घातक साबित हो रही रासायनिक खेती

30-35 वर्षों में ही ख़त्म हो गयी जैविक खेती, किसानों के साथ लगातार किया जा रहा धोखा

योगेश

अब हमारे किसानों को सस्ती और सुलभ खाद देने के नाम पर आत्मनिर्भर लिखे खाद के बोरों में चीन द्वारा निर्मित की उर्वरक खाद मिल रही है। चीन में बन रही खाद के बोरों पर फोटो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लगी है। यह सब देश और किसानों से धोखा है, और जैविक खेती पर एक बहुत बड़ा कुठाराघात है। यह हम सब जानते हैं कि उर्वरक खादों और कीटनाशक दवाओं के उपयोग से खाद्य पदार्थ ज़हरीले हो रहे हैं, जो की कई बीमारियों को बढ़ावा दे रहे हैं। लेकिन अब उसपे यह भी साज़िश हो रही है कि अब उर्वरक खाद चीन से मँगायी जा रही है, जो कि किसानों के साथ एक बड़ा धोखा है। कई किसान और कीटनाशक व खाद विक्रेता बताते हैं कि अब चीन के कई कीटनाशक भी बाज़ार में उपलब्ध हैं। पहले किसान नक़ली / घटिया खाद और नक़ली कीटनाशकों के शिकार थे, अब वो उससे भी ख़राब खाद और कीटनाशकों के शिकार होने लगे हैं।

चीन से आ रही खाद और कीटनाशक से फ़सलों को नुक़सान तो हो ही रहा है, इसके अलावा किसानों और हर किसी को नुक़सान हो रहा है। हमारी सरकार ने जिस बेशर्मी से चीन की खाद पर आत्मनिर्भर भारत लिखकर उस पर प्रधानमंत्री को फोटो छापी है, वो सरकार की लापरवाही और किसानों से की जा रही धोखेबाज़ी को दर्शाती है। एक ख़बर में लिखा था कि अगर इफको के एमडी यू.एस. अवस्थी कोई मामूली आदमी होते, तो जेल में होते; क्योंकि खाद आयात पर करोड़ों रुपये का घपला हुआ है। इस घपले को लेकर सीबीआई और ईडी ने यू.एस. अवस्थी पर मुक़दमे दर्ज किये हैं; लेकिन जाँच के नाम पर कुछ खास नहीं हो रहा है और यू.एस. अवस्थी केंद्रीय मंत्रियों के साथ नज़र आ रहे हैं।

संयुक्त राष्ट्र के कॉमट्रेड के आँकड़ों के अनुसार, हमारे देश में पिछले साल चीन से 2.34 अरब डॉलर की खाद निर्याक की गयी थी। हमारे देश में चीन और दूसरे देशों से लगभग 30 प्रतिशत यूरिया आती है, जिसमें चीन की हिस्सेदारी बहुत बड़ी है। दुनिया की सबसे बड़ी सहकारी कम्पनी इफको अपने बोरों में चीन की खाद बेच रही है और सबको मूर्ख बनाने के लिए इन बोरों पर प्रधानमंत्री की फोटो छापकर सशक्त किसान-आत्मनिर्भर भारत लिखवा दिया है; जबकि इन पर उद्गम स्थल चाइना लिखा है।

इस धोखेबाज़ी को जब कुछ लोगों ने उजागर किया, तो इफको के एमडी यू.एस. अवस्थी ने इसे भ्रामक बताते हुए कहा है कि ऐसा करने वालों के पास समझ का अभाव है। इफको के एमडी को बताना चाहिए कि घपलों को उजागर करना समझ का अभाव कैसे है? देश में लोगों और जैविक खेती को जो नुक़सान चीन के उत्पादन पहुँचा रहे हैं, पैसे कमाने के लालच में उसको बढ़ावा देना कौन-सी समझदारी है? जिससे आज देश की एक बड़ी आबादी ज़हरीला भोजन करने को मजबूर है। हमारे देश में लगभग 30-35 वर्षों में जैविक खेती को साज़िश से ख़त्म किया गया है। अब जैविक खेती की ज़रूरत किसानों को महसूस होने लगी है। लेकिन फ़सलों के ज़्यादा पैदावार के लालच और सरकार की लापरवाही ने जैविक खेती को बड़ा नुक़सान पहुँचाता है। उर्वरक से पैदा की जा रही फ़सलों से पैदा खाद्य पदार्थ खाने से बीमारियाँ बढ़ रही हैं। गाँव के लोग और किसान कभी बीमार नहीं पड़ते थे, वे भी अब कई-कई बीमारियों के शिकार हैं। ऐसे में किसानों को जैविक खेती की ओर लौटना चाहिए।

देश में रासायनिक उर्वरकों की माँग बढऩे के नाम पर सरकार रासायनिक उर्वरकों का उत्पादन बढ़ा रही है। इसमें किसानों की भी $गलती कम नहीं है। किसानों ने ज़्यादा फ़सल उत्पादन के लालच में जैविक खाद बनाना लगभग 88 प्रतिशत कम कर दिया है। पशुपालन भी कम कर दिया है। देसी खाद के अभाव में उन्हें मजबूरन उर्वरक खाद फ़सलों में लगानी पड़ती है। इस खाद में नक़ली, कृत्रिम और चीन की घटिया खाद भी शामिल है। इस लाचारी के चलते बीते 20 वर्षों में हमारे देश में रासायनिक उर्वरकों की लगभग 73 लाख मीट्रिक टन माँग बढ़ी है। उर्वरक खाद की इस आपूर्ति के लिए सरकार रासायनिक उर्वरक खादों को बाहर से मँगाती है। लेकिन यह भी तो पूछने वाली बात है कि चीन की खाद बोरों में भरकर उस पर आत्मनिर्भर भारत किस बूते लिखा गया है? क्या किसानों को जैविक खेती से अवगत कराना और रासायनिक उर्वरकों के उपयोग को कम करने पर ज़ोर देना सरकार की एक नैतिक ज़िम्मेदारी नहीं है?

2001 में मध्य प्रदेश में जैविक खेती करने के लिए आन्दोलन चलाया गया था। इस आन्दोलन के तहत मध्य प्रदेश के सभी विकासखण्डों के कम-से-कम एक गाँव में जैविक खेती की शुरुआत की गयी थी। लेकिन मध्य प्रदेश में भी जैविक खेती कोई ऐसा क्रान्तिकारी काम नहीं कर सकी कि बाक़ी किसान भी इससे प्रभावित होकर जैविक खेती करना शुरू कर देते। हालाँकि एक परिवर्तन पिछले कुछ वर्षों में देखने को देश भर में मिला है कि कई किसान फिर से जैविक खेती करने लगे हैं। इसमें उर्वरक खादों की तरह बोरों में जैविक खाद बनाकर भरने वाले कुछ उद्यमी किसान बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। अब जैविक खाद भी रासायनिक उर्वरक खादों की तरह फ़सलों को अधिक उपजाऊ बनाने वाली तैयार की जाने लगी है। इसके अलावा जैविक फ़सलों के दाम उर्वरक फ़सलों के दामों से तीन से चार गुने ज़्यादा किसानों को मिलते हैं। इससे जो घाटा फ़सल उत्पादन में किसानों को होता है, वो खाद्य पदार्थ महँगे बिकने से पूरा हो जाता है।

हमारी सरकार को चाहिए कि वो जैविक खेती को बढ़ावा दे और जैविक खेती प्रणाली को टिकाऊ बनाए। जैविक खेती केवल हमारे लिए ही लाभकारी नहीं है, हमारे पर्यावरण के लिए भी लाभकारी है। जैविक खेती का चक्र फ़सलों, पशुओं, फ़सल मित्र कीटों और हम इंसानों की बीच घूमता है। जैविक खेती करने पर इनमें परस्पर मित्रता और एक-दूसरे पर निर्भरता रहती है, जो कि वातावरण के लिए बहुत ज़रूरी है। इसके अलावा जैविक खेती में कृषि उद्योग पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देता है। मिट्टी उपजाऊ और ज़हरमुक्त बनती है, जो कि हमारे स्वास्थ्य के लिए सबसे ज़रूरी है। मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढऩे लगती है, जिससे खरपतवार बढ़ती है, जो कि निराई-गुड़ाई से मिट्टी में खाद का काम करती है और मिट्टी को उपजाऊ बनाती है। इससे मिट्टी में मौज़ूद पोषक तत्त्वों में संतुलन बनता है। जैविक खाद्य पदार्थों को खाने से हम लोग और हमारे पशु बीमारियों से बचेंगे और लम्बी उम्र तक स्वस्थ रहेंगे।

किसानों को समझना होगा कि आज विश्व में जैविक खाद्य पदार्थों की माँग बढ़ रही है और जैविक खाद्य पदार्थों की क़ीमत बहुत ज़्यादा है। इससे बाज़ार में जैविक फ़सलों के भाव भी का$फी अच्छे मिलते हैं। आज पूरे विश्व में लगभग 130 देश जैविक खेती कर रहे हैं। जैविक खाद्य पदार्थों की माँग भी विश्व के ज़्यादातर देश कर रहे हैं, जिनकी माँग के हिसाब से जैविक खाद्य पदार्थों की आपूर्ति नहीं हो पा रही है। इस आपूर्ति में हमारा देश बड़ी भूमिका निभा सकता है। हमारे किसानों में जैविक खेती करने का हुनर भी है और हमारी जलवायु भी जैविक खेती के बहुत अनुकूल है। इसलिए सरकार को चाहिए कि वो जैविक खेती को बढ़ावा दे, न कि चीन से घटिया रासायनिक खाद मँगवाकर उसे किसानों को बेचकर खाद्य उत्पादों को और ज़हरीला बनाने में सहयोग करे। अभी समय है कि हम अपनी धरती माता को ज़हर मुक्त करें, क्योंकि अगर लम्बे समय तक रासायनिक उर्वरकों और ज़हरीले कीटनाशकों का उपयोग होता रहा, तो फिर हमारी उपयोगी कृषि की भूमि को ज़हरमुक्त करना बहुत मुश्किल हो जाएगा। विश्व के कई देश जैविक खेती की ओर रुख़ कर चुके हैं, हमारे देश में तो सदियों से जैविक खेती ही होती रही है। हमारे यहाँ लोगों के स्वस्थ रहकर जीने की उम्र भी इसलिए ही लम्बी रही है। लेकिन पिछले 30-35 वर्षों से हमने अपनी कृषि भूमि में उर्वरक और कीटनाशक के रूप में ज़हर बोना शुरू कर दिया है और हर दिन भोजन में थोड़ा-थोड़ा ज़हर भी खा रहे हैं। हमें इसे समझना होगा और समझकर जितनी जल्दी हो सके अपनी थाली से ज़हरीले भोजन को दूर करके शुद्ध जैविक भोजन परोसे जाने के लिए काम करना होगा। इसके लिए किसानों को सबसे पहले क़दम बढ़ाना होगा।