मदद के बाद चीन से दूर और भारत के निकट आ रहा श्रीलंका !

चीन के प्रति बढ़ी नाराजगी के बीच भारत से मिल रही मदद के बाद श्रीलंका में भारत के प्रति लोगों में बहुत सकारात्मक संदेश गया है। क्रिकेटर से राजनीतिक बने सनथ जयसूर्या ने गुरुवार को भारत की जमकर तारीफ करते हुए कहा कि गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहे उनके देश की मदद कर भारत ने ‘बड़े भाई’ की भूमिका अदा की है।

जयसूर्या का यह बयान काफी अहम कहा जा सकता है क्योंकि श्रीलंका में चीन और वर्तमान शासकों राजपक्षे बंधुओं के प्रति नाराजगी चरम पर है। श्रीलंका में लोग महसूस कर रहे हैं कि उनके देश की यह हालत चीन के कारण हुई है। जयसूर्या ने
भारत को ‘बड़ा भाई’ बताते हुए मदद भेजने पर उसकी सराहना की है।

याद रहे भारत ने अकेले एक दिन में श्रीलंका को 76 हजार टन ईंधन भेजा है। श्रीलंका में ईंधन, रसोई गैस के लिए लंबी कतारें हैं जबकि यही हाल पेट्रोल पम्पों पर है।  जरूरी वस्तुओं का अकाल सा पड़ गया है और हर रोज बिजली की घंटों कटौती से जनता गंभीर परेशानी झेल रही है।

राजपक्षे बंधुओं के सत्ता में आने के बाद उनके देश का चीन के प्रति लगातार झुकाव बढ़ा और उसने कुछ परियोजनाओं में श्रीलंका को बड़े स्तर पर क़र्ज़ दिया। लेकिन श्रीलंका में महसूस किया जा रहा है कि देश के गंभीर आर्थिक संकट में फंसने का असल कारण यही है। जयसूर्या का कहना है कि श्रीलंका में जीवन काफी कठिन हो गया है और भारत और अन्य देशों की मदद से हम इस संकट से बाहर आने की उम्मीद कर रहे हैं।

हाल के दशकों की बात करें तो भारत श्रीलंका का बड़ा सहयोगी रहा है। भंडारनायके   और इंदिरा गांधी के जमाने से लेकर हाल के सालों तक भारत ने श्रीलंका की तरफ हमेशा सहयोगी रुख रखा है। लेकिन करीब एक दशक से और दो साल पहले जब राजपक्षे बंधू सत्ता में आए तो उनका भारत की बजाये चीन की तरफ झुकाव बढ़ गया। भारत के साथ रहते हुए कभी भी श्रीलंका के सामने आज जैसा गंभीर संकट नहीं आया।

मुख्यता पर्यटन पर आधारित श्रीलंका की इकॉनमी को कोरोना की जबरदस्त मार पड़ी है। श्रीलंका के सामने विदेशी मुद्रा का भयंकर संकट है। इसका असर खाद्य और ईंधन आयात करने की उसकी क्षमता पर पड़ा है। बिजली कटौती भी लम्बी खिंच रही है।

श्रीलंका की जानकार भी मानते हैं कि चीनी निवेश के आगे घुटने टेकना देश को बहुत भारी पड़ा है। आंकड़ों के मुताबिक श्रीलंका पर मार्च 2022 के आखिर तक करीब 7 बिलियन डॉलर का विदेशी कर्ज है। बड़ा चीनी निवेश श्रीलंका को बेहतर करने की जगह इतिहास के सबसे गंभीर आर्थिक संकट में खींच लाया है।

इस साल जनवरी में  जब चीन के विदेश मंत्री वांग यी जब श्रीलंका आये थे तब श्रीलंका के राष्ट्रपति गोतबाया राजपक्षे ने उनसे क़र्ज़ चुकाने के लिए ‘सॉफ्ट नीति’ का आग्रह किया था। मार्च में श्रीलंका में चीनी राजदूत क्यूई जेनहोंग ने कहा था कि चीन एक अरब डॉलर के कर्ज और 1.5 अरब डॉलर की क्रेडिट लाइन के लिए श्रीलंका के आग्रह पर विचार कर रहा है। चीन पहले ही श्रीलंका को कोविड-19 महामारी के दौरान 2.8 अरब डॉलर की मदद दे चुका है।

हालांकि, वर्तमान माहौल में श्रीलंका की जनता में चीन के प्रति विश्वसनीयता में कमी आई है। वहां महसूस किया जा रहा है कि चीन ने सहयोगी से ज्यादा विस्तारवादी नीति वाले देश की भूमिका निभाई है और श्रीलंका को गहरे संकट में डाल दिया है।