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अतिवादी चीन

ताइवान को अपना बताने वाला चीन उसे दिखा रहा आँखें

चीन ताइवान को तबसे आँखें दिखा रहा है, जबसे अमेरिका की प्रतिनिधि सभा की स्पीकर नैंसी पेलोसी ताइवान की यात्रा पर गयी हैं। यहाँ सवाल उठता है कि क्या चीन ताइवान को यूक्रेन बनाने की तैयारी में है? क्या अमेरिका ताइवान की मदद से वैसे ही पीछे हट जाएगा, जैसा उसने यूक्रेन के मामले में किया था; या नैंसी पेलोसी ने ताइवान के साथ खड़े रहने का जो वादा वहाँ की यात्रा के दौरान किया था, उसे अमेरिका पूरी शक्ति से निभाएगा?

यहाँ बता दें कि कुछ समय पहले चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने ताइवान की राष्ट्रपति साई इंग वेन को एक चिट्ठी लिखी थी। लेकिन ताइवान की स्वतंत्र पहचान की प्रवल समर्थक वेन ने उसे कूड़ेदान में फेंक दिया था। सख़्त मिज़ाज की वेन ताइवान के लोगों में बहुत लोकप्रिय हैं और कोरोना की महामारी के दौरान अपने देश में उसके प्रबंधन को दुनिया ने एक मॉडल के रूप में अपनाया था। चीन ताइवान पर तुरन्त हमला करेगा, इसकी सम्भावना कम है। क्योंकि फ़िलहाल कई दशक से चीन ने कोई युद्ध नहीं लड़ा है। चीन ने ज़मीन पर आख़िरी युद्ध सन् 1979 में लड़ा था, जब उसने वियतनाम पर हमला किया था।

हालाँकि चीन के लिए चीज़ें इतनी आसान नहीं हैं; भले वह आक्रामक रुख़ दिखा रहा हो। नैंसी पेलोसी के वापस अमेरिका लौटते ही चीन ने अमेरिका को अपना सख़्त रुख़ दिखाने और ताइवान को दबाव में लाने के उद्देश्य से ताइवान के चारों तरफ छ: जगह पर युद्ध अभ्यास किया। हालाँकि हफ़्ते भर बाद ही ताइवान ने भी चीन के मुक़ाबले अपनी ताक़त का शक्ति प्रदर्शन करने का ऐलान कर चीन को भौचक्का कर दिया। यह तब हुआ जब चीन जल्दी ही दूसरा युद्ध अभ्यास करने की धौंस दिखा रहा था।

चीन के लिए इस दौरान ख़राब बात यह भी हुई कि चीन के सैन्‍य अभ्‍यास का असर ताइवान के साथ-साथ जापान पर भी पड़ा है। इसके चलते आसियान देशों ने चीन के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया। आसियान देशों के विदेश मंत्रियों ने ताइवान द्वीप के समीप चीनी सैन्‍य अभ्‍यास की कड़ी निंदा की। यही नहीं, आसियान देश नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा को शान्तिपूर्ण बता चुके हैं। ज़ाहिर है आसियान देशों के ख़िलाफ़ खड़े होने का मतलब होगा हिन्द प्रशांत क्षेत्र में चीन का अकेले पड़ जाना।

चीन पहले ही पेलोसी की ताइवान यात्रा से बौखलाया हुआ है; क्योंकि उसे इससे दुनिया के सामने नीचा देखना पड़ा है। कारण है चीन का ताइवान को अपना हिस्सा बताना। ताइवान ख़ुद को स्वतंत्र देश कहता है। ताइवान का दावा है कि चीन ने युद्धाभ्यास के दौरान उसके द्वीप पर क़ब्ज़े और ताइवानी नौसेना पर हमले का मॉक टेस्ट भी किया था। अपनी तैयारी के लिए ताइवान की युद्धाभ्यास की घोषणा का चीन को नापसन्द करने वालों और ताइवान से सहानुभूति रखने वाले देशों ने स्वागत ही किया। जहाँ तक दुनिया की बात आज की तारीख़ में सिर्फ़ 13 देश ताइवान को एक अलग और सम्प्रभु देश मानते हैं। चीन का दबाव इसका एक बड़ा कारण है, जिससे वह ताइवान को एक अलग राष्ट्र मान्यता देने से कतराते हैं। चीन नहीं चाहता कि दूसरे देश ताइवान को अलग पहचान वाला देश बताएँ; क्योंकि इससे उसके ताइवान का अपना हिस्सा होने के दावे पर सवाल उठेंगे। ताइवान की अलग सरकार है। चीन को यही बात बहुत खलती है। हाल में रक्षा मंत्री ने कहा था कि चीन के साथ उसके सम्बन्ध पिछले 40 साल में सबसे ख़राब दौर से गुज़र रहे हैं।

अमेरिका ने भले ताइवान को हर हालत में समर्थन का ऐलान किया है; लेकिन उसके ताइवान के साथ आधिकारिक राजनयिक रिश्ते नहीं हैं। यही नहीं, भारत ही की ही तरह अमेरिका भी चीन की ‘एक चीन नीति’ का समर्थन करता है। इसके बावजूद अमेरिका ताइवान के साथ अपने रिश्तों के क़ानून के चलते उसे हथियार बेचता है। यह क़ानून कहता है कि अमेरिका ताइवान की आत्मरक्षा में उसका मददगार रहेगा।

महत्त्वपूर्ण बात यह है कि चीन ने योनागुनी और सेनकाकस द्वीपों के पास युद्धाभ्यास किया। यह माना जाता है कि चीन ताइवान को सबक़ सिखाने के लिए ताइवान के कुछ द्वीपों पर क़ब्ज़ा करना चाहता है। वैसे सेनकाकस जापान शासित द्वीप है। हालाँकि चीन और ताइवान दोनों इस पर अपने-अपने दावे करते हैं। यही कारण है कि चीन के इस द्वीप में अभ्यास करने के साथ-साथ जापान ने भी कड़ा विरोध किया। अभ्यास के दौरान चीन की मिसाइलें इस क्षेत्र में गिरीं थीं।

ताक़त और कमज़ोरी ताइवान की ताक़त उसकी राष्ट्रपति साई इंग वेन की भी हैं, जिन्हें बहुत मज़बूत नेता माना जाता है। क़रीब 2.36 करोड़ आबादी वाले ताइवान को लेकर चीन भले आक्रामक रहता है। लेकिन वेन कभी झुकती हुई दिखायी नहीं दीं। सन् 2016 में वेन ताइवान की पहली महिला राष्ट्रपति बनीं, तो इसका बड़ा कारण देश की स्वतंत्र पहचान का उनका मज़बूत इरादा था। अमेरिका से क़ानून की मास्टर डिग्री और ब्रिटेन के लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से पीएचडी करने वालीं वेन ने क़ानून और अंतरराष्ट्रीय व्यापार की पढ़ाई भी की है। चीन के ख़िलाफ़ उनका रुख़ ही देश में उनके जबरदस्त समर्थन का आधार है। भले ही वेन ताइवान की मज़बूत इरादों वाली महिला राष्ट्रपति हों; चीन की सैन्य ताक़त के मुक़ाबले ताइवान कहीं नहीं ठहरता। अमेरिका की मदद के बिना ताइवान लम्बे समय तक चीन का सैन्य विरोध करने की क्षमता नहीं रखता। इस साल आयी ग्लोबल फायर पॉवर इंडेक्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ताइवान जहाँ दुनिया की 21वीं सबसे बड़ी सैन्य ताक़त है, वहीं चीन इस मामले पर तीसरे नंबर पर है। चीन के पास 20 लाख, जबकि ताइवान के पास महज़ 1.70 लाख सक्रिय सैनिक हैं। इसी तरह चीन के पास 3,285 एयर क्रॉफ्ट हैं; जबकि ताइवान के पास 751 एयर क्रॉफ्ट हैं। इसके अलावा चीन के पास 281 लड़ाकू हवाई जहाज़, जबकि ताइवान के पास महज़ 91 ही हैं। चीन की बेड़े में 79 पनडुब्बियाँ हैं, जबकि ताइवान के पास सिर्फ़ चार ही हैं। ज़ाहिर है ताइवान के लिए चीन का सैन्य मुक़ाबला करना बहुत आसान नहीं होगा। हाँ, यदि अमेरिका खुलकर ताइवान के साथ आये, तो तस्वीर कुछ अलग हो सकती है।

यहाँ एक और बात है। यदि चीन ताइवान पर युद्ध थोपता है, तो इसका बहुत बुरा असर पूरी दुनिया पर पड़ेगा। ताइवान सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कम्पनी, दुनिया के 92 फ़ीसदी एडवांस सेमीकंडक्टर बनाती है। दुनिया भर में सेमीकंडक्टर से होने वाली कमायी का 54 फ़ीसदी हिस्सा ताइवान की कम्पनियों के पास है। युद्ध की स्थिति में दुनिया में मोबाइल फोन, लैपटॉप, ऑटोमोबाइल, हेल्थ केयर, हथियारों का उत्पादन संकट में पड़ जाएगा। इस तरह यूक्रेन युद्ध के कारण पैदा हुए खाद्यान्न संकट और इससे उपजी महँगाई में समस्या भी जुड़ जाएँगी।

अतिक्रमणवादी सोच
चीन ने आख़िरी बार सन् 1999 में मकाउ पर क़ब्ज़ा किया था। वैसे सन् 1949 में जब कम्युनिस्ट शासन आया, तो चीन ने तिब्बत पर सन् 1951 में, पूर्वी तुर्किस्तान पर सन् 1949 में, तिब्बत पर सन् 1950 में और इनर मंगोलिया पर सन् 1949 में ही क़ब्ज़ा कर लिया; या कहें कि उन पर अपना दावा जता दिया। इसके बाद सन् 1997 से हॉन्गकॉन्ग और सन् 1999 से मकाउ उसके क़ब्ज़े (दोनों चीन के विशेष प्रशासनिक क्षेत्र) में हैं। चीन ने छ: देशों को अपने नक्शे में रखा है और उसका इन पर क़ब्ज़ा है या उन्हें अपना हिस्सा बताता है और इसमें ताइवान भी शामिल है।

ताइवान और चीन के बीच यह जंग 70 साल लम्बी है। ज़मीन ही नहीं चीन 35 लाख वर्ग किलोमीटर में फैले दक्षिणी चीन सागर पर न सिर्फ़ अपना दावा करता है, बल्कि उसने वहाँ आर्टिफिशियल आइलैंड तक बना लिया है। चीन ने दक्षिण चीन सागर में स्प्रेटली चेन के पास यह आर्टिफिशियल आइलैंड बनाये हैं।
चीन का दावा कि दक्षिणी चीन सागर से उसका ताल्लुक़ 2,000 साल से भी ज़्यादा पुराना है। यही नहीं, चीन ने कुछ साल पहले हिमालय पर्वत को भी अपना बताया था। यहाँ यह भी दिलचस्प है कि कुल 97,6,961 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले चीन की सीमा 22,117 किलोमीटर तक है और दुनिया में वह सबसे ज़्यादा 14 देशों के साथ सीमा साझा करता है। लेकिन ख़राब चीज़ यह है कि इन सभी से उसका कोई-न-कोई विवाद है। दिलचस्प यह है कि इन देशों का कुल क्षेत्र 41,13,709 लाख वर्ग किलोमीटर से अधिक है, जो चीन के कुल क्षेत्रफल का 43 फ़ीसदी है।

आपराधिक मानसिकता

देश में ख़त्म नहीं हो रही मनचाहे बच्चे की चाहत के कारण पनपी लिंग निर्धारण की लालसा

हाल ही में देश की राजधानी दिल्ली के रोहिणी ज़िले के अमन विहार इलाक़े में पुलिस ने अवैध लिंग निर्धारण (जाँच) और गर्भपात रैकेट का भंडाफोड़ करके इसमें शामिल दो महिलाओं को गिरफ़्तार किया। एक महिला फ़रार हो गयी। दरअसल पुलिस को सूचना मिली कि हरियाणा के सोनीपत में एक दवा विक्रेता के यहाँ काम करने वाला रविंदर नामक आदमी गर्भ में लिंग निर्धारण के ग़ैर-क़ानूनी धंधे में शामिल है। पुलिस ने नक़ली ग्राहक को उसके पास भेजा। दोनों के बीच 28,000 रुपये में सौदा तय हुआ। पुलिस भी छापे के लिए तैयार थी। तय रणनीति के मुताबिक, दिल्ली में उन दोनों महिलाओं को पकड़ लिया, जो यह काम करवाने में अहम भूमिका निभाती थीं। पकड़ी गयी दोनों महिलाओं में से एक आशा वर्कर और एक एएनएम है।

आशा वर्कर व एएनएम प्रथम पंक्ति की स्वास्थकर्मी (हैल्थ वर्कर्स) हैं और इनका काम महिलाओं व बच्चों तक सरकारी स्वास्थ्य सेवाएँ पहुँचाना था। साथ ही यह सुनिश्चित करना कि समय पर माँ (जच्चा) का टीकाकरण हो जाए और वे स्वस्थ शिशुओं को जन्म दे सकें। देश भर में कोरोना के टीकाकरण अभियान को सफल बनाने में आशा वर्कर्स के योगदान को सराहा भी गया है। गिरफ़्तार हुई दोनों महिलाओं ने पुलिस को बताया कि सीमा नाम की नर्स अमन विहार में क्लीनिक चलाती थी, जहाँ वह लिंग निर्धारण करती थी। पुलिस ने सरिता के क्लीनिक पर छापा मारा, सरिता फ़रार थी। उसके क्लीनिक पर ताला लगा हुआ था। पुलिस ने ताला तोड़कर वहाँ से भारी मात्रा में दवाएँ, इंजेक्शन और गर्भ ख़त्म करने वाली गोलियाँ मिलीं।

जून के महीने में हरियाणा के गुरुग्राम ज़िले के पटौदी में वहाँ के स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने ग़ैर-क़ानूनी लिंग जाँच करने के मामले में दो नीम-हकीमों व एक डॉक्टर को गिरफ़्तार किया गया था। छापे के दौरान वहाँ से 45,000 रुपये नक़द व एक पोर्टेबल अल्ट्रासांउड मशीन मिली। इसी तरह मई महीने में पुणे में भी इस तरह का मामला सामने आया। इन तीनों मामलों में आरोपियों के ख़िलाफ़ पूर्व गर्भाधान और प्रसव पूर्व निदान तकनीक अधिनियम-1994 (पीसी व पीएनडीटी) के तहत मामले दर्ज किये गये हैं।

दरअसल ये वो मामले हैं, जो मीडिया के ज़रिये बाहर आ जाते हैं। बताते हैं कि क़ानून लागू होने के 26 साल बाद भी देश के महानगरों, क़स्बों में भ्रूण का लिंग जानने वाला ग़ैर-क़ानूनी धंधा जारी है। समाज को दोषारोपण करने के साथ-साथ यह बात भी स्वीकार करनी पड़ेगी कि सरकार एजेंसियाँ क्या कर रही हैं? यह ग़ैर-क़ानूनी काम करने वालों को आख़िर क़ानून का डर क्यों नहीं है? ग़ौरतलब है कि देश में कन्या भ्रूण हत्या को रोकने और गिरते लिंगानुपात के मद्देनज़र पीसी व पीएनडीटी अधिनियम-1994 पारित किया गया। इसके तहत प्रसव पूर्व लिंग निर्धारण की जाँच पर प्रतिबंध है। यह अधिनियम गर्भाधान से पूर्व बाद में लिंग की जाँच पर रोक लगाने का प्रावधान करता है। अधिनियम को लागू करने का मुख्य मक़सद भ्रूण के लिंग निर्धारण करने वाली तकनीक के उपयोग पर प्रतिबंध लगाना और लिंग आधारित गर्भपात के लिए प्रसव पूर्व निदान तकनीक के दुरुपयोग को रोकना है। कोई भी प्रयोगशाला या केंद्र या क्लीनिक भ्रूण के लिंग का निर्धारण करने के मक़सद से अल्ट्रासोनोग्राफी सहित कोई परीक्षण नहीं करेगी। इसका उल्लंघन करने वाले अल्ट्रासोनोग्राफी केंद्र चलाने वाले, डॉक्टर, लैब कर्मी को तीन से पाँच साल तक की सज़ा व 10 से 50,000 रुपये तक का ज़ुर्माना हो सकता है। गर्भवती महिला या उसके रिश्तेदारों को शब्दों, संकेतों या किसी अन्य विधि से भ्रूण का लिंग नहीं बताया जा सकता। कोई भी व्यक्ति, जो प्रसव पूर्व गर्भाधान लिंग निर्धारण सुविधाओं के लिए नोटिस या किसी भी दस्तावेज़ की शक्ल में विज्ञापन देता है या इलेक्ट्रॉनिक या प्रिंट रूप में या अन्य किसी रूप में इश्तहार देता है या ऐसे किसी भी काम में संलग्न पाया जाता है, तो उसे तीन साल की सज़ा व 10,000 रुपये तक का ज़ुर्माना हो सकता है। इस क़ानून को बने 27 साल हो गये हैं और अब तक इसके तहत कितने लोग दोषी पाये गये, इस बाबत एक संसदीय कमेटी की रिपोर्ट का ज़िक्र करना प्रासगिंक है।

सन् 2021 में संसद के शीत सत्र यानी दिसंबर, 2021 में महिला सशक्तिकरण पर गठित संसदीय समिति ने बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना पर अपनी रिपोर्ट संसद में पेश की। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि दिसंबर, 2020 तक देश में पीसी व पीएनडीटी अधिनियम-1994 के तहत बीते 25 साल में 617 लोगों को सज़ा सुनायी गयी। अभी देश में 3,158 ऐसे मामले लम्बित हैं। इस समिति ने पाया कि देश के 36 राज्यों-केंद्र शासित राज्यों में से 18 ऐसे हैं, जहाँ ऐसा एक भी मामला न तो दर्ज किया गया और न ही किसी को अभी तक सज़ा सुनायी गयी। 31 सदस्यों की इस समिति ने यह भी कहा कि ऐसे मामलों को देरी से निपटाने का एक अर्थ यह भी समझा जा सकता है कि इस अधिनियम की मूल आत्मा यानी मूल मक़सद को कमज़ोर करना है। समिति ने यह भी सिफ़ारिश की है कि ऐसे मामलों का निपटारा छ: महीनों के अन्दर हो जाना चाहिए। राज्यों को ऐसे मामले दर्ज करने व उनके रिकॉर्ड ऑनलाइन रखने के निर्देश पहले ही दिये जा चुके हैं। लेकिन समिति ने अपनी जाँच में पाया कि केवल 18 राज्य ही अब तक ऐसा तंत्र विकसित कर पाये हैं।

समिति ने इस पर भी रोशनी डाली कि देश में 71,096 नैदानिक सुविधा केंद्र हैं। इनमें से कुछ केंद्र व चिकित्सक भ्रूण लिंग बताने के ग़ैर-क़ानूनी धंधे में शामिल हैं। ग़ौरतलब है कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे-5, 2019-2021 के मुताबिक, भारत में जन्म के समय लिंगानुपात (शून्य से पाँच साल की आयु तक) प्रति 1,000 लड़कों पर 929 लड़कियाँ हैं। जन्म लिंगानुपात में लड़कों व लड़कियों की संख्या में यह फ़ासला चिन्ताजनक है। बेशक एनएफएचएस-4 (2015-16) में जन्म लिंगानुपात 919 था। मगर बीते पाँच वर्षों में इसमें कुछ सुधार देखने को मिला और यह आँकड़ा अब 929 हो गया है। लेकिन प्राकृतिक बाल लिंगानुपात के अनुसार यह आँकड़ा प्रति 1,000 लड़कों पर 955 लड़कियों का है। हालाँकि भारत इस दृष्टि से बहुत पीछे है। ऐसे कई राज्य हैं, जहाँ यह राष्ट्रीय औसत से भी कम है। जैसे- आंध्र प्रदेश में 1,000 लड़कों पर 877 लड़कियाँ, अरुणाचंल में 912, असम में 916, चंडीगढ़ में 820, गोवा में 822, हिमाचल प्रदेश में 843, झारखण्ड में 781, महाराष्ट्र में 878, पंजाब में 858, तमिलनाडु में 893, तेलगांना में 873, दमन और दीव में 705 व लद्दाख़ में महज़ 897 ही है। यहाँ सरकार की बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ मुहिम अपना अपेक्षित नतीजे क्यों नहीं दिखा रही है? लिंगानुपात में कमी के अलावा देश में कुल कार्यबल में भी कामकाजी महिलाओं के प्रतिशत में भी कमी आयी है। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष के ये आँकड़े आगाह करते हैं कि दुनिया भर में होने वाले सालाना लिंग चयन गर्भपात के कारण जन्म नहीं लेने वाली लड़कियों की संख्या क़रीब 12 से 15 लाख है, जिसमें से 90 फ़ीसदी मामले भारत और चीन के हैं।

इसमें कोई दो-राय नहीं कि भारतीय समाज लड़कियों के मामले में तंग नज़रिया रखता है। आज भी यहाँ लड़कियों को बोझ मानने की प्रवृत्ति ज़िन्दा है। लड़कों को प्राथमिकता देने और दहेज लेने पर क़ानूनन प्रतिबंध है। लेकिन बावजूद इसके सरेआम इन दोनों का ही प्रचलन जारी है। लड़कियों की तुलना में लड़कों को प्राथमिकता देना यहाँ की संस्कृति का हिस्सा मान लिया गया है। पुरुष प्रधान सोच लड़कियों की प्रगति की राह में बाधा है। पाँच ख़रब की अर्थ-व्यवस्था बनाना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सपना है। आज़ादी के 75वें साल में भी भ्रूण हत्या के मामले कटघरे में तो खड़ा कर ही देते हैं।

देश में शिक्षित महिलाओं की संख्या बढ़ रही है। लेकिन ये सवाल भी हमारे सामने हैं कि महिलाएँ अपने अधिकारों के प्रति कितनी सजग हैं और इनके इस्तेमाल के लिए कितना आगे आती हैं? समाज कितना बदला है? लड़कियों, महिलाओं को आगे बढऩे के वास्ते समाज कितना समर्थन करता है? वह इस पर कितना निवेश करता है? वंश को आगे बढ़ाने की प्रथा में लड़कों के साथ लड़कियों को भी बराबर की जगह देने के लिए कितना खुद को बदलता है? इन सवालों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए। बाल लिंगानुपात के आँकड़ों में लड़कियों का कम दर्शाना एक सामाजिक समस्या तो है ही, पर इसके मनोवैज्ञानिक, राजनीतिक व आर्थिक दुष्प्रभाव भी होते हैं। सरकारी तंत्र को और अधिक सख्ती से पेश आने की ज़रूरत है। उम्मीद की जानी चाहिए कि मौज़ूदा सरकार ने जो नये भारत का नारा गढ़ा है, उसमें लड़कियों को जन्म देने से पहले कोई उनकी हत्या न करे। तभी लैंगिक बराबरी ज़मीनी स्तर पर नज़र आयेगा।

क्या ख़त्म हो जाएगा अल-क़ायदा?

लादेन के बाद जवाहिरी की मौत से इस ख़ूँख़ार आतंकी संगठन को लगा बड़ा झटका

आज से 11 साल पहले ओसामा बिन लादेन के पाकिस्तान के एबटाबाद में अमेरिकी सील कमांडो के हाथों मारे जाने के बाद अब अल-क़ायदा में उसके उत्तराधिकारी आयमान अल जवाहिरी का भी अमेरिका ने काबुल में ख़ात्मा कर दिया। यह माना जाता है कि लादेन के समय अल-क़ायदा जितना मज़बूत था, उतना जवाहिरी के समय नहीं रहा। वो कुछ देशों में गुटों में भी बँटा है। सैफ-अल-अदेल अल-क़ायदा का नया सरगना हो सकता है, जो कभी लादेन का सुरक्षा प्रमुख रहा है। लेकिन अमेरिका को अल-क़ायदा के इन दो दुर्दांत आतंकियों को ख़त्म करने में 20 साल लग गये। अल-क़ायदा को ख़त्म करने के लिए ही अमेरिका अफ़ग़ानिस्तान गया और उसने नाटो सेनाओं को युद्ध में झोंका। एक अनुमान के मुताबिक, उसे इन सालों में क़रीब 180 लाख करोड़ रुपये फूँकने पड़े। हजारों सैनिकों और नागरिकों की जान गयी वो अलग। ऐसे में यह बड़ा सवाल है कि क्या लादेन और जवाहिरी जैसे योजनाकारों के अभाव में अल-क़ायदा ख़त्म हो जाएगा? इसका जवाब मुश्किल है। लेकिन यह सच है कि अल-क़ायदा समय के साथ कमज़ोर हो रहा है और उस पर दबाव जारी रहता है, तो उसके बिखरने की सम्भावना है। भले इस दौरान वह अपने मज़बूत होने का सन्देश देने के लिए इक्का-दुक्का बड़े हमले कर दुनिया को थर्राने की कोशिश करे।

अल-क़ायदा भारत को निशाने पर लेने की बहुत कोशिश करता रहा है। कश्मीर में उसने हाल के दशकों में अपने पैर जमाने की बड़ी कोशिश की लेकिन उसे सफलता नहीं मिली। जवाहिरी ने एक समय कश्‍मीर की स्थिति की तुलना फ़िलस्‍तीन से की थी। जवाहिरी भारत में कश्मीर मुद्दे को लेकर जेहाद की भी बात करता था। हाल ही में उसने कर्नाटक में हुए हिजाब विवाद पर भी बयान देकर उसका समर्थन किया था।

उसने भारत के समर्थन के लिए सऊदी अरब जैसे देशों की आलोचना भी की थी। जवाहिरी के अफ़ग़ानिस्तान में मारे जाने से यह तो पता चल गया है कि अल-क़ायदा तालिबान की सत्ता वाले इस देश को फ़िलहाल अपने लिए सुरक्षित ठिकाना मान रहा है और वह भारत सहित एशिया क्षेत्र के देशों के ख़िलाफ़ अपनी गतिविधियाँ वहाँ से चला रहा है। हाल में भारत ने तालिबान नेतृत्व के साथ सम्पर्क साधा है और अपना दूतावास भी काबुल में सक्रिय किया है। भारत का मक़सद अफ़ग़ानिस्तान की ज़मीन को अल-क़ायदा जैसे गुटों के लिए इस्तेमाल नहीं होने देना ही है।

पूर्वोत्तर राज्य असम में 29 जुलाई को अल-क़ायदा से जुड़े एक्यूआईएस और अंसारुल्लाह बांग्ला टीम (एबीटी) के 11 लोगों को हिरासत में लिया गया था। मोरीगाँव, बारपेटा, गुवाहाटी और गोलपारा ज़िलों से इन लोगों के पकड़े जाने से ज़ाहिर होता है कि अल-क़ायदा भारत में पैर जमाने की कोशिश में है। लेकिन इसके बावजूद भारतीय एजंसियों की सक्रियता के चलते उसे उल्लेखनीय सफलता नहीं मिली है।

टूट रहा है अल-क़ायदा
अल जवाहिरी के अमेरिका के हाथों मारे जाने से निश्चित ही अल-क़ायदा को बड़ा झटका लगा है। सन् 2019 में फ्लोरिडा में तीन अमेरिकी नौ सैनिकों की हत्या में जवाहिरी की भूमिका रही। हालाँकि छिटपुट आतंकी घटनाओं को छोड़ जवाहिरी के मुखिया रहते अल-क़ायदा कमज़ोर हुआ है। अटलांटिक काउंसिल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जवाहिरी ने इस बीच आईएसआईएस जैसी इस्लामिक स्टेट बनने के सपने से दूर सीरिया, यमन, अफ्रीका और दक्षिण एशिया में सहयोगी संगठनों के ज़रिये विस्तार किया। उसने अल-क़ायदा को आतंकी संगठनों का सांकेतिक नेतृत्व के लायक बनाये रखा। हालाँकि जवाहिरी की मौत के बाद अल-क़ायदा मिटने की कगार पर आ खड़ा हुआ है, ऐसा बहुत से रक्षा विशेषज्ञ मानते हैं। सीरिया में उसकी एक शाखा को इसी साल जून में एक प्रतिद्वंद्वी गुट ने ही ख़त्म कर दिया। यमन में उसे अपने नेता के अमेरिकी ड्रोन हमले में मारे जाने के कुछ ही समय बाद विद्रोहियों के हाथों हारना पड़ा। इसी साल माली में फ्रांस के एक हमले में उसके नेता की मौत के बाद अभी तक उसका उत्तराधिकारी तक अल-क़ायदा नहीं चुन पाया है। भले ही अफ्रीकी देशों सोमालिया और माली में अल-क़ायदा की शाखाएँ अब भी मज़बूत हैं। अल-क़ायदा का सबसे ताक़तवर और ख़तरनाक गुट अल-शबाब है। सोमालिया के मध्य और दक्षिणी हिस्से के अधिकतर ग्रामीण इलाक़े आज भी अल-शबाब के क़ब्ज़े में हैं, जहाँ उनकी सत्ता चलती है। सीरिया में अल-क़ायदा की नुमाइंदगी उसका अघोषित गुट हुर्रास अल-दीन करता है; लेकिन वह अपनी पैठ बनाने में नाकाम रहा है। कारण अमेरिका का लगातार दबाव और आपसी अनबन है। सीरिया के लोग अल-क़ायदा को एक ख़तरा मानते हैं। हुर्रास अल-दीन को उनका ही एक प्रभावशाली विरोधी गुट चुनौती दे रहा है।
उधर यमन में इसकी शाखा अल-क़ायदा इन अरेबियन पेनिनसुला (एक्यूएपी) एक जमाने में अल-क़ायदा का बहुत ख़ूँख़ार गुट था। आज वह अल-क़ायदा के सबसे कम सक्रिय गुटों में शामिल है। जनवरी में एक्यूएपी के प्रमुख को अमेरिका ने एक ड्रोन हमले में मार गिराया था। यही नहीं, हाल ही में बाक़ायदा सूबे में हूथी विद्रोहियों ने एक्यूएपी का एक मज़बूत गढ़ उससे छीन लिया। यह माना जाता है कि एक्यूएपी में जासूसों की सेंध ने उसकी बड़ी तबाही की है।

अल-क़ायदा के कमज़ोर होने की एक बड़ी बजह सामान्य मुस्लिमों में पहुँच बना पाने में उसकी नाकामी है। अल जवाहिरी के समय में भी इस दिशा में कुछ नहीं हुआ। वह ख़ुद को आधुनिक बनाने में भी नाकाम रहा है। इसका कारण यह है कि वह ख़ुद की कट्टर जिहादी संगठन की छवि नहीं बदलना चाहता। उसका नेतृत्व महसूस करता है कि रास्ता बदलने से उसके अस्तित्व पर ही संकट आ सकता है। हालाँकि अपनी उपस्थिति बनाये रखने के लिए अल-क़ायदा ने हाल के वर्षों में कई हमले भी किये हैं।

अमेरिका ने ही पाला था अल-क़ायदा को!
आज भले अमेरिका अल-क़ायदा का दुश्मन हो; लेकिन एक ज़माने में अमेरिका ने ही उसे पाला-पोसा। आज जो तालिबान अफ़ग़ानिस्तान में शासक है, उसके अल-क़ायदा से पुराने रिश्ते हैं। याद करें, तो पता चलता है कि 80 के दशक में जब तत्कालीन सोवियत संघ ने अफ़ग़ानिस्तान पर क़ब्ज़े की जंग लड़ी उस समय सोवियत संघ को अफ़ग़ानिस्तान से बाहर निकालने के लिए जो संगठन बने उनमें अल-क़ायदा एक था। ओसामा बिन लादेन ने इसका गठन किया था। उसे सोवियत संघ के ख़िलाफ़ लड़ रहे मुजाहिदीनों का भी समर्थन था। लेकिन हैरानी यह है कि अल-क़ायदा को अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसी सीआईए का भरपूर समर्थन था। समय के साथ अल-क़ायदा अमेरिका के लिए ही साँप बनकर आ खड़ा हुआ और नौवत यह आ गयी कि इसी अमेरिका ने इस आतंकी संगठन के दो प्रमुखों को मारने का काम किया।

जवाहिरी का उत्तराधिकारी कौन?
अल जवाहिरी की मौत के बाद सैफ़-अल-आदेल अल-क़ायदा का मुखिया बन सकता है, जो मिस्र में सेना अधिकारी रहा है। अल-क़ायदा के संस्थापक सदस्यों में से एक आदेल साल 80 के दशक में आतंकवादी संगठन मक़तब अल-ख़िदमत में शामिल हुआ था और इसी दौरान वह लादेन और जवाहिरी से मिला। आदेल अमेरिका की ख़ुफ़िया एजेंसी एफबीआई की मोस्ट वांटेड लिस्ट में है और उसने आदेल पर 10 मिलियन डॉलर का इनाम घोषित किया हुआ है। इंटरनेशनल सेंटर फॉर काउंटर टेररिज्म की रिपोर्ट के अनुसार, जवाहिरी के बाद अल-क़ायदा की कमान के आदेल के अलावा कई और भी दावेदार हैं। इनमें अल-क़ायदा की मीडिया कमेटी के प्रमुख और अल जवाहिरी के दामाद अब्द-अल-रहमान-अल मघरेबी का नाम भी शामिल है। ओसामा बिन लादेन का बेटा उसमा लादेन उसका बहुत क़रीबी था। उनके अलावा ऑपरेशन कमांडर अबु-अल-मसारी और ओसामा बिन लादेन का सिक्योरिटी कमांडर रहे अमीन मुहम्मद-उल-हक़ साम ख़ान को भी अल-क़ायदा की कमान सौंपी जा सकती है।

अपराधियों का अड्डा बनता सोशल मीडिया

बीती 18 जुलाई को शाम का धुँधलका घना हो चला था। सूरत के एक कॉफी हाउस में काले रंग की कैफरी पेंट और नाभि से कई इंच ऊपर टॉप पहने लड़की पर कई लोगों की नज़र थी। तभी एक लड़का उसके सामने आता है। दोनों हाथ मिलाते हैं; लेकिन थोड़ा नर्वस लगते हैं। लड़के का सवाल था- ‘क्या तुम वक़्ती तौर पर मेरे साथ हो या लम्बे समय तक सम्बन्ध बनाये रखना चाहती हो? एकाएक लड़की की ज़ुबान में तल्ख़ी आ गयी- ‘सिर्फ़ एक रात के लिए तुम्हारे साथ रहना चाहती, तो जयपुर से सूरत क्यों आती? क्या सिर्फ़ एक रात बिताने के लिए? लड़का एकाएक हड़बड़ाया- ‘मेरा मतलब यह नहीं था।’ एकाएक पीछे से कंधे पर किसी का हाथ पड़ा और लड़की के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ती दिखीं। लड़का फुर्ती से पीछे मुड़ा, तो सामने पुलिस खड़ी थी।

सूरत के पांडेसरा निवासी क्रिश सिंह के प्रेमजाल में फँसी जयपुर की रहने वाली लड़की अनामिका (बदला हुआ नाम) की उससे सात महीने पहले जयपुर के एक सिटी मॉल में मुलाक़ात हुई थी। तबसे वे फेसबुक, इंस्टाग्राम और व्हाट्स ऐप पर दोनों चैटिंग कर रहे थे। कुछ दिन पहले वह लड़के के कहने पर ट्रेन में बैठकर सूरत पहुँच गयी। परिजनों ने पुलिस में लड़की के लापता होने की रिपोर्ट दर्ज करवायी। सोशल मीडिया की जाँच के बाद लड़की को सूरत से पकड़ा गया।

सोशल मीडिया की फ्रेंडशिप ने अब तक राजस्थान में अनेक लड़कियों को गुमराह किया है। दरअसल किशोरावस्था की दहलीज़ लाँघती लड़कियों में पर वर्जनाएँ थोप दी जाती हैं, जबकि इसी दौर में उनमें लड़कों के प्रति आकर्षण बढऩे लगता है। प्यार में पगलायी ऐसी लड़कियों की काउंसिलिंग बेहद जटिल काम होता है। 12 जुलाई को कोटा पुलिस ने चैटिंग के ज़रिये प्यार की दुनिया में पहला क़दम रखने वाली ज़िद्दी लड़की को ढूँढकर बाल कल्याण समिति के हवाले किया। समिति के रोस्टर सदस्य अरुण भार्गव बताते हैं कि लड़की पिछले तीन साल से एक लड़के की सोहबत में थी। लड़के ने उसे मोबाइल दिलवाया, जो उनके बीच चैटिंग का ज़रिया बना। लड़की ने कहा कि मुझे लड़के से चैटिंग करना अच्छा लगता था। मुझे उससे बेहद प्यार है और रहेगा। प्यार में पड़ी इस लड़की ने घर से निकलकर लड़के के साथ इकलेरा में गृहस्थी बसा ली। पुलिस ने संदेहास्पद रहन-सहन को देखकर दोनों को पकड़ा और बाल कल्याण समिति को सौंप दिया। कुछ घटनाएँ, जिसमें पुलिस द्वारा पकड़ी की गयी लड़कियाँ बाल कल्याण समिति को जैसा कुछ बताती हैं; यक़ीन से परे लगती हैं। हालाँकि भार्गव कहते हैं कि हमें जो कुछ आप बीती लड़कियाँ बताती हैं, उस पर यक़ीन करना पड़ता है। मसलन 28 जुलाई को ग्रामीण पुलिस द्वारा पकड़ी की गयी लड़की का कहना था कि किसी ने उसे कुछ सुंघाकर बेहोश कर दिया। फिर रामगंजमण्डी में ट्रेन में सूरत से ले जा रहा था। नागदा स्टेशन पर उसकी नींद खुल गयी। उसने किसी राहगीर से मोबाइल लेकर परिजनों को इत्तला की। लेकिन सोशल मीडिया की आभासी छाया फिर भी छिपाये नहीं छिपी। भार्गव समिति की विवशता बताते हुए कहते हैं कि हम लड़कियों को 18 साल की होने तक ही रख सकते। जबकि उन पर जुनून सवार होता है।

वह कहते हैं कि सोशल मीडिया ने ऐसी ख़्वाहिशों की आग में घी का काम किया है। लड़कियाँ 16वें साल के रूमानी दौर में उत्तेजक संसार में विभोर हो रही हैं, तो आश्चर्य कैसा? कई शादीशुदा औरतें तो ढलती उम्र के बावजूद देह की बची-खुची मादकता की नुमाइश करने से कोई परहेज़ नहीं करतीं। उन्हें मनचाहे ठिकानों पर अजनबियों को अपनी ख़्वाहिशों में बिंधी कहानी बताने में कोई हर्ज नहीं। फेसबुक साइट पर बेशुमार ‘लाइक’ उनका हौसला दोबाला करते हैं। दरअसल वे अपनी शादीशुदा ज़िन्दगी के रूखे हो जाने से तंग आयी हुई होती हैं। उन्हें प्रबलता से प्यार करने वाले नये घोंसलों की तलाश होती है। उनकी इस छानबीन में इंटरनेट मददगार होता है, जो दाम्पत्य जीवन में दरार डालने का औज़ार बन चुका है। सोशल मीडिया ने लोगों के एकाकीपन को तोड़कर व्यस्त रखने के लिए मैत्री का एक नया संसार रच दिया है, तो अपराधियों के लिए भी जुर्म के नये रास्ते खोल दिये हैं। पिछले दिनों दबंगों के एक गिरोह ने अजमेर ज़िले के एक व्यापारी को अश्लील चैटिंग के जाल में फँसाया और 15 लाख रुपये झटक लिये। पुलिस ने अश्लील चैटिंग को हथियार बनाने वाले आरोपियों को गिरफ़्तार कर लिया।

साइबर ठगी के लिए झारखण्ड का जामताड़ा कुख्यात है। लेकिन इन शातिरों के लिए अब राजस्थान का मेवात भी नया जामताड़ा (ठगी का नया अड्डा) बन गया है। ठगों का कहना है कि सब कुछ बेहद आसान है। फेसबुक, ओएलएक्स पर महँगी चीज़ें सस्ते में डालकर जाल फेंकते हैं, तो लोग आसानी से जाल में फँस जाते हैं। पुलिस ने ऐसी ठगी करने वाले सलीम, शाकिर ख़ान, सुनील कुमार, योगेश कुमार और असलम को गिरफ़्तार किया है। अलवर ज़िले के मेहराणा गाँव के रोज़लीन के बारे में पुलिस का कहना है कि यह बड़ा शातिर जालसाज़ है। विषेशज्ञों का कहना है कि सोशल मीडिया पर शिकार की तलाश में लगे इन अपराधियों से बच्चे तक सुरक्षित नहीं हैं। उन्हें नियंत्रित करना बड़ी चुनौती है। बच्चा ऑनलाइन के ज़रिये अश्लील कंटेंट या हानिकारक अथवा ग्राफिक वेबसाइट्स तक पहुँच सकता है। तकनीकी प्रमुखों का कहना कि टेक कम्पनियों को विवादास्पद तकनीक से आगे बढऩा चाहिए, जो उपभोक्ता के मोबाइल पर बाल शोषण की तस्वीरें स्केन करती हैं।
भारत के मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमना ने इलेक्ट्रॉनिक एवं सोशल मीडिया को फटकारते तथा चेतावनी देते हुए कहा कि वो ज़िम्मदारी से काम करें, मीडिया ट्रायल, कंगारू अदालतें आयोजित करने, एजेंडा संचालित डिबेट प्रसारित करने पक्षपातपूर्ण मत एवं राय का प्रचार करने तथा स्वेच्छाचारी रवैये से बाज़ आ जाए। उन्होंने कहा कि आपसी ज़िम्मदारी अतिक्रमण एवं उल्लंघन के चलते, उनसे अपेक्षा की जाती है कि ध्यान रखें, क्योंकि वे दोनों ही हमारे लोकतंत्र को दो क़दम पीछे ले जा रहे हैं।

वरिष्ठ पत्रकार जाल खंबाता ने ख़बर का ख़ुलासा करते हुए कहा कि प्रिंट मीडिया में ज़िम्मदारी तथा जवाबदेही को एक मात्रा फिर भी है, जबकि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की जवाबदेही शून्य हो गयी है; क्योंकि जो कुछ यह दिखाता है, वह विरल हवा में खो जाता है। इससे भी ज़्यादा बदतर स्थिति सोशल मीडिया की है। इलेक्ट्रानिक एवं सोशल मीडिया द्वारा प्राय: किये जा रहे उल्लंघनों एवे अतिक्रमणों के फलस्वरूप होने वाली सामाजिक अशान्ति के परिणाम सामने आ रहे हैं। मीडिया के लिए सब कुछ निभाने की बढ़ती हुई माँग का हवाला देते हुए मुख्य न्यायाधीश रमन्ना ने कहा कि हाल ही के तौर-तरीक़ों एवं प्रवृतियों को देखते हुए मीडिया के लिए सर्वोत्तम चीज़ यही है कि वे स्वनियंत्रण को अपनाएँ तथा अपने शब्दों को नाप-तोलकर काम में लें।

हनीट्रेप में फँसा जवान

राजस्थान इंटेलिजेंस ऑपरेशन ने भारतीय सेना में जयपुर में पदस्थ कंचनपुर निवासी जवान शान्तिमोय राणा को जासूसी करने के आरोप में पकड़ा है। डी.जी. उमेश मिश्रा ने बताया कि जवान सोशल मीडिया के ज़रिये पाकिस्तानी ख़ुफ़िया हैंडलर को भेज रहा था। एडीजी एस. मेंगाथिर के मुताबिक, पाक महिला एजेंट ने सोशल मीडिया पर ख़ुद को मिलिट्री इंजीनियरिंग सर्विसेज में कार्यरत बताकर राणा को रूप जाल में फँसाया। एक अन्य महिला एजेंट ने निष (छद्म नाम) बताकर आरोपी जवान के बैंक खाते में 6,000 रुपये जमा करवाये। आरोपी जवान को पाक महिला एजेंट ने अपना पता शाहजहाँपुर (उत्तर प्रदेश) और छद्म नाम गुरनूर उर्फ़ अंकिता बता रखा था। पाक महिला एजेंट ने आरोपी से सेना के गोपनीय दस्तावेज़ के फोटोग्राफ्स, वार्षिक युद्धाभ्यास के वीडियो सोशल मीडिया के ज़रिये मँगवाये। आरोपी जवान ढाई वर्ष से पाक महिला एजेंट के सम्पर्क में था। क़रीब एक वर्ष पहले वह इंटेलिजेंस के रडार पर आया था। तभी से उसकी गतिविधियों पर नज़र रखी जा रही थी। वह छुट्टी पर अपने गाँव गया था। जयपुर लोटा, तो इंटेलिजेंस ने नोटिस देकर उसे पूछताछ के लिए बुलाया। काफ़ी सुबूत मिलने के बाद उसे गिरफ़्तार कर लिया गया।

हरियाणा में दलबदल से गर्मायी सियासत

विधायक कुलदीप बिश्नोई को जब कांग्रेस ने धक्का दिया, तो भाजपा ने लगा लिया गले

तत्कालीन कांग्रेस के विधायक कुलदीप बिश्नोई का ट्वीट कि ‘फन कुचलने का हुनर आता है मुझे, साँप के ख़ौफ़ से जंगल नहीं छोड़ा करते…’ बहुत कुछ कह जाता है। इसके हरियाणा के राजनीतिक गलियारों में कई मायने रहे। फन कुचलने के हुनर का तो वह दावा करते हैं; लेकिन साँप कौन? जवाब में इसे वह मुस्कुराकर टाल देते हैं कि उन्होंने किसी का नाम तो नहीं लिया। इसके आधार वह सीधे आर-पार की लड़ाई का सन्देश देते दिखते हैं और ऐसा उन्होंने कर भी दिखाया है।

राज्य की राजनीति की थोड़ी बहुत भी जानकारी रखने वाले जानते हैं कि उनका इशारा किस तरफ़ था। जिस तरफ़ था, उन्हें कांग्रेस आलाकमान मतलब गाँधी परिवार का पूरा समर्थन है। लिहाज़ा पार्टी में रहते हुए कुलदीप के लिए पानी में रहकर मगर से बैर जैसी उक्ति साबित हो रही थी। उनकी राजनीति कांग्रेस में एकला चलो जैसी रही। वह काफ़ी समय से अपने को पार्टी में सहज महसूस नहीं कर रहे थे; लेकिन अन्य कोई विकल्प भी उनके सामने नहीं थे। राजनीति में स्थितियाँ तेज़ी से बदलती हैं और कुलदीप बिश्नोई के मामले में ऐसा ही हुआ। उपेक्षा से आहत उपजी ख़ुन्नस ने उन्हें विकल्प दे दिया।

दो बार के सांसद और चार बार के विधायक कुलदीप बिश्नोई और उनकी पत्नी रेणुका बिश्नोई अब कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो चुके हैं। विधायक पद से उनका इस्तीफ़ा मंज़ूर हो चुका है। अब छ: माह के अन्दर आदमपुर उपचुनाव होगा। कुलदीप अपने बेटे भव्य बिश्नोई को मैदान में उतारने की इच्छा रखते हैं। देखना होगा कि पार्टी किसे टिकट देती है। उप चुनाव में हार जीत पर कुलदीप का राजनीतिक भविष्य तय होगा। कांग्रेस के पास खोने को ज़्यादा नहीं; लेकिन कुलदीप के लिए यह अग्निपरीक्षा जैसा होगा। भाजपा में आने के बाद कुलदीप अपने को इसमें एडजस्ट कर लें, तो यह अपने में बड़ी बात होगी। अति महत्त्वाकांक्षी कुलदीप उपेक्षा से आहत हो जाते हैं, तब वे कुछ भी सुनाने से नहीं चूकते। जहाँ अवसर मिलता है, वे उसे भुना भी लेते हैं।

अनुभवी होने के नाते वे कुछ बड़ा करना चाहते हैं; लेकिन कांग्रेस में उनके लिए ऐसी स्थिति बन नहीं पा रही है। वे उपेक्षा नहीं, बल्कि पार्टी में अहम पद चाहते हैं; लेकिन राह बनती नहीं दिख रही है। पार्टी बदलने के बाद यह स्थिति तो उनके लिए भाजपा में भी रहेगी, ऐसे में उनके लिए मुश्किलें बनी रह सकती हैं। बहरहाल उनके भाजपा में जाने से राज्य की राजनीति में किसी उलटफेर होने की सम्भावना बिल्कुल नहीं है। उनका अपने परम्परागत विधानसभा क्षेत्र आदमपुर या हिसार ज़िले के कुछ हिस्से में ही प्रभाव है। लिहाज़ा भाजपा को निकट भविष्य में इससे कोई बड़ा फ़ायदा नहीं मिलेगा, जबकि कांग्रेस को थोड़ा नुक़सान उठाना पड़ सकता है।

प्रदेश में कांग्रेस पर फ़िलहाल दो बार मुख्यमंत्री रह चुके भूपेंद्र सिंह की पकड़ है और कुलदीप के पार्टी छोडऩे से वह ज़्यादा चिन्तित नहीं है। एक तरह से कहें, तो उनकी एक बड़ी बाधा अब दूर हो गयी है। पार्टी में अब उन्हें सीधे चुनौती देने वाला गाँधी परिवार के समर्थन से राज्य कांग्रेस में उनकी ही बात सुनी जाती है। ऐसे में प्रदेशाध्यक्ष अगर उनकी पसन्द का न हो, तो उन्हें मुश्किल होती है। इसका सामना वह काफ़ी समय से कर चुके हैं। गाँधी परिवार की करीबी कुमारी शैलजा के प्रदेशाध्यक्ष रहते हुड्डा ऐसे दौर से गुज़र चुके हैं, ऐसे में अब वह अपनी ही पसन्द के नेता को चाहते हैं। उनकी यह इच्छा उदयभान के रूप में पूरी हो जाती है, क्योंकि कुलदीप तो इस कसौटी पर जरा भी खरा नहीं उतरते। उदयभान की नियुक्ति का सबसे बड़ा झटका कुलदीप बिश्नोई को लगा।

कुलदीप के मुताबिक, राहुल गाँधी ने उन्हें प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपने की बात कही थी; लेकिन उनकी जगह एक अनजान से चेहरे को दायित्व सौंप दिया। इसके बाद हुड्डा और कुलदीप के बीच जैसे 36 का आँकड़ा बन गया। दोनों एक दूसरे को अपरोक्ष तौर पर चुनौती भी देने लगे थे। भाजपा में जाने के बाद कुलदीप अब सीधे हुड्डा को चुनौती देने लगे हैं कि इस्तीफ़ा देने के बाद होने वाले आदमपुर उप चुनाव में कांग्रेस जीतकर दिखाए। यह हलका उनके पिता और राज्य के कई बार मुख्यमंत्री रहे भजनलाल का पारम्परिक हलक़ा है। दशकों से उनके परिवार का कोई-न-कोई सदस्य यहाँ से जीत हासिल करता रहा है। ऐसे में उप चुनाव में उनकी या उनके परिवार के किसी सदस्य की जीत कोई बड़ी बात नहीं होगी; लेकिन अप्रत्याशित नतीजा तो उनके राजनीतिक भविष्य पर सवालिया निशान लगा देगा।

पक्के कांग्रेसी कुलदीप बिश्नोई की आख़िर इस कदर विदाई क्यों हुई? इसकी प्रमुख वजह उन्हें प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष न बनाना रहा है। इसके अलावा ऐसी कोई वजह नहीं कि उन्हें पार्टी छोड़कर धुर-विरोधी भाजपा में जाना पड़ता। कुलदीप इसके लिए गाँधी परिवार से ज़्यादा हुड्डा को ज़िम्मेदार मानते हैं। वह हुड्डा को सबक़ सिखाना चाहते थे; लेकिन चुनौतियों के अलावा अन्य कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा था। जून में ऐसा मौक़ा आ गया।

राज्यसभा चुनाव में संख्या बल के हिसाब से कांग्रेस का एक सांसद बन सकता था; लेकिन पार्टी में क्रॉस वोटिंग की आशंका बनी हुई थी। गुटबाज़ी के चलते कांग्रेस पक्की जीत नहीं मानकर चल रही थी; लेकिन किसी तरह जीत के प्रति आशान्वित थे। अजय माकन की हार क्रॉस वोटिंग के चलते हुई और इसमें सीधे तौर पर कुलदीप बिश्नोई पार्टी के लिए खलनायक जैसे साबित हुए। माकन की हार पार्टी के लिए बड़ा झटका था। आलाकमान ने इसे गम्भीरता से लिया और कुलदीप बिश्नोई पर कार्रवाई की। पार्टी की प्राथमिक सदस्यता के अलावा उन्हें सभी पदों से अलग कर दिया। कुलदीप को पता था कि पार्टी निश्चित ही उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई करेगी। वह इसके लिए तैयार भी थे, क्योंकि अब उन्हें इस पार्टी में रहना नहीं था।

पार्टी से निष्कासन के बाद उनके पास कई विकल्प थे। नयी पार्टी गठित करना, आम आदमी पार्टी या फिर भाजपा में शामिल होने जैसे विकल्प थे। हरियाणा जनहित कांग्रेस जैसी पार्टी बनाकर वह अपने हाथ जला चुके थे। आप में उन्हें राजनीतिक भविष्य नज़र नहीं आया ऐसे में भाजपा के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था। इसके लिए उन्होंने भूमिका तैयार करनी शुरू भी कर दी। विधानसभा हलक़े के बजट के लिए उन्होंने मुख्यमंत्री मनोहर लाल से मुलाक़ात की। तभी कयास लगने लगे थे कि वह निश्चित ही भाजपा में जाएँगे। दिल्ली में शीर्ष नेतृत्व से मुलाक़ातें इसी का संकेत था। कांग्रेस संस्कृति में रचे-बसे कुलदीप को नये दल में कई तरह की मुश्किलें आएँगी। वह वंशवाद की राजनीति को आगे बढ़ाने वालों में हैं, जबकि भाजपा में यह सब बहुत आसानी से नहीं होने वाला। भाजपा कुलदीप का पार्टी के लिए बेहतर इस्तेमाल कर सकती है।

एक ग़ैर-जाट के तौर पर कुलदीप की अच्छी छवि है। वह अपने पिता भजनलाल की तरह किसी जाति विशेष की राजनीति नहीं करना चाहते। वह 36 बिरादरी के नेता के रूप में अपनी पहचान बनाना चाहते हैं। भाजपा को ऐसे ही नेता की ज़रूरत है, देखना होगा कि पार्टी उनका बेहतर इस्तेमाल कर पाने में कितनी सफल होती है।


“कांग्रेस विशाल पार्टी है, कुलदीप जैसे किसी एक के जाने से पार्टी कोई कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा। उनके जैसे लोगों की वजह से ही राज्यसभा में कांग्रेस प्रत्याशी की हार हुई। सच्चा कांग्रेसी कभी ऐसा नहीं करता जैसे कुलदीप बिश्नोई ने किया। पार्टी नेतृत्व ही प्रदेशाध्यक्ष की नियुक्ति करता है। अगर वह कुलदीप को योग्य समझता, तो उन्हें ज़िम्मेदारी मिल सकती थी। उनकी इसमें कोई भूमिका नहीं है। वे सभी को साथ लेकर चलने में भरोसा रखते हैं, अगर कोई ऐसा न कर अपने लिए अलग रास्ता चुनता है, तो वह इसके लिए स्वतंत्र है।’’
भूपेंद्र सिंह हुड्डा
पूर्व मुख्यमंत्री कांग्रेस


“कुलदीप पार्टी के ग़द्दार हैं। उनके साथ कोई मौज़ूदा पार्टी विधायक नहीं जा रहा है। वह एक दौर में अपने आधा दर्ज़न विधायकों को ही नहीं सँभाल पाये और चुनौती भूपेंद्र हुड्डा को दे रहे हैं, जो 10 साल तक मुख्यमंत्री रह चुके हैं। उनके नेतृत्व में पार्टी संगठन मज़बूत होगा और कांग्रेस विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करेगी। कांग्रेस चिन्तन रैली के माध्यम से राज्य की जनता को एकजुट करने का प्रयास कर रही है।’’
उदयभान
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष, हरियाणा


“भूपेंद्र सिंह हुड्डा के होते हरियाणा में कांग्रेस की सरकार बनना मुश्किल है। वह पुत्र मोह में फँसे हुए हैं। उन्हें वर्ष 2009 और 2014 में मौक़ा दिया गया; लेकिन कांग्रेस की सरकार नहीं बन सकी। राज्य के लोग हुड्डा को नकार चुके हैं। राहुल गाँधी कुछ लोगों से घिरे हैं, जिनकी वजह से वह सही $फैसले नहीं ले पा रहे हैं। राहुल गाँधी को उन जैसे वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं से मिलने का समय ही नहीं मिलता।’’
कुलदीप बिश्नोई
भाजपा नेता

विधायकों की ख़रीद-फ़रोख़्त दुर्भाग्यपूर्ण

सही क़ीमत लगओ, तो हर चीज़ बिकाऊ होती है। झारखण्ड में इन दिनों इस बात की चर्चा आम है। लोग चुहल कर रहे हैं कि ‘झारखण्ड में विधायक बिकता है; बोलो ख़रीदोगे!’ यह भले ही लोगों में हँसी-मज़ाक़ की बात हो; लेकिन माननीयों को इस पर विचार करने की ज़रूरत है। क्योंकि कुछ बिकाऊ विधायकों के कारण सारे विधायकों की प्रतिष्ठा पर दाग़ लग रहा है।

पिछले दो दशक से कभी ऐसा मौक़ा नहीं आया, जब विधायकों के ख़रीद-फ़रोख़्त की बात सामने न आयी हो। यही वजह है कि अलग राज्य गठन के 22 वर्ष बाद भी झारखण्ड में जितना विकास होना चाहिए था, वह नहीं हो पाया। इन दिनों झारखण्ड की सियासत इन्हीं सब बातों में उलझी हुई है। इसकी वजह तीन कांग्रेसी विधायकों का पश्चिम बंगाल में पुलिस द्वारा भारी मात्रा में नक़दी के साथ गिरफ़्तार किया जाना है। इसे लेकर झारखण्ड से कोलकाता, असम और दिल्ली तक हलचल मची हुई है। इस प्रकरण में कई सवालों के जवाब सब ढूँढ रहे हैं।

नक़दी के साथ विधायक गिरफ़्तार
झारखण्ड के तीन कांग्रेसी विधायक इरफ़ान अंसारी, नमन विक्सल कोंगाड़ी और राजेश कच्छप को 30 जुलाई को पश्चिम बंगाल पुलिस ने 49 लाख रुपये की नक़दी के साथ गिरफ़्तार किया। तीनों विधायक एक गाड़ी से होकर पूर्व मिदनापुर की ओर जा रहे थे। पांचला थाना के अधीन रानीहाटी मोड़ के पास तलाशी में रुपये बरामद हुए। शुरुआती पूछताछ में उन्होंने कहा कि आदिवासी दिवस पर साड़ी बाँटने के लिए वे बंगाल से साड़ी ख़रीदने के लिए पैसे लेकर आये थे। पुलिस ने तीनों को गिरफ़्तार कर मामले को सीआईडी के सुपुर्द कर दिया। न्यायालय से 10 अगस्त तक के लिए सीआईडी की हिरासत में भेज दिया गया है, जहाँ उनसे पूछताछ की जा रही है।

घटना के दूसरे दिन प्रदेश कांग्रेस ने तीनों विधायकों को निलंबित कर दिया। उधर कांग्रेस के अन्य विधायक कुमार जयमंगल उर्फ़ अनूप सिंह ने सरकार गिराने की बात रांची के अरगोड़ा थाने में एफआईआर दर्ज करायी है। इस एफआईआर में अनूप सिंह ने साफ़-साफ़ लिखा है कि विधायक इरफ़ान अंसारी, राजेश कच्छप और नमन विल्सन कोंगाड़ी ने कहा है कि वे मुझे कोलकाता बुला रहे थे और प्रति विधायक 10 करोड़ रुपये और मंत्री पद देने की बात कह रहे थे। उन्होंने इसका लिंक असम से जोड़ा। एफआईआर में असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा का भी ज़िक्र किया है। जहाँ से यह डील हो रही थी। तीनों विधायकों के असम जाने की भी बात सामने आयी। इस बीच अनूप सिंह के ख़िलाफ़ भी अरगोड़ा थाने में मामला दर्ज कराया गया है। दीपक राव सिंह नामक व्यक्ति ने थाने में की शिकायत में कहा है कि अनूप सिंह द्वारा तीनों विधायकों पर लगाया गया आरोप झूठा है। अनूप का पहले से असम के मुख्यमंत्री से सम्पर्क है। उनकी एक तस्वीर भी असम के मुख्यमंत्री के साथ वायरल हुई है। अनूप सिंह ने सफ़ाई दी है कि वह इंटक मामले को लेकर मिलने के लिए गये थे, जिसकी जानकारी मुख्यमंत्री और पार्टी के प्रदेश प्रभारी को दे दी थी।

हर कांग्रेस विधायक पर शक
इस घटना के बाद कांग्रेस का हर विधायक शक के दायरे में आ गया है। कांग्रेस के टूटने की बात लम्बे समय से आ रही है। पार्टी के 17 विधायक हैं। इनमें से 13 के टूटने की बात थी। अभी तथाकथित तीन विधायक सामने आये हैं। यानी सवाल उठ रहा कि 10 कौन? क्योंकि विधानसभा में सरकार बनाने के लिए 41 का आँकड़ा चाहिए। भाजपा के पास आजसू के दो विधायकों को मिलाकर केवल 28 विधायक हैं। यानी अगर भाजपा को सरकार बनना है, तो कम-से-कम 13 और विधायकों का समर्थन चाहिए। इस बीच सरकार में मंत्रिमंडल बदलने की भी चर्चा शुरू हो गयी है। जल्द ही नये मंत्रिमंडल के गठन की उम्मीद है, जिसमें कांग्रेस के मौज़ूदा चार मंत्रियों में से दो-तीन का पत्ता साफ़ होना तय माना जा रहा है।

सत्ता पक्ष-विपक्ष आमने-सामने
झारखण्ड में झामुमो के नेतृत्व में सरकार है। कांग्रेस मुख्य सहयोगी के रूप में सरकार में शामिल है। झामुमो और कांग्रेस इस मुद्दे को लेकर भाजपा पर प्रहार कर रही है और सरकार गिराने की साज़िश का आरोप लगा रही है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी इसे सरकार गिराने का षड्यंत्र करार दिया है। वहीं कांग्रेस के मंत्री और विधायक भी यही बोल रहे। उधर विपक्षी दल भाजपा के विधायक और नेता बोल रहे, सरकार ख़ुद ही गिर रही है। वह कटाक्ष भी कर रहे, क्या तीन विधायकों को तोडऩे से सरकार गिर जाएगी? क्या 49 लाख रुपये में 13-13 विधायक टूट रहे? अगर और अधिक पैसे की बात है, तो बाक़ी के पैसे कहाँ हैं? उन्हें कैसे देने की बात थी? भाजपा नेता इस मामले को राज्य में चल रहे प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की जाँच से जोड़कर कह रहे हैं कि यह भ्रष्टाचार का पैसा है।

गिरफ़्तारी पर उठे सवाल
तीनों विधायकों की गिरफ़्तारी पर कई सवाल उठ रहे हैं। लोग सवाल कर रहे हैं कि तीनों विधायकों को पैसा कहाँ से मिला और किसने दिया? वह रुपया लेकर कहाँ जा रहे थे? यह किस काम के लिए दिया गया था? विधायकों के पास नक़दी होने की सूचना पुलिस को कहाँ से मिली? उनका सटीक लोकेशन पुलिस को किसने दिया? क्योंकि एक चर्चा यह भी है कि झारखण्ड सरकार की स्पेशल ब्रांच ने बंगाल पुलिस को सूचना दी थी। अगर ऐसा था, तो सरकार ने अपने ही सहयोगी विधायकों के साथ ऐसा क्यों किया? क्या इसमें कांग्रेस की भी रजामंदी थी? कहीं सच में सरकार गिराने की साज़िश तो नहीं थी? या फिर राज्य में चल रहे ईडी कार्रवाई से ध्यान भटकाने के लिए यह सब हुआ। कहीं झारखण्ड में ईडी की कार्रवाई को देखते हुए इस तंत्र में शामिल लोगों का ही पैसा खपाने का प्रयास तो नहीं हो रहा था? सवाल यह भी उठ रहा है कि कहीं तीनों विधायकों के पास बरामद रुपये का कोई बंगाल कनेक्शन तो नहीं है?

क्योंकि झारखण्ड के कई विधायकों का बंगाल में राजनीतिक और व्यावसायिक अच्छे सम्बन्ध हैं। इस बीच बंगाल सीआईडी ने यह भी दावा किया है कि 49 लाख पकड़े जाने से पहले 21 जुलाई को इन तीनों विधायकों को कोलकाता में 75 लाख रुपये दिये गये थे। यह राशि वहाँ के एक कारोबारी महेंद्र अग्रवाल ने दी थी। महेंद्र अग्रवाल भी सीआईडी की हिरासत में हैं। कहने वाले यह भी कहते हैं कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनके क़रीबी चौतरफा घिरे हैं। मुख्यमंत्री की सदस्यता को लेकर चुनाव आयोग के पास मामला लम्बित है। उनके ख़िलाफ़ न्यायालय में पीआईएल दाख़िल है। उनके विधायक प्रतिनिधि पंकज मिश्रा को ईडी ने गिरफ़्तार किया है। उनके प्रेस सलाहकार अभिषेक कुमार से पूछताछ की जा रही है। मुख्यमंत्री ख़ुद कभी भी ईडी के रडार पर आ सकते हैं।

कई मामले ठण्डे बस्ते में
राज्य में सन् 2014 के विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा की सरकार बनी। भाजपा पर झाविमो के छ: विधायकों को तोडऩे का आरोप लगा। ये सभी भाजपा में शामिल हो गये थे। इनमें से कुछ को मंत्री पद तो कुछ को निगम-बोर्ड में जगह मिली। तब भी ख़रीद-फ़रोख़्त की बात उठी। सन् 2010, 2012, 2014, 2016 में राज्यसभा चुनाव में हार्स ट्रेडिंग का मामला आया। विधायकों के ख़रीद-फ़रोख़्त की बात हुई। सन् 2012 में राज्यसभा चुनाव के दिन ही निर्दलीय प्रत्याशी आरके अग्रवाल के छोटे भाई सुरेश अग्रवाल की गाड़ी से 2.15 करोड़ रुपये बरामद हुए थे। इससे देश में पहली बार राज्यसभा चुनाव को ही रद्द करना पड़ा था।
जुलाई, 2021 में रांची के एक होटल से तीन लोग पकड़ाये। उनके पास से दो लाख रुपये बरामद हुए थे। उन पर हेमंत सरकार गिराने की साज़िश रचने का आरोप लगा था।

पर्दा उठने का इंतज़ार
बंगाल सरकार ने झारखण्ड के तीनों कांग्रेसी विधायक इरफ़ान अंसारी, नमन विक्सल कोंगाड़ी और राजेश कच्छप के मामले में सीआईडी को सौंप दी है। जाँच में क्या ख़ुलासा होगा? यह तो वक़्त ही बताएगा। अभी तक जितनी बातें सामने आयी हैं, यह सिर्फ़ नेताओं के आरोप-प्रत्यारोप और सोशल मीडिया के हवाले से आयीं हैं। न पुलिस और न ही किसी जाँच एजेंसी ने पूरे रहस्य से पर्दा उठाया है। तीनों विधायक गिरफ़्तारी के समय से लेकर अभी तक मीडिया के सामने नहीं आ पाये हैं। न ही उन्हें अपनी बात रखने का अवसर दिया गया। देखना यह है कि मामले का ख़ुलासा कब तक होता है। सच्चाई क्या है। इस बार मामले का पटाक्षेप हो पाता है या नहीं। या फिर सारी बातें राज ही बन कर रह जाती हैं और तीनों विधायक केवल बली का बकरा बन कर रह जाते हैं।

अलौकिक किवदंतियों का पिटारा माणा गाँव

भारत के आखिरी गाँव माणा से होकर हिमालय की तरफ़ से स्वर्ग गये थे पांडव

भारत का आखिरी गाँव माणा प्राकृतिक दृश्यों और नैसर्गिक सौंदर्य से भरपूर है। कई मायनों में ख़ास यह गाँव अब एक पर्यटन स्थल बन चुका है। आसमान छूते ऊँचे पर्वत शिखरों, झरनों और नदियों से यहाँ का वातावरण पवित्र तो बनता ही है, यहाँ एक अद्वितीय आध्यात्मिक ऊर्जा से तन-मन भी सराबोर होते हैं।

माणा गाँव की सबसे ख़ास बात यह है कि द्वापर युग में पांडवों ने स्वर्ग जाने के लिए इसी गाँव के रास्ते से अपनी यात्रा शुरू की थी। इस गाँव में कुछ ऐसी गुफाएँ भी हैं, जो पौराणिक प्रसंगों की गवाह हैं। माणा में रास्ते सँकरे होने के कारण यहाँ वाहन लाने की अनुमति नहीं है, इसलिए वाहन गाँव के बाहर ही खड़े किये जाते हैं। भारत के प्रसिद्ध चार धामों में से एक बद्रीनाथ धाम से तीन किलोमीटर आगे माणा गाँव पड़ता है। उत्तराखण्ड के चमोली ज़िले में आने वाला यह गाँव समुद्र तल से 3,200 मीटर की ऊँचाई पर है। सरस्वती नदी के किनारे स्थित माणा गाँव ख़ूबसूरत वादियों से सजा हुआ किसी स्वर्ग से कम प्रतीत नहीं होता। यह गाँव भारत-चीन सीमा से 24 किलोमीटर की दूरी पर है। गाँव के लोगों का कहना है कि यही वह स्थान है जहाँ महर्षि वेदव्यास ने महाभारत की रचना की थी और गणेश ने उसका लेखन किया था। प्राकृतिक नज़ारों से घिरा हुआ यह गाँव सहज और सरल जीवन के साथ-साथ अध्यात्म की बात करता है। कहना पड़ेगा कि इस अद्भुत स्थल पर आकर कोई भी नास्तिक मन उस परम् शक्ति के प्रति आस्थावान होने को मजबूर हो सकता है।

‘उत्तरांचल के तीर्थ स्थान’ पुस्तक में लिखा गया है कि स्वामी विवेकानंद मध्य-हिमालय क्षेत्र के आध्यात्मिक आकर्षण से प्रभावित हुए थे। उन्होंने कहा था- ‘यह हमारे पूर्वजों का स्वप्नलोक है, जहाँ पर भारत की माँ पार्वती जन्मीं। यह वह पवित्र भूमि है, जहाँ पर भारत की हर उद्दीप्त आत्मा जीवन के अन्तिम पहर में आना चाहती है और नश्वर शरीर की यात्रा के अध्याय को विश्राम देना चाहती है। इस सौभाग्यशाली धरती की चोटियों पर, उसकी कंदराओं की गहराइयों में और वेगवान नदियों के तटों पर विलक्षण विचारों का सृजन हुआ। यह वही भूमि है, जहाँ पर मैं बचपन से ही अपना जीवन बिताने के सपने देखता आया हूँ। मैं सच्चे हृदय से प्रार्थना करता हूँ। आशा करता हूँ, और विश्वास भी करता हूँ कि मेरे अन्तिम दिन यहाँ पर व्यतीत हों।’

माणा गाँव के निवासी सूरज पर्यटक मार्गदर्शक (टूरिस्ट गाइड) हैं। वह माणा गाँव के बारे में पर्यटकों को बताते हैं। और उनके भाई पर्यटकों को स्वर्गारोहण की तरफ़ ट्रैक पर लेकर जाते हैं। सूरज बताते हैं कि इसी गाँव से पाँच पांडव द्रौपदी के साथ स्वर्ग की ओर बढ़े थे। यहाँ से आगे भीम पुल प्वाइंट (बिन्दु) है। उससे आगे सतोपंथ और स्वर्गारोहण ट्रैक है। सूरज के अनुसार भीम पुल यहाँ से 800 मीटर दूर है। सतोपंथ 27 किलोमीटर है। पाँच दिन का रास्ता है। यहाँ कैम्प करके ट्रैकिंग से जाना पड़ता है। जैसा उन्होंने सीख रखा है। पांडवों के बारे में बताते हुए सूरज कहते हैं कि पाँचों में से केवल युधिष्ठिर ही स्वर्ग लोक जा पाये थे। उनके बाक़ी भाइयों ने स्वर्गारोहण में ही एक-एक कर शरीर छोड़ दिये थे। ट्रैकिंग के दौरान उनके निशान वहाँ मिलते हैं; लेकिन वह सारा क्षेत्र सेना के अंतर्गत आता है। माणा के एक दुकानदार देवेंद्र मोलपा भी यही बताते हैं।

टूरिस्ट गाइड सूरज ने बताया कि वह यहाँ छ: महीने रहते हैं। खेती-बाड़ी करते हैं। आलू, गोभी और पत्ता गोभी की फ़सल होती है। मुख्य व्यापार ऊनी वस्त्रों का है। गाँव की औरतें बुनायी करती हैं। तालाबंदी के कारण दो साल के बाद अब पर्यटक आ रहे हैं। तीन-चार महीने में अच्छी कमायी हो जाती है, जिससे साल भर का गुज़ारा चल जाता है। दुकानदार देवेंद्र मोलपा का कहना है कि छ:-सात महीने, जब मौसम ठीक रहता है; तब इसी गाँव में रहते हैं। लेकिन ज़्यादा ठण्ड के दिनों में वह नीचे के क्षेत्रों में गोपेश्वर चले जाते हैं। माणा गाँव में कई जड़ी-बूटियाँ मिलती हैं, जो बीमारियों के इलाज में काफ़ी कारगर होती हैं।

उत्तराखण्ड वन विभाग के अनुसंधान विंग द्वारा माणा गाँव में हर्बल पार्क बनाया गया है, जिसमें 40 से अधिक प्रजातियों की जड़ी-बूटियाँ शामिल हैं। बाज़ार के कई दुकानदारों के पास काफ़ी जड़ी-बूटियाँ उपलब्ध हैं। इनमें एक ख़ास बालछड़ी काफ़ी मशहूर है, जिसको बुरी नज़र से बचने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा दुकानों में ऊनी वस्त्र बिकते हैं। महिलाएँ भी व्यापार करती हैं। अगर कोई पर्यटक उनकी फोटो खींचने लगता है, तो वे अपना चेहरा छुपा लेती हैं। कई महिलाओं की फोटो खींचने की कोशिश की गयी; लेकिन उन्होंने फट से अपना चेहरा छुपा लिया। इस बारे में जब दुकानदारों से बात की, तो उन्होंने बताया कि फोटो खींचने-खिंचवाने पर महिलाओं पर गाँव के सरपंच द्वारा जुर्माना वसूला जाता है। किसी कारण से हमारा माणा के सरपंच से सम्पर्क नहीं हो सका। मकानों को ख़ूबसूरत चित्रकारी से सजाया गया है, जिनमें पौराणिक चित्र भी शामिल किये गये हैं। पंजाब से आयी दो महिला पर्यटकों- वीणा और कुसुम का कहना है कि यह क्षेत्र अद्भुत है। लोगों का जीवन सीधा-सादा है। इनके चेहरों पर सहजता, सरलता और सन्तुष्टि दिखायी देती है। यहाँ सचमुच ईश्वर की शक्ति के दर्शन होते हैं।

दर्शनीय स्थल
भारत के इस आख़िरी गाँव में देखने लायक बहुत कुछ है। प्राकृतिक दृश्यों के अलावा गणेश गुफा, व्यास गुफा, भीम शिला, वसुधारा, माता मूर्ति मन्दिर, लक्ष्मी वन, इंद्रधारा, अलकापुरी, चक्रतीर्थ, सतोपंथ स्वर्गारोहण आदि पवित्र स्थान है। इन स्थानों से बहुत सारी पौराणिक कहानियाँ और प्रसंग जुड़े हुए हैं। मान्यता है कि इस गाँव की भूमि श्राप मुक्त और पाप मुक्त है। माणा गाँव का नाम मणिभद्र देव के साथ भी जुड़ा हुआ है। ऊँचे पर्वत शिखर और दुर्गम रास्ते होने के कारण पहले यहाँ का सफ़र आसान नहा थी; लेकिन अब ऋषिकेश से आगे नेशनल हाईवे बनने और काफ़ी आगे तक पक्की सड़क की सुविधा हो जाने से माणा गाँव की यात्रा आसान हो गयी है।

व्यर्थ का विरोध

इन दिनों फ़रमानी नाज़ द्वारा गाये गये भजन रूपी मंत्रों ‘हर-हर शम्भू, जय महादेवा, शिव महादेवा’ को लेकर ख़ासा हंगामा मचा हुआ है। हालाँकि असली ‘हर-हर शम्भू’ गाने वाली फ़रमानी नाज़ नहीं, बल्कि उड़ीसा की अभिलिप्सा पांडा हैं। मगर फ़रमानी नाज़ को लेकर हंगामे की असल जड़ वे उलेमा और मौलवी हैं, जो शरीअत का हवाला देकर यह रोना रो रहे हैं कि कोई मुस्लिम गीत गाये; इस्लाम में इसकी इजाज़त नहीं है। सवाल यह है कि एक कलाकार के लिए अगर इस तरह की बन्दिशें लगायी जा सकती हैं, तो फिर उन पर कितनी पाबंदियाँ लगनी चाहिए, जो यह दिखाते हैं कि वे दीन (धर्म) के पाबंद हैं? यह सवाल उन लोगों से है, जो धर्म की ठेकेदारी करते हैं और परदे की आड़ में या रात के अँधेरे में आदमीअत का चोला उतारकर हवस और हैवानियत की सारी हदें पार करने में ज़रा भी शर्म नहीं करते।

फ़रमानी नाज़ ने ठीक ही जवाब दिया कि कलाकार का कोई धर्म नहीं होता। वाक़ई एक कलाकार का धर्म तो सिर्फ़ कला है, बशर्ते उसमें कोई अश्लीलता या फूहड़पन न हो। आज ऐसे तथाकथित अ-कलाकारों की एक भीड़ है, जो न केवल कला की हत्या कर रही है, बल्कि असली कलाकारों का हक़ मारकर भी खा रही है। क्या कोई इस तथाकथित अ-कलाकारों की भीड़ के विरोध में आवाज़ उठाता है? एक सवाल फ़रमानी नाज़ पर फ़तवा जारी करने वाले उलेमाओं ओर मौलवियों से, जो फ़रमानी नाज़ ने भी पूछा है कि वे तब कहाँ थे? जब उसके शौहर ने उसे तलाक़ दिये बिना बदहाली में छोड़कर दूसरी शादी कर ली थी। क्या ऐसे लोगों के लिए शरीअत में कोई सज़ा नहीं है? यह कोई एक फ़रमानी नाज़ पर दबाव नहीं बना है। हर धर्म में ऐसे ठेकेदारों की भरमार है, जिन्होंने ऐसे लोगों के विचारों पर आपत्ति जताते हैं, जो पूरी दुनिया के लोगों को अपना घर मानकर सभी से प्यार करते हैं। धर्मों में ऐसे ही दकियानूसी लोगों की भरमार से केवल सभी धर्म और उनके मानने वाले भी ख़तरे में हैं।

सवाल यह है कि क्या वे लोग अपने सही मायने में धर्म की रक्षा कर रहे हैं, जिन्हें सभी धर्मों के लोगों से लगाव रखने वाले अपने ही धर्म के लोग दुश्मन नज़र आते हैं। इन दकियानूसी ठेकेदारों की इसी एक कमी की वजह से अपने ही कई विद्वानों, कलाकारों और गुणी लोगों को तिरस्कृत और अपमानित करके उनके अपने ही धर्म से बाहर फेंक दिया जाता है। इतिहास ऐसे विद्वानों, कलाकारों और गुणी लोगों के तिरस्कार और उनकी हत्या तक का गवाह रहा है। अगर एक कलाकार दूसरे धर्म का गुणगान करके अपराध कर रहा है, तो धर्म संसद के ठेकेदार धर्म संसद की बैठक में एक-दूसरे के धर्म की तारी$फों के पुल क्यों बाँघते हैं? वहीं मंचों पर ही आपस में क्यों नहीं लडऩे-मरने लगते हैं?

क्या कभी किसी धर्म का कोई ठेकेदार यह सोचता है कि अपने ही धर्म के मानवतावादी विद्वानों, कलाकारों और गुणी लोगों का धार्मिक बहिष्कार करके उनके धर्म का और उनका कितना नुक़सान होता है? यह तो अपनी ही पीढिय़ों के लिए अज्ञानता की खाई खोदने जैसा है। अगर हमारे समाज में विद्वानों, कलाकारों और गुणीजनों का तिरष्कार करेंगे, तो स्पष्ट है कि ज्ञान हासिल करने के लिए तैयार हो रहे बच्चों को कौन शिक्षा देगा? भारत में कुछ बाहरी आततायियों ने यहाँ यही तो खेल किया, जिसका नतीजा आज हमारे इस रूप में है कि हम सबसे पिछड़ चुके हैं। जिस भारत को सदियों तक पूरी दुनिया सोने की चिडिय़ा मानकर लूटने को आती रही, और यहाँ के धन व ज्ञान से अपनी-अपनी दरिद्रता दूर कर चुकी है। आज हम इसी भारत को न केवल समझने की भूल कर रहे हैं, वरन् इस महान् देश को अपने ही हाथों कलंकित करने में लगे हैं। कैसे-कैसे संत, महंत, ऋषि, मुनि, फ़क़ीर, अध्येता, कवि, राजीतिज्ञ इस देश ने हमें दिये। परन्तु हमने उनसे सीखने के बजाय आपस में लडऩा, मरना सीख लिया। इस देश ने किसे क्या नहीं दिया? लेकिन कुछ लोग हैं, जो इसे बर्बाद करने पर तुले हुए हैं।

इसमें कोई मतभेद नहीं कि इस देश के मूल निवासी सनातनी हैं। लेकिन सनातन संस्कृति से बैर करने वाले और ख़ुद सनातनी भी आज इसी संस्कृति के शत्रु हो चुके हैं। धर्मों के नाम बदले जा रहे हैं। मूर्खता करके लोग ख़ुद को सर्वश्रेष्ठ कह रहे हैं। चंद लोग हमें नचा रहे हैं और हम बंदर की तरह नाच रहे हैं। अपने ही देश, अपनी ही संस्कृति और अपने ही महत्त्वपूर्ण सांस्कृतिक विचारों का गला घोंटने की सोच हमारे अन्दर इस क़दर घर कर चुकी है कि हमें अपने ही लोगों पर अत्याचार करने में आनन्द आने लगा है।

क्या हम अब इंसान बने रहना नहीं चाहते? आज दुनिया के उन देशों में भी हम अपनी मूर्खताओं के चलते हँसी का पात्र बन गये हैं, जिन देशों ने कभी हमसे शरण और भीख माँगी थी। दुराग्रह की स्थितियाँ हमें व्यर्थ का विरोध करने को मजबूर कर रही हैं। यही तो कुछ लोग चाहते हैं; ताकि वे ऐश करते रहें और हम लड़ते-मरते रहें।

कश्मीर के पहलगाम में बस खाई में गिरी, 6 आईटीबीपी जवानों की मौत

अमरनाथ यात्रा की ड्यूटी से लौट रहे भारत-तिब्बत सीमा पुलिस के जवानों को ले जा रही एक बस कश्मीर के पहलगाम में हादसे का शिकार हो गयी है। इस हादसे में अब तक 6 जवानों की जान जाने की सूचना है, हालांकि, मृतकों की संख्या बढ़ सकती है क्योंकि घायलों में ज्यादातर गंभीर हैं। ब्रेक फेल होने से बस करीब 500 फीट नीचे गहरे खाई में गिर गई।

जानकारी के मुताबिक पहलगाम के पास हुए इस हादसे का शिकार हुई बस में 40 जवान सवार थे जिनमें 38 आईटीबीपी जबकि 2 जेके पुलिस के थे। यह हादसा चंदनबाड़ी के पास हुआ है और हादसे में बस के परखचे उड़ गए। जख्मी जवानों को एयरलिफ्ट कर श्रीनगर आर्मी अस्पताल भेजा गया है।

भारत-तिब्बत सीमा पुलिस के जवानों को ले जा रही बस एक खाई में जा गिरी। हादसे में 6 जवान शहीद हुए हैं जबकि 32 घायल हैं। हादसे के बाद रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू किया गया है। सेना के जवान घायलों के बचाव कार्य में जुटे हैं।

पुलिस के मुताबिक आईटीबीपी के जवान अमरनाथ यात्रा की ड्यूटी पूरी करने के बाद लौट रहे थे। बस आईटीबीपी कर्मियों को लेकर चंदनवाड़ी से वापस आ रही थी, लेकिन फ्रिसलान इलाके में ब्रेक फेल होने से दुर्घटना का शिकार हो गई, जो चंदनवाड़ी और पहलगाम के बीच पड़ता है।

बताया जा रहा है कि बस चंदनवाड़ी जा रही थी, लेकिन फ्रिसलान इलाके में ब्रेक फेल होने के बाद 500 फीट नीचे गहरे खाई में गिर गई। जख्मी जवानों को एयरलिफ्ट कर श्रीनगर आर्मी अस्पताल भेजा गया है।

कश्मीर के शोपियां में आतंकियों ने की एक कश्मीरी पंडित की हत्या, दूसरा घायल

कश्मीर के शोपियां में आतंकियों ने मंगलवार को एक और कश्मीरी पंडित की हत्या कर दी। आतंकियों ने उनपर हमला किया जिसमें एक भाई की मौत हो गयी जबकि उसका दूसरा भाई गंभीर रूप से घायल हुआ है।

‘तहलका’ की ‘जानकारी के मुताबिक आतंकियों ने शोपियां इलाके में हमला करके दोनों पर गोलीबारी की जिसमें एक की की मौत होने की खबर है जबकि दूसरा भाई घायल हो गया है। उसे अस्पताल में भर्ती किया गया है।

हाल के महीनों में आतंकियों ने कश्मीरी पंडितों को निशाना बनाया है और हाल के महीनों में यह इस समुदाय में चौथी हत्या है। यह घटना छोटेपोरा की है। यह हमला सेब के एक बाग़ में किया गया। सुरक्षा बलों ने इलाके को घेर लिया है।