विश्व स्तनपान सप्ताह पर विशेष

बच्चों के जीवन से खिलवाड़ न करें माताएँ

कहा जाता है कि अपना बच्चा सबको प्यारा होता है; लेकिन आजकल की माताएँ अपने ही बच्चों के जीवन से लगातार खिलवाड़ कर रही हैं। दरअसल आजकल की माताएँ अपने नवजात बच्चों को स्तनपान न कराकर डिब्बे वाला दूध पिलाकर पालना चाहती हैं, जिसके चलते वो न सिर्फ अपने आप को, बल्कि बच्चों को भी जाने-अनजाने दर्ज़नों बीमारियों का शिकार बना रही हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने महिलाओं को इसी सोच को बदलने के लिए स्तनपान कराने पर काफ़ी ज़ोर दिया है। स्तनपान को बढ़ाने के लिए 01 अगस्त से 07 अगस्त तक विश्व स्तनपान सप्ताह मनाया जाता है। हर साल अगस्त के इस पहले सप्ताह में दुनिया भर की माताओं को उनके शिशुओं के स्वास्थ्य के प्रति जागरूक किया जाता है, ताकि माँ और बच्चा दोनों ही सेहतमंद रह सकें।

विश्व स्तनपान सप्ताह यानी वल्र्ड ब्रेस्टफीडिंग वीक (डब्ल्यूबीडब्ल्यू) की शुरुआत सन् 1992 में हुई थी, जबकि स्तनपान को बढ़ावा देने पर विचार सन् 1990 में किया गया था। यह वो दौर था, जब दुनिया की माताओं में अपनी सेहत को लेकर बच्चे कम पैदा करने या किसी किसी में बच्चे पैदा न करने और स्तनों को सुडौल रखने के लिए बच्चों को स्तनपान कराने से बचने की मानसिकता पनप रही थी। विश्व स्तनपान सप्ताह मनाने के पीछे मकसद था कि महिलाओं में अपने और बच्चों के स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता फैले और वो अपने बच्चों को स्तनपान कराने से कतराएँ नहीं। इस सप्ताह में स्वास्थ्य, स्तनपान विकल्पों के विपणन के अंतरराष्ट्रीय कोड, सामुदायिक समर्थन, पारिस्थितिकी, अर्थव्यवस्था, विज्ञान, शिक्षा और मानवाधिकार सहित अलग-अलग साल में अलग-अलग सालाना थीमें शामिल की गयीं। विश्व स्तनपान सप्ताह 2022 की थीम थी- ‘स्तनपान शिक्षा और सहायता के लिए कदम बढ़ाएँ।’ जबकि इस बार यानी डब्ल्यूबीडब्ल्यू की 2023 की थीम है- ‘स्तनपान को सक्षम बनाना- कामकाजी माता-पिता के लिए एक बदलाव लाना’ सन् 1991 से डब्ल्यूएबीए, डब्ल्यूएचओ और यूएनआईसीईएफ द्वारा विश्व स्तनपान सप्ताह आयोजित किया जाता है।

अ$फसोस की बात है कि इतनी कोशिशों के बावजूद भी माताओं में अपने बच्चों को स्तनपान कराने में अरुचि बढ़ी है। यूनिसेफ की पिछले साल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया के कुल शिशुओं में से करीब 60 प्रतिशत शिशुओं को उनकी माताएँ छ: महीने तक जरूरी स्तनपान नहीं कराती हैं। एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक, कुछ माताएँ तो अपने शिशु को पहला स्तनपान तक नहीं कराना चाहतीं। 80 प्रतिशत माताएँ अपने बच्चों को चार से पाँच महीने की अंदर ही ऊपरी दूध, भोजन और दूसरे आहार पर निर्भर बनाने का प्रयास करती हैं। स्तनपान कराने वाली 40 फ़ीसदी माताओं में से 35 फ़ीसदी एक-दो महीने में ही बच्चों के स्तनपान की आदत छुड़ाने की कोशिश करती हैं, जिसके लिए वो उन्हें ऊपरी दूध पिलाने का प्रयास करती हैं। खाने और दूसरे आहार पर निर्भर बना देती हैं। जब बच्चे और बड़े होते हैं, तब उन्हें चाइनीज चीज़ें खिलाने की आदत डाल देती हैं, जो बहुत घातक होती हैं।

यह रिपोर्ट बताती है कि स्तनपान न कराने वाली माताओं में सबसे ज़्यादा संख्या अमीर एवं मिडिल क्लास महिलाओं की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि गरीब माताएँ अपने बच्चों के स्तनपान कराने में आगे हैं। स्तनपान न कराने के रिपोर्ट में कई चौंकाने वाली सोचें बतायी गयी हैं। इनमें पहली सोच है, महिलाओं की यह सोच कि स्तनपान कराने से उनके स्तन ढीले हो जाएँगे। दूसरी सोच है, उनकी सेहत $खराब होगी। तीसरी सोच है, वो चेहरे से जल्द उम्रदराज़ दिखने लगेंगी और चेहरे पर जल्द झाइयाँ उभर आएँगी। चौथी सोच है, उनका शरीर सुडौल नहीं रहेगा। हालाँकि यह सभी धारणाएँ $गलत हैं। स्तनपान न कराने से इसके उलट असर होता है। जहाँ तक सेहत से जुड़ा सवाल है, तो इसके लिए उन्हें पौष्टिक खाने और व्यायाम करने की ज़रूरत होती है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और दूसरे स्वास्थ्य संगठनों का मानना है कि स्तनपान बाल अधिकारों में से एक है और हरेक नवजात बच्चे को अच्छे पोषण के लिए स्तनपान का पहला अधिकार है। यह सही भी है और इसके लिए स्तनपान को $कानून के दायरे में अगर लाया जाए, तो सम्भव है कि महिलाएँ अपने शिशुओं को स्तनपान कराने के लिए बाधित हों। लेकिन इससे •यादा ज़रूरी है कि महिलाओं में स्तनपान के लिए जागरूकता फैलायी जाए, जिससे वो स्तनपान कराने के उन $फायदों को समझ सकें, जो उनके और उनके बच्चों को स्तनपान कराने से होते हैं।

संयुक्त राष्ट्र ने साल 2016 में दुनिया भर से आँकड़े इकट्ठे किये, जिनमें देखा गया कि दुनिया में 410 लाख बच्चे मोटापे से ग्रस्त हैं। पाँच वर्ष से कम उम्र के 1.55 करोड़ बच्चे उम्र के हिसाब से कम विकसित हुए हैं। करीब इतने ही बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। आज दुनिया के 40 फ़ीसदी से ज्यादा छोटे बच्चे कई छोटी-बड़ी बीमारियों की चपेट में हैं। इन सबकी वजह बच्चों को माताओं द्वारा स्तनपान नहीं कराया जाना है। जबकि स्तनपान जन्म के तुरन्त बाद से ही बच्चे को कराना एक माँ का दायित्व होता है। यह बच्चों और माताओं दोनों के लिए सेहतमंद रहता है और भावनात्मक रूप से भी फायदेमंद होता है। स्तनपान को बढ़ावा देने के लिए आज दुनिया में कई केंद्र खुल चुके हैं। इनमें से एक मलेशिया के पिनांग में वल्र्ड एलायंस फॉर ब्रेस्टफीडिंग एक्शन सेंटर है, जिसके संस्थापक अनवर फजल और चेयरपर्सन फेलिसिटी सैवेज हैं।

सिविल अस्पताल के जच्चा-बच्चा वार्ड की नर्स नूतन कहती हैं कि जन्म से लेकर छ: महीने तक माँ का स्तनपान करने वाला बच्चा सेहतमंद रहता है और उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। स्तनपान कराना बच्चे के साथ-साथ माँ के लिए भी बहुत फायदेमंद है। इससे माताओं में ब्रेस्ट कैंसर के चांस कम हो जाते हैं। उनके स्तनों में दर्द नहीं होता है और दूध सूखने से गाँठें नहीं पड़ती हैं। इसी तरह बच्चों में भी क्रोनिक बीमारियों का रिस्क कम रहता है। बच्चों के फेफड़े और दिल कमज़ोर नहीं होते और उनकी पाचन शक्ति भी अच्छी होती है।

जनरल फिजिशियन डॉक्टर मनीष कहते हैं कि बच्चों को उनकी माताओं द्वारा स्तनपान न कराकर डिब्बे वाला दूध पिलाने की वजह से ज्यादातर बच्चों में कम उम्र में ही कई बीमारियाँ लग रही हैं। स्तनपान न कराने और बिना डॉक्टर की सलाह के बच्चों को डिब्बाबंद दूध पिलाने वाली माताओं के सप्लीमेंट वाले दूध के बारे में भी जानकारी नहीं होती कि उसकी क्वालिटी क्या है और वह उनके बच्चों की सेहत के लिए कितना फायदेमंद है या नुकसानदायक है? उन्हें इस बारे में डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।

बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर धवल कहते हैं कि माँ के दूध में कई पोषक तत्त्वों के अलावा कई एंटीबॉडीज तत्त्व भी होते हैं, जिनकी मदद से बच्चों का शरीर बाहरी बैक्टीरिया और बीमारियों से लड़ पाता है। जिन बच्चों को उनकी माताएँ छ: महीने या उससे ज्यादा समय तक स्तनपान कराती हैं, वे बच्चों उन बच्चों की अपेक्षा ज्यादा स्वस्थ रहते हैं। वहीं जिन्हें छ: महीने से कम या बिलकुल भी स्तनपान नहीं कराया जाता, उन बच्चों का दिमा$ग भी कमज़ोर हो सकता है। ऐसे बच्चों को टाइप-1 और टाइप-2 डायबिटीज, ल्यूकेमिया, हॉडकिन्स डिजीज, लिम्फोमा, मोटापा, कमज़ोरी, चिड़चिड़ापन, हाई कोलेस्ट्रॉल लेवल्स और अस्थमा का रिस्क अधिक होता है।