पहलवानों की पीड़ा

एक कहावत है कि ऊपर वाले के दर पर देर है, अँधेर नहीं। लेकिन खेल संस्थान के एक ताक़तवर मुखिया के ख़िलाफ़ देश की राजधानी में न्याय की लड़ाई लड़ रहीं महिला पहलवानों को अपने मामले की एफआईआर दर्ज करवाने के लिए ही देश की सर्वोच्च अदालत का दरवाज़ा खटखटाना पड़ा। उनके आरोप यौन उत्पीडऩ से जुड़े हैं और यह निश्चित ही एक गम्भीर मुद्दा है। कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीडऩ को लेकर क़ानून हैं; लेकिन एक कड़वा सच यह है कि देश की अधिकतर खेल एसोसिएशन के पास आंतरिक शिकायत समिति (आईसीसी) ही नहीं है, जो कार्यस्थल पर यौन उत्पीडऩ से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम-2013 (पॉश अधिनियम-2013) में होना ज़रूरी है। इनमें रेसलिंग फेडरेशन ऑफ इण्डिया भी शामिल है, जिसके अध्यक्ष के ख़िलाफ़ महिला पहलवान और उनके समर्थन में जुटे लोग जंतर-मंतर पर न्याय की गुहार लगा रहे हैं।

महिला पहलवानों के धरने पर बैठने की बात समझ में भी आती है। उनके आरोप नये नहीं हैं। महिला पहलवान कह रही हैं कि वे पहले से अपनी बात उच्च अधिकारियों या सत्ता में बैठे लोगों तक पहुँचाने की कोशिश कर रही थीं। उनका पहला धरना इसी साल 18 जनवरी को जंतर-मंतर पर ही हुआ था, जब विनेश फोगाट, बजरंग पूनिया, साक्षी मलिक सहित कुछ दिग्गज पहलवान वहाँ जुटे थे। उन्होंने बाक़ायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस करके भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह सहित कुश्ती संघ पर गम्भीर आरोप लगाये थे। उनके आरोपों में गाली देना, अपशब्दों का इस्तेमाल, मानसिक रूप से प्रताडऩा और अध्यक्ष पर यौन शोषण जैसे गम्भीर आरोप शामिल थे। हालाँकि बृजभूषण फ़िलहाल कुश्ती संघ में शक्तिहीन हो चुके हैं।

बृजभूषण शरण सिंह, जो भाजपा के सांसद भी हैं; इन आरोपों को झूठा बताते हैं और उनका कहना है कि यदि उन पर आरोप साबित हो जाएँ, तो उन्हें फाँसी पर लटका दिया जाए। उलटे उनका दावा है कि वे तो पहलवानों की भलाई के लिए जेब तक से पैसे खर्च करते रहे हैं। सर्वोच्च न्यायालय में मामला जाने के बाद अब सिंह के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज हो चुकी है। सर्वोच्च अदालत ने पहलवानों को भी निचली अदालत में अपना मामला ले जाने का सुझाव दिया है। ज़ाहिर है यौन उत्पीडऩ के ख़िलाफ़ बैठी महिला पहलवानों की लड़ाई लम्बी खिंच सकती है। उनके लिए हिम्मत बढ़ाने वाली बात यह है कि किसान, ख़ास पंचायतें और अन्य वर्गों के लोग उनके समर्थन में जुट रहे हैं।

यह अचरज की बात है कि हमारी जिन महिला पहलवानों से दुनिया भर की पहलवान $खौफ़ खाती हैं, वो ख़ुद असहाय सी दिख रही हैं। न्याय के लिए उनका इंतज़ार इस बात को साबित करता है कि हमारी व्यवस्था में कितनी ख़ामियाँ हैं। दरअसल जनवरी में महिला पहलवानों ने जब धरना दिया था, तो मोदी सरकार में ताक़तवर युवा मंत्री अनुराग ठाकुर उनसे मिले थे। उसमें जाँच समिति बनाने की बात हुई, जिसे अनुराग ठाकुर ने पूरा भी किया। महिला पहलवानों के आरोपों की जाँच के लिए भारतीय ओलंपिक संघ की अध्यक्ष पीटी ऊषा की अध्यक्षता में एक समिति का गठन हुआ, जिसमें जानी मानी विश्व विजेता मुक्केबाज़ एम.सी. मैरी कॉम, पहलवान योगेश्वर दत्त, राष्ट्रमंडल खेलों की स्वर्ण पदक विजेता पहलवान बबीता फोगाट, बैडमिंटन स्टार तृप्ति मुर्गुंडे, भारतीय खेल प्राधिकरण (एसएआई) की पूर्व निदेशक राधिका श्रीमन और लक्ष्य ओलंपिक पोडियम योजना के पूर्व सीईओ राजेश राजगोपालन शामिल थे।

रिपोर्ट का खेल

बड़े नामों वाली इस निगरानी समिति ने जाँच पूरी करके अप्रैल में रिपोर्ट मंत्रालय को सौंप दी। ‘तहलका’ की जाँच के दौरान समिति के सदस्यों के बीच कुछ ऐसी घटनाएँ हुईं, जिनसे कई तरह के शक जन्म लेते हैं। बृजभूषण शरण सिंह के ख़िलाफ़ जो आरोप लगे थे, उनकी जाँच कर रही समिति की एक सदस्य बबीता फोगाट ने जो ख़ुलासे किये हैं, उनसे शक पैदा होता है कि सिंह को बचाने के लिए दबाव का इस्तेमाल किया जा रहा है। बबीता के आरोपों के मुताबिक, इस मामले की जाँच सदस्यों ने सही तरी$के से नहीं की। उनका तो यह भी कहना है कि जो रिपोर्ट बनायी गयी, उसमें सभी सदस्यों की सहमति नहीं थी।

बबीता फोगाट ने जो मामले की जाँच को लेकर को ख़ुलासे किये हैं, वह बहुत चौंकाने वाले हैं। इनमें एक यह भी है कि जब वह (बबीता) जाँच रिपोर्ट का अध्ययन कर रही थीं, तो भारतीय खेल प्राधिकरण (एसएआई) की पूर्व निदेशक राधिका श्रीमन, जो जाँच समिति में सदस्य के रूप में शामिल थीं, ने उनसे रिपोर्ट छीन ली थी। बबीता का तो यह भी आरोप है कि श्रीमन ने उनके साथ बदतमीजी भी की, जिसका आधार यह था कि वे उसी परिवार से सम्बन्ध रखती हैं; जिनके सदस्य धरने पर बैठे हैं। बबीता ने जब रिपोर्ट के कुछ हिस्सों पर सवाल उठाये, तो उन्हें अनसुना कर दिया गया। बबीता का कहना है कि उन्होंने इसे लेकर अपनी आपत्ति रिपोर्ट में दर्ज करवायी है।

वैसे यह कथित रिपोर्ट आज तक सामने आयी ही नहीं है। कहा जाता है कि इस रिपोर्ट में बृजभूषण शरण सिंह को ‘क्लीन चिट’ दी गयी है। बबीता फोगाट इसे लेकर कहती हैं- ‘इस मसले पर मैं कुछ कहना नहीं चाहती। महिला होने के नाते मैं पहले भी और आज भी खिलाडिय़ों के साथ हूँ।’ समिति की एक सदस्य ही यदि यह कहती हैं कि एकतर$फा जाँच की गयी और सब कुछ छिपाकर किया गया है, तो उस रिपोर्ट का क्या औचित्य रह जाता है। बबीता कहती हैं कि उन्हें न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है। बबीता की बातों से साफ़ है कि समिति के सभी सदस्य इस मसले पर एक राय नहीं थे।

बृजभूषण शरण सिंह के ख़िलाफ़ आरोप काफ़ी गम्भीर हैं। आरोप लगाने वालों में एक खिलाड़ी व्यस्क नहीं है और यह आरोप यौन उत्पीडऩ का है। सिंह के ख़िलाफ़ दर्ज एफआईआर के मुताबिक, एक मामला पोक्सो एक्ट के तहत भी है। अब यहाँ यह सवाल उठता है कि पोक्सो एक्ट के तहत मामला होने के बावजूद आरोपी की गिरफ़्तारी क्यों नहीं हुई। ज़ाहिर है सिंह की ताक़त के आगे क़ानून और प्रशासन लाचार दिख रहे हैं। ऐसे में सवाल यह है कि देश का नाम रोशन करने वाली देश की बेटियों को इतना अकेला क्यों छोड़ दिया गया?

सर्वोच्च न्यायालय में मामला नहीं गया होता, तो शायद आरोपी के ख़िलाफ़ एफआईआर भी दर्ज नहीं होती। सात पहलवानों की याचिका पर सर्वोच्च अदालत ने नोटिस जारी किया। डब्ल्यूएफआई अध्यक्ष पर यौन उत्पीडऩ लगाने वाले पहलवान अभी भी जंतर-मंतर पर धरने पर बैठे हैं। अब सर्वोच्च न्यायालय ने इन पहलवानों को निचली अदालत में जाने को कहा है। खिलाडिय़ों का यह भी आरोप है कि शिकायतकर्ताओं पर दबाव डाला गया है। यही नहीं डब्ल्यूएफआई अधिकारी उनके घर जाकर पैसे तक की पेशकश कर चुके हैं। देश की 16 ऐसे खेल संगठन हैं, जिनमें आंतरिक शिकायत समिति (आईसीसी) नहीं है। कुछ में इसकी खानापूर्ति की गयी है। ऐसे में कार्यस्थल पर यौन उत्पीडऩ से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम-2013 (पॉश अधिनियम-2013) की क्या अहमियत रह जाती है, सहज ही समझा जा सकता है। रेसलिंग फेडरेशन ऑफ इण्डिया भी इनमें शामिल है। वहाँ अब एक तदर्थ समिति बना दी गयी है। ऐसे में महिला खिलाड़ी न्याय की क्या उम्मीद कर सकती हैं।

यहाँ यह बताना ज़रूरी है कि खेल मंत्रालय के भरोसे और निगरानी समिति गठित करने के बाद पहलवानों ने फरवरी में धरना $खत्म कर दिया था। यही नहीं, इस दौरान बृजभूषण को महासंघ के अध्यक्ष पद की ज़िम्मेदारियों से अलग तक कर दिया गया। लेकिन समिति की रिपोर्ट नहीं आने और मसले को लटकता देख 23 अप्रैल को अंतरराष्ट्रीय पदक विजेता पहलवान बजरंग पुनिया, विनेश फोगाट, साक्षी मलिक और अन्य फिर दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरने पर बैठ गये। इस दौरान बारिश में भीगे बिस्तर की जगह खाट मँगवाने के मसले पर पुलिस से उनकी झड़प भी हुई। उनकी माँग है कि सरकार को तत्काल डब्ल्यूएफआई अध्यक्ष के ख़िलाफ़ की गयी जाँच को सार्वजनिक करना चाहिए। बता दें कि विनेश फोगाट ने एक बार यौन उत्पीडऩ के आरोपों की जाँच करने वाली निगरानी समिति के एक सदस्य पर मीडिया को संवेदनशील जानकारी लीक करने का आरोप लगाया था।

बिश्केक टूर्नामेंट

जंतर-मंतर पर पहलवानों के साथ जनवरी में धरने पर बैठे पाँच पहलवानों का बिश्केक टूर्नामेंट के लिए चयन किया गया है। इनमें टोक्यो ओलिंपिक रजत पदक विजेता रवि कुमार दहिया, टोक्यो ओलंपिक में पाँचवें स्थान पर रहने वाले दीपक पूनिया, एशियाई चैंपियन सरिता मोर ने 01 से 04 जून को बिश्केक (किर्गिस्तान) में होने वाले तीसरे रैंकिंग टूर्नामेंट में देश के लिए खेलने को तैयार हैं। भारतीय ओलंपिक संघ की तदर्थ समिति ने इन पहलवानों की प्रविष्टि भेजी है। यह पहलवान राष्ट्रीय शिविर में शामिल होंगे। यहाँ यह बता दें कि सरिता मोर को छोडक़र अन्य पहलवान इस बार जंतर-मंतर के धरने में शामिल नहीं हुए थे, भले उन्होंने उनका समर्थन किया था।