कैमरे के सामने रहने और पैसे ट्रांसफर करने का दबाव बनाया। इस घटना में पीड़ित की जिंदगीभर की जमा पूंजी चली गई। जब उन्हें ठगी का एहसास हुआ, तो उन्होंने ठगों के नबंर पर कॉल करने की कोशिश की। लेकिन नबंर ब्लॉक कर दिया गया था। पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है।

डॉलर के मुकाबले सबसे निचले स्तर पर पहुंचा रुपया

नई दिल्ली : सोमवार को भारतीय शेयर बाजार खुलते ही धड़ाम हो गया। रियल एस्टेट, फाइनेंशियल सर्विस और कंज्यूमर ड्यूरेबल स्टॉक तेजी से नीचे आ गए। वहीं रुपया भी इतिहास के सबसे निचले स्तर पर आ गया है। आज भारतीय शेयर बाजार में बड़ी गिरावट आई। इसकी वजह अमेरिका में रोजगार का डेटा रहा। इसमें काफी मजबूती दिखी, जिसके बाद फेडरल रिजर्व द्वारा जल्द ब्याज दरों में कटौती की उम्मीदों पर पानी फिर गया। इससे भारतीय शेयर बाजार में भी बड़ी गिरावट देखने को मिली। वहीं, रुपया भी डॉलर के मुकाबले नए ऑल टाइम लो-लेवल पर पहुंच गया।

बीएसई सेंसेक्स और एनएसई निफ्टी शुरुआती कारोबार में करीब 1 फीसदी तक गिर गए। 30-शेयर ब्लू-चिप पैक से एशियन पेंट्स, जोमैटो, महिंद्रा एंड महिंद्रा, एचडीएफसी बैंक, बजाज फाइनेंस, एशियन पेंट्स, कोटक महिंद्रा बैंक और टाटा स्टील में अधिक गिरावट देखने को मिली।

घरेलू शेयर बाजार में सुबह करीब 11 बजे तक 30 शेयरों वाला बीएसई सेंसेक्स 276.02 अंक या 0.36 प्रतिशत की गिरावट के साथ 77,097.59 अंक पर कारोबार कर रहा था, जबकि निफ्टी 102.65 अंक या 0.44 प्रतिशत की गिरावट के साथ 23,328.85 अंक पर था। वैश्विक तेल बेंचमार्क ब्रेंट क्रूड वायदा कारोबार में 1.44 प्रतिशत बढ़कर 80.91 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया। विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) एक्सचेंज के आंकड़ों के अनुसार, शुक्रवार को भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने पूंजी बाजार में शुद्ध आधार पर 2,254.68 करोड़ रुपये बेचे।

वहीं, भारतीय रुपया शुरुआती कारोबार में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 5 पैसे कमजोर होकर रिकॉर्ड निचले स्तर 86.20 पर खुला। विदेशी मुद्रा व्यापारियों का कहना है कि कच्चे तेल की कीमतों में रिकॉर्ड उछाल, विदेशी पूंजी का निरंतर बाहर जाना और घरेलू इक्विटी बाजारों में नकारात्मक रुझान ने भी भारतीय मुद्रा पर दबाव बनाए रखा। शुक्रवार को रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 18 पैसे गिरकर 86.04 पर बंद हुआ।