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लाभ के पद मामले में २० आप विधायकों को दिल्ली हाईकोर्ट से राहत

लाभ का पद मामले में आप के २० विधायकों को दिल्ली हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिली है साथ ही मोदी सरकार को इससे झटका लगा है। हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया है कि वह इन २० विधायकों की अर्जी की दुबारा सुनवाई करे। आयोग के इस सिलसिले में फैसले पर राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद जो अधिसूचना जारी हुई थी उस पर रोक लगने से फिलहाल इन २० विधायकों की सदस्यता कोर्ट के अगले फैसले तक बहाल हो गयी है। सदस्‍यता रद्द करने की अधिसूचना को दिल्‍ली हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया है।
आप के यह विधायक हैं – शिवचरण गोयल (मोती नगर), शरद कुमार (नरेला), सोमदत्त (सदर बाजार), आदर्श शास्त्री (द्वारका), अवतार सिंह (कालकाजी), सरिता सिंह (रोहतास नगर), जरनैल सिंह (तिलक नगर), नितिन त्यागी (लक्ष्‍मी), अनिल कुमार बाजपेयी (गांधी नगर), मदन लाल (कस्‍तूरबा नगर), प्रवीण कुमार (जंगपुरा), विजेंद्र गर्ग विजय (राजेंद्र नगर), अलका लांबा (चांदनी चौक), शिवचरण गोयल (मोती नगर), राजेश गुप्ता (वजीरपुर), संजीव झा (बुराड़ी), राजेश ऋषि (जनकपुरी), सुखबीर सिंह दलाल (मुंडका), मनोज कुमार (कौंडली), कैलाश गहलोत (नजफगढ़) और
नरेश यादव (महरौली हलका) ।
गौरतलब है कि इसी १९ जनवरी को दिल्ली के आप 20 विधायकों को पद का गलत प्रयोग करने के आरोप में अयोग्य घोषित किया गया था। चुनाव आयोग की ओर से विधायकों के अयोग्य करार दिए जाने के बाद आयोग की सलाह पर खुद राष्ट्रपति ने इस पर मुहर लगाई थी। दिल्ली हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग को सुनवाई पूरी होने और फैसला आने तक उपचुनाव नहीं कराने के लिए कहा है। इस तरह अगले फैसले तक इन विधायकों की सदस्यता बहाल हो गयी है।
कोर्ट में अपनी दलील में आप विधायकों ने राष्ट्रपति के फैसले को चुनौती देकर इसे रद्द करने की मांग की थी। कोर्ट में दायर याचिका में आप विधायकों ने कहा कि संसदीय सचिव रहते हुए उनको किसी तरह का वेतन, सरकारी भत्ता, गाड़ी या अन्य सुविधा नहीं मिली है, लिहाजा लाभ के पद का कोई सवाल ही नहीं उठता है।
चुनाव आयोग ने 19 जनवरी, 2018 को आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों को लाभ के पद मामले में अयोग्य करार देने की सिफारिश की थी। आयोग ने उन्हें संवैधानिक तौर पर अयोग्य करार दिया था।   राष्ट्रपति की तरफ से चुनाव आयोग की सिफारिशों को मंजूर कर लिया गया था जिसके बाद अधिसूचना जारी कर इन विधायकों की सदस्यता खारिज हो गयी थी।
याद रहे आप पार्टी की दिल्ली में सरकार ने मार्च, 2015 में 21 विधायकों को संसदीय सचिव के पद पर तैनाती दी थी। इसे लाभ का पद बताते हुए एक वकील प्रशांत पटेल ने राष्ट्रपति के पास शिकायत की थी। पटेल ने इन विधायकों की सदस्यता खत्म करने की मांग की थी। हालांकि विधायक जनरैल सिंह के पिछले साल विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने के बाद इस मामले में फंसे विधायकों की संख्या 20 हो गई है।
कोर्ट के फैसले ने आम आदमी पार्टी के खेमे में खुशी भर दी है। कोर्ट का फैसला आते ही सोशल मीडिया पर भी लोगों ने अपनी प्रतिक्रियाएं देनी शुरू कर दी। कुछ लोगों ने लिखा कि यह मोदी सरकार के लिए झटका है जबकि कुछ अन्य ने कहा कि आप को इससे ज्यादा खुश नहीं होना चाहिए। एक व्यक्ति ने सोशल मीडिया पर लिखा कि यह फैसला जाहिर करता है कि मोदी सरकार चुनाव आयोग का दुरूपयोग कर रही है। काफी लोगों ने कोर्ट के फैसले को सही ठहराया है।

कहानी उस दुर्लभ साहसी बेटी की

मानवाधिकार कार्यकर्ता के रूप में अपनी अदम्य भावना के लिए जाने वाली आसमां जहांगीर, भारतीय उपमहाद्वीप की बहुत मज़बूत नेताओं में से एक थीं। उनका निधन न केवल अपने देश पाकिस्तान के लिए हैं बल्कि दक्षिण एशिया का है जहां उन जैसी साहसी महिला की ज़रूरत है। शायद ही यह कभी भारत और पाकिस्तान के मामले में होता है कि एक उपलब्धि की दोनों ओर प्रशंसा की जाती है। 11 फरवरी आसमां जहांगीर की अचानक मौत पर निस्संदेह सबसे बहादुर पाकिस्तान ही नहीं,बल्कि दक्षिण एशिया की इस बेटी की मौत पर दोनों देशों में उसके कई शुभचिंतक और प्रशंसकों ने शोक मनाया। मानवाधिकार के लिए उनकी चाहत के न केवल पाकिस्तान बल्कि भारत में भी बड़ी तादाद में प्रशंसक थे।

वह मानवाधिकारों और लोकतंत्र के संरक्षण के लिए जमकर लड़ी। वह दृढ़ता से सैन्य प्रतिष्ठान के एक निर्वाचित सरकार के काम में हस्तक्षेप के खिलाफ मज़बूती से खड़ी रहीं। यही नहीं उन्होंने खुफिया एजेंसियों का सत्तारूढ़ शासन के आलोचकों को आतंकित करने के लिए अल्पसंख्यकों को धर्म के नाम पर उकसाने और चरमपंथ को विदेश नीति में एक साधन के रूप में उपयोग करने का जमकर विरोध किया।

भारत में उनकी लोकप्रियता भी उनकी दो पड़ोसियों के बीच मैत्रीवूर्ण संबंधों को बनाने की पक्षधर होने के नाते थी। उनके इस परिदृश्य से गायब होने से भारत-पाक के बीच शांति की संभावना कमज़ोर हो गई है। आसमां उस समय अचानक दुनिया से विदा हो गईं जब उनके अंत की कोई कल्पना भी नहीं कर रहा होगा। इतने करीब होने के नाते भी कोई नहीं जानता था कि वह दिल से जुड़ी बीमारी से खासी पीडि़त थीं। ऐसी कोई रिपोर्ट भी नहीं जो यह बताती हो कि वे हृदय रोग से पीडि़त थीं। शायद, उनके दिल की उचित जांच कभी नहीं हुई थी। उन्हें जब दिल का दौरा पड़ा वे अदालत की अवमानना के एक मामले में एक मंत्री का प्रतिनिधित्व करने पर सहमत हो गई थीं। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को फोन पर वादा किया था कि वे इस मामले में लडऩे के लिए तैयार हैं लेकिन इस बीच उन्होंने बात करनी बंद कर दी। उस समय नवाज शरीफ अपने लाहौर घर में एक वकील के साथ बैठे थे। उन्हें आसमां के अचानक बात बंद कर देने पर हैरानी हुई क्योंकि वे इस तरह के व्यवहार के लिए नहीं जानी जाती थी।

इसके बाद नवाज शरीफ ने कम से कम 25 बार उससे संपर्क करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। किसी और ने जब बाद में शरीफ का फोन सुना तो उन्हें बताया कि 66 वर्षीय आसमां अब नहीं रही। शरीफ से बात करते करते ही खतरनाक हृदयघात से उनकी मौत हो गयी थी।

जल्द ही उनकी बेटी मुनिजे जहांगीर जो एक टीवी पत्रकार हैं उसने ट्विटर पर दुखद संदेश दिया कि वे अपनी मां के अचानक निधन से हतप्रभ हैं। जल्दी ही हम उनके अंतिम संस्कार की तारीख घोषित करेंगे। हम अपने रिश्तेदारों के लाहौर लौटने का इंतज़ार कर रहे हैं

एक मानवाधिकार कार्यकर्ता के रूप में अपने 40 साल के शानदार कैरियर में आसमां देश की पहली महिला थी जो पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट की बार एसोसिएशन की अध्यक्ष बनीं। उन्होंने1987 में पाकिस्तान मानवाधिकर आयोग की सह-स्थापना की और सेवा की 1993 तक महासचिव के रूप में जि़म्मेदारी संभाली जब उन्हें इसका अध्यक्ष चुना गया। उन्होंने इस जि़म्मेदारी को पूरी निष्ठा और योग्यता से निभाया। वैसे आयोग का गठन उनके ही दिमाग की उपज थी ताकि वे मानवाधिकार के संरक्षण, खासकर अल्पसंख्यकों के लिए काम कर सकें। आसमां का जन्म 1942 में लाहौर में हुआ और उन्होंने 1978 में पंजाब विश्वविद्यालय से एलएलबी की डिग्री प्राप्त की। एक वकील के रूप में वकालत करना शुरू कर दिया और उनका पूरा फोकस मानव अधिकारों पर रहा। वह दृढ़ता के साथ उन लोगों के लिए लड़ी जिन्हें या तो सत्ता की तरफ से दबाया जा रहा था या चरमपंथियों की तरफ से उनके धार्मिक विश्वास का फायदा उठाकर उनका शोषण किया जा रहा था। पाकिस्तान में अल्पसंख्यक, दुनिया के मुकाबले सबसे अधिक प्रताडि़त किए गए हैं।

वह ऐसे पीडि़तों के अधिकारों की रक्षा करने से कभी डरी नहीं। कभी-कभी अपने जीवन को खतरे में डालने की कीमत पर भी उन्होंने चरमपंथी तत्वों से लोहा लिया। उन लोगों के लिए सहायता प्रदान करने के लिए उसकी निर्विवाद प्रतिबद्धता की वजह उनकी यह सोच भी थी कि सत्य का किसी भी कीमत पर बचाव किया जाना चाहिए।

आसमां का लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए अतृप्त प्रेम था जिसके लिए वह जनरल जि़या-उल-हक और जनरल परवेज़ मुशर्रफ जैसे कू्रर सैन्य तानाशाहों को भी चुनौती दे सकीं। उन्होंने इन शासकों के हर प्रकार के प्रलोभनों की पेशकशों को अस्वीकार कर दिया, और कभी इसके नतीजों को लेकर घबराई नहीं। उन्होंने जनरल जिया के शासनकाल के दौरान लोकतंत्र की रक्षा के लिए पूरी ताकत झोंक दी। उन्होंने उत्साहपूर्वक उस समय जनतंत्र की बहाली के लिए मार्च में हिस्सा लिया। इसकी कीमत उन्हें चुकानी पड़ी जब तानाशाह सरकार ने 1983 में उन्हें कैद में डाल दिया। इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और सैन्य तानाशाही के खिलाफ मुखर रहीं।

उतने ही ज़ोरदार तरीके से वे बर्खास्त मुख्य न्यायाधीश इफ्तिरखार चौधरी की बहाली के लिए लड़ीं। जनरल परवेज मुशर्रफ की अध्यक्षता वाली तानाशाह सरकार के खिलाफ वकीलों की लड़ाई में भी वे मुखर हो कर सामने आईं। आश्चर्य की बात नहीं कि मुशर्रफ शासन के दौरान 2007 में उन्हें सलाखों के पीछे डाल दिया गया। जब उन्हें कैद से मुक्त किया गया था उसने 2012 में आरोप लगाया था कि पाकिस्तान का खुफिया नेटवर्क उनकी हत्या करना चाहता था। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि जासूसी एजेंसियां पूरी तरह पाकिस्तान में ‘लापता लोगोंÓ के मुद्दे के लिए जिम्मेदार है।

उन्होंने कभी इस बात की परवाह नहीं की कि कौन उनकी गतिविधियों से खुश है और कौन नाखुश।

उनके प्रशंसकों को समाज के हर वर्ग में पाया जा सकता है। न केवल पाकिस्तान में बल्कि दक्षिण एशिया भर में। अगर वह सैन्य प्रतिष्ठान की निर्वाचित सरकारें गिराने की मुख्य आलोचक रहीं तो वह न्यायिक सिस्टम के एक्टिविज़्म के भी विरोध में भी थी क्योंकि उनका मानना था कि इससे न्याय प्रणाली को नुकसान पहुंचा है। यही कारण है कि वे कई अवसरों पर पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय की आलोचना से भी पीछे नहीं हटी।

आसमां ने पनामा पत्रों के मामले में नवाज शरीफ को अयोग्य घोषित करने वाले सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का विरोध किया और कहा कि इसका कोई औचित्य नहीं था। आसमां ने 2014 में लाइवलीहुड अवार्ड, 2010 में फ्रीडम अवार्ड, 2010 में ही हिलाल-ए-इम्तियाज़ और सितारा-ए-इम्तियाज जैसे प्रतिष्ठित अवार्ड जीते। यह अवार्ड उनके काम और उसके प्रति उनकी निष्ठा को प्रतिविम्बित करते हैं। उनके जैसे व्यक्ति जिसने अपने विचारों को व्यक्त करने में कभी संकोच नहीं किया, का अब पाकिस्तान मे मिलना मुश्किल है। कवि इकबाल ने कहा था,’ हज़ारों साल नरगिस अपनी बेनूरी पर रोती है, बड़ी मुश्किल से होता चमन में दीदावर पैदा’।

बैंक अफसरों ने आरबीआई को जिमेदार ठहराया

आज जब देश कई तरह के बैंक घोटालों से जूझ रहा है और करोंड़ों रुपए दांव पर लग गए हैं तो ‘ऑल इंडिया बैंक आफिसर्स कन्फेड्रेशन (एआईबीओसी) ने सरकार से कहा है कि वह उन पर आरोप लगाने की बजाए नई व्यवस्था लागू करने और बैंकों के सुपरवीजन में असफल रहने की जिम्मेदारी रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया पर डाले।

सेंट्रल बैंक समेत सभी नियामक एजेंसियों को ज़्यादा सतर्क होने की ज़रूरत है। साथ ही ‘ऑडिटरोंÓ की भूमिका की भी जांच होनी चाहिए। बैंकों का ऑडिट बहुत बार होता है, इसलिए एक ऐसी नियामक एजेंसी होनी चाहिए जो यह ध्यान रखे कि ऑडिटर अपनी भूमिका सही तरीके से निभाएं। नीरव मोदी -पंजाब नेशनल बैंक घोटाले सेे यह स्पष्ट हो गया कि जो लोग इसके लेन-देन पर नज़र रख रहे थे वे अपनी भूमिका सही तरीके से निभाने में असफल रहे हैं। यह याद रखा जाए कि यूएस की एनर्जी कंपनी एनरॉन के घोटाले के बाद मशहूर एकाउंटिग कंपनी आर्थर एंड्रसन को बंद कर दिया गया था। यहां भी ऑडिट करने वाली कंपनियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए। इसके साथ राज्यों द्वारा चलाए जा रहे बैंकों को भी ज़्यादा स्वायत्ता दी जाए। मिसाल के तौर पर बैंक प्रमुख की नियुक्ति सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा है जो अपेक्षाकृत नए बैंक बोर्ड ब्यूरो को करनी होती है। इसकी बजाए यह नियुक्ति वित्तमंत्री के दायरे में रखी गई। मौजूदा हालात में इन सभी बातों पर पुनर्विचार करने की ज़रूरत है।

इससे पूर्व एआईबीओसी ने बैंकों पर आधार कार्ड बनाने की जिम्मेदारी डालने का भी विरोध किया था। अब घोटाले में लिप्त अफसरों को दंड मुक्ति मिलने से यह मुद्दा बहुत ही खतरनाक हो गया है। इसके अलावा बैंक अधिकारियों ने कुछ महत्वपूर्ण मुद्दे उठाए हैं।

एआईबीओसी के महासचिव डीटी फ्रांको ने कहा,’ नीरव मोदी-पंजाब नेशनल बैंक घोटाले के बाद बैंकों में हो रहे घोटालों पर बहुत कुछ लिखा, और बोला जा रहा है। पर आरबीआई, वित्त मंत्रालय, केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीबीसी) और बाकी लोग तभी क्यों उठते हैं जब कोई बड़ा घोटाला हो ही जाता है। वे व्यवस्था की नाकामी का विश्लेषण क्यों नहीं करते, व्यवस्था की विफलता और घोटालों में सरकार और उसकी नीतियों की क्या भूमिका है, यहां हर्षद मेहता घोटाला, केतन पारिख घोटाला और एनपीए घोटाला हो चुके हैं लेकिन सरकार या आरबीआई ने आज तक उन्हें ‘घोटालाÓ नहीं माना है क्योंकि व्यवस्था में इतनी खामियां हैं कि इन्हें घोटाले की परिभाषा नहीं दी सकती। भारत में बैंकों की अंदरूनी नीतियों पर राजनैतिक अर्थव्यवस्था भारी पड़ती है। इसे राजनैतिक हस्तक्षेप भी माना जा सकता है।

नीरव मोदी के घपले के मामले में ‘लेटर ऑफ अंडरटेकिंग (एलओयू) के गलत इस्तेमाल पर फ्रांको ने कहा कि जब खरीददार को उधारी उपलब्ध है तो आयातकर्ताओं के लिए आरबीआई ने एलओयू क्यों जारी किया जो विदेशी बैंकों में प्रचलित भी नहीं है। आरबीआई को आयात को प्रोत्साहित करने और बाहर से उधार लेने वाले को सस्ती दरों पर उधार देने की ज़रूरत क्या है? इसकी बजाए यह लाभ भारतीय बैंकों को मिलना चाहिए। ऐसा होने से देश को कर भी ज़्यादा मिलेगा। यह जग जाहिर है कि90 के दशक से ‘स्विफ्टÓ का इस्तेमाल घोटालों के लिए किया गया है। फिर सरकार और आरबीआई ने इसे ठीक करने के लिए इसमें हस्तक्षेप क्यों नहीं किया? इसके अलावा पर्यवेक्षण और लेखा परीक्षण का क्या हुआ? पर्यवेक्षण में आरबीआई क्यों पूरी तरह विफल रहा? क्या इसका कारण है कि आरबीआई नोटबंदी जैसे दूसरे कार्यों में व्यस्त रहा? क्या वे एक साल बाद तक भी केवल नोट ही गिनते रहे? क्या आरबीआई ने अपनी स्वायत्ता खो दी है? बैंक अधिकारियों ने बैंकों में तबादलों और नई नियुक्तियों पर भी बड़े सवाल खड़े किए। उन्होंने पंजाब नेशनल बैंक में किसी दूसरे आदमी को प्रबंध-निदेशक बनाने पर भी सवाल किया क्योंकि यह काम बैंकिग बोर्ड ब्यूरो का है जिसके प्रमुख विनोद राय हैं। कमज़ोर पर्यवेक्षण पर एआईबीओसी ने कहा- बैंकों को दूसरी गतिविधियों जैसे आधार को जोडऩा, आधार कार्ड बनाना, सरकार की पेंशन योजना को बेचने जैसे कामों में क्यों डाला गया? इन्हीं के कारण पर्यवेक्षण कमज़ोर हुआ है।

आरबीआई आज भी उन लोगों की सूची क्यों नहीं छाप रहा जो बैंकों के पैसे डकारे बैठे हैं? इस तरह से उन्हें देश से भागने का मौका मिल रहा है। प्रधानमंत्री ऐसे व्यापारियों को क्यों अपने साथ विदेशी दौरों पर ले जाते हैं जोकि इस व्यवस्था का गलत इस्तेमाल करने के लिए जाने जाते हैं? विदेशों में उन्हीं लोगों को ठेके मिलते हैं? विदेशों में इन लोगों को क्यों भारत का चेहरा बनाकर पेश किया जाता है? इनका चयन प्रधानमंत्री कार्यालय या वित्तमंत्री क्यों करते हैं? जबकि यह कार्य उद्योग एसोसिएशन का है। शुरू से यही परंपरा थी एओईबीओसी के अनुसार मार्च 2016 तक बैंकों ने जो कजऱ् दिया उसका 38 फीसद केवल 11,643 लोगों के पास है। उनके अनुसार एनपीए के केवल 12 अकाउंट हैं जिनके खिलाफ 2.50 लाख करोड़ रुपए हैं जबकि 84फीसद एनपीए ‘कॉरपोरेटÓ घरानों के हैं। बैंक हर साल ‘कॉरपोरेटसÓ के हज़ारों करोड़ बट्टे-खाते में डालते हैं, सबसे बड़ा घोटला तो यही है। ‘फिक्कीÓ और एसोचैम को चाहिए कि वे बैंकों के निजीकरण की मांग करने की बजाए अपने सदस्यों से कहें कि वे ईमानदारी से कजऱ् वापिस करें।

आरबीआई पर एनपीए के उधारियों की सूची न जारी करने का आरोप लगाते हुए बैंक अधिकारियों का कहना है कि उसने ‘कॉरपोरेट्सÓ को लाभ पहुंचाने के लिए एक नया तरीका चलाया है। आरबीआई ने ‘कॉरपोरेट कजऱ् पुनर्गठन (सीडीआर), सामरिक कजऱ् पुनर्गठन (एसडीआर) स्ट्रेटिजक कजऱ् पुनर्गठन, सस्टेनेबल स्ट्रकचरिंग ऑफ स्ट्रेसड एसेटस या एस4 ए, ऐसेट क्वालिटी रिव्यू (एयूआर) और प्रापंट कोरैक्टिव एक्शन (पीसीए)जैसे तरीकों से कारपोरेट्स को मदद की है। इनमें से किसी ने बैंकों को लाभ नहीं दिया बस कॉरपोरेट्स को फायदा मिला। नए मानदंडों के अनुसार बैंकों को दो लाख करोड़ ज़्यादा एनपीए घोषित करने होंगे और 50 फीसद उनके लिए रखे जाएंगे। इससे देश के सारे बैंक कजऱ् में डूब जाएंगे। उससे देश में वही संकट पैदा होगा जो 2008 में अमेरिका में हुआ था। उस समय सरकार बैंक आपातकाल घोषित कर बैंकों को कारपोरेट्स के हाथों में दे देगी। यह लोकतंत्र के लिए भी एक खतरा होगा।

सार्वजनिक बैंकों के साथ पांच साल तक एनपीए का मुद्दा चलने के बाद न तो मनी मार्केटस पर कोई दवाब पड़ा और विकास पर भी सीमित असर दिखा। इसके कई कारण है। इसमें सबसे बड़ा कारण था कि बैंकों की मलकीयत सरकारी थी जिस वजह से बाज़ार का विश्वास बैंक प्रणाली में बना रहा।

निजीकरण का विरोध

सार्वजनिक बैकों के निजीकरण का विरोध करते हुए बैंक अधिकारियों का कहना है कि हमें बेहतर बैंकिंग, बेहतर रिपोर्टिग, बेहतर पर्यवेक्षण और बेहतर तकनालोजी चाहिए। हमें बैंकों के निजीकरण के लिए मच रही हाय तौबा की तरफ ध्यान नहीं देना चाहिए। सार्वजनिक बैंकों के खिलाफ खराब प्रबंधन का आरोप लगता है जिसके कारण एनपीए बढ़ते हैं। डाटा जो है वह इस परिकल्पना के खिलाफ है। हांलाकि यहां कुछ मामले गड़बड़ी के हो सकते हैं पर ये अत्याधिक नहीं हैं और एनपीए के बढऩे का कारण भी नहीं हैं। दूसरे बैंकों में खराब शासन का असर केवल सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक ही नहीं बल्कि विश्व भर में निजी क्षेत्र के बैंकों में भी यह समस्या आती रहती है। ‘ग्लोबल रेगुलेटरीÓ हर साल उन बैंकों पर अरबों डालर का जुर्माना लगाती रहती है।

2016-17 के आर्थिक सर्वेक्षण में सरकारी बैंकों में एनपीए के कारणों का अध्ययन किया गया। इसका सबसे बड़ा कारण विकास के नाम पर दिए गए कजऱ् इसके ‘मैक्रो इकोनोमिक Ó और ‘रेगुलेटरीÓ इसके मुख्य कारण रहे। भ्रष्टाचार और दुराचार इसके मुख्य मुद्दे नहीं थे। 2008 में यूरोप और अमेरिका के निजी बैंकों को सरकार ने धन देकर बचाया। जिनको सरकारी सहायता ने बचाया उनके कुछ ऐसे नाम भी है जो व्यापार की दुनिया में बहुत बड़ा नाम रखते हैं। 2007-08 को यह संकट सरकारी बैंकों या भ्रष्टाचार की वजह से नहीं अपितु निजी बैंकों के लालच की वजह से आया था।

यह स्वामित्व की बात नहीं पर ‘रेगुलेशनÓ की गुणवत्ता, रिपोर्टिंग प्रबंधन की है जो बैंकिग दक्षता को बढ़ता है। अपने देश में भी निजी क्षेत्र के बैंक ग्लोबल ट्रस्ट बैंक और बैंक ऑफ राजस्थान को भी राज्य की सहायता से बचाया गया था। कारण स्पष्ट है बैंकिंग कोई स्टील या होटल का धंधा नहीं है। एआईबीओसी के अनुसार देश में बैंकिंग ‘बेलआऊटÓ काफी आसान है। आईएमएफ के मुताबिक 1970 से 2011 के बीच ‘बेलआऊट’ ‘जीडीपी’ का 6.8 फीसद था। इमरजिंग कोस्ट जीडीपी का 10 फीसद थी। इसी अवधि में भारत में बैंकों का ‘बेलआऊटÓ खर्च मात्र एक फीसद था जो किसी गिनती में नहीं आता।

जो लोग बैंकों के निजीकरण पर ज़ोर दे रहे हैं उनका तर्क है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों पर सरकार का नियंत्रण रहता है और राजनैतिक लोग उसका पूरा लाभ उठाते हैं।

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक निश्चित तौर पर सरकारी प्रभाव में रहते हैं और कारपोरेटस भी उनमें जोड़-तोड़ कर लेते हैं। इनसे बैंकों की प्रणाली में आई कमियों का लाभ कुछ भ्रष्ट बैंक अधिकारियों के साथ तालमेल बिठा कर लालची व्यापारी उठा लेते हैं। बैंकों की इस प्रकार की कमियों को दूर करने की ज़रूरत है न ही उनके निज़ीकरण की। मंदी का मुख्य कारण अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों की विफलता थी। 2008 की मंदी के अलावा भी बैंकों में हुई गड़बड़ी के कारण बैंकों पर ताले पड़ गए थे।

सरकार क्या करे?

निजीकरण बैंको को पेश आ रही समस्याओं का कोई समाधान नहीं है। यह सत्य है कि सरकारी बैंकों के काम के तरीके वगैरा में भारी बदलाव लाने की ज़रूरत है। सरकार को पूरे बैंकिंग सैक्टर को फिर से खड़ा करने के लिए गंभीरता से सोचना चाहिए। निजीकरण निश्चित रूप से कोई रामबाण नहीं है।

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक ही क्यां?

यह बताना ज़रूरी है कि 1955 में जब सरकार ने इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया का राष्ट्रीयकरण कर उसे स्टेट बैंक ऑफ इंडिया का नाम दे दिया गया था, तभी से बैंक व्यवस्था का महत्व बढ़ गया था। जब 1969 और 1970 में राष्ट्रीयकरण हुआ तो इसे और ताकत मिल गई।

सरकारी बैंकों का आधार सिकुडऩे के बावजूद देश की अर्थव्यवस्था में इनका महत्व बना हुआ है। इन बैंको की दूर दराज तक फैली शाखाओं के ज़रिए इनकी पहुंच देश की सबसे ज़्यादा आबादी तक है। सरकार के सरकारी एजेंडे की रीढ़ की हड्डी भी ये बैंक है। जनधन योजना के मामले में भी ये बैंक अग्रणी हैं।

किसी भी ग्रामीण क्षेत्र में बैंकों की भूमिका मात्र बैंक की ही नहीं है बल्कि वहां के विकास में भी इनका बड़ा योगदान है। ग्रामीण लोगों लिए बीमा और वित्तीय शिक्षा जैसे कार्य भी यही बैंक कर रहे हैं। यह स्पष्ट है कि देश में सरकारी बैंकों का महत्व कम नहीं किया जा सकता। भारतीय अर्थव्यवस्था में एक मज़बूत बैंकिंग व्यवस्था का होना अति आवश्यक है। यही देश के विकास की रीढ़ की हड्डी है।

फडऩवीस सरकार झुकी, किसानों ने ‘लांग मार्च’ वापिस लिया

महाराष्ट्र में छह दिन से चल रहा 200 किलोमीटर ‘लांग किसान मार्चÓ खत्म हो गया। इसमें 35 से 50 हज़ार किसानों ने हिस्सा लिया। इनमें महिलाएं भी बड़ी संख्या में थीं। लगभग 200 किलोमीटर चलने से उनके पावों में छाले पड़ गए पर उन्होंने इसकी परवाह किए बगैर मार्च जारी रखा। नासिक से अखिल भारतीय किसान सभा के नेतृत्व में चले किसानों की ज़्यादातर मांगे मान ली गई। इनमें किसानों को जंगलात की ज़मीन पर अधिकार और कजऱ् माफी जैसी मांगे भी शामिल हैं। 12 तारीख को किसानों ने मुंबई में विधानसभा का घेराव किया था। मांगे मानने की घोषणा दोपहर में किसानों की रैली में की गई। शाम को किसान सभा के नेताओं ने कहा कि आंदोलन को वापिस ले लिया गया है। इस अवसर पर माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी भी मौजूद थे। उन्होंने किसानों से लौट जाने का अनुरोध किया। मार्च के दौरान मुंबई के डिब्बे वालों ने उन्हें भोजन और पानी दिया। इसके अलावा भी कई सामाजिक संगठन किसानों की सहायता के लिए आगे आए।

किसान सभा नेताओं के अनुसार उनकी मांग कजऱ् माफी योजना को लागू करने की थी जो पिछले साल शुरू की गई थी, इसके अलावा वन अधिकार कानून 2006 को लागू करवाना और जिन किसानों की फसलें बरबाद हुई उन्हें सहायता राशि देना भी मांगों में था। सरकार ने इन्हें मान लिया है। इससे पूर्व येचुरी ने चेतावनी दी थी कि यदि किसानों की मांगे न मानी गईं तो उनमें केंद्र और राज्य दोनों ही सरकारों को उखाड़ फेंकने की क्षमता है।

दूसरी ओर वन अधिकार के बारे में मुख्यमंत्री फडऩवीस ने कहा कि इससे संबंधित सभी अपीलें और सहायता राशि के मामले अगले छह महीनों में निपटा लिए जाएंगे। किसानों के कजऱ् के मामले में मुख्यमंत्री ने कहा कि उन्होंने 46 लाख किसानों के लिए पैसा बैंकों में जमा करा दिया है और 30 लाख 50 हज़ार किसानों को इसका लाभ मिल चुका है। एमएस स्वामीनाथन रिपोर्ट को लागू करने के बारे में उन्होंने कहा कि इस विषय में वे केंद्र सरकार के साथ बात करेंगे।

छोटे किसानों के ‘लांग मार्चÓ की अगवानी की मुंबई वासियों ने, इसके स्वागत में तमाम पार्टियों के नेता भी पहुंचे।

महाराष्ट्र के किसानों ने बारह मार्च का अपने लांग मार्च के तहत मुंबई विधानसभा पर घेरा डाल दिया। छह मार्च से नासिक से चले कुछ हज़ार किसान जब मुंबई पंहुचे तो उनकी तादाद 40 हज़ार हो गई। इस लांग मार्च में शामिल किसानों के स्वागत में उद्धव ठाकरे (शिवसेना), राज ठाकरे (महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना) एनसीपी और आप पार्टी के नेता और कार्यकर्ता भी पहुंचे।

किसानों की मांग थी कि सरकार कजऱ् माफ करे। स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें लागू करे, बिजली के बिल माफ करे और वनाधिकार दे। अखिल भारतीय किसान सभा (एआईकेएस) की ओर से आयोजित यह बड़ी यात्रा छह मार्च को शुरू हुई थी। इस ‘लांग मार्चÓ में किसान सभा के नेता अशोक ढावले, विजुकृष्णन, जेपी गावित, किसन गुर्जर और अजित नवाले आदि हैं जुलूस में पीडब्लूपी, सीटू और एटक के कार्यकर्ता,नेता और राज्य में आत्महत्या करने वाले किसानों के परिवारों के बच्चे भी शामिल रहे।

‘लांग मार्चÓ में शामिल लंबे जुलूस में लाल झंडे और बैनर्स लिए हुए औसतन 15 किलोमीटर रोज यह जुलूस चलता। पूरे रास्ते में पडऩे वाले गांवों के लोग जुलूस में शामिल लोगों को बताशा और पानी देते। कुछ किलोमीटर साथ जुलूस में चलने का हौसला भी बांधते हैं। इस यात्रा में शामिल महिलाएं और पुरूष नाचते, गाते, नारे लगाते और गांव-गांव में अपनी बात कहते आगे बढ़ते हैं।

किसान महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक ढावले का कहना है कि नदी जोड़ परियोजना में ज़रूरी बदलाव किए जाएं जिससे नासिक, ठाणे और पालघर में आदिवासी गांवों को डूब में आने से बचाया जा सके। वहीं कृषि भूमि जबरन राष्ट्रीय परियोजनाओं में लेने का भी विरोध किया गया। किसान नेता राजू देसले ने कहा कि राष्ट्रीय राजमार्ग, बुलेट ट्रेन आदि के नाम पर किसानों की ज़मीनें जबरन छीनने का सिलसिला थमे। किसानों की आत्महत्या का सिलसिला रोका जाए।

औसतन लांग मार्च में शामिल किसान हर सुबह छह बजे से शाम छह बजे तक रोज 15-20 किलोमीटर चलते रहे। इन लोगों ने नासिक से मुंबई तक की लगभग 180 किलोमीटर की दूरी लगभग पांच दिनों में पूरी की। ठाणे और मुंबई में पुलिस ने यातायात के नए निर्देश भी जारी कर दिए जिससे कहीं कोई अनहोनी न हो और सामान्य शहरी कामकाज होता रहे।

माकपा की अखिल भारतीय किसान सभा ने इस लांग मार्च का आयोजन किया। इसमें बाद किसान और मज़दूर पार्टी और भाकपा की किसान शाखाओं के नेता और कार्यकर्ता जुड़े। ‘आपÓ पार्टी के कार्यकर्ता और नेता भी इसमें आए।

शिवसेना के नेता उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र में देवेंद्र फडऩवीस सरकार में वरिष्ठ मंत्री एकनाथ शिंदे ने आंदोलन के नेताओं से बातचीत की और ‘लांग मार्चÓ का स्वागत किया। अखिल भारतीय किसान सभा के सचिव अजित नवाले ने उनसे कहा कि वे खुद किसान हैं राज्य सरकार में मंत्री हैं। उन्हें कम से कम सरकार को किसानों की समस्याओं को समझते हुए एक फैसला भी लाना चाहिए था। फिर भी वे आए हम उनके आभारी है। उन्होंने बताया कि किसानों की मांगें हैं कि किसानों का पूरा फसली कजऱ् माफ किया जाए। वह वन भूमि जहां बरसों से किसान खेती करते रहे हैं उसके कागज पत्र बनाए जाएं और वनभूमि किसानों के नाम की जाए। स्वामीनाथन समिति की तमाम सिफारिशें तत्काल लागू की जाएं। अपनी मांगों के साथ लंबी पदयात्रा के किसानों ने मुंबई में अपना डेरा डाल दिया था।

चार साल से लापता ३९ भारतियों की हत्या की आईएसआईएस ने

दुर्दांत आतंकी संगठन आईएसआईएस ने उन ३९ भारतियों की हत्या कर दी है जो करीब चार साल पहले इराक में लापता हो गए थे। इसकी जानकारी राज्यसभा में मंगलवार विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने दी। इनमें चार हिमाचल के भी लोग हैं। इन लोगों की पहचान उनके डीएनए मेल करवाने के बाद हो चुकी है। इन सभी लोगों के शव जल्दी ही भारत लाकर उनके परिजनों को सौंप दिए जायेंगे।  यह शव लेने और अन्य औपचारिकताएं पूरी करने के लिए विदेश राज्य मंत्री वीके सिंह जल्दी ही इराक जा रहे हैं।
सुषमा स्वराज ने बताया कि इराक के मोसुल में लापता हुए इन ३९ भारतीयों की मौत हो चुकी है।  सदन में दिए अपने बयान में सुषमा ने कहा कि, इराक के मोसुल में लापता 39 भारतीयों को आईएसआईएस के आतंकियों ने मार दिया है। सुषमा ने सदन इन लोगों से जुडी तमाम जानकारी सदन में दी। सुषमा ने कहा कि इनमें से एक हरजीत मसीह ने जो कहानी बताई थी वह सच्ची नहीं थी। उन्होंने कहा कि सभी 39 शवों का डीएनए करवाया गया। मंत्री के मुताबिक इनमें से 38 के डीएनए  मैच हो चुके हैं और एक की जांच जारी है, हालाँकि उसमें भी ७० फीसदी मैच हो चूका है। काम मैच होने का कारन यह हो सकता है कि उसके माता पिता नहीं अन्य परिजनों के सैंपल लिए गए थे।
स्वराज ने सदन को जानकारी देते हुए बताया कि विदेश राज्य मंत्री जनरल वीके सिंह इराक गए और सबूत खोजने में मेहनत की। सुषमा ने कहा कि आतंकियों ने इनलोगों की हत्या करके उन्हें ज़मीन के भीतर दबा दिया था। इराकी सरकार और एक संगठन की मदद से डीप पेनिट्रेशन रडार के जरिए शवों को देखा गया और उसके बाद पहाड़ की खुदाई करने के बाद शवों को बाहर निकाला गया।
सुषमा ने कहा कि अब जनरल वीके सिंह इराक जाएंगे और सभी शवों को भारत लाया जाएगा। गौरतलब है कि मोसुल में लापता हुए भारतीयों में 39 भारतीयों के बदुश जेल में बंद होने के कयास लगाए जा रहे थे। विदेश मंत्री की तरफ से सदन में दी गई जानकारी और उनके आग्रह पर सभापति की मंजूरी से राज्यसभा में सभी मृतकों की याद में दो मिनट का मौन रखकर उन्हें श्रद्धांजलि दी गई। लापता भारतीयों में चार हिमाचल एयर अन्य पंजाब और बिहार के रहने वाले हैं।
इस बीच हिमाचल सरकार की तरफ से जानकारी दी गयी है कि मारे गए चार हिमाचलियों में से काँगड़ा जिले के धमेटा के संदीप का डीएनए मैच हो गया है। इसके अलावा आईएसआईएस के हाथों जान गंवाने वालों में कांगड़ा के पासु निवासी अमन कुमार पुत्र रमेश चंद, लंज के भटेड गांव के इंदरजीत और सुंदरनगर के बायला गांव निवासी हेमराज पुत्र बेली राम हैं। ये सभी 2013-14 से इराक में लापता हो गए थे। हेमराज के परिवार को अभी तक प्रशासन की तरफ से कोई सूचना नहीं मिली है।
निवासी संदीप की खबर मिलते ही पूरे गांव में मातम छा गया। जाहिर है कि रोजी-रोटी की तलाश में 16 सितंबर 2013 को संदीप इराक गया था। वह मोसूल शहर में टीएनएच कंपनी में कार्यरत था। 15 जून 2014 को आतंकियों ने उन्हें अन्य 38 भारतीयों के साथ बंधक बना लिया। उसी दिन उन्होंने परिजनों को भी दूरभाष पर सूचित किया था और उसके बाद से संदीप का कोई पता नहीं लग पाया है। संदीप के घर पर पत्नी चंद्रेश के अलावा बुजुर्ग माता-पिता व आठ साल का बेटा व 11 साल की बेटी की भी हैं। संदीप घर परिवार का एक मात्र सहारा था। इससे पहले संदीप के परिजन कई बार प्रशासन से संदीप की तलाश की गुहार लगा चुके थे।
सदन में विदेश मंत्री सुषमा स्वरक की तरफ से दी जानकारी टीवी पर मिलते ही इन लोगों के परिवार में मातम चा गया।  वे उम्मीद कर रहे थे कि एक दिन उनके परिजन सुरक्षित लौट आएंगे। राज्‍यसभा में विदेश मंत्री सुषमा स्‍वराज ने मंगलवार को बयान दिया था कि इराक के मोसुल में लापता सभी 39 भारतीय मारे गए हैं । विदेश मंत्री ने यह भी कहा था कि पहाड़ी खोदकर शव निकाले गए और डीएनए सैंपल से शवों की पहचान हुई। सबसे पहले संदीप नाम के लड़के का डीएनए मैच हुआ।
उधर ईराक के मोसुल में आईएसआईएस के चंगुल में फंसे 39 भारतीयों की मौत पर हिमाचल के मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर ने गहरा शोक जताया है। उन्होंने ट्वीट कर सभी भारतीयों के मारे जाने पर अपनी संवेदना जताई है। सीएम ने ट्वीट में कहा कि सूचना के अनुसार इसमें चार हिमाचल के लोग भी हैं। उन्होंने ईश्वर से मृतकों की आत्मा को शांति प्रदान करने की प्रार्थना की है और कहा कि  इस संकट की घड़ी में प्रदेश सरकार प्रभावित परिवारों के साथ है।

अपडेट: दोपहर पौने चार बजे विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने प्रेस कांफ्रेंस भी की और लोक सभा में कांग्रेस के शोर शराबे पर अफ़सोस जाहिर किया और कहा कि इतने संवेदनशील मुद्दे पर भी विपक्षी दल ने शोर किया। परिजनों के इस आरोप को उन्हें पहले इस बारे में जानकारी नहीं दी गयी, सुषमा ने कहा कि चूंकि संसद चल रही है इतने बड़े मुद्दे की जानकारी पहले परंपरा के मुताबिक वहीं दी जानी जरूररी थी। जून २०१४ की इस घटना की उनहोंने पूरी जानकारी दी और कहा कि परिजनों का यह सवाल कि जब उनके रिश्तेदारों के डीएनए सैंपल मांगे गए थे तो क्या सरकार को उसी वक्त पता चल गया था की उनकी मौत हो चुकी है, सुषमा ने कहा की डीएनए सैंपल मार्टिअस फॉउंडेशन के कहने पर लेने का फैसला किया गया था। सरकार ने की पहचान करने के लिए अपनी तरफ से कोइ कसर नहीं छोड़ी। इस बीच विपक्षी कांग्रेस ने इस मसले पर सरकार पर ग़ौर लापरवाही करने का आरोप लगाया है।

बिहार के ६ में ५, पंजाब के सभी २७, हिमाचल के सभी ४ और पश्चिम बंगाल के सभी २ लोगों की पहचान हो गयी है। बिहार के एक व्यक्ति राजू यादव की पहचान अभी नहीं हुई है।

जमाल की जान

तीन पाए का पलंग-एक पाए को तो दीमकों ने चाट लिया- जमाल चुपचाप लेटा हुआ था। उसे बेहद चिंता हो रही थी। न जाने क्यों खड़ा नहीं हो पा रहा था। उसकी उंगलियां ऊपर और नीचे हो रही थीं। उसके दिमाग में उसका कसा हुआ शरीर घूम रहा था। नहीं! वह तो आसपास है भी नहीं। लेकिन एक बार वह कितने दिन साथ रही। बहुत साफ कहें तो हर सुबह की शुरूआत से जुलाई के आधे महीने तक। यही वह आखिरी दौर था जब वे मिले।

गजब! वह बड़बड़ाया। अलग होने के भी अजब तरीके। अचानक हुई शुरूआत के बाद फिर अकेले हो जाने का भय। उसने आयताकार कमरे में चारों ओर देखा। फर्श पर तिलचट्टे दौड़ रहे थे और चारों ओर मच्छर अपनी तान छेड़े हुए थे। कोई भी और प्राणी नहीं था। सिवा उसके।

अच्छा होता खड़ा न होने के सूरत में उसने कभी इंसान की शक्ल ली ही नहीं होती। आखिर क्यों कोई इस पुराने तालुकेदार से अपना दोस्ताना बढ़ाता जिसके पास न धन-दौलत है बस अकड़ है।

वह अपने बाप-दादाओं की हवेली में ही, संयुक्त परिवार के घेरे के एक कोने में सिमट गया होता। लेकिन उसने चाहा कि वह खुद को दकियानूसी झमेलों से आजाद कर ले। उसने खेती की ओर ध्यान दिया खास तौर पर ‘आर्गेनिकÓ खेती की ओर।

लेकिन फसल चौपट हो गई। प्रदूषण के चलते आबोहवा बदली और बीजों और मिट्टी को खासा नुकसान पहुंचा। एक ही जगह वह कामयाब हो पाया वह भी उस औरत के साथ जिसे उसने अपना खाना बनाने के लिए रखा था।

अचानक एक दिन बस स्टैंड की कैंटीन में उसकी नज़र उस पर पड़ी। वह वहां चने की एक कटोरी दाल लेने गया था। उसके हाथ में एक प्लेट भात था। उसने उससे यूं ही पूछ लिया कि क्या वह उसके लिए किसी की तलाश कर सकती है जो उसके लिए दाल, चावल, रोटी बना सके।

वह पहले तो उसे एकटक देखती रही। फिर उसने सिर हिलाया। उसने कहा, सुबह यहां आने के पहले वह उसके यहां खाना बनाने आ सकती है। कुछ भी मुफ्त मेें नहीं मिलता। उसने कहा, हर महीने दो हज़ार रु पए से कम नहीं। रसोई का काम करके जिंदा तो रहना ही होगा।

न तो उसने अपना नाम बताया और न सरनेम। उसने अपने घर-परिवार के बारे में भी कुछ नहीं बताया। कोई फालतू की बात नहीं। कैंटीन में मौजूद तमाम तरह के फालतू लोग यह बातचीत बड़े गौर से सुन रहे थे। लिखो, अपना पता लिख दो इस चिट पर। मुझे उस तरफ गुसलखाने की ओर जाना है।

दूसरी सुबह दरवाजा पीटा जाने लगा। जमाल उठ बैठा। वह सन्न सा बैठ गया। आखिर इतनी सुबह उसके दरवाजे पर कौन हो सकता है। इतनी सुबह कौन हो सकता है वह भी इतनी व्यस्त मोहल्ले की गहराइयां में?

उसके दरवाजे पर वह खड़ी थी। काफी कमजोर, थकी हुई। उसके शरीर पर सूती साड़ी और ब्लाउज अपने कसाव में बांधे थे। वह तेज सांस ले रही थी जिससे उसके पल्लू के भीतर लग रहा था, दो जीवित वस्तुएं सांस सा ले रही हैं। थोड़ा हिचकचाया सा,वह यह समझ नहीं पा रहा था कि वह बातचीत किस तरह शुरू करें। आखिरकार उसी ने तो उसे खाना पकाने के लिए किराए पर रखा था और अब उसकी ललक बढ़ती जा रही थी और, थोड़ा और के लिए।

उसने अपना पल्लू सीने पर फैलाने की कोशिश की। लेकिन उसके स्तन विद्रोह करने पर आमादा थे। या फिर उसे ऐसा लगा। या उसने ऐसी कल्पना की। या वह यही चाहता था।

उसने उससे रूटीन के सवाल पूछे मसलन वह कहां रहती है और किसके साथ है।

लेकिन वह ब्यौरे में नहीं गई। उतना ही जितने का उसके काम से मतलब था – वह अलसुबह यानी पौ फटने ही आ जाया करेगी। उसके बाद वह कैंटीन चली जाएगी जहां रसोइए की नौकरी उसे मिली है।

दिन भर के काम पर उसके जाने के पहले उसने उससे अपने लिए और उसके लिए चाय बनाने को कहा। रसोई घर बाकायदा नहीं था। किसी तरह बंदोबस्त किया गया था। पत्थर के फर्श पर गैस का स्टोव था। पास ही एक आलमारी थी जिस पर जार थे। उनमेें वह सारा सामान था जो अमूमन हर भारतीय रसोईघर में मिलते ही हैं। यानी दालें, आटा, चपाती, चावल, चीनी, नमक, चाय, मेथी, हल्दी और बेसन। कोई लाल या हरी मिर्च भी नहीं थी जो उसकी आंतों के लिए ठीक न होती।

उसने सिर हिलाया और गैस स्टोव पर भगौया रख दिया। उसके स्तन उसके बेतरतीब ब्लाइज से बाहर झांकने से लगे। वह शायद कुछ सामान लेने के लिए उठने लगी तो लडख़ड़ा गई। इसके पहले उसका सिर चोट खाता। उसने उसे कमर से पकड़ लिया। उसे शायद उसका पूर्वाभास था या वह सतर्क था पर वह खुद पर काबू नहीं रख पाया। उसके हाथ बेकाबू होकर उसके ऊपर-नीचे, उठते-गिरते स्तनों पर थे। उसकी जीभ उसकी मुंह में जीभ पर थी। दोनों उस तीन पाए के पलंग पर जा बैठे। थोड़े ही पहल की ज़रूरत थी। थोड़ा ही धक्का देना या खींचना, थोड़ा बहुत प्रतिरोध उनके बीच हुआ। लेकिन दोनों की इच्छा तो थी।

इस वाकए पर वह अचंभित था। शायद उसे लगा वह चीखेगी या शोर मचाएगी। लेकिन उसने ऐसा कुछ नहीं किया। वह चीखी तक नहीं। मगर सुबकी ज़रूर। यह उसके चाहने सा था। वे हर बार वह गहराई तक जाता और उस दौरान चेहरे पर अपनी नजर गड़ाए रहता। वह बहुत आकर्षक नहीं थी लेकिन सादी थी। वह बहुत ही साधारणा मेकप रखती। काजल की एक रेखा, गले और स्तनों पर क्रीम लगाती। शायद शरीर से दुर्गध रोकने के लिए। पसीना ऊपर से नीचे बहता रहता। उन सुबहों में, एक सुबह उसने उसे कुछ इस तरह देखा मानो कि वह बोल उठी कि क्या वह उसके मुंह में जाना चाहता है।

दरअसल उसकी उत्तेजना में यही चाहत रही हो जिसके चलते वह पगला सा जाता था। वह उसके चेहरे पर जमी अपनी निगाहें कभी हटाना नहीं चाहता था। धरातल पर वह तेज लगती थी। और हर बार वह उसमें होता। वह उसके सहज उसके चारों ओर होती, उसे घेरे रखती उसे वह उतने ही जंगली तरीके से प्यार भी करती। लगभग एक फिसलने वाली जगह में लगभग अदला-बदली कर। उसे अंंदर सरकने देना और फिर बाहर, यहां वहां और उसके पांव कहां-कहां। फिर उसे वह जाने न देती उस पर उसके पांव होते। वह पीठ के बल होता और वह जताती रहती प्यार।

हर सुबह जब वह दिन में निकल जाती तो वह बैठा सोचता रहता। यह क्या साधारण सी दिखने वाली यह प्राणी इतने बेपनाह तरीके से उसे चाहती है। क्या उसे इस तरह से उन्मत्त तरीके से उससे प्यार करते रहना चाहिए। ऐसे ही दिन बीतते जाएंगे। क्या ये संबंध बने रहेंगे बिना उन क्षणों के जब अलसुबह वह खड़ा न हो पाता। लेकिन खेल थमता नहीं जारी रहता। तमाम तरह की आह, ओह और हल्की बड़ाबड़ाहट के साथ। वह उससे और कितना चाहेगी। उसके पास जो कुछ भी था वह उसे सौंप ही रहा था। अपना पुरूषत्व।

वह लगभग दो दशक बाद प्यार कर रहा था। उसकी काफी पहले शादी हुई थी लेकिन वह नहीं चली। उसका सामना उस औरत से हुआ जिसके मन में यह डर बैठा था कि उसके शरीर से कई तरह के विषाणु प्रवेश कर जाएंगे- एचआईवी हों या टीबी या वीडी या फिर एसटीडी। एक मिला-जुला अभियान जाने ले लेने को। वह चीखती ‘कंडोमÓ ज़रूरी हैं। कंडोम बेहद ज़रूरी है। हर बार आधीरात में वह चीखती। उसकी मां ने उसे नौ महीने भी वक्त दिया था जिसमें वह पहले पोते का मुंह देखना चाहती थी। इस अनोखी और अजीब सी बनी इस जोड़ी में उसका उत्साह महज एक सप्ताह तक रहा। यह शादी बमुश्किल चार सप्ताह रह पाई। और इसके पहले कि वह इस असंगत मेेल को ज्वार सा उठते बढ़ते महसूस करता। वह खत्म हो गया। निराशा में वह उन कंडोम को खींचता रहता। उनमें छेद करता रहता। ‘यह करके मुझे अपनी मां और पत्नी को संतुष्ट करने का आनंद मिलता।Ó यह तो अच्छा था कि उसके पास ढेरों कंडोम (निरोध) नहीं थे। फिर शादी ही ‘पंचरÓ हो गई थी। तलाक का मामला घिसटता रहा। उसमें कई तरह की शाखा-प्रशाखाएं भी फूटीं। वह भी खुद पर की गई टिप्पणियों से नहीं बचा जो उस पर किए गए थे। उसमें और उसके खानदान के बीच की दूरियां और बढ़ गई। वह एक ऐसे खोल में सिमट गया जहां कोई उसका कोई अपना नहीं जिससे वह दोस्ती कर सके।

ऐसा नहीं है कि वह हमेशा बाहर की मस्त रहता था। वह एक अक्षत यौवन थी। जिससे उसने शादी की। उसके पहले उसने अपने किशोर सालों में कभी किसी संबंधी का हाथ अपने हाथ में नहीं लिया था। अभी भी वह खाका उसके दिमाग में कौंधा करता है। एक धुंधली सी याददाश्त जब वह एक बच्ची थी और वह किशोर था। वह जल्दी ही अवध के किसी और शहर में चली गई थी।

ज़रूरी संसाधनों के अभाव में जमाल में सेक्स की इच्छा बस हस्तमैथुन तक सिमट गई थीं। तभी अचानक यह सुंदरी, एक तोहफे सी उसके हाथ लग गई।

वह हर सुबह आती। वे पहले घंटों प्यार करते। सेक्सुअल इच्छा थोड़ी बहुत तब भी पूरी होती चावल, तरकारी और दाल पकने के लिए जब पतीलों, हांडियों और देगची में चढ़ानी होती। वह दोपहर तक ज़रूर निकल जाती। हर दिन एक रहस्य ज़रूर छोड़ जाती। वह कभी ज़रूरत से ज्य़ादा कभी कुछ न कहती। वह उतना ही बोलती जितना उसे बोलना होता। उसने कभी न तो अपना नाम बताया और न यह बताया कि वह कहां से आती है। न उत्तेजना में उसने कभी यही कहती कि क्यों वह उसके जबरिया प्यार को झेल रही है। बल्कि वह उतनी ऊर्जा से उसे प्यार करती जितना उसने सपने में कभी सोचा हो। कभी तो उसका उत्साह उसके अपने दिमाग में हमेशा घूमती टहलती फिर अपनी सोच के साथ गति लेता। वह बैठ जाता और तुलना करता, उसकी एक ज़माने मेंंं उसकी एकमात्र पत्नी कितना ठंडापन था बनिस्बित इस औरत में गरमाहट के। वह कितनी गर्मजोशी से उसे बाहों में लेती थी। उसके मुंह की लार उसके मुंह में आ जाती थी। वह टांगों को थोड़ा चौड़ा करती। उसकी उंगलियां उसकी जांघों पर थिरकतीं हुई उसे उन ऊँ चाइयों पर ले जातीं कि वह बता नहीं सकता। वह जब दिन में अपने काम पर जाती तो उसमें दरवाजा बंद कर लेने भर की भी ताकत नहीं होती थी। वह घंटों एक ही मुद्रा में लेटा रहता… इंतजार करता दूसरी सुबह होने का। उसके शरीर की हर खूबसूरत बनावट को वह जानता-पहचानता था। उसकी आवाज में जो मलमजसाहट टपकती थी। उसकी आंखों में भावनाएं टंगी हुई थीं और फिर उसकी लंबी चोटी उसकी जांघों तक आती थी।

उसके बारे में उसे बहुत कम जानकारी थी। वह महज इतना जानता था कि वह भागी हुई कैंटीन जाएगी जहां उसे खाना पकाना है। कभी-कभी उसकी इच्छा होती कि वह कैंटीन मैनेजर से कम से कम उसका नाम तो पता करे। लेकिन फिर उसने इस सोच को नकार दिया। क्यों? शायद कैंटीन वाले की उसकी नियत पर संदेह हो जाए। बदले मेें वे यदि उससे उसका नाम और इतिहास पूछें।

क्या उसे उस पर शक होने लगा था? हां भी और नहीं भी। वह साधारण सी दिखती और कुछ भी ऐसा नहीं करती थी जिसे लेकर उस पर संदेह हो – हाथों पर इमली के दाग, लहसुन-प्याज-अदरक की गंध। कोई भी कह सकता था कि इतनी गमगमाती है मानो वह खुद बाकायदा एक बड़ा रसोईया है। लेकिन एक बार जब वह उसके पास होती तो बेहद बदली सी नजर आती। जैसे उसने प्यार करने का कोई कोर्स कर रखा हो या फिर ऐसी कुछ फिल्में देखीं हों जिनमें प्रेम का इजहार करते दिखाया जाता है।

अजीब-अजीब से ख्याल उसे आते जब वह उस पर लेटा होता। वह कैसे वहां हमेशा रहती लगभग अनंतकाल तक। कैसे उसमें इतनी ताकत है जैसी उसमें थी। वह कैसे इतनी हिम्मती, खुली हुई और जबरदस्त प्यार करने वाली है खूब!

एक सुबह उसने उसके नंगे शरीर को भर आंख देखा। कहीं भी कोई कुछ कटा-फटा, तिल या जख्मों का भी कोई निशान नहीं। कहीं भी नहीं। उसकी चमड़ी चमक रही थी और उस पर कहीं कोई धब्बा नहीं था जैसा कोई नवजात हो। उसकी पुरानी बीवी तो रोगों के गंभीर संक्रमण के अंदेशों से इस कदर डरी हुई थी कि उसने उसके स्तनों से हाथ खींच लिए थे। तभी उसने ही उसके हाथों को स्तनों पर रख दिया। आप क्यों मेरी इतनी छानबीन कर रहे हो, मानो आप खुद ही कोई बड़े डाक्टर साहब हो?अचानक वह बोली।

उसके पास कोई तैयार जवाब नहीं था। वह लगभग अस्पष्ट सा फुसफुसाया। क्या तुम्हारे ऐसे संबंध औरों के साथ भी हुए है। मेरा मतलब है कि दूसरों के साथ भी या सिर्फ मेरे ही साथ या…?

वह फुफकारी, वह गुर्राई। उसने बिना रु के अपने शब्दों से उस पर हमला किया। कैसे तुम्हारी हिम्मत हुई। कैसे तुमने मेरी बेइज्जती की। क्यों ऐसा किया तुमने! क्या मैंने कभी तुमसे तुम्हारे बारे में पूछा। तुम भी तो करते रहे हो। अब तुम चाहते हो कि मैं जाऊँ। मैं तों जा रही हूं। मैं जा रही हूं वहां न जाने कहां। तुम्हारे बिना भी मैं रह सकती हूं। मुझे तुम्हारा प्यार नहीं चाहिए। इतने सालों से मैं सब कुछ अकेली ही करती रही हूं। मुझे किसी की ज़रूरत नहीं, मुझे तुम्हारी भी ज़रूरत नहीं। तुम बस तुम हो।

‘लेकिन यह सब तुम्हारे लिए पहली बार सा तो नहीं था।Ó

‘नहीं पहली बार नहीं… एक और आदमी था लेकिन सालों पहले।Ó

‘कई बार उस आदमी के साथ?Ó

‘नहीं, बहुत बार नहीं। शायद आठ या नौ बार ही। मुझे बाद में पता चला कि वह जालसाज था। मैं उससे रूखी हो गई। यह सब बरसों पुरानी बातें हैं। मैं किसी से भी इन फालतू मामलों पर बात भी नहीं करती।Ó

‘लेकिन तुम मेरे साथ हो… तुम मुझे अच्छे से जानती भी नहीं हो और तुम यहां साथ लेटी हो।Ó

‘यह तुम्हारी समझ में नहीं आएगा। तुम्हारा साथ मैंने चाहा। मैं तुम्हारे साथ यह चाहती थी।Ó

‘लेकिन कैसे तुम इसके बिना बरसों रह सकी? मैं यह सब मैं नहीं समझ पा रहा। वाकई नहीं।Ó

‘तुमने जैसा कहा, तुमने यह सब बरसों नहीं किया। क्या तुम यह कहना चाहती हो कि बीस या तीस साल बाद तुम प्यार कर रही हो?Ó

उनके अपनी नजरें झुका लीं और अपना सिर उसके सीने पर टिका दिया। उसके हाथ उसके स्तनों को थामने के लिए बेचैन थे।

जुलाई के लगभग चौदह दिन बीते थे और इतवार का दिन था। कैंटीन की रसोई में उसकी छुट्टी थी। वह देर में पर तेजी से चली। वह इंतजार करता उकता गया था। उसके आते ही उसकी थकावट और परेशानियां दूर हो गईं। वह कुछ भी न कह सका।

हर सुबह की तरह उसने गैस स्टोव पर पतीला रख दिया। वह उसे आलिंगन में लेता कि वह दूर खिड़की की तरफ जाकर खड़ी हो गई। उसकी आंखों में सूनापनथा। उसके चेहरे पर तनाव बढ़ रहा था। ‘आज मैं छोड़ रही हूं।Ó

छोड़ रही हो। ‘हां,। क्यों… कहां। यह मत पूछो।Ó

‘तुम्हें कुछ और पैसा बढ़ा कर दूंगा। मैं ज्य़ादा नहीं कमाता लेकिनÓ

‘मैं यह शहर, यह मोहल्ला छोड़ रही हूं।Ó यह

‘जुल्म! मुझ पर क्यों इतना जुल्म। मैं तुम्हें कुछ और ज्य़ादा दे दूंगा। जो कुछ मेरे बैंक में है। वह सब अब तुम्हारा।Ó

‘रु पयों का क्या करना। बेकार-क्या कम और क्या ज्य़ादा।Ó

‘फिर क्या?Ó

‘मैंने अपनी सूरत बदलनी चाही थी लेकिन बदल नहीं पाई।Ó

‘तुम क्या चोर थी।Ó

‘नहीं चोर नहीं, पूरी तौर पर एक रसोइया।Ó

‘फिर क्यों ऐसा बदलाव?Ó

‘नहीं, अचानक नहीं। पिछले हफ्ते उन्होंने ने एक हेल्पर लड़का रहमत को निकाल दिया। अब मेरी बारी होगी। कैंटीन के ये तमाम बेमतलब के लोगों ने यह अनुमान लगा लिया कि मैं मुसलमान हूं। वे पहले मुझे निकाल बाहर करें, मुझे ही उन्हें एक सबक देना चाहिए। एक नायाब सबक। उन्हें अपनी जिंदगी से ही अलग करने का।Ó

‘तुम एक मुसलमान हो? हां…।

‘फिर तुम इतनी डरी हुई क्यों हो। क्या हुआ?Ó

‘मैं इस साले गुंडों-मवालियों से नहीं डरती। लेकिन खुद को मैं इन खूनी लोगों से बचाना चाहती हूं।Ó

‘लेकिन तुम तो महज एक रसोइया हो।Ó

‘ये थर्डक्लास लोग एक मुसलमान माली, या दर्जी या मजदूरी का तो रख लेंगे लेकिन मुसलमान, कतई नहीं।Ó

उसने सिर हिलाया। दुखी हुआ और सोचता रहा।

‘गुंडों की ये सेवाएं हमें जीने नहीं देंगी। घंटों इनके लिए खाना पकाते रहो और नतीजा सिफर।Ó

‘तुम्हारा नाम?Ó

‘रानी, इन वाहियात कैंटीन वालों के लिए। यह मेरा असली नाम नहीं है। मैं यहां से जा रही हूं। अब सुरक्षा का कोई भरोसा नहीं।Ó

‘तुम्हारा शौहर?Ó

‘उसने उसकी आंखों में देखा। फिर कहा, उसे छोड़ दिया। कभी उसके ही साथ भागी थी। लेकिन वह एक जालसाल निकला, उसे छोड़ दिया।Ó उसने कंधे उचकाए। फिर कड़ लहजे से कहा, ‘मैं बिना शौहर के भी गुजर-बसर कर लूंगी, भले कहीं कुछ भी न हो। भले प्यार भरे शब्द न हों। भले कोई स्पर्श न हो, भले ही कुछ भी न हो। मैं नहीं चाहती कि मुझे टुकड़े-टुकड़े काट डाला जाए और शेष ब्रिगेड-सेना वाले जो इधर-उधर घूम रहे हैं वे उसे इधर और उधर फेंकते फिरें।Ó

‘लेकिन तुम एक औरत हो!Ó

‘तो क्या हुआ।Ó

‘ये लोग तुम्हारा बलात्कार कर सकते हैं या …।Ó

‘मैं उन्हें खुद को छूने भी नहीं दूंगी। कोई मुझे नहीं छू सकता।Ó

‘लेकिन तुम अकेली हो।Ó

‘इसीलिए मैं वापस अकबराबाद जा रही हूं।Ó

‘अकबराबाद? वह मेरा कस्बा है। हो सकता है मैं तुम्हारे परिवार को भी जानता होऊं।Ó

‘उसने उसके किसी भी सवाल का फिर जवाब नहीं दिया। हालांकि वह बड़बड़ाता रहा। लेकिन तुम मेरे पास आई। मेरे साथ रही, अपनी खुशी से। क्यों? तुमने ऐसा क्यों किया यदि तुम्हें मुझे छोड़ ही देना था?Ó

निहायत तकलीफ भरी नजरों से उसने उसे देखा।

उस टिकी हुई अजीब सी निगाहों में कुछ वैसा ही था जब लगातार उसे उसी तरह देखती रही जब तक वह झल्लाता हुआ बोल नहीं बोला, मुझे छोड़ कर मत जाओ। मैं तुम्हारी देखभाल करूंगा।Ó

उसने उसे सवालिया निगाहों से एकबारगी देखा ‘कहां था यह उन सालों में जब वह नारकीय जिंदगी जी रही थी।Ó

बेहद कमजोर सी वह कमरे से बाहर को बढ़ी। वह चलती रही। नहीं और कतई नहीं मुड़ी। एक बार भी नहीं। तब भी नहीं जब कि उसने अपना सोचा संभाला वाक्य उछाला। ‘तुम्हें कोई भी वह नहीं दे सकता जो मैंने तुम्हें दिया। मैंने तुम्हें सब कुछ बेहद दिया और बेइंतहा।Ó

‘लेकिन वह चुपचाप उस सूनी गली में चलती रही।Ó

जमल खुद अकबराबाद गया और लौटा। वहां उसे ढूंढता रहा। हो सकता है वह उसे फिर तलाश ले। शायद… और लेकिन वह कहीं नहीं मिली।

जमाल के खानदान मेें ज़रूर कोई एक सदस्य लापता लोगों की सूची में था। वह उस सूची में थी जान बानो। वह बच्ची जिसका हाथ उसने सालों पहले अपने हाथ में लिया था – तब वह किशोर था और वह एक बच्ची।

एक पागल की तरह वह हर किसी से या कहें हर किसी से अकबराबाद की भीतरी और बाहरी गलियों मेें घूमता-बात करता रहा। बड़ी होकर जान बानो कैसी दिखती होगी। क्या वह साडिय़ां पहनती होगी। क्या बालों में प्लेट लगाती होगी? क्या वह खाना पकाती थी। क्या वह दुबली-पतली सी थी। क्या उसके निचले ओठ के पास तिल (मस्सा) था?

कहीं कोई साफ जवाब नहीं।

लेकिन वह जितना ज्य़ादा वह उसके बारे में सोचता वह आश्वस्त होता जाता कि हो न हो, यह वही जान बानो थी। ख्याल और ज्य़ादा ख्याल आते। सालों पहले जब उसने उसका हाथ थाम लिया था तो उसने अपना हाथ उसके हाथ की पकड़ से खींचा नहीं था।

उसने उसे हाथ थामे रहने दिया जब तक वह चाहा। काफी देर तक। यह थी चाहत। बेतरह चाहत। हो सकता है उसने इतने सालों तक उसका इंतजार किया हो। हो सकता है उसने कैंटीन से उसे पहचान लिया हो इसीलिए वह खुशी से उसकी बगल में उसकी तीन पाए की चारपाई पर लेटती।

बाहरी इलाकों में बसी गंवई बस्तियों से जबरदस्त दंगे-फसाद की खबरें आ रही थीं। जमाल बेहद बेचैन हो रहा था। वह तनाव में भी था। हो सकता है उसकी इच्छा हुई हो कि वह अपने कस्बे के घर का हाल-चाल जानने के लिए वापस अकबराबाद जाए। हो सकता है वहां वह अपनी जानबानों को वहां पा जाए। बस, हो सकता है!

‘सत्यमं शिवं सुंदरम के बहाने झलकी भारतीयता

हैदराबाद में आयोजित साहित्यिक समारोह ‘हिंदी साहित्य एक विहंगम दृष्टिÓ के बहाने एक ही राज्य से अलग दूसरे राज्य की व्यथा, दो बिछड़े हुए दिलों को जोड़ कर भारतीय एकता की एक मिसाल के तौर पर दिखी। प्रस्तुत किया तेलंगाना की ज़मीन से जुड़े रहे आन्ध्र में पदेन वरिष्ठ पुलिस महानिरीक्षक कुमार विश्वजीत उर्फ सपन ने। उन्होंने ‘फेसÓ बुक पर ‘सत्यमं शिवमं सुन्दरमÓ मंच की स्थापना की है और अब हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं में पर देश भर के विभिन्न साहित्यकारों के आए विचारों को संग्रहीत करके, पुस्तक का रूप दे दिया है।

जिसका विमोचन हैदराबाद के गैं्रड होटल के सभागार में पिछले दिनों कवि गिरेन्द्र सिंह मदारिया ने किया। इस अवसर पर फेसबुक के रचनाकार साथियों में हरीओम श्रीवास्तव, विनोद सिंह नामदेव, श्रीकृष्ण बाबू, गुरुचरण मेहता, आदित्य कुमार तायल,ज्योत्सना सक्सेना, विश्वजीत सागर शर्मा, ब्रजनाथ श्रीवास्तव आदि थे।

विश्वजीत ‘सपनÓ ने आयोजन को संचालित भी किया। इन अवसर पर मंच से अपना संदेश देते हुए कवियित्री अहिल्या मिश्र ने खुद को विश्वजीत के साथ प्रांतीय संबंधों को जोड़ते बताया कि ‘मैं भी बिहारी हूं।Ó साहित्य संदर्भों को जताते हुए विश्वजीत सपन ने साफ कहा था कि मेरी दृष्टि में हर रचनाकार जब रचना करता है तो वह उसे बांटना नहीं चाहता। दु:ख पाकर दु:ख की आंच को समझना और उस आंच में तपते हृदयों के साथ ‘समवेदनाÓ स्थापित करना अलग बात है।

आन्ध्र से तेलंगाना का बंटवारा जब हुआ तो लगभग लाटरी से अधिकारियों का भी राज्यों में बंटवारा कर दिया गया। मंच पर जहां विश्वजीत सपन थे वहीं तेलंगाना एसआईटी की आईजी अभिलाषा थीं जो अपने नन्हे पुत्र के साथ श्रोताओं में थीं और पुत्र पिता से मिलने को आतुर हो रहा था। क्योंकि महीने में एक बार पिता के साथ बिताए क्षणों का आज वह साहित्य के बहाने आन्ध्र और तेलंगाना के साझा मंच पर साझा कर रहा था। इस दारूण क्षण को एक श्रोता अर्जुन सिंह ने भी महसूस किया। उन्होंने कहा कि बे्रेख्त के अनुसार ऐन फैसले के मौके पर ऐसे दृश्य कारुणिक बहुत हैं जो उदास भी करते हैं फिर भी यह यर्थात पूर्ण रचना और ममता का संगम है।

ब्रजनाथ श्रीवास्तव ने कहा कि जिन्दगी का यही यथार्थ है जो हमें एक डोर से खींचता है। यही भारतीय संवेदना है। हिंदी के महारथी कवि-आलोचक राम विलास शर्मा और आलोचक-कवि नामवर सिंह ने साहित्य में हावी हो रही अस्तित्ववादी चेतना के बरक्स कबीर के जरिए भारतीय परंपरा स्थापित की थी। जिसे काफी कुछ बदलते हुए आज संस्कृत के विद्वान और बरसों हाशिए पर बैठे रहे हिंदी के वरिष्ठ रचनाकार अब ऐतिहासिक साहित्य वारिधि बनाने में जुट गए हैं।

संस्कृत साहित्य के साहित्य मर्मज्ञों ने जहां उद्देश्य को कभी भावों की प्रस्तुति बताया तो कभी कला की अनिवार्यता। विश्वजीत सपन ने कहा, साहित्य का उद्देश्य कभी आदर्शों की स्थापना का रहा तो कभी यथार्थ का। विश्वजीत के इस बयान पर अच्छा-खासा विवाद भी छिड़ा। यह तक कहा गया कि ‘शापÓ शब्द का उदय संस्कृत साहित्य की ही देन है। छंद के बाहर की कविता यानी मुक्त छंद मुक्तिबोध की सौ साल पुरानी विशेषता है। आज के हालातों में बढ़ती कट्टरता तोड़ पाने में यही सक्षम भी है।

मंच पर जहां तेलुगु-हिंदी के रचनाकार, आन्ध्र और तेलंगाना में और देश के विभिन्न साहित्यकार पुस्तक के बहाने आपस में मिले तो उसे देख कर लगा ‘राजनीति जहां हमें तोड़ती है वहीं साहित्य जोड़ता है, बकौल विश्वजीत, इस परिदृश्य में मैं अकेला नहीं हूं, आप सब साथ हैं।

हरियाणा की बेटी ने रचा निशानेबाजी मे इतिहास

मुक्केबाजी के रिंक से निशानेबाजी की रेंज पर पहुंची 16 साल की मन्नू भाकेर ने वह कर दिखाया जिसकी कल्पना भी शायद किसी ने नहीं की होगी। इस युवा निशानेबाज ने मिश्रित टीम मुकाबले में दो स्वर्ण पदक जीत लिए। उसने यह कारनामा आईएसएसएफ विश्व कप मुकाबलों में कर दिखाया जो मैक्सिको में खेले गए।

ओमप्रकाश मित्रावल के साथ जोड़ी बना कर इस युवा निशानेबाज ने 10 मीटर एयर पिस्टल टीम खिताब जीत लिया इससे पूर्व वह 10 मीटर एयर पिस्टल के व्यक्तिगत मुकाबलों में स्वर्ण पदक जीत चुकी थी। सीनियर मुकाबलों मेें यह उसकी पहली प्रतियोगिता थी। हालांकि राष्ट्रीय रायफल एसोसिएशन आफ इंडिया (एनआरएआई) ने इसकी पुष्टि नहीं की है पर मन्नू शायद भारत के लिए निशानेबाजी में स्वर्णपदक जीतने वाली शायद सबसे कम उम्र की खिलाड़ी है।

भारत-2 के नाम से खेल रही दीपक और मेहली घोष की टीम ने 10 मीटर एयर रायफल मुकाबलों की पांच देशों की स्पर्धा में 435.1 अंक हासिल कर मिश्रित मुकाबलों में कांस्य पदक हासिल किया। इस स्पर्धा का रजत पदक रोमानिया के एलिन मोलडोवीनू और लाओरा जियोरगेटा कोमा को मिला। उन्होंने 498.4 अंक हासिल किए। इस स्पर्धा का स्वर्णपदक चीन के हुआ होंग और चेन केंडु ने 502.0 अंको का विश्व रिकार्ड बनाते हुए जीता।

पर प्रतियोगिता में धमाका तो हरियाणा के झज्जर की मन्नू भाकेर ने दो दिनों में दो स्वर्ण पदक जीत कर कर डाला। एक लड़की जिसने मात्र दो साल पहले निशानेबाजी को अपनाया, के लिए विश्व के शिखर पर पहुंचना करिश्मा नहीं तो क्या है। मन्नू भाकेर का निशानेबाजी में आना मात्र संयोग ही था। पदक जीतना और रिकार्ड बनाने के बारे में पूछे गए सवालों पर वह सादगी से कहती है, ‘बस यह हो जाता है। मैं तो इसके बारे में सोचती तक नहीं। कई बार तो मुझे पता भी नहीं होता कि मौजूदा रिकार्ड क्या है? अपने इस प्रदर्शन के लिए वह अपने प्रशिक्षकों की आभारी है जिन्होंने उसकी तकनीक सुधारने के लिए घंटों खर्च किए हैं।Ó

पिछले साल दिसंबर में उसने 61वीं राष्ट्रीय शूटिंग चैंपियनशिप में, जो केरल के तिरूवअनंतपुरम में हुई थी उसने अपने से कहीं अधिक अनुभवी और रिकार्डधारी हिना संधू के पछाड़ और उसका रिकार्ड तोड़ते हुए स्वर्ण पदक जीता था। इस टूर्नामेंट में उसने नौ स्वर्णपदकों सहित कुल 15 पदक जीते थे।

भाकेर की निशानेबाजी से पहली मुलाकात उस समय हुई जब उसके पिता उसे शूटिग रेंज पर ले गए और वहां उसे एक प्रयास करने को कहा। वहां उसने कुछ ‘शॉटÓ चलाए जो ‘टारगेटÓ के मध्य में लगे। इसके बाद तो इतिहास बन गया। आज वह यूनिवर्सल सीनियर सकेंडरी स्कूल गौरेया की छात्रा है। यह गांव हरियाणा के झज्जर जि़ले मेें पड़ता है। वह रोज़ अपने घर से 22 किलोमीटर दूर ट्रेनिंग सेंटर जाती है और हर दिन पांच घंटे अभ्यास करती है। निशानेबाजी में आने से पहले वह कई खेलों में नाम कमा चुकी है। उसने स्केटिंग के राज्य स्तरीय मुकाबलों में चैंपियनशिप जीती। उसने एथलेटिक्स में भी पदक जीते और कराटे और तांगला (मणिपुरी मार्शल आर्टस) में भी राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीते। निशानेबाजी में आने के बाद वह तीनों वर्गों में राष्ट्रीय चैंपियन बनी।

महाभारत, चुनाव, कांग्रेस और राहुल

congress sessionसम्भवता राहुल गाँधी का यह अब तक का सबसे प्रभावशाली भाषण है। आत्मविश्वास से भरा, जिसमें महाभारत थी, हिन्दू धर्म को परिभाषित करने का राजनीतिक रिस्क था, कांग्रेस के सत्ता में आने पर उनकी नीतियों की हल्की सी झलक थी, पार्टी में पैराशूट की राजनीति के खिलाफ और अनुशासन रखने की छिपी चेतावनी थी, प्रतिद्वंदी भाजपा को अपने डरपोक न होने का सन्देश था और कांग्रेस सदस्यों को बताने की कोशिश थी कि २०१९ का चुनाव कांग्रेस के लिए ऐसी ऊंचाई नहीं, जिसे वह छू न सके। कांग्रेस महाधिवेशन के अंतिम दिन अपने भाषण के जरिये एक ”नया राहुल” और ”नई कांग्रेस” नए कांग्रेस अध्यक्ष ने सामने राखी है। तय है कांग्रेस मैंने वाले दिनों में बड़े परिवर्तन होने वाले हैं।
भाजपा की तरफ से राहुल के भाषण के घंटे भर बाद ही भाजपा की वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री  निर्मला सीतारमण ने पार्टी की प्रतिक्रिया दी और इमरजेंसी और सिख दंगों के जरिये राहुल के भाषण के प्रभाव को धोने की कोशिश की, लेकिन सच यह है कि राहुल अपने भाषण से कम से आम कांग्रेस कार्यकर्ता और एक आम हिन्दुस्तानी को अपना सन्देश देने में सफल रहे हैं। उन्होंने कांग्रेस में आम कार्यकर्ता के महत्व को उजागर किया और साफ़ सन्देश दिया है कि पार्टी में अब ससम्मान बुजुर्गों की जगह युवा आने वाले हैं।
उन्होंने कांग्रेस को ”पांडव” और ”भाजपा” को कौरव बताकर पार्टी की गांधीवादी छवि उजागर करने की कोशिश की। दो शिव मंदिरों में अपने जाने और पंडितों की बातों के जरिये हिन्दू धर्म में सहिषुणता को उजागर करने की कोशिश की। राहुल का यह राजनीतिक रिस्क था लेकिन उन्होंने लिया। दरअसल उन्होंने हिन्दू धर्म में सहिषुणता और असहिषुणता के बीच लकीर खींचने की कोशिश की। राहुल बताना चाहते हैं कि उनके नेतृत्व में कांग्रेस एग्रेशन, एरोगेंस की राजनीति नहीं करेगी। प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह पर राहुल ने सीधा और कड़ा हमला किया। यह बताने की कोशिश कि वे कांग्रेस को पुनर्जीवित करने के लिए उनसे सीधी टक्कर को तैयार हैं।
राहुल ने बार-बार भाजपा को संघ से जोड़ा। यह सन्देश दिया कि देश में एक ख़ास विचारधारा सत्ता पर काबिज है। यह विचारधारा न्यायपालिका से लेकर हर संबैधानिक संगठन पर काबिज हो रही है और इससे आने वाले दिनों में एक बड़ा खतरा खड़ा होने वाला है। युवाओं, किसानों को अपने भाषण में फोकस किया और यही भी कहा कि कांग्रेस का स्टेज पार्टी ही नहीं पार्टी से बाहर के युवाओं के लिए भी है, वे आएं।
राहुल गांधी ने भाजपा, आरएसएस और पीएम नरेंद्र मोदी पर जमकर हमला बोला। गांधी ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं से कहा कि 2019 का चुनाव उन्हें मिलजुलकर लड़ना है और इसके लिए वह नहीं चाहते कि पार्टी के अंदर कोई मनमुटाव हो। कहा कि कौरवों की तरह भाजपा और आरएसएस सत्ता के लिए लड़ रही है और कांग्रेस पांडवों की तरह सत्य के लिए लड़ रही है। कांग्रेस पार्टी पांडवों की तरह है। कहा कि जब यह जरूरी होता है कि किसी मुद्दे पर प्रधानमंत्री बोलें तो वह चुप हो जाते हैं। हम कांग्रेसी जनता के सेवक हैं। बेरोजगारी है, किसान मर रहे हैं और पीएम हमें इंडिया गेट पर योग करने को कहते हैं।
राहुल ने कहा कि भाजपा एक संगठन (आरएसएस) की आवाज है जबकि कांग्रेस देश की आवाज है।  राहुल ने कहा कि महात्मा गांधी ने 15 साल जेल में बिताए और देश के लिए अपनी जान दे दी। भारत को यह नहीं भूलना चाहिए कि जब गांधी जेल में फर्श पर सो रहे थे तब सावरकर अंग्रेजों को खत लिखकर दया की भीख मांग रहे थे।
कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि हम दुनिया की सबसे तेजी से विकसित होती अर्थव्यवस्था थे लेकिन आज युवा बेरोजगार हैं। नोटबांडी की  निंदा करते हुए उन्होंने कहा कि उन्होंने (मोदी) नोटबंदी लागू कर दी।   दुनिया ने कहा कि यह एक बड़ी गलती है। उन्होंने कभी अपनी गलती नहीं मानी। कांग्रेस होती तो मान लेती कि हां ये हमारी गलती थी और उसे ठीक करने के लिए काम करती। गलती इंसान से ही होती है लेकिन मोदी को लगता है कि वह भगवान के अवतार हैं उनसे गलती नहीं हो सकती है।
राहुल ने कांग्रेस में दो दीवारें गिराने की प्रतिज्ञा ली। कहा कांग्रेस पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच की दीवार तब नजर आती है जब कड़ी मेहनत करने वाले कार्यकर्ताओं को यह बोलकर टिकट देने से इनकार कर दिया जाता है कि उनके पास पार्टी टिकट के लिए पैसे नहीं हैं और उसकी जगह किसी और को टिकट दे दिया जाता है। यहां बैठे कई लोगों को मेरी यह बात बुरी लग सकती है लेकिन हमें यह दीवारें गिरानी हैं।
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह पर सीधा हमला किया। कहा – वह (भाजपा) हत्या के आरोपी एक नेता को अपने अध्यक्ष के तौर पर स्वीकार कर सकती है लेकिन कांग्रेस पार्टी कभी स्वीकार नहीं करेगी क्योंकि जनता को पता है कि कांग्रेस का स्तर अच्छा है।
राहुल से पहले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने केंद्र की मोदी सरकार पर हमला बोलते हुए देश की इकॉनमी को बर्बाद करने का आरोप लगाया। मनमोहन ने कहा कि कश्मीर के हालात दिन-ब-दिन बिगड़ते जा रहे हैं। यही नहीं सीमा पार आतंकवाद से निपटने में भी लचर रवैया अपनाने का आरोप लगाते हुए मनमोहन ने कहा, ‘जम्मू-कश्मीर में परिस्थितियां बिगड़ती जा रही हैं। सीमा पार आतंकवाद भी बढ़ा है और आंतरिक आतंकवाद में भी इजाफा हुआ है। यह हम सभी नागरिकों के लिए चिंता की बात है। मोदी सरकार इन समस्याओं से निपटने का कोई समाधान नहीं तलाश पाई।’ जम्मू-कश्मीर से संबंधित पक्षों से संवाद की वकालत करते हुए पूर्व पीएम ने कहा कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है। लेकिन हमें वहां की कुछ समस्याओं को भी समझना होगा और उनसे गंभीरता के साथ निपटना होगा। विदेश नीति को लेकर भी मोदी सरकार हमलवार मनमोहन सिंह ने कहा, ‘पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, चीन या नेपाल के साथ हमारी समस्याएं हो सकती हैं, लेकिन इन्हें बातचीत से ही हल किया जा सकता है। पाकिस्तान की बात करें तो हमें मानना होगा कि वह हमारा पड़ोसी देश है। इसके साथ ही हमें उसे यह समझाना होगा कि आतंकवाद का रास्ता उसके लिए ठीक नहीं है।’
कांग्रेस के प्लेनरी सेशन में पीसीसी डेलिगेट और एआईसीसी के सदस्य मौजूदगी में कार्यसमिति के सदस्यों के चुनने के अधिकार पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी को दिए जाने वाले प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पास कर दिया गया है। अब जल्द ही कांग्रेस कार्यसमिति  के सदस्यों की नाम पर मुहर लगा सकते हैं।  इसका मतलब साफ है कि राहुल अब अपनी टीम के सदस्यों के नाम खुद तय करेंगे। कांग्रेस कार्यसमिति पार्टी में अहम फैसले लेने वाली शीर्ष संस्था है। कांग्रेस की नई कार्यसमिति के सदस्यों के नाम चयन करने का अधिकार राहुल को सर्वसम्मति से सौंप दिया गया है। कार्यसमिति में कांग्रेस अध्यक्ष समेत कुल 25 सदस्य होते हैं जिनमें १२ मनोनीत होते हैं।

कांग्रेस महाधिवेशन: २०१९ पर नजर

२०१९ के चुनाव से पहले दिल्ली के इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में पार्टी के महाधिवेशन में शनिवार को कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी और अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपने कैडर में नई जान फूंकने का काम किया। पार्टी ने दुबारा बैलट पेपर से चुनाव करवाने की मांग कर देश को यह सन्देश देने की कोशिश की कि ईवीएम में गड़बड़ हो रही है और भाजपा इसके पीछे है। साथ ही २०१९ के लोक सभा चुनाव के लिए विपक्ष का बड़ा गठजोड़ बनाने की संभावनाओं का संकेत भी दिया।
इस अधिवेशन से यह भी संकेत मिला कि सोनिया गांधी विपक्ष को एकजुट करने की सबसे बड़ी शक्ति हैं और सम्भवता वही इस रोल को निभाएंगी भले अपने भाषण में उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष के नाते पूरी तरजीह देकर यही सन्देश देने की कोशिश कि राहुल ही अब पार्टी के सत्ता केंद्र हैं। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पार्टी लगातार तरजीह दे रही है जिससे यह संकेत भी मिलते हैं कि यदि २०१९ में ज़रुरत पड़ी और सेहत ने इजाजत दी तो कांग्रेस एक रणनीति के तहत मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री के तौर पर आगे कर सकती है। सोनिया ने अपने भाषण में जिस तरह मोदी सरकार पर हमला किया, विपक्ष को एकजुट होने का इशारों ही इशारों में संकेत किया, अपने शब्दों में पार्टी के अभिभावक होने की गंभीरता दिखाई, उससे जाहिर हो गया कि वे राजनीति में कमसे काम २०१९ के चुनाव तक तो सक्रिय रहेंगी ही।
राहुल गांधी की अध्यक्षता में पार्टी का यह पहला अधिवेशन है और इसमें २० हजार से ज्यादा प्रतिनिधि शामिल हैं। महाधिवेशन इस लिहाज से भी ख़ास है कि यह आठ साल बाद हो रहा है। राहुल गांधी के भाषण के बाद कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी भाषण दिया। भाषण को पूरा करने के बाद सोनिया गांधी ने राहुल गांधी को गले लगाया। इस दौरान वहां मौजूद सभी कांग्रेसियों ने तालियां बजाईं।
राहुल के बाद दोपहर सोनिया गांधी ने अपने भाषण में मोदी सरकार पर हमला किया। सोनिया ने कहा – ”आज मैं निराश और दुख महसूस करती हूं कि मोदी सरकार यूपीए की कल्याणकारी योजनाओं को कमजोर बना रही है। आतंकवाद से लड़ने, समग्र विकास सुनिश्चित करने का प्रधानमंत्री मोदी का वादा सब ड्रामेबाजी था, सत्ता हथियाने की चाल था। सबका साथ, सबका विकास’ और ‘ना खाऊंगा, ना खाने दूंगा’ इस सरकार के किए वादे कुछ नहीं बल्कि ‘ड्रामा’ थे। वोट पाने के लिए उनकी रणनीति थी।”
अपने भाषण में सोनिया ने राहुल के नेतृत्व को एस्टब्लिश करने की कोशिश की। कहा – ”सबसे पहले, मैं राहुल गांधी को बधाई देती हूं कि उन्होंने चुनौतीपूर्ण समय में पार्टी अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाली।
पार्टी की जीत राष्ट्र की जीत होगी, यह हम में से हर एक की जीत होगी। कांग्रेस एक राजनीतिक शब्द नहीं है, यह एक आंदोलन है। चिकमगलूर में इंदिराजी की चालीस साल पहले आश्चर्यजनक जीत ने भारतीय राजनीति को बदल दिया। एक बार फिर हमारी पार्टी को इसी तरह का प्रदर्शन करना होगा।”
उन्होंने कार्यकर्ताओं से कहा कि आप सभी जानते हैं कि मैंने सार्वजनिक क्षेत्र में किस प्रकार परिस्थितियों में प्रवेश किया था, लेकिन जब मुझे एहसास हुआ कि पार्टी कमजोर है, कांग्रेसियों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए, मैंने राजनीति में प्रवेश किया।
उन्होंने दावा किया कि कर्नाटक में कांग्रेस एक बार फिर सरकार बनाएगी। सोनिया गांधी ने कहा कि मोदी सरकार यूपीए की योजनाओं को कमजोर कर रही है। मौजूदा सरकार सभी तरीकों के जरिए कांग्रेस को नीचा दिखाने की कोशिश कर रही है लेकिन कांग्रेस न कभी झुकी है और न झुकेगी। गांधी ने कहा कि कुर्सी के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने झूठी नारेबाजी की है और इसका कांग्रेस पार्टी उन्हें सबक सिखाएगी। विपक्ष की आवाज को मोदी सरकार दबाने की कोशिश कर रही है लेकिन इसमें सफल नहीं हो पाएगी। ”मोदी सरकार यूपीए की योजनाओं को कमजोर कर रही है. मौजूदा सरकार सभी तरीकों के जरिए कांग्रेस को नीचा दिखाने की कोशिश कर रही है लेकिन कांग्रेस कभी न झुकी है और न झुकेगी।”
गांधी ने कहा कि सत्ता के भय और मनमानी से मुक्त भारत, पक्षपात मुक्त भारत, प्रतिशोध मुक्त भारत, अंहकार मुक्त भारत बनाने के लिए हर कुर्बानी के लिए हमें तैयार रहना होगा। ”हमारा नाता महान पार्टी से है, ऐसी पार्टी जो पूरे देश से जुड़ी है।” सोनिया ने कहा लोगों के दिलों में अब भी कांग्रेस बसी है और ऐसी पार्टी की अध्यक्षता करने पर मुझे गर्व है। कहा कि ”मैं उन राज्यों के कार्यकर्ताओं की सच्चे दिल से तारीफ करना चाहती हूँ, जहां कांग्रेस पार्टी की सरकार नहीं है।” कहा कि तमाम तरह के अत्याचारों का सामना करके भी वे डटे हुए हैं।
उनसे पहले राहुल ने कहा कि आज देश में गुस्सा फैलाया जा रहा है। देश को बांटने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने अधिवेशन में बदलाव की बात की और कहा कि भाजपा गुस्से की राजनीति करती है हम प्यार की राजनीति करते हैं। राहुल ने कहा कि हमारा काम जोड़ने का है। यह हाथ का निशान (कांग्रेस चुनाव चिन्ह) ही देश को जोड़ सकता है। देश को आगे ले जा सकता है। राहुल ने कहा कि उन्होंने क​हा कि कांग्रेस के इस निशान की शक्ति आप पार्टी प्रतिनिधियों के भीतर है। हम सबको, देश की जनता को मिलकर देश को जोड़ने का काम करना होगा। उन्होंने कहा कि महा​धिवेशन का लक्ष्य कांग्रेस और देश को आगे का रास्ता दिखाने का है। ”आज देश थका है। रास्ता ढूंढ़ने की कोशिश की जा रही है। किसानों युवाओं को रास्ता नहीं दिख रहा है। कांग्रेस देश को रास्ता दिखाने का काम करेगी।  हम बीते हुए वक्त को भुलते नहीं हैं।”
गौरतलब है कि इसी १३ मार्च को दिल्ली में सोनिया गांधी ने विपक्ष के नेताओं को अपने घर डिनर पर बुलाया था जिसमें माकपा, भाकपा, तृणमूल कांग्रेस, बसपा, सपा, जदएस, राजद सहित 20 विपक्षी दलों के नेताओं ने हिस्सा लिया था। बैठक में मौजूदा राजनीतिक हालात सहित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा हुई थी। इस रात्रिभोज में राकांपा के शरद पवार, तृणमूल कांग्रेस के सुदीप बंदोपाध्याय, सपा के रामगोपाल यादव, बसपा के सतीशचंद्र मिश्र, राजद से मीसा भारती और तेजस्वी यादव, माकपा से मोहम्मद सलीम, भाकपा से डी राजा, द्रमुक से कनिमोझी, शरद यादव, नेशनल कांफ्रेंस के उमर अब्दुल्ला, एआईयूडीएफ, झामुमो के हेमंत सोरेन, रालोद के अजित सिंह, आईयूएमएल के कुट्टी, जेवीएम के बाबूलाल मरांडी, आरएसएपी के रामचन्द्रन, भारतीय ट्राइबल पार्टी के शरद यादव, हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा जीतनराम मांझी, जदएस के कुपेन्द्र रेड्डी के अलावा केरल कांग्रेस के प्रतिनिधि ने हिस्सा लिया था जबकि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे, गुलाम नबी आजाद, अहमद पटेल, एके एंटनी मौजूद थे।
सोनिया गांधी के इस रात्रिभोज को २०१९ में होने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के खिलाफ मजबूत मोर्चा खड़ा करने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। कहा जाता है कि सोनिया ने बेरोजगारी, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश पर जोर दिया।