‘तब डाकू होना रुतबे की बात हुआ करती थी’

भिंड शहर के वाटर-वर्क्स रोड पर बने एक सामान्य से घर के दरवाजे पर बच्चों के साथ खेलते 90 वर्षीय लोकमान दीक्षित अपनी पीढ़ी के ‘बागियों’ में शायद अंतिम हैं. चंबल के इतिहास के सबसे नामी, डाकू मान सिंह गिरोह के इस सदस्य ने 1948 में बीहड़ों को अपना ठिकाना बनाया था. 1950 के दौर के चंबल की तस्वीर याद करते हुए वे बताते हैं, ‘ हम और दाऊ (डाकू मान सिंह) के बच्चे साथ ही पढ़ते थे. फिर जब वे लोग दाऊ के गैंग में शामिल हुए, तो हम भी हो गए. याद नहीं पड़ता, पर कोई लड़ाई हो गयी थी या कोइ मर गया था इसलिए हमने ऐसा किया. सन 1948 में हम बागी हुए और 60 में हाजिर हो गए (आत्मसमर्पण कर दिया). पर हमारे समय में लोग सिर्फ अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने के लिए बागी बनते थे, आज के लड़कों की तरह नहीं कि किसी से पैसे ऐठने के लिए डकैती डाल दी.’

दीक्षित आगे बताते हैं कि उनके गैंग में कोई शराब नहीं पीता था और न ही मांस खाता था. औरतों को गैंग से दूर रखने के भी सख्त निर्देश थे. जंगलों में अपने बागी जीवन को याद करते हुए वे आगे कहते हैं, ‘ हमारे समय में बागी का जीवन बहुत मुश्किल था. धूप, बरसात और सर्दी में भी हम लोग पत्थरों पर सोते थे, खाने का कुछ हिसाब नहीं और पुलिसवालों से जब-तब मुठभेड़ होती सो अलग. हम अपने दुश्मनों, अत्याचारियों और मुखबिरों को मार डालते थे. पर आम गरीब लोगों, उनकी औरतों और लड़की-बच्चों को कभी नहीं छूते थे.’

चंबल में आज भी पैदा हो रहे नए गैंगों के बारे में उनकी  ज्यादा रूचि नहीं है. पर अपने गैंग के डकैतों की कार्यप्रणाली पर उन्हें गर्व है, ‘हमारा आतंक हुआ करता था और हम अपने इलाके के राजा हुआ करते थे. उस समय मैं बिल्कुल नया लड़का था और डाकू होना बहुत रुतबे वाला काम लगता था. पर इस बीच हमने कई लोगों को मारा पर अब वह सब अच्छा नहीं लगता. मैं भूल जाना चाहता हूं बीहड़ों  और डाकुओं को.’

यह पूछने पर कि उन्होंने अपने डकैती जीवन में कितनी हत्याएं कीं, वे खामोश हो जाते हैं. फिर कुछ क्षणों के बाद वह एक ऐसा रोचक किस्सा सुनाते है जो 50 के दशक के दौरान घाटी में फैले डाकुओं के आतंक को बखूबी बयान करता है.  सरेंडर के बाद अपनी अदालती सुनवाई को याद करते हुए वे कहते हैं, ‘जज साहब ने पूछा कि लुक्का तुमने कितने आदमियन को मारा? हमने कहा कि जज साहब क्या आपको याद है कि आज तक आपने कितनी रोटियां खाईं? वैसे ही कोई हिसाब थोड़े ही होता है कि एक डाकू ने कितने आदमियन को मारा.’