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दो सौ टन सोना पहुंचा क्या स्विट्जरलैंड?

कांग्रेस पार्टी ने अभी हाल एक रिपोर्ट ट्वीट की थी। इसमें बताया गया था कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से 2014 में दो सौ टन सोना गोपनीय तरीके से स्विट्जरलैंड पहुंचा। सवाल उठा कि ‘मोदी सरकार ने इतना सोना क्यों भेजा? इस खबर से जो विवाद शुरू हुए वे आज भी जारी हैं।

दक्षिण दिल्ली संसदीय निर्वाचन क्षेत्र से एक उम्मीदवार ने ट्वीट किया था कि सत्ता में आने के बाद ही मोदी सरकार ने बड़े ही गोपनीय तरीके से दो सौ टन सोना स्विट्जरलैंड क्यों भेजा। इस पूरे मामले की छानबीन की खोजखबर पत्रकार और राजनीतिक नवनीत चतुर्वेदी ने। उन्होंने आरटीआई  से मिली जानकारी के आधार पर और पिछले साल आरबीआई के स्वर्ण संरक्षण और सेंट्रल बैंक की सालाना रिपोर्ट के आधार पर स्टोरी बनाई। उनकी स्टोरी पर खासा हंगामा हुआ।

मोदी सरकार ने दो सौ टन सोना भारत से बाहर भेजा। कहा जाता है कि भारत में यह खबर कुछ खास अखबारों में छपी। उसके बाद सोशल मीडिया और मेसेजिंग प्लेटफार्म पर चर्चा है।

कांग्रेस के पार्टी मुखपत्र सरीखे नेशनल हेराल्ड में दो मई को एक खबर ऑनलाइन जारी हुई थी कि क्या मोदी सरकार ने दो सौ टन सोना रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गोदामों से निकलवा कर 2014 में स्विटजरलैंड भेजा था। फिर यह खबर ‘दैनिक दोपहर’ में छपी। इसमें बताया गया कि मोदी सरकार जो ईमानदारी और पारदर्शिता में भरोसा रखती है। उसने गोपनीय तरीके से  268 टन सोना देश के बाहर भेज दिया। इस खबर का स्त्रोत सूचना अधिकार से मिला। यह भी बताया गया कि इससे मोदी सरकार की मुश्किलों में इजाफा हो सकता है।

इस रपट में यह जानकारी है। यह आरटीआई एक खोजी पत्रकार नवनीत चतुर्वेदी ने दायर की थी। उससे यह जानकारी मिली कि जुलाई 2014 में सरकार ने 268 टन सोना भेजा । दावा किया गया कि यह सोना आरबीआई में जून 2011 से था। लेकिन 2015 में यह जानकारी मिली कि आरबीआई की वैलेंस शीट से 268 टन सोना गायब है। मोदी सरकार ने यह भेद गोपनीय रखा। फेसबुक प्रोफाइल से जानकारी मिलती है कि चतुर्वेदी इंडिपेंडेट इन्वेस्टिगेटिव नर्जलिस्ट हैं। उनके प्रोफाइल में यह जानकारी भी है कि वे दक्षिण दिल्ली से लोकसभा का चुनाव भी लडऩे को हंै।

खैर, सोने की यह खबर फिर इंदौर समाचार में छपी । इसका शाीर्षक था,”दो सौ टन आरबीआई का सोना चोरी छिपे विदेश भेजा गया।’ फिर सोशल मीडिया में पत्रकार पुण्य प्रसून वाजपेयी के पेज पर एक खबर छपी,’एक देशभक्त वे थे जिन्होंने (हैदराबादके निजाम मीर उस्मान अली खान)  पांच हजार किलो सोना देश को बचाने के लिए दान किया, वहीं एक देशभक्त ये हैं (पीएम नरेंद्र मोदी) जिन्होंने देश का 280 टन सोना गिरवी रखा।

अब सवाल यह है कि दावे में सच्चाई क्या है? सालाना एएलटी न्यूज ने सेंट्रल बैंक के 2011-12, 2012-13 और 2013-14 की सालाना रपट छानी फिर आरबीआई के 2014-15 से 2017-18 की सालाना रपट देखी। इन रपट से पता चला कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया का सोने का स्टाक एक सा है बल्कि 2017-18 में तो कुछ बढ़ोतरी भी हुई है।

आप अब 2013-14, यूपीए-दो शासनकाल के अंतिम साल को देखें। आरबीआई की सालाना रपट 2013-14 में कहा गया है कि कुल सोना जो सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया में है वह 557.75 टन है। इसमें से 292.26 मीट्रिक टन एक एसेट बतौर ईशू डिपार्टमेंट का है और बाकी 265.49 मीट्रिक टन बैंकिग मकहमे के दूसरे एसेट का हिस्सा है।

यहां यह ध्यान रखना चाहिए कि ईशू डिपार्टमेंट में जो  सोना है वह सोना वह है जो आरबीआई देश के ही अंदर रखती है। जिसके आधार पर करंसी नोट जारी होते हैं। जबकि बैंकिग डिपार्टमेंट में जो सोना है वह बाहर रहता है।

साल 2017-18 की सालाना  रपट में बताया गया है कि रिजर्व बैंक के पास 566.23 मीट्रिक टन  सोना है। इसमें 292.30 मीट्रिक टन बतौर बैंकिंग उस नोट के आधार बतौर है जो 30 जून 2018 में जारी हुए। जो नोट जारी किए गए उन पर सोने की कीमत में 7.70 फीसद की बढ़ोतरी 690.30 बिलियन की 30 जून 2018 को 743.49 बिलियन हुई क्योंकि अमेरिकी डालर की तुलना में रुपए की कीमत घट गई।

 दो सौ टन सोना तो बाहर गया ही नहीं

अब 2013-14 और 2017-18 की दो रपटों की तुलना की जाए जो साफ बताती है कि जो सोना था उसमें कतई कोई कमी नहीं आई है बल्कि 8.48 टन की बढ़ोतरी ही हुई है। यानी 557.75 टन जो 2013-14 से बढ़कर यह 566.23 टन 2017-18 में हो गई। बैंकिग डिपार्टमेंट में जो सोना था वह जस का तस रहा। यह 265.49 टन 2013-14 में था जो बढ़ कर 273.93 2017-18 में हो गया। दूसरे शब्दों में 200 टन सोने की गुपचुप यात्रा भी नहीं हुई।

यहां देखना यह भी ज़रूरी होगा कि बैंक ऑफ इंग्लैंड और बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट (बीआईएस) को जो सोना भेजा जाना था वह 2014 के पहले ही भेजा जा चुका था। ‘हिंदू’ में 28 फरवरी 2012 को एक रपट है जिसमें बताया गया है कि आरबीआई में 557.75 टन सोना 30 सितंबर 2011 तक था। इसमें से 265.49 टन बाहरी डिपाजिट/सेफ कस्टडी में है जो बैंक ऑफ इंग्लैंड और बैंक फार इंटरनेशनल सेटलमेंट में है। यह मुद्दा 2012 में उठाया गया था। बांबे हाई कोर्ट पीआईएल के जरिए जब आरबीआई ने 2675.49 टन सोना देश के बाहर भेजना तय किया था।

आरबीआई ने इन खबरों को गलत बताते हुए कहा कि 2014 में या बाद में सोना देश के बाहर भेजा नहीं गया। फिर दुनिया भर में सेंट्रल बैंक अपने सोने को दूसरे देशों के सेंट्रल बैंकों में जमा करते हैं जिससे वे सुरक्षित रहे।

यह दावा कि मोदी सरकार ने गुपचुप तौर पर दो सौ टन सोना आरबीआई के सोना कोष से बाहर भेजा वह गलत है और शायद सेंट्रल बैंक की बैलेंस शीट की गलत रीडिंग की गई।

श्रीलंका में आतंक की दोबारा दस्तक

दक्षिण एशिया का एक छोटा और प्यारा द्वीप श्रीलंका एक नए आतंकवाद का सामना कर रहा है। अपनी प्रासंगिकता स्थापित करने के उद्देश्य से इस्लामवादियों ने उस देश को चुना है जिसने दशकों पहले जातीय आतंकवाद को देखा और भुगता है। कोलंबो सरकार ने आतंकी तत्वों का मुकाबला करने के लिए कड़े कदम उठाए हैं, और इसमें कुछ हद तक सरकार सफल भी हुई है। लेकिन श्रीलंका के लोगों के डर को जड़ से खत्म करने में सालों लग सकते हैं।

आतंकवाद एक नए रूप में श्रीलंका में लौट आया है और लगातार हुए आतंकी हमलों में 250 से अधिक लोग मारे गए और सैकड़ों गंभीर रूप से घायल हो गए। वास्तव में यह जातीय विद्रोह से धार्मिक आतंकवाद में बदल कर भारतीय उप महाद्वीप के दक्षिण में समुद्र पर तैरता हुआ यह इस देश मेें आया है।

ईस्टर के दिन (21 अपै्रल 2019) को कोलंबो में और उसके आसपास गिरजाघरों, होटलों और अन्य इलाकों में हुए हिंसक हमले नौ आत्मघाती हमलावरों से कम नहीं थे। यह हमले श्रीलंका सरकार की पूरी विफलता थी जबकि इन आतंकी वारदातों की जानकारी विदेशी खुफिया एजेंसियों से भी सरकार को पहले मिल चुकी थी। लेकिन ड्रेमोक्रेटिक सोशलिस्ट गणराज्य श्रीलंका के शासन ने इसे अनदेखा कर दिया।

श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना और प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे के बीच की लड़ाई और आपसी समझ की कमी ने स्थिति को अधिक खराब किया जिससे वे इस आपदा को रोकने में विफल रहे और इसमें शंगरी-ला, किग्ंसबरी होटलों में रुके 40 से अधिक पर्यटकों को अपना जीवन गंवाना पड़ा।

आतंकी हमले के लिए पूरी तैयारी न होने के कारण इस देश की छवि धूमिल हुई है। जिसमें तीन कैथोलिक गिरजाघरों ने त्रासदी का सामना किया जब हजारों लोग रविवार की प्रार्थना सभा में भाग ले रहे थे। आमतौर पर देश में मस्जिदों और मंदिरों के साथ चर्च भी असुरक्षित हैें, इस्लामिक स्टेट (आईएस) जिसने रविवार के हमलों की जिम्मेवारी का दावा किया है उसने केवल गिरजाघरों को नष्ट किया है।

विभिन्न एशियाई देशों सहित दुनिया भर में गिरजाघरों को इस आतंकवादी संगठन ने अपना निशाना बनाया है। लेकिन श्रीलंका में मुसलमानों और ईसाइयों, के बीच किसी भी प्रकार के संघर्ष की कोई खबर नहीं है। इन दोनों धार्मिक समूहों ने कई अवसरों पर बहुसंख्यक सिहंल-बौद्धों और अब निष्क्रिय लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (एलटीटीई) के एक वर्ग की आक्रामता का मिलकर सामना किया था।

”श्रीलंका के मुसलमानों ने कभी भी लिट्टे के प्राथमिक लक्ष्य छोटे से देश के उत्तरी भाग मे तमिल लोगों के लिए एक अलग मातृभूमि स्थापित करनेे का समर्थन नहीं किया था। वे तमिल भाषा बोल सकते हैं, और कई मुस्लिम परिवार लिट्टे द्वारा नियंत्रित इलाके के पास रहते हैं। सिंहल बौद्धों के वर्चस्व वाले कोलंबो में कई मुस्लिम परिवारों पर जासूसी करने का शक किया गया था’’ बताते हैं डब्ल्यू चामिंडा जो कि एक राजनीतिक विश्लेषक हैं। कोलंबों के एक राजनीतिक पर्यवेक्षक ने बताया कि इस कारण लिट्टे का नेतृत्व स्थानीय मुसलमानों के साथ सहज नहीं था और इसने कई असवरों पर उन्हें निशाना भी बनाया था।

दक्षिण एशिया के प्राचीन जातीय समूहों में से एक तमिल लोग भारत के दक्षिणी हिस्सों और श्रीलंका के पूर्वोत्तर क्षेत्रों में रहते हैं। वास्तव में यह द्वीप राज्य किसी समय (10वीं और 11वी शताब्दी) तमिल शासकों द्वारा शासित था। 1970 में वेलुपिल्लई प्रभाकरन के नेतृत्व में लिट्टे ने श्रीलंका के बाहर एक स्वतंत्र तमिल भूमि के लिए सशस्त्र संघर्ष शुरू किया। चामिंडा ने दावा किया है कि हाल के सालों में उनके देश का जनसंख्या पैटर्न बदल गया है। मुस्लिमों ने तेजी से अपनी संख्या बढ़ाई और आज वे सिहंल-बौद्धों (लगभग 70 फीसद) के बाद एक और सबसे बड़ा समुदाय बनने के लिए हिंदू आबादी (लगभग 11 फीसद) की संख्या को छू सकते हैं। श्रीलंका की कुल 210 लाख आबादी में ईसाई आबादी लगभग सात फीसद है।

मुस्लिम आबादी के निरंतर विकास के साथ सिहंल -बौद्ध राष्ट्रवादियों ने हाल ही में देश के दूरदराज के हिस्सों में मस्जिदों और मदरसों की संख्या में तेजी से हो रही वृद्धि को भी देखा। उन्होंने यह भी देखा कि स्थानीय मुसलमानों ने ठेठ मध्यपूर्वी पोशाक को पहनना शुरू कर दिया और धार्मिक प्रायोजनों के लिए अरबी भाषा को अपनाना शुरू कर दिया। प्राधिकरण को या तो इसके विकास के बारे में बहुत कम जानकारी थी या बस इसे नजऱअंदाज कर दिया गया था।कुछ कारणों से जनवरी 2015 में सत्ता में आई वर्तमान सरकार ने खुफिया सेवाओं के साथ सशस्त्र बलों को भी व्यवस्थित रूप से अनदेखा किया। रिकार्डस के अनुसार 40 गुप्तचर अधिकारी जो लिटृटे विरोधी युद्ध में शामिल थे वे अब जेल में हैं। शायद विभिन्न सुरक्षा संबंधी मुद्दों को हल करने के लिए सरकार में राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी है बताते है चामिंडा।

उदाहरण के लिए श्रीलंका का कानून एक ऐसे नागरिक को सजा नहीं देता जो देश के बाहर एक आतंकी संगठन में शामिल होने के बाद वापिस लौटा हो। हो सकता है कि वह विदेशी धरती पर कट्टरपंथी हो और आतंकी गतिविधियों में जुडऩे के एकमात्र उद्देश्य के साथ वापस आया हो और इस्लाम की रक्षा के लिए आतंकी गतिविधियों और जेहाद में शामिल करने के लिए स्थानीय युवाओं को प्रेरित करने के उद्देश्य से वापिस आया हो। प्रेरणा इतनी मज़बूत है कि अमीर पृष्ठभूमि के शिक्षित युवा भी अक्सर हिंसक रास्ते को चुनते हैं।

श्रीलंका के इस्लामी बमवर्षक उच्च शिक्षित थे और उनमें से कुछ ने विदेशों में अपनी शिक्षा पूरी की थी। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से आत्मघाती दस्ते के सदस्यों को सावधानी पूर्वक शहदत के लिए प्रेरित किया जाता है। दुनिया भर में शरीयत कानूनों के तहत खलीफा शासन स्थापित करने के लिए युवा दिमाग को इस एकमात्र विचार के साथ बड़ा किया जाता है कि अगर वे शरीय कानून स्थापित करने के लिए खुद को मारते हंै, तो उन्हें स्वर्ग प्राप्त होगा।

”विदेशी धरती में आतंकवादी समूहों द्वारा प्रशिक्षित युवाओं से निपटने के लिए विशेष कानून न होने के बावजूद, सरकार उनके खिलाफ कार्रवाई कर सकती है। श्रीलंका में हथियारों और गोला बारूद की खरीद से संबंधित और आतंकी गतिविधियों में स्थानीय निवासियों के प्रशिक्षण से संबंधित बहुत से कानून हैं। 2009 में लिट्टे पर जीत के बाद सरकार लगभग सो रही थी ‘‘ यह कहना है युवा विश्लेषक का।

राष्ट्रपति सिरीसेना जो संवैधानिक रूप से देश की रक्षा, और अतंरराष्ट्रीय कानून और व्यवस्था के लिए जिम्मेवार हैं, उन्होंने हाल ही में यह टिप्पणी की है कि अधिकांश सक्रिय इस्लामी कट्टरपंथी समूहों को सरकारी बलों द्वारा समाप्त कर दिया गया है या गिरफ्तार कर लिया गया है। बाकी अगर कुछ सक्रिय हैं तो इस साल नवंबर-दिसंबर में होने वाले राष्ट्रपति चुनावों से पहले वे भी बेअसर हो जाएंगे।

 स्थिति का लाभ उठाते हुए विपक्षी नेता और पूर्व राष्ट्रपति महिंद्रा ने फिर से शक्ति के गलियारे में आने की कोशिश की है। कट्टर राष्ट्रवादी को नवंबर 2018 में प्रधानमंत्री के रूप में (पीएम विक्रमसिंघे को र्बखास्त करने के बाद) राष्ट्रपति सिरीसेना ने चुना था। लेकिन विभिन्न कोणों से विरोध के कारण राजपक्षे इस अवसर से चूक गए।

 राजपक्षे जिन्होंने सशस्त्र संगठन एलटीटीई को कुचलने के लिए सशस्त्र बलों का नेतृत्व किया उन्होंने सिहंल लोगों के बीच भारी लोकप्रियता पाई और देश के राष्ट्रपति के रूप में दो बार कार्यकाल पूरा किया। इसलिए जब तक संविधान में संशोधन नहीं हो जाता तब तक वह उस पद पर वापिस नहीं आ सकते। अन्यथा राजपक्षे 2020 के राष्ट्रीय (संसदीय) चुनावों में प्रधानमंत्री पद के लिए चुनाव लड़ सकते हैं।

अब तक लंका सरकार ने दो इस्लामवादी संगठनों जैसे कि राष्ट्रीय तौहीद जमात (एनटीजे) और जमथेई मिलथु इब्राहिम (जेएमआई) पर प्रतिबंध लगा दिया है जो कुछ सालों से देश में सक्रिय थे और रविवार को हुए बम विस्फोटों में संदेह में थे। आतंक की पुनरावृति के साथ सक्रिय प्राधिकरण ने पहले ही देश में लगाए गए आपातकालीन नियमों की पृष्ठभूमि में बढ़े पैमाने पर अभियान शुरू किया है। इस प्रकार जो उथल-पुथल श्रीलंका में वापिस आई है और यह अभी कई महीनों तक जारी रह सकती हैं।

लेखक पूर्वोत्तर भारत के गुवाहाटी में स्थित पत्रकार हैं।

हिंसा का बखान क्या नहीं है हमारे महाकाव्यों में?

भारतीय राजनीतिक दलों के नेताओं के लिए सच बोलना अक्सर कठिन होता है। कारण जो भी आप मानना चाहें, मानें मगर माक्र्सवादी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव सीताराम येचुरी ने भोपाल में एक सेमिनार में कड़वा सच बोल दिया।

हालांकि यह इतना कड़वा सच भी नहीं है। मगर हिंदुत्ववादियों के राजनीतिक असर ने इस सीधे-सादे सच को भी कड़वा बना दिया है। येचुरी ने कहा, यह कहना गलत है कि हिंदू कभी हिंसक(भाजपा के शब्दों में आतंकवादी) नहीं हो सकते। इसके तमाम उदाहरण हमारे महाकाव्यों और इतिहास में भरे पड़े हैं कि हिंदू शासक हिंसा के विरूद्ध नहीं थे।

 इतिहास और महाकाव्यों में न भी जाएं तो भी हमारे प्रधानमंत्री, भाजपा अध्यक्ष, मंत्री गिरिराज सिंह जैसे हिंदुओं के हज़ारों ऐसे उदाहरण हैं जिन्होंने हिंसात्मक भाषा में हुंकार लगाई और बात की है। यह बात अलग है कि हिंसा और नफरत से भरी यह भाषा कोई हिंदुत्व वादी बोले तो हम इसे स्वाभाविक मान लेते हें।

असम के एक भाजपाई विधायक ने तो कहा कि मुसलमान उस गाय की तरह है जो दूध नहीं देती। ऐसी गाय को चारा खिलाने से क्या फायदा। यह भाषा उस पार्टी के रक्षक की है जो उस पार्टी का विधायक है जो कथित तौर पर गौरक्षा का दावा करती है। क्या यह अहिंसक भाषा है। क्या यह भाषा सांप्रदायिक हिंसा की राह दिखाने वाली भाषा नहीं है।? क्या यह संविधान और कानून के खिलाफ नहीं है? मध्यप्रदेश के धार संसदीय क्षेत्र के भाजपा प्रत्याशी ने कहा, मुझे कलम से भी मदद करनी आती है और बंदूक की नोक से भी। क्या यह गांधीवादी भाषा है?

इन पांच सालों में हिंदुत्वादी हिंसा के असंख्य उदाहरण है। झूठ तो मानो उनकी दैनिक खुराक है। जब ये कहते हैं कि हिदू आतंकवादी नहीं हो सकता या हिंसक नहंी हो सकता तब ये यह भी कह रहे होते हैं कि मुसलमान हो सकता है या कि होता ही है। जो लोग पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी जैसे विद्वान को नहीं बख्शते। जो शायर जावेद अख्तर पर निशाना साधते हों। जो चुनाव में अपना उम्मीदवार आतंकवादी होने के आरोप में जेल में बंद और जमानत पर छूटी और साध्वी कही जाने वाली प्रज्ञा ठाकुर को खड़ा करते हों जिनके पास चुनाव में एक ही मुद्दा है मुस्लिम विरोधी बकवास करना। वे किस मुंह से यह कह सकते है, कि हिंदू हिंसक हो नहीं सकता।

हिंसा या अहिंसा का ठेका किसी एक धर्म के ही लोगों ने नहीं ले रखा है। जिस ज़मीन में गांधी जैसा अहिंसक पैदा होता है वह नफरत का मसीहा भी पैदा करने की क्षमता रखती है। यह बात हर राज्य, हर भाषा, हर धर्म के बारे में सही है।

सभी धर्मो के साधारण लोग आमतौर पर सहज स्वाभाविक जीवन ही जीते हैं। शोषित और उत्पीडि़त होते हैं। इसका अपवाद कोई नहीं है। जो समाज और अर्थव्यवस्था की जितनी निचली सीढ़ी पर है वह उतना ही ज़्यादा सहता है और वक्त आने पर हक के लिए लड़ता भी है।

विष्णुनागर

पूर्व संपादक ‘शुक्रवार’

दिग्विजय की यात्रा

कुछ दिनों के बाद यौगंधरायण ने राजा को याद दिलाया कि अब उसे दिग्विजय करने की तैयारी करनी चाहिए। राजा इस बात से तो सहमत था, लेकिन ऐसा करने से पूर्व उसकी इच्छा थी कि भगवान शंकर की तपस्या करनी उचित है, क्योंकि किसी भी शुभ कार्य को कुशलपूर्वक समाप्त करने के लिए पूजा-पाठ की आवश्यकता होती है। रामचंद्र जी ने सेतुबंध बनाने से पहले रामेश्वर की स्थापना करके भगवान शंकर की पूजा का प्रस्ताव किया था। उनकी सारी वानर सेना ने जिस प्रकार उसको स्वीकार कर लिया था, उसी प्रकार राजा उदयन की यह बात उनके मंत्रियों ने मान ली। तब राजा ने अपनी दोनों रानियों और मंत्रियों को लेकर महादेव की तपस्या आरंभ कर दी। अभी तप करते हुए उन्हें तीन दिन ही बीते थे कि महादेव ने राजा से सपने में कहा,”मैं तुम पर प्रसन्न हूं। अब तुुम तपस्या मत करो। तुम्हारी इच्छा शीघ्र की पूर्ण होगी। तुम्हारे एक पुत्र उत्पन्न होगा जो सब विद्याधरों का राजा बनेगा।’’

राजा ने सवेरे उठकर अपने सपने का सारा हाल मंत्रियों को सुनाया। दूसरे दिन सबकी सलाह से व्रत समाप्त कर दिया गया। उसके बाद यौगंधरायण ने उदयन से कहा, ”हे राजा! आप बड़े सौभाग्यशाली हैं। आपके ऊपर महादेवजी की कृपा है। अब अपनी शक्ति से शत्रुओं को जीतकर विजय की लक्ष्मी प्राप्त करें। अपने पुरूषार्थ से प्राप्त की हुई लक्ष्मी ही सदा स्थिर रहती है। आपके पूर्वजों ने जिस लक्ष्मी को अर्जित किया था, वह उनके पुरूषार्थ से ही आपके पास सुरक्षित है। इस बारे में मैं आपको एक कथा सुनाता हूं: पाटलिपुत्र में देवदास नाम का एक बनिया रहता था। उसका पिता बहुत धनी था। पौंड्र देश के एक धनवान बनिए की कन्या से देवदास का विवाह हुआ था। कुछ दिनों बाद उसका पिता मर गया और वह जुए में अपना सारा धन हार गया। यह देखकर उसका ससुर अपनी लड़की को अपने घर ले गया। देवदास को जब कोई रास्ता नहीं दिखाई दिया, तो उसने अपने ससुर से कुछ रुपया लेकर व्यापार करने का विचार किया। बस वह अपने ससुराल की ओर चल पड़ा। उसके कपड़े फटे हुए और मैले थे। इसलिए जब वह सायंकाल को पौद्धवद्र्धन नगर में पहुंचा, तो संकोच के मारे अपनी ससुराल नहीं गया। एक बंद दुकान के पास ठहर गया। कुछ देर बाद एक बनिया वहां आया और दुकान खोलकर अंदर चला गया। उसके पीछे एक स्त्री भी दुकान में गई। देवदास छिपकर उन दोनों को देख रहा था। दुकान के भीतर दीये के उजाले में जब वह स्त्री पहुंची, तो देवदास चौंक पड़ा। यह तो उसकी पत्नी थी। उसके हृदय को बहुत चोट पहुंची। वह सोचने लगा-पिता के घर में स्वतंत्र लड़कियां इसी प्रकार बिगड़ जाती हैं।

”तभी उसने सुना कि उसकी पत्नी अपने प्रेमी से कह रही थी,’तुम मुझे बहुत प्रिय हो, इसलिए मैं तुम्हें एक गुप्त बात बताती हूं। मेरे पति के परबाबा वीरवर्मा ने अपने घर के आंगन के चारों कोनों में चार सोने के घड़े गाड़े थे। उनमें अशर्फियां भरी हुई हैं। उन्होंने यह बात अपनी पत्नी को बताई थी। उनकी पत्नी ने मेरी ददिया सास को यह भेद बताया और मेरी ददिया सास ने मेरी सास  को इसकी सूचना दी। मेरी सास ने मुझसे कहा। यह गुप्त भेद मैंने अपने पति को भी नहीं बताया था, क्योंकि वह जुआ खेलता है और मैं उससे घृणा करती हंू। उसके निर्धन होने पर भी मैंने यह बात उसको नहीं बताई। अब तुम उस मकान को खरीद लो और धन निकाल लो। फिर हम-तुम आनंद से रहेंगे।’’

”ये सारी बातें सुनकर देवदास अपने घर वापस लौट गया और आंगन में गड़े हुए धन को उसने खोद निकाला। कुछ दिनों बाद  उसकी पत्नी का प्रेमी भी व्यापार करने के लिए उस नगर में आया। उसने देवदास से वह मकान मोल ले लिया; लेकिन जब खोदने पर उसे गड़ा हुआ धन नहीं मिला, तो वह देवदास से झगडऩे लगा। बोला,’मकान वापस ले लो और मेरा रुपया लौटा दो।’ देवदास ने उसकी बात  नहीं मानी। इस तरह उनका झगड़ा बढ़ता गया और मामला राजा के यहां पहुंचा। देवदास ने राजा से अपनी  पत्नी का सारा हाल कह सुनाया। राजा ने उसकी पत्नी के प्रेमी बनिए का सब कुछ छीन लिया। देवदास ने भी अपनी पत्नी के नाक-कान काटकर उसे घर से निकाल दिया। उसने दूसरा विवाह कर लिया और सुख से रहने लगा।’’

यह कथा सुनाकर यौगंधरायण ने कहा,”हे राजा! इस तरह अघर्म से प्राप्त किया पैसा पास नहीं ठहरता। इसलिए आप धर्म से लक्ष्मी को प्राप्त कीजिए। राज्य एक विशाल वृक्ष है और लक्ष्मी उसकी जड़ है। आप अपने मंत्रियों को धन और मान से प्रसन्न कीजिए और दिग्विजय करने की तैयारी कीजिए। सबसे पहले अपने पुराने शत्रु काशी-नरेश ब्रहमदत्त को जीतिए। फिर पूर्व की और बढि़ए।

उदयन ने यौगंधरायण की बात मान ली। उसने दिग्विजय के लिए सेनाओं को तैयार रहने की आज्ञा दे दी। वासवदत्ता का भाई गोपालक भी इस दिग्विजय में सहयोग देने के लिए आ गया। राजा ने उसका सम्मान किया और भेंट में उसको विदेह का राज्य सौंप दिया। सिंह वर्मा के ऊपर सेना को सुसज्जित करने का भार था। इस कार्य के लिए उसको चंदेली का राज्य ईनाम में दिया गया। म्लेच्छराज पुलिंदक को भी इस दिग्विजय यात्रा में सहयोग देने के लिए निमंत्रित किया गया। इस तैयारी का समाचार सुनकर उदयन के शत्रु घबड़ाने लगे। यौगंधरायण ने काशी में अपने भेदिए भेजगर राजा ब्रहमदत्त का पता चलाने का प्रयत्न किया। उसके बाद राजा उदयन पदमावती और वासवदत्ता को साथ लेकर एक विशाल सेना के साथ दिग्विजय के लिए चल पड़ा। उधर यौगंधरायण के दूतों ने काशी में जाकर अपना काम शुरू कर दिया। उनमें से एक गुरू बना और बाकी सब चेले। उन चेलों ने सारे नगर में यह बात फैला दी कि उनका गुरू सर्वज्ञ हे। यही नहीं, अगर वह किसी से कह देता था कि जा तेरे घर में आग लग जाएगी, तो चेले छिपकर ठीक समय पर उसके घर में आग लगा आते थे। इस तरह वह सारे नगर में प्रसिद्ध हो गया। काशी-नरेश का एक मित्र भी उससे बहुत प्रभावित हुआ- यहां तक कि उसकी सेवा करते हुए वह चेलों के साथ ही रहने लगा। इस व्यक्ति से ही उन्हें गुप्त बातों का पता चल जाया करता था। जिस मार्ग से राजा उदयन सेना-सहित काशी की ओर आ रहा था, उस मार्ग पर काशीराज के मंत्री योगकँडक ने पानी, फल-फूल और वृक्षों को विषैला बना दिया। उसने ऐसी नर्तकियां उदयन की सेना में भेज दीं, जो सैनिकों को विष देकर मार देनेे की कला में निपुण थीं। यौगंधराध ने यह भेद अपने भेदियों से जान लिया। इसलिए उसने मार्ग के फल-फूल आदि को विष-नाशक औषधियों से शुद्ध करवाया और किसी भी स्त्री का सेना में आना बंद कर दिया। जिन पुरूषों पर उसे संदेह होता था, उन्हें वह जान से मरवा डालता था। इस तरह काशीराज के मंत्री की एक भी चाल न चल सकी। प्रारंभ में राजा ब्रहमदत्त ने उदयन की सेना से युद्ध करने का प्रयत्न किया। किंतु शीध्र ही उसकी अपार शक्ति से वह हताश हो गया। इसलिए उसने उदयन से हार मान ली और भेंट-स्वरूप बहुत-सी सामग्री उसको दी।

इस प्रकार काशी पर विजय पाने के बाद राजा उदयन सेना-सहित पूर्व दिशा के राजाओं को परास्त करता हुआ समुद्र के किनारे आकर रूका। वहां उसने अपना जयस्तंभ स्थापित किया। कलिंग देश के रहने वालों ने उसको अनेक उपहार दिए। फिर उदयन ने महेंद्र पर्वत को जीतकर दक्षिण दिशा की ओर प्रस्थान किया। कावेरी नदी को पार करके उसने चोल देश को जीता फिर रेवा नदी के पार बसी हुई उज्जयिनी नगरी में जाकर वहां रुका। वहां के राजा चंडमहासेन ने उसका बहुत स्वागत-सत्कार किया। वासवदत्ता भी अपने पिता से मिलकर बहुत प्रसन्न हुई। कुछ दिन रहने के बाद उदयन उज्जयिनी की सेना लेकर पश्चिम दिशा की ओर बढ़ा। वहां उसने लाटव देश पर विजय प्राप्त की। फिर वह उत्तर में गया। वहां म्लेच्छों को मारकर उसने सिंधु देश के राजा पर विजय प्राप्त की। फिर उसने पारस के राजा को युद्ध में मारा और हूण देश को अपने आधीन किया। विजय के इन समाचार को सुनकर कामरुप का राजा आप ही उसकी शरण में आ गया। उसने भेंट में बहुत से हाथी दिए।

इस तरह चारों दिशाओं को जीतता हुआ राजा उदयन मगध पहुंच गया। मगध का राजा उदयन का श्वसुर और पदमावती का पिता था। उसने उदयन का बड़ी धूम-धाम से स्वागत किया और बड़ा उत्सव मनाया। वासवदत्ता को फिर से प्रकट रूप में देखकर मगध-नरेश ने बड़ी प्रसन्नता प्रकट की। अंत में उत्सव समाप्त होने के बाद उदयन मगध से अपने लावणक नामक देश वापस आ गया।

कथा: सरित्सागर

रचित: सोमदेव

अनुवाद: गोपाल कृष्ण कौल

संपादक: विष्णु प्रभाकर

सस्ता साहित्य मंडल प्रकाश

आंखों की सतरंगी आभा में ढले चित्र, शब्द

दोस्तो!

यह सेल्फी टाइम है। डिजिटल माया ने रंग और रोशनी को फोटोशॉप में इतना उलझा दिया है कि हमारा अन्त:करण उन्मादी,स्वग्रस्त और क्षुद्र होता गया है। यह यूं नहीं है कि अब फ्रंट कैम से बैक कैम दुगुना मेगापिक्सल का हो गया है। इसलिए यह रेडीमेड सेल्फ़ीमेन का बूम टाइम है। ठेके पर किलर ही नहीं, सेल्फी शूटर भी उठाए जा रहे हैं। तब यह स्वाभाविक है कि रंग और कूची की साधना से सृजित चित्रकला जैसी विधा सेल्फी पीढ़ी को फालतू की चीज लगे।

हरिपाल त्यागी का निधन एक कठिन समय में हुआ है। त्यागी आजीवन जिस लेखन के लिए कूची साधना करते रहे हैं वह समय किसी और दिशा में कूच कर गया है। समय सलीब पर लटका दिया गया है। हर लम्हा खेत हो रहा है। मुक्तिबोध की बीड़ी वाली तस्वीर डोमाजी उस्ताद की डाइनिंग की ब्यूटी एक्सटेंशन है।

कुछ पेंटिंग भीतरी दीवार पर अटक जाती है। त्यागीजी की पेंटिंग पर यह बात मेरे लिए जितनी सच है, उससे ज्यादा उनके व्यक्तित्व पर फिट है। उनसे दर्जन से अधिक बार छोटी और बड़ी, दिल्ली और बनारस में, मुलाकातें हुई हैं। हर बार उन्हें देखते ही लगता -एक जीवित, गतिशील पेंटिंग सामने खड़ी है। गोरा चेहरा, खिचड़ी दाढ़ी पर तीखी उभरी हुई नाक और रस रहस्य से भरी आंखों में हर पीढ़ी के लिए दिलखोल आत्मीयता। सादतपुर उनके लिए एक जीवंत गांव की तरह था। मंडी हाउस कला वीथिका। दिलशाद गार्डन घुमक्कड़ी पार्क। बनारस में कई बार मुलाकात हुई। सामने घाट और बीएचयू मेरे घर आते। अस्सी पर कामरेड पोई की चाय अड़ी पर वे बनारस के जन को निहारते हुए देहाती हिंदुस्तान खोजते। हमारी चाय लड़ती रहती। वाचस्पति,दीनबन्धु तिवारी, लोलार्क द्विवेदी, हर्षवर्धन राय, गया सिंह-हर किसी से तन्मय और तर्कशील मिलन।

बनारस में वाचस्पति का घर एक दौर में लेखकों का खुला ठिकाना था। मुझे याद है वाचस्पति ने अपने बेटों की शादियों में त्यागी  को बुलाया और उम्र के असर को धता बताते हुए वे सम्बन्ध निभाने आए। अब तो न पुराने दौर के लेखक बचे हैं, न वाचस्पतिजी में वह ऊर्जा है और न ही वाचस्पति की वह क्लासिक घर गृहस्थी रही। नए लेखक हाइ टी और हाइ टेक मार्गी हैं। तब हरिपाल त्यागी जैसे चित्रकार-लेखक की सहज घुमक्कड़ी का महत्व और भावुक कर जाता है।

नई पीढ़ी हरिपाल त्यागी की पेंटिंग से परिचित है। हिंदी साहित्य की किताबों से गुजरने वाले पाठक के लिए अनायास ही किताब के कवर पर श्वेत श्याम और रंगीन चित्र के साथ एक परिचय टिपण्णी मिलती है-यह चित्र हरपाल त्यागी की कूची से। कविता, कहानी, उपन्यास की सैकड़ों किताबों के शब्दों का जीवन हरिपाल त्यागी के रंग और रेखाओं के बिना उदास और अधूरा रह जाता। त्यागी एक संवेदनशील कथाकार और कवि रहे। आत्मकथा के साथ बाल साहित्य भी लिखा। बच्चों की दुनिया उनके रंग और संवेदना को ताजा रखती थी।

85 साल की लंबी उम्र की हर सांस रंग और शब्द, बाहर और भीतर, व्यक्ति और समाज, भारतीयता और विश्व मानवता, सम्बन्ध और संगठन, बदलाव और क्रांति, परम्परा और आधुनिकता, सादतपुर और घुमक्कड़ी के बीच आवाजाही करती रही।

मैं जब भी मिला, उनसे यह जानने की कोशिश की कि हफऱ् रंग रेखा में और रंग रेखा हफऱ् में कैसे ढलते हैं। वे रंग शिक्षक भी लाजवाब थे, कठिन से कठिन चीज को तेल और जल में घोल कर तरल व सरल कर देते थे। जब तक कला और जीवन की शिरोरेखा रहेगी, हरिपाल त्यागी की कूची सेल्फी टाइम को सेल्फ की तरफ और सेल्फ से बाहर जोडऩे की कोशिश करती रहेगी। एक बड़े भारतीय लेखक से उनकी बहस याद है जो उनके विश्वास और जिद की सीमा रेखा है। बाद में वह संस्मरण जोड़ूंगा। अभी तो उस राख को नमन करता हूँ जो एक चित्रकार के चित्र की परवर्ती कच्ची सामग्री है। जो चाहे अपने चित्त में एक नया चित्र उकेर ले। त्यागी की कविता में  कलाकार का स्व देखिए-

अपनी उपलब्धि भी कम नहीं, दोस्तो!

बूढ़े एक बरगद की शीतल बड़ी छांव है

सोटा है, सोटी, डोरा-लोटा, लंगोटी है,

हमको तो प्यारा यही सादतपुर गांव है।

‘प्राण, अब इस देहरी को छोड़ दे’

कभी कभी मौत दरवाजे पर खड़ी नजऱ आती है। परसों (नौ मई को) जब जयपुर के साकेत अस्पताल में श्याम आचार्य को देखने गए, तब पता नहीं कैसे लगा कि विदा होने की तैयारी में हैं। आज शाम वे चले गए।

हालांकि ऐसा संशय कुछ अरसे से मंडरा रहा था। दिसंबर से वे बिस्तर पर थे, पिछले ही पखवाड़े पूर्व आईएएस अधिकारी श्यामसुंदर बिस्सा के प्रयत्नों से उनकी नई किताब प्रावृत, भारती अकादमी ने छापी। राजेंद्र बोडा जी ने बताया कि वे अपनी कापी में पद्य लिखते आए है। परिजनों से ही पता चला। आनन-फानन में पांडुलिपि तैयार हुई और अस्पताल जाकर मित्र उनकी कृति भेंट कर आए।

प्रेमलता के साथ जब उनसे मिलने गया, इशारे से उन्होंने किताब की प्रति मुझे देने को कहा। उनकी बेटी सीमा ने कुछ तस्वीरें लीं। तब तक श्याम जी किताब को थामे रहे। मैंने उनसे कहा घर जाकर आज ही पढूंगा। भले उन्होंने बोलना छोड़ दिया था, पर सजग थे। उन्होंने गर्दन हिलाई।

घर पर जब किताब उठाई, हैरान हुआ कि पहली कविता मानों अंतिम कविता थी- प्राण, अब इस देहरी को छोड़ दे/ रोग की गठरी बनी जो/पीड़ की नगरी बनी जो/ मोह में नित उलझकर/ क्षीण, कृश ठठरी बनी जो ..।’

श्याम जी से पहली मुलाकात उनके ही कस्बे जैसलमेर में 1978 में हुई थी। वे जयपुर में हिंदुस्तान समाचार में थे। अरब के एक शहजादे के शिकार अभियान के हल्ले से चिंतित राज्य सरकार के प्रेस-दल में वहां आए थे। अरुण कुमार जी (तब यूएनआई में, बाद में पानी -बाबा) से भी पहली भेट तभी हुई। दिल्ली से आए जावेद लईक आर रघुराम से भी।

मैं साप्ताहिक ‘रविवार’ के लिए उस विवादग्रस्त शिकार की रिपोर्ट के सिलसिले में बीकानेर से जैसलमेर गया था। वहां से जयपुर आया। मेरी सचित्र रिपोर्ट राजस्थान पत्रिका ने पहले छापी और उसके आधार पर कुलिश जी से नौकरी का प्रस्ताव भी हासिल हुआ। मैंने पढ़ाई पूरी करने की मोहलत मांगी। बहरहाल रिपोर्ट, सरकार को रास नहीं आई। अरुण कुमार जी(जो तब मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत के बहुत करीब थे) ने भी मेरी नरम आलोचना की। पर श्यामजी ने एक नवोदित पत्रकार का हौसला बढ़ाया, यह मुझे बखूबी स्मरण है।

अगले वर्ष मेरा विवाह हुआ। ससुराल न्यू कालोनी में श्यामजी के घर और दफ्तर के सामने थी। श्वसुर गोपाल जी पुरोहित से उनका घराया था। अब मैं उनके विशेष स्नेह का पात्र भी बन गया। बाद में जनसत्ता में हम साथ हुए। वे वहां समाचार संपादक रहे थे। फिर नवभारत टाइम्स में जयपुर रह कर कलकत्ता के स्थानीय संपादक हो जनसत्ता से फिर जुड़ गए। कलकत्ता में श्याम जी की बड़ी पहचान और साख थी। बांग्ला धड़ल्ले से बोलते थे। उन्होंने मुझे अनेकानेक लेखकों, कलाकारों और बुद्धिजीवियों से मिलवाया। जनसत्ता की प्रगति की योजना सुझाई। एक राजस्थानी बासे में घर जैसे खाने का ठिकाना भी बताया।

उनका निजी जीवन आगे दुखमय हो गया। विधि की विडंबना। पहले शंतिजी चली गई। फिर असमय ही बड़ा बेटा भूषण। पर उन्होंने अपने आपको संभाले रखा। लिखते रहे, जीते रहे।

जीवट के धनी, मधुर और सुंदर श्यामजी को विदा का आखिरी सलाम।

ओम थानवी

वाइस चांसलर, हरिदेव जोशी यूनिवर्सटी ऑफ जर्नलिज्म एंड मॉस कम्युनिकेशन

साभार: फेसबुक

चिट्ठी की प्रति बेसुरे को भेजी येती ने

मैं ‘येती’ हूं। बहुत सारे लोग मुझे प्यार से नहीं बल्कि तिरस्कार से ‘बर्फ मानव’ कहते हैं। यह किस कदर अकथनीय अशिष्ट तरीका है दुनिया के बड़े रहस्यों को जानने का। सोचिए यदि कोई आपको घृणित अभिनेता कहे। आपको कैसा लगेगा? यही वजह थी, मैं अंदर से कितना हिल गया जब आपकी पार्टी के नेताओं में एक चौकीदार तरु ण विजय ने लिखा – बधाई! हमें हमेशा आप पर गर्व है। भारतीय सेना के पर्वतारोही दस्ते के सदस्यों को सलाम। लेकिन आप भारतीय हैं। कृपया ‘येती’ को जानवर न कहें। उनके प्रति आदर दिखाएं। आप कहें कि वह ‘बर्फ मानव’ है।

मैंने जब पढ़ा ता मेरे दढिय़ल चेहरे पर हल्की सी मुस्कान तैर गई। मेरी आंख से आंसू निकले लेकिन न जल्दी ही वे बर्फ बन गए। मकालू बारून नेशनल पार्क में बहुत ठंड है। लेकिन मेरे प्रति जो प्यार और सम्मान  चौकीदार तरु ण विजय ने जताया। मेरे दिल का पोर पोर खिल उठा और खुशी से मेरी आत्मा झूम उठी। शायद यह पहली बार हुआ कि मेरे जैसे एक मिथकीय प्राणी के प्रति इतना आदर सम्मान जताया गया। मैंने अपनी छाती जोर से थपकी और मारे खुशी के बर्फ में नाचने लगा। उस बर्फ पर मैंने अपने और भी पदचिह्न छोड़ दिए हैं जिन्हें आपके सिपाही देख सकते हैं और मेरी तलाश में जुट सकते हैं। अगर मै कभी चौकीदार तरु ण विजय से मिला तो वादा रहा कि मैं उन्हें अपने आलिंगन में ले लूंगा और बर्फ में उनके साथ हर तरफ नाचने लगूंगा।

मोदी जी, आपको मैं चिट्ठी इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि मुझे लगता है आप और सभी लोग मुझे और मेरी बात समझेंगे। क्योंकि मेरी ही तरह आप भी एक मिथक ही हैं। हम दोनों ही, मिथकीय प्राणी हैं। आपको भी लेकर ढेरों कहानियां बनी हुई हैं। जैसे मेरे चारों और कहानियों है वैसे ही आपको लेकर हैं। मेरी कहानियों के जरिए पाठक के मन में भय, आश्चर्य, और सबसे बड़ी बात आंतक तो बढ़ता ही है। दुख इस बात का है कि आपके बारे में भी ऐसी ही भयभीत कर देने वाली कथाएं हैं। जिनके बारे में मैंने सुना है।

हिमालय के पहाड़ी गांवों में मेरे नाम से बच्चों को माताएं डराती हैं। ‘खाना खा लो, नहीं तो येती आएगा और तुम्हें खा जाएगा।’ या कि ‘आंखें बंद करके सो जाओ नहीं ते येती आएगा और तुम्हें उठा ले जाएगा।’ या ‘जंगलों में बहुत मत घूमों। येती तुम्हारे जैसे शरारती को ही वहां ढंूढता रहता है।’ मुझे लगता है कि आपके प्रवक्ता, मंत्री, प्रशंसक समर्थक और भक्त ऐसे ही देश के लोगों यानी पुरूषों और महिलाओं को आपका भय दिखा कर वह कराते होंगे जिसे करने के लिए इनका मन तैयार न होता होगा। ऐसा है कि नहीं, बंधु। आपके बारे में तो जो मिथक प्रचलित हैं वे तो तमाम दूसरे मिथकों से भी कहीं आगे हैं।  उनकी तादाद भी मुझे लेकर बनी कहानियों में कहीं ज्य़ादा ही है। इनका स्तर भी एकदम अलग है।

अब बतौर उदाहरण लेें आपके बिना काम न चले वाला ही मिथक। मोदी नहंी तो फिर कौन? फिर एक दूसरा मिथक है। चाहे राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश से सीटें न मिले पर आएगा तो मोदी ही। फिर एक मिथक है सुशासन का। एक ऐसा मिथक  कि आप ही देश के रक्षक और चौकीदार हैं। फिर मिथक है पिछले कुछ ही साल में आपके देश ने जो प्रगति की वह पहले कभी हुई नहीं। इसे सुन कर मेरी ही तरह सारे मैदानी बंदर सिर खुजाते हैं।

आपके देश में लोग क्या सचमुच इन सब बातों पर भरोसा कर लेते हैं। वह भी उस भयानक नोटबंदी के बावजूद जिससे आप भी तब चकित थे। फिर देश में बेरोज़गारी तो हर समय ग्राफ में बढ़ी ही दिखी। मैं चाहता हूं कि मुझसे संबंधित मिथक बनाने वाले, आपको मिथकीय गौरव दिलाने की काबिलियत दिखाने वालों से कुछ सीखें-समझें।

मिथक बनाने की जब चर्चा चल रही है तो ‘बाल नरेंद्र’ पर भी बात करते है। यह कॉमिक्स प्रयोग वाकई बेमिसाल है जो आपके बचपन को पूरे तौर पर मिथकीय बना देता है। हालांकि मैं मानता हूं कि यह उतना कामयाब नहीं रहा जितना तिब्बत में टिमटिन से मैं हुआ। हालांकि मेरा मिथक लेखक हर्ज, शायद भूगोल में कमज़ोर था। इसीलिए उसने नेपाल की जगह मुझे तिब्बत का बता दिया। लेकिन उसने जिस तरह मेरी तस्वीर बनाई उसमें भरपूर मौज मजा था। पढऩे वालों ने खूब सराहा भी, पीढ़ी दर पीढ़ी। बुरा मत मानना ‘बाल नरेंद्र’ तो कभी उस स्तर को नहीं छू सकेगा। मुझे अफसोस है। हालांकि मैं यह देख जानकर सन्न रह गया कि जब मैंने पढ़ा कि आपने मां घडिय़ाल से बाल घडिय़ाल भी लिया और उसे फिर लौटा भी दिया। यह तो आपकी गजब की निडरता है। हालांकि यह निडरता प्रेस  कांफ्रेस में नहीं झलकती। हा…हा….हा… (यह येती का मजाक था, लिख यह मत लेना)

बहरहाल, आपसे बातचीत करना बहुत अच्छा लगता है। सूरज अब डूबने को है। मुझे वापस पहाडिय़ों से दौड़ते हुए अपनी उस गर्म आरामदेह बर्फीली गुफा में लौट जाना है जिससे रात गुज़ार सकूं। आपकी इच्छा के ठीक उलट, मुझे तो अच्छी, लंबी रात की नींद बहुत आती है।

सस्नेह

येती

साभार : वायर इन

बाल ठाकरे के निवास स्थान मातोश्री को उड़ाने की साज़िश

मुंबई : किसी जमाने में कट्टर शिवसैनिक रहे , महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री चीफ मिनिस्टर नारायण राणे ने यह कहकर सनसनी मचा दी है कि 1989 में आतंकवादियों ने शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे के बांद्रा स्थित निवास स्थान ‘मातोश्री’ को उड़ाने की साज़िश रची थी और इसमें मातोश्री के भी थे!

अपनी ऑटोबायोग्राफी में राणे ने खुलासा किया है कि इस साज़िश की जानकारी उस समय के महाराष्ट्र के चीफ मिनिस्टर शरद पवार ने बाल ठाकरे के बड़े बेटे उद्धव ठाकरे को थी। इस जानकारी के बाद बाल ठाकरे ने अपने परिजनों को कुछ समय के लिए सुरक्षित स्थान पर जाने कहा था।

राणे की ऑटो बायोग्राफी ‘No Holds Barred : My Years In Politics’ के अनुसार ठाकरे खालिस्तानी आतंकवादियों के की हिट लिस्ट में थे ।उस समय कुछ खालिस्तानी समर्थक मुंबई के साथ साथ अनेक शहरों में सक्रिय थे ।19 मार्च 1988 को बाल ठाकरे ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया था जिसमें उन्होंने सिख समुदाय द्वारा अलगाववादियों को फंडिंग कि ये जाने की बात की थी और उनका आर्थिक रूप से बहिष्कार किए जाने की वकालत की थी।

1989 में महाराष्ट्र असेंबली इलेक्शन में शिवसेना हार चुकी थी और महाराष्ट्र राज्य सुरक्षा कांग्रेस के हाथ में थी। इस जानकारी के बाद बाल ठाकरे ने मातोश्री की सुरक्षा बढ़ा दी थी और सभी को हाई अलर्ट रहने के लिए कह दिया था। इस सनसनीखेज खुलासे में एक और बड़ा खुलासा किया गया है कि बाल ठाकरे के निवास स्थान ‘मातोश्री’ को बम से उड़ाने के षडयंत्र में मातोश्री के लोगों का भी हाथ था ।

यूपी सड़क हादसे में ६ की मौत

उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में एक सड़क हादसे में छह लोगों की मौत हो गयी। यह सभी लोग एक ही परिवार के थे।
रिपोर्ट्स के मुताबिक मरने वालों में दो बच्चे और तीन महिलाएं शामिल हैं। मझोला के लाकड़ी में रहने वाला परिवार बीती देर डिलारी के गांव नाखूनका में एक शादी समारोह से लौट रहा था। सभी लोग ट्रैक्टर ट्राली में सवार थे। नाखूनका के पास  ट्रैक्टर ट्राली पलट गयी जिससे यह हादसा हुआ।
दुर्घटना में छह लोगों की जान जाने के अलावा २० लोग गंभीर रूप से घायल हुए हैं। घायलों को जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया है। तीन की हालत गंभीर बताई जा रही है। ख़बरों के मुताबिक डिलारी थाना क्षेत्र के ग्राम नाखूनका में जितेंद्र सिंह के घर पार्टी थी। मुरादाबाद की लाकडी फाजलपुर गांव से रिश्तेदार शामिल होने गए थे। देर रात सभी मेहमान ट्रैक्टर ट्रॉली में सवार होकर वापस लाकडी फाजलपुर के लिए चल दिए।
नाखूनका से निकलते ही तेज गति ट्रैक्टर ट्रॉली के सामने कार के ब्रेक लगने पर चालक नियंत्रण खो बैठा और अनियंत्रित ट्रैक्टर ट्रॉली रोड किनारे गहरी खाई में पलट गई। चीख-पुकार से ग्रामीण उठकर मौके पर पहुंचे। इस बीच सूचना गांव के दूसरे छोर पर जितेंद्र के घर तक पहुंची। इसके बाद जितेंद्र के परिवार के सदस्य और मेहमान मौके पर पहुंचे। लोगों की भीड़ में ट्रैक्टर ट्राली को पलट कर नीचे दबे महिला पुरुष और बच्चों को बाहर निकाला।

शिमला के ऐतिहासिक ग्रांड होटल का बड़ा हिस्सा ख़ाक

हिमाचल की राजधानी शिमला में भारत सरकार के अतिथि गृह ग्रैंड होटल का  ऐतिहासिक भवन भीषण आग के बाद जलकर ख़ाक हो गया। इसका बड़ा हिस्सा लकड़ी के इस्तेमाल से बना था। होटल का एक पूरा ब्लाक, जिसमें २० कमरे थे, आग की भेंट चढ़ गया है। हालांकि, इस अग्निकांड में किसी तरह का जानी नुक्सान नहीं हुआ है।
यह भव्य इमारत शिमला के मशूहर रिज और कालीबाड़ी मंदिर के रास्ते पर है। आग आधी रात करीब सवा एक बजे लगी, हालांकि आग कैसे लगी इसका खुलासा अभी नहीं हुआ है। यह हिस्सा वीआईपी ब्लाक कहा जाता है और इसमें मरम्मत का भी काम चल रहा था।
शिमला जिला प्रशासन से मिली जानकारी के मुताबिक आगजनी में किसी तरह का जानी नुकसान नहीं हुआ है, लेकिन २० से ज्यादा कमरों वाला ग्रैंड होटल का नया ब्लॉक स्वाहा हो गया है। बता दें कि शिमला की धरोहर इमारतों में शुमार ये भवन एक बार पहले भी आग की भेंट चढ़ चुका है।
आग की खबर मिलते ही पुलिस, फायर ब्रिगेड और सेना के जवान मौके पर पहुँच गए और आग बुझाने की भरसक कोशिश की लेकिन लकड़ी की बनी इस इमारत ने एक बार आग पकड़ी तो भवन के को राख में तब्दील करके ही दम लिया। मौके पर पांच अग्निशमन के फायर टेंडर काम पर थे। डीसी शिमला राजेश्वर गोयल मौके पर पहुंचे और पूरी आग बुझाने की पूरी व्यवस्था पर निगरानी रखी।
आग लगने के कारणों का फिलहाल पता नहीं चल सका है, लेकिन जानकारी के मुताबिक होटल के इस हिस्से में जो वीआईपी एरिया बताया जाता है उसमें रिपेयर का काम चल रहा था।