दिल्ली को गैस चैंबर नहीं बनने देना है

राजधानी दिल्ली की इन दिनों खासी चर्चा है। खासकर यहाँ की आबोहवा में धुंध और प्रदूषण खासा है। यूँ तो अक्टूबर से जनवरी के मध्य तक हर साल यह हाल रहता है, लेकिन इस बार प्रदूषण खासा बढ़ गया था। इस पर सियासत भी खूब हुई, क्योंकि एक तो दिल्ली में चुनाव के दिन करीब हैं। दूसरे सारी दुनिया में इस बात पर चर्चा छिड़ गयी कि बड़ी आबादी के देश की राजधानी में इतना प्रदूषण है कि साँस ले पाना भी दूभर है।

इसकी एक वजह यह भी रही कि दिल्ली में छाई धुंध और प्रदूषण का फैलाव पूरे उत्तर भारत में रहा। लखनऊ में तो राजभवन 200 मीटर की दूरी पर भी नज़र नहीं आता था। यही हाल चंडीगढ़ में रहा। उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा के अनेक शहरों में इस धुंध-कोहरे का प्रकोप रहा। बच्चों, बूढ़ों के बीमार होने और मौतों की तादाद बढऩे की खबरें आने लगीं।

हर साल दीपावली की रात के बाद तीन-चार दिन तक धुंध में पटाखों का प्रदूषण दूसरी वजहों से होता ही है, जो प्रदूषण को और बढ़ा देता है। लेकिन इस साल पहले से ही धुंध के साथ प्रदूषण था। इसमें पटाखों के प्रदूषण के बढ़ जाने से परेशानी भी खासी बढ़ गयी। इस परेशानी में उबाल तब और आया जब जर्मनी की चांसलर डॉ. एंजेला मार्केल भारतीय उद्योगों के समूह के न्यौते पर दो नवंबर को अपनी दो दिन की यात्रा पर भारत आईं।

जर्मन चांसलर ने दिल्ली की आबोहवा में प्रदूषण की वह गन्ध महसूस की जो जानलेवा थी। इंडो-जर्मन उद्योग समूह के प्रतिनिधियों के बीच मानेसर में बोलते हुए उन्होंने गले में हल्की खराश महसूस की। उनसे रहा नहीं गया, उन्होंने भारतीय राजधानी में छाई धुंध में प्रदूषण और उसके भयावह असर पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि चेन्नई में जर्मन सहयोग से इलेक्ट्रिक बसें चल रही हैं। वहाँ अब इतना ज़्यादा प्रदूषण नहीं है। जर्मन चांसलर ने कहा कि यहाँ और विकासशील भारत के विभिन्न शहरों में विकास के कारण जो धुंध और प्रदूषण बढ़ रहा है, उस पर काबू पाने में जर्मनी, भारत को सहयोग दे सकता है। उन्होंने भरोसा दिया कि जर्मनी इस काम में भारत को पाँच साल में एक अरब यूरो डॉलर का सहयोग दे सकता है।

यह कहना कठिन है कि जर्मनी से सहयोग का यह भरोसा क्या भारतीय राजनीतिकों को लुभा गया क्या धुंध और प्रदूषण पर एक विदेशी महिला नेता की लताड़ का उन पर असर हुआ। केंद्रीय मंत्री, पंजाब के मुख्यमंत्री दिल्ली में भाजपा नेता सभी ने दिल्ली में राज कर रही आप सरकार पर धावा बोल दिया। आप ने भी मौका नहीं गँवाया। कहा, केंद्रीय प्रदूषण मंत्री ने उत्तरी भारत के विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक तीन बार बुलाई ज़रूर। लेकिन बाद में बैठक कैंसिल कर दी। दिल्ली के लोग प्रदूषण नहीं फैलाते। पंजाब और हरियाणा के किसान खेतों में जो पराली जलाते हैं। उससे हर साल दिल्ली प्रभावित होती है। वहां के किसानों को मशीनें और मुआवज़ देने की बात तय हुई थी, वह क्यों पूरी नहीं हुई।

केंद्रीय पर्यावरण मंत्री ने दिल्ली के मुख्यमंत्री पर आरोप लगाया कि उन्होंने विज्ञापनों पर  1500 करोड़ रु पये खर्च कर दिए। उन्हें यह धन वातावरण को दुरु स्त करने पर खर्च करना था। पंजाब के मुक्तसर और बरनाला में धुंध और प्रदूषण के चलते सडक़ दुर्घटनाओं में सात लोगों  की जान गई। पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने इन घटनाओं पर अफसोस जताते हुए कहा कि खेतों में आग लगाने के लिए किसान को दोष नहीं देना चाहिए। इसके लिए केंद्र सरकार को सभी उत्तरी राज्यों के साथ बात करनी चाहिए।

उधर दिल्ली सरकार ने ‘ऑड-ईवन’ की अपनी पुरानी नीति चार से पन्द्रह नवंबर के लिए लागू की। इसका विरोध किया भाजपा नेता विजय गोयल ने। विरोध में वे डीज़ल कार से अपनी कोठी से निकले। उनका कहना था कि आप सरकार ने पाँच साल में दिल्ली का प्रदूषण रोकने के लिए कुछ नहीं किया। इस कारण वे सांकेतिक विरोध कर रहे हैं। इस पर आप के राज्यसभा सांसद संजय ङ्क्षसह ने कहा कि गोयल साहब वायु प्रदूषण के समर्थक हैं। भाजपा की यही सोच रही है इसलिए वे ऑड-ईवन स्कीम का विरोध कर रहे हैं। कांगे्रस नेता अजय माकन ने कहा, मैं केजरीवाल का विरोध ज़रूर करता हूं। लेकिन मैं कतई वायू प्रदूषण बढ़ाने में सहयोग नहीं करूँगा। नई दिल्ली में एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (रेडी) के 15 दिन के धुंध-प्रदूषण पर अपनी खोज रिपोर्ट में कहा है कि इस प्रदूषण की वजह विभिन्न उत्तरी राज्यों में किसानों को पराली जलाना ही नहीं है। बल्कि इसके अलावा मौसमी बदलाव है और शहरों के बढ़ते वाहन हैं। खेतों में आग लगाने के कारण फैली चिनगारियों और धुंध पूरे परिवेश में खासकर अक्टूबर की 26 से 30 अक्टूबर के दौरान फैला। इसे हवा से फैलने में सहयोग मिला जिसका खासा असर दिल्ली पर पड़ा। टेरी की रिपोट में बताया गया है कि पराली जलाने से वातावरण में प्रदूषण की मात्रा महज़ चार फीसद होती है। सर्दियों में यह बढक़र 40 फीसद हो जाती है, क्योंकि विभिन्न राज्यों में किसान खेतों में पराली जलाने लगते हैं। इस कारण प्रदूषण का स्तर बहुत ऊँचा हो जाता है। यह बढक़र 2.5 पीएम होता है, जो 300 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर होता है। कई जगह पाया गया कि दिन में भी लगभग प्रति घंटे यह स्तर 2.5 पीएम रहा। यह प्रदूषण से कठिन समय की ओर इशारा था। इस तरह के लेखे जोखे से यह बात साफ हुई कि कार्बन डाइऑक्साइड भी कई स्तरों पर गहराई है। यानी पराली कूड़ा आदि जलाने के कारण यह संकेत आया कि प्रदूषण की मात्रा और घनी हो रही है।

दिल्ली देश की राजधानी है, इसलिए यहाँ  मेट्रो के व्यापक संचालन के बावजूद आटोमोबाइल वाहन ज़्यादा हैं। इनमें व्यावासायिक वाहन, व्यावसायिक कारें, बसें, तिपहिये, भारी वाहन, दोपहिया वाहनों की तादाद अच्छी खासी है। इसके अलावा यहाँ उद्योग, बिजली, आवासीय ढाँचे, धूल वगैरह से हवा चलने पर वायु प्रदूषण बढ़ता है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेटिओटोलॉजी (आई.आई.टी.एम.)  पुणे की रिपोर्ट बताती है कि न केवल राजधानी दिली, बल्कि पूरे एनसीआर में 2010 की तुलना में 2018 में विभिन्न तरह की गाडिय़ों का आवागमन बढ़ा है। प्रदूषण का स्तर आज दिल्ली में पीएम2.5 है। जबकि यह 2010 में जहाँ 25.4 फीसद था, वह 2018 में 41 फीसद हो गया। इसी तरह एनसीआर में जहाँ यह स्तर 32.1 फीसद था, वह 2018 में बढक़र 39.1 हो गया। राजधानी में गाडिय़ाँ की आवाजाही में लगातार बढ़ोतरी हुई है, जबकि यह उम्मीद थी कि दिल्ली मेट्रो के परिचालन से यह तादाद कम होगी।

केंद्र के पर्यावरण मंत्रालय ने एक रिपोर्ट पिछले साल जारी की थी, जिसमें अलग-अलग गाडिय़ों की किलोमीटर यात्रा (वी.के.टी.) का जायज़ा लिया गया था। इसमें पाया गया कि तमाम व्यावसायिक चार पहिया वाहनों में सबसे ज़्यादा प्रदूषण अनेक कंपनियों की कैब आदि से दिल्ली में होता है। इनमें हर कार एक साल में एक लाख पैंतालीस हज़ार किमी की यात्रा करती है।

दिल्ली और इसके आसपास औद्योगिक बस्तियाँ हैं। हरियाली जो कभी सघन थी, वह अब कहीं कम हो गई है। ऐसे में इन औद्योगिक इलाकों से होने वाले प्रदूषण को नियंत्रित करना बहुत ज़रूरी है। दिल्ली में पिछले साल तक 18.6 फीसद प्रदूषण था, जबकि एनसीआर में यह 22.3 फीसद है। इसी तरह भवन निर्माण, सडक़ निर्माण वगैरह भी वायु प्रदूषण में बढ़ोतरी की वजहें हैं।

प्रधानमंत्री आवास पर छोटे बच्चों के माता-पिता ने रैली-प्रदर्शन कर वायु प्रदूषण से बच्चों को बचाने की अपील की। उधर केंद्र सरकार अब दैनिक आधार पर दिल्ली और एनसीआर में प्रदूषण स्तर की जाँच-पड़ताल करेगी। प्रधानमंत्री कार्यालय में कैबिनेट सचिव राजीव गाबा इसके मुखिया बनाये गये हैं। केंद्र सरकार ने दिल्ली के सभी पड़ोसी राज्यों को सलाह दी है कि वे खेतों में आग लगाए जाने की घटनाएँ रोकें। साथ ही धूल को उडऩे से रोकें, जिससे हालात बेहतर हों।

दिल्ली और उत्तरी राज्यों में वायु प्रदूषण की बद्तर स्थिति पर सुप्रीम कोर्ट ने भी संज्ञान लिया। ऑड-ईवन की दिल्ली सरकार की नीति पर सवालिया निशान लगाते हुए कि यदि कामकाजी लोगों ने दुपहिया-तिपहिया वाहनों का इस्तेमाल शुरू किया तो इस नीति का क्या लाभ? पंद्रह दिन बाद आई रिपोर्ट पर अदालत फिर विचार करेगी। अदालत ने सलाह दी कि कई लोग आपस में कार शेयर करें। बसों की तादाद बढ़ाई जाए।

वायु प्रदूषण रोकने के लिए ज़रूरी है कि किसानों को सज़ा देने की बजाय उन्हें सस्ती दर पर या किराये पर मशीनों का इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित किया जाए। ज़रूरी है कि केंद्र, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली की सरकारें मिलकर यह मसला सुलझाएँ।