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समझौता एक्सप्रेस कांड में सभी रिहा : न्याय की विंडबना

स्वामी असीमानंद और तीन अन्य लोगों की रिहाई को न्याय की विडंबना ही कहा जाना चाहिए। यह कांड फरवरी 2007 का है। दिल्ली-लाहौर जा रही समझौता एक्सप्रेस विस्फोट में कुल 68 लोग पानीपत मेें मारे गए थे। मरने वालों में हिंदुस्तान और पाकिस्तान दोनों ही देशों के लोग थे। हालांकि मरने वालों में पाकिस्तान के लोगों की तादाद कहीं ज्य़ादा थी। अब नेशनल इन्विेस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) की साख पर प्रश्नचिहन लग गए हैं।

स्पेशल कोर्ट ने इस अप्रिय हादसे पर व्यथित होकर कहा कि ‘भरोसे लायक और स्वीकार करने लायक साक्ष्यों के अभाव में किसी को भी सजा नहीं दी जा सकती। रोचक बात तो यह है कि बारह साल तक इस मामले की सुनवाई होती रही लेकिन न्याय नहीं हुआ। स्पेशल जज ने एनआईए को लापरवाही से जांच करने पर खासा लताड़ा। इस जांच-पड़ताल की अब कोई साख भी नहीं।

अदालत के फैसले से समझौता एक्सप्रेस विस्फोट में मारे गए लोगों के परिवारों की उम्मीदें अब धराशायी हो गई हैं। इस मामले में आए नतीजे से वह पुराना मुहावरा ज्य़ादा सही जान पड़ता है कि ‘न्याय में अगर देर हुई तो वह फिर न्याय नहीं रहता।’

एनआईए के वरिष्ठ अधिकारियों को सजा देने की बजाए फैसले का अब राजनीतिकरण किया जा रहा है। आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता और किसी भी आतंकवादी को सिर्फ इस आधार पर रिहा नहीं किया जाना चाहिए कि वह किसी खास जाति विशेष का है। यह विस्फोट कांड इसलिए भी महत्वपूर्ण हो गया था क्योंकि इसके पीछे मकसद था, भारत-पाक संबंधों के सुधरने के प्रयासों को कामयाब न होने देना। एनआईए ने फरवरी 2014 में अपनी ओर से इस मामले पर साल भर चली सुनवाई के दौरान यह भी कोशिश नहीं की कि कोई गवाह अपने बयान से न पलटे।

साफ कहें तो सरकार को फिर से इस मामले की सुनवाई शुरू करनी चाहिए जिससे इससे बच निकलने की तमाम राहों पर बाड़ लगाई जा सके। ऐसे महत्वपूर्ण मामले की छानबीन ठीक से होनी चाहिए जिसे हरियाणा पुलिस ने जुलाई 2010 में एनआईए के सुपुर्द किया था।

सुनवाई का काम इसलिए दुबारा होना चाहिए जिससे देश की जनता का भरोसा फौजदारी न्यायप्रणाली और राष्ट्रीय जांच एजंसियों में बढ़े। अभी हाल देश की प्रमुख जांच एजेंसी सीबीआई एक झमेले में आ गई थी जिस पर एपेक्स कोर्ट को दखल देना पड़ा।

समझौता एक्सप्रेस विस्फोट कांड के मामले में आए फैसले से भारत के उस संकल्प पर आंच आती है जिसमें भारत ने यह निश्चय किया था कि भारत जांच कराएगा और आतंकवाद की बड़ी घटनाओं पर सजा भी दिलवाएगा।

फिर, असीमानंद का यह तीसरा मामला है। जिसमें वह अपराधी साबित नहीं हुआ और रिहा हो गया। इसके पहले अक्तूबर 2007 में अजमेर शरीफ में हुए धमाके में तीन लोग मारे गए। इसके बाद हैदराबाद में मक्का मस्जिद में मई 2007 में विस्फोट हुआ। इसमें नौ लोग मारे गए।

सरकारी वकील के अनुसार इस सभी मामलों में असीमानंद ऊर्फ नब कुमार सरकार का एक मुख्य अभियुक्त रहा है। वह 2002 में अक्षरधाम मंदिर में हुए गोली कांड का बदला लेने का इच्छुक खुद को बताता रहा है। लेकिन जांच एजेंसियों ने सारा मामला ही गड्ड-मड्ड कर दिया। इससे इस एजेंसी के नाम को धब्बा लगा और भारत सरकार का वह संकल्प भी पीछे छूट गया। जिसमें भारत सरकार ने देश के आतंकवादियों को सजा दिलाने को कहा था।

हम सब हिंदू, लेकिन कांग्रेस की प्राथमिकता गरीब और युवा

भाजपा नेतृत्व का 29 दलों का गठबंधन एनडीए देश की सुरक्षा, देशभक्ति, हिंदू और हिंदूत्व को ज़रूरी मुद्दा मानता है। बाकी अपने पांच साल के दौरान उन्होंने जो उपलब्धियां देश को गिनाई हैं वे देश की जनता जानती और समझती है। वहीं मुकाबले में आई कांग्रेस ने भाजपा को एकदम खास झटका दिया है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा, हिंदुस्तान में सभी हिंदू हैं। आज की असली लड़ाई गरीबी हटाने की है। गरीब के साथ होने की है उसे खाने-पीने की चिंता से मुक्त करने भी है। सभी किसानों के चेहरे पर छाई हुई निराशा दूर करने की है। उनके लिए एक अलग बजट का प्रावधान अब ज़रूरत है। देश में बेरोज़गारी 45 साल में  सबसे ज्य़ादा ऊंचाई पर है। नए मतदाताओं को अच्छी नौकरी आज उनकी पहली ज़रूरत है। कांगे्रस इनके लिए काफी कुछ सोच रही है और करने को है। महिलाओं  को भी रोज़गार में आरक्षण दिया जाएगा। कांग्रेस के चुनावी मैनीफोस्टो को पढ़ कर जनता कितनी उसके साथ होती है यह तो 23 मई के बाद ही पता चलेगा।

यह ज़रूर है कि पिछले पांच वर्षों में भाजपा के नेतृत्व की एनडीए सरकार ने गरीबी को देश में और बढ़ाया। बेरोज़गारी इतनी बढ़ी कि 45 साल का आंकड़ा पार कर गई। रु पए के रातों-रात विमुद्रीकरण के नाम पर नोटबंदी हुई जिससे देश की जनता को अपनी बचत को बैंकों से निकालने की कोशिश में जान भी गंवानी पड़ी। पूरे देश में लघु-मझोले और हथकरघा ठहर गए। इसके बाद लागू हुई जीएसटी से सब से छोटे व्यवसाइयों का काम-धम बंद हो गया। पूरे देश में आर्थिक आधार अस्तत्यस्त हो गया। देश की बीस करोड़ की आबादी जो पहले से बदहाल थी और बदहाल हो गई। देश में किसानों, आदिवासियों, दलितों और भूमिहीन मज़दूरों की आर्थिक हालत और खराब हो गई। जिन्हें अब एक फैसला सोच-समझ कर लेना है।

देश में मझोली आयवर्ग के लोग, छोटे किसान, मज़दूर और बेरोज़गार युवक बेहद हताश हैं। देश की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दलों ने 2019 के आम चुनाव में एक मजबूत सामूहिक विकल्प की बात की है। इनका विकल्प वादों से भरा है। लेकिन इस विकल्प से उम्मीद बढ़ती है। इनके विकल्प में मंदिर, धर्म, जाति, देश प्रेम आक्रामक नहीं है। आर्थिक बदहाली दूर करने की कोशिश के साथ ही शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार देने की योजना, पर्यावरण की सुरक्षा, और देश की सुरक्षा पर ज़ोर दिया गया है। विपक्ष जनता को उसकी आर्थिक ज़रूरतों पर सोच समझ कर मतदान अपने भविष्य के लिहाज से करने की अपील में जुटा हुआ है।

यह अच्छी बात है कि देश की जनता में एक बहुत बड़ा हिस्सा एक दूसरे को समझाते हुए अपने नेताओं से अपनी समास्याओं पर सवाल पूछते हुए अपने और परिवार के भविष्य की चिंता के साथ मत देने की तैयारी में सघनता से जुटा है। नेताओं से चुनावी रणक्षेत्र में मुकाबला करने की बात उसकी समझ में अब आ गई है। कांगे्रस और दूसरे  विपक्षी दल इस सच्चाई को भांप गए हैं।

देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपने चुनावी घोषणापत्र को जारी करते हुए चुनाव को बेहद चुनौतीपूर्ण बना दिया है। उन्होंने देश में रहने वाले हर व्यक्ति को हिंदू बताया है। साथ ही कहा कि आज ज़रूरी है कि आर्थिक तौर पर उसे सफल बनाया जाए। सारी समस्याओं का मुकाबला उनसे किया जा सकता हैं।

कांग्रेस ने मंगलवार दो अपै्रल को देश में अपने चुनावी दस्तावेज ‘हम निभाएगें’ जारी रखते हुए यह बताया गया है कि देश की गरीब जनता को आर्थिक तौर पर सहयोग देने के लिए इस पार्टी ने ही मनरेगा योजना से लागू की थी। जिससे हर हाथ को साल भर में सौ दिन का कम मिला था। भाजपा ने इसकी खूब आलोचना की थी। लेकिन सत्ता मेें आने के बाद उसे जारी रखा। हालांकि वह योजना धूर्त सरकारी अधिकारियों, कर्मचारियों और भ्रष्ट स्थानीय नेताओं के चलते चौपट कर दी गई। इसका मुकाबला लोकतंत्र में संवाद करके और सवाल पूछ कर ही होता है इसमें शिक्षित पढ़े लिखे लोगों में से कुछ ने सहयोग भी किया।

राहुल गांधी ने कांग्रेस के मैनीफेस्टों ‘हम निभाएंगे’ को जारी करते हुए यह साफ किया कि देश के गरीबों की चिंता, मझोले वर्ग की चिंता सिर्फ कांगे्रेस ने ही की है। कांग्रेस का हाथ गरीबों के हाथ में है। हम मिल कर गरीबी पर वार करेंगे, 72 हजार से जि़ंदगी बेहतर बनाएंगे। उन्होंने कहा यह सिर्फ वादा नहीं है। देश और दुनिया के अर्थशास्त्रियों से बातचीत करके यह योजना बनाई है जिससे गरीब जनता हर महीने छह हजार रु पए से अपने जीवन संघर्ष को सहज सकें और ज्य़ादा विकास अपना और परिवार का कर सकता है। यह योजना तब अमल में आएगी जब कांगे्रस की सरकार केंद्र में आएगी। राज्यों की सरकारें यह जिम्मेदारी लेंगी कि गरीब को आर्थिक तौर पर सबल बनाने में पूरा योगदान करेंगी। गरीबी पर बार, 72 हजार योजना के केंद्र और राज्य सरकारें अमली जामा पहनाएगी। एक निर्दलीय समिति बनाई जाएगी जिसमें अर्थशास्त्री समाजसेवी सारी योजना एक चरण से दूसरे चरण से तीसरे चरण में अमल में लाएंगे।

कांगे्रस पार्टी इस बात की गारंटी देती है कि अगली लोकसभा फिर चुनने का समय आएगा तो देश के बेहद गरीब परिवारों में रु पए तीन लाख साठ हजार मात्र सीधे उसके खाते में पहुंच जाएंगे। उन्होंने कहा कि देश की जिस अर्थ व्यवस्था को भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियों नें देश में नोटबंदी और जीएसटी पर अमल करते हुए चौपट कर दिया उसे दुरूस्त करने के लिए अब कदम उठाना ही होगा। इसमें कांगे्रस के हाथ को मजबूत करना है देश के गरीब को।

देश में बढ़ रही गरीबी और बेरोज़गारी को सबसे बड़े मुद्दे बताते हुए राहुल गांधी ने कहा कि कांग्रेस पार्टी ने इन दोनों समस्याओं का निदान करने की पहल करने का बीड़ा उठा लिया है। आज केेंद्र और राज्य सरकारों के विभिन्न विभागों में तकरीबन बाइस लाख पद खाली पड़े हैं। जो इन पदों के उपयुक्त होंगे और जो मेहनती होंगे उन्हें मार्च 2020 तक काम का ज़रूर मौका मिल जाएगा। उन्होंने कहा कि देश की ग्राम पंचायतें और म्यूनिसपैलिटीज में भी दस लाख नौजवानों को रोज़गार मिल सकता है। उस पर भी कांग्रेस की योजना है। देश केंद्र सरकार, न्यायपालिका, संसद और निजी क्षेत्रों में ऐसी जगहें हैं जिन्हें देश के बेरोज़गारों को काम का मौका दिया जा सकता है। कांग्रेस जो कहती है वह करती भी है।

देश में शिक्षा पर कांगे्रस की केंद्रीय और राज्य सरकारें देश की सकल आय का छह फीसद खर्च करेंगी। शिक्षा का विकास एक गरीब देश की प्रगति के लिए बेहद ज़रूरी है। इस काम को 2023-24 तक ज़रूर पूरा कर लिया जाएगा। पूरे देश में सबको सहज-सुलभ स्वास्थ्य सुविधा मिले इसके लिए कांग्रेस सरकार छह फीसद खर्च करेगी। चिकित्सकों की शिक्षा-बढ़ाने, प्रशिक्षण देने पर कांग्रेस से एक पहली योजना तैयार की है। कांग्रेस सरकार बनते ही जल्दी से जल्दी राइट टू हेल्थ केआर एक्ट संसद में लाएगी। इसमें बीमारियों की छानबीन, ओपीडी गरीबों की देखरेख, दवाओं और चिकित्सा के लिहाज से ज़रूरी तमाम मशीनों उनके रख-रखाव और हाइजिन, दवाओं के लिए पूरी योजना होगी जिस पर अमल किया जाएगा।

बुनियादी ज़रूरतों पर कांग्रेस ने अपने मैनीफेस्टो में ज़ोर दिया है। इसमें बदलते मौसम और पर्यावरण संबंधी कठिनाइयों को हल करने का निश्चय अपने चुनावी दस्तावेज में जताया है। देश की रक्षा मामलों की ज़रूरतों पर विचार और कार्रवाई पर भी मैनीफेस्टों में बातचीत ख्ुाल कर की गई है। राफेल जैसे रक्षा सौदो मामले फिर न हों। उस पर भी ध्यान देने की बात कही गई है।

राहुल गांधी ने कहा कि किसानों की कृषि संबंधी परेशानियों के संबंध में कांगे्रस ने सोचा है कि एक तो यह कृषि उपज विपणन समिति (एग्रीकल्चरल प्रेडय़ूस मार्केट कमेटी) के कानून को खत्म कर देगी। यह कृषि उपज में व्यापक चाहे वह अंतरराष्ट्रीय से या विदेश के लिए हो उसे सारी पाबंदियों से मुक्त कर देंगी। यह आवश्यक वस्तु अधिनियम ला सकती है यदि कभी देश में कृषि उत्पादों को लेकर कोई ऐसी स्थिति पैदा होती है।

जल्दबाजी के वादे पर सोचना ज़रूरी

भारत का मतदाता आज क्या चाहता है? कांग्रेस ने गरीबी के खिलाफ जो नई मुहिम छेड़ी है उसमें गरीब परिवारों को हर महीने रुपए छह हजार मात्र देने की बात है। जिससे मदद से यानी गरीबी परिवार अभी किसी तरह छह हजार मात्र कमा लेता है बाद में कांग्रेस यह पूरी राशि बढ़ कर बारह हजार तक जाती है। यानी बाहर हजार मात्र का मासिक आमदनी वाला परिवार गरीब है।

यह मान कर चलना कि गरीब परिवार यत्न करते हुए छह हजार रु पए कमाते ही हैं। इस संख्या पर आपत्ति हो सकती है। यह अंक कहां से आया। इस पर विचार ज़रूरी है। आर्थिक सर्वे के जो सरकारी दस्तावेज हैं उनसे भी घरों में होने वाले खर्च की ही जानकारी मिलती है। घरेलू आमदनी की नहीं। भारत भर में घरेलू आमदनी क्या और कितनी है उस पर किसी सर्वे कराने की किसी योजना नहीं सुनी। अलबत्ता 2016 में एक अध्ययन ‘डब्लू डब्लू डब्लू.360.इन’ पर हुआ था। उसमें भी आंकड़े भारत में घरेलू आमदनी के विभाजन पर हैं। इस अध्ययन में अमीरों से गरीबों तक के परिवारों में दस फीसद के स्लैब में आमदनी की हिस्सेदारी का अनुमान लगता है। लेकिन आमदनी के बंटवारे पर कोई खास काम नहीं हुआ। आज भारतीय घरेलू परिवारों की आमदनी का अनुमान उसके पारिवारिक खर्च (2018-19) के आधार पर ही है।

हम यदि अपने डाटा पर ध्यान दें तो अच्छी खबर कांग्रेस के लिए यही है कि भारतीय परिवार उतने गरीब शायद नहीं हैं जितना वे मान कर चल रहे हैं। भारतीय परिवारों में सबसे गरीब दस फीसद लोग हैं न कि बीस फीसद जिनकी आमदनी बारह हजार रु पए से कम है। उनकी औसत आमदनी रु पए 9500 मात्र प्रति माह की बनती है न कि रु पए छह हजार पांच सौ मात्र जो कही जा रही है। इसके बाद जो वर्ग है वह रु पए 15,700 मात्र प्रति माह कमाता है। परिवार में लोगों की संख्या कम होने से आकार भी कटता है। परिवारों के इस आकार से हर स्लैब पर 300 लाख मिलियन परिवार होंगे न कि 280 लाख।

यानी रु पए बारह हजार मात्र की मासिक आम वाले परिवारों को जो बढ़ी हुई नकदी चाहिए वह तकरीबन रु पए तीन हजार मात्र हैं न कि रु पए छह हजार मात्र। इस से उनकी रु पए की ज़रूरत एक तिहाई घट जाती है जो योजना में बताई गई है। यह सही है कि ऐसे परिवारों की पहचान की क्षमता विकसित की जाए। पहले की कई बार यह बात उठी है कि इस संबंध में कुछ गंभीर काम किया जाए। एक परिवार के क्रिया कलापों पर ध्यान दिया जाए तभी आमदनी का कुछ अनुमान लगता है।

अब आइए, सोचते हैं कि रु पए बाहर हजार मात्र की न्यूनतम आमदनी के लक्ष्य की वजहें तार्किक कितनी हैं। हम 1990 से ‑‑‑‑‑‑‑‑‑‑‑‑‑‑‑‑(घर-घर की आमदनी को खर्च से अलग करके) देखते रहे हैं। इसमें यह जानकारी मिली कि बीस फीसद बेहद गरीब परिवारों को अपनी कमाई से ज्य़ादा खर्च करने की आदत थी। परिवार फिर कर्ज में फंसते रहे। इसके बाद के रईस ऐसे बीस फीसद परिवार हैं जो आठ से दस फीसद  की अतिरिक्त कमाई पर ध्यान देते हैं। ये वस्तुओं की कीमतों में हुई थोड़ी भी बढ़ोतरी पर काबू भी पा लेते हैं लेकिन ज्य़ादातर का निर्याह उनकी आमदनी में ही हो जाता है।

ऐसे घरों की सोच होती है कि इनका जो खर्च है वह ‘रूटीन’ और ‘बगैर रूटीन’ में है (यानी उदाहरण के लिए स्वास्थ्य संबंधी आपात खर्च या फिर पारिवारिक-सामाजिक आयोजन या फिर स्कूल कालेज में एडमिशन के लिए कैपिटेशन फीस। ऐसे परिवार जो रु पए 9500 प्रतिमाह कमाते हैं वे मुश्किल से ही सही अपने रूटीन खर्च भी पूरे कर पाते हैं। ऐसे परिवार जो हर महीने रु पए 15,700 मात्र कमाते हैं (अगले रईस दस फीसद वे अपने रूटीन खर्च भी पूरे कर लेते है। वे दस फीसद अतिरिक्त भी रखते है। लेकिन बात रूटीन खर्च के कारण वे कजऱ् में भी रहते हैं। इनके ऊपर जो परिवार है वे ज़रूर आम रूटीन खर्च के बाद भी अतिरिक्त पाते हैं। यानी बारह हजार मात्र से 13 हजार मात्र के बीच की कोई राशि बतौर न्यूनतम मासिक की आमदनी तार्किक है।

हमने फिर भी उन गरीब घरों के दस फीसद परिवारों की राज्यभर छानबीन की जिन्हें यह नकद धनराशि मिल सकती है। जवाब आया अवसाद भरा है। कई राज्यों में तो इसकी कोई सुगबुगाहट तक नहीं है। देश के सबसे ज्य़ादा गरीब दस फीसद परिवारों में सबसे ज्य़ादा परिवार तो झारखंड में हैं जो इक्कीस फीसद हैं। फिर बिहार नहीं बल्कि 15 से 19 फीसद पश्चिम बंगाल, ओडि़सा और मध्यप्रदेश में। आश्चर्य लेकिन सच, उत्तरप्रदेश में सिर्फ 12फीसद हैं। छत्तीसगढ़ में 13 फीसद, राजस्थान में दस फीसद हैं। तेलंगाना में यह आठ फीसद, असम में नौ फीसद और इससे कुछ कम बाकी प्रदेशों मेें।

लेकिन ऐसे राज्य जहां गैर भाजपा सरकारें हैं मसलन पश्चिम बंगाल, ओडिसा में बेहद गरीब परिवारों की तादाद 15 फीसद में भी ज्य़ादा है। अविकसित ग्रामीण इलाकों में दस फीसद बेहद गरीब परिवारों में 85 फीसद हैं। जबकि 11 फीसद लोग बड़े शहरों और आस-पास के गांवों-कस्बों में।

इन तमाम तथ्यों के अलावा विकसित होते समाज के लोग वही चाहते हैं जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बेहतर तरीके से समझते हैं। नकद धन खातों में आएं। लेकिन वे ऐसे मौके चाहते हैं जहां और ज्य़ादा कमाया जा सके। जो बच्चों के लिए बेहतर हो तब जीवन की और तमाम ज़रूरतों- संभावनाओं का पता लगा सकेंगे। बेहद गरीब परिवारों में यदि हम परिवार के मुखिया के कामकाज की पड़ताल करें तो इनमें आधे से ज्य़ादा दिहाड़ी वे मजदूर हैं। तीस फीसद लोग गैर कृषि और सोलह फीसद कृषि क्षेत्र से जुड़े हैं। जाहिर है कांग्रेस को वह बात आज भी याद है जिसे भाजपा भूल चुकी है। कांगे्रस ने ही मनरेगा से आमदनी बढ़ाने का कार्यक्रम शुरू किया था। वह वाकई जादुई इस लिहाज से रहा कि इससे एक तरह से न्यूनतम वेतन की राशि तय हो गई। धीरे-धीरे आधार भी माना गया। दूसरे 22 फीसद लोग छोटे किसान हैं। इनमें भूमिहीन भी कुछ राज्यों में काम की दूसरी योजनाएं भी हैं जो उन वित्तीय और भावी ज़रूरतों को समझते हैं। इसके अलावा देश में 22 फीसद परिवार ऐसे भी हैं जिनका भरण-पोषण बच्चों से आर्थिक सहयोग और मकान के लिए किराए से चलता है।

सब से दुखदायी पहलू है उच्च शिक्षा के स्तर पर किसी बेहद गरीब परिवारों में किसी का पहुंच जाना। क्योंकि बेहद गरीब दस फीसद परिवारों में 45 फीसद लोग ही प्राइमरी स्कूल और 44 फीसद से भी कम उम्र तक की पढ़ाई भी कर पाते हैं। किसी भी पार्टी ने इसके समाधान पर नहीं सोचा कि ऐसा सामाजिक अभियान शुरू हो जिसमें न्यूनतम आय की गारंटी के साथ ही शिक्षा की भी समुचित व्यवस्था हो। अच्छा है, अर्थशास्त्रियों, समाजशास्त्रियों के साथ ही शिक्षा विदों के साथ मिल बैठ यह समय है, जब मतदाता की भी सुनी ही जाए।

रमा बीजापुरकर

राकेश शुक्ेल

साभार: इंडियन एक्सप्रेस

हम दो हिंदुस्तान नहीं बनने देंगे : राहुल

कांग्रेस पार्टी ने निर्णय लिया है कि हम हिंदुस्तान के गरीब लोगों को ‘न्याय’ देने जा रहे हैं। जो हमारी न्यूनतम आय योजना है। ‘न्यूनतम आय योजना’ के तहत कांग्रेस पार्टी हिंदुस्तान के 20 फीसद सबसे गरीब परिवारों को हर साल 72,000 रुपए देने जा रही है। यह पैसा एक साल में 20 फीसद सबसे गरीब परिवारों के बैंक खातों में सीधा डाल दिया जाएगा।

20 फीसद परिवारों को  साल के 72,000 रुपए मिलेगें, योजना चरणबद्व तरीके से चलेगी, चरणबद्व तरीके से यह कार्य होगा, पहले पायलट प्रोजेक्ट चलेगा, उसके बाद योजना चलेगी। मगर कांग्रेस पार्टी का वादा है न्याय देने का।

सीधी सी बात है आपको गुमराह किया जा रहा है, आपको साढ़े तीन रुपए दिए जाते हैं और हवाई जहाज वालों को लाखों करोड़ रुपए दिए जाते हैं। हम अब आपको न्याय देने जा रहे हैं। नंबर याद रखिए, 20 फीसद सबसे गरीब परिवारों को 72,000 रुपए साल का दिया जाएगा। इसका लाभ पांच करोड़ परिवारों और 25 करोड़ लोगों को मिलेगा।

एक प्रश्न पर कि कितने लोगों को इस योजना का लाभ मिलेगा, इसके उत्तर में राहुल ने कहा कि पांच करोड़ परिवारों, 25 करोड़ लोगों को इस स्कीम का सीधा फायदा मिलेगा ।

इस योजना के कार्यान्वयन से संबंधित एक अन्य प्रश्न के उत्तर में राहुल गांधी ने कहा कि न्यूनतम आय की सीमा 12 हज़ार रुपए की है, अर्थात् जिस परिवार की न्यूनतम आय 12,000 रुपए से कम होगी, उस रकम को कांग्रेस की सरकार उस परिवार के खाते में डीबीटी से सीधा देगी, उनकी जो वास्तविक मासिक आय है और 12,000 रुपए का जो फर्क होगा, वो सीधा सरकार देगी। तो मान लो अगर आपकी आय 6,000 रुपए की हो, तो जो 12,000 से आपका कम है, उसका टॉप-अप करेगी।

आप लोग आज हैरान लग रहे हो, स्तब्ध लग रहे हो, हैं न? भला यह क्या हुआ, यह कैसे हुआ। भाइयो और बहनों मैं आपको बता रहा हूं, याद रखिए हर रोज़ आपके साथ चोरी की जा रही है, आपका पैसा लिया जा रहा हे, हर रोज़ आपका पैसा लिया जा रहा है। हम अब आपको दिखाएंगे कि इस देश में आपका कितना हक है।

एक अन्य प्रश्न पर कि फार्मूला क्या होगा इस आय को देने का, इसके उत्तर में राहुल ने कहा कि हम इसको चार-पांच महीने से स्टडी कर रहे हैं। दुनिया के बेहतरीन अर्थशास्त्रियों से हमने विस्तार से विश्लेषण किया है, यह एक विवेकपूर्ण योजना होगी, इसको हम कई चरणों में करेंगे, यदि आप इसे विस्तार से समझना चाहते हैं तो चिदम्बरम और जो हमारी टीम इस पर काम कर रही हैं वो आपको खुशी से इसको पूरे विस्तार से समझा देंगे।

एक अन्य प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि हिंदुस्तान में सब लोग काम कर रहे हैं। हमारा सिर्फ यह कहना है कि जब आप काम कर रहे हो, अगर आपकी आमदनी 12,000 रुपए से कम है, तो आपकी आमदनी को 12,000 रुपए तक पहुंचा देंगे। कोई काम बंद नहीं करेगा। जब वो व्यक्ति गरीबी के चंगुल से निकल जाएगा।

एक अन्य प्रश्न पर कि 2009 में आपने किसानों का कर्जा माफ किया, आप चुनाव जीते, 2019 में सामाजिक न्याय के लिए एक बड़ी योजना लेकर आप आए हैं, क्या हम इसको दुनिया की सबसे बड़ी योजना कह सकते हैं और ये भी कह सकते हैं कि यह आपके लिए एक बड़ा मुद्दा होगा लोकसभा चुनाव जीतने के लिए?

राहुल ने कहा ने मैंने भाषणों में कहा कि इस देश का एक झंडा है, दो झंडे तो नहीं हैं, एक झंडा है और प्रधानमंत्री अपनी राजनीति से दो हिंदुस्तान बना रहे हैं, एक अनिल अंबानी जैसा और दूसरा गरीबों का, किसानों और युवाओं का। हमारे मैनिफैस्टो में शिक्षा के लिए, स्वास्थ्य के लिए, रोजगार के लिए प्रावधान है।

हमने बहुत सोच-समझकर, लाखों लोगों से बात करके चुनाव घोषणा पत्र तैयार किया है। हमने माना है कि 21वीं सदी में हिंदुस्तान से गरीबी को खत्म करना है। कांग्रेस पार्टी के लिए ये स्वीकार्य नहीं है कि 21वीं सदी में इस देश में गरीब लोग हैं। यह मात्र योजना नहीं है, यह अब गरीबी पर ‘फाइनलअसॉल्ट’ है और हम दो हिंदुस्तान नहीं बनने देंगे। यह हिंदुस्तान एक होगा और उसमें गरीबों की भी इज्जत होगी और अमीरों की भी इज्जत होगी, सबकी इज्जत होगी।

एक अन्य प्रश्न के उत्तर में राहुल ने कहा कि आज मैंने न्याय की बात की, आप मुझसे राफेल का सवाल पूछ रहे हो। मैं राफेल पर, इन चीजों पर आज बात नहीं करना चाहता हूँ। आज सिर्फ न्याय पर बात करना चाहता हूँ, मैं यह कहना चाहता हूँ कि दो हिंदुस्तान नहीं होंगे। वही बात, जो साढ़े तीन लाख करोड़ रुपए कर्जा माफ होता है 15 लोगों का, वह सब्सिडी नहीं होती, ये सब्सिडी है, कैसे?

 एक अन्य प्रश्न पर कि आपने जो यह महान योजना बताई है क्या आपको लगता है कि इतनी महान योजना से आप भी महात्मा बनने जा रहे हैं, राहुल ने कहा कि नहीं! मैं महात्मा नहीं बनना चाहता हूँ। मैं दो हिंदुस्तान नहीं चाहता। मैं गरीबों को इज्जत दिलवाना चाहता हूँ, मैं गरीबों के दिल में भावना डालना चाहता हूँ कि हां, इस देश में हमें भी इज्जत मिलती है, इस देश में हमें भी भविष्य अपना दिखाई दे रहा है इसलिए हम पूरे हिंदुस्तान को न्याय देने जा रहे हैं।

रणदीप सिंह सुरजेवाला ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि कल कांग्रेस अध्यक्ष  राहुल गांधी ने इस देश में गरीबी पर वार की एक अनूठी और ऐतिहासिक पहल की। ये कांग्रेस की ‘गरीबी मिटाओ न्याय यात्रा’ की इस देश में नई शुरुआत है। ‘गरीब से न्याय और गरीब को आय’ यही है ‘न्याय’, यानी न्यूनतम आय योजना। इसके अन्य पहलूओं की व्याया हम आपके सामने करेंगे।

पहला, जैसा कुछ लोगों को कल उलझन थी- 72,000 रुपया देश के 20 फीसद सबसे गरीब परिवारों को मिलेगा, यानी पांच करोड़ परिवार और पांच सदस्यों के हिसाब ये 25 करोड़ देश के सबसे गरीब लोग बनते हैं।

दूसरा, ये टॉप अप योजना नहीं है। 20 के 20 फीसद परिवारों को 72,000 रुपया प्रतिवर्ष मिलेगा। इस बात को लेकर कल कुछ उलझन थी।

तीसरा, यह योजना महिला केंद्रित है, ये 72,000 रुपया घर की गृहणी के खाते में कांग्रेस पार्टी जमा करवाएगी।

चौथा, यह योजना शहरों और गांव पूरे देश के शहर और गांव में कोई भेदभाव नहीं, यह पूरे देश के गरीबों पर लागू होगी।

आज़ाद हिंदुस्तान में और पूरी दुनिया में गरीबी मिटाने वाली और गरीबी पर प्रहार करने वाली यह दुनिया की सबसे बड़ी योजना है। मोदी जी ने अपने इकनोमिक सर्वे 2016-17 में ये माना था कि कांग्रेस की सरकारों के कार्यकाल के चलते देश में आजादी के समय जो गरीबी 70 फ ीसद  थी वो घटकर 22 फ ीसद रह गई थी। पांच साल कांग्रेस सरकार के जब पूरे हो जाएंगे तो इस देश में ये 22 फ ीसद गरीबी भी स्वयं समाप्त हो जाएगी। स्वाभाविक तौर से गरीब विरोधी नरेन्द्र मोदी जी और उनकी सरकार ‘न्याय’ योजना का विरोध कर रही है। मोदी जी, 130 करोड़ देशवासियों की ओर से आज हम आपसे पूछना चाहते हैं कि आप ‘न्याय’ के पक्षधर हैं या विरोधी हैं? क्योंकि कल से आपके सब मंत्रीगण, आपके सब पिछलग्गू नेतागण न्याय योजना के विरोध में आकर खड़े हो गए हैं। मोदी सरकार 3 लाख 17 हजार करोड़ रुपए एक मुठ्ठी भर पूंजीपतियों मित्रों का माफ कर सकती हैं, परंतु आपको 72,000 रुपया इस देश के 20 फ ीसद लोगों को देने पर एतराज क्यों है? पाखंड़ का सहारा लेने वाली सरकार यह बताए कि आपके संरक्षण में बैंकों के भगौड़े विजय माल्या, नीरव मोदी, मेहुल चौकसी व अन्य एक लाख करोड़ रुपया लेकर देश की जनता की गाढ़ी कमाई को लेकर विदेश तो भाग सकते हैं, परंतु आपको देश के गरीबों को 72,000 रुपया देने में पीड़ा है। मोदी इस देश को बताएं कि आप 10 लाख रुपए का सूट-बूट तो पहन सकते हैं, आपका नाम जिसमें लाखों बार खुदा हुआ है और उसको 4 करोड़ रुपए में बेच सकते हैं, परंतु आपको इस देश के गरीब को 72,000 रुपया देने में क्या एतराज है, आप विरोध क्यों कर रहे हैं? आप अपने 89 विदेशी दौरों पर देश का दो हज़ार करोड़ रुपए और खुद के प्रचार-प्रसार पर 5,000 करोड़ रुपए जनता की कमाई का तो खर्च कर सकते हैं, पर आपको देश के एक गरीब परिवार को 72,000 रुपए देने में विरोध क्यों है? मोदी अपने मित्र अनिल अंबानी की कंपनी को 30,000 करोड़ रुपए का ठेका तो दिलवा सकते हैं पर इस देश के गरीब को 72,000 रुपए देने का विरोध क्यो हैं?

 इसी योजना पर पूछे एक अन्य प्रश्न के उत्तर में सुरजेवाला ने कहा कि कल भी ये कहा था, मैं फिर दोहराता हूं, भारतीय जनता पार्टी और उनके ब्लॉग मंत्री सारा दिन जो झूठा प्रचार करते हैं, सिवाए वित्त मंत्रालय चलाने के, वो फिर मोदी की तारीफों में कसीदे पढ़ते हुए मिथ्या प्रचार कर रहे हैं। कांग्रेस अध्यक्ष ने कल भी कहा था और आज मैं फिर कह रहा हूं, न कोई स्कीम बंद होगी, न एक पैसा सब्सिडी काटेंगे, ये न एमजी नरेगा की रिप्लेसमेंट है, न किसी और स्कीम की, वो सारी स्कीम जारी रहेंगी और इस स्कीम को हम इसके अलावा चलाएंगे। मैं आपको याद दिलाऊं, जब हमने महात्मा गांधी नरेगा स्कीम शुरू की तो भाजपा ने उसका विरोध किया था, क्या कहा था कि महात्मा गांधी नरेगा स्कीम से महंगाई बढ़ जाएगी। गरीबों को पैसा देने की क्या ज़रूरत है, बगैर काम के लोगों को क्यों काम देना चाहते हैं, इससे तो बहुत गड़बड़ हो जाएगी। ये पैसा आएगा कहाँ से?

याद करिए यूपीए ने 10 वर्ष में लगभग 5 लाख करोड़ रुपया एमजी नरेगा के माध्यम से दिया ।

केन्द्रीय मंत्री राज्यवर्धन राठौर के दिए बयान पर कि कांग्रेस पार्टी ऋ ण माफी तो कर नहीं पा रही है और अब नए स्कीमों की घोषणाओं से लोगों को गुमराह कर रही है, सुरजेवाला ने कहा कि पहले राज्यवर्धन राठौर जी यह बताएं कि क्या वो इतना साहस दिखाएंगे कि वो मोदी को किसान की कर्ज माफी का एक पत्र लिख दें? अगर उनमें इतना साहस नहीं है तो उनको न चुनाव लडऩा चाहिए और न मंत्री बने रहना चाहिए। सवाल पूछने से पहले खुद के गिरेबान में झांकिए, आपके प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री कजऱ् माफी का मज़ाक उड़ाते हैं, आपकी ये हिमत! आप इस देश के 62 करोड़ किसानों, खेत मजदूर और देश के अन्नदाता का मजाक उड़ाएं और सवाल भी हमसे पूछें।

पाक उत्पादों पर टैक्स की ग़ाज गऱीब तबके पर

युद्ध कभी एक आवश्यक बुराई हो सकता है, लेकिन कितना भी आवश्यक क्यों न हो यह हमेशा एक बुराई है। यह कभी भी अच्छा नहीं होता। पूर्व अमेरिकी राष्ट्र्रपति जिमी कार्टर का यह कहना किसी तरह हज़ारों भारतीयों की दुर्दशा के अनुरूप है  जिन्होंने भारत सरकार के द्वारा पाकिस्तान के साथ व्यापार शुल्क में अभूतपूर्व वृद्धि के निर्णय के बाद अचानक अपनी आजीविका खो दी। हजारों लोग जो इससे जीविका प्राप्त कर रहे थे जिनमें कुली, ड्राइवर, क्लीयरिंग एजेंट, इंपोर्ट हाउस के अलावा आयातक और व्यापारी हैं। वे पाकिस्तान के सामान पर आयात शुल्क में 200 फीसद की अचानक वृद्धि के कारण सदमे में हैं।

भारतीय सेना पर पुलवामा हमले के मद्देनज़र भारत सरकार ने एक अधिसूचना जारी की जिसमें द इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ पाकिस्तान से आने वाले सामान पर आयात शुल्क लगाया गया जो कस्टम टैरिफ अधिनियम 1975 की पहली अनुसूची के तहत आता है। कस्टम टैरिफअधिनियम की पहली अनुसूची में संशोधन करके इस शुल्क को 200 फीसद तक बढ़ा दिया गया है। यह अधिसूचना संख्या 5/2019-सीमा शुल्क 16.2.2019 को जारी की गई ।

हाल ही में कोच्चि बंदरगाह में 120 से अधिक कंटेनर, तूतिकोरिन में लगभग 200 कंटेनर और अटारी सीमा चेकपोस्ट के गोदाम में लगभग सामान से भरे 90 ट्रक खड़े हुए हैं क्योंकि आयातक 200 फीसद शुल्क का भुगतान करने में सक्षम नहीं है। अधिसूचना के अनुसार ‘‘पाकिस्तान में बना हुआ सामान अधिसूचना तारीख पर या उसके बाद पाकिस्तान या अन्य देशों से निर्यात किया गया। इससे पाकिस्तान से भारत में आयात प्रतिबंधित होगा, इसमें कोई शक नहीं है। लेकिन ‘‘पाकिस्तान से निर्यात’’ शब्द उन कार्गो को लक्षित करते हैं जिन्हें पहले ही पाकिस्तान से भेजा जा चुका है। पाकिस्तान से पहले भेजे गए कार्गो पर शुल्क की उच्च दर लागू  करने से भारत में आयातकों को ही नुकसान होगा, इसलिए इस अधिसूचना के साथ भारत सरकार शायद इसके नतीजों को जाने बिनाद्ध कभी एक आवश्यक बुराई हो सकता है, लेकिन कितना भी आवश्यक क्यों न हो यह हमेशा एक बुराई है। यह कभी भी अच्छा नहीं होता। पूर्व अमेरिकी राष्ट्र्रपति जिमी कार्टर का यह कहना किसी तरह हज़ारों भारतीयों की दुर्दशा के अनुरूप है  जिन्होंने भारत सरकार के द्वारा पाकिस्तान के साथ व्यापार शुल्क में अभूतपूर्व वृद्धि के निर्णय के बाद अचानक अपनी आजीविका खो दी। हजारों लोग जो इससे जीविका प्राप्त कर रहे थे जिनमें कुली, ड्राइवर, क्लीयरिंग एजेंट, इंपोर्ट हाउस के अलावा आयातक और व्यापारी हैं। वे पाकिस्तान के सामान पर आयात शुल्क में 200 फीसद की अचानक वृद्धि के कारण सदमे में हैं।

भारतीय सेना पर पुलवामा हमले के मद्देनज़र भारत सरकार ने एक अधिसूचना जारी की जिसमें द इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ पाकिस्तान से आने वाले सामान पर आयात शुल्क लगाया गया जो कस्टम टैरिफ अधिनियम 1975 की पहली अनुसूची के तहत आता है। कस्टम टैरिफअधिनियम की पहली अनुसूची में संशोधन करके इस शुल्क को 200 फीसद तक बढ़ा दिया गया है। यह अधिसूचना संख्या 5/2019-सीमा शुल्क 16.2.2019 को जारी की गई ।

हाल ही में कोच्चि बंदरगाह में 120 से अधिक कंटेनर, तूतिकोरिन में लगभग 200 कंटेनर और अटारी सीमा चेकपोस्ट के गोदाम में लगभग सामान से भरे 90 ट्रक खड़े हुए हैं क्योंकि आयातक 200 फीसद शुल्क का भुगतान करने में सक्षम नहीं है। अधिसूचना के अनुसार ‘‘पाकिस्तान में बना हुआ सामान अधिसूचना तारीख पर या उसके बाद पाकिस्तान या अन्य देशों से निर्यात किया गया। इससे पाकिस्तान से भारत में आयात प्रतिबंधित होगा, इसमें कोई शक नहीं है। लेकिन ‘‘पाकिस्तान से निर्यात’’ शब्द उन कार्गो को लक्षित करते हैं जिन्हें पहले ही पाकिस्तान से भेजा जा चुका है। पाकिस्तान से पहले भेजे गए कार्गो पर शुल्क की उच्च दर लागू करने से भारत में आयातकों को ही नुकसान होगा, इसलिए इस अधिसूचना के साथ भारत सरकार शायद इसके नतीजों को जाने बिना उन नागरिकों को दंडित कर रही है जिनका सामान पहले ही पाकिस्तान से बाहर जा चुका है लेकिन अभी तक भारतीय बंदरगाह पर नहीं पहुंचा है।

इसी समय हमारे देश ने किसी भी अधिसूचना द्वारा भारत से पाकिस्तान को होने वाले निर्यात पर कोई रोक नहीं लगाई है। संक्षेप में अधिसूचना में गलत अधूरे शब्दों के कारण न तो पाकिस्तान और न ही भारत सरकार को कुछ नुकसान हो रहा है लेकिन भारतीय आयातक जिनका सामान अधिसूचना के समय रास्ते में है वे हारे हुए हैं।

भारतीय आयातकों के चैम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के उपाध्यक्ष प्रदीप सहगल ने कहा, ‘‘आईपीसी से सामान की ढुलाई के लिए विभिन्न ट्रांसपोर्टरों द्वारा लगभग 900 ट्रकों को रूटीन में लगाया गया था जो कि अब व्यवसाय से बाहर हैं।’’ पंजाब में करीब 5000 परिवार पाकिस्तान के साथ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से व्यापार पर निर्भर है, जोकि सीमावर्ती जि़लों में कोई वैकल्पिक रोज़गार के अवसर उपलब्ध नहीं होने के कारण शुल्क की बढ़ोतरी से बुरी तरह प्रभावित हैं। सहगल ने कहा, ‘‘पाकिस्तान के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमा साझी करने वाले जि़लों में पहले से ही राष्ट्रविरोधी और असामाजिक गतिविधियों का खतरा है। इस स्तर पर बेरोज़गारी आगे स्थिति को बदतर बना देगी।’’

पाकिस्तान से सीमेंट, जिप्सम, ड्राई फ्रूट और रसायन का प्रमुख आयात होता है। जबकि पाकिस्तान हमसे सूती धागा और कपास की गंाठें खरीदता है। ताजा सब्जियां का भी निर्यात  किया जाता था लेकिन कुछ साल पहले पाकिस्तान ने इस पर रोक लगा दी। तीन साल पहले पाकिस्तान ने इतने कड़े प्रतिबंध लगाए थे कि सामान की खेप रद्द कर दी गई। किसानों की आय को दोगुना करना इनके एजेंडे में है। पािकस्तान के साथ व्यापार के सरल पुनरूद्वार की चर्चा कभी नहीं होती हैं। इसके लिए किसी नए निवेश की आवश्यकता नहीं है, केवल इरादे की ज़रूरत है।

नारायण एक्सिम्प कारपोरेशन के निदेशक राजदीप उप्पल ने तहलका को बताया कि हमारे नीति निर्माताओं के कार्यों और शब्दों में एक विरोधाभास बना रहता है। ‘‘हमारे व्यापार और वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार शुल्क वृद्धि पाकिस्तान को अलग करना है। यह हास्यास्पद दिखता है जब आप पाते हैं कि पाकिस्तान जो कुछ भारत से लेता उसे सस्ते मूल्य पर आयात कर रहा है। आयात शुल्क अछूते हैं। समझौता एक्सप्रैस फिर से शुरू की जाती है, करतारपुर कॉरिडोर के लिए बातचीत जारी है और कश्मीर सीमा से वस्तु विनिमय व्यापार बेरोकटोक जारी है। क्या व्यापार के एक हिस्से को सज़ा देने से पाकिस्तान को कोई नुकसान होगा। यह एक आधा-अधूरा प्रयास है और किसी को इससे लाभ नहीं होगा।’’

भारत ने 1996 में पाक को मोस्ट फेवरेट नेशन का दर्जा दिया था। बाघा से व्यापार 2.4 बिलियन अमरीकी डालर प्रतिवर्ष का है और मुख्य रूप से कश्मीर से तनाव के कारण काफी कम हो गया है। वास्तव में इस सीमा चौकी की अनुमानित क्षमता 70 बिलियन डालर से अधिक है। बिगडते रिश्तों ने क्षेत्र में सामाजिक, सांस्कृतिक आदान-प्रदान, स्वास्थ्य सेवा पर्यटन की संभावनाओं को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है।

प्ंाजाब राज्य सीआईआई के पूर्व अध्यक्ष गनबीर सिंह ने कहा, ‘‘पाकिस्तान में नई इमरान सरकार बनने के बाद भी स्थिति में सुधार की कमी और भारत में राष्ट्रीय चुनाव, कश्मीर में विध्वंसकारी कार्रवाई के कारण दोनों देशों के व्यापार और वाणिज्य में सुधार की बहुत कम गुंजाइश है।’’

प्ंाजाबी विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर और वरिष्ठ अर्थशास्त्री सुच्चा सिंह गिल के अनुसार, ‘‘हमारा व्यापार पाकिस्तान के साथ ‘सरप्लस’ है, हम जितना निर्यात करते हैं उससे अधिक आयात करते हैं। आयात शुल्क में बढ़ोतरी से व्यापार की स्थिति खराब हो जाएगी और इससे हमारे देश को कोई लाभ नहीं होगा।’’

पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम ने 2012  में आईसीपी के उद्घाटन के साथ इस क्षेत्र के लोगों के उज्जवल भविष्य की उम्मीद की थी। क्योंकि इससे द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा मिलने की उम्मीद थी। लेकिन सरकारी नीतियों में फ्लिप-फ्लॉप और शांति के समय में संवाद की कमी व्यापार को सुविधाजनक बनाने में विफल रही है।

चाइॅस एसोसिएट्स एर्नाकुलम के मालिक अरूण जिमी 2014 से इस कारोबार में हैं। उनका कहना है कि हम पाकिस्तान से सीमेंट का आयात करते हैं और हमने सीमेंट के 90 से अधिक कंटेनर का आर्डर दिया। जब जहाज पर सामान लादने का कार्य हुआ तो अधिसूचना संख्या सीयूएस 50/2017 दिनांक 30.6.2017 के अनुसार शुल्क लागू था और केवल आईजीएसटी ही देय था। कंटेनर का 16.2.2019 से पहले कराची बंदरगाह से भेज दिया गया था। जब कंटेनर कोच्चि बंदरगाह पर पहुंचे तो हम पर अधिसूचना के अनुसार 200 फीसद सीमा शुल्क का भार है। इस अधिसूचना का उद्देश्य पाकिस्तान के व्यापार को रोकना था लेकिन अधिसूचना संख्या 05/2019 सीमा शुल्क दिनांक 16.02.2019  में स्पष्टता की कमी के कारण हम जैसे आयातकों पर अतिरिक्त सीमा शुल्क लगाया गया है।

कारोबार के संबंध में पूर्ण भुगतान अग्रिम रूप से कर दिया है इससे न तो पाकिस्तान का और न ही भारत सरकार को कुछ नुकसान हो रहा है। लेकिन नुकसान भारतीय नागरिक का ही है। क्योंकि पैसे पहले ही विक्रेता को भेज दिए है। कोच्चि आने वाले कार्गो को पाकिस्तान को वापिस करने से पाक को दोहरा फायदा होगा क्योंकि उन्हें पहले ही पैसे का भुगतान मिल चुका है और अब उन्हें सामान भी मिल जाएगा।

केंद्र सरकार का उद्देश्य पूरा होना चाहिए लेकिन न्याय सभी भारतीय नागरिकों के लिए समान रूप से किया जाना चाहिए। अधिसूचना में एक स्पष्टीकरण यह किया जा सकता है कि 16.2.2019 से पहले पाकिस्तान से जो भी कार्गो निकला उसे पहले से लागू शुल्क पर कस्टम क्लीरयंस दी जाएगी और नई अधिसूचना उन कार्गो के लिए है जो 16.2.2019 या उसके बाद पाकिस्तान से चले हैं। इस संबंध में तत्काल निर्णय की आवश्यकता है। इसमें देरी होने से बंदरगाह द्वारा कंटेनर पर बिलंब शुल्क और स्टीमर लाइन द्वारा अवरोध शुल्क लगेगा और यह आयातक के लिए एक बड़ा झटका होगा।

मौजूदा नियमों के अनुसार बंदरगाह पर जहाज के पहुंचने के 24 घंटे के भीतर आयात के दस्तावेज कस्टम को पहुंचाने होते हैं नही ंतो तीन दिनों तक 5000 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से जुर्माना देना पड़ता है। इसके बाद यह जुर्माना 10,000 रुपए प्रति दिन के हिसाब से लगता है। जहाजों से सीमेंट की खेप लंबे समय से आ रही है और ये बिना किसी जुर्माने के बंदरगाह से बाहर जाती रही है। यह देरी केवल अधिसूचना 05/2019 के कारण हुई है। इस अधिसूचना के अनुसार कस्टम डयूटी 200 फीसद कर दी गई। जो सामान जहाजों में उस समय चल पड़ा जब यह अधिसूचना जारी नहीं हुई थी, उसके व्यापारियों  को भारी नुकसान हुआ है। इस तरह भारत का आयात अंधेरे की ओर है।

इसके बारे में हमने एक याचिका डब्ल्यूपीसी 6167/2019 केरल के हाईकोर्ट में डाली है। इसमें निवेदन किया गया है कि उन 90 कंटेनर को बढ़ी हुई ड्यूटी से राहत दी जाए जो इस अधिसूचना के जारी होने से पहले बंदरगाह से चल चुके थे। केरल हाईकोर्ट ने आयात करने वालों के हितों को ध्यान में रख कर अंतरिम आदेश जारी कर दिया।

दूसरी ओर चीन ने बड़े गुप्त तरीके से अपने उत्पाद बाज़ार में पहुंचा दिए जो कि सस्ते हैं। हालांकि उनकी गुणवत्ता अच्छी नहीं पर फिर भी उन्होंने बाज़ार पर अपनी पकड़ बना ली है। अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में चीन पाकिस्तान का साथ देता आ रहा है। अखिल भारतीय व्यापारी परिसंघ ने चीन में बने उत्पादों पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है। उसने चीनी उत्पादों पर 300 से 500 फीसद कस्टम डयूटी लगाने की मांग भी की है। साथ ही उनकी मांग है कि व्यापारियों और छोटे उद्योगों को विशेष पैकेज दिया जाए। व्यापारियों का कहना है कि सरकार इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं ले रही।

राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से भारत की एक विशाल छलांग — अमित शाह

भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने आज अंतरिक्ष के क्षेत्र में ‘मिशन शक्ति’ के तहत स्वदेशी एंटी सैटेलाइट मिसाइल ‘ए-सैट’ से तीन मिनट में एक लाइव सैटेलाइट को नष्ट करने की सफलता के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, इस मिशन से जुड़े वैज्ञानिक और वैज्ञानिक संस्थाओं को हार्दिक बधाई दी। साथ ही, भारत की इस उपलब्धि पर राहुल गाँधी द्वारा प्रधानमंत्री के खिलाफ अपमानजनक बयान के लिए करारा प्रहार भी किया।

शाह ने ट्वीट करते हुए कहा कि ‘वंशवाद के उत्तराधिकारी’ को सब कुछ ड्रामा ही लगता है क्योंकि वह पूरे देश को रंगमंच समझते हैं। उनके लिए- सैनिकों का बलिदान ड्रामा है, वैज्ञानिकों की कामयाबी भी ड्रामा है। नेता होने का स्वांग रचते हुए ‘इस वंश’ ने देश को सिर्फ लूटा है, कमज़ोर और बर्बाद किया है।

राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा कि ऐंटी-सैटलाइट मिसाइल का अंतरिक्ष में सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया लेकिन लगता है कि इससे कुछ लोग व्यथित हुए हैं। उन्होंने कहा कि जि़ंदगी भर हमारे सैनिकों का अपमान करने वाली कांग्रेस एवं उसकी सहयोगी पार्टियों के नेता अब हमारे वैज्ञानिकों का उपहास उड़ाना शुरू कर चुके हैं। यह काफी शर्मनाक है।

सच्चाई यह है कि हमारे कुशल वैज्ञानिकों के पास हमेशा से प्रतिभा और क्षमता थी। जरूरत तो इस बात की थी कि सरकार आगे बढ़े और दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय दे लेकिन दुर्भाग्य से यूपीए सरकार के पास यह साहस ही नहीं था कि वह अपने संस्थानों और लोगों का साथ दे सके। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा सरकार ने यह करने की इच्छाशक्ति दिखाई है जिसका परिणाम आज देश के सामने है।

भाजपा अध्यक्ष ने कहा कि एक निर्णायक नेतृत्व ही एक मजबूत राष्ट्र की नींव डालता है। ‘मिशन शक्ति’ की सफलता के साथ ही भारत ने अमेरिका, रूस और चीन के साथ अंतरिक्ष शक्तियों के बीच अपनी गरिमामय उपस्थिति दर्ज की है। उन्होंने कहा ए—सैट एक एंटी-सैटेलाइट मिसाइल है, जिसने लोअर अर्थ ऑर्बिट में एक लाइव उपग्रह को सफलतापूर्वक न किया, यह राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से भारत की एक विशाल छलांग है।

‘मिशन शक्ति’ की कामयाबी के बाद भारत दुनिया के उन चुनिंदा चार देशों के प्रतिष्ठित क्लब में शामिल हो गया है, जिनके पास अंतरिक्ष में सैटलाइट को मार गिराने की क्षमता है। भारत के पास यह क्षमता पहले से ही थी लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी की वजह से इसका परीक्षण नहीं किया गया।

यूपीए सरकार में न क्षमता थी, न ही रक्षा नीति में  स्पष्टता  

भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली और रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने आज पार्टी के केन्द्रीय कार्यालय में एक संयुक्त प्रेस वार्ता को संबोधित किया और अंतरिक्ष के क्षेत्र में ‘मिशन शक्ति’ के तहत भारत द्वारा स्वदेशी एंटी सैटेलाईट मिसाइल ‘ए-सैट से तीन मिनट में एक लाइव सैटेलाईट को मार गिराने की सफलता के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं इस मिशन से जुड़े वैज्ञानिक एवं वैज्ञानिक संस्थाओं को बधाई दी। जेटली ने कहा कि आज देश के लिए ऐतिहासिक दिन है। अंतरिक्ष महाशक्ति बनने पर सुरक्षा के क्षेत्र में यह भारत का बहुत बड़ा कदम है। उन्होंने कहा कि मिशन शक्ति ऑपरेशन सौ फीसदी स्वदेशी, है। इसकी हर चीज का शोध और निर्माण भारत में ही हुआ। उन्होंने कहा भारत आज अंतरिक्ष के क्षेत्र में चौथी महाशक्ति बन गया है जो भारतवासियों के लिए गर्व की बात है।

उन्होंने कहा कि इस प्रकार की ताकत के साथ भारत की केवल शक्ति ही नहीं बढ़ेगी बल्कि इस क्षेत्र में शांति रखने की हमारी क्षमता भी बढ़ेगी। हर तरह की लड़ाई के लिए हमें तैयारी करनी है और हमारी तैयारी ही हमारी सुरक्षा है। जेटली ने कहा कि भारत का एकमात्र उद्देश्य विश्व शांति के साथ अपनी रक्षा करना है।

जेटली ने कांग्रेस पार्टी द्वारा रक्षा के क्षेत्र में उदासीनता को लेकर हमला करते हुए कहा कि पिछली यूपीए सरकार में न तो क्षमता थी, न  रक्षा नीति में कोई स्पष्टता थी और न ही उन्होंने डीआरडीओ की क्षमता पर भरोसा किया जिसके कारण इस प्रकार के ऑपरेशन को अनुमति नहीं मिली। उन्होंने कहा कि कांग्रेस आज इस उपलब्धि के लिए अपनी पीठ थपथपा रही है। उन्होंने कहा कि वैज्ञानिक एक दशक से इसके लिए तैयार थे, लेकिन तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने इसकी अनुमति नहीं दी। उन्होंने कहा कि जब अग्नि 5 लॉन्च हुआ था तो 21 अप्रैल 2012 के प्रकाशित इंटरव्यू में प्रसिद्ध  वैज्ञानिक वी के सारस्वत ने कहा था कि हमारे पास ऐसी इच्छा और क्षमता है, लेकिन सरकार अनुमति नहीं दे रही। इसकी पूरी प्रक्रिया 2014 के बाद शुरू हुई जब प्रधानमंत्री ने अनुमति दी।

 जेटली ने कहा कि जो लोग अपनी नाकामियों के लिए अपनी पीठ थपथपाते हैं, उनको याद रहना चाहिए कि उनके झूठ और नाकामी की कहानियों की सूची बहुत लंबी है और जल्दी ही उनके झूठ की पोल भी खुल ही जाती है। विपक्ष द्वारा सर्जिकल स्ट्राइक एवं बालाकोट में भारतीय सेना द्वारा की गयी एयर स्ट्राइक पर सबूत मांगकर सेना के मनोबल को गिराने को लेकर विपक्ष पर प्रहार करते हुए उन्होंने कहा कि इस मामले में भी कांग्रेस एंड कंपनी ने ऐतिहासिक गलती की है, वे जितना वे नीचे  गिरेंगे, उतना ही हम ऊपर उठेंगे।

जेटली ने कहा कि भारत के लिए यह उपलब्धि बेहद खास है क्योंकि यह मिशन पूरी तरह से भारतीय है। हमें याद रहे कि पुराने युद्ध जैसे होते थे और जो अगले युद्ध होंगे वो अलग होंगे। कन्वेंशल आर्मी एयरफोर्स के युद्ध फिर साइबर और अब स्पेस। इस लिहाज से आज की उपलब्धि काफी महत्वपूर्ण है।

जेटली ने कहा कि भारत एक शांतिप्रिय देश है और आज की उपलब्धि किसी भी देश के खिलाफ नहीं है। हमने किसी आक्रमण के लिए इसे विकसित नहीं किया है। हाँ, इसके माध्यम से हमारी क्षमता बढ़ी है। इस जियो पॉलिटिकल सिचुएशन में अपनी रक्षा करने की पूरी ताकत हमारे पास है। प्रधानमंत्री देश की सुरक्षा को प्राथमिकता और ताकत दे रहे हैं, उस दिशा में यह मील का पत्थर है। इस प्रकार की ताकत के साथ हमारी शक्ति ही नहीं बढ़ेगी, हमारी शांति को कायम रखें इसकी क्षमता भी बढ़ेगी।

शांता ‘युग’ समाप्त, सुख राम अभी भी ‘मैदान’ में

इस बार का लोक सभा चुनाव पहाड़ की राजनीति में दिलचस्प मोड़ लेकर आया है। भाजपा ने दिग्गज शांता कुमार का टिकट काटकर उनकी चुनावी राजनीति पर ‘फुल स्टाप’ लगा दिया तो उनसे भी बड़े सुख राम ने ऐसी पलटी मार ी की राजनीति के बड़े-से-बड़े जानकार हैरान रह गए। सुख राम खुद तो चुनाव राजनीति में नहीं हैं लेकिन उनकी चालें सक्रिय राजनेताओं से भी ज्य़ादा चतुराई भरी दिखती है।

भाजपा ने इस बार पिछले लोक सभा चुनाव में जीते चार में से दो सांसदों के टिकट काट दिए। इनमें एक तो शांता कुमार ही हैं और दूसरे शिमला आरक्षित सीट से जीते वीरेंदर कश्यप हैं जहाँ पार्टी ने दो बार के विधायक सुरेश कश्यप को टिकट दिया है। कांगड़ा में भले शांता कुमार चुनाव परिदृश्य से बाहर को गए, पर टिकट पार्टी ने उनके समर्थक और जयराम सरकार में मंत्री किशन कपूर को दिया है जो गद्दी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं।

पिछली बार मोदी लहर में भाजपा प्रदेश की चारों सीटें जीत गयी थी। इस बार उसकी राह उतनी आसान नहीं दिखती। वजह यह कि ज़मीन पर 2014 जैसे मोदी नाम की कोई लहर इस बार नहीं दिखती। भाजपा की प्रदेश में भी सरकार है इस लिहाजा मुयमंत्री जय राम के सामने सभी चार सीटों पर फिर पार्टी को जीत दिलाना बड़ी चुनौती रहेगी।

हमीरपुर से भाजपा ने लगातार चौथी बार अपने युवा चेहरे अनुराग ठाकुर पर भरोसा जताया है जबकि मंडी से राम स्वरुप शर्मा पर जो पिछली बार पहली लोक सभा की दहलीज लांघे थे। इस तरह भाजपा ने दो नए चेहरे मैदान में उतारे हैं जो अभी तक विधानसभा चुनाव जीतने तक सीमित थे।

सुख राम के कांग्रेस में जाने से मंडी में स्थितियां बदलेंगी। भाजपा प्रत्याशी राम स्वरुप भी ब्राह्मण हैं और सुख राम भी। किसी वक्त प्रदेश के मुयमंत्री पद के दावेदार रहे सुख राम पूर्व मुयमंत्री वीरभद्र सिंह के कट्टर विरोधी माने जाते हैं।  यह अलग बात है कि प्रदेश की राजनीति ने दोनों को फिर एक साथ-साथ खड़ा कर दिया है। दल दोनों का भले एक हो गया, दिल मिलने की संभावना कम ही है।

2014 के चुनाव में भाजपा के सभी उमीदवार मोदी लहर के चलते बड़े अंतर से जीते थे। वैसी स्थिति इस बार नहीं दिखती। जिस मंडी जिले में सुख राम के भाजपा ज्वाइन करने के बाद भाजपा सभी 10 सीटें जीत गई थी उस जिले में अब सुख राम कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। दिलचस्प यह है कि उनके पुत्र अनिल शर्मा अभी भी भाजपा सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं।

सुख राम ने दिल्ली में कांग्रेस में शामिल होने से पहले अपने पोते आश्रय के लिए टिकट की गुहार लगाई थी। उनकी कामना पूरी हो गयी है। आश्रय को कांग्रेस टिकट मिलने से मंत्री पिता अनिल शर्मा के लिए मुश्किल पैदा हुई है। वे भाजपा प्रत्याशी के लिए अपने बेटे के खिलाफ प्रचार करेंगे ऐसी संभावना कम ही है। मुयमंत्री साफ़ कर चुके हैं कि अनिल शर्मा को भाजपा प्रत्याशी के लिए प्रचार करना ही होगा।

ऐसे में अनिल शर्मा को या तो पिता-पुत्र संबंध के लिए मंत्री पद त्यागना होगा या कुर्सी का मोह रखते हुए पुत्र के खिलाफ मैदान में उतरना होगा। शायद ही अनिल शर्मा ऐसी हिमत दिखा पाएं। बहुत ज्यादा संभावना है कि अनिल शर्मा भाजपा और मंत्री पद से इस्तीफा दे देंगे।

सुख राम किस मकसद से कांग्रेस में आएं हैं, यह इस बात से जाहिर हो जाता है कि वे अपने पोते आश्रय को मंडी से कांग्रेस टिकट दिलाने में सफल  रहे हैं। मंडी मुयमंत्री जय राम ठाकुर का गृह जिला है लिहाजा सुख राम ने कांग्रेस ज्वाइन करके निश्चित ही भाजपा की चुनौती बढ़ा दी है। यदि वीरभद्र सिंह खुलकर आश्रय के हक़ में प्रचार करते हैं तो निश्चित ही इससे भाजपा का सरदर्द बढ़ेगा। कांग्रेस ने युवा आश्रय को टिकट देकर निश्चित ही बड़ा दांव खेल दिया है।

मंडी मुयमंत्री के लिए इसलिए भी ज़रूरी और इज्जत वाली सीट हैं, क्योंकि वे खुद मंडी जिले से हैं। पिछले करीब सवा महीने के राजकाल में वे अपने जिले के लिए बड़े प्रोजेक्ट लाए हैं। विपक्ष तो उन पर आरोप लगा रहा है कि वे गृह जिले के मोह में बाकी जिलों के हितों की बलि दे रहे हैं।

खुद मुयमंत्री जयराम ठाकुर इससे इंकार करते हैं। ‘तहलका’ से बातचीत में जयराम ने कहा – ‘यह सब मनघडंत बातें हैं। मंडी से हमें सभी 10 सीटें मिली हैं तो हमारा फज़ऱ् बनता है कि पिछले सालों में इस जिले की जो उपेक्षा हुई है उस पर लोगों की उमीदों और भावनाओं का याल रखें। लेकिन ऐसा दूसरे क्षेत्रों की कीमत पर किया जा रहा है ऐसा कहना तो एक मजाक ही होगा। हमारी सरकार सभी क्षेत्रों का सामान रूप से विकास कर रही है। जनता को सब कुछ मालूम है और हम अपनी सरकार के काम के बूते फिर चारों सीटें जीतने जा रहे हैं।’

लेकिन हिमाचल में नेता विपक्ष मुकेश अग्निहोत्री के गले मुयमंत्री की यह सफाई नहीं उतरती। उनका कहना है – ‘मुयमंत्री जिस समान विकास की बात कर रहे हैं वह ज़मीन पर तो नहीं दिखता। भाजपा ने तो जो बड़े अपने चुनाव घोषणा पत्र में किये थे उन पर ही अभी काम शुरू नहीं किया। विकास तो दूर की बात है। यह सरकार पूरी तरह फेल हुई है और कांग्रेस इस बार चारों सीटों पर जीत का झंडा गाड़ेगी।’

इस बार विधानसभा के शीतकालीन सत्र में प्रदेश में बेरोजगारी के चिंताजनक आंकड़े सामने आए हैं। करीब 8. 5 लाख पहुँच चुका है प्रदेश में बेरोजगारी का आंकड़ा। दरअसल बेरोजगारी पूरे देश में सबसे बड़ा मुद्दा है। हिमाचल भी इससे अछूता नहीं जहाँ निजी क्षेत्र तो नाम मात्र का ही है। ऐसे में युवाओं की निगाह सरकारी नौकरियों पर ही है। पिछले सालों में प्रेम कुमार धूमल, वीरभद्र सिंह से लेकर वर्तमान मुयमंत्री तक केंद्र से प्रदेश के सेना के कोटे में बढ़ोतरी की मांग करते रहे हैं। हिमाचल के जवान को ही देश का पहला परमवीर चक्र मिलने का सौभाग्य हासिल है और यह भी सच है प्रदेश के लाखों जवान देश की सीमाओं की हिफाजत में डटे हैं। ऐसे में प्रदेश की यह मांग जायज़ भी दिखती है।

इस बार चुनाव में जयराम अपनी सरकार के कामों और मोदी के ‘करिश्मे’ पर निर्भर रहेंगे। भले 2014 जैसा माहौल इस बार नहीं है। हमीरपुर में अनुराग ठाकुर मज़बूत दिखते हैं। उनका अपना ें अच्छा जनाधार है और युवा उन्हें विकास तुर्क के रूप में देखते हैं। रेल लाइन और क्रिकेट के क्षेत्र में अनुराग के काम युवाओं की जुबान पर दिखते हैं। बिलासपुर में मुकेश चंदेल ने तहलका से बातचीत में कहा – ‘अनुराग ठाकुर ने सांसद के रूप में अच्छा काम किया है। हिमाचल को क्रिकेट का तो उन्होंने हब बना दिया ।’

कांग्रेस हमीरपुर हलके में भाजपा के अध्यक्ष रहे सुरेश चंदेल को अपने पाले में करने की कोशिश में है। चंदेल बिलासपुर  हैं और कांग्रेस का टिकट चाहते हैं। दरअसल कांग्रेस के लोग नहीं चाहते कि चंदेल को कांग्रेस में शामिल किया जाये। उनको टिकट  का विरोध तो कांग्रेस के बीच है ही। चंदेल को टिकट मिलने से सुजानपुर के विधायक राजेंद्र राणा भी बिदक सकते हैं जो अपने बेटे को टिकट के लिए ज़मीन-आसमान एक किए हुए हैं। राणा पहले भाजपा में ही थे और उन्हें धूमल का बहुत करीबी माना जाता था ।

अनुराग की सबसे बड़ी ताकत उनके पिता पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल हैं जिनका पूरह्य प्रदेश में मज़बूत जनाधार  है। वे विधानसभा का चुनाव 2017 में हारने के बाद भी भाजपा में बहुत सक्रिय हैं। उनकी आज भी पूरे क्षत्र में गहरी पैठ है।

उधर कांगड़ा में किशन कपूर को पूरी तरह शांता कुमार पर निर्भर रहना होगा क्योंकि किशन की अपनी ज़मीन अपने विधानसभा हलके धर्मशाला से बाहर बिलकुल नहीं है।

शिमला में कांग्रेस की तरफ से पूर्व मंत्री और सांसद और वर्तमान में विधायक धनी राम शांडिल को टिकट की चर्चा है। वहां भाजपा ने दो बार के  विधायक  सुरेश कश्यप को मैदान में उतारा है। लिहाजा मुकाबला बहुत दिलचस्प होगा। धनी राम की हलके में अच्छी पैठ मानी जाती है। यहाँ सुधीर कुमार, जीएस बाली, आशा कुमारी कांग्रेस टिकट के दावेदार हैं।

हिमाचल में मतदान 19 मई को होना है यानी अंतिम चरण में। लिहाजा सभी दलों के पास प्रचार के लिए बहुत वक्त है। लोगों की भी चुनाव पर नजर है। शिमला के लोअर जाखू में मिठाई की दुकान करने वाले विकास लखनपाल ने कहा – ‘इस बार मोदी का करिश्मा ख़त्म हो चुका है। अच्छे दिन आये नहीं और बेरोजगारी और विकराल रूप से सामने खड़ी है। मुझे लगता है लोगों में मोदी के प्रति नाराजगी है क्योंकि वो बातें ही करते रहे हकीकत में काम नहीं हुआ है।’ हालांकि, हमीरपुर के नादौन में सेना से रिटायर सूबेदार सुरेश सिंह ने कहा – ‘आतंकवाद के खिलाफ जो मादा मोदी साहब ने दिखाया है वो हम सैनिकों का सीना गर्व से भर देता है। मोदी इस देश की ज़रुरत हैं।’ कुछ ऐसी ही बात पटलांदर (सुजानपुर) में युवा राम सिंह ठाकुर ने कही – ‘अभी तो मोदी साहब का कोईं विकल्प नहीं दिखता।’ लेकिन रिवालसर की सविता ने कहा – ‘महंगाई बहुत है। हमारा बेटा  बेरोजगार है। उसे नौकरी नहीं मिली, पांच साल हो गए। मोदी जी की बातें ही रहीं कुछ हुआ नहीं।’

डढ़वा के पानी से बंधी है लोगों की जीवन डोर

नदी संस्कृति के मामले में भारत दुनिया का सिरमौर माना जाता रहा है। संसार के किसी भी क्षेत्र के तुलना में सर्वाधिक नदियां हिमालय अधिष्ठाता शिव की जटाओं से निकलकर भारत के कोने-कोने को शस्य श्यामला बनाती रहती है। नदियों के किनारे ही विश्व की सभ्यता रची-बची है। नदियां लोगों के जीवन का सेतु और आजीविका का स्थायी स्त्रोत होने के साथ-साथ जैव विविधता, पर्यावरणीय और पारिस्थितिक संतुलन की मुख्य जीवन रेखा है। लेकिन आज देश के अधिकांश राज्यों में नदियों की स्थिति सही नहीं है। एक रिपोर्ट के मुताबिक अकेले झारखंड में ही करीब 133 नदियां अब तक सूख चुकी है। यदि यही स्थिति रही तो राज्य को एक दिन घोर पेयजल संकट का सामना करना पड़ सकता है। अब हम देवघर की लाइफ लाइन कहीं जाने वाली डढ़वा नदी पर आते हैं। बालू खनन, डीप बोरिंग व शहर का कूड़ा डंपिंग जोन बन जाने के कारण नदी का अस्तित्व खतरे में है। लेकिन लोगों को अभी भी उम्मीद है कि प्रशासन व सरकार ध्यान दे तो इस नदी को बचाया जा सकता है। फिर से देवघर की लाइफ लाइन कही जाने वाली डढ़वा को नयी जीवनधारा मिल सकती है।

देवघर व कुमैठा जाने वाले पथ की बीच स्थिति है डढ़वा नदी

डढ़वा नदी देवघर व कुमैठा गांव जाने वाले पथ के बीच स्थित है। इस नदी के किनारे कुमैठा, रोहणी समेत दर्जनों गांव बसे हुए है। इन गांव के किसान करीब एक-डेढ़ दशक पहले तक इस नदी के पानी से ही खेतों की सिंचाई करते थे। रोहणी के रहने वाले शंभु कहते है कि नदी के सूखने से नदी किनारे स्थित गांवों में पेयजल का घोर संकट उत्पन्न हो गया है। जलस्तर काफी नीचे चला गया है। ग्रामीण इसी नदी के भरोसे ही धान की खेती करते थे। लेकिन अब नदी के सूखने से खेती साफ तौर पर बंद हो चुकी है। किसी तरह लोग गेहूं की खेती कर लेते है। किसानों ने बताया कि नदी अपनी वास्तविक चौड़ाई से भी काफी सिकुड़ चुकी है।

बालू के अवैध खनन से नदी का अस्तित्व संकट में

अपनी अमृत धारा से कभी जीवन-दायिनी रही डढ़वा नदी आज मरणासन्न अवस्था में पहुंच गयी है। इसका मूल कारण दशकों से नदी में चल रहे बालू खनन का कारोबार है। अब नदी इस स्थिति में पहुंच गयी है कि नदी में बालू

कहीं-कहीं देखने को मिलता है। बालू खनन से नदी सपाट खेत के रूप में परिवर्तित हो गयी है। अब नदी में थोड़ा-बहुत जो बालू बचा है उसका भी खनन प्रशासन की नाक के नीचे आये दिन होता रहता है। नगर निगम की ओर से शहर में पेयजल सप्लाई के लिए नदी में करीब 30 बोरिंग कराए गए हैं। जिस वजह से नदी के किनारे स्थित गांवों के कुएं तक सूख गए है। नगर निगम के एक कर्मी बताते है कि 2005 में नदी में पानी के ठहराव के लिये चेक डेम का निर्माण किया गया। चेक डेम के बनने से कोई विशेष फायदा तो नहीं हुआ लेकिन नदी में पानी का प्रवाह रुक गया। जिससे नदी में काफी मात्रा में गाद जम गई है।

जलापूर्ति के लिये देवघर शहर डढ़वा व अजय नदी पर है निर्भर

देवघर शहर पेयजल के लिये अजय व डढ़वा नदी पर मुख्य रूप से निर्भर है। दोनों नदियां मूल रूप से बरसाती नदी के तौर पर जानी जाती है। लेकिन डढ़वा नदी बालू के अवैध खनन व जगह-जगह डीप बोरिंग होने के कारण पूरी तरह मरणासन्न अवस्था में पहुंच गयी है। नदी के सूखने का सबसे अधिक प्रभाव शहर की करीब तीन लाख आबादी पर पड़ेगा।

लोगों को यही चिंता है कि गर्मी के दिनों में उनकी कैसे बुझेगी प्यास। चार से पांच माह पूर्व आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत देवघर दौरे पर आये हुए थे। जहां स्थानीय लोगों ने शहर के पेयजल के संकट से संघ प्रमुख को अवगत कराया था। जिस पर संघ प्रमुख ने इस मामले में राज्य सरकार से बात करने का आश्वासन दिया था।

सांसद ने रिवर फ्रंट बनाने की थी घोषणा

सांसद निशिकांत दुबे ने करीब 6 माह पूर्व डढ़वा नदी में रिवर फ्रंट बनाने की घोषणा की थी, जिसे डढ़वा फ्रंट नाम दिया जाना है। रिवर फ्रंट में 50 फीट चौड़ा और 2 किलोमीटर लंबा पैदल पथ साथ ही पार्किंग की व्यवस्था करने की योजना है। शहर के कपड़ा व्यवसायी मनोज मित्रा का मनाना है कि रिवर फ्रंट बनने से शहर की खूबसूरती बढ़ जायेगी। लेकिन आज छह माह से अधिक होने को है, लेकिन सांसद की घोषणा अभी धरातल पर नहीं उतरी। मित्रा कहते है कि सबसे पहले हमें डढ़वा नदी को विलुप्त होने से बचाने का प्रयास करना होगा। चूंकि देवघर राज्य की सांस्कृतिक राजधानी है। नदी से ही संस्कृति का उद्गम व सभ्यता का विकास हुआ है। ऐसे में नदियां ही विलुप्त हो जायेंगी, तो मानव जीवन का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है।

जन सहयोग से बदली तस्वीर

क्या हमारे देश के किसी सरकारी स्कूल में विश्व स्तर की सुविधाएँ उपलब्ध करवाई जा सकती है? स्कूल में लगभग सभी विषयों संबंधी विभिन्न प्रयोगशालाओं के साथ साथ बच्चों के खेलने के लिए सिंथेटिक टफऱ् युक्त मैदान, पुस्तकालय आदि सुविधाएं हो सकती है? छात्र-छात्रों के लिए आधुनिक ब्लैक बोर्ड और डेस्क हो सकते हैं? अमीर घरों के सदस्य अपने बच्चों के सरकारी स्कूल में प्रवेश के लिए बड़ी बड़ी सिफ़ारिशे लगाते हों और गरीब बच्चों को बिना सिफ़ारिश के प्रवेश मिलता हो। यह सब एक सपने जैसा लगता है। कम से कम ऐसा उदाहरण उत्तर भारत में कंही नहीं देखने को मिलता और लगभग असंभव सा लगता है, परन्तु यह सच है और केरल के कालीकट स्थित लड़कियों के सरकारी व्यावसायिक वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल (जीवीएसएसएस) में यह सारी सुविधाएँ उपलब्ध है। यह संभव हुआ है केरल के मुयमंत्री पी विजयन और उत्तरी कालीकट के विधायक प्रदीप कुमार की सोच के कारण। इसी सोच के कारण सीपीआई (एम) ने प्रदीप कुमार को कोषिक्कोड लोकसभा सीट से चुनाव हेतु चुनाव मैदान में उतारा है।

 कालीकट में यह एक मात्र स्कूल नहीं हैं, यहाँ पर बच्चों को विश्व स्तर की सुविधांए उपलब्ध करवाई जा रही हैं। बल्कि कालीकट में ही इस प्रकार के 10 स्कूल हैं, यहाँ सरकारी स्कूलों को निजी स्कूलों से बेहतर बनाने की मुहिम चलाई जा रही है। इस कार्य के लिए सारा पैसा सरकारी फ़ंड से ख़र्च नहीं किया जा रहा, बल्कि प्राईवेट कंपनियों और ग़ैर सरकारी संस्थाओं से भी पैसा लिया जा रहा है। कालीकट के 10 स्कूलों के लिए फैज़ल और शबाना फांउडेशन द्वारा 16 करोड़ रुपए की राशि उपलब्ध करवाई गई हैं। मुयमंत्री पी विजयन द्वारा कालीकट शहर के बदल रहे स्कूलों की रुपरेखा को देखते हुए बिना किसी भेदभाव के प्रदेश के सभी 140 विधायकों को पाँच पाँच करोड़ रुपए की राशि जारी कर उन्हें अपने-अपने क्षेत्र के किसी एक सरकारी स्कूल को विश्व स्तर का बनाने का आग्रह किया गया है।

प्रदीप कुमार ने बताया कि जब वह छोटे थे और शिक्षा ग्रहण कर रहे थे तब वह स्वंय ऐसे कई आंदोलनों में भाग ले चुके हैं, जोकि शिक्षा को प्राईवेट हाथों में देने के खिलाफ थे। ऐसे आंदोलनों के कई वर्षों बाद जब वह पहली बार विधायक बने तो उन्हें अपने सपने को साकार करने का अवसर मिल गया। उसके बाद विजय तो था सबसे बड़ी समस्या पैसे को लेकर सामने आई। तब ग़ैर सरकारी संस्थाओं को अपने इस मिशन के साथ जोड़ा गया, ताकि सरकारी स्कूल को विश्व स्तर का बनाया जा सके। प्रदीप कुमार ने बताया कि सबसे ज़्यादा समस्याओं का सामना मात्र पहले सरकारी स्कूल को अपग्रेड करने में ही आई, उसके बाद धीरे धीरे लोगों के सहयोग से सब कुछ ठीक होता चला गया।

प्रदीप कुमार ने बताया कि कालीकट स्थित लड़कियों के सरकारी व्यावसायिक वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल (जीवीएसएसएस) को विश्व स्तर का बनाने के लिए उन्होंने वर्ष 2008 में राज्य सरकार से अनुरोध किया, परन्तु राज्य सरकार ने यह कहते हुए फ़ंड देने से साफ़ इंकार कर दिया कि किसी एक सरकारी स्कूल को इतनी बड़ी राशि जारी करने का मतलब राज्य के अन्य सरकारी स्कूलों के साथ भेदभाव होगा। इसके बाद प्रदीप कुमार ने फ़ंड हेतु अपनी प्रपोज़ल राज्य नियोजन बोर्ड को भेजी, वहाँ से हरी झंडी तो मिल गई, परन्तु बहुत इंतज़ार के बाद भी फ़ंड नहीं आया। जिसके बाद फैज़ल और शबाना फांउडेशन जैसी ग़ैर सरकारी संस्थाओं का सहयोग लिया गया।

कालीकट स्थित लड़कियों के सरकारी व्यावसायिक वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल (जीवीएसएसएस) के बारे में प्रदीप कुमार ने बताया कि यह स्कूल लगभग 125 वर्ष पुराना है। कभी यहाँ अंग्रेज़ रहा करते थे। इस स्कूल को विश्व स्तर का बनाते हुए इस बात का विंशेष ध्यान रखा गया है कि इस भवन की जो पुरानी लुक है, उसमें किसी प्रकार का बदलाव न किया जाए। ताकि हैरिटेज बिल्डिंग की लुक बनी रहे। अब इस स्कूल में 3715 बच्चियाँ शिक्षा ग्रहण कर रही हैं।

फैज़ल और शबाना फांउडेशन की ओर से स्कूल में कार्य कर रही रोशन जॉन ने बताया कि इस समय स्कूल में शिक्षा ग्रहण करने वाली बच्चियों की संया 3700 का आँकड़ा पार कर गया है, जिस कारण मजबूरी में अब नए बच्चों को स्कूल में प्रवेश नहीं दिया जा रहा। यह स्कूल पाँचवी से बारहवी कक्षा की छात्राओं के लिए हैं, जिस कारण यहाँ 50 प्रतिशत प्रवेश सरकारी स्कूलों से आने वाले छात्राओं को ही दिया जाता है, जबकि 35 प्रतिशत सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों के लिए और शेष 15 प्रतिशत सीटें अन्य स्कूलों के बच्चों के लिए रिज़र्व रखी गई हैं।

हालाँकि वर्ष 2011 के आँकड़ों के अनुसार केरल में पढ़ें लिखे लोगों की संया देश में सर्वाधिक 94 प्रतिशत थी, जिसमें 92.07 प्रतिशत महिलाएँ थी, जबकि पुरुषों की संख्या 96.11 प्रतिशत पुरुष थे, लेकिन फिर भी मुयमंत्री पी विजयन का विजन है कि केरल के सभी सरकारी स्कूलों में विश्व स्तर की सुविधा उपलब्ध हो। उनका मानना है कि यह मानसिकता बदलनी चाहिए कि सरकारी स्कूल निजी स्कूलों से बेहतर नहीं हो सकते। सरकारी स्कूलों में विश्व स्तर की सुविधाएँ उपलब्ध नहीं करवाई जा सकती। उनका यह भी मानना है कि एक बच्चा अगर गरीब के घर पैदा हुआ है तो यह उसका क़सूर नहीं है, फिर वह अच्छे घरों के बच्चों को मिलने वाली सुविधाओं से वंचित क्यों रहे?

जलियांवाला हत्याकांड के 100 साल इंकलाब के नारे को नहीं दबा पाई गोलियों की बौछार

बात 100 साल पहले की यानी 13 अप्रैल 1919 की है। स्थान था जलियांवाला बाग अमृतसर। 13 अप्रैल वह दिन है जब 1969 में सिखों के दसवें गुरू गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की नींव  रखी थी। इस तरह बैसाखी का यह पर्व पंजाबियों खास कर सिखों के लिए बहुत महत्व रखता है। इसी दिन यानी 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग में एक भारी जनसैलाब उमड़ा था। उस समय देश से अंग्रेजों को निकालने के लिए एक बड़ा आंदोलन चल रहा था। लोग जलसे में अमन शांति से बैठे अपने नेताओं के भाषण सुन रहे थे। इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे। उसी समय जनरल डायर अपने 50 सैनिकों के साथ वहां आया। इन सैनिकों में अंग्रेज़ और भारतीय दोनों थे। बाग का मुहाना बहुत तंग था। सैनिकों ने उस रास्ते को रोक लिया और बिना किसी चेतावनी के 10,000 लोगों की भीड़ पर अंधाधुंध गोलीबारी शुरू कर दी। लोगों में भगदड़ मच गई। पर गोलियों की आवाज़ के बीच भी नारेबाजी जारी रही। लोग अपने जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे। ये सैनिक 10 से 15 मिनट तक गोलियां चलाते रहे। कहा जाता है कि इस दौरान उन्होंने 1650 गोलियां चलाई। उनकी गोलीबारी उस समय बंद हुई जब उनके पास पूरा असला खत्म हो गया। सरकारी तौर पर इन गोलियों ने 400 लोगों की जान ली और 1200 को गंभीर रूप से घायल कर दिया। पर प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि यह गिनती बहुत कम करके दिखाई गई। असल में मरने वालों की संख्या इससे कहीं ज़्यादा है। इस घटना के बाद अंग्रेज सरकार ने जनरल डायर को उसकी कमान से हटा दिया था।

फायरिंग के बाद चारों ओर शव बिखरे पड़े थे। घायलों की चीत्कार से पूरा वातावरण करूणामय हो गया था। एक महिला रात भार अपने पति की लाश के पास बैठी रोती रही। उधर एक पिता अपने 13 साल के बच्चे को ढूंढ रहा था जो अपने दोस्तों  के साथ खेलने वहां चला गया था। इस बच्चे के सिर में गोली लगी थी। एक 12 साल के लड़के  का शव साथ ही पड़ा था। उसने एक तीन साल के बच्चे को कस कर अपनी बांहों में भरा हुआ था। शायद वह बच्चा उसका छोटा भाई था। इस तरह की कई घटनाएं एक नई किताब – ”आईविटनेस ऐट अमृतसर-ए वीजुआल हिस्ट्री ऑफ 1919 जलियांवाला बाग मसैकर’’। यह किताब दो सिख इतिहासकारों ने लिखी जो लंदन में रहते हैं। उन्होंने इस हत्याकांड के लगभग 40 प्रत्यक्षदर्शियों से बात करने के बाद यह पुस्तक लिखी है। अमनदीप सिंह मादरा और परमजीत सिंह की यह किताब 244 पन्नों की है और इसमें 80 चित्र ऐसे हैं जो पहली बार छपे हैं।

गोलीबारी को लेकर अंग्रेज़ सरकार ने लार्ड विलियम हंटर की अध्यक्षता में एक जांच आयोग का गठन किया। इस आयोग को आम बोलचाल की भाषा में हंटर आयोग का नाम दिया गया। जनरल डायर को उसके सामने पेश होने को कहा गया। डायर 19 नवबंर 1919 को आयोग के सामने पेश हुआ। उसने जो तर्क वहां दिए उसने सभी को स्तब्ध कर दिया। उसका वहां दिया गया बयान कुछ इस प्रकार था।

 डायर ने कहा – मैंने किसी को चेतावनी नहीं दी और मुझे तब तक गोली चलाने थी जब तक भीड़ तितर-बितर नहीं हो जाती। उस समय मुझे केवल अपने आदेशों का पालन करवाना था। वहां मार्शल लॉ की अवेहनला हुई थी और मेरा काम वहां इक_ी  भीड़ को रायफल की गोली से भगाना था। यदि मेरा आदेश नहीं माना जाएगा तो मैं तुरंत गोली चला दूंगा। यदि मैंने कम गोलियां चलाई होती तो उनका प्रभाव कम होता।’’

डायर ने कहा कि जो लोग वहां इक_ा हुए थे वे सभी बागी थे और सेना की स्पलाई को काटने की कोशिश कर रहे थे। इस कारण गोली चलाना मेरा कत्र्तव्य था। मेरे ख्याल में यह भी संभव था कि बिना गोली चलाए लोग चले जाते, पर वे फिर वापिस लौटते और मेरा मज़ाक उड़ाते।  घायलों को डाक्टरी सहायता न देने के बारे में उसने कहा कि हालात इसकी इज़ाज़त नहीं देते थे। उसने आगे कहा कि घायलों की सहायता करना मेरा काम नहीं था। वहां कई अस्पताल थे घायल वहां चले जाते।

कमीशन के एक सदस्य ने पूछा कि यदि दरवाजा बड़ा होता और आपकी अर्मड कारें अंदर जा पाती तो क्या आप लोगों पर मशीनगन से गोलियां बरसाते? डायर ने कहा कि शायद मैं ऐसा ही करता। सदस्य ने फिर कहा-उस हालात में मौंतें कहीं ज़्यादा होती? डायर ने कहा हां ऐसा ही होता। एक और प्रश्न पर डायर ने कहा कि वह बाकी पंजाब पर एक प्रभाव छोडऩा चाहता था इसलिए गोली चलाई।

अंग्रेज सरकार ने डायर के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की थी। हालांकि भारत के क्रांतिकारी ऊधम सिंह ने 1940 में लंदन जाकर  फ्रांसिस ओ डायर को गोली मार दी जो जलियांवाला बाग गोलीकांड के समय पंजाब का लेफ्टिनेंट गवर्नर था। उसने जलियांवाला बाग गोलीकांड को सही कदम बताया था।