अनूठे तराने, अलबेला संगीतकार

मध्यरात्रि का वक्त था जब निर्देशक अनुराग कश्यप अपने निर्माता विकास बहल के साथ एक शर्मीले स्वभाव वाले युवक से मिलने जुहू स्थित उसके अस्थायी गैराजनुमा स्टूडियो पहुंचे थे. एक साझा मित्र और पार्श्व गायिका शिल्पा रॉव ने उनकी मुलाकात संगीत की इस विलक्षण प्रतिभा से करवाई थी. यहां उन्हें ग्रंज रॉक, लोकगीत, जैज संगीत और उस पर देसी ढोल की थाप से मिलकर बना ऐसा अद्भुत् संगीत सुनने को मिला जिससे वो और मुंबइया फिल्मनगरी तब तक बिल्कुल ही अनजान थे. अगले ही पल एड जिंगल्स और थियेटर के लिए संगीत तैयार करने वाले 29 वर्षीय अमित त्रिवेदी देव-डी को संगीतमय बनाने के पीछे की प्रेरणा बन चुके थे. उसी रात हमें इस बात का अहसास हुआ कि हम वास्तव में क्या बनाने जा रहे हैं और पूरी फिल्म जैसे हमारे सामने जीवंत हो उठीबहल कहते हैं.

त्रिवेदी की अजीबोगरीब और मजेदार धुनें अक्सर उल्टे-सीधे वक्त में जन्म लेती हैं मसलन कभी सब-वे में दोस्तों का इंतजार करते वक्त तो कभी सो कर उठते ही और वो तुरंत इन्हें अपने मोबाइल में सेव कर लेते हैंएक फोटो कंपनी में प्रबंधक के पुत्र त्रिवेदी की जिंदगी एक दोपहर बांद्रा में चहलकदमी के दौरान बदल गई. एक ओपेन एयर संगीत समारोह में चल रहे मशहूर पश्चिमी गीतों ने त्रिवेदी को अंदर जाने पर मजबूर कर दिया. जिन गानों को वे सीडी पर चलता समझ रहे थे वे दरअसल वहां मौजूद स्थानीय बैंड बजा रहे थे. ये देखकर मैं पागल सा हो गया कि ये बैंड मूल गानों को हूबहू बजाए जा रहे थेत्रिवेदी कहते हैं. उसी दिन से त्रिवेदी ने 16 साल की उम्र के लड़कों वालीं तमाम स्वाभाविक गतिविधियां, मसलन क्लास बंक करना, होटलबाजी और लड़कियों के चक्कर काटना, छोड़ दीं. उस वक्त तक वो शर्मीले स्वभाव के हुआ करते थे जिनकी तरफ लड़कियां खासा ध्यान देती थीं. उनकी पहली गर्लफ्रेंड का स्थान उनके पहले निवेश ने ले लिया और ये था 1,800 रुपए में खरीदा गया उनका पहला कैसियो कीबोर्ड. महीनों की बचत से खरीदा गया ये कीबोर्ड जल्द ही उनके जीवन का आधार बन गया. इसके बाद उनका संगीत-प्रेम बप्पी लाहिड़ी और मडोना को पार करता हुआ जाज, रॉक और भारतीय शास्त्रीय संगीत में संभावनाएं तलाशने लगा.

देव-डी और आमिर के संगीत में इतना जादुई आकर्षण और विविधता है कि इसे सुनकर किसी को भी ये लग सकता है कि इस संगीत का रचयिता स्वयं कोई रॉकस्टार सरीखा इंसान होगा. पर उनमें ऐसी कोई झलक तक नजर नहीं आती. त्रिवेदी हमें अपने बीच के ही किसी जाने-पहचाने सादे से शख्स लगते हैं.

मुझे नहीं पता कि मुख्यधारा क्या चीज है और प्रयोगवादी संगीत क्या है. मैं सिर्फ अपने दिल की सुनता हूंवो कहते हैं. इमोशनल अत्याचार में त्रिवेदी ने पंजाबी ब्रास बैंड पार्टी के साथ भारी धातुओं के कटने की आवाज का फ्यूजन किया था. ओ परदेसी में उन्होंने परंपरागत सितार के साथ हिप-हॉप वोकल को अच्छे से गूंथकर पेश किया. लेकिन त्रिवेदी सस्ते चलताऊ फ्यूजन और पूरब-पश्चिम के मेल जैसे पुराने थकाऊ फार्मूले से बचते हैं. सूफी अलाप से लेकर जाज तक आप त्रिवेदी के संगीत को किसी दायरे में नहीं बांध सकते और इसीलिए वो खास हैं. हो सकता है त्रिवेदी बॉलीवुड संगीत को नई परिभाषा न दे पाएं लेकिन उन्होंने परिभाषा निर्धारित करने की प्रक्रिया को तो हंसी का पात्र बना ही दिया है. संगीत निर्देशक विशाल ददलानी कहते हैं, ‘उनके अंदर लोगों को चौंकाने की अनोखी क्षमता है. उनके लिए कोई निर्धारित मानक नहीं है. लोगों को यही नहीं पता कि उनसे क्या उम्मीद की जाए.

त्रिवेदी की अजीबोगरीब और मजेदार धुनें अक्सर उल्टे-सीधे वक्त में जन्म लेती हैं मसलन कभी सब-वे में दोस्तों का इंतजार करते वक्त तो कभी सो कर उठते ही और वो तुरंत इन्हें अपने मोबाइल में सेव कर लेते हैं. इसका जिक्र करते ही उनके चेहरे पर शर्मीली सी हंसी तैर जाती है. वो धीमे से कहते हैं, ‘आपको साफ चरित्र का होना चाहिए.’ ‘गानों से ईमानदारी झलकनी चाहिए. मैं पैसे या प्रसिद्धि के पीछे नहीं भाग रहा हूं.जिस तरह का काम वो कर रहे हैं उसमें ये दोनों चीजें हासिल करना कोई मुश्किल नहीं है. वो कहानी को समझकर ऐसा संगीत बनाते हैं कि वो कहानी की आत्मा बन जाता हैबहल कहते हैं. वो पुराने मानकों और फार्मूलों को तोड़ रहे हैं और ऐसी ध्वनियां रच रहे हैं जो अपने अंतरे-मुखड़े ढूंढ़ लेती हैं.’