ज़हरीली हवा की मार आधा भारत हो रहा बीमार

किसानों को कृषि मंत्रालय से नहीं कोई लाभ   अस्पतालों में बढ़ रहे श्वसन रोगों के मरीज़ मास्क बेचने वाले जमकर काट रहे चाँदी   सरकारें चला रहीं सियासी तर्कों से काम

दरवाज़ें बंद करते हैं तो दम घुटता है

और दरवाज़ें खोलें तो ज़हरीली हवाएँ आती हैं

रास्तों पर उड़ती है धूल, उठता है धुआँ

दिल्ली का यूँ भी घुट रहा है दम

और यूँ भी घुट रहा है दम…

इस बार दीपावली से लेकर 3 नवंबर तक देश की राजधानी दिल्ली समेत एनसीआर के मुख्य शहर गुरुग्राम, फरीदाबाद, बल्लभगढ़, नोएडा और गाजियाबाद धुंध से बुरी तरह ढके रहे। यूँ तो इस वायु प्रदूषण से पूरे उत्तर भारत यानी आधे भारत को चपेट में ले लिया; लेकिन दिल्ली में धुएँ से सप्ताह-भर तक हुई घुटन चर्चा और सियासी बहस को हवा दे गयी। दीवाली पर फोड़े गये पटाखों से लेकर हरियाणा और पंजाब में किसानों द्वारा जलायी जा रही पराली से उठने वाले धुएँ पर होने वाली इस सियासत के बीच ही दिल्ली सरकार ने ऑड-ईवन लागू कर दिया। हालाँकि ऑड-ईवन से दिल्ली को काफ़ी राहत मिली और यह पहला साल नहीं है कि ऑड-ईवन लागू किया गया; लेकिन भाजपा नेताओं ने हर साल की तरह इसका जमकर विरोध किया और कहा कि केजरीवाल ने फायदे के लिए यह सब किया है। अब दिल्ली में भले ही प्रदूषण को समाप्त करने के लिए कार्यवाही के तौर पर गली-मोहल्लों में खुले छोटे-छोटे तंदूरों को नष्ट किया जा रहा है। लेकिन वायु प्रदूषण की कई और भी वजहें हैं, जिनकी ओर ध्यान दिया जाना अति आवश्यक है।

अगर हम दिल्ली की बात करें तो यहाँ वायु प्रदूषण के कुछ ऐसे कारक हैं, जो पूरे साल प्रदूषण को बढ़ावा देते हैं और इस पर न तो केंद्र सरकार कुछ कहने को तैयार है, न ही एनसीटी कोई कार्यवाही कर रहा है और दिल्ली सरकार थोड़ा-सा काम कर भी रही है, तो उस पर सियासत उससे बढक़र हो रही है। हालाँकि, वायु प्रदूषण के मूल मुद्दों पर दिल्ली सरकार भी धरातल पर आकर काम नहीं कर रही है और नतीज़ा प्रदूषण हर साल इन दिनों में भयंकर खाँसी, दमा, जुकाम और अन्य श्वसन बीमारियों की आपात स्थितियाँ पैदा कर जाता है, जिसके शिकार बच्चे, बूढ़े, युवा सब बराबर हो रहे हैं। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण को लेकर राज्य और केंद्र सरकारों पर कड़ी फटकार लगायी थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि लोग प्रदूषण की चपेट में आने से मर रहे हैं; घर में भी सुरक्षित नहीं हैं। जि़म्मेदारों की दिलचस्पी सिफऱ् तिकड़मबाज़ी में है। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि इस मामले में तुरन्त ठोस कदम उठाए जाएँ, ताकि ज़हरीली हवा को रोका जा सके। बढ़ते प्रदूषण से निपटने के लिए पीएमओ ने भी राज्य सरकारों के आला अधिकारियों से बातचीत की है।

यहाँ दुष्यंत कुमार की गज़ल का एक शे’र याद आ रहा है- ‘हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए, इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।’ कहने का तात्पर्य सिर्फ इतना है कि पीड़ा पर्वत की तरह बढ़ गई है और उसके घटाने के लिए काम कोई भी करे, पर काम तो होना ही चाहिए; आम लोगों को राहत मिलनी ही चाहिए। मगर दिल्ली में काम क्या और कितना हो रहा है। दिल्ली-एनसीआर में इस बात की पड़ताल करते हुए ‘तहलका’ संवाददाता ने स्थानीय लोगों, विशेषज्ञों और नेताओं से बातचीत की। बातचीत के दौरान लोगों ने बताया कि सरकारें दावे और वादे तो करती हैं, मगर ज़मीन पर रहकर काम नहीं करना चाहतीं। दिल्ली में हर साल अक्टूबर महीने से ही ज़हरीली हवाएँ बहने लगती हैं और नेता सिर्फ एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करते रहते हैं, बहस करते हैं। कुछ चैनल्स इसको और हवा देते हैं; परन्तु हकीकत में सही तरीके से कोई भी काम करना नहीं चाहता। जब ज़हरीली हवाएँ दिल्ली की फज़ा को पूरी तरह दूषित करने लगती हैं, तब समाधान की जगह सियासी तबकों में एक-दूसरे पर आरोपबाज़ी होती है। क्योंकि सरकारें जन-सरोकारों पर तब ध्यान देती हैं, जब मुसीबत जनता और खुद सरकार पर आ पड़ती है। फिर लम्बे समय तक नाटकबाज़ी होती है। जब खुद-व-खुद मौसम के बदलने से धुआँ कम होने से वायु प्रदूषण का प्रकोप रुक जाता है, तब सरकारें कहती हैं कि उनके अथक प्रयास से प्रदूषण कम हुआ है। पर ऐसा होता नहीं है। दिल्ली के लोगों का कहना है कि जब प्रदूषण लोगों को बुरी तरह से बीमार करने लगता है, तब दिल्ली सरकार केंद्र, हरियाणा और पंजाब सरकारों पर दोष देती है। केंद्र सरकार को तो जैसे लोगों के स्वास्थ्य और जीवन से मतलब भी नहीं रह गया हो। दोनों ओर से बहसें होती हैं। ऐसे में पिसते तो लोग ही हैं। वहीं नोएडा के किसानों का कहना है कि केंद्र और राज्य सरकारों के जो कृषि मंत्रालय हैं, वो सिर्फ नाम मात्र के हैं। कभी भी इन मंत्रालयों से कोई अधिकारी या नेता किसानों की समस्याओं और तकलीफों को जानने-समझने तक नहीं आया कि किसान किस हालत में किसानी कर रहे हैं। जब वायु प्रदूषण अपना कहर दिखाता है, तो सरकारें किसानों पर पराली जलाने का आरोप लगाकर सारा दोष उनके सिर मढ़ देती हैं; जबकि सच्चाई यह नहीं है।

छोटे किसान कभी नहीं जलाते पराली

किसान गोबिन्द दास ने बताया कि बड़े किसान, जो किसानी को पैसे के दम पर कंबाइंड हार्वेस्टर नामक बड़ी मशीन से फसलों को कटवाते हैं। यह मशीन फसल की बालियों को ही काटती है और बाक़ी अवशेष यानी पराली खेतों में ही छोड़ देती है, जिसे बड़े किसान जलाते हैं और बदनाम सभी किसान होते हैं। उन्होंने कहा कि छोटे किसान ते आज भी हाथ से फ़सलों की जड़ से कटाई करते हैं और उन्हें पराली जलाने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती। वे तो उसे अपने जानवरों के लिए चारे के रूप में इस्तेमाल करते हैं।

किसान कृष्णपाल का कहना है कि आज भी ज़्यादातर किसान ट्रैक्टर और बैलों से खेतों में जाकर काम करते हैं। फसल काटते समय ही पराली भी काट लेते हैं और उसी का चारा और भूसा बनाते हैं, जो पशुओं के खाने के काम आता है। ऐसे में उन किसानों की पराली जलाए जाने नौबत तक नहीं आती है। ऐसे में सरकारों को तथ्यों को समझना होगा। अन्यथा वायु प्रदूषण इसी तरह लोगों का स्वास्थ्य बिगाड़ता रहेगा।

दिल्ली में भी जलता है कूड़ा

अब बात करते हैं दिल्ली की, जहाँ पर वायु प्रदूषण के कारण आपातकाल जैसे हालात हैं; जिसके चलते दिल्ली के स्कूलों को बंद करना पड़ा, अस्पतालों में मरीज़ों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है। सबसे ज़्यादा तकलीफ श्वसन रोगियों को हो रही है। दिल्ली सरकार को स्कूलों और सरकारी विभागों में मास्क बाँटने पड़े।

अगर दिल्ली की बात करें, तो यहाँ भी कूड़ा जलता है। दिल्ली में एमसीडी और एनडीएमसी के कई ऐसे इलाके हैं, जहाँ पर सफाई कर्मचारियों और अधिकारियों की ज़िम्मेदारी है कि कूड़े को एकत्रित न होने दें, ताकि उसे जलाने की नौबत न आए। लेकिन ऐसा नहीं होता। आज भी दिल्ली में हर दिन कई जगह कूड़े के ढेर जलते और सुलगते नज़र आ जाते हैं। अगर ऐसे किसी मामले की कोई स्थानीय सम्बन्धित विभाग में शिकायत करता है, तो भी इस पर न तो रोक लगाई जाती है और न ही आग जलाने वालों के िखलाफ कोई कार्यवाही होती है। पुलिस तक को बुलाते हैं, तो वह भी इस दिशा में कोई कार्यवाही नहीं करती। इसके चलते स्वच्छता और स्वास्थ्य के हामी लोगों में गुस्सा है। द्वारका और यमुनापार में तो कूड़े के जहाँ-तहाँ अनेक ढेर लगे ही रहते हैं और उसमें से अधिकतर ढेरों को आग लगाकर नष्ट किया जाता है। ऐसा नहीं है कि इस बात की जानकारी स्थानीय प्रतिनिधियों और ज़िम्मेदार अधिकारियों को नहीं है, परन्तु वे जान-बूझकर इसे नज़रअंदाज करते हैं। एनडीएमसी जो दिल्ली का पॉश एरिया माना जाता है, यहाँ के मंडी हाउस के पास कई जगह कूड़े दान बने है; लेकिन फिर भी यहाँ पर कूड़े के ढेरों को जलाया जाता है। मडी हाउस से गाँधी शांति प्रतिष्ठान को जाने के लिए जो रास्ता है, रेलवे का पुल है, उसके चारों ओर तो विकट कूड़ा फैला रहता है, जिसकी वजह से भयंकर बदबू भी आती रहती है। दु:ख की बात यह है कि इस कूड़े को उठाने की जगह सीधे आग के हवाले किया जाता है।

पुलों के नीचे स्मोकिंग का खेल

इतना ही नहीं दिल्ली के बड़े-बड़े पुलों के नीचे, पार्कों में, पुरानी बिल्डिंग्स और स्मारकों आदि में चरसी, स्मैकिये दिन रात स्मोकिंग करके धुआँ उड़ाते रहते हैं। ये लोग सर्दियों में और अधिक सक्रिय हो जाते हैं और स्मोकिंग करके धुआँ उड़ाने के साथ-साथ आग भी जलाते रहते हैं। इस आग में ये लोग हर रोज़ लकडिय़ों के अलावा टायर आदि भी जलाते हैं, जिससे काफी घातक गैसों वाला धुआँ निकलता है। उदाहरण के लिए शाहदरा से मानसरोवर पार्क के लिए जाने वाले रास्ते पर है एक लम्बा पुल है, जहाँ पर स्मैकियों के कई झुंड दिन-रात धुआँ और गंदगी फैलाते रहते हैं। यहाँ कूड़ा भी खूब जलाया जाता है, जिसकी शिकायत समाज सेवी आलोक गुसांई ने कई बार सम्बन्धित विभागों से की है। उनका कहना है कि शिकायत करने के बावजूद भी कोई इस ओर न तो कभी ध्यान दिया गया है और न ही कभी किसी के िखलाफ कोई कार्रवाई ही की गई है; जबकि पुल के नीचे लगातार प्रदूषित माहौल पनप रहा है।

बात केवल स्मैकियों की नहीं है। दिल्ली में अनेक पढ़े-लिखे लोग भी सिगरेट और बीड़ी पीने से बाज़ नहीं आते। वहीं कच्ची कॉलोनियों और झुग्गी-झोंपडिय़ों में भी सर्दियों में लोग आग जलाते हैं, जिससे काफी धुआँ निकलता है। कहने को यह छोटी-सी बात है, परन्तु इसके परिणाम बहुत ही भयंकर होते हैं।

हर व्यक्ति के लिए घातक है प्रदूषण

दिल्ली बढ़ते प्रदूषण की वजह से साँस लेने में दिक्कत और आँखों में जलन की समस्या बढ़ती जा रही है। इस बारे में एम्स के हार्ट रोग विशेषज्ञ डॉ. राकेश यादव का कहना है कि वायु प्रदूषण से हर उम्र के लोग पीडि़त होते हैं। इससे हार्ट को काफी नुकसान होता है। ऐसे हालात में सावधानी बहुत ज़रूरी है। क्योंकि हवाओं में मौज़ूद तत्त्व शरीर के प्रत्येक अंग को डैमेज करते हैं। मैक्स अस्पताल के हार्ट रोग विशेषज्ञ डॉ. विवेका कुमार ने बताया कि इस दूषित और प्रदूषित माहौल में मधुमेह और उच्च रक्तचाप से पीडि़त हार्ट रोगी सावधानी बरतें; क्योंकि ये मौसम हार्ट रोगियों के लिए काफी घातक है। एम्स के नैत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. आलोक रंजन का कहना है कि आँखों को काफी क्षति होती है। प्रदूषण में ज़्यादा देर तक रहने से रेटिना को बड़ा नुकसान होता है। आई सिंड्रोम की समस्या पैदा होती है। ऐसे में सावधानी के तौर पर प्रदूषित माहौल से बचें। जलन होने पर बार-बार साफ पानी से आँखों धोना चाहिए। आँखों में अधिक जलन होने या लाली आने पर चिकित्सक को दिखाएँ।

क्या ऑड-ईवन है स्थायी हल?

दिल्ली में ऑड-ईवन से प्रदूषण का स्तर काफ़ी कम होता है। इसी वजह से पिछले वर्षों की तरह इस वर्ष भी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने वायु प्रदूषण को कम करने के लिए ऑड-ईवन फार्मूला लागू किया। दिल्लीवासियों ने भी सरकार के इस फैसले का स्वागत किया और साथ दिया। हालाँकि, भाजपा नेताओं ने इसका पहले की तरह ही विरोध किया है। विजय गोयल ने ऑड-ईवन का विरोध करते हुए कहा है कि मुख्यमंत्री केजरीवाल राजनीति कर रहे हैं। उनका कहना है कि दिल्ली में पहले भी केजरीवाल ने ऑड-ईवन का फार्मूला लागू किया था, तब वायु प्रदूषण पर कोई खास फर्क नहीं पड़ा था। ऐसे में केजरीवाल राजनीतिक फायदे के लिए काम कर रहे हैं और लोगों को परेशान कर रहे हैं। दरअसल, हर बार देखा गया है कि भाजपा नेता ऑड-ईवन का सिर्र्फ विरोध ही नहीं करते, बल्कि पालन भी नहीं करते हैं। इसके चलते पहले भी कई भाजपा नेताओं और मंत्रियों के चालान कटे हैं और इस बार भी विजय गोयल का चालान कटा। साथ ही ड्राइविंग लांइसेंस भी ज़ब्त कर लिया गया। वहीं दिल्ली के मुख्यमंत्री और बाकी सभी मंत्री ऑड-ईवन का पूरी तरह पालन कर रहे हैं। दिल्ली के उप मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया तो आजकल साइकिल से सफर कर रहे हैं। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या ऑड-ईवन वायु प्रदूषण का स्थाई हल है? हालाँकि, दिल्ली सरकार इससे निपटने के लिए दूसरे उपाय भी अपना रही है, जिसमें जल-छिडक़ाव भी प्रमुख है।

प्रदूषण से निपटने की जगह हो रही सियासत

मुश्किल यह है कि जब भी भारत में कोई समस्या पैदा होती है, तो राजनीतिक दल और सरकारें उससे निपटने की जगह उस पर सियासत ज़्यादा करने लगते हैं। वायु प्रदूषण को रोकने के मामले में भी यही हो रहा है। दिल्ली में इससे निपटने के पुख़्ता इंतज़ाम करने पर चर्चा कम हो रही है, लेकिन राजनीतिक रोटियाँ ज़्यादा सेंकी जा रही हैं। दिल्ली कांग्रेस ने मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के निवास पर प्रदर्शन किया है। प्रदूषण के लिए आप पार्टी को ज़िम्मेदार ठहराते हुए सुभाष चोपड़ा ने कहा कि दिल्ली में प्रदूषण केजरीवाल की लापरवाही का नतीज़ा है। वहीं, लक्ष्मी नगर के विशाल सिन्हा का कहना है कि दिल्ली सरकार अपनी ओर से जो हो सकता है, वह कर रही है। इस मामले पर किसी को भी सियासत नहीं करनी चाहिए; सभी को इस समस्या से मिलकर निपटना चाहिए। जनता को भी इसमें भागीदारी करनी चाहिए।

मेडिकल मालिकों, डॉक्टरों की चाँदी

कहते हैं कि कोई आपदा और विपदा आती है, व्यापारी वर्ग धंधा करके चाँदी कूटता है। इन दिनों प्रदूषण की वजह से उसका हौवा भी बनाया जा रहा है और इसका फायदा उठाते हुए दवा कंपनियों, मेडिकल मालिकों और डॉक्टरों की बड़े पैमाने पर चाँदी हो रही है। इसकी पड़ताल करने पर पता चला है कि दिल्ली-एनसीआर में 50 रुपये से लेकर 250 रुपये तक में मास्क बेचे जा रहे हैं। मेडिकल स्टोर पर मास्क की बिक्री अचानक कई गुना बढ़ गई है। सबसे गंभीर बात ये है कि रंगों के हिसाब से मास्कों की कीमतें वसूली जा रही हैं। काले रंग और सफेद रंग और हल्के आसमानी रंग के मास्क के दाम बढ़ा-चढ़ाकर वसूले रहे हैं। ऐसे हालात में जनता लुट रही है। इस ओर न तो ड्रग्स विभाग ध्यान दे रहा है और न ही स्वास्थ्य विभाग। स्वास्थ्य मंत्रालय तो मानो इस ओर ध्यान देने की ज़रूरत ही नहीं समझता। इस बारे में इरा फाउण्डेशन के चेयरमेन रिंकू निगम का कहना है कि इस समय दिल्ली में धुंध की चादर से लोगों को साँस लेने में दिक्कत हो रही है, लोग बीमार पड़ रहे हैं; इस ओर सरकारें कोई ध्यान नहीं दे रही हैं। जनता अपने बचाव के लिए खुद ही जूझ रही है और मास्क व्यापारी लूट मचा रहे हैं। सरकार को मास्क के उचित मूल्य को सार्वजनिक करना चाहिए और मोटी कमाई करने वालों के िखलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए।

तंदूरों पर लग रहा प्रतिबंध

जिस तरीके से दिल्ली में अब निर्माण कार्य को रोका जा रहा है। गली-मोहल्लों में खुले छोटे-छोटे ढाबों, रेस्टोरेंट के तंदूरों को नष्ट किया जा रहा है, उनके मालिकों के िखलाफ कार्यवाही की जा रही है और चालान काटे जा रहे हैं। तंदूर मालिक राजेश गुप्ता का कहना है कि सरकार जो भी काम करे, उसमें इस बात का ध्यान रखे कि किसी का नुकसान न हो। किसी का रोज़गार चौपट न हो।

बेलगाम दौड़ रहे धुआँ उगलते वाहन

काफी समय से पुराने वाहनों पर रोक लगी होने के वाबजूद दिल्ली-एनसीआर में विकट धुआँ उगलते वाहन खूब दौड़ते दिख जाते हैं। हालात ये हैं कि कई वाहन तो जिधर से गुजऱते हैं, उधर पूरे वातावरण को धुएँ से भरते चले जाते हैं। यहाँ तक कि ट्रैफिक पुलिस भी ऐसे वाहनों को खड़ी देखती रह जाती है। अगर यातायात पुलिस इस ओर ध्यान दे और ठोस कार्यवाही करे, तो काफी वायु प्रदूषण से काफी हद तक स्थायी राहत मिल सकती है। लेकिन क्या सडक़ पर विकट धुआँ उगलते वाहनों पर प्रतिबंध लगाकर चालकों के िखलाफ कोई कार्यवाही की जा रही है? दिल्ली में यातायात पुलिस न जाने क्यों ऐसे वाहनों को प्रतिबंधित कर चालकों पर कार्यवाही करने से हिचकती है?

साफ हवा के लिए जंग

बत्तीस साल के जतिन की नींद हराम है। उसे उसकी पत्नी ने चेतावनी दी है कि यदि परिवार ने नवंबर तक दिल्ली नहीं छोड़ी, तो वह उसे हमेशा के लिए छोड़ देगी। जतिन की पत्नी करीब एक साल से टीबी से पीडि़त है और बढ़ते प्रदूषण ने उसकी समस्या और विकराल कर दी है। राजधानी दिल्ली में दूभर हुई ज़िदगी के बारे में बता रही हैं परी सैकिया

शरद ऋ तु की शुरुआत के साथ ही दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) तेज़ी से गिरा है। इससे यहाँ के नागरिकों को स्वास्थ्य सम्बन्धी कई दिक्कतें पेश आ रही हैं। हवा में प्रदूषण की मात्रा खतरनाक स्तर तक पहुँच जाने से वे साँस लेने में तकलीफ, दुर्गंध, आँखों में जलन के साथ-साथ गले में खराश जैसी समस्याओं से दो-चार हैं। अक्टूबर में हवा में प्रदूषण का जो स्तर खराब और बहुत खराब मानकों पर था, वह अचानक नवंबर में खतरनाक स्तर पर पहुँच जाएगा, जिसमें सबसे बड़ी भूमिका औद्योगिक निर्माण और शरद ऋ तु की होगी की होगी। पराली जलने से पड़ोसी राज्यों पंजाब और हरियाणा से आने वाला धुआँ भी प्रदूषण के स्तर में इजाफा कर रहा है।  गौरतलब है कि 0 और 50 के बीच एक्यूआई (प्रदूषण का स्तर) को अच्छा, 51 और 100 के बीच संतोषजनक, 101 और 200 मध्यम, 201 और 300 के बीच खराब, 301 और 400 बहुत खऱाब और 401 और 500 के बीच गंभीर माना जाता है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) की सितंबर में जारी एक अध्ययन रिपोर्ट से पता चला था कि दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर 25 फीसदी कम हो गया है, जो पिछले तीन वर्षों में सबसे कम था। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के संसद में पेश किए वार्षिक वायु गुणवत्ता आँकड़ों का विश्लेषण बताता है कि 2016-2018 (तीन वर्ष) के दौरान पीएम2.5 स्तरों का तीन साल का औसत 2011-2014 के आधार (तीन साल का औसत) से 25 फीसदी से कम है।

अध्ययन रिपोर्ट के सामने आते ही वायु प्रदूषण पर राजनीति भी शुरू हो गई। दिल्ली सरकार और विपक्षी भाजपा के बीच इसका श्रेय लेने की जंग छिड़ गई। इसके बाद विभिन्न राजनीतिक दलों ने दिल्ली के वायु प्रदूषण को अपने भाषणों का हिस्सा तो बनाया; लेकिन विरोधी दलों पर हमले के लिए इस्तेमाल करने भर को।

प्रदूषण निरोधी निकाय सीपीसीबी पर निशाना साधते हुए उसे आम आदमी पार्टी ने सुझाव दिया कि वह दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के प्रदूषण से निपटने के मंत्र से कुछ सीखे कि कैसे वाराणसी जैसे शहरों में प्रदूषण से निपटा जा सकता है। आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता राघव चड्ढा ने कहा- ‘मुझे यकीन है कि सीपीसीबी की प्रदूषण को लेकर चिंता यदि वाराणसी की जनता से ज़्यादा नहीं तो कम-से-कम दिल्ली के लोगों के समान तो होगी ही। और आप देखेंगे कि दिल्ली में दोषी पार्टियों को समय पर जवाबदेह बनाया जाएगा।’

दिल्ली में हवा की बिगड़ती गुणवत्ता के लिए अरविंद केजरीवाल को दोषी ठहराने वाले भाजपा नेता विजय गोयल का कहना है कि यह केंद्र सरकार है, जिसने वायु प्रदूषण से निपटने के लिए महत्त्वपूर्ण क़दम उठाए। गोयल ने कहा- ‘केंद्र ने प्रदूषण से निपटने के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग और पुल बनाए हैं और पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने वाले किसानों के लिए 11,000 करोड़ रुपये का आवंटन भी किया है।’

दिल्ली में अगले साल फरवरी में विधानसभा चुनाव हैं। और राजनीतिक दल स्वच्छ हवा के मसले पर मतदाताओं को जीतने के लिए पुरज़ोर प्रयास कर रहे हैं। वायु प्रदूषण का मुद्दा निश्चित रूप से विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दलों के लिए प्रमुख एजेंडा में से एक है। हालाँकि, प्रमुख राजनीतिक दल इस तथ्य को नज़रअंदाज़ कर रहे हैं कि सीएसई की हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली को अभी भी साफ-सुथरा होने के लिए मौज़ूदा आधारभूत से 65 फीसदी की चुनौतीपूर्ण स्थिति का सामना करना पड़ रहा है, जो कि पीएम 2.5 के लिए बेसिक मानक है।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के अनुसार, राजधानी में वायु प्रदूषण में बढ़ोतरी के पीछे अभी भी मुख्य कारक पराली का जलना है। ‘जब तक बाहर से आने वाले प्रदूषण का हल नहीं निकाला जाता, दिल्ली अक्टूबर और नवंबर में इसी तरह पीडि़त होती रहेगी।’

हालाँकि, सीएसई की रिपोर्ट साफतौर परखती है कि दिल्ली के प्रदूषण में पराली कोई सबसे बड़ा कारक नहीं है। पराली का योगदान तो महज़ 5-7 फीसदी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पंजाब और हरियाणा से उडऩे वाले धुएँ से ज़्यादा, स्थानीय स्रोत प्रदूषण के वास्तविक कारक हैं।

प्रदूषण से निपटना

सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण का एक वीडियो रिपोर्ट में कहना- ‘प्रदूषण के िखलाफ नाराजग़ी मात्र से कुछ नहीं होगा। प्रदूषण की वजह से हमारा क्रोधित होना स्वाभाविक है; क्योंकि यह हमारे और हमारे बच्चों के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। प्रदूषण से बचना है, तो हमें कार्रवाई की माँग भी करनी चाहिए।’

सीएसई की रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि दिल्ली को सर्दियों के प्रदूषण से बचाने के लिए और कठोर तरीकों और कार्रवाई की ज़रूरत है। दिल्ली अब तक की गयी कोशिशों की गति और इससे मिले लाभ को कम करने का जोखिम नहीं उठा सकती। प्रणालीगत बदलाव और पूरे क्षेत्र में निरंतर लाभ के लिए व्यापक कार्य योजना को लागू करना ज़रूरी है।

सितंबर में सीएम केजरीवाल ने दिल्ली के लिए सात-सूत्रीय कार्य योजना की घोषणा की थी, जिसमें वायु प्रदूषण को कम करने के लिए प्रदूषण-रोधी मास्क का वितरण और विषम-सम योजना के कार्यान्वयन की घोषणा की गई थी, जो 4-15 नवंबर से शुरू हो गयी है। इसके अलावा आप सरकार लोगों को सर्दियों के दौरान कचरा जलाने से रोकने के लिए मार्शल रखने की घोषणा कर चुकी है। अपने इलाके में पेड़ लगाने के इच्छुक पर्यावरण प्रेमियों के लिए एक हेल्पलाइन नंबर शुरू करना भी एक अन्य उपाय सरकार की तरफ से सामने आया है।

दिल्ली मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय राजधानी में प्रदूषण के िखलाफ बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान चलाने के लिए सूचना और प्रचार निदेशालय के बजट से 36 करोड़ रुपये के खर्च को भी मंज़ूरी दी है। जनवरी 2019 में भाजपा सरकार ने 2024 तक दिल्ली सहित कम-से-कम 102 शहरों में 20-30 फीसदी तक कण (पीएम) प्रदूषण को कम करने के लिए एनसीएपी लॉन्च किया था। कांग्रेस ने इस साल की शुरुआत में अपने घोषणा पत्र में वायु प्रदूषण से निपटने की एक योजना का जि़क्र किया था। पार्टी ने कहा था कि उसकी सरकार आने पर प्रदूषण की समस्या से तत्काल निपटने के लिए राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम को प्राथमिकता के आधार पर किया जाएगा। इसके अलावा उत्सर्जन के सभी प्रमुख स्रोतों को लक्षित, शमन और स्वीकार्य स्तरों तक कम किया जाएगा।

इसके अलावा थर्मल पॉवर प्लांट, पेट कोक, फर्नेस ऑयल, कोयला को बंद करना, बीएसवीआई ईंधन वाहनों का उपयोग करना, राजधानी और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में पुराने ट्रकों के प्रवेश पर प्रतिबंध जैसे कुछ ऐसे कार्य हैं, जिन्होंने पिछले आठ महीनों में वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाने में मदद की है। लेकिन किस राजनीतिक दल को इसका श्रेय जाता है, यह कहना तो कठिन है। क्योंकि केंद्र और राज्य दोनों ने कुछ हद तक समान रूप से योगदान दिया है। यह देखना दिलचस्प होगा कि ये दल अब विधानसभा चुनावों में कैसा प्रदर्शन करते हैं।