स्वामी विवेकानंद ने इंदिरा गांधी के साथ शादी से इनकार किया

vivekanadगांव में एकमात्र जनार्दन माटसाब थे जो बेनागा बीबीसी हिंदी के समाचार रेडियो पर सुना करते थे. खबर सुनने के बाद गांव-भर में घूमकर बताने की उनके अंदर बेचैनी भी रहती थी. सामनेवाले को खबर बताते हुए उनके चेहरे पर गर्व का ऐसा भाव होता मानों युद्ध जीतकर आए हों. एक तरह से वो गांव के लोगों के लिए ऐसी खिड़की थे जिससे लोग बाहरी दुनिया में झांका करते थे. गांव में उन्हें जानकार का दर्जा हासिल था इसीलिए लोगों ने अपने बच्चों को उनसे ट्यूशन पढ़वाना शुरू कर दिया था.

एक दिन बातों ही बातों में उन्होंने बच्चों को भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बारे में बताना शुरू किया. इंदिरा की जीवनी की शुरुआत उन्होंने उनकी शादी की कहानी से की. कथा कुछ यूं है- ‘नेहरूजी इंदिरा की शादी के लिए बहुत परेशान थे. इस बात की जानकारी उन्होंने गांधीजी को दी. गांधीजी ने कहा इसमें क्या दिक्कत है. उनकी नजर में एक बहुत विद्वान और योग्य लड़का है. नेहरूजी ने पूछा कौन? तो गांधीजी ने कहा- स्वामी विवेकानंद. नेहरू तैयार हो गए. घर पहुंचकर उन्होंने इंदिरा से कहा कि बाबू तुम्हारी शादी विवेकानंद से कराने को कह रहे हैं. उन्होंने विवेकानंद से बात भी कर ली है. अभी विवेकानंद शिकागो में हैं. तुम जाकर कुछ दिन शिकागों में उनके साथ रहो. अगर तुम्हारी सहमति होती है तो हम उनसे शादी की बात आगे बढ़ाएंगे. पिता की आज्ञा पर इंदिरा शिकागो पहुंच गईं. अगले दिन स्वामीजी सुबह चार बजे उठकर अपने कामकाज में लग गए जबकि इंदिरा दोपहर में ग्यारह बजे सोकर उठीं. उठने के बाद बिना नहाए-धोए इंदिरा पाउडर-क्रीम लगाकर तैयार हो गईं. उस दिन तो स्वामीजी कुछ नहीं बोले. संत आदमी थे. लेकिन अगले दिन फिर वही गत. बिना नहाए-धोए इंदिरा तैयार हो गईं.

इंदिरा गांदी के इस गंदे स्वभाव को देखकर स्वामीजी बोले, ‘देखिए हमारे और आपके व्यवहार में बहुत अंतर है. हम आपसे शादी नहीं कर सकते.’ स्वामीजी की इस बात पर इंदिरा तुरंत ही रोते-बिलखते हुए भारत वापसी की तैयारी करने लगीं. वापस आकर उन्होंने नेहरू को बताया कि स्वामीजी ने उनके साथ शादी से इनकार कर दिया है. तब जाकर उनकी शादी फिरोज गांधी से हुई.

मास्टरजी ने यह कहानी गांव के लगभग हर रहवासी को सुनाई थी. इतना ही नहीं बलिया और आस-पास के उस दयार में जाने किस स्रोत से यह कहानी थोड़े फेरबदल के साथ चौतरफा फैली हुई है. पूरी तरह से अफवाह और झूठ पर आधारित यह कहानी उस इलाके में ऐतिहासिक तथ्य बन चुकी थी. अधिकांश लोगों को इस कहानी की सत्यता पर कोई संदेह नहीं था. बाद के समय में जब कुछ पढ़-लिख गए लड़कों ने मास्टरजी की इस कहानी पर सवाल उठाया तो गांव के बड़े-बुजुर्ग और खुद मास्टरसाब कहने लगे, ‘बड़े होकर सारा संस्कार भूल गए हो तुम लोग इस तरह बड़े-बुजुर्गों की बात काटकर उनका अपमान कर रहे हो.’


गौर फरमाएं

स्वामी विवेकानंद और इंदिरा की शादी की कहानी कितनी फर्जी है इसका प्रमाण यही एकमात्र तथ्य है कि स्वामी विवेकानंद की मृत्यु 4 जुलाई 1902 को हुई जबकी इंदिरा गांधी का जन्म 19 नवंबर 1917 को हुआ. यानी स्वामी विवेकानंद की मृत्यु के 15 साल बाद इंदिरा गांधी ने इस दुनिया में कदम रखा था.