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शांतिपूर्ण सह अस्तित्व में कांग्रेस को भरोसा

महात्मा गांधी के दांडी सत्याग्रह  के 89 साल होने के मौके पर कांग्रेस कार्यसमिति ने अपनी बैठक गुजरात में की। यहीं से बापू ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद से भारतीय लोगों को आज़ादी दिलाने का आंदोलन शुरूकिया था। इसी साल पूरे देश में महात्मा गांधी की 150 वीं वर्षगांठ मनाई जाएगी। इसके जरिए जिन मूल्यों के लिए वे लड़े आज वे न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया के लिए भी सम-सामयिक हैं। गुजरात से ही देशको एक और मसीहा मिला। वे थे सरदार वल्लभ भाई पटेल। वे महात्मा गांधी के अनुयायी थे

और भारत की आज़ादी की लड़ाई के प्रमुख सेनानी थे।

कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में महात्मा गांधी, पंडित जवाहर लाल नेहरू, सरदार पटेल और आज़ादी के दूसरे सेनानियों को याद किया गया और भारतीय जनता की एकता के लिए प्रतिबद्धता जताई गई औरभारतीय नागरिकों की एकता और देश के बहुभाषी और बहु-संास्कृतिक समाज की संस्कृति के प्रति आस्था को याद किया गया। उन्होंने भारतीय जनता के शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व में अपना भरोसा जताया औरबड़ी ही कड़ाई से आरएसएस और इसके सहयोगियों द्वारा प्रचारित हिंदुत्व की अलगाववादी विचारधारा को खारिज किया।

प्रस्ताव में कहा गया कि ‘प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा आज उनके संघर्ष, त्याग और राष्ट्रनिर्माण में उनके योगदान को नकारते हुए उनकी वसीयत और उनके मूल्यों के प्रचारक बन बैठे हैं। इसी साल जालियांवालाबाग हत्याकांड का शताब्दी वर्ष भी है। कांग्रेस पार्टी सम्मान के साथ उन लोगों को याद करती है जिन्होंने हमारी आज़ादी के लिए अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया हम उनकी शहादत को नमन करते हैं

कांग्रेस कार्यसमिति ने पुलवामा में धमाके में सीआरपीएफ के 40 जवानों के दुखद अंत पर संवेदना जताई जिसने पूरे देश और इसके देशवासियों को दुखी किया। इस हमले से हमारे देश की एकता को खतरा बढ़ाहै। कांग्रेस पार्टी एक स्वर में इस हमले की निंदा करती है और हमारे सिपाहियों और सेनाओं के साथ एकजुट है।

कांग्रेस अध्यक्ष ने राष्ट्रीय संकट के समय भारत सरकार को समर्थन का हाथ भी बढ़ाया। प्रस्ताव में आगे कहा गया है कि भारत एक प्रौढ़ लोकतंत्र हैं जहंा अलग-अलग नज़रिया और विचार हैं। जिन्हें अलग-अलगपार्टियां प्रतिनिधित्व  करती हैं। विरोध और वैचारिक मतभेद हमारे राजनीतिक सोच का ही हिस्सा होना चाहिए खासकर चुनाव में। इन्हें कमज़ोरी या देश की अनेकता के रूप में नहीं लेना चाहिए। कांग्रेसकार्यसमिति भारत के शत्रुओं को यह संदेश देती है कि भारत एक है और संकल्पित है उनके एजेंडा को नाकाम करने के लिए।

हिमाचल में डूब रही है प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना

हर साल ओलाबृष्टि, बादल फटने, कम  बर्फबारी और खराब मौसम से लगातार जूझते रहने वाले हिमाचल प्रदेश के किसानों को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से बहुत उम्मीदें थीं। इस योजना की शुरूआत हुएतीन साल हो गए है, पर इसका कोई लाभ किसानों को दिखाई नहीं दे रहा। सरकारी दफ्तरों, बैंकों और बीमा कंपनियों के बीच तालमेल की कमी के कारण किसानों का वह जोश ठंडा पड़ गया है जो इस योजनाको लेकर बना था। बैंकिंग क्षेत्र के सूत्रों ने इस बात की पुष्टि की है कि जिन किसानों ने बैंकों से कजऱ् भी ले रखा है वे भी इस योजना को अपनाने से झिझक रहे हैं।

बाकी किसानों की तरह थानाधार(जि़ला शिमला) के एक किसान चेतराम ने 2016 में अपनी सेब की फसल का बीमा करवाया था। खराब मौसम की वजह से सेब की सारी फसल तबाह हो गई। पर बीमा कंपनी नेपूरे गांव को ही बीमा के पैसे नहीं दिए और उन्हें इसके लिए आयोग्य घोषित कर दिया। इस पर किसानों ने चंडीगढ़ में बीमा कंपनी के दफ्तर से संपर्क किया यह जानने के लिए कि आखिर उन्हें आयोग्य क्योंघोषित किया गया है? उन्हें पता चला कि मौसम की जानकारी एकत्र करने वाला उपकरण 9000 फुट की ऊंचाई पर नारकंडा में लगाया गया जबकि उसे 6500 फुट की ऊंचाई पर लगाने का फैसला हुआ था। इसवजह से 9,000 फुट की ऊंचाई पर मौसम सेब के अनुकूल था जबकि 6,500 फुट की ऊंचाई पर नहीं।  इस कारण गांव के सभी 400 किसानों के दावे नामंजूर कर दिए गए। किसानों ने इसकी शिकायत सरकारसे भी की पर कोई लाभ नहीं हुआ। किसानों का आरोप है कि सरकारी अफसरों का बर्ताव बहुत रुखा था। उन्होंने उन्हें अदालत में जाने को कहा जिसके लिए न तो किसानों के पास पैसा था और न ही समय।इसके बाद किसानों ने अगले साल से फसल बीमा न करवाने का फैसला किया। इससे कम से कम उनके वे पैसे तो बच गए जो वे प्रीमियम के तौर पर देते थे। हिमाचल प्रदेश के ज़्यादातर किसानों की इस मुद्दे परकमोवेश यही राय थी।

2018-19 में हिमाचल प्रदेश में फसल बीमा करने का काम एग्रीकल्चर एंश्योरेंस कंपनी ऑफ इंडिया को सौपा गया । इससे पूर्व एसबीआई, जनरल एंश्योरेंस, आईएफएफसीओ टोकियो, सीआईसीआईसीआईजनरल एंश्योरेंस, रिलांयस एंश्योरेंस कंपनियों ने भी राज्य में फसल बीमा किया था।

हिमाचल प्रदेश में लगभग आठ लाख किसान है जिनमें से 4.31 लाख के  ‘क्रेडिट लिंकस’ हैं। राज्य में 4,64,254 बागवान हैं । योजना के शुरू में सभी में भारी जोश था पर बाद में उन्होंने देखा कि किसानों के सिरपर बीमा कंपनियों मुनाफा कमा रही हैं।

2017-18 में योजना के तहत आने वाले किसालों की गिनती 2016-17 के मुकाबले लगभग 78 फीसद अधिक हो गई, पर 2018-19 में इसमें खासी गिरावट देखने को मिली। हालांकि कजऱ्दार किसानों या किसानक्रेडिट कार्ड रखने वालों को इस योजना के तहत बीमा पालिसी लेनी अनिवार्य है। पर फिर भी वे इससे छूट मांग रहे हैं। बैंक वालों का कहना है कि किसान इस योजना के तहत बीमा करवाने को तैयार नहीं हैं।जिन लोगों ने बीमा कवर लिया भी था वे भी इसे छोड़ रहे हैं। अधूरे मन से शुरू की गई योजना से किसान क्षुब्ध हैं।

‘तहलका’ के सूत्रों ने बताया कि राज्य में 62.62 लाख सेब के पेड़ों का बीमा किया गया है। केवल उन किसानों को इस का लाभ मिला है जो ‘बैंक पोर्टल’ पर ‘लोड’ किए जा चुके थे। पहाडी क्षेत्र में विभिन्नकठिनाईओं के कारण डाटा दर्ज करना काफी कठिन काम है। कई तरह की रूकावटें व ‘ंइंटरनेट’ की धीमी गति भी इस मामले को और जटिल बना देती है। इस कारण किसानों को ‘क्लेम’ मिलने में देरी होतीहै। सभी बैंकों को अपने ‘डाटा’ दर्ज करने होते हैं। इनमें से कुछ स्टाफ पूरी तरह प्रशिक्षित भी नहीं होता।

एचपीएमसी के उपाध्यक्ष प्रकाश ठाकुर ने बताया कि ओलावृष्टि के लिए किसान को अतिरिक्त प्रीमियम देना पड़ता है। पहाड़ी क्षेत्र में सेब के बगीचे 2000-3000 वर्ग फुट में फैले होते हैं। इनकी तुलना में निगरानीकरने वाले स्टेशन बहुत कम होते हैं । इस कारण वे उन सब पर नजऱ नहीं रख सकते जिनका बीमा हुआ होता है। वैसे भी वे ‘निगरानी स्टेशन’ अपनी सुविधा के अनुसार लगाते हैं। बीमा कंपनियों के अफसरों सेसंपर्क भी नहीं हो पाता। इस कारण जल्दी ही इस योजना की धार कुंद हो गई।

हिमाचल प्रदेश  चार मौसमी क्षेत्रों में बंटा है। पहला है शिवालिक हिल्स, दूसरा- मिड हिल्स, तीसरा-हाई हिल्स और चौथा- कोल्ड ड्राई ज़ोन। यहां की मुख्य फसलें हैं – सेब, गेंहू, जौ, आलू, मटर, काले चने, अदरक,बीनस, मक्की और सब्जियां। सेब की फसल आमतौर पर मिड, हाई और कोल्ड ड्राई ज़ोन  में होती है। शिवालिक हिल्स में गेंहू, मक्की, धान, चने और आलुओं की फसल होती है। यह क्षेत्र कुल राज्य का 30 फीसद है। मिड हिल्स 10 फीसद, हाई हिल्स 25 फीसद और कोल्ड ड्राई ज़ोन 35 फीसद है।

यहां देश के दूसरे प्रांतों की तरह ज़्यादातर किसान एक हैक्टेर से कम के मालिक हैं। 68.17 फीसद किसान इस वर्ग में आते हैं। छोटे किसान जो एक से दो हैक्टेर के मालिक हैं वे 18.7 फीसद हैं। इसके बाद दो सेचार हैक्टेर के मालिक नौ फीसद हैं। चार से 10 हैक्टेर ज़मीन रखने वाले 3.41 फीसद है जबकि बड़े ज़मीदार जिनके पास 10 हैक्टेर से ज़्यादा भूमि है वे केवल 0.48 फीसद हैं।

भाजपा को कांग्रेस से सावधान रहने की ज़रूरत क्यों?

कांग्रेस का उदय फिर से हो रहा है। हिंदी भाषी तीन राज्यों में पार्टी की जीत और 224 लोकसभा क्षेत्रों में कांग्रेस का दूसरे स्थान पर रहना भाजपा के लिए चिंता का विषय होना चाहिए। उस समयमोदी लहर के बावजूद जबकि भाजपा ने बड़ी सफलता हासिल की, ध्यान देने की बात है कि भाजपा को केवल 31 फीसद वोट मिले थे। 224 सीटों पर कांग्रेस दूसरे नंबर पर थी। इसमें कोई संदेहनहीं कि 11 अप्रैल से 19 मई 2019 तक चलने वाली चुनावी प्रक्रिया में कांग्रेस भाजपा से ज़्यादा पीछे नहीं बल्कि साथ-साथ चलेगी।

224 सीटों का गणित उन राज्यों पर आधारित है जहां 2014 में कांग्रेस ने टॉप दो स्थान हासिल किए और अभी भी मज़बूत होती जा रही है। गुजरात, कर्नाटक, केरल और मध्यप्रदेश समेत देश के10 बड़े राज्यों में जिनमे 224 संसदीय सीटें हैं, वहां 183 सीटों पर कांग्रेस पहले दो स्थानों पर थी। इसके अलावा 16 छोटे राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों जहां लोकसभा की 28 सीटें हैं वहां कांग्रेस 27में पहले दो स्थानों पर रही।  ध्यान रहे कि महाराष्ट्र और केरल में कांग्रेस का क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन था। 2014 के चुनावों में कांग्रेस ने केवल 44 सीटें जीती और 224 में वह दूसरे नंबर पररही। इस तरह 643 में से 268 सीटों पर उसका दावा बहुत मज़बूत है।

भाजपा नेताओं को इस बात की खुशी है कि 1984 के बाद पहली बार केंद्र में एक पार्टी के बहुमत वाली सरकार बनी और वह पार्टी है भाजपा। कांग्रेस ने आपातकाल के बाद 1977 में हुए चुनावोंमें भी इतनी बुरी हार नहीं खाई थी जो 2014 में खाई है। इस चुनाव में कांग्रेस को 44 सीटें और 19 फीसद मत मिले। हिंदी भाषी क्षेत्र में पार्टी केवल सात सीटें ही जीत सकी। जबकि 1977 में उसेइस क्षेत्र में 12 सीटें मिली थीं। उस समय कांग्रेस का मुकाबला समूचे विपक्ष को लेकर बनी पार्टी जनता पार्टी से था। 1977 में कांग्रेस दक्षिण भारत में खुद को बनाए रखने में सफल रही थी औरउसे 27 फीसद वोट मिले थे। 2014 में कांग्रेस को पूर्ण नुकसान हुआ। 2014 के चुनाव में 484 दलों ने चुनाव लड़ा जो कि 2009 की तुलना में 121 अधिक है। यह गिनती 2004 के चुनावों से तोदुगनी है।

भाजपा को समझना चाहिए कि वोट शेयर के मामले में 31 फीसद वोटों  साथ बहुमत लेना अब तक का सबसे कम आंकड़ा है। इसका अर्थ है जिन 66.4 फीसद लोगों ने मतदान किया उसका 31फीसद है या 1395 लाख वोटरों का। इस का यह मतलब भी है कि देश की मतदान अधिकार प्राप्त जनसंख्या का यह 17 फीसद है।

ध्यान रहे कि 2019 के चुनाव 2014 के चुनाव नहीं हैं जब ‘अच्छे दिन’ का नारा प्रभावी था और मनमोहन सिंह के खिलाफ 10 साल का सत्ता विरोधी रूझान था। यह चुनाव उस समय हो रहे हैं जबकांग्रेस हिंदी भाषी तीन बड़े राज्यों छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान में अपनी सरकार बना चुकी है। इसमें संदेह नहीं कि 2014 में उत्तरप्रदेश में भाजपा ने सभी को हैरान कर दिया था। यहांभाजपा ने 80 में से 71 सीटें जीती थी। बहुजन समाज पार्टी पहली बार यहां से एक भी सीट नहीं जीत पाई। यहां भाजपा का मतदान 17.5 फीसद से सीधा 42.34 फीसद पहुंच गया। जबकिकंाग्रेस 7.48 फीसद पर लुढक़ गई। उस समय बहुजन समाजपार्टी (बसपा) और समाजवादी पार्टी (एसपी) एक दूजे के खिलाफ खड़े थे, आज दोनों एक साथ हैं। इसके अलावा कांग्रेस में भीजान पड़ गई है।

राजनीतिक गणित भी कभी-कभी बहुत रोचक होता है। मिसाल के तौर पर हिंदी भाषी क्षेत्र में भाजपा ने 45 फीसद वोट लेकर 86 फीसद सीटें जीती जबकि कांग्रेस को 19.5 फीसद वोटों के साथतीन फीसद सीटें मिलीं। इस कारण गणित के नंबर काफी भ्रामक हो सकते हैं। इस कारण भाजपा को इस तर्क से सतर्क रहना चाहिए।

1720 लाख वोटों में से भाजपा को 31 फीसद या लगभग एक तिहाई वोट मिले। जबकि कांग्रेस को 19.3 फीसद मत मिले। देखें केवल 31 फीसद मतों का अर्थ है भाजपा की भारी जीत। 1999 मेंअटल बिहारी वाजपेयी को 866 लाख वोट मिले थे कांग्रेस से 170 लाख वोट कम। उसका वोट शेयर था 24 फीसद पर वह सरकार बनाने में सफल रही। एक बात यह भी देखी गई कि कांग्रेस केखिलाफ वोट स्विंग इतना ज़्यादा नहीं था जितना वोट शेयर भाजपा के हक में गया।

असल में ज़्यादा वोटों का मिलना चुनाव में सफलता की गारंटी नहीं है। उत्तरपद्रेश में बहुजन समाजपार्टी 19.6 फीसद वोट लेकर और तमिलनाडु में डीएमके  23.6 फीसद वोट लेकर एक भीसीट नहीं जीत सके। कांग्रेस की तुलना में भाजपा वोटों को सीटों में बदलने में बेहतर साबित हुई। भाजपा को एक सीट जीतने के लिए छह लाख से ज़्यादा वोटों की ज़रूरत रही जब कि कांग्रेसको एक सीट जीतने के लिए 24 लाख वोटों की ज़रूरत थी।

2009 में विजेता दल को उतने ही अतिरिक्त वोट मिले जितने का नुकसान कांग्रेस को हुआ। भाजपा ने अकेली पार्टी के तौर पर 282 सीटें जीती जोकि सर्वाधिक हैं। कांग्रेस ने 1991 में 244 और2009 में 206 सीटें जीतीं थी। भाजपा को जो सीटें मिली  हैं वे उसे पिछले चुनावों में मिली सीटों के योग से भी ज़्यादा है। भाजपा ने रिकार्ड सीटें जीती पर 1977 में जो 295 सीटें जनता पार्टी ने जीतीथी वह उससे पीछे रह गई।

2014 में भाजपा को सबसे बड़ी जीत उत्तरप्रदेश में मिली जाहां उसने 71 सीटें जीती। इससे पूर्व 1984 में कांग्रेस यहां 85 में से 83 सीटें जीतने में सफल रही थी। इसक अलावा भाजपा ने ओडीसामें अपना वोट शेयर 22 फीसद और पश्चिम बंगाल में 17 फीसद तक पहुंचा दिया। देश में केरल एकमात्र ऐसा बड़ा राज्य है जहां से भाजपा का कोई सांसद नहीं है। दूसरी ओर कांग्रेस का गुजरात,हिमाचल प्रदेश, झारखंड, दिल्ली, ओडीसा, राजस्थान  और तमिलनाडु से कोई सांसद नहीं है।

 जिन राज्यों में भाजपा का विकास हुआ वहां इसने खुद को और मज़बूत बना लिया। उसने कांग्रेस को गुजरात, राजस्थान से तो एक तरह बाहर कर दिया। तमिलनाडु और आंध्रप्रदेश के बीचकांग्रेस ने 37 सीटें खोई। ये वे दो राज्य हैं जहां 2009 में कांग्रेस ने काफी अच्छा किया था।

भाजपा के दो सहयोगियों शिवसेना और टीडीपी ने भी अच्छा प्रदर्शन किया पर पंजाब में अकाली दल विफल रहा। वह उसका स्थान आम आदमी पार्टी ने ले लिया। राज्य में कांग्रेस ने 13 में सेचार सीटें जीती। उधर 2017 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने आराम से अपनी सरकार बना ली।

अब कांग्रेस के लिए मुख्य मुकाबला 10 राज्यों में हैं। ये राज्य हैं – असाम, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, केरल, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब और राजस्थान। इन राज्यों में लोकसभा की543 में से 224 सीटें हैं। पिछले चुनाव में कांग्रेस ने यहां केवल 29 सीटें जीती थी। इन 10 राज्यों में महाराष्ट्र एक ऐसा राज्य है जहां कांग्रेस ने एनसीपी के साथ मिल कर चुनाव लड़ा और मुख्य शेयरअपने हिस्से लिया । कांग्रेस ने 48 में से 26 सीटों पर चुनाव लड़ा जबकि एनसीपी ने 22 सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े किए। सिक्किम को छोड़ कर कांग्रेस हर स्थान पर पहले दो में रही।

नौ राज्यों में कांग्रेस कमज़ोर है। इनमें उत्तरप्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल यहां क्षेत्रीय दल बढ़त पर है। इन राज्यों में 291 सीटें हैं जो लोकसभा की कुल सीटों के आधे से भी ज़्यादा है। यहां 2014 मेंकांग्रेस ने 10 सीटें जीती थी और 48 में दूसरा स्थान हासिल किया था। इन राज्यों में क्षेत्रीय दलों के हाथ में कमान है और यहां जाति आधारित राजनीति चलती है। यही कांग्रेस के लिए एक बड़ीचुनौती है। अब कांग्रेस के पास खोने को कुछ नहीं है, वह वैसे भी 44 सीटों पर बैठी हैं उधर भाजपा  का ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ का सपना कहीं सच होती नहीं दिखता बल्कि उसे कांग्रेस से सतर्करहने की ज़रूरत है। अकेले ‘राष्ट्रवाद’ या हवाई हमलों और सेना को महत्व देकर 2019 में मोदी की हवा बनती दिखाई नहीं देती। भाजपा को केवल मोदी के कद बुत का ही लाभ मिल सकता है।

बाढ़ को पछाड़ पटरी पर लौट आया केरल

जम्मू-कश्मीर के बडग़ाम जिले में 27 फऱवरी को हुए हैलीकॉप्टर एमआई 17 हादसे में शहीद हुए स्क्वाड्रन लीडर सिद्धार्थ वशिष्ठ ने पिछले वर्ष केरल में आई बाढ़ के दौरान बचाव अभियान में अहम भूमिका निभाईथी। सिद्धार्थ ने हज़ारों लोगों की जान बचाई थी। केन्द्रीय अद्र्धसैनिक बल, सेना, वायुसेना और नौसेना ने 14 जिलों के आठ लाख से ज़्यादा लोगों को बचाकर 8 हज़ार से ज़्यादा राहत शिविरों में पहुँचाया था।जिसके लिए स्क्वाड्रन लीडर सिद्धार्थ वशिष्ठ को इस वर्ष 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के अवसर पर सम्मानित भी किया गया था। सिद्धार्थ को चंडीगढ में सेना की एक टुकड़ी ने अंतिम श्रद्धांजलि दी। हरियाणासरकार ने अपने प्रदेश के इस वीर सपूत का नाम अमर रखने के लिए अंबाला जिले के हमीदपुर गाँव के सरकारी स्कूल का नाम बदलकर शहीद स्क्वाड्रन लीडर सिद्धार्थ वशिष्ठ राजकीय उच्च विद्यालय रख दियाहै। सिद्धार्थ इसी गाँव के रहने वाले थे।

 एक महीने से अधिक समय तक बाढ़ की मार झेल चुका ‘ईश्वर का अपना घर’ नाम से प्रसिद्ध केरल राज्य की यात्रा पर दूसरी बार जाने का मुझे अवसर मिला। इस बार की केरल यात्रा के दौरान मुझे कालीकट(कोषीकोड), पलक्कड, सुल्तानपट, अलाप्पुषा, कोल्लम, त्रिरुवंतपुरम के साथ साथ इडुक्की और त्रिशूर आदि क्षेत्रों में जाने का भी अवसर मिला। लगभग एक हज़ार किलोमीटर की इस यात्रा के दौरान सभी क्षेत्रोंको सडक़ मार्ग से कवर किया गया। इस यात्रा के दौरान एक बार भी ऐसा नहीं लगा कि हम उस राज्य की यात्रा कर रहे हैं। जहां छह महीने पहले आई बाढ़ के कारण 384 लोग मारे गए थे, 10 लाख से ज्यादा लोगविस्थापित हुए, 50 हजार मकान पूरी तरह से तबाह हो गए थे। इस आपदा में 80 हज़ार किलोमीटर सडक़ बह गई और 39 पुल पूरी तरह से ढह गए थे। जबकि पशु पक्षियों को हुए नुक्सान का कोई अंदाज़ा लगानाभी संभव नहीं हैं। उस समय राज्य के सभी जिलों को हाई एलर्ट पर रखा गया था।

स्थानीय लोगों के सहयोग और केरल की माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार के युद्ध स्तर पर चलाए गए राहत व बचाव कार्यों और लोगों के आपसी सहयोग के कारण छह माह बाद अब यह अहसास ही नहींहोता कि केरल वही राज्य है, जिसने मात्र कुछ माह पहले विकराल बाढ़ का सामना किया था। यात्रा के दौरान कहीं पर भी बह गई सडक़ नजऱ नहीं आई। लगभग सभी सडक़ों का पुन निर्माण कर लिया गया।कुछ स्थानों पर अभी भी सडक़ निर्माण चल रहा है, परन्तु वह कोई बड़ा मुद्दा नहीं है। ऐसे ही कुछ स्थानों पर पुल निर्माण का कार्य चल रहा है, परन्तु जब तक नए पुल तैयार नहीं हो जाते तब तक अस्थायी पुलों कानिर्माण कर दिया गया है। यात्रा के दौरान कोई भी मार्ग अवरुद्ध या फिर किसी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा।

इसका मुख्य कारण राज्य की लाई$फ लाईन माने जाने वाले पर्यटन उद्योग को पहुँचने वाले नुक्सान से बचाना है। वाम सरकार ने ‘ईश्वर का अपना घर’ में आने वाले विदेशी पर्यटकों की संख्या को वर्ष 2018 केमु$काबले 2020 में दोगुनी करने का लक्ष्य रखा है। वर्ष 2017 में घरेलू पर्यटकों की वृद्धि दर 11.3 फीसद थी, जिसे बढ़ाकर वर्ष 2020 तक 50 प्रतिशत करने का लक्ष्य निधार्रित किया गया है। वर्ष 2017 में 1.46 करोड़ घरेलू, जबकि 10.91 लाख विदेशी पर्यटक केरल घूमने आए थे। केरल एक मात्र ऐसा राज्य हैं, यहाँ चार अंतराष्ट्रीय हवाई अड्डे हैं। केरल, गोवा के बाद देश में दूसरे नंबर का पर्यटन स्थल हैं, यहां बड़ी संख्यामें पर्यटक आते हैं।

इडुक्की में मात्र एक घर को छोड़ कर शेष ऐसा कोई घर नज़र नहीं आया, जोकि इस बाढ़ की भेंट चढ़ गए थे। यह घर भी मात्र इस लिए मरम्मत से मह$फूज़ रह गया, क्योंकि यहाँ रहने वाले परिवार की अभी तककोई जानकारी नहीं मिल पाई है। कहा यह जा रहा है कि जल्द ही इस घर को समतल कर दिया जाएगा। यहाँ पर ज़्यादातर घरों की मरम्मत है। लोगों ने बाढ़ से जुड़ी यादों को भुलाने के लिए रंग रोगन की कूचीफेर दी है। इडुक्की और त्रिशूर वे क्षेत्र हैं, जिनमें अगस्त में आई बाढ़ के दौरान बड़े पैमाने पर विनाश हुआ था, जिसमें 59 लोग मारे गए थे और 11,000 हेक्टेयर से अधिक कृषि भूमि नष्ट हो गई थी। अत्याधिक वर्षाव बाढ़ के कारण राज्य के इतिहास में पहली बार 42 में से 35 छोटे बड़े बाँधों के गेट खोल दिए गए। इंडुक्की में स्थित बाँध के भी सभी पाँच द्वारों को खोल दिया गया था। जिस कारण ये पर्वतीय जिले राज्य के अन्यक्षेत्रों से पूरी तरह कट गए थे। केरल के श्रम और कौशल मंत्री टी पी रामाकृष्णन ने बताया कि बाढ में हुए नुकसान के बाद केरल की लाईफ लाईन को एक बार फिर पटरी पर लाने में असम, बिहार और उत्तरप्रदेश से आए मजदूरों ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

इडुक्की पहाड़ी जि़ला हैं, मुन्नार यहाँ का प्रमुख पर्वतीय पर्यटन स्थल है। जोकि समुद्र तल से 1600 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। इसे केरल का स्वर्ग भी कहा जाता है। जि़ंदगी की भागदौड़ और प्रदूषण से दूर यहजगह लोगों को अपनी ओर खींचती है। यहाँ प्रत्येक वर्ष लाखों की संख्या में देशी और विदेशी प्रयर्टक आते हैं। 12 हज़ार हेक्टेयर में फैले चाय के बड़े-बड़े ख़ूबसूरत बा$गान यहां की $खासियत हैं। दक्षिण भारतकी अधिकतर ज़ाय$केदार चाय इन्हीं बा$गानों से आती है। इस क्षेत्र में पहाड़ को देख कर ऐसा प्रतीक होता है जैसे कि प्रकृति ने हरे रंग की $खूबसूरत चादर ओढ़ रखी हो। यहाँ स्थित चाय के बड़े बड़े बाग़ भीबाढ़ की चपेट में आ गए थे। कहा यह जाता है कि चाय का पौधा कभी मरता नहीं, एक बार लगाने पर अनगिनत वर्षों तक लगातार फल देता है, परन्तु इस बाढ़ की चपेट में आने से अनगिनत पौधे भी मर गए। जिसकारण यहाँ के $खूबसूरत पहाड़ भी गंजे नज़र आने लगे, परन्तु यहाँ के लोगों की मेहनत से यहाँ हरियाली वापस आई है। बड़ी संख्या में यहाँ नए पौधे लगाए गए हैं। बडे ही व्यवस्थित तरीके से लगाए गए इन छोटेछोटे नए पौधों को देख कर यह अहसास होता है कि यहाँ पहले कभी हरे भरे $खूबसूरत बा$ग हुआ करते थे।

इस बाढ़ का एक बदनुमा चेहरा भी सामने आया है। उत्तर भारत की तरह ही केरल में भी किसानों द्वारा आत्महत्या करने की कई घटनाएँ सामने आई हैं, परन्तु ये सभी घटनाएँ बाढ़ के बाद सामने आई हैं। पहाड़ीजिले इडुक्की में किसानों के आत्महत्या करने का सिलसिला जारी है। जहां बीते दो महीने में फसल बर्बाद होने या आजीविका को हुए नुकसान की वजह से कजऱ् के चलते आठ लोग आत्महत्या कर चुके हैं।आत्महत्या करने वाले किसानों की फेहरिस्त में नया नाम जेम्स (52) का है जिन्होंने 26 फरवरी को मौत को गले लगा लिया। जेम्स इडुक्की जिले में अदिमाली के रहने वाले थे। जेम्स के रिश्तेदारों ने कहा कि उनकीकाली मिर्च की फसल बाढ़ की वजह से बर्बाद हो गई थी। वह बैंक से लिये कजऱ् को नहीं चुका पाए थे। उन्होंने कहा कि कई बैंकों से कृषि कजऱ् लेने के अलावा जेम्स ने अपने बच्चों के लिये शिक्षा ऋण भी ले रखाथा। जेम्स के अलावा पहाड़ी जि़ले में वर्षों से अलग अलग कृषि गतिविधियों में लगे संतोष, सहदेवन, जॉनी मथाई, राजू, श्रीकुमार, राजन और सुरेंद्रन ने बीते दो महीने में बाढ़ के बाद फसल बर्बाद होने की चिंताऔर बढ़ते बैंक कजऱ् के चलते आत्महत्या कर ली। बताया गया है कि उनमें से कुछ को कजऱ् चुकाने में नाकाम रहने की वजह से संबंधित बैंकों की ओर से वसूली नोटिस भी मिले थे।

दूसरी ओर त्रिशूर जि़ले के माला के रहने वाले 49 वर्षीय किसान जीजो पॉल ने भी एक मार्च को अपने घर में फांसी लगाकर आत्महत्या की। त्रिशुर जिले में अगस्त में आई बाढ़ के बाद आत्महत्या का यह पहलामामला है। जिसके बाद राज्य सरकार ने तत्काल राहत संबंधी ज़रूरी कदम उठाए हुए राज्य के मुख्यमंत्री पी. विजयन ने किसानों सभी तरह के कजऱ्ों की वसूली पर 31 दिसंबर तक रोक लगा दी है। इन कर्जोंमें किसानों द्वारा सार्वजनिक, वाणिज्यिक और सहकारी बैंकों से लिए गए सभी प्रकार के कर्ज शामिल हैं। राज्य कर्ज राहत आयोग द्वारा बकाया को लेकर दी जाने वाली मदद को 50 हजार रुपये से बढ़ाकर दोलाख किया गया है। फसल नष्ट होने के कारण मुश्किल झेलने वाले किसानों के लिए तत्काल प्रभाव से 85 करोड़ रुपये तत्काल जारी करने का निर्णय लिया गया। विजयन ने कहा कि मुख्यमंत्री राहत कोष से 54 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं।

विजयन का कहना है कि अब जिंदगी पटरी पर लौट आई है। लोग इस आपदा को एक बुरा सपना मानकर इसे भुलाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने इस आपदा से उपजी परिस्थितियों को नया केरल बनाने कीचुनौती के तौर पर लिया। उन्होंने कहा कि बाढ़ की वभत्सा झेल कर लौटे लोगों में एक चीज बदली, वह है लोग आगे बढक़र एक दूसरे की मदद कर रहे थे। मदद से कोई पीछे नहीं हट रहा था। घर का जो भीसामान खराब हो गया था, उसे केरल की किसी बड़ी-छोटी दुकान पर छूट के साथ मरम्मत किया गया। केरल के जो लोग राज्य या देश से बाहर जाकर बस गए हैं, वो भी किसी न किसी रूप में मदद भेज रहे थे।सभी के मिले जुले प्रयास से ही नए केरल का निर्माण संभव हुआ है। उन्होंने कहा, हालाँकि अभी भी बहुत कुछ करना शेष हैं, परन्तु जिस तेज़ी से लोगों के आपसी सहयोग से सब कुछ संभव हुआ है, उस कारणलगता है कि शेष रह गया काम भी जल्द सम्पन्न हो जाएगा। उन्होंने इस बात पर खुशी व्यक्त की कि केरल की लाईफ लाईन माने जाने वाले देशी विदेशी पर्यटक वापस आ गए है।

मोदी कहो, संसद में आओ

जम्मूकश्मीर के बडग़ाम जिले में 27 फऱवरी को हुए हैलीकॉप्टर एमआई 17 हादसे में शहीद हुए स्क्वाड्रन लीडर सिद्धार्थ वशिष्ठ ने पिछले वर्ष केरल में आई बाढ़ के दौरान बचाव अभियान में अहम भूमिका निभाईथी। सिद्धार्थ ने हज़ारों लोगों की जान बचाई थी। केन्द्रीय अद्र्धसैनिक बल, सेना, वायुसेना और नौसेना ने 14 जिलों के आठ लाख से ज़्यादा लोगों को बचाकर 8 हज़ार से ज़्यादा राहत शिविरों में पहुँचाया था।जिसके लिए स्क्वाड्रन लीडर सिद्धार्थ वशिष्ठ को इस वर्ष 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के अवसर पर सम्मानित भी किया गया था। सिद्धार्थ को चंडीगढ में सेना की एक टुकड़ी ने अंतिम श्रद्धांजलि दी। हरियाणासरकार ने अपने प्रदेश के इस वीर सपूत का नाम अमर रखने के लिए अंबाला जिले के हमीदपुर गाँव के सरकारी स्कूल का नाम बदलकर शहीद स्क्वाड्रन लीडर सिद्धार्थ वशिष्ठ राजकीय उच्च विद्यालय रख दियाहै। सिद्धार्थ इसी गाँव के रहने वाले थे।

 एक महीने से अधिक समय तक बाढ़ की मार झेल चुका ‘ईश्वर का अपना घर’ नाम से प्रसिद्ध केरल राज्य की यात्रा पर दूसरी बार जाने का मुझे अवसर मिला। इस बार की केरल यात्रा के दौरान मुझे कालीकट(कोषीकोड), पलक्कड, सुल्तानपट, अलाप्पुषा, कोल्लम, त्रिरुवंतपुरम के साथ साथ इडुक्की और त्रिशूर आदि क्षेत्रों में जाने का भी अवसर मिला। लगभग एक हज़ार किलोमीटर की इस यात्रा के दौरान सभी क्षेत्रोंको सडक़ मार्ग से कवर किया गया। इस यात्रा के दौरान एक बार भी ऐसा नहीं लगा कि हम उस राज्य की यात्रा कर रहे हैं। जहां छह महीने पहले आई बाढ़ के कारण 384 लोग मारे गए थे, 10 लाख से ज्यादा लोगविस्थापित हुए, 50 हजार मकान पूरी तरह से तबाह हो गए थे। इस आपदा में 80 हज़ार किलोमीटर सडक़ बह गई और 39 पुल पूरी तरह से ढह गए थे। जबकि पशु पक्षियों को हुए नुक्सान का कोई अंदाज़ा लगानाभी संभव नहीं हैं। उस समय राज्य के सभी जिलों को हाई एलर्ट पर रखा गया था।

स्थानीय लोगों के सहयोग और केरल की माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार के युद्ध स्तर पर चलाए गए राहत व बचाव कार्यों और लोगों के आपसी सहयोग के कारण छह माह बाद अब यह अहसास ही नहींहोता कि केरल वही राज्य है, जिसने मात्र कुछ माह पहले विकराल बाढ़ का सामना किया था। यात्रा के दौरान कहीं पर भी बह गई सडक़ नजऱ नहीं आई। लगभग सभी सडक़ों का पुन निर्माण कर लिया गया।कुछ स्थानों पर अभी भी सडक़ निर्माण चल रहा है, परन्तु वह कोई बड़ा मुद्दा नहीं है। ऐसे ही कुछ स्थानों पर पुल निर्माण का कार्य चल रहा है, परन्तु जब तक नए पुल तैयार नहीं हो जाते तब तक अस्थायी पुलों कानिर्माण कर दिया गया है। यात्रा के दौरान कोई भी मार्ग अवरुद्ध या फिर किसी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा।

इसका मुख्य कारण राज्य की लाई$फ लाईन माने जाने वाले पर्यटन उद्योग को पहुँचने वाले नुक्सान से बचाना है। वाम सरकार ने ‘ईश्वर का अपना घर’ में आने वाले विदेशी पर्यटकों की संख्या को वर्ष 2018 केमु$काबले 2020 में दोगुनी करने का लक्ष्य रखा है। वर्ष 2017 में घरेलू पर्यटकों की वृद्धि दर 11.3 फीसद थी, जिसे बढ़ाकर वर्ष 2020 तक 50 प्रतिशत करने का लक्ष्य निधार्रित किया गया है। वर्ष 2017 में 1.46 करोड़ घरेलू, जबकि 10.91 लाख विदेशी पर्यटक केरल घूमने आए थे। केरल एक मात्र ऐसा राज्य हैं, यहाँ चार अंतराष्ट्रीय हवाई अड्डे हैं। केरल, गोवा के बाद देश में दूसरे नंबर का पर्यटन स्थल हैं, यहां बड़ी संख्यामें पर्यटक आते हैं।

इडुक्की में मात्र एक घर को छोड़ कर शेष ऐसा कोई घर नज़र नहीं आया, जोकि इस बाढ़ की भेंट चढ़ गए थे। यह घर भी मात्र इस लिए मरम्मत से मह$फूज़ रह गया, क्योंकि यहाँ रहने वाले परिवार की अभी तककोई जानकारी नहीं मिल पाई है। कहा यह जा रहा है कि जल्द ही इस घर को समतल कर दिया जाएगा। यहाँ पर ज़्यादातर घरों की मरम्मत है। लोगों ने बाढ़ से जुड़ी यादों को भुलाने के लिए रंग रोगन की कूचीफेर दी है। इडुक्की और त्रिशूर वे क्षेत्र हैं, जिनमें अगस्त में आई बाढ़ के दौरान बड़े पैमाने पर विनाश हुआ था, जिसमें 59 लोग मारे गए थे और 11,000 हेक्टेयर से अधिक कृषि भूमि नष्ट हो गई थी। अत्याधिक वर्षाव बाढ़ के कारण राज्य के इतिहास में पहली बार 42 में से 35 छोटे बड़े बाँधों के गेट खोल दिए गए। इंडुक्की में स्थित बाँध के भी सभी पाँच द्वारों को खोल दिया गया था। जिस कारण ये पर्वतीय जिले राज्य के अन्यक्षेत्रों से पूरी तरह कट गए थे। केरल के श्रम और कौशल मंत्री टी पी रामाकृष्णन ने बताया कि बाढ में हुए नुकसान के बाद केरल की लाईफ लाईन को एक बार फिर पटरी पर लाने में असम, बिहार और उत्तरप्रदेश से आए मजदूरों ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

इडुक्की पहाड़ी जि़ला हैं, मुन्नार यहाँ का प्रमुख पर्वतीय पर्यटन स्थल है। जोकि समुद्र तल से 1600 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। इसे केरल का स्वर्ग भी कहा जाता है। जि़ंदगी की भागदौड़ और प्रदूषण से दूर यहजगह लोगों को अपनी ओर खींचती है। यहाँ प्रत्येक वर्ष लाखों की संख्या में देशी और विदेशी प्रयर्टक आते हैं। 12 हज़ार हेक्टेयर में फैले चाय के बड़े-बड़े ख़ूबसूरत बा$गान यहां की $खासियत हैं। दक्षिण भारतकी अधिकतर ज़ाय$केदार चाय इन्हीं बा$गानों से आती है। इस क्षेत्र में पहाड़ को देख कर ऐसा प्रतीक होता है जैसे कि प्रकृति ने हरे रंग की $खूबसूरत चादर ओढ़ रखी हो। यहाँ स्थित चाय के बड़े बड़े बाग़ भीबाढ़ की चपेट में आ गए थे। कहा यह जाता है कि चाय का पौधा कभी मरता नहीं, एक बार लगाने पर अनगिनत वर्षों तक लगातार फल देता है, परन्तु इस बाढ़ की चपेट में आने से अनगिनत पौधे भी मर गए। जिसकारण यहाँ के $खूबसूरत पहाड़ भी गंजे नज़र आने लगे, परन्तु यहाँ के लोगों की मेहनत से यहाँ हरियाली वापस आई है। बड़ी संख्या में यहाँ नए पौधे लगाए गए हैं। बडे ही व्यवस्थित तरीके से लगाए गए इन छोटेछोटे नए पौधों को देख कर यह अहसास होता है कि यहाँ पहले कभी हरे भरे $खूबसूरत बा$ग हुआ करते थे।

इस बाढ़ का एक बदनुमा चेहरा भी सामने आया है। उत्तर भारत की तरह ही केरल में भी किसानों द्वारा आत्महत्या करने की कई घटनाएँ सामने आई हैं, परन्तु ये सभी घटनाएँ बाढ़ के बाद सामने आई हैं। पहाड़ीजिले इडुक्की में किसानों के आत्महत्या करने का सिलसिला जारी है। जहां बीते दो महीने में फसल बर्बाद होने या आजीविका को हुए नुकसान की वजह से कजऱ् के चलते आठ लोग आत्महत्या कर चुके हैं।आत्महत्या करने वाले किसानों की फेहरिस्त में नया नाम जेम्स (52) का है जिन्होंने 26 फरवरी को मौत को गले लगा लिया। जेम्स इडुक्की जिले में अदिमाली के रहने वाले थे। जेम्स के रिश्तेदारों ने कहा कि उनकीकाली मिर्च की फसल बाढ़ की वजह से बर्बाद हो गई थी। वह बैंक से लिये कजऱ् को नहीं चुका पाए थे। उन्होंने कहा कि कई बैंकों से कृषि कजऱ् लेने के अलावा जेम्स ने अपने बच्चों के लिये शिक्षा ऋण भी ले रखाथा। जेम्स के अलावा पहाड़ी जि़ले में वर्षों से अलग अलग कृषि गतिविधियों में लगे संतोष, सहदेवन, जॉनी मथाई, राजू, श्रीकुमार, राजन और सुरेंद्रन ने बीते दो महीने में बाढ़ के बाद फसल बर्बाद होने की चिंताऔर बढ़ते बैंक कजऱ् के चलते आत्महत्या कर ली। बताया गया है कि उनमें से कुछ को कजऱ् चुकाने में नाकाम रहने की वजह से संबंधित बैंकों की ओर से वसूली नोटिस भी मिले थे।

दूसरी ओर त्रिशूर जि़ले के माला के रहने वाले 49 वर्षीय किसान जीजो पॉल ने भी एक मार्च को अपने घर में फांसी लगाकर आत्महत्या की। त्रिशुर जिले में अगस्त में आई बाढ़ के बाद आत्महत्या का यह पहलामामला है। जिसके बाद राज्य सरकार ने तत्काल राहत संबंधी ज़रूरी कदम उठाए हुए राज्य के मुख्यमंत्री पी. विजयन ने किसानों सभी तरह के कजऱ्ों की वसूली पर 31 दिसंबर तक रोक लगा दी है। इन कर्जोंमें किसानों द्वारा सार्वजनिक, वाणिज्यिक और सहकारी बैंकों से लिए गए सभी प्रकार के कर्ज शामिल हैं। राज्य कर्ज राहत आयोग द्वारा बकाया को लेकर दी जाने वाली मदद को 50 हजार रुपये से बढ़ाकर दोलाख किया गया है। फसल नष्ट होने के कारण मुश्किल झेलने वाले किसानों के लिए तत्काल प्रभाव से 85 करोड़ रुपये तत्काल जारी करने का निर्णय लिया गया। विजयन ने कहा कि मुख्यमंत्री राहत कोष से 54 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं।

विजयन का कहना है कि अब जिंदगी पटरी पर लौट आई है। लोग इस आपदा को एक बुरा सपना मानकर इसे भुलाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने इस आपदा से उपजी परिस्थितियों को नया केरल बनाने कीचुनौती के तौर पर लिया। उन्होंने कहा कि बाढ़ की वभत्सा झेल कर लौटे लोगों में एक चीज बदली, वह है लोग आगे बढक़र एक दूसरे की मदद कर रहे थे। मदद से कोई पीछे नहीं हट रहा था। घर का जो भीसामान खराब हो गया था, उसे केरल की किसी बड़ी-छोटी दुकान पर छूट के साथ मरम्मत किया गया। केरल के जो लोग राज्य या देश से बाहर जाकर बस गए हैं, वो भी किसी न किसी रूप में मदद भेज रहे थे।सभी के मिले जुले प्रयास से ही नए केरल का निर्माण संभव हुआ है। उन्होंने कहा, हालाँकि अभी भी बहुत कुछ करना शेष हैं, परन्तु जिस तेज़ी से लोगों के आपसी सहयोग से सब कुछ संभव हुआ है, उस कारणलगता है कि शेष रह गया काम भी जल्द सम्पन्न हो जाएगा। उन्होंने इस बात पर खुशी व्यक्त की कि केरल की लाईफ लाईन माने जाने वाले देशी विदेशी पर्यटक वापस आ गए है।

कांगे्रस के लिए बहुत कठिन है डगर उत्तराखंड की

देश में 17वीं लोकसभा के लिए आम चुनावों की घोषणा के साथ ही उत्तराखंड में चुनावी हलचल ने जोर पकड़ लिया है। केंद्र और राज्य में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के लिए उत्तराखंड में चुनौतीपूर्ण डगर तो जरूर है लेकिन कांग्रेस के आपसी कलह और टांग खिंचाई के मौहोल से भाजपा ने भी काफी राहत की सांस ली है। इस बात का भी भाजपा को खासा आभास और एहसास है कि एंटी इनकंबेंसी फैक्टर(सत्ता विरोधी लहर) की संभावना को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।

उत्तराखंड में पांच लोकसभा सीटों पर वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी ही काबिज है। प्रदेश विधानसभा में भी 70 में से 57 भाजपा के ही विधायक हैं कांग्रेस के कुल 11 और दो निर्दलीय विधायक है। स्थानीय निकायों में भी भाजपा की अच्छी स्थिति है। पार्टी के प्रदेश नेतृत्व को इस पूरे सूरते हाल में अपनी पांच लोकसभा सीटों को बरकरार रखने में कोई संशय नहीं दिखाई दे रहा है। उधर कांग्रेस के पास प्रदेश में बड़े चेहरों के नाम पर ले देकर सिर्फ हरीश रावत ही हैं। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को उत्तराखंड के नेताओं में जैसे डॉ इंदिरा हृदयेश, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह और पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष किशोर उपाध्याय पहले ही नहीं पचा पा रहे थे कि कांग्रेस हाईकमान ने हरीश रावत की पार्टी में राष्ट्रीय महासचिव के पद पर ताजपोशी करके यह साफ संदेश दे दिया की काबलियत को किसी आवाज से नहीं दबाया जा सकता। इसमें कोई दो राय नहीं कि हरीश रावत को आज भाजपा के अलावा और कई मोर्चों पर अकेले ही जूझना पड़ रहा है। बावजूद इसके हरीश रावत एक ज़मीनी जनाधार वाले नेता हंै फिर भी सूबे में कांग्रेस के ही कुछ नेताओं को उनसे अजीब सा अलगाव है। कड़वी असलियत यह भी है कि सूबे में दूसरी पंक्ति के नेताओं जैसे डॉ इंदिरा हृदयेश, प्रीतम सिंह और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय को आज भी हरीश रावत फूटी आंख नहीं भाते। कांग्रेसियों के की आपसी खींचतान से मतदाता भी पशोपेश में है। एक तो सूबे की पांचों सीटों पर पहले ही भाजपा का पलड़ा भारी है, दूसरा प्रदेश विधानसभा में 81 फीसद के बहुमत के साथ भाजपा के 57 विधायक विराजमान हैं। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के नेतृत्व वाली भाजपा की सरकार में हैवीवेट नेता कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज और कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत पार्टी के अग्रणी नेताओं में हैं। पौड़ी, टिहरी, हरिद्वार, अल्मोड़ा और नैनीताल लोकसभा सीटों पर सिर्फ पौड़ी को छोड़कर शेष चारों सीटों पर पार्टी के प्रत्याशी यथावत रहेंगे। पौड़ी से भाजपा इस बार शौर्य डोभाल को अपना प्रत्याशी बनाने का मन बना चुकी है। शौर्य राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के पुत्र हैं । अजीत डोभाल आज की स्थिति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सबसे विश्वासपात्रों में से एक है। पौड़ी सीट से निवर्तमान सांसद मेजर जनरल भुवन चंद खंडूरी स्वास्थ्य कारणों की वजह से चुनाव नहीं लड़ेंगे।

 महीने भर से कम समय के भीतर उत्तराखंड में लोकसभा के पहले चरण का मतदान 11 अप्रैल को होना है। मतदाता इस बार खामोश है। मतदाता इस बात को गहनता से टटोलने की कोशिश करेगा कि नेताओं के चुनावी वादों की हकीकत क्या है। भाजपा के पास मोदी लहर, पाकिस्तान में एयर सर्जिकल स्ट्राइक और राम मंदिर जैसे राष्ट्रीय मुद्दों के अलावा उत्तराखंड में स्थिर सरकार के जरिये चौमुखी विकास की बदौलत वोट मांगने का बहाना है। साथ ही भाजपा शहीदों के परिवारों को लेकर भी बहुत संवेदनशील है। अभी हाल ही में चार मार्च को रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने राजधानी देहरादून में शहीदों के परिजनों को सम्मानित किया। समारोह में रक्षा मंत्री ने स्वयं प्रत्येक शहीद के परिवार के सदस्य को शॉल और गुलदस्ता भेंट करने के बाद बकायदा उनके पैर भी छुए। भाजपा के विरोधियों और आम लोगों ने इसे भले ही चुनावी ‘स्टंट’ समझा हो लेकिन उस सिपाही की विधवा या मां के लिए इससे बड़ा और कोई सम्मान नहीं हो सकता था कि देश की रक्षा मंत्री ने उनके पांव छूकर उनके पुत्र या पति की शहादत को यहां आकर सलाम किया। उत्तराखंड में सैन्य सेवाओं में जाना दशकों पुरानी परंपरा रही है। यहां के फौजियों के वोट और बैलट वोट किसी भी प्रत्याशी की जीत हार में एक अहम भूमिका अदा करते हैं। कांग्रेस कार्यकाल की तुलना में बेशक भाजपा के समय में शहादतों की संख्या ज्यादा रही है लेकिन बावजूद इसके आम राज्यवासी पर मोदी का जादू बरकरार है।

कांग्रेस के पास पूरे चुनावी महाकुंभ में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के अलावा ऐसा कोई और बड़ा चेहरा नहीं है जो उत्तराखंड में भाजपा की भगवा ब्रिगेड का मुकाबला कर सके। स्वास्थ्य कारणों से सोनिया गांधी की इन चुनावी सभाओं में कांग्रेस को कमी जरूर खलेगी। राहुल और प्रियंका के सामने चुनौतियां इसलिए ज्यादा बढ़ गई हैं क्योंकि मुस्लिम मतदाता जो परंपरागत कांग्रेस के वोट बैंक का हिस्सा हुआ करता था वह बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी की सक्रियता और गठजोड़ से पशोपेश में है। कांग्रेस भी उत्तराखंड में इस फैक्टर से खासी चिंतित है। उत्तराखंड राज्य गठन के पश्चात 2000 से ही बसपा का राज्य की विधानसभा में प्रतिनिधित्व रहा है। पहली विधानसभा में तो बसपा के सात विधायक थे। बसपा का राज्य में एक अपना जनाधार बरकरार है। कांग्रेस के सामने इस कारण से भी मुस्लिम वोटों का बंटवारा बड़ी चिंता का विषय बना हुआ है। हरिद्वार और नैनीताल उधमसिंह नगर में बसपा को काफी उम्मीदें हैं। इन क्षेत्रों में मायावती के प्रति मतदाताओं के एक वर्ग का बड़ा रुझान है। कांग्रेस को केवल एंटी इनकंबेंसी का फायदा मिल सकता है बशर्ते सूबे में इनके नेता अंतरकलह को शांत करवाने में कामयाब हो सकें। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनावों में करारी हार के बाद भी कांग्रेस ने न तो इस पर गहराई से आत्मचिंतन किया और न ही ऐसी रणनीति बनाई जिससे स्थानीय मुद्दों के जरिए ही सही, अपनी मौजूदगी का एहसास मतदाताओं को करा सकें। अपने अंतरकलह में लीन रही कांग्रेस के सामने भाजपा लगातार मजबूत होती चली गई ।नतीजा यह रहा कि आज भाजपा के पास चुनावी चेहरे भी हैं। आपसी खींचतान भी कम है और संख्या बल भी पर्याप्त है। बहरहाल कांग्रेस के समक्ष अगले चंद दिनों में सबसे बड़ी चुनौती प्रत्याशियों का चयन है जिसके बाद ही चुनावी तस्वीर पूरी तरह से साफ हो पाएगी।

‘नो बैंक चार्जेज’ पर छिड़ा अभियान

जब इंदिरा गांधी भारत की प्रधानमंत्री थीं उस वक्त भारत के बैंक निजी पूंजीपतियों के हाथों में थे और जो पैसा जनता जमा करती थी उस पैसे का इस्तेमाल वे अपने हित और पूंजी बढ़ाने के लिए करते थे। कई बार बैंक अपने को दिवालिया घोषित कर जनता के पैसों को हड़प भी लेते थे। दूसरी ओर सरकार को योजनागत विकास में निजी बैंक मदद करने से कतराते थे, जिसकी वजह से सरकार को सामाजिक और आर्थिक कल्याण की योजनाओं को चलाने में बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। इस चुनौती से निपटने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरागांधी ने 1969 और 1980 में सभी प्रमुख बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया ताकि सभी बैंकों में जमा पैसे का समय पर सामाजिक कल्याण के लिए इस्तेमाल किया जा सके और निजी वर्चस्व को समाप्त करते हुए सरकार की प्राथमिकताओं के आधार पर इसकी पूंजी का इस्तेमाल और निवेश किया जा सके। एक हद तक सरकार इस लक्ष्य को पाने में सफल रही और बाकी लक्ष्यों के लिए प्रयास किया जाना था। ऐसे ही समय में सरकार ने ‘आर्थिक सुधार’ के एजेंडे को स्वीकार कर लिया और उसके लिए बैंकों के दरवाजे खोल दिए।

एक समय लोक-कल्याणकारी सरकार ने जनता को निजी साहूकारों के बैंकों से निजात दिलाने की पहल की थी, आज की चुनी हुई सरकारें ऐसे कानूनी ढांचे का निर्माण कर नागरिकों को बैंकों में पैसा जमा करने को मजबूर कर रही हैं। दूसरी तरफ जनता का पैसा पूंजीपति लूटते रहें, इसके लिए बैंकों को कानूनी कवच भी दे दिया गया है।

भारत में कार्यरत सरकारी और निजी बैंक जमाधारकों को क्या सुविधा देंगे और उसके बदले में कितना और कितनी अवधि में सेवा शुल्क लेंगे या जमाधारकों को मुनाफा देंगे इसके लिए सरकार ने भारतीय रिजर्ब बैंक को नियामक के रूप में अधिकार दिया हुआ है और उसके अनुपालन के लिए भी कई नियामक संस्थाएं काम करती हैं। 1999 तक भारतीय बैंक संघ सेवा-शुल्क का निर्धारण करता था जिसे समाप्त कर सेवा-शुल्क के निर्धारण के लिए अलग-अलग बैंकों को स्वतंत्र शक्ति दे दी गई।

अब सेवा शुल्क-अलग-अलग बैंक अपने-अपने बोर्ड की मंजूरी के साथ तय करते हैं। इस संबंध में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया का निर्देश सिर्फ यह कहता है कि किसी भी सेवा पर शुल्क उस सेवा को प्रदान करने की औसत लागत के अनुरूप होना चाहिए। बचत बैंक खातों में न्यूनतम जमा राशि न रखने पर लगने वाले दण्ड-प्रभार के संबंध में आरबीआई ने पहली जुलाई 2015 को दिशा-निर्देश जारी किए, जहां उसने बैंकों से कहा कि वे दण्ड-प्रभारों को तार्किक और न्यूनतम राशि से जितनी राशि कम है उसके अनुपात में रखें। आरबीआई ने नीतियों में जिस तरह के लगातार बदलाव किए उस के कारण भी बैंकों के सेवा-शुल्क में तीव्र वृद्धि हुई है।

बचत खाता धारकों के ऊपर लगाए गए बैंक-शुल्क उन गऱीबों को सबसे ज्यादा प्रभावित करते हैं जिन्होंने बैंकों की सेवाओं को शायद झिझकते हुए स्वीकार किया है और बैंकिंग प्रणाली के बारे में अधिक जानकारी नहीं रखते हैं। एक ओर मनरेगा मजदूरी, एलपीजी सब्सिडी, पेंशन आदि जैसे प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण प्राप्त करने के लिए सरकार लोगों को बैंकिंग प्रणाली में प्रवेश करने के लिए मजबूर कर रही है तो दूसरी ओर उन्हें अपने खातों में न्यूनतम शेष राशि नहीं रखने के लिए विभिन्न बैंक-शुल्कों के रूप में दंडित किया जा रहा है। मूल सेविंग बैंक डिपाजिट अकाउंट और प्रधानमंत्री जन-धन योजना खाते सरकार के वित्तीय समावेशन अभियान का हिस्सा थे और बैंकिंग सेवाओं के लिए खाताधारकों से शुल्क नहीं लिया जाता था। उनमें अब बैंकिंग सेवाओं का लाभ उठाने के लिए कई नियम लगाए गए हैं – जैसे नकदी, एटीएम, ऑनलाइन आदि सहित अधिकतम चार बार लेनदेन करने की अनुमति है। प्रधानमंत्री जन-धन योजना खातों में राशि निकालने और जमा करने की सीमा भी होती है जो 10,000 प्र्रतिमाह और 50,000 प्रतिमाह हैं।

वित्त मंत्रालय में राज्य मंत्री शिव प्रताप शुक्ला ने लोकसभा में बताया कि उन्हें वित्तीय वर्ष 2017-18 में बचत खातों में मासिक औसत न्यूनतम जमा राशि के रख-रखाव न करने पर 21 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और तीन अग्रणी निजी बैंकों ने खाताधारकों से 4,990 करोड़ रुपये एकत्र किए गए थे। भारतीय स्टेट बैंक सभी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में सबसे बड़ा बैंक है और किसी अन्य बैंक की तुलना में इसमें कामकाजी वर्ग के लोगों की अधिक राशि जमा है। सिर्फ भारतीय स्टेट बैंक ने 2,434 करोड़ रुपये दण्ड-प्रभार के रूप में संग्रह किए हैं, जो बाकी सभी बैंकों की एकत्रित की गई राशि का लगभग आधा है। इसके अलावा, यदि हम पिछले चार वर्षों के आकड़ों को एक साथ रखते हंै, तो न्यूनतम शेष राशि का रखरखाव न करने पर दण्ड प्रभाव से 11,500 करोड़ रुपये वसूले गए हैं।

बैंकिंग क्षेत्र में खराब संचालन, जवाबदेही और पारदर्शिता की कमी के कारण एनपीए बढऩे के अलावा, आरबीआई के नियमों और सरकारी नीतियों में लगातार बदलाव ने बैंकों को ऐसी स्थिति में लाकर खड़ा किया है, जहां उन्हें उन सेवाओं को भी प्रदान करना पड़ रहा है जो सेवाएं पारंपरिक बैंकिंग का हिस्सा नहीं हैं। पर बैंकों को कई ऐसे काम भी दिए जा रहे हैं जो बैंकिंग का हिस्सा नही हैं। नतीजतन, बीमा और म्युचुअल फंड उत्पादों की बिक्री में व्यक्तिगत प्रोत्साहनों ने व्यावसायिक प्राथमिकताओं को स्थानांतरित कर दिया है और मुख्य बैंकिंग व्यवसाय को प्रभावित कर रहे हैं। अब सरकार ने बैंकों को नामांकन/अपडेशन गतिविधियों के लिए आधार-केंद्र खोलने के लिए भी कहा है।

पिछले साल भारतीय स्टेट बैंक के प्रबंध निदेशक रजनीश कुमार ने कहा कि भारतीय स्टेट बैंक बचत खातों में न्यूनतम शेष राशि का अनुपालन न करने पर जुर्माने के रूप में 2000 करोड़ रुपये जुटाने की योजना बना रहा था, जिसका एक हिस्सा 40 करोड़ बचत खातों से आधार जोडऩे के कारण बैंकों को होने वाली अतिरिक्त लागत की भरपाई के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। इसके अतिरिक्त नोटबंदी का भी बैंकों पर भारी दबाव पड़ा।

बचत खातों मेें न्यूनतम शेष राशि का रखरखाव नहीं करने के लिए दंड प्रभार के अलावा, एक साल पहले बैंकों ने ग्राहकों से एक ही बैंक की दूसरी शाखाओं में नकद लेनदेन के लिए शुल्क लेना शुरू कर दिया था। बिना किसी शुल्क के नकद जमा और निकासी की संख्या महीने में तीन से चार बार तक सीमित है और विभिन्न बैंक हर लेनदेन पर 10 रुपये से लेकर 150 रुपये तक की राशि ले रहे हंै। बैंकिंग क्षेत्र में ऑनलाइन सेवा और एटीएम सेवाओं को ग्राहकों को उनकी ज़रूरतों के अनुसार लेनदेन करने को विकल्प प्रदान करने और बैंक शाखाओं पर बोझ को कम करने के उद्देश्य से पेश किया गया था। जब लोगों ने इस तकनीकी परिवर्तन को अपनाया है, जो सभी ग्राहकों के लिए आसान नहीं था, तो अधिकांश बैंकों ने एटीएम के माध्यम से मुफ्त लेनदेन की संख्या पर सीमा लगा दी। ग्राहक बैंकिंग सेवाओं जैसे पते या मोबाइल नंबर में परिवर्तन, खाता बंद करने, एटीएम, एसएमएस अलर्ट सेवा, केवाईसी-संबंधित दस्तावेजों का नवीनीकरण आदि के लिए भी भुगतान कर रहे हैं, जिन पर पहले कोई शुल्क नहीं था। बैंकिंग सेवाओं के लिए शुल्क बिना किसी उचित कारण के बढ़ा दिए गए हैं।

हाल ही में केरल के मुख्यमंत्री ने बैंकों से आग्रह किया कि वे बचत बैंक खातों में न्यूनतम राशि न होने पर दंड-प्रभार लगाने की इस ‘जनविरोधी’ नीति को वापस लें और बैंक शुल्क के नाम पर गरीब लोगों की जमा राशि को न लूटें। मुख्यमंत्री ने बैंक-शुल्कों का जिक्र करते हुए कहा, ‘आम आदमी और गरीबों की संपत्ति की यह लूट ऐसे समय में हो रही है जब 10 लाख करोड़ रुपये से अधिक के बुरे कर्जे से परेशान बैंक बड़े कर्जदारों को लगातार राहत प्रदान कर रहे हैं। अमीरों द्वारा बैंकों के किए गए नुकसान के लिए गरीब से गरीब लोगों को लूटा जा रहा है।’ ऑल इंडिया बैंक इम्प्लाइज एसोसिएशन के महासचिव सीएच वेंकटचलम के आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल को दिए ज्ञापन में बैंकों के ग्राहकों की सुरक्षा के लिए और बैंकों के किए जा रहे अनुचित व्यवहार जैसे बैंकिंग प्रभारों में मनमाने और एकतरफा बढ़ोतरी और उत्पादों की गलत बिक्री के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की।

आरबीआई के लिए यह समय आ गया है कि वह सामान्य खाताधारकों के लिए सभी मौजूदा बैंकिंग प्रभारों को हटाकर उन्हें बैंकिंग सेवाएं मुहैया कराए। आरबीआई और सरकार को बकायेदारों के खिलाफ कड़े कदम उठाकर और ऋण की वसूली करने की आवश्यकता है, न कि कॉर्पोरेट ऋणों से हुए नुकसान का बोझ गरीबों और कामकाजी लोगों पर बैंक शुल्कों के रूप में डाला जाए।

देश के नागरिक समाज, सामाजिक संस्थाएं और विभिन्न बैंक यूनियनें बैंक उपभोक्ताओं से गैर-वाजिब वसूले जा रहे पैसे के खिलाफ ‘नो बैंकिंग चार्जेज’ का अभियान चला रहे हैं। इन्होंने राजनैतिक पार्टियों से पारदर्शी और जवाबदेही बैंकिंग और वित्तीय व्यवस्था को अमल में लाने की मांग की है।

लेखक सामाजिक कार्यकर्ता एवं

इंस्टिट्यूट फॉर डेमोक्रेसी एण्ड

सस्टेनेबिलिटी के निदेशक हैं।

भोले बाबा की मुक्ति का पर्व है: नरेंद्र मोदी

यह काशी विश्वनाथ बाबा का घर है। भोले बाबा का आज (आठ मार्च) मुक्ति पर्व है। ऐसे जकड़ा था भोले बाबा को चारों ओर दीवारों से कि सांस लेने में भी मुश्किल होती थी। बाबा ही नहीं यहां लगभग 40 मंदिरों की भी मुक्ति हुई है जो घरों में थे। कारिडोर बनाने का पहला चरण पूरा हुआ। अब इस खुले परिसर की विशालता से भक्तों को राहत मिलेगी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी महत्वाकांक्षी परियोजना काशी विश्वनाथ कारिडोर और गंगा व्यू के पहले चरण का विमोचन (नौ मार्च को) किया। पूरी परिकल्पना देख कर गद्गद प्रधानमंत्री ने प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के प्रशासकों की भूरि-भूरि प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि ये सब बढ़े ही भक्तिभाव और सेवा भावना से दिन-रात एक करके इस काम को पूरा करने से जुटे हैं। देश के करोड़ों लोगों की आस्था का यह केंद्र है।

भाजपा के वरिष्ठ नेता ने उनके प्रति भी आभार जताया जिनके यहां मकान थे। जिनकी यहां दुकानें थी और जो किराएदार थे। उन्होंने कहा कि यहां अपनी जगह छोडऩे वाले तीन सौ लोगों का अमूल्य सहयोग मिला। उन्होंने अपनी बहुमूल्य जगह बाबा के चरणों में समर्पित कर दी।

इतिहास याद करते हुउ उन्होंने कहा सदियों से यह स्थान दुश्मनों के पददलन से आक्रांत रहा। लेकिन अस्तित्व के बिना भी यहां जीवन रहा। यहां आस्था जीवित रही। सदियों बाद अहिल्या देवी ने यहां पुनरूद्धार किया। ढाई सौ साल से कुछ पहले इसे एक रूप मिला। आज़ादी के 70 सालों में भी किसी ने चिंता नहीं की। अब हुई

प्रधानमंत्री ने कहा अब भक्तजन मां गंगा में स्नान करके सीधे बाबा के चरणों में शीश झुका सकते हैं। यह सब काशी विश्वनाथ के प्रति आस्था के चलते ही संभव हुआ। भोले बाबा ने चेतना जगाई। चेतना जगी। काशी की नई पहचान पूरे विश्व में होगी। नई पहचान बनेगी।

काशी विश्वनाथ प्रोजेक्ट वाराणसी में अस्सी से वरूणा नदी के बीच फैला हुआ है। कुल 25 चरण की इस परियोजना के पहले चरण का विमोचन प्रधानमंत्री ने किया। काशी के इस नए रूप को पंडित काशी राम उपाध्याय भी नहीं समझ पा रहे हैं। गाजीपुर से बाइक से यहां आए उपाध्याय ने कहा,’हम क्या, बाबा औघडऩाथ भी नहीं समझ पा रहे होंगे कि वह काशी कहां गई जो उनके त्रिशूल पर बसी थी। वे बार-बार त्रिशूल को झटकाते हैं लेकिन उनकी काशी कहीं हो तब न।’

महाशिवरात्रि के बाद शनिवार को नई काशी पहुंचे। इस नई काशी में विभिन्न सजावटी प्रवेश द्वारों से गुरजे हुए वे विश्वनाथ कारिडोर पहुंचे। काशी विश्वनाथ मंदिर से गंगा तक आधा किलोमीटर का गालियों-मकान-दुकानों का भीड़ भरा इलाका बमुश्किल एक-डेढ़ साल में खाली करा लेना सहज नहीं था।

वाराणसी प्रशासन ने गलियों-मकानों के मलबे को हटाने के लिए जेसीबी मशीनें वगैरह तो पहले ही हटा दी थीं । जहां टूटे मकान अब भी थे और ज़मीन पर मलबा था वह सब एल्यूमिनियम की सफेद और नीली चाद्दरों से ढक दिया गया था। नई काशी में बन रहा विश्वनाथ कारिडोर प्रधानमंत्री का ड्रीम प्रोजेक्ट है जो तेजी से अमल में आता दिख रहा है।

काशी विश्वनाथ मंदिर को जाने वाली ढेरों ऐतिहासिक- सांस्कृतिक, धार्मिक महत्व की गलियां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम-प्रोजेक्ट को अमल में लाने के लिए धराशायी कर दी गईं। किसी बड़े विपक्षी दल की तब नींद नहीं खुली। जनवरी महीने में ज़रूर आम चुनाव को ध्यान में रखकर आम पार्टी के सांसद (राज्यसभा) संजय सिंह अयोध्या में दो दिन की यात्रा समाप्त कर बनारस पहुंचे और खंडहर में बदली गलियों को देख दुखी हुए।

काशी विश्वनाथ कारिडोर बनाने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी योजना को उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने विश्वस्त अधिकारियों के जरिए लगभग युद्ध स्तर पर शुरू कराया। स्थानीय जनता से योजना पर कोई राय-बात नहीं हुई। स्थानीय मीडिया में छिटपुट आंदोलन की कभी कोई खबर नहीं छपी। गलियों में मकान चिन्हित हुए। बातचीत हुई। सर्किल रेट से कुछ ज़्यादा मुआवजे पर मकान-दुकान खरीदे गए। तोडफ़ोड़ शुरू हो गई। पुलिस की मौजदूगी में रात में मलबा हटाया जाता। कुल 45 हजार स्कवाएर मीटर जगह घेरे हुए मकान-दुकान-मंदिर गली तमाम गलियां हटा दी गई। अब सात सौ मीटर कारिडोर पर फिलहाल काम हो रहा है। कुल 25 चरण में यह काम प्रशासन पूरा जल्द करेगा। आप के सांसद ने कहा कि इस काशी विश्वनाथ कारिडोर अभियान में 40 ऐतिहासिक मंदिर इस भाजपा सरकार ने तोड़ दिए। राष्ट्रीय महत्व के इस सबसे पुराने शहर का अंतरराष्ट्रीय महत्व रहा है वहां एक परियोजना के बहाने प्राचीन मंदिर नष्ट कर दिए गए। यह विचित्र ही है। उधर अयोध्या में भाजपा, राम का मंदिर निर्माण करने के लिए सड़क से संसद और अदालत तक कुछ नहीं कर रही हैं लेकिन यहां 40 मंदिर और असंख्य शिवमूर्तिया तोड़ दी।

विश्वनाथ कारिडोर बनाने की प्रक्रिया में न जाने कितने हजार लोगों की आजीविका चली गई। वे सब गलियों में पसरे बाजार में तरह-तरह की दुकानें करते थे। कई सौ सालों से उनके परिवार यहां गलियों में रह रहे थे। अब उन्हें कही और छत और पेट के लिए जाना पड़ा।

काशी विश्वनाथ कारिडोर परियोजना में अनुमान है कि तीन सौ घर, 200 दुकानें तोड़ी गई। अभी यह तादाद और बढ़ेगी क्योंकि प्रधानमंत्री की इच्छा है कि ललिता घाट और मणिकर्णिका घाट से गंगा और काशी विश्वनाथ बाबा का दर्शन एक नजऱ में हो सके।

इस बार के आम चुनाव में अरविंद केजरीवाल तो वाराणसी से शायद चुनाव नहीं लड़े। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फिर यहां से चुनाव लड़ सकते है।

काशी का ऐतिहासिक ‘गली युद्ध’

गली युद्ध काशी की गलियों का एक ज्वलंत इतिहास के रूप में जाना जाता है। अब गलियां तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट को साकार करने में उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने अधिकारियों-कर्मचारियों के जरिए रसातल में मिला दी। लेकिन उस इतिहास को जानाना ज़रूरी है।

वह वक्त था 17 अगस्त 1781 का। वाराणसी -बनारस -काशी की इन्ही गलियों से वारेन हेस्टिंग्स को काशी के वीर सपूत नन्हकू सिंह ने भागने पर मज़बूर कर दिया था। वारेन हेस्टिंग बनारस आया था। काशी के राजा चेत सिंह से 50 लाख रुपए जुर्माना वसूलने। आज के कबीर चैरा में माधोदास के बगीचे में वह रुका था। जिसे आज भी लोग स्वामी बाग के नाम से जानते हैं। आज भी वहां लगे शिलापट्ट पर उसके नाम की पट्टिका लगी है। तब वारेन हेस्टिंग्स ने अपने एक कमांडर को 150 सैनिकों के साथ शिवाला भेजा जहां राजा चेतसिंह अपने किले में रूके थे। आदेश था उन्हें गिरफ्तार करके उसके सामने लाया जाए।

जब इसकी जानकारी नन्हकू सिंह को मिली तो वे अपने कुछ लठैतों को लेकर 16 अगस्त 1781 को शिवाला पहुंच गए। वहां चर्चित गली युद्ध हुआ था। इसमें अंग्रेज कमांडर और 100 से अधिक सैनिक मारे गए थे। इस लड़ाई में  नन्हकू सिंह भी शहीद हुए। लेकिन उन्होंने राजा चेतसिंह को अंगे्रजों के कब्जे में आने से पहले ही गंगा में नाव से पार करा उनके रामनगर किले में पहुंचा दिया।

इधर नन्हकू सिंह अंग्रेजों से लोहा लेते रहे। उधर चेतसिंह रामनगर में अपने किले में सुरक्षित पहुंच चुके थे। जब इस पूरी घटना की जानकारी वारेन हेस्टिंग्स को मिली तो वह थर-थर कांपने लगा। बनारस में उसके अपने बेनीराम साब ने उसकी मदद की। वारेन हेस्टिंग्स अपने बचे-खुचे 450 सैनिकों की कुमुक लिए हुए पास के शहर चुनार पहुंचा। वहां के किले में उसे शरण मिली।

बाद में पूरी तैयारी के साथ उसने बनारस पर धावा बोला। अपने मारे गए कमांडर और सैनिकों की याद में उसने शिवाला पर स्मारक बनवाया। यह आज भी वहां है।

अर्धकुंभ के दावे की पोल खोलती गंगा!

हमें गंगा से कुछ लेना नहीं बल्कि गंगा को देना है’ बनारस के सांसद व स्वयंभू गंगा पुत्र के शब्द अपने अर्थ को उल्टा कर चुके हैं उन्होंने गंगा से लिया ही लिया है।

अर्धकुंभ की पूर्ति हुई और पीछे से खबर आ गई कि गंगा फिर मैली हो रही है। उमा भारती बड़े दावे करके चली गई। नितिन गडकरी ताल ठोक के दावे कर रहे हैं। ये दावे ऐसी स्थिति में है जब गंगा के मायके में ही गंगा क्षत-विक्षत है। 58 बांधों के कारण सुरंग में या फिर जलाशयों में सूखी नदी के रूप में अपना वर्तमान और भविष्य देख रही है।

दूसरी तरफ गंगा पर अपने रिपोर्ट कार्ड के रूप में सरकार अखबारों में पूरे पन्ने के विज्ञापन दे रही हैं। मोदी और योगी दोनों ने ही श्रद्धालुओं को धन्यवाद और स्वच्छता पर प्रसन्नता व्यक्त की। दावा किया गया कि 25 करोड़ से अधिक लोग और 72 देशों के मिशन प्रमुख आये। उपलब्धियों में स्वच्छ कुंभ, डिजिटल कुंभ, सुरक्षित कुंभ, सांस्कृतिक कुंभ और मीडिया प्रबंधन जैसे शीर्षकों से मेले में आए लोगों के बारे में, उनके लिए की गई व्यवस्था और मेले की ढांचागत जानकारी दी गई। कहीं यह नहीं बताया गया है कि गंगा में पानी कहां से, कितना आया। 2-3 खबरें कुंभ की शुरुआत में ज़रूर है कि गंगा में मगरमच्छ और कुछ खास मछलियां देखी गई।

अर्धकुंभ के लिए सा$फ पानी की तैयारी के लिए टिहरी बांध के 415 परिवारों का बिना पुनर्वास किए अक्टूबर, 2018 को जारी एक नोटिफिकेशन द्वारा बांध जलाशय में बिना शर्त पानी भरने की इजाजत उत्तराखंड सरकार ने दे दी। उत्तराखंड सरकार की जिम्मेदारी है की बांध जलाशय के जिस स्तर तक पुनर्वास न हो वहां तक जलाशय में पानी भरने की इजाजत न दें।

कानपुर की चमड़ा फैक्ट्रीयां कुछ महीनों के लिए बंद कर दी गई। इलाहाबाद के आसपास के नालों पर सफाई की मशीनें कुछ समय के लिए लगा दी गई। इन सारे कारनामों से नमामि गंगे के 20 हज़ार करोड़ का तियापाचा पांच साल के अंतिम दिनों में चुनाव के समय कर दिया गया।

अर्धकुंभ की सबसे बड़ी सफलता मानी जाए तो वह यह है कि देशभर में हिंदुओं के बीच यह संदेश देने की कोशिश की गई है कि हमने गंगा साफ कर दी।

अर्धकुंभ के बाद आने वाली खबरें थोड़ी डरावनी है। इलाहाबाद अर्धकुंभ और गंगा के संदर्भ मे रोचक सत्य यह है कि अर्धकुंभ के दौरान गंगा का पानी सा$फ रहे। इसके लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने गंगा से जुड़े शहरो में प्रदूषण करने वाली इकाइयों को स्नान के दौरान बन्द रखा था। अब सब जगह उनको खोलने की इजाजत हो गई है। गाजि़याबाद में अधिकारियों ने कहा प्रदूषण होगा तो कार्रवाई की जाएगी। अरे भाई यह बात तो पहले भी कही जा सकती थी। पहले क्या क्या कार्रवाई की? कानपुर के बाबा घाट से सीधा 76 लाख लीटर गंदा पानी रोज़ गंगा में जाने की खबर है।

अभी गंगा के जल मार्गों की बात करें, बनारस के घाटों पर सदियों से नाव चला कर अपनी आजीविका पालने वालों पर प्रहार करने वाले गुजराती घरानों के बड़े क्रूज (इंजन से चलने वाली बड़ी यात्री नावों) की बात करें तो गंगा के व्यवसायीकरण का पूरा चित्र सामने आ जाएगा।

गंगा जलमार्ग के आलोचक देबादित्यो सिन्हा ने सही कहा कि प्रधानमंत्री मां गंगा की सेवा केवल पैसों से नहीं कर्मों से करनी चाहिए। गंगा पर बांध बनवाना, जलमार्ग के लिए उसमें तलकर्षन करना, जलीय जंतुओं के आवास को खत्म करना एवं उसका हर तरह से व्यवसायीकरण करना सेवा नहीं अपमान है।

जब गंगा में आप बांध बनाकर एक तरफ उसके गंगत्व की समाप्ति करते हैं। दूसरी तरफ आप मैदान में आते ही उसके पानी को पूरी तरह बड़े शहरों की जल आपूर्ति और सिंचाई के लिए इस्तेमाल कर लेते हैं। तो फिर गंगा में बचा ही क्या है? यदि गंगा में प्रवाह है तो वह आने वाली कुछ गंदगी को तो साफ कर ही सकती है।

गंगा की अविरल प्रवाह के लिए जल परिवहन और जल संसाधन एवं गंगा पुनर्जीवन जैसे दो भारी भरकम मंत्रालयों को संभालने वाले मंत्री नितिन गडकरी ने कई बार यह ध्यान दिया कि भविष्य में गंगा पर कोई बांध नहीं बनेंगे। उनके मंत्रालय के अधिकारियों से भी है संदेश आया की भविष्य में अब गंगा पर कोई बांध नहीं बनेगा। जो पाइप लाइन में उनकी तो बात ही नही बल्कि जिन पर पांच से दस प्रतिशत भी काम हुआ है, उनको भी रोक दिया जाएगा। उन्होंने गंगा की सहायक नदियां मंदाकिनी व पिंडर तक के नाम लिए। किंतु फिर भी निर्माणाधीन 3 परियोजनाओं रोकने के लिए बिल्कुल सहमत नहीं। यदि यह निर्माणाधीन परियोजनाएं तो नहीं रोकी गई तो यह जल्दी पूरी हो जाएंगी और फिर बने हुए बांधों को तोडऩा संभव नहीं लगेगा। दूसरी तरफ अभी तक सरकार ने गंगा और उसकी सहायक नदियों पर अन्य कोई नई बांध नहीं बनेंगे, इसके लिए कोई गजट नोटिफिकेशन या अन्य प्रकार का कोई पत्र भी जारी नहीं किया है। फिर नीतियां कभी भी बदली जा सकती हैं। असली प्रश्न तो निर्माणाधीन बांधो को रोक कर गंगा के गंगत्व के लिए प्रतिबद्धता दिखाने का है। जो गंगा की अविरल धारा के लिये आवश्यक हैं।

यदि सरकार गंगा के गंगत्व को पुन: स्थापित करना चाहती है तो वह खास करके सिंगोली भटवारी (99 मेगावाट) मंदाकिनी नदी पर, तपोवन-विष्णुगाड परियोजना (520 मेगावाट) विष्णुगाड- पीपलकोटी परियोजना (444 मेगावाट) अलकनंदा पर स्थित परियोजनाओं को तुरंत रोके। फिलहाल यही तीनों परियोजना अभी निर्माणाधीन है। पूर्ववर्ती मनमोहन सिंह की सरकार ने भागीरथी गंगा पर 4 निर्माणाधीन परियोजना रोकी थी। तब गंगा के लिए अपने आप को समर्पित कहने वाली सरकार इन परियोजनाओं को क्यों नहीं रोक रही? जबकि केंद्र राज्य को होने वाली प्रतिवर्ष होने वाली 12′ मुफ्त बिजली के नुकसान को ग्रीन बोनस के रूप में दे सकती है जोकि 200 करोड़ से भी कम होगा।

हजारों करोड़ों गंगा की सफाई अविरलता व निर्मलता के लिए खर्च किए गए है। मगर ये क्यों नही समझा जा रहा कि गंगा की अविरलता बांधों के चलते संभव नही है। वे अच्छी तरह समझते हैं मगर इस तथ्य से नज़रें चुराते हैं क्योंकि मामला तो बहुत बड़े ठेकेदारो का है। उत्तराखंड राज्य को नुकसान नहीं बल्कि ठेकेदारों की लॉबी को नुकसान की बात है ।

पर्यावरण आंदोलनों के नेता सुंदरलाल बहुगुणा से लेकर स्वामी सानंद के लंबे उपवासो के बाद उसी संकल्प के साथ मात्री सदन हरिद्वार में 26 साल के युवा संत आत्मबोधानंद जी 24 अक्टूबर, 2018 से अनशन पर हैं। लेख लिखे जाने तक 138 दिन हो रहे हैं इसके बाद भी सरकार गंगत्व की गम्भीरता को क्यों नहीं समझ रही?

दिल्ली के जंतर मंतर पर क्रमिक अनशन जारी है। 23 फरवरी को मेधा पाटकर, सुनीलम, राजेंद्र सिंह, रवि चोपड़ा, प्रोफेसर आनंद, योगेंद्र यादव, संदीप, अभिलाष खांडेकर, फैसल खान, भरत व मधु झुनझुनवाला, संजय पारीख, पीएस शारदा, देबादित्यो सिन्हा, विजय व वर्षा वर्मा जैसे लगभग 100 प्रतिष्ठित समाजकर्मी व स्वयं 72 वर्षीय स्वामी शिवानंद तमाम सरकारी अडंगो के बावजूद इंडिया गेट से पैदल चलकर जंतर-मंतर पहुंचे। जहां उन्होंने धरने पर सरकार से इस मुद्दे पर गंभीरता से बात करके तुरंत निर्णय लेने की मांग की। देशभर में प्रदर्शन व समर्थन में पत्र भी भेजे जा रहे हैं।

गंगा के नाम पर आई सरकार के पास पूरा मौका था कि वह गंगा को उसका सच्चा नैसर्गिक रूप दे पाती किंतु सरकार ने गंगा का व्यवसायिक दोहन किया और अर्ध कुंभ में पूरा वोट बटोरा।

देश को समर्पित युद्ध स्मारक

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 फरवरी को समर्पण की प्रतीक अमर ज्योति को जलाकर राष्ट्रीय युद्ध स्मारक देश को समर्पित किया। उन्होंने इसे सैनिकों के बलिदान और साहस का प्रतीक कहा। 40 एकड़ के क्षेत्र में फैले इस स्मारक में चार चक्र हैं- अमर चक्र, वीरता चक्र, त्याग चक्र, और रक्षक चक्र और इसमें ग्रेनाइट पर स्वर्ण अक्षरों में 25,942 शहीद सैनिकों के नाम अंकित हैं।

रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण और तीनों सेनाओं के प्रमुख- सेनाप्रमुख जनरल बिपिन रावत, एयर चीफ मार्शल बीएस धनोआ और नौसेना प्रमुख एडमिरल सुनील लांबा के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्मारक का दौरा किया। उन्होंने आंगतुक पुस्तिका में लिखा,” यह हमारे सैनिकों की वीरता, बलिदान और साहस का प्रतीक है। यह स्मारक हमें हर पल जीने और राष्ट्र के लिए कुछ करने के लिए प्रोत्साहित करेगा। शौर्य और शहादत के इस तीर्थस्थल को मेरा सलाम’’।

1960 में सशस्त्र बलों ने पहली बार एक राष्ट्रीय युद्ध स्मारक का प्रस्ताव रखा था। 2016 में इंडिया गेट क्षेत्र में एक राष्ट्रीय युद्ध स्मारक के लिए सशस्त्र बलों और बुर्जुग सैनिकों की लगातार मांग के मद्देनजऱ तत्कालीन केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय युद्ध स्मारक की मांग की जांच करने के लिए प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता में ‘मंत्रियों के समूह’ का गठन किया। 2006 में रक्षा मंत्रालय ने निर्णय लिया कि युद्ध स्मारक को इंडिया गेट के आसपास बनाया जाना चाहिए।

20 अक्तूबर 2012 को लगभग 50 साल के बाद रक्षामंत्री एके एंटनी ने घोषणा की कि  सरकार ने भारतीय सशस्त्र बलों की लंबे समय से चली आ रही राष्ट्रीय युद्ध स्मारक की मांग को मान लिया है और इंडिया गेट पर एक राष्ट्रीय युद्ध स्मारक बनाया जाएगा। उन्होंने कहा कि मंत्रियों के समूह ने मामले के सभी बकाया मुद्दों को मंजूरी दे दी है। आखिर सशस्त्र बलों की मांग पूरी होगी।

फरवरी 2014 के चुनाव के दौरान नरेंद्र मोदी ने कहा कि पिछली सरकार युद्ध स्मारक के निर्माण में विफल रही। उन्होने युद्ध स्मारक बनाने का वादा किया। सात अक्तूबर 2015 को कैबिनेट ने युद्ध स्मारक बनाने का प्रस्ताव पारित किया और स्मारक और संग्रहालय के लिए 500 करोड़ रुपए मंजूर किए। मई 2016 में कैबिनेट नें केंद्रीय मत्रिमंडल को अधिकार प्राप्त सर्वोच्च संचालन समिति (ईएएससी) के निर्णय से अवगत कराया कि राष्ट्रीय युद्ध स्मारक का निर्माण ”सी’’ टेक्सागन ऑफ इंडिया गेट में किया जाएगा। 25 फरवरी 2019 को राष्ट्रीय युद्ध स्मारक देश को समर्पित किया गया।

निकटवर्ती प्रिंसेस पार्क के साथ युद्ध संग्रहालय का निर्माण किया गया है। एक सब-वे राष्ट्रीय युद्ध स्मारक और राष्ट्रीय युद्ध संग्रहालय को जोड़ता है। स्मारक इंडिया गेट के पास बनाया गया है। 1947, 1961(गोवा), 1962 (चीन), 1965, 1971, 1987 (सियाचिन), 1988 (श्रीलंका) और 1999 (कारगिल) के युद्धों और दूसरी सैन्य कार्रवाइयों में मारे गए शहीदों के नाम स्मारक की दीवारों पर अंकित  हंै। परियोजना का डिजाइन बनाने वाले चेन्नई के वास्तुकार योगेश चंद्राहासन ने कहा,”पूरी  अवधारणा इस विचार पर आधारित है कि युद्ध स्मारक एक ऐसी जगह होनी चाहिए जहां हम मृत्यु का शोक नहीं मानते हैं बल्कि सैनिकों के जीवन का जश्न मानते हैं और उनके द्वारा किए गए बलिदान को सम्मान देते हैं।

राष्ट्रीय युद्ध स्मारक 2014 के चुनावों में भाजपा द्वारा किया गया एक चुनावी वादा था जो अब पूरा हुआ। लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले राष्ट्रीय युद्ध स्मारक का अनावरण प्रधानमंत्री के लिए लाभदायक होगा। प्रधानमंत्री ने कहा,” कुछ लोग देश के हित से पहले अपने परिवार का हित सोचते हैं- उन्होंने सेना और राष्ट्रीय सुरक्षा को अपनी कमाई का जरिया बनाया था। वे शहीदों को भूलना चाहते थे’’। सभा को संबंोधित  करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा,” आज लोग पूछ रहे हैं कि शहीदों और वीरों के साथ ऐसा अन्याय क्यों हुआ। ऐसे कौन से कारण थे जो शहीदों पर केंद्रित नहीं थे। भारत पहले या ”परिवार पहले ‘‘?

इससे पहले पूर्व सैनिकों की एक बड़ी

रैली को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि यह लाखों सैनिकों की वीरता और समर्पण का परिणाम है कि भारतीय सेना आज दुनिया में सबसे मज़बूत मानी जाती है। उन्होंने कहा कि दुश्मनों और प्राकृतिक आपदाओं के खिलाफ सैनिक पहली रक्षा रेखा है।

प्रधानमंत्री ने हाल ही में पुलवामा में हुए आतंकी हमले में अपने प्राणों की आहुति देने वाले सीआरपीएफ के जवानों को याद किया और भारत की रक्षा करते हुए सर्वोच्च बलिदान देने वाले सभी शहीदों को श्रद्धांजलि दी। उन्होंने कहा कि नया भारत विश्व स्तर पर अपना कद बढ़ा रहा है और यह इसके सशस्त्र बलों द्वारा किए गए बड़े उपायों के कारण है। उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त  की कि राष्ट्रीय युद्ध स्मारक या राषट्रीय समर स्मारक राष्ट्र को समर्पित है।

प्रधानमंत्री ने याद किया कि केंद्र सरकार ने सैनिकों और पूर्व सैनिकों को वन रैंक, वन पैंशन प्रदान करने की अपनी प्रतिज्ञा भी पूरी की है। उन्होंने कहा ओआरओपी के परिणामस्वरूप 2014 की तुलना में पैंशन में 40 फीसद तक और सैनिकों के वेतन में 55 फीसद तक की वृद्धि हुई है। प्रधानमंत्री ने उल्लेख किया कि एक सुपर स्पेशियालिटी अस्पताल की मांग की गई है और उन्होंने घोषणा की कि ऐसे तीन सुपर सप्ेशियालिटी अस्पताल बनाए जाएंगे।

सैनिकों के प्रति सरकार के दृष्टिकोण का उदाहरण देते हुए प्रधानमंत्री ने सेना दिवस, नौसेना दिवस, और वायुसेना दिवस पर सैनिकों को दिए जा रहे प्रोत्साहन का उल्लेख किया। उन्होंने 15 अगस्त 2017 को लाँच किए गए गेलेंट्री अवाड्र्स पोर्टल का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि महिलाओं को अब फाइटर पायलट बनने का अवसर मिला है। महिला अधिकारियों को शॉर्ट सर्विस कमीशन के ंसाथ अपने पुरूष सहयोगियों के समान स्थायी कमीशन के अवसर भी दिए जा रहे है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि रक्षा खरीद के पूरे परिस्थितिकी तंत्र में परिवर्तन शुरू किया गया है। उन्होंने कहा कि आधार स्तर पर पारदर्शिता सरकार के दृष्टिकोण की पहचान है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि भारतीय सेना ने संयुक्त राष्ट्र संघ के 70 प्रमुख शंति  अभियानों में से लगभग 50 अभियानों में हिस्सा लिया है और लगभग 2 लाख सैनिक इन अभियानों का हिस्सा रहे हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय नौसेना ने  2016 में अंतरराष्ट्रीय फ्लीट रिव्यू आयोजित किया इसमें 50देशों की नौसेनाओं ने हिस्सा लिया था। उन्होंने यह भी कहा कि हमारे सशस्त्र बल हर साल मित्र देशों के सशस्त्र बलों के साथ औसतन 10 बड़े संयुक्त अभ्यास करते हैं।

उन्होंने कहा कि भारत की सैन्य ताकत और हमारी अंतरराष्ट्रीय साझेदारी के कारण हिन्द महासागर में समुद्री डकैती में भारी कमी आई है। प्रधानमंत्री ने भारतीय सेना की 1.86 लाख बुलेट प्रूफ जैकेटों की लंबे समय से लंबित मांग का उल्लेख किया और कहा कि केंद्र सरकार ने पिछले साढ़े चार सालों में 2.30 लाख बुलेट पू्रफ जैकेटों की खरीद की है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने भारतीय सेना को आधुनिक विमानों, हेलीकाप्टरों, पनडुब्बियों, जहाजों और हथियारों से लैंस किया है। उन्होंने कहा कि लंबे समय से लंबित फैसले राष्ट्र हित में लिए जा रहे हैं।