14 अगस्त का पैगाम 15 अगस्त के नाम

वह यहां के हालात भलीभांति देख-समझ चुका था क्योंकि 14 अगस्त 15 अगस्त से पहले आता है. उसने जो देखा-सुना, महसूस किया, वह 15 अगस्त को बताना मुनासिब समझा, ताकि जब वह आए तो पूरी तैयारी से. सो उसने 15 अगस्त को एक मेल भेजा

यहां मैं देख रहा हूं कि सर्वोच्च पंचायत को सजाया-संवारा जा रहा है. सरकारी इमारतों का रंगरोगन किया जा रहा है. तुम आओ तो सही, नेताओं, उद्योगपतियों, दलालों, अफसरों, ठेकेदारों, बहुराष्ट्रीय कंपनियों की कतार तुम्हारे स्वागत के लिए तैयार है. तुम्हारी आवभगत में सबसे पहले और सबसे आगे तुम्हें वीआईपी खडे़ मिलेंगे, जो बड़ी से बड़ी विपदा सिरहाने खड़ी होने पर भी बैठे या लेटे मिलते हैं. तुम खुशी से फूले नहीं समाओगे जब ये तुम्हारा स्वागत बैठे-लेटे नहीं खडे़-खडे़ कर रहे होंगे.

अच्छा, आ कैसे रहे हो? रेलमार्ग से! तो मैं तुम्हें बताना चाहूंगा कि अभी ट्रेन पलटी है. वायुमार्ग से! तो मैं बता दूं कि मिग से मत आना. जल मार्ग से! बाढ़ का खतरा तैर रहा है. थल मार्ग से! तो बटुआ रख, खाली हाथ आना. हो सके तो आधी रात को आने से बचना. अगर तुम्हारे जेब में 20 रुपया भी है, तो तुम अपने को खतरे में जानो. यहां शहर में 20 रुपया कमाने वाला गरीब नहीं कहलाता. तुम आओ और सीधे लालकिले के प्राचीर पर विराजो.

यहां जब तरह-तरह के रंग-बिरंगे कार्यक्रम देखोगे, तो तुम्हारा मन पुलकित हो जाएगा. तुम्हारे आगमन पर प्यारे-प्यारे बच्चे देशभक्ति के गीत गाएंगे. यह सच है कि दुनिया में सबसे ज्यादा कुपोषित बच्चे यहां पाए जाते हंै, मगर तुम निश्चिंत रहो, ये तंदुरुस्त होंगे. आदिवासी नृत्य खास आकर्षक होगा तुम्हारे लिए. ये आदिवासी विस्थापित वाले नहीं हैं. वे तो दिल्ली से सूदूर हैं. हालांकि वे भी अपने वाजिब मुआवजे की तर्ज पर सरकारी महकमे की ताल पर नाच रहे हैं. मगर उसको नहीं दिखाया जाएगा क्योंकि नाच हो या नौटंकी जो राजधानी में हों वे ही अच्छे दिखते हैं.

एक जरूरी बात तो बताना ही भूल गया. यहां आते वक्त अगर पुलिस से रास्ते में भेंट हो जाए तो फौरन अपना रास्ता बदल लेना. खुदा न खास्ता अगर दूसरी राह पर भी भेंट हो जाए तो फौरन कुछ भेंट चढ़ा कर उनसे मुक्ति पा लेना. यह मैं अपने अनुभव से कह रहा हूं. तुम्हारे आने से पहले का एक पुलिसिया वाकया सुनाता हूं. एक दिन आधी रात को खुले मैदान में सोते हुए औरतों और बच्चों पर पुलिस ने जमकर लाठी भांजी. अगर तुम उस दिन आते तो आंखे मींच कर यही सोचते कि तुम्हारे स्वागत के लिए आजादी के पहले की घटना पर बने किसी नाटक की रिहर्सल हो रही है. चलो कोई नहीं.

यहां आने से पहले एक बात और बता दूं कि आजकल भ्रष्टाचार का मुद्दा खूब छाया है. मजे की बात यह भी है कि भ्रष्टाचार भी छाया हुआ है. और इससे भी ज्यादा मजे की बात यह है कि चहुं ओर भ्रष्टाचारी ही छाए हुए है. देखना, तुम्हारे आगमन पर किसी नयी योजना की घोषणा हो जाएगी. जिसे सुन पब्लिक खुश हो न हो, भ्रष्टाचारी अवश्य खुश होगा. आओगे तो तुम खुद ही देखोगे.
मेरे ख्याल से इतनी जानकारी काफी होगी तुम्हारे लिए. अब तुम सोचोगे कि आऊं या न आऊं. मन हो या न हो, तुम्हें तो आना ही पडे़गा, क्योंकि यह देश तो आजाद है.

-अनूप मणि त्रिपाठी