किसी मुसलमान को यह हक नहीं है कि वह गलत काम करे और मजहब की आड़ में इसे छिपाए : नजमा हेपतुल्ला

फोटोः कृष्णकांत
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अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री के रूप में आपके दो साल पूरे हो गए हैं. इस दौरान मंत्रालय की क्या खास उपलब्धियां रहीं?

पिछले दो सालों के दरमियान हमारे मंत्रालय को जितना बजट मिला है, हमने उसमें से 99 प्रतिशत पैसों को आवंटित कर दिया है. हमारे यहां अल्पसंख्यकों के छह समुदाय हैं. इन सबकी समस्याएं भी अलग-अलग हैं. हमने इन सभी के कल्याण के लिए अलग-अलग कार्यक्रम बनाए हैं. इसका कारण यह है कि एक ही कार्यक्रम सभी पर लागू नहीं किया जा सकता था. नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के घोषणापत्र में शिक्षा पर सबसे अधिक जोर दिया गया है. इसका पालन करते हुए हमारे मंत्रालय ने अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुसलमानों की शिक्षा के क्षेत्र में सबसे अधिक मदद और प्रोत्साहन की प्रक्रिया शुरू की है. इसमें हमें पर्याप्त सफलता भी मिली है. हमारा जोर सबका खासकर मुसलमानों का विकास करना है. इसका कारण यह है कि मुसलमानों में शिक्षा का अभाव है. इसके चलते वे विकास की दौड़ में शामिल नहीं हो पाते हैं. इसलिए अलग-थलग पड़ रहे हैं. उन्हें शिक्षा मुहैया कराकर हम मुख्यधारा में शामिल कर लेंगे.

मैं पार्टी के लोगों के साथ-साथ देशवासियों से भी यह कहना चाहती हूं कि अगर वे देश को आगे बढ़ाने में मदद नहीं कर पा रहे हैं तो कम से कम अड़चनें न पैदा करें. जो लोग आपत्तिजनक बयान दे रहे हैं, वे एक तरह से मोदी के विकास के एजेंडे में रुकावट ही पैदा कर रहे हैं

लाखों की तादाद में हम अल्पसंख्यक छात्रों को छात्रवृत्ति और फेलोशिप मुहैया करा रहे हैं. इसमें करीब 46 प्रतिशत महिलाओं की संख्या है. हमने 10वीं और 12वीं की मुस्लिम छात्राओं को मौलाना आजाद फेलोशिप के तहत छात्रवृत्ति दी है, ताकि उनकी पढ़ाई में किसी तरह की अड़चन न आए. अगला लक्ष्य कौशल विकास है. इसके लिए मौलाना आजाद नेशनल एकेडमी फॉर स्किल्स डेवलपमेंट के तहत विभिन्न कौशलों को बढ़ावा देने की प्रक्रिया शुरू की गई है. इससे बड़ी संख्या में अल्पसंख्यकों और मुसलमानों के बच्चे लाभान्वित हो रहे हैं. मदरसों में स्किल डेवलपमेंट के लिए हमने ‘नई मंजिल’ कार्यक्रम की शुरुआत की है. यह कार्यक्रम विश्व बैंक को बहुत ही पसंद आया है. उसने इस कार्यक्रम के लिए हमें लोन भी दिया है. साथ ही वह इसे अफ्रीकी देशों में लागू करने की योजना भी बना रहा है. इसके अलावा प्रधानमंत्री का नया पंद्रह सूत्री कार्यक्रम अल्पसंख्यकों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है.

मोदी सरकार पर मुसलमानों की उपेक्षा करने का आरोप लगता रहा है. अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री होने के नाते आप इन आरोपों से किस हद तक सहमत और असहमत हैं?

यह आरोप बिल्कुल गलत है. लोकसभा चुनाव के दौरान ही विपक्ष यहां तक आरोप लगाता रहा कि यदि मोदी सरकार आ गई तो मुसलमानों का कत्लेआम हो जाएगा. अल्पसंख्यक मंत्रालय खत्म कर दिया जाएगा. मुसलमानों पर ज्यादती होगी, उन्हें उनके अधिकारों से वंचित कर दिया जाएगा. लेकिन क्या ऐसा हुआ है? मोदी सरकार ने अल्पसंख्यक मंत्रालय को खत्म करने के बजाय इस साल के बजट में 90 करोड़ रुपये बढ़ा दिए हैं. इसके अलावा पिछली सरकारों द्वारा नेशनल माइनॉरिटीज डेवलपमेंट ऐंड फाइनेंस कॉरपोरेशन को आवंटित 1500 करोड़ का बजट भी खत्म हो गया था. पिछली सरकार के मंत्री जो आज हमारी सरकार पर आरोप लगा रहे हैं उन्होंने कुछ भी नहीं किया. वे सिर्फ मोदी के नाम पर डराते रहे. हमने मंत्रिमंडल में इस प्रस्ताव को रखा और मंत्रिमंडल ने न सिर्फ इसके लिए फंड आवंटित किया बल्कि बजट बढ़ाकर 3000 करोड़ कर दिया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सबका साथ, सबका विकास का नारा दिया है. हमारी सरकार समाज के सभी वर्गों के साथ बराबरी का रवैया अपनाए जाने के अपने वादे पर बखूबी काम कर रही है. जहां तक बात मुसलमानों के पिछड़ेपन की है तो वे आजादी के बाद से ही कांग्रेसी सरकारों की नीतियों की वजह से अलग-थलग पड़ गए थे. पिछली सरकारों ने उन्हें आर्थिक और शैक्षिक क्षेत्र में पीछे छोड़ दिया था, इसलिए अभी वे पिछड़े हैं लेकिन अब ऐसी स्थिति नहीं रहेगी. अब अन्य सभी वर्गों के साथ उन्हें भी समान अवसर प्रदान किए जा रहे हैं.

भाजपा के कुछ नेता अल्पसंख्यकों, खासकर मुसलमानों के खिलाफ लगातार उल्टे-सीधे बयान देते रहते हैं, उन्हें पाकिस्तान भेजे जाने की बात करते हैं. इसे लेकर कोई खास कार्रवाई उन पर नहीं होती है. इसका क्या कारण है?

देखिए, अभी इस तरह के बयान देने वाले नेताओं ने चुप्पी साध रखी है. हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने आचरण से ऐसे नेताओं की बोलती बंद कर दी है. जो ऐसा बयान दे रहे थे वे अब जान गए हैं कि उनकी सोच गलत थी और हमारे प्रधानमंत्री की सोच इससे अलग है. प्रधानमंत्री की सोच सबका साथ, सबका विकास है. वैसे भी हमारे देश की आबादी एक अरब से ज्यादा है. इसमें सब तरह के लोग होते हैं. ऐसे आलतू-फालतू बयान देने वाले लोगों को तवज्जो देने की जरूरत नहीं है. वैसे भी मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से सांप्रदायिक दंगों की संख्या में भारी कमी आई है. मैं पूरे विश्वास के साथ यह कहना चाहूंगी कि मोदी सरकार के इन दो सालों में मुसलमानों में विश्वास पैदा हुआ है. मोदी सरकार के प्रति चिंता और भय की जो भावनाएं थीं वे अब दूर हुई हैं  

हाल में दादरी में हुए गोमांस विवाद के बाद भी भाजपा नेताओं ने आपत्तिजनक बयान दिए. इस मामले की रिपोर्ट आ जाने के बाद भी यह जारी है. इस पर आपका क्या कहना है?

यह मामला कोर्ट के सामने है. मुझे इस बात पर फख्र है कि हमारी अदालतें ऐसी किसी भी बात से प्रभावित नहीं होती हैं. जो उसका फैसला आएगा, वह सब मानेंगे. अदालत के मामले में हमारा कुछ बोलना उचित नहीं है. जो लोग इस तरह की बातें कर रहे हैं, उनके लिए मेरा सिर्फ यही कहना है कि वे न तो देश का भला कर रहे हैं और न ही पार्टी का. अगर हमें देश को आगे बढ़ाना है तो हमें उस नेता का साथ देना होगा जो सबका साथ और सबका विकास के नारे के साथ देश को आगे ले जा रहा है. हमारे प्रधानमंत्री लगातार बिना थके इस काम में लगे हुए हैं. ऊपरवाले ने उन्हें बहुत ताकत दी है. मैं पार्टी के लोगों के साथ देशवासियों से कहना चाहती हूं कि अगर वे देश को आगे बढ़ाने में मदद नहीं कर पा रहे हैं तो कम से कम अड़चनें न पैदा करें. जो लोग आपत्तिजनक बयान दे रहे हैं, वे एक तरह से मोदी के विकास के एजेंडे में रुकावट ही पैदा कर रहे हैं. उन्हें सोचना चाहिए कि वे जिस डाल पर बैठे हैं उसी को काट रहे हैं.

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सबसे पहली बात यह है कि बड़ी संख्या में ऐसे युवक जब गिरफ्तार किए गए थे तब सरकार किसकी थी. उस समय उनकी सरकार थी जो आज मोदी और सरकार को सांप्रदायिक बताते हैं. उन लोगों ने बिना किसी सबूत के ऐसे लड़कों को गिरफ्तार किया जिनका जुर्म सिर्फ इतना था कि वे मुस्लिम थे

तीन तलाक को लेकर इन दिनों मुस्लिम समुदाय में खूब बहस हो रही है. बड़ी संख्या में मुस्लिम महिलाएं इसके विरोध में क्यों हैं? 

ये पुरुष प्रधान दुनिया है. हर मर्द अपने नजरिये से सोचता है. अगर धर्म और कानून को अलग रखकर भी हम बात करें तो एक मानवीय पक्ष भी होता है. अगर आपने किसी से शादी की है तो आप उसे ऐसे निकालकर फेंक देंगे. ये सोचने वाली बात है. इस्लाम में तलाक की इजाजत है पर यह जरूरी नहीं है और ऐसी बहुत सारी इजाजतें हैं, लेकिन यह जरूरी नहीं है कि उनका इस्तेमाल ही किया जाय. पैगंबर ने उनको अच्छा नहीं माना है. वैसे भी एक बार में तीन तलाक की व्यवस्था नहीं है. तलाक देने की पूरी प्रक्रिया को तीन महीने में पूरा होना है. अब अगर आप एक बार में तीन तलाक दे देते हैं और बाद में पता चलता है कि महिला गर्भवती है तब क्या होगा? इसलिए यह व्यवस्था की गई है कि तीन महीने तक इंतजार किया जाए. हम इक्कीसवीं सदी में जी रहे हैं. हमें समाज को देखकर बदलाव लाना होगा. किसी मुसलमान को यह हक नहीं है कि वह गलत काम करे और मजहब की आड़ में इसे छिपाए. कोई बुरा आदमी है और वह कत्ल करता है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए. अगर वह इसे धर्म की आड़ में छिपाना चाहता है तो यह गलत है. किसी धर्म में गलत बातों की इजाजत नहीं है. धर्म को इससे बाहर रखना चाहिए. दरअसल लोगों के लिए यह आसान होता है कि वे अपनी गलती छिपाने के लिए धर्म की चादर ओढ़ लेते हैं. ये जो हो रहा है इसके खिलाफ समाज में से ही आवाज उठेगी. अभी लड़कियां अपने हक के लिए आवाज उठा रही हैं. कुछ दिन में लड़के भी शिक्षित और समझदार हो जाएंगें और वे भी इसे मानने से इनकार कर देंगे.    

आतंकवाद के नाम पर बड़ी संख्या में फर्जी तरीके से गिरफ्तार किए गए मुस्लिम युवकों को कोर्ट ने रिहा कर दिया है. इन युवकों के कई कीमती साल बिना किसी जुर्म के जेल में बर्बाद हो गए. ऐसे युवकों के लिए मंत्रालय क्या कर रहा है?

सबसे पहली बात यह है कि बड़ी संख्या में ऐसे युवक जब गिरफ्तार किए गए थे तब सरकार किसकी थी. उस समय उनकी सरकार थी जो आज नरेंद्र मोदी और हमारी सरकार को सांप्रदायिक बताते हैं. उन लोगों ने बिना किसी सबूत के ऐसे लड़कों को गिरफ्तार किया जिनका जुर्म सिर्फ इतना था कि वे मुस्लिम थे. अब अदालत से सब साफ बरी हो रहे हैं.

अभी हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी अमेरिका में साफ-साफ कहा कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता है. जहां तक मंत्रालय के काम का सवाल है तो हमारी इसमें कोई खास भूमिका नहीं है. हम कोई हर्जाना वगैरह तो दे नहीं सकते हैं. अगर ऐसे युवक अपने जीवन-यापन के लिए कोई स्किल सीखना चाहते हैं तो हम उन्हें प्राथमिकता देंगे. अगर वे कारोबार करना चाहते हैं तो हम उन्हें मंत्रालय से लोन दिलाएंगे. हमें उनके बेहतर भविष्य की चिंता है.