जड़ों से जुड़ने की कसरत

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को अपने पुराने सिपाहियों की याद आने लगी है. छह महीने पहले जाति से लेकर विकास तक तमाम तरकीबें आजमाने के बावजूद राहुल गांधी प्रदेश में पार्टी को पुनर्स्थापित नहीं कर सके. कांग्रेस का जाति और धर्म का टोटका प्रदेश में फ्लॉप रहा. पार्टी 28 सीटों पर सिमट कर रह गई. लगता है पार्टी ने उस हार से कुछ सबक लिए हैं. 2014 से पहले पार्टी की कमान ऐसे लोगों के हाथ में आ गई है जिनका पलड़ा सूबे में जातिगत आधार भले ही भारी न हो लेकिन वे लोग हैं खांटी कांग्रेसी परिवेश के. प्रदेश अध्यक्ष का पद उन कांग्रेसी निर्मल खत्री को सौंपा गया है जिन्हें पार्टी लंबे समय से भुलाए बैठी थी. इसी कड़ी में पार्टी ने विधानमंडल दल के नेता पद से प्रमोद तिवारी की विदाई करते हुए प्रदीप माथुर को जिम्मेदारी सौंपी है. 

विधानसभा चुनाव में सारे बड़े असलहों के फुस्स साबित होने के बाद अब लगता है कि कांग्रेस आलाकमान की उम्मीद पुराने कांग्रेसियों पर आ टिकी है. हार के बाद पार्टी की अंदरूनी समीक्षा रिपोर्ट से स्पष्ट हुआ कि राज्य में पार्टी का संगठनात्मक ढांचा मृतप्राय हो चुका है. विधानमंडल दल के नेता प्रदीप माथुर भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि जमीनी स्तर पर नेताओं की संख्या अधिक है कार्यकर्ताओं की कम. अब जमीन को मजबूत करने का समय है. अब तक कांग्रेस उत्तर प्रदेश में जातिगत आधार पर खेमों में बंटी थी. माथुर कहते हैं, ‘हमारा बैर न तो प्रमोद तिवारी से है, न ही रीता जी से. यही कारण है कि सोनिया व राहुल गांधी सहित पार्टी हाईकमान ने संगठन को लोकसभा चुनाव में मजबूत करने का फैसला लिया है. निर्मल खत्री को अध्यक्ष इसी रणनीति के तहत बनाया गया है.’ माथुर आगे कहते हैं, ‘अब पार्टी में कागजी नेताओं के स्थान पर संगठन से जुड़े लोगों को मौका दिया जाएगा.’ ऐसे ही एक पुराने कांग्रेसी नेता हैं बाराबंकी के शिवशंकर शुक्ला. उन्हें विधानसभा चुनावों से पूर्व बेनी प्रसाद वर्मा के प्रभाव में पार्टी से चलता कर दिया गया था. अब उन्हें फिर से पार्टी में वापस ले लिया गया है. यह बेनी के घटते रुतबे का भी संकेत है.

आंकड़े बताते हैं कि संगठनात्मक रूप से पार्टी कितनी कमजोर है. पार्टी में शहर व जिला अध्यक्षों की कुल संख्या 110 है. इनमें से 35 ब्राह्मण, 30 मुसलिम, 10 ठाकुर, चार कायस्थ और पांच वैश्य हैं. कुल मिलाकर 84 शहर व जिला अध्यक्ष सवर्ण हैं; मात्र 26 ओबीसी और एससी-एसटी वर्ग के हैं. जबकि उत्तर प्रदेश में पिछड़ी जातियों का आंकड़ा 52 प्रतिशत के करीब है और 22 प्रतिशत एससी व एसटी हैं. इससे साफ है कि जातिगत आधार पर पार्टी संगठन में बड़ा ऊंच-नीच है. 74 प्रतिशत हिस्से वाले समाज को महज 15 प्रतिशत हिस्सेदारी दी गई. पार्टी के एक नेता कहते हैं, ‘संगठन के स्तर पर इस तरह का खेल सालों से होता आ रहा है, ऐसे में पार्टी 74 प्रतिशत लोगों के बीच अपनी पैठ कैसे बना सकती है?’ इतना ही नहीं, संगठन में कई ऐसे दागी छवि वाले लोगों को भी स्थान दिया गया जिन पर आपराधिक मामले हैं. मसलन पूर्व अध्यक्ष रीता जोशी के समय पेशे से ट्रांसपोर्टर दलजीत सिंह को 51 सदस्यीय प्रदेश कार्यकारिणी का सदस्य बनाया गया जिसका चुनाव हाईकमान की ओर से किया जाता है. सिंह करोड़ों रुपये के खाद्यान्न घोटाले के आरोपित हैं और सीबीआई ने उनके यहां छापा भी मारा था.

सवाल उठता है कि आखिर 62 साल के निर्मल खत्री अचानक ही पार्टी की पहली पसंद कैसे बन गए. कांग्रेसी नेता सुरेंद्र राजपूत बताते हैं, ‘खत्री छात्र राजनीति से ही युवक कांग्रेस से जुड़े हैं.

सवाल उठता है कि आखिर 62 साल के निर्मल खत्री अचानक ही पार्टी की पहली पसंद कैसे बन गए. कांग्रेसी नेता सुरेंद्र राजपूत बताते हैं, ‘खत्री छात्र राजनीति से ही युवक कांग्रेस से जुड़े हैं. उनका किसी गुट या खेमे से भी कोई लेना-देना नहीं है. फैजाबाद संसदीय सीट से सांसद खत्री अपने शालीन व्यवहार के लिए भी आम कार्यकर्ता के बीच पहचाने जाते हैं. पार्टी में राजनीतिक उतार-चढ़ाव भले ही आए हों लेकिन खत्री ने कभी पार्टी नहीं छोड़ी.’ छात्र राजनीति से शुरुआत करने वाले खत्री की छवि अपने इलाके और पार्टी में साफ-सुथरे और शालीन व्यक्ति की रही है. पार्टी में तमाम राजनीतिक उतार-चढ़ाव उन्होंने देखे. किनारे भी कर दिए गए, लेकिन अवसरवादी उदाहरणों से भरी प्रदेश की राजनीति में उन्होंने इस तरह के हथकंडे कभी इस्तेमाल नहीं किए. राजपूत बताते हैं कि संगठन से जुड़े ऐसे तमाम पुराने लोग जो उपेक्षा और गुटबाजी के कारण पार्टी से बाहर हो गए थे, अब एक बार फिर से पार्टी को अपनी सेवाएं दे सकेंगे.

नेतृत्व परिवर्तन के अलावा पार्टी हाईकमान प्रदेश कांग्रेस को संगठनात्मक रूप से मजबूत करने के लिए कई अन्य बड़े बदलाव भी करने जा रही है. सूत्र बताते हैं कि पूरे प्रदेश को आठ जोनों में बांटा जा रहा है. पार्टी के सांसदों व मंत्रियों को एक-एक जोन की जिम्मेदारी सौंपी जाएगी. एक जोन में 10 लोकसभा सीटों को शामिल किया जाएगा. प्रत्येक जोन के नेता को हाईकमान की ओर से इस बात की पूरी छूट होगी कि प्रदेश अध्यक्ष की सहमति से वह अपने यहां शहर व जिला अध्यक्षों की नियुक्ति कर सकता है. इन संकेतों से साफ है कि आने वाले दिनों में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस बड़े पैमाने पर संगठनात्मक फेरबदल करने का मन बना चुकी है. पार्टी के एक नेता कहते हैं, ‘पिछले विधानसभा चुनाव के समय पार्टी ने जो गलती की थी उसे फिर से दोहराया नहीं जाएगा.’ साफ है कि उनका इशारा बाहर से आने वाले नेताओं को अधिक तवज्जो व सम्मान देने की तरफ है.