शुरुआत से ही आम आदमी पार्टी का विचार मेरे दिल के बहुत करीब था. दिल्ली विधानसभा चुनावों में पार्टी की सफलता एक अहम मोड़ थी. तभी मैंने सोचा कि मुझे इस नई धारा समर्थन करना चाहिए. यह सिर्फ एक पार्टी नहीं थी. मेरा यकीन कीजिए, मैं किसी पारंपरिक पार्टी में जा ही नहीं सकता था.
मीडिया में कहा जा रहा है कि लोग जाति और दूसरे कई समीकरणों के आधार पर वोट करते हैं. मेरी पृष्ठभूमि मध्यवर्ग की है इसलिए यह मानना कि अलग-अलग वर्गों के लोग मुझे किसी अलग तरह से देखेंगे, गलत होगा. दिल्ली ने चीजें बदल दी हैं और आगे के लिए रास्ते खोले हैं. अब तक राजनीति पैसे, बाहुबल और जाति की ताकत के आधार पर चलती रही. हम उसे बदलने आए हैं.
एक तरफ दो नेता हैं जो खुद को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार की तरह पेश कर रहे हैं. यह अमेरिकी शैली है. लेकिन अमेरिका के उलट उनमें आपस में कोई बहस नहीं हो रही. बहस की छोड़िए. हमारे नेता तो एक खुले इंटरव्यू तक के लिए तैयार नहीं होते. कोई उनसे कैसे भी सवाल पूछेगा, इस विचार से ही वे असहज महसूस करते लगते हैं. सवाल उठता है कि ऐसे लोग अपने को नेता कैसे कहते हैं.
इस तरह से देखें तो अरविंद केजरीवाल ने लोगों को दिखाया है कि जवाबदेही क्या होती है. मीडिया में कहा जा रहा है कि हम आर्थिक विकास के खिलाफ हैं. जबकि देखा जाए तो हमारी वित्तीय नीति सबसे उदार है.जहां तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का सवाल है तो वह निश्चित तौर पर एक विवादास्पद मुद्दा है. यहां तक कि भाजपा भी इसका समर्थन नहीं कर रही जैसा हमने राजस्थान में देखा. हम हर उस व्यक्ति के साथ हैं जो ईमानदारी से कारोबार करना चाहता है. हम एक ऐसा माहौल बनाएंगे जहां हर आदमी ईमानदारी से कारोबार कर सके.
यह सिर्फ मुकेश अंबानी और रिलायंस की बात नहीं है. हमें क्रोनी कैपिटलिज्म (कॉरपोरेट और सरकार के गठजोड़) के खिलाफ खड़ा होना होगा. आप ही देखिए. हमसे से कौन जानता है कि राजनीतिक पार्टियों को फंड कहां से मिलता है. यही वह जगह है जहां हमें एक लकीर खींचनी है.
हम यह सुनिश्चित करेंगे कि लोग इज्जत से रह सकें. हम साफ फुटपाथ और बेहतर सड़कें देंगे. हम लोगों की उम्मीदें पूरी करेंगे और इसके लिए हम भाषा, जाति या इस तरह के किसी राजनीतिक पैंतरें का सहारा नहीं लेंगे.
(जी विष्णु से बातचीत पर आधारित)