देश में विकास के लिए हो मज़बूत पहल

डॉ. राम प्रताप सिंह

पिछले कुछ वर्षों से भारत समेत पूरे विश्व में सतत् विकास लक्ष्यों के बारे में लगातार बातें हो रही हैं। सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों की समयावधि (2000-2015) पूरी होने के बाद संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 15 वर्षों के लिए सतत् विकास लक्ष्य तय किये थे। इन लक्ष्यों को वैश्विक लक्ष्यों के तौर पर भी जाना जाता है। इसमें 17 लक्ष्य और 169 उपलक्ष्य शामिल हैं, जिन्हें 2030 की अवधि तक हासिल करना है, जो 2016 से लक्षित हैं।

संयुक्त राष्ट्र महासभा की एक महत्त्वपूर्ण बैठक में भारत समेत 193 देशों ने इसे अपनाया था और यह एजेंडा 01 जनवरी, 2016 से प्रभावी है। ग़रीबी तथा भुखमरी को समाप्त करने, बेहतर स्वास्थ्य, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, लैंगिक समानता, स्वच्छ पर्यावरण तथा सबके लिए शान्ति एवंसमृद्ध जीवन सुनिश्चित करने के लिए वैश्विक कार्यवाही का आह्वान करता है। आज इन वैश्विक लक्ष्यों को प्रभाव में आये सात वर्ष से भी अधिक का समय हो चुका है और दुनिया के बहुत सारे देशों, ख़ासकर, विकासशील तथा निम्न आय वर्ग वाले देशों का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक है।

दुनिया के विभिन्न हिस्सों में चल रहे सैन्य युद्ध, आंतरिक संघर्ष, ग़रीबी, खाद्य संकट, जलवायु परिवर्तन तथा राष्ट्रों के समावेशी नीतियों के अभाव के कारण इन लक्ष्यों को प्राप्त करने में लगातार मुश्किलें आ रही हैं। कोरोना महामारी ने इन वैश्विक लक्ष्यों की प्रगति में बड़ी बाधा उत्पन्न की है, जिससे उबरने में कई देशों को अब अतिरिक्त समय लगेगा।

क्या कहती है वैश्विक रिपोर्ट?

पिछले वर्ष जारी वैश्विक सतत् विकास रिपोर्ट-2022 के अनुसार, 163 देशों की सूची में भारत 121वें स्थान पर है। ध्यातव्य रहे कि वर्ष 2021 में इसकी रैंकिंग 120 थी और 2020 में यह 117वें पायदान पर था। यह वार्षिक रिपोर्ट किसी भी देश में एक वर्ष के अंदर विकास लक्ष्यों में हुई प्रगति का मूल्यांकन करता है। वर्ष 2022 का यह रिपोर्ट बताता है कि भारत वैश्विक सतत् विकास के लक्ष्यों को हासिल करने में अच्छी स्थिति में नहीं है।

पिछली कुछ रिपोट्र्स से यह स्पष्ट है कि भारत इन लक्ष्यों को प्राप्त करने में कठिनाइयों का सामना कर रहा है। 17 सतत् विकास लक्ष्यों में भूख समाप्ति, उत्तम स्वास्थ्य और जीवन स्तर, लैंगिक समानता, स्वच्छ पानी और स्वच्छता, उत्कृष्ट कार्य और आर्थिक वृद्धि, उद्योग, नवाचार और बुनियादी ढाँचे का विकास, संवहनीय शहर और समुदाय, जलीय जीवों की सुरक्षा, थलीय जीवों की सुरक्षा, शान्ति, न्याय और सशक्त संस्थाएँ तथा लक्ष्यों के लिए भागीदारी जैसे 11 ऐसे लक्ष्य हैं, जिन्हें हासिल करने में देश बड़ी चुनौतियों का सामना कर रहा है और इनसे वैश्विक रैंकिंग में गिरावट आ रही है। लक्ष्य 12 और 13, जो कि क्रमश: ज़िम्मेदारी के साथ उपभोग और उत्पादन तथा जलवायु कार्यवाही से सम्बन्धित है।

इस रिपोर्ट के अनुसार देश इसको प्राप्त करने की राह पर है। ग़रीबी की समाप्ति, किफ़ायती और स्वच्छ ऊर्जा तथा असमानताओं में कमी। ये तीन ऐसे लक्ष्य हैं, जिनको देश को प्राप्त करने में महत्त्वपूर्ण चुनौतियों को झेलना पड़ रहा है। वहीं बात अगर गुणवत्तापरक शिक्षा (लक्ष्य-4) की करें, तो सुधार के बावजूद यह एक चुनौतीपूर्ण लक्ष्य देश के समक्ष बना हुआ है।

समावेशी विकास की ज़रूरत

देश में बिहार, झारखण्ड, उत्तर प्रदेश, असम, राजस्थान, अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्यों पर विशेष ध्यान देने की ज़रूरत है। ये वो राज्य हैं, जिनका प्रदर्शन नीति आयोग द्वारा जारी सतत् विकास लक्ष्य (एसडीजी) इंडिया इंडेक्स और डैशबोर्ड के रैंकिंग्स में बेहद ही ख़राब रहा है। बिहार तथा उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्यों में ग़रीबी तथा बेरोज़गारी को ख़त्म करने, शिक्षा और स्वास्थ्य को बेहतर करने, उद्योग, नवाचार और बुनियादी ढाँचे के विकास करने, सभी के लिए न्याय तक पहुँच सुनिश्चित करना तथा लैंगिक भेदभाव को मिटाने के लिए विशेष कार्य करने होंगे।

इन राज्यों में युवा पीढ़ी ज़रूरी स्किल्स की कमी से जूझ रही हैं, ऐसे में इनका अलग-अलग क्षेत्रों में स्किल्स डेवलप करना बेहद आवश्यक है। पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों को भी विकास के विभिन्न क्षेत्रों में ठोस कार्य करने होंगे। देश के कई राज्यों में न्याय के क्षेत्र में बेहतर करने की ज़रूरत है। हालाँकि नीति आयोग द्वारा जारी एसडीजी इंडिया इंडेक्स रैंकिंग्स राष्ट्रीय प्राथमिकताओं से जुड़े हैं; लेकिन इन्हें बनाने के पीछे एजेंडा 2030 के तहत वैश्विक सतत् विकास लक्ष्यों की प्राप्ति में देश के प्रदर्शन के स्तर को बेहतर करना है। राज्य सरकारों को समावेशी विकास पर ध्यान देना चाहिए, ताकि विकास की प्रक्रिया में हर कोई भागीदारी कर सकें और ख़ुद को सशक्त बना सकें।

मणिपाल यूनिवर्सिटी जयपुर, राजस्थान के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग की प्रमुख डॉ. वैशाली कपूर का कहना है कि ‘वैश्विक स्तर पर भारत के सतत् विकास लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए लगातार किये जाने वाले संघर्ष को सराहा जा रहा है। कोरोना महामारी ने विकासशील तथा निम्न आय वर्ग वाले देशों के समक्ष सतत् विकास लक्ष्यों की प्राप्ति में नयी मुश्किलें पैदा कर दी हैं, जिनके चलते वे अभी भी संघर्ष कर रहे हैं।

भारत जैसे बड़े तथा विकासशील देश को सभी लक्ष्यों में बेहतर करने के लिए आगे ठोस $कदम उठाने होंगे। हमें मीडिया के अलग-अलग माध्यमों का प्रयोग करके स्वास्थ्य, शिक्षा, पर्यावरण संरक्षण तथा लैंगिक असमानता जैसे प्रमुख मुद्दों पर समाज के हर वर्ग को जागरूककरना होगा। यह समझना बेहद ज़रूरी है कि इन वैश्विक लक्ष्यों में देश आगे तभी बेहतर प्रदर्शन करेगा, जब विकास के विभिन्न क्षेत्रों में सभी सरकारी संस्थाएँ, निजी संस्थाएँ, तथा ग़ैर-सरकारी संगठन लक्ष्य प्राप्ति की दिशा में सुनियोजित ढंग से लगातार अच्छा कार्य करेंगे।’

आबादी बढ़ाएगी समस्याएँ

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की नयी रिपोर्ट के अनुसार, भारत की आबादी 142.86 करोड़ हो गयी है, जो कि दुनिया की कुल आबादी का लगभग 18 प्रतिशत है। चीन को पीछे छोड़ते हुए भारत जनसंख्या के आधार पर दुनिया का अब सबसे बड़ा देश बन गया है। बढ़ती आबादी की वजह से स्वास्थ्य, शिक्षा एवं आवास जैसी सुविधाओं का ख़याल रखना होगा तथा खाद्य सुरक्षा पर विशेष ध्यान देना होगा। ग़रीबी तथा बेरोज़गारी जैसे मुद्दे बढ़ती आबादी के साथ और विकराल होंगे। जनसंख्या बढऩे से प्राकृतिक संसाधनों पर भी अतिरिक्त दबाव बढ़ेगा, जिससे पर्यावरण को स्वच्छ रखने में काफ़ी मशक़्क़त करनी पड़ेगी। देश पहले ही कई समस्याओं से जूझ रहा है और बढ़ती जनसंख्या विकास के विभिन्न क्षेत्रों में बेहतर प्रदर्शन को काफ़ी मुश्किल बना देंगी। वैश्विक सतत् विकास रिपोर्ट-2022 के आँकड़ों को ध्यान से देखने पर हमें पता चलता है कि आबादी के मामलों में विश्व के 10 सबसे बड़े देशों में से एक भी देश टॉप-40 में शामिल नहीं है। अमेरिका इस सूची में 41वें स्थान पर है। धीरे-धीरे ही सही दुनिया के बाक़ी देशों को भी अब यह बात समझ में आ रही है कि गुणवत्तापूर्ण मानव जीवन स्तर को बनाये रखने में बढ़ती आबादी बहुत बड़ी बाधा है।

विश्व की पाँचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था होते हुए भी वैश्विक स्तर की ज़्यादातर रैंकिंग्स में हमारा प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा है। वैश्विक सतत् विकास रिपोर्ट के अलावा, मानव विकास सूचकांक, वैश्विक भुखमरी सूचकांक तथा वैश्विक लैंगिक अंतराल सूचकांक के पिछली रिपोट्र्स हमें यह बताती हैं कि कुछ क्षेत्रों में सुधार के बावजूद इनमें भारत का प्रदर्शन काफ़ी निराशाजनक रहा है। इसमें कोई दो-राय नहीं कि स्वतंत्रता प्राप्ति से लेकर अब तक हमने विकास के विभिन्न क्षेत्रों में अभूतपूर्व प्रगति की है और विश्व समुदाय द्वारा कई मंचों पर इसकी प्रशंसा भी की गयी है। लेकिन कुछ क्षेत्रों में हमें बेहतर रणनीति और सुनियोजित योजना के तहत अच्छा करने की ज़रूरत है।

आने वाले समय में हमें विकास से सम्बन्धित ग्रामीण भारत की विभिन्न समस्याओं पर विशेष ध्यान देने चाहिए, क्योंकि देश की बड़ी आबादी आज भी गाँवों में ही बसती है। सरकारी योजनाओं का लाभ सम्बन्धित व्यक्ति तक समय से पहुँचाना तथा भ्रष्टाचार पर नियंत्रण रखना, ग्रामीण क्षेत्रों की ये बड़ी चुनौतियाँ हैं, जिन पर गंभीरता से कार्य किया जाना चाहिए। हमें यह स्पष्ट रूप से समझना चाहिए कि ग्रामीण भारत के समग्र विकास से ही देश आगे बढ़ेगा तथा सभी वैश्विक रैंकिंग्स में बेहतर प्रदर्शन करेगा।

(लेखक एक निजी विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं।)