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आरबीआई द्वारा होम लोन लेने वालों को राहत, EMI भी घटेगी

RBI ने रेपो रेट में की 50 आधार अंकों की कटौती

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने मौद्रिक नीति समीक्षा के तहत रेपो रेट में 50 आधार अंकों की कटौती की है। इसके बाद रेपो रेट 6 फीसदी से घटकर 5.50 फीसदी रह गई है। यह बाजार की अपेक्षा से अधिक राहत मानी जा रही है। आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने यह घोषणा की।

यह लगातार तीसरी बार है जब आरबीआई ने नीतिगत दरों में कटौती की है। इससे पहले फरवरी और अप्रैल की समीक्षा बैठकों में रेपो रेट में 25-25 आधार अंकों की कमी की गई थी। पिछले पांच वर्षों में रेपो रेट में यह पहली बड़ी क्रमिक कटौती है।

इस वर्ष अब तक कुल 100 आधार अंकों की कटौती हो चुकी है, जिससे होम लोन सहित अन्य ऋणों की ब्याज दरों में उल्लेखनीय गिरावट आ सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि ब्याज दरों में कमी से आवास और वाहन बिक्री को प्रोत्साहन मिलेगा और अर्थव्यवस्था में नकदी प्रवाह (लिक्विडिटी) बढ़ेगा, जिससे समग्र आर्थिक वृद्धि को बल मिल सकता है।

‘चीन को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता’, भारत-पाक टकराव के बीच शशि थरूर का बयान

वाशिंगटन: भारतीय डेलिगेशन के एक दल का नेतृत्व कर रहे कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने अमेरिका में चीन को लेकर एक बयान दिया है। उन्होंने कहा कि भारत और पाकिस्तान टकराव के बीच चीन एक ऐसा कारक है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान से टकराव से पहले दिल्ली और बीजिंग के बीच संबंधों में नरमी आई थी, जो अच्छी प्रगति पर दिख रही थी। थरूर ने कहा कि पाकिस्तान में चीन का बहुत बड़ा हित भी है।

पाकिस्तान पर थरूर का निशाना
अमेरिका में भारतीय दूतावास में आयोजित थिंक टैंक के प्रतिनिधियों के साथ बातचीत के दौरान शशि थरूर ने कहा कि बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत सबसे बड़ी एकल परियोजना चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा है। पाकिस्तान पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि, 81 प्रतिशत पाकिस्तान रक्षा उपकरण चीन से आते हैं।

हालांकि, उन्होंने कहा कि यहां रक्षा शब्द का इस्तेमाल करना गलत होगा, क्योंकि पाकिस्तान इन उपकरों का इस्तेमाल हमला करने के लिए करता है। गलवान घाटी में भारत और चीन की सेना के बीच हुई झड़प को लेकर उन्होंने कहा कि, 2020 में झड़प के बाद भी हमने पिछले साल सितंबर में चीन के साथ संबंधों में नरमी बरती थी, जो भारत-पाकिस्तान टकराव से पहले अच्छी प्रगति कर रही थी।

टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने बीजेडी के पिनाकी मिश्रा से की शादी

नई दिल्ली: तृणमूल कांग्रेस की तेजतर्रार लोकसभा सांसद महुआ मोइत्रा ने बीजू जनता दल (BJD) के वरिष्ठ नेता और पुरी से लोकसभा सांसद पिनाकी मिश्रा से शादी कर ली। इस खबर को लेकर पार्टी और खुद सांसद ने पूरी तरह चुप्पी साध रखी है।

रिपोर्ट के मुताबिक, यह शादी जर्मनी में हुई। दोनों की तस्वार भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। वह पारंपरिक परिधान और सोने के गहनों से सजी हुई हैं। इसी तस्वीर ने इस गुपचुप शादी की पुष्टि कर दी है। हालांकि, अब तक आधिकारिक तौर पर न तो महुआ और न ही उनकी पार्टी की ओर से कोई बयान आया है। महुआ मोइत्रा की निजी जिंदगी पहले भी सुर्खियों में रही है। उन्होंने डेनमार्क के फाइनेंसर लार्स ब्रोरसन से शादी की थी, जिनसे बाद में उनका तलाक हो गया। इसके बाद वे तीन वर्षों तक वकील जय अनंत देहाद्रई के साथ रिश्ते में रहीं, जिसे उन्होंने बाद में “धोखा खाया प्रेमी” कहा था। महुआ का पहला लोकसभा कार्यकाल एक बड़े विवाद की भेंट चढ़ गया था। उन पर आरोप लगे कि उन्होंने कारोबारी गौतम अडाणी के खिलाफ सवाल एक प्रतिद्वंद्वी उद्योगपति के कहने पर उठाए। नवंबर 2023 में जब संसद उन्हें निष्कासित करने की दिशा में बढ़ रही थी, तब एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, “मर्दों के मामले में मेरी पसंद बहुत खराब है।”

मर्यादा की लक्ष्मण रेखा

शिवेन्द्र राणा

पिछले दिनों भारत के लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए एक अप्रिय स्थिति पैदा हो गयी, जब राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सर्वोच्च न्यायालय से 14 प्रश्नों पर जवाब माँगे, जिनमें क्या राज्यपाल फ़ैसला लेते समय मंत्रिपरिषद् की सलाह से बँधे हैं? क्या राष्ट्रपति या राज्यपाल के फ़ैसले को अदालत में चुनौती दी जा सकती है? क्या राष्ट्रपति अथवा राज्यपाल के फ़ैसलों पर अदालत समय-सीमा तय कर सकती है? क्या सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद-142 का प्रयोग करके राष्ट्रपति या राज्यपाल के फ़ैसलों को बदल सकता है? इत्यादि सवाल शामिल थे। ये सवाल अनायास ही नहीं किये गये हैं। इसकी वजह है- सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 08 अप्रैल, 2025 को दिया गया निर्णय।

दरअसल, तमिलनाडु विधानसभा द्वारा वर्ष 2020 से 2023 के बीच 12 विधेयक पारित किये गये, जिन्हें राज्यपाल आर.एन. रवि द्वारा रोक लिया गया। इसके बाद अक्टूबर, 2023 में तमिलनाडु सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में वाद दाख़िल किया, तब राज्यपाल ने 10 विधेयकों को बिना हस्ताक्षर लौटा दिया एवं अन्य दो को राष्ट्रपति के विचारार्थ भेज दिया। जब राज्य सरकार ने उन 10 विधेयकों को पुन: पारित करके राज्यपाल को भेजा, तब राज्यपाल ने उन्हें भी राष्ट्रपति को निर्णय हेतु अग्रसारित कर दिया। तत्पश्चात् तमिलनाडु सरकार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 08 अप्रैल को अनुच्छेद-142 का इस्तेमाल करते हुए आदेश दिया कि इन सभी 10 विधेयकों को पारित माना जाए। इसके बाद ही न्यायपालिका एवं विधायिका के मध्य अधिकार के अतिक्रमण का यह अप्रिय विवाद उत्पन्न हुआ है, जिसे महामहिम राष्ट्रपति के हस्तक्षेप ने गंभीर बनाया है।

जम्हूरियत में संवैधानिक संस्थाओं के द्वारा संवैधानिक मर्यादाओं का अतिक्रमण करने पर टकराव बढ़ने लगता है। संविधान किसी भी देश की वो आधारभूत विधि है, जिसके अंतर्गत राज्य व्यवस्था के मूल सिद्धांत विहित होते हैं। संविधान की कसौटी ही सर्वत्र राष्ट्रीय विधियों एवं कार्यपालक कार्यों की विधिमान्यता एवं उनकी वैधता का आधार बनती है। भारतीय राजनीतिक व्यवस्था का बुनियादी ढाँचा ही इस लोकतांत्रिक स्वरूप पर निर्धारित करता है, जो न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका जैसे मुख्य स्तंभों के विभाजित स्वरूप की रचना करता है, जो मूलत: संविधान समर्थित हैं। ऐसे में लोकतंत्र की मज़बूत स्तंभ न्यायपालिका या संसद एक-दूसरे के क्षेत्राधिकार में अतिक्रमण और हस्तक्षेप करेंगी, तो ये दोनों संविधान की शुचिता की निर्धारित रेखा के अनुपालन की ज़िम्मेदारी और अन्य संवैधानिक अंगों से कैसे सुनिश्चित कर पाएँगी?

असल में भारत में सन् 1970 के दशक में अमेरिकी न्यायपालिका से प्रभावित न्यायिक सक्रियता के सिद्धांत ने बीतते समय के साथ न्यायपालिका में न्यायिक संयम को संभवत: समाप्त कर दिया है। अमेरिकी लोकतंत्र में न्यायिक संयम की अवधारणा का एक तर्क यह भी है कि न्यायालय मूलत: अलोकतांत्रिक है; क्योंकि यह अनिर्वाचित तथा लोकमत के प्रति अग्रहणशील एवं अनुत्तरदायी है। ऐसे में उसे यथासंभव मामलों को सरकार की लोकतांत्रिक संस्थाओं को ही सुपुर्द कर देना चाहिए। किन्तु प्रतीत होता है कि भारतीय न्यायपालिका ने केवल अमेरिकी न्यायिक विचार को ही लिया, उसकी अवधारणा से कुछ सीखने की कोशिश नहीं की। वर्ष 2007 में सर्वोच्च न्यायालय ने भी एक मामले पर न्यायिक संयम की बात करते हुए टिप्पणी की थी कि न्यायालय विधायिका एवं कार्यपालिका के कार्य अपने हाथ में न लें तथा संविधान में निर्धारित शक्तियों के बँटवारे और सरकार के प्रत्येक अन्य अंगों का सम्मान करते हुए दूसरे के कार्यक्षेत्र में अतिक्रमण नहीं करें। जजों को अपनी सीमा जान लेनी चाहिए और सरकार चलाने की कोशिश बिलकुल नहीं करनी चाहिए।

यह सही है कि संविधान प्रदत्त अधिकारों के अंतर्गत निर्णय लेना न्यायपालिका का अधिकार है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में न्यायपालिका का रवैया संवैधानिक मूल्यों के प्रति हठवादी रहा है, जिसका सबसे प्रमुख उदाहरण है- कॉलेजियम सिस्टम के विरुद्ध न्यायिक नियुक्ति आयोग (2014) को असंवैधानिक घोषित करना। यह सर्वविदित संवैधानिक तथ्य है कि संसद को न्यायपालिका के सभी स्तरों के गठन, संगठन, अधिकारिता तथा शक्तियों के विनियमन सम्बन्धी विधियों के प्रवर्तन में पूर्ण सक्षमता प्राप्त है। अनुच्छेद-124 इस संसदीय शक्ति का उद्घोषक है। इसके अतिरिक्त अनुच्छेद-124(4), 218, 121, 122(1), 212(1), 136, 323(क), 323(ख) जैसे तमाम संवैधानिक उपबंध न्यायपालिका के विषय में संसदीय शक्ति के अधिकारों की पुष्टि करते हैं। तब सवाल यह भी उठता है कि एनजेएसी (99वें संविधान संशोधन अधिनियम-2014) को ख़ारिज करके क्या न्यायपालिका ऐसे आचरण से स्वयं को लोकतांत्रिक व्यवस्था में एक पृथक सत्ता अधिष्ठान के रूप में प्रतिष्ठित करने का अनैतिक प्रयास नहीं कर रही है?

हालाँकि ऐसा नहीं है कि केंद्र सरकार ने अपने अधिकारों का अतिक्रमण नहीं किया है। उसने भी कई बार सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों को अपने हितों को साधने के लिए कई बार ऐसा किया है एवं न्यायाधीशों पर अपनी इच्छानुसार निर्णय देने का दबाव बनाने और अपने मनपसंद न्यायाधीशों को लाभ पहुँचाने तक की घटनाएँ किसी से छिपी नहीं हैं। लेकिन फिर भी भले ही अपने ध्येय वाक्य में सर्वोच्च न्यायालय यतो धर्मस्ततो जय: की घोषणा करे, किन्तु यथार्थ में इस मामले में उसके द्वारा संवैधानिक धर्म का ईमानदारी से पालन नहीं हुआ है। आख़िर देश की जनता के बहुमत से निर्वाचित मंत्रिमंडल द्वारा सिफ़ारिश किये गये एवं राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त राज्य के सर्वोच्च संवैधानिक प्रमुख अर्थात् राज्यपाल को अपने अधिकार क्षेत्र के बाहर जाकर उसके संवैधानिक कृत्य हेतु निर्देशित करने का सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय न्यायपालिका का विधायिका तथा कार्यपालिका को निर्देशित करने हेतु संवैधानिक अतिक्रमण का प्रयास है। हालाँकि इस विवाद में न्यायालयी पक्ष की अति सक्रियता को राजनीतिक वजहों से समर्थन देने वाला वर्ग यह नहीं समझना चाहता कि वस्तुत: उक्त विवाद किसी सरकार, पार्टी या संस्थान से जुड़ा हुआ है ही नहीं। असल में प्रश्न लोकतांत्रिक संरचना में संवैधानिक मूल्यों के प्रति समादर का है।

किसी पार्टी की विचारधारा अथवा किसी सरकार की कार्यशैली से असहमति रखना या उसकी आलोचना सहज जनतांत्रिक वृत्ति है, बल्कि असहमतियों का वजूद तो जम्हूरियत की ज़िन्दादिली का सुबूत है। लेकिन तमिलनाडु राज्यपाल के कर्तव्य क्षेत्र की संवैधानिक परिधि के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय रॉबिन हुड टाइप का क्रांतिकारी क़दम समझने वाले संविधान की मूल अवधारणा एवं व्यवस्थापन के विधायी सिद्धांत के महत्व को उक्त संवैधानिक विवाद के अनुरूप भविष्य में उपजने वाली भावी समस्याओं को नहीं समझ पा रहे हैं। हालाँकि यह भी एक सत्य है कि न्यायपालिका की यह आलोचना तब तक एकपक्षीय नज़र आती है, जब तक इस विवाद के संवैधानिक संदर्भ की ओट में राजनीतिक संघर्ष के मूल कारण को नहीं समझते हैं। असल में न्यायपालिका का अधिकार का यह अतिक्रमण तमिलनाडु राज्य सरकार के बहुमत की निर्वाचित जनतांत्रिक सत्ता के विशेष आग्रह की परिणीति है।

संविधान के छठे भाग के अनुच्छेद-153 से 167 तक राज्य की कार्यपालिका का वर्णन है, जिसके अनुसार राज्यपाल राज्य का कार्यकारी प्रमुख (संवैधानिक मुखिया) होता है। इस रूप में वह केंद्र सरकार के प्रतिनिधि का भी दायित्व निभाता है। परन्तु यह विधायी आदर्श केवल सैद्धांतिक टैबू-टैटम है। वास्तविकता में ये महामहिम के रूप राज्य सरकार के नियंत्रण में लगे केंद्र सरकार के राजनीतिक एजेंट होते हैं।

विधानमंडल द्वारा पारित विधेयकों के संदर्भ में संविधान प्रदत्त चार प्रकार की वीटो शक्तियाँ- स्वीकृति प्रदान करना, अपनी स्वीकृति रोक लेना, स्थगन वीटो एवं विधेयक को राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए सुरक्षित रखना राज्यपाल को प्राप्त हैं। लेकिन कटु वास्तविकता यह है कि इन सभी वीटो का प्रयोग राज्यपाल अपने नियोक्ता केंद्र सरकार के इशारे पर उसकी सुविधानुसार करते हैं। ऐसे में जब केंद्र एवं राज्य में दो भिन्न दलों, उसमें भी प्रतिद्वंद्वी विचारधारा एवं आपस में एक-दूसरे के प्रति विपक्षी ख़ेमे से जुड़े पार्टियों की सरकार हो, तो स्थिति टकरावपूर्ण एवं अधिकांशत: राजनीतिक विद्वेष से भरी होती है। चूँकि 42वें संविधान संशोधन (1976) के बाद राष्ट्रपति पर तो मंत्रिमंडल की बाध्यता सुनिश्चित हुई; लेकिन राज्यपाल ऐसे किसी उपबंध से मुक्त रहे और केंद्र सरकार की सरपरस्ती तो होती ही है। इसलिए भी उनमें राज्यों की निर्वाचित सरकारों के निर्णयों की अवहेलना करने का साहस आया है। वैसे अक्सर संविधान विशेषज्ञों ने इनकी आलोचना जनतंत्र पर मुसल्लत कर दिये गये सफ़ेद हाथी के रूप में की है, जो सरकारी ख़ज़ाने पर भी बोझ हैं; और कार्यपालिका के कार्य प्रणाली में अनावश्यक रोक भी।

अत: उक्त संवैधानिक विवाद हेतु राज्यपाल आर.एन. रवि की संविधान की आड़ में प्रदर्शित राजनीतिक हठधर्मिता भी कम उत्तरदायी नहीं है। इसलिए तमिलनाडु सरकार की याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी ठीक ही थी कि राज्यपाल ने ईमानदारी से काम नहीं किया। तथा आप (राज्यपाल) संविधान से चलें; पार्टियों की मर्ज़ी से नहीं। परन्तु इस स्वीकार्य तर्क के बावजूद भी समझना होगा कि संवैधानिक मूल्यों की गरिमा संविधान के सैद्धांतिक निरूपण में निहित है, जिसका तदर्थ स्थिति में समर्थन इसलिए भी ज़रूरी है, ताकि राष्ट्र की लोकतांत्रिक व्यवस्था में शुचिता एवं सम्मान दोनों सुरक्षित रह सकें एवं भविष्य में ऐसी कोई समरूप अवस्था उत्पन्न न हो या संवैधानिक टकराव की स्थिति पैदा न हो।

‘धर्मो रक्षति रक्षित:’ की भारतीय ज्ञान परंपरा के लाक्षणिक अर्थ- ‘धर्म की रक्षा कीजिए, धर्म आपकी रक्षा करेगा’ की भाँति संविधान के मूल सिद्धांतों का परोक्ष संदेश भी समतुल्य है कि संवैधानिक मूल्यों की रक्षा कीजिए और संविधान आपके लोकतंत्र और उसकी स्थापित व्यवस्था की संरक्षा करेगा।

प्रकृति और पशु-पक्षियों के रक्षक हैं किसान

योगेश

किसान प्रकृति और धरती के सबसे निकट रहते हैं। इसलिए किसानों को पशु-पक्षी अपना मित्र मानते हैं और किसान भी उनसे मित्रता का भाव रखते हैं। अगर इन पशु-पक्षियों की संख्या कम या ज़्यादा हो जाती है, तो किसानों को इसका नुक़सान उठाना पड़ता है। ज़रूरत से ज़्यादा बारिश, ज़्यादा सूखा, हवा का आँधी-तूफ़ान में बदल जाना और पशु-पक्षियों की संख्या कम-ज़्यादा किसानों को नुक़सान पहुँचाते हैं। किसान मनुष्य हैं, जो सबसे ज़्यादा संवेदनशील होते हैं और अपनी फ़सलों में सभी पशु-पक्षियों के लिए हिस्सा रखने में सबसे बड़ी भूमिका निभाते हैं। लेकिन किसानों के लिए पक्षियों की संख्या घटना और आवारा पशुओं की संख्या बढ़ना संकट पैदा करती जा रही है, जिसके लिए वे मनुष्य ही ज़िम्मेदार हैं, जो अपने लाभ के लिए जंगलों को उजाड़ रहे हैं और पशु-पक्षियों की हत्या कर रहे हैं।

मनुष्य ने पुरातन समय से अपने फ़ायदे के लिए पशु-पक्षियों और प्रकृति को लगातार नुक़सान पहुँचाया है और वह अब भी रुकने का नाम नहीं ले रहा है, जबकि धरती कई बार बड़े-बड़े भूकंपों और सुनामी जैसे तूफ़ानों के द्वारा यह संकेत दे रही है कि बस अब मनुष्य का अतिक्रमण को धरती और सहन नहीं कर सकती। मनुष्य का हिंसक स्वार्थ धरती पर रहने वाले सभी जीवों को भयंकर नुक़सान पहुँचा रहा है। कहने को मनुष्य को भगवान ने सोचने-समझने की शक्ति दी है, सही-ग़लत की पहचान करने की बुद्धि दी है और सबसे बड़ी बात धरती पर राज्य करने के साथ-साथ अपने लिए हर सुख जुटाने की सामर्थ दी है। लेकिन मनुष्य ही आज धरती के विनाश में सबसे प्रमुख हिस्सेदारी निभा रहा है। मनुष्य को न जाने क्यों संतुष्टि नहीं है, विशेषकर हर तरह से सुविधा-सम्पन्न लोगों को संतुष्टि बिलकुल भी नहीं है। कहने को उनके पास कोई भी कमी नहीं है। ऐसे लोग धरती पर सबसे ज़्यादा विनाश करते आये हैं और विनाश ही करते जा रहे हैं। जंगली जानवरों और पालतू पशुओं से लेकर पक्षियों तक की दुर्दशा और उनके विनाश में मनुष्य, विशेषकर अवैध काम करके संपत्ति बनाने और तस्करी करने वालों ने जो घिनौना काम किया है, वो कसाइयों और आखेटों से कम नहीं है।

हमारे देश में धनवान बनने की भूख बड़े-बड़े लोगों में बहुत ज़्यादा है, जो इसकी पूर्ति के लिए पशुओं का मरवा रहे हैं और जंगलों को काट रहे हैं। जंगलों को काटकर जंगली पशु-पक्षियों की हत्या भी कर रहे हैं और धरती पर विनाश का पाप भी कर रहे हैं। लेकिन अगर धरती पर पशु-पक्षियों और प्रकृति की रक्षा करने वाला कोई है, तो वे किसान हैं। किसानों ने हमेशा से पशु-पक्षियों और प्रकृति की रक्षा की है। उन्होंने धरती पर खेती करके पशु-पक्षियों और तमाम जीवों का पालन-पोषण किया है, बल्कि इंसानों का भी पेट भरा है और हमेशा दया का भाव दिखाते हुए अपने द्वार पर आये हुए लोगों को, यहाँ तक कि कुत्ते या दूसरे पशु-पक्षियों को भी भूखा नहीं रखा है। इसलिए किसानों को अन्नदाता और धरती का भगवान कहा जाता है। क्योंकि किसान जानते हैं कि पशु-पक्षी और प्रकृति की वजह से ही मनुष्यों को जीवन मिलता है और ये सब मनुष्यों के ऐसे मित्र हैं, जिन्हें मनुष्यों से प्यार और भूख मिटाने की मदद के अलावा कोई दूसरा लालच नहीं है। लेकिन फिर भी मनुष्य पशु-पक्षियों, पेड़-पौधों का कई तरह से दुश्मन बना हुआ है। मनुष्य धरती पर उजाड़ ही नहीं कर रहे हैं, वे धरती को बुरी तरह गंदा भी कर रहे हैं। मनुष्यों द्वारा फैलायी गयी गंदगी, विशेषकर कूड़े-कचरे और प्रदूषण ने लाइलाज बीमारियों को जन्म दिया है।

धरती पर उसके द्वारा डाली जा रही गंदगी और प्रदूषण का निस्तारण धरती पर रहने वाले कीट-पतंगे और पशु-पक्षी करते हैं और पानी में उसके द्वारा डाली गयी गंदगी को मछलियाँ और दूसरे जलीय जीव साफ़ करते हैं। हालाँकि कुछ पशु-पक्षी और जीव मनुष्य के लिए घातक, जानलेवा और बीमारियाँ देने वाले भी होते हैं। मनुष्य ऐसे पशु-पक्षियों और जीवों को हमेशा के लिए नष्ट नहीं कर सकता। कई पशु-पक्षियों से तो मनुष्य ही डरते हैं और सीधे पशु-पक्षियों से फ़ायदा उठाते हैं, उन्हें मार तक देते हैं। लेकिन किसान ऐसा नहीं करते; क्योंकि किसान उन्हीं कीट-पतंगों को मारते हैं, जो उनकी फ़सल के लिए नुक़सानदायक होते हैं। किसान जब खेत में काम करते हैं, तो उनके आसपास बहुत से पक्षी घूमते रहते हैं। खेतों की जुताई और फ़सलों की कटाई के समय पक्षी अपने भोजन की तलाश किसानों के आगे-पीछे चलते रहते हैं। ये पक्षी उन कीट-पतंगों को ही खाते हैं, जो फ़सलों और भूमि के लिए नुक़सानदायक होते हैं।

पक्षी किसानों के अलावा दूसरे मनुष्यों को भी लाभ पहुँचाते हैं। अगर कोई पशु मर जाए, तो कौवे, चील-गिद्ध, कुत्ते, भेड़िये ओर कीड़े उनका मांस और हड्डियों को खाकर सफ़ाई का काम करते हैं। मनुष्यों द्वारा नालियों में डाली जाने वाली गंदगी को नालियों के कीड़े साफ़ करते हैं। हवा में फैली गंदगी को पेड़-पौधे, पानी की गंदगी को जलीय पौधे, मछलियाँ और दूसरे जलचर साफ़ करते हैं। धरती पर मनुष्यों द्वारा डाली जा रही गंदगी को ज़मीन पर गंदगी साफ़ करने वाले कीड़े-मकोड़े, सूअर और दूसरे कुछ पशु-पक्षी साफ़ करते हैं। लेकिन मनुष्य अपने स्वार्थ के लिए पशु-पक्षियों के अलावा कीट-पतंगों और दूसरे जीवों को भी मार रहे हैं। मनुष्यों की इन गंभीर हरकतों के कारण पेड़-पौधों, पशु-पक्षियों और कीट-पतंगों की संख्या में बहुत तेज़ी से गिरावट तो आ रही है। कई तरह के पशु-पक्षी और कीड़े-मकोड़े तो पूरी तरह नष्ट हो चुके हैं। 

 वैसे तो किसानों के मित्र की उपाधि केंचुए को मिली हुई है; लेकिन दूसरे पशु-पक्षी और कीट-पतंगे भी किसानों के मित्र हैं। किसानों के मित्र केंचुए के अलावा मित्र पशु-पक्षी, कीट-पतंगे और पेड़-पौधों के नष्ट होने से उन्हें अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। कृषि भूमि को पोला बनाकर उपजाऊ बनाने वाले केंचुए बहुत मदद करते हैं। लेकिन गौरैया, छोटी चिड़िया, तीतर, टिटौली, मोर, बटेर, बगुला, कौआ, मुर्गा-मुर्गी, बत्तख, काली चिड़िया, कठफोड़वा, चमगादड़, शिकारा, बाज और गिद्ध भी किसानों के मित्र हैं, जो फ़सलों को नुक़सान पहुँचाने वाले कीट-पतंगों को खाते हैं। कीट-पतंगों में भँभीरी, तितली, पप्पू कीड़ा, मधुमक्खी, भँवरे, तिलचट्टा आदि किसानों के मित्र हैं। कीड़ों और दूसरे थलचर जीवों में केंचुआ, गुबरैला, चींटियाँ, चींटे, मेंढक, छिपकली आदि किसानों के मित्र हैं। किसानों के मित्र पशु-पक्षियों, कीट-पतंगों और दुसरे थलचरों के निरीक्षण से पता चला है कि ज़्यादातर पक्षी अपने बच्चों के लिए पूरे दिन चुग्गा लाते हैं, जिनमें ज़्यादातर वे कीड़े-मकोड़े होते हैं, जो किसानों की फ़सलों को नुक़सान पहुँचाते हैं। इन पक्षियों में कठफोड़वा इकलौता ऐसा पक्षी है, जो 24 घंटे में लगभग 300 बार अपने बच्चों के लिए चुग्गा लाता है, जिसमें कीड़े-मकोड़े बड़ी संख्या में होते हैं।

किसानों की फ़सलों की पैदावार बढ़ाने में पक्षी और छोटे-छोटे उड़ने वाले कीट-पतंगों के अलावा केंचुआ, मेंढक, गुबरैला, चींटियाँ, चींटे, छिपकली बहुत सहायक होते हैं। वहीं पशुओं में पालतू पशु किसानों के लिए बहुत सहायक होते हैं। गाय-भैंस, बैल, भैंसा, गधा, ऊँट, घोड़ा, मुर्गा-मुर्गी, बत्तख आदि खाद और दूध, अंडे और श्रम के हिसाब से किसानों के मित्र होते हैं; लेकिन कुत्ता खेतों की रखवाली के हिसाब से किसानों का मित्र पशु है। कबूतरों को छोड़कर ज़्यादातर पक्षी किसानों के खेतों से कीड़े-मकोड़ों को पकड़कर खाते हैं। हालाँकि कई पक्षी किसानों के मित्र कीट-पतंगों को भी खा जाते हैं, जिससे उनकी संख्या कम होने लगती है। हालाँकि कीट-पतंगों को मारने के पीछे किसान भी ज़िम्मेदार हैं। क्योंकि जब किसान अपने खेतों में कीटनाशकों का छिड़काव करते हैं, तो उनकी फ़सलों को नुक़सान पहुँचाने वाले कीटों के साथ-साथ उनके मित्र कीट-पतंगे भी मर जाते हैं। फ़सलों में कीटनाशकों और यूरिया आदि के डालने से किसानों के मित्र कीट-पतंगे और मित्र पक्षी भी खेतों में काम आते हैं, जिससे पैदावार पर तो बुरा असर पड़ता ही है, फ़सलों के ज़हरीला होने का ख़तरा भी बन जाता है।

कुछ वर्षों से किसानों ने पशुपालन भी कम कर दिया है, जिससे वे अब जैविक खाद नहीं बना पाते और न ही पशुओं से कृषि करते हैं। एक सर्वे के आँकड़ों के अनुसार, सिर्फ़ 20 प्रतिशत किसान अब देश में पशुओं से खेती करते हैं, जबकि किसानों ने 30 प्रतिशत तक पशुपालन कम कर दिया है। वहीं आवारा पशुओं की बढ़ती संख्या भी किसानों के लिए सिरदर्द बनी हुई है। आवारा पशुओं के अलावा कहीं-कहीं बंदरों का आतंक भी दिखायी देता है, जो कि फ़सलों को अकारण ही उजाड़ देते हैं। आवारा पशुओं में नीलगाय, सांड, गाय, हाथी, बंदर, बारहसिंघा, जंगली भैंस-भैंसा, ऊदबिलाव सबसे ज़्यादा किसानों की फ़सलों को नुक़सान पहुँचाते हैं। थलचरों में चूहे सबसे नुक़सान पहुँचाते हैं। कीट-पतंगों में टिड्डी, अनाज और फल खाने वाले पक्षी और फ़सलों को खाने वाले वाले कीट किसानों को नुक़सान पहुँचाते हैं। कृषि विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि इन नुक़सानों से बचने के लिए किसानों के परंपरागत जैविक खेती करनी चाहिए और वापस से पशुपालन करना चाहिए। लेकिन किसानों के आगे भूमि कम होने के चलते पशुपालन में समस्या आती है।

पहले पशुपालन करने वाले किसान अपने पशुओं को चराने के लिए ख़ाली मैदानों और जंगलों के आसपास लेकर जाते थे। लेकिन अब ख़ाली मैदानों की भी कमी है और जंगलों की भी कमी है, जिसके चलते अब वही किसान पशुपालन कर पाते हैं, जो घर में ही पशुओं के चारे आदि का इंतज़ाम कर पाते हैं। पानी के लिए तालाब भी बहुत कम बचे हैं। जंगलों के कटने और तालाबों के पट जाने से पशु-पक्षी मर रहे हैं। लेकिन मनुष्य भूल रहे हैं कि ये पशु-पक्षी किसानों के ही नहीं, सभी मनुष्यों के मित्र हैं। किसानों के अलावा सभी मनुष्यों के हित संवर्धन के लिए पर्यावरण के साथ पशु-पक्षी संरक्षण को बचाने की ज़रूरत है, नहीं तो प्रकृति के साथ ही पर्यावरण में असंतुलन बढ़ जाएगा, जो मनुष्य जीवन को संकट में डाल देगा।

3डी प्रिंटिंग में उड़ान भर रहा चीन

एक दौर था, जब फोटोग्राफी ख़ास अंदाज़ में होती थी। फोटो स्टूडियो में दीवार पर बनी पेंटिंग या पर्दा लगाकर फोटोग्राफी की जाती थी। फोटो खिंचवाने के कई दिन बाद फोटो मिला करते थे। फोटोग्राफर को फोटो बनाने के लिए काफ़ी मेहनत भी करनी होती थी। निगेटिव धोने से लेकर फोटो प्रिंट करने तक की एक ख़ास तकनीक होती थी। धीरे-धीरे फोटो खींचने में निगेटिव का रोल ख़त्म हो गया और फोटो खिंचवाने वालों को फोटो मिलने के इंतज़ार का समय भी कम हुआ। मोबाइल के आने पर फोटोग्राफरों की दुकानों पर जाकर फोटोग्राफी और उसके साथ-साथ वीडियोग्राफी करवाने का क्रेज भी काफ़ी कम हुआ। ये सब लोगों के हाथ में कैमरे आने से तो हुआ ही, अब पिछले एक दशक से मोबाइल आने से और कम हुआ।

पहले जब फोटोग्राफी एक पैशन हुआ करता था, तब कैमरा चलाना एक हुनर माना जाता था और कैमरामैन भी बड़े सलीक़े से सारे एंगल मिलाने के बाद कैमरे का फ्लैश बटन दबाता था, जिसके साथ ही एक फ्लैश लाइट चमकती थी, जो फोटो खिंचवाने वालों को फोटो खिंच जाने के लिए आश्वस्त करती थी। लेकिन कैमरे और मोबाइल हाथ में आने से फोटो खींचने और वीडियोग्राफी हर कोई करना जान गया, भले ही उसे इसकी सही जानकारी हो या न हो। हालाँकि अब भी फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी एक पैशन और अच्छा व्यवसाय बना हुआ है। लेकिन ज़्यादातर लोग इसके लिए प्रोफेशनल फोटोग्राफर और वीडियोग्राफर के पास ख़ास मौक़ों पर ही जाते हैं। बाक़ी ज़रूरतें लोग अपने निजी कैमरे, या ज़्यादातर मोबाइल से ही पूरी कर लेते हैं। क्योंकि क़रीब-क़रीब हर हाथ में एंड्रॉयड मोबाइल के आ जाने से हद से ज़्यादा फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी हो रही है। लोगों में मोबाइल से सेल्फी लेने, फोटो खींचने और वीडियो बनाने का क्रेज काफ़ी ज़्यादा है।

एक अनुमान के मुताबिक, भारत में हर रोज़ सिर्फ़ मोबाइलों के ज़रिये क़रीब 450 करोड़ से ज़्यादा फोटो खींचे जा रहे हैं, जबकि 200 करोड़ से ज़्यादा रील बन रही हैं। यानी एक व्यक्ति हर रोज़ औसतन तीन से चार फोटो खींच रहा है और तीन व्यक्ति औसत दो रील बना रहे हैं। हालाँकि ऐसा नहीं है कि भारत में हर व्यक्ति ही फोटो खींच रहा है और हर व्यक्ति रील बना रहा है। लेकिन एंड्रॉयड मोबाइल फोन इस्तेमाल करने वाले ज़्यादातर लोग हर रोज़ फोटो खींचने, सेल्फी लेने और रील बनाने में लगे हैं। लेकिन इससे भी ज़्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि भारत में हर रोज़ लोग औसत चार से पाँच घंटे रील देखने में बिता रहे हैं, जो कि चिन्ताजनक स्थिति है।

अब मोबाइल से फोटोग्राफी, वीडियोग्राफी से भी आगे निकलकर 3डी प्रिंटर और 3डी मूर्ति बनाने की तकनीक आ चुकी है। चीन ने एक ऐसी 3डी मशीन ईजाद की है, जिसमें फोटोग्राफी के स्टूडियो की तरह ही लोगों की फोटो की जगह अपनी मूर्ति बनायी जाती है। ये मूर्ति दो इंच से लेकर पाँच फीट तक की बनायी जा सकती है।

दरअसल, चीन ने जो 3डी प्रिंटिंग मशीन बनायी है, उसके दो भाग हैं। एक भाग में 3डी प्रिंटर किसी भी व्यक्ति की हू-ब-हू मूर्ति बनाने का काम करता है और दूसरे भाग में एक गोल रोलिंग रूम होगा, जो अपनी मूर्ति बनवाने वाले व्यक्ति की चारों तरफ़ स्कैनिंग करके 3डी प्रिंटर को व्यक्ति के आकार को पहुँचाने का काम करता है। इस स्कैनिंग रूम के अंदर फ़िलहाल पाँच लोग तक खड़े हो सकते हैं। इस स्कैनिंग रूम के अंदर लोग जिस पोजीशन में खड़े होंगे, उसी पोजिशन में उनकी 3डी मूर्ति बनकर एक घंटे के अंदर मिल जाएगी। इस 3डी मूर्ति में लोगों के हेयर स्टाइल से लेकर पहले हुए जेवरात, कपड़े, जूते-चप्पल और चेहरे के हाव-भाव तक हू-ब-हू बनकर निकलते हैं। अभी चीन द्वारा बनायी गयी 3डी प्रिंटिंग मशीन एक बार में किसी व्यक्ति या लोगों को स्कैन करने में 15 से 20 मिनट का समय लेती है और उनकी 3डी मूर्ति बनाने में एक घंटे के क़रीब समय लगता है। डेढ़-दो साल पहले चीन द्वारा बनायी गयी ये 3डी मशीन शुरू-शुरू में 12 घंटे तक ले रही थी, जिसमें मूर्ति भी उतनी साफ़ नहीं आ पा रही थी, जितनी साफ़ और हू-ब-हू मूर्ति होनी चाहिए। लेकिन चीन के वैज्ञानिकों ने कड़ी मेहनत और दिमाग़ का इस्तेमाल करके 3डी प्रिंटिंग मशीन बनाने में ही नहीं, बल्कि चौकाने वाली 3डी प्रिंटिंग मशीन बनाने में जो महारत हासिल की है, उसकी माँग भविष्य में बहुत तेज़ी से बढ़ने वाली है। हालाँकि अभी चीन के वैज्ञानिक इस मशीन पर एक्सपेरिमेंट कर रहे हैं। चीन के वैज्ञानिक चाहते हैं कि वे एक ऐसी 3डी मशीन दुनिया के सामने लेकर आएँ, जो सेकंडों में स्कैनिंग रूम में खड़े व्यक्ति का हुलिया स्कैन करके मिनटों में उसकी हू-ब-हू मूर्ति बना दे। वैज्ञानिक चाहते हैं कि इस 3डी मूर्ति बनाने के समय लोगों के बालों का रंग, पहने हुए कपड़ों का रंग और जूते-चप्पलों का रंग, गहनों का रंग, सब कुछ हू-ब-हू बनाया जा सके।

3डी प्रिंटिंग और एआई के इस दौर में चीन के वैज्ञानिक लोगों की स्कैनिंग करके उनकी मूर्ति बनाने का चमत्कार कर चुके हैं। हालाँकि फोटो से मूर्ति उतनी परफेक्ट नहीं बन सकेगी, जितनी परफेक्ट मूर्ति किसी व्यक्ति को स्कैन करके बन सकती है। सोचिए, जब यह मशीन और डेवलप होगी, तो चलते-फिरते लोगों की मूर्ति भी बना सकेगी। हो सकता है कि भविष्य में सीसीटीवी में रिकॉर्ड लोगों की मूर्तियाँ भी ज़रूरत पड़ने पर बनवायी जा सकें। इसके अलावा खुले मैदान में घूम रहे लोगों या किसी पार्टी में इकट्ठे हुए लोगों की भी 3डी मूर्ति बना सके। अगर यह संभव हो सका, तो पुलिस को अपराधियों को पकड़ने में आसानी हो जाएगी। इसके अलावा लोगों को जब अपनी मूर्ति बनवाने का मौक़ा कहीं भी मिलने लगेगा, तो लोग दीवारों पर अपने फोटो टाँगने से बेहतर अपनी मूर्तियाँ बनवाना उचित समझेंगे।

3डी प्रिंटिंग मशीनें एक तरह के मॉडलिंग सॉफ्टवेयर के साथ काम करती है, जिसमें किसी व्यक्ति या चीज़ को स्कैन करके उसकी 3डी मूर्ति तैयार करती है। फोटो से 3डी मूर्ति बनाने में भी यही तकनीकी प्रक्रिया काम करती है; लेकिन फोटो से 3डी मूर्ति बनाने के लिए मशीन फोटो को अपलोड करके उसके आधार पर एक 3डी मॉडल तैयार करेगी, जिसके बाद उस तस्वीर का आकलन करके मूर्ति बना देगी। हालाँकि फोटो से 3डी मूर्ति बनाने में ज़रूरी नहीं कि व्यक्ति या किसी चीज़ की हू-ब-हू सब कुछ तैयार हो सके, क्योंकि मशीन फोटो का फ्रंट हिस्सा ही स्कैन कर पाएगी, बाक़ी का हिस्सा कल्पना के आधार पर मशीन बनाएगी, जिसके हू-ब-हू होने की गारंटी नहीं दी जा सकती। लेकिन फिर भी यह एक कमाल की तकनीक है, जिसके मार्केट में आते ही धूम मच जाएगी और लोग अपनी 3डी मूर्ति बनवाना चाहेंगे।

3डी मूर्ति बनाने में हाथ से मूर्ति बनाने की अपेक्षा कम ख़र्च आएगा और उससे कम समय में 3डी मूर्ति बनकर तैयार हो जाएगी। 3डी प्रिंटिंग मूर्ति एक तरह के कृत्रिम मैटेरियल से बनेगी, जिसमें प्लास्टिक, सिंथेटिक, पत्थर का पाउडर, चीनी मिट्टी आदि का उपयोग किया जा सकता है। 3डी मूर्ति बनाने के अलावा मूर्ति और तस्वीर कुरेदने के लिए 3डी प्रिंटिंग मशीन प्लास्टिक, धातुओं और पत्थरों का भी उपयोग भी कर सकेगी। यानी इस मशीन के द्वारा पुरातन समय की पत्थरों को काटकर की जाने वाली मूर्तिकला और चित्रकला की तरह ही ये 3डी मशीन मूर्तियाँ बनाएगी और चित्रकला भी कर सकेगी। इसके लिए मशीन समय भी कम लेगी और मूर्तिकला से ज़्यादा सफ़ाई से मूर्ति बना सकेगी।

3डी प्रिंटिंग और 3डी मूर्ति बनाने के अलावा 3डी मशीनों के ज़रिये चीन 3डी सेटेलाइट आसमान में भेजने की तैयारी भी कर रहा है। जानकारी के मुताबिक, साल 2028 तक चीन चांग ई-8 अंतरिक्ष यान लॉन्च करने की योजना भी बना रहा है। हर क्षेत्र में आगे निकलने की कोशिश कर रहा चीन अपने अंतरराष्ट्रीय चंद्र अनुसंधान स्टेशन (आईएलआरएस) से चाँद पर रहने की तरकीबें निकालने के लिए प्रयोग कर रहा है। चीन ने ज़मीन के अलावा चाँद की मिट्टी का उपयोग करके चाँद पर ईंटें बनाने की कोशिश कर रहा है और इसके बाद वह उस मिट्टी से 3डी मूर्ति बनाने की कोशिश करेगा।

चीन चाँद पर अपने नागरिकों को बसाने की कोशिश में लगा है, जिसे लेकर वह परीक्षण भी कर रहा है। अगर चीन इसमें सफल हो जाता है, तो वह चाँद की ज़्यादातर ज़मीन पर चीन क़ब्ज़ा कर लेगा, जिसके चलते चाँद पर भी वह वहाँ रहने या ज़मीन ख़रीदने को शौक़ीन लोगों को ज़मीन बेचने का काम कर सकता है। चीन के वैज्ञानिक, आम लोग 3डी मूर्ति बनाने व 3डी प्रिंटिंग तैयार करने में कामयाब होने पर काफ़ी खुश हैं। चीन जानता है कि आने वाला वक़्त नयी तकनीक और आधुनिकता से भरपूर होगा, जिसमें जल्दी क़दम रखने पर उसे बिना कंपटीशन वाला मार्केट भी मिल सकता है, जिसमें वो अपनी इस तकनीक से ईजाद मशीनों की बिक्री करके अरबों रुपये कमा सकता है। बता दें कि चीन ने दुनिया के हर बाज़ार में अपना दबदबा काफ़ी हद तक बनाया हुआ है, जिसके चलते उसकी जीडीपी बहुत अच्छी है और आर्थिक स्थिति भी बहुत मज़बूत है।

देश भर में पाकिस्तान और चीन के जासूस सक्रिय सीमा पार लेन देन में काफी वृद्धि

अंजलि भाटिया
नई दिल्ली , 4 जून
देश में पाकिस्तानी जासूसों और स्लीपर सेल्स के बढ़ते नेटवर्क के बीच अब एक और चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। वित्त मंत्रालय की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि बीते 10 सालों में देश में सीमा पार लेनदेन (क्रॉस-बॉर्डर ट्रांजेक्शन) की संख्या में बेतहाशा इजाफा हुआ है।
सूत्रों के मुताबिक, 2014–15 से लेकर 2023–24 के बीच कुल 16 करोड़ 68 लाख 43 हजार 425 करोड़ क्रॉस-बॉर्डर वायर ट्रांजेक्शन रिपोर्ट(CBWTR) दर्ज किए गए हैं। इनमें से अधिकांश लेनदेन अचानक, असामान्य रूप से और संदेहास्पद स्थितियों में किए गए हैं, जिन्हें मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकी फंडिंग से जोड़कर देखा जा रहा है।
वित्त मंत्रालय के इंटेलिजेंस विभाग से जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि आतंकियों को मिलने वाली फंडिंग और मनी लॉन्ड्रिंग पर लगाम लगाने के लिए फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय है औरऔर प्रवर्तन निदेशालय (ED) भी देश के भीतर सतर्क है।
फिर भी इन ट्रांजेक्शनों में जबरदस्त बढ़ोतरी देखी गई है, जो सुरक्षा एजेंसियों के लिए चिंता का विषय बन गई है।ये वो लेनदेन हैं जो अचानक होते हैं और इन पर पहले से नजर नहीं होती।
2002 के मनी लॉन्ड्रिंग कानून के तहत कोई भी वित्तीय संस्था अगर ₹5 लाख या उससे ज्यादा का अंतरराष्ट्रीय लेनदेन करती है, तो उसे उसकी जानकारी तुरंत सरकार को देनी होती है। यह नियम सभी सरकारी, निजी, अंतरराष्ट्रीय बैंक, बीमा कंपनियाँ, म्युचुअल फंड्स और सहकारी संस्थाओं पर लागू होता है।
वित्त मंत्रालय ने 2013-14 से ‘क्रॉस-बॉर्डर वायर ट्रांजेक्शन रिपोर्ट’ का संकलन शुरू किया। इससे पहले, अंतर्राष्ट्रीय लेनदेन को अलग से दर्ज नहीं किया जाता था। 2013-14 में केवल 61231 लेनदेन किये गये। हालाँकि, 2014-15 से 2023-24 तक के दस वर्षों में सीमा पार वायर लेनदेन की आंकड़े लाखों से सीधे करोड़ों में पहुंच चुके हैं।
2019–20 और 2020–21 में सबसे ज्यादा ट्रांजेक्शन दर्ज किए गए। ये सभी लेनदेन ₹5 लाख से लेकर ₹4 करोड़ रुपये तक के रहे हैं।

वर्ष लेनदेन की संख्या

2023–24 12,95,64,06
2022–23 13,66,83,80
2021–22 13,68,52,50
2020–21 3,61,24,141
2019–20 3,95,53,003
2018–19 1,07,19,253
2017–18 94,07,903
2016–17 90,91,149
2015–16 1,53,05,924
2014–15 1,66,332

पहलगाम हमले के बाद खुफिया एजेंसियों ने अलग-अलग इलाकों से पाकिस्तान के लिए जासूसी कर रहे करीब 15 जासूसों को गिरफ्तार किया है। इसमें सरकारी कर्मचारी, ब्लॉगर, इंजीनियर आदि शामिल हैं। इससे पता चलता है कि आईएसआई ने भारत में जासूसों का एक नेटवर्क बनाया था। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत के हमले को विफल करने में चीन ने पाकिस्तान की मदद की थी। ऐसे में इस बात की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि देश में चीनी जासूस भी सक्रिय हों।
ऑपरेशन सिंदूर’ के समय भारत पर हमले को रोकने के लिए चीन ने भी पाकिस्तान का साथ दिया था। ऐसे में अब ये भी आशंका जताई जा रही है कि चीनी एजेंट भी भारत में सक्रिय हो सकते हैं।
इन सभी एजेंटों तक फंडिंग कैसे पहुंचती है, यह अभी तक साफ नहीं हो पाया है। लेकिन CBWTR में दर्ज संदिग्ध ट्रांजेक्शनों की संख्या यह जरूर संकेत देती है कि फंडिंग का रास्ता डिजिटल और अंतरराष्ट्रीय लेनदेन से होकर गुजरता है।

प्रधानमंत्री मोदी ने बाढ़ प्रभावित असम और सिक्किम के मुख्यमंत्री से की बात

नई दिल्ली: पूर्वोत्तर राज्यों में बाढ़ के कारण स्थिति गंभीर बनी हुई है। इस बीच, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को पूर्वोत्तर राज्यों के कई मुख्यमंत्रियों से बाढ़ के कारण उत्पन्न हुई स्थिति पर बात की। साथ ही उन्होंने केंद्र सरकार की ओर से हर संभव मदद का आश्वासन दिया।

जानकारी के अनुसार, प्रधानमंत्री मोदी ने असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा, सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग और मणिपुर के राज्यपाल अजय भल्ला से बात की। इस दौरान उन्होंने भारी बारिश और बाढ़ के कारण उत्पन्न हुई स्थिति के बारे में भी जानकारी ली। प्रधानमंत्री ने उन्हें हर संभव मदद और समर्थन का आश्वासन दिया।

इससे पहले, सोमवार को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री जे.पी. नड्डा ने पूर्वोत्तर राज्यों के कई हिस्सों में हो रही लगातार भारी बारिश पर गहरी चिंता जताई थी।

जे.पी. नड्डा ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट के माध्यम से प्रभावित लोगों के प्रति संवेदना व्यक्त की और भाजपा की राज्य इकाइयों और कार्यकर्ताओं को राहत कार्यों में सक्रिय रूप से भाग लेने का निर्देश दिया है।

नड्डा ने अपनी पोस्ट में लिखा, “पूर्वोत्तर राज्यों के कुछ हिस्सों में लगातार हो रही भारी बारिश से प्रभावित लोगों के लिए बहुत चिंतित हूं। मैंने भाजपा की राज्य इकाइयों और कार्यकर्ताओं को जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार हर संभव सहायता प्रदान करने का निर्देश दिया है। मैं प्रभावित क्षेत्रों में सभी से आग्रह करता हूं कि वे आवश्यक सावधानी बरतें, अनावश्यक यात्रा से बचें और स्थानीय अधिकारियों की सलाह का पालन करें।”

बीते रविवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने असम (हिमंत बिस्वा सरमा), अरुणाचल प्रदेश (पेमा खांडू) और सिक्किम (प्रेम सिंह तमांग) के मुख्यमंत्रियों और मणिपुर के राज्यपाल (अजय कुमार भल्ला) से टेलीफोन पर बातचीत कर बाढ़ की स्थिति के बारे में जानकारी ली थी।

विभिन्न पूर्वोत्तर राज्यों के अधिकारियों के अनुसार, 29 मई से जारी बारिश और बाढ़ के दौरान हुई 34 मौतों में असम में कम से कम 10 लोग मारे गए, इसके बाद अरुणाचल प्रदेश में नौ, मेघालय और मिजोरम में छह-छह, त्रिपुरा में दो और नागालैंड में एक व्यक्ति की मौत हुई।

पूर्वोत्तर राज्यों के आपदा प्रबंधन अधिकारियों ने बताया कि ये मौतें डूबने, भूस्खलन और जलभराव के कारण हुई हैं।

महाराष्ट्र में कहीं पानी, कहीं प्यास

के. रवि (दादा)

महाराष्ट्र में पीने के पानी की दिक़्क़त बढ़ती जा रही है। ये दिक़्क़त कोई आज की नहीं है, पर इसका समाधान नहीं होने के चलते बढ़ती जा रही है। वहीं दूसरी तरफ़ बारिश के पानी की आफ़त जब बरसात के महीने में महाराष्ट्र पर टूटती है, तो महाराष्ट्र के कई गाँव और कई शहर पानी में डूबने लगते हैं। पहली ही बरसात में महाराष्ट्र के कई इलाक़ों समेत मुंबई में बृहन्मुंबई नगर पालिका के काम की तो पोल खुल ही गयी है, महाराष्ट्र सरकार के मेट्रो के काम भी पोल खुल गयी है, जो पहली ही बरसात में किसी झोपड़पट्टी से भी बुरी तरह तहस-नहस हो गया। अफ़सोस यह है कि महाराष्ट्र में अब तक रही सरकारोंं से लेकर मौज़ूदा महायुति सरकार ने भी इसका कोई ख़ास समाधान न किया है, जिसका ख़ामियाजा मुंबईकरों को झेलना पड़ता है। मायानगरी के नाम से दुनिया भर में मशहूर मुंबई सरकार को और सरकारी विभागों को ख़ूब सारा पैसा टैक्स के रूप में देती है; पर मुंबईकरों को इसके बदले बदहाली के अलावा कुछ नहीं मिलता। इसके चलते जहाँ पानी की आफ़त बरसात में नहीं आती, जहाँ की सीवर लाइनें ठीक काम करती हैं और जहाँ पीने के पानी भी आराम से मिल जाता है, मुंबई में वहाँ फ्लैटों की क़ीमत ही करोड़ों रुपये होती है।

दूसरी तरफ़ मुंबई में पानी सप्लाई करने वाली झीलों में पानी काफ़ी कम होने के चलते बृहन्मुंबई नगर निगम ने मुंबईकरों के पानी की सप्लाई में कटौती कर रही है। मई के महीने में मुंबईकरों को पानी के लिए कई बार परेशान रहे हैं। बृहन्मुंबई नगर निगम ने ऐलान किया है कि मुंबई में पानी की सप्लाई में 30 मई से पाँच प्रतिशत और 05 जून से 10 प्रतिशत कटौती की जाएगी। इस जानकारी को साझा करने के साथ ही बृहन्मुंबई नगर निगम ने मुंबईकरों को पानी की बचत करने की सलाह दी है। बृहन्मुंबई नगर निगम का कहना है कि पिछले साल बरसात कम होने के कारण पिछली बार के मुक़ाबले इस बार डैम में 5.64 प्रतिशत पानी कम है। बृहन्मुंबई नगर निगम के सूत्रों ने बताया है कि मुंबई की झीलों में दो महीने से भी कम समय तक की सप्लाई का पानी बचा है। अपर वैतरणा, मध्य वैतरणा, तानसा, भातसा, मोडक सागर, तुलसी और विहार झीलों से हर दिन मुंबईकरों को लगभग 3,850 एमएलडी से ज़्यादा पानी की आपूर्ति की जाती है; पर अब इन झीलों में पानी कम होने के चलते आपूर्ति कम हो पा रही है।

सप्लाई के पानी की दिक़्क़त के साथ मुंबई की सीवर लाइन, नालों में पड़ी गंदगी और बरसात में बाढ़ की आफ़त भ्रष्टाचार के नमूने हैं, जिसका इल्ज़ाम लगातार बृहन्मुंबई नगर निगम पर लगता रहता है। मुंबईकरों का कहना है कि जिस नगर निगम को देश के हर नगर निगम से ज़्यादा टैक्स मिलता है, उसमें भ्रष्टाचार व्याप्त होना कोई अनोखी बात नहीं है; पर इतना भ्रष्टाचार भी ठीक नहीं कि अभी तक मुंबई की इन चार समस्याओं का इलाज ही नहीं हुआ है। मुंबईकरों का सीधा सवाल है कि अभी तक बृहन्मुंबई नगर निगम ने इन समस्याओं का हल क्यों नहीं निकाला है?

कुछ लोगों को ऐसा आरोप है कि बृहन्मुंबई नगर निगम के अधिकारी और कर्मचारी सिर्फ़ कमायी करते हैं, काम नहीं। बरसात आने पर जब सड़कों से लेकर बिल्डिंगों तक में पानी भर जाता है, तभी मुंबईकरों में भी हाहाकार मचता है और बृहन्मुंबई नगर निगम के भी अधिकारियों-कर्मचारियों की नींद खुलती है। उसके बाद सब भूल जाते हैं।

असल में मुंबई में नालों और सीवर की सफ़ाई का काम ठीक से कभी नहीं होता है। टूटे हुए नालों और सीवरों की मरम्मत का काम भी पूरी तरह से नहीं होता है। बृहन्मुंबई नगर निगम जहाँ समस्या होती है, वहीं इलाज करने की कोशिश करता रहता है। पूरे मुंबई शहर के सीवरों को बरसात के आने पर साफ़ करना नामुमकिन है और बृहन्मुंबई नगर निगम यही करता है। पर साल के पूरे 365 दिन सफ़ाई का काम हो, तो मुंबई में बरसात में बिल्डिंगों में पानी नहीं भर सकेगा।

महाराष्ट्र में मानसून दस्तक दे चुका है, जो मुंबईकरों के लिए हर साल परेशानी लेकर आता है। कई बार बरसात का इतना पानी भर जाता है कि मुंबई थम जाती है। बिल्डिंगों में सीवर मिला हुआ बरसात का पानी भर जाता है, जिसकी दुर्गंध पानी निकलने के बाद भी कई दिनों तक रहती है। बरसात का पानी भरने से लोगों का बहुत सामान ख़राब होता है।

मौसम विभाग ने बरसात का अलर्ट जारी करते हुए लोगों से सावधानी बरतने की अपील करते हुए पश्चिमी महाराष्ट्र के कई इलाक़ों के अलावा मुंबई, नवी मुंबई, कोंकण, रायगढ़ के लिए रेड अलर्ट जारी किया है, जबकि ठाणे और पालघर के लिए ऑरेंज अलर्ट और पुणे, नासिक, कोल्हापुर, सिंधुदुर्ग, रत्नागिरी और सतारा के लिए येलो अलर्ट जारी किया है।

सेना, सिन्दूर और सियासत

वैज्ञानिक दृष्टि से देखें, तो यह संभव नहीं कि किसी के शरीर में ख़ून की जगह सिन्दूर बहे। लेकिन जब देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक भरी जनसभा में यह कहा, तो ज़्यादातर लोगों ने इसे राजनीतिक (सियासी) डायलॉग माना। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के सिन्दूर को इस तरह अपनी सियासी के केंद्र में ले आने के बीच एक कड़वा सच यह है कि पहलगाम में 26 बहनों का सिन्दूर उजाड़ने वाले चार आतंकी अभी भी नहीं पकड़े गये हैं। लेकिन प्रधानमंत्री की पार्टी भाजपा के बड़े नेता आये दिन शहीदों की विधवाओं, सेना की नायिकाओं के लिए अपशब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं और सीमा पार भारत के नौ आतंकी ठिकानों पर हमले में बचे सभी आतंकी सरगना नये सिरे से ख़ुद को खड़ा करने में जुटे हैं।

प्रधानमंत्री के बयानों को शायद इसलिए भी राजनीति से जुड़ा माना जाता है कि इस तरह की घटनाएँ चुनावों के आसपास हुई हैं। साल 2019 में लोकसभा के चुनाव थे और अब बिहार के चुनाव हैं। यह चुनाव भाजपा के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण माने जा रहे हैं। एक नयी बात भारत के इतिहास में यह हुई कि भारत-पाकिस्तान के बीच हाल के लघु युद्ध में देश की नायिका के रूप में उभरी सेना की कर्नल सोफ़िया क़ुरैशी के माता-पिता ने प्रधानमंत्री मोदी के गुजरात के वडोदरा में उनके राजनीतिक रोड शो में हिस्सा लिया। पहले तो यह पता नहीं चल सका कि उन्होंने ऐसा ख़ुद की इच्छा से किया या इसके पीछे स्थानीय भाजपा नेताओं की इच्छा थी। सोफ़िया की माता हलीमा क़ुरैशी और पिता ताज मोहम्मद क़ुरैशी ने बाद में प्रधानमंत्री से हुई मुलाक़ात को ज़िन्दगी का अविस्मरणीय पल भी बताया। लेकिन जब एक मीडियाकर्मी ने सोफ़िया की माँ से सवाल किया कि क्या आपको स्पेशली इनवाइट किया गया था आज? तो उन्होंने बताया कि वहाँ लोकल कलेक्टर ऑफिस (ज़िलाधिकारी कार्यालय) से कॉल था। मीडियाकर्मी ने पूछा कि अच्छा, ये आपको लोकल कलेक्टर ऑफिस से कॉल आया था कि आप जाइए रोड शो के लिए आज? इस पर हलीमा क़ुरैशी ने कहा कि हाँ; बुलाया गया था।

प्रधानमंत्री मोदी एक चतुर राजनीतिक हैं। यह माना जाता है कि उनके पास अनेक इनपुट थे, जो यह संकेत कर रहे थे कि जिस तरह से भारत-पाक के बीच युद्ध-विराम की घोषणा हुई और यह घोषणा भी अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप की तरफ़ से हुई, उसका देश के लोगों में अच्छा संकेत नहीं गया है। सच है कि लोगों में इससे नाराज़गी थी। अभी भी इस पर सवाल उठ रहे हैं। ऊपर से भाजपा के बड़े नेताओं की शहीदों की विधवाओं, कर्नल सोफ़िया को लेकर लगातार अपमानजनक टिप्पणियों ने भाजपा को रक्षात्मक कर दिया। भाजपा की राजनीति कितने निचले स्तर को छू चुकी है, इसका एक उदाहरण भाजपा के बड़े नेता अमित मालवीय ने राहुल गाँधी का आधा चेहरा पाकिस्तान के सेना प्रमुख असीम मुनीर के आधे चेहरे से मिक्स करके उसे बाक़ायदा अपने एक्स हैंडल पर पोस्ट करके दिया। भाजपा नेताओं के अलावा देश में इसे किसी ने भी पसंद नहीं किया। जिन राहुल गाँधी की दादी इंदिरा गाँधी ने प्रधानमंत्री रहते पाकिस्तान के दो टुकड़े करवा दिये और उनके सेना प्रमुख को भारत के सामने हथियार डालने के लिए मजबूर किया, उन राहुल गाँधी का इस तरह अपमान करना किसी को अच्छा नहीं लगा। देश के लोग अब सोचने लगे हैं कि भाजपा जिस दिशा में देश को ले जा रही है, उसके नतीजे कितने भयंकर होंगे।

राजनीतिक रूप से हुए इन सभी नुक़सानों को कवरअप करने के लिए ख़ुद प्रधानमंत्री मोदी को मैदान में आना पड़ा है। युद्ध-विराम में ट्रम्प की मध्यस्थ की भूमिका सामने आने और ट्रम्प के भारत तथा पाकिस्तान को एक ही क़तार में खड़ा करने के साथ यह कहने कि व्यापार के बदले भारत (और पाकिस्तान) युद्धविराम को मान गये, से भारत में यह संदेश गया है कि भारत का नेतृत्व ट्रम्प के दबाव में काम कर रहा है। इसके अलावा भाजपा नेताओं के शर्मनाक बयानों और लोगों में इस बात पर हैरानी होना कि पहलगाम के चार हत्यारे आतंकी कहाँ ग़ायब हो गये और पाक के आतंकी ठिकानों पर हमलों में एक भी बड़ा आतंकी क्यों नहीं मारा गया? जैसे सवाल जनता में उठने के कारण भी भाजपा रक्षात्मक हुई। इसके बाद भाजपा ने ध्यान भटकाने के लिए कांग्रेस, ख़ासकर राहुल गाँधी को निशाना बनाना शुरू किया। ख़ुद प्रधानमंत्री मोदी ने राजस्थान के बीकानेर की जनसभा में दावा कर दिया कि उनकी नसों में ख़ून नहीं, गरम सिन्दूर दौड़ रहा है। निश्चित ही प्रधानमंत्री हाल में हुए नुक़सान और जनता में गये नकारात्मक संदेश से ख़ुद को और पार्टी को बाहर लाने की क़वायद में जुट गये हैं। उन्हें पता है कि देश की सुरक्षा के मामले में जनता की भावनाएँ अलग तरीक़े से काम करती हैं और राजनीति में बड़ा नुक़सान करने की क्षमता रखती हैं। लिहाज़ा अब रोज़ पाकिस्तान पर शाब्दिक हमले हो रहे हैं। जम्मू-कश्मीर में आतंकी घटनाओं की ख़बरें अभी भी जारी हैं; लेकिन राजनीतिक शोर में उन्हें दबाने की कोशिश हो रही है।

भारत-पाकिस्तान के लघु युद्ध के बाद जब सेना की वर्दी में प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीरें देश की सड़कों के किनारे होर्डिंग में लगी दिखीं, तभी यह अहसास हो गया था कि अब पहलगाम के 26 लोगों की शहादत राजनीति की सूली पर चढ़ने वाली है।

राजनीति बड़ी निष्ठुर चीज़ है। दर्द-दु:ख सबको अपने लिए इस्तेमाल करती है। सैनिकों की बहादुरी और क़ुर्बानियों को भी। लिहाज़ा अब देश में सिन्दूरिया सागर की गर्जना है। ख़ुद प्रधानमंत्री मोदी राजनीति की इस रैली को लीड कर रहे हैं। वह नित नये नारे देश को दे रहे हैं। पाकिस्तान को हर भाषण में ख़बरदार कर रहे हैं। निश्चित ही मोदी इस तरह की राजनीति के उस्ताद खिलाड़ी हैं। लेकिन क्या भारत पाकिस्तान के लघु युद्ध के समय की परिस्थितियों में जनता के भीतर उठे सवाल ख़त्म हो गये हैं? शायद नहीं। पहला सवाल यह कि युद्ध-विराम के बाद ख़ुद प्रधानमंत्री मोदी ने पाक अधिकृत कश्मीर की बात करके इस मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण कर दिया। दूसरा सवाल- युद्ध की इतनी भीषण स्थिति में क्यों एक भी देश भारत के साथ खड़ा नहीं हुआ? जबकि सरकार का दावा था कि दुनिया में भारत का डंका बज रहा है। युद्ध में इस तरह अकेले पड़ जाने को जानकार मोदी सरकार की विदेश और कूटनीति और राजनीतिक नाकामी बता रहे हैं। इससे समर्थकों की तरफ़ से सोशल मीडिया के ज़रिये बनायी प्रधानमंत्री मोदी की विश्व गुरु की छवि को धक्का लगा है।

एक और सवाल इस दौरान उभरा है कि पाकिस्तान क्यों जश्न मना रहा है? जबकि हमारे मुताबिक वो युद्ध हारा है। वहाँ के सेनाध्यक्ष असीम मुनीर फील्ड मार्शल का दर्जा पा गये हैं। ऐसा क्या हुआ कि युद्ध के बाद पाकिस्तान में कहीं निराशा का माहौल नहीं है? कोई युद्ध हारे, तो वहाँ की सत्ता और सेना में गहन निराशा होती है, यह स्वाभाविक है। युद्ध में हार को चेहरे से छिपाया नहीं जा सकता। साल 1971 के युद्ध को याद कर लीजिए। महीनों पाकिस्तान में सत्ताधीशों और सेना के जनरलों के चेहरे लटके रहे थे। जनता में भी निराशा थी। इसमें कोई दो-राय नहीं कि मई के युद्ध में हमारी सेना ने अपनी शक्ति दिखाकर साबित किया कि वह महान् सेना है। लेकिन अचानक युद्ध-विराम के पीछे के क्या कारण थे? यह तो राजनीतिक फ़ैसला था ना! इसी पर सवाल भी हैं। सेना पर तो हर भारतवासी को भरोसा है। प्रधानमंत्री मोदी ने युद्ध-विराम के बाद सिन्दूर को अपनी राजनीति का नया नारा बनाया है, तो पाक अधिकृत कश्मीर को अपनी राजनीति के लक्ष्य (बेंचमार्क) के रूप में सामने रखा है। निश्चित ही यह चुनौतीपूर्ण लक्ष्य है; क्योंकि चीन भी पीओके में बैठा है। चीन और तुर्की पाकिस्तान को शक्तिशाली कर रहे हैं। यदि मोदी बतौर प्रधानमंत्री इस लक्ष्य को हासिल नहीं करते हैं, तो इंदिरा गाँधी के बाद उनकी तरह का इस मायने में बड़ा नेता कहलाने का उनका सपना सपना ही रह जाएगा। जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद की घटना होने पर फिर पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर आक्रमण की बात उन्होंने की थी; लेकिन आतंकी अभी भी सक्रिय दिख रहे हैं और उनसे हमारे सुरक्षा बलों की मुठभेड़ भी हो रही हैं।

फ़िलहाल मोदी ‘सिन्दूर मेरी रगों में ख़ून की जगह दौड़ रहा है।’ ‘पाकिस्तानी रोटी नहीं खाना चाहते, तो मेरी गोली तो है ही।’ जैसे जुमले अपनी सभाओं में चला रहे हैं। वह भारत-पाकिस्तान के हाल के टकराव से सबसे ज़्यादा प्रभावित जम्मू-कश्मीर अभी एक बार भी नहीं गये हैं, जहाँ पुँछ और राजौरी में 26 नागरिकों को पाकिस्तान के हमलों में जान गँवानी पड़ी है। जबकि सुरक्षा बलों के 18 जवानों-अधिकारियों ने भी शहादत दी है। वह पहलगाम भी नहीं गये हैं, जहाँ 26 लोगों को आतंकवादियों ने अपनी गोलियों से भून दिया। विपक्ष के नेता राहुल गाँधी वहाँ जा चुके हैं और प्रभावित लोगों का दु:ख-दर्द बाँट आये हैं। दज़र्नों घर पाकिस्तान की गोलीबारी से तबाह हो गये हैं। उनके प्रभावितों को तत्काल आर्थिक मदद (एक्स ग्रेसिया) अभी तक नहीं मिली है। देशभक्ति सिर्फ़ राजनीति करने और जुमले उछालने की चीज़ नहीं है। देशभक्ति देश के लोगों के सुख-दु:ख में उनके साथ खड़ा होने का नाम है।