‘वजन बढ़ने का क, ख, ग, समझेंगे तो बात बनेगी’

मोटापे को लेकर डॉक्टर से प्रायः दो तरह के सवाल पूछे जाते हैं. पहला सवाल- क्या मैं मोटा हूं? डॉक्टर एक स्वयंसिद्घ बात को कैसे कहे? भैया, मोटापा जानने का सबसे सटीक तरीका है कि अपने सारे कपड़े उतारकर आदमकद शीशे के सामने खड़े हो जाएं. अब यदि आप एक ही जगह कदमताल करें तो बदन पर यत्र-तत्र चर्बी की लहरों का उठना गिरना ही आपके प्रश्न का उत्तर दे देगा. दूसरा प्रश्न भी बड़ा आम है कि डॉक्टर साब, मेरा वजन कितना होना चाहिये? यूं डॉक्टर के कमरे में लटके चार्टों-टेबलों में, विशेष कद के लिए ‘आदर्श वजन’ दर्ज हुआ रहता है लेकिन आदर्श वजन का मामला भी इतना सरल नहीं है. साधारण सी बात है कि स्वयं को तब मोटा मान लें जब आपसे अपना ही वजन उठाते न बने, जब इंडियन टॉयलेट में बैठने में नानी मरने लगे.

कैलोरी जलकर शरीर को ऊर्जा देती है. जरूरत से ज्यादा कैलोरी को शरीर चर्बी के रूप में जमाकर मोटापा बढ़ाता है

एक और प्रश्न इस प्रश्न से जुड़ा है. आप डॉक्टर से पूछेंगे ही कि वजन कम कैसे करें? प्रायः डॉक्टर का उत्तर बेहद जटिल, अति संक्षिप्त तथा कठिन वैज्ञानिक शब्दावली में पगा होता है. वह उड़ता-उड़ता सा कह देता है कि शक्कर, आलू, चावल कम करिए, घी-तेल मत खाइए, या इसी तरह की कोई कुहासे में डूबी धुंधलके भरी सलाह. कितना कम? इन चीजों की जगह फिर क्या खाएं? इन प्रश्नों के उत्तर में वह आपको डायटीशियन के पास भेज देगा. डायटीशियन आपको ऐसा जन्मपत्रीनुमा चार्ट थमा देता है जिसमें इतनी सारी हिदायतें रहती हैं कि या तो आपका भोजन अलग से पकाया जायेगा, या फिर पत्नी आपसे तलाक ले लेगी. फिर मोटा आदमी क्या करे?

क्या वह डायटिंग करे जिसकी सलाह उसे हर एैरा-गैरा देता रहता है. परंतु डायटिंग कर रहे किसी आदमी को कभी देखा है आपने? मैं बताता हूं ऐसे आदमी की पहचान. एक मोटा-ताजा, हंसमुख आदमी जो अचानक कुछ दिनों से बेवजह चिड़चिड़ा हो गया हो- जान लें कि डायटिंग पर है. क्या करे बेचारा. वह भूखा है. वह निरंतर भोजन की ही सोचता रहता है और बौखलाया-सा रहता है. तो डायटिंग वह चीज है जो लंबे समय तक नहीं सुहाती. तो फिर क्या किया जाए?

मैं आपको कुछ बुनियादी बातें बता दूं फिर उनके आधार पर आप स्वयं ही तय कर सकेंगे कि अपना वजन कैसे कम करें? इन बुनियादी बातों के बिना वजन कम नहीं कर पाएंगे. जब तक आप ठीक से यह नहीं जानेंगे कि आप जो खा रहे हैं उसमें मोटे तौर पर कितनी कैलोरीज हैं, चर्बी या कार्बोहाइड्रेट आदि कितना है तथा वह खाने के बाद कितनी देर में पचकर आपको ताकत देगा- तब तक आप वजन कम नहीं कर पाएंगे. पहले इस कैलोरीज फैट, प्रोटीन, कार्बो आदि की माया समझ लें.

कैलोरीः कैलोरी काे मान लें, ताकत. जो आप खाते हैं वह शरीर में ईंधन बन जाता है. मानव शरीर का बुनियादी ईंधन है ग्लूकोज. आप जो खाते हैं शरीर उसे ग्लूकोज में बदल कर ही ताकत पैदा कर पाता है. कार्बोहाइड्रेट्स तो सीधे ग्लूकोज में बदल जायेंगे. प्रोटीन तथा चर्बी को भी ग्लूकोज में बदलने का जटिल सिस्टम हमारे लिवर में है जो उस मौके पर काम आता है जब किसी कारण शरीर को ग्लूकोज न मिल रहा हो. भूखे हों, डायबिटीज कंट्रोल में न हो रही हो- ऐसी स्थितियों में.

यह ग्लूकोज, ऑक्सीजन की सहायता से शरीर के इंजन में जलकर जो ऊर्जा पैदा करता है वह कैलोरी कहलाती है. जरूरत से ज्यादा कैलोरी की शरीर को जरूरत नहीं होती. कैलोरी का काम है आपको दौड़ने-भागने की ताकत देना, दिल, दिमाग, किडनी को निरंतर सक्रिय रखना. इससे ज्यादा जो भी होगा, वह अंततः चर्बी में बदलकर शरीर में जमा हो जायेगा. अधिक खाना चर्बी बनकर इकट्ठा होता जाता है और आप मोटे होते जाते हो. यह जानना होगा कि हम ऐसा क्या खाते रहते हैं जिसमें बहुत कैलोरी होती है? यह पता चल जाए तो आप उस पर नियंत्रण करके अपने वजन पर नियंत्रण कर सकते हैं.

कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन तथा फैटः खाने की वैज्ञानिक शब्दावली में ये तीन शब्द बराबर आते हैं. इन्हें समझ लें तो मान लीजिए कि वजन पर नियंत्रण की कुंजी आपके हाथ लग जायेगी. कार्बोहाइड्रेट का मतलब है दो तरह के खाद्य पदार्थ. एक तो सरल कार्बोहाइड्रेट जैसे कि शक्कर, ग्लूकोज, फल आदि. ये इस मायने में सरल हैं कि आपने खाया कि सीधे पंद्रह मिनट से आधे पौन घंटे में ही पचकर रक्त में ग्लूकोज बढ़ा देते हैं. इससे तुरंत शक्ति भी मिलती. दूसरे कार्बोहाइड्रेट जटिल कार्बो कहलाते हैं. ये पचने में एक से दो घंटे लेते हैं. ग्लूकोज ये भी बढ़ाते हैं, पर देर से. इनमें आलू, अरवी, गेहूं, चावल, मटर, फलियां आदि आते हैं.

प्रोटीन दूसरा ग्रुप है. इसे पचने में तीन से चार घंटे लगते हैं. इसीलिए यदि भूख लगी हो तो यह तुरंत मदद नहीं करेगा. खा लोगे, पर भूख बनी रहेगी. इस चक्कर में ज्यादा खा जाओगे. शरीर में प्रोटीन का काम मांसपेशियां बनाना, तथा अन्य तोड़फोड़ को वापस दुरुस्त करना है. मांस, मछली, अंडे की सफेदी, दूध तथा दालों में प्रोटीन होता है. तीसरा ग्रुप है फैट या चर्बी. घी, तेल, मक्खन, मलाई, अंडे, की (पीली) जर्दी आदि में मूलतः यही होता है. इसे खा तो लो पर पचने में आठ घंटे लगेंगे. इसमें कैलोरी तो बहुत है परंतु शरीर इसे सीधे ताकत प्राप्त करने में इस्तेमाल नहीं कर पाता, फिर? यह थोड़े बहुत हार्मोन में इस्तेमाल होने अलावा ज्यादातर चर्बी में बदलकर शरीर में यत्र-तत्र जमा हो जाता है. इतने सारे इस ज्ञान का मतलब क्या हुआ भैया? गुस्सा न हों. इस ज्ञान का संदर्भ तब आएगा जब अगली बार आपको वजन कम करने के एकदम वैज्ञानिक तथा सीधे उपाय बताए जाएंगे. सो इसे याद रखियेगा. तब काम आयेगा.