Home Blog Page 1285

चुनावों में जीत के इरादे से कांग्रेस में मंथन

कांग्रेस में बड़ा मंथन चल रहा है। सत्ता संभाल रही भाजपा दावे पर दावे, नित नए घोटाले और पुराने घोटालों को और बढऩे से नहीं रोक पा रही है। उसे अभी आस है देश में संकीर्ण मुद्दों की आंच में रोटियां सेंकने की। उधर पुरानी कांग्रेस की 25 लोगों की कांग्रेस कार्यसमिति को युवा पार्टी के युवा राष्ट्रीय अध्यक्ष ने भंग कर दिया है। पुराने पदाधिकारियों में हताशा और नयों में उत्साह के सुर जगने लगे हैं।

हाल-फि लहाल कांग्रेस कार्य समिति जो पार्टी संबंधी फैसले लेने की सबसे बड़ी कमेटी रही है वह अब स्टीयरिंग कमेटी में बदल गई है। 17-18 फ रवरी को हुई प्लेनरी बैठक में राहुल गांधी के पार्टी अध्यक्ष चुने गए। ऐसी इस दौरान स्टीयरिंग कमेटी (तैयारी बैठक) तमाम प्रस्तावों की तैयारी कर लेगी जिन पर चर्चा होनी है और सत्रों के दौरान उन पर सहमति बनाई जानी है।

इसी बैठक के दौरान 25 सदस्यों की कार्यसमिति में आने के लिए नेताओं में होड़ सी है। हालांकि पार्टी के नियमों के तहत कमेटी इन में से 10 को चुनाव के जरिए लेती है। कांग्रेस अध्यक्ष का यह अधिकार है कि वे चाहें तो पूरी टीम ही चुन लें। पार्टी ऑफि स में और कांस्टीयूशन क्लब तक में चर्चा यही है कि कार्यसमिति में कौन आएगा और कौन नहीं। राहुल गांधी जब पार्टी अध्यक्ष नहीं बने थे तो उनकी मां सोनिया गांधी के प्रति रहे वफ ादार लोगों को ‘पुराने चौकीदारÓ कहा जाता था। अब पार्टी के नए स्वरूप में उन्हें डर सता रहा है कि कहीं वे हाशिए पर न पहुंच जाएं। हालांकि नए अध्यक्ष ने यह वादा किया था कि उनकी टीम में न केवल युवा बल्कि अनुभवी लोग भी होंगे। यह भी माना जा रहा हे कि बाहुबल, धनबल के महाबली भी इस कार्यसमिति में आने के लिए लालयित हैं।

यह सब जान-देख कर ही राहुल गांधी को यह लग गया कि ऐसी गंभीर दशा में उन्हें कैसे उस पार्टी को संभालना है जिसके हाथ से सत्ता की कुर्सी सरक गई। कहने वाले यह भी कहते हैं कि वे उन लोगों से घिरे हैं। जिन्हें ज़मीनी हालात का अंदाजा नहीं है।

उधर कांग्रेस के दिग्गज अनुभवी नेताओं का मानना है कि वे ऐसी टीम बनाने में कामयाब हो जाएंगे जो जनता में भरोसा इस कदर पैदा कर पाएंगे कि मतदाता मशीनों के जरिए होने वाली धांधली भी कामयाब न हो। हिंसा के जरिए लोगों को यंत्रणा देकर मतदान न करने देने का खेल न खेला जा सके। जनता को पहले से पता हो कि वह वोट जिसे दे रही है वह दलबदलू, बाहुबली और धनबली तो नहीं है। नई टीम को पता होगा कि उसकी क्या रणनीति होगी बूथ मैनेजमेंट, घर-घर प्रचार और मतदाताओं की सुरक्षा के संबंध में। जिन लोगों को उनके स्वास्थ्य के चलते बाहर जाने की राह दिखने लगी है उनमें अंबिका सोनी, जनार्दन द्विवेदी, मोहन प्रकाश और सीपी जोशी हैं। पुरानी टीम में अहमद पटेल, गुलाम नबी आज़ाद, मल्लिकार्जुन खडग़े, एके एंटनी आदि हैं। कांग्रेस पार्टी में पिछले साल चुनाव की जिम्मेदारी संभालने वाले मुल्ला पल्ली रामचंद्रन के नई कमेटी में आने की संभावना है।

कांग्रेस पार्टी पर ध्यान देने वाले विशेषज्ञों के अनुसार सचिन पायलट, सुष्मिता देब, मिलिंद देवड़ा, देवेंद्र हुडा और ज्योतिरादित्य सिंधिया इस नई कमेटी में हो सकते हैं। तमाम विवादों के बावजूद शशि थरूर पार्टी के नए प्रोफेशनल ग्रुप के प्रभारी हैं और अभी उनकी नई किताब ‘मैं हिंदू क्यों हूंÓ खासी चर्चा में भी रही है। कांग्रेस में शुरू से ही बु़िद्धजीवियों, साहित्य और कला के प्रति एक संवेदनशीलता रही है। पार्टी के नए आलाकमान ने उसे अपनाए रहने का यदि वाकई इरादा बनाया है तो वह वाकई बड़ी बात है।

कुछ लोग यह भी मानते हैं कि शायद अमरिंदर सिंह, पृथ्वीराज चौहान और कुमारी शैलजा

फि र कांग्रेस कमेटी में हों। पार्टी की रणनीति तैयार करने में और उसमें वक्त-ज़रूरत अनुसार बदलाव करने में सक्षम भी रहे हैं।

राहुल गांधी ने सचिन पायलट को राजस्थान में मनोनीत किया। वहां अभी उप-चुनाव हुए। इन में उन्होंने कांग्रेस को फि र जीवित किर दिया । इस कार्य में उन्होंने दिग्गज नेता अशोक गहलोत से राय-मशविरा भी किया और कामयाब रहे। हालांकि हरियाणा कांग्रेस को फि र से खड़ा नहीं कर पाए और कार्यकर्ता भी उनसे विमुख रहे। उन्हें शायद कोई नया काम दिया जाए।

अपनी नजऱ और रणनीति को खासा पैना बनाते जा रहे हैं राहुल गांधी। उन्होंने पिछले कई महीनों में कई खासी जिम्मेदारियां कइयों को सौंपी और उनकी योग्यता भी जांची-परखी। उन्होंने विभिन्न राज्यों के दौरों के दौरान और पार्टी संगठन में लंबे अर्से से काम करते हुए पार्टी के उपयुक्त नई युवा पौद की पहचान भी की है।

कांग्रेस के अंदर नए से नए जुझारू तेवर के लोगों के लिए पार्टी में आने और आगे बढऩे के ढेरों मौके हैं। ऐसे युवा नेताओं की एक लंबी कतार है जिसे अपने चुने जाने की ताब है। युवा राहुल गांधी यह जानते-समझते हैं कि देश के युवाओं को वे ही प्रगति के पथ पर ले जा सकते हैं। देश को भ्रष्टाचार और संकीर्ण सेनाओं की कुरूपता से बचा सकते हैं और पूरे देश में सद्भाव और शांति को ला सकते हैं। चुनौतियां ढेरों हैं और संघर्ष भी जटिल है। राहुल और हर कांग्रेसी यह जान-समझ रहा है।

नारी संघर्ष की दास्तान है, दुनिया की तहरीक

यहां तो जब किसी जन्म की सूचना आती है तो पहली चीज़ जो सभी जानना चाहते हैं वह यह है कि यह लड़की है या लड़का। इसमें तों कोई अपवाद ही नहीं है कि किस लिंग मे हम जन्मे हैं – उसके अनुसार ही हमारी शरीर संरचना होती है- जो ताजिन्दगी साथ होती है। हालांकि हमारे लिंग को यानी – लड़का है या लड़की को इतना प्रचारित कर दिया जाता है साथ ही उस पर तरह तरह की बंदिशें लगा दी जाती है। क्या प्रकृति पुरूष और स्त्री बतौर अलग-अलग जैविक भूमिकाएं तय करती है, क्या यह लिंग आधारित प्रणाली बनाती है जिसे खास तौर पर मानव खासतौर पर तंग नज़रिए वाले समाजों और देशों मसलन हमारे अपना लेता है। दो अलग-अलग लिंग बना कर क्या प्रकृति दो समान लोगों को एक पूर्णता नहीं देती जिससे पूरे चक्र में जीवन बने?

लैगिंक भेदभाव और रूढि़वादी नज़रिया महिलाओं के लिए पूरी दुनिया में कमोबेश है। पश्चिम के बेहद विकसित देशों में भी भारत की तुलना में खासा लैंगिक भेदभाव है। महिलाओं की खराब स्थिति से खासी सामाजिक समस्या है। हमारे देश में कई तरह की असमानताएं हैं, खासतौर पर जाति, धर्म, और सामाजिक आर्थिक क्षेत्र में। हमारे देश में कमोबेश आधी जनसंख्या महिलाओं की है। एक महिला होना यानी पुरूषों की तुलना में नीचा होना। बच्चों के मामले में भी यदि बच्ची लड़की है तो उसे बच्चों की तुलना में बढ़ावा नहीं मिलता।

अर्थशास्त्र में नोबल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने 1990 में ‘न्यूयार्क रिव्यू ऑफ बुक्सÓ में एक लेख देश की ‘गायब होती महिलाओं पर लिखा था। इसमें बताया गया है कि किस तरह एक करोड़ महिलाएं देश की जनसंख्या से कम हो जाती है वह भी भ्रूण हत्याओं से। इसके अलावा लड़कियों और महिलाओं के स्वास्थ्य में लापरवाही बरतने और पोषक तत्व न मिलने से होते हैं। उन्होंने लिखा कि यूरोप और उत्तरी अमेरिका में पुरूषों की तुलना में महिलाएं जहां 1.05 या 1.06 हैं वहीं दक्षिण एशिया (भारत समेत) में पश्चिम एशिया और चीन में यह घटकर 0.94 रह गया है। वर्ल्ड हेल्प आर्गेनाइजेशन के अनुसार हर लड़की की तुलना में जैविक तौर पर प्राकृतिक लिंग अनुपात 1.05 लड़कों की है। यह बताता है कि विकसित पश्चिमी देशों और रूढि़वादी एशिया में लड़कियों की स्थिति कैसी है।

जनसंख्या के अनुसार 2011 में भारत में जनसंख्या का अनुपात महिलाओं का प्रति एक हज़ार पुरूषों पर 940 स्त्रियों का था। यह पहले की तुलना में कुछ बेहतर है क्योंकि 2001 में हुए सर्वे में प्रति 1000 पुरूषों पर 933 स्त्रियां थी।

नवीनतम इकॉनॉमिक सर्वे रिपोर्ट जनवरी 2012 में बताया गया है कि भारतीय मां-बाप में पुरूष बच्चे की प्रबल आकांक्षा होती है। इसलिए वे जब तक पुरूष बच्चा हासिल न हो प्रयास जारी रखते हैं। सर्वे रिपोर्ट के अनुसार भारत में फिलहाल दो करोड़ दस लाख लड़कियां ऐसी हैं जो ‘अनचाहीÓ हैं। ये 0.25 की उम्र के बीच की हैं। ऐसे परिवार जहां पुरूष बच्चे का जन्म हो गया वहां बच्चों का जन्म फिर रूक जाता है। इससे लगता है कि मां-बाप इस तरह निरोधक कानून खुद पर अमल करते हैं। अपने विविधता पूर्ण देश में हम बहुधा अलग-अलग सामाजिक आर्थिक पृष्ठभूमि के परिवारों में तीन या ज़्यादा बच्चे देखते हैं। आमतौर पर जब पहले ही दो या तीन बच्चियां हो जाती हैं तो हम पाते हैं कि सबसे छोटी संतान यदि पुरूष बच्चा हुई तो और बच्चे नहीं होते। दूसरी ओर यह भी देखा गया है कि कुछ परिवार ऐसे भी हैं जहां एक या दो बच्चे हैं और दोनों पुरूष बच्चे हैं तो परिवार में बच्चों की संख्या इसलिए डर से नहीं बढ़ाई जाती जिससे तीसरा बच्चा बेटी न हो। नतीजा साफ दिखता है कि अनचाही बच्चियों की कोई उचित देख-रेख नहीं होती। वे अस्वस्थ रहती हैं और उन्हें हमेशा उनके मां-बाप यही बताते-सिखाते रहते हैं कि कैसे उन्हें अपने बच्चे संभालने हैं। जब अनचाही बच्चियां बड़े परिवारों में पलती-बढ़ती हैं तो उनके मां-बाप उन पर खर्च भी काफी कम कर देते हैं। वे ज़्यादा चिंता पुरूष बच्चों की करते हैं। उन्हें पोषक तत्वों को ज़्यादा दिया जाता है बनिस्बत लड़कियां के । उनकी सेहत का भी अच्छा ध्यान दिया जाता है।

भारत में महिलाओं की देखरेख की जिम्मेदारी परिवारों के पुरूषों पर ही होती है । वे पिता,भाई, पति और बच्चे भी हो सकते हैं। भले ही हम खुद के आधुनिक होने का दावा करें। पर जीवन के अहम फैसले प्राय: लड़कियों के परिवार ही लड़कियों के लिए लेते हैं। इसकी कतई चिंता नहीं की जाती कि लड़की या पत्नी खुद क्या चाहती है। मामला चाहे शिक्षा, व्यावसायिक पसंद या फिर विवाह का हो, विभिन्न संस्कृतियों वाले परिवारों में भी समाज की ओर से लगाई गई पाबंदियों को ही माना जाता हे। खासतौर पर महिलाओं की योग्यता और आज़ादी पर। जबकि पुरूषों के बारे में फैसला लेते हुए परिवार इस बात पर ध्यान देते हैं कि पुरूष बच्चे की क्या मांगे हैं और क्या इच्छाएं हैं। परंपरा से चला आ रहा है कि परिवार में पिता का फैसला ही आखिरी फैसला होता है, मां का नहीं।

दूसरा महत्वपूर्ण मुद्दा है कि महिलाओं की आर्थिक आत्मनिर्भता कितनी है। इंडिया डेवलमेंट रिपोर्ट जिसे वर्ल्ड बैंक ने 2017 में जारी किया उसके अनुसार हमारे देश में काम करने वाली स्त्रियों की तादाद बहुत ही कम है। हम 131 देशों में 120 वें स्थान पर है। पांरपरिक तौर पर महिलाओं के लिए घर का कामकाज करना और बच्चों को संभालना ही काम रहा है। ज़्यादातर महिलाएं बाहर काम करने में इसलिए रूचि नहीं लेती कि यह तो पुरूषों का कार्य है कि वह घर के बाहर जाए और कमा कर लाए। यहां तक कि नौकरी की पात्रता रखने वाली महिलाएं भी विवाह के बाद नौकरियां छोड़ देती हैं और मातृत्व पर ही ध्यान देती हैं।

घरेलू कामकाज और बच्चों की देखरेख भी महिलाओं का ही जिम्मेदारी समझी जाती हे। पति और पिता शायद ही महिलाओं के इन कामों में हाथ बंटाते हैं भले ही कम वेतन मिले। वे भी आखिरकार किसी तरह परिवार और काम की जगह के समय में तालमेल बिठाती हैं। इसमें काफी परिश्रम, ऊर्जा और थकावट होती है। यह भी एक तथ्य है कि ज़्यादातर महिलाएं जो कमा कर लाती हैं वह अपने पति के हाथों में या परिवार को सौंप देती हैं। जो मिलकर तमाम वित्तीय फैसले भी लेते हैं। यानी देश में ज़्यादातर कामकाजी महिलाएं भी पुरूषों पर ही आश्रित हैं। भले ही वे कमा कर ला रही है। यह एक तरह से महिला को दास बनाए रखने सा ही है।

21वीं सदी में भी लड़कियां और महिलाओं का पहनावा उनके परिवार ही तय करते हैं। कम उम्र से ही लड़कियों को वैसे कपड़े पहनने से रोका जाता है जिन पर समाज को आपत्ति हो। न मानने पर लड़कियां – महिलाओं पर असंवेदनशीलता के साथ अत्याचार भी किए जाते हैं। हमेशा इस बात पर बहस होती है कि पहनावे के चलते ही महिलाओं, लड़कियों के साथ यौन हिंसा हुई। महिलाएं जो कपड़े चुनती हैं उन पर हमेशा बहस होती है। इसके पीछे यही परंपरावादी सोच है कि महिलाओं को पुरूषों की ही सुननी चाहिए क्योंकि वे पुरूषों की मौन भावनाओं को जगाती है।

ज़्यादातर महिलाओं को हमारे देश में विभिन्न परिवारों और समुदायों में बच्चे पैदा करने में नियंत्रण रखने की आज़ादी नहीं है। पूरी दुनिया में खासतौर पर हमारे देश और पितृसत्ता समाज वाले समुदायों में लगभग यह माना जाता है कि औरतें बच्चे पैदा करने की मशीन हैं। उन्हें परिवार में पुरूष उत्तराधिकारी पैदा करना चाहिए। ऐसी महिलाएं और लड़कियां गिनती की होंगी जो अविवाहित रहें या विवाहित हों। ऐसे जोड़े भी कम ही हैं जो बच्चा न पैदा करने का फैसला लेते हों। कई बेहद शिक्षित परिवारों में भी उत्तराधिकारी की मांग को लेकर कलह होती रहती है। खासतौर पर ऐसी महिलाओं के साथ यह आम होता है जहां लड़कियों का जल्दी विवाह नहीं होता और परिवार शादीशुदा महिलाओं पर बच्चे के लिए दबाव परिवार बनाते हैं जिससे समाज में उनकी किरकिरी न हो।

आज ज़रूरत है कि कि काफी कम उम्र से ही हम छोटे पुरूष बच्चों और लड़कियों को उनकी पसंद के साथ बढऩे दें। उनमें कोई भेदभाव न किया जाए। इससे लैंगिक भेदभाव और खुद के महत्वपूर्ण मानने का दिमागी फितूर भी कम होगा। पीढिय़ों से चली आ रही रूढि़वादिता पर भी सवाल उठाए जाने चाहिए। और उनका विरोध करना चाहिए। तभी लड़कियों और महिलाओं के प्रति सोच बदलेगी। पुरूष भी खुद को बदलेंगे। लड़कियों को इच्छा से अपनी पसंद े का अधिकार देना चाहिए। उन्हें यह नहीं सोचना चाहिए कि दूसरे क्या कहेंगे। दहेज देने के लिए पैसा बचाने की जगह उसका उपयोग बच्चियों की पढ़ाई -लिखाई , खानपान, कपड़ों और उन्हें अपने पैरों पर खड़े होने में शिक्षा देने में खर्च करना चाहिए। यह बड़ी चुनौती है कि पारंपरिक नज़रिए को छोड़ कर प्रगतिशील तरीके से सोचना और करना। परिवारों में पुरूष बच्चों के प्रति आग्रह भी खत्म होना चाहिए।

 

खराब लड़की

– जो साड़ी भी नहीं पहन पाती।

– जो सिगरेट पीना बुरा नहीं मानती। खुद भी पीती है।

– बियर भी पीती है।

– कमर दिखाऊ कपड़े पहनती है।

– बड़े-बूढ़ों का लिहाज नहीं करती।

– ज़ोर-ज़ोर से बोलती हैं

– खूब ठठा कर हंसती है।

– कोई फरमाइश जो नापसंद है उसे साहसपूर्वक इंकार करती है।

– लड़की खुद को नियमित व्यायाम, पैदल चल कर और दौड़ते हुए चुस्त रखती है।

 

‘लव जेहादÓ से नहीं

लड़ सकते धर्मांध

यदि मुस्लिम लड़कियों को अपनी पसंद के गैर मुस्लिम लड़के से शादी नहीं करने दी जाती तो यह समुदाय नैतिक तौर पर आरएसएस की ओर से ‘लव जेहादÓ के नाम पर पाखंड के खिलाफ नहीं लड़ सकता।

यह कहना है शेहला राशिद का । हम किसी भी तरह की धर्मांधता और ईशनिदां के खिलाफ मज़बूती से शेहला के साथ हैं। हमारी कामना है कि शेहला इस जोखिम भरे रास्ते पर संघर्ष करें और अपने राजनीतिक मकसदों पर डटी रहें।

हम छात्र हैं जेएनयू के

 

दक्षिण-पूर्व एशिया की यात्रा पर चार महिला मोटर साइकिल सवार

हैदराबाद देश के महत्वपूर्ण शहरों में एक है। साथ ही यहां की बहुल आबादी में संकीर्णता का ज़्यादा फैलाव नहीं है। शिक्षा, व्यापार और विज्ञान में इस शहर के निवासियों ने अपना नाम रोशन किया है। अब यहां की चार लड़कियों ने ‘रोटू मेकांगÓ कार्यक्रम के तहत 16,992 किलोमीटर की दूरी मोटर साइकिलों पर तय करने का मिशन शुरु किया है। ये मोटर साइकिल सवार भारत,म्यांमार, थाईलैंड, लाओस, कंबोडिया, वियतनाम और बांग्लादेश की यात्राएं करते हुए अपना मिशन पूरा करेंगी। इनकी यह यात्रा अभी-अभी तैयार भारत-म्यांमार-थाईलैंड के ‘ट्राइलेटरल हाईवेÓ से दक्षिण पूर्व एशियाई देशों की होगी।

इन महिलाओं में इन की प्रमुख जय भारती, शिल्पा बालकृष्णन, एएसडी शांति और पिया बहादुर है। ‘ रोड टू मेकांगÓ अभियान की शुरूआत इन्होंने 11 फरवरी की दोपहर से शहर की बाहरी इलाके गोलापुडी से की। राज्य व केंद्र के पर्यटन विभाग के अधिकारियों ने वन टाइम क्षेत्र के कालेश्वर राव मार्केट, पंजा सेंटर, चिट्टी नगर, और प्रकाशन बैरेज पर इन्हें शुभकामनाओं के साथ विदा किया।

अपने इस मिशन के जरिए ये महिलाएं ‘अमूल्य भारतÓ की संस्कृतियों और परंपराओं का भी परिचय देंगी और भारतीय उप महाद्वीव के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत की जानकारी का आदान-प्रदान करेंगी। ये पांच देशों में यूनेस्को की विरासत के 19 स्थलों का भ्रमण भी करेंगी। इनकी इस यात्रा से भारत और एशिया पूर्व एशिया के देशों की महिलाओं में सड़क मार्ग से यात्रा करने में दिलचस्पी बढ़ेगी।

भाजपा का नया महल बना मुख्यालय का नया पता

अब भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय कार्यालय का पता नई दिल्ली 11 अशोक रोड से 6 दीन दयाल मार्ग हो गया है। लाल पत्थर से बने मुख्यालय की विशेषता है कि यह हाईटेक सुविधाओं से लैस है। भवन पूरी तरह से महल की तरह दिखता है। यह 1,70,000 वर्ग फीट में कमल के थीम पर बना है, 70 कमरे, लगभग 200 से अधिक कारों के लिए पार्किंग है। सभी कमरों में वाई फाई की सुविधा, विशाल पुस्तकालय,

चुनावी रणनीति के लिए वार रूम, संपर्क के लिए वीडियो कांफ्रेस की सुविधा है। 400 लोगों की क्षमता का कांफ्रेस रूम है। पार्टी कार्यालय की चकाचौंध अपने आप में भव्य है।

18 फरवरी को इस भव्य राष्ट्रीय कार्यालय के उद्घाटन के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भाजपा शत-प्रतिशत लोकतांत्रिक पार्टी है और कहा कि हमारे पिंड में ही लोकतंत्र है। प्रधानमंत्री ने कहा कि नए मुख्यालय में श्यामा प्रसाद मुखर्जी, दीन दयाल उपाध्याय जैसे विचारकों को संतोष मिलेगा क्योंकि उन्होंने जो जनसंघ के रूप में बोया था अब वो पूरी तरह से वट वृक्ष बन गया है। जो लोगों की उम्मीदों को पूरा कर रहा है।

इस मौके पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि कार्यकर्ताओं के बल पर पार्टी यहां तक पहुंची है। उन्होंने दावा करते हुए कहा कि पार्टी का यह कार्यालय दुनिया के किसी भी राजनीतिक दल की पार्टी से बड़ा कार्यालय है। यहां से पार्टी के प्रदेश कार्यालय और जि़ला कार्यालयों के साथ सीधे वीडियो कांफ्रेसिंग के माध्यम से संपर्क साधा जा सकता है। प्रधानमंत्री, प्रदेश कार्यकारिणी को यहीं से संबोधित कर सकते हैं। अमित शाह ने बताया कि इस कार्यालय में आधुनिक आईटी सेल , सोशल मीडिया सेल और मीडिया के सोशल सेल और मीडिया के लिए सभी सुविधाओं के साथ बेहतर मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराई गयी हैं। प्रेस के लिए भी लाइव करने की सारी सुविधाएं उपलब्ध हैं।

अमित शाह ने कहा कि वैसे तो कई राजनैतिक दल है लेकिन संगठन के आधार पर और लोकतंात्रिक तरीके से चलने वाली एक मात्र पार्टी भाजपा है। संगठन के आधार पर चलने वाली पार्टी में कार्यालय का बहुत बड़ा महत्व होता है। अब पार्टी 635 जि़लों में भाजपा के जि़ला मुख्यालय बना रही है। भाजपा अध्यक्ष के अनुसार 2015 में राष्ट्रीय कार्यकारिणी में तय किया गया था कि 635 जिलों में पार्टी जिलों मुख्यालय बनाएंगी जिसका काम चल रहा है।

पार्टी कार्यालय में भव्य भवन के साथ-साथ तीन सुंदर बगीचों का निर्माण दिल्ली नगर निगम और केंद्र सरकार मिल कर रही है। भाजपा कार्यकर्ता राहित ने बताया कि इन प्रकोष्ठों के अलग-अलग दफ्तर बनने से कार्यकर्ताओं को अपनी बात रखने में आसानी होगी क्योंकि कार्यकर्ता ही पार्टी की रीढ़ होते हैं।

सज़ा का खौफ नहीं बैंकों में लूट जारी

भारत में अब यह चकित करने की खबर नहीं होती। आरोपी देश छोड़ कर फरार हो जाता है और विदेश में बस जाता है तो यह पता लगता है कि घोटाला हुआ है। घोटालेबाजों की नई सूची में अब नए नाम जो जुड़े हैं वे हैं नीरव मोदी और मेहुल चौकसे के। फिर मामला विजय माल्या का हो या ललित मोदी का तरीका सबका एक है।

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में पंजाब नैशनल बैंक शायद देश का सबसे बड़ा बैंक है। जहां रुपए 11,000 करोड़ मात्र से भी ज़्यादा का बैंक घोटाला हुआ। बैंक ने इस घोटाले को मुंबई में अपनी शाखाओं में हुआ पाया। यदि इस नियमित घोटाले का पूरा हिसाब लगाएं तो यह लगभग रुपए 11,300 करोड़ मात्र होता है। बैंक की कुल कमाई का आठ गुणा यानी लगभग रुपए 1320 करोड़ मात्र।

देश का दूसरा सबसे बड़ा बैंक कहलाने वाले इस बैंक में दूसरे बैंकों की तुलना में पिछले कुछ सालों में बैंकिग कामकाज में खासी जांच-पड़ताल होने का दावा रहा है। वहीं ऐसा होना वाकई आश्चर्य की बात है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया, बैंक की आडिट कमेटियां और बोर्ड वगैरह बैंक के अपने खातों की नियमित वित्तीय हिसाब-किताब की पड़ताल करते ही हैं। इस सारी छानबीन का आशय यही होता है कि उन कर्जों पर नकेल कसी जा सके जो जाली होने की कगार पर पहुंच रहे हैं। यहीं यह भी याद रखें कि केंद्र सरकार भी प्राय: इधर यह कहती रही है कि कारपोरेट सेक्टर के खराब कजऱ्ों के कारण ही क्रोनी कैपिटल का विकास हुआ है। इससे निपटने के लिए 21 सार्वजनिक बैंकों को इसी वित्तीय वर्ष में रुपए एक लाख करोड़ मात्र की पूंजी देने की योजना भी बनी। इसमें से रुपए 5,473 करोड़ मात्र तो पंजाब नेशनल बैंक को ही दिए जाने थे। यह आधी ही रकम है। इसका कैपिटल एडेकवेसी रेशियो फिर भी उसी अनुपात में रहेगा जब यह री कैपिटैलाइजेशन की घोषणा हुई। बाजार में इसकी कैपिटैलाइजेशन इस घोटाले के उजागर होने के पहले तक तकरीबन रुपए 10,000 करोड़ मात्र था। इसके शेयर की कीमत में भी बीस फीसद की गिरावट आई।

तभी घोटाले का एक और मामला उजागर हुआ जो दूसरे बैंकों में हुआ। सीबीआई ने एक एफआईआर (प्राथमिकी) रोटोमैक पेन प्रमोटर विक्रम कोठारी के खिलाफ भी दायर की है। जिसने रुपए 3695 करोड़ मात्र के कजऱ् का घोटाला सार्वजनिक बैंकों के साथ किया। यह मामला तब दर्ज किया गया जब रोटोमैक ग्लोबल प्राइवेट लिमिटेड और इसके निदेशकों विक्रम कोठारी, साधना कोठारी और राहुल कोठारी के खिलाफ बैंक ऑफ बड़ौदा ने शिकायत दर्ज कराई। इस शिकायत में दर्ज है कि रोटोमैक ने सात बैंकों के समूह से रुपए 2,919 करोड़ मात्र का कजऱ् लिया। इस राशि में यदि ब्याज भी जोड़ दे ंतो यह रुपए 3695 करोड़ मात्र हो जाता है। सीबीआई की एफआईआर के अनुसार रोटोमैक पर बैंक ऑफ इंडिया के रुपए 754.77 करोड़ मात्र, रुपए 456.63 करोड़ मात्र बैंक ऑफ बडौदा रुपए 771.01 करोड़ मात्र, इंडियन ओवरसीज बैंक रुपए 458.95 करोड़ मात्र, युनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया, रु. 330.68 करोड़ मात्र इलाहाबाद बैंक रु. 49.82 करोड़ मात्र ओरिएंटल बैंक ऑफ कामर्स के बकाया है।

इस शिकायत में यह जानकारी भी है कि रोटोमैक ने मंजूर कजऱ् की राशि का एक दूसरी ‘जाली कंपनीÓ में निवेश किया यहां से वह धन रोटोमैक कंपनी को वापस मिला। इस पूंजी का निर्यात के आदेशों के तहत इस्तेमाल करने की बजाए सिंगापुर की एक दूसरी कंपनी बडग़ाडिया ब्रदर्स प्राइवेट लिमिटेड को गेंहू के निर्यात में किया गया। बाद में यह धन बरगडिया ने रोटोमैक के खाते में जमा किया। दूसरे मामलों में भी निर्यात के लिए माल की खरीद में इस पूंजी का इस्तेमाल नहीं किया गया और न कंपनी ने निर्यात के किसी आर्डर को पूरा ही किया। सीबीआई के एक अधिकारी ने बताया।

इस बीच पंजाब नेशनल बैंक के एक बड़े अधिकारी ने बताया कि दस अधिकारियों को तत्काल मुअत्तल कर दिया गया। जबकि सीबीआई ने अब तक एक सेवा निवृत और एक नियमित (रेगुलर) कर्मचारी को हिरासत में लिया है। यह बात गले नहीं पचती कि कुछ छोटे कर्मचारी मिल कर इतना बड़ा धोखाधड़ी कर सकते हैं। बैंक के प्रबंध निदेशक का दावा है कि निगरानी रखने और सतर्कता बरतने के तमाम किए उपायों की छानबीन की जा रही है जिससे यह पता चल सके कि घपले हुए कैसे। एन-फोर्समेंट डारेक्टोरेट ने मुख्य आरोपी के खिलाफ मनी लांड्रिंग का मामला खरबपति जवाहरात विक्रेता नीरव मोदी पर दर्ज कर लिया है।

उसके अलावा उसकी पत्नी एमी मोदी और करीबी सहयोगियों और संबंधियों के खिलाफ भी मामला दर्ज कर लिया गया है। ऐसा लगता है कि खुद बैंक कर्मचारियों ने बैंकिंग प्रणाली में सेंध लगा कर इतनी भारी धनराशि को मंजूरी दिलाने में खास भूमिका निभाई। इस महा घोटाले से ‘डिजिटल पेमेंटÓ को बढ़ावा देने की सरकारी महत्वाकांक्षा को खासी चोट पहुंची है। पंजाब नेशनल बैंक ने दूसरे बैंकों की शाखाओं को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि उन्होंने ऐसी भारी राशि मंजूर करते हुए आवश्यक सजगता नहीं बरती। लेकिन यह तो महज सफाई है जो भरोसे लायक नहीं है। आरबीआई को ज़रूर इस मामले की तह तक जाना चाहिए और जवाबदेही सुनिश्चित करनी चाहिए। बैंको और कजऱ् लेने वालों के आपसी गठजोड़ को बैंकिंग प्रणाली में समस्या की जड़ बताया जाता रहा है। अब इस मामले से इस गहरे गंठजोड़ का खुलासा होने की संभावना बनी है। आरबीआई और दूसरी एजंसियों को क्रास पड़ताल करते हुए बैंकिंग प्रणाली की पूरी छानबीन करनी चाहिए जिससे बैंकिंग प्रणाली में भरोसा जम सके।

नीरव मोदी और मेहुल चौकसी का गिरफ्तारी से पहले ही फरार हो जाना भी इशारा एक गठजोड़ की ओर ही करता है। कारपोरेट जगत के नवीनतम आरोपी नीरव को दावोस में अभी हाल में हुई वर्ल्ड इकॉनॉमिक फोरम में जुटे देश के तमाम बड़े उद्योगपतियों और राजनीतिक की ज़मात में देखा भी गया था। ये सभी ‘ब्रांड इंडियाÓ को बढ़ावा देने के लिए इक_े हुए थे। इसके कुछ ही दिन बाद पंजाब नेशनल बैंक ने आंतरिक जांच पड़ताल में 15 जनवरी को इस घपले की पड़ताल की थी।

चौकसी इलाज के बहाने विदेश में कहीं और गया इसके पहले कि बैंक कोई कार्रवाई करता। खरबों रुपयों के इस घोटाले को सार्वजनिक करता। निस्संदेह व्यवसाइयों और राजनीतिकों के बीच के संबंध बेहद मज़बूती के हैं।

क्रोनी कैपिटलिज्म की बढ़ती संस्कृति से व्यवसाइयों को वित्तीय संस्थानों से भारी धनराशि में घोटाला करने का चस्का लगा है। दिन-दुपहरिया होने वाली इस लूट को बतौर खराब कर्ज ‘नॉन परफार्मिंग एसेटÓ में मान लिया जाता है। इस भयावह नुकसान की भरपाई भी करदाता ही करते हैं। इतने बड़े पैमाने पर हुई धोखाधड़ी अमीरों और ताकतवर लोगों में गठजोड़ के बिना संभव नहीं है। लेकिन आज तक किसी को जि़म्मेदार नहीं ठहराया जा सका है। ऐसी धोखाधड़ी को हर बार छिपा कर नहीं रखा जा सकता। पंजाब नेशनल बैंक के हुक्मरानों की कोशिश है कि हम यह मान लें कि रुपए 11,000 करोड़ मात्र का घोटाला कुछ छोटे मैनेजरों की ही कारस्तानी है। कैसे इतनी भारी धनराशि को बतौर कर्ज अदा करने की मंजूरी तमाम बैंकिंग कायदे कानून को एक किनारे करके दे दी जाती है। कोई छानबीन और सतर्कता भी नहीं बरती जाती।

बैंकों को सरकारी नियंत्रण से बाहर करने की सलाह

एक भारी घोटाले में जौहरी नीरव मोदी के फंसे होने और पंजाब नेशनल बैंक पर सरकारी दबाव के चलते उद्योग व्यवसाय समूहपतियों के संगठन एसोचेम ने मांग की है कि सरकार को बैंकों को अपने नियंत्रण से छोडऩा चाहिए। उन्हें भी निजी बैंकों की ही तरह काम करने देना चाहिए।

पंजाब नेशनल बैंक में 11,300 करोड़ के घोटाले को देखते हुए सरकार को बैंकों से अपनी 50 फीसद की हिस्सेदारी में कटौती करनी चाहिए। सरकारी बैंकों को भी निजी बैंकों की ही तरह काम करने देना चाहिए जिससे उनकी जवाबदेही पूरी तौर पर शेयर होल्डरों के प्रति हो और जमा करने वालों के हितों की रक्षा हो एसोचेम ने अपने के बयान में कहा।

बयान के अनुसार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक एक के बाद एक संकट में फंसते जा रहे हैं और सरकार की भी एक सीमा है जहां तक यह मदद कर सकती है। वह भी जनता के पैसों से भले ही देनदारों में प्रमुख शेयर होल्डर क्यों न हों। सार्वजनिक बैंकों का वरिष्ठ प्रबंधन अपना ज़्यादातर समय अफसरशाही से मिले निर्देशों को लेने और अमल में लाने में निकाल देता है। इस प्रक्रिया में बैंक के मुख्य काम तमाम महत्वपूर्ण रिस्क और प्रबंधन के काम रह जाते हैं। सह मसला बकों के साथ खासा संगीन है। बैंक नई तकनॉलॉजी का इस्तेमाल कर रहे हैं। जिससे नफा और नुकसान दोनां ही संभव है। एक बार बैंकों में सरकारी हिस्सेदारी 50 फीसद से कम हो तो ज़्यादा स्वायत्तता बैंकों को हासिल होगी और वे वरिष्ठ आधिकारियों की जवाबदेही और जिम्मेदारी सुनिश्चित कर सकेंगे। बोर्ड भी नीतिगत फैसले ले सकेंगे जबकि सीईओ अपने पूरे अधिकारों के और जिम्मेदारियों के साथ चल सकेंगे। एसोचेम के सेक्रेटरी जनरल डीएस रावत ने अपने एक बयान में कहा कि आरबीआई को बैंकिंग उद्योग को पूरे वित्तीय क्षेत्र में साफ-सुथरा काम करने और चाहे वह सार्वजनिक क्षेत्र हो या फिर निजी क्षेत्र या फिर गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों का कामकाज इन सभी क्षेत्रों में अच्छा कामकाज होने की दिशा में उसे अपनी भूमिका निभानी चाहिए।

बैंकों में निजी भागीदारी बढ़े: अरविंद सुब्रमणयम

भारत सरकार के प्रमुख आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमणयम ने चेन्नई में बोलते हुए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में निजी भागीदारी की हिमायत की। उन्होंने कहा कि हांलाकि सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में रिकैपिटइलेजेशन कर रही है, छानबीन सतर्कता और देखरेख करती ही रही हैं लेकिन साथ ही यह सब अनुशासनात्मक कार्रवाई का बेहतर नतीजा तभी सामने आएगा जब ज़्यादा निजीकरण बैंकों का होगा।

उनके अनुसार निजी क्षेत्र पर सरकारी खर्च भी कम आएगा और बैंकिंग क्षेत्र में निजी भागीदारी ज़्यादा होगी। उन्होंने कहा कि ज़्यादा निजी भागीदारी होनी चाहिए क्योंकि ऐसी कोई भी गारंटी नहीं है कि बैंकों में कामकाज सुचारू रूप से होगा। जबकि निजीकरण होने पर ऐसा ं होगा।

सीबीआई की पड़ताल

मुंबई की सीबीआई अदालत में इस मामले में गिरफ्तार तीन आरोपियों को पुलिस की हिरासत में भेज दिया। इनमें पंजाब नेशनल बैंक के उपप्रबंधक गोकुलनाथ शेट्टी, सिंगिल विंडों ऑपरेटर मनोज खराट और नीरव मोदी समूह की ओर से दस्तखत करने वाले अधिकारी।

इन तीनों के अलावा सीबीआई ने इस धोखधड़ी में शामिल रहने के आरोप में दस निदेशकों और अधिकारियों को पूछताछ के दायरे में रखा है। एन्फार्समेंट डायरेक्टोरेट, ने नीरव मोदी, मेहुल चौकसी और 39 स्थानों पर पंजाब नेशनल बैंक के ठिकानों पर भी अचल संपत्तियों की पड़ताल की।

यह सारा घोटाला हुआ कैसे

इस सारे घोटाले में स्विफ्ट (एसडब्लू आईएफटी) यानी बैंकों में एक दूसरे से संपर्क रखने की प्रणाली और अधूरी लेजर एंट्रीज और जांच और समुचित व्यवस्था और बैंक की अपनी बनाए हुए बैंकिंग कायदे-कानूनों की जानबूझ कर की गई अनदेखी। पंजाब नेशनल बैंक के सीईओ सुनील मेहता ने कहा, हां, समस्या तो है। हमने इसकी पड़ताल कर ली है। हम इससे निपटने में जुटे हैं। हम तमाम कमियों को देखेंगे और उन्हें दुरूस्त करेंगे। यह जोखिम तो जनता से जुड़ा हुआ है। हम इसे देख रहे हैं।

सीबीआई के अदालती दस्तावेजों के अनुसार एक बड़ी संख्या में जाली लेटर्स ऑफ अंडरटेकिंग (एलओयू) जारी किए गए। यह एक तरह की गारंटी है दूसरे बैंकों को किसी उपभोक्ता को कजऱ् देने के लिए। यह बैंकों की विदेश स्थित शाखाओं को दिए गए। इस मामले में खासतौर पर ये जेवरात की कंपनियों के एक समूह को दिए गए। चूंकि ये गारंटी पत्र भारतीय बैंकों की विदेश स्थित शाखाओं को भेजे गए थे। यह माना गया कि सभी भारतीय हैं और बैंको ने तमाम जेवरात कंपनियों को धन दे दिया।

शेट्टी ने बैंक की स्विफ्ट प्रणाली के ज़रिए उन पासवर्ड का इस्तेमाल किया जिनसे वह कागज बना सका। ऐसे भी उदाहरण हैं कि एक या उससे ज़्यादा भी जूनियर सहयोगी रहे हों जिन्होंने संदेश भेजे और व्यक्ति विशेष ने सहमति देने के लिहाज से सारे खतूत को जांचा। बैंक एकज्क्यूटिवस से छानबीन और अदालती दस्तावेजों और साक्षात्कारों से यह बात सामने आई।

मुंबई की अदालत में जमा सीबीआई के एक दस्तावेज के अनुसार ‘इस मामले में बैंक के एक या ज़्यादा कर्मचारियों,अधिकारियों के शामिल होने का अंदेशा संभव है। स्विफ्ट पर लेनदेन शुरू करते ही शेट्टी जो उस बैंक की उस शाखा में 2010 से 2017 तक काम करता रहा ने रेगुलर रोटेशन की आम बैंकिंग व्यवस्था को भी बैंक की इंटरनल प्रणाली पर रिकार्ड नहीं किया। क्योंकि पंजाब नेशनल बैंक की आंतरिक साफ्टवेयर प्रणाली स्विफ्ट से आटोमेटिक तौर पर नहीं जुड़ी थी। कर्मचारी खुद स्विफ्ट प्रणाली से जुड़ कर काम करते थे। यह न होने के ही कारण लेन देन बैंक के खाते में दिखाई नहीं देता था। सीबीआई के एक अधिकारी के अनुसार सात साल की अवधि में ऐेसे घोटाले के 150 मामले सामने आए।

आखिर वित्तमंत्री ने तोड़ा मौन

केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने पंजाब नेशनल बैंक घोटाले पर अपना मौन तोड़ा। उन्होंने इसके लिए ऑडिटर और पंजाब नेशनल बैंक के प्रबंधन की नाकामियों को जि़म्मेदार ठहराया। जिसके चलते समय रहते कदम नहीं उठाए गए जिनके चलते रुपए 11,400 करोड़ मात्र का गोलमाल पकड़ में नहीं आ सका।

‘अनियमितताओं पर लगाम लगाने के लिए नज़र रखले वाली एजेंसियों को ध्यान देना चाहिए। उन्हें यह निश्चय करना होगा कि ऐसी गड़बडिय़ां

शुरूआत में ही दबा दी जाएं। वित्तमंत्री एशिया और प्रशांत सागर के एसोसिएश्सन ऑफ डेवलपमेंट फाइनेंशियल इंस्टीटयूशनल की 41वीं बैठक में अपनी बात रख रहे थे। जांच एजेंसियां अब पंजाब नेशनल बैंक के कर्मचारियों से पूछताछ कर रही हैं। यह पता लगाने के लिए कि आरोपियों से उनका कितना संपर्क रहा है।

‘आडिटर्स भी इस घोटाले को नहीं पकड़ पाए उस पर वित्तमंत्री ने कहा, आखिर ऑडिटर्स क्या कर रहे थे? भीतरी और बाहरी ऑडिटर तक इसे नहीं पकड़ सके। ऐसे में ज़रूरी है कि यह जाना जाए कि ऐसी धोखाधड़ी का खर्च प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर होता है। कर देने वालों के लिए यह प्रत्यक्ष है जबकि अप्रत्यक्ष तौर पर लागत देना बैंकों की क्षमता पर है।

आरबीआई की बैंक धोखाधड़ी रोकने पर समिति

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने (आरबीआई) ने एक समिति बनाने की घोषणा की है। आरबीआई के सेंट्रल बोर्ड ऑफ डारेक्टर्स के पूर्व सदस्य वाईएच मालेगम की अध्यक्षता में यह समिति गाठित हुई है। यह समिति बैंकों में धोखाधड़ी के बढ़ते मामलों का अध्ययन करेगी और एक योजना तैयार करेगी जिससे इन्हें रोका जा सके।

आरबीआई ने दावा किया है कि पहले ही इसने बैंकों को चेतावनी दी थी। यह चेतावनी अगस्त 2016 से ‘स्विफ्टÓ प्रणाली के बेजा इस्तेमाल पर तीन बाद चेताया था। बैंकों ने अपनी व्यावसायिक ज़रूरतों के लिहाज से ‘स्विफ्टÓ का विकास किया लेकिन उसके इस्तेमाल के साथ जोखिम भी है इसी कारण बैंकों को संभावित बेजा इस्तेमाल से बचने की तीन बार सलाह दी। उन्हें सलाह दी कि आरबीआई के दिशा निर्देशों के तहत उसे दुरुस्त किया जाए। जिस पर ध्यान नहीं दिया गया।

अर्थव्यवस्था को खोखला कर रहा है एनपीए

बैंकों के नॉन परफारमिंग एसेटस (एनपीए) क्या हंै, यह समझ पाना या तय कर पाना काफी कठिन है। आमतौर पर बैंक अपने दिए कर्जों को लौटाने की सीमावधियां बढ़ा दिए करते हैं। इसे तकनीकी भाषा में ‘रोल ओवरÓ कहा जाता है। यह लगातार बढ़ रहा एनपीए देश की अर्थव्यवस्था को खोखला कर रहा है।

एनपीए की समस्या पहले के मुकाबले अब कहीं ज्य़ादा गंभीर है। इसका बड़ा कारण यह है कि अब बैंकों का चरित्र और प्रवृति बदल गई है। देश में उदारीकरण से पहले आमतौर पर वाणिज्यिक बैंक हुआ करते थे, जो ग्राहकों की संपत्ति और दूसरे स्त्रोतों का आकलन करने के बाद उन्हें कजऱ् दिया करते थे। वे यह बात की निश्चित करते थे कि यदि कजऱ् वापिस नहीं हुआ तो उसे कैसे वसूला जाएगा। वे कजऱ् छोटी समय अवधि के लिए होते थे। उन कजऱ्ों का असली मकसद काम-काज चलने के लिए ‘वर्किग कैपिटलÓ के रूप में देना था। लंबे समय के जो कजऱ् थे वे दूसरे वित्तीय संस्थानों की मार्फत दिए जाते थे। इन का काम कम ब्याज पर कजऱ् देना था ताकि निवेश को प्रोत्साहन दिया जा सके। इस व्यवस्था में ये ‘इंवेटरियांÓ बैंकों के लिए ज़मानत का काम करती थीं। कजऱ् वापिस न होने की सूरत में बैंक इन ‘इंवेटरियांÓ को अपने काबू में ले सकते थे। हालांकि यह तरीका भी पूरी तरह सही नहीं था, इसमें भी खामियां थी। कई बार लोग एक ही’इंवेटरीÓ पर अलग स्त्रोतों से कजऱ् ले लिया करते थे। इनकी कीमत का सही आकलन नहीं हो पाता था। फिर भी डूबे कजऱ्ों की गिनती काफी कम और सीमित थी।

पर समय के साथ हालात बदले और उदारीकरण ने पूरी व्यवस्था को ही बदल डाला। उसने वित्तीय संस्थानों के महत्व को खत्म कर दिया। कई वित्तीय संस्थान बैंकों में परिवर्तित कर दिए गए। इसके साथ ही अल्प अवधि के कजऱ् देने वाले वाणिज्यिक बैंक लंबी अवधि के कजऱ् देने लगे। यहीं से असली समस्या शुरू हुई। डूबने वाले कजऱ्ों के मुख्य रूप से तीन कारण है – पहला तो यही कि जो प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनी उसके हिसाब से ज़मीनी स्तर पर काम न हो सका और सारे अनुमान मात्र कागज़ी हो गए। दूसरा यह कि निवेश परियोजना शुरू से ही गैरवहनीय हो पर सरकार के दवाब में बैंकों ने उस पर कजऱ् दे दिया या फिर बैंक खुद ही उसका आकलन ठीक से न कर पाए और उसकी ऊपरी चकाचौंध में बह जाए। ऐसे मामले में जब परियोजना की बुनियादी गैरवहनीयता आने लगती है तो यह कजऱ् डुबाऊ कजऱ् बन जाता है। तीसरा जब कजऱ् लेने वाला ग्राहक जो कि आमतौर कोई बड़ा पैसे वाला संस्थान होता है अपने असर और संबंधों का दवाब डाल कर कजऱ् लेता है, जिसे वापिस करने की या पूरी तरह लौटने की उसकी मंशा ही नहीं होती। एक प्रकार से यह धोखाधड़ी का ही मामला होता है। जाहिर है ऐसी धोखाधड़ी का शिकार अधिकतर सरकारी बैंक ही होते है क्योंकि राजनीति का सबसे ज्य़ादा दवाब उन्हीं पर पड़ता है। लेकिन इसका अर्थ यह कतई नहीं है कि ऐसे बैंकों का निजीकरण किया जाए, बल्कि इसका अर्थ यह है कि ऐसे बैंकों के कामकाज पर जनतंत्रिक नियंत्रण रखा जाए ताकि इन्हें सरकार हस्तक्षेप से मुक्त रखा जा सके।

जिस समय बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया था उस समय उसका एक लक्ष्य यह भी था कि कृषि क्षेत्र को संस्थागत कजऱ् मुहैया कराया जाए। बैंक राष्ट्रीयकरण की शुरूआत से ही पूंजीवादी व्यवस्था और इजारेदारी के समर्थकों ने यह छवि बनाने की कोशिश की कि एनपीए का मुख्य कारण किसानों का कजऱ् न चुका पाना है। लेकिन इन आरोप का खोखलापन उन सूचियों से जाहिर हो जाता है जो समय-समय पर बैंकों के कर्मचारी जारी करते रहे हैं। इन सूचियों के अनुसार कार्पोरेट ग्राहक सबसे बड़े कजऱ्दार हैं। इस कारण किसानों की कजऱ् लौटने की विफलता बैंकिग व्यवस्था के लिए कोई गंभीर मुद्दा नहीं है। एनपीए कितना है इसका अनुमान लगाना बेहद कठिन है, पर एक आकलन के अनुसार इस समय यह आठ लाख करोड़

रु पए के आसपास होना चाहिए। इसमें बड़े घरानों का हिस्सा 75 फीसद से भी ज्य़ादा हो सकता है। इस तरह, इन अनुमानों से यह नतीजा निकलता है कि बंैकों के कजऱ्ों का 56.25 फीसद बड़े घरानों के पास है। सरकार के मौजूदा सारे कदम बड़े घरानों के हक में जा रहे हैं।

यह सरकार कालेधन और दरबारी पूंजीवाद के खिलाफ होने का दम भरती है लेकिन ऐसा है नहीं। यदि यह वास्तव में ऐसी होती तो सबसे पहले उन लोगों की सूची जारी करती तो ‘डिफाल्टरÓ हैं। दूसरे, बड़े ‘डिफाल्टरोंÓ की इस बात की जांच होती कि क्या ये लोग असल में डिफाल्टर है या जानबूझ कर पैसा लौटाना नहीं चाहते। यदि इन ‘डिफाल्टरोंÓ पर जांच हो तो बैंकों की जान बच सकती है।

दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगाने में क्यों है हिचक

दिल्ली में अफसरशाही और जनता के प्रतिनिधि उन्मत्त हैं। यह उन्माद और एकजुटता तब न जाने क्यों नहीं दिखाई दी जब राजेंद्र कुमार गिरफ्तार किए गए और दूसरे अफसर खामोश रहे। यह एकजुटता थोड़ा और पहले हुई उस घटना पर भी नहीं दिखी जब दिल्ली में ही एक आईएएस और उसके परिवार को खुदकुशी करनी पड़ी। सभी जानते हैं आईएएस लॉबी का शगल सरकार बनाने और सरकार गिराने में खुद को चाणक्य की भूमिका में रखने का रहा है। खुद प्रधानमंत्री भी अक्सर इस लॉबी की तारीफ करते नहीं अघाते हैं क्योंकि वे दुनियादारी जानते समझते हैं।

दिल्ली के अफसरशाहों में मुख्य सचिव के साथ दिख रही एकजुटता कितनी टिकाऊ होगी वह तो समय बताएगा। लेकिन केंद्र सरकार के वरिष्ठ गृह राज्य मंत्री से ज़रूर उनकी तत्काल बातचीत हुई। भारतीय जनता पार्टी इस विवाद को संवैधानिक, कानून और व्यवस्था का संकट बता रही है। लेकिन चाहते हुए भी वह दिल्ली राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने से हिचक रही है। पंजाब नेशनल बैंक, रोटोमैक पेन और इंडियन ओवरसीज बैंक में घोटाले की खबरों को थोड़ा दबाने के लिए दिल्ली में आप सरकार और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर एक दबाव राज्य की अफसरशाही के जरिए ज़रूर छेडा़ गया लेकिन अपने खेल में ही भाजपा फंस गई सी लगती है।

दिल्ली में रहने वाले किसी भी साधारण आदमी की तरह दिल्ली पुलिस (जो काम तो दिल्ली में करती है लेकिन होती हैकेंद्र सरकार के अधीन) ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के घर की तलाशी ली। वहां लगे कैमरों को खंगाला। आरोप भी लगाया कि कैमरों के समय को पीछे कर दिया गया। मिले सबूतों को फारेंसिंक टीम ने अपने कब्जे में ले लिया। भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा,’ एक निजी कंपनी की तरह अरविंद केजरीवाल शासन चला रहे हैं। वे आधी रात को मुख्य सचिव को बैठक में बुलाते हैं। वह भी अपने प्रचार के लिए और फिर जो कुछ हुआ वह शर्मनाक रहा।Ó उन्होंने (केजरीवाल, ने अपने अपरिपक्व नेतृत्व का प्रदर्शन) कियाÓ बताते हैं केंद्रीय भाजपा के प्रभारी श्याम जाजू।

केंद्र में तीन चौथाई बहुमत पाकर सत्ता चला रही भाजपा कानून और व्यववस्था खराब होने के बावजूद अपनी ही नाक के नीचे क्यों देश की राजधानी दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगाने से परहेज कर रही है। इस पर भाजपा के नेता बहुत साफ संकेत नहीं दे पा रहे हैं। वे आप के खिलाफ अब घर-घर जाकर आप की अलोकतांत्रिक कार्रवाई के खिलाफ आंदोलन छेडऩा चाहते हैं जिससे जनता की सहानुभूति भाजपा को मिले और वे कह सकें कि राज्य में आखिर राष्ट्रपति शासन क्यों नही लगाया गया।

भाजपा के एक नेता ने कहा कि दो-तीन साल पहले अरविंद केजरीवाल उम्मीद की लौ बन कर दिल्ली राज्य में उभरे थे। लेकिन अब जनता में उनके प्रति वह भावना लुप्त हो गई हैं। क्योंकि आप के 14 विधायक विभिन्न आरोपों में गिरफ्तार हैं। इन पर छेड़छाड से लेकर धोखाधड़ी तक के आरोप हैं। दिल्ली में कानून और व्यवस्था बहुत खराब है। यह राजधानी दिल्ली के लिए उचित स्थिति नहीं है। पात्रा का कहना है कि ‘अराजक सोच दिल्ली के लिए उपयोगी नहीं है।

उधर दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल ने भी कहा, ‘हिंसा के लिए कोई जगह नहीं है। यह उन्होंने तब कहा जब मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल उनसे मिलने गए थे। आप के कार्यकर्ता का कहना है कि दिल्ली संबंधी ज़्यादातर ज़रूरी फाइलें उपराज्यपाल के दफ्तर में ही जाकर रूक जाती है। दिल्ली का विकास कैसे हो। जब आप की सरकार दिल्ली में आती है तो उपराज्यपाल जो भी हो यही करते हैं। जनता यह जानती समझती है। राज्य की तमाम एमसीडी पर भाजपा जीती है। राजधानी में साफ-सफाई और कर्मचारियों का वेतन देने की जिम्मेदारी उसकी है। जनता आखिर यह भी तो जानती- समझती है।

दिल्ली सरकार और नौकरशाह में भिड़ंत

आम आदमी पार्टी -आप पार्टी- के गठन के दौरान से ही पार्टी अपनी शर्तो पर चलने की इस कदर हावी हो गई है, कि कोई भी अगर पार्टी के खिलाफ आवाज उठायें या फिर मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल कि विरोध में कुछ भी बोले तो आप पार्टी अपने तरीके से उसके साथ जो दुव्यर्वहार करती है वो पूरा जमाना देखता है, एक दौर ऐसा था जब पार्टी में केजरीवाल ही बोलते थे ,अब ऐसा है कि पार्टी के प्रवक्ता से लेकर पार्टी के विधायक अपने तरीके से आप पार्टी के विरोध बोलने वालों को सबक खिखाने में गुरेज नहीं करते है। पर जो भी पार्टी में हाक रहा है उसकी कांग्रेस और भाजपा ने कड़ी शब्दों में निदा ही नही ंकहीं बल्कि कहा कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल सत्ता के नशे में इस कदर चूर है कि सारी मर्यादाओं को तार -तार कर रहे है। इसी कड़ी में जो दिल्ली के मुख्य सचिव अंशु प्रकाश के साथ हुआ है वो जरूर जांच का विषय है पर पार्टी की तानाशाही रवैया पूरा देश देख रहा है। बताते चले दिल्ली के मुख्यमंत्री पर ये आरोप लगता है वो जो भी पार्टी और सरकार के विरोध में बोलता है तो अरविन्द केजरीवाल उसको शक दायरे में देखते है कि ये केन्द्र सरकार का आदमी है और भाजपा नीत सरकार के इशारे पर बोल रहा है उसका ये नतीजा सामने आता है बात सुलझने की वजाये उलझती जाती है और तकरार बढ़ता जाता है जिसके कारण दिल्ली की जनता को काफी परेशानी होती है।
अब बात करते है दिल्ली के मुख्य सचिव अंशु प्रकाश की जिसकी वजह दिल्ली सरकार का काम -काज प्रभावित हुआ और पूरे देश के अफसरों में एक मैसेज गया कि अब अफसरों के साथ नेताओं की दादागिरी सामने आ रही है। मौजूदा हालात् में 56 वर्षीय दिल्ली के मुख्य सचिव अंशुप्रकाश जो 1986 बैच आईएएस अफसर है के साथ जो मारपीट वाली घटना जो सामने आयी है उससे आप पार्टी का रवैया तानाशाही वाला सामने आया है।जिस तरीके से 19 फरवरी 2018 को दिल्ली के मुख्य सचिव को मुख्यमंत्री के निवास पर मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल की मौजूदगी में एक बैठक में आप पार्टी के विधायक अमानतुल्ल खान और विधायक प्रकाश जेरवाल ने बदसलूकी की है उसकी शिकायत मुख्य सचिव ने दिल्ली पुलिस को शिकायत में बताया कि दोनों विधायकों ने हमला किया और मारपीट की है। अंशु प्रकाश ने बताया कि सरकार से जुड़े इलेक्टनिक मीडिया से जुड़े विज्ञापनों को लेकर आप के दोनों विधायक दस कदर भड़क गये और गालीगलौज करने लगे और बंधक बनाने की बात करने लगें और धमकी देने लगे की कि एस सी एसटी एक्ट में फंसा देगेंं समझ में आ जायेगा। अंशु प्रकाश ने पुलिस शिकायत में कहा कि बड़ी मुश्किल में वे जान बचाकर भागे है।
बैठक में दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया के अलावा आप पार्टी के विधायक प्रकाश जारवाल और अजय दत्त ने अपनी पुलिस रिर्पोट में कहा कि न तो जातीय एक्ट का मामला है और न ही विज्ञापन वाली कोई बात है मुख्य मामला यह है कि विधायकों ने जब दिल्ली के मुख्य सचिव से कहा कि जब से दिल्ली में आधार कार्ड लिंक हुये है तब से करीब ढाई लाख लोगों को राशन नहीं मिल पा राह है तो इसी बात को लेकर भडक गये और भनभनातें हुए मुख्य सचिव चले गये और मुख्य सचिव विधायकों को सबक सिखाने की बात कहकर चले गये। अजय दत्त ने कहा कि इन दोनों विधायकों ने कहा कि वह विधान सभा क्षैत्र में गरीबों को राशन वितरित नहीं करा पा रहे हैं इसके कारण विधायकों को क्षैत्र की जनता से शिकायतें मिल रही है।
आप पार्टी के प्रवक्ता सौरभ भाऱ़द्वाज का कहना र्है कि दिल्ली के मुख्य सचिव के साथ जो भी अच्छा या बुरा हुआ है वो 19 फरवरी की सीसीटीवी की फुटेज है उस फुटेज में साफ देखा जा सकता है कि अंशु प्रकाश अपने गार्ड के साथ जा रहे है। रहा सवाल मारपीट का तो 20 फरवरी को ही रिर्पोट क्यों लिखवायी अंशु प्रकाश तो बड़े अफसर है उनको इतनी देर क्यों हुई है ये सारी बाते जरूर एक सोची समझी चाल की ओर इशारा करती है।दिल्ली में मचे बवाल के दौरान एक और मामला सामने आया जब दिल्ली सरकार मंत्री इमरान हुसैन और उनके पीए हिमांशु और आप पार्टी के नेता दिलीप पांडें के साथ भी दिल्ली सचिवालय में मारपीट का मामला सामने आया। जिसकी शिकायत पर दिल्ली पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है। फिलहाल दिल्ली पुलिस अंशु प्रकाश की शिकायत पर। दोनों विधायकों अमानतुल्ला खान और प्रकाश जारवाल को गिरफतार कर लिया है।
जब दिल्ली में मारपीट को लेकर सियायी मामला गर्माया हुआ था तब दिल्ली में अरविन्द केजरीवाल की गिरफतारी से लेकर दिल्ली सरकार को बर्खास्त करने की मांग तेज हो गई थी कांग्रेस पार्टी के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष अजय माकन ने कहा कि इस मामले की जांच होनी चाहिये। दिल्ली के भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी ने कहा कि जब दिल्ली में आप पार्टी की सरकार बनी है तब दिल्ली में विकास कार्य ठप्प पड़ा ह ैअब तो सरकार अपनी कमी छिपाने के लिये अफसरों के साथ मारपीट पर उतारू हो गये है। वही भाजपा के कार्यकर्ताओं ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के निवास पर जमकर प्रदर्शन किया और अरविन्द केजरीवाल होश में आओं के नारे लगायें।
इस सारे मामले में भाजपा के नेता शत्रुघन सिन्हा ने कहा कि अरविन्द केजरीवाल के पक्ष में दिखे और इशारों -इशारों में पीएनबी घोटाले से ध्यान बांटने वाली भाजपा की चाल बताया। आईएसए संध और दिल्ली सरकार के वरिष्ठ अधिकारी एस के कुमार ने बताया कि दिल्ली सरकार में जो भी अफसरों के साथ हो रहा है उससे दिल्ली में विकास कार्य को पलीता लगेगा। और तालमेल का अभाव दिखेगा।
आप पार्टी के नेता व राज्य सभा सांसद संजय सिंह ने कहा कि जिस प्रकार से केन्द्र सरकार दिल्ली सरकार के साथ सौतेला व्यवहार व षडय़ंत्र कर रही है उससे तो ये साफ है कि मोदी सरकार अपनी कमी छिपाने के लिये जो कर रही है वो लोकतंत्र के लिये ठीक नहीं है। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार मुख्यमंत्री के निवास पर छापे मारे विधायकों के निवास की तलाशी हो रही है वो सब ठीक नहीं है।

हिमाचल के मुख्यमंत्री को जान से मारने की धमकी

हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर को जान से मारने की धमकी मिली है। अब पुलिस यह धमकी देने वाले आरोपी से पूछताछ कर रही है .पुलिस ने उसे हिरासत में लिया है, लेकिन गिरफ्तार नहीं किया है।  उसने यह धमकी सोशल मीडिया पर दी है।
मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस हर पहलू से इसकी जांच कर रही है। गौरतलब है कि हाल ही में हेत राम नामक एक युवक ने सोशल मीडिया पर मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर को जान से मारने की धमकी दी थी। यह धमकी सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक में उसे दी है। मिली जानकारी के मुताबिक  १६ फरवरी को शाम ८.59 बजे हेत राम नामक व्यक्ति ने अपने फेसबुक अकाउंट पर डाली अपनी  पोस्ट में लिखा है ”भाईयों मैं मरना चाहता हूं पर जय राम को मारकर जाऊंगा”।
पुलिस के मुताबिक आरोपी हेत राम सराज संघर्ष समिति का सचिव है। सराज मुख्यमंत्री जय राम के गृह हल्का भी है। यह भी बताना ज़रूरी है कि सराज समिति के बैनर तले ही जंजैहली में एसडीएम कार्यालय की मांग को लेकर बीते करीब चार हफ्ते से जबरदस्त विरोध प्रदर्शन चल रहा है। इस मामले में और तेजी सोमबार को आई जब लोग  क्रमिक अनशन पर बैठ गए। इस मामले की बहुत चर्चा इस लिए भी है क्योंकि कुछ रोज पहले पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता प्रेम कुमार धूमल ने कहा था कि इस विरोध प्रदर्शन से उनका कुछ लेना देना नहीं है। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में उनका नाम इस आंदोलन के पीछे उछाला गया था।
अब फेसबुक पर मुख्यमंत्री को मिली धमकी से मामले में दिलचस्प मोड़ आ गया है। जब सोशल मीडिया पर यह पोस्ट डाली गई तो उसके बाद रोड पंचायत के उपप्रधान टेक सिंह ने इस बाबत जंजैहली थाना में जाकर शिकायत दर्ज करवाई। पुलिस ने शिकायत के आधार पर कार्रवाई करते हुए आईपीसी की धारा 506 के तहत मामला दर्ज करके कार्रवाई शुरू कर दी है। हालांकि अभी तक आरोपी हेतराम से पूछताछ ही की जा रही है, उसे गिरफ्तार नहीं किया गया है।
मंडी के जिला पुलिस प्रमुख ने तहलका से बातचीत में पुष्टि करते हुए बताया कि मामला दर्ज कर लिया गया है और कार्रवाई जारी है। इस बीच आरोपी हेतराम ने इस पोस्ट के अगले दिन एक और पोस्ट डाली है, जिसमें लिखा है – ”जिस किसी ने भी यह हरकत की है उसका नबंर जल्द ही ट्रेस कर लिया जाएगा”। इस पोस्ट के माध्यम से हेतराम ने अपने फेसबुक अकाउंट के साथ छेड़छाड़ होने का शक जताया है। बहरहाल पुलिस सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए मामले की जांच कर रही है। इस मामले के राजनितिक रंग लेने की पूरी संभावना है।

बैंक घोटाले के राजनीतिक दंश

देश के दूसरे सबसे बड़े राष्ट्रीयकृत बैंक – पंजाब नेशनल बैंक – में 11500 करोड़ रुपये के बड़े घोटाले ने देश में हलचल मचा दी है। इसका राजनीति पर भी असर पड़ा है और कांग्रेस सहित पूरा विपक्ष सत्तारूढ़ भाजपा सरकार पर लगातार हमला बोल रहा है। जो जानकारियां सामने आ रही हैं उससे भाजपा बैचेनी महसूस कर रही है। सोशल मीडिया में इस घोटाले के आरोपी नीरव मोदी की दावोस के सम्मलेन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ तस्वीरें आने के बाद भाजपा रक्षात्मक दिख रही है जबकि कांग्रेस लगातार हमलावर होती जा रही है। नार्थ ईस्ट के तीन राज्यों में चुनाव से पहले भाजपा के लिए यह घोटाला दिक्कत पैदा कर सकता है। इसी साल के आखिर में कुछ और बड़े राज्यों में भी चुनाव होने हैं लिहाजा कांग्रेस सहित पूरा विपक्ष इस मामले में भाजपा और मोदी सरकार पर दबाव बनाने में जुट गया है जबकि भाजपा के नेता भी इस पर विपक्ष को जवाब देने में जुटे हैं।
सरकार इस मामले को लेकर कितने दबाव में है इसका अंदाजा इस बात से लग जाता है कि घोटाला सामने आने के बाद १४ फरवरी को ही सार्वजनिक अवकाश के बावजूद मोदी सरकार ने जांच एजेंसियों को इस मामले में तेजी दिखने के लिए सक्रिय किया। सरकार ने सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय को फौरन इस पर कार्रवाई करने को कहा। इसी का नतीजा था कि जांच एजेंसियों ने १५ फरवरी को ही सुबह सबेरे नीरव मोदी और उससे जुड़े व्यक्तियों और कंपनियों के ठिकानों पर ताबड़तोड़ छापेमारी की।
घोटाला सामने आने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट किया – ”भारत को लूटने की नीरव मोदी द्वारा दी गई गाइड:  प्रधानमंत्री को गले लगाओ, उनके साथ दावोस में दिखो। इस प्रभाव का इस्तेमाल कर 12 हजार करोड़ लूटो और जब सरकार दूसरी तरफ मुंह कर ले तो माल्या की तरह देश से भाग जाओ। ” गांधी ने यह ट्वीट कांग्रेस सासंद गौरव गोगोई के उस ट्वीट के बाद किया, जिसमें दावोस में विश्व आर्थिक फोरम में प्रधानमंत्री मोदी की भारत के तमाम मुख्य कार्यकारी अधिकारियों (सीईओ) की तस्वीर दिखाई गई है। सोशल मीडिया पर वायरल तस्वीर में भगोड़ा हीरा व्यापारी दूसरी पंक्ति में दिख रहा है और प्रधानमंत्री मोदी पहली पंक्ति के बीच में हैं।
कांग्रेस ही नहीं माकपा ने भी सर्कार को घेरा है। पार्टी के वरिष्ठ नेता सीताराम येचुरी ने भी ट्वीटर पर यह फोटो शेयर करके हुए लिखा – ”नीरव मोदी स्विट्जरलैंड में हो सकता है, जहां वह प्रधानमंत्री मोदी के साथ दिखा था। येचुरी ने कहा – ”अगर यह व्यक्ति 31 जनवरी को दर्ज की गई एफआईआर से पहले भाग गया है तो फिर वह यहां है। दावोस में प्रधानमंत्री के साथ उसकी फोटो है, जोकि एफआईआर से एक सप्ताह पहले की है। क्या भारत से भागने के बाद एफआईआर हुई? मोदी सरकार को अवश्य स्पष्ट करना चाहिए। यह एक तरीका सा बन गया है जिसमें जो बैंक के साथ धोखाधड़ी करता है, उसे मोदी सरकार की तरफ से भगा दिया जाता है।” तृणमूल कांग्रेसne भी मोदी सर्कार को इस मसले पर घेरा है। जाहिर है विपक्ष इस घोटाले को राजनितिक रूप से भुनाने में कोइ कसार नहीं छोड़ना चाहता।
इसे देश का अब तक का सबसे बड़ा बैंकिंग घोटाला बताया जा रहा है। हाल के वर्षों में ललित मोदी और विजय माल्या के बाद यह तीसरा मामला है जिसमें मुख्या आरोपी देश छोड़ कर भाग गया है। उधर बेंगलुरु के एक बिजनेसमैन ने इस मामले पर यह दावा करके मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है कि उन्होंने (व्यापारी) हरि प्रसाद एसवी ने २०१६ में ही प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) को मेहुल चौकसी की गड़बड़ियों के बारे में सूचना दे दी थी लेकिन उनकी इस शिकायत पर ठंडा रुख अख्तियार किया गया।
गौरतलब है कि मेहुल चौकसी गीतांजलि ज्वेलरी सीरीज का मालिक है और उसका भी नाम पीएनबी घोटाले में शामिल है। इस घोटाले में मेहुल के साथ-साथ नीरव मोदी भी शामिल है। घोटाले का खुलासा होने के बाद केन्द्रीय जांच एजेंसियों ने नीरव मोदी, उनकी पत्नी एमी, उनके भाई निशाल और मेहुल चौकसी के खलाफ 280 करोड़ रुपये की मनी लांड्रिंग का मामला दर्ज किया है। मीडिया में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक में बिजनेसमैन हरि प्रसाद का दावा है कि ”अगर साल 2016 में पीएमओ को दी गई जानकारी पर एक्शन लिया गया होता तो पहले ही इस घोटाले का पर्दाफाश किया जा सकता था।” घोटाले के दोनों आरोपी नीरव मोदी और मेहुल चौकसी देश छोड़कर भाग चुके हैं। कहा जा रहा है कि मेहुल चार जनवरी को ही विदेश भाग गया था, जबकि नीरव मोदी घोटाले का खुलासा होने के बाद देश छोड़कर भागा।
घोटाला सामने आने के बाद राष्ट्रीयकृत बैंक पंजाब नैशनल बैंक का कहना है कि मुंबई स्थित उसकी एक शाखा में करीब 1.8 अरब अमेरिकी डॉलर का जो घोटाला नज़र में आया है, उसका असर कुछ अन्य बैंकों पर भी पड़ सकता है। सेबी को दी जानकारी में बैंक ने कहा – ”पंजाब नेशनल बैंक ने धोखाधड़ी के लिए अनधिकृत रूप से किए गए कुछ लेनदेन मुंबई स्थित अपनी एक शाखा में पकड़े हैं, जो ‘कुछ चुनिंदा खाताधारकों को लाभ पहुंचाने’ के लिए किए गए थे।” फर्ज़ीवाड़ा कर किए गए लेन देन बैंक की वर्ष 2017 की शुद्ध आय (13.2 अरब रुपये) की आठ गुणा रकम के बराबर हैं। घोटाला सामे आने के बाद इसके शेयर ७.५ फीसदी तक गिर गए और अक्टूबर २०१७ के बाद बैंक ने सबसे कम दाम पर कारोबार किया।
पूरे घोटाले की जड़ मे ”लेटर ऑफ अंडरटेकिंग” जिसे एलओयू कहा जाता है, है। तकनीकी बात करें तो यह एक तरह की गारंटी होती है, जिसके आधार पर दूसरे बैंक खातेदार को पैसा मुहैया कराते हैं। यदि खातेदार डिफॉल्ट कर जाए तो एलओयू मुहैया कराने वाले बैंक की यह जिम्मेदारी होती है कि वह संबंधित बैंक को बकाए का भुगतान करे। इस मामले में पीएनबी के उप प्रभंधक गोकुलनाथ शेट्टी पर आरोप है की उसने कथित तौर पर स्विफ्ट मेसेजिंग सिस्टम का दुरुपयोग किया। बैंक इसी नियम के आधार पर विदेशी लेन देन में एलओयू  के जरिए दी गारंटी को प्रमाणित करते हैं।
पंजाब नेशनल बैंक की एक ब्रांच ने अरबपति ज्वैलर नीरव मोदी और उनसे जुड़ी कंपनियों को (एलओयू) लैटर ऑफ अंडरटेकिंग और फॉरेन लैटर ऑफ क्रेडिट (एफएलसी) जारी किए जिसके आधार पर उन्होंने विदेशों में स्थित भारतीय बैंकों से कर्ज उठाया। एलओयू दरअसल एक पत्र होता है जो एक बैंक अपने ग्राहक के लिए दूसरे बैंक को जारी करता है। एलओयू जारी होने पर दूसरा बैंक उक्त ग्राहक को उस पत्र के आधार पर लोन दे सकता है। जनवरी मे जब एलओयू की अवधि खत्म हो गई और भारतीय बैंकों की विदेशी शाखओं को कर्ज की रकम वापस नहीं मिली तो घोटाले का खुलासा हुआ। पीएनबी ने अपने दर्जन भर कर्मचारियों को इस मामले में निलंबित भी किया है।
वित्त मंत्रालय के अनुसार पीएनबी फ्रॉड मामले में छह कंपनियों को 9539.38 करोड़ रुपये के एलओयू और 1799.36 करोड़ रुपये के एफएलसी जारी हुए। इसके आधार पर सोलर एक्सपोर्ट, स्टेलर डायमंड, डायमंड आर यूएस, गीतांजलि जेम्स, गिली इंडिया, नक्षत्र और चंद्री पेपर्स को जारी हुए।
पंजाब नेशनल बैंक घोटाले के बाद विपक्ष ने निशाने पर आई मोदी सरकार ने ”सख्त रुख” दिखने की कोशिश की है। सरकार ने कहा है कि मामले में सरकारी बैंक की पूरी धनराशि वसूल की जाएगी और किसी भी व्यक्ति को बख्शा नहीं जाएगा। सरकार ने यह भी स्पष्ट किया कि बैंक इस मामले के लिए जरूरी प्रॉविजनिंग (घाटे की भरपाई के लिए अलग से धन रखना) करेगा और इसके लिए उसके पास पर्याप्त धन है। वित्त मंत्रालय के वित्तीय सेवा विभाग के सचिव राजीव कुमार ने कहा कि यह मामला सिर्फ एक बैंक के एक ब्रांच का है और दोषी व्यक्ति के खिलाफ हर संभव कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने कहा कि पीएनबी फ्रॉड में सभी परिसंपत्तियों को वसूल किया जाएगा और किसी भी व्यक्ति को बख्शा नहीं जाएगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस मामले का असर अन्य बैंकों पर नहीं पड़ेगा। जांच एजेंसियां इस मामले की पड़ताल कर रही हैं। साथ ही अन्य बैंकों को भी इस मामले के बारे में सतर्क कर दिया गया है।
दो पब्लिक सेक्टर बैंक और एक प्राइवेट बैंक पर इस घोटाले का असर पद सकता है। इसमें यूनियन बैंक ऑफ़ इंडिया, इलाहाबाद बैंक और एक्सिस बैंक शामिल हैं जिन्होंने आरोपी को क्रेडिट की पीएनबी के लेटर ऑफ़ अंडरटेकिंग के आधार पर पेशकश की थी।
अब यह घोटाला राजनितिक अखाड़े में पहुंच गया है। बैंक घोटाला मामले में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने पीएम मोदी पर निशाना साधा।  कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा – ”हीरा व्यापारी नीरव मोदी के देश के दूसरे सबसे बड़े सरकारी बैंक से 11,500 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी ”भारत को लूटने” का तरीका है, जिसमें उसने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से नजदीकी बढ़ाई, उन्हें गले लगाया और फिर शराब कारोबारी विजय माल्या की तरह देश से फरार हो गया।
पार्टी के नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया । कांग्रेस नेता ने केंद्र पर हमला बोलते हुए कहा क‍ि ‘लूटो और भाग जाओ’ मोदी सरकार का चाल, चरित्र और चेहरा बन गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जुलाई, 2016 में ही वित्‍तीय फर्जीवाड़े की जानकारी दी गई थी, इसके बावजूद क्‍या मोदी सरकार सोई हुई थी?

सुरजेवाला ने सवाल उठाया कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने घोटाले पर कार्रवाई करने में 15 दिन क्‍यों लगाए, जबकि 29-30 जनवरी को ही यह मामला सामने आया गया था। उन्‍होंने पूछा कि इस मामले में पंजाब नेशनल बैंक ने इतनी देरी से केस क्‍यों दर्ज कराया? ईडी ने छापा मारने में 15 दिन क्‍यों लगा दिए? सरकार ने इस मामले को महत्‍व क्‍यों नहीं दिया? सुरजेवाला ने कहा क‍ि वर्ष 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नीरव मोदी और मेहुल चौकसी के बारे में जानकारी दी गई थी और पीएम से कार्रवर्इ की मांग भी की गई थी। उनके मुताबिक, पीएमओ ने शिकाय‍त को कार्रवाई के लिए रजिस्‍ट्रार ऑफ कंपनीज के पास भेज दिया था। इसके बावजूद न तो पीएमओ ने कुछ किया और न ही वित्‍त मंत्रालय ने कदम उठाया। इस बीच, छोटे मोदी (नीरव मोदी) 11,000 करोड़ रुपये की चपत लगाकर देश से चंपत हो गए।

कांग्रेस के तीखे हमले से परेशां सरकार की तरफ से मोर्चा संभाला कानून मंत्री रविशंकर प्रशाद ने।
प्रसाद ने बाकायदा संवाददाता सम्मेलन करके कहा – ”नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यकाल में ऐसा कोई ऋण नहीं दिया गया, जो एनपीए बन गया हो। नीरव मोदी को संप्रग सरकार के कार्यकाल के दौरान ऋण दिया गया था।” उन्होंने कहा कि ‘प्रधानमंत्री ने लोकसभा में कहा था कि हमारी सरकार ने ऐसा कोई ऋण नहीं दिया है, जो एनपीए बन गया हो। एनपीए की विरासत हमें कांग्रेस से मिली है।’ उन्होंने नीरव मोदी और उन सब के खिलाफ भी कार्रवाई करने का वादा किया, जिन्होंने उन्हें भगाने में मदद की। प्रसाद ने कहा, ‘किसी को बख्शा नहीं जाएगा।’ उन्होंने कहा, ‘धोखाधड़ी का पता लगने के बाद तुरंत कार्रवाई की गई। आयकर विभाग नीरव मोदी के खिलाफ काफी कड़ी कार्रवाई कर रहा है।’ प्रसाद ने नीरव मोदी को ‘छोटा मोदी’ कहने पर भी कांग्रेस को फटकार लगाई। उन्होंने कहा, ‘राहुल गांधी अपनी क्षमता की वजह से नहीं, बल्कि अपने परिवार की वजह से एक पार्टी के अध्यक्ष हैं। वह किस भाषा का प्रयोग कर रहे हैं?’ यह पूछे जाने पर कि क्या इस घटना से प्रधानमंत्री की छवि पर असर पड़ेगा, उन्होंने कहा, ‘प्रधानमंत्री की छवि कांग्रेस और कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला जैसी खराब नहीं हो सकती। प्रधानमंत्री के पास भारत के लोगों का आशीर्वाद है।’

नीरव मोदी 11 हजार करोड़ नहीं बल्कि 14,000 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी करके फरार

पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) को 11,400 करोड़ रुपये का चूना लगाने के आरोपी नीरव मोदी ने 17 और बैंकों से भी कथित तौर पर 3,000 करोड़ रुपये लिये और देश छोड़ कर फ़रार हो गया।
इन बैंकों ने नीरव मोदी की विभिन्न कंपनियों को , जिसमें उसकी प्रमुख फर्म फायरस्टार इंटरनेशनल लिमिटेड शामिल है , क़र्ज़ दिया था।
पीएनबी के अलावा नुकसान उठाने वाले बैंकों में भारतीय सेंट्रल बैंक (करोड़ 194 रुपये), देना बैंक (करोड़ 153.25 रुपये), विजया बैंक (करोड़ 150.15 रुपये), बैंक ऑफ इंडिया (करोड़ 127 रुपये), सिंडिकेट बैंक (करोड़ 125 रुपये), ओरिएंटल थे बैंक ऑफ कॉमर्स (120 करोड़ रुपये), यूनियन बैंक ऑफ इंडिया (110 करोड़ रुपये) और आईडीबीआई बैंक और इलाहाबाद बैंक (प्रत्येक 100 करोड़ रुपये) शामिल हैं।
नीरव मोदी और कुछ अन्य के खिलाफ 280 करोड़ रुपये के मनी लांड्रिंग के आरोपों की जांच के सिलसिले में गुरुवार को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने मुंबई, दिल्ली और गुजरात में छापेमारी में 5,100 करोड़ रुपये के हीरे, सोने के आभूषण जब्त किए।
ईडी ने नीरव मोदी के 17 ठिकानों पर छापेमारी की. यह कार्रवाई पीएनबी: की शिकायत पर की गई है. एजेंसी ने नीरव मोदी, उनकी पत्नी एमी, भाई निशाल और कारोबारी भागीदार मेहुल चौकसी के खिलाफ कल मनी लांड्रिंग का मामला दर्ज किया था।
फोर्ब्स की सबसे अमीर भारतीयों की सूची में शामिल 47 वर्षीय नीरव मोदी पर सीबीआई ने धोखाधड़ी का आरोप लगाया है। सीबीआई के मुताबिक,मोदी ने शिकायत मिलने से पहले 1 जनवरी को देश छोड़ दिया था।
उधर प्रियंका चोपड़ा, जो अरबपति जौहरी के विज्ञापन अभियान में शामिल थीं, वर्तमान में ब्रांड के साथ अपने अनुबंध को समाप्त करने के लिए कानूनी राय मांगी है।
चोपड़ा के प्रवक्ता ने एक बयान में कहा, “अटकलें हैं कि प्रियंका चोपड़ा ने निरूपव मोदी पर मुकदमा दायर कर दिया है। यह सच नहीं है। हालांकि, वह वर्तमान में निरोध मोदी के खिलाफ वित्तीय धोखाधड़ी के आरोपों के सामने ब्रांड के साथ अपने अनुबंध को समाप्त करने के संबंध में कानूनी राय मांग रही है। ”
अभिनेता सिद्धार्थ मल्होत्रा, जिन्होंने प्रियंका के साथ उसी विज्ञापन में काम किया था, ने पीटीआई को बताया कि उनका अनुबंध पहले ही खत्म हो चुका है, वह किसी कानूनी कार्रवाई की योजना नहीं बना रहा है।