ईद के दिन छुट्टी होती है लेकिन निजी क्षेत्रों में काम करने वालों को ये सौभाग्य कहां मिलता है. उस दिन मुझे एक जरूरी बिजनेस मीटिंग के लिए गाजियाबाद जाना था. दिन के करीब 11 बजे मैं गाजियाबाद पहुंचा. वहां एक वरिष्ठ साथी अपनी कार से आए. वे कार से बाहर निकले और हमारी बातचीत शुरू हो गई. इस दौरान मैंने अपना स्मार्ट फोन कार की छत पर रख दिया. थोड़ी देर बाद हम कार में बैठ गए और बातचीत में तय हुआ कि मेरे वरिष्ठ साथी मीटिंग में अकेले जाएंगे और मुझे उनका इंतजार गाजियाबाद ऑफिस में ही करना है.
इसके बाद कार से निकलकर मैं ऑफिस की ओर बढ़ चला. थोड़ी देर बाद अहसास हुआ कि मैं अपना फोन गंवा चुका हूं. लेकिन मुझे लगा कि मैंने फोन कार में छोड़ा होगा. मैंने फेसबुक पर अपने साथी को मैसेज छोड़ा लेकिन उनका कोई जवाब नहीं आया. घंटे भर बाद मैंने अपने नंबर पर फोन किया तो वह स्विच ऑफ मिला. इसके बाद मेरी चिंता थोड़ी बढ़ गई. हालांकि उस वक्त मैं यह भी तय नहीं कर पा रहा था कि मेरा फोन खो गया था या नहीं. मैंने याददाश्त को झकझोरा लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. मैंने कई बार अपने नंबर पर फोन मिलाया पर वह स्विच ऑफ रहा. अब मुझे यकीन हो गया कि फोन खो गया था.
तनाव हावी हो रहा था क्योंकि इस महीने की तनख्वाह रूम के किराये और छोटी बहनों की स्कूल-कोचिंग फीस में खर्च हो चुकी थी. अब नए फोन के लिए पैसे बचे नहीं थे. एक अजीब-सी उदासी पसर रही थी. आज के समय में स्मार्ट फोन खोने का अपना दुख होता है. पूरा दिन निकल चुका था, शाम सात बजे घर पहुंचा लेकिन किसी को कुछ बताया नहीं. तभी छोटी बहन का फोन बजा, उस तरफ छोटा भाई था. उसने बताया कि मेरा फोन नोएडा सेक्टर 62 के किसी शख्स के पास है और वह उसे लौटाना चाहता है. उसका फोन कटते ही दोस्त बृजेश का फोन आया. वह एक सांस में बोलता चला गया, ‘कहां हो तुम, तुम्हारा फोन खो गया है. एक लड़का तुम्हारा फोन वापस करने के लिए आधे घंटे से खड़ा है. जाकर ले लो नहीं तो वो चला जाएगा.’
मेरा दिन जिस तरह से तनावग्रस्त था वह रात उतनी ही खुशनुमा हो गई थी. ईद पर मैंने जमकर सेवइयां खाईं और डिस्को गया
मैंने पूछा लड़का कहां है, मेरी उससे बात कैसे हो पाएगी. पता चला कि वह नोएडा सेक्टर 12-22 में एक मिठाई की दुकान के पास खड़ा है और जल्दी में है क्योंकि उसे किसी पार्टी में जाना था. दरअसल, शाम के 8 बज चुके थे. जिनके पास मेरा फोन था उन्होंने मेरे कई दोस्तों को फोन करके इस बारे में जानकारी दे दी थी. इस वजह से मुझे कहां जाकर उनसे मिलना है, इसे लेकर थोड़ा कन्फ्यूजन हो गया था. इसी कन्फ्यूजन में मेरी एक दोस्त दीपाली फोन लेने सेक्टर 62 पहुंच भी चुकी थी. बहरहाल मैं छोटी बहन का फोन साथ लिए सेक्टर 12-22 भागा. वहां पता चला कि उस मिठाई की दुकान की चार शाखाएं हैं. मैंने फोन लगाया तो उन्होंने एक एटीएम के पास वाली मिठाई की दुकान पर खड़े होने की बात कही. मैं वहां पहुंचा पर उनसे मुलाकात नहीं हो पाई. एटीएम के अंदर जाकर कुछ लोगों से पूछ डाला, ‘हाय, मैं जनार्दन, क्या आप मेरा फोन लौटाना चाहते हैं?’ पसीने से तरबतर बनी हुई शक्ल और ऐसे सवाल की वजह से लोग मुझे पागल समझ रहे थे. मैंने फिर उन्हें फोन लगाया और उसी के साथ उस फोन का बैलेंस भी खत्म हो चुका था. जल्दबाजी में बटुआ लाना भी भूल गया था. अजीब असहायों जैसी स्थिति हो गई थी. कुछ लोगों से एक कॉल करने का आग्रह भी किया लेकिन जवाब मिलता कि बैलेंस नहीं है.
कुछ देर की मशक्कत के बाद एक युवक ने मेरी मदद की. मैंने उस शख्स को फिर कॉल किया तो उन्होंने कहा, ‘भाई, तुझे फोन लेना है तो बता. कब से खड़ा हूं, तू आ ही नहीं रहा.’ खैर इसके बाद मेरी उनसे मुलाकात हुई. मेरा फोन मेरे हाथ में था और मैं उन्हें धन्यवाद दे रहा था. उनसे गले लगा और पूछा, ‘आपके लिए क्या कर सकता हूं?’ इस पर वे बाइक पर बैठते हुए बोले, ‘भाई, ईद की पार्टी में जा रहा हूं, तुझे चलना हो तो बता.’ उस शख्स का नाम रज्जाक है. फोन मिलने के बाद मैं उनके साथ ही चला गया. जमकर सेवइयां खाईं, कई और दोस्त मिल गए. सबको गले गलाया और फिर एक डिस्कोथेक गए. मेरा दिन जिस तरह से तनावग्रस्त था वह रात उतनी ही खुशनुमा हो गई थी. रज्जाक भाई, बहुत-बहुत शुक्रिया, मुझे मेरी ईदी देने के लिए.