हथियारों की मार

38 साल के एनाल शेख दंगों में अपना सब कुछ खो चुके थे. असम के बोडो क्षेत्रीय स्वायत्त जनपद (बीटीएडी) में जब बीती जुलाई में बोडो आदिवासियों और बाहर से वहां आकर बसे मुस्लिम समुदाय के बीच हिंसा शुरू हुई तो बाजूगांव के बाकी लोगों की तरह शेख भी अपने परिवार के साथ धुबड़ी जिले में स्थित एक राहत शिविर में आ गए. यहां वे तीन महीने रहे. इशके बाद उनके जैसे लाखों लोग धीरे-धीरे अपने गांवों या फिर उन गांवों के पास बनाए गए नए राहत शिविरों में लौट रहे थे ताकि वे तैयार हो चुकी धान की फसल काट सकें. बीती 10 नवंबर को एनाल और उनके एक मित्र शाहजहां तालुकदार बाजूगांव के पास अपने धान के खेतों में काम कर रहे थे कि कुछ लोगों ने उन्हें घेर लिया. शाहजहां तो भागकर बचने में सफल रहे लेकिन शेख की किस्मत इतनी अच्छी नहीं थी. शेख की गोली मारकर हत्या कर दी गई. 

असम के गोसाईंगांव सबडिविजन में स्थित बाजूगांव इस साल जुलाई-अगस्त में बोडो आदिवासियों और मुसलमानों के बीच हुई हिंसा से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए इलाकों में से एक है. इस हिंसा में 100 से भी ज्यादा लोग मारे गए थे और पांच लाख से भी ज्यादा लोगों को विस्थापित होना पड़ा था. धीरे-धीरे गरीब ग्रामीण जिंदगी की गाड़ी फिर से चलाने की कोशिश कर रहे थे. लेकिन नवंबर की शुरुआत में कोकराझार में हिंसा के दानव ने फिर मुंह खोल दिया. शेख की हत्या के बाद खून-खराबे का एक नया दौर शुरू हो गया. एक हफ्ते में ही कोकराझार जिले में 10 लोगों की हत्या हो गई. नुकसान दोनों समुदायों का हुआ. अनिश्चितकालीन कर्फ्यू, सेना के फ्लैग मार्च और पुलिस की धरपकड़ से ऐसा लगने लगा जैसे खूनखराबा कभी खत्म ही नहीं हुआ था. समय रहते हिंसा की यह आग काबू में तो आ गई, लेकिन इसने दो समुदायों के बीच अविश्वास की खाई और गहरी कर दी है.

नतीजा यह है कि दोनों समुदाय खुद को चार महीने पहले वाली स्थिति में पा रहे हैं. इलाके में हर तरफ फिर से डर का माहौल बन गया है. इस बीच बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) के शीर्ष नेता मोनो कुमार ब्रह्मा की सनसनीखेज गिरफ्तारी से तनाव और भी बढ़ा है. पुलिस ने ब्रह्मा के घर पर छापा मारा था जिसमें उसे दो अवैध एके राइफलें और 60 मैगजीनें मिली थीं. उग्रवादी संगठन बोडो लिबरेशन टाइगर्स (बीएलटी) से जुड़े रहे ब्रह्मा बोडोलैंड स्वायत्त परिषद के एक्जीक्यूटिव मेंबर हैं. यह पद कैबिनेट रैंक के बराबर होता है. वे बीपीएफ सुप्रीमो हग्रामा महिलारी के खास हैं जो बोडोलैंड स्वायत्त परिषद के मुखिया भी हैं. बीपीएफ पिछले एक दशक से भी ज्यादा समय से असम में कांग्रेस सरकार का सहयोगी रहा है.

ब्रह्मा की गिरफ्तारी से बीटीएडी में अवैध हथियारों की आसान उपलब्धता का मुद्दा फिर से गरमा गया है. 2003 में बोडोलैंड संधि के बाद बीएलटी से जुड़े 2,600 बागियों ने आत्मसमर्पण कर दिया था. सूत्र बताते हैं कि इस दौरान 1,000 से भी कम हथियार सौंपे गए थे. इनमें से भी ज्यादातर देसी हथियार थे. तब तरुण गोगोई सरकार ने आत्मसमर्पण करने वालों से यह नहीं पूछा था कि उनके स्वचालित हथियार कहां हैं. इसे सरकार की राजनीतिक मजबूरी के तौर पर देखा गया था. दरअसल बीटीएडी इलाकों में कांग्रेस को बोडो समुदाय के राजनीतिक समर्थन की जरूरत थी.

लेकिन आज कांग्रेस की ऐसी कोई मजबूरी नहीं है. मुख्यमंत्री गोगोई को अब हग्रामा के समर्थन की जरूरत नहीं और वैसे भी लगातार दो दंगों के बाद वे कुछ नहीं करते दिखने का जोखिम मोल लेने की स्थिति में नहीं हैं. सूत्रों के मुताबिक मुख्यमंत्री ने हग्रामा से कहा है कि जुलाई के दंगों के बाद बीपीएफ को खुद पर लगाम लगाने की जरूरत है.

ब्रह्मा की गिरफ्तारी को सरकार की गंभीरता के संकेत की तरह देखा जा रहा है. इससे पहले बीपीएफ के विधायक प्रदीप ब्रह्मा को भी दंगों में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. गोगोई मानते हैं कि हालिया हिंसा के पीछे बोडो बागियों का हाथ है. असम के डीजीपी जयंत नारायण चौधरी कहते हैं, ‘बीटीएडी में अवैध हथियारों की भरमार है. ये हथियार दिमापुर, बिहार और प. बंगाल से आते हैं. कम से कम 100 स्वचालित हथियार और इससे भी ज्यादा देसी हथियार इस्तेमाल हो रहे हैं.’

हथियारों का सहारा सिर्फ बोडो नहीं ले रहे. पुलिस के मुताबिक इलाके में बसे मुस्लिम समुदाय के लोग भी खुद को हथियारों से लैस कर रहे हैं. 15 नवंबर, 2012 को गोसाईंगंज सबडिविजन के तिलिपाड़ा में निरिशन बासुमतारी नाम के एक बोडो दुकानदार की गोली मारकर हत्या कर दी गई. पुलिस का कहना है कि इस घटना में कुछ मुस्लिम युवक शामिल थे. वैसे भी हथियारों को लेकर कोकराझार का नाम अतीत में भी चर्चा में रहा है. इस इलाके से होकर हथियारों की तस्करी होती रही है. सेना की खुफिया इकाई के सूत्र भी बताते हैं कि छोटे संगठनों के अलावा माआवोदी भी हथियारों की तस्करी के लिए इस इलाके का इस्तेमाल करते रहे हैं.

आज फिर से कोकराझार में हालत यह है कि एक भी भड़काऊ भाषण या निशाना बनाकर की गई हत्या दंगे के एक और भीषण दौर को जन्म दे सकती है. बोडो नेता ब्रह्मा की गिरफ्तारी को कांग्रेस की राजनीतिक साजिश बता रहे हैं. लेकिन इसके बावजूद उन्होंने कांग्रेस के साथ अपना नाता नहीं तोड़ा है. हत्याओं, अवैध हथियारों और राजनीतिक शतरंज के इस खेल में कोई पिस रहा है तो बस
आम आदमी.