मणिपुर हिंसा: पूर्वोत्तर में बढ़ी भाजपा के प्रति नाराज़गी

शैलेंद्र कुमार ‘इंसान’

मणिपुर में जातीय हिंसा को साढ़े छ: महीने हो चुके हैं और केंद्र सरकार से लेकर मणिपुर सरकार भी इस हिंसा को अब तक रोकने में नाकाम है। अभी कुछ दिन पहले ही इस हिंसा में एक जवान शहीद हो गया। मणिपुर हिंसा पर ग्राउंड की सही ख़बरें बाहर नहीं आ पा रही हैं और वही ख़बरें बाहर आ रही हैं, जो कि केंद्र और मणिपुर सरकारें चाहती हैं। मणिपुर हिंसा का प्रभाव दूसरे पड़ोसी राज्यों पर भी पड़ रहा है और ख़ासतौर पर मिजोरम के विधानसभा चुनावों पर इसका असर हावी रहेगा, जिसके आसार साफ़ नज़र आ रहे हैं।

जब केंद्र सरकार से लेकर मणिपुर सरकार भी हिंसा रोकने में नाकाम रही, तब केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 13 नवंबर को नौ मैतेई चरमपंथी संगठनों और उनके सहयोगी संगठनों पर यह कहते हुए प्रतिबंध लगा दिया कि ये संगठन राष्ट्रविरोधी गतिविधियाँ चला रहे हैं। लेकिन प्रश्न ये है कि क्या यह छोटा-सा क़दम उठाने से मणिपुर की हिंसा रुक सकी है या निकट भविष्य में रुक सकेगी? क्या हिंसा में शामिल एक पक्ष के संगठनों पर प्रतिबंध लगाने से हिंसा रुक सकेगी? अगर प्रतिबंध लगाना ही है, तो मैतेई चरमपंथी संगठनों पर ही नहीं, बल्कि कुकी चरमपंथी संगठनों पर भी लगाना चाहिए।

ऐसा लगता है कि मैतेई जो कि हिंसा से पहले और हिंसा के बाद शुरू के कई महीने तक भाजपा सरकार के पक्ष में थे, परन्तु अब उससे नाराज़ हैं। इसलिए मैतेई चरमपंथियों पर प्रतिबंध लगाया गया है, जिससे उनकी नाराज़गी पड़ोसी राज्य मिजोरम में चुनाव प्रभावित न कर सके।

गृह मंत्रालय ने मैतेई चरमपंथी संगठनों पर प्रतिबंध लगाने के लिए जो नोटिफिकेशन जारी किया है, उसके अनुसार ये संगठन अगले पाँच साल के लिए प्रतिबंधित रहेंगे। इन संगठनों में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) और इसकी राजनीतिक शाखा, रिवोल्यूशनरी पीपुल्स फ्रंट (आरपीएफ), यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (यूएनएलएफ) और इसकी सशस्त्र शाखा मणिपुर पीपुल्स आर्मी (एमपीए) शामिल हैं। इन संगठनों के अतिरिक्त पीपुल्स रिवोल्यूशनरी पार्टी ऑफ कांग्लेईपाक (पीआरईपीएके) और इसकी सशस्त्र शाखा रेड आर्मी, कांग्लेईपाक कम्युनिस्ट पार्टी (केसीपी), कांगलेई याओल कनबा लुप (केवाईकेएल), कोआर्डिनेशन कमेटी (कोरकॉम) और एलायंस फॉर सोशलिस्ट यूनिटी कांग्लेईपाक (एएसयूके) पर भी पाँच साल के लिए प्रतिबंध लगा दिया गया है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इन संगठनों पर ग़ैर-क़ानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम-1967 (37) के तहत प्रतिबंध लगाया है।

इससे कई साल पहले पीएलए, यूएनएलएफ, पीआरईपीएके, केसीपी, केवाईकेएल पर प्रतिबंध लगाया गया था। गृह मंत्रालय ने अपने एक बयान में कहा है कि केंद्र सरकार की राय है कि यदि मैतेई चरमपंथी संगठनों पर तत्काल प्रतिबंध लगाया गया और उन पर नियंत्रण नहीं लगाया गया, तो उन्हें अपनी अलगाववादी, विध्वंसक, आतंकवादी और हिंसक गतिविधियों को बढ़ाने के लिए उन्हें संगठित होने का अवसर मिलेगा। असल में पूर्वोत्तर के चरमपंथी गुटों सरकार के रिकॉर्ड में यह दर्ज है कि ये संगठन भारत की संप्रभुता और अखंडता के लिए हानिकारक ताक़तों के साथ मिलकर राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों का प्रचार करते हैं और आगे भी करेंगे। इस समय मणिपुर में हिंसा का दौर है, तब इनकी हिंसक गतिविधियाँ बढ़ी हैं। इससे पहले भी ये संगठन हिंसक गतिविधियों में शामिल रहे हैं। ऐसे में अगर इन चरमपंथी संगठनों को प्रतिबंध नहीं किया गया, तो ये लोगों की हत्याओं में शामिल होंगे और पुलिस तथा सुरक्षाबलों के जवानों को निशाना बनाएँगे।

केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार अंकुश न लगाये जाने की स्थिति में ये संगठन अंतरराष्ट्रीय सीमा के पार से अवैध हथियार और गोला-बारूद हासिल करेंगे और अपनी ग़ैर-क़ानूनी गतिविधियों के लिए जनता से बड़ी मात्रा में पैसे की वसूली भी करेंगे और अगर इन पर अभी प्रतिबंध नहीं लगाया गया, तो ये और निरंकुश, हिंसक तथा मज़बूत हो जाएँगे। इसलिए परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार की राय में मैतेई चरमपंथी संगठनों को ग़ैर-क़ानूनी संगठन घोषित करना आवश्यक है और केंद्र सरकार के निर्देशों के अनुसार यह अधिसूचना 13 नवंबर, 2023 से अगले पाँच वर्षों के लिए प्रभावी होगी।

मैतेई चरमपंथी संगठनों पर प्रतिबंध लगाने के बाद पूर्वोत्तर की राजनीति और गरमा गयी है। पूर्वोत्तर में हिन्दू और हिन्दू संगठनों में भाजपा और उसकी सरकारों के ख़िलाफ़ नाराज़गी और बढ़ गयी है। वाम नेता और केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने केंद्र सरकार के इस क़दम से नाराज़गी जतायी है। उन्होंने कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मणिपुर में हिंसा के बारे में एक शब्द भी बोलने में 80 दिन लग गये। केंद्रीय मंत्रियों ने इस साल 3 मई को मणिपुर में भडक़ी हिंसा के मामले में तीन महीने तक इस पूर्वोत्तर राज्य का दौरा करने तक की परवाह नहीं की।

केरल के मुख्यमंत्री विजयन ने ये सब बातें पत्रकार जॉर्ज कल्लीवायलिल की मणिपुर हिंसा पर लिखी गयी किताब ‘मणिपुर एफआईआर’ का विमोचन करते हुए कहीं। वाम नेता ने कहा कि ऐसे समय में जब मुख्यधारा का मीडिया मणिपुर से हिंसा की ख़बरों को हल्का ही नहीं, बल्कि पूरी तरह नज़रअंदाज़ कर रहा है। कल्लिवालिल ने वहाँ मानवता के ख़िलाफ़ हो रहे अपराधों का दस्तावेज़ीकरण करने की पहल की है। कुछ मीडिया आउटलेट्स छ: महीने से भडक़ी मणिपुर हिंसा को नज़रअंदाज़ करते रहे और कुछ ही घंटों के भीतर ही इजरायल पहुँच गये। इससे प्रमुख मीडिया आउटलेट्स और मीडिया घरानों की प्राथमिकताओं को स्पष्ट समझा जा सकता है कि वे किसके हितों के साथ गठबंधन कर सकते हैं।

मुख्यमंत्री विजयन ने इस दौरान मणिपुर हिंसा की घटनाओं का ज़िक्र करते हुए एक आधिकारिक रिपोर्ट का हवाला दिया और कहा कि इस घटना में 200 लोगों की मौत हो गयी और 1,000 से अधिक घायल हो गये, जबकि लगभग 5,000 घर जल गये। हिंसा भडक़ने के तुरन्त बाद विपक्षी दलों के वरिष्ठ नेताओं ने मणिपुर का दौरा किया, उन्हें रोकने की कोशिश की गयी, परन्तु न तो प्रधानमंत्री ने और न ही उनके मंत्रियों ने इस गम्भीर मामले को देखने और शान्त करने की कभी चिन्ता की।

इसमें कोई दो-राय नहीं कि मणिपुर हिंसा पर केंद्र सरकार ने बहुत देरी से एक ही क़दम बढ़ाया है और इजरायल पर हमले को लेकर इतने आँसू बहाये कि पूरी दुनिया हैरान थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मणिपुर हिंसा को रोकने को लेकर मैतेई चरमपंथी संगठनों पर प्रतिबंध लगाने से पहले तक कोई क़दम न उठाने के चलते मणिपुर के पड़ोसी राज्य मिजोरम में चुनाव प्रचार के लिए भी नहीं जा सके। उनकी हिम्मत शायद इसलिए न पड़ी हो, क्योंकि मिजोरम के मुख्यमंत्री और मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) के अध्यक्ष जोरमथांगा ने जब प्रधानमंत्री के मिजोरम में विधानसभा चुनाव प्रचार करने जाने की ख़बर सुनी, तो उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के साथ मंच साझा करने से साफ़ मना कर दिया था।

विदित हो कि मिजोरम में भाजपा की मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) के साथ गठबंधन की सरकार है। परन्तु मणिपुर हिंसा और उस तरफ़ प्रधानमंत्री, उनके केंद्रीय मंत्रियों और मणिपुर के भाजपा के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के कोई पहल न करने से नाराज़ मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरमथंगा ने साफ़ कह दिया है कि फ़िलहाल भगवा पार्टी के साथ किसी भी तरह के गठबंधन का सवाल नहीं है।

फ़िलहाल मिजोरम में 7 नवंबर को वोटिंग हो चुकी है। इस 9वीं राज्य विधानसभा में कुल 40 सीटें हैं, जिसके लिए कुल 174 उम्मीदवार मैदान में हैं, जिसमें 16 महिलाएँ भी हैं। इसलिए मिजोरम के विधानसभा चुनाव का परिणाम देखने वाला होगा, जो कि 3 दिसंबर को बाक़ी अन्य चार राज्यों के साथ ही सामने आएगा।

इसमें कोई दो-राय नहीं कि इसी साल 3 मई से भडक़ी मणिपुर हिंसा का असर मिजोरम पर भी हुआ है और अब भाजपा के ख़िलाफ़ पूर्वोत्तर राज्यों में और भी माहौल बन चुका है। ऐसे में भाजपा का पूर्वोत्तर राज्यों में एकछत्र सत्ता पाने का सपना टूटेगा और इसका असर सिर्फ़ पूर्वोत्तर तक ही सीमित नहीं रहेगा, बल्कि दक्षिण भारत से लेकर पश्चिम और उत्तर भारत तक चुनावों में दिखेगा। हालाँकि पूर्वोत्तर में भाजपा की पकड़ बहुत अच्छी पहले से ही नहीं है, परन्तु पकड़ बनाने की जो कोशिश भाजपा ने पिछले 8-9 वर्षों में की है, उस मेहनत पर मणिपुर हिंसा ने पानी फेर दिया है। भाजपा को अगर सत्ता में रहना है, तो उसे देश में हिंसा को रोकना होगा और सबको साथ लेकर विकास की राह पर चलना होगा।