धार्मिक हिंसा में सुलगने लगा मणिपुर

शैलेंद्र कुमार ‘इंसान’

हिंसा की आग में मणिपुर जल रहा है। लगभग दो महीने से वहाँ हिंसा भडक़ी हुई है। इतनी बुरी तरह कभी यह पूर्वोत्तर राज्य नहीं जला। गाँव के गाँव उजड़ गये हैं। खेती, व्यवसाय ठप हो गये हैं। सम्पत्ति तथा पशुओं का भारी नुक़सान हुआ है। सरकारी आँकड़ों के अनुसार अब तक 120 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। 3,000 से अधिक लोग बेघर हो चुके हैं। वहीं स्थानीय जानकारियों के अनुसार, सैकड़ों लोग मारे गये हैं। बेघरों की गिनती भी कई गुना अधिक है। इस्तीफ़े की सियासत शुरू हो गयी है।

बर्बाद हो चुके घरों की संख्या भी कई सौ है। मणिपुर की मौज़ूदा सरकार की इससे बड़ी विफलता दूसरी नहीं हो सकती। विपक्षी पार्टियाँ मौज़ूदा भाजपा सरकार को बर्ख़ास्त करने की माँग कर रहे हैं। वहाँ के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह का इस्तीफ़ा माँग रहे हैं। ख़ुद वहाँ के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने हिंसा रोकने में अपनी विफलता स्वीकार करते हुए माफ़ी माँग ली है। दो मंत्रियों पर हमले हो चुके हैं। यह पहली बार है कि मणिपुर में इतनी भयानक हिंसा भडक़ी हुई है। यह भी पहली बार है कि मणिपुर धार्मिक हिंसा में जल रहा हो। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से लेकर कई बड़े केंद्रीय मंत्री मणिपुर हिंसा रोकने में नाकाम रहे हैं। हिंसा रोकने के लिए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को विपक्षी पार्टियों का आह्वान करना पड़ा। जिनके परिवार इस हिंसा का शिकार हुए हैं, वे सरकार से बचाव के लिए गुहार लगा रहे हैं। जो हिंसा पर उतरे हुए हैं, वे शान्त नहीं हो रहे हैं। हिंसा में उग्रवादी शामिल हो चुके हैं। प्रश्न यह है कि अब यह हिंसा रुकेगी कैसे?

आरक्षण को लेकर शुरू हुई यह हिंसा अब धार्मिक हिंसा में बदल गयी है। स्थानीय लोग सैन्य बलों तथा पुलिस का विरोध करने लगे हैं। विदित हो कि ये लड़ाई हिन्दू मैतई तथा ईसाई नगा, कुकी समुदायों के बीच भडक़ी है। अभी तक लगभग 200 चर्च और अधिकतर मंदिर नष्ट कर दिये हैं। जन साधारण को किसी भी प्रकार के हथियार रखने की मनाही है। वे सब्ज़ी काटने वाले चाकू, $फसल काटने वाली कुकरी, फावड़ा, जानवरों से रक्षा के लिए लाठी, डंडा आदि भी नहीं रख सकते। उनके पास समूह के रूप में हालात जानने तथा सैन्य, प्रशासन, पुलिस का निर्देश सुनने के लिए वॉकी-टॉकी हैं।

उग्रवादियों, उपद्रवियों के पास हथियार भी हैं तथा संख्या बल भी है। सुरक्षा बलों, पुलिस के विरोध में अब जनता भी उतर आयी है। कई जगहों पर स्थिति में सुधार के लिए चलाये जा रहे अभियानों को रोकना पड़ा है। 24 जून को सुरक्षाबलों ने 12 उग्रवादियों को पकड़ा था। परन्तु लगभग 1,500 महिलाओं ने सुरक्षा बलों को घेर लिया। अन्त में सुरक्षा बलों को गिरफ़्तार किये गये 12 उग्रवादियों को छोडऩा पड़ा। ये उग्रवादी समूह कांगलेई यावोल कन्ना लूप (केवाईकेएल) के थे। सुरक्षाबलों ने इन उग्रवादियों को गोला, बारूद तथा अन्य ख़तरनाक हथियारों के साथ पकड़ा था, परन्तु सैकड़ों की संख्या में एकजुट हुईं महिलाओं की भीड़ ने सुरक्षाबलों को घेर उग्रवादियों को छुड़वा दिया।

सुरक्षा बलों की शान्ति क़ायम करने के लिए सुरक्षा बलों तथा क़ानून की मदद करने की अपील पर भी महिलाएँ नहीं मानीं। घटना पूर्वी इंफाल ज़िले के इटहाम गाँव की है। 12 उग्रवादियों में 2015 में डोगरा की छठी बटालियन पर हमले का मास्टरमाइंड स्वघोषित लेफ्टिनेंट कर्नल मोइरंगथम तांबा उर्फ़ उत्तम भी था। केवाईकेएल एक प्रतिबंधित उग्रवादी संगठन है। ये हिन्दू मैतई समुदाय का उग्रवादी समूह है। हाल की हिंसा में कई जगह आगजनी, हत्याओं, लूट तथा चर्चों को नष्ट करने में इस उग्रवादी समूह का हाथ रहा है। दूसरी ओर मंदिरों को नष्ट करने, लूटपाट करने, आगजनी तथा हत्याएँ करने में कुकी तथा नगा उग्रवादी समूहों ने भी कम उपद्रव नहीं किया है। हिंसा की स्थिति यह है कि मंत्री, नेता, सुरक्षाबल, पुलिस तथा जनता में कोई सुरक्षित नहीं है। 24 जून को भीड़ ने राज्य सरकार के खाद्य मंत्री एल. सुसींद्रो मैतई का एक निजी गोदाम फूँक दिया। वहाँ खड़े वाहनों को भी आग लगा दी। हमलावर भीड़ ने मंत्री के आवास में घुसने तथा उसमें आग लगाने की कोशिश की। सुरक्षाबलों ने बड़ी मुश्किल से आँसू गैस के गोले दागकर भीड़ को भगाया। कहा जा रहा है कि खाद्य मंत्री मैतई ने कुछ दिन पहले अपने आवास के बाहर एक बड़ा बॉक्स लगाकर हिंसक लोगों से उसमें अपने हथियार जमा कर अहिंसा की अपील की थी। इसी से नाराज़ लोगों ने उनके आवास पर हमला किया।

24 जून को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दोबारा सर्वदलीय बैठक बुलायी। इस बैठक में गृह मंत्री ने बताया कि मणिपुर की स्थिति सँभालने के लिए 36,000 सुरक्षाकर्मी तथा 40 आईपीएस अधिकारी तैनात किये गये हैं। 20 मेडिकल टीमें घायलों के इलाज के लिए भेजी गयी हैं। गृह मंत्री ने कहा कि मणिपुर में हिंसा की शुरुआत से एक दिन भी ऐसा नहीं रहा, जब हालात को लेकर मैंने प्रधानमंत्री मोदी से बात नहीं की हो या फिर प्रधानमंत्री ने शान्ति के निर्देश न दिए हों। इस सर्वदलीय बैठक में भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा, केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी, नित्यानंद राय, अजय कुमार मिश्रा, केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला तथा भाजपा के मणिपुर प्रभारी संबित पात्रा शामिल हुए।

विपक्षी पार्टियों की ओर से मणिपुर के पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस नेता ओकराम इबोबी सिंह, तृणमूल कांग्रेस के नेता डेरेक ओ ब्रायन, मेघालय के मुख्यमंत्री एवं एनपीपी के नेता कोनराड संगमा, शिवसेना (यूबीटी) की नेता प्रियंका चतुर्वेदी, अन्नाद्रमुक नेता एम. थंबीदुरई, द्रमुक नेता तिरुचि शिवा, बीजद नेता पिनाकी मिश्रा, आम आदमी पार्टी नेता संजय सिंह, राजद नेता मनोज झा तथा ख़ुफ़िया ब्यूरो के निदेशक तपन डेका शामिल हुए। बैठक में विपक्षी पार्टियों ने प्रदेश में सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भेजने की सलाह दी। हालाँकि सरकार ने इस पर कोई प्रतिबद्धता नहीं जतायी। कई विपक्षी पार्टियों ने मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह को हटाने की माँग की, तो कुछ विपक्षी पार्टियों ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की माँग की। वहीं केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि सरकार स्थिति सामान्य करने का पूरा प्रयास कर रही है। इस पर कांग्रेस ने इस बैठक को औपचारिकता करार दिया। कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि केंद्र सरकार को प्रदेश में शान्ति बहाली के लिए गम्भीर पहल करनी चाहिए। मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह का तत्काल इस्तीफ़ा लेना चाहिए तथा प्रधानमंत्री को भी हिंसा पर चुप्पी तोडऩी चाहिए।

कांग्रेस नेता तथा मणिपुर के पूर्व मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह ने कहा कि बीरेन सिंह के मुख्यमंत्री रहते राज्य में शान्ति सम्भव नहीं है। उन्होंने केंद्र सरकार पर बैठक में बोलने के लिए अधिक समय न दिये जाने का आरोप भी लगाया। तृणमूल कांग्रेस ने प्रश्न किया कि क्या केंद्र सरकार मणिपुर को कश्मीर में बदलने की कोशिश कर रही है? राजद ने कहा कि मणिपुर की जनता को वहाँ के मुख्यमंत्री पर विश्वास नहीं रहा। शिवसेना (यूबीटी) ने भी यही कहा। शिवसेना (यूटीबी) ने कहा कि ख़ुद विदेश राज्य मंत्री राजकुमार रंजन सिंह राज्य में क़ानून-व्यवस्था चरमराने की बात स्वीकार कर चुके हैं। शिवसेना ने सवाल किया कि जवाबदेही की शुरुआत कहाँ से होगी? विदित हो कि मणिपुर की कुल जनसंख्या लगभग 38 लाख है। वहाँ के तीन प्रमुख समुदाय ही मैतई, नगा तथा कुकी हैं। मैतई हिन्दू हैं। वहीं नगा तथा कुकी ईसाई हैं। नगा तथा कुकी लगभग 50 प्रतिशत हैं। 90 प्रतिशत क्षेत्र में ये लोग रहते हैं। 10 प्रतिशत में मैतई समुदाय के लोग हैं। मैतई समुदाय अनुसूचित जनजाति का दर्जा चाहता है। अभी तक ये दर्जा कुकी तथा नगा समुदाय को मिला हुआ है। मैतई समुदाय ने मणिपुर हाई कोर्ट में याचिका लगायी कि सन् 1949 में मणिपुर का भारत में विलय हुआ, उससे पहले उन्हें अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिला हुआ था। अत: उन्हें दोबारा अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया जाए।

इसके बाद मणिपुर हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से इस मुद्दे पर विचार करने की सिफ़ारिश की। कुकी तथा नगा समुदाय ने इसके विरोध में जनजाति एकता रैली निकाली, जिस पर हमला हो गया। यहीं से हिंसा भडक़ी। यह 3 मई का मामला है। तबसे लगातार मणिपुर हिंसा की आग में जल रहा है। आरक्षण को लेकर शुरू हुई हिंसा अब धार्मिक हिंसा में बदल चुकी है। इसलिए इस हिंसा को शान्त करना आसान नहीं लग रहा है। इस हिंसा को शान्त करने के लिए क्या करना चाहिए, यह सरकार की समझ में नहीं आ रहा है।

मणिपुर हिंसा के बाद भी इस पर चुप रहने, चुनावी सभाएँ करने तथा विदेश यात्राओं पर जाने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्णय पर प्रश्न उठ रहे हैं। इतने पर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुप हैं। भाजपा का मणिपुर नेतृत्व, केंद्रीय नेतृत्व, असम नेतृत्व, उत्तराखण्ड नेतृत्व सब हिंसा की आग बुझाने में विफल साबित हुए हैं।

आशंका जतायी जा रही है कि मणिपुर में भडक़ी हिंसा दूसरे राज्यों में न फैल जाए। विपक्षी पार्टियाँ इसे भाजपा नेतृत्व की सबसे बड़ी विफलता मान रहे हैं तथा कह रहे हैं कि भाजपा सरकारें केवल लोगों को लड़ाना जानती हैं, शान्ति से शासन करना नहीं। हिंसा कराना भाजपा का पुराना इतिहास रहा है। इसमें कोई मतभेद नहीं कि मणिपुर हिंसा के शान्त होने तक केंद्र सरकार के असफल प्रयासों पर प्रश्न उठते रहेंगे। कहना पड़ेगा कि उसे इसके लिए उत्तरदायी होना भी चाहिए। निंदनीय यह है कि प्रधानमंत्री ने मणिपुर कुछ नहीं बोला। वह अमेरिका दौरे से लौटने के बाद मणिपुर की जगह चुनावी हित साधने मध्य प्रदेश चले गये। अमेरिका दौरे से पहले उन्होंने शान्ति दल को भी मिलने का समय नहीं दिया। राहुल गाँधी ने मणिपुर जाने की कोशिश की, तो उन्हें जाने नहीं दिया। हालाँकि वह मणिपुर गये और वहाँ के लोगों से मिले। राज्यपाल से भी मिले।