‘भरोसा दोनों तरफ से होता है’

 

मैं शायद कुछ और लिखता परंतु इसी बीच आमिर खान का सत्यमेव जयते का डॉक्टरों पर प्रोग्राम देख लिया तो यह लेख लिखना जरूरी लगा. नहीं, मैं डॉक्टरों की तरफ से कोई सफाई, आरोप या धमकी देने का काम नहीं करूंगा. मेरा मानना है कि आमिर ने अर्धसत्य दिखाया. सत्य का दूसरा पक्ष तब तक पूरा नहीं होता है जब तक आप मेरा यह लेख न पढ़ लें. 

डॉक्टर और मरीज के बीच भरोसे का ही संबंध है. यह भरोसा ही है जो डॉक्टर को ताकत देता है और मरीज को हिम्मत. आमिर ने इस भरोसे के टूटने की बात कही और पूरी ईमानदारी से कही. ऐसे प्रोग्रामों से अच्छे डॉक्टरों को न तो चिंता करनी चाहिए, न शिकायत. परंतु क्या बात इतनी ही सरल है? क्या खलनायक इतने ही हैं?  क्या डॉक्टर ही पूरी तरह से इस अराजकता के जिम्मेदार हैं? क्या मरीज के व्यवहार और गलत अपेक्षाओ से चालाक किस्म के चंद धंधेबाज डॉक्टरों को वह मौका नहीं मिल रहा जिसके रहते अच्छे डॉक्टरों पर भी छींटें आ रही हैं? पिछले 38 वर्षों से मैं डॉक्टरी कर रहा हूं. मरीजों का मेरे ऊपर ऐसा भरोसा रहा है जो लगातार मुझे सतर्क रखता है. इस अनुभव के निचोड़ से मैं यहां कुछ बातें लिख रहा हूं. मरीज के तौर पर हम आप अपने डॉक्टर से बड़ी उम्मीद करते हैं, पर वह भी कुछ उम्मीद आपसे करता है. मैं एक डॉक्टर के तौर पर मरीज का भरोसा तोड़ने वाली उन बातों का जिक्र करूंगा जिन पर मरीज का ही नियंत्रण है. तो मेरी शिकायतें और सलाहें ये हैं

इलाज तथा बीमारी की वास्तविकता और सीमाएं समझें: न जाने क्यों कदाचित मीडिया तथा धंधेबाज डॉक्टरों के विज्ञापनी हथकंडों के कारण यह भ्रम खड़ा हो गया है कि आधुनिक चिकित्सा पद्धति के पास अब हर परेशानी का उत्तर है. मैं विनम्रतापूर्वक बताना चाहूंगा कि स्थिति प्रायः इसके ठीक विपरीत हैं. हर इलाज की सीमाएं हैं जो मरीज की उम्र, आनुवंशिकता और इसके अन्य रोगों से तय होती है. बाईपास सर्जरी छह माह पहले ही हुई थी और एकदम ईमानदारी से बहुत बढि़या की गई थी परंतु छह माह बाद ही हार्ट अटैक हो सकता है. यह इस मर्ज के इलाज की सीमा है. एन्जियोप्लास्टी के अगले दिन ही हार्टअटैक हो गया साहब. दो लाख ले लिए और काम ऐसा किया! पर यह होना संभव है. कार के रिपेयर में और डॉक्टरी इलाज में यही अंतर है. डॉक्टर आम तौर पर ये सीमाएं बताते नहीं या तो व्यस्त रहने के कारण या अपना मरीज डरकर भाग न जाए यह सोचकर. पर वास्तविकता यही है. कई जांचें और इलाज ऐसे हैं जो स्थापित नहीं हैं परंतु माना जाता है कि ये काम करेंगे : इनके विषय में हर डॉक्टर की राय अलग-अलग हो सकती है. आपका डॉक्टर कुछ औैर कहे तथा दूसरा कुछ औैर. तो आप परेशान हो जाते हैं कि जरूर दोनों में एक तो झूठा है. दोनों अपने अनुभव से बता रहे हैं, जिस पर भरोसा हो उसकी बात मानें. 

कृपया इंटरनेट से अपनी बीमारी तथा इलाज न समझें :  जैसे कि इंटरनेट से हवाई जहाज चलाने के बार में कुछ जानकारी प्राप्त करके पायलट के सिर पर खडे़ नहीं हो जाते कि हवाई जहाज को ऐसे नहीं ऐसे चलाओ, ठीक यही बात डॉक्टरी पर भी लागू होती है. ब्रह्मांड से उतरा यह इंटरनेटी ज्ञान लेकर बहुत-से मरीज मेरे पास भी आते हैं. कहते हैं कि सर आपने मेरा यह टेस्ट तो कराया ही नहीं जबकि इंटरनेट पर साफ लिखा है कि माइग्रेन में सीटी स्केन तो. काश कि मेडिकल सांइस इतनी सरल और सीधी होती तथा आपका शरीर और इसकी व्याधियां ऐसे गणित के फॉर्मूले जैसी होतीं. तब तो हर कोई कंप्यूटर में बीमारी का डाटा डालकर इलाज कर लेता. मानव शरीर, इसका मन, बीमारियों के कारण तथा उनकी जड़ यह सब तो अभी एक कुहासे में हैं. डॉक्टर इसी कुहासे या धुंध में रास्ता तलाशते है. तो कृपया इंटरनेट को देखकर इस मशीन को खोलने का प्रयास न करें, न ही करवाएं वरना आपके पुर्जे ऐसे बिखर सकते हैं कि कोई डॉक्टर बटोर भी नहीं पाएगा. 

मेडिकल शॉपिंग न करें : अर्थात रोज डॉक्टर न बदलें. यह आशा न करें कि दस दिन में ठीक होने वाली बीमारी दो दिन में ठीक करने वाला डॉक्टर मिल जाएगा, जितने डाक्टरों की राय लेंगे उतने ही भ्रम में पडें़गे. यह न करें कि ऊटी या दिल्ली घूमने निकले थे परंतु वहां एक डॉक्टर का बड़ा नाम सुना तो उसे दिखाने भी चल दिए. अपने डॉक्टर पर भरोसा रखें.

बीमारी रातोंरात ठीक होने की जिद न करें :  दस्त एक रोज में रुक जाए औैर खांसी दो दिन के इलाज के बाद भी क्यों नहीं रुक रही, डॉक्टर साहब? यह सब न करें. आपकी जिद में, मरीज किसी और डॉक्टर के पास भाग न जाए, इस चिंता में कई बार डॉक्टर फिर कुछ ऐसी दवाएं न दे दे जो तुरंत तो आराम दे परंतु लंबे समय में नुकसानदायक साबित हो सकती है. हर बीमारी का एक नैसर्गिक कोर्स होता है. माना कि आप जल्दी में होंगे पर बीमारी के इलाज में कोई शार्टकट नहीं होता. 

संदेशों से खेती न करें : मेरे पास ऐसे मरीज भी आते हैं जो एकाध ईसीजी, फाइल या एक्स-रे लाते हैं और बताते हैं कि मरीज तो ग्वालियर में है पर आप यह देखकर सलाह दें कि हम उनका क्या करें. याद रखें कि जब तक डॉक्टर ने मरीज को नहीं देखा है तब तक उसकी राय बेहद अधूरी तथा अविश्वसनीय होती है.

अपने डॉक्टर से कुछ भी न छिपाएं तथा अपनी गलत आदतों को अंडरप्ले न करें : डाॅक्टर को सब बताएं. दारू, सिगरेट, लड़कियों से नाजायज संबंध, मानसिक चिंताएं, डर आदि आपकी बीमारी के कारण भी हो सकते हैं या डॉक्टर के इलाज में बाधा पहुंचा सकते हैं या ठीक से डॉक्टर के पूछने पर भी यदि न बताया जाए तो डॉक्टर गलत डायग्नोसिस भी कर सकता है. डाक्टर पर भरोसा रखें, वह जो भी पूछे ठीक से बताएं. तंबाकू तो बस जरा सा ही खा लेते हैं, दारू तो बस दोस्त मिल जाते हैं तो हो जाती है जैसे वाक्य बोलकर अंडरप्ले न करें. ऊपर कही गई बातों के अलावा और भी बातें हैं पर फिर किसी मौके पर.