रूस से दोस्ती का आधार बना तेल

अमेरिका की कोशिशों के बावजूद भारत-रूस सम्बन्धों में नहीं आयी खटास

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाल के अमेरिकी दौरे, जिसमें अमेरिका के नेतृत्व ने दायरे से बाहर जाकर भारत के साथ रिश्तों को बहुत बेहतर दिखाने की कोशिश की; के बावजूद रूस के साथ भारत के रिश्तों पर इसका असर नहीं पड़ा है। इसका सबसे बड़ा सुबूत यह है कि जून में रूस से भारत का तेल आयात रिकॉर्ड 2.2 मिलियन बैरेल प्रतिदिन के स्तर पर पहुँच गया। यही नहीं, रूस की दिग्गज ऊर्जा कम्पनी रोसनेफ्ट ने जुलाई में इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (आईओसी) के एक पूर्व भारतीय निदेशक को अपने बोर्ड में शामिल किया है। भले प्रधानमंत्री मोदी के दौरे के दौरान अमेरिका में काफ़ी तामझाम दिखा हो और भारत के युवा प्रोफेशनल्स का अमेरिका के प्रति ज़्यादा आकर्षण हो, एक सच यह भी है कि कई अन्य देशों की तरह भारत में भी बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं, जो मानते हैं कि अमेरिका सि$र्फ अपने व्यापारिक हित को तरजीह देता है। लिहाज़ा वह बहुत विश्वसनीय नहीं है।

अमेरिका ने प्रधानमंत्री मोदी के दौरे के दौरान जिन 30 एमक्यू-9बी प्रीडेटर ड्रोन की डील भारत से की है, वैसे ही प्रीडेटर ड्रोन उसने यूक्रेन को रूस युद्ध में भी दिये हैं। हालाँकि उनकी क्षमता पर वहाँ गम्भीर सवाल उठे हैं। अब भारत में विपक्ष मोदी सरकार पर 31 ड्रोन की डील में भ्रष्टाचार का आरोप लगा रहा है। यह सौदा क़रीब 25,000 करोड़ रुपये का है। भारत ने यह ड्रोन चीन के सीमा पर लगातार बढ़ते आक्रामक रुख़ से मुक़ाबले के लिए ख़रीदे हैं। कुछ रक्षा जानकार यह आरोप लगा रहे हैं कि भारत को जो ड्रोन दिये गये हैं, वो तकनीक में आधुनिकतम नहीं हैं। हालाँकि भारत सरकार इन आरोपों को ग़लत बता चुकी है।

हाल के महीनों में मोदी सरकार ने रूस से तेल की बड़े पैमाने पर ख़रीद के बावजूद अमेरिका के साथ रिश्तों को ख़राब नहीं होने दिया है। उसने बीच का रास्ता निकालकर ख़द को तटस्थ दिखाने की कोशिश की है। यहाँ तक की बहुत चतुराई से रूस के यूक्रेन पर हमले के ख़िलाफ़ किसी भी अंतरराष्ट्रीय प्रस्ताव का समर्थन नहीं करके भी यह कहा कि भारत युद्ध को समर्थन में नहीं। लेकिन इस बार प्रधानमंत्री मोदी जून में जब अमेरिका गये, तो वहाँ उनका स्वागत पलकें बिछाकर किया गया। किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री को पहली बार व्हाइट हाउस में डिनर दिया गया। भले ख़द राष्ट्रपति जो बाइडेन मोदी को रिसीव करने एयरपोर्ट नहीं पहुँचे, अन्य मंचों पर मोदी को काफ़ी तरजीह दी गयी। यह आम धारणा बनी है कि रूस से भारत को दूर करने के लिए और चीन के साथ अपनी दुश्मनी के चलते अमेरिका भारत के साथ क़रीबी दिखा रहा है।

इस सबके बावजूद ज़मीनी हक़ीक़त यह है कि रूस और भारत के बीच सम्बन्ध यथावत हैं। अमेरिका के दौरे से प्रधानमंत्री के लौटते ही रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने मोदी से फोन पर बात की। हाल में भारत के पूर्व विदेश सचिव शशांक को उद्धृत करते हुए रूस की समाचार एजेंसी स्पुतनिक न्यूज की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘अमेरिका भारत-रूस के सम्बन्धों को रोकने में विफल रहा है।’

स्पुतनिक न्यूज की रिपोर्ट के मुताबिक, पूर्व विदेश सचिव शशांक ने कहा कि नई दिल्ली मॉस्को के साथ रिश्तों को महत्त्व देती है। स्पुतनिक से शशांक ने कहा कि अमेरिका भारत को रूस के साथ उसकी दोस्ती और आर्थिक सहयोग से दूर करने में विफल रहा है। दोनों देशों के बीच प्रौद्योगिकी हस्तांतरण जारी है। शशांक ने कहा कि आत्मनिर्भर भारत अभियान को आगे चलाने के लिए भारत रूस से आपूर्ति शृंखलाओं पर काम कर रहा है। रूस और भारत के बीच सहयोग केवल रक्षा और प्राकृतिक संसाधनों के क्षेत्र तक सीमित नहीं होना चाहिए।

शशांक ने स्पुतनिक से यह भी कहा कि रूस बहुत सारे संसाधनों को नियंत्रित करता है और रक्षा क्षेत्र में एक लीडर है। अन्य क्षेत्रों में भी रूस भारत के साथ सहयोग कर सकता है। स्पुतनिक न्यूज के मुताबिक, शशांक ने कहा कि अमेरिकी लोगों को मालूम है कि भारतीय पेशेवर कार्य बल को सभी अमेरिकी और यूरोपीय कम्पनियों द्वारा महत्त्व दिया जाता है, इसलिए वह इस स्थिति का प्रयोग करने की कोशिश कर रहे हैं। हाल ही में भारत में अमेरिकी राजदूत ने कहा कि इस साल अमेरिका लगभग 10 लाख भारतीयों को वीजा देगा। अगर रूस कुछ ऐसा करे, तो यह भी अच्छा होगा।

पूर्व विदेश सचिव ने कहा कि चूँकि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन विचारों का आदान-प्रदान जारी रखे हुए हैं। लिहाज़ा साफ़ है कि भारत और रूस दोनों अपनी साझेदारी को बहुत महत्त्व देते हैं। स्पुतनिक न्यूज के मुताबिक, शशांक ने यह भी कहा कि हालाँकि भारत अमेरिका सहित पश्चिमी देशों के साथ सहयोग बढ़ा रहा है, फिर भी भारत के लिए रूस के साथ विशेष रिश्ते बिलकुल महत्त्वपूर्ण हैं।

तेल का रिकॉर्ड आयात

स्पुतनिक न्यूज इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में रूसी तेल का आयात जून महीने में रिकॉर्ड ऊँचाई पर पहुँच गया है। उद्योग के आँकड़ों से पता चलता है कि अब रूस से आयात सऊदी अरब और ईराक से सामूहिक रूप से ख़रीदे गये तेल के आँकड़े को भी पार कर गया है। एनालिटिक्स फर्म केप्लर में क्रूड विश्लेषण के प्रमुख विक्टर कटोना को उद्धृत करते हुए उसने कहा कि जून में तेल आयात की दैनिक मात्रा बढक़र 2.2 मिलियन बैरल प्रतिदिन हो गयी, जो लगातार 10वें महीने बढ़ रही है। रिपोर्ट के अनुसार, राज्य के स्वामित्व वाली इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन पिछले दो महीनों में रूसी कच्चे तेल की सबसे बड़ी ख़रीदार रही है, इसके बाद रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड है।

यही नहीं, हाल में रूसी ऊर्जा दिग्गज रोसनेफ्ट ने इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (आईओसी) के एक पूर्व निदेशक को अपने बोर्ड में नियुक्त किया है। इससे संकेत मिलता है कि वह भारत के साथ व्यापार सम्बन्धों को बढ़ावा देने पर विचार कर रही है। रूसी फर्म के एक बयान के अनुसार, जी.के. सतीश, जो 2021 में आईओसी में व्यवसाय विकास के निदेशक के रूप में सेवानिवृत्त हुए, रोसनेफ्ट के 11 मज़बूत निदेशक मंडल में नियुक्त तीन नये चेहरों में से एक हैं। उनकी पेट्रोलियम उत्पाद विपणन, पेट्रोकेमिकल्स, एलएनजी और अंतरराष्ट्रीय व्यापार में विशेषज्ञता है। सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के भरोसेमंद इगोर आई. सेचिन रोसनेफ्ट के सीईओ और प्रबंधन बोर्ड के अध्यक्ष हैं।

बता दें रोसनेफ्ट की तेल और गैस क्षेत्रों में जी.के. सतीश की पूर्व कम्पनी के साथ रूस में साझेदारी है। रोसनेफ्ट आईओसी और अन्य भारतीय कम्पनियों को कच्चा तेल भी बेचती है। हाल के महीनों में इसने गुजरात रिफाइनर्स को नेफ्था भेजना शुरू कर दिया है। ऐसे में सतीश की नियुक्ति इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि सतीश के पास भारतीय तेल और गैस बाज़ार की गहरी जानकारी है। रोसनेफ्ट अब तरलीकृत प्राकृतिक गैस (एलएनजी) की बिक्री सहित भारतीय कम्पनियों के साथ अधिक सौदों पर दिलचस्पी दिखा रही है। सितंबर, 2016 से आईओसी बोर्ड में अपने कार्यकाल के दौरान, सतीश इंडियन ऑयल अदानी गैस प्राइवेट लिमिटेड के अध्यक्ष भी थे। रोसनेफ्ट नायरा एनर्जी का भी मेजोरिटी ऑनर है, जो गुजरात के वाडिनार में 20 मिलियन टन प्रति वर्ष की रिफाइनरी संचालित करता है और देश में 6,300 से अधिक पेट्रोल पंपों का मालिक है।

पुराने दोस्त

बेशक भारत के माता-पिता अपने बच्चों को करियर के लिए अमेरिका भेजने का सपना देखते हों, सच यह भी है कि वह रूस को भारत के दोस्त के रूप में अमेरिका से बेहतर मानते हैं। हाल के वर्षों में, $खासकर यूक्रेन युद्ध के बाद अमेरिका ने भारत को रूस से दूर करने की काफ़ी कोशिश की है। लेकिन बाइडन प्रशासन इसमें सफल नहीं हुआ है। भारत ने ‘एक के लाभ से दूसरे का नुक़सान नहीं’ की नीति से काम लिया है। अमेरिका ने नयी रक्षा तकनीक भारत को देने की रणनीति अपनाकर ऐसा करने की कोशिश की है। अमेरिका और भारत रक्षा उद्योगों को नीतिगत दिशा प्रदान करने और नये रक्षा औद्योगिक सुरक्षा रोडमैप पर सहमत हुए हैं। लेकिन भारत ने ऐसा रूस से रिश्तों की क़ीमत पर नहीं किया है।

जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गाँधी, दोनों के समय भारत और रूस के बीच रक्षा साझेदारी का जो अध्याय शुरू हुआ था, वह नरेंद्र मोदी-काल तक यथावत् चल रहा है। सन् 1950 के बाद तत्कालीन सोवियत संघ ने भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड और ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉर्पोरेशन जैसी सरकारी कम्पनियों की स्थापना में समर्थन और मदद दोनों दिये। यहाँ तक कि जब अमेरिका और उसके सहयोगियों ने जब परमाणु और अंतरिक्ष क्षमताओं को पंख देने की भारत की कोशिशों के चलते उस पर प्रतिबन्ध लगा दिये और अपने दरवाज़े भारत के लिए बंद कर दिये थे, तब भी यह रूस ही था, जिसने भारत की इन क्षमताओं को शुरू करने में मदद की। अगस्त, 1971 में भारत और सोवियत संधि पर हस्ताक्षर किये, जिसके बाद सोवियत संघ ने पाकिस्तान के साथ युद्ध के दौरान भारत का पक्ष लिया।

भारत को सोवियत संघ से ही 1960 के दशक की शुरुआत में मिग-21 लड़ाकू विमान मिले और सैन्य प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण भी हुआ। ब्रह्मोस क्रूज मिसाइलों के साझे उत्पादन से लेकर टी-90 टैंकों के लाइसेंस प्राप्त उत्पादन तक रूस ने ही मदद की।

यही नहीं, भारत का विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रमादित्य, परमाणु पनडुब्बी आईएनएस अरिहंत, कई गाइडेड मिसाइल विध्वंसक और हाल में ख़रीदा गया एस-400 मिसाइल सिस्टम रूस-भारत रक्षा सहयोग का पु$ख्ता प्रमाण है। दिसंबर, 2021 में जब रूस के राष्ट्रपति पुतिन भारत आये थे, तो भारत में 6,01,427 रूसी एके-203 राइफलें बनाने का एमओयू हस्ताक्षरित हुआ। यही नहीं, दोनों देशों ने सैन्य-तकनीकी सहयोग पर समझौते को और 10 साल के लिए बढ़ा दिया। देश के सेनाओं के पास आज जो हथियार हैं, उनमें से क़रीब 85 फ़ीसदी रूस के हैं।

अमेरिका की यात्रा के बाद जब प्रधानमंत्री मोदी स्वदेश लौटे थे, तब एकाध दिन में ही मोदी ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को फोन किया था। इसमें दोनों नेताओं के बीच आपसी सम्बन्धों को बेहतर बनाने को लेकर बात हुई थी। पुतिन ने इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी के साथ रूस में वागनर ग्रुप के विद्रोह और यूक्रेन से जुड़ी जानकारी भी साझा की थी। उधर प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिका यात्रा को लेकर पुतिन को बताया था। यहाँ पिछले साल अक्टूबर में कैनबरा में भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर की प्रेस कॉन्फ्रेंस को लेकर बताना भी महत्त्वपूर्ण है। उनसे पूछा गया था कि क्या यूक्रेन के ख़िलाफ़ रूस के युद्ध को देखते हुए भारत रूस पर अपनी हथियार निर्भरता कम करेगा? तब जयशंकर का जवाब था कि भारत-रूस के सम्बन्ध दीर्घकालिक हैं।

जयशंकर ने यहाँ तक कहा था कि यूएसएसआर या उसके बाद रूस से ख़रीदे जाने वाले हथियारों की सूची काफ़ी लम्बी है। यह सूची समय के साथ लम्बी हुई है क्योंकि पश्चिमी देशों ने भारत को हथियारों की आपूर्ति नहीं की, बल्कि उन्हें वास्तव में हमारे पड़ौस में एक सैन्य तानाशाही (पाकिस्तान) पसंद आयी। जयशंकर ने यह पश्चिम पर यह कटाक्ष पाकिस्तान के साथ शीत युद्ध के दौरान सम्बन्धों के आधार पर किया था।

यदि देखें, तो यूक्रेन युद्ध के बाद कमोबेश हर मंच पर भारत ने रूस की सीधी निंदा से परहेज़ किया है।

ड्रोन ख़रीद पर विवाद

अमेरिका के साथ 31 प्रीडेटर ड्रोन की ख़रीद में विपक्षी कांग्रेस ने भ्रष्टाचार का आरोप लगाया है। पार्टी प्रवक्ता पवन खेड़ा ने सरकार पर ज़्यादा क़ीमत में ड्रोन ख़रीदने का आरोप लगाया है। उन्होंने दावा किया कि 880 करोड़ रुपये प्रति ड्रोन के हिसाब से 25,000 करोड़ रुपये में 31 ड्रोन ख़रीदा जा रहा है; लेकिन बाक़ी देश इसे इससे 4 गुना कम क़ीमत में ख़रीदते हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि ड्रोन ख़रीद में नियमों का भी पालन नहीं किया गया। उनका दावा है कि केबिनेट कमिटी ऑन सिक्यॉरिटी की बैठक किये बिना इसका सौदा किया गया। अकेले मोदी जी ने डील कर ली।

खेड़ा के आरोप के मुताबिक, जो राफेल डील में हुआ, वही अब प्रीडेटर ड्रोन की ख़रीद में भी दोहराया जा रहा है। जिस ड्रोन को बाक़ी देश चार गुना कम क़ीमत में ख़रीदते हैं, उसी ड्रोन को हम 110 मिलियन डॉलर यानी 880 करोड़ रुपये प्रति ड्रोन के हिसाब से ख़रीद रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति बाइडन के ज्वाइंट स्टेटमेंट के प्वाइंट नंबर-16 में इन ड्रोन का ज़िक्र है। कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि ड्रोन डील में ट्रांसफर ऑफ टेक्नोलॉजी भी शामिल नहीं है। केंद्र सरकार ने डीआरडीओ को रुस्तम और घातक ड्रोन को बनाने के लिए 1,786 करोड़ रुपये दिये थे। फिर अमेरिका को 25,000 करोड़ दे आये। या तो ये 1,786 करोड़ रुपये ग़लत दिये या फिर 25,000 करोड़ ग़लत दिये। दोनों तो सही नहीं हो सकते। हालाँकि सरकार इन सब आरोपों को ग़लत बता चुकी है।

क्या ख़त्म होगा रूस-यूक्रेन युद्ध?

यूक्रेन की नाटो की सदस्यता भी अधर में लटक गयी है। नाटो के महासचिव जेन्स स्टोल्टेनबर्ग ने 12 जुलाई को कहा कि संगठन के सदस्य देशों के नेता इस बात पर तैयार हुए हैं कि जब सहयोगी देशों में रज़ामंदी होगी और शर्तें पूरी होंगी, तो यूक्रेन को समूह में शामिल करने की अनुमति दी जाएगी। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की ने इस पर गहरी नाराज़गी जतायी है और इसे बेतुका कहा है।

अमेरिकी के मीडिया हाउस एनबीसी ने हाल में दावा किया है कि रूस और यूक्रेन युद्ध ख़त्म कराने के लिए अमेरिका ने अप्रैल में उच्च स्तरीय बैक चैनल डिप्लोमेसी (ट्रैक 2 डिप्लोमेसी) शुरू की थी। इससे जुड़ी बातचीत के किये पुतिन के क़रीबी विदेश मंत्री लावरोव न्यूयॉर्क गये थे। एनबीसी के मुताबिक अमेरिका की तरफ से पूर्व डिप्लोमैट रिचर्ड हास, जो काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशन्स के अध्यक्ष हैं; ने बातचीत में हिस्सा लिया था।

यूरोपीय मामलों के एक्सपर्ट चाल्र्स कुपचान और रूस मामलों के एक्सपर्ट थॉमस ग्राहम भी बातचीत में शामिल हुए थे और यह कोशिश आज भी जारी है। रिपोर्ट में हैरानी वाली बात यह कही गयी है कि यह कोशिश बाइडेन प्रशासन ने शुरू नहीं की, बल्कि नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल को इसकी पूरी जानकारी थी। एनबीसी की यह रिपोर्ट इस लिहाज़ से अहम है, क्योंकि इसी महीने यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की ने स्वीकार किया कि रूस के साथ युद्ध में पश्चिम से हथियारों की धीमी आपूर्ति के कारण यूक्रेन के जवाबी हमले में देरी हुई, जिसके कारण रूस ने क़ब्ज़े वाले क्षेत्रों में अपनी रक्षा को मज़बूत किया है।

जेलेंस्की ने यह भी कहा कि उन्होंने रूस के ख़िलाफ़ बहुत पहले जवाबी कार्रवाई शुरू करने की माँग की थी, जो कि जून में शुरू हुई। जेलेंस्की ने माना कि युद्ध के मैदान में कुछ कठिनाइयों के कारण उनका (यूक्रेन) का जवाबी हमला धीमा हो रहा है। उधर एक रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका की ख़फ़िया एजेंसी सीआईए के प्रमुख विलियम बन्र्स ने रूस के साथ युद्ध में उलझे यूक्रेन की गुप्त यात्रा कर कथित तौर रूस से क्षेत्र वापस लेने के लिए यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की और यूक्रेन के शीर्ष ख़फ़िया अधिकारियों से मुलाक़ात की थी। बन्र्स की इस यात्रा के दौरान साल के आख़िर तक मॉस्को के साथ युद्ध विराम वार्ता शुरू करने की महत्त्वाकांक्षी रणनीति पर भी उनकी बात हुई थी।

रूस की सरकारी समाचार एजेंसी स्पुतनिक न्यूज की वाशिंगटन से एक रिपोर्ट में ख़लासा किया गया है कि सीआईए प्रमुख बन्र्स ने यूक्रेन की गुप्त यात्रा की थी। बन्र्स की यात्रा से परिचित अधिकारियों का हवाला देते हुए स्पुतनिक की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘अमेरिकी मीडिया ने बताया कि जून में यात्रा के दौरान सीआईए निदेशक विलियम बन्र्स ने यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की और यूक्रेन के शीर्ष ख़फ़िया अधिकारियों से मुलाक़ात की। यात्रा का उद्देश्य संघर्ष में यूक्रेन की मदद के लिए डिजाइन की गयी ख़फ़िया जानकारी साझा करने के लिए बिडेन प्रशासन की प्रतिबद्धता की पुष्टि करना था।’

स्पुतनिक न्यूज की रिपोर्ट में योजना से जुड़े लोगों का हवाला देते हुए कहा गया है कि ‘पिछले साल मार्च में बातचीत टूटने के बाद कीव पहली बार मॉस्को के साथ बातचीत शुरू करने का इरादा रखता है।’

रिपोर्ट के मुताबिक, अधिकारियों ने कथित तौर पर बाद में कहा कि उन्हें उम्मीद है कि क्रीमिया को न लेने पर सहमत होकर, रूस पश्चिम से कीव को जो भी सुरक्षा गारंटी दे सकता है, उसे स्वीकार कर लेगा। स्पुतनिक न्यूज के मुताबिक, एक यूक्रेनी अधिकारी ने बताया कि अमेरिका इस बात से सहमत है कि यूक्रेन को मज़बूत स्थिति का आधार बनाकर वार्ता में शामिल होना चाहिए।