कुछ और नहीं तो वंदे मातरम्

जहां तक वंदे मातरम् में देश को माता मानकर उसकी पूजा करने का सवाल है तो उसपर थोड़ा ठहरकर विचार करने की जरूरत है. हिंदी में वंदना का मतलब केवल पूजा करना ही नहीं है बल्कि स्तुति या यशोगान करना भी है 

कुछ मुद्दे सामयिक होते हैं और कुछ सनातन. वंदे मातरम् से जुड़े विवाद दूसरी श्रेणी में आते हैं. पिछले करीब सौ साल से राष्ट्रीय गीत से जुड़े कमोबेश एक जैसे विवाद ठंडे पड़कर फिर गर्म होने को उठते रहे हैं.

ताज विवाद करीब एक महीने पहले तब उठा जब जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने अपने 30वें आम अधिवेशन में (जिसमें केंद्रीय गृहमंत्री सहित देश के तमाम बड़े राजनेताओं ने शिरकत की थी) वंदे मातरम् गाने के खिलाफ जारी दारुलउलूम देवबंद के फतवे के समर्थन में प्रस्ताव पारित किया. 2006 में राष्ट्रीय गीत की रचना के 125 साल पूरे होने पर केंद्र सरकार के एक नियत समय पर वंदे मातरम् गाने के निर्देश पर भी इस और उस ओर के संगठनों द्वारा तरह-तरह के एतराज जताए गए थे. इससे पहले 1998 में उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार के शिक्षा मंत्री को तो इसपर उठे विवाद के चलते अपने मंत्री पद से ही हाथ धोना पड़ा था. आजादी से पहले जिन्ना और मुस्लिम लीग के दूसरे नेताओं और सावरकर जैसे कट्टरपंथी हिंदू नेताओं ने वंदे मातरम् सनातन मुद्दा बन सके, इस दिशा में उल्लेखनीय प्रयास किए.

वंदे मातरम् गाने को लेकर दो वजहों से मुस्लिम समुदाय के तमाम लोगों को एतराज रहा है – पहली, इसके कुछ हिस्सों में हमारे देश को माता मानकर उसकी तुलना दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती जैसे हिंदू धर्म के प्रतीकों से की गई है और दूसरी यह कि इस्लाम एक ही ईश्वर की सत्ता में विश्वास करता है और अल्लाह को छोड़कर किसी और की पूजा-उपासना की उसमें इजाजत ही नहीं है, फिर चाहे वह स्वयं पैगंबर या अपनी माता ही क्यों न हों.

1937 में पहले तो कांग्रेस की कार्य समिति ने वंदे मातरम् के विवादित हिस्सों को हटाने का प्रस्ताव पारित कर शुरू के केवल दो अंतरों को राष्ट्रीय गान का दर्जा दिया और फिर बाद में 1939 में इसे गाने की अनिवार्यता को खत्म करने वाला स्वयं गांधी जी का तैयार किया प्रस्ताव पारित कर इससे जुड़े हर झगड़े की गुंजाइश खत्म कर दी. देश आजाद होने पर संविधान सभा ने भी इसी राह पर थोड़ा और आगे बढ़ते हुए वंदे मातरम् के शुरुआती दो अंतरों को ही राष्ट्रीय गान का नहीं बल्कि राष्ट्रीय गीत का दर्जा दिया.

जहां तक वंदे मातरम् में देश को माता मानकर उसकी पूजा करने का सवाल है तो उसपर थोड़ा ठहरकर विचार करने की जरूरत है. हिंदी में वंदना का मतलब केवल पूजा करना ही नहीं है बल्कि स्तुति या यशोगान करना भी है. मेरे पास कई पत्र ऐसे आते हैं (कुछ मैंने भेजे भी हैं) जिनकी शुरूआत ‘सादर वंदे’ से होती है. स्पष्ट है कि वंदे का यहां पर इस्तेमाल अभिवादन के संदर्भ में है न कि पूजा-उपासना के. यानी कि ऐतिहासिक तथ्यों और वंदे शब्द के तमाम अर्थों और उपयोगों की रोशनी में देखा जाए तो बिना ज्यादा विचारे कहा जा सकता है कि किसी भी समुदाय या व्यक्ति को वंदे मातरम् गाने के लिए बाध्य करने और उसकी देशभक्ति को इसके गायन से जोड़ने का किसी भी व्यक्ति या समुदाय को जरा भी अधिकार नहीं. साथ ही वंदे मातरम् के राष्ट्रीय गीत वाले स्वरूप में ऐसा कुछ भी नहीं जो मुस्लिम या किसी अन्य समुदाय की भावनाओं के जरा भी विपरीत जाता हो.

संजय दुबे