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भगोड़ा आर्थिक अपराधी अध्यादेश को मिली राष्ट्रपति की मंजूरी

भगोड़े आर्थिक अपराधी अध्यादेश- 2018 को राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने मंजूरी दे दी है। अब अधिकारियों को बैंकों के साथ धोखाधड़ी और जानबूझ कर ऋण न चुकाने जैसे आर्थिक अपराध कर देश से भागने वाले लोगों की संपत्तियां जब्त करने की कार्रवाई करने में आसानी होगी।

सूत्रों के मुताबिक़ यह अध्यादेश उन आर्थिक अपराधियों के लिए लाया गया जो देश की अदालतों के न्यायाधिकार क्षेत्र से बाहर भाग कर कानूनी प्रक्रिया बच रहे हैं।

‘‘इस अध्यादेश की जरूरत थी क्योंकि अपराध के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू होने की संभावना या कानूनी प्रक्रिया के बीच में ही देश की अदालतों के न्यायाधिकार क्षेत्र से बाहर भागने वालों की संख्या बढ़ी है,’’ एक आधिकारिक बयान में बिना किसी का नाम लिये कहा गया है।

रिपोर्ट्स में कहा गया है क़ी इस अध्यादेश का उद्देश्य भगोडे़ आभूषण कारोबारी नीरव मोदी जैसे व्यक्तियों की धोखाधड़ी से सरकारी खजाने या सकारी बैंकों को हुए नुकसान की त्वरित वसूली की कार्रवाई की कानूनी व्यवस्था करना है। नीरव मोदी और उसके साहयोगियों पर पंजाब नेशनल बैंक के साथ करीब 14000 करोड़ रुपये के कर्ज की धोखाधड़ी करने का आरोप है।

इसकी जरूरत बताते हुए बयान में कहा गया कि इस तरह के अपराधियों के भारतीय अदालतों के सामने हाजिर नहीं होने से जांच में बाधाएं आती हैं तथा अदालत का समय बर्बाद होता है। इससे कानून का शासन भी कमजोर होता है।

बयान में कहा गया , ‘‘ कानून में मौजूद दिवानी एवं फौजदारी प्रावधान इस तरह की समस्या से निपटने के लिए पूरी तरह सक्षम नहीं हैं। ’’

आंधी पानी से 16 की मौत; ताजमहल को नुकसान पहुंचा

जहां ब्रज में बुधवार को आए बवंडर ने चंद मिनटों में ऐसी तबाही मचाई कि 16 लोगों की मृत्यु हो गयी, वहीं दुनिया भर में सातवें अजूबे के तौर पर मशहूर ताजमहल को लगातार आंधी-पानी से नुकसान पहुंचा है.

रिपोर्ट्स के मुताबिक़ भारी बारिश और आंधी की वजह से ताजमहल परिसर में स्थित एक पिलर का हिस्सा टूट कर गिर गया है.

एएनआई की रिपोर्ट के मुताबिक, ताजमहल के एंट्री गेट के एक पिलर का हिस्सा गिर गया.

बता दें कि उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में बीते कुछ दिनों से आंधी और बारिश की खबरें हैं.

बुधवार के भयंकर तूफान से शहर से देहात तक सैकड़ों पेड़, होर्डिंग, टीनशेड, खंभे उखड़ गए। कई जगह मकान और दीवार ढह गईं।

आगरा के अछनेरा और डौकी में तीन-तीन जबकि ताजगंज में दो लोगों की मौत हो गई। मथुरा और फिरोजाबाद में चार-चार लोगों की मौत हो गई।

भारत बंद के मद्देनज़र देश के विभिन्न हिस्सों में धारा 144 लागू

जाति आधारित आरक्षण के विरोध में बुलाये गए भारत बंद के मद्देनज़र देश के विभिन्न हिस्सों में निषेधाज्ञा आदेश लगाई गयी है।

भारतीय दंड संहिता की 144 धारा, जो किसी जगह पांच या अधिक लोगों को एकत्र होने से प्रतिबंधित करती है, राजस्थान के जयपुर और भरतपुर, मध्य प्रदेश के भोपाल और उत्तराखंड की नैनीताल में लगाया गया है।

भरतपुर में धारा 144 को 15 अप्रैल तक लगाया गया है और इंटरनेट सेवा भी आज सुबह 9 बजे तक निलंबित रहेगी।

जिला प्रशासन ने जुलूस और धरने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया है और चेतावनी दी है कि कानून तोड़ने वालों के खिलाफ “कड़ी कार्रवाई” की जाएगी।

नौकरी और शिक्षा में जाति आधारित आरक्षण के खिलाफ ये राष्ट्रव्यापी बंद कुछ संगठनों द्वारा बुलाया गया है।

गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों के लिए एक सलाह जारी की है कि यदि आवश्यक हो, तो उन्हें आवश्यक व्यवस्था करने और निषेध आदेश जारी करने के लिए कहें।

2 अप्रैल को हुई राष्ट्रव्यापी हड़ताल के दौरान उत्तर प्रदेश, ओडिशा, बिहार, गुजरात और पंजाब सहित विभिन्न राज्यों में हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए जिसमें 10 से अधिक लोगों की मौत हो गई।

2 अप्रैल को भारत बंद को एससी / एसटी अत्याचार अधिनियम की रोकथाम पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ विरोध करने के लिए बुलाया गया था।

दलित निकायों का दावा है कि मार्च 20 के आदेश ने अधिनियम को कमज़ोर किया, जो कि भेदभाव और अत्याचारों के खिलाफ हाशिए समुदायों की रक्षा करता है।

हिमाचल हादसे में २६ स्कूल बच्चों सहित २९ की मौत

हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा जिला में सोमवार (९ अप्रैल) की शाम एक स्कूल बस के करीब २०० फुट गहरी खाई में गिर जाने से २६ स्कूल बच्चों सहित २९ लोगों की मौत हो गयी। शाम करीं ४.४५ पर यह हादसा हुआ। हादसा नूरपुर उपमण्डल के मलकवाल गाँव के पास हुआ।
मिली जानकारी के अनुसार यह हादसा वजीर राम सिंह पठानिया मैमोरियल स्कूल की बस के खाई में गिरने से हुआ। इस बस में में ४० छात्र सवार थे और छुट्टी के बाद घर जा रहे थे। ये सभी बच्चे नजदीकी  के गांवों के थे। हादसे में सात बच्चों ने मौके पर दम तोड़ दिया जबकि अन्य की मौत नूरपुर अस्पताल में हुई। गंभीर रूप से घायल बच्चों को टांडा अस्पताल रेफर किया गया है।
तहलका की जानकारी के अनुसार हादसे में बस चालक मदन लाल (67) के अलावा दो शिक्षकों की भी  मौके पर ही मौत हो गई। हादसे की सूचना मिलते ही स्थानीय प्रशासन और पुलिस मौके पर पहुंचे और राहत और बचाव कार्य शुरू किया। स्थानीय लोगों ने राहत में मदद की और बस के नीचे दबे बच्चों को अस्पताल पहुंचाया। सूचना मिलते ही नूरपुर के विधायक राकेश पठानिया, एसडीएम आबिद हुसैन सादिक के अलावा डीसी कांगड़ा  संदीप कुमार और एसपी कांगड़ा संतोष पटियाल अस्पताल मौके पर पहुंचे।
मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर ने बस हादसे पर शोक जताते हुए इसकी न्यायिक जांच के आदेश दिए हैं। इसके अलावा उन्होंने खाद्य और आपूर्ति मंत्री किशन कपूर को घटनास्थल पर भेजा है। सीएम ने कांगड़ा जिला प्रशासन को राहत और बचाव कार्य मे तेजी लाने को कहा है और पीड़ित परिवारों को हर सम्भव सहायता का भी भरोसा दिलाया है। मंडी में चल रही भाजपा की कार्यसमिति की बैठक में बस हादसे पर दो मिनट का मौन रखा गया।
इस दिल दहला देने वाले हादसे के वाद पूरे इलाके में शोक फैला हुआ है। मासूमों के अंग हादसा स्थल पर बिखरे पड़े थे और वहां परिजनों की चीख-पुकार गूँज रही थी। नूरपुर उपमंडल के चुवाड़ी मार्ग में हुए इस हादसे ने 26 मासूमों की जान ले ली जबकि दो शिक्षकों सहित बस चालक की भी मौत हो गई।  हादसे में 29 की जान गई है जबकि कुछ अभी भी घायल हैं जिन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया है। यह सभी बजीर राम सिंह पठानिया मैमोरियल स्कूल से संबंधित थे।
हादसे पर राज्यपाल आचार्य देवव्रत, मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर, पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल और वीरभद्र सिंह ने गहरा शोक व्यक्त किया है। राज्यपाल ने कहा कि यह एक दुःखद घटना है, जिसमें मासूम स्कूली बच्चों की जानें गई हैं। कांग्रेस विधायक दाल के नेता मुकेश अग्निहोत्री ने भी हादसे पर शोक जताया है।

कर्नाटक चुनावः बीजेपी ने जारी की 72 उम्मीदवारों की पहली सूची

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी ) ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए 72 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर दी है।

बीजेपी ने मुख्यमंत्री उम्मीदवार बीएस येदियुरप्पा को शिकारीपुरा से चुनाव लड़ेंगे।

दिल्ली में पार्टी मुख्यालय पर केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक के बाद उम्मीदवारों की सूची जारी की गई है।
पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के नेतृत्व में हुई बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री राजनाथ सिंह, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, कर्नाटक के पूर्व सीएम बीएस येदियुरप्पा के साथ पार्टी के कई और नेता भी शामिल रहे।

चुनाव में 224 सीटों वाली विधानसभा के लिए 150 से ज्यादा सीटें जीतने का लक्ष्य लेकर उतर रही भाजपा ने प्रधानमंत्री और अमित शाह समेत अपने सभी स्टार प्रचारकों को कर्नाटक में प्रचार में लगाया है।

12 मई को कर्नाटक में एक ही चरण में मतदान होंगे और 15 मई को नतीजे आएंगे। कर्नाटक में 56 हजार पोलिंग स्‍टेशन होंगे।

हिंदी का सम्मान कभी कम न होगा: हिमानी

हालांकि आज किसी व्यक्ति की काबिलियत उसके अंग्रेजी ज्ञान से आंकी जाती है, तब भी हिंदी में अच्छा साहित्य लिखा और पढ़ा जा रहा है, लेखिका एम जोशी हिमानी ने तहलका को बताया। उत्तराखंड में जन्मी हिमानी हिंदी कहानीकारों में आज जाना माना नाम है। वर्ष 1991 में उनकी पहली कहानी अधिकार एक साप्ताहिक में छपी थी हंसा आएगी ज़रूर और पिनड्रॉप साइलेंस जैसे संग्रह प्रकाशित होने तक हिमानी के लेखन में एक बात बारंबार मिलती है वह है उनके पात्रों का सामान्य जीवन और रोज़मर्रा की जि़न्दगी से उनका जूझना। ‘सभी कहानियों के पात्र तथा घटनायें मेरे आसपास की होती हैं,’ हिमानी ने कहा। अब्दुल वासे से हुई लेखिका की बातचीत के कुछ अंश:

आपको लिखने का शौक कब और कैसे हुआ?
बचपन से मैंने अपने घर में ‘कल्याण’ पत्रिका को आते देखा था। मैं उसके रंगीन चित्रों के प्रति अत्यंत आकर्षित रहती थी। मेरे जीवन में ‘कल्याण’ मासिक तथा वार्षिक ‘कल्याण’ ग्रन्थ ने पुस्तकों के प्रति जिज्ञासा तथा प्रेम को बढ़ाया। मैं पन्द्रह वर्ष की अवस्था में हाईस्कूल करने के बाद गांव से लखनऊ आ गई थी। यहां के खुले वातावरण व मुझे मिली स्वतंत्रता ने मुझे पुस्तकों का दिवाना बना दिया। अपने जीवन में सबसे पहले मैंने शरत्चन्द्र का उपन्यास ‘देवदास’ पढ़ा था।
लेखन की तरफ धीरे धीरे मेरा झुकाव बढ़ा। कुछ बाल कहानियां लिखीं जो स्वतंत्र भारत, नवजीवन सरीखे पत्रों के रविवारीय परिशिष्टों में छपीं।
वर्ष 1991 में मेरी पहली कहानी अधिकार साप्ताहिक हिन्दुस्तान में छपी। बाद में यह कहानी उस वर्ष की श्रेष्ठ कहानी संग्रह में छपने के लिए चुनी गई और प्रकाशित हुई।

कहा जा रहा है कि पिन ड्राप साइलेंस नामक कहानियों का संग्रह आपको मंझी हुई कहानीकार के रूप में पेश करता है। इन नौ कहानियों में आपको कौन सी कहानी सबसे ज़्यादा अच्छी लगती है?
पिनड्राप साइलेंस की सारी कहानियां मेरे दिल के करीब हैं इसलिए किसी एक को सबसे अच्छी कहना मेरे लिये नामुमकिन है। इन सभी कहानियों के पात्र तथा घटनायें मेरे आसपास की हैं।
कहानी गियर वाली साइकिल के पात्र मौर्या साहब तो मेरे सीनियर रहे हैं। उन जैसा व्यक्तित्व मैंने जिंदगी में कहीं और नहीं देखा। इसलिए मुझे उस कहानी को लिखने के लिए बहुत मेहनत नहीं करनी पड़ी। मौर्या जी को मैं याद करती रही और लिखती रही ज्यों का त्यों। मौर्या जी के अनुरोध पर मुझे पात्र का नाम भी ज्यों का त्यों रखना पड़ा। मौर्या जी रिटायर हो गये हैं। जब भी मिलते हैं कहते हैं- आपने मुझे अमर कर दिया।
पिछले साल मैं लन्दन गई थी। वहां मेरे मित्र बीबीसी के पूर्व प्रोड्यूसर, एंकर ललित मोहन जोशी ने ‘गियर वाली साईकिलÓ का पाठ भी मुझसे कराया था। मौर्या जी वर्षों पहले सूचना विभाग में जोशी के भी सहयोगी रह चुके थे।
मिलाई, अधिकार, आफिस का आखिरी दिन, राबर्ट तुम कहां, हे रामावतार। .. सभी कहानियों के पात्र मैंने अपने इर्द गिर्द से उठाये हैं इसलिए किसे नंबर एक पर रखूं?

हंसा आएगी ज़रूर लिखने के पीछे आपकी क्या मंशा थी? कहानी और इसके पात्र काल्पनिक हैं या आपके जीवन पर आधारित है?
हंसा का चरित्र कोई एक पात्र नहीं है। कई पात्रों का निचोड़ है। हंसा आयेगी जरूर मेरे जीवन की कहानी कतई नहीं है। हां उसे प्रामाणिक बनाने के लिए मैंने उसे आत्मकथात्मक शैली में जरूर लिखा है।
मैं भारतीय थल सेना के सैनिक रहे अपने पिता की जन्मजन्मातर तक ऋणी रहूंगी, जिन्होंने मुझे कालेज में पढऩे का मौका दिया, मर्दों के बीच में जाकर नौकरी करने का अवसर दिया, जिस कारण मैं अपने नज़रिए से इस दुनिया को देख पाई और खुद का और जरूरत पडऩे पर दूसरों का भी संबल बन पाई।
मैं अपने खानदान की पहली स्त्री हूं जो शासकीय सेवा में है। यह संभव हुआ, मेरे माता पिता के त्याग और प्रोत्साहन के कारण।
मैंने हमेशा महसूस किया औरतों का शोषण कई प्रकार से और कई स्तरों पर होता रहा है और शायद होता रहेगा। आज कई कानून बन गये हैं, समाज में जागरूकता आई है फिर भी हर तरह स्त्री ही दु:ख भोगती है।
यह उपन्यास मैंने अपने बालपन में देखी सच्ची घटना से प्रेरित होकर लिखा है। बरबाद हो चुके रजवाड़ा परिवार का संभ्रान्त व्यक्ति अपने पुत्र की ग़ैरमौजूदगी में अपनी नवविवाहिता पुत्रवधू से संबंध बनाता है जिसकी परिणिति वधू के गर्भवती होने के रूप में होती है। राज खुलता है। पंचों के सामने बहू सच बता देती है। उसके मायके वालों को बुलाया जाता है। वे बेटी को ले जाने से साफ इंकार कर देते हैं।
अंतत: उस सत्रह अठारह साल की नववधू को जबर्दस्ती नारी निकेतन भेज दिया जाता है जहां वह पुत्र को जन्म देती है। बाद में कुछ वर्ष बाद एक सरदार ट्रक ड्राइवर उसको ब्याह कर पंजाब लेकर चला जाता है। फिर क्या हुआ उसके साथ कोई नहीं जानता।
मैं आज भी उस औरत की चीत्कार को महसूस करती हूं जब वह रो रोकर घर से न निकाले जाने की गुहार लगा रही थी। वह संभ्रान्त व्यक्ति कुछ समय के सामाजिक बहिष्कार के बाद भी हमेशा अपने घर में रहा। उसके पुत्र तक ने अपने पिता से कभी कोई प्रश्र नहीं किया।

कितना उदार है हमारा समाज औरतों के प्रति?
आज भी समाज में तमाम हंसाओं का शोषण बदस्तूर जारी है। चाहे वह बाल श्रमिक के रूप में किसी घर में काम कर रही हों। या अपनों के बीच में ही क्यों न हों। क्या किसी की निगाहों में पाकीजग़ी मिलती है उनको?
यदि औरतें संवेदनशील बन जायें, दमन का शिकार की खिल्ली उड़ाने के बजाय उसको हेमा की तरह नैतिक, मानसिक, भावनात्मक संबल भी दे सकें तो समाज में बहुत सारी घटनायें होने से रुक जाएंगी।
उपन्यास में एक उपकथा भागीरथी की है। यह घटना है मेरी नानी के परिवार की। आज भी वहां पर भूत रूप में भागीरथी आमा की पूजा की जाती है। आज हम विकास के ऊंचे पायदान की ओर बढ़ रहे हैं। बेशक शहरी औरतों का जीवन बदला है पर ग्रामीण स्त्री का जीवन बहुत नहीं बदला है। आज भी कई भागीरथियां प्रसव के दौरान मौत के मुंह में चली जाती हैं। हमारे गांवों में स्वास्थ्य सेवाओं की भारी कमी है गांव स्तर पर।

आज अंग्रेज़ी पर जब ज़्यादा ज़ोर है आप हिंदी लेखन को कितना लोकप्रिय और सफल मानती हैं?
यह सही है कि आज हिंदी के पाठक बहुत कम रह गये हैं। लेखकों का बुरा हाल है। कोई लेखक केवल लेखन से जीविकोपार्जन नहीं कर सकता है अंग्रेजी का हर जगह बोलबाला है। इस सबके बावजूद हिंदी में अच्छा साहित्य लिखा जा रहा है। हिंदी के जो पाठक हैं वे गुणी पाठक हैं। आज सोशल मीडिया में भी हिंदी साहित्य का काफी प्रचार किया जा रहा है। हिंदी का सम्मान कभी कम न होगा।

नए हिंदी लेखकों को लोकप्रिय और सफल होने के लिये किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
नये उभरते लेखकों को मेरा यही कहना है कि जीवन में अनुभव आने दीजिए। चुनौतियों का सामना कीजिए। खूब लिखिए।

शिक्षा केंद्रों की स्वायत्तता या बाजारीकरण

केंद्र की भाजपा नेतृत्व की एनडीए सरकार ने देश के 62 माने हुए शिक्षण संस्थानों को स्वायत्तता का तमगा देते हुए इनकी अचल संपत्तियों के लिहाज से अब इनका पूरी तौर पर निजीकरण करने का फैसला लिया है। हालांकि स्वायत्तता का मतलब यह नहीं है कि अब इनमें ज़्यादा वैचारिक आज़ादी होगी, शोध के लिए अपार फंड होगा और राज्य व सरकारी नियंत्रण कम होगा।

केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने यह घोषणा करके यह ज़रूर जता दिया कि बाधाओं के बाद भी वे नीतियां अमल में ला सकते हैं। अब जिन्हें पढऩा है वे पैसा खर्च करें। मुफ्त में कुछ नहीं।

विश्वविद्यालयों में स्वायत्तता होगी लेकिन एकेडेमिक आज़ादी का अभाव रहेगा। सरकारी शिक्षण संस्थानों में पहले संवैधानिक आदेशों के तहत शिक्षण व्यवस्था थी, अच्छे नागारिक बनाने का संकल्प था, आपस में खुला विवाद होता था। छात्र-छात्राओं को कम लागत में अच्छी शिक्षा सुलभ होती थी।

लेकिन अब स्वायत्त शिक्षण संस्थान के छात्र-छात्राओं को देश, धर्म, संस्कृति से लगाव रखना होगा। बाजार की ज़रूरतों के अनुसार ही खुद को वे योग्य बनाएंगे। एकेडेमिक ऑटोनॉमी के तहत ऐसे शोधों की संभावना बढ़ेगी जैसे सरकार की नई नीतियां और उनका प्रभाव या नई सरकारी नीतियों का बाजार पर असर आदि जैसे ढेरों विषय। यानी अब कारपोरेट उद्योग और एकेडेमिक विभागों में ज़्यादा तालमेल होगा। सही तौर पर स्वायत्तशासी यूनिवर्सिटी वह होगी जहां छात्र और अध्यापक देश विरोधी न हों सरकारी नीतियों का विरोध न करते हों और देशभक्ति संबंधी नीतियों को अमल में लाएं।

केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावडेकर ने 20 मार्च को स्वायत्तता का ऐतिहासिक घोषणा पत्र जारी किया। इसके पहले तकरीबन एक महीने पहले गजट नोटिफिकेशन किया गया था। जिस का शीर्षक था यूजीसी कैटागराइजेशन ऑफ यूनिवर्सिटीज फार ग्रांट ऑफ ग्रेडेड ऑटोनॉमी रेगुलेशंस 2018और कन्फर्मेंट ऑफ ऑटोनॉमस स्टेट ऑफ कॉलेजेज रेगुलेशंस 2012 इन रेगुलेशंस की तुलना में नई स्वायत्तता की बात कहीं अलग है। रेगुलेशंस का ज़ोर ऐसी नीति पर है जिसके तहत गुणात्मक शिक्षा में फंड जाएं।

जिन 62 विश्वविद्यालयों को स्वायत्त बनाने की बात की जा रही है उनमें जेएनयू, बीएचयू, और एएमयू प्रमुख हैं। इन सभी का परिसर काफी लंबा-चौड़ा है जिस पर अर्से से बाजार की निगाहें हैं। स्वायत्तता शब्द के बहाने देश की जनता को भ्रम में रखने की पहल केंद्र सरकार ने की है। मंत्री प्रकाश जावडेकर ने कहा कि देश में उच्च शिक्षा प्रदान करने वाले शिक्षण संस्थानों को स्वायत्तता देने के लिए सरकार प्रतिबद्ध है। इन्हें स्वायत्तता प्रदान करना इनकी अर्थव्यवस्था को उदार बनाना है। इन्हें फिर शिक्षा में अपना स्तर और ऊँचा करने के लिए यूजीसी(यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन) का मुंह नहीं देखना होगा।

उनके अनुसार इन 62 विश्वविद्यालयों को कोई कोर्स शुरू करने ,नया विभाग खोलने , कोर्स की फीस तय करने और ऑफ लाइन परिसर बनाने के लिए किसी अनुमति की ज़रूरत नहीं होगी। ये विदेशी विश्वविद्यालयों से समझौता (एमओयू) करके विदेश से अनुभवी प्राध्यापकों को ऊँचा वेतन देते हुए बुला सकते हैं। विदेशी छात्रों को अपने यहां प्रवेश दे सकते हैं। वेतन आयोग की सिफारिशें भी इनके लिए बहुत महत्व की नहीं होंगी। यूजीसी इनका निरीक्षण और परिक्षण भी नहीं करेगी। उन्होंने बताया कि संसद में पास कानून के जरिए इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ मैनेजमेंट को ऐसी सुविधा पहले से ही हासिल है।

भारत सरकार चाहती है कि देश के बीस शिक्षण संस्थान तेजी से खुद को विकसित करें जिससे विश्वस्तर पर वे गिने भी जाएं। सरकार ने राज्यों में पांच केंद्रीय विश्व विश्वविद्यालय जेएनयू (हैदराबाद यूनिवर्सिटी) जाधवपुर यूनिवर्सिटी (कोलकाता), यूनिवर्सिटी ऑफ जम्मू, नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी (दिल्ली), सावित्री बाई फुले (पुणे) विश्वविद्यालय इन्हें सरकार ने शिक्षण विश्वविद्यालयों और संस्थानों को नेशनल एसेसमेंट एंड एक्रिडिटेशन कौंसिल (एनएएसी) की रैकिंग के आधार पर चुने हैं। जिन्हें 305 और उससे ज़्यादा पहली कैटेगरी में स्थान हासिल हुए उन्हें पूर्ण स्वायत्तता दी गई। जिन विश्वविद्यालयों का नतीजा 3.5 से कम रहा उन्हें दूसरी कैटेगरी में रखा गया और उन्हें आंशिक स्वायत्तता दी गई। कुछ मुद्दों पर इन्हें जरूर अपनी गतिविधियों में यूजीसी से अनुमति लेनी होगी और विदेशी विश्वविद्यालयों से कांट्रेक्ट की पहल करनी होगी। इनमें मध्यप्रदेश के सागर में डा. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय है जिसके पास अच्छा बड़ा परिसर है और जहां अपनी स्थापना के समय से ही कई ऐसे विषय पढ़ाए जाते रहे हैं,जो तब देश के किसी और विश्वविद्यालय में पढ़ाए ही नहीं जाते थे।

सूची में शामिल निजी विश्वविद्यालयों में ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी सोनीपत, पंडित दीन दयाल पेट्रोलियम यूनिवर्सिटी गांधीनगर, वेल्लोर इंस्टीच्यूट ऑफ टेक्नॉलोजी और मणिपाल एकेडेमी भी है।

सरकार ने आठ कॉलेजों को भी स्वायत्तता दी है। इनमें यशवंत राव चव्हाण इंस्टीच्यूट ऑफ साइंस, सतारा, श्री शिव सुब्रमण्यम नाडार कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, कला-वक्कम, जी नारायम्मा इंस्टीच्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी साइंस, हैदराबाद, विवेकानंद कॉलेज, कोल्हापुर, श्री वसावी इंजीनियरिंग कॉलेज पश्चिम गोदावरी, बोनम वेंकट चलमाय्या इंजीनियरिंग कॉलेज पूर्व गोदावरी, जयहिंद कॉलेज ऑफ कामर्स, और श्री विल पार्ल कलावानी मंडल मिठिबाई कॉलेज ऑफ आर्ट्स मुंबई हैं। ये तमाम कॉलेज अपने कोर्स तैयार करेंगे, परीक्षा लेंगे और छात्रों की योग्यता तय करेंगे । लेकिन ये डिग्री नहीं देंगे। यह काम विश्वविद्यालय करेंगे।

अखिल भारतीय तौर पर दो कैटेगरी में जांचे परखे गए विश्वविद्यालय में पहली कैटेगरी में दो विश्वविद्यालय और दूसरी कैटेगरी में तीन केंद्रीय विश्वविद्यालय यानी कुल पांच केंद्रीय विश्वविद्यालय हुए। राज्य विश्वविद्यालयों में पहली कैटेगरी में 12,दूसरी कैटेगरी में नौ यानी 21 राज्य विश्वविद्यालय हुए। इसी तरह डीम्ड विश्वविद्यालयों की पहली कैटेगरी में 11, दूसरी कैटेगरी में 13 यानी कुल 24 डीम्ड विश्वविद्यालय हुए। निजी विश्वविद्यालयों में दूसरी कैटेगरी में दो ही चुने गए। ऑटोनॉमस कालेजों में कोई भी पहली और दूसरी कैटेगरी में नहीं आ पाया। लेकिन आठ को सूची में रखा गया। इस तरह 60 शिक्षण संस्थान स्वायत्तता के क्षेत्र में अब चुन लिए गए हैं। जहां अब शिक्षण महंगा ज़रूर हो जाएगा।

केजरीवाल का माफी मांग कर जताना पश्चाताप!

पंजाब में अरविंद केजरीवाल की इज्जत का खत्म होना और उनकी आलोचना सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे द्वारा होना संकेत है शिरोमणि अकाली दल की मजबूत वापसी।

दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने अभी पिछले ही दिनों पंजाब के पूर्व मंत्री बिक्रमजीत सिंह मजीठिया से बिना शर्त माफी मांगी। पंजाब में हुई एक रैली में केजरीवाल ने यह आरोप लगाया था कि मजीठिया खुद मादक पदार्थों के तस्करी में लिप्त हैं। मजीठिया को बिना प्रमाण आए ऐेसे बयान से काफी पीड़ा हुई और उन्होंने मानहानि का एक मुकदमा अरविंद केजरीवाल पर दायर किया। इसमें कहा गया कि आरोप गलत हैं।

इसके पहले अकाली दल के वरिष्ठ नेता और विधायक मजीठिया ने मीडिया युद्ध जीता था। तब अंग्रेजी ‘ट्रिब्यूनÓ ने अपने पहले पन्ने पर तीन कॉलम में एक खबर छापी थी जिसका शीर्षक था मादक द्रव्यों के घोटाले में बिक्रम सिंह मजीठिया के प्रमाण नहीं। इसमें बिक्रम सिंह का चित्र भी 25नवंबर 2014 के हवाले से 25.11.2014 और 10.03.2015 को ‘इस खेद प्रकाश में छपा था।Ó जांच पड़ताल में यह पता चला कि बिक्रम सिंह मजीठिया किसी भी मादक द्रव्यों के व्यापार में शमिल नहीं हैं। ट्रिब्यून को इस बात पर बहुत अफसोस है कि इस आरोप के कारण बिक्रम मजीठिया की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंची और उनके पारिवारिक जनों और शुभचिंतकों को तकलीफ हुई। ऐसी स्थिति में ट्रिब्यून का यह बिना शर्त माफीनामा माना जाए।

एक अखबार के इस तरह खेद प्रकाश करने के बाद ही दिल्ली के मुख्यमंत्री की बिना शर्त माफी याचना आई। अमूमन अरविंद केजरीवाल को भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम छेडऩे वाला व्यक्तित्व माना जाता रहा है। लेकिन उन्हीं को अपने शब्द वापस लेने पड़े। चाय के प्याले में तूफान की तरह आम आदमी पार्टी की पंजाब इकाई में हड़कंप मच गया। आप के सांसद और पंजाब पार्टी के अध्यक्ष भगवंत मान ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया उनके साथी अमन अरोड़ा ने भी अरविंद केजरीवाल की इस कार्रवाई को बहुत शर्मनाक माना। इस माफीनामे से साफ होता है कि पार्टी की राजनीति का स्तर कितना छिछला हुआ है और इसकी इज्जत कितनी घटी है। यह सभी जानते हैं कि आप में विपक्षियों की तादाद कहीं ज़्यादा है और नेतृत्व में यह कमजोरी है कि वे नतीजों का सामना नहीं कर पाते।

बिक्रम सिंह मजीठिया से क्षमा याचना के बाद केजरीवाल ने केंद्रीय मंत्री नीतिन गडकरी पर लगाए गए अपने आरोपों और कांग्रेस के नेता कपिल सिब्बल के पुत्र अखिल सिब्बल पर लगाए गए अपने आरोप वापस ले लिए।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का पंजाब के पूर्व मंत्री से माफी मांगना जिसमेंं उन्हें मादक पदार्थों का भागीदार बताया गया था। उस पर चुटकी ली सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने। उन्होंने कहा किसी को ऐसा कुछ भी नहीं कहना चाहिए जिसके चलते आगे माफी मांगनी पड़े।

केजरीवाल पर मानहानि के कुल 33 मुकदमे चल रहे हैं। उनके करीबी सहयोगियों ने उन्हें सलाह दी है कि बेमतलब के मामलों को वे रद्द करें और प्रशासन पर ध्यान दें। विपक्षियों को लगता है कि आप उनके लिए चुनौती है इसलिए मानहानि के 33 मामलों में वे एक न एक मामले में उलझे ही रहें। उनके विरोधी यह मानते हैं कि उन्होंने अरविंद को एक पिंजरे में बंद कदने में कामयाबी पा ली है। राजनीतिक तौर पर आप की छवि के पंजाब में विघटन के मायने होंगे शिरोमणि अकाली दल की वापसी।

‘निजी सेनाओं’ की ज़रूरत क्या

राजनैतिक दल और लोग लोकतंत्र में अपनी-अपनी सेनाएं क्यों बनाते है? पिछले कुछ सालों में दक्षिणपंथी राजनैतिक दलों ने अपनी-अपनी सेनाएं खड़ी करनी शुरू कर दी हैं और उनसे इस पर सवाल करने की हिम्मत किसी में नहीं है। जब पुलिस और अर्धसैनिक बल मौजूद हैं तो ‘निजी सेना’ क्यों?

‘निजी सेनाÓ रखने की इज़ाज़त कौन देता है? उन पर आने वाले खर्च कौन वहन करता है? उन पर नियंत्रण किसका होता है? उन्हें दुश्मन पर निशाना साधने के लिए कौन प्रशिक्षण देता है? इनमें कौन लोग लिए जाते हैं और क्यों? राजनीतिक माफिया और इनमें क्या अंतर है? क्या ये सेनाएं उसी माफिया का हिस्सा हैं जिसने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान मेें उत्पात मचा रखा है? क्या अल्पसंख्यक समुदायों के पलायन के लिए ये जिम्मेवार नहीं हैं?

फिरौती, अपहरण और दंगों के मामलों में इन सेनाओं की भूमिका की जांच होनी चाहिए। पर यह सवाल कौन उठाएगा जब कि ये सारे काम सत्ताधारी दल के संरक्षण में होते हैं।

कुछ दिन पहले जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने चुनाव क्षेत्र गोरखपुर का भ्रमण कर रहे थे तो मैंने यह जानने की कोशिश की कि उनकी ‘निजी सेनाÓ हिंदू युवा वाहिनी (एचवाईवी) की इसमें क्या भूमिका है? मुझे बताया गया कि पूरा इलाका ही उस सेना के घेरे में है। इससे स्थानीय लोगों में भारी भय का वातावरण बन गया। वे लोग इस सेना के हर हुक्म और निर्देश को मानने पर बाध्य हैं।

यह कहने कि ज़रूरत नहीं कि इसका सबसे ज्य़ादा प्रभाव इलाके के दलितों, ईसाईयों और मुसलमानों पर हुआ। यह कहना बचपना होगा कि उत्तर प्रदेश के अल्पसंख्यक हिंदुत्व के एजेंडे के खिलाफ खड़े हो सकते हैं। उन्होंने ने बताया कि अल्पसंख्यकों ने चुप रह कर अपने खिलाफ बोले जा रहे नारों को सहने में ही बेहतरी समझी है। कई लोगों ने कासगंज के दंगों और उनमें हिंदू ब्रिगेड की भूमिका को भी याद किया। बहुत बड़ी गिनती में उत्तरप्रदेश के मुसलमानों ने खुद को दूसरी या तीसरी श्रेणी का नागरिक मान लिया है। इस पृष्ठभूमि में राजनीतिक टिक्काकारों की यह टिप्पणी हास्यस्पद लगती है कि आदित्यनाथ के शासन में मुस्लिम ठीक हैं कहीं कोई विद्रोह की आवाज़ तक नहीं उठ रही। क्या अभागे और असहाय नागरिकों के पास कोई विकल्प है? अगर वे योगी और उनके आदमियों को दबाने की कोशिश करते हैं तो क्या उनके बीवी बच्चों को गोलियों से नहीं भून दिया जाएगा? ‘निजी सेनाÓ की दहशत इतनी है कि कोई भी सूर्यास्त के बाद घर के बाहर निकलने का साहस नहीं करता। उत्तरप्रदेश में लगातार मुठभेड़ें चल रही है। मार्च 2017 से जनवरी 2018 के बीच 1,142 मुठभेड़ें हुई और 38 कथित अपराधी मारे गए। यहां जो प्रश्न पूछा जा रहा है कि इनमें से कितनी मुठभेड़ें व्यक्तिगत और राजनैतिक विरोध के कारण अपना हिसाब चुकता करने के लिए कराई गई थी?

ऐसे बहुत से मामले सामने आ रहे हैं जिनमें ‘निजी सेनाÓ ने उन लोगों पर हमले किए जो सरकार की आलोचना कर रहे थे या केवल किसी विषय पर प्रश्न उठा रहे थे। इनको पुलिस का भी डर नहीं। वे लोग पुलिस की मौजूदगी में भी आम लोगों पर हमला बोल देते हैं। वैसे भी माफिया गिरोहों को हमला करने के लिए केवल एक इशारा चाहिए।

जिस तरह से ये ‘सेनाएंÓ या ‘वाहिनियांÓ देश के विभिन्न हिस्सों में फैल रही हैं वह बहुत ही खतरनाक है। हम इस बात की अनदेखी कैसे कर सकते हैं कि इन सेनाओं को हमले और मुकाबले का पूरा प्रशिक्षण दिया जाता है जिसके बाद ये अपने ही देश के लोगों पर हमले करते हैं। यहां तक कि जब2016 में समाचारपत्रों में खबरें और चित्र छपे कि किस तरह से नोयडा, वाराणसी और अयोध्या में विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल प्रशिक्षण शिविर चला रहे हैं तब भी इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। इनमें भी जिन पुतलों को ‘दुश्मनÓ दिखा कर उन पर हमले करवाए जा रहे थे उन पुतलों के सिरों पर भी मुस्लिम टोपियां थीं।

यह सब कोई एक रात में नहीं हुआ। यह बिना रु कावट खुले आम चलता जा रहा है। मैं हैरान हूं कि जब राजनैतिक माफिया हमारे सामने लोकतांत्रिक मूल्यों को तहस-नहस कर रहा है तो भी हम डरे-सहमे खामोश क्यों बैठे हैं? हम अपनी निगाहें दूसरी ओर क्यों घुमा देते हैं?

जानेमाने लेखक खुशवंत सिंह की मृत्यु से कुछ हफ्ते पहले जब मैं उनसे मिली थी तो मैंने पूछा था आपको जीवन से कोई शिकायत या कोई पछतावा है क्या? उन्होंने कहा, ‘मैं समझता हूं कि मुझे इन संघियों के खिलाफ ज्य़ादा आक्रामक होना चाहिए था क्योंकि ये देश का सत्यानाश कर देंगे। मैं शुरू से इनका विरोधी रहा हूं पर मुझे इन्हें अपनी लेखनी में ज्य़ादा नंगा करना चाहिए था। खुशवंत सिंह दक्षिणपंथियों की ‘निजी सेनाओंÓ के भी खिलाफ थे। उन्होंने कहा था, ‘मुझे इस बात का भारी दुख है कि सांप्रदायिक दलों ने अपनी ‘निजी सेनाएंÓ बना ली हैं। कोई सरकार जो राजनैतिक दलों की’निजी सेनाओंÓ को छूट देती है वह देश को फासीवादी की ओर ले जाती है। यहां फासीवाद आ गया है।

योगी सरकार के एक साल बाद भी विकास को तरसती जनता

लगभग साल ही पहले भाजपा (भारतीय जनता पार्टी) के तेज तर्रार नेता योगी आदित्यनाथ ने देश की सबसे अधिक आबादी वाले और राजनीतिक रुप से महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का पद ग्रहण किया था। तब वे संघ परिवार के सबसे पसंदीदा विकल्प के रूप में उभरे थे।

आरएसएस ने योगी को विभिन्न राज्यों में हिंदुत्व के ब्रांड एंबेसडर के रूप में पेश किया और बड़े पैमाने पर योगी की संगाठनिक क्षमता का विस्तृत प्रयोग गुजरात, हिमाचल प्रदेश, तेलंगाना व त्रिपुरा में किया गया। अब इसका कर्नाटक के होने वाले चुनावों में भी उपयोग कर रहे हैं। भाजपा के हलकों ने यह दृढ़ता से महसूस किया गया कि उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान हुई बड़ी रैलियों ने 2019 के विधानसभा और संसदीय चुनावों के लिए योगी का मार्ग प्रशस्त किया है।

ध्रुवीकरण की आलोचना और हिंदू धर्म के प्रति कट्टरता ने मुख्यमंत्री आदित्यनाथ को अपनी मुस्लिम विरोधी छवि को बदलने की महत्वपूर्ण चुनौती दी। मुख्यमंत्री बनने के बाद गोरखपुर में अपनी पहली रैली में उन्होंने कहा,’मैं मुस्लिम विरोधी नहीं हूं। लेकिन पिछली सरकार की नीतियों के खिलाफ हूं जो उनको खुश करने के लिए थी।Ó मेरी सरकार सबका विकास एक समान करेगी परन्तु कोई भी तुच्छ नहीं। हालांकि कुछ समय बाद इस तरह की नरमी गायब हो गई और वे पिछली बयानबाजी में वापिस चले गए।

आदित्यनाथ जो अयोध्या में विवादित बाबरी मस्जिद स्थल पर राम मंदिर बनाने के मज़बूत समर्थक हैं, उन्होंने उत्तरप्रदेश में भाजपा के हिंदुत्व अभियान का नेतृत्व किया और मुख्यमंत्री बनने के बाद भी उसे जारी रखा। उन्होंने अयोध्या में सरयू नदी के किनारे 1.70 लाख दीपक जलाकर दिवाली मनाई। बाद में होली और देव दीपावली मनाने के लिए बरसाना और वाराणसी गए। जब एक पत्रकार ने उनसे पूछा कि दिवाली और होली मनाने के बाद क्या वह ईद भी मनाएंगे। तब उनकी प्रतिक्रिया काफी उग्र थी। ‘मैं ईद क्यों मनाऊंगा मैं एक हिंदु हूंÓ उन्होंने कहा। उनकी इस प्रतिक्रिया की भारी आलोचना हुई। क्योंकि यह बयान एक मुख्यमंत्री का था जिन्होंने सविधान को बनाए रखने की शपथ ली थी। जिनसे धर्म निरपेक्ष रहने की अपेक्षा थी। बाद में उन्होंने अपने बयान में सुधार करते हुए कहा कि प्रत्येक व्यक्ति अपने धर्म, रीति-रिवाज को मानने के लिए स्वतंत्र है।

उत्तरप्रदेश चुनावों में प्रचार के दौरान योगी ने दावा किया कि भगवा पार्टी राज्य में राम मंदिर बनाने का मार्ग प्रशस्त करेगी। वह पार्टी के हिंदूत्व में लिपटे विकास के एजेंडे का तावीज है। मुख्यमंत्री बनने के बाद भी वे गोरखपुर के प्रसिद्ध मठ मंदिर के महंत (मुख्य पुजारी) बने रहे। वह बहुत महत्वपूर्ण समारोह के दौरान मठ में उपस्थित रहे। यह मठ संतों के ‘नाथÓ संप्रदाय से जुड़ा है जिसकी दूसरे राज्यों में भी मज़बूत उपस्थिति है।

योगी निजी सेना ‘हिंदू युवा वाहिनीÓ (एचवाईवी) के अध्यक्ष भी हैं जो ‘वेलेंटाइन डेÓ और ‘पश्चिमी कपड़ोंÓं का विरोध करने के लिए मशहूर है। यह हिंदू संगठन विशेष रूप से राज्य के पश्चिम में महराजागंज, बस्ती, देवरिया, कुशीनगर, संत कबीर नगर और सिद्धार्थ नगर में सक्रिय है।

भाजपा ने 2017 में लोगों के कल्याण की श्रृंखला और विशेषकर किसानों और युवाओं को लक्ष्य बना कर सत्ता हासिल कर ली थी। सरकार ने अपने शासनकाल का एक साल पूरा कर लिया है और पांच साल के कार्यकाल का दूसरा बजट भी पेश किया है। पिछले बजट में कृषि कजऱ् के 36,000 करोड़ रुपए और सांतवें वेतन आयोग को लागू करने के बोझ ने अधिकांश कल्याणकारी योजनाओं को वास्तव में कम कर दिया। मौजूदा बजट में भी उनके चुनावी वादों और कल्याण योजनाओं को पर्याप्त वित्तीय सहायता नही दी गई है।

चुनावों के दौरान सबसे प्रचारित योजना थी छात्रों को कंप्यूटर देने की थी। इसे अभी तक वित्तीय (मौद्रिक) समर्थन नहीं मिला। इसी तरह सभी कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को मुफ्त वाई-फाई और बिना पक्षपात के सभी छात्रों को लैपटाप और एक जीबी डाटा देने का भी वादा था। 50 फीसद अंक पाने वाले छात्रों को स्नातक तक मुफ्त शिक्षा देने का वादा भी संसाधनों की कमी के कारण लागू नहीं हो पाया है। इसके साथ ही घरों में 24 घंटे बिजली, गांवों को मिनी बस सेवा से जोडऩे जैसे कई वादे और योजनाएं सत्ता के गलियारों में धूल ही चाट रहे हैं।

किसान अब सरकार की नीतियों से निराश हैं क्योंकि उनकी आय नहीं बढ़ी और अब गन्ना, आलू, गेंहू, चावल, दालों की फसलों का समर्थन मूल्य बढ़ाकर निर्धारित नहीं हुआ है। प्रधानमंत्री मोदी ने किसानों की आय दुगुना करने का वादा किया था। परन्तु कजऱ् के कारण किसान आत्महत्या कर रहे हैं। राज्य में योगी सरकार बनने के बाद भी लगभग 100 किसान आत्महत्या कर चुके हैं। बुंदेलखंड सबसे ज़्यादा प्रभावित क्षेत्र है जहां आंधी तूफान के कारण फसलें बर्बाद हो गई थी। इस कारण कजऱ् के बोझ से दबे दर्जन से ज़्यादा किसानों ने आत्महत्या कर ली थी। बुंदेलखंड क्षेत्र के भारतीय किसान यूनियन के प्रधान एसएनएस परिहार ने यह जानकारी दी।

भाजपा ने अपने चुनावी अभियान के दौरान बेहतर कानून व्यवस्था का वादा अपने नारे ‘न गुंडाराज, न भ्रष्टाचारÓ के साथ किया था। लेकिन राज्य में कानून व्यवस्था और भ्रष्टाचार की स्थिति अच्छी नहीं है। अपराध के बढ़ते ग्राफ के साथ मुख्यमंत्री ने अपराधों की रोकथाम के लिए पुलिस को अधिक शक्ति दी। इस शक्ति के दुरूपयोग के कारण मानव अधिकार कमीशन आयोग ने राज्य के मुख्य सचिव राजीव कुमार को नोटिस जारी किया कि क्या कथित मुठभेड़ें अपराध को खत्म कर देंगी।

भाजपा के शासन काल में उत्तरप्रदेश पुलिस ने अपराध को रोकने के लिए 1309 ऑपरेशन किए जिनमें 42 अपराधी मारे गए और 3068 को पकड़ लिया गया। पुलिस के डीजी (डिप्टी जनरल) ने बताया कि अच्छे कार्य के लिए हमने 1574 पुलिस कर्मचारियों को पुरस्कृत किया। पुलिस में सुधार के लिए उच्चतम न्यायालय के निर्देशों को लागू करने के बारे में डीजी ने कहा कि पहले मैं इनका अध्ययन करूंगा फिर जवाब दूंगा।

कानून व्यवस्था में सुधार का दावा करने के बाद भी राज्य के विभिन्न हिस्सों में सांप्रदयिक हिंसा की घटनाएं सत्तारूढ़ पार्टी के कार्यकर्ताओं के उकसाने और सरकारी मशीनरी की हिंसा को रोकने में हुई लापरवाही के कारण हुई।

लगभग 45 वर्षीय आदित्यनाथ गोरखपुर से पांच बार सांसद बने। उनकी प्रतिष्ठा उनके द्वारा खाली की गई संसदीय सीट के लिए हुए उप-चुनाव में दांव पर थी। 1998 से वे इस संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे थे जब वे सिर्फ 26 वर्ष के थे। अपनी विशेष राजनीतिक शैली के लिए वे उत्तरप्रदेश के पूर्वी इलाकों में काफी लोकप्रिय हैं। जहां उन्होंने हिंदू भावनाओं को उकसाने और मज़बूत करने के लिए अपने अभियानों ‘घर वापसीÓ और ‘लव जिहादÓ को राष्ट्रव्यापी बनाया।

योगी ने गायों के वध का विरोध किया और इसे उत्तरप्रदेश में प्रतिबंधित भी किया। लेकिन पूर्वी उत्तरप्रदेश में यह अवैध रूप से चलता रहा। इसने उन्हें गाय सतर्कता आंदोलन का नेता बना दिया उन्होंने गाय वध और अवैध कसाई घर बंद करवा दिए। इस सांप्रदायिक उन्माद ने दादरी मामला और गाय जागरूकता के नाम पर सांप्रदायिक हिंसा को जन्म दिया। यह सही है कि गाएं फसलों के लिए बहुत खतरा हो गई क्योंकि वे फसलों को नष्ट कर देती थीं जिससे किसानों को भारी वित्तीय नुकसान होने लगा।

योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भाजपा की सरकार उत्तरप्रदेश में 2017 में बनी लेकिन उनकी सरकार किसानों, शिक्षा स्वास्थ्य देखभाल, भ्रष्टाचार, कानून-व्यवस्था के प्रति किए गए अपने वादे पूरे नहीं कर पाई। उनका प्रदर्शन पूरी तरह से हिंदुत्व के एजेंडे के लिए प्रतिबद्ध था। बेरोज़गारी और आजीविका जैसे वास्तविक मुद्दे पीछे रह गए। अधिकांश समय नेता हिंदू-मुस्लिम विवादों में ही उलझे रहे। हालांकि सरकार ने नौकरी सृजन को बढ़ावा देने के लिए निवेशकों का एक सम्मेलन आयोजित किया और उत्तरप्रदेश में औद्योगिकरण को तेज करने के लिए 4.23 लाख करोड़ के समझौते वास्तव में एक बड़ा लक्ष्य और अत्यंत कठिन कार्य है।