जम्मू संभाग में नहीं थम रहीं आतंकी घटनाएँ

राजौरी-पुंछ इलाक़े बन चुके हैं आतंकियों के नये ठिकाने

जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बलों का दबाव बढऩे के बाद आतंकियों ने जम्मू संभाग के सीमावर्ती राजौरी और पुंछ ज़िलों को अपना नया ठिकाना बना लिया है। वहाँ उन्होंने कितने पैर जमा लिये हैं, यह वहाँ बढ़ रही आतंकी घटनाओं से ज़हिर हो जाता है। आतंकी हमलों और उनसे निपटने की रणनीति पर बता रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार राकेश रॉकी :-

जम्मू-कश्मीर के राजौरी ज़िले में नियंत्रण रेखा पर ज़ीरो लाइन और सीमा की बाड़ के बीच में स्थित अजोट गाँव 24 नवंबर को उदासी की चादर में लिपटा था। पैरा कमांडो अब्दुल माजिद की आख़िरी रसूमात के दौरान उनकी शहादत को लेकर अमर रहें के नारे लग रहे थे। हाल के महीनों में राज्य के जम्मू संभाग के राजौरी-पुंछ क्षेत्र के गाँवों में ऐसे दु:खद दृश्य कई बार देखने को मिले हैं। कारण है आतंकी घटनाओं का हिन्दू बहुल जम्मू संभाग की तरफ़ शिफ्ट होना। आतंकवादियों ने हाल के महीनों में दो चीज़ें की हैं। एक- जम्मू के सीमा क्षेत्र में गतिविधियाँ बढ़ाना और दो- सेना और सुरक्षा बलों में काम कर रहे मुस्लिम कर्मियों को निशाना बनाना।

‘तहलका’ का अध्ययन बताता है कि अक्टूबर 2021 से मध्य नवंबर, 2023 के इन दो वर्षों में हिन्दू बहुल जम्मू संभाग के सीमावर्ती ज़िलों, जिनमें मुस्लिम आबादी भी काफ़ी है; में 13 बड़ी घटनाएँ हुई हैं। इन घटनाओं में सेना-सुरक्षाबलों के 31 अधिकारियों / जवानों ने शहादत दी है।

पाकिस्तान में आसिम मुनीर के नया सेनाध्यक्ष बनने के बाद आतंकियों ने अपनी रणनीति में बदलाव किया है। यह आरोप हैं कि मुनीर जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ावा देने की नीति रखने वाले सेनाध्यक्ष हैं। यह सही है कि कश्मीर घाटी में पत्थरबाज़ी की घटनाओं में कमी आयी है; लेकिन इसके बावजूद वहाँ भी कश्मीरी पंडितों और प्रवासी मज़दूरों को निशाना बनाया गया है। कई रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि चूँकि पत्थरबाज़ी में बहुत कम लोगों की भागीदारी थी, उसके रुकने को बहुत बड़ी उपलब्धि नहीं माना जा सकता। हाँ, वहाँ आतंकी वारदात में ज़रूर कमी आयी है।

जम्मू-कश्मीर में दो तरह के आतंकवादी सक्रिय रहते हैं। एक तो स्थानीय भर्ती से हाथों में हथियार उठाने वाले कश्मीरी युवा। दूसरे विदेशी आतंकी, जिनमें अधिकतर पाकिस्तान के होते हैं। दोनों ही तरह के आतंकी कश्मीर और जम्मू संभागों में सक्रिय दिखते हैं। हालाँकि जम्मू संभाग में ज़्यादा संख्या पाकिस्तान से आये आतंकियों की होती है। सुरक्षा बलों ने इन दो वर्षों में बड़ी संख्या में आतंकियों का भी संहार किया है, जिनमें कुछ कमांडर स्तर के आतंकी भी शामिल हैं। लेकिन आज की तारीख़ में यह नहीं कहा जा सकता कि राज्य से आतंकवाद का सफ़ाया हो चुके हैं। हाल में हुर्ई आतंकी घटनाएँ इसका प्रमाण हैं। पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा से जुड़ा संगठन द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) हाल के महीनों में काफ़ी सक्रिय दिखा है।

जम्मू संभाग के सीमावर्ती ज़िलों राजौरी और पुंछ में हाल के महीनों में आतंकी वारदात में जबरदस्त उछाल देखने को मिला है। आतंकियों की बादली रणनीति से ज़हिर होता है कि उन्होंने अपना ध्यान हिन्दू बहुल जम्मू संभाग की तरफ़ शिफ्ट किया है। जम्मू-कश्मीर पुलिस का दावा है कि इस साल सिर्फ़ 10 स्थानीय रंगरूट आतंकवादी रैंक में शामिल हुए, जिनमें से छ: मारे जा चुके हैं। जम्मू-कश्मीर पुलिस के महानिदेशक (डीजी) दिलबाग़ सिंह ने इस पत्रकार से बातचीत में कहा- ‘मैं कह सकता हूँ कि कश्मीर के युवा दुश्मन की चाल और साज़िशों को समझ गये हैं। पिछले साल 110 युवाओं ने हथियार उठाये, जबकि इस साल यह संख्या सिर्फ़ 10 रही। बा$की बचे चार युवाओं से भी हमारी अपील है कि वे हथियार त्याग दें।’

पुलिस का दावा अपनी जगह है; लेकिन विशेषज्ञ इसे अलग तरीक़े से देखते हैं। उनका कहना है कि युवाओं की भर्ती जारी रहना इस बात का संकेत है कि पड़ोसी देश से आये आतंकी कमांडर राज्य में सक्रिय हैं। वही यह भर्तियाँ करते हैं और युवाओं को ट्रेनिंग के लिए पाकिस्तान ले जाते हैं। इससे ज़हिर होता है कि घुसपैठ अभी जारी है। कुछ विशेषज्ञों से इस पत्रकार की बातचीत से ज़हिर होता है कि आतंकियों ने जम्मू के पहाड़ी क्षेत्रों में अपने अड्डे बना लिए हैं। सुरक्षा बलों को ऐसे सघन जंगली क्षेत्रों में आतंकरोधी अभियान चलाने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। सेना अधिकारियों के मुताबिक, आमतौर पर जब ऑपरेशन पहाड़ी पर शुरू होता है, तो ऊपर की ओर चढऩे के बजाय सुरक्षा बलों को नीचे की ओर से पहुँच बन्द करनी होती है और फिर पहाड़ी के पीछे के छोर से आतंकवादी दल के पास पहुँचना होता है।

उत्तरी कमान के जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ (जीओसी) लेफ्टिनेंट जनरल उपेन्द्र द्विवेदी ने हाल में कहा था कि जम्मू-कश्मीर में मारे गये अधिकतर आतंकियों से अकेले दक्षिणी पीर पंजाल इलाक़े में ही 65 फ़ीसदी आतंकी मारे गये हैं। सरकारी आँकड़े बताते हैं कि जम्मू-कश्मीर में धारा-370 ख़त्म होने के बाद भी आतंकी भर्ती जारी रही है। जहाँ सन् 2019 में 119 आतंकी भर्तियाँ हुईं, वहीं सन् 2020 में यह संख्या 167, सन् 2021 में 128 और सन् 2022 में 100 रही। जारी सन् 2023 में सिर्फ़ 10 आतंकी भर्तियाँ होने का दावा किया गया है। हालाँकि इसके बावजूद आतंकी वारदातें हुई हैं, जो ज़हिर करती हैं कि विदेशी आतंकी भी राज्य में सक्रिय हैं।

आतंकियों ने हाल के महीनों में उन मुस्लिमों को भी निशाना बनाया है, जो सेना, सुरक्षा बलों और पुलिस में काम कर रहे हैं। कश्मीर घाटी में ऐसी घटनाएँ ज़्यादा हुई हैं। हाल के महीनों में सेना / सुरक्षा बलों के जो लोग शहीद हुए हैं, उनमें उच्च अधिकारियों की संख्या भी काफ़ी रही है। यह रिपोर्ट लिखे जाने तक आतंक की नवीनतम वारदात राजौरी में हुई, जिसमें सेना-सुरक्षा बलों के पाँच जवान शहीद हुए। यह एक मुठभेड़ थी 34 घंटे तक चली। सुरक्षाबलों ने दो आतंकियों को भी मार गिराया। शहीद जवानों में कैप्टन शुभम, कैप्टन एमवी प्रांजिल, हवलदार माजिद, पैराट्रूपर सचिन लॉर और नायक संजय बिष्ट शामिल हैं।

इस मुठभेड़ में जो आतंकी मारा गया उसका नाम डिफेंस पीआरओ ने कारी बताया है। कारी पाकिस्तानी नागरिक था और माना जाता है कि उसे पाक और अफ़गान मोर्चे पर ट्रेंड किया गया था। कारी लश्कर-ए-तैयबा का टॉप कमांडर था और पिछले एक साल से अपने ग्रुप के साथ राजौरी-पुंछ में सक्रिय था। उसे ही इस संभाग के डांगरी और कंडी हमलों का मास्टरमाइंड माना जाता रहा है। कारी को जम्मू में आतंकवाद को दोबारा फैलाने के लिए भेजा गया था, जिससे ज़हिर होता है कि सीमा पर आतंकियों की घुसपैठ पूरी तरह रुकी नहीं है। कारी को आईईडी स्पेशलिस्ट माना जाता था और वह गुफ़ाओं से छिपकर काम करने वाला ट्रेंड स्नाइपर था।

जम्मू के राजौरी-पुंछ में आतंकियों के पैर जमाने की पुष्टि इस बात से भी होती है कि पिछले साल की दो बड़ी घटनाओं के मुक़ाबले इस साल आतंकवाद की पाँच घटनाएँ अब तक इस क्षेत्र में हो चुकी हैं। इनमें सात आम नागरिक और 15 जवानों सहित 22 लोग शहीद हुए हैं। आतंकी भी मारे गये हैं। पहले पुंछ का भाटाधुलियाँ, बीजी सेक्टर आतंकियों का गढ़ होता था। इसके बाद उन्होंने राजौरी के कोटरंका और अब बाजीमल में पैर जमा लिये हैं। वैसे भी जम्मू संभाग में राजौरी-पुंछ ज़िलों को आतंक की दृष्टि से बेहद संवेदनशील माना जाता है। हाल के दो वर्षों में सेना और आम नागरिकों पर आतंकियों के हमले ज़हिर करते हैं कि आतंकियों ने इन इलाक़ों में अपना स्थानीय नेटवर्क मज़बूत कर लिया है।

हाल की घटनाओं में यह भी देखने को मिला है कि वारदात करने के बाद आतंकी ज़्यादातर मौक़ों पर बच निकलने में सफल हो जाते हैं। आतंकियों के जम्मू संभाग में शिफ्ट का एक बड़ा कारण विशेषज्ञ कश्मीर में सुरक्षाबलों के बढ़ते दबाव को बताते हैं। कश्मीर घाटी में सुरक्षा बलों की संख्या आज जितनी है, उतनी कभी नहीं रही। इसका नतीजा यह निकला है कि आतंक के मूल ढाँचे का बड़ा हिस्सा वहाँ तबाह कर दिया गया है। यदि पिछले एक दशक पर नज़र दौड़ाएँ, तो ज़हिर होता है कि एलओसी के साथ सटे दोनों संवेदनशील ज़िले राजौरी और पुंछ सीमा पार से घुसपैठ का गेटवे रहे हैं। राजौरी और पुंछ ज़िले पीर पंजाल पहाडिय़ों के दक्षिण में हैं और यही इलाक़ा है, जहाँ पूरे राज्य में मरने वाले आतंकियों में ज़्यादातर ढेर किये गये हैं।

इसमें कोई दो-राय नहीं कि हाल के वर्षों में सुरक्षाबलों ने आतंकवादियों पर दबाव बनाने में सफलता हासिल की है। लेकिन यह भी सच है कि घुसपैठ बंद करने के लिए अभी उसके नेटवर्क को ध्वस्त करने में व$क्त लगेगा। हाल में यह भी देखा गया है कि जब सेना और सुरक्षाबल आतंकियों के ख़िलाफ़ अभियान शुरू करते हैं, तो आतंकी भूमिगत हो जाते हैं। जैसे ही अभियान ख़त्म होता है, वह फिर वारदात करने लगते हैं। सीमा इलाक़ों में आतंकियों को पनाह देने वाले और उनके मददगारों की उपस्थिति अभी भी है।

सुरक्षा एजेंसियों के इंटरसेप्ट ज़हिर करते हैं कि सीमा क्षेत्रों में मददगारों और सीमा पार आतंकी आकाओं के बीच समन्वय बना हुआ है। एजेंसियों में बड़े अधिकारी इस बात से इनकार नहीं करते कि राजौरी-पुंछ में आतंकियों ने अपने पैर पसार लिये हैं। सुरक्षाबलों की दृष्टि से यह भी चिन्ता की बात है कि हाल के दो वर्षों में इतनी आतंकी वारदातें होने के बावजूद उनका कोई मज़बूत नेटवर्क या ठिकाना ध्वस्त नहीं हुआ है। विशेषज्ञ मानते हैं कि सेना को वहाँ अपनी रणनीति बदलने और अभियान को और सघन करने की सख़्त ज़रूरत है।

नहीं भूलना चाहिए कि राज्य में आतंक की शुरुआत के बाद से ही राजौरी-पुंछ-डोडा इलाक़े आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) के मज़बूत गढ़ रहे हैं। हाल में इन इलाक़ों में हमलों की  ज़िम्मेदारी जिस पीपुल्स एंटी फासिस्ट फ्रंट (पीएएफएफ) ने ली है, उसे जेईएम की ही शाखा माना जाता है। हाल में जो इनपुट सुरक्षा एजेंसियों को मिले हैं, उनसे ज़हिर होता है कि क्षेत्र में आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) भी गतिविधियाँ बढ़ा रहा है। पाकिस्तान की एजेंसी आईएसआई, जो सेना का ही एक अंग है, दोनों ही संगठनों की सरपरस्त रही है।

जानकारों का यह भी कहना है कि धारा-370 ख़त्म होने के बाद जम्मू-कश्मीर में $गैर-क़ानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर किया गया है। इससे ख़ासकर कश्मीर घाटी में यूएपीए और पब्लिक सेफ्टी एक्ट (पीएसए) के तहत आम लोगों की गिरफ़्तारियाँ बढ़ी हैं। इससे लोगों के भीतर नाराज़गी है। जहाँ साल 2014 में यूएपीए के तहत कश्मीर में सिर्फ़ 45 मामले दर्ज हुए थे, वहीं 2019 तक इनकी तादाद 255 पहुँच गयी थी। इसके बाद के दो वर्षों में (2021 तक) 2319 लोगों के ख़िलाफ़ यूएपीए लगा और 1200 मामले इन धाराओं के साथ दर्ज हुए। पीएसए लगाने के मामले घाटे हैं; लेकिन एक सच यह भी है कि पीएसए एक्ट के तहत सज़ काट रहे लोगों के मामले जब हाई कोर्ट रद्द कर देता है, तो उन्हें यूएपीए की धाराओं के तहत अन्दर कर दिया जाता है।

हिल काका था आतंकी गढ़

जम्मू-कश्मीर में सन् 1989 में आतंक की शुरुआत होने के बाद यह ज़हिर हुआ था कि पुंछ के सुरनकोट के पास पीर पंजाल की पहाडिय़ों में स्थित हिल काका का इलाक़ा सन् 2000 के आसपास आतंकियों का गढ़ बन गया था। हिल काका के जंगल में आतंकियों ने अपने पक्के बंकर बना लिये हैं। जंगलों में आतंकी स्थानीय युवाओं को जबरदस्ती बंदूक की नोक पर प्रशिक्षण देते थे। आतंकियों ने हिल काका में अस्पताल तक बना लिया था, जिसे वह ट्राजिट कैंप की तरह इस्तेमाल करते थे। हिल काका पाकिस्तान, कश्मीर और किश्तवाड़, डोडा जाने का केंद्र बिंदु था। लेकिन सन् 2003 में जब सेना ने वहाँ की पहाडिय़ों पर ऑपरेशन सर्प विनाश किया, तो सामने आया कि आतंकियों ने कितनी मज़बूत पैठ वहाँ बना ली थी। ऑपरेशन के दौरान 57 आतंकी ढेर किये गये थे और जब बंकर नष्ट किये गये, तो वहाँ बड़ी मात्रा में हथियारों और खाने-पीने की चीज़ों के अलावा गोला-बारूद बरामद हुआ था। जो आतंकी मारे गये उनमें देसी ही नहीं काफ़ी विदेशी भी थे। दरअसल यह जंगलों से भरा कठिन इलाक़ा है। आम नागरिकों के नाम पर यहाँ गुज्जर-बकरवाल ज़्यादा रहते हैं, जो भैंस और भेड़-बकरियों का व्यवसाय करते हैं। यह एक घुमन्तू जाति है और उन्हें इलाक़े की ख़ूब जानकारी रहती है। यह लोग गर्मियों में श्रीनगर चले जाते हैं। आतंकी उनसे इलाक़े के रास्ते तो पूछते ही हैं, खाने का भी कहते हैं। हालाँकि हाल के वर्षों में पीर पंजाल की पहाडिय़ों में फिर से आतंकी ठिकाने दिखने लगे हैं। आतंकी एक तरह से वहाँ से ऑपरेट करते हैं और वारदातें करने के बाद वहाँ छिप जाते हैं।

दो साल में राजौरी-पुंछ में हुई बड़ी घटनाएँ

11 अक्टूबर, 2021 : पूंछ ज़िले में सुरनकोट तहसील के चामरेर इलाक़े में आतंकी मुठभेड़ में एक जेसीओ सहित पाँच जवान शहीद।

16 अक्टूबर, 2021 : पुंछ के मेंढर में भट्‌टा दुरियाँ इलाक़े में मुठभेड़। एक जेसीओ सहित चार जवान शहीद।

30 अक्टूबर, 2021 : राजौरी के नौशेरा सेक्टर में माइन ब्लास्ट में लेफ्टिनेंट और जवान शहीद।

11 अगस्त, 2022 : राजौरी के दरहाल क्षेत्र में परगाल सेना शिविर पर आतंकी हमला। पाँच जवान शहीद। दो आतंकी ढेर।

18 दिसंबर, 2022 : राजौरी के अल्फा गेट के बाहर आतंकी हमला। दो नागरिकों की मौत।

01 जनवरी, 2023 : राजौरी के डांगरी में विदेशी आतंकियों की गोलीबारी और आईईडी ब्लास्ट। दो नाबालिगों समेत अल्पसंख्यक समुदाय के सात लोगों की मौत।

20 अप्रैल, 2023 : पूंछ ज़िले के मेंढर इलाक़े के भट्‌टा दुरियाँ में सुरक्षाबलों पर हमला। सेना के पाँच जवान शहीद, एक घायल।

05 मई, 2023 : राजौरी के कांडी में आईईडी ब्लास्ट। इसमें पाँच आर्मी पैरा कमांडो शहीद और एक मेजर घायल।

18 जुलाई, 2023 : पुंछ ज़िले के सुरनकोट इलाक़े के सिंधारा टॉप में चार पाकिस्तानी आतंकी ढेर।

22 नवंबर, 2023 : राजौरी ज़िले में मुठभेड़। दो कैप्टन सहित पाँच जवान शहीद। दो आतंकी ढेर।

साक्षात्कार

हाल में जम्मू-कश्मीर की स्थिति पर चर्चा के लिए राज्य के दलों ने बैठक की थी। आपके ख़याल से प्रदेश की स्थिति कैसी है?

जो हालात राज्य के इस व$क्त हैं, उन्हें मैं चिन्ताजनक मानता हूँ। जम्मू-कश्मीर में संविधान को निलंबित कर दिया गया है। हमारे उप राज्यपाल, गृहमंत्री, प्रधानमंत्री मोदी साहब बार-बार यह कहते हैं कि जम्मू-कश्मीर में सब कुछ सामान्य है। ऐसा है, तो हमारा सवाल है कि सब कुछ ठीक है, तो चुनाव क्यों नहीं कराये जा रहे? आप कहते हैं कि परिसीमन हो चुका है और वोटर लिस्ट भी तैयार हैं। तो फिर चुनाव क्यों नहीं करा रहे हैं?

केंद्र का कहना है कि जम्मू-कश्मीर में शान्ति आयी है। आतंकवाद पर नकेल कसी गयी है?

ऐसा है, तो फिर आतंकी घटनाएँ क्यों हो रही हैं। कुछ दिन पहले राजौरी में हमारी सेना के पाँच अफ़सरों और जवानों की शहादत हुई है। और जगह भी लोग मरे हैं। बाहर से यहाँ आकर काम करने वाले मज़दूरों को भी मौत के घाट उतारा गया है। तो शान्ति कहाँ हुई है?

आपके ख़याल से इसके लिए क्या होना चाहिए?

हम मानते हैं कि पाकिस्तान से बातचीत की जानी चाहिए। जब तक ऐसा नहीं होता है, कश्मीर का मसला नहीं सुलझाया जा सकता है। जब तक मसला नहीं सुलझेगा, तब तक राज्य में अमन नहीं हो सकता। लोगों को सुकून नहीं मिल सकता। जब तक अमन नहीं होता, तब तक हत्याओं पर रोक भी नहीं लगायी जा सकती है।

तो आपको लगता है केंद्र सरकार के दावे ग़लत हैं?

उनके दिल साफ़ होने ज़रूरी हैं। घाटी के मसलों पर आप दिखावा नहीं कर सकते। यह बहुत हो चुका है। मसलों को सुलझाना पड़ेगा। मैं फिर कहता हूँ कि हिन्दोस्तान और पाकिस्तान की सरकारें जब तक कश्मीर के मामले में ईमानदारी से बातचीत नहीं करती हैं, तब तक कुछ नहीं होगा। जो बातें वे (केंद्र) कर रहे हैं, सब तमाशा है। जब तक राजनीति की जाती रहेगी, यह तमाशे होते रहेंगे। असली मसला वहीं रह जाएगा और लोगों को सुकून नहीं मिलेगा। कश्मीर में अभी भी मिलिटेंसी है। आप देख रहे हैं, गोलियाँ चल रही हैं। लोग मर रहे हैं। $फौजी शहीद हो रहे हैं। अगर सही में अमन हुआ होता, तो यह सब नहीं होता। आप देख लें, यूक्रेन में क्या हो रहा है। जो हुआ सबके सामने है। यूरोप बर्बाद हो रहा है। पूरा देश (यूक्रेन) ख़त्म हो रहा है। इन चीज़ों से सबक लेना चाहिए। कृपा करके कश्मीर को अपने पॉलिटिकल एक्सपेरिमेंट्स की प्रयोगशाला न बनाएँ!