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नेशनल हाईवे पर सड़क हादसों के डराने वाले आंकड़े, पिछले छह महीने में करीब 27,000 लोगों की गई जान

नई दिल्ली: देश के राष्ट्रीय राजमार्गों पर होने वाले सड़क हादसों को लेकर सरकार ने डरावने आंकड़े पेश किए हैं। केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने बुधवार को संसद को बताया कि साल 2025 के पहले छह महीनों (जनवरी से जून) में ही राष्ट्रीय राजमार्गों पर हुए सड़क हादसों में 26,770 लोगों की जान चली गई है।

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने राज्यसभा में एक लिखित जवाब में यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि इससे पहले, पूरे साल 2024 के दौरान राष्ट्रीय राजमार्गों पर कुल 52,609 जानलेवा दुर्घटनाएं हुई थीं। ये आंकड़े देश में सड़क सुरक्षा को लेकर एक गंभीर चिंता पैदा करते हैं।

सड़क हादसों को रोकने के लिए सरकार द्वारा उठाए जा रहे कदमों की जानकारी देते हुए गडकरी ने सदन को बताया कि भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) ने अधिक यातायात घनत्व वाले राष्ट्रीय राजमार्गों और एक्सप्रेसवे पर एडवांस्ड ट्रैफिक मैनेजमेंट सिस्टम (ATMS) स्थापित किया है।

उन्होंने बताया कि यह आधुनिक प्रणाली दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे, ट्रांस-हरियाणा एक्सप्रेसवे, ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे और दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे जैसे प्रमुख मार्गों पर लगाई गई है, ताकि यातायात का बेहतर प्रबंधन किया जा सके और हादसों को कम किया जा सके।

केरल से दोहा जा रही फ्लाइट में हवा मेंआई खराबी, 188 यात्रियों संग वापस लौटा विमान

केरल के कोझिकोड से कतर की राजधानी दोहा के लिए उड़ान भरने वाले एअर इंडिया एक्सप्रेस के एक विमान में बुधवार सुबह तकनीकी खराबी आ गई। उड़ान भरने के कुछ ही देर बाद पायलट ने विमान में आई गड़बड़ी की सूचना हवाई यातायात नियंत्रण (ATC) को दी, जिसके बाद विमान को 188 यात्रियों के साथ वापस कोझिकोड हवाई अड्डे पर सुरक्षित उतार लिया गया।

हवाई अड्डे के अधिकारियों ने बताया कि उड़ान संख्या IX 375 ने सुबह 9:17 बजे कोझिकोड से दोहा के लिए उड़ान भरी थी। उड़ान भरने के थोड़ी देर बाद ही पायलट को विमान के केबिन एयर कंडीशनिंग (AC) सिस्टम में कुछ तकनीकी समस्या का पता चला। जिसके बाद पायलट ने सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए विमान को वापस कोझिकोड लाने का फैसला किया। विमान करीब दो घंटे बाद सुबह 11:12 बजे हवाई अड्डे पर सुरक्षित लैंड हुआ। विमान में चालक दल समेत कुल 188 लोग सवार थे। अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि यह आपातकालीन लैंडिंग नहीं थी, बल्कि एक एहतियाती लैंडिंग थी।

इस घटना पर एअर इंडिया एक्सप्रेस के एक प्रवक्ता ने बताया, “हमारी एक उड़ान तकनीकी खराबी के कारण उड़ान भरने के बाद कोझिकोड लौट आई। हमने प्राथमिकता के आधार पर यात्रियों के लिए एक वैकल्पिक विमान की व्यवस्था की। देरी के दौरान सभी मेहमानों को जलपान उपलब्ध कराया गया, जिसके बाद उड़ान दोहा के लिए रवाना हो गई।”

पहलगाम हमले और बिहार वोटर लिस्ट पर भी विपक्ष ने उठाए सवाल, काली पट्टी बांधकर किया विरोध

अंजलि भाटिया
नई दिल्ली , 23 जुलाई
संसद के दोनों सदनों में लगातार तीसरे दिन भी गतिरोध और हंगामा देखने को मिला।
बिहार वोटर वेरिफिकेशन (एसआईआर) पहलगाम और ऑपरेशन सिंदूर मुद्दे को लेकर विपक्षी सदस्यों द्वारा लगातार नारेबाजी के बाद लोकसभा और राज्य सभा दोनों सदनों की कार्यवाही गुरुवार तक के लिए स्थगित कर दी गई।
अब दोनों सदनों में ऑपरेशन सिंदूर पर 28 और 29 जुलाई को चर्चा होगी।
दोनों सदनों में चर्चा के लिए 16-16 घंटे का समय निर्धारित किया गया है।समय आवंटित करने का निर्णय आज सुबह हुई कार्य मंत्रणा समिति (बीएसी) की बैठक के दौरान लिया गया।
बीते तीन दिनों से विपक्ष ऑपरेशन सिंदूर और बिहार वोटर वेरिफिकेशन जैसे मुद्दों पर लगातार हो रहे हंगामे के चलते अब तक कोई गंभीर चर्चा नहीं हो सकी है।
लोकसभा में आज विपक्षी सांसद नारेबाजी करते हुए वेल में चले आए। उन्होंने काले कपड़े लहराए। लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने उन्हें शांत रहने की अपील की।
स्पीकर ने विपक्षी सांसदों को नारेबाजी से मना किया और कहा आप सड़क का व्यवहार संसद में न करें। देश के नागरिक आपको देख रहे हैं। लोकसभा की कार्यवाही 20 मिनट तक चली, पहले दोपहर 12 बजे, फिर 2 बजे तक स्थगित कर दी गई।
लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने बुधवार को सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए कहा सरकार कहती है कि ऑपरेशन सिंदूर जारी है, जबकि डोनाल्ड ट्रंप पहले ही इसे बंद कराने का दावा कर चुके हैं। ट्रंप 25 बार कह चुके हैं कि उन्होंने सीजफायर कराया। ऐसे में सरकार किस आधार पर इसे अभी भी सक्रिय बता रही है? इससे साफ लगता है कि दाल में कुछ काला है।
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संसद परिसर के बाहर बिहार में मतदाता सूचियों के स्पेशल इंटेसिव रिविजन (SIR) मुद्दे पर संसद के मकर द्वार पर विपक्ष ने प्रदर्शन किया। विपक्षी सांसदों ने काली पट्टी बाँधकर और काले कपड़े पहन कर प्रदर्शन किया। इस दौरान नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और सपा प्रमुख अखिलेश यादव काले जैकेट ओर गले में काली पट्टी डालकर विरोध में हिस्सा लिया। उनके साथ कांग्रेस महासचिव एवं सांसद प्रियंका गांधी, डिंपल यादव समेत कई नेता भी थे।

किसी भी प्रकार की असुविधा या पेनल्टी से बचने के लिए समय पर भुगतान करना अनिवार्य होगा

अंजलि भाटिया 

नई दिल्ली ,23 जुलाई 

टोल टैक्स चोरी पर शिकंजा कसने के लिए केंद्र सरकार अब बड़ा कदम उठाने जा रही है। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने प्रस्तावित व्यवस्था के तहत टोल बकाया रहने पर वाहन मालिकों को इलेक्ट्रॉनिक चालान भेजने और भुगतान न करने की स्थिति में आरसी नवीनीकरण, बीमा और वाहन ट्रांसफर जैसी सेवाओं पर रोक लगाने की तैयारी कर ली है।

मंत्रालय ने 11 जुलाई को इस संबंध में अधिसूचना जारी करते हुए 30 दिन के भीतर हितधारकों से सुझाव और आपत्तियाँ मांगी हैं। इसके बाद यह व्यवस्था लागू कर दी जाएगी।

मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि नई प्रणाली के तहत टोल प्लाजा पर वैध और कार्यशील फास्टैग न होने पर वाहन की यात्रा का संपूर्ण विवरण जैसे तिथि, समय और स्थान के साथ वाहन मालिक को भेजा जाएगा। इसके बाद बकाया टोल का भुगतान करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक नोटिस जारी किया जाएगा।

भुगतान न करने पर वाहन मालिक आरसी नवीनीकरण, वार्षिक कर जमा, बीमा नवीनीकरण, स्वामित्व हस्तांतरण या एनओसी जैसी सेवाओं से वंचित रहेंगे।

अधिकारी ने बताया कि बड़ी संख्या में वाहन चालक अब भी फास्टैग को वाहन की विंडस्क्रीन पर नहीं लगाते या उसे सक्रिय नहीं करते, जिससे टोल का स्वतः भुगतान नहीं हो पाता। एनएचएआई की इलेक्ट्रॉनिक टोल कलेक्शन (ETC) प्रणाली के माध्यम से अब ऐसे वाहनों की पहचान की जा रही है।

अब बीमा कंपनियों के लिए भी एक नई जिम्मेदारी तय की जाएगी। मोटर वाहन अधिनियम की धारा 137 के तहत, बीमा जारी करने से पहले यह सुनिश्चित करना होगा कि वाहन पर कोई टोल बकाया न हो। यह पुष्टि राष्ट्रीय मोटर वाहन रजिस्टर के माध्यम से ऑनलाइन की जाएगी।

नई व्यवस्था के लागू होने के बाद वाहन मालिकों को अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता होगी। उन्हें नियमित रूप से अपने फास्टैग को सक्रिय और रिचार्ज रखना होगा। बकाया टोल शुल्क की समय-समय पर जांच करनी होगी।

प्रधानमंत्री मोदी ने सहित कई मंत्रियों ने चंद्रशेखर आजाद की जयंती पर दी श्रद्धांजलि

नई दिल्ली:  स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद की जयंती पर आज देश के प्रमुख नेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित कई केंद्रीय मंत्रियों और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने आजाद के साहस, बलिदान और देशभक्ति की भावना को याद करते हुए उनके योगदान को सराहा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि चंद्रशेखर आजाद वीरता और साहस के प्रतीक थे। उन्होंने भारत की स्वतंत्रता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और युवाओं को न्याय के लिए डटकर मुकाबला करने की प्रेरणा दी।

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आजाद को सच्चा देशभक्त बताते हुए कहा कि उन्होंने अपनी क्रांतिकारी भावना से अंग्रेजी शासन की नींव हिला दी।

उन्होंने कहा, “आजाद ने अंतिम सांस तक स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया और राष्ट्रसेवा का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया।”

भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने चंद्रशेखर आजाद को मां भारती का सच्चा सपूत बताया और कहा कि आजाद ने स्वदेशी, स्वराज और भारतीय संस्कृति के प्रति जन जागृति पैदा की और स्वतंत्रता आंदोलन को जन-आंदोलन में बदला।

केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने आजाद के समर्पण को प्रेरणादायी बताते हुए कहा कि उनका जीवन देशभक्ति का प्रतीक है।

उन्होंने कहा, “मातृभूमि को परतंत्रता की बेड़ियों से मुक्त कराने के लिए अपना सर्वस्व अर्पण करने वाले महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद जी की जयंती पर उन्हें शत्-शत् नमन। राष्ट्र के प्रति उनका समर्पण सदैव प्रेरणास्रोत रहेगा।”

केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने चंद्रशेखर आजाद को साहस और दृढ़ता का पर्याय बताया और कहा कि आजाद की बलिदान गाथा युगों-युगों तक प्रेरित करती रहेगी।

उन्होंने कहा, “मां भारती के अनन्य उपासक, दृढ़ता, साहस और आत्मविश्वास के पर्याय, महान क्रांतिकारी, वीर हुतात्मा चंद्रशेखर आजाद की जयंती पर कोटिश: नमन करता हूं! मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए आपने त्याग, संघर्ष और बलिदान की जो गाथा लिखी है, वह युगों-युगों तक राष्ट्र सेवा के लिए प्रेरित करती रहेगी। वीर सपूत के चरणों में बारंबार प्रणाम!”

केंद्रीय ऊर्जा मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने आजाद को वीरता का अद्वितीय प्रतीक बताते हुए उनके जीवन को माँ भारती की सेवा में समर्पित बताया।

उन्होंने कहा, “मां भारती की स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व जीवन खपा देने वाले, साहस व वीरता के अद्वितीय प्रतीक, महान क्रांतिकारी, अमर बलिदानी चंद्रशेखर आजाद जी की जयंती पर कोटिश: नमन करता हूं!”

केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने आजाद के क्रांतिकारी योगदान को याद करते हुए कहा कि उनका प्रसिद्ध कथन, “दुश्मन की गोलियों का हम सामना करेंगे, आजाद ही रहे हैं और आजाद ही रहेंगे।”

उन्होंने कहा, “स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रांतिवीर, अमर शहीद चन्द्रशेखर आजाद जी की जयंती पर उन्हें श्रद्धापूर्वक नमन करता हूं। चन्द्रशेखर आजाद जी ने अपनी अद्वितीय देशभक्ति से अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिलाने का काम किया और समस्त राष्ट्र को स्वतंत्रता के प्रति जागरूक किया। उन्होंने अपने जीवन के सर्वोत्तम क्षणों को देश की आज़ादी के लिए समर्पित कर दिया। उनका जीवन भारतीय स्वाधीनता संग्राम की एक अनमोल धरोहर है। “दुश्मन की गोलियों का हम सामना करेंगे, आजाद ही रहे हैं और आजाद ही रहेंगे”—उनका यह वाक्य आज भी हम सभी के हृदय में गूंजता है तथा राष्ट्रसेवा हेतु हर भारतीय को प्रेरित करता है।”

झारखंड हाईकोर्ट के 17वें चीफ जस्टिस बने तरलोक सिंह चौहान

रांची: झारखंड हाईकोर्ट के नवनियुक्त चीफ जस्टिस तरलोक सिंह चौहान ने बुधवार को पद एवं गोपनीयता की शपथ ली। रांची के राजभवन में आयोजित समारोह में राज्यपाल संतोष कुमार गंगवार ने उन्हें पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई। इसके साथ ही वे झारखंड के 17वें चीफ जस्टिस बन गए।

मुख्य सचिव अलका तिवारी ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा जारी चीफ जस्टिस की नियुक्ति संबंधी वारंट को हिंदी और अंग्रेजी में पढ़कर सुनाया। इस अवसर पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, झारखंड हाई कोर्ट के सभी न्यायाधीश, झारखंड सरकार के कई मंत्री, महाधिवक्ता राजीव रंजन, जस्टिस तरलोक सिंह चौहान के परिजन और राज्य सरकार के अधिकारी उपस्थित रहे।

9 जनवरी 1964 को हिमाचल प्रदेश के रोहड़ू में जन्मे जस्टिस तरलोक सिंह चौहान ने शिमला के बिशप कॉटन से स्कूली शिक्षा प्राप्त करने के बाद पंजाब यूनिवर्सिटी से कानून की डिग्री ली। उन्होंने 1989 में हिमाचल प्रदेश बार काउंसिल में वकील के रूप में नामांकन के बाद सभी विधायी शाखाओं में गहरा अनुभव अर्जित किया। वह 2014 में हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश और फिर स्थायी न्यायाधीश बने।

जस्टिस चौहान ने पर्यावरण कानून, बाल कल्याण और न्यायिक सुधारों में उल्लेखनीय कार्य किया। वे किशोर न्याय समिति, विधिक सेवा प्राधिकरण और हाईकोर्ट की कंप्यूटर एवं ई-कोर्ट समिति का नेतृत्व कर न्यायपालिका में डिजिटल परिवर्तन में अहम भूमिका निभा चुके हैं।

वे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारतीय न्यायपालिका का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। उनके नेतृत्व में हिमाचल प्रदेश न्यायपालिका ने ई-फाइलिंग, ऑनलाइन सेवाओं और डिजिटल न्यायिक प्रक्रियाओं में नए कीर्तिमान स्थापित किए।

झारखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के रूप में जस्टिस चौहान की नियुक्ति की अधिसूचना भारत के राष्ट्रपति कार्यालय से 15 जुलाई को जारी की गई थी।

जस्टिस चौहान से पहले झारखंड के चीफ जस्टिस के रूप में कार्यरत रहे जस्टिस एम.एस. रामचंद्र राव का तबादला त्रिपुरा हाईकोर्ट कर दिया गया है।

जस्टिस रामचंद्र राव ने 25 सितंबर 2024 को झारखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के रूप में शपथ ली थी, और उनके कार्यकाल में अदालत में कई अहम जनहित याचिकाओं और संवैधानिक मामलों की सुनवाई हुई।

संसद का दूसरा दिन भी हंगामे की भेंट चढ़ा, तीन बार स्थगित हुई लोकसभा की कार्यवाही विपक्ष ने उठाए SIR

ऑपरेशन सिंदूर और पहलगाम हमले जैसे मुद्दे, सरकार पर दोहरे रवैये का आरोप


 अंजलि भाटिया,
नई दिल्ली : मॉनसून सत्र के दूसरे दिन विपक्ष के हंगामे के कारण दोनों सदन नहीं चल पाए और आखिर में दिन भर के लिए स्थगित कर दिए गए।राज्यसभा में विपक्षी दलों के सांसदों ने ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा की मांग की और नियम 267 के तहत 12 नोटिस उप सभापति को दिए गए थे। इनमें से एक नोटिस केरल से माकपा सांसद पी संतोष ने उपराष्ट्रपति के अचानक इस्तीफे पर चर्चा कराए जाने पर दिया था। उपसभापति हरिवंश नारायण ने सभी नोटिस अस्वीकार कर दिए। शून्यकाल में हरिवंश नारायण ने समुद्री मार्ग से माल परिवहन विधेयक 2025 पर विचार के लिए प्रस्ताव पेश करने के लिए जहाजरानी मंत्री सर्बानंद सोनोवाल को बुलाया लेकिन कांग्रेसी सांसदों ने मांग की कि नेता प्रतिपक्ष को बोलने का मौका दिया जाए बाकी विपक्षी दलों के सांसदों ने भी बहुत हंगामा किया जिसके चलते 10 मिनट के भीतर ही सदन की कार्यवाही 12 बजे तक स्थगित कर दी गयी। बाद में जैसे ही 12 बजे प्रश्नकाल शुरू हुआ घनश्याम तिवारी ने कर घोषणा की कि उपराष्ट्रपति का इस्तीफा तुरंत प्रभाव से राष्ट्रपति ने स्वीकार कर लिया है। विपक्षी सांसदों के जोरदार हंगामे के चलते  पांच मिनट के भीतर सदन 2 बजे तक के लिए स्थगित कर दिया गया। दो बजे भी मुश्किल से तीन मिनट भी सदन नहीं चल पाया और बुधवार 11 बजे तक के लिए सदन की कार्यवाही स्थगित कर दी गयी। जबकि सोमवार को राज्यसभा में केवल 15 मिनट का व्यवधान हुआ था और शाम साढ़े चार बजे तक सदन सुचारू रूप से चला था ।
लोकसभा
संसद के मानसून सत्र का दूसरा दिन लोकसभा में  भारी हंगामे के बीच गया। विपक्ष के विरोध और नारेबाजी के चलते लोकसभा की कार्यवाही तीन बार स्थगित करनी पड़ी।
विपक्ष के हंगामे और विरोध-प्रदर्शन के कारण हर बार कुछ मिनटों में ही कार्यवाही को स्थगित करना पड़ा। सत्र के दौरान जैसे ही लोकसभा की कार्यवाही शुरू हुई, विपक्षी सांसद तख्तियां लेकर वेल में पहुंच गए और नारेबाजी शुरू कर दी। स्थिति को देखते हुए कार्यवाही पहले दोपहर 12 बजे तक, फिर 2 बजे तक, और अंततः पूरे दिन के लिए स्थगित कर दी गई। अब लोकसभा की कार्यवाही बुधवार सुबह 11 बजे से शुरू होगी।
दूसरे दिन विपक्षी सांसदों ने बिहार में मतदाता सूची के स्पेशल इंटेंसिव रिविजन (SIR) के खिलाफ संसद के अंदर और बाहर जोरदार विरोध दर्ज कराया। इसके साथ ही उन्होंने पहलगाम आतंकी हमला, ऑपरेशन सिंदूर और अन्य राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर प्रधानमंत्री से जवाब और संसद में विस्तृत चर्चा की मांग की।
सदन स्थगित होने से पहले केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने विपक्ष पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा, बीएसी (बिजनेस एडवाइजरी कमेटी) में तय हुआ था कि सबसे पहले ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर चर्चा होगी। चर्चा के लिए सरकार तैयार है, लेकिन विपक्ष हंगामे पर आमादा है। रिजिजू ने कहा कि चर्चा किस नियम के तहत होगी, यह तय होना बाकी है। सभी मुद्दों को एकसाथ उठाना संभव नहीं। बीएसी में यह भी सहमति बनी थी कि कोई सांसद प्लेकार्ड लेकर नहीं आएगा, फिर भी नियमों का उल्लंघन किया गया। उन्होंने आगे कहा कि संसद की कार्यवाही बाधित कर विपक्ष करोड़ों रुपये के टैक्सपेयर्स के पैसे की बर्बादी कर रहा है और इसे जनता को जवाब देना होगा। हम चर्चा के लिए तैयार हैं. फिर  भी ये सदन चलने नहीं देते हैं. यह दोहरा चरित्र ठीक नहीं है।

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लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी, समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव समेत कई विपक्षी सांसदों ने संसद भवन के मकर द्वार पर सीढ़ियों पर खड़े होकर विरोध प्रदर्शन किया। सांसदों ने तख्तियां लेकर SIR वापस लेने की मांग की और सरकार पर लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करने का आरोप लगाया।

संसद का दूसरा दिन भी हंगामे की भेंट चढ़ा,सरकार पर दोहरे रवैये का आरोप

अंजलि भाटिया,
नई दिल्ली: मॉनसून सत्र के दूसरे दिन विपक्ष के हंगामे के कारण दोनों सदन नहीं चल पाए और आखिर में दिन भर के लिए स्थगित कर दिए गए।राज्यसभा में विपक्षी दलों के सांसदों ने ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा की मांग की और नियम 267 के तहत 12 नोटिस उप सभापति को दिए गए थे। इनमें से एक नोटिस केरल से माकपा सांसद पी संतोष ने उपराष्ट्रपति के अचानक इस्तीफे पर चर्चा कराए जाने पर दिया था। उपसभापति हरिवंश नारायण ने सभी नोटिस अस्वीकार कर दिए। शून्यकाल में हरिवंश नारायण ने समुद्री मार्ग से माल परिवहन विधेयक 2025 पर विचार के लिए प्रस्ताव पेश करने के लिए जहाजरानी मंत्री सर्बानंद सोनोवाल को बुलाया लेकिन कांग्रेसी सांसदों ने मांग की कि नेता प्रतिपक्ष को बोलने का मौका दिया जाए बाकी विपक्षी दलों के सांसदों ने भी बहुत हंगामा किया जिसके चलते 10 मिनट के भीतर ही सदन की कार्यवाही 12 बजे तक स्थगित कर दी गयी। बाद में जैसे ही 12 बजे प्रश्नकाल शुरू हुआ घनश्याम तिवारी ने कर घोषणा की कि उपराष्ट्रपति का इस्तीफा तुरंत प्रभाव से राष्ट्रपति ने स्वीकार कर लिया है। विपक्षी सांसदों के जोरदार हंगामे के चलते  पांच मिनट के भीतर सदन 2 बजे तक के लिए स्थगित कर दिया गया। दो बजे भी मुश्किल से तीन मिनट भी सदन नहीं चल पाया और बुधवार 11 बजे तक के लिए सदन की कार्यवाही स्थगित कर दी गयी। जबकि सोमवार को राज्यसभा में केवल 15 मिनट का व्यवधान हुआ था और शाम साढ़े चार बजे तक सदन सुचारू रूप से चला था ।
लोकसभा
संसद के मानसून सत्र का दूसरा दिन लोकसभा में  भारी हंगामे के बीच गया। विपक्ष के विरोध और नारेबाजी के चलते लोकसभा की कार्यवाही तीन बार स्थगित करनी पड़ी।
विपक्ष के हंगामे और विरोध-प्रदर्शन के कारण हर बार कुछ मिनटों में ही कार्यवाही को स्थगित करना पड़ा। सत्र के दौरान जैसे ही लोकसभा की कार्यवाही शुरू हुई, विपक्षी सांसद तख्तियां लेकर वेल में पहुंच गए और नारेबाजी शुरू कर दी। स्थिति को देखते हुए कार्यवाही पहले दोपहर 12 बजे तक, फिर 2 बजे तक, और अंततः पूरे दिन के लिए स्थगित कर दी गई। अब लोकसभा की कार्यवाही बुधवार सुबह 11 बजे से शुरू होगी।
दूसरे दिन विपक्षी सांसदों ने बिहार में मतदाता सूची के स्पेशल इंटेंसिव रिविजन (SIR) के खिलाफ संसद के अंदर और बाहर जोरदार विरोध दर्ज कराया। इसके साथ ही उन्होंने पहलगाम आतंकी हमला, ऑपरेशन सिंदूर और अन्य राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर प्रधानमंत्री से जवाब और संसद में विस्तृत चर्चा की मांग की।
सदन स्थगित होने से पहले केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने विपक्ष पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा, बीएसी (बिजनेस एडवाइजरी कमेटी) में तय हुआ था कि सबसे पहले ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर चर्चा होगी। चर्चा के लिए सरकार तैयार है, लेकिन विपक्ष हंगामे पर आमादा है। रिजिजू ने कहा कि चर्चा किस नियम के तहत होगी, यह तय होना बाकी है। सभी मुद्दों को एकसाथ उठाना संभव नहीं। बीएसी में यह भी सहमति बनी थी कि कोई सांसद प्लेकार्ड लेकर नहीं आएगा, फिर भी नियमों का उल्लंघन किया गया। उन्होंने आगे कहा कि संसद की कार्यवाही बाधित कर विपक्ष करोड़ों रुपये के टैक्सपेयर्स के पैसे की बर्बादी कर रहा है और इसे जनता को जवाब देना होगा। हम चर्चा के लिए तैयार हैं. फिर  भी ये सदन चलने नहीं देते हैं. यह दोहरा चरित्र ठीक नहीं है।

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लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी, समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव समेत कई विपक्षी सांसदों ने संसद भवन के मकर द्वार पर सीढ़ियों पर खड़े होकर विरोध प्रदर्शन किया। सांसदों ने तख्तियां लेकर SIR वापस लेने की मांग की और सरकार पर लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करने का आरोप लगाया।

नागरिक पहचान का चुनावी द्वंद्व

शिवेंद्र राणा

दिल्ली हिंदुस्तान का दिल है। यह थोड़ा रूमानी मिसरा है। वास्तव में बिहार भारत का दिल है; क्योंकि राष्ट्रीय परिदृश्य जैसा भी हो, बिहार की चर्चा के बिना अधूरा ही रहता है। चाहे महाराष्ट्र में मनसे कार्यकर्ताओं के निशाने पर बिहारी अवाम हो या बिहार का आसन्न विधानसभा चुनाव। इसी अनुरूप बिहार की चुनावी सरगर्मी में मतदाता पहचान-पत्र और मतदाता सूची को लेकर पैदा विवाद विद्रूप हो चुका है।

हुआ यूँ कि गत 24 जून को चुनाव आयोग ने बिहार में मतदाता सूची का संशोधन और सत्यापन करने हेतु निर्देश जारी किया, जिसके लिए लगातार हो रहे पलायन, युवाओं की मतदान पात्रता और अवैध प्रवासियों का नाम निर्वाचन सूची में शामिल होने जैसे कारण गिनाये। ये प्रथम दृष्टया वाजिब से लगते हैं; लेकिन इसके बाद इस प्रक्रिया में कई अगर-मगर लगे, जिनमें आयोग ने ये शर्तें लगायीं कि 2003 की मतदाता सूची को सत्यापन का आधार माना जाएगा तथा इसमें शामिल लोग और उनके बच्चे ही मतगणना फार्म भरने के योग्य होंगे। यानी बिहार के कुल सूचिबद्ध 7.9 करोड़ मतदाताओं में से पाँच करोड़ मतदाता, जो 01 जनवरी, 2003 तक संशोधित और सत्यापित मतदाता सूची में शामिल थे, उनको वोटर लिस्ट का हवाला देना है। बचे हुए लोगों से चुनाव आयोग द्वारा प्रस्तावित 11 डॉक्यूमेंट में से कम-से-कम एक प्रस्तुत करना होगा, तभी वे मतदान के योग्य माने जाएँगे। इनमें सक्षम अधिकारी द्वारा निर्गत जाति प्रमाण-पत्र, सरकारी कर्मचारियों के पहचान-पत्र या पेंशन भुगतान आदेश, वन अधिकार प्रमाण-पत्र, स्थायी आवासीय प्रमाण-पत्र, सक्षम अधिकारी द्वारा जारी जन्म प्रमाण-पत्र, पासपोर्ट, शैक्षणिक प्रमाण-पत्र, भूमि / मकान आवंटन का सरकारी प्रमाण-पत्र इत्यादि शामिल हैं। उधर चुनाव आयोग ने आधार, मनरेगा और राशन कार्ड को इस वैध दस्तावेज़ों की सूची से बाहर रखा है।

इलेक्शन कमीशन के इस आदेश और सत्यापन प्रक्रिया के प्रकाश में आने के साथ ही राज्य से लेकर केंद्र तक की सरकार और विपक्ष में आरोप-प्रत्यारोप की राजनीतिक टकराव शुरू हो गया। और सियासत तथा नागरिक पहचान से जुड़ा यह विवाद राजनीतिक गलियारों से होते हुए न्यायपालिका की देहरी तक पहुँच गया। साथ ही विपक्षी विरोध प्रदर्शन राज्यव्यापी बंद के आह्वान में तब्दील हो गया। चूँकि 10 जुलाई को सर्वोच्च न्यायालय में मतदाता सूची के पुनरीक्षण पर सुनवाई होने वाली थी, इसलिए एक दिन पहले यानी 09 जुलाई को इंडिया गठबंधन की ओर बिहार बंद आयोजित किया गया, जिसे सत्ता पक्ष यानी एनडीए ने विपक्षी दलों द्वारा न्यायपालिका पर दबाव बनाने के रणनीतिक प्रयत्न के रूप में आरोपित दुराग्रह कहा। इस प्रदर्शन में शामिल कांग्रेस, राजद और वाम दलों द्वारा सरकार और आयोग पर यह आरोप लगाया जा रहा है कि जैसे महाराष्ट्र में चुनाव चोरी हुआ था, वैसी ही कोशिश बिहार में भी हो रही है। उसके लिए महाराष्ट्र मॉडल से अलग यहाँ बिहार में नया मॉडल लाया जा रहा है। साथ ही साढ़े चार करोड़ लोगों का नाम काटने की कोशिश हो रही है। उनका आरोप है कि सरकार पोषित इस कार्यवाही में चुनाव आयोग अपनी संवैधानिक मर्यादा से इतर अनुचित सहयोग कर रहा है। सवाल है कि आज़ादी के 75 वर्षों बाद भी देश नागरिक पहचान के दस्तावेज़ों की प्राथमिकता, उनका सुनिश्चित आधार और एकरूपता निर्धारित नहीं कर पाया, यह कैसी आपत्तिजनक स्थिति है?

‘औरत, बेटा, घोड़ा और ग़ुलाम को पीटते रहना चाहिए, भले ही ग़लती हो या नहीं।’ -आचार्य कृपलानी ने अपनी आत्मकथा में इस फ़ारसी कहावत का उल्लेख किया है। असल में देश की ताक़तवर राजनीतिक जमात की नज़र में आम जनता की स्थिति भी ऐसी है। यानी जब मन करे, इन्हें लतियाया और धकियाया जा सकता है। चाहे वह विकास के नाम पर हो, क़ानून के नाम पर हो या नागरिक पहचान के नाम पर। वर्षों से सरकार से लेकर न्यायपालिकाएँ तक यह तय ही नहीं कर पा रही हैं कि देश में कॉमन नागरिक पहचान का दस्तावेज़ क्या हो? महाशक्ति बनने की आकांक्षा पाले जनतंत्र के लिए इससे भद्दा मज़ाक़ कोई दूसरा नहीं हो सकता। यह समझना कठिन नहीं है कि आख़िर दो वक़्त की रोटी की लड़ाई लड़ने वाला तबक़ा रोज़ नये प्रकार के पहचान-पत्र की लड़ाई कैसे लड़ेगा?

ख़ैर, यहाँ असल दिक़्क़त राजनीतिक विवाद के केंद्र में सत्ता के दाँव-पेंच या रस्साकशी का नहीं है। यहाँ वास्तविक समस्या सरकार एवं प्रशासनिक तंत्र की नीयत की है। आख़िर इतने वर्षों में नागरिक पहचान-पत्र का स्थायी अधिकार सुनिश्चित नहीं हो पाना किसकी विफलता है? जबकि यह तय किया जाना प्राथमिकता होनी चाहिए थी। दूसरी बात, सरकार एवं आयोग ने मतदाता सूची पुनरीक्षण के लिए अवैध प्रवासियों को भी कारण माना है। बिहार के उपमुख्यमंत्री इसे एक बड़ी चुनौती बता रहे हैं। वैसे इस सम्बन्ध में प्राप्त आँकड़े भी ज़रा डरावने हैं। जैसे 2025 में केवल किशनगंज ज़िले से जुलाई महीने के पहले हफ़्ते में दो लाख से अधिक लोगों ने स्थायी निवास प्रमाण-पत्र के लिए आवेदन किया। वहीं मुज़फ़्फ़रपुर ज़िले में क़रीब एक लाख आवेदन आये। यूँ भी बिहार का सीमांचल इलाक़ा नेपाल और बांग्लादेश के रास्ते आने वाले अवैध प्रवासियों से प्रताड़ित रहा है। वर्ष 2019 में ही गृह मंत्रालय का अनुमान था कि बिहार में लगभग 10 लाख घुसपैठियों हैं, जिनमें अधिकांश सीमांचल के इलाक़े में हो सकते हैं। इनके अवैध तरीक़े से आधार कार्ड और वोटर कार्ड प्राप्त करने की सूचना एवं आँकड़े न केवल सरकार और प्रशासनिक स्तर पर परेशानी भरे हैं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से अत्यंत भयावह हैं। यदि सरकार और प्रशासनिक तंत्र के आरोपों में रत्ती भर भी सत्यता है कि इतनी बड़ी संख्या में अवैध रूप से रोहिंग्या और बांग्लादेशी प्रवासियों ने वोटर आईडी और आधार समेत अन्य नागरिक पहचान-पत्र की सुविधा में सेंधमारी की है, तो यह अत्यंत विकट अवस्था का सूचक है।

इसके बावजूद भी यह सवाल बनता है कि यदि अवैध प्रवासी या अनाधिकृत शरणर्थियों की इतनी बड़ी संख्या बिहार में मौज़ूद होने की जानकारी सरकार एवं प्रशासन को थी, तब क्या वह इसके निस्तारण के लिए चुनावी मुहूर्त का इंतज़ार कर रही थी या उससे भी कहीं बड़ा सवाल इस मुद्दे से जुड़ा बहुसंख्यक समाज के भावनात्मक उद्वेलन का था? ताकि उसके मतों का ध्रुवीकरण इस उपजे भय के द्वारा संभव हो सके। राज्य में इसी वर्ष अक्टूबर अथवा नवंबर के पहले हफ़्ते में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित है। अत: विपक्ष की एक मुख्य आपत्ति चुनाव के निकट आने पर आयोग की इस संशोधन की क़वायद पर भी है। विपक्ष इसे अपने चुनावी अभियान के विरुद्ध सत्ता समर्थित निर्वाचन आयोग की अनैतिक कार्यवाही बता रहा है। यानी विपक्ष का आरोप है कि चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था राजनीतिक विवादों में सत्ता पक्ष आधारित कार्य में संलग्न है। कांग्रेस नेता राहुल गाँधी ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 के परिणाम पर सवाल उठाते हुए मतदान केंद्र के वेबकास्टिंग और सीसीटीवी फुटेज की माँग की थीं, जिसे आयोग ने सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देश और मतदाता की निजता उल्लंघन का हवाला देते हुए देने से इनकार कर दिया। हालाँकि जिस तरह के कटु आरोप इलेक्शन कमीशन पर विगत वर्षों में विपक्ष द्वारा निरंतर लगाये जा रहे हैं, उसमें आयोग को अपनी निष्पक्षता सिद्ध करने के लिए यदि आगे बढ़कर आना पड़े, तो आना चाहिए। यही राष्ट्र के संवैधानिक-लोकतांत्रिक भविष्य का सुखद प्रयास होगा। इसके अतिरिक्त विपक्ष ने ग़रीबों, भूमिहीनों के ज़मीन, मकान के दस्तावेज़ न होने या उनके शैक्षणिक प्रमाण-पत्र न होने अथवा दूसरे राज्यों में रह रहे प्रवासियों की परेशानी का वाजिब मुद्दा उठाया है, जिनका व्यवस्थित उत्तर सरकार या आयोग को देना है।

अब यहाँ प्रश्न प्रशासनिक नियम का नहीं, सत्ता की नीयत का है और नीयत का यही सवाल न्यायपालिका और चुनाव आयोग जैसी अन्य संवैधानिक संस्थाओं से भी है। क्योंकि व्यवस्था की स्थिति तो पहले से ही संदिग्ध रही है; और बहुत हद तक अकर्मण्य भी रही है। संभवत: ब्रिटिश सत्ता से आज़ादी और जनतांत्रिक यात्रा की शुरुआत के साथ ही। वैसे याद हो कि सीएए, एनआरसी के विवाद के दौरान देश के पूर्वी राज्यों में भारतीय सेना या प्रशासन के लिए अपनी सेवाएँ दे चुके लोगों का नागरिकता सूची से बाहर हो जाने की अत्यंत दु:खद सूचनाएँ भी चर्चा में थीं। यह प्रशासनिक तंत्र और संवैधानिक-सांविधिक संस्थाओं की विफलता ही थी, जो सुपात्र और कुपात्र में भेद करने में अक्षम साबित होती रही है।

ख़ैर, यह तो हुई आपत्तियों और आरोपों की बात, किन्तु इस विवाद के दूसरे पक्ष को भी समझना होगा। और यह सवाल विपक्ष से हैं कि क्या सत्ता प्राप्ति की अनधिकृत त्वरा में वह अवैध अप्रवासियों और घुसपैठियों यानी बांग्लादेशी रोहिंग्याओं के संकट का सत्य जानकार भी आँखें मूँदे तो नहीं रहा है? और क्या वह संवैधानिक संस्थाओं की अधिकारिता और कार्यविधि को लेकर अनावश्यक संशय तथा विवाद पैदा करने का प्रयास तो नहीं कर रहा है? जैसा कि गुरुवार यानी 10 जुलाई को हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को राहत देते हुए उसकी स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (एसआईआर) को रोकने से इनकार कर दिया है। कोर्ट ने आपत्ति के रूप में उठाये गये प्रश्नों का उत्तर देते हुए कहा कि आयोग को मतदाता सूची को संशोधित करने की शक्ति प्राप्त है। हालाँकि न्यायालय ने एक अहम टिप्पणी करते हुए यह भी कहा कि ग़ैर-नागरिकों को मतदाता सूची से हटाने का अधिकार गृह मंत्रालय को है न कि चुनाव आयोग को। उसने कहा कि आप नागरिकता के मामले की ओर क्यों जा रहे हैं? जबकि यह गृह मंत्रालय का विषय है। इस पर आयोग का तर्क था कि भारत का मतदाता बनने के लिए अनुच्छेद-326 के तहत नागरिकता की जाँच आवश्यक है।

अब 28 जुलाई को न्यायालय द्वारा अगली सुनवाई पर जो भी निर्णय हो। लेकिन वर्तमान स्थिति यह है कि बिहार में उपजा मतदाता सूची संशोधन और सत्यापन का विवाद पूरे देश में चुनावी प्रक्रिया जनित गहरा विवाद उत्पन्न करने वाला है। असल में सत्ता के आकांक्षी स्वार्थी, शातिर वर्ग के राजनीतिक द्वंद्व के रूप में जब राष्ट्रीय समस्याओं को अवसर के रूप में भुनाने पर उतारू हो जाएँ, तब देश को ऐसे अप्रिय विवादों का सामना करना पड़ता है। उपरोक्त सवालों के जवाब, उनके विश्लेषण भारतीय लोकतंत्र की अस्मिता एवं उसकी संवैधानिक गरिमा की सुनिश्चितता के लिए अत्यावश्यक हैं। इससे संवैधानिक संस्थाओं की शुचिता और पक्ष-विपक्ष, सभी राजनीतिक दलों की नैतिक गरिमा की सीमा भी तय होगी।

सच का मुखौटा, झूठ का साम्राज्य: पश्चिमी मुल्कों की ढोंग वादी राजनीति

ब्रिटिश साम्राज्य की कलम से खींची गई मनमानी सीमाओं ने आज भी दुनिया को खून-खराबे में झोंक रखा है। 2003 के इराक युद्ध से लेकर यूक्रेन संकट तक—पश्चिम का हर “महान” उद्देश्य असल में झूठ का जाल साबित हुआ है। वे कहते हैं “मानवाधिकार”, मगर करते हैं “तेल की लूट”। वे गाते हैं “लोकतंत्र”, मगर खेलते हैं “तख्तापलट का खेल”। यह कोई भूल नहीं, बल्कि सौ साल पुरानी नीति है—जिसमें सच को दफन करके झूठ को सत्ता का हथियार बनाया गया। आज भी, जब यूरोप रूसी गैस का मोह नहीं छोड़ पा रहा, अमेरिका अफ्रीका को “सहयोग” के नाम पर निचोड़ रहा है, और ब्रिटेन अपने औपनिवेशिक पापों की मिट्टी ढकने में लगा है—क्या दुनिया इस ढोंग का अंत देख पाएगी? 

बृज खंडेलवाल द्वारा

पश्चिमी देशों का अंतरराष्ट्रीय मामलों में ढोंग कोई नई बात नहीं है। ये एक ऐसी चाल है जो ब्रिटिश औपनिवेशिक नीतियों से शुरू हुई और आज तक चल रही है। पश्चिमी देश जो कहते हैं, वो करते नहीं—ये उनकी पुरानी आदत है। ब्रिटिश साम्राज्य ने दुनिया को बांटने और झगड़े पैदा करने में महारत हासिल की थी, और आज की कई समस्याएं उसी की देन हैं।

ब्रिटिश साम्राज्य ने दुनिया को टुकड़ों में बांटा। 1916 का साइक्स-पिकोट समझौता इसका बड़ा सबूत है, जिसने मध्य पूर्व को मनमाने ढंग से बांट दिया, बिना वहां के लोगों की परवाह किए। इससे इराक, सीरिया और इजरायल-फलस्तीन जैसे झगड़े पैदा हुए। 1919 का वर्साय संधि जर्मनी को सजा देकर द्वितीय विश्व युद्ध की ज़मीन तैयार की। 1947 में भारतीय सब कॉन्टिनेंट में सीमाएं अधूरी छोड़ीं, जिससे आज तक तनाव है। मैकमोहन-हुसैन पत्राचार में अरबों से आज़ादी का वादा किया, मगर बाद में धोखा दे दिया। ये सब गलतियां नहीं, बल्कि जानबूझकर की गई चालबाज़ियां थीं ताकि भविष्य में तनाव बना रहे और पश्चिमी देश फायदा उठा सकें। अफ्रीका और एशिया के तमाम मुल्क बेवजह विभाजित किए गए, जहां आज भी आग सुलग रही है।

एक्सपर्ट्स बताते हैं, 2003 में इराक पर हमला इसका बड़ा नमूना है। अमेरिका और ब्रिटेन ने दावा किया कि सद्दाम हुसैन के पास खतरनाक हथियार हैं, जो बाद में झूठ साबित हुआ। डाउनिंग स्ट्रीट मेमो से पता चला कि उन्हें सच पता था, फिर भी झूठ बोला गया। इस हमले ने इराक को बर्बाद कर दिया, आईएसआईएस जैसा आतंकी समूह पैदा हुआ, और लाखों लोग मरे। मगर कोई जवाबदेही नहीं। लीबिया में 2011 में “मानवता” के नाम पर हमला किया, जो बाद में अराजकता में बदल गया। सीरिया में चुनिंदा बागियों को समर्थन देकर गृहयुद्ध को और भड़काया।

अंतरराष्ट्रीय मामलों की जानकार मुक्ता बेंजामिन कहती हैं, “रूस के साथ यूरोप का रवैया भी दोमुंहा है। यूक्रेन पर रूस के हमले की निंदा तो करते हैं, मगर 2022 तक रूसी गैस पर निर्भर रहे। ऊपर से इंसाफ की बात करते हैं, नीचे से मुनाफे की। अफ्रीकी देशों के साथ व्यापार में भी यही ढोंग है। यूरोपीय यूनियन के “पार्टनरशिप” समझौते गरीब देशों को फायदा कम, नुकसान ज़्यादा देते हैं। ये औपनिवेशिक लूट का नया रूप है।”

पुराने झूठ भी कम नहीं। 1953 में ईरान में मोसद्दक को हटाने के लिए अमेरिका और ब्रिटेन ने तख्तापलट किया, क्योंकि उसने तेल का राष्ट्रीयकरण किया था। इसे साम्यवाद के खिलाफ बताया गया, मगर असल में तेल का लालच था। इससे 1979 की इस्लामी क्रांति की नींव पड़ी। सऊदी अरब जैसे दोस्तों के मानवाधिकार उल्लंघन पर चुप्पी और चीन जैसे दुश्मनों की आलोचना भी इस दोहरे चरित्र को दिखाती है।

पब्लिक कॉमेंटेटर प्रोफेसर पारस नाथ चौधरी कहते हैं, “झूठ बोलना बुरा है, लेकिन झूठ के जाल पर जीवन बसर करना और भी बुरा है। पश्चिमी राजनीति संस्थागत झूठ के अलावा कुछ भी नहीं है। यूरोप रूस के साथ अपने संबंधों की बात करते समय झूठ बोलता है, यह तथ्य छिपाते हुए कि यूक्रेन के खिलाफ रूस की बिना उकसाव की आक्रामकता के बावजूद, उसने ऊर्जा क्षेत्र में पुतिन के देश के साथ संबंध तोड़े नहीं हैं। वह व्यापार और अर्थव्यवस्था में कम विकसित देशों के साथ व्यवहार करते समय भी झूठ बोलता है। ऐसे उदाहरणों की सूची लंबी है। याद करें तो पश्चिम के झूठ का पहला और सबसे चौंकाने वाला उदाहरण 2003 में सद्दाम हुसैन के इराक पर आक्रमण था। तब से वह असत्य बोलने और नैतिक बुलंदियों से गिरने का दोषी रहा है। हालाँकि, इसने पश्चिम और उसकी उपलब्धियों को धूमिल कर दिया है। अब वह केवल निर्दयी स्वार्थी और लाभ के पीछे भागने वालों का समूह लगता है। संयोग से, सच्चाई के मामले में दुनिया का बाकी हिस्सा भी बेहतर नहीं कर रहा है। विश्व स्तर पर झूठ के खिलाफ एक आंदोलन शुरू करने की आवश्यकता है। हम एक उच्च सभ्यता का निर्माण तभी कर सकते हैं जब हम असत्य तथ्यों का उपयोग करना बंद कर दें।”

ये सारी समस्याएं ब्रिटिश औपनिवेशिक ढोंग से शुरू हुईं, जिन्होंने वादे तोड़े, सीमाएं अधूरी छोड़ीं, और लोगों को बांट दिया। आज कश्मीर, फलस्तीन, इराक—सब उसी की देन हैं। पश्चिमी देशों का “महानता” का दावा अब खोखला लगता है। वो बस अपने फायदे के लिए झूठ बोलते हैं। दुनिया को बेहतर बनाने के लिए झूठ के खिलाफ एक आंदोलन चाहिए। जब तक कहने और करने में फर्क रहेगा, पश्चिमी देशों की साख डूबती रहेगी, और दुनिया उनकी चालबाज़ी का खामियाज़ा भुगतेगी।