बच्चों का चुनाव में इस्तेमाल

आम चुनाव 2024 से पहले चुनाव आयोग के निर्देश कैसे विफल हो रहे हैं? इस पर प्रकाश डालने वाली हमारी आवरण कथा की कड़ी में ‘तहलका’ की विशेष जाँच टीम ने अब तक दो आवरण कथाओं- ‘किराये की भीड़’ और ‘पैसे के लिए बूथ कैप्चरिंग’ के माध्यम से चुनाव प्रचार और मतदान के दौरान जारी अनैतिक और अवैध प्रथाओं को उजागर किया है। अब हमारे छिपे हुए कैमरे में रिकॉर्ड किये गये तीसरे ख़ुलासे- ‘चुनावी रैलियों में बच्चों का इस्तेमाल!’ से पता चलता है कि लोकप्रिय धारणा के बावजूद चुनावों के दौरान बच्चों को अवैध रूप से काम पर रखने की समस्या का अभी तक समाधान नहीं किया गया है और यह बेधड़क चलन में है। यह याद किया जा सकता है कि चिन्तित भारतीय चुनाव आयोग ने चुनाव प्रभावित करने वाले चार बिन्दुओं को चिह्नित किया था- बाहुबल, पैसा, ग़लत सूचना और आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन, जो स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने में एक कठिन चुनौती पेश कर रहे हैं। मामले की तह तक जाने के लिए ‘तहलका’ एसआईटी की जाँच इन्हीं ‘5एम’ के इर्द-गिर्द कुछ मामले उजागर कर रही है। नवीनतम ख़ुलासा बताता है कि कैसे बच्चों को चुनावी रैलियों और अभियान-सम्बन्धी गतिविधियों, जैसे- पार्टियों के पोस्टर चिपकाने, बैनर लटकाने, नारे लगाने, झंडे उठाने और तख़्तियाँ लेकर चलने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। यह सब बेधड़क, बिना सज़ा के ख़ौफ़ के हो रहा है। हालाँकि भारत के चुनाव आयोग ने राजनीतिक अभियानों और रैलियों जैसी किसी भी चुनाव सम्बन्धी गतिविधियों में बच्चों के उपयोग के प्रति शून्य सहनशीलता की चेतावनी देते हुए सख़्त निर्देश जारी किये हैं।
चुनाव आयोग ने राजनीतिक नेताओं और उम्मीदवारों पर इस बात का भी ज़ोर दिया है कि उन्हें किसी भी तरह से प्रचार गतिविधियों के लिए बच्चों का उपयोग नहीं करना चाहिए, जिसमें बच्चे को गोद में लेना, वाहन में बच्चे को ले जाना या राजनीतिक अभियान का दिखावा करने के लिए उन्हें रैलियों में शामिल करना आदि शामिल है। कविता, गीत, बोले गये शब्दों के उपयोग माध्यम से राजनीतिक दल या उम्मीदवार के प्रतीक चिह्न का प्रदर्शन, राजनीतिक दल की विचारधारा का प्रदर्शन, किसी राजनीतिक दल की उपलब्धियों को बढ़ावा देना या प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों की आलोचना करना शामिल है। क़ानूनी अनुपालन का निर्देश देते हुए राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों से कहा गया है कि वे बाल श्रम (निषेध और विनियमन) संशोधन अधिनियम-2016 द्वारा संशोधित बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम-1986 का कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित करें। आयोग ने निर्देशों में एक जनहित याचिका (चेतन रामलाल भुटाडा बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य) में बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश पर भी प्रकाश डाला, जिसमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया था कि राजनीतिक दल किसी भी चुनाव-सम्बन्धी गतिविधियों में नाबालिग़ों (बच्चों) की भागीदारी की अनुमति नहीं देते हैं। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने भी यह स्पष्ट कर दिया है कि किसी भी उम्मीदवार या पार्टी को चुनाव प्रचार के लिए 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों का उपयोग नहीं करना चाहिए; क्योंकि बाल श्रम को बाल श्रम निषेध और विनियमन अधिनियम (सीएलपीआरए) के तहत विनियमित किया जाता है।
इस अंक में ‘तहलका’ की कवर स्टोरी से पता चलता है कि कैसे बिचौलिये पैसे के बदले में नाबालिग़ों को चुनाव प्रचार के लिए उपलब्ध कराने को तैयार हैं। बिचौलिये नाबालिग़ों को चुनाव आयोग की निगरानी से छिपाते हैं और उन्हें राजनीतिक रैली में सबसे आगे नहीं लाते हैं, जब तक कि सभा को संबोधित करने वाला मुख्य राजनीतिक व्यक्ति नहीं आता है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में जनता के विश्वास को मज़बूत करने के लिए नियामक अधिकारियों के लिए इस तरह के घोर उल्लंघनों की जाँच करने का समय आ गया है।