'हर विश्वास को तर्क, तथ्य और वैज्ञानिक अनुभवों की कसौटी पर कसें"

आप जादूगर थे. फिर तर्कवाद की तरफ कैसे मुड़ गए?

तीस साल से भी ज्यादा समय तक मैं जादूगर रहा. इस दौरान मैं ऐसे कई भोले लोगों से मिला जो मेरे करतब देखकर सवाल करते थे कि क्या मैं किसी पंथ या संप्रदाय का हिस्सा हूं. आजकल ऐसे कई गुरु हैं जो हाथ की सफाइयों को ईश्वर का चमत्कार बताते हैं. वे मुझे ऐसा ही कोई समझ लेते. मैं उन्हें बार-बार समझाता कि यह सब तो बस भ्रम है, आंखों का धोखा है. लेकिन उन्हें इस पर यकीन ही नहीं होता. इसलिए 60 साल की उम्र में रिटायर होने के बाद मैंने यह फैसला किया कि मैं अब बाकी का जीवन अपने पेशे से जुड़े झूठ को दूर करने में लगाऊंगा.

आप हर चीज को संशय के साथ देखने की बात करते हैं, लेकिन शंका की सीमा क्या हो? क्या हमें विज्ञान को भी उतने ही संशय के साथ नहीं देखना चाहिए?

बिल्कुल, अगर किसी भी तरह के विज्ञान का इस्तेमाल लोगों को बेवकूफ बनाने के लिए हो रहा हो तो आपको जरूर इस पर संशय होना चाहिए. लेकिन परिभाषा के हिसाब से विज्ञान उन सिद्धांतों के हिसाब से काम करता है जो अनुभवजन्य होते हैं. विज्ञान जब कोई बात कहता है तो उसके पीछे एक तर्क होता है जिसकी प्रायोगिक रूप से व्याख्या भी की जा सकती है. यह ज्ञान की एक ऐसी उन्नतिशील शाखा है जो कई सदियों में विकसित हुई है. उन्नतिशील से मेरा मतलब यह है कि विज्ञान को नए साक्ष्य मिलते हैं तो यह पुराने विचारों को छोड़कर नए विचारों को अपना लेता है. यह धार्मिक सिद्धांतों के उलट है जो बदलते नहीं. उल्टे इनमें और विचार जोड़े जाते रहते हैं ताकि आखिर में आपके पास एक जटिल कहानी हो. विज्ञान कई चीजों के बारे में बता सकता है और कई चीजों का भंडाफोड़ भी कर सकता है. इसलिए आप इसे अविश्वास की नजर से देखेंगे तो ऐसा आप अपने जोखिम पर ही करेंगे. जब तक आप अपने दावों के समर्थन में सबूत पेश कर सकें तब तक कोई समस्या नहीं है.

लेकिन कुछ सबूत ऐसे होते हैं जिनकी पुष्टि अनुभवजन्य तरीकों द्वारा नहीं की जा सकती. जैसे टू पाई आर फॉर्मूला किसी वृत्त की परिधि और त्रिज्या का संबंध बताता है. लेकिन प्रकृति में ऐसा कोई वृत्त नहीं पाया जाता जिस पर यह फॉर्मूला फिट होता हो. यह सिर्फ ज्यामिति या गणित की दुनिया में होता है.

ये दो बिल्कुल अलग मामले हैं. हो सकता है हमारे ब्रह्मांड में कोई आदर्श वृत्त न हो, लेकिन यह फॉर्मूला आपको दो चीजों के बीच एक निश्चित पारस्परिक संबंध तो बताता ही है. 

लेकिन न्याय, कला, प्रेम आदि जैसी कई दूसरी चीजें भी हैं जिनकी कोई वैज्ञानिक व्याख्या नहीं हो सकती?

ऐसा तभी हो सकता है जब आप ऐसा मान लें. एक जादूगर जो करतब दिखाता है उनके पीछे भी विज्ञान छिपा होता है. लेकिन आप यह भी मान सकते हैं कि मैं झूठ कह रहा हूं. दरअसल यकीन बड़ी ताकतवर चीज है. यह इसके बूते ही हो पाता है कि लोग ऐसी चीजों की भी कल्पना कर लेते हैं जिनका कोई अस्तित्व ही नहीं होता.

कुछ वैज्ञानिक इस बात पर अड़े हैं कि उनकी नई खोजों को अमेरिका की न्यायिक व्यवस्था में शामिल कर लिया जाना चाहिए. आप इस पर क्या कहेंगे?

कई लोगों को अपने मुंह मियां मिट्ठू बनने की आदत होती है. ये भी ऐसे ही हैं. अगर आप यह कह रहे हैं कि विज्ञान नैतिकता के लिए किसी तरह का आधार हो सकता है तो मैं इससे असहमत हूं.  हालांकि पूरी तरह से नहीं. कानून में नैतिक मूल्यों को फिट करना बहुत ही पेचीदा काम है. हमें एक-दूसरे के साथ कैसे रहना है, यह हमने लाखों साल तक चली एक प्रक्रिया के बाद सीखा है. इसके बाद हमने मूल्यों की एक व्यवस्था बनाई है  जिसके हिसाब से हम यह तय करते हैं कि किस परिस्थिति में कौन-सा आचरण सही होगा और कौन-सा गलत. क्रमिक विकास की लंबी प्रक्रिया के चलते यह सब शायद हमारे डीएनए में ही आ गया है. वे आचरण और कदम, जो हमारे लिए आत्मघाती थे, क्रमिक विकास की प्रक्रिया ने कुछ दूसरी बेहतर चीजों के लिए आखिरकार उन्हें छोड़ दिया. यही वजह है कि हमारे यहां लड़ाई को बुरा माना जाता है क्योंकि लड़ने की स्थिति में हम एक-दूसरे को मिटाने की तरफ बढ़ते हैं जो कि एक ही प्रजाति से होने के नाते हमारे हित में नहीं है.  लेकिन फिर एक दूसरी चीज भी है और वह है जीवन को बचाए रखना. सारे जीवित प्राणियों में उत्तरजीविता की यह प्रवृत्ति होती है. जब भी जीवन खतरे में होगा तो नैतिकता कभी-कभी किनारे रख दी जाएगी. तो अपने कानूनी ढांचे का इन सब बातों से तालमेल बिठाना एक फिसलन भरा रास्ता हो जाता है. ऐसे में हम बस इंतजार ही कर सकते हैं कि समाज और परिपक्व हो और तब इस पर कोई फैसला ले.

आपके हिसाब से वह कौन-सा विचार है जो दुनिया को बदल सकता है?

अभी भी दुनिया में बहुत-से लोग हैं जो किसी भी चीज पर सहज ही विश्वास कर लेते हैं. एक बड़ी आबादी को अभी यह समझाने की जरूरत है कि किसी भी चीज पर भरोसा करने से पहले खूब सावधानी बरतें. हर विश्वास को तर्क, तथ्य और वैज्ञानिक अनुभवों की कसौटी पर कसें. हर चीज पर सवाल उठाएं, शंका जताएं क्योंकि जीवन बस एक बार ही जिया जाता है और आपके पास बस यही मौका है.