आंतरिक लोकतंत्र का फटा ढोल

कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी का सपना भले कांग्रेस पार्टी में जमीनी कार्यकर्ताओं को सम्मान देने का हो लेकिन कम से कम उत्तराखंड में तो हकीकत इससे कोसों दूर है. यहां हाल ही में संपन्न हुए कांग्रेस के संगठन चुनावों में एक बार फिर से निष्ठावान कार्यकर्ताओं के स्थान पर अवसरवादियों को हर स्तर पर खूब मौके दिए गए. उपेक्षा से खफा कांग्रेसी जिलों में हंगामा करने के साथ-साथ हाईकमान तक अपनी शिकायतें पहुंचाने में लगे हुए हैं.

एक नजर संगठन चुनावों की प्रक्रिया पर डालें तो प्रत्येक पोलिंग बूथ तक संगठन को पहुंचाने की मुहिम के तहत राज्य के हर बूथ से एक सक्रिय सदस्य को बूथ प्रभारी के रूप में चुना जाना था और एक सदस्य को ब्लॉक कांग्रेस कमिटी के डेलीगेट के रूप में. (कांग्रेस ने संगठनात्मक दृष्टि से पूरे राज्य को160 चुनावी ब्लॉकों में बांटा था, इसलिए राज्य के 5 लोकसभा क्षेत्रों में से प्रत्येक में औसतन 32 ब्लॉक होते हैं). पोलिंग बूथों से चुने गए डेलीगेट ब्लॉक स्तर पर कांग्रेस कमिटी का अध्यक्ष चुनने के साथ-साथ एक प्रदेश कांग्रेस कमिटी (पीसीसी) व छह जिला कांग्रेस कमिटी (डीसीसी) के सदस्यों को चुनते हैं. बाद में जिला कांग्रेस कमिटी के सदस्य जिलाध्यक्ष का चुनाव करते हैं और हर ब्लॉक से चुने गए पीसीसी सदस्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और एआईसीसी के सदस्यों का. इसके बाद एआईसीसी के सदस्य ही कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष को चुनते हैं.

वर्ष 2008-09 से शुरु हुए राज्य कांग्रेस के सदस्यता अभियान में फर्जीवाड़े को रोकने के लिए फॉर्मों पर फोटो चिपकाना अनिवार्य बना दिया गया था. इन्हें जमा करने की अंतिम तिथि 31 दिसंबर, 2009 थी.

राज्य कांग्रेस में असंतोष के सबसे बड़े कारण पीसीसी सदस्य व जिलाध्यक्षों के पद हैं. हर बड़ा व मझोला कांग्रेसी नेता पीसीसी में जाना चाहता था ताकि वह प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की चुनाव प्रक्रिया में भाग ले सके और प्रदेश का हर कांग्रेसी क्षत्रप अपने प्रभाव के जिलों में ‘अपने अनुकूल’ जिलाध्यक्ष को चाहता था ताकि वह आगामी चुनावों में अपने चहेतों को टिकट दिलाने का रास्ता साफ कर सके. पहले कांग्रेस में लोकसभा सांसदों या संभावित प्रत्याशियों को अपनी सीटों वाले जिलों में अपने मुताबिक टीम बनाने की छूट थी. लेकिन राहुल गांधी की पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र लाने की मुहिम से उत्साहित कांग्रेसी इस बार चुनावों में ‘क्रांतिकारी परिवर्तन’ के साथ ‘पूर्ण आंतरिक लोकतंत्र’ की उम्मीद कर रहे थे.

अकेले देहरादून में कांग्रेस प्रत्याशियों के विरुद्ध चुनाव लड़ने वाले चार कांग्रेसियों को पीसीसी भेज दिया गया लेकिन ऐसा हुआ नहीं. हालांकि पीसीसी सदस्यों की सूची 28 अगस्त को को ही सार्वजनिक की गई है मगर इसके बारे में अखबारों में जानकारियां पहले से ही छपती रही हैं. प्रदेश कांग्रेस के कद्दावर नेता व कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी बताते हैं, ‘इस बार भी लोकसभा सदस्यों ने अपने-अपने क्षेत्रों में अपने चहेतों को सभी पदों पर काबिज करा दिया.’ राज्य कांग्रेस के खजांची रहे ब्रह्मचारी हरिद्वार में कई राज्य स्तरीय कार्यक्रम आयोजित कर चुके हैं. पर वे इस बार हरिद्वार से पीसीसी को सदस्य बनने में सफल नहीं हो सके. ब्रह्मचारी के अनुसार वर्ष 2012 के विधानसभा चुनावों में अधिक से अधिक समर्थकों को टिकट दिलाने के लिए ‘कागजी परिस्थितियां’ निर्मित करने के फेर में इन क्षत्रपों ने अपने क्षेत्र के अलावा अन्य लोकसभा क्षेत्रों में भी जमकर दखलअंदाजी की.

असंतुष्टों में सबसे मुखर खेमे के कांग्रेसियों ने पूर्व विधायक कुंवर सिंह नेगी, प्रदेश उपाध्यक्ष जोत सिंह बिष्ट, राजेंद्र शाह व सब्बल सिंह राणा के नेतृत्व में प्रदेश के 13 जिलों में से 10 में बैठकें कीं. पिछले दिनों इन नेताओं ने नौ जिलों में संगठन के चुनावों में हुई अनियमितताओं की एक रिपोर्ट बनाकर उत्तराखंड में कांग्रेस चुनाव के लिए गठित प्राधिकरण के अध्यक्ष मुकुट मिथी को दिल्ली में सोंपीं.

असंतुष्टों का आरोप है कि टिहरी जिले के जौनपुर ब्लॉक (थत्यूड़) में सर्वसम्मति से देवी सिंह चौहान पीसीसी सदस्य चुने गए थे. उनके पास ब्लॉक चुनाव अधिकारी(बीआरओ) प्यारेलाल हिमानी के हस्ताक्षर का पत्र भी है.  परंतु बाद में उनका नाम काट दिया गया। इसी तरह थौलधार ब्लॉक से जोत सिंह बिष्ट को निर्विरोध पीसीसी सदस्य चुना गया था. वे थौलधार के ब्लॉक प्रमुख भी रहे हैं. लेकिन बाद में वहां से टिहरी के लोकसभा सदस्य विजय बहुगुणा का नाम पीसीसी के लिए भेज दिया गया. बिष्ट का आरोप है कि ‘हर स्तर पर चुनाव में बेईमानी हुई है. संगठन की मतदाता सूचियां तक गोपनीय रखी गई. कुछ लोगों ने फर्जी सदस्यता के दम पर संगठन पर कब्जा जमाने की कोशिश की है जिससे पूरी चुनाव प्रक्रिया से जमीनी कार्यकर्ता गायब हैं.’ असंतुष्टों की रिपोर्ट के अनुसार पूरे टिहरी लोकसभा क्षेत्र में चुनाव के दौरान पार्टी द्वारा तय आरक्षण के नियमों का पालन नहीं किया गया. यहां से आरक्षित 16 पीसीसी सीटों में से केवल 2-3 पर ही आरक्षित वर्ग के नुमाइंदे पीसीसी में भेजे गए. टिहरी में जिलाध्यक्ष कीर्ति सिंह नेगी तीसरी बार जिलाध्यक्ष चुन लिए गए जबकि आरोप है कि इस पद के अन्य दावेदार विक्रम सिंह पंवार को नामांकन फार्म तक नहीं दिया गया.

‘राज्य के लगभग सभी जिलों में पार्टी संविधान और चुनाव प्रक्रिया की घोर अवहेलना हुई है,’असंतुष्टों के नेता और पूर्व विधायक कुंवर सिंह नेगी आरोप लगाते हैं. राज्य के वरिष्ठ कांग्रेसी नेता नेगी भी रुद्रप्रयाग जिले से पीसीसी नहीं जा पाए हैं. उनका आरोप है कि सदस्यता फॉर्मों की छानबीन का काम जिलाध्यक्षों को दे दिया गया था जिन्होंने अपने चहेतों के तो आधे-अधूरे फार्म भी जमा कर लिए परंतु विपक्षियों के रास्ते में तरह-तरह की बाधाएं खड़ी कीं.

रिपोर्ट के अनुसार रुद्रप्रयाग जिले में डेलीगेटों की बैठक तक नहीं कराई गई और चुनाव प्रक्रिया एक दुकान से संचालित कर अखबारों में पदाधिकारियों के नाम घोषित कर दिए गए. रुद्रप्रयाग  के जिला चुनाव अधिकारी (डीआरओ) व पूर्व विधायक अनुसूया प्रसाद मैखुरी स्वीकार करते हैं कि रुद्रप्रयाग में चुनाव प्रक्रिया एक कार्यकर्ता की दुकान से संचालित की गई, मगर ऐसा किए जाने का कारण वे जिले में कांग्रेस का कोई कार्यालय न होने को बताते हैं. वे कहते हैं, ‘पार्टी के कुछ लोग चुनाव प्रक्रिया को ठीक से नहीं समझ पाए हैं, इसलिए चुने गए लोगों का विरोध कर रहे हैं.’ किंतु राज्य आंदोलनकारी रहे कांग्रेसी नेता राजेंद्र शाह खुली चेतावनी देते हुए कहते हैं, ‘पिछले दरवाजे से संगठन में घुस रहे इन दागियों, बागियों और रागियों (चाटुकारों) को पार्टी पदों पर काबिज होने नहीं दिया जाएगा.’ वे बताते हैं कि आपराधिक मुकदमों के बावजूद कई लोग पीसीसी की सूची में हैं.

संगठन के इन चुनावों में कुमाऊं के 6 जिलों में से केवल पिथौरागढ़ व चंपावत में ही नए जिलाध्यक्ष चुने गए हैं. ये जिले अल्मोड़ा के सांसद प्रदीप टम्टा के लोकसभा क्षेत्र में आते हैं. हटाए गए जिलाध्यक्ष उनके समर्थक माने जाते हैं. बाकी चार जिलों में पहले के जिलाध्यक्षों की ही फिर से ताजपोशी कर दी गई. पिथौरागढ़ से पूर्व अध्यक्ष नारायण सिंह बिष्ट बताते हैं, ‘पिथौरागढ़ के 4,000 सदस्यों की सूची तक गायब है. उनका पैसा कहां गया यह तक किसी को पता नहीं है.’पिछले 10 साल से चंपावत की जिलाध्यक्षा रहीं निर्मला गहतोड़ी बताती हैं कि जिन लोगों ने वर्ष 2002

व 2007 के चुनावों में कांग्रेस प्रत्याशियों के विरुद्ध खुलकर प्रचार किया, चुन-चुनकर उन्हें ही पदाधिकारी बनाया गया है. जोत सिंह बिष्ट के मुताबिक इस बार पीसीसी की सूची में 8 लोग ऐसे हैं जिन्होंने 2007 में कांग्रेस के अधिकृत उम्मीदवारों के खिलाफ विधानसभा चुनाव लड़ा था. जबकि कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े 7 लोगों के नाम इसमें हैं ही नहीं. इनमें 25 साल से एआईसीसी के सदस्य रहे दिग्गज कांग्रेसी शूरवीर सिंह सजवाण भी हैं. उनका आरोप है कि इस सूची में ब्लॉक इकाइयों द्वारा सर्वसम्मति से भेजे गए 9 राज्य आंदोलनकारियों के भी नाम काट दिए गए हैं और 11 कांग्रेसियों को दूसरे जिलों से पीसीसी में भेजा गया है.

इन असंतुष्टों ने उत्तरकाशी, नैनीताल व उधमसिंह नगर जिलों में हुई अनेक अनियतिताओं को रिपोर्ट के जरिए हाईकमान को पेश किया है. इस रपट में पौड़ी जिले की भी कुछ मामूली शिकायतें हैं परंतु चमोली, अल्मोड़ा, हरिद्वार व बागेश्वर जिलों की अनियमितताओं का कोई जिक्र नहीं है. लेकिन हरिद्वार में एकतरफा जिलाध्यक्ष घोषित करने व चुनावों में हुई धांधलियों के आरोपों को लेकर पिछले एक महीने से कांग्रेसियों का पुतला फूको कार्यक्रम चल रहा है. यहां के कांग्रेसी नेता राजेंद्र कुमार चौधरी ‘जाट’ बताते हैं कि उनके अलावा मैदान में रहे दो अन्य प्रत्याशियों में से एक ने उनके समर्थन में नामांकन वापस ले लिया था. चुनाव की घोषित तिथि 15 जुलाई को जब पांच बजे तक चुनाव अधिकारी हरिद्वार नहीं आए तो उन्होंने उसी दिन दिल्ली जाकर मुकुट मिथी और आस्कर फर्नाडीज के पास शिकायत दर्ज करा दी. राजेंद्र जाट का दावा है कि हरिद्वार में डीसीसी के 72 में से 41 डेलीगेटों का लिखित समर्थन उनके साथ है फिर भी राजेन्द्र चौधरी को फिर से जिलाध्यक्ष बना दिया गया. हरिद्वार के कांग्रेसी बताते हैं कि ब्रह्मचारी जैसे वरिष्ठ नेता को 100 रुपए की सदस्यता वाली पर्ची कटाने के लिए अपनी एड़ियां घिसनी पड़ गई थीं.

इसी तरह अल्मोड़ा जिले के वरिष्ठ कांग्रेसी व प्रदेश कांग्रेस कमिटी के सचिव केवल सती कहते हैं, ‘अल्मोड़ा में चुनाव अधिकारियों ने कार्यकर्ताओं की बैठकें तक नहीं की, बस 100 रूपए और 2 फोटो ले लिए.’ अल्मोड़ा की 13 ब्लॉक व नगर इकाइयों में से आधे में तो कुल पोलिंग बूथों के 50 फीसदी सदस्य न होने के बावजूद चुनाव हो गए. पार्टी  संविधान के अनुसार यह गलत है. अल्मोड़ा के असंतुष्ट कांग्रेसी भी दिल्ली जाकर आस्कर फर्नाडीज व आरके धवन को अपना दुखड़ा सुना चुके हैं. असंतुष्ट कांग्रेसियों की जिलेवार वैठकें कर रहे इस गुट के चार कांग्रेसियों(नेगी, बिष्ट, शाह व राणा) को कांग्रेस की राज्य अनुशासन समिति ने कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया है. समिति के अध्यक्ष व पूर्व मंत्री नरेंद्र सिंह भंडारी के अनुसार ‘इन कांग्रेसियों के अपनी शिकायतें उचित फोरम मंे न उठाने की वजह से पार्टी की बदनामी हुई है.’ असंतुष्ट खेमे का मानना है कि ‘गुपचुप व फर्जी चुनाव कराने के लिए दोषी चुनाव अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई होनी चाहिए क्योंकि ये कृत्य भी अनुशासनहीनता के दायरे में आते है’.

कांग्रेस कार्यकर्ता व टिहरी के एडवोकेट ज्योति भट्ट दावा करते हैं कि उन्होंने चुनावों में हुई धांधलियों की याचिका जून में राज्य चुनाव प्राधिकरण के अध्यक्ष मुकुट मिथी के सामने दायर की थी. कुछ न होने पर उन्होंने कांग्रेस के राष्ट्रीय चुनाव प्राधिकरण के अध्यक्ष आस्कर फर्नाडीज से शिकायत की. भट्ट धमकी देते हैं कि अगर कार्रवाई न हुई तो वे न्यायालय की शरण लेंगे क्योंकि मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को संगठन के चुनाव निष्पक्ष कराना आवश्यक हैं.

‘हर लोकसभा चुनाव क्षेत्र में पदाधिकारी बनने वाले अधिकांश कांग्रेसी वर्तमान सांसद के गुट के हैं.’ वरिष्ठ पत्रकार हरीश जोशी बताते हैं कि जिस गुट की जहां चली उसने दूसरे का समूल नाश कर दिया. संगठन चुनावों से खिन्न एक कांग्रेसी कार्यकर्ता कहते हैं, ‘कार्यकर्ताओं को सम्मान देना तो महज एक नारा है. असल में जमीनी कार्यकर्ताओं की किसी को परवाह ही नहीं है.’