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मोदी, नेतन्याहू ने महत्वपूर्ण मुद्दों पर की बातचीत

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने इस्राइली समकक्ष बेंजामिन नेतन्याहू के साथ आज प्रतिनिधिमंडल स्तरीय बातचीत की। इस दौरान उन्होंने रक्षा, कारोबार और आतंकवाद समेत कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर बातचीत की।
नेतन्याहू अपनी छह दिवसीय यात्रा पर कल यहां पहुंचे थे। उनके साथ इस्राइल के वरिष्ठ अधिकारी और उच्च स्तरीय कारोबारियों का प्रतिनिधिमंडल भी आया है।
अपने भारत दौरे के दौरान इस्राइली प्रधानमंत्री गुजरात और मुंबई भी जाएंगे।
नेतन्याहू ने उन सैनिकों को श्रद्धांजलि अर्पित की जिनकी मृत्यु प्रथम विश्व युद्ध के दौरान हाइफ़ा में हुई थी। प्रधान मंत्री मोदी ने इजरायली नेता के लिए एक निजी रात्रिभोज की मेजबानी की। दोनों ने पिछले साल प्रधान मंत्री मोदी की इज़राइल यात्रा के दौरान एक अच्छे संबंधों की शुरूआत की थी।
नेतन्याहू और मोदी ने शिष्टमंडल स्तर की वार्ता आयोजित की और एक संयुक्त बयान दिया। बाद में दिन में, इजरायल के नेता राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मुलाकात करेंगे नेतनयाहू को भारत-इजरायल बिजनेस समिट के साथ दिन का अंत होगा।

बीसीआई की 7-सदस्यीय टीम सर्वोच्च न्यायालय के जजों से मिलेगी

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बार कॉउन्सिल ऑफ़ इंडिया (बीसीआई) ने शनिवार सर्वोच्च न्यायालय में वर्तमान संकट पर चर्चा के लिए पांच वरिष्ठ न्यायाधीशों को छोड़कर सर्वोच्च न्यायालय के सभी न्यायाधीशों से मिलने के लिए सात सदस्यीय टीम बनाई।

इस टीम ने एक प्रस्ताव पारित किया जिसमें कहा गया कि किसी भी राजनैतिक दल या नेता को सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ न्यायाधीशों द्वारा प्रेस सम्मेलन से उत्पन्न होने वाली स्थिति का अनुचित फायदा उठाना नहीं चाहिए।

बीसीआई अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के सभी न्यायाधीशों से मिलने के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने सात सदस्यीय दल की स्थापना की गयी है, जो पांच वरिष्ठ न्यायाधीशों को छोड़कर बाक़ी सबसे मौजूदा संकट पर चर्चा करेगी।

वरिष्ठ वकीलों की कॉउन्सिल ने यह भी निर्णय लिया कि वह अन्य न्यायाधीशों की राय लेगी और उनसे ये भी आग्रह करेगी कि न्यायाधीशों के ऐसे मुद्दों को सार्वजनिक नहीं बनाया जाना चाहिए।

शुक्रवार को न्यायमूर्ति चेलेमेश्वर, रंजन गोगोई, एम बी लोकुर और कुरियन जोसेफ ने मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ एक प्रेस कांफ्रेंस करके न्यायलय में होने वाली मुश्किलों का ख़ुलासा किया था।

भारत में पहली बार अदालत की कार्यप्रणाली पर जजों ने खड़े किये सवाल

देश के इतिहास में पहली बार सुप्रीम कोर्ट के चार जजों ने प्रेस कांफ्रेंस करके १२ जनवरी को शीर्ष अदालत के प्रशासन में अनियमितताओं का आरोप लगाते हुए इसकी कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए हैं। सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ जजों जस्टिस चेलामेश्वर, जस्टिस मदन लोकुर, जस्टिस कुरियन जोसेफ और जस्टिस रंजन गोगोई ने शुक्रबार को दिल्ली में एक प्रेस कांफ्रेंस करके देश में हलचल मचा दी है। सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठता में दूसरे नंबर पर माने जाने वाले जस्टिस चेलामेश्वर ने कहा – ”करीब दो महीने पहले हम चार जजों ने मुख्या न्यायधीश (दीपक मिश्रा) को पत्र लिखा और उनसे भेंट भी की। हमने मुख्य न्यायाधीश को बताया कि जो कुछ भी हो रहा है, वह सही नहीं है। प्रशासन ठीक से नहीं चल रहा है। यह मामला एक केस के असाइनमेंट को लेकर था।”
प्रेस कांफ्रेंस से जाहिर होता है कि मुख्या न्यायाधीश से कुछ मुद्दों पर इनके मतभेद हैं।  देश में यह पहला मौका है कि वरिष्ठ आज मीडिया से रूबरू हुए हैं। जजों ने प्रेस कांफ्रेंस के बाद मीडिया को एक स्टेटमेंट की कॉपी भी बंटी है। ऐसा मन जा रहा है कि इस प्रेस कांफ्रेंस का बड़ा असर हो सकता है। जजों  के पत्र से साफ़ जाहिर होता है कि इसमें कहीं न कहीं सरकार के हस्तक्षेप का भी आरोप है। चेलामेश्वर ने कहा, ” बीस साल बाद कोई यह न कहे कि हमने अपनी आत्मा बेच दी है। इसलिए हमने मीडिया से बात करने का फैसला किया।” चेलामेश्वर ने कहा कि भारत समेत किसी भी देश में लोकतंत्र को बरकरार रखने के लिए यह जरूरी है कि सुप्रीम कोर्ट जैसी संस्था सही ढंग से काम करे। कहा कि ”हालांकि हम चीफ जस्टिस को अपनी बात समझाने में असफल रहे। इसलिए हमने राष्ट्र के समक्ष पूरी बात रखने का फैसला किया।”
प्रेस कांफ्रेंस में यह पूछे जाने पर कि किस मामले को लेकर उन्होंने चीफ जस्टिस को पत्र लिखा, जस्टिस कुरियन जोसेफ ने कहा कि यह एक केस के असाइनमेंट को लेकर था। यह पूछे जाने पर कि क्या यह सीबीआई जज जस्टिस लोया की संदिग्ध मौत से जुड़ा मामला है, कुरियन ने कहा, ‘हां’। इस बीच सीजेआई को लिखा पत्र जज मीडिया को देने वाले हैं, जिससे पूरा मामला स्पष्ट हो सकेगा कि किस मामले को लेकर उनके चीफ जस्टिस से मतभेद हैं।
चेलामेश्वर ने कहा कि हमारे पत्र पर अब राष्ट्र को विचार करना है कि मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग चलाया जाना चाहिए या नहीं। जस्टिस चेलामेश्वर ने कहा कि यह खुशी की बात नहीं है कि हमें प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलानी पड़ी है। सुप्रीम कोर्ट का प्रशासन सही से नहीं चल रहा है। बीते कुछ महीनों में वे चीजें हुई हैं, जो नहीं होनी चाहिए थीं।

चारों जजों की तरफ से लिखा गया पत्र –

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16 अंकों की वर्चुअल आईडी से हो सकेगी आपके आधार की सुरक्षा

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अगर आपको किसी सर्विस की सेवा के लिए बार-बार आधार कार्ड या आधार नंबर की पहचान कराने की जरूरत होती है या फिर आधार के डेटा की गोपनीयता का खतरा बना रहता है तो अब न सिर्फ इस झंझट से छुटकारा मिलने वाला है, बल्कि आपका डाटा और भी ज्यादा सुरक्षित होने वाला है।
आधार कार्ड की सुरक्षा को लेकर उठ रहे सवालों के बीच भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) ने इसकी सिक्योरिटी के लिए बड़ा कदम उठाया है। इस दिशा में यूआईडीएआई ने एक नया कॉन्सेप्ट पेश किया है जिसका नाम है ‘वर्चुअल आईडी’। अब विभिन्न सुविधाओं का लाभ उठाने के लिए अपना आधार नंबर देना अनिवार्य नहीं होगा। आधार कार्ड होल्डर इसकी वेबसाइट से अपना 16 अंकों का वर्चुअल आईडी बना सकेगा जिसे वह सिम वेरिफिकेशन समेत विभिन्न जगह दे सकता है। यानी अब उसे अपना 12 अंकों का बायोमेट्रिक आईडी देने की जरूरत नहीं होगी।
नई प्रणाली का उद्देश्य आधार संख्या के लीक होने और दुरुपयोग के मामलों को कम करना है और 119 करोड़ लोगों की पहचान संख्या की गोपनीयता को बढ़ावा देना है. अब आधार डिटेल देने के समय या वेरिफिकेशन के समय इसी 16 अंको से काम चल जाएगा. ध्यान देने वाली बात है कि यह 16 अंकों का वर्चुअल आईडी कुछ समय के लिए ही मान्य होगा. तय समय के बाद यूजर को अपना नया आईडी जारी करना होगा।
यूआईडीएआई ने कहा है कि एक मार्च से यह सुविधा आ जाएगी। हालांकि 1 जून से यह अनिवार्य हो जाएगी।
यूजर जितनी बार चाहे उतनी बार वर्चुअल आईडी जनरेट कर सकेगा। यह आईडी सिर्फ कुछ समय के लिए ही वैलिड रहेगी।
यूआईडीएआई के मुताबिक यह सीमित केवाईसी होगी। इससे संबंधित एजेंसियों को भी आधार डिटेल की एक्सेस नहीं होगी। ये एजेंसियां भी सिर्फ वर्चुअल आईडी के आधार पर सब काम निपटा सकेंगी। यूआईडीएआई ने वर्चुअल आईडी की जो व्यवस्था लाई है, इसके तहत यूजर जितनी बार चाहे उतनी बार वर्चुअल आईडी जनरेट कर सकेगा। यह आईडी सिर्फ कुछ समय के लिए ही वैलिड रहेगी।
लिमिटेड केवाईसी सुविधा आधार यूजर्स के लिए नहीं बल्कि एजेंसियों के लिए है। एजेंसियां केवाईसी के लिए आपका आधार डिटेल लेती हैं और उसे स्टोर करती हैं। लिमिटेड केवाईसी सुविधा के बाद अब एजेंसियां आपके आधार नंबर को स्टोर नहीं कर सकेंगी। इस सुविधा के तहत एजेंसियों को बिना आपके आधार नंबर पर निर्भर हुए अपना खुद का केवाईसी करने की इजाजत होगी। एजेंसियां टोकनों के जरिए यूजर्स की पहचान करेंगी। केवाईसी के लिए आधार की जरूरत कम होने पर उन एजेंसियों की तादाद भी घट जाएगी जिनके पास आपके आधार की डिटेल होगी।
करीब 15,000 लोगों पर किए गए एक सवेर्क्षण में सामने आया है कि 52 फीसदी लोग सरकारी एजेंसियों द्वारा अपने आधार विवरणों की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं। इस सवेर्क्षण को नागरिक मंच लोकलसर्किल ने किया है। इसमें लोगों से उनके आंकड़ों की साइबर सुरक्षा के बारे में पूछा गया। इसमें यूआईडीएआई द्वारा आधार जानकारी को हैकरों व सूचना विक्रेताओं से सुरक्षा में समर्थ होने को लेकर सवेर् में 20 फीसदी लोगों ने ‘कुछ हद तक आश्वस्त’ होने की बात कही, जबकि 23 फीसदी ने ‘पूरा विश्वास’ जताया।

बजट पर चर्चा शुरू: टैक्स छूट सीमा में हो सकती है बढ़ोतरी

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आगामी आम बजट आने से करीब तीन सप्ताह पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विकास दर और रोजगार बढ़ाने के लिए उठाए जाने योग्य कदमों पर विचार-विमर्श करने के लिए नीति आयोग में प्रमुख अर्थशास्त्रियों और क्षेत्रीय विशेषज्ञों से मुलाकात करेंगे।
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी के मुताबिक इस बैठक में नीति आयोग के वाइस चेयरमैन और सदस्य, प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य, अर्थशास्त्री और क्षेत्र के विशेषज्ञ शामिल होंगे।
उल्लेखनीय है कि सरकारी अनुमान के मुताबिक चालू वित्त वर्ष में देश की विकास दर 6.5 फीसदी रह सकती है, जो चार साल का निचला स्तर है। विकास दर 2016-17 में 7.1 फीसदी रही थी और उससे पिछले वित्त वर्ष में आठ फीसदी थी।
2014-15 में विकास दर 7.5 फीसदी थी। केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली एक फरवरी को आम बजट पेश करेंगे। यह 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार का आखिरी बजट होगा।

‘तूतिंग मसला’ सुलझा लिया गया है: सेना प्रमुख

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भारतीय सेना के प्रमुख बिपिन रावत के अनुसार अरुणाचल प्रदेश का ‘‘तूतिंग मसला” सुलझा लिया गया है।
याद रहे कुछ दिन पहले ही भारतीय सीमा के अंतर्गत आने वाले इस क्षेत्र में चीनी सड़क निर्माण दल के सडक बनाने के प्रयासों को भारतीय सेना ने विफल कर दिया था।
पी टी आई की रिपोर्ट के मुताबिक़ रावत ने बताया कि अरुणाचल में दो दिन पहले दोनों पक्षों के बीच हुई एक सीमा कार्मिक बैठक (बीपीएम) में इस मुद्दे को सुलझा लिया गया।
उन्होंने संवाददाताओं को बताया, “तूतिंग मुद्दा सुलझा लिया गया है।” उन्होंने बताया कि यह बैठक दो दिन पहले हुई थी।
सेना प्रमुख के मुताबिक सिक्किम सेक्टर के डोकलाम क्षेत्र में चीनी सैन्य टुकड़ियों की तैनाती में भी काफी कमी देखी गई है।
सरकारी सूत्रों ने बताया कि चीनी सड़क निर्माण दल, तूतिंग में भारतीय क्षेत्र में एक किलोमीटर अंदर तक घुस आए थे। उन्होंने बताया कि वह रास्ता बनाने के उद्देश्य से प्रदेश में घुसे थे।
सूत्रों ने बताया कि भारतीय सैन्य दलों से सामना होते ही ये दल वापस लौट गए और पीछे सड़क निर्माण के बहुत सारे उपकरण छोड़ गए।
सिक्किम सेक्टर में भारतीय और चीनी सेना के बीच 73 दिन तक चले डोकलाम विवाद के खत्म होने के चार महीने बाद इस तरह की कोई घटना सामने आई थी।

चारा घोटाले में लालू को साढ़े तीन साल की जेल

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रांची की एक सीबीआई अदालत ने 950 करोड़ रुपये के चारा घोटाला में देवघर कोषागार से 89 लाख, 27 हजार रुपये की अवैध निकासी के मामले में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री एवं राजद प्रमुख लालू प्रसाद को साढ़े तीन वर्ष की कैद एवं 10 लाख रुपये जुर्माने की शनिवार को सजा सुनाई।

सजा के ऐलान के बाद रविवार को उनकी बड़ी बहन गंगोत्री देवी का निधन हो गया। सूत्रों के मुताबिक वह लालू के दोषी करार दिए जाने के बाद से सदमे में चल रही थी और सजा सुनाए जाने से पहले उनकी रिहाई के लिए दुआएं मांग रही थी।

अदालत ने लालू के दो पूर्व सहयोगियों लोक लेखा समिति के तत्कालीन अध्यक्ष जगदीश शर्मा को सात वर्ष की कैद एवं बीस लाख रुपये के जुर्माने एवं बिहार के पूर्व मंत्री आर के राणा को साढ़े तीन वर्ष की कैद एवं दस लाख जुर्माने की सजा सुनायी।

फैसला आने के बाद लालू के पुत्र और बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने पटना में कहा कि हम लालू प्रसाद की दोषसिद्धि के खिलाफ उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाएंगे और अदालत के फैसले का अध्ययन करने के बाद अपील दायर करेंगे। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव, आर के राणा, जगदीश शर्मा एवं तीन वरिष्ठ पूर्व आईएएस अधिकारियों समेत 16 अभियुक्तों की सजा पर विशेष सीबीआई अदालत का फैसला आज शाम साढ़े चार बजे आया। अदालत ने सजा की घोषणा वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से की और सभी अभियुक्तों को बिरसामुंडा जेल में ही वीडियो लिंक से अदालत के सामने पेश कर सजा सुनायी गयी।

इससे पूर्व आज दिन में दो बजे सीबीआई के विशेष न्यायाधीश शिवपाल सिंह ने राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव एवं राजद के दूसरे नेता आर के राणा एवं अन्य सभी आरोपियों की पेशी सजा सुनने के लिए जेल से ही वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से करने के निर्देश दिये थे। अपने आदेश के लिए अदालत ने शाम चार बजे का समय निर्धारित किया था।

अदालत ने सजा के बिंदु पर कल लालू के वकीलों की बहस सुनी जिसमें उन्होंने बार बार उनकी लगभग सत्तर वर्ष की उम्र होने और बीमार होने की दुहाई दी थी।अदालत ने एक-एक कर बाद में अन्य शेष सात अभियुक्तों की भी सजा के बिन्दु पर उनकी उपस्थिति में बहस सुनी थी।

राहुल हिंदू ब्राह्मण हैं, लेकिन कौन से?

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कांग्रेस विभिन्न धर्मो वाले देश की प्रतिनिधि राजनीतिक पार्टी रही है। राहुल के दादा पारसी थे। जबकि पिता हिंदू और मां इटैलियन हैं। उनकी दादी हिंदू थीं जिन्होंने पारसी से विवाह किया। ऐसी स्थिति में राहुल हिंदू तो हैं। आप चाहें तो उन्हें ईसाई और पारसी भी मान सकते हैं। यह कांग्रेस के नए अध्यक्ष की खासियत है कि वे तीन धर्मों से जुड़ते हैं। यही सही मायने में भारतीय धर्मनिरपेक्षता है। वे विभिन्नता के प्रतीक हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद जब सबको साथ लेने की बात कहते हैं तो उन्हें खुद कहना चाहिए था कि चुनाव में राहुल की जाति पर सवालिया निशान लगाना अनुचित है।

एक विदेशी नेता की सलाह भारतीय नेता को

भले ही यह अच्छा न माना जाए कि एक भारतीय नेता को कोई विदेशी नेता यह समझाए कि देश को धार्मिक आधार पर न बांटा जाए। यह दावा है कांग्रेसी नेता शाशि थरूर का। उन्होंने बताया कि हिंदुस्तान टाइम्स लीडरशिप समिट में आए अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से ऐसा कहा। उन्होंने कहा एक ‘भारतीय नेताÓ को एक विदेशी नेता ने समझाने की कोशिश की है। जबकि परंपरा से हमारा इतिहास सहअस्तित्व की बात करता रहा है। हमारे संविधान में हमारी बहुलता और विविध संस्कृति पर जोर है। कितने दुख की बात है कि कुछ भारतीय उन मूल्यों पर ही भरोसा नहीं करते जिनके आधार पर यह देश बना है।

बराक ओबामा ने 2015 (तब राष्ट्रपति थे) में भी भारत आकर यह चिंता जताई थी कि देश में अल्पसंख्यकों के प्रति असहिष्णुता बढ़ी है। उन्होंने तब भी लोगों से अपील की थी कि जो विविधता आपके देश में है। उसे धार्मिक आधार पर बांटने नहीं देना चाहिए। उन्होंने जब भारत को ऐसा स्थान बताया था जहां हजारों साल से विभिन्न धार्मिक विश्वासों को मानने वाले रहते हैं। यह उनकी विरासत ही नहीं, बल्कि उनका विश्वास भी है। असहिष्णुता संबंधी गतिविधियों से गांधी जी की आत्मा को तकलीफ होगी जिनकी सक्रियता से यह देश आज़ाद हुआ।

गुजरात चुनाव प्रचार में हिंसा की पूरी तैयारी थी

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट किया, गुजरात में भ्रष्टाचार और भयावह शाह काल के खिलाफ लड़ रहे हमारे नेता इंद्रनील राजगुरु, उनके भाई दिव्यनील डोंगा और सांसद राजीव सतव पर गुजरात पुलिस ने हमला किया। उन्होंने कहा, डर का परिणाम हिंसा है। मुख्यमंत्री विजय रूपाणी चुनाव हारने से डर रहे हैं। लेकिन गुजरात की जनता डरी हुई नहीं है।

इंद्रनील राजगुरु राजकोट पश्चिम से कांग्रेस के उम्मीदवार हैं। यहीं उनके मुकाबले में मुख्यमंत्री विजय रूपाणी भाजपा की ओर से चुनाव लड़ रहे हैं। एक होर्डिंग लगाने पर कांग्रेस और भाजपा कार्यकर्ताओं में झगड़ा हुआ और मारपीट हुई। भाजपा कार्यकर्ता बड़ी तादाद में थे। उन्होंने इंद्रनील के भाई दिव्यनील की आंख, सिर और पांव पर घातक प्रहार लकड़ी के फट्टों और लोहे के पाइप से किए। डाक्टरों के अनुसार उसके दिमाग पर भी चोट आई। पुलिस ने पांच लोगों को गिरफ्तार किया है। ये सभी भाजपा कार्यकर्ता हैं। यह जानकारी पुलिस कमिश्नर अनुपम सिंह गहलोत ने दी।

उधर जद(यू) के शरद यादव गुट ने भी पार्टी के उम्मीदवार को गुजरात पुलिस के अत्याचारों की शिकायत चुनाव आयोग से की है। राज्य सभा के वरिष्ठ सांसद शरद यादव ने मुख्य चुनाव आयुक्त एके जोती को लिखा है कि पार्टी के चुनाव चिन्ह पर उनके गुट के दावे के मामले में आयोग का फैसला आने पर गुजरात में चुनाव लड़ रहे पार्टी उम्मीदवारों को स्थानीय पुलिस परेशान कर रही है।

यादव ने लिखा कि भडूच जि़ले में तैनात महिला पुलिस अधिकारी स्थानीय उम्मीदवार और पार्टी के पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष छोटू भाई वसावा के चुनावी कार्यकर्ताओं को तरह -तरह से परेशान कर रही है। इस मामले पर चुनाव आयोग से कोई उत्तर नहीं मिला।

कांग्रेस एक धर्म से दूसरे को लड़ाती है: मोदी

नरेंद्र मोदी ने पाटीदारों के युवा नेता हार्दिक पटेल, ओबीसी के युवा नेता अल्पेश ठाकोर और दलितों के युवा नेता जिग्नेश मेवाणी के साथ कांग्रेस के तालमेल पर व्यंग्य किया। उन्होंने कहा कांग्रेस एक जाति को दूसरी से और एक धर्म को दूसरे धर्म से लड़ाना चाहती है। सूरत में सोमवार (4 दिसंबर) को ही पाटीदार नेता हार्दिक पटेल के आहवान पर काफी बड़ी रैली सूरत में निकली थी।

यह रैली नोटबंदी और जीएसटी के खिलाफ निकली थी। इसके चलते बड़े पैमाने पर लघु और मध्यम उद्योग बंद हो गए है। साथ ही उत्पादन की खपत बाजार में नहीं हो रही है।

 

जतिवाद को बढ़ाया कांग्रेस ने: अमित शाह

‘मुद्दों से भटकने के कारण गुजरात में कांग्रेस हारी है। यह कहा भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने। गुजरात में भाजपा की जीत के बाद वह दिल्ली में पत्रकारों से बात कर रहे थे। उन्होंने कहा कि यह जीत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यक्रमों की जीत है। उन्होंने कांग्रेस पर प्रचार का स्तर निम्न करने का भी आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने यह चुनाव ‘आउटसोर्सÓ कर दिया था। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने जातिवाद, वंशवाद और वोट के लिए तुष्टिकरण की राजनीति की जो अब देश में खत्म हो चुकी है। उन्होंने हिमाचल प्रदेश में दो-तिहाई बहुमत हासिल करने का दाव किया।

शाह ने कहा कि आने वाले पांच राज्यों त्रिपुरा, कर्नाटक, राजस्थान, मध्यप्रदेश और मेघालय में भी भाजपा जीत हासिल करेगी। गुजरात में अपनी पार्टी की सीटें कम होने के बारे में शाह ने कहा कि सीटें चाहे कम हो गई हैं। लेकिन हमारा मत प्रतिशत1.25 फीसद बढ़ गया हैं उन्होंने कहा कि 2012 के चुनाव में उन्हें 115 सीटें मिली थी और उनका मत प्रतिशत था 47.85 और इस बाद 2017 में उन्हें 49.10 फीसद मत प्राप्त हुए हैं।  सीटें कम आने के लिए उन्होंने कांग्रेस के जातिवादी प्रचार को दोषी ठहराया। शाह ने दावा किया कि उनकी पार्टी 1990 से लगातार जीतती आ रही है और जीतती रहेगी।

गुजरात का यह चुनाव नहीं था आसां

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भारतीय जनता पार्टी को गुजरात में 2017 के विधानसभा चुनाव में खासी बड़ी चुनौतियों से गुज़रना पड़ा। पिछले 22 साल से गुजरात में भाजपा की सरकार रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्य की कमान इस सदी के शुरू में संभाली थी। सिर्फ साढ़े तीन साल पहले लोकसभा चुनाव जीतने के बाद उन्होंने मुख्यमंत्री पद छोड़ा और प्रधानमंत्री पद संभाला। उनकी अनुपस्थिति में राज्य आनंदी बेन की देखरेख में आया। उस समय कई आंदोलनों ने भी ज़ोर पकड़ा। प्रशासन और पुलिस के चलते राज्य में जो कुछ हुआ उसके कारण उन्हें पद छोडऩा पड़ा। कमान फिर विजय रूपाणी के हाथों आई। लेकिन उन पर आरोप लगे और असंतोष भी बढ़ा। इस बीच चुनाव भी घोषित हो गए।

खुद प्रधानमंत्री इस साल के पहले महीने से लगभग पूरे साल राज्य में आते रहे। कई विकास परियोजनाएं उन्होंने शुरू की। लेकिन मतभेद बढ़ता ही रहा। आखिर उन्हें ही राज्य में विधानसभा चुनाव प्रचार की कमान संभालनी पड़ी। गुजरात विधानसभा चुनाव में केंद्रीय मंत्रिमंडल के लगभग सभी महत्वपूर्ण मंत्रियों, दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्रियों को भी इस चुनाव में जुटना पड़ा। यह चुनाव एक तरह से 2019 के लोकसभा चुनावों की एक पूर्व झलक में तब्दील हो गया। यहां के तीन नवयुवकों हार्दिक पटेल (पाटीदार समूहों), अल्पेश ठाकोर (ओबीसी जातियां और ठाकोर समुदाय) और जिग्नेश मेवाणी (हरिजन, आदिवासी) की दिन व दिन बढ़ती लोकप्रियता भारतीय जनता पार्टी के लिए एक बड़ी चुनौती बनी। इन तीनों युवाओं का कांग्रेस से तालमेल हो जाना भाजपा के लिए बड़ी चुनौती बनी। यह समाज में विभाजन और कथित सुशासन की भाजपा की कामयाब रणनीति के मुकाबले एक बड़ी चुनौती थी।

इस मुकाबले में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खुद मैदान में आना पड़ा। अमितशाह ने हर जि़ले में घर-घर संपर्क अभियान अपने कार्यकर्ताओं के साथ बढ़ाया। दूसरी और नरेंद्र मोदी ने पहले दौर और दूसरे दौर के मतदान में गुजरात से अपने जुड़ाव को बार-बार याद दिलाया। उन्होंने नेहरू-गांधी परिवार के लोगों से मिले विशेषणों को याद करके भावनात्मक स्तर पर जनता को साथ लेने की कोशिश की।

दूसरे दौर के चुनाव प्रचार के दौरान भी विकास का मुद्दा पीछे छूट गया। कांग्रेसी नेता मणिशंकर अय्यर ने जब दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष के पद पर राहुल गांधी की उम्मीदवारी के पक्ष में किसी और प्रतियोगी के न होने पर मुगलिया सल्तनत का हवाला दिया तो नरेंद्र मोदी को व्यंग्य करने का यह एक बड़ा मुद्दा मिल गया। इसी संदर्भ में उठे बवाल पर अय्यर के मुंह से ‘नीचÓ शब्द के इस्तेमाल के बाद तो चुनाव प्रचार में भाजपा के नेताओं ने नए जोश से प्रचार कार्य शुरू कर दिया। क्योंकि इसके जरिए वे उम्मीद कर रहे थे कि हरिजन-आदिवासी -मुस्लिम वोट अब उनकी ओर ही आएंगे।

इतना ही नहीं सोशल मीडिया से फिर भारतीय प्रिंट मीडिया में खबर आई कि कांग्रेसी नेता मणिशंकर अय्यर के घर हुए एक भोज में पाकिस्तानी नेताओं के साथ पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी और अन्य के बीच बातचीत हुई जिसमें गुजरात के भावी मुख्यमंत्री अहमद पटेल की संभावनाओं पर भी विचार विमर्श हुआ। इस खबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान खूब बताया जिसे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेतजी और केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने प्रिंट और टीवी मीडिया के जरिए इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि जब गुजरात में चुनाव हो रहे हैं तो कांग्रेस के बड़े-बड़े नेताओं को मणिशंकर अय्यर के यहां भोज पर नहीं जाना था। यदि वे गए तो इन्हें यह भी बताना चाहिए कि वहां क्या बातचीत हुई। उन्होंने विदेश मंत्रालय को भी इस बारे में कोई सूचना क्यों नहीं दी।

दूसरे दौर के चुनाव प्रचार के आखिरी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साबरमती रीवर फ्रंट से सी प्लेन से अंबा मंदिर की उड़ान ली। वहां से दर्शन करके वे वापस अहमदाबाद लौटे। 22 साल बाद गुजरात मिशन पर भाजपा ने कहीं भी ज़ोर नहीं दिया। जबकि पिछले तीन साल में पूरे देश में उसे अपनाने पर ज़ोर दिया जाता रहा है।

उत्तर गुजराज में अल्पेश ठाकोर को कांग्रेस का टिकट देने से कांग्रेस के कई पुराने नेताओं और उनके समर्थक कार्यकर्ताओं में खासी निराशा रही।

जबरदस्त मुकाबला किया कांग्रेस ने

कांग्रेस हाईकमान ने 2017 के गुजरात विधानसभा चुनावों में इस बार अपनी अच्छी तैयारी की थी। गुजरात के कांग्रेसी नेताओं को केंद्रीय नेताओं की तरह ही अहमियत दी गई। राष्ट्रीय महासचिव अशोक गहलोत और प्रांत के अध्यक्ष भारत सिंह सोलंकी को यह जिम्मेदारी मिली कि वे गुजरात विधानसभा में जीत के लिहाज से एक नक्शा तैयार करें। अशोक गहलोत जैसे अनुभवी दिग्गज कांग्रेसी नेता ने गुजरात में हवा का रुख भांपते हुए शंकर सिंह वाघेला से पार्टी को मुक्त करा लिया। आश्वासन के बावजूद वाघेला भाजपा में नहीं लौट पाए फिर उन्होंने एक क्षेत्रीय पार्टी बनाने की घोषणा की। इसके बाद राज्यसभा सांसद बनने के लिए बड़ी ही होशियारी से अहमद पटेल भाजपा उम्मीदवार को हरा सके।

अशोक गहलोत और राहुल गांधी ने गुजरात में पाया कि बूथ प्रबंधन पर ज़्यादा ध्यान देना ज़रूरी है। भाजपा का प्रतिद्वंद्वी होना एक बात है और उसकी दिखाई राह पर चलना दूसरी बात है। ज़रूरत है कि अपने कार्यकर्ताओं में प्राण फूंकना। केंद्रीय पर्यवेक्षकों के निर्देशन में कार्यकर्ताओं को बूथों के लिहाज से सक्रिय किया गया। जहां ज़रूरत हो वहां भाजपा के संगठन पर सीधा प्रभाव रखने वाले अमित शाह की संगठनिक सूझबूझ को भी जाना समझा गया।

गुजरात दक्षिण , उत्तर और मध्य में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान के विधायकों और सांसदों और कांग्रेसी नेताओं को स्थानीय कार्यकर्ताओं के साथ सक्रिय किया गया। यह सक्रियता बहुत काम आई। गुजरात के कांग्रेसी कार्यकर्ता का भी आत्मविश्वास बढ़ा। जिसके कारण मतदाताओं को लगा कि इस बार नतीजा कुछ भी हो कांग्रेस के लोग गंभीर तो हैं। मतदाताओं और कांग्रेसी कार्यकर्ताओं में तालमेल बैठने लगा।

भाजपा से निराश समुदाय चाहे वे पाटीदार हों, ओबीसी और ठाकोर हों या फिर दलित, आदिवासी हों। उनके छोटे-छोटे नेता और कार्यकर्ता कांग्रसी नेताओं से जुडऩे लगे। इनके बड़े नेता तो पहले अपने आंदोलनों के आधार पर भाजपा से बातचीत की कोशिश में रहे लेकिन दोनों ही तरफ जि़द से बात नहीं बनी। कांग्रेस की सक्रियता से इन्हें लगा कि इनकी मांगों में कुछ का अच्छा असर पड़ेगा।

संघ परिवार और भाजपा के कार्यकर्ताओं की तरह कांग्रेस के पास ज़मीनी स्तर के लोग नहीं हैं। इन्हें इस बार के चुनाव में इस बात का अनुमान भी हुआ कि इनके पास बाहुबल, धनबल और सरकारी सहयोग नहीं है। इनके एक उम्मीदवार के भाई पर सांघातिक हमला किया गया। उससे कांग्रेसियों ने सीख ली कि वे कैसे अपनी सुरक्षा पर ध्यान देते हुए भाजपा को गहरा झटका देने में कामयाब होंगे। ऐसा किया भी गया।

‘अपनी टिप्पणियों पर माफी मांगेÓ

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पहली दिसंबर को कहा कि उन्हें उम्मीद है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी टिप्पणियों के लिए देश से खेद प्रकट करेंगे। नरेंद्र मोदी ने गुजरात के बनासकाठा में चुनाव प्रचार करते हुए कहा था कि पूर्व प्रधानमंत्री और मणिशंकर अय्यर जैसे कांग्रेसी नेताओं ने भोज में पाकिस्तान के कुछ लोगों को साथ बातचीत कर गुजरात में चुनाव जीतने की साजिश रची। इस बैठक में पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल दीपक कपूर और पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री खुर्शीद अहमद कसूरी और कई पत्रकारों के साथ बैठक हुई थी।

मनमोहन सिंह ने कहा, ‘गुजरात चुनावों में राजनीतिक लाभ के लिए उन्होंने ऐसी गलत बातें कहीं जिन पर मुझे बहुत तकलीफ हुई। वे खुद प्रधानमंत्री पद पर हैं और गुजरात में पराजय के अंदेश में वे हर तरह की गाली-गलौच पर उतर आए हैं। मुझे अफसोस है कि मोदी एक खतरनाक नजीर पेश कर रहे हैं। जिसके तहत वे हर संवैधानिक पद को नीचा दिखाना चाहते हैं चाहे वह प्रधानमंत्री का पद हो या फिर सेना प्रमुख का।

कांग्रेस पार्टी को कोई उपदेश, ‘राष्ट्रवादÓ पर उस पार्टी और प्रधानमंत्री से नहीं सुनना है जिसका आतंकवाद के सामने हमेशा घुटने टेकने का इतिहास रहा है। उन्होंने लिखा, ‘शायद मेरा यह याद दिलाना उचित ही है कि नरेंद्र मोदी पाकिस्तान बिना किसी न्यौते के पहुंच गए थे क्यांकि उधमपुर और गुरदासपुर में आतंकवादी हमले हुए थे। उन्हें यह बात भी देश को बतानी चाहिए कि पाकिस्तान की बदनाम आईएसआई को पठानकोट में हमारे रणनीतिक लिहाज से महत्वपूर्ण हवाई अड्डे पर क्यों न्यौता गया कि वे पाकिस्तानी आतंकी हमले के शिकार हुए फौजी हवाई अड्डे की पड़ताल करें?Ó

‘मैं उन तमाम गलत आरोपों, बातों से इंकार करता हूं क्योंकि मैंने किसी से भी गुजरात चुनावों पर कोई बात नहीं की।Ó जैसा मोदी का आरोप है कि मणिशंकर अय्यर की ओर से दिए गए भोज में मैं मौजूद था। इस भोज में आमंत्रित तमाम लोगों में किसी ने भी गुजरात का मुद्दा उठाया ही नहीं। अलबत्ता जिस विषय पर बात हुई वह भारत-पाक संबंधों पर हुई। उस भोज में भारतीय प्रशासनिक अधिकारी और पत्रकार भी मौजूद थे।

‘मुझे उम्मीद है कि वे देश से इसके लिए अपने उन खराब विचारों के लिए क्षमा याचना करेंगे साथ ही जिस दफ्तर में वे बैठते हैं उसका भी सम्मान बनाए रखेंगे।Ó

छह दिसंबर को हुई बैठक में शामिल हुए लोगों में कुल 18 लोग थे। इनमें श्रीमती और श्री मणिशंकर अय्यर, खुर्शीद कसौरी, एम हामिद अंसारी, डा. मनमोहन सिंह, के नटवर सिंह, केएस बाजपेयी, अजय शुक्ल, शरद सम्भरवाल, जनरल दीपक कपूर, टीसीए राधवन, सती लांबा, पाकिस्तान के हाईकमिशनर, एमके भद्रकुमार, सीआर गरेखान, प्रेमशंकर झा, सलमान हैदर, और राहुल खुशवंत सिंह मौजूद थे।

 

भाजपा चुनाव प्रचार में निचले स्तर तक उतरी: शिवसेना

शिवसेना ने सहयोगी भाजपा पर गुजरात चुनाव में निचले स्तर तक उतर आने का आरोप लगाया है। प्रधानमंत्री के चुनावी भाषणों से विकास का एजंडा गायब हो गया। मोदी ने कांग्रेस के निलंबित नेता मणिशंकर अय्यर के खिलाफ बयान देकर गुजरात की अस्मिता को अपमानित कर दिया।गुजरात चुनाव में मोदी राष्ट्रीय नेता कम क्षेत्रीय नेता ज्य़ादा बन गए।

भाजपा प्रायोजित चुनाव आयोग में ईवीएम घोटाले की शिकायत करना बेकार है। नौ दिसंबर को चुनाव के पहले चरण में विपक्ष ने इलेक्ट्रानिक मशीनों से छेड़छाड़ का आरोप लगाया था। लेकिन उसे चुनाव आयोग ने खारिज कर दिया।

गुजरात चुनाव का प्रचार अभियान बहुचर्चित विकास एजंडे पर केंद्रित होना चाहिए था। लेकिन गुजरात में प्रधानमंत्री के भाषणों से यह बिंदु ही गायब है। जबकि यह वह राज्य है जहां से हमारे प्रधानमंत्री आते हैं और यही भाजपा ने 22 साल शासन किया। भाजपा चुनाव प्रचार अभियान में निचले स्तर तक क्यों चली गई।

शिवसेना के मुख्य पत्र ‘सामनाÓ के अनुसार ‘ जब यह भरोसा हो चला है कि राहुल गांधी को कांग्रेस पार्टी का प्रमुख बनाए जाने के बाद भाजपा के लिए चुनाव में जीत आसान हो गई है तो शीर्ष भाजपा नेता उनके खिलाफ गुजरात में चनाव प्रचार क्यों कर रहे हैं।

भाजपा की चुनावी रणनीति भारी पड़ी कांग्रेस पर

गुजरात विधानसभा चुनावों में भाजपा जीती ज़रूर। लेकिन पार्टी को एक बड़ी कीमत अदा करनी पड़ी। विधानसभा में भाजपा सौ सीटों से नीचे आकर रुकी और वहीं कांग्रेस ने राज्य में अपनी स्थिति बेहतर कर ली। कांग्रेस में पाटीदारों, ओबीसी और दलित आदिवासियों में अपनी जड़ें बनाईं।

चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा में यह अहसास ज़रूर रहा कि अपने ही गढ़ में पार्टी कितनी असुरक्षित है। खुद प्रधानमंत्री न केवल इस साल बारहों महीने राज्य में आए। जीत के लिए भाजपा ने केंद्रीय मंत्रिमंडल के मंत्रियों और प्रदेशों के मुख्यमंत्री आदि को राज्य में लगातार तैनात रखा। यह चुनाव इस बार विकास के मुद्दे पर नहीं बल्कि भाजपा ने हिंदू-मुस्लिम,मंदिर-मस्जिद, सरदार पटेल और गुजराती गौरव के आधार पर लड़ा। वहीं कांग्रेस ने खजाने में लौटा काला धन, जीएसटी के नुकसान, छोटे उद्योग-धंधों की बंदी, बेरोजगारी, स्वास्थ्य व शिक्षा का निजीकरण और भावी विकास के मुद्दे उठाए।

कांग्रेस के उपाध्यक्ष (अब अध्यक्ष)राहुल गांधी ने अपनी हर सभा में कहा कि प्रधानमंत्री विकास की बात पूरे देश में करते हैं लेकिन वे उस पर अपने ही राज्य में खामोश हैं। उनके भाषण के कुल समय का आधा हिस्सा मुझ पर और मेरे परिवार पर होता है। आधे हिस्से में उनके मन की बात होती है।

उधर प्रधानमंत्री ने अपने चुनावी भाषणों में खुद को गुजरात का बेटा बताया। उन्होंने कहा कि विमुद्रीकरण और जीएसटी से होने वाली परेशानियों के लिए मैं जिम्मेदार हूं। उन्होंने और पार्टी के दूसरे नेताओं और मुख्यमंत्रियों ने धर्मनिरपेक्षता पर अपनी सोच बताई। प्रधानमंत्री ने चुनाव प्रचार मेें मंदिरों में दर्शन के अलावा देश की सुरक्षा और आधुनिक तकनीकी विकास के बहाने सी प्लेन के इस्तेमाल किया और मतदान के बाद उंगली पर लगे निशान को भी झलकाया। चुनाव संहिता के नियमों की धज्जियां खूब उड़ीं लेकिन प्रादेशिक और केंद्रीय चुनाव आयोग सिर्फ लाचार दिखा।

यह लाचारगी तब भी दिखी जब गुजरात में डेढ़ सौ से ऊपर सीटें हासिल करने के लिए संसद का शीत सत्र नवंबर की बजाए दिसंबर मध्य तक कर दिया गया। मकसद था कि पार्टी के बड़े-बड़े नेता गुजरात जाकर भाजपा का चुनाव प्रचार कर सकें। भाजपा नेता और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब एक चुनावी रैली में आरोप लगाया कि एक भोज में कांगे्रस ने गुजरात चुनावों को प्रभावित करने के लिए अपने बड़े नेताओं के साथ पाकिस्तानी नेताओं से बात की। इसमें पूर्व प्रधानमंत्री, पूर्व उपराष्ट्रपति और पाकिस्तान के वरिष्ठ राजनयिक शामिल हुए। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इसका खासा प्रतिवाद किया। कहा कि गुजरात में जीत के लिए प्रधानमंत्री ऐसी बातें कह रहे हैं जिनका कोई आधार नहीं है।

पूरे देश में नोटबंदी और जीएसटी के चलते आर्थिक ठहराव, रोजगार में कमी और एंटी इकंबैंसी का असर रहा। राहुुल का जो सक्रिय चुनाव प्रचार इस बार गुजरात में दिखा उससे भाजपा भी हतप्रभ है।

पर्यवेक्षक मानते हैं कि गुजरात वह राज्य है जहां तकरीबन बारह साल बतौर मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज किया। जिस प्रदेश में विकास पर ही हमेशा ध्यान रहा उसी मुद्दे पर चुनाव प्रचार की उन्होंने सोची भी। पहले दौर के चुनाव प्रचार में ही हवा का रु ख भांप कर विकास की बजाए राहुल, सोनिया और सरदार पटेल पर केंद्रित रहे। बाद में उन्होंने वे राजनीतिक मुद्दे भी लिए जिनकी अपेक्षा एक सेक्यूलर देश के प्रधानमंत्री से नहीं थी।

 

आमरो सरदार, जय सरदार

गुजरात विधानसभा चुनाव प्रचार रणनीति के तहत कांग्रेस इस बात पर हार्दिक पटेल के संगठन पाटीदार अमायत आंदोलन समिति (पीएएस) से तालमेल करते हुए उसकी इन शर्तों पर राजी हुई थी कि पटेलों के लिए आरक्षण की व्यवस्था होगी। 25 अगस्त 2015 के बाद अमदाबाद में हुई रैली में 14 युवाओं की हत्या व अन्य ज्य़ादतियों के खिलाफ जांच के लिए आयोग बिठाया जाएगा। सोचिए, चौबीस साल का नौजवान जो अभी चुनाव भी लडऩे योग्य नहीं है कैसे वह भाजपा की बाइस साल पुरानी सरकार के लिए सिरदर्द बन जाता है। राज्य की जनसंख्या के 14 फीसद पर उसका प्रभाव है। उसका प्रभाव उत्तर गुजरात में यदि बनासंकठा और साबरकंठा के आदिवासी इलाकों को छोड़ दें तो है। कच्छ, पोरबंदर और राजकोट में बहुत कम है। मध्य गुजरात में छोटा उदयपुर, दोहाद, गोधरा, अहमदाबाद, सूरत और भड़ूच के सिवा है। दक्षिण गुजरात में भी कुछ असर है।

भाजपा को सुई चुभाने जैसा दर्द देने के लिए कांग्रेस ने चालीस साल के अल्पेश ठाकोर को साथ लिया। उसे कांग्रेस पार्टी ने अक्तूबर में पार्टी में ले लिया। वह ओबीसी क्षत्रिय-ठाकोर समुदाय समूह का नेता है। प्रदेश में उत्तर और मध्य गुजरात में इस समुदाय का खासा प्रभाव रहा है। वह पाटन जिले में राधनपुर से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव भी लड़ रहा है।

भाजपा को खासी तकलीफ युवा वकील जिग्नेश मेवाणी से भी रही है जो 36 साल के प्रभावी नौजवान हंै। उसने कांगे्रस के समर्थन से निर्दलीय तौर पर वडगाम से चुनाव लड़ा। उसका दलित-आदिवासियों पर खासा प्रभाव है। ऊना में चार दलित नौजवानों मार दिया गए थे। गोली कांड के बाद उसकी लोकप्रियता बढ़ी। उसका समर्थक समुदाय राज्य में 7.5 फीसद हैं।

उधर भाजपा को समर्थन देने वालों को कमी इस चुनाव में नहीं दिखी वजह साफ है कि केंद्र सरकार में उसका राज साढ़े तीन साल से है और राज्य सरकार में पार्टी लगभग बाइस साल से सत्ता में है। उसके साथ काफी पाटीदार, ओबीसी समुदाय के लोग, दलित और आदिवासी हैं। मुख्यमंत्री विजय रूपाणी को इन नए नेताओं से थोड़ी घबराहट हमेशा से है। इसे दूर करने के लिए प्रधानमंत्री के अलावा भाजपा का पूरा केंद्रीय मंत्रिमंडल, विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्री और नेता पूरे प्रदेश के तमाम कार्यकर्ता और संघ परिवार के विभिन्न कार्यकर्ता सतत सक्रिय रहे। इसकी वजह यह थी कि भाजपा और कांग्रेस में राज्य विधायिका में कुछ ही ज्य़ादा फीसद का $फासला रहा है। पिछले 2012 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 115 सीटें मिली थीं। चुनाव तब भी मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हुए थे।जपा के लिए खतरे का संकेत

गुजरात चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) भले किसी तरह अपनी साख बचाने में कामयाब हो गई हो लेकिन पिछले 22 साल से राज्य में लगभग लुप्त रही कांग्रेस में फिर से जान पड़ गई। 2012 में 115 सीटें जीतने वाली भाजपा बढ़ी मुश्किल से 100 का आंकडा पार कर पाई। दूसरी और 2012 में 63 सीटें जीतने वाली कांग्रेस 78 को पार कर गई। 2014 में लोकसभा की सभी 26 सीटें जीतने वाली भाजपा के लिए खतरे के संकेत हैं।