Home Blog Page 1264

विकास के लिए प्रोत्साहन: नए रोज़गार बनाना, छोटे-मझोले उद्योग धंधों और दूसरे क्षेत्रों पर ध्यान

rozgaar

यह बात 15 अक्तूबर 2017 की है। हमने तहलका में लिखी आवरण कथा ‘प्रोत्साहन का इंतजारÓ में लिखा था कि मोदी सरकार अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए प्रोत्साहन पर सोच रही है। तब से एक महीने से भी कम समय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने नौ ट्रिलियन की योजना की घोषणा कर दी। इसमें से सात ट्रिलियन को सड़क परियोजनाओं और दो ट्रिलियन को सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के लिए नियत किया गया है। इससे लडख़ड़ाती अर्थव्यवस्था को कुछ मजबूती मिलेगी। मीडिया घराने के लिए इससे बेहतर बात क्या होगी यदि इसकी अपनी ही बात सरकारी कार्यसूची में आ जाए।
सरकार ने अभी हाल में जो घोषणा की है उसके तहत 83,677 किलोमीटर लंबी सड़कें बनाने का फैसला लिया गया है। अगले पांच साल में 6.92 लाख करोड़ रुपए का इसमें निवेश होगा। भारतमाला सड़क परियोजना के लिए पहले ही 5.35 लाख करोड़ की लागत से 34,800 किलोमीटर सड़कों को बनाने की घोषणा की जा चुकी है जो समुद्रतटीय और सीमाई क्षेत्रों में बनेगी। निश्चय ही इसमें अर्थव्यवस्था गति पकड़ेगी और उसे बढ़ावा मिलेगा। विपक्ष लगातार सरकार पर अर्थव्यवस्था के कमजोर होने और रोज़गार के कम होते जाने पर हमला बोलता रहा है। लेकिन नई भारतमाला परियोजना से 14.2 करोड़ काम के दिन पैदा होंगे।
भारतमाला परियोजना
इस भारतमाला परियोजना में इकॉनॉमिक कॉरिडोर (आर्थिक गलियारा) लगभग 9000 किलोमीटर लंबे होंगे। इसमें नेशनल कॉरिडारर्स एफिशिएंसी इंप्रूवमेंट (राष्ट्रीय गलियारा गुणवत्ता सुधार) और फीडर रूट 5000 किलोमीटर के होंगे। बोर्डर रोड्स (सीमाई सड़कें) और अंतरराष्ट्रीय कनेकटिविटी लगभग 2000 किलोमीटर होगी। साथ ही ग्रीनफील्ड एक्सप्रेसवेज 800 किलोमीटर के होंगे। सरकार ने आर्थिक तौर पर महत्वपूर्ण शहरों के लिए नए मार्गों की भी पहचान कर ली है। इसे दूरी के आधार पर नहीं बल्कि यात्रा में लगने वाले समय को ध्यान में रखा कर किया है। नए मार्ग इस लिहाज से भी तलाशे गए हैं कि उन पर ट्रैफिक की भीड़ न हो और छोटे शहर न हों। नेपाल और भूटान सीमा पर भी सड़कें बनेंगी। नई परियोजनाओं के लिए धन की व्यवस्था बाजार (2.09 लाख करोड़) से की जाएगी। पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप से (1.06 लाख करोड़) और एनएचए आई के टॉल एसेट्स से एसर्ट रिसाइकिलिंग करके और बाकी धन का इंतजाम सेंट्रल रोड़स फंडस करेगा। टॉल-ऑपरेट-ट्रांस्फर मोनेट्राइजेशन से मिलने वाला धन और टॉल कलेक्शन इसका बड़ा आधार होगा।
बैंकों में निवेश
सरकार ने इसके अलावा अगले दो साल में सार्वजनिक बैंकों में 2.11 लाख करोड़ की पूंजी लगाने का फैसला लिया है। हम सभी जानते हैं कि इन सार्वजनिक बैंकों में नॉन परफार्मिंग एसेट्स (एनपीए) काफी बड़ी संख्या में हैं। इनकी वसूली न होने के कारण अब बैंक कर्ज देने से बचते भी हैं। इन बैंकों को सरकारी राहत मिलने से अब व्यापार और उद्योग के विकास में मदद मिलेगी और अर्थव्यवस्था में भी सुधार होगा। बैंकिंग प्रणाली में जो धनराशि जानी है उसकी बजटीय व्यवस्था 18,239 करोड़ की हो चुकी है और 1.35 लाख करोड़ रुपए के बांड भी बिक चुके हैं। बाकी की व्यवस्था सरकार के इक्विटी शेयर के जरिए बैक ही कमाएंगे। सरकार का सार्वजनिक बैंकों में पूंजी बढ़ाने की इस पहल से बैंकों में पूंजी का बेहतर स्तर हो सकेगा। इससे विकास में मदद भी मिलेगी । तमाम सार्वजनिक बैंकों में दस लाख करोड़ की पूंजी खासे दबाव में थी जिसके कारण बैंकिंग क्षेत्र बेहद संकट में था और यह ताजा कजऱ् न देने की स्थिति में आ गया था । इस अप्रैल में तो बैंकिंग कजऱ् 60 साल पहले के बराबर स्तर पर पहुंच गया था। और बैंकों के सामने दुहरी बैलेंस शीट की समस्या आ गई थी। यह तो पिछले साल के आखिरी महीनों में नया दिवालिया कानून पास हुआ और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने बैंकों से उन लगभग पचास खातों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया।
मजबूत इरादे
मोदी सरकार ने अर्थव्यवस्था सुधारने के लिए नौ ट्रिलियन की योजना शुरू की है। वित्त मंत्रालय ने वित्त मंत्री अरूण जेटली के जरिए संवाददाता सम्मेलन में कहलाया कि यह सब मॅक्रोइकॉनॉमिक फंडामेंट्ल्स के जरिए ही संभव हुआ। कम मुद्रास्फीति, बेहतर चालू खाते और वित्तीय घाटों से यह संकेत मिलता है आने वाले चैथाई महीनों में सकल उत्पाद का विकास ठीक-ठाक होगा। ऐसी उम्मीद है कि वर्तमान साल की दूसरी तिमाही में ही अच्छा विकास दिखे। महत्वपूर्ण यह भी है कि सरकार पहले ही विनिवेश से 30,000 करोड़ रुपए इक_े कर चुकी है। अब यह 72,000 करोड़ का लक्ष्य पाने की ओर सतत प्रयासशील है। दरअसल 2016-17 में भारत में तो विदेशी जमा निवेश आया वह 60.2 बिलियन डालर था। इसकी तुलना में 2015-16 में यह मात्र 55.6 बिलियन डालर और 2014-15 में मात्र 45.1 बिलियन था।
‘अच्छे दिनÓ की उम्मीद बढ़ी
नए प्रोत्साहन पैकेज का ही नतीजा है कि स्टॉक मार्किट में अब उत्साह बढ़ा है और अर्थव्यवस्था में भी नया भरोसा जगा है। इस नई स्थिति का असर निश्चय ही जीएसटी से परेशान व्यवसायियों और अर्थव्यवस्था को बढ़ाने में होगा। बैंकों में पूंजी बढ़ाने का प्रस्ताव भी खासा सकारात्मक रहा है और इससे बैंकिंग प्रणाली को और सुधारने में मदद मिलेगी। इस विकास के संदर्भ में यह बात भी महत्वपूर्ण है कि सरकार ने यह माना है कि अर्थव्यवस्था के साथ सब कुछ ठीक है। सरकार का यह शुरूआती रुख ज़रूर रहा कि विपक्ष निराशा फैला रहा है। केंद्रीय वित्तमंत्री ने जो उदारता दिखाई उसका एक दूसरा सकारात्मक पक्ष यह था कि खुद वे शुरू में इस पक्ष में नहीं थे कि कोई प्रोत्साहन पैकेज दिया जाए क्योंकि इससे वित्तीय घाटा ही और बढ़ेगा।
इस प्रोत्साहन पैकेज से सीधा लाभ छोटे और मझोले (एमएसएमई) उद्योगों को होगा। जैसी योजना है कि सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों को सप्लाई देने वाले एमएसएमई को नब्बे दिनों के अंदर भुगतान की व्यवस्था होगी और क्रेडिट डिलीवरी में राहत भी। नई सड़क परियोजनाओं के तहत एमएसएमई क्षेत्र में 14.2 करोड़ काम के दिन बन सकेंगे। इसमें आखिरकार लाखों लोगों को अच्छे दिन देखने को मिलेंगे।
महान कवि और सकारात्मक कवि राबर्ट ब्राउनिंग ने लिखा था,’ ईश्वर स्वर्ग में है, दुनिया में सब कुछ ठीक-ठाक हैÓ। इससे यह उम्मीद बंधती है कि मोदी सरकार के उठाए गए नए कदमों से अर्थव्यवस्था दुरुस्त होगी। हमें उम्मीद करनी चाहिए कि बहुचर्चित ‘अच्छे दिनÓ जो अब तक नहीं आए, अब वाकई वास्तविकता में होंगे और लाखों लोगों के सपने साकार होंगे।

यह आखिरी चुनाव है मेरा: मुख्यमंत्री

veeru

इस बार का विधानसभा चुनाव इस लिहाज से भी अहम है क्योंकि मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह कबूल कर चुके हैं कि उनके 55 साल के राजनीतिक जीवन का यह आखिरी चुनाव है। इसके बाद अगली पीढ़ी को इस पहाड़ी सूबे में कांग्रेस का जिम्मा संभालना है। इन पांच दशक में वीरभद्र सिंह ने राजनीति में अपने समर्थकों की लम्बी कतार तैयार की जो सूबे के किसी दूसरे नेता के पास नहीं। इन सालों में वे या पार्टी के प्रदेश में अध्यक्ष रहे, विपक्ष में नेता रहे या मुख्यमंत्री या फिर केंद्र सरकार में मंत्री।
ऐसा शायद ही कभी हुआ कि उनके पास कोइ ओहदा नहीं रहा। उनके कट्टर समर्थक इस बात से खुश है कि 84 साल के वीरभद्र सिंह की काबलियत पर भरोसा करते हुए राहुल गांधी ने उन्हें चुनाव में जिम्मा ही नहीं सौंपा है बल्कि यह भी कहा है कि पार्टी के चुनाव जीतने पर वे ही मुख्यमंत्री होंगे। उनके कट्टर समर्थक और हमीरपुर मार्केटिंग बोर्ड के अध्यक्ष प्रेम कौशल ने कहा कि यह वीरभद्र सिंह की काबिलियत है कि कांग्रेस आलाकमान ने उनपर भरोसा करते हुए चुनाव की बागडोर उन्हें सौंपी है। कोई ऐसा नेता नहीं जो वीरभद्र सिंह जैसा करिश्माई हो। वे कांग्रेस को लगातार दूसरी बार चुनाव जिताकर रेकॉर्ड बनाएंगे। लोग उन्हें जीवन के आखिरी चुनाव में जीत का तौहफा देंगे।
यह भी दिलचस्प है कि वीरभद्र सिंह जीवन का आखिरी चुनाव भी नए हलके अर्की से लड़ रहे हैं। इससे उनकी हिम्मत ही कहा जा सकता है क्योंकि नया हलका होने के बावजूद वे परचा भरकर पार्टी के चुनाव प्रचार के लिए प्रदेश के दूसरे हिस्सों के लिए निकल गए। उनकी पत्नी पूर्व सांसद प्रतिभा सिंह ने अर्की में उनके प्रचार का जिम्मा संभाल रखा है।
यह रिपोर्ट लिखे जाने (30 अक्टूबर) तक प्रदेश में भाजपा के बड़े नेताओं का मुकाबला वे अकेले कर रहे थे। कांग्रेस के केंद्रीय नेता अभी तक फील्ड में चुनावी सभाओं में नजर नहीं आ रहे हैं। कुछेक नेता जरूर नामांकन के वक्त नजर आए थे, लेकिन अधिकतर अभी तक चुनाव प्रचार में उतारे नहीं गए हैं। जबकि 30 अक्टूबर तक भाजपा के लिए उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के अलावा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर, केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली जैसे बड़े नेता प्रचार कर चुके थे। इनके अलावा प्रदेश के दो वरिष्ठ नेता प्रेम कुमार धूमल और जगत प्रकाश नड्डा भी पूरी तरह मैदान में जमे हैं।
वीरभद्र सिंह के सामने राजनीतिक जीवन के इस सबसे बड़े चुनाव में पार्टी को चुनाव में दुबारा जिताने की ही चुनौती नहीं है। उनके पुत्र और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष विक्रमादित्य सिंह भी शिमला ग्रामीण सीट से मैदान में खड़े हैं और वीरभद्र सिंह उनकी जीत सुनिश्चित करने के लिए अर्की से ज्यादा प्रचार शिमला ग्रामीण हलके में कर रहे हैं। वीरभद्र सिंह उन्हें अपने रहते प्रदेश कांग्रेस की राजनीति में स्थापित कर देना चाहते हैं। हलके में विक्रमादित्य की बहिन अपराजिता भी पूरी शिद्दत से डटी हैं। अपराजिता पंजाब के मुख्यमंत्री के परिवार में ब्याही हैं।
जहाँ तक वीरभद्र सिंह की राजनीति की बात है वे अपने बूते कांग्रेस को अट्टा में लाने की क्षमता रखते हैं। पिछले चुनाव में वे ऐसा कर चुके हैं। प्रचार के लिए हिमाचल आए केंद्रीय कांग्रेसी नेता गौरव गोगोई कहते हैं कि हिमाचल में भाजपा वीरभद्र सिंह से इतनी घबराई हुई है कि उनके खिलाफ उसने अपनी तोपें उतार दी हैं। भाजपा का शीर्ष नेतृत्व उनसे डरा हुआ है। वीरभद्र सिंह का मुकाबला भाजपा नेता नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि वीरभद्र कांग्रेस का ब्रह्म अस्त्र है।
वैसे कांग्रेस को हिमाचल में वीरभद्र सिंह पर ज़रुरत से ज्यादा निर्भरता भारी भी पड़ी है। पिछले तीन दशक में वीरभद्र सिंह के अलावा कोई मजबूत नेता पार्टी में उभर नहीं पाया। पूर्व केंद्रीय मंत्री सुख राम ज़रूर नब्बे के दशक में उभरे लेकिन घर पर पैसे मिलने के बाद से वे कानूनी दांव पेच में फंस गए। उन्हेंने आरोप लगाया था कि उनके घर पर पैसे कथित रूप से वीरभद्र सिंह के इशारे पर रखे गए। चुनाव से ऐन पहले सुखराम अपने मंत्री बेटे समेत कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो गए।

अचंभा नहीं, यदि गुजरात के नतीजे चौंकाएं

Ghogha
गुजरात में यानी बाइस साल बाद जबरदस्त मुकाबला है। विधानसभा की एक-एक सीट पर क्या नतीजे आएंगे उन पर हर कहीं सिर्फ बहस हो रही है। अजेय मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी इस बार वहां मैदान में नहीं हैं। लेकिन इस साल के हर महीने और पिछले महीने भी उन्होंने प्रदेश का तीन बार सघन दौरा किया। इससे वे तकरीबन ग्यारह हज़ार करोड़ की योजनाओं की घोषणाएं कर चुके हैं। राष्ट्रीय फलक पर उनके होने का जादुई प्रभाव ज़रूर प्रदेश विधानसभा चुनाव में ऐसे नतीजे लाएगा जो चौंकाने वाले होंगे।
उधर कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष के सामने ज़रूरी मौका है कि वह राज्य में विभिन्न जाति-समुदाय बंटे में युवाओं को साथ ले कर आरक्षण, बेरोज़गारी, महंगाई के नाम पर विभिन्न समुदायों को एकजुट करने वाले युवा नेता हार्दिक पटेल (पटेलों के नेता) अल्पेश ठाकुर (ओबीसी जातियों के नेता) और जिग्नेश मेवाणी (दलित, आदिवासी, पिछड़ों के नेता) को साथ लेकर पूरे राज्य में ऐसा प्रचार -प्रसार कर जिससे कांग्रेस को ऐसे नतीजे मिलें जिससे वे खुद भी चौंके।
दोनों ही बड़ी पार्टियों के नेता धुआंधार चुनाव प्रचार में जुट गए हैं। दोनों के ही चुनाव विशेषज्ञ साम, दंड, भेद से अपने-अपने रंग तरह-तरह के दृश्यों में भर रहे हैं। तमाम छोटे राजनीतिक दल भी इन्हीं दोनों पार्टियों के खेमे में अपनी सक्रियता बनाए हुए हैं। गुजरात में नौ दिसंबर को पहले चरण और दिसंबर को दूसरे चरण का मतदान होगा।
गुजरात का चुनाव इस मायने में भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके नतीजों का असर अगले साल कर्नाटक (अप्रैल 2018), मध्यप्रदेश (दिसंबर 2018), राजस्थान (दिसंबर 2018) के चुनावों पर खासा पड़ेगा। इसके बाद तो आम चुनाव (मई 2019) होना ही है।
मतदाताओं को लुभाने के लिए केंद्र सरकार ने पिछले ही महीने गुजरात में ढेरों नीतिगत घोषणाएं कीं। इसमें ब्याज मुक्त कृषि कर्ज, नया गुजरात औद्यौगिक विकास कारपोरेशन इकाईयां, रु .2.11  लाख करोड़ की सरकारी बैकों के लिए पूंजी, और भारतमाला परियोजना के लिए मूलभूत संसाधन की व्यवस्था और बहुत कुछ ऐसी योजनाएं हैं जिनसे मतदाता राज्य के धन-धान्य से पूर्ण होने की आस में भाजपा के पक्ष में मन बना सकते हैं। यह एक सच्चाई है कि आज़ादी के बाद से ही तमाम राज्यों की तुलना में गुजरात को सबसे ज्य़ादा संसाधन मिलते रहे हैं। हालांकि उनका समुचित उपयोग सिर्फ कुछ बड़े घरानों में ही सीमित रह गया। जन साधारण तक नहीं पहुंच पाया।
ज्य़ादातर बाज़ारों और व्यावसायिक क्षेत्रों मेें यह माना जा रहा है कि भाजपा की ही सरकार प्रदेश में बनेगी। क्योंकि तभी राजनीतिक स्थायित्व और आर्थिक सुधारों की स्थिति होगी। भाजपा की जीत से पूरे देश में मोदी की लोकप्रियता को चार चाँद लग जाएंगे। दूसरे गुजरात में बाज़ार, व्यापार खूब पनपेगा। किसी विदेशी निवेशक के लिए भी निवेश की गुजाइश तब बनती है जब शांति, पानी, बिजली और ज़मीन पाने की उसकी इच्छा बिना किसी परेशानी के पूरी हो पाती है।
‘एक पैसे की भी मदद नहीं, विकास विरोधी सरकारों कोÓ
वड़ोदरा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने (22 अगस्त) को 3650 करोड़ की विकास परियोजनाओं का शिलान्यास करते हुए कहा यह मेरा सम्मान है। विपक्षी दल कांग्रेस पर गरजते हुए उन्होंने कहा, कांग्रेस गुजरात में चुनाव की तारीख हिमाचल चुनाव के साथ घोषित करने पर भारत के निर्वाचन आयोग पर सवाल उठा रहे हैं। कांग्रेस का नाम लिए बिना उन्होंने कहा कि उन्हें चुनाव आयोग पर ऊंगली उठाने का हक नहीं है क्योंकि पुनॢगनती में राज्यसभा की अकेली सीट कांग्रेस अगस्त महीनेे में जीत सकी। उन्होंने उन राज्य सरकारों को चेतावनी दी कि जो विकास के विरोधी हैं उन्हेंं कें द्र सरकार से कोई मदद नहीं मिलेगी।
प्रधानमंत्री ने वडोदरा म्यूनिसिपल कारपोरेशन के लिए 1,140 करोड़ रु पए और हिंदुस्तान पेटूोलियम कारपोरेशन लिमिटेड (एचपीसीएल) की तकरीबन 1,040 किमी लंबी मुंद्रा-दिल्ली पेटूोलियम प्रोडक्ट पाइप लाइन (एमडीपीएल) को वर्तमान क्षमता पांच को बढ़ाकर आठ मिलियन मैटिूक टन प्रति वर्ष (एमएसटीपीए) की कुल लागत 1,879 करोड़ करने की घोषणा की।
गुजराती में उन्होंने कहा कि एक दिन में उन्होंने ने 3650 करोड़ के विकास कार्यों के लिए धनराशि घोषित की है। यह मेरा सम्मान है। एक जमाना था जब पूरे गुजरात का बजट रु पए आठ हज़ार करोड़ मात्र होता था। आज वडोदरा में उद्घाटन, शिलान्यास ही रु पए 3650 करोड़ मात्र के हैं। यह अभूतपूर्व है। वे (विपक्ष) पूछते हैं कि दीवाली के बाद वे गुजरात में क्या करने को हैं? अरे, क्या वडोदरा का मुझ पर अधिकार नहीं।
मोदी ने 2014 में वडोदरा से भी लोक सभा चुनाव लड़ा था। बिना कांग्रेस का नाम लिए उन्होंने कहा कि मुझसे तो वे सीधे कुछ कहा नहीं सकते थे। इसलिए भारत के निर्वाचित आयोग में खिलाफ बोलने लगे। हिमाचल में चुनाव की तारीख घोषित हो गई है लेकिन गुजरात में जहां चुनाव होने है। वहंा की तारीखें अब तक घोषित नहीं हुई। आचार संहिता लागू नही हुई।
हम भी प्राथमिकता विकास है। हम चाहते हैं कि जनता के पैसे का इस्तेमाल हर नागरिक को स्वस्थ बनाए रखने और विकास कार्य में हो। मोदी ने कहा, पिछली सरकारों ने चाहे जनता पार्टी के मोरारजी देसाई की ही सरकार हो विकास नहीं हुआ। गुजरात के मुख्यमंत्री 1977 में 1979 तक बाबू भाई पटेल मुख्यमंत्री थे। तब राज्य को थोड़ा लाभ हुआ।
रो-रो फेरी भी शुरू
गुजरात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बार रो-रो फेरी की शुरूआत थी की। इसके जरिए सौ गाडिय़ां (कार, बसें और ट्रक) और 250 यात्री भी देश के। बंदरगाहों घोघा और दाहेज में जा सकेंगी। यह रो-रो फेरी खम्भात की खाड़ी, यानी सौराष्ट्र की प्रायद्वीप और दक्षिण गुजरात में होगी। सौराष्ट्र का भावनगर जि़ला खाड़ी पार उटकिया दूर भड़ौच जि़ले में है।
इस फेरी सेवा परियोजना की लागत रु पए 614 करोड़ मात्र है। इसके अलावा घोघा और दाहेज में रु पए 117 करोड़ मात्र की लागत से ड्रेजिंग की व्यवस्था भी की गई। गुजरात सरकार तमाम नौसैनिक और बंदरगाह के अलावा राज्य के 1600 किमी लंबी समुद्री सीमा पर चौकसी भी बरतती है।
फेरी सेना से घोघा, सौराष्ट्र और दक्षिण गुजरात के दाहेज में जहां लोगों को जाने आने में सात से आठ घंटे लगते थे। वह दूरी जो 360 किमी की है उसमें अब 31 किमी कमी आएगी और अवधि एक घंटा और कुछ मिनट में सिमट जाएगी। इससे गुजरात में संपर्क बढ़ सकें गे और मूलभूत संसाधन पूरे होंगे। कच्छ की खाड़ी में 2016 में देवभूमि द्वारिका जिला और कच्छ जिले की मंडावी के बीच कच्छ सागर सेतु पैसेंजर फेरी सेवा ज़रूर शुरू हुई लेकिन तकनीकी और वित्तीय चुनौतियों के चलते वह बंद हो गई।
कांग्रेस और युवा नेता
गुजरात के पाटीदारों (पटेलों) की अर्से से मांग रही है आरक्षण की। ज्य़ादातर पाटीदारों में बेरोजगारी है। घर में उद्योग धंधे नहीं है और कृषि कार्य भी नहीं के बराबर है। इन लोगों को युवा नेता हार्दिक पटेल ने संगठित किया और एक अर्से से यह आंदोलन चल रहा है। गुजरात में तकरीबन 29 फीसद पाटीदार हैं। काग्रेस के गुजरात प्रभारी अशोक गहलोन ने पिछले काफी समय ये गुजरात की तीनों युवा नेताओं हार्दिक पटेल (पाटीदार नेता), अल्पेश ठाकुर (ओबीसी जातियों के नेता) और मेवाणी (दलित, आदिवासी नेता) से निरंतर संपर्क रखा। उन्होंने बताया कि गुजरात पुलिस और खुफिया एजंसियों ने (सोमवार 23 अक्तूबर)को उस होटल से सीसीटीवी फू टेज ले लिए जिनसे यह पता चलता है कि वे कहां रहे और हार्दिक पटेल और अल्पेश ठाकुर से उनकी मुलाकात हुई। कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी से भी इनकी मुलाकात हुई। किसी से मिलना या न मिलना किसी के साथ जाना-आना निजी आज़ादी है। कोई भगोड़ा तो क्या लेकिन गुजरात सरकार की खुफिया एजंसियों और पुलिस ने होटल के प्रबंधकों से कहा कि वीवीआईपी लोगों की सुरक्षा के लिहाज से हमने ये फूटेज दिए।
गहलोत के अनुसार अल्पेश अब कांग्रेस के साथ हैं। वे चुनाव भी लड़ सकते हैं। हार्दिक भी कांग्रेस के साथ हैं लेकिन वे चाहते हैं कि कांग्रेस के पास पाटीदारों के लिए नौकरियों में आरक्षण का क्या फार्मूला होगा। अभी उनकी उम्र कम है। इसलिए वे चुनाव नहीं लड़ेंगे। उनके लोग कांग्रेस के साथ हो सकते हैं।
अशोक गहलोत ने पूछा, महात्मा गांधी के गुजरात में यह सब क्यों हो रहा है। क्या अल्पेश ठाकुर, हार्दिक पटेल और जिग्नेश मेवाणी भागे हुए लोग हैं। इन युवा नेताओं से मैंने भी मुलाकात की सरकारी अफसरों ने सीसीटीवी फूटेज मीडिया को दे दी। इस पूरे प्रसंग पर गुजरात के गृहमंत्री प्रदीप सिंह जडेजा ने कुछ भी कहने से इंकार किया। पुलिस कमिश्नर एएससिंह ने भी कोई टिप्पणी नहीं की।

‘राजनीतिक तौर पर मुझे खत्म करने की साजिश’

virbhadra singh

हिमाचल की राजनीति में वीरभद्र सिंह न केवल छह बार मुख्यमंत्री रहें हैं और सातवीं बार के लिए फिर मैदान में हैं। उन्हें बहुत चतुराई से योजना बनाने वाला और पार्टी के भीतर और बाहर की चुनौतियों को ध्वस्त करने की क्षमता वाला नेता माना जाता है। पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी उन्हें चुनाव की घोषणा से पहले ही कांग्रेस का मुख्यमंत्री पद का चेहरा बता गए तो इसलिए कि पार्टी के बीच फिलहाल ऐसा कोई नेता नहीं था बल्कि 84 साल के वीरभद्र सिंह जितनी चुनावी क्षमता और अनुभव के अलावा जनता में पैठ और किसी के पास है भी नहीं। कांग्रेस की संभावनाओं को लेकर उनके सरकारी आवास ओक ओवर में बातचीत हुई।

इस उम्र में भी आप चुनाव मैदान में हैं। यह सत्ता में बने रहने का मोह है या कुछ और। जनता की सेवा का जज़्बा और इसके लिए कोई उम्र नहीं होती। मैं कांग्रेस के लिए समर्पित कार्यकर्ता हूँ। पिछले 55 साल से राजनीति में हूँ। लोक सभा में रहते हुए इंदिरा गांधी से लेकर राजीव गांधी तक की सरकारों में मंत्री रहा। जनता के प्यार से छह बार मुख्यमंत्री बना हूँ। मैंने ईमानदारी से जनता की सेवा और प्रदेश का विकास करना चाहा है। कांग्रेस आलाकमान ने मुझ पर फिर भरोसा जताया है और मुझे उम्मीद है लोगों के प्यार से मैं जीत का तोहफा उन्हें दे सकूंगा।

आप पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं और कोर्ट में मामला चल रहा है। यह भाजपा का मुझे राजनीतिक रूप से खतम करने का षडय़ंत्र है। प्रदेश भाजपा के एक नेता के अलावा केंद्र सरकार में एक सीनियर मंत्री का इसमें हाथ है। लेकिन वो इसमें सफल नहीं होंगे। प्रदेश की जनता चुनाव में उन्हें जवाब देगी। भाजपा वाले अपने राजनीति प्रतिद्वंदी को भी दुश्मन समझते हैं और मैं इसका खुद भुक्त भोगी हूं। मेरे खिलाफ एक ही मामला तीन-तीन जगह चल रहा है। इनकमटैक्स, सीबीआई और ईडी एक ही मामले को देखने में लगी हैं। मैं अपने खानदान का 122वां राजा हूँ, कोई खानाबदोश नहीं। मैंने कोई व्यापार नहीं किया, परंतु इतनी पीढिय़ों के पास कुछ तो धन होगा ही। चाहे कुछ भी हो जाए मैं टूटने वालों में नहीं हूँ और जनता के सहयोग से इस लड़ाई को लडूंगा।

भाजपा का दावा है कि प्रदेश में मोदी की लहर है और कांग्रेस बुरी तरह हारेगी। मेरे राजनीतिक जीवन में केंद्र में बनी बहुमत की यह पहली ऐसी सरकार है जिसने तीन साल में ही लोगों का भरोसा खोना शुरू कर दिया है। मेरा विश्वास करें कि 2019 के चुनाव में मोदी फिर जीत नहीं पाएंगे। विधानसभा चुनाव में महंगाई, नोटबंदी और जीएसटी अहम मुद्दा रहने वाला है। जीएसटी से हिमाचल ही नहीं, हर राज्य के व्यापारी परेशान हैं और ऐसे में यह बहुत बड़ा चुनावी मुद्दा है। चुनाव में कांग्रेस, मोदी सरकार से इसका जवाब मांगेगी। बीजेपी ने हमेशा क्षेत्रवाद और जातिवाद के अलावा लोगों को आपस में लड़वाने का कार्य किया है।

भाजपा का दावा है कि वह 50 प्लस जीतने वाली है। वो यह भी कह रही है कि आपकी सरकार ने सूबे को कर्ज में डुबो दिया। पीएम मोदी बताएं कि वे अपने गृह राज्य गुजरात में कितनी बार फिफ्टी प्लस लाए। बीजेपी का कोई नारा हिमाचल में चलने वाला नहीं है और यहां पर कांग्रेस ही सरकार बनाएगी। सरकार ने जो भी लोन लिया है वह केंद्र सरकार के निर्देश के तहत ही लिया जा रहे हैं। हर राज्य लोन लेता है, चाहे वह गुजरात हो या हिमाचल। उन्हें हम पर आरोप लगाने की जगह जनता को यह बताना चाहिए कि जब 2012 में जनता ने उन्हें सत्ता से बहार किया था तो वे प्रदेश पर कर्ज कितना चढ़ा गए थे !

sukhu

सुखराम आपको छोड़ कांग्रेस में चले गए। उन्होंने यह आरोप भी लगाया है कि उनके घर पर जो पैसे मिले थे वे आपने रखवाए थे। उनके जाने से कांग्रेस को कोई फर्क नहीं पडेगा। पिछले सालों में कांग्रेस में उनका क्या रोल रहा? रही बात पैसे की तो सुखराम कोई बैंक आफ मंडी हैं जो वे उनके पास पार्टी का पैसा जमा करवाएंगे। कांग्रेस पार्टी देश की सबसे पुरानी पार्टी है यदि उसे पैसा रखना होता तो वे बैंक में रखते, न कि किसी के घर में और वो भी मंडी में। सुखराम के घर पर जो पैसा मिला, वह कहां से आया है, सब जानते हैं। सुखराम के बीजेपी में जाने से कांग्रेस को कोई नुकसान होने वाला नहीं है।

आलाकमान ने आपका हलका बदल दिया। क्या दिक्कत नहीं आएगी नए हलके में आपको। अर्की से कांग्रेस काफी साल से हार रही है। मेरे वहां से लडऩे से पार्टी को मजबूती मिलेगी। अर्की के लोगों का मुझसे बहुत प्यार रहा है। अर्की से चुनाव को मैंने एक चैलेंज के रूप में लिया है। अर्की सीट ही नहीं, सोलन जिले की सभी सीटें कांग्रेस जीतेगी। अर्की सीट पिछले 15 साल से कांग्रेस नहीं जीती और इसलिए मैं इस सीट पर अपनी इच्छा से उतरा हूँ।

किस मुद्दे पर आप जनता के बीच हैं और कितनी संभावनाएं कांग्रेस के लिए देखते हैं। कुछ बागी भी मैदान में हैं। कांग्रेस पार्टी विकास के मुद्दे पर जनता के बीच जाएगी और फिर से मजबूत सरकार बनाएगी। राज्य में अथाह विकास हुआ है और इसके बूते हम सत्ता में फिर आएंगे। चुनाव में टिकट को लेकर खींचतान रहती है और कई नाराज़ होकर निर्दलीय चुनाव में उतर जाते हैं। यह केवल कांग्रेस में ही नहीं होता, बल्कि हर दल में ऐसा होता है।

मैदान में 338 उम्मीदवार

विधानसभा चुनाव में इस बार कुल 338 प्रत्याशी अपना भाग्य आजमाएंगे। भाजपा और कांग्रेस ने अपनी-अपनी पार्टी के बागियों को मनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इनमें से कुछ ने तो नामांकन वापस ले लिया पर कुछ अभी भी मैदान में डटे हुए हैं। कुल मिलाकर इस बार प्रदेश की 68 सीटों के लिए 338 उम्मीदवार मैदान में है। शिमला जिला से 38 उम्मीदवार चुनावी मैदान में रह गए हैं। सिरमौर जिला में 19, चंबा जिला में 21 जबकि ऊना जिला में 22 उम्मीदवार मैदान में रह गए हैं। अतिरिक्त निर्वाचन अधिकारी डीके रतन के मुताबिक हमीरपुर में 28, मंडी जिला में 58, सोलन जिला में 21, बिलासपुर से 14, किन्नौर और लाहौल स्पीति में क्रमश: 5 और 4 उम्मीदवार, कुल्लू से 14, कांगड़ा जिला में सबसे ज्यादा 94 उम्मीदवार मैदान में रह गए हैं। गौरतलब है 2012 में विधानसभा चुनाव के लिए459 उम्मीदवार मैदान में कूदे थे।

सुखविंदर सिंह सुक्खू प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष

पिछले पांच साल में हमने जो काम किया है वह प्रदेश में पार्टी की सरकार दुबारा बनाने का लिए हमारा मुख्य आधार है। केंद्र में मोदी सरकार के प्रति लोगों में बहुत नाराज़गी है और जनता फिर भाजपा को वोट नहीं देना चाहती। हिमाचल के चुनाव नतीजे भाजपा के लिए राष्ट्रीय स्टार पर असर डालेंगे। कांग्रेस हिमाचल में बहुत एकजुट होकर चुनाव में उतरी है। हमारी तरफ से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा भी हो चुकी है जिसका हमें लाभ मिलेगा। जबकि भाजपा का चेहरा कौन होगा यही वह तय नहीं कर पाई है जिससे साफ लगता है उसे अपनी जीत की उम्मीद ही नहीं है। हमारे कार्यकर्ताओं में जोश है और हम भाजपा के मुकाबले मैदान में प्रचार में बहुत आगे हैं। अगले महीने के शुरू में हमारे राष्ट्रीय नेता प्रचार के लिए आने वाले हैं जिनमें सोनिया गांधी और राहुल गांधी शामिल हैं। इसके अलावा बहुत से पूर्व मुख्यमंत्री पार्टी के प्रचार के लिए अक्तूबर के तीसरे पखवाड़े से ही हिमाचल आ चुके हैं। खुद मैंने अध्यक्ष के नाते तमाम हलकों के लिए नेताओं को जिम्मेवारी सौंपी है और संगठन को चुनाव प्रचार में गति दे रखी है। भाजपा के खिलाफ बहुत से मुद्दे हैं इन्हें हम लोगों के सामने उठा रहे हैं। हमारे बागी चुनाव मैदान से हट चुके हैं। आधिकारिक उम्मीदवार पूरी ताकत से मैदान में जुटे हैं।

‘कांग्रेस ने योजना तक तो बनाई नहीं, विकास कहां किया’

dhumal

प्रेम कुमार धूमल को हिमाचल में भाजपा का सबसे कद्दावर नेता माना जाता है। दो बार मुख्यमंत्री रहने के अलावा वे प्रदेश भाजपा अध्यक्ष और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे हैं और इस बार भी भाजपा के मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी हैं। यह माना जाता है कि 1998 में जब वे पहली बार मुख्यमंत्री बने थे तो इसमें नरेंद्र मोदी की सबसे बड़ी भूमिका थी जो उस समय हिमाचल भाजपा के प्रभारी थे। इसके बाद से आज तक वे मोदी के कट्टर समर्थक रहे हैं। पिछले पांच साल में कांग्रेस सरकार को वे अपने बूते विधानसभा के भीतर और बाहर घेरते रहे हैं। यह माना जाता है कि मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह भी यदि किसी विपक्षी नेता को चुनाव में खतरा मानते हैं तो वे धूमल ही हैं हालांकि वीरभद्र सिंह सरकार ने पिछले पांच साल में उनके और उनके सांसद बेटे के खिलाफ मामले भी बनाये हैं। सुजानपुर में धूमल से चुनाव को लेकर जो बात की उसके कुछ अंश।

यह क्या हुआ, आलाकमान ने आपका हलका ही बदल दिया। सुना है आप इससे प्रसन्न नहीं।

नहीं ऐसा कुछ नहीं। पार्टी का फैसला है और कुछ सोच समझ कर ही किया गया होगा। अवश्य इससे पार्टी का हित जुड़ा होगा।

कांग्रेस ने वीरभद्र सिंह को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया। भाजपा कार्यकर्ता अभी इन्तजार कर रहे हैं। क्या इसका नुकसान नहीं हो रहा क्योंकि सभी को उम्मीद थी कि जिस तरह पिछले पांच साल से आप पार्टी का विधानसभा के भीतर और बाहर भी नेतृत्व कर रहे हैं उसे देखते हुए आप पार्टी की स्वाभाविक पसंद होंगे।

हाँ, यह सही है कि कार्यकर्ता मायूस हैं पर आलाकमान के ध्यान में यह बात है। मैं इस पर टिप्पणी नहीं करना चाहूंगा। ऐसा 1998 के चुनाव में भी हुआ था जब चुनाव से तीन – चार दिन पहले ही मुख्यमंत्री पद के लिए पार्टी ने ऐलान किया था। यह आलाकमान का विशेषाधिकार है और उचित समय पर उसकी तरफ से कोई फैसला होगा। कांग्रेस किसी को भी नेता घोषित कर दे इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि वह बुरी तरह हारने जा रही है।

क्या भाजपा में टिकट चयन पर आप संतुष्ट हैं?

पार्टी के टिकट चयन का अंतिम अधिकार पार्टी आलाकमान का है। प्रदेश नेताओं की तरफ से अपनी स्तुति दी जाती है अंतिम मुहर पार्टी लगाती है। जीत सकने की अधिकतम क्षमता वाले लोगों को ही टिकट दिए जाते हैं।

इस चुनाव में पार्टी की क्या सम्भावना आप देखते हैं।

भाजपा इस चुनाव में बहुत मजबूत है। हमने 50 प्लस का लक्ष्य पहले रखा था लेकिन अब लगता है पार्टी 60 का आंकड़ा पार कर सकती है। कुछ टीवी सर्वे भी आये हैं जो यही दिखा रहे हैं।

कांग्रेस का दावा है कि वह विकास के बूते दोबारा सत्ता में आएगी।

हाँ उसने विकास किया है पर सिर्फ अपने नेताओं का, भ्रष्टाचार के जरिये। कौन नहीं जानता कि मुख्यमंत्री पिछले एक साल से कोर्ट के चक्कर लगा रहे हैं। भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप उन पर हैं और पार्टी ने उन्हें फिर सीएम का उम्मीदवार बना दिया। इससे कांग्रेस की मानसिकता को समझा जा सकता है। जहाँ तक विकास की बात है केंद्र से हिमाचल को 63 राष्ट्रीय राजमार्ग दिए गए और राज्य की कांग्रेस सरकार पैसों की कमी का रोना रोती रही। केंद्र ने 298 करोड़ रुपए अलग से डीपीआर बनाने के लिए जारी किए, इसके बावजूद वीरभद्र सरकार समयबद्ध रिपोर्ट नहीं बना सकी जो प्रदेश के लिए बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। प्रदेश की सड़कें खतरनाक और जानलेवा हो गई हैं क्योंकि समय पर उनके रखरखाव पर ध्यान नहीं दिया गया।

कबाइली लाहौल-स्पीति जिला सड़क संपर्क के मामले में देश के 100 पिछड़े जिलों में शुमार है। भाजपा सत्ता में आने पर इन राष्ट्रीय राजमार्गों और दूसरी सड़कों के कार्यों में तेजी लाएगी। इसके अलावा केंद्र सरकार की स्मार्ट सिटी योजना के लिए अब तक धर्मशाला व शिमला का चयन किया है, लेकिन विकास का ढिढोंरा पीटने वाली वीरभद्र सिंह सरकार और उनका प्रशासन उदासीन रहा और धर्मशाला स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के लिए आवंटित 183 करोड़ रुपए खर्च करने के लिए आवश्यक योजना तक नहीं बना सका। योजना के कार्यान्वयन के लिए आवश्यक कर्मचारियों की नियुक्ति में भी देरी प्रदेश सरकार की कार्यप्रणाली के लचरपन को दिखाती है।

केन्द्र की स्मार्ट सिटी योजना के तहत अगले पांच साल में करीब 57,000 करोड़ रुपए का निवेश 100 शहरों को आधुनिक बनाते हुए स्मार्ट सिटी के स्वरुप में विकसित किया जाएगा। स्मार्ट सिटी की तीसरी सूची में शिमला को 23 जून को शामिल किया गया और शिमला के कायाकल्प के लिए 2906 करोड़ रुपए की योजना मंजूर की गई, लेकिन प्रदेश सरकार के विभागों की लापरवाही के चलते समयावधि समाप्त होने के बाद भी सात विभागों ने कुल 17 प्रोजेक्ट को लेकर कान्सेप्ट नोट तैयार कर निगम को भेजने थे, वह भी नहीं भेजे। उसके लिए विभागों को 15 दिन का अतिरिक्त समय भी दिया गया जो 30 सितंबर को खत्म हो गया, उसके बावजूद सरकार के विभाग आवश्यक जानकारी उपलब्ध नहीं करवा पाए। क्या वीरभद्र सिंह की सरकार का यही विकास है, जिसका गुणगान करने के लिए उत्तरांचल के पूर्व सीएम हरीश रावत व हरियाणा के पूर्व सीएम भूपिन्द्र हुड्डा को हिमाचल आना पड़ा, जिनके विकास के मॉडल को दोनों राज्यों की जनता पहले ही नकार चुकी है। बीजेपी का विकास का मॉडल केन्द्र की मोदी सरकार की सोच व नई- नई योजनाएं और परियोजनाएं हैं, जिन पर तीव्र गति से कार्य हो रहा है।

कांग्रेस का दावा है कि उसने बेरोजगारी भत्ता दिया है।

वीरभद्र सरकार बेरोजगारी भत्ते के नाम पर युवाओं को गुमराह कर रही है। कांग्रेस सरकार ने हमेशा अपने फायदे के लिए जनता की भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया है। 2012 के चुनावी घोषणापत्र में कांग्रेस ने कहा था कि चुनाव जीतने के बाद प्रदेश में 10़2 पास युवाओं के लिए एक हजार और स्नातक के बेरोजगार युवाओं के लिए 1500 रुपए प्रतिमाह के हिसाब से दिए जाएंगे, लेकिन धरातल पर इस दिशा में सीएम ने कितना काम किया है, प्रदेश का युवा इस बात का गवाह है। हालांकि, पिछले चार साल से युवाओं की मांग के बावजूद इस मोर्चे पर सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की है। चार साल तक सर्वेक्षण के वादे कागजात पर ही बने रहे और प्रदेश सरकार ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की। उन्होंने कहा कि अब जैसे ही चुनावों की घोषणा का समय आया तो वीरभद्र सिंह को लगा कि प्रदेश के नौ लाख बेरोजगार युवकों से किया गया झूठा वादा चुनाव के दौरान उनके लिए एक चुनौती बना सकता हैं तो आनन फानन उन्होंने 16,149 युवाओं के लिए, जो कुल बेरोजगार युवकों का केवल 1.79 फीसदी है, उन्हें बेरोजगारी भत्ता देने का दावा किया।

 

सतपाल सत्ती (प्रदेश भाजपा अध्यक्ष)

 

सत्ती दूसरी बार प्रदेश अध्यक्ष बने हैं और खुद ऊना सीट से भाजपा उम्मीदवार हैं। उन्हें पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम धूमल का समर्थक माना जाता है। चुनाव को लेकर उन्होंने कहा प्रदेश में वीरभद्र सिंह सरकार ने पांच साल में वित्तीय नासमझी और कुशासन से प्रदेश को कर्जे के मकडज़ाल में फंसा दिया है। प्रदेश करीब 50,000 करोड़ रुपए के कर्ज में डूबा है। सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक कांग्रेस सरकार का लिया गया कर्ज संविधान का उल्लंघन है। इसके बावजूद अपने कार्यकाल के आखिरी तीन महीनों में 2400 करोड़ का कर्जा 10 साल के स्टाक की नीलामी करके लिया गया, लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण है कि उस पैसे का दुरुपयोग किया गया और सीएम, मंत्रियों, बोर्डों, निगमों के अध्यक्षों व अधिकारियों के लिए नई महंगी गाडिय़ां खरीदी गईं। जो पैसा प्रदेश में विकास के लिए खर्च होना चाहिए था, वो पैसा अपने लिए सुविधा और ऐशो आराम पर खर्च किया गया, वहीं बोर्ड निगमों में अध्यक्षों व उपाध्यक्षों की फौज खड़ी की गई और उनके मासिक खर्चों जैसे-गाडिय़ों, आवास, दफ्तर पर हर महीनें करोड़ों खर्च किए गए, जिससे प्रदेश पर वित्तीय संकट बढ़ गया। एक बैंक के अध्यक्ष ने तो हर 6 महीनों में ही नई गाड़ी खरीदने की परंपरा को जन्म दिया, जो खुल्लम-खुल्ला बैंक में रखे जनता के पैसे का दुरूपयोग है।

सती ने कहा कि कांग्रेस की सरकार द्वारा लिए गए कर्ज के कारण हर नागरिक आज तकरीबन 60,000 रुपए के छिपे हुए कर्ज में दबा पड़ा है और हर पैदा होने वाला बच्चा भी जब दुनिया में सांस लेगा, अपनी आंखें खोलेगा तो कर्ज का मकडज़ाल ही उसका स्वागत करेगा। ऐसे में वीरभद्र सिंह को जनता को जवाब देना चाहिए कि इतना भारी कर्ज उनके वर्तमान कार्यकाल में विकास की जगह प्रदेश के विनाश की ओर क्यों ले गया? उनकी शासनतंत्र पर कोई भी पकड़ नहीं रही और हर ओर लूट मच गई, जिससे प्रदेश की भारी हानि हुई। वित्तीय कुप्रबन्धन को रोकने के लिए बीजेपी कारगर कदम उठाएगी और सुनिश्चित करेगी कि केन्द्र की योजनाओं व प्रदेश के लिए दिए गए धन का सही उपयोग किया जायेगा।

हिमाचल में जारी चुनावी जंग बागी बिगाड़ेंगे खेल?

नौ नवम्बर के विधानसभा चुनाव के लिए हिमाचल में चुनावी रणक्षेत्र सज गया है। प्रदेश के चुनावी इतिहास में यह पहला मौका है जब मुख्यमंत्री पद के दोनों प्रमुख संभावित उम्मीदवार प्रेम कुमार धूमल और वीरभद्र सिंह नए हलकों से चुनाव लड़ रहे हैं। 68 सीटों वाली विधानसभा में प्रवेश के लिए 338 प्रत्याशी मैदान में डटे हैं। मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच है जबकि कुछ सीटों पर माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) और निर्दलीय भी उपस्थिति दर्ज करवाते दिख रहे हैं। कांग्रेस और भाजपा के लिए चिंता बागियों से है जिनके कुल जमा 13 (सात और छह) नेता मैदान में जमे हैं।

कांग्रेस मुख्यमंत्री पद के लिए वीरभद्र सिंह को ही अपना उम्मीदवार घोषित कर चुकी है जबकि भाजपा ने इस पद के लिए देरी से ही सही पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल का नाम सीएम पद के लिए घोषित कर दिया। केंद्रीय मंत्री जगत प्रकाश नड्डापूर्व प्रदेश अध्यक्ष जय राम ठाकुर और संघ-संगठन के अजय जम्बाल के नाम भी चर्चा में था। फिलहाल मोदी और उनकी सरकार के कामकाज के मुद्दे पर ही भाजपा चुनाव में है।

मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने पिछले चुनाव कांग्रेस के टिकट पर शिमला ग्रामीण हलके से लड़ा जबकि इस बार यह सीट उन्होंने अपने बेटे और प्रदेश युवा कांग्रेस के अध्यक्ष विक्रमादित्य सिंह के लिए छोड़ दी है और खुद नए हलके सोलन जिले के अर्की से लड़ रहे हैं। इसी तरह प्रदेश भाजपा के सबसे बड़े नेता प्रेम कुमार धूमल जो पिछली बार हमीरपुर से लड़े थे इस बार पार्टी आलाकमान ने उन्हें रणनीति के तहत सुजानपुर हलके से मैदान में उतारा है।

कांग्रेस पिछले पांच साल में अपनी सरकार के कामकाज और विकास को मुद्द्दा बनाकर चुनाव मैदान में है। हमेशा की तरह मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ही उसका सबसे बड़ा चेहरा हैं। भाजपा मोदी सरकार की उपलब्धियों का बखान कर रही है और उसका मुख्य चेहरा प्रेम कुमार धूमल हैं जबकि जगत प्रकाश नड्डा भी पूरी ताकत से मैदान में डटे हैं। दोनों ही दलों का दावा है कि उनकी ही सरकार बनेगी। वैसे प्रदेश का इतिहास रहा है यहां हर बार सरकार बदल जाती है। देखना है इस बार यह परम्परा जारी रहती है या नहीं।

दोनों दलों के राष्ट्रीय नेताओं का आना शुरू हो गया है जिनमें पूर्व मुख्यमंत्री या मुख्यमंत्री या दोनों दलों के बड़े ओहदेदार शामिल हैं। कांग्रेस के लिए सोनिया गांधी और राहुल गांधी नवम्बर के पहले हफ्ते आएंगे। पार्टी के कुछ बड़े नेता पहले से हिमाचल में डटे हैं। उधर धूमल के मुताबिक नवंबर के पहले सप्ताह ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रदेश के हर संसदीय क्षेत्र में एक-एक रैली होगी। उन्होंने कहा कि पीएम की पहली रैली ऊना जि़ले में होगी। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और 17 भाजपा संगठन हमीरपुर में शिरकत करेंगे।

किसी दल की कोई हवा फिलहाल नहीं दिखती हो सकता है मतदान से एक हफ्ता पहले परिस्थितियां कोई करवट लें। चुनाव आयोग का कहना है कि मतदान के लिए तमाम तैयारियां की जा रही हैं और संवेदनशील हलकों में सुरक्षा के चैकस प्रबंध किये जा रहे हैं। प्रदेश से लगती दूसरे प्रदेशों की सीमाओं को सील कर दिया गया है।

दोनों दलों के लिए इस चुनाव में कई बार असुखद परिस्थितियां बनीं। कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार वीरभद्र सिंह ने पहले ऐलान किया कि शिमला जिले के ठियोग से चुनाव लड़ेंगे। उनके लिए आठ बार की विधायक और वरिष्ठ मंत्री विद्या स्टोक्स ने अपनी सीट भी छोड़ दी। लेकिन बाद में कांग्रेस की जब सूची आई तो आलाकमान ने उन्हें सोलन जिले के अर्की से लडऩे का फरमान सुना दिया। ठियोग के लिए कांग्रेस ने नया उम्मीदवार घोषित कर दिया जो स्टोक्स की पसंद के विपरीत था लिहाजा उन्होंने विरोध स्वरुप खुद भी नामांकन भर दिया जो रद्द हो गया। इसके खिलाफ वे कोर्ट में चली गईं हालांकि बाद में याचिका वापस ले ली। इस सीट पर अब माकपा के राकेश सिंघा मजबूत हो गए हैं। माना जा रहा है की कांग्रेस के बागियों के वोट भी माकपा के खाते में जाएंगे। सिंघा पहले भी शिमला सीट से विधायक रह चुके हैं। भाजपा ने वहां से ताकतवर राकेश वर्मा को मैदान में उतारा है।

उधर भाजपा में भी अजीब स्थिति तब बनी जब आलाकमान ने पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल का हलका बदल दिया। उन्होंने पिछले सभी चुनाव हमीरपुर से लड़े हैं जबकि इस बार उन्हें इसी जिले के सुजानपुर से मैदान में उतारा गया है। कहते हैं हलका बदले जाने से धूमल प्रसन्न नहीं थे। वैसे माना जाता है कि सुजानपुर से भाजपा विधायक नरेंद्र ठाकुर को कांग्रेस के राजिंद्र राणा के मुकाबले कमजोर मानते हुए वहां से धूमल को उतारा गया और नरेंद्र को हमीरपुर से ताकि दोनों सीटें भाजपा की झोली में आ सकें।

जहाँ तक खास हलकों की बात है अर्कीसुजानपुर और ठियोग के अलावा नादौनऊना और मंडी इनमें शामिल हैं। नादौन से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू मैदान में हैं। पिछले बार कांग्रेस की जीत के बावजूद वे इस सीट से हार गए थे। उन्हें वीरभद्र सिंह विरोधी नेता माना जाता है लिहाजा मुख्यमंत्री के समर्थकों पर आरोप लगता रहा है कि वे खुल कर सुक्खू के समर्थन में नहीं उतरते।

ऊना प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सतपाल सिंह सत्ती का हल्का जहाँ से वे पिछले चुनाव भी जीते थे।

मंडी में पूर्व केंद्रीय मंत्री सुख रामजो भ्रष्टाचार के मामलों के कारण सक्रिय राजनीति से कमोवेश बाहर रहे हैंकुछ रोज पहले अपने बेटे अनिल शर्मा के साथ भाजपा में शामिल हो गए। अनिल शर्मा उस समय वीरभद्र सिंह सरकार में मंत्री थे। इससे भाजपा नेताओं में नाराजगी भी रही और उन्होंने अनिल शर्मा को मंडी से पार्टी उम्मीदवार बनाने का विरोध किया। इन नेताओं की भूमिका अनिल की हार जीत में अहम रोल अदा करेगी। दूसरा उनका मुकाबला कांग्रेस की जिस चंपा ठाकुर के साथ है वह नगर परिषद् की अध्यक्ष होने के अलावा प्रदेश सरकार में वरिष्ठ मंत्री कौल सिंह की बेटी हैं।

इस बार कांग्रेस में नेताओं के बच्चों को टिकट का मसला भी काफी गरम रहा। पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी इस बात के विरोध में थे कि परिवार के दो सदस्यों को टिकट दिए जाएँ। लेकिन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के पुत्र विक्रमादित्य सिंह और कौल सिंह की बेटी चंपा ठाकुर को टिकट दिए गए। पालमपुर से बीबी बुटेल के पुत्र आशीष बुटेल को टिकट मिला हालाँकि पूर्व विधानसभा अध्यक्ष बीबी बुटेल खुद चुनाव नहीं लड़ रहे।

जहाँ तक बागियों की बात है कांग्रेस के सात बागी मैदान में हैं। वे शिमला शहरीनालागढ़द्रंगऊना सदरकुल्लूलाहुल स्पीति और रामपुर में पार्टी उम्मीदवारों का खेल बिगाड़ सकते हैं। भाजपा में छह बागी मैदान में हैं और वे पालमपुरफतेहपुरचम्बारेणुकाहरोली और भरमौर में पार्टी को हानि कर सकते हैं।

चुनाव में उम्मीदवारों के बच्चेपत्नियांपति और दूसरे परिजन भी मैदान में डटे हैं। अर्की में मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के लिए उनकी पत्नी पूर्व सांसद प्रतिभा सिंह प्रचार कर रही हैं तो शिमला ग्रामीण सीट पर विक्रमादित्य सिंह के लिए उनकी बहन मैदान में हैं। भाजपा यहाँ विक्रमादित्य की सम्पति को लेकर सवाल उठा रही है। सुजानपुर में प्रेम कुमार धूमल के लिए उनके सांसद बेटे अनुराग ठाकुर और छोटे बेटे अरुण धूमल अपने पिता की जीत सुनिश्चित करने में लगे हैं। धर्मशाला में पूर्व मंत्री और भाजपा प्रत्याशी किशन कपूर की बेटी प्रगति कपूर ने टिकट मिलने से लेकर चुनाव प्रचार तक सोशल मीडिया पर सघन अभियान चलाया। वे भी प्रचार में जुटी हैं। इसी तरह दूसरे हलकों में भी परिजन प्रचार में रोल अदा कर रहे हैं।

चुनाव में माकपा भी मैदान में है। शिमला नगर निगम के मेयर रहे संजय चौहान उसका चेहरा हैं जबकि ठियोग में अनुभवी राकेश सिंघा मैदान में हैं। उनकी स्थिति मजबूत मानी जा रही है क्योंकि कांग्रेस में जंग है। पिछले चुनाव में राकेश सिंघा ठियोग में 18.74 प्रतिशत मतों के साथ 10,388वोट लेकर तीसरे स्थान पर रहे थे। 2012 में ही कसुम्पटी से कुलदीप तंवर 4798 वोट लेकर चौथे स्थान पर रहे थे। वे फिर मैदान में हैं। हो सकता है कुछ सीटों पर निर्दलीय भी बाजी मार लें।

वीरभद्र सिंह का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए राहुल गाँधी ने मंडी की रैली में घोषित किया और इसने मानों कांग्रेस में जान फूंक दी। महीने के शुरू तक जो भीतरी जंग थी उसपर बर्फ पड़ती दिख रही है। अभी दोनों प्रमुख दलों के बड़े नेताओं की रैलियां शुरू होनी हैं लिहाजा काफी कुछ ऊपर नीचे होगा। चुनाव अभियान के मारक मुद्दे अभी उछाले जाने हैं। लिहाजा चुनाव की दिशा भी बदलनी है। गुजरात के चुनाव में क्या हवा बन रही है इस पर भी इस पहाड़ी सूबे के मतदाताओं की नजर टिकी है।

भाजपा ने प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में पिछले पांच साल में वीरभद्र सिंह के नेतृत्व की कांग्रेस सरकार पर जम कर हमले किये। विधानसभा के भीतर भी और बाहर भी। धूमल ही भाजपा की राजनीति का इन पांच सालों में चेहरा रहे। और अब जब चुनाव आये तो इस पर सवाल खड़े हो गए। कारण भाजपा आलाकमान के नजदीकी स्वास्थ्य मंत्री जगत प्रकाश नड्डा का नाम सामने आना है। संघ के खास और संगठन के नेता मंडी के अजय जम्वाल और जय राम ठाकुर का नाम भी चर्चा में है।

भाजपा क्या चुनाव से पहले किसी का नाम आगे करेगीयह बड़ा सवाल इस पहाड़ी सूबे में पूछा जा रहा है। भाजपा बिना कोई चेहरा आगे किए उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में चुनाव लड़ चुकी है हालांकि हिमाचल में यह दांव उल्टा पड़ सकता है। धूमल का नाम खारिज नहीं कर सकती पार्टी क्योंकि इसके नतीजे उसके लिए विपरीत हो सकते हैं। धूमल फिलहाल भाजपा के इस सूबे में सबसे बड़ा और चुनावी राजनीति के

लिहाज से सबसे सशक्त चेहरा हैं। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के बाद वे प्रदेश के सबसे बड़े राजनीतिक नेता हैं।

पिछले पांच साल में जिस तरह वीरभद्र सिंह की सरकार ने उनके और उनके पुत्र सांसद अनुराग ठाकुर के खिलाफ हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन (एचपीसीए) को जमीन देने के मामले बनाये और आधी रात को धर्मशाला के स्टेडियम पर ताले जड़े उसकी धूमल और भाजपा को सहानुभूति भी मिली। सभी को लग रहा था कि धूमल ही भाजपा का चुनाव में चेहरा होंगे। पर आलाकमान की चुप्पी से भाजपा ही नहीं,आम लोगों में भी सुगबुगाहट है। कुछ को यह भी लगता है कि भाजपा आलाकमान धूमल के नाम का चुनाव में फायदा उठा कर उन्हें किनारे कर देगी और राज्यपाल का ओहदा देकर सूबे से बाहर कर देगी। लेकिन क्या धूमल के बिना वह सत्ता की देहरी तक पहुँच भी पाएगी यह बड़ा सवाल है?

हिमाचल कांग्रेस में वीरभद्र सिंह हैं के लिए 84 साल की उम्र में भी कोई मजबूत चुनौती पार्टी के भीतर नहीं दिखती। वीरभद्र सिंह अपनी तबीयत के नेता हैं और बिना रोक टोक काम करना पसंद करते हैं। इस उम्र में भी राहुल गाँधी ने उन पर भरोसा किया तो सिर्फ इसलिए कि वे जानते हैं कि देश में पार्टी के सामने संकट की जो स्थिति है और उसे जीत की जो खुराक इस समय दरकार हैउसे हिमाचल में वीरभद्र सिंह ही मुहैया करवा सकते हैं। राजा विधानसभा की 68 सीटों में से 42 पर फोकस करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं और इन्हीं पर पूरी ताकत झोंकेंगे। 2012 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने दो महीने में पूरी बाजी पलट कर सत्ता कांग्रेस की झोली में डाल दी थी जबकि उस समय धूमल की लीडरशिप में भाजपा दुबारा सत्ता में आती दिख रही थी।

वीरभद्र सिंह समर्थक इस बार के चुनाव को वीरभद्र का आखिरी चुनावÓ बताकर लोगों से सहानुभूति हासिल करना चाहते हैं। वैसे ही जैसे2012 के विधानसभा चुनाव में पंजाब में प्रकाश सिंह बादल के लिए अकाली दाल ने किया था और लगातार दूसरी बार सत्ता झटक ली थी। जरूरी नहींहिमाचल के मतदाता पंजाब का अनुसरण करेंलेकिन कांग्रेस के लोग तो कोशिश करेंगे ही। भाजपा ने 2007 में प्रेम कुमार धूमल का नाम आगे करके चुनाव में 43 सीटें जीत ली थीं और पंजाब में इसी साल कैप्टेन

अमरिंदर सिंह को आगे कर 76 सीटें जीत ली कांग्रेस उम्मीद कर रही है कि हिमाचल में भी उसे लाभ मिलेगा।

कांग्रेस का दावा है कि उसके सामने सत्त्ता संकट नहीं क्योंकि उसने पूरे पांच साल जमकर काम किया है। भाजपा का कहना है कि मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह भ्रष्टाचार के गंभीर मामले झेल रहे हैं और पिछले पांच साल सूबे में माफिया का राज रहा है। तीसरी राजनीतिक शक्ति नाम की कोई चीज सामने नहीं दिख रही इस चुनाव में। दोनों बड़े दलों के सामने भीतरघात की चुनौती है। यह चर्चा है कि भाजपा लोक सभा के चुनाव 2018 में ही करवा सकती हैलिहाजा गुजरात ही नहीं जैसा देश की राजनीति के लिहाज से छोटा सूबा हिमाचल भी अहम हो गया है। चुनाव के नतीजे क्या रहेंगे यह तो 18 दिसंबर को ही जाहिर होगा जब मतों की गिनती होगी। फिलहाल भाजपा परिवर्तन का दावा कर रही है। 

मुंबई के परेल पुल पर हुआ हादसा छाई रही राजनीति?

parel1

मुंबई के लोगों को लोकल ट्रेन पर जितना भरोसा रहा है, उतना शायद ही किसी व्यवस्था पर। लेकिन पिछली 29 सितंबर को अचानक यह भरोसा हट गया जब 23 लोगों को अपनी जानें गंवानी पड़ी और 30 बुरी तरह जख्मी हो गए। एलफिंस्टन रोड़ और परेल को जोडऩे वाले संकरे उडऩ पुल पर सुबह दस बजे के आसपास भारी बारिश से बचने के लिए जमा हुए लोगों में भगदड़ इस शोर पर मचा कि पुल गिर गया। लोग अपनी जान बचाने के लिए भागने लगे और उन्होंने एक-दूसरे को कुचल डाला। एलफिंस्टन रोड़ और परेल को जोडऩे वाला यह पुल पुराना है और संकरा है। संकरे पुल पर जमा लोगों की संख्या इतनी ज्य़ादा थी कि लोगों को हिलने की जगह भी नहीं मिल रही थी।

परेल की इस भगदड़ में मरने वालों और घायलों की सूची पर नज़र डालने से पता चलता है कि ये सामान्य लोग थे, मध्य और निम्न मध्य वर्ग के, जिनके लिए लोकल ट्रेन एक ऐसी जीवन रेखा है जिसके बगैर उनकी जि़ंदगी बेमानी है। यह उन्हें काम पर पहुंचाती हैं, रिश्तेदारों से मिलाती हैं और प्रेम तथा सहयोग करना सिखाती है। इस जीवन रेखा ने मौत की रेखा का रूप कैसे धारण कर लिया इसकी पड़ताल हमें शहरीकरण की दुनिया के भयावह सच की ओर ले जाती है।

परेल भगदड़ को लेकर खबरों पर नज़र डालें तो इससे अंदाजा होता है कि इस सच पर बहुत कम लोगों ने उंगली रखी है। हादसे से संबंधित सारी बहस को पुल के जर्जर होने और इसके संकरेपन पर केंद्रित कर दिया गया। यह एक अधूरा सच है। इस सच के साथ मुंबई के वर्तमान सच को जोड़े बगैर हम किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकते। इस महानगर की जि़ंदगी में अलगाव और निराशा की जो बीमारी घुस आई है उसे समझे बिना हम इस हादसे के पीछे के मनोविज्ञान को नहीं देख सकते। इसके साथ ही, लोकल रेल की व्यवस्था में आए परिवर्तनों ने इसे यहां की ज़रूरतों को पूरा करने में अक्षम बना दिया है। रेलवे मंत्रालय अपने बाकी हिस्सों की तरह इसे भी बदल देना चाहता है।

रेलवे का सारा ध्यान इस पर लगा हुआ है कि इस सस्ती सेवा को कैसे महंगी सेवा में कैसे बदला जाए। रेलवे मंत्रालय हर साल यह बहस करता है कि मुंबई उपनगरीय रेल सेवा में किराए का ढ़ांचा क्या होना चाहिए। जहां तक परेल-एलफिंस्टन रोड़ पुल पर मची भगदड़ का सवाल है तो इस इलाके में आए भौगोलिक परिवर्तनों पर ध्यान देने की ज़रूरत है। लोअर, परेल, एलफिंस्टन रोड़ लालबाग का जो इलाका पहले मज़दूरों का इलाका हुआ करता था, आज गगनचुंबी इमारतों भरा इलाका है और इसमें चालों के रूप में गरीबी के द्वीप हैं। यही वे इलाके हैं जिसमें मुंबई के साथीपन और दूसरों के लिए अपनी जान देने के सिनेमाई मिथक ने असली जि़ंदगी में भी वास्तविक रूप लिया। ख्वाजा अहमद अब्बास की कलम से निकल कर यह राजकपूर की फिल्मों में दिखाई देता है। फटे-चीथड़े लिबासों मेें लिपटा व्यक्ति जो मूल्यों पर अडिग है और संवेदनाओं से लबालब। वह मानवीय कसौटियों पर सदैव खरा उतरता है। परेल-लालबाग और एलफिंस्टन रोड़ वाली वह मुंबई धीरे-धीरे खत्म हो गई और उसकी जगह 21 वीं सदी की मुंबई ने ले ली है जहां आदमी सिर्फ अपने लिए जीता है। परेल-एलफिंस्टन रोड़ पुल की भगदड़ इस नए ज़माने की मुंबई की कहानी कहती है।

अब भगदड़ से जुड़ी राजनीति पर ज़रा अपनी नज़र दौड़ा लें। केंद्रीय रेल मंत्री पीयूष गोयल ने आनन-फानन में सुरक्षा पर उच्चस्तरीय एक बैठक बुलाई और अनगिनत फैसले ले लिए। इनमें एक फैसला यह लिया गया कि पैदल पार करने वाले पुलों और प्लेटफार्म तक पहुंचने के रास्तों को सुरक्षा की श्रेणी में रखा जाए। विभाग ने यह भी तय किया कि उन स्थानों पर जहां लोगों की ज्य़ादा संख्या आती-जाती है, वहां एस्केलेटर (स्वचालित सीढिय़ां) लगाई जाएं। गोयल का सबसे दिलचस्प फैसला यह है कि मंत्रालय के 200 अधिकारियों को अपने प्लान से हटा कर क्षेत्रों में काम करने के लिए भेज दिया जाए और देश के 75 स्टेशनों पर ”मेधावी पदाधिकारीÓÓ तैनात किए जाएं। गोयल ने यह भी कह डाला कि अभी तक पुलों की मरम्मत को प्राथमिकता का काम नहीं माना जाता था। यानि उन्होंने पहले के मंत्रियों को कटघरे में खड़ा कर दिया।

किसी हादसे को राजनीति में बदलने का इससे बेहतर उदाहरण नहीं हो सकता है। गोयल ने इसके जरिए रेलवे में बड़े पैमाने पर स्थानांतरण का इंतजाम कर लिया जो भाजपा हर विभाग में कर रही हैं ताकि नौकरशाही मेें अपने लोगों को बेहतर जगह दी जा सके।

किसी हादसे को राजनीति में बदलने का इससे बेहतर उदाहरण नहीं हो सकता है। गोयल ने इसके जरिए रेलवे में बड़े पैमाने पर स्थानांतरण का इंतजाम कर लिया जो भाजपा हर विभाग में कर रही है ताकि नौकरशाही में अपने लोगों को बेहतर जगह दी जा सके। इससे साबित होता है कि गोयल ने भगवाकरण के एजेंडो को आगे बढ़ाने के लिए इस हादसे का भी इस्तेमाल कर लिया।

हादसे पर राजनीति और आम लोगों के बीच एकता के अभाव का फायदा उठाने का एक और नमूना पेश किया है महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के प्रमुख राज ठाकरे ने। उन्होंने एक मोर्चा निकाला और घोषणा कर दी कि अगर पुलों पर फुटकर सामान बेचने वाले फेरीवालों और स्टेशन के रास्ते पर सड़क की दुकान लगाने वालों को नहीं भगाया गया तो उनके कार्यकर्ता इनके खिलाफ सीधी कारवाई करेंगे यानि उन्हें खुद भगाएंगे। शिवसेना की जगह लेने की कोशिश में लगी मनसे ऐसा कोई मौका नहीं छोड़ती है जो भारतीयों और गैर-महाराष्ट्रियन समुदाय के खिलाफ हो। मुंबई के फुटपाथ पर छोटे-छोटे सामान तथा खाने-पीने के चीजें बेचने वालों की बड़ी संख्या उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्यप्रदेश के लोगों की है। परेल-पुल के हादसे पर राजनीति का इससे बड़ा उदाहरण क्या हो सकता है?

इससे भी हैरतअंगेज बात यह है कि इस हादसे के लिए किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया गया है न रेलवे पुलिस बल या शासकीय रेलवे पुलिस को। यानि इसके दोषी वे लोग ही हैं जो कुचले गए या जिन्होंने अपनी जान बचाने की कोशिश में दूसरों को कुचल डाला। इस तरह का तर्क पहली बार सुनाई दे रहा है। इसके पहले तैनात अधिकारियों या पुलिसकर्मियों को अवश्य दोषी माना जाता था। किसी प्लेटफार्म या पुल पर कैसे इतने लोग इकट्ठा हो गए और किसी अधिकारी ने इसकी क्यों चिंता नहीं की। उसने भीड़ को नियंत्रित करने का कोई कदम नहीं उठाया तो इसका दोष किस पर जाएगा? इसके पहले हुई ऐसी घटनाओं, दिल्ली और इलाहाबाद में रेलवे विभाग ने स्थानीय अधिकारियों के खिलाफ कारवाई की है। जांच आयोग ने भी लोगों की जिम्मेदारी तय करने की कोशिश की है। सभी को जिम्मेदारी से मुक्त करने का अनोखा कदम उठाया गया। इससे भाजपा सरकार ने यह जता दिया किया है कि वह कड़े कदम उठाकर अधिकारियों या कर्मचारियों से तकरार मोल लेना नहीं चाहती है। यह एक सरकार के कमज़ोर होने के संकेत हैं।

जांच करने वालों ने एक कहानी प्रचारित की है जिसमें बताया गया है कि किसी फूल वालों ने कहा कि ”फूल गिर गयाÓÓ और लोगों ने इसे ”पुल गिर गयाÓÓ समझ लिया। यह किसी घायल ने बयान को आधार बनाकर फैलाया गया किस्सा है। प्रबंधन की भाषा बोलने वाले रेल मंत्री ने इस तरह के कुतर्क को कैसे और क्यों स्वीकार किया इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि सरकार के लिए इससे अच्छा क्या हो सकता है कि हादसे की वजह कोई अपूर्व चीज हो जाए। हालांकि जानमाल की सुरक्षा शासन की पहली जिम्मेदारी है, इस, मामूली बात को भी बताने की ज़रूरत है क्या?

परेल-पुल का हादसा जितना आम लोगों का लोकल ट्रेन सेवा पर उठता भरोसा है, उतना ही उनके अपने आत्मविश्वास में आई कमी है। भाजपा सांसद किरीट सोमैय्या ने वादा किया है कि हादसों की संख्या दो साल में आधी हो जाएगी। लेकिन मुंबई के लोग इस पर कितना भरोसा करेंगे जब लोग देखते हैं कि मुंबई में रोज़ ट्रेन से गिरकर या पटरी पार करते समय 9 से 10 लोग मरते हैं और रेलवे शायद ही इनमें कोई दखल देती है। इन हादसों के शिकार में से ज्य़ादातर की मौत समय फौरी चिकित्सकीय मदद नहीं मिलने और शरीर से ज्य़ादा खून बह जाने के कारण होती है। लोकल की सेवा को बेहतर बनाने और प्लेटफार्म पर बेहतर प्रबंधन का कभी इंतजाम नहीं किया जाता है।

जापान से बुलेट ट्रेन मंगाने में हज़ारों करोड़ का कारोबार शामिल है और इससे फायदा उठाने वालों की एक बड़ी संख्या है – उद्योगपति, कारोबारी, तथा राजनीतिज्ञ। लेकिन प्लेटफार्म के प्रबंधन से किसी को क्या हासिल हो सकता है। जापान से प्लेटफार्म-प्रबंधन की तकनीक सीखने का नाम कभी किसी सुरेश प्रभु या पीयूष गोयल नहीं लिया। भीड़ से भरी ट्रेनों में लोगों को चढ़ाने और हादसों आदि के लिए अलग से कर्मचारी तैनात होते हैं जिन्हें इस काम में महारत हासिल होती है।

रेल सुरक्षा पर परमाणु वैज्ञानिक डा. अनिल काकोदकर की अध्यक्षता में बनी उच्चस्तरीय कमेटी ने पांच साल में एक लाख करोड़ रु पए का खर्च तय किया था जिससे पटरियों को ठीक करने, सिग्नलिंग, ओवरब्रिज जैसी चीजों के अलावा सुरक्षा से जुड़े खाली पदों पर भर्ती की सिफारिश भी की गई थी। इसने सुरक्षा फंड के लिए धन जमा करने के लिए सवारियों पर ‘लेवीÓ लगाने की सलाह दी थी। ऐसा ही एक सुरक्षा फंड नीतिश कुमार ने बनाया था। उससे बहुत सारे काम भी तब हुए थे।

लेकिन सुरेश प्रभु ने अपना सारा ध्यान प्रचार और देशी-विदेशी कंपनियों को फायदा पहुंचाने में लगाया। उन्होंने ‘कायाकल्पÓ नाम से उद्योगपति रतन टाटा की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई थी। टाटा ने उसका पहला एजेंडा सुरक्षा तय किया था। उस कमेटी की कुछ बैठकें हुई, लेकिन प्रभु की रु चि उसमें खत्म हो गई क्योंकि सुरक्षा जैसे सवालों में उनकी कोई रु चि नहीं थी। उन्होंने यात्री भाड़े को भी बिना बजट-प्रावधानों के बढ़ाया, लेकिन उसे सुरक्षा पर खर्च करने की कोशिश नहीं की। अंत में, सुरक्षा में लापरवाही चलते उन्हें पद छोडऩा पड़ा।

परेल-हादसा मुंबई के घटते आत्म विश्वास को सामने लाना वाला है। इसे वापस लाने का काम भारतीय रेलवे के बूते का नहीं है क्योंकि वह एक खुद बड़े संकट का सामना कर रही है। रेल को भरोसेमंद बनाने के लिए एक बड़े आंदोलन की ज़रूरत है।

घर घर लाया दीपावली: मोदी

modi1

‘घर-घर मैं जल्दी लाया दीपावलीÓ। यह कहना था, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का । उनके इस दावे पर खामोश है पूरा विपक्ष। वामपंथी अपने गुणा-भाग में लगे हैं । उन्हें फुर्सत नहीं है। कांग्रेस अपने टूटे -फूटे हथियारों को दुरुस्त करने में लगी है जिससे उसकी साख बची रहे। जनता दल (यू) के बागी बुजुर्ग नेता शरद यादव अपनी मजबूरियां जानते हैं।

जनता में अब उनका नाम पुराना हौसला नहीं जगा पाता। फिर भी वे हिम्मत जुटा रहे है। पत्रकारों से कह रहे हैं कि अगली लड़ाई अर्थव्यवस्था पर ही केंद्रित होगी।

बहरहाल प्रधानमंत्री के कहने पर वित्त मंत्री ने पहले की जीएसटी को कुछ हद तक सरल,सहज और बेहतर बनाने का कोशिश की है। छोटे और मझोले व्यवसायियों ने इसे पसंद किया है। सरकार की इस कोशिश से जनता का एक बड़ा हिस्सा अब देश की अर्थव्यवस्था का गहन अध्ययन करने में लगा है। इससे देश की सही तस्वीर जनमानस में बन सकेगी। मंदिर-मस्जिद धर्म के बहाने जनांदोलनों के गुबार का भी खुलासा होगा और वास्तविकता का एहसास देश की बेसिक ज़रूरतों के साथ होगा।

नोटबंदी के बाद देश में निराशा और बेरोजगारी भी बढ़ी और जीएसटी के चलते देश में मंहगाई बढ़ी। छोटी मजदूरी और कामकाज पर असर पड़ा। घर-घर में छोटी – छोटी बचत पर असर रहा। छोटे मझोले कल-कारखाने बंदी की कगार पर पहुंच गए। जन असंतोष पर विपक्ष ने आवाज़ दी। आखिर प्रधानमंत्री तक सुगबुगाहट पहुंची। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघ चालक मोहन भागवत ने भी आगाह किया। प्रधानमंत्री ने अंधेरे में डूबे देश के चार करोड़ घरों में उजियारा लाने का भरोसा दिया। देश के वित्तमंत्री ने जीएसटी के तहत 90 वस्तुओं पर लगे टैक्स कुछ कम किए। देशवासियों में उम्मीद बंधी। प्रधानमंत्री ने कहा, ‘घर-घर दिवाली लाया हूं। इस बार थोड़ा जल्दी।Ó

प्रधानमंत्री ने याद दिलाया कि जब जीएसटी पर अमल शुरू हुआ था तो मैंने कहा था कि हम इसके नतीजों पर अगले तीन महीने नज़र रखेंगे। जिन इलाकों में बाधाएं थी। इसकी दरों को लेकर दुविधा थी। अन्य असुविधाएं थीं। उन सब को हमने जांचा-परखा। व्यापरियों को हो रही परेशानियों को जाना। हम कतई नहीं चाहते कि व्यापारी लालफीताशाही में उलझे। यह वाकई खुशी की बात है कि देश के हर हिस्से से बदलाव की गूंज सुनाई दे रही है।

सरकार द्वारा उठाए गए आर्थिक कदमों और विकास के एजेंडे पर हो रही आलोचना पर उन्होंने कहा कि उनकी सरकार के लिए विकास हमेशा एक मुख्य एजंडा रहेगा। उन्होंने कहा हो सकता है इस पीढ़ी ने गरीबी झेली हो लेकिन हम विकास को उस ऊंचाई तक ले जाना चाहते हैं जिससे अगली पीढ़ी का साबका गरीबी से न पड़े। इससे भारत के लोगों को मौका मिलेगा।

जीएसटी और नोटबंदी के चलते पूरे देश में लघु और मध्यम उपक्रमों के मालिकों और मजदूरों में छाई निराशा को दूर करने के लिए जीएसटी में किए गए फेरबदल पर हो रहे स्वागत से प्रधानमंत्री गदगद थे। गुजरात के दो दिन के दौरे में उन्होंने कहा कि उनकी सरकार ने जीएसटी (गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स) की दरों और नियमों में खासा बदलाव किया है। गुजरात में इसी साल चुनाव भी हैं। उन्होंने कहा कि सरकार ने कर को काफी हद तक सरल कर दिया है। वे कतई नहीं चाहते कि नुकसान व्यापार का हो।

प्रधानमंत्री ने जीएसटी कौंसिल के उठाए गए कदमों को ‘दिवाली पर काफी पहले आया उपहारÓ बताया है और कहा है कि सरकार व्यवसाइयों को ‘लाल फीताशाही, फाइल और अफसरशाही के शिकंजे में नहीं फंसने देना चाहती। उनका यह बयान निश्चय ही स्वागत योग्य है क्योंकि देश को सहज, सरल और आसानी से कर देने की प्रणाली की ज़रूरत है। जिसके न होने पर देश के लघु और मझोले उद्योग और दस्तकारों की उत्पाद क्षमता सीमित होती है। पूरे देश में एक जैसी प्रणाली हो जिसमें बार-बार रिटर्न की फाइलिंग न हो। इस ज़रूरत को जीएसटी कौंसिल भी अब मानती है। इसी के तहत अब डेढ़ करोड़ तक के टर्न ओवर पर हर महीने रिटर्न भरने की बजाए सिर्फ तिमाही पर रिटर्न भरना पर्याप्त होगा।

इसी तरह कंपोजिशन स्कीम के तहत जिसमें छोटे उत्पादकों को माल भेजने-मंगाने वाले व्यवसाई और रेस्टोरेंट आदि को 1.5 फीसद की दर से कर अदा करना होगा। उन्हें जीएसटी की बारीकियों में उलझने की ज़रूरत नहीं है। इसकी सीमा भी 75 लाख से बढ़ाकर एक करोड़ कर दी गई है। इसी तरह रिवर्स चार्ज मेकैनिज्म जिसके तहत गुड्स और सर्विसेज लेने वाले को गैर पंजीकृत वेंडर से माल लेने पर कर देना होता था उस प्रक्रिया को हतोत्साहित करते हुए बड़ी कंपनियों को ऐसी छोटी एजंसियों को बढ़ावा देने की नीयत के मुद्दे को 31 मार्च 2018 तक टाल दिया गया है। दूसरी महत्वपूर्ण राहत निर्यातकों को दी गई है। उन्हें इंटीग्रटेड जीएसटी जो निर्यात हुए माल पर दी जा चुकी है, उसके री-फंड की कार्रवाई जल्द से जल्द पूरी करने की सलाह दी गई है। साथ ही पहली अप्रैल से ‘ई-वैलेटÓ स्कीम भी शुरू होगी। इसमें आई जीएसटी और इनपुटस पर जीएसटी के भुगतान के लिए एडवांस री-फंड या नेशनल क्रेडिट की व्यवस्था रहेगी। अभी तक निर्यातकों को इसके न होने से वर्किग कैपिटल के ठहर जाने की शिकायतें मिलती रहीं हैं।

छोटे व्यवसायियों और लघु और मझोली कंपनियों को जीएसटी नियमों के पालन मे सुविधा देने के लिहाज से वित्तमंत्री की अध्यक्षता में जीएसटी कौंसिल की शुक्रवार छह अक्तूबर को हुई बैठक में अनेक फैसले लिए गए। विशेषज्ञों के अनुसार ये फैसले गुजरात में होने वाले चुनावों के मद्देनज़र लिए गए हैं।

परिषद ने मासिक तौर पर ब्यौरे जमा करने की अवधि को बढ़ा कर तीन माह कर दिया है। इसके साथ ही कंपोजिशन स्कीम के तहत जीएसटी का भुगतान करने और टैक्स री फंड की भी व्यवस्था है। तकरीबन नौ घंटे चली इस बैठक में दो दर्जन से भी ज़्यादा वस्तुओं पर लगे करों के ढांचे की समीक्षा की गई। बैठक की अध्यक्षता अरूण जेटली ने की साथ ही रेवेन्यू सचिव हसमुख अधिया भी इस बैठक में थे।

प्रधानमंत्री ने जीएसटी पर अमल पर व्यापक चिंताओं पर परिषद से अपील की थी कि लघु और मझोले उद्योगों के सामने क्या परेशानियां है उनकी पहचान और निदान करें। उन्होंने कहा था कि सरकार छोटे व्यवसायियों की मदद के लिए तैयार है। अधिया ने कहा कि तमाम तौर-तरीकों और दरों को उत्पाद स्तर पर ही दुरूस्त कर लेने पर विचार हुआ है। परिषद की बैठक के बाद वित्तमंत्री ने कहा कि जो फैसले लिए गए हैं उनसे90 फीसद टैक्स अदा करने वालों पर से दबाव घटा है। ये कंपनियां और व्यक्ति अप्रत्यक्ष कर संग्रह में सिर्फ दस फीसद का योगदान करते हैं। हालांकि कर अदा करने वालों में खास तौर पर जो बड़ी कंपनियां है वे जीएसटी संग्रह में 90 फीसद अदा करती हैं उनके लिए नियमों में कोई बदलाव नहीं है।

छोटे लोगों के पास टैक्स अदा करने का दबाव काफी कम है लेकिन उन पर नियमों के पालन करने का दबाव ज़रूर है। वित्तमंत्री ने बताया कि परिषद ने छोटे उद्योग-धंधों और व्यवसायियों के लिए सीधा और सरल जीएसटी ज़रूर पेश किया। खास तौर पर उनके लिए जिनका टर्न ओवर डेढ़ करोड़ से कम है। वे मासिक रिटर्न की बजाए अब तिमाही में रिटर्न दायर कर सकेंगे। अब इनकी अवधि अक्तूबर-दिसंबर की तिमाही से शुरू होगी। पंजीकृत खरीददार इन छोटे पर टैक्स अदा करने वालों से जब खरीददारी करेंगे तो वे मासिक आधार पर इनपुट टैक्स क्रेडिट पा सकेंगे।

सरकार ने छोटे सर्विस प्रोवाइडर को भी विभिन्न राज्यों में कामकाज करने की अनुमति दे दी है। भले ही वे जीएसटी नेटवर्क से न जुड़े हों। छोटे गैर पंजीकृत व्यवसाय की यातायात समस्याओं को कम करने के लिए परिषद ने गुड्स ट्रांसपोर्ट एजेंसी की गैर पंजीकृत व्यक्ति को सर्विस पर जीएसटी देने से रियायत दे दी है।

परिषद ने यह तय किया है कि जिन करदाताओं का सालाना टर्न ओवर 1.5 करोड़ होगा उन्हें साल की सप्लाई के समय एडवांस की रसीद देते हुए जीएसटी नहीं देना होगा। माल की सप्लाई होने पर ही ऐसी सप्लाई पर जीएसटी लगेगी।

निर्यातकों को भी तुरत-फुरत टैक्स रिफंड की व्यवस्था की गई है। वित्तमंत्री ने कहा कि जुलाई और अगस्त महीने के रिफंड की छानबीन भी इसी महीने कर ली जाएगी। परिषद ने इन्हें इंटरस्टेट जीएसटी पर भी 31 मार्च 2018 देने पर रियायत दी है। अगले साल पहली अप्रैल से सरकार की योजना है कि निर्यातकों के लिए ई-वैलेट प्रणाली शुरू की जाए। जिससे उन्हें नेशनल टैक्स क्रेडिट मिलेगा इसे बाद में वास्तविक रिफंड में एडजस्ट किया जा सकेगा। इसी तरह ई वे बिल नाम से एक प्रणाली शुरू की गई है जिससे अंतरराष्ट्रीय ट्रांस्फर कम हो। वित्तमंत्री ने कहा कि यह प्रणाली समुचित तौर पर पहली जनवरी से काम करेगी और अगले साल पहली अप्रैल से पूरी तौर पर अमल में आ जाएगी।

राहुल की नवसृजन यात्रा के अर्थ

rr

कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह एक-दूसरे के इलाके में ताल ठोकने में लग गए है। मुद्दा है भ्रष्टाचार और विकास का। गुजरात में होने वाले चुनावों को देखते हुए राहुल की गुजरात यात्रा महत्वपूर्ण है। अब जबकि राहुल के कांग्रेस अध्यक्ष बनने की तिथि नज़दीक आती जा रही है उनकी ‘नव सृजन यात्राÓ अहम मानी जा रही है। उनकी दो दिन की गुजरात यात्रा इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि अभी तक राहुल नरेंद्र मोदी के लगातार बढ़ रहे प्रभाव को रोकने में सफल नहीं हुए है। मोदी लहर में ही भाजपा 17 सूबों में सरकार बनाने में सफल हुई।

राहुल गांधी इस बार ज्य़ादा आक्रामक दिखे 10 अक्तूबर को उन्होंने विश्वविद्यालय के छात्रों से बातचीत करते हुए भाजपा पर निशाना साधा। उन्होंने कहा भाजपा का ‘पेरेंटÓ संगठन कौन सा है, वह है राष्ट्रीय स्वयं सेवक (आरएसएस)। यह उन्हीं की सोच है कि महिलाएं जितना चुप रहें, उतना अच्छा। जैसे कोई महिला मुंह खोले उसे चुप करा दो। क्या तुमने किसी महिला को हाफपैंट पहन कर आरएसएस की शाखा मेें देखा है? मैनें तो नहीं देखा। महिलाओं को आरएसएस में आने की इज़ाजत नहीं। उनकी पार्टी में कई महिलाएं हैं पर शाखा मेें एक भी नहीं। उन्होंने क्या गुनाह किया है?

उनकी इस टिप्पणी से आरएसएस में हड़कप्प मच गया। आरएसएस ने राहुल से बिना शर्त माफी मांगने को कहा। गुजरात की पूर्व मुख्यमंत्री आनंदी बेन और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी के बयान पर तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने राहुल गांधी से माफी मांगने की मांग की।

अमित शाह ने सारा ध्यान राहुल गांधी के निर्वाचन क्षेत्र अमेठी की ओर खींचने की कोशिश की। उस समय जबकि राहुल गांधी मोदी पर उनकी आर्थिक नीतियों को लेकर बरस रहे थे। राहुल ने आम आदमी और व्यापारियों को नोटबंदी में हुई तकलीफों का जि़क्र किया। साथ ही जीएसटी और पेट्रोलियम पदार्थों की तेज़ी बढ़ रही कीमतों के लिए सरकार को कोसा। उनके ‘रोड शोÓ को अगामी चुनावों की ‘रिहर्सलÓ के तौर पर देखा जा रहा है। मोदी और शाह के घर में राहुल को सुनने के लिए जो भीड़ जुटी वह असमान्य थी। ध्यान रहे कि गुजरात में इस साल दिसंबर में विधानसभा चुनाव भी होने हैं।

वडोदरा में छात्रों से बातचीत में राहुल ने कहा कि मुद्रास्फीति का मुख्य कारण पैट्रोल और डीज़ल की कीमतों में भारी इज़ाफा है। उन्होंने मांग की पैट्रोल को भी जीएसटी के तहत लाया जाए।

इससे पूर्व उन्होंने अमदाबाद में प्रधानमंत्री पर निशाना साधा। उन्होंने अमित शाह के बेटे जय शाह पर ‘द वायरÓ के खुलासे पर मोदी की चुप्पी की आलोचना की। जय के’टर्नओवरÓ के बढऩे पर राहुल ने कहा कि यह दुनिया अजीब है। 2014 में यह कंपनी कुछ भी नहीं थी। फिर 2014 में मोदी सत्ता में आए और नोटबंदी कर दी। जीएसटी लगा दिया इससे छोटे और मंझंले व्यापारी तथा किसान तबाह हो गए। पर इस आग में से एक कंपनी उभरी। जो कंपनी 2014 में कुछ भी नहीं थी वह कुछ महीनों में रु पए50,000 मात्र से 80 करोड़ तक पहुंच गई। राहुल ने यह बात खेड़ा जिले के कमला गांव मे एक जनसभा में कही।

मोदी के इस कथन को कि ‘न खाऊंगा और न ही खाने दूंगाÓ का हवाला देते हुए राहुल गांधी ने कहा अमित शाह के बेटे की दौलत के 16000 गुणा हो जाने पर वे चकित हंै। चुनाव से पहले मोदी ने यह भी कहा था कि वे प्रधानमंत्री नहीं अपितु देश की दौलत के चौकीदार बन कर काम करेंगे, अब कहां है वह चौकीदार?

राहुल ने मोदी को उत्तेजि़त करने के लहज़े मे ट्रवीट किया – ‘मोदी जी, जय शाह ज्य़ादा खा गया। आप चौकीदार थे या भागीदारÓ? कुछ तो कहिए। एक छात्र ने पत्रकारों की सुरक्षा के बारे में सवाल किया तो राहुल ने कहा, तुम्हें क्या लगता है लंकेश को क्यों गोली मारी गई? तुम सोचते हो सच्चाई छुपी रहेगी?

जब राहुल गांधी प्रधानमंत्री और अमित शाह पर उनके घर में बरस रहे थे उसी समय शाह राहुल गांधी के क्षेत्र अमेठी में कें द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी अदित्यनाथ के साथ राहुल के खिलाफ प्रचार कर रहे थे। गुजरात के विकास का मज़ाक उड़ाने पर शाह ने कहा कि इटली की ऐनक लगा कर गुजरात का विकास नहीं देखा जा सकता। एक जनसभा में उन्होंने कहा नरेंद्र मोदी और योगी अदित्यनाथ पूरे प्रदेश के साथ-साथ अमेठी का भी पूरा विकास करेंगे। शाह ने कहा कि स्मृति 2014 में अमेठी में राहुल से हारी थी, पर इस बार हमने उनके वोट बैंक में सेंध लगा दी है। उन्होंने सवाल उठाया कि राहुल की तीन पीढिय़ों ने अमेठी में क्या विकास किया है। उन्होंने पिछड़े क्षेत्रों में विकास न होने के लिए पिछली सरकारों को दोषी माना।

हिमाचल में चुनाव की रणभेरी

virbhadra

पहाड़ी सूबे हिमाचल में भले ठण्ड पडऩे लगी हो, चुनाव की गर्मी बढऩे लगी है। मुख्य निर्वाचन आयुक्त अचल कुमार ज्योति के हिमाचल में विधानसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ ही विधानसभा की 68 सीटों के लिए जंग शुरू हो गयी है। मतदान 9 नवम्बर को होगा हालांकि नतीजे के लिए करीब एक महीना इंतज़ार करना होगा क्योंकि वोटों की गिनती 18 दिसंबर को होगी जब गुजरात के चुनाव भी पूरे हो जायेंगे।

बता दें कि हिमाचल में अभी कांग्रेस पार्टी की सरकार है। कांग्रेस के पास कुल68 सीटों में से 36 सीटें हैं जबकि बीजेपी के पास 27 सीटें हैं। इनके अलावा5 निर्दलीय विधायक भी हैं। वहीं, 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने हिमाचल प्रदेश की चारों सीटों पर कब्जा किया था। इस बार सत्ता में काबिज होने के लिए बीजेपी ने पूरी ताकत झोंक दी है। बीजेपी ने हाल ही में पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह की रैली करवाकर प्रदेश में सियासी पारा चढ़ा दिया है। वहीं, कांग्रेस ने भी चुनाव के मद्देनजर अपनी कमर कस ली है। हाल ही में ही मंडी में राहुल गांधी की रैली करवाकर कांग्रेस ने चुनावी अभियान का आगाज किया है। साथ ही वीरभद्र सिंह को ही चुनाव अभियान का जिम्मा सौंपकर राहुल ने साफ कह दिया कि कांग्रेस की सरकार बनी तो वीरभद्र सिंह ही मुख्यमंत्री होंगे। पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह को राहुल गांधी चुनाव से पहले मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर गए थे और इस बार हिमाचल में उन्होंने यही किया है। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को उन्होंने न केवल कांग्रेस का मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया बल्कि गुजरात की भाजपा सरकार से तुलना करते हुए यह भी कह दिया कि उनकी सरकार का काम कहीं ज्य़ादा बेहतरीन रहा है। हाल के दिनों तक प्रदेश कांग्रेस में जिस तरह से जंग चल रही थी उससे पार्टी की खूब जगहंसाई हो रही थी।

पिछले दिनों दिल्ली में वीरभद्र सिंह की राहुल गांधी से भेंट के बाद प्रदेश कांग्रेस में सुलह के आसार दिखे थे। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू, जिन्हें अध्यक्ष पद से हटाने की मांग वीरभद्र सिंह कर रहे थे, ने भी अचानक तेवर बदलते हुए कहना शुरू कर दिया कि वीरभद्र सिंह बड़े नेता हैं। सुक्खू को पद से हटाने की मांग भी अचानक ठंडी पड़ गयी। इस तरह सम्भावना यही दिख रही है कि कांग्रेस अब चुनाव मैदान में एकजुट होकर उतरेगी। चूँकि वीरभद्र सिंह का नाम लेकर राहुल गांधी उनके नेतृत्व में चुनाव में उतरने का ऐलान कर गए हैं, उनका विरोध अब शायद ही कोई कर पायेगा। हाँ, इससे वीरभद्र सिंह का खेमा जरूर ताकतवर होकर उभरा है। हो सकता है टिकट वितरण में भी वीरभद्र सिंह को तरजीह मिले और उनके समर्थकों को ज्य़ादा टिकट मिलें। वैसे सम्भावना यही है कि आलाकमान इस मामले में संतुलन रखेगी और टिकट में जीत सकने की सामथ्र्य को तरजीह मिलेगी। पार्टी के प्रदेश प्रभारी सुशील कुमार शिंदे इस का संकेत दे चुके हैं।

कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक राहुल इस बात पर भी सहमत हो गए हैं कि प्रदेश युवा कांग्रेस अध्यक्ष विक्रमादित्य सिंह को शिमला ग्रामीण सीट से टिकट दिया जाए। विक्रमादित्य मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के पुत्र हैं। 2012 के चुनाव में वीरभद्र सिंह इस सीट से चुनाव लड़े थे। वीरभद्र सिंह अपना हल्का बदल रहे हैं और आलाकमान ने उन्हें अपनी पसंद की सीट से लडऩे की इजाजत दे दी है।

सूत्रों के मुताबिक वीरभद्र सिंह शिमला जिले में ही ठियोग से चुनाव लड़ेंगे जहाँ वरिष्ठ मंत्री विद्या स्टोक्स उनके लिए सीट खाली करने को तैयार हो गयी हैं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखविंदर सुक्खू नादौन से चुनाव लड़ेंगे।

राहुल की रैली के बाद कांग्रेस अचानक काफी सक्रिय हो गई है। राहुल की साफ घोषणा के बाद वीरभद्र सिंह खेमा अब पूरी तरह चुनाव की रणनीति बनाने में जुट गया है। इस खेमे की तरफ से हरेक विधानसभा सीट के लिए प्रत्याशियों की सूची तैयार की जा रही है। सम्भावना है कि टिकटों को लेकर दुबारा वीरभद्र सिंह और उनके विरोधी खेमे में जंग छिड़े। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखविंदर नहीं चाहेंगे कि वीरभद्र सिंह समर्थकों को ज्य़ादा टिकट मिलें। मुख्यमंत्री पद के दूसरे दावेदार कौल सिंह और गुरमुख सिंह बाली को ज़रूर झटका लगा है जबकि आशा कुमारी पूरी तरह वीरभद्र सिंह के साथ दिख रही हैं। उन्होंने राहुल गांधी के वीरभद्र सिंह को चुनाव की कमान सौंपने के तुरंत बाद अपने फेसबुक अकाउंट पर राहुल का धन्यवाद किया।

भाजपा में स्थिति अस्पष्ट

कांग्रेस के विपरीत भाजपा में चुनाव में नेतृत्व को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है। वैसे कांग्रेस की तरफ से वीरभद्र सिंह के नेता घोषित होने के बाद भाजपा आलाकमान पर दबाव बढ़ा है। सूत्रों ने बताया कि भाजपा ने अपनी पहली बैठक में पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सतपाल सत्ती का नाम फाइनल कर दिया है। इसके अलावा 12 पूर्व विधयकों के नाम भी मंजूरी के लिए आलाकमान को भेज दिए हैं। बाकी नामों पर आम सहमती नहीं बन पा रही है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी बिलासपुर रैली में इस बात का कोई संकेत नहीं दिया था कि पार्टी किसके नेतृत्व में चुनाव में उतरेगी। मुकाबला पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल और केंद्रीय स्वास्थय मंत्री जगत प्रकाश नड्डा में दिख रहा है। यदि पार्टी ने साझे नेतृत्व में चुनाव लड़ा तो जीतने की स्थिति में पार्टी किसी तीसरे को भी मुख्यमंत्री बना सकती है। धूमल दावा करते रहे हैं कि भाजपा 50 से ज्य़ादा सीटें जीतकर सरकार बनाएगी।

पार्टी में बेशक नड्डा को लेकर उत्सुकता है, पर ज्य़ादा नेता यही मान रहे हैं कि धूमल को नेता घोषित कर भाजपा को चुनाव में जाने का ज्य़ादा लाभ मिलेगा। पिछले पांच साल से वही मैदान में भाजपा की कमान संभालते रहे हैं और ऐसे में उन्हें पीछे किया जाता है तो इससे नुकसान उठाना पड़ सकता है। कांग्रेस का नेता चुनाव से पहले घोषित होने से भाजपा पर निश्चित ही मनोवैज्ञानिक दबाव बना है। चुनाव को एक ही महीना बचा है और पार्टी कार्यकर्ताओं को यह मालूम ही नहीं कि वे किस नेता के नेतृत्व में चुनाव मैदान में उतरेंगे। गौरतलब है कि 2007 के चुनाव में भाजपा ने धूमल को आगे करके चुनाव लड़ा था और 42 सीटें जीती थीं। अभी कुछ समय है लिहाजा इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि पार्टी नेता का ऐलान कर ही दे।

पार्टी में वैसे जंग इसी बात की है। पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार नड्डा और धूमल में किसे समर्थन देते है अभी साफ नहीं है। पिछले दिनों चर्चा थी कि उन्होंने धूमल से अपने मतभेद सुलझा लिए हैं। हालांकि शांता के बारे में किसी तरह की भविष्यवाणी करना कठिन है। कुछ मौकों पर वे नड्डा का भी समर्थन करते रहे हैं। संघ से जुड़े नेता भी सक्रिय दिख रहे हैं। उन्हें लगता है कि हरियाणा और उत्तराखंड की तरह यहाँ भी किसी संघनिष्ठ को कमान मिल जाए तो हैरानी नहीं होगी। बिलासपुर में एम्स का नींव पत्थर रख मोदी पहले ही भाजपा के लिए चुनाव प्रचार का बिगुल फूंक चुके हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बिलासपुर दौरे के बाद मंडी में कांग्रेस की तरफ से राहुल गांधी के चुनावी मोर्चे पर ताल ठोकने और चुनाव की तारीखें घोषित होने के बाद पूरी तरह माहौल चुनावमय हो गया है। आने वाले समय में कांग्रेस, भाजपा और वामपंथी दलों के बड़े नेताओं की रैलियां होने की सम्भावना है। प्रदेश का इतिहास रहा है कि यहाँ हर बार चुनाव के बाद सरकार बदल जाती है, हालांकि 2012 में भाजपा ने इस परंपरा को बदलने के लिए जी तोड़ मेहनत की लेकिन सत्ता का हार कांग्रेस के गले की शोभा बना। इस बार कांग्रेस भी भाजपा की तर्ज पर ‘मिशन रिपीटÓ का दम भर रही है और देखना है कि उसकी कोशिशें कितनी सफल होती हैं। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी 7 अक्टूबर की मंडी रैली में मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को कांग्रेस की चुनावी कमान साफ शब्दों में सौंप गए, हालांकि भाजपा में इस मसले पर अभी दुविधा की स्थिति बनी हुई है।

प्रदेश में चुनाव को अब एक महीने से भी कम समय  रह गया है और दोनों प्रमुख दल कांग्रेस और भाजपा पूरी तरह मैदान में डट गए हैं। प्रदेश में तीसरे मोर्चे के नाम पर वामपंथी दल – माकपा और भाकपा – ही कुछ इलाकों में प्रभाव रखते हैं। आम आदमी पार्टी (आप) ने हिमाचल में दूसरे दलों से छिटके कुछ नेताओं के बूते पाँव पसारने की कोशिश की थी लेकिन उसे सफलता नहीं मिली। अब इस बात की कम ही सम्भावना है कि वह मैदान में उतरने की सोचेगी। वाम दल कुछ सीटों पर मजबूत निर्दलियों को समर्थन दे सकते हैं जो कांग्रेस या भाजपा से न जुड़े हों।

 

 

क्या होगा तीसरे विकल्प का?

यदि 2012 के विधानसभा चुनाव नतीजों को देखा जाये तो साफ जाहिर हो जाता है कि प्रदेश में लोगों ने तीसरे मोर्चे को तरजीह नहीं दी। हाँ, वे निर्दलीय ज़रूर जीते जो कांग्रेस या भाजपा का टिकट नहीं मिलने पर बागी होकर लड़े थे। जो जीते वे भी चुनाव के बाद अपनी-अपनी विचारधारा के दलों के सम्वद्ध सदस्य बन गए। पिछले विधानसभा चुनाव में कुल पड़े 72.69प्रतिशत वोटों में मुख्या हिस्सा कांग्रेस और भाजपा का ही रहा था। कांग्रेस ने68 सीटों की विधानसभा में 42.81 प्रतिशत वोटों के साथ 36, भाजपा ने38.47 प्रतिशत वोटों के साथ 26 सीटें जीती थीं। पांच निर्दलीय जीते जिन्हें अच्छे खासे 12.14 प्रतिशत वोट मिले। माकपा को बिना सीट के 1.16 और भाकपा को बिना सीट जीते 0.19 प्रतिशत वोट ही मिल पाए। बसपा को 1.17और राष्ट्रवादी कांग्रेस को 0.36 प्रतिशत वोट मिले थे।

भाजपा से नाराज होकर अपनी पार्टी हिमाचल लोकहित पार्टी बनाने वाले महेश्वर सिंह ज़रूर अपनी सीट से जीते थे और उनके दल को 2.40 प्रतिशत वोट मिले थे। यह अलग बात है कि तीसरा राजनीतिक दल वे जी तोड़ मेहनत करके भी खड़ा नहीं कर पाए और आखिर कुछ महीने पहले अपनी पार्टी को खत्म कर भाजपा में लौट आए। प्रदेश में पिछले दो दशक में यदि तीसरे मोर्चे के नाम पर कोइ नेता कुछ कर पाया है तो वे पूर्व केंद्रीय मंत्री सुख राम हैं। उन्होंने हिमाचल विकास कांग्रेस बनाकर भाजपा को समर्थन देकर कांग्रेस के हाथ से 1998 में सत्ता छीन ली थी। सीटें वे भले पांच ही जीत पाए थे, लेकिन इससे ही सत्ता की कुंजी उनके हाथ आ गयी थी। दिलचस्प यह कि सुख राम भी इसके बाद अपने बूते पार्टी को बचा नहीं पाए और उन्हें कांग्रेस में लौटना पड़ा। हिमाचल में मतदाताओं का इतिहास रहा है कि वे अपने वोट को जाया नहीं जाने देते। यह इस बात से जाहिर हो जाता है कि 2012 के चुनाव में जो 459 उमीदवार मैदान में उतरे थे उनमें से 304की जमानत जब्त हो गयी थी।

जहाँ तक वाम दलों की बात है उसका प्रदर्शन शिमला जिले को छोड़कर बाकी जगह अच्छा नहीं रहा था। पार्टी के सबसे अनुभवी नेता राकेश सिंघा ठियोग में 18.74 प्रतिशत मतों के साथ 10,388 वोट लेकर तीसरे स्थान पर रहे थे। सिंघा दो दशक पहले शिमला में चुनाव जीतकर विधायक रह चुके हैं। टिकेंद्र पंवर शिमला में 24.70 प्रतिशत वोट लेने में तो सफल रहे लेकिन 7973 वोट लेकर वे भी तीसरे नंबर पर रहे थे। टिकेंद्र पिछले चुनाव में शिमला नगर निगम के लिए सीधे हुए चुनाव में उप मेयर बने थे। 2012 में ही कसुम्पटी से कुलदीप तंवर 4798 वोट लेकर चौथे स्थान पर रहे थे। मंडी के जोगिन्दर नगर में खुशाल भारद्वाज 2048 वोट के साथ चौथे और मंडी में भाकपा के देश राज 1459 मतों के साथ पांचवें स्थान पर रहे थे।

 

 

वीरभद्र ठियोग से लड़ेंगे

कांग्रेस ने टिकटों के आंवटन को लेकर अपनी तैयारी भी शुरू कर दी है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने तीन सदस्यीय स्क्रीनिंग कमेटी को स्वीकृति दे दी है। यह कमेटी हिमाचल में टिकटों के आवंटन का कार्यभार देखेगी। बहरहाल, तीन सदस्यीय कमेटी में पूर्व सांसद जितेंद्र सिंह. विधायक विजय इंद्र सिंगला और सांसद गौरव गगोई को चुना गया है, कमेटी के जितेंद्र सिंह अध्यक्ष, जबकि बाकी दो सदस्य होंगे। तीन सदस्यीय कमेटी हिमाचल में टिकटों के आवंटन का कार्यभार देखेगी। उम्मीदवार 16 से 23 अक्तूबर तक नामांकन दाखिल कर सकते हैं। सीएम वीरभद्र सिंह अगला विधानसभा चुनाव ठियोग विधानसभा सीट से लड़ेंगें। वीरभद्र सिंह 20 अक्टूबर को ठियोग में अपना नामांकन पत्र दाखिल करेंगे। उस दिन ठियोग में कांग्रेस की भारी जनसभा भी होगी। सीएम ने कहा कि ठियोग उनके लिए कोई नया इलाका नहीं है। ठियोग हलके से जीत कर मंत्री बनीं विद्या स्टोक्स ने कांग्रेस आलाकमान को लिखकर दे दिया कि वे चुनाव नहीं लड़ेंगी और इस सीट से वीरभद्र सिंह जीत सकते हैं।

माकपा की सूची

विधानसभा चुनाव के लिए माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने प्रदेश के 13विधानसभा क्षेत्रों के लिए प्रत्याशियों के नाम घोषित कर दिए हैं। राजधानी शिमला से पूर्व महापौर संजय चौहान माकपा के प्रत्याशी होंगे। उनके अलावा ठियोग से राकेश सिंघा, कसुम्पटी से कुलदीप तंवर, रामपुर बुशहर से विवेक कश्यप, आनी से जिला परिषद सदस्य लोकिंद्र सिंह, जोगिंद्रनगर से कुशाल भारद्वाज, धर्मपुर से भूपेंद्र सिंह, सरकाघाट से मनीष, सोलन शहर से अजय भट्टी, लाहौल-स्पीति से सुनील जस्पा, हमीरपुर से अनिल मनकोटिया, सुजानपुर से जोगिंद्र और नाहन विधानसभा क्षेत्र से विश्वनाथ को पार्टी चुनाव मैदान में उतारेगी।

 

चुनाव कार्यक्रम

हिमाचल में विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा के साथ ही चुनावी बिगुल बज गया है। हिमाचल में 9 नवंबर को मतदान होगा और इसके नतीजे 18 दिसंबर को आएंगे। चुनाव आयोग की चुनाव की घोषणा के साथ ही आदर्श आचार संहिता लागू हो गई है।

 16 अक्तूबर को अधिसूचना जारी होगी

 नामांकन 16 से 23 अक्तूबर तक किए जा सकते हैं

 24 अक्तूबर पत्रों की जांच

 26 अक्तूबर तक नाम वापिस लिए जा सकेंगे

 इस बार 65 लाख मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे

 7521 पोलिंग स्टेशन होंगे

 वोट डालने के लिए फोटो आईडी का इस्तेमाल होगा

 सभी पोलिंग स्टेशन ग्राउंड फ्लोर पर स्थित होंगे

 सभी पोलिंग स्टेशनों में वीवीपैट का इस्तेमाल होगा

 पोलिंग स्टेशनों, रैलियों और काउंटिंग रैलियों की वीडियोग्राफी का फैसला

 निष्पक्ष चुनाव करवाने के लिए सीआरपीएफ और स्थानीय पुलिस की तैनाती